رضوی

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यमन के अंसारुल्लाह संगठन के नेता ने फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन पर बल देते हुए कहा है कि अधिकांश देश और सरकारें मूकदर्शक बनी हुई हैं और उनमें से कुछ दुश्मनों के साथ मिल गयी हैं और गुप्त रूप से ज़ायोनी दुश्मन का समर्थन कर रही हैं।

अब्दुल मलिक बदरुद्दीन हूसी ने कहा कि जायोनी सरकार के हमलों के कारण फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों को बदतरीन कठिनाइयों व समस्याओं का सामना है। उन्होंने कहा कि गज्जा पर इस्राईल के पाश्विक हमलों के पहले दिन ही अमेरिका, ब्रिटेन और अधिकांश बड़े यूरोपीय देशों ने जायोनी दुश्मन का विभिन्न प्रकार से समर्थन किया।

उन्होंने कहा कि जायोनी सरकार के पास बहुत अधिक सैनिक संभावना व हथियार होने के बावजूद अमेरिका और पश्चिम ने विभिन्न प्रकार के हथियारों, पैसों और तकनीक से जायोनी सरकार की मदद की।

उन्होंने कहा कि अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में तीसरी बार प्रस्ताव को वीटो करके पारित होने से रोक दिया और जायोनी दुश्मन की मदद की। उन्होंने कहा कि अमेरिका फिलिस्तीनी लोगों की हत्या व नरसंहार पर आग्रह करता है और वह गज्जा में फिलिस्तीन के लोगों के भूखा रहने का समर्थन कर रहा है।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि इस्राईल के अपराधों में अमेरिका उसका अस्ली भागीदार है और जायोनी सरकार के अपराधों में उसका समर्थन ब्रिटेन से वाशिंग्टन को विरासत में मिली है, वाशिंग्टन कमज़ोरों के समर्थन में सुरक्षा परिषद और राष्ट्रसंघ की भूमिका में रुकावट व बाधा बन रहा है।

यमन के अंसारुल्लाह संगठन के नेता ने कहा कि फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के प्रति मुसलमानों का समर्थन कहां है? फिलिस्तीनी लोग समर्थन व मदद के पात्र हैं और कुछ सरकारों की चुप्पी, अपराधों को अंजाम देने में जायोनी सरकार के दुस्साहस का कारण बनी है। उन्होंने कहा कि गज्जा पट्टी की स्थिति जितनी बदतर हो रही है मुसलमानों की ज़िम्मेदारी उतनी अधिक हो रही है, क्या मुसलमान सहायता करने के लिए गज्जा वासियों के पूर्णरूप से खत्म हो जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं?

इसी प्रकार अब्दुल मलिक अलहूसी ने कहा कि गज्जा में भूख के कारण मरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है और बहुत से मरने वाले बच्चे और बड़ी उम्र के लोग हैं यहां तक कि जानवरों का चारा भी खत्म हो रहा है। गज्जा में लाखों फिलिस्तीनी भूखे हैं और इस्लामी देशों व राष्ट्रों से वे मदद चाह रहे हैं।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि जायोनी सरकार ने कुछ फिलिस्तीनी बंदियों की हत्या कर दी जिनमें महिलायें और बच्चे शामिल हैं। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि पश्चिम, महिलाओं के अधिकारों के समर्थन का दम भरता है जब इस्राईल फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों की हत्या करता है तो महिलाओं के समर्थन का उनका नारा कहां चला जाता है?

