رضوی

رضوی

इस्राईल के अस्तित्व को ख़तरे में देखकर अमरीका ने तेज़ी से हाथपैर मारने शुरू कर दिये हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स के एक ईरानी यूज़र, अमरीका की ओर से अवैध ज़ायोनी शासन के चौतरफा समर्थन के संदर्भ में लिखते हैं कि अगर इस्राईल के अस्तित्व को वास्तव में ख़तरा हो तो उसको बाक़ी रखने के लिए वाशिग्टन, नेतनयाहू की भी बलि चढा सकता है।

अब्दुर्रहीम अंसारी लिखते हैं कि ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए अब छह महीने का समय हो रहा है।  ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के हाथों जातीय सफाए की कार्यवाही के बावजूद, जिसमें महिलाएं और बच्चे सब ही मारे जा रहे हैं, किसी भी अमरीकी राजनेता की आवाज़ बुलंद नहीं हुई।  वे लिखते हैं कि अब जबकि वास्तव में इस्राईल के अस्तित्व को गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है तो अब वहां से हर ओर से संघर्ष विराम की आवाज़ें आने लगी हैं।अब अमरीकी, राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव वीटो नहीं कर रहा है।  यहां तक कि डोनाल्ड ट्रम्प जो, इस्राईल की सेवा करने के लिए मर है, वह भी युद्ध की समाप्ति की बात कर रहा है।

बाइडेन प्रशासन नेतनयाहू को किनारे लगाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप में प्रयास कर रहा है।  यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि पूरे इस्राईल का अस्तित्व ही ख़तरे में है।  अगर आवश्यक हुआ तो नेतनयाहू की भी बलि दी जा सकती है।

अमेरिकी विदेश नीति के अंग के रूप में यहूदी लॉबी को विशेष स्थान प्राप्त है।

हालांकि यहूदी, अमेरिकी आबादी का केवल तीन प्रतिशत ही हैं, फिर भी वे अमेरिकी सत्ता संरचना में सबसे प्रभावशाली जातीय अल्पसंख्यक बनने में कामयाब रहे हैं। अमेरिका में यहूदी लॉबी के अलग-अलग एजेंडे हैं लेकिन उसका मुख्य ध्यान, अमेरिका-इस्राईल संबंधों पर केन्द्रित है।

इस्राईल के समर्थन में लॉबी के प्रयास कई यहूदी संगठनों के संयुक्त प्रयास का नतीजा हैं जिनमें सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध अमेरिकी यहूदी संगठन के रूप में अमेरिकन-इस्राईल पब्लिक अफेयर्स कमेटी (एआईपीएसी) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।

यह संगठन अमेरिका में अधिकांश यहूदी संगठनों की गतिविधियों की योजना और समन्वय के लिए ज़िम्मेदार है और ज़ायोनी हितों के साथ अमेरिकी नीतियों के समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह समन्वय कांग्रेस के सदस्यों और कार्यकारी शाखा के उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ संपर्क और रचनात्मक संचार के माध्यम से होता है जिससे इस्राईल के पक्ष में विधायी पहल की शुरुआत होती है जो इस शासन के अस्तित्व, बाक़ी रहने और सुरक्षा की गारंटी देता है।

आज अमेरिका और इस्राईल को एक ख़ास रिश्ते के पक्ष के तौर पर जाना जाता है। इस विशेष रिश्ते और इस्राईल के लिए अमेरिका के व्यापक समर्थन का सबसे महत्वपूर्ण कारण, एआईपीएसी जैसे संगठनों का अस्तित्व है, जो हमेशा वाशिंगटन और तेल अवीव के लिए सामान्य ख़तरों की ओर इशारा करते हैं और अमेरिकी राजनेता दोनों के रणनीतिक सहयोग की घोषणा करते हैं और कहते हैं कि दोनों पक्षों का लक्ष्य, इन ख़तरों को ख़त्म करना है।

