رضوی

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गाजा में फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि गाजा के शहीदों की संख्या 32 हजार 916 हो गई है.

गाजा में फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि पिछले चौबीस घंटों में ज़ायोनी सेना ने गाज़ा के विभिन्न क्षेत्रों पर सात बार हमला किया। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 24 घंटों में ज़ायोनी सेना द्वारा गाजा पर किए गए सात हमलों में 71 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए और 102 घायल हो गए।

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि नई गवाही के बाद 7 अक्टूबर से गाज़ा पर ज़ायोनी सैनिकों के हमलों में शहीदों की संख्या 32 हज़ार 916 और घायलों की संख्या 75 हज़ार 494 तक पहुँच गई है।

गाजा में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि नष्ट हुई इमारतों के मलबे के साथ-साथ गाजा की सड़कों पर अभी भी कई अंतिम संस्कार हैं जिन्हें ज़ायोनी सेना के लगातार क्रूर हमलों के कारण हटाया नहीं जा सका है।

हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने कहा: शबे क़द्र पर हम जो सबसे अच्छे काम कर सकते हैं वह दान देना और सच्ची और शुद्ध प्रार्थना करना है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी उर्मिया के संवाददाता के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम हसन रहीमी ने मदरसा ज़ैनब काबरा (स) उर्मिया में इमाम अली (अ) की शहादत के अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए कहा: सर्वशक्तिमान ईश्वर की निकटता भाग्य की छाया में मनुष्य के लिए यह एक महान अवसर है।

उन्होंने आगे कहा: इस रात के सबसे अच्छे कामों में दान और सच्चे दिल से दुआ करना है।

हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने कहा: इस रात में हम कुरान, जिक्र और दुआ के पाठ के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं और आने वाले दिनों में पापों से मुक्ति और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना कर सकते हैं।

हौज़ा इल्मिया पश्चिम आज़रबाइजान के इस शिक्षक ने कहा: दान देना उन कार्यों में से एक है जो हमारी मानवीय भावना को बेहतर बनाने और दूसरों की मदद करने में मदद करता है, दान देना दूसरों के प्रति हमारी करुणा, प्रेम और उदारता का प्रतीक है और हमें मानवता और दयालुता की ओर आकर्षित करता है।

उन्होंने आगे कहा: क़द्र की रात में इमाम अल-ज़माना (अ) के ज़हूर मे तेजी लाने के लिए दुआ करने पर भी बहुत जोर दिया जाता है।

हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने हज़रत इमाम अली (अ) की महानता और बुलंद व्यक्तित्व की ओर इशारा किया और कहा: इमाम अली (अ) इस्लाम के इतिहास में सबसे महान शख्सियतों में से एक हैं। वह साहस, न्याय, ज्ञान और धर्मनिष्ठा में अद्वितीय हैं। उन्हें उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होकर और न्याय स्थापित करके मानवता के लिए एक महान संपत्ति के रूप में जाना जाता है।

बुधवार, 03 अप्रैल 2024 18:13

क़ुरआन और सदाचार

इस में कोई शक नही है कि सदाचार हर समय में महत्वपूर्ण रहा हैं। परन्तु वर्तमान समय में इसका महत्व कुछ अधिक ही बढ़ गया है। क्योँकि वर्तमान समय में इंसान को भटकाने और बिगाड़ने वाले साधन पूर्व के तमाम ज़मानों से अधिक हैं। पिछले ज़मानों मे बुराईयाँ फैलाने और असदाचारिक विकार पैदा करने के साधन जुटाने के लिए मुश्किलों का सामना करते हुए अधिक मात्रा मे धन खर्च करना पड़ता था। परन्तु आज के इस विकसित युग में यह साधन पूरी दुनिया मे व्याप्त हैं।जो काम पिछले ज़मानों में सीमित मात्रा में किये जाते थे वह आज के युग में असीमित मात्रा में बड़ी आसानी के साथ क्रियान्वित होते हैं। आज एक ओर विकसित हथियारों के द्वारा इंसानों का कत्ले आम किया जा रहा है। तो दूसरी ओर दुष्चारिता को बढ़ावा देने वाली फ़िल्मों को पूरी दुनिया मे प्रसारित किया जा रहा है।विशेषतः इन्टर नेट के द्वारा मानवता के लिए घातक विचारों व भावो को दुनिया के तमाम लोगों तक पहुँचाया जा रहा है। इस स्थिति में आवश्यक है कि सदाचार की तरफ़ गुज़रे हुए तमाम ज़मानों से अधिक तवज्जोह दी जाये। इस कार्य में किसी भी प्रकार की ढील हमको बहुत से संकटों में फसा सकती है। खुश क़िस्मती से हमारे पास क़ुरआने करीम जैसी किताब मौजूद है। जिसमे एक बड़ी मात्रा में अति सुक्ष्म सदाचारिक उपदेश पाये जाते हैं। दुनिया के दूसरे धर्मों के अनुयाईयों के पास ऐसी नेअमतें नही हैं। बस हमें इस बात की ज़रूरत है कि हम क़ुरआन के साथ अपने सम्बन्ध को बढ़ायें और उसके बताये हुए रास्ते पर अमल करें ताकि इस ज़माने में भटकनें से बच सकें। सदाचार विषय का महत्व सदाचार वह विषय है जिसको क़ुरआने करीम में विशेष महत्व दिया गया है। और तमाम नबीयों का उद्देश भी सदाचार की शिक्षा देना ही था। क्योँकि सदाचार के बिना इंसान के दीन और दुनिया दोनों अधूरे हैं। वास्तव में इंसान को इंसान कहना उसी समय शोभनीय है जब वह इंसानी सदाचार से सुसज्जित हो। सदाचारी न हो ने पर यह इंसान एक खतरनाक नर भक्षी का रूप भी धारण कर लेता है। और चूँकि इंसान के पास अक़्ल जैसी नेअमत भी है अतः इसका भटकना अन्य प्राणीयों से अधिक घातक सिद्ध होता है।और ऐसी स्थिति में वह सब चीज़ों को ध्वस्त करने की फ़िक्र में लग जाता है। और अपने भौतिक सुख और लाभ के लिए युद्ध करके बे गुनाह लोगों का खून बहानें लगता है। क़ुरआने करीम को पढ़ने से मालूम होता है कि बहुतसी आयात इस विषय की महत्ता को प्रकट करती हैं। जैसे सूरए जुमुआ की दूसरी आयत मे ब्यान किया गया कि “वह अल्लाह वह है जिसने मक्के वालों के मध्य एक रसूल भेजा जो उन्हीं मे से था। (अर्थात मक्के ही का रहने वाला था) ताकि वह उनके सामने आयात को पढ़े और उनकी आत्माओं को पवित्र करे और उनको किताब व हिकमत(बुद्धी मत्ता) की शिक्षा दे इस से पहले यह लोग(मक्का वासी) प्रत्यक्ष रूप से भटके हुए थे।” और सूरए आले इमरान की आयत न. 64 मे ब्यान होता है कि “यक़ीनन अल्लाह ने मोमेनीन पर एहसान (उपकार) किया कि उनके दरमियान उन्हीं में से एक रसूल भेजा जो इनके सामने अल्लाह की आयात पढ़ता है इनकी आत्माओं को पवित्र करता है और उनको किताब व हिकमत (बुद्धिमत्ता ) की शिक्षा देता है जबकि इससे पहले यह लोग प्रत्यक्ष रूप से भटके हुए थे।” उपरोक्त की दोनों आयते रसूले अकरम (स.) की रिसालत के वास्तविक उद्देश्य,आत्माओं की पवित्रता और सदाचारिक प्रशिक्षण को ब्यान कर रही हैं। यहाँ पर यह कहा जा सकता है कि आयात की तिलावत, (आवाज़ के साथ पढ़ना) किताब और हिकमत की शिक्षा को आत्माओं को पवित्र बनाने और प्रशिक्षत करने के लिए आधार बनाया गया है। और आत्माओं की पवित्रता ही सदाचारिक ज्ञान का वास्तविक उद्देश्य है। शायद यही वजह है कि अल्लाह ने क़ुरआने करीम की बहुत सी आयात में आत्मा की पवित्रता को शिक्षा से पहले ब्यान किया है। क्योँकि वास्तविक ऊद्देश्य आत्माओं की पवित्रता ही है। जबकि क्रियात्मक रूप मे शिक्षा को आत्मा की पवित्रता पर प्राथमिकता प्राप्त है। उपरोक्त लिखित दोनों आयतों में से पहली आयत में अल्लाह ने रसूले अकरम (स.) को सदाचार की शिक्षा देने वाले के रूप मे रसूल बनाने को अपनी एक निशानी बताया है। और प्रत्यक्ष रूप से भटके होनें को, शिक्षा और प्रशिक्षण के विपरीत शब्द के रूप मे पहचनवाया है। इससे मालूम होता है कि क़ुरआने करीम में सदाचार विषय को बहुत अधिक महत्ता दी गई है। और दूसरी आयत में रसूले अकरम (स.) को सदाचार के शिक्षक के रूप मे भेज कर मोमेनीन पर एहसान(उपकार) करने का वर्णन किया गया है। जो सदाचार की महत्ता के लिए एक खुली हुई दलील है। नतीजा उल्लेखित आयतों व अन्य आयतों के अध्ययन से पता चलता है कि क़ुरआन की दृष्टि में सदाचार विषय बहुत महत्व पूर्ण है। और इसको एक आधारिक विषय के रूप में माना गया है। जबकि इस्लाम के दूसरे तमाम क़ानूनों को इस के अन्तर्गत ब्यान किया गया है।सदाचार का रूर्ण विकास ही वह महत्वपूर्ण उद्देश्य है जिस पर तमाम आसमानी धर्मों ने विशेष रूप से बल दिया है। और सदाचार ही को तमाम सुधारों का मूल माना है। ज्ञान और सदाचार का सम्बन्ध अल्लाह ने क़ुरआने करीम की बहुत सी आयात में किताब और हिकमत(बुद्धिमत्ता) की शिक्षा को आत्मा की पवित्रता के साथ उल्लेख किया है। कहीं पर आत्मा की पवित्रता का ज्ञान से पहले उल्लेख किया और कहीं पर आत्मा की पवित्रता को ज्ञान के बाद ब्यान किया। इस से यह ज्ञात होता है कि ज्ञान और सदाचार के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है।अर्थात अगर किसी इंसान को किसी बात की अच्छाई या बुराई का ज्ञान हो जाये तो इसका असर उसकी व्यक्तित्व पर पड़ेगा वह अच्छाई को अपनाने और बुराई से बचने की कोशिश करेगा।इंसान की बहुत सी व्यवहारिक बुराईयाँ अज्ञानता के आधार पर होती हैं। अतः अगर समाज से अज्ञानता को दूर कर दिया जाये तो समाज से बहुत सी बुराईयाँ समाप्त हो जायेंगीं। और धीरे धीरे अच्छाईयाँ बुराईयों का स्थान ले लेगीं। यह बात अलग है कि यह क़ानून पूरी तरह से लागू नही होता है।और यह भी आवश्यक नही है कि सदैव ऐसा ही हो। क्योकिं इस सम्बन्ध में दो दृष्टि कोण पाये जाते हैं पहला दृष्टिकोण यह है कि ज्ञान अच्छे सदाचार के लिए कारक है। तथा समस्त सदाचारिक बुराईयाँ अज्ञानता के कारण होती हैं। इस दृष्टि कोण के अनुसार सदाचारिक बुरीय़ों को समाप्त करने का केवल एक ही तरीक़ा है और वह यह कि समाज में व्यापक स्तर पर शिक्षा का प्रसार करके समाज के विचारों को उच्चता प्रदान की जाये। दूसरा दृष्टि कोण यह है कि ज्ञान और सदाचार मे आपस में कोई सम्बन्ध नही है। और ज्ञान बदकार और दुराचारी लोगों कोउनकी बदकारी और दुराचारी में मदद करता है। और वह पहले से बेहतर तरीक़े से अपने बुरे कामों पर बाक़ी रहते हैं। लेकिन वास्तविक्ता यह है कि न तो ज्ञान और सदाचार के सम्बन्ध से पूर्ण रूप से मना किया जा सकता है और न ही पूर्ण रूप से ज्ञान को सदाचार का आधार माना जा सकता है। अर्थात यह भी नही कहा जा सकता कि जहाँ पर ज्ञान होगा वहाँ पर अच्छा सदाचार भी अवश्य होगा। क्या इन्सान के अख़लाक़ मे परिवर्तन हो सकता है ? यह एक ऐसा सवाल है जो सदाचार की समस्त बहसों से सम्बन्धित है। क्योंकि अगर इन्सान के सदाचार में परिवर्तन को सम्भव न माना जाये तो केवल सदाचार विषय ही नही अपितु तमाम नबियों की मेहनतें और तमाम आसमानी किताबो (क़ुरआन, इंजील, तौरात, ज़बूर) में वर्णित सदाचारिक उपदेश निष्फल हो जायेगें। और दण्ड विधान की समस्त सहिंताऐं भी निषकृत सिद्ध होगीं। समस्त नबियों की शिक्षा और आसमानी किताबों में सदाचार से सम्बन्धित ज्ञान का पाया जाना इस बात के लिए तर्क है कि इंसान के सदाचार मे परिवर्तन सम्भव है। हमने बहुत से ऐसे लोगों को देखा हैं जिनका सदाचार और व्यवहार सही प्रशिक्षण के द्वारा बहुत अधिक परिवर्तित हुआ है। यहाँ तक कि जो लोग कभी शातिर बदमाश थे आज वही लोग सही मार्ग दर्शन के कारण आबिद और ज़ाहिद व्यक्ति के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं। अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए क़ुरआने करीम से कुछ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

 1- इस दुनिया में अम्बिया और आसमानी किताबों का आना इस बात के लिए सबसे अच्छा तर्क है कि हर व्यक्ति को प्रशिक्षित करना और उसके व्यवहार को बदलना सम्भव है। जैसे कि सूरए जुमुआ की दूसरी आयत में ब्यान हुआ है जिसका वर्णन पीछे भी किया जा चुका है। और इसी के समान दूसरी आयतों से यह ज्ञात होता है कि रसूले अकरम (स.) के इस दुनिया में आने का मुख्य उद्देश्य लोगों का मार्ग दर्शन करना उनको शिक्षा प्रदान करना तथा उनकी आत्माओं को पवित्र करना है जो प्रत्यक्ष रूप से भटके हुए थे।और यह सब तभी सम्भव है जब इंसान के व्यवहार में परिवर्तन सम्भव हो।

 2- क़ुरआन की वह समस्त आयतें जिन में अल्लाह ने पूरी मानवता को सम्बोधित किया है और सदाचारिक विशेषताओं को अपनाने का आदेश दिया है यह समस्त आयतें इन्सान के सदाचार मे परिवर्तन सम्भव होने पर सबसे अचछा तर्क हैं। क्योंकि अगर यह सम्भव न होता हो अल्लाह का पूरी मानवता को सम्बोधित करते हुए इसको अपनाने का आदेश देना निष्फल होगा। इन आयात पर एक आपत्ति व्यक्त की जा सकती है कि इन आयात में से अधिकतर आयात अहकाम को ब्यान कर रही हैं। और अहकाम का सम्बन्ध इंसान के क्रिया कलापो से है। जबकि सदाचार का सम्बन्ध इंसान की आन्तरिक विशेषताओं से है। अतः यह कहना सही न होगा कि इन आयात में सदाचार की शिक्षा दी गई है। इस आपत्ति का जवाब यह है कि इंसान के सदाचार और क्रिया कलापो में बहुत गहरा सम्बन्ध पाया जाता है। यह पूर्ण रूप से एक दूसरे पर आधारित हैं। और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। इंसान के अच्छे क्रिया कलाप उसके अच्छे सदाचार का नतीजा होते हैं।जिस तरह उसके बुरे क्रिया कलाप उसके दुराचार का नतीजा होते हैं।

 3- क़ुरआने करीम की वह आयात जो स्पष्ट रूप से सदाचार को धारण करने और बुराईयों से बचने का निर्देश देती हैं वह इंसान के सदाचार मे परिवर्तन के सम्भव होने के विचार को दृढता प्रदान करती हैं। जैसे सूरए शम्स की आयत न.9 और 10 में कहा गया है कि “क़द अफ़लह मन ज़क्काहा व क़द ख़ाबा मन दस्साहा” जिस ने अपनी आत्मा को पवित्र कर लिया वह सफ़ल हो गया और जिसने अपनी आत्मा को बुराईयों मे लीन रखा वह अभागा रहा। इस आयत में एक विशेष शब्द “ दस्साहा” का प्रयोग हुआ है और इस शब्द का अर्थ है किसी बुरी चीज़ को दूसरी बुरी चीज़ से मिला देना। इस से यह सिद्ध होता है कि पवित्रता इंसान की प्रकृति मे है और बुराईयाँ इस को बाहर से प्रभावित करती हैं अतः दोनों मे परिवर्तन सम्भव है। अल्लाह ने सूरए फ़ुस्सेलत की आयत न.34 मे कहा है कि “तुम बुराई का जवाब अच्छे तरीक़े से दो” इस तरह इस आयत से यह ज्ञात होता है कि मुहब्बत और अच्छे व्यवहार के द्वारा भयंकर शत्रुता को भी मित्रता में बदला जा सकता है। और यह उसी स्थिति में सम्भव है जब अख़लाक़ मे परिवर्तन सम्भव हो।

 

 

 

एतिकाफ़ यह एक क़ुरआनी शब्द है और अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को हुक़्म दिया था कि वे उनके घर को तवाफ़ करने वालों और एतिकाफ़ करने वालों के लिए पाक व पाकीजा बनाएं।

ख़ुदा का फरमान हैं,और हमने इब्राहीम और इस्माईल से अहद लिया कि हमारे घर को तवाफ़ और एतिकाफ़ करनेवालों और रुकू व सज्दा करनेवालों के लिए पाक और पाकीज़ा बनाए रखो।(सूरह बक़रह, आयत 125)

एतिकाफ़ यानी ख़ुदा के हो जाना

मस्जिद ए जामिया में तीन दिन इबादत, मुनाजात और दुआ के लिए रोज़ा रखकर सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह के लिए ठहरना एतिकाफ़ कहलाता है।

मस्जिद जामिया किसे कहते हैं?

वह मस्जिद जो किसी ख़ास मोहल्ले, इलाक़े या गिरोह से तअल्लुक़ न रखती हो और जहाँ मुख़्तलिफ़ व्यक्तियों की आमद व रफ़्त हो और आम तौर पर लोगों का वहाँ इज्तिमा होता हो तो वह मस्जिद जामिया है और ऐसी किसी भी मस्जिद में एतिकाफ़ हो सकता है, बाक़ी मस्जिदों में एतिकाफ़ सहीह नहीं है।

मकामाते एतिकाफ़:

पांच जगहों पर एतिकाफ़ सहीह है

  1. मस्जिदुल हराम, मक्का में
  2. मस्जिदुल नबवी, मदीना में
  3. मस्जिदुल कूफ़ा, कूफ़ा में
  4. मस्जिदुल बसरा, इराक़ में
  5. मस्जिद जामिया (जिसकी तारीफ़ ऊपर बयान हो चुकी है)

एतिकाफ़ एक बड़ी इबादत है जिस से रूह को ताज़गी, दिल को नूरानियत और ख़ुदा की ख़िदमत में हाज़िरी का ऐसा मौक़ा नसीब होता है जो कहीं मुयस्सर नहीं होता।

एतिकाफ़ का सवाब:

अहादीस और रिवायात में इसका बहुत ज़ियादा सवाब ज़िक्र है जैसे कि रसूले इस्लाम (स) ने फ़रमाया: माहे रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में एतिकाफ़ करने का सवाब दो हज और दो उम्रों के बराबर है। (सफ़ीना अल बिहार)

नबी ए करीम (स) ने फ़रमाया: जो भी अल्लाह के लिए एक दिन एतिकाफ़ करेगा अल्लाह उसके और जहन्नम की आग के बीच तीन ख़ंदकों के बराबर फ़ासला पैदा कर देगा कि एक ख़ंदक की दूरी दूसरे ख़ंदक से पूरब से पश्चिम तक होगी। (कन्ज़ुल उम्माल)

एतिकाफ़ गुनाहों को झाड़ देता है।

रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया: जो ईमान की बुनियाद पर सवाब के लिए एतिकाफ़ करेगा, अल्लाह उसके गुज़िश्ता सभी गुनाहों को माफ़ करेगा। (कन्ज़ुल उम्माल)

एतिकाफ़ का समय

यह एक ऐसी इबादत है जो साल भर में कभी भी की जा सकती है और रमजान महीने में इसका विशेष महत्व है क्योंकि हमारे पैगंबर (स) ने इस महीने में एतिकाफ़ किया था बल्कि एक रिवायत हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बयान फ़रमाई है कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में एतिकाफ़ नहीं छोड़ा यहां तक कि आपकी वफ़ात हो गयी। (सफ़ीनतुल बिहार)

 

एतिकाफ़ की शुरुआत और समाप्ति

 

एतिकाफ़ सुबह की अज़ान से शुरू होता है और तीसरे दिन अज़ाने मग़रिब तक समाप्त होता है। यानी अगर इंसान एतिकाफ़ की नियत से अज़ाने सुबह से दस या पांच मिनट पहले मस्जिद में बैठ जाये और दो रातें वहां गुज़ारे तो तीसरे दिन अज़ाने मग़रिब तक एतिकाफ़ मुकम्मल हो जायेगा।

एतिकाफ़ की अवधि

कम से कम तीन दिन का एतिकाफ़ सहीह है, लेकिन यह तीन दिन से कम नहीं होना चाहिए, अलबत्ता छह दिन या इससे अधिक की सीमा निर्धारित नहीं है। लेहाज़ा अगर कोई पांच दिन मोतकिफ़ रहा है तो उसे छठे दिन भी कामिल करना होगा।

बाहर नहीं निकल सकते

खाना-पीना सभी मस्जिद में ही होगा, बस पेशाब व पाख़ाना या ग़ुस्ल के लिए बाहर निकल सकते हैं और मस्जिद के बाहर ग़ैर ज़रूरी कोई काम नहीं कर सकते। लेहाज़ा ज़रुरत से फ़राग़त के बाद जल्द मस्जिद लौट आयेंगे और मस्जिद में ही पूरा समय गुजारेंगे।

*इन चीज़ों के लिए बाहर निकल सकते हैं*

तशीए जनाज़ा करने, बीमार की अयादत के लिए, अगर बीमार हो गए तो डॉक्टर को दिखाने के लिए, जुमा की नमाज़ के लिए, और क़र्ज़ चुकाने के लिए  मस्जिद से बाहर निकल सकते हैं या अगर किसी मोमिन की हाजत मोतकिफ़ के बाहर निकलने पर मुनहसिर है तो वह मस्जिद से बाहर निकल सकता है लेकिन इस क़दर मस्जिद से बाहर न रहे कि उसे एतिकाफ़ से ख़ारिज कहा जाए।

हराम चीज़ें

  1. ख़ुशबू लगाना या सूँघना
  2. हमबिस्तरी वग़ैरह करना
  3. शहवानी अमल अंजाम देना
  4. बहस और तकरार करना, चाहे दीनी मसला हो या कोई दुनियावी व सियासी मसला हो (लेकिन इल्मी बहस और मुबाहेसा सहीह है)
  5. खरीदना और बेचना, यह सभी हालतें एतिकाफ़ में जाइज़ नहीं हैं।

कुछ लाज़िम उमूर

  1. एतिकाफ़ करने वाला मुसलमान हो, इसलिए ग़ैर मुसलमान मोतकिफ़ नहीं हो सकता।
  2. अक़ल वाला हो, यानी पागल दीवाना ना हो।
  3. क़ुर्बत की नियत रखे दिखाने और सुनाने के लिए एतिकाफ़ ना करे।
  4. रोज़े अव्वल से तीन दिन की नियत रखता हो।
  5. रोज़ादार हो (चाहे वाजिब हो, मुस्तहबी या इजारा का हो), मुमय्यज़ बच्चा भी एतिकाफ़ कर सकता है, बालिग़ होना ज़रूरी नहीं है।

जंगे बद्र और एतिकाफ़

 

यह एक ऐसी इबादत है कि जंगे बद्र की वजह से रसूल अल्लाह (स) इस साल एतिकाफ़ नहीं कर सके तो आप ने अगले साल रमज़ान मुबारक के आख़िरी दिनों में बीस दिन एतिकाफ़ फ़रमाया, दस दिन क़ज़ा के तौर पर और दस दिन हालिया साल के लिए (उसूले काफ़ी)

दुआ

ख़ुदावंदे आलम हम सब को मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) के सदक़े में माहे मुबारक रमज़ान में एतिकाफ़ जैसी अज़ीम इबादत की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए और हम सभी को अपनी बारगाह में राज़ व नियाज़ और दुआ व मुनाजात की तौफ़ीक़ दे।

आमीन या रब्बल आलमीन

बुधवार, 03 अप्रैल 2024 18:10

ईश्वरीय आतिथ्य- 23

आज पवित्र रमज़ान की वह रात है जिसमें क़ुरआन नाज़िल हुआ जिसे शबे क़द्र कहते हैं।

कितना आनंददायक होते हैं वे क्षण जब लोग शबे क़द्र के मौक़े पर ईश्वरीय संदेश वही के सोते पवित्र क़ुरआन की तिलावत कर प्यासे मन को तृप्त करते हैं।

शबे क़द्र कितनी अहम है इसकी अहमियत को ख़ुद ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन के क़द्र नामक सूरे में बयान किया है। क़द्र नामक सूरे में ईश्वर कह रहा हैः "हमने क़ुरआन को शबे क़द्र में उतारा और तुम क्या जानो कि शबे क़द्र क्या है? शबे क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर रात है। इस रात फ़रिश्ते और रूहुल क़ुद्स अपने पालनहार की ओर से काम अंजाम देने के लिए उतरते हैं। यह रात सुबह तड़के कृपा व बर्कत से भरी हुयी है।"

शबे क़द्र सबसे अहम ईश्वरीय महीने रमज़ान में सबसे महत्वपूर्ण समय है। आज की रात हज़ार महीनों से बेहतर है जो पापों की क्षमा के लिए सबसे अच्छा अवसर है। शबे क़द्र में फ़रिश्तों की फ़ौज ज़मीन पर आती है ताकि रोज़ेदारों की दुआओं को आसमान पर ले जाए, तो हमे चाहिए कि अनन्य ईश्वर के सामने सजदे और प्रायश्चित करें ताकि हमारे भाग्य बदल जाएं।

शबे क़द्र बहुत ही पवित्र व विभूतियों वाली रात है जिसकी महानता का ख़ुद ईश्वर ने गुणगान किया है। पूरे साल में कोई भी रात शबे क़द्र की महानता तक नहीं पहंच सकती। इस रात की इबादत या उपासना हज़ार महीने की इबादत से बेहतर है। इस रात एक साल के लिए इंसान की ज़िन्दगी, रोज़ी और दूसरे मामले निर्धारित होते हैं।

इस्लामी वर्णन में मिलता है कि शबे क़द्र पवित्र रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में कोई रात है क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम इस महीने के आख़िरी दस दिन अपना बिस्तर लपेट देते और ईश्वर की उपासना के लिए पूरे परिवार के सदस्यों को ख़ास तौर पर 23वीं रात को जगाए रखते और फिर सबके साथ ईश्वर की उपासना में लीन हो जाते थे।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "ईश्वर ने इस रात को इसलिए स्पष्ट नहीं किया ताकि लोग इस पर ज़्यादा ध्यान दें। क्योंकि अगर इस रात को स्पष्ट व निर्धारित कर देता तो लोग सिर्फ़ इस रात में उपासना करते और बाक़ी रातों को नज़रअंदाज़ कर देते।"                     

शबे क़द्र ईश्वर से पापों की क्षमा चाहने का बेहतरीन अवसर है और ईश्वर इस रात अपने बंदों पर विशेष रूप से कृपा करता है। वास्तव में ईश्वर ने इस रात को अपने बंदों के गुनाहों को माफ़ करने का बहाना क़रार दिया है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने क़द्र नामक सूरे की व्याख्या में फ़रमायाः "जो व्यक्ति शबे क़द्र में रात भर जागे और मोमिन हो और प्रलय के दिन पर आस्था रखता हो तो उसके सारे पाप माफ़ कर दिए जाएंगे।"

मोमिन शबे क़द्र में पूरी रात नमाज़, दुआ और वंदना के ज़रिए अपनी शुद्ध आस्था को ईश्वर के सामने प्रदर्शित करता है। वह इस बात की कामना करता है कि इस रात उसके कर्मपत्र से पाप मिट जाएं और उसका भाग्य बदल जाए।

शबे क़द्र के विशेष अनुष्ठान हैं जिनमें रात भर जागना, विशेष तरह से नहाना, विशेष दुआएं पढ़ना, ज़ियारते आशूरा पढ़ना और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के हवाले से ईश्वर से दुआ करना शामिल है।

शबे क़द्र में पवित्र क़ुरआन की तिलावत और ख़ास तौर पर दुख़ान, रूम और अंकबूत सूरे की तिलावत की अनुशंसा की गयी है। इस्लामी रिवायत के अनुसार, पूरा क़ुरआन शबे क़द्र में एक साथ पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ। शबे क़द्र में जौशन कबीर और अबू हम्ज़ा सुमाली नामक दुआएं पढ़ने की भी अनुशंसा की गयी है। लेकिन इसके साथ ही एक और कर्म है जो अन्य संस्कारों के बीच कम ध्यान का पात्र बनता है और वह इस रात चिंतन मनन करना है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः "एक घंटे का चिंतन मनन एक साल की उपासना से बेहतर है।" अलबत्ता वह व्यक्ति चिंतन मनन में सफल होता है जिसका मन एकेश्वरवाद के प्रकाश से उज्जवल हो। चिंतन मनन कई तरह के हैं। बेहतरीन चिंतन मनन सृष्टि के बारे में चिंतन मनन है। सृष्टि के बारे में चिंतन मनन का एक सार्थक नतीजा यह होता है कि इंसान ख़ुद को अनन्य ईश्वर की शक्ति के सामने तुच्छ समझता है और फिर ईश्वर के सामने पूरी विनम्रता से सिर झुकाता है। यह विनम्रता इंसान के मन से घमंड को दूर करती है और इंसान में दूसरी विशेषताएं पनपती हैं। अपने बारे में चिंतन मनन बहुत अहम है। इस चिंतन मनन से इंसान अपने भीतर की क्षमताओं, अपनी कमियों और बुराइयों से अवगत होता है। वह अभ्यास से अपने भीतर अच्छाइयां पैदा कर सकता है और धीरे-धीरे बुराइयों को ख़ुद से दूर कर सकता है। इस तरह का चिंतन मनन आत्म निर्माण में बहुत लाभदायक होता है। चिंतन मनन के ज़रिए इंसान ईश्वर की बंदगी के जिस चरण तक पहुंच सकता है, वह किसी और माध्यम से नहीं हासिल कर सकता।          

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैंः "अवसर बादल की तरह गुज़र जाते हैं। तो अवसर की क़द्र करो।" इंसान के जीवन में जो अवसर आते हैं वह सोने की तरह या उससे भी ज़्यादा मूल्यवान होते हैं और इन्हीं मूल्यवान अवसरों में शबे क़द्र भी है।

जिस वक़्त ईश्वर वसंत ऋतु की वर्षा की तरह अपनी अनन्य कृपा की हम पर वर्षा करता है तो हमारे लिए भी ज़रूरी है कि हम शबे क़द्र की महानता को समझें और इसे यूं ही हाथ से न जाने दें। सुस्त लोग इस रात को भी अन्य रातों की तरह खाने पीने और सोने में गुज़ार देते हैं इस तरह वे मोमिन बंदों की तुलना में इस रात से बहुत कम लाभ उठा पाते हैं।

वास्तव में किसी इंसान के हाथ में है कि वह शबे क़द्र में किस हद तक ईश्वर की कृपा का ख़ुद को पात्र बना सकता है। मोमिन बंदा शबे क़द्र की बर्कतों से लाभ उठाने के लिए जितना ख़ुद को तय्यार करता है उतना ही इस रात वह अपने कर्मपत्र को कर्मों से भर लेता है। इसी लिए इस रात दुआ पढ़ने, प्रार्थना करने और चिंतन मनन पर बल दिया गया है क्योंकि इस रात की बर्कतों का फ़ायदा उठाना ख़ुद इंसान की कोशिश पर निर्भर है और हर व्यक्ति अपनी समझ व पहचान भर शबे क़द्र से फ़ायदा उठाता है।

शबे क़द्र में लोग मस्जिदों और धार्मिक स्थलों पर सामूहिक रूप से सुबह तक ईश्वर की महानता का गुणगान करते और उससे पापों की क्षमा मांगते हैं। जगह जगह पर लोगों की वंदना की आवाज़ें सुनायी देती हैं।

रमज़ान मुबारक की तेईसवीं रात को विराट आसमान के बीच मोमिन अपने सिर पर क़ुरआन रखता है और ईश्वर को 14 मासूम हस्तियों के हवाले से क़सम देता है कि वह उस पर अपनी कृपा की वर्षा करे और उसकी आत्मा को पवित्र कर दे।

प्रार्थना करने वाले ईश्वर को उसके नाम और पवित्र क़ुरआन की क़सम देते हैं कि उन्हें नरक की आग से मुक्ति दे। क्या ईश्वर से मेलजोल करने और उसकी ओर पलटने के लिए शबे क़द्र से भी अच्छा कोई अवसर हो सकता है?

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई शबे क़द्र की अहमियत के बारे में फ़रमाते हैंः "वास्तव में शबे क़द्र में मोमिन बंदा नए साल का आरंभ करता है। शबे क़द्र में उसकी तक़दीर पूरे साल के लिए लिखी जाती है। इंसान नए साल, नए चरण और नए जीवन में दाख़िल होता है।"

 

 

बुधवार, 03 अप्रैल 2024 18:09

बंदगी की बहार- 22

रमज़ान के पवित्र महीने के दिन और रातें गुज़रती जा रही हैं और हम इस महीने के अंतिम दशक में हैं।

 

यह वह महीना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि इसका आरंभ दया है, बीच क्षमा है और अंत, प्रार्थनाओं की स्वीकृति है। अगर हम इस महीने को तीन दशकों में बांटें तो इसका पहला दशक ईश्वरीय दया का है जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने प्रख्यात ख़ुतबे में कहा है कि तुम्हें ईश्वरीय आतिथ्य के लिए आमंत्रित किया गया है। तो रमज़ान के महीने का पहला दशक अपने बंदों पर ईश्वर की दया व कृपा का दशक है। रमज़ान के पवित्र महीने का दूसरा दशक, तौबा व प्रायश्चित तथा पापों की क्षमा का दशक है जबकि अंतिम दशक, परिणाम हासिल करने का दशक है। वास्तव में रमज़ान के पहले दशक में मनुष्य ईश्वरीय दया प्राप्त करने के बाद जो एक मूल्यवान अवसर है, दूसरे दशक में तौबा व प्रायश्चित का सामर्थ्य प्राप्त करता है और इस महीने के अंतिम दशक में वह ईश्वर से अपनी प्रार्थनाएं करता है और वह उसकी प्रार्थनाओं की स्वीकृति का समय होता है।

 

रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दशक की रातों के बीच 23वीं रात को विशेष महत्व प्राप्त है। कुछ दिनों या रातों को ईश्वर द्वारा उन पर विशेष ध्यान देने और उनके प्रभावों के चलते अधिक महत्व व प्रतिष्ठा हासिल हो जाती है। इन्हीं में से एक रात, रमज़ान के पवित्र महीने के 23वीं रात है जो क़द्र की तीन रातों में से एक है। इस्लाम में शबे क़द्र या क़द्र की रात को पूरे साल की सबसे अहम व मूल्यवान रात माना जाता है। इस रात की अहमियत इतनी है कि न केवल क़ुरआने मजीद के विभिन्न सूरों में इसकी विशेषताओं का उल्लेख किया गया है बल्कि एक पूरा सूरा भी सूरए क़द्र के नाम से क़ुरआने मजीद में मौजूद है। क़द्र अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है नाप या निर्धारण। हदीसों में है कि इस रात को इस लिए क़द्र की रात कहा जाता है क्योंकि ईश्वर इसी रात में मनुष्य के पूरे साल की घटनाओं का निर्धारण करता है। दूसरे शब्दों में एक शबे क़द्र से दूसरी शबे क़द्र तक लोगों के जीवन, मौत, आजीविका, सौभाग्य, दुर्भाग्य और इसी प्रकार की अन्य बातों का निर्धारण इसी रात में किया जाता है।

यद्यपि हदीसों में शबे क़द्र के रूप में रमज़ान के पवित्र महीने की 19, 21 और 23 वीं रात का उल्लेख किया गया है लेकिन इन्हीं हदीसों में 23वीं रात के शबे क़द्र होने की ओर अधिक इशारे मिलते हैं। इसी तरह कुछ हदीसों से रमज़ान की 23वीं रात के शबे क़द्र होने को अधिक विश्वनसीयता मिलती है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि रमज़ान के महीने में किस रात के शबे क़द्र होने की आशा है? उन्होंने कहा कि 19, 21 और 23 वीं रात। उनसे फिर पूछा गया कि इनमें से किसको अधिक विश्वसनीयता हासिल है? तो उन्होंने कहा कि 23वीं रात को।

इसी तरह इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस रात के बारे में कहा है कि रमज़ान की 23वीं रात में ईश्वरीय तत्वदर्शिता के आधार पर हर काम को अलग अलग कर दिया जाता है और इसमें कठिनाइयों, मौत, आयु, आजीविका और जो कुछ अगले साल इसी रात तक ईश्वर करने वाला होता है, अंकित कर दिया जाता है। तो जो बंद इस रात को सज्दे और रुकू में जाग कर बिताए वह कितना सौभाग्यशाली है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने शबे क़द्र में किए जाने वाले कर्मों के बारे में कहा है कि रमज़ान के पवित्र महीने की 19वीं, 21वीं और 23 वीं रात को नहाओ और इसे जाग कर गुज़ारने की कोशिश करो। इसके बाद उन्होंने कहा कि 23वीं रात वह रात है जब ईश्वर की तत्वदर्शिता से हर चीज़ की युक्ति की जाती है और हर काम को अलग कर दिया जाता है। इसी रात में यह लिखा जाता है कि कौन सा कारवान हज के लिए जाएगा और इस साल से अगले साल तक क्या होगा। बेहतर है कि इस रात में सौ रकअत नमाज़ पढ़ी जाए और हर रकअत में सूरए हम्द के बाद सूरए तौहीद की तिलावत की जाए।

हर शबे क़द्र के अपने विशेष “आमाल” या उस रात किए जाने वाले काम हैं। उनमें से कुछ संयुक्त भी हैं जैसे रात भर जागना या जो बातें ईश्वर से निकट करती हैं उनके बारे में सोच-विचार करना। इन रातों में उचित है कि मनुष्य कुछ समय एकांत में रहे और अपने साल भर के कर्मों व क्रियाकलाप पर एक नज़र डाले। अपने साल भर के व्यवहार और कर्मों की गहराई से समीक्षा करे और देखे कि पिछले साल वह कहां था और अब कहां पहुंच चुका है?

इस प्रकार के विचारों के साथ हम शबे क़द्र से अधिक से अधिक लाभ उठाने का मार्ग समतल कर सकते हैं। हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह अगले साल हमारे लिए सर्वोत्तम बातों का निर्धारण करे। हमें उससे प्रार्थाना करनी चाहिए कि वह उस मार्ग पर चलने में हमारी सहायता करे जो उसे पसंद है। इसी तरह हमें उससे, जिसने इस महीने और विशेष रूप से इस रात में हमारे पापों को क्षमा करने का वादा किया है, अपनी ग़लतियों को क्षमा करने की प्रार्थना करनी चाहिए और यह संकल्प लेना चाहिए कि अब हम पहले से अधिक उसका आज्ञापालन करेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ईश्वर की ओर से दो भारी व मूल्यवान वस्तुओं का परिचय करवाया और उनसे जुड़े रहने को मोक्ष व कल्याण का कारण बताया। उन्होंने कहाः हे लोगो! मैं तुम्हारे बीच दो भारी चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूं, ईश्वर की किताब और मेरे परिजन। शबे क़द्र, जिसमें हमारे साल भर के कामों का निर्धारण होता है, ईश्वर की किताब अर्थात क़ुरआने मजीद और पैग़म्बर के परिजनों से अपने जुड़ाव के प्रदर्शन की रात है। इसी लिए हदीसों में आया है कि शबे क़द्र में भोर के समय क़ुरआन हाथ में लेकर दुआ करनी चाहिए और फिर उसे सिर पर रखना चाहिए अर्थात उसे अपने कामों में सबसे अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए।

इसके बाद प्रार्थना करनी चाहिए और पैग़म्बर व उनके परिजनों का नाम लेना चाहिए। इससे पता चलता है कि ईश्वर की किताब और पैग़म्बर के परिजन हमेशा एक दूसरे के साथ हैं और वे कभी अलग नहीं होंगे। ये दोनों, ईश्वर से हमारे जुड़ाव का माध्यम और साधन हैं। जो बंदा, अपने जीवन के मामलों में उलझा हुआ है और सृष्टि के रचयिता से दूर होकर उसकी ओर से निश्चेत हो गया है, उसे उसके निकट होने और ईश्वरीय दया व कृपा का पात्र बनने के लिए साधान की ज़रूरत है। उपासना सर्वोत्तम साधन है। अगर हम शबे क़द्र में ईश्वर की किताब और पैग़म्बर के परिजनों का सहारा लें और उनके माध्यम से ईश्वर से निकट होने की कोशिश करेंगे तो हमें मुक्ति मिल जाएगी क्योंकि अगर कोई इन रातों में अपने आपको मुक्त नहीं कर पाया तो फिर वह हमेशा दास रहेगा, दिल की शांति व संतोष से दूर अपनी आंतरिक इच्छाओं का दास!

ग़रीबों की मदद करके और पीड़ितों की सहायता करके ईश्वर को याद करना, उन कर्मों में से हैं जिनकी सिफारिश की गयी है। इस प्रकार से हर सचेत और ज्ञानी व्यक्ति और ईश्वर का हर दास, अपनी क्षमता भर और अपनी सभांवना के अनुसार, स्वंय को ईश्वर का कृपापात्र बना सकता है। हमें उम्मीद है कि इस सुनहर अवसर और इस बरकतों वाली रात से हम सब उचित लाभ उठा सकेंगे।

शबे क़द्र, अपने पापों को क्षमा करने के लिए ईश्वर से याचना करने का बहुत अच्छा अवसर है और ईश्वर इस रात, अपने दासों पर विशेष रूप से कृपा दृष्टि डालता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम क़द्र की रात को, अपने अनुयाइयों के लिए ईश्वरीय कृपा पात्र बनने का बहुत अच्छा अवसर बताते हुए कहते हैं कि मेरे अनुयाइयों को रमज़ान के महीने में पांच चीज़ें दी गयी हैं कि जो मुझ से पहले किसी भी ईश्वरीय दूत के अनुयाइयों के नहीं दी गयी। पहला उपहार यह है कि जब भी रमज़ान की पहली रात आती है, ईश्वर अपने दासों पर कृपा दृष्टि डालता है और जिस पर ईश्वर कृपा दृष्टि डालता है वह ईश्वरीय प्रकोप से सुरक्षित हो जाता है। दूसरा उपहार यह है कि रोज़ा रखने वालों के मुंह से रोज़े की वजह से जो दुर्गंध आती है ईश्वर उसे कस्तूरी से अधिक सुगंधित बना देता है। तीसरा उपहार यह है कि रोज़ा रखने वाले के लिए फरिश्ते, दिन रात, उसके पापों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगते हैं। चौथा उपहार यह है कि ईश्वर, स्वर्ग हो आदेश देता है कि रोज़ादार के पापों की क्षमा मांगे और ईश्वर दासों के लिए सजे संवरे। तो दुनिया की कठिनाइयां जल्दी ही उसे निगल लेंगी और वह प्रतिष्ठित, स्वर्ग में चले जाएंगे। पांचवा उपहार यह है कि जब भी रात का अंतिम पहर आता है तो ईश्वर अपने सभी दासों को क्षमा कर देता है। इस अवपर पर एक व्यक्ति ने पूछा कि हे ईश्वरीय दूत! क़द्र की रात में ? इस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि क्या तुम्हें नहीं मालूम कि मज़दूरों का काम जब भी खत्म होता है, उन्हें उनकी मज़दूरी दे दी जाती है।

कभी कभी ऐसा होता है कि एक व्यक्ति अपनी प्रार्थना की स्वीकृति के लिए किसी विशेष समय या स्थान में होता है लेकिन ज़बान से अपनी ज़रूरतों को बयान नहीं कर पाता और उसकी समझ में नहीं आता कि अपने रचयिता से क्या मांगे। इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं। कभी उसकी आत्मा बहुत प्रफुल्लित होती है और वह कुछ मांग नहीं पाता और कभी इतना बड़ा सामर्थ्य मिलने की ख़ुशी में उसकी ज़बान बंद हो जाती है।

ईवर और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बीच इस रात जो बात चीत हुई थी उसके कुछ भाग इस तरह हैं। प्रभुवर! मैं तेरा सामिप्य चाहता हूं। ईश्वर ने कहा कि मेरा सामिप्य उसके लिए है जो शबे क़द्र में जागता रहे। उन्होंने कहा कि हे ईश्वर! मैं तेरी दया चाहता हूं। उसके कहाः मेरी दया उसके लिए है जो शबे क़द्र में ग़रीबों की मदद करे। उन्होंने कहा कि मैं पुले सिरात से गुज़रने का अनुमति पत्र चाहता हूं। ईश्वर ने कहा कि वह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दान दक्षिणा करे। हज़रत मूसा ने कहा कि मैं स्वर्ग के फल चाहता हूं। उसने कहा कि वे उसके लिए हैं जो शबे क़द्र में पवित्रता के साथ मुझे याद करे। उन्होंने कहा कि मैं नरक की आग से मुक्ति चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः वह उसके लिए है जो शबे क़द्र में तौबा करे। मूसा ने कहाः मैं तेरी प्रसन्नता चाहता हूं। ईश्वर ने कहाः वह उसके लिए है जो शबे क़द्र में दो रकअत नमाज़ पढ़े।

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

أللّهُمَّ اغْسِلني فيہ مِنَ الذُّنُوبِ وَطَہرْني فيہ مِنَ العُيُوبِ وَامْتَحِنْ قَلبي فيہ بِتَقْوى القُلُوبِ يامُقيلَ عَثَراتِ المُذنبين..

अल्लाह हुम्मग़-सिलनी फ़ीहि मिनज़ ज़ुनुब, व तह्हिरनी फ़ीहि मिनल उयूब, वम तहिन क़ल्बी फ़ीहि बे तक़्वल क़ुलूब, या मुक़ीला असरातिल मुज़-निबीन... (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! मुझे इस महीने में गुनाहों से पाक कर दे, और मुझे तमाम ऐबों से पाक फ़रमा, और मेरे दिल को दिलों की परहिज़गारी से आज़मा ले, ऐ गुनाहगारों के गुनाहों को नज़र अंदाज़ करने वाले.

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम..

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग पर आक्रामक ज़ायोनी सरकार के मिसाइल हमले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि ज़ायोनीवादियों को पता होना चाहिए कि वे इस तरह से अपने नापाक लक्ष्यों को कभी हासिल नहीं कर पाएंगे।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रईसी ने दमिश्क में ईरान के कांसुलर अनुभाग पर ज़ायोनी सरकार द्वारा किए गए अमानवीय हमले की निंदा करते हुए इस हमले को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन बताया और कहा कि शहीद हुए मुजाहिद पत्रकार युग के हैं। पवित्र रक्षा के, ऐसे बहादुर सेनापति और कमांडर थे जिन्होंने सीरिया में सैन्य सलाहकारों की आड़ में अहल-अल-बेत की पवित्रता और शुद्धता की रक्षा करने और उच्च इस्लामी और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने का बीड़ा उठाया, और वे गर्व से के कारवां में शामिल हो गए।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि प्रतिरोध मोर्चे के हाथों लगातार हार और विफलताओं के बाद, ज़ायोनी शासन इस तरह के अपराध करके और खुद को बचाने की कोशिश में अपनी अपमानजनक हार को छुपाने की कोशिश कर रहा है। अंधाधुंध हत्याएं जारी हैं उसका एजेंडा, लेकिन उसे पता होना चाहिए कि इस तरह के अमानवीय उपायों से वह कभी भी अपनी नापाक महत्वाकांक्षाओं को हासिल नहीं कर पाएगी और उसे यह कायरतापूर्ण हमला जरूर मिलेगा।

 

हरम ए मासूमा स.ल. में प्रवेश होते समय दोनों आई एस आई एस के आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार , दाएश खुरासान के दो सदस्य जो स्पष्ट रूप से हरम ए हज़रत मासूमा स.ल.क़ुम में आतंकवादी हमले को अंजाम देने की योजना बना रहे थें।

उन दोनों आतंकवादियों को हरम ए हज़रत मासूमा स.ल.के सुरक्षा बलों ने हरम में प्रवेश करते समय गिरफ्तार कर लिया हैं।

प्रकाशित तस्वीरें पकड़े गए दो आतंकवादियों की बताई जा रही हैं।

 

सऊदी अरब ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी दूतावास के कांसुलर अनुभाग पर हमले की निंदा की है

सऊदी विदेश मंत्रालय ने मंगलवार सुबह एक बयान में सीरिया में ईरानी दूतावास की इमारत पर ज़ायोनी सरकार के हमले की निंदा करते हुए कहा कि किसी भी बहाने या औचित्य के तहत राजनयिक केंद्रों पर हमले निंदनीय हैं।

सऊदी अरब की सरकारी समाचार एजेंसी WAS की रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने दमिश्क में ईरानी कांसुलर सेक्शन पर हमले की निंदा की है.

सऊदी विदेश मंत्रालय ने घोषणा की कि रियाद किसी भी बहाने और किसी भी औचित्य के तहत राजनयिक केंद्रों पर हमले को खारिज करता है, जो अंतरराष्ट्रीय समझौतों और राजनयिक प्रतिरक्षा के सिद्धांत का उल्लंघन है।