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इस्राईल दुनिया के लिए सबसे स्पष्ट ख़तरा : अमीर अब्दुल्लाहियान
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री ने कहा है कि इस्राईल दुनिया के लिए सबसे स्पष्ट ख़तरा है और उन्होंने विश्व समुदाय का आह्वान किया है कि यह अतिग्रहणकारी और अपारथाइड सरकार विश्व की सुरक्षा को जिस खतरे में डाल रही है उससे निपटने के लिए वह ठोस दृष्टिकोण अपनाये।
विदेशमंत्री ने जनेवा में राष्ट्रसंघ के मुख्यालय में परमाणु निरस्त्रीकरण की कांफ्रेन्स में कहा कि ईरान समस्त परमाणु हथियारों को बिल्कुल से खत्म कर देने का आह्वान करता है और तेहरान का मानना है कि परमाणु हथियार अप्रसार संधि NPT के अनुसार जो देश परमाणु हथियारों से सम्पन्न हैं वे प्रभावी वार्ता करें और उसके परिणाम में परमाणु हथियारों को नष्ट करें।
अमीर अब्दुल्लाहियान ने इस कांफ्रेन्स में कहा कि इराक की बासी सरकार ने ईरान के खिलाफ जिन रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया उसकी वजह से ईरान द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सामूहिक विनाश के हथियारों की भेंट चढ़ने वाला सबसे बड़ा देश है। विदेशमंत्री ने कहा कि खेद की बात है कि पश्चिम एशिया को परमाणु हथियारों से मुक्त क्षेत्र बनाने के लिए हमारा सामूहिक प्रयास अमेरिका और उसके घटकों के क्रियाकलापों और इस्राईल की परमाणु गतिविधियों के समर्थन के कारण परिणामहीन रहा है। इसी प्रकार विदेशमंत्री ने कहा कि पश्चिम एशिया को परमाणु हथियार रहित बनाये जाने का सुझाव पहली बार ईरान ने वर्ष 1974 में दिया था
आज इस्लामी गणतंत्र ईरान दिवस राष्ट्रीय उत्साह के साथ मनाया जा रहा है
गणतंत्र दिवस के अवसर पर, पूरे ईरान में विभिन्न स्थानों पर इस्लामी गणतंत्र ईरान का झंडा स्थापित और फहराया जाता है, और राजधानी तेहरान सहित ईरान के हर शहर और कस्बे में विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
आज ईरान में इस्लामिक गणतंत्र दिवस है. आज ही के दिन साल 1989 में ईरान की इस्लामिक क्रांति की सफलता के महज दो महीने के भीतर ही इस्लामिक क्रांति के संस्थापक के आदेश पर जनमत संग्रह कराया गया था. , इमाम ख़ुमैनी। जिसके अंतर्गत इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था या किसी अन्य व्यवस्था का प्रश्न ईरानी जनता के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसमें अट्ठानवे प्रतिशत मतदाताओं ने इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्ष में मतदान किया और एक नया इतिहास रचा।
इस दिन की स्मृति में, ईरान में हर जगह इस्लामी गणतंत्र ईरान का झंडा स्थापित और फहराया जाता है, और राजधानी तेहरान सहित ईरान के हर शहर और कस्बे में विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
इस दिन, ईरानी लोग संस्थापक क्रांति और इस्लामी गणतंत्र ईरान के मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं और इस प्रणाली को और अधिक स्थिर बनाने के लिए अपने दृढ़ संकल्प की पुष्टि करते हैं। एक बड़ी सभा को संबोधित करेंगे। उल्लेखनीय है कि विशेष संदेश भी हैं इस अवसर पर विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं एवं संगठनों द्वारा जारी किये गये।
अल-शफा अस्पताल और उसके आसपास कयामत सुग़रा के दृश्य
गाजा में फ़िलिस्तीनी सरकार के सूचना कार्यालय ने घोषणा की है कि अल-शफ़ा अस्पताल के आसपास 4,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए हैं।
गाजा में फ़िलिस्तीनी सरकार के सूचना कार्यालय ने घोषणा की है कि ज़ायोनी सैनिकों ने अल-शफ़ा अस्पताल के आसपास के 1,500 घरों को नष्ट कर दिया और आग लगा दी।
रिपोर्ट के मुताबिक, ज़ायोनी सैनिकों ने गाजा में अल-शफ़ा अस्पताल के आसपास के इलाकों को निशाना बनाया और 4,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को मार डाला। इस कार्यालय ने ज़ायोनी अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी की निंदा की और संपूर्ण संकट की स्थिति के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को दोषी ठहराया। दूसरी ओर, गाजा में कमल अदवान अस्पताल के प्रमुख ने कहा है कि अस्पताल में चिकित्सा कर्मचारी बहुत कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं और घायलों को नवीनतम चिकित्सा संसाधनों की आवश्यकता है जिनकी वर्तमान में कमी है और घायलों को रक्त की भी आवश्यकता है जो उपलब्ध है। नहीं है।
फ़िलिस्तीनी रेड क्रिसेंट सोसाइटी का यह भी कहना है कि फ़िलिस्तीनियों के विस्थापन के कारण गाजा में स्वच्छता की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
अमेरिकी और इजराइली उत्पादों का बहिष्कार
गाजा में फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाने और क्रूर ज़ायोनी अपराधों की निंदा करने के लिए इराकी लोग शनिवार रात बगदाद के तहरीर चौक पर एकत्र हुए।
इराकी प्रदर्शनकारियों ने गाजा के लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त की और दमनकारी ज़ायोनी सरकार के लिए अमेरिकी समर्थन के प्रति अपनी घृणा और घृणा व्यक्त की और अमेरिकी और इजरायली उत्पादों का बहिष्कार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इराकी प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी और इजरायली उत्पादों के बहिष्कार के समर्थन में और ज़ायोनी कब्जेदारों के प्रति अरब शासकों की उदासीनता की निंदा करते हुए नारे लिखे बैनर ले रखे थे।
इराकी प्रदर्शनकारियों ने ज़ायोनी अपराधों की निंदा की और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की।
हजारों जॉर्डन फ़िलिस्तीनी समर्थकों ने भी फ़िलिस्तीनियों का समर्थन किया और ज़ायोनी अपराधों की निंदा की और अम्मान में ज़ायोनी दूतावास के सामने एकत्र हुए।
मोरक्को में भी हजारों लोग फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतरे.
मोरक्को की राजधानी रबात में, हजारों लोगों ने फिलिस्तीन के समर्थन में बैनर और तख्तियां पकड़ रखी थीं और फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता व्यक्त की और कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार के अत्याचारों की निंदा की। इसी तरह के सार्वजनिक प्रदर्शन मिस्र समेत कई अरब देशों में भी हुए.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी पर फ़िलिस्तीनी अथॉरिटी की आलोचना
फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक ओर ज़ायोनी सरकार से नागरिकों के नरसंहार को रोकने का अनुरोध कर रहा है और दूसरी ओर इस नरसंहार सरकार को हथियार भेज रहा है और यह खुला पाखंड है।
फिलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में गाजा में लोगों के नरसंहार, उन्हें भूखा-प्यासा रखने, इलाज और चिकित्सा सेवाओं से वंचित करने और निर्दोष लोगों को निर्वासित करने की निंदा की.
फ़िलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अब तक इज़राइल को सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णयों का पालन करने में विफल रहा है, फिर भी वह कोई वास्तविक दबाव नहीं डाल रहा है या थोपने का संकेत भी नहीं दे रहा है। प्रतिबंध. हो गया है
फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि आश्चर्यजनक मुद्दा कुछ देशों की स्थिति है जिसमें वे एक तरफ ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू से युद्ध रोकने की मांग करते हैं और साथ ही इज़राइल को हथियार भेजने की मांग करते हैं और यह एक खुला नैतिक विरोधाभास है .यह इन देशों के रुख में गंभीरता की कमी को दर्शाता है۔
ज़हर से बुझी तलवार से हज़रत अली के सिर पर वार
इमाम अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बारे में कहा जाता है कि जिस रात नमाज़ के दौरान उनके सिर पर तलवार से वार किया गया उस रात वे अपनी एक बेटी "उम्मे कुलसूम" के घर इफ़तार पर मेहमान थे। इफ़तार के समय उन्होंने बहुत ही कम खाना खाया। हज़रत अली ने केवल तीन निवाले खाए और वे उपासना करने में लीन हो गए। इस रात वे बहुत ही व्याकुल दिखाई दे रहे थे। उस रात वे बारबार आसमान की ओर देखते थे। जैसे-जैसे इफ़्तार का समय निकट होता जा रहा था उनकी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। इसी रात उन्होंने कहा था कि न तो मैं झूठ बोलता हूं और न ही जिसने मुझको ख़बर दी है वह झूठ बोलता है। जिस रात का मुझसे शहादत का वादा किया गया है वह यही रात है। अंततः रात अपने अंत की ओ बढ़ी और हज़रत अली फज्र की नमाज पढ़ने के उद्देश्य से मस्जिद की ओर बढ़े।
जिस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ने के लिए अपने घर से मस्जिद के लिए निकल रहे थे तो घर में पली हुई बत्तख़ों ने इस प्रकार से उनका रास्ता रोका कि वे उन्होंने अपनी चोंच से इमाम की अबा को पकड़ लिया। घरवालों ने जब इन बत्तख़ों को इमाम से दूर करना चाहा तो उन्होंने कहा कि उनको छोड़ दो। इनको इनके हाल पर छोड़ दो। अपने पिता के व्यवहार और उनकी बातों को सुनकर उम्मे कुलसूम परेशान हो गई। उनको संबोधित करते हुए इमाम अली ने कहा कि ईश्वर ने जो लिख दिया उसे काटा नहीं जा सकता। इतना कहने के बाद हज़रत अली पूरी दृढ़ता के साथ मस्जिद की ओर बढ़े।
हज़रत अली अलैहिस्साम मस्जिद पहुंचे और उन्होंने नमाज़ पढ़ना शूर की। वे जैसे ही सजदे में गए, "इब्ने मुल्जिम" नामक दुष्ट व्यक्ति ने ज़हर से बुझी तलवार से हज़रत अली के सिर पर वार किया। तलवार के सिर पर लगते ही उससे ख़ून निकलने लगा। तलवार का घाव बहुत गहरा था जिसके कारण उनके शरीर का बहुत सा ख़ून वहीं पर बह गया। अपने सिर पर तलवार का वार पड़ने के बाद हज़रत अली ने कहा था कि काबे के रब की सौगंध में सफल हो गया।
हज़रत अली और ईश्वर के बीच नमाज़ सबसे अच्छा संपर्क थी। नमाज़ की हालत में वे ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य के बारे में नहीं सोचते थे। नमाज़ की हालत में सिर पर ज़हरीली तलवार खाने के बाद उन्होंने अपने परिजनों के लिए जो वसीयत की उसमें उन्होंने कहा था कि नमाज़ें पढ़ों और उनकी सुरक्षा करो क्योंकि वे धर्म का स्तंभ हैं। नमाज़ के संदर्भ में शेख अबूबक्र शीराज़ी अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं कि परहेज़ करने वालों के बारे में सूरे ज़ारेयात की आयत संख्या 17 और 18 में ईश्वर कहता है कि वे लोग रात में बहुत ही कम सोते हैं और भोर समय ईश्वर से पश्चाताप करते हैं। यह आयतें हज़रत अली के बारे में हैं। इसका कारण यह है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम, रात के अधिकांश भाग में उपासना करते थे और रात के आरंभिक हिस्से में सोते थे। नमाज़ के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का बहुत ही मश्हूर कथन है कि इससे पहले कि कोई भी मुसलमान नमाज़ पढ़ता, मैं सात वर्षों तक पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ नमाज़ पढ़ चुका था।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कूफे की मस्जिद में अपनी अन्तिम नमाज़ में यह बात कही थी कि मैं सफल हो गया। उन्होंने एक छोटे से वाक्य के माध्यम से यह बताया कि शहादत के लिए वे कितने व्याकुल थे। तलवार से घायल हो जाने के बाद जब कूफ़ावासियों ने इमाम अली के बारे में जानना चाहा तो आपने कहा कि ईश्वर की सौगंध मेरे साथ एसा कुछ नहीं हुआ जो मैं न चाहता हूं। मुझको शहादत की प्रतीक्षा थी जो मुझको हासिल हो गई। मेरी स्थिति वैसी ही है जैसे कोई अंधेरी रात में किसी मरूस्थल में पानी की खोज में हो और एकदम से उसे पानी का सोता मिल जाए। उन्होंने कहा कि मेरी मिसाल उस ढूंढने वाले व्यक्ति की सी है जिसे अपनी मेहनत का फल मिल जाए।
हज़रत अली द्वारा किये गये सुधार
अपने पाँच वर्षीय शासन काल मे विभिन्न युद्धों, विद्रोहों, षड़यन्त्रों, कठिनाईयों व समाज मे फैली विमुख्ताओं का सामना करते हुए हज़रत अली ने तीन क्षेत्रो मे सुधार किये जो निम्ण लिखित हैं।
अधिकारिक सुधार
उन्होने अधिकारिक क्षेत्र मे सुधार करके जनता को समान अधिकार प्रदान किये। शासन की ओर से दी जाने वाली धनराशी के वितरण मे व्याप्त भेद भाव को समाप्त करके समानता को स्थापित किया। उन्होंने कहा कि निर्बल व्यक्ति मेरे समीप हज़रतहैं मैं उनको उनके अधिकार दिलाऊँगा।व अत्याचारी व्यक्ति मेरे सम्मुख नीच है मैं उनसे दूसरों के अधिकारों को छीनूँगा।
आर्थिक सुधार
हज़रतअली ने आर्थिक क्षेत्र मे यह सुधार किया कि जो सार्वजनिक सम्पत्तियां तीसरे ख़लीफ़ा ने समाज के कुछ विशेष व्यक्तियों को दे दी थीं उनसे उनको वापिस लिया। तथा जनता को अपनी नीतियों से अवगत कराते हुए कहा कि मैं तुम मे से एक हूँ जो वस्तुऐं मेरे पास हैं वह आपके पास भी हैं। जो कर्तव्य आप लोगों के हैं वह मेरे भी हैं। (अर्थात मैं आप लोगों से भिन्न नही हूँ न आपसे कम कार्य करता हूँ न आप से अधिक सम्पत्ति रखता हूँ)
प्रशासनिक सुधार
हज़रतअली (अ0) ने प्रशासनिक क्षेत्र मे सुधार हेतू दो उपाये किये।
(1) तीसरे ख़लीफ़ा द्वारा नियुक्त किये गये गवर्नरो को निलम्बित किया।
(2) भ्रष्ट अधिकारियों को पदमुक्त करके उनके स्थान पर ईमानदार व्यक्तियों को नियुक्त किया।
शबे क़द्र आशा की रात
पवित्र रमज़ान में विशेष रातें, जिन्हें शबे क़द्र कहा जाता है, ईश्वर की कृपा का चरम बिन्दु समझी जाती हैं। इन रातों में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष कृपा करता है जो बहुत अहम है। इन रातों की महानता का स्वंय ईश्वर ने क़द्र नामक सूरे में गुणगान करते हुए कहा है, "तुम क्या जानो शबे क़द्र क्या है।" इसके बाद ईश्वर ने इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर बताया है और इस रात के शुरु होने से सुबह सवेरे तक की समयावधि को शांति कहा है।
वास्तव में ईश्वर ने शबे क़द्र के ज़रिए बंदों को यह अवसर दिया है कि वे अपने सद्कर्म को परिपूर्ण करे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "अगर ईश्वर मोमिन बंदों के कर्म को कई गुना न करे तो वे परिपूर्णतः के चरण तक नहीं पहुंच पाएंगे। शबे क़द्र में उनके भले कर्म का मूल्य कई गुना बढ़ जाता है।" शबे क़द्र नामक रात में इंसान के कल्याण का राज़ वे सद्कर्म हैं जिन्हें वह शौक़ व स्वेच्छा से अंजाम देता है। ईश्वर ने शबे क़द्र को पवित्र रात कहा है जिसमें फ़रिश्ते ईश्वर की इजाज़त से ज़मीन पर उतरते हैं। स्पष्ट है कि इंसान का पवित्र मन फ़रिश्तों के उतरने का स्थान बन सकता है। इस्लामी इतिहास में है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अबू बसीर से फ़रमाया, "इस रात आगे घटने वाली घटनाएं, मौत और रोज़ी अगले साल की शबे क़द्र तक के लिए निर्धारित होती हैं। तो शबे क़द्र में नमाज़ पढ़ो और रात भर जागो।" अबू बसीर ने कहा, "अगर खड़े होकर नमाज़ न पढ़ सकूं तो क्या करू? इमाम ने फ़रमायाः बैठ कर पढ़ो।" अबू बसीर ने उपासना की अहमियत को समझने के लिए दुबारा पूछाः अगर बैठ कर नमाज़ न पढ़ सकूं तो क्या करू? इमाम ने फ़रमायाः जिस तरह हो सके उपासना करो, क्योंकि आसमान के द्वार खुले होते हैं, शैतान ज़न्जीर में जकड़ा होता है और मोमिनों के कर्म क़ुबूल होते हैं।
शबे क़द्र आशा की रात है। अगर इंसान के सामने उम्मीद की कोई किरण न हो तो वह पतन की ओर बढ़ता है। उम्मीद ही जीवन के जारी रहने का राज़ है। इंसान उम्मीद की छांव में प्रगति व परिपूर्णतः का रास्ता तय करता है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन के एक भाग को बर्बाद कर दिया तब भी उसे पवित्रता के स्वच्छ चश्मे तक पहुंचने की ओर से निराश नहीं होना चाहिए। पवित्र रमज़ान महाअवसर है। यह इंसान के सामने ऐसी खिड़कियां खोलता है जिससे उम्मीद व जीवन की किरणे आती हैं।
शबे क़द्र वही उम्मीद की किरण है जो पवित्र रमज़ान में पैदा होती है। ऐसी रात जिसकी कोई दूसरी रात बराबरी नहीं कर सकती। पवित्र रमज़ान के आरंभ में सृष्टि के रचयिता से बंदों के फिर से जुड़ने की जो कड़ी शुरु होती है वह शबे क़द्र में पूरी होती है। इन रातों में इंसान और ईश्वर के बीच कोई पर्दा नहीं होता और बंदे बिना किसी रुकावट के ईश्वरीय प्रकाश में नहाते हैं। शबे क़द्र ईश्वर के कृपा भरे दामन में पनाह लेने की रात है। पैग़म्बरे इस्लाम से रवायत है, "हज़रत मूसा ने ईश्वर से पूछा कि ईश्वर मैं तेरा सामिप्य चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः मेरा सामिप्य उसे मिल सकता है जो शबे क़द्र में जागता हो। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर तेरी कृपा चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः मेरी कृपा उनके लिए है जो निर्धनों पर शबे क़द्र में दया करे। हज़रत मूसा ने कहाः मैं सिरात से आसानी से गुज़रना चाहता हूं, ईश्वर ने कहाः यह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दान दक्षिणा करे। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर मैं स्वर्ग के पेड़ों का फल चाहता हूं। ईश्वर ने कहा, यह उसके लिए है जो शबे क़द्र में हमारा गुणगान करे। हज़रत मूसा ने कहाः नरक की आग से किस तरह मुक्ति पाऊं? ईश्वर ने कहा उसे नरक की आग से मुक्ति मिलेगी जो शबे क़द्र में पापों की क्षमा मांगे। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर तेरी प्रसन्नता चाहता हूं, ईश्वर ने कहाः मेरी प्रसन्नता उसे मिलेगी जो शबे क़द्र में दो रकअत नमाज़ पढ़े।"
शबे क़द्र इंसान के लिए आत्मविश्लेषण और अपने सद्कर्म के बारे में चिंतन मनन का बहुत अच्छा अवसर है। अपने कर्म के बारे में चिंतन मनन का इस रात में जो हज़ार महीनों से बेहतर है, बहुत अधिक फ़ायदा है। शबे क़द्र उन लोगों के लिए जो अपने जीवन का एक भाग यूं ही गवा दिया है, होश में आने के लिए एक अवसर है कि वे सोचें कि कहां से आए हैं? इस दुनिया में उनके क्या लक्ष्य हैं और अंजाम क्या है कहां जाएंगे? हो सकता है कोई व्यक्ति थोड़े से चिंतन मनन से सत्य के मार्ग को पा जाए। इसी वजह से इस्लामी रवायत में एक क्षण के चिंतन मनन को 70 साल की उपासना से बेहतर कहा गया है। इस रात कृपा के स्रोत से संपर्क बनाकर जीवन को नया अर्थ दिया जा सकता है। मन को पाप से पाक कर भलाई की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। शबे क़द्र मन को ईश्वर के नाम से सुसज्जित करने और उससे संदेह को दूर करना है। शबे क़द्र के बारे में जिबरईल ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा, "हे मोहम्मद! शबे क़द्र वह रात है जिसमें कोई भी दुआ करने वाला ऐसा नहीं है जिसकी दुआ का जवाब न दिया जाता हो और कोई भी प्रायश्चित करने वाला ऐसा नहीं है जिसका प्रायश्चित क़ुबूल न किया जाता हो।"
जी हां शबे क़द्र उन लोगों के लिए अवसर है जिन्होंने अपना जीवन व्यर्थ में गुज़ारा है। उनके लिए ग़लतियों की भरपायी और ईश्वर की ओर पलटने का अवसर है। जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है, "इस रात में रुकू और सजदा करने वाले सौभाग्यशाली हैं। अपनी विगत की ग़लतियों के मद्देनज़र रोते हैं और मुझे उम्मीद है कि ऐसे लोग ईश्वर की ओर से निराश नहीं होंगे।"
ईश्वरीय आतिथ्य- 19
यह वह महीना है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने प्रायश्चित का महीना कहते हुए फ़रमाया था, पवित्र रमज़ान का महीना ईश्वर का महीना और पापों से क्षमा का महीना है। यह महीना ईश्वर के प्रकोप से बचने का महीना है।
यह महीना पापों का प्रायश्चित कर ईश्वर की ओर पलटने का महीना है। जिस व्यक्ति के इस महीने में पाप क्षमा न किए गए तो किस महीने क्षमा किए जाएंगे।
पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, ईश्वर हर रात पवित्र रमज़ान को तीन बार कहता है, क्या कोई मांगने वाला है कि उसे मैं दू, या कोई प्रायश्चित करने वाला है कि मैं उसके प्रायश्चित को क़ुबूल करूं? क्या कोई पापों की क्षमा मांगने वाला है कि मैं उसे क्षमा कर दूं?
पवित्र रमज़ान पापों की क्षमा चाहने और प्रायश्चित करने का महीना है। जिन लोगों ने अपने जीवन में ग़लती की है और ऐसे मार्ग का चयन किया है जिसमें बर्बादी के सिवा कुछ और नहीं है, तो पवित्र रमज़ान का महीना उनके लिए प्रायश्चित करने का बेहतरीन महीना है क्योंकि इस पवित्र महीने में रोज़ेदार के मन में क्रान्ति पैदा हुयी है और उसके लिए व्यवहारिक रूप से क़दम उठाने का अवसर मुहैया हुआ है। सद्कर्म से बुराईयों से पाक होता और ईश्वर के प्रकोप से दूर होता है। इस तरह रोज़ेदार पापों के अंधकार से निकलकर नैतिक भलाइयों और प्रायश्चित के प्रकाश में दाख़िल हो जाता है। इस तरह वह ईश्वर की कृपा का पात्र बनता है।
शब्दकोष में तौबा शब्द का अर्थ पलटना है। शारीरिक दृष्टि से पलटने का अर्थ स्पष्ट है कि एक व्यक्ति जिस रास्ते से आगे बढ़े उसी रास्ते से पलट आए लेकिन आत्मिक मामलों में तौबा का अर्थ दूसरा है। आत्मिक मामलों में तौबा का अर्थ पाप छोड़ कर ईश्वर की ओर पलटना है। मिसाल के तौर पर मान लीजिए आप अपने शहर से अपने देश के उत्तरी भाग में स्थित किसी शहर जाना चाहते हैं लेकिन 50 किलोमीटर चलने के बाद आपको समझ में आया कि आप ग़लत रास्ते पर दक्षिण की ओर जा रहे हैं यानी बिलकुल विपरीत दिशा में। ऐसी हालत में आप फ़ौरन ब्रेक लगाएंगे, लेकिन क्या यह 50 किलोमीटर ग़लत आ गए हैं, उसकी भरपायी हो सकती है? बिल्कुल नहीं। तुरंत स्टीयरिंग घुमांएगे और 50 किलोमीटर पीछे पलटेंगे। इस पलटने को तौबा कहते हैं। ब्रेक पवित्र रमज़ान में क्षमा याचना है। अपने पापों की क्षमा मांगते हैं ताकि आगे और ग़लती न हो। पापों से हुए नुक़सान की भरपायी तौबा अर्थात प्रायश्चित से हासिल होती है अर्थात कर्तव्य पूरे किए जाएं, छूटी हुयी नमाज़ों को पढ़ा जाए, छूटे हुए रोज़े रखे जाएं, जिन लोगों की बुरायी की है या किसी पर इल्ज़ाम लगाया है तो उससे माफ़ी मांगी जाए। तौबा यानी इंसान की आत्मा को जो एक समय तक बुरायी की वजह से दूषित हो गयी थी, मन में क्रान्ति के ज़रिए पाक करे।
प्रायश्चित करना और ईश्वर की ओर से उसकी स्वीकारोक्ति अनन्य ईश्वर की कृपा की निशानियों में है। जैसा कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम मकारेमुल अख़लाक़ नामक दुआ में फ़रमाते हैं, "हे पालनहार! मैं तुझसे क्षमा चाहता हूं, मैं बहुत उत्सुक हूं कि तू मुझे माफ़ कर दे और मुझे तेरी कृपा पर विश्वास है। हे पालनहार! मैं ऐसी चीज़ लेकर तेरे पास नहीं आया हूं कि माफ़ किया जाऊं, अपने कर्मपत्र में ऐसे चीज़ नहीं पाता जिसके ज़रिए तेरी माफ़ी का मात्र बन सकूं। अब जबकि मैं ख़ुद को दंडित समझ रहा हूं तेरी कृपा के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।"
पवित्र रमज़ान में विशेष रातें, जिन्हें शबे क़द्र कहा जाता है, ईश्वर की कृपा का चरम बिन्दु समझी जाती हैं। इन रातों में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष कृपा करता है जो बहुत अहम है। इन रातों की महानता का स्वंय ईश्वर ने क़द्र नामक सूरे में गुणगान करते हुए कहा है, "तुम क्या जानो शबे क़द्र क्या है।" इसके बाद ईश्वर ने इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर बताया है और इस रात के शुरु होने से सुबह सवेरे तक की समयावधि को शांति कहा है।
वास्तव में ईश्वर ने शबे क़द्र के ज़रिए बंदों को यह अवसर दिया है कि वे अपने सद्कर्म को परिपूर्ण करे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "अगर ईश्वर मोमिन बंदों के कर्म को कई गुना न करे तो वे परिपूर्णतः के चरण तक नहीं पहुंच पाएंगे। शबे क़द्र में उनके भले कर्म का मूल्य कई गुना बढ़ जाता है।" शबे क़द्र नामक रात में इंसान के कल्याण का राज़ वे सद्कर्म हैं जिन्हें वह शौक़ व स्वेच्छा से अंजाम देता है। ईश्वर ने शबे क़द्र को पवित्र रात कहा है जिसमें फ़रिश्ते ईश्वर की इजाज़त से ज़मीन पर उतरते हैं। स्पष्ट है कि इंसान का पवित्र मन फ़रिश्तों के उतरने का स्थान बन सकता है। इस्लामी इतिहास में है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अबू बसीर से फ़रमाया, "इस रात आगे घटने वाली घटनाएं, मौत और रोज़ी अगले साल की शबे क़द्र तक के लिए निर्धारित होती हैं। तो शबे क़द्र में नमाज़ पढ़ो और रात भर जागो।" अबू बसीर ने कहा, "अगर खड़े होकर नमाज़ न पढ़ सकूं तो क्या करू? इमाम ने फ़रमायाः बैठ कर पढ़ो।" अबू बसीर ने उपासना की अहमियत को समझने के लिए दुबारा पूछाः अगर बैठ कर नमाज़ न पढ़ सकूं तो क्या करू? इमाम ने फ़रमायाः जिस तरह हो सके उपासना करो, क्योंकि आसमान के द्वार खुले होते हैं, शैतान ज़न्जीर में जकड़ा होता है और मोमिनों के कर्म क़ुबूल होते हैं।
शबे क़द्र आशा की रात है। अगर इंसान के सामने उम्मीद की कोई किरण न हो तो वह पतन की ओर बढ़ता है। उम्मीद ही जीवन के जारी रहने का राज़ है। इंसान उम्मीद की छांव में प्रगति व परिपूर्णतः का रास्ता तय करता है। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन के एक भाग को बर्बाद कर दिया तब भी उसे पवित्रता के स्वच्छ चश्मे तक पहुंचने की ओर से निराश नहीं होना चाहिए। पवित्र रमज़ान महाअवसर है। यह इंसान के सामने ऐसी खिड़कियां खोलता है जिससे उम्मीद व जीवन की किरणे आती हैं।
शबे क़द्र वही उम्मीद की किरण है जो पवित्र रमज़ान में पैदा होती है। ऐसी रात जिसकी कोई दूसरी रात बराबरी नहीं कर सकती। पवित्र रमज़ान के आरंभ में सृष्टि के रचयिता से बंदों के फिर से जुड़ने की जो कड़ी शुरु होती है वह शबे क़द्र में पूरी होती है। इन रातों में इंसान और ईश्वर के बीच कोई पर्दा नहीं होता और बंदे बिना किसी रुकावट के ईश्वरीय प्रकाश में नहाते हैं। शबे क़द्र ईश्वर के कृपा भरे दामन में पनाह लेने की रात है। पैग़म्बरे इस्लाम से रवायत है, "हज़रत मूसा ने ईश्वर से पूछा कि ईश्वर मैं तेरा सामिप्य चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः मेरा सामिप्य उसे मिल सकता है जो शबे क़द्र में जागता हो। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर तेरी कृपा चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः मेरी कृपा उनके लिए है जो निर्धनों पर शबे क़द्र में दया करे। हज़रत मूसा ने कहाः मैं सिरात से आसानी से गुज़रना चाहता हूं, ईश्वर ने कहाः यह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दान दक्षिणा करे। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर मैं स्वर्ग के पेड़ों का फल चाहता हूं। ईश्वर ने कहा, यह उसके लिए है जो शबे क़द्र में हमारा गुणगान करे। हज़रत मूसा ने कहाः नरक की आग से किस तरह मुक्ति पाऊं? ईश्वर ने कहा उसे नरक की आग से मुक्ति मिलेगी जो शबे क़द्र में पापों की क्षमा मांगे। हज़रत मूसा ने कहाः ईश्वर तेरी प्रसन्नता चाहता हूं, ईश्वर ने कहाः मेरी प्रसन्नता उसे मिलेगी जो शबे क़द्र में दो रकअत नमाज़ पढ़े।"
शबे क़द्र इंसान के लिए आत्मविश्लेषण और अपने सद्कर्म के बारे में चिंतन मनन का बहुत अच्छा अवसर है। अपने कर्म के बारे में चिंतन मनन का इस रात में जो हज़ार महीनों से बेहतर है, बहुत अधिक फ़ायदा है। शबे क़द्र उन लोगों के लिए जो अपने जीवन का एक भाग यूं ही गवा दिया है, होश में आने के लिए एक अवसर है कि वे सोचें कि कहां से आए हैं? इस दुनिया में उनके क्या लक्ष्य हैं और अंजाम क्या है कहां जाएंगे? हो सकता है कोई व्यक्ति थोड़े से चिंतन मनन से सत्य के मार्ग को पा जाए। इसी वजह से इस्लामी रवायत में एक क्षण के चिंतन मनन को 70 साल की उपासना से बेहतर कहा गया है। इस रात कृपा के स्रोत से संपर्क बनाकर जीवन को नया अर्थ दिया जा सकता है। मन को पाप से पाक कर भलाई की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। शबे क़द्र मन को ईश्वर के नाम से सुसज्जित करने और उससे संदेह को दूर करना है। शबे क़द्र के बारे में जिबरईल ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा, "हे मोहम्मद! शबे क़द्र वह रात है जिसमें कोई भी दुआ करने वाला ऐसा नहीं है जिसकी दुआ का जवाब न दिया जाता हो और कोई भी प्रायश्चित करने वाला ऐसा नहीं है जिसका प्रायश्चित क़ुबूल न किया जाता हो।"
जी हां शबे क़द्र उन लोगों के लिए अवसर है जिन्होंने अपना जीवन व्यर्थ में गुज़ारा है। उनके लिए ग़लतियों की भरपायी और ईश्वर की ओर पलटने का अवसर है। जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है, "इस रात में रुकू और सजदा करने वाले सौभाग्यशाली हैं। अपनी विगत की ग़लतियों के मद्देनज़र रोते हैं और मुझे उम्मीद है कि ऐसे लोग ईश्वर की ओर से निराश नहीं होंगे।"
बंदगी की बहार- 19
पवित्र रमज़ान अब अपने अंत की ओर बढ़ रहा है।
लगभग आधा रमज़ान गुज़र चुका है। अब हम शबेक़द्र से बहुत निकट हो चुके हैं। शबेक़द्र, ईश्वर से प्रार्थना और उसकी उपासना की राते हैं। इन रातों में पालनहार की उपासना करके दिलों को ज़िंदा किया जा सकता है। रमज़ान के अंत की दस रातों में से कुछ रातों को शबेक़द्र अर्थात मूल्यवान या महत्व वाली रातों के रूप में जाना जाता है। 19-21-23 और 27 की रातों को शबेक़द्र कहा जाता है। इन रातों का आरंभ रमज़ान की उन्नीसवीं रात से होता है। मुसलमानों के बीच इन रातों को विशेष महत्व हासिल है। इन रातों के दौरान सामान्यतः रोज़ेदार अधिक से अधिक उपासना करने का प्रयास करते हैं। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार यह रातें आत्म निरीक्षण के लिए बहुत अच्छा अवसर है। इन्हीं रातों में से एक रात में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर तलवार से वार किया गया जिसके परिणाम स्वरूप वे शहीद हो गए।
इमाम अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बारे में कहा जाता है कि जिस रात नमाज़ के दौरान उनके सिर पर तलवार से वार किया गया उस रात वे अपनी एक बेटी "उम्मे कुलसूम" के घर इफ़तार पर मेहमान थे। इफ़तार के समय उन्होंने बहुत ही कम खाना खाया। हज़रत अली ने केवल तीन निवाले खाए और वे उपासना करने में लीन हो गए। इस रात वे बहुत ही व्याकुल दिखाई दे रहे थे। उस रात वे बारबार आसमान की ओर देखते थे। जैसे-जैसे इफ़्तार का समय निकट होता जा रहा था उनकी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। इसी रात उन्होंने कहा था कि न तो मैं झूठ बोलता हूं और न ही जिसने मुझको ख़बर दी है वह झूठ बोलता है। जिस रात का मुझसे शहादत का वादा किया गया है वह यही रात है। अंततः रात अपने अंत की ओ बढ़ी और हज़रत अली फज्र की नमाज पढ़ने के उद्देश्य से मस्जिद की ओर बढ़े।
जिस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ने के लिए अपने घर से मस्जिद के लिए निकल रहे थे तो घर में पली हुई बत्तख़ों ने इस प्रकार से उनका रास्ता रोका कि वे उन्होंने अपनी चोंच से इमाम की अबा को पकड़ लिया। घरवालों ने जब इन बत्तख़ों को इमाम से दूर करना चाहा तो उन्होंने कहा कि उनको छोड़ दो। इनको इनके हाल पर छोड़ दो। अपने पिता के व्यवहार और उनकी बातों को सुनकर उम्मे कुलसूम परेशान हो गई। उनको संबोधित करते हुए इमाम अली ने कहा कि ईश्वर ने जो लिख दिया उसे काटा नहीं जा सकता। इतना कहने के बाद हज़रत अली पूरी दृढ़ता के साथ मस्जिद की ओर बढ़े।
हज़रत अली अलैहिस्साम मस्जिद पहुंचे और उन्होंने नमाज़ पढ़ना शूर की। वे जैसे ही सजदे में गए, "इब्ने मुल्जिम" नामक दुष्ट व्यक्ति ने ज़हर से बुझी तलवार से हज़रत अली के सिर पर वार किया। तलवार के सिर पर लगते ही उससे ख़ून निकलने लगा। तलवार का घाव बहुत गहरा था जिसके कारण उनके शरीर का बहुत सा ख़ून वहीं पर बह गया। अपने सिर पर तलवार का वार पड़ने के बाद हज़रत अली ने कहा था कि काबे के रब की सौगंध में सफल हो गया।
हज़रत अली और ईश्वर के बीच नमाज़ सबसे अच्छा संपर्क थी। नमाज़ की हालत में वे ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य के बारे में नहीं सोचते थे। नमाज़ की हालत में सिर पर ज़हरीली तलवार खाने के बाद उन्होंने अपने परिजनों के लिए जो वसीयत की उसमें उन्होंने कहा था कि नमाज़ें पढ़ों और उनकी सुरक्षा करो क्योंकि वे धर्म का स्तंभ हैं। नमाज़ के संदर्भ में शेख अबूबक्र शीराज़ी अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं कि परहेज़ करने वालों के बारे में सूरे ज़ारेयात की आयत संख्या 17 और 18 में ईश्वर कहता है कि वे लोग रात में बहुत ही कम सोते हैं और भोर समय ईश्वर से पश्चाताप करते हैं। यह आयतें हज़रत अली के बारे में हैं। इसका कारण यह है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम, रात के अधिकांश भाग में उपासना करते थे और रात के आरंभिक हिस्से में सोते थे। नमाज़ के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का बहुत ही मश्हूर कथन है कि इससे पहले कि कोई भी मुसलमान नमाज़ पढ़ता, मैं सात वर्षों तक पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ नमाज़ पढ़ चुका था।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कूफे की मस्जिद में अपनी अन्तिम नमाज़ में यह बात कही थी कि मैं सफल हो गया। उन्होंने एक छोटे से वाक्य के माध्यम से यह बताया कि शहादत के लिए वे कितने व्याकुल थे। तलवार से घायल हो जाने के बाद जब कूफ़ावासियों ने इमाम अली के बारे में जानना चाहा तो आपने कहा कि ईश्वर की सौगंध मेरे साथ एसा कुछ नहीं हुआ जो मैं न चाहता हूं। मुझको शहादत की प्रतीक्षा थी जो मुझको हासिल हो गई। मेरी स्थिति वैसी ही है जैसे कोई अंधेरी रात में किसी मरूस्थल में पानी की खोज में हो और एकदम से उसे पानी का सोता मिल जाए। उन्होंने कहा कि मेरी मिसाल उस ढूंढने वाले व्यक्ति की सी है जिसे अपनी मेहनत का फल मिल जाए।
शबेक़द्र की रातों में उपासना और प्रार्थना का विशेष महत्व है। अगर देखा जाए तो पता चलेगा कि मनुष्य को सदा ही ईश्वर की सहायता की आवश्यकता रहती है। ईश्वर पर आस्था रखने वाले जहां एक ओर उसकी दी हुई अनुकंपाओं का आभार व्यक्त करते हैं वहीं पर वे अपनी आवश्यकताओं की भी मांग उससे करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि दुआ के माध्यम से बंदा अपने ईश्वर से अपने मन की बातें कहता है। ईश्वर ने भी अपने दासों को विश्वास दिलाया है कि वह उनकी मांगों को पूरा करता है। सूरे बक़रा की आयत संख्या 186 में कहा गया है कि जब मेरे बंदे तुमसे मेरे बारे में सवाल करें तो उनसे कह दीजिए कि मैं उनके निकट हूं। जब वह मुझसे सवाल करता है तो मैं उसका जवाब देता हूं। बस लोगों को मेरे निमंत्रण को स्वीकार करना चाहिए और मुझपर ईमान लाना चाहिए ताकि उनको रास्ता मिल जाए।
ईश्वर और उसके दास के बीच संपर्क का सबसे उत्तम साधान दुआ है। दुआ के माध्यम से लोग ईश्वर से तरह-तरह से सवाल करते हैं। कोई उससे सांसारिक आवश्यकताओं की मांग करता है तो कोई दूसरा अपनी परेशानियों का उल्लेख करता है। कोई बीमारी से मुक्ति चाहता है तो कोई धन-दौलत की इच्छा रखता है। कुछ एसे भी लोग होते हैं जो ईश्वर से प्रायश्चित करते हुए अपने मोक्ष की कामना करते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि दुआ अर्थात अपनी आवश्यकताओं का उल्लेख।
धर्मगुरूओं का कहना है कि वास्तव में मनुष्य प्रकृतिक रूप में एक एसी शक्ति पर विश्वास रखता है जो उससे बहुत अधिक सशक्त है और जो उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है। वह शक्ति लोगों की मांगों को सुनती है और उनकी मनोकामनाओं को पूरा करती है। दुआ का एक अन्य अर्थ है अपनी आंतरिक पहचान। ईश्वर के महान बंदों की दुआएं एसी ही होती हैं जिनमें वे ईश्वर की अधिक से अधिक पहचान की बात करते हैं।
दुआ को उस चाभी की भांति कहा गया है जो मनुष्य की आवश्यकताओं को बिना किसी माध्यम के पूरा करती है। दुआ, ईश्वर से विशेष संपर्क का नाम है। जब कोई व्यक्ति या अल्लाह या यारब कहकर ईश्वर को संबोधित करता है तो यह आवाज़ ईश्वर बहुत ही सरलता से सुन लेता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबन्ध में नहजुल बलाग़ा में कहते हैं कि तुम जब भी उसको पुकारते हो तो वह उसे सुनता है। जब तुम उससे अपने मन की बात बहुत धीरे-धीरे अकेले में कहते हो तो उसे भी वह सुन लेता है। जब तुम उससे कुछ मांगते हो तो वह उसे पूरा करता है।
पवित्र रमज़ान की इन महत्वपूर्ण रातों में हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें अपनी उपासना का सामर्थ्य प्रदान करते हुए हमपर अपनी अनुकंपाओं की वर्षा करे।