इस समय पश्चिम से महिलाओं के समर्थन में कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिम, गैर अखलाक़ी, अनैतिक या समाजों को तबाह करने वाली बातों में महिलाओं के समर्थन में नारा लगाता है।

बहरहाल अमेरिका, पश्चिम और यूरोपीय देश मानवाधिकार, बाल अधिकार और महिला अधिकार के दावे में कितने सच्चे हैं यह सब फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के संबंध में उनके क्रिया कलापों से पूरी तरह पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट हो गया है और उनके चेहरों पर मानवताप्रेम नाम का जो मुखौटा था वह भी पूरी तरह जगज़ाहिर हो गया है।

बेटी अपनी मां को देखती है और उनसे ज़िंदगी के आदाब, शौहर से पेश आने के तरीक़े घर गृहस्थी संभालना और बच्चों की परवरिश का तरीक़ा सीखती है और अपने बाप को देख कर मर्दों के रवैये को पहचानती है, बेटा अपने बाप से ज़िंदगी के उसूलों और तौर तरीक़ों को सीखता है, वह अपने बाप से बीवी और बच्चों से सुलूक करने को सीखता है, और अपनी मां के तौर तरीक़ों से औरत को पहचानता है और अपनी आने वाली ज़िंदगी के लिए उसी को देख कर प्लान बनाता हैं।

बहुत से मां बाप ऐसे होते हैं जो तरबियत के लिए नसीहत और ज़ुबान से यह करो यह न करो कहने को काफ़ी समझते हैं, वह यह सोंचते हैं कि वह बच्चे को ज़ुबानी समझा बुझा रहे होते हैं तो वह तरबियत कर रहे होते हैं और ज़िंदगी में बाक़ी तरीक़ों पर ध्यान नहीं देते हैं,

यही वजह है कि ऐसे मां बाप अपने छोटे और कम उम्र बच्चों को तरबियत के क़ाबिल नहीं समझते और कहते हैं कि अभी बच्चा है कुछ नहीं समझेगा, जब बच्चा समझने के क़ाबिल हो जाता है तब तरबियत की शुरूआत करते हैं,

जब वह अच्छा बुरा समझने लगे तब उसकी तरबियत शुरू करते हैं, जबकि यह सोंच बिल्कुल ग़लत है, बच्चा अपनी पैदाइश के दिन से ही तरबियत के क़ाबिल होता है, वह पल पल तरबियत पाता है और एक विशेष मिज़ाज में ढ़लता चला जाता है चाहे मां बाप का ध्यान उस तरफ़ हो या न हो,

बच्चा तरबियत पाने के लिए इस बात का इंतेज़ार नहीं करता कि मां बाप उसे किसी काम का हुक्म दें या किसी चीज़ से रोकें, बच्चे का सेंसटिव और हस्सास दिमाग़ पहले ही दिन से एक कैमरे की तरह सारी चीज़ों की फ़िल्म बनाने लगते हैं और उसी के मुताबिक़ उसकी परवरिश होती है और वह तरबियत पाता है।

5 या 6 साल का बच्चा परवरिश पा चुका होता है और जो कुछ उसे बनना होता है बन चुका होता है, अच्छाई या बुराई का आदी बन चुका होता है इसलिए बाद की तरबियत बहुत मुश्किल होती है और उसका असर भी कम होता है,

बच्चा तो अपने मां बाप, अपने आस पास के लोग, उनके कामों उनकी बातचीत उनके रवैये उनके अख़लाक़ और अपने आस पास के माहौल का निरीक्षण (observe) करता है और उसकी तक़लीद करता है, वह मां बाप को सम्मान की निगाह से देखता है और उनके ज़िंदगी के तौर तरीक़े और कामों को अच्छाई और बुराई का मेयार क़रार देता है

और फिर उसी के मुताबिक़ अमल अंजाम देता है, बच्चे का वुजूद तो किसी सांचे में नहीं ढ़ला होता वह मां बाप को एक आइडियल समझ कर उनके मुताबिक़ अपने आप को ढ़ालता है, वह किरदार को देखता है बातों और नसीहतों पर ध्यान नहीं देता, अगर उसका किरदार उसका रवैया उसकी बातों के मुताबिक़ न हो तो वह किरदार को अपनाता है।

बेटी अपनी मां को देखती है और उनसे ज़िंदगी के आदाब, शौहर से पेश आने के तरीक़े, घर गृहस्थी संभालना और बच्चों की परवरिश का तरीक़ा सीखती है और अपने बाