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सोमवार रात एक बयान में आईआरजीसी ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के दूतावास पर इस्राईल के मिसाइल हमले में हज़रत जैनब सलामुल्लाह अलैहा के रौज़े की रक्षा करने वाले 7 ईरानी सैन्य सलाहकारों की शहादत की सूचना दी।

इस बयान में इस्लामिक रेवोल्यूशन गार्ड्स कॉर्प्स ने इस आतंकवादी अपराध की कड़ी निंदा की और इस्लामिक क्रांति के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कमांडर-इन-चीफ इमाम ख़ामेनेई की सेवा में शहीदों की अनमोल शहादत पर बधाई और शोक व्यक्त किया।

दमिश्क में इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास के कांसुलर विभाग पर अवैध ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों द्वारा किए गए मिसाइल हमले में हज़रत ज़ैनब के रौज़े की रक्षा करने वाले ब्रिगेडियर जनरल मुहम्मद रज़ा ज़ाहेदी, ब्रिगेडियर जनरल मुहम्मद हादी हाजी रहीमी शहीद हुए जो पवित्र रक्षा के सीनियर कमांडरों और सीरिया में ईरान के वरिष्ठ सैन्य सलाहकारों में शामिल थे जबकि उनके साथ 5 अन्य कमान्डर, सैन्य सलाहकार और अधिकारी भी शहीद हुए।

दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर विभाग पर ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए आतंकवादी हमले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने सोमवार रात कहा कि तेहरान इस बात का फ़ैसला करेगा कि किस तरह जवाबी कार्यवाही की जाएगा और किस तरह से इस्राईल को दंडित किया जाएगा।

इस आतंकवादी हमले के बाद, सीरिया के विदेशमंत्री फ़ैसल मेक़दाद ने दमिश्क में ईरानी दूतावास में हाज़िर होकर ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान से टेलीफोन पर बातचीत भी की।

इस टेलीफ़ोनी बातचीत में सीरिया के विदेश मंत्री ने दमिश्क में इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास के कांसुलर विभाग की इमारत पर इस्राईल के हमले को "अंतर्राष्ट्रीय नियमों, विशेष रूप से राजनयिक संबंधों पर हुए 1961 वियना कन्वेंशन का घोर उल्लंघन क़रार दिया।

इस टेलीफ़ोनी वार्ता में विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियान ने इस आतंकवादी हमले की निंदा की और कहा कि ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री "बेन्यामीन नेतन्याहू" ग़ज़ा में हार की वजह से अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं।

सीरिया में ईरानी दूतावास की इमारत पर ज़ायोनी शासन के हवाई हमले की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद आज यानी मंगलवार को एक आपातकालीन बैठक आयोजित करने जा रही है।

इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र संघ में ईरान के प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद की तत्काल बैठक बुलाने की अपील करते हुए कहा था कि ईरान ऐसे आतंकवादी कृत्यों का निर्णायक रूप से जवाब देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय चार्टर के आधार पर अपना वैध और व्यक्तिगत अधिकार सुरक्षित समझता है।

अब तक सीरिया, रूस, सऊदी अरब, क़तर, यूएई, यमन, कुवैत और पाकिस्तान समेत दुनिया के कई देश इस आतंकी हमले की निंदा कर चुके हैं।

दूसरी ओर आज सुबह ही  तेहरान में स्विस दूतावास के प्रभारी डी'एफ़ेयर को भी ईरान में अमेरिकी हितों के रक्षक के रूप में विदेश मंत्रालय में तलब किया गया।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री के अनुसार, स्वीस अधिकारी को दिए गये आपत्ति पत्र में आतंकवादी हमले के आयामों और इस्राईल शासन के अपराध के बारे में बताया गया और अमेरिकी सरकार की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया गया।‏

एक्स सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पर विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस आपत्ति पत्र में ज़ायोनी शासन के समर्थक के रूप में अमेरिकी सरकार को एक महत्वपूर्ण संदेश भेजा गया था और कहा गया था कि अमेरिका को इसका जवाबदेह होना चाहिए।

हालिया वर्षों में अमेरिका के समर्थन से, ज़ायोनी शासन ने सीरिया के विभिन्न क्षेत्रों पर बारम्बार हमले किए हैं। ये हमले हालिया महीनों में खासकर 7 अक्टूबर और ग़ज़ा में इस्राईल के अपराधों के नए दौर की शुरुआत के साथ बढ़े हैं।

ईरान के कुछ सैनिक क़ुद्स फ़ोर्स के रूप में पश्चिम एशियाई क्षेत्र की सुरक्षा में मदद करने, सलाहकार सेवाएं प्रदान करने और आतंकवाद के ख़िलाफ युद्ध में सीरियाई सैन्य बलों की मदद करने विशेष रूप से आतंकवादी गुट आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई में सहायता करने के लिए सीरिया में सीरियाई सरकार के आधिकारिक अनुरोध और निमंत्रण पर इस देश में मौजूद हैं।

 

इस्लामी क्रांति के नेता ने दमिश्क में कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के अपराधों के बारे में कहा है कि ज़ायोनीवादियों को उनके आपराधिक कार्यों के लिए दंडित किया जाएगा और पश्चाताप करने के लिए मजबूर किया जाएगा।

इस्लामिक क्रांति के नेता ग्रैंड अयातुल्ला सैयद अली खामेनेई ने इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के वरिष्ठ कमांडर जनरल मोहम्मद रज़ा ज़ाहेदी और उनके कुछ सहयोगियों की आतंकवादियों के हाथों हुई शहादत के संबंध में एक संदेश जारी किया है। ज़ायोनी सरकार को हड़पना और उससे नफरत करना। इस्लामी क्रांति के नेता ने अपने संदेश में कहा कि इस्लाम के नेता मेजर जनरल मुहम्मद रज़ा ज़ाहिदी और उनके करीबी सहयोगी जनरल मुहम्मद हादी हज रहीमी को ज़ायोनीवादियों ने शहीद कर दिया। इन शहीदों पर अल्लाह और उसके संतों का आशीर्वाद और शांति हो और दमनकारी और आक्रामक ज़ायोनी सरकार के अधिकारियों पर अभिशाप हो। इस्लामिक क्रांति के नेता ने कहा कि जनरल जाहिदी 1980 से ही जिहाद के मैदान में अपनी शहादत का इंतजार कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि इन शहीदों ने कुछ नहीं खोया बल्कि उन्हें अपना इनाम और सवाब मिला. इस्लामी क्रांति के नेता ने इस बात पर जोर दिया कि दुष्ट ज़ायोनी शासन को हमारे बहादुर लोगों द्वारा दंडित किया जाएगा और हम उसे इन आपराधिक कार्यों के लिए पश्चाताप करने के लिए मजबूर करेंगे।

अमेरिकी कांग्रेस के रिपब्लिकन प्रतिनिधि टिम वालबर्ग (Tim Walberg) ने एक बैठक में सुझाव दिया कि जैसा परमाणु बम अमेरिका ने जापान में नागासाकी और हिरोशिमा की जनता पर गिराया था, वैसा ही एक परमाणु बम ग़ज़ा पट्टी पर भी गिराया जाना चाहिए ताकि काम जल्दी ख़त्म हो जाए।

एक ईरानी पत्रकार इल्हाम आबेदीनी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म एक्स पर टिम वालबर्ग की भाषण का एक वीडियो शेयर किया है और लिखा:

अस्ल बात और नीयत यही है, टिम वालबर्ग की शैली से और किसी भी तरीक़े से फ़िलिस्तीनियों का पूर्ण सफ़ाया हो, इस वीडियो में अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य टिम वालबर्ग कहते हैं कि ग़ज़ा युद्ध का समाधान वैसा ही है जैसा हिरोशिमा और नागासाकी में हुआ था, हां! परमाणु बम, तेज़ और प्रभावी!

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है कि दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग की इमारत पर ज़ायोनी सरकार के हमले के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका को एक महत्वपूर्ण संदेश भेजा गया है।

ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने तेहरान में स्विस राज्य मंत्री को विदेश मंत्रालय में बुलाकर ज़ायोनी सरकार के सबसे बड़े समर्थक संयुक्त राज्य अमेरिका को एक महत्वपूर्ण संदेश भेजा है और कहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका इसका जवाब देना होगा.

ईरान के विदेश मंत्री ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा कि दमिश्क में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के कांसुलर सेक्शन की इमारत पर इजरायली सरकार के आतंकवादी हमले और कुछ सैन्य सलाहकारों की शहादत के बाद, स्विस दूतावास के अधिकारियों को अमेरिकी हितों का रक्षक बताया गया। विदेश मंत्रालय में तलब किया गया।

अमीर अब्दुल्लायान ने कहा कि स्विट्जरलैंड के गवर्नर को बुलाकर इजरायली सरकार के अपराधों और उसके आतंकवादी हमले के पहलुओं के बारे में बताया गया और संयुक्त राज्य अमेरिका की जिम्मेदारी पर जोर दिया गया.

ईरान के विदेश मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़ायोनी सरकार के समर्थक के रूप में अमेरिकी सरकार को एक महत्वपूर्ण संदेश भेजा गया है और कहा कि अमेरिका को इसका जवाब देना होगा।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री ने दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग की इमारत पर हमले को सभी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और समझौतों का उल्लंघन बताया और परिणामों के लिए ज़ायोनी सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

अल-आलम की रिपोर्ट के अनुसार, सीरियाई विदेश मंत्री फैसल अल-मकदाद ने ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग की इमारत पर ज़ायोनी सरकार के आक्रामक हमले के बाद ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन के साथ टेलीफोन पर बातचीत की। दमिश्क.

इस टेलीफोन बातचीत में ईरान और सीरिया के विदेश मंत्रियों ने इस आक्रामकता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. अल-मकदाद ने ज़ायोनी शासन की क्रूरता की कड़ी निंदा की और इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों, विशेष रूप से राजनयिक संबंधों पर 1961 वियना कन्वेंशन का स्पष्ट उल्लंघन बताया।

ईरान के विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहयान ने भी दमिश्क में ईरानी दूतावास में उपस्थिति के लिए सीरियाई विदेश मंत्री को धन्यवाद दिया और कहा कि गाजा में इजरायली सरकार की लगातार हार और अपने नापाक लक्ष्यों को हासिल करने में विफलता के कारण नेतन्याहू अपना दिमाग खो बैठे हैं। संतुलन पूरी तरह खो गया है.

ईरान के विदेश मंत्री ने दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास की इमारत पर हुए हमले को सभी अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन बताया और इसके परिणामों के लिए ज़ायोनी सरकार को जिम्मेदार ठहराया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इस आक्रामक सरकार के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया।

हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की शहादत दिवस पर मातमी जुलूस हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद खोरासानी के घर से शुरू हुआ और हज़रत मासूमा (स) के हरम पर ख़त्म हुआ।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल की तरह, हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब (अ) की शहादत के अवसर पर आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद खोरासानी के नेतृत्व में क़ुम अल-मकदीसा में एक शोक जुलूस आयोजित किया गया।

यह जुलूस आयतुल्लाह वहीद ख़ुरासानी (ख्याबन सफ़िया 23) के घर से शुरू होकर हरम मासूमा क़ुम पर समाप्त हुआ।

जुलूस ईरानी समयानुसार शाम 5:00 बजे आयोजित किया गया, जिसमें हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन नज़री ने एक भाषण देिया, कवि और शोक मनाने वाले इमाम अल-ज़माना (अ) के हरम  शोक मनाया और नौहा पेश किया।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्रालय ने दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग पर ज़ायोनी सरकार के आक्रामक हमले की कड़ी निंदा की है और कहा है कि ईरान इस घटना के बाद इसी तरह के जवाबी कदम उठाने का अधिकार रखता है और इसके खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया देगा। आक्रामक ज़ायोनी सरकार और दंडित करने का निर्णय लेगी-

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग की इमारत पर ज़ायोनी सरकार के आक्रामक हमले की कड़ी निंदा की है।

कनानी ने इस आक्रामक हमले को अंतरराष्ट्रीय कानूनों, विशेषकर राजनयिक संबंधों पर 1961 के वियना कन्वेंशन का गंभीर उल्लंघन बताया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र ज़ायोनी सरकार की इस कार्रवाई की कड़ी शब्दों में निंदा करते हैं। इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। ईरान के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इस बात पर जोर दिया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान जवाबी कार्रवाई करने के अपने अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए हमलावर की प्रतिक्रिया और सजा पर फैसला करेगा।

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, वह ग़म नहीं है जो किसी ज़माने में पड़ा हो और फिर आज हम उसकी याद में आंसू बहांए! नहीं, यह ग़म, हर ज़माने का ग़म है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद करने का दुख, यह ख़ुदा की क़सम हिदायत की बुनियाद तबाह हो गयी” जो कहा गया है वह सिर्फ़ उस ज़माने का नुक़सान नहीं हुआ बल्कि इन्सानियत की पूरी तारीख़ का नुक़सान हुआ हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, वह ग़म नहीं है जो किसी ज़माने में पड़ा हो और फिर आज हम उसकी याद में आंसू बहांए! नहीं, यह ग़म, हर ज़माने का ग़म है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम को शहीद करने का दुख, यह “ख़ुदा की क़सम हिदायत की बुनियाद तबाह हो गयी” जो कहा गया है वह सिर्फ़ उस ज़माने का नुक़सान नहीं हुआ बल्कि इन्सानियत की पूरी तारीख़ का नुक़सान हुआ हैं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने इस तारीख़ से 25 बरस पहले बीमारी की हालत में मदीना की औरतों से कहा था कि अगर अली को ख़िलाफ़त सौंपते तो “वह उनकी ज़िंदगी का सफ़र आसान कर देते।” यानी आम इंसान की ज़िदंगी का सफ़र आसान हो जाता उन्हें कोई नुक़सान न पहुंचने देते।

पैग़म्बरे इस्लाम के ज़माने में इस्लामी समाज क्या था? दस बरसों तक तो एक मदीना ही था, एक छोटा सा शहर जहां कुछ हज़ार लोग रहते थे। उसके बाद मुसलमानों ने मक्का और ताएफ़ को भी जीत लिया वह भी छोटा सा इलाक़ा, मामूली सी दौलत के साथ। हर तरफ़ ग़रीबी थी सहूलतों का अभाव था।

इस्लामी वैल्यूज़ और शिक्षाएं इस तरह के माहौल में अस्तित्व में आईं। पैग़म्बरे इस्लाम को इस दुनिया से गये 25 बरस बीत चुके थे। इन 25 बरसों में, इस्लामी हुकूमत की सरहदें, सैंकड़ों गुना विस्तृत हो गयीं, दोगुना, तीन गुना, या दस गुना नहीं। यानी जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को ज़ाहिरी तौर पर हुकूमत मिली, तो सेंट्रल एशिया से लेकर नार्थ अफ़्रीक़ा यानि मिस्र तक, इस्लामी हुकूमत की सरहदें फैली हुई थीं।

इस्लामी हुकूमत की दो बड़ी पड़ोसी सलतनतें यानी ईरान और रोम में से एक तो पूरी तरह से ख़त्म हो गयी थी। यह ईरानी सलतनत थी और उस दौर में ईरान के हर इलाक़े पर इस्लाम पर क़ब्ज़ा हो गया था।

दूसरी रोम की सलतनत थी जिसके बड़े हिस्से यानी शाम्मात, फ़िलिस्तीन, मौसिल और दूसरे इलाक़ों पर भी इस्लाम का क़ब्ज़ा हो गया था। इतना बड़ा इलाक़ा इस्लाम के क़ब्ज़े में था, इस लिए दौलत भी बहुत ज़्यादा बढ़ गयी थी। अब ग़रीबी और खाने पीने की चीज़ों की कमी नहीं थी। सोना था, दौलत की भरमार थी, बहुत दौलत जमा हो गयी थी।

इसी लिए इस्लामी मुल्क मालदार हो गया था। बहुत से लोगों की ज़िंदगी तो ज़रूरत से ज़्यादा ही आराम में गुज़र रही थी।

इन बरसों में बहुत से लोगों ने सरकारी ख़जाने से अपनी जेबें भरी थीं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं यह सारी दौलत सरकारी ख़ज़ाने में वापस लाऊंगा यहां तक कि अगर वह दौलत औरतों के मेहर में भी इस्तेमाल हो चुकी हो या उससे कऩीज़ें ख़रीदी जा चुकी हों मैं उन सब को सरकारी ख़ज़ाने में वापस लौटाऊंगा, लोगों को और समाज के बड़े लोगों को यह जान लेना चाहिए कि मेरा तरीक़ा यही है।

आज अमीरुल मोमेनीन की शहादत का दिन है। मैं थोड़ा सा मसायब पढ़ना चाहता हूं। “ए अमीरुलमोमेनीन फ़रिश्ते ने आप पर दुरूद भेजा। “कितने ख़ुशक़िस्मत हैं वे लोग जो आज नजफ़ में, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के रौज़े में हैं और उनकी पाकीज़ा क़ब्र पर क़रीब से सलाम कर सकते हैं। हम भी यहीं दूर से कहते हैं।

अस्सलामो अलैका या अमीरुल मोमेनीन! सलाम हो मुत्त़क़ियों के इमाम पर, सलाम हो वलियों के सरदार पर” 19 रमज़ान की सुबह को जब क़यामत आयी, तो ग़ैब से हर तरफ़ यह आवाज़ गूंजी “ख़ुदा की क़सम, हिदायत की बुनियाद तबाह हो गयी” कूफ़ा और उस दौर में जहां तक यह ख़बर पहुंची वहां के लोगों में बेचैनी फैल गयी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को कूफ़ा के लोग बहुत चाहते थे, उनसे मुहब्बत करते थे।

मर्द, औरतें, बड़े-छोटे, ख़ास तौर पर अमीरुल मोमेनीन के क़रीबी साथी बहुत ज़्यादा बेचैन थे। कल के दिन शाम के वक़्त, शहादत से एक दिन पहले, वह सब अमीरुल मोमेनीन के घर के बाहर जमा हो गये थे।

इमाम हसन मुजतबा ने, जैसा कि तारीख़ में लिखा है, जब यह देखा कि लोग बेचैन हैं और अमीरुल मोमेनीन को देखना चाहते हैं तो उन्होंने कहा कि भाइयो, मोमिनो! अमीरुल मोमेनीन की हालत अच्छी नहीं है, उनसे मिलना मुमकिन नहीं है, आप सब चले जाएं। सब लोग वहां से हट गये और अपने अपने घर चले गये।

असबग़ बिन नबाता कहते हैं कि बहुत कोशिश की लेकिन अमीरुल मोमेनीन के घर से हट नहीं पाया, इस लिए मैं वहीं ठहरा रहा। थोड़ी देर बाद, इमाम हसन अलैहिस्सलाम घर से बाहर आए और जब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी तो फ़रमायाः असबग़! सुना नहीं कि यहां से जाना है? मुलाक़ात नहीं हो सकती।

मैंने कहा फ़रज़ंदे रसूल! मेरे बदन में जान नहीं है, मैं यहां से हिल नहीं पा रहां हूं, क्या यह नहीं हो सकता कि कि मैं एक लम्हे के लिए आकर अमीरुल मोमेनीन को देख लूं? इमाम हसन अलैहिस्सलाम घर के अंदर गये और फिर बाहर आए और मुझे अदंर जाने की इजाज़त दी। असबग़ कहते हैं कि मैं कमरे में गया।

मैंने देखा कि अमीरुलमोमेनीन, बिस्तर पर लेटे हैं, और उनके घाव पर एक पीला कपड़ा बंधा हुआ है लेकिन मैं यह नहीं समझ पाया कि कपड़ा ज़्यादा पीला है या इमाम का चेहरा! इमाम, कभी बेहोश होते थे कभी होश में आते।

 

एक बार जब होश में आए तो असबग़ का हाथ पकड़ा और एक हदीस बयान की। हिदायत की बुनियाद जो कहते हैं उसकी यही वजह है। ज़िदंगी के आख़िरी लम्हे में, इस हालत में भी हिदायत करते हैं।

लंबी हदीस बयान की और फिर बेहोश हो गये। इसके बाद न असबग़ बिन नताता और न ही अमीरुल मोमेनीन के किसी और सहाबी ने उस दिन के बाद अली की ज़ियारत की। अली इसी रात 21वीं की रात इस दुनिया से चले गये और एक दुनिया को ग़मज़दा और एक तारीख को ग़मगीन कर दिया।

जब पैगम़्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी और दुनिया के शियों के पहले इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मालिके अशतर को मिस्र का शासन सौंपा तो उन्हें एक पत्र लिखा जो शासन शैली का अहदनामा है। इस ख़त में इस्लामी हुकूमत, इस्लामी शासक, नागरिकों के अधिकारों और सत्ता व नागरिकों के संबंध के बारे में बुनियादी उसूल और बिंदु बयान किए गए हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी पर एक संक्षेप नज़र

हज़रत अली (सन 23 हिजरत पूर्व- सन 40 हिजरी) शियों के पहले इमाम, पैग़म्बर के सहाबी, पैग़म्बर की हदीसों के रावी, इसी तरह पैग़म्बर के चचेरे भाई और उनके दामाद थे। वो क़ुरआन और वहि के कातिब भी थे। हज़रत अली अहले सुन्नत अक़ीदे के अनुसार चार ख़लीफ़ाओं में चौथे ख़लीफ़ा हैं। शिया इतिहासकारों और बहुत से सुन्नी धर्मगुरुओं के अनुसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म काबे के भीतर हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाने वाले वह पहले शख़्स थे।

शियों के दृष्टिकोण से अल्लाह के फ़रमान के मुताबिक़ और पैग़म्बरे इस्लाम के बिल्कुल स्पष्ट एलान के अनुसार वो पैग़म्बर के बाद पहले ख़लीफ़ा हैं। क़ुरआन की कुछ आयतें उन्हें हर प्रकार के गुनाह और बुराइयों से पाक व पाकीज़ा और मासूम साबित करती हैं।

शिया किताबों और कुछ सुन्नी किताबों के अनुसार लगभग 300 आयतें क़ुरआन में ऐसी हैं जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की प्रशंसा में नाज़िल हुईं। वो हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के पति और शियों के बाक़ी 11 इमामों के पिता और दादा हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम 19 रमज़ान 40 हिजरी को मस्जिदे कूफ़ा में ख़वारिज कही जाने वाली चरमपंथी विचारधारा से तअल्लुक़ रखने ववाले एक व्यक्ति के हमले में घायल हुए और 21 रमज़ान को शहीद हो गए।

नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुतबों, पत्रों और हिकमत से भरी बातों का संग्रह है जिसे चौथी हिजरी क़मरी के आख़िर में महान धर्मगुरू सैयद रज़ी ने एकत्रित किया। यह किताब साहित्यिक महानताओं और अर्थों की गहराई के कारण क़ुरआन का भाई कही जाती है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बहुत मशहूर पत्रों में से एक वह पत्र है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मिस्र में अपने पसंदीदा गवर्नर मालिके अशतर नख़ई को लिखा।

यह एक तरह का अहदनामा है जिसका हर शब्द इल्म और मारेफ़त का ख़ज़ाना है, ख़ास तौर पर न्यायप्रेमी राजनेताओं और उन लोगों के लिए जो किसी भी क्षेत्र में कोई ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं।

हम इस पत्र के कुछ हिस्सों को यहां तीन भागों में पेश कर रहे हैं,

पहला हिस्साः

शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ नसीहतें:

  1. इस्लामी शासक आम लोगों से हमदर्दी, प्रेम और कृपा के साथ पेश आए ख़ूंख़ार दरिंदों की तरह न हो कि लोगों खा जाना चाहिए।
  2. जहां मुमकिन हो लोगों की ग़लतियों को माफ़ और नज़रअंदाज़ करे क्योंकि आम लोगों से ग़लती की संभावना रहती है, शासक को चाहिए कि उन्हें माफ़ कर दे।
  3. शासक को चाहिए कि लोगों के अंदर से द्वेष और कुठा को दूर करे, लोगों के बारे में अच्छी सोच रखे क्योंकि अच्छी सोच लंबी कठिनाइयों को दूर कर देती है।
  4. इस्लामी शासक ख़ुद को लोगों की कमियों की तलाश में न रहे और इस इस आदत के लोगों को अपने से दूर रखे क्योंकि लोगों में कमियां होती हैं, शासन की ज़िम्मेदारी होती है कि उन्हें ढांके।
  5. शासक चुग़लख़ोर इंसान की बात की पुष्टि न करे चाहे वह भलाई ही क्यों न करना चाहता हो।
  6. इस्लामी शासक अल्लाह से किए गए वादे में तभी कामयाब हो सकता है जब वह अल्लाह से मदद मांगे और ख़ुद को हक़ का सम्मान करने के लए तैयार करे।
  7. शासक किसी को माफ़ करने के बाद पछताए नहीं और किसी को सज़ा देने के बाद ख़ुश न हो।
  8. शासक अपने दिन रात का बेहतरीन भाग अल्लाह से बातें करने के लिए रखे और ख़ुलूस की बुलंदी पर पहुंचने के लिए वाजिब कामों और सारी इलाही ज़िम्मेदारियों को बिना किसी कोर कसर के पूरा करे।
  9. शासक अपन वादों पर क़ायम रहे और उनसे पीछे न हटे।
  10. शासक अपनी बदगुमानी, कठोरता, रोब और ज़बान व हाथ के हमले को नियंत्रण में रखे और जान बूझकर किसी की हत्या से परहेज़ करे।

दूसरा भागः

दूसरा भाग हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सामाजिक नसीहतों के बारे में है जो उन्होंने शासकों को की हैं:

  1. इस्लामी शासक के निकट सबसे पसंदीदा काम वह हो जो हक़ बात को सबसे स्पष्ट रूप में पहंचाए, न्याय के मामले में सबसे ज़्यादा व्यापक हो और समाज के सबसे ज़्यादा लोगों को संतुष्ट करने वाला हो।
  2. इस्लामी शासक के निकट सबसे ज़्यादा तरजीह उस व्यक्ति को हासिल हो जो हक़ को सबसे ज़्यादा कड़वे हालात में दूसरों से ज़्यादा स्पष्ट शब्दों में बयान करे।
  3. समाज के लोगों की बुराइयों और गुनाहों में जो पर्दे में छिपे हैं और इस्लामी हाकिम के इल्म में नहीं हैं उसके बारे में ख़ुद को बेतवज्जो ज़ाहिर करे।
  4. शासकों का फ़र्ज़ है कि जिस दिन उन्हें लोगों की ज़रूरतों के बारे में पता चले उसी दिन उन्हें पूरा करे। हर दिन का काम उसी दिन अंजाम दे क्योंकि हर दिन का अपना एक मौक़ा होता है।
  5. शासक ख़ुद को आम लोगों से दूर न रखे क्योंकि समाज के लोगों से शासक के दूर रहने का नतीजा यह है कि वह मामलों और मसलों से बेख़बर हो जाता है।
  6. शासक का फ़र्ज़ है कि अपने रिश्तेदारों को दूसरों पर तरजीह देने से कड़ाई से परहेज़ करे।
  7. शासक समाज के लोगों के साथ जो अच्छाइयां कर रहा है उसका एहसान न जताए और जो काम समाज की भलाई वाला हो उसे मद्देनज़र रखे।

तीसरा हिस्सा

शासकों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ राजनैतिक नसीहतें:

  1. शासक कंजूस, बुज़दिल, और लालची लोगों से मशिवरा करने से परहेज़ करे क्योंकि, कंजूसी, डर और लालच वह रजहान हैं जो आपस में मिल जाने के बाद अल्लाह के बारे में बदगुमानी को जन्म देते हैं।
  2. नेक और बुरे लोग शासक के निकट एक समान न हों क्योंकि इसका नतीजा यह होगा कि नेक इंसान को नेक कामों के लिए अपमान झेलना पड़ेगा और बुरे कर्म वाले को बुराई करने का और हौसला मिलेगा।
  3. कोई भी शासक उन परम्पराओं को न तोड़े जिन पर समाज के ज्ञानी लोगों ने अमल किया है और जिनसे समाज के लोगों के बीच एक तार्किक समन्वय पैदा हुआ है। ऐसा कोई कायदा लागू न करे जो लोगों की अच्छी पराम्पराओं को ख़त्म कर दे।
  4. अगर लोगों की तरफ़ से अन्याय का आरोप लगाया जा रहा है तो शासक अपने ऊपर से इस तरह के आरोप हटाए। अगर समाज के लोग शासक के बारे में सोचें कि वह ज़ुल्म कर रहा है तो अपनी उसे अमल और रवैए के बारे में सफ़ाई पेश करे जिसकी वजह से लोगों में बदगुमानी पैदा हुई है और लोगों की बदगुमानी दूर करे।
  5. शासक किसी भी मामले में उसका सही समय आने से पहले जल्दबाज़ी न दिखाए।
  6. शासक के लिए अगर कोई चीज़ स्पष्ट नहीं है और उसमें भ्रांति है तो भ्रांति दूर होने से पहले तक उसे हरगिज़ स्वीकार न करे।
  7. उन मामलों में जिनमें लोग एक समान होते हैं ख़ुद को दूसरों से बेहतर न समझे। यानी शासक जीवन के अधिकारी, मर्यादा के अधिकार और आज़ादी आदि के अधिकार में ख़ुद को दूसरो से श्रेष्ट न समझे।
  8. शासक उन मामलों में जिसकी ज़िम्मेदारी उस पर है और लोगों की निगाहें उस पर लगी हुई हैं हरगिज़ कोई ग़फ़लत न बरते और यह ज़ाहिर न करे कि वह समझ नहीं पा रहा है।

 

 

इस वक्त क़ुरआन करीम ही एक आसमानी किताब है जो इन्सान की दस्तरस में है।नहजुल बलाग़ा में बीस (20)से ज़ियादा ख़ुतबात हैं जिन में क़ुरआने मजीद का तआर्रुफ़ और उस की अहमियत व मौक़ेईयत बयान हुई है बाज़ औक़ात आधे से ज़्यादा खु़त्बे में क़ुरआने करीम की अहमियत, मुसलमानों की ज़िन्दगी में इस की मौक़ेईयत और उस के मुक़ाबिल मुसलमानों के फ़राइज़ बयान हुए हैं। यहां हम सिर्फ़ बाज़ जुमलों को तौज़ी व तशरीह पर इकतेफ़ा करेंगे।

अमीरुल मोमिनीन (अ) ख़ुत्बा 133 में इर्शाद फ़रमाते हैं (व किताबल्लाहे बेना अज़्हरोकुम नातिक़ ला याई लिसानहो)

तर्जुमा

: और अल्लाह की किताब तुम्हारी दस्तरस में है जो क़ुव्वते गोयाई रखती है और उस की ज़बान गुंग नहीं।

क़ुरआन आसमानी किताबों तौरात व इन्जील व ज़बूर के बरखिलाफ़ तुम्हारी दस्तरस में है। यह बात तवज्जोह तलब है उम्मतों ख़ुसुसन यहूद व बनी इसराईल के अवाम के पास न थी बल्कि इस के कुछ नुस्ख़े उलामा ए यहूद के पास थे यानी आम्मतुन नास के लिये तौरात की तरफ़ रुजू करने का इम्कान न था। इन्जील के बारे में तो वज़ईयत इस से ज़्यादा परेशान कुनिन्दा है क्यों कि वह इन्जील जो आज ईसाईयों के पास है यह वह इन्जील नहीं जो हज़रत ईसा (अ) पर नाज़िल हुई थी बल्कि मुख़्तलिफ़ अफ़राद के जमा शुदा मतालिब हैं और चार अनाजील के तौर पर मअरूफ़ हैं। पस गुज़िश्ता उम्मतें आसमानी किताबों तक दस्तरसी न रखती थीं। लेकिन क़ुरआने करीम को ख़ुदा वन्दे मुतआल ने ऐसे नाज़िल फ़रमाया और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उसे इन्सानों तक ऐसे पहुंचाया कि आज लोग बड़ी आसानी से उसे सीख और हिफ़्ज़ कर सकते हैं।

इस आसमानी किताब की एक दूसरी ख़ुसूसियत यह है कि ख़ुदा वन्दे मुतआल ने उम्मते मुस्लेमा पर यह अहसान फ़रमाया है कि इस की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ख़ुद अपने ज़िम्मे ली है कि यह किताब हर तरह के इन्हेराफ़ या मुक़ाबिला आराई से महफ़ूज़ रहे। ख़ुद आँ हज़रत (स.) ने इस के सीख़ने और इसकी आयात के हिफ़्ज़ करने की मुसलमानों को इस क़द्र ताकीद फ़रमाई कि बहुत सारे मुसलमान आपके ज़माने में ही हाफ़िज़े क़ुरआन थे जो आयत तद्रीजन नाज़िल हुई थीं तो हज़रत (स) मुसलमानों के लिये बयान फ़रमाते थे इस तरह मुसलमान उन को हिफ़्ज़ करते, लिखते, और उन को आगे बयान करते। इस तरिक़े से क़ुरआन पूरी दुनिया में फ़ैलता गया। मौला ए कायनात फ़रमाते हैं : अल्लाह की किताब तुम्हारे दरमियान और तुम्हारे इख़्तियार में है, ज़रूरत है कि हम इस जुम्ले में ज़्यादा ग़ौर करें “नातेक़ुन ला यअई लिसानहू” यह किताब बोलने वाली है और इस की ज़बान कभी गुंग या कुन्द नहीं हुई। यह बोलने से ख़स्तगी का अहसास नहीं करती और न कभी इस में लुक्नत पैदा हुई है इस के बाद आप इर्शाद फ़रमाते हैं “व बयता ला तह्दमो अर्कानहु व अज़्ज़ा ला तह्ज़मो अअवानहु”यह एक ऐसा घर है जिसके सुतून कभी मुन्हदिम होने वाले नहीं हैं और ऐसी इज़्ज़त व सर बलन्दी है जिस के यार व अन्सार कभी शिकस्त नहीं खाते।