कई यहूदी संगठनों का गठन करके यह ग्रुप बहुत व्यापक धार्मिक और जातीय संबंधों का उपयोग करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्णय लेने वाले निकाय में अपने प्रभाव को सुचारू करने की कोशिश कर रहा है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अमेरिका की विदेश नीति तंत्र का मार्गदर्शन करना चाहता है।

एआईपीएसी (AIPAC) अमेरिकी चुनाव के उम्मीदवारों चाहे कांग्रेस के चुनाव हों या राष्ट्रपति पद के चुनाव, के समर्थन में अपनी व्यापक आर्थिक और विज्ञापन शक्ति के उपयोग के माध्यम से उन समाधानों को आगे बढ़ाता है, जिनकी राय इस संगठन की राय से मेल खाती है।

इस प्रकार एआईपीएसी की प्रभावशीलता का एक मुख्य कारण अमेरिकी कांग्रेस में इसका प्रभाव है जहां इस्राईल किसी भी आलोचना से लगभग अछूता है।

हालांकि कांग्रेस कभी भी विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा करने से नहीं कतराती है लेकिन जब इस्राईल की बात आती है तो संभावित आलोचकों को चुप करा दिया जाता है और शायद ही कभी चर्चा होती है।

एआईपीएसी की सफलता उसके कार्यक्रमों का समर्थन करने वाले सांसदों और कांग्रेस के उम्मीदवारों को पुरस्कृत करने की क्षमता और उसके कार्यक्रमों का विरोध करने वालों को दंडित करने की क्षमता की वजह से है।

इसके अलावा कार्यकारी शाखा में एआईपीएसी का प्रभाव आंशिक रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में यहूदी मतदाताओं के प्रभाव से ही पैदा होता है। यहूदी, अपनी कम संख्या के बावजूद भी दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को बड़ा वित्तीय योगदान देते हैं।

इसके अलावा, चुनावों में यहूदी प्रत्याशियों की दर अधिक है और वे कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, इलिनोइस, न्यूयॉर्क और पेंसिल्वेनिया जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में केंद्रित हैं।

यह संगठन इस्राईल और दुनिया के सबसे विवादास्पद क्षेत्र, विशेषकर पश्चिम एशियाई क्षेत्र से संबंधित मामलों में दुनिया की महान शक्तियों की नीतियों को प्रभावित करने के लिए अमेरिका में ज़ायोनियों का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण और हथकंडा है।

यह विषय इतना महत्वपूर्ण है इसीलिए इसके बारे में यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि "इस्राईल प्रेशर ग्रुप और अमेरिकी विदेश नीति" नामक पुस्तक में "जॉन मर्सहाइमर" और "स्टीफन वॉल्ट" का मानना ​​​​है कि इस तथ्य के बावजूद कि कोई भी रणनीतिक या नैतिक विचार, इस्राईल के लिए अमेरिकी समर्थन के वर्तमान स्तर को कम नहीं कर सकता है लेकिन उनका दावा है कि इस असामान्य स्थिति का मुख्य कारण अमेरिका में यहूदी लॉबी का प्रभाव है।

उनका मानना ​​है कि 2003 में इराक़ में विनाशकारी युद्ध में अमेरिका को घसीटने और ईरान तथा सीरिया के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयासों को ख़राब करने में इस्राईली लॉबी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी।

इसीलिए पुस्तक के लेखक मध्यपूर्व में अमेरिकी विदेश नीति की मुख्य दिशा के रूप में इस्राईली लॉबी का परिचय देते हैं जो एआईपीएसी के केंद्र में है।

एआईपीएसी का प्रभाव और असर ऐसा रहा है कि कई मामलों में उसने अमेरिकी अधिकारियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध अपनी नीतियों को इस्राईल की नीतियों के साथ तैयार करने करने के लिए प्रेरित किया है।

इसका एक स्पष्ट उदाहरण एआईपीएसी के दबाव के तहत पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा फ़िलिस्तीनी राज्य स्थापित करने के अपने वादे से पीछे हटना है।

यह ऐसी हालत में है कि जब बुश ने इराक़ पर क़ब्ज़े के बाद एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन करने का वादा किया था और फ़िलिस्तीनियों और इस्राईल के बीच संघर्ष को हल करने के लिए एक रोड मैप नामक कार्यक्रम भी तैयार किया था लेकिन ज़्यादा समय नहीं बीता कि एआईपीएसी गुस्सा और चिंता बढ़ गयी जिसके बाद वाशिंग्टन इस वादे से पीछे हट गया और एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना का मुद्दा फिर से ठंडे बस्ते में चला गया।

इसके अलावा, एआईपीएसी की वार्षिक बैठक में ओबामा के भाषण से न केवल मध्यपूर्व संकट का समाधान नहीं निकला, बल्कि क्षेत्र के मुस्लिम देशों की नाराज़गी में वृद्धि ही हुई।

यह भाषण क्षेत्र के देशों को संबोधित करने के बजाय संयुक्त राज्य अमेरिका में ज़ायोनी लॉबी का समर्थन हासिल करने के लिए दिया गया था। हालिया वर्षों में किसी ने भी इस्राईल की उतनी सेवा नहीं की जितनी ट्रम्प ने की है।

इस तरह से कि मध्यपूर्व में ट्रम्प के सभी काम या तो नेतन्याहू द्वारा वांछित दो-सरकारी योजना को एक-सरकारी योजना से बदलने के बारे संदर्भ में हो या अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने के बारे में हो या जेसीपीओए से निकलने और ईरान के ख़िलाफ़ ज़्याद से ज़्यादा दबाव और प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में हो या आईएसआईएस के ख़िलाफ़ जंग के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का मामला हो, यह सभी मामलों को नेतन्याहू ने ही तय किया था जिसे एआईपीएसी के प्रभुत्व के माध्यम से ट्रम्प प्रशासन को सूचित किया गया था।

यह लेख पारसा जाफ़री ने लिखा है जिसे ईरानी डिप्लोमेसी वेबसाइट से लिया गया है

फिलिस्तीन के जेहादे इस्लामी आंदोलन के महासचिव ज़ियाद अन्नख़ाला और उनके साथ तेहरान की यात्रा पर आये प्रतिनिधिमंडल ने गुरूवार की दोपहर को ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता से मुलाकात की।

इस मुलाकात में सर्वोच्च नेता ने प्रतिरोध और ग़ज्जा के लोगों को अबतक का रणक्षेत्र का विजयी बताया और बल देकर कहा कि इज़्ज़त के चरम शिखर के साथ फिलिस्तीन और ग़ज्जा के लोगों का प्रतिरोध और इस 6 महीने की जंग में जायोनी सरकार की नाकामी एक ईश्वरीय घटना व हादसा है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने इस भेंट में जायोनी सरकार द्वारा ग़ज्ज़ा के लोगों की हत्या करने में उसके अपराधों की ओर संकेत करते हुए कहा इतने अधिक सैनिक हथियारों, संसाधनों और दुनिया की अत्याचारी ताकतों के समर्थन के बावजूद जायोनी सरकार महिलाओं और बच्चों की हत्या कर रही है जो इस बात का सूचक है कि यह सरकार प्रतिरोध का मुकाबला करने और उसे पराजित करने की ताक़त नहीं रखती।

सर्वोच्च नेता ने फिलिस्तीन के जेहादे इस्लामी आंदोलन के महासचिव को संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर की कृपा से आप गज्जा के लोगों की अंतिम विजय को देखेंगे।

फिलिस्तीन के जेहादे इस्लामी के महासचिव ने भी इस भेंट में इस्लामी गणतंत्र ईरान द्वारा फिलिस्तीन के समर्थन की सराहना की और शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी को याद किया और कहा आज गज्जा में जो कुछ हो रहा है वह वास्तव में कर्बला की घटना दोहराई जा रही है और समस्त सख्तियों और षडयंत्रों के बावजूद गज्जा के लोग अदम्य साहस के साथ प्रतिरोध के साथ डटे हुए हैं और उन्होंने अपने प्रतिरोध से प्रतिरोध को समाप्त करने हेतु अमेरिका, जायोनी सरकार और उसके समर्थकों के षडयंत्रों को नाकाम कर दिया है।

ज़ियाद नख़ाला ने प्रतिरोधक बलों विशेषकर हमास और जेहादे इस्लामी के बीच पूर्ण समन्वय पर बल देते हुए कहा कि ग़ज़्ज़ा के लोग और प्रतिरोधक बल अंतिम विजय मिलने तक डटे रहने का पक्का इरादा व दृढ़ संकल्प रखते हैं और ईश्वर की कृपा से अंतिम विजय अधिक दूर नहीं है।

गाजा में ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए नरसंहार और अपराधों के खिलाफ और फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को, संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और ट्यूनीशिया में प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं।

हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार, मिस्र में फ़िलिस्तीन के समर्थकों ने काहिरा में प्रेस क्लब के सामने प्रदर्शन किया है और गाजा में ज़ायोनी सरकार के नरसंहार शासन के हमलों और अपराधों को रोकने के लिए तत्काल उपाय करने की मांग की है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्मोंट विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और गाजा पट्टी में कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के हमलों और अपराधों को समाप्त करने की मांग की। मोरक्को के शहर दार अल-बयदा में भी नरसंहारक ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ और गाजा पट्टी में इस कब्ज़ा करने वाली सरकार के लगातार हमलों के विरोध और निंदा में प्रदर्शन हुए।

ट्यूनीशिया के लोगों ने भी फिलिस्तीन और गाजा पट्टी के समर्थन में स्फ़ैक्स शहर में प्रदर्शन किया। ब्रिटेन में भी फिलिस्तीन के समर्थकों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया और मांग की कि लंदन कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार के अपराधों का समर्थन करना बंद कर दे, लेकिन ब्रिटिश सरकार अब प्रदर्शनकारियों की मांगों पर अभी तक विचार नहीं किया गया है.

इस बीच, जॉर्डन के लोगों ने अम्मान में ज़ायोनी सरकार के दूतावास के पास उत्पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में जोरदार प्रदर्शन किया और गाजा पट्टी में ज़ायोनी सरकार के अपराधों के बारे में अपनी नफरत और गुस्सा व्यक्त किया।

ईरान के राष्ट्रपति ने गाजा के उत्पीड़ित और शक्तिशाली लोगों और प्रतिरोध गुट के समर्थन में इस्लामी गणतंत्र ईरान की रणनीति पर जोर देते हुए कहा कि गाजा के लोगों की दृढ़ता ने ज़ायोनी शासन के खिलाफ प्रतिरोध की ताकत और श्रेष्ठता साबित कर दी है। .

ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रायसी ने फिलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव ज़ियाद अल-नखला के साथ एक बैठक में प्रतिरोध बलों की बहादुरी और दृढ़ता का उल्लेख करते हुए फिलिस्तीनी समूहों के बीच एकता और एकजुटता की प्रशंसा की। ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ और कहा कि आज गाजा ज़ायोनी शासन और संयुक्त राज्य अमेरिका के काले और अभूतपूर्व अपराधों की तुलना में फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध और दृढ़ विश्वास का दृश्य प्रस्तुत करता है।

राष्ट्रपति ने प्रतिरोध समूहों और गाजा के लोगों की श्रेष्ठता की ओर इशारा किया और कहा कि फिलिस्तीनी लोगों और प्रतिरोध ने ज़ायोनी शासन की क्रूरता और अपराधों का विरोध करने के लिए अपना एकमात्र विकल्प घोषित किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि यह तथ्य कि यह सरकार अजेय है, झूठ है और गाजा के लोगों ने साबित कर दिया है कि यह सरकार किसी भी स्तर पर किसी भी कानून, अंतरराष्ट्रीय समझौते और मानवीय सिद्धांतों का सम्मान नहीं करती है।

इस्लामी क्रांति के नेता ने प्रतिरोध बलों और गाजा के लोगों को मैदान का विजेता घोषित किया और कहा कि ज़ायोनी सरकार द्वारा प्राप्त विफलताओं के पीछे गाजा और फिलिस्तीन के लोगों के सम्मान और दृढ़ता की ऊंचाई और ईश्वर की विशेष कृपा थी। छह महीने के युद्ध में. है.

इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने गुरुवार शाम को फिलिस्तीनी इस्लामी जिहाद आंदोलन के महासचिव और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक में गाजा के लोगों के नरसंहार में ज़ायोनी सरकार के बढ़ते अपराधों का उल्लेख किया। कहा कि ये कब्जाधारी ज़ायोनी शासन दुनिया की दमनकारी शक्तियों के समर्थन और समर्थन से उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ रहा है और बच्चों और महिलाओं का नरसंहार कर रहा है। और उन्हें हराने में सक्षम नहीं है।

हज़रत अयातुल्ला आज़मी खामेनेई ने फ़िलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव को संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर की कृपा और दया से, वह गाजा के लोगों की अंतिम जीत और सफलता के गवाह बनेंगे।

फिलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद मूवमेंट के महासचिव ज़ियाद अल-नखला ने भी फिलिस्तीन के संबंध में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की मदद और समर्थन की सराहना करते हुए जनरल शहीद कासिम सुलेमानी को श्रद्धांजलि दी और कहा कि तमाम कठिनाइयों और साजिशों के बावजूद गाजा के लोगों ने प्रतिरोध बलों के पक्ष में खड़े होकर और अपने अद्वितीय बलिदान देकर, प्रतिरोध को नष्ट करने की संयुक्त राज्य अमेरिका, ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों की सभी योजनाओं को कुचल दिया है।

फ़िलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव ने हमास आंदोलन और इस्लामिक जिहाद और अन्य प्रतिरोध बलों के बीच पूर्ण समन्वय का उल्लेख किया और कहा कि गाजा के लोग और प्रतिरोध बल तब तक डटे रहेंगे जब तक कि वे अपनी अंतिम और निश्चित जीत हासिल नहीं कर लेते और ईश्वर की कृपा से कृपा और कृपा से उन्हें निकट भविष्य में परम सफलता मिलेगी।

इस्लामी गणतंत्र ईरान ने गाजा में कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के व्यवस्थित नरसंहार के लिए दुनिया की राष्ट्रीय सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और कानूनी संस्थानों को ज़िम्मेदार ठहराया है।

आईआरएनए के अनुसार, इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने गाजा में ज़ायोनी सरकार द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के व्यवस्थित नरसंहार के संबंध में कहा है कि, मंत्रालय के प्रवक्ता इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मामलों के मंत्री नासिर कनानी ने कहा है कि राष्ट्रीय ही नहीं विश्व जनमत बल्कि इतिहास भी सरकारों और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और कानूनी संस्थानों के बारे में फैसला करेगा।

ईरान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने विदेश मंत्रालय के एक्स पेज पर लिखा है कि फिलिस्तीनियों के खिलाफ ज़ायोनी सरकार के व्यवस्थित नरसंहार की संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत द्वारा स्पष्ट रूप से पुष्टि की गई है। उन्होंने लिखा है कि इस रिपोर्ट के आने के बाद दुनिया की राष्ट्रीय सरकारें और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और कानूनी संस्थाएं न केवल विश्व जनमत के फैसले का बल्कि इतिहास के फैसले का भी सामना कर रही हैं कि वे अपने मानवीय, कानूनी और ऐतिहासिक कर्तव्यों का पालन करें. नहीं।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल रैपोर्टेयर फ्रांसेस्का अल्बानीज ने फिलिस्तीन के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि गाजा पर इजरायल के हमले करीब 6 महीने से जारी हैं. मैं अपनी जांच रिपोर्ट पेश कर रहा हूं कि गाजा में संगठित नरसंहार किया गया है.

दुनिया भर के 2 हज़ार से अधिक मनोवैज्ञानिकों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव और संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला अधिकार आयोग के सचिव को एक पत्र लिखकर इस आयोग से ज़ायोनी शासन को निष्कासित किए जाने की मांग की है।

 पत्र में इन मनोवैज्ञानिकों ने ग़ज़ा में महिलाओं और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की उदासीनता पर गहरी चिंता व्यक्त की और ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के बर्बर अपराधों की निंदा की।

इस पत्र में कहा गया है कि आज दुनिया के मनोवैज्ञानिकों का अहम सवाल यह है कि क्या महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र संघ का आयोग सिर्फ कुछ देशों के लिए ही है और क्या ग़ज़ा के लोगों और वहां की महिलाओं और बच्चों को इस संगठन में जगह पाने का कोई अधिकार नहीं है?

क्या महिला आयोग के सम्मानित सदस्यों ने कभी उन महिलाओं और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सोचा है जो अपने दिन की शुरुआत बम, आग और गोलियों की आवाज़ से करते हैं

फ़िलिस्तीनी महिलाएं और बच्चे इज़रायली अपराधों के मुख्य शिकार हैं

इस पत्र में इन मनोवैज्ञानिकों ने कुछ सवाल भी किए है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि ज़ायोनी शासन इन सभी भयानक उल्लंघनों के बावजूद अभी भी इस आयोग का सदस्य बना रहे और 25 हजार से अधिक निर्दोष महिलाओं और बच्चों का खून पीकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की बात करता रहे है?

ज़ायोनी शासन महिलाओं के अधिकारों का दावा करता है जबकि ग़ज़ा युद्ध में मारे गए लोगों में लगभग 70 प्रतिशत निर्दोष महिलाएं और बच्चे हैं! क्या संयुक्त राष्ट्र संघ की आंख, और कान जो कि एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, इस भयानक अपराध पर बंद हैं?

ग़ज़ा पर हमले में 25 हजार महिलाएं और बच्चे भी शामिल  अंत में दुनिया भर के मनोवैज्ञानिकों ने इस्राईल के अपराधों की अनदेखी के दुष्परिणामों पर चेतावनी दी जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्वसनीयता को होने वाले नुक़सान की भी चेतावनी दी और इस घृणित और जाली शासन को जल्द से जल्द इससे जुड़े सभी मामलों से बाहर करने की मांग की।

7 अक्टूबर, 2023 से, पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से, इस्राईल ने ग़ज़ा पट्टी और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर मज़लूम, असहाय और उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ एक नई सामूहिक हत्या का कार्यक्रम शुरू कर रखा है।

शुक्रवार, 29 मार्च 2024 11:41

शबे क़द्र के आमाल

माहे मुबारक रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेइसवीं शबे क़द्र के मुश्तरका आमाल

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,माहे मुबारक रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेइसवीं शबे क़द्र के मुश्तरका आमाल

  1) वक़्त ग़ुरूबे आफ़ताब (सूरज डूबने के क़रीब) ग़ुस्ल करें ताकि नमाज़े मग़रिब ग़ुस्ल की हालत में हो।

  2) दो रकत नमाज़ जिसमें एक बार "सूरए हम्द" और सात बार "सूरए क़ुल-हु-वल्लाह" पढ़ें, दूसरी रकत भी इसी तरह पढ़ें।

  3) नमाज़ के बाद सत्तर बार अस-तग़-फ़िरुल्लाह व अतूबु इलैह पढ़ें।

  4) फिर क़ुरआन खोलकर यह दुआ पढ़ें:

  "बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम"

  "अल्लाह हुम्मा इन्नी अस अलुका बे किताबिकल मुन्ज़लि व मा फ़ीहि व फ़ीहि इस्मुकल अकबरो व अस्माओकल हुस्ना व मा युख़ाफ़ु व युरजा अन तज अलनी मिन उतक़ाएक़ा मिनन नारे व तकज़िया हवाएज लिद-दुनिया वल आख़िरा...

  इसके बाद सभी के लिए दुआ करें और अपनी हाजात तलब करें!

  5) इसके बाद क़ुरआन को

सर पर रखें और यह दुआ पढ़ें:

  "बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम"

  अल्लाह हुम्मा बेहक़्क़े हाज़ल क़ुरआने व बेहक़्क़े मन अर सल तहु बेहि व बेहक़्क़े कुल्ले मोमिनीन मदहतहु फ़ीहि व बे हक़्क़े का अलैहिम फ़ला अहदा आ रफ़ु बे हक़्क़े का मिनका...

  दुआ करें और हाजात तलब करें।

  6) उसके बाद सर पर क़ुरआन रखें और सभी नामों को दस दस बार पढ़ें:

  1) बेका या अल्लाहु

  2) बे मुहम्मदिन (स)

  3) बे अलिय्यिन (अ)

  4) बे फ़ातिमता (स)

  5) बिल हसने (अ)

  6) बिल हुसैने (अ)

  7) बे अली इब्निल हुसैने (अ)

  8) बे मुहम्मद इब्ने अली (अ)

  9) बे जाफ़र इब्ने मुहम्मद (अ)

  10) बे मूसा इब्ने जाफ़र (अ)

  11) बे अली इब्ने मूसा (अ)

  12) बे मुहम्मद इब्ने अली (अ)

  13) बे अली इब्ने मुहम्मद (अ)

  14) बिल हसन इब्ने अली (अ)

  15) बिल हुज्जतिल क़ाएमे (अ)

  दुआ करें और हाजात तलब करें।

  ज़ियारते इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पढ़ें।

नोट: उन्नीसवीं रमज़ानुल मुबारक की शब में "अल्लाह हुम्मल अन क़तलतल अमीरुल मोमिनीन" सौ बार पढ़ें और इसी शब में "अस-तग़ फ़िरुल्लाह रब्बी व अतूबु इलैह" सौ बार पढ़ें।

तेइसवीं शबे क़द्र में सौ रकत नमाज़ और सौ बार सूरए "इन्ना अन ज़लना" पढ़ें और तस्बीह हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) पढ़ें और दुआ ए जोशने कबीर भी पढ़ें।

 

 

 

 

शुक्रवार, 29 मार्च 2024 11:40

शब ए कद्र की अहमियत

इमाम अली अ.स. ने एक रिवायत में शब ए कद्र की अहमियत की ओर इशारा किया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "वसलुश् शिया,,पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

:قال امیرالمومنین علیه السلام

 رَأْسُ السَّنَـةِ لَيْلَةُ الْقَـدْرِ يُكْتَبُ فيها ما يَكُونُ مِنَ السَّنَةِ اِلَى السَّنَةِـةِ لَيْلَةُ الْقَـدْرِ يُكْتَبُ فيها ما يَكُونُ مِنَ السَّنَةِ اِلَى السَّنَةِـدْرِ يُكْتَبُ فيها ما يَكُونُ مِنَ السَّنَةِ اِلَى السَّنَةِ

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया:

साल का आधार और बुनियाद शब-ए-क़द्र हैं और इसमें 1 साल से दूसरे साल तक जो कुछ होता है लिखा जाता हैं।

वसलुश् शिया,भाग 7,पेंज 258,हदीस नं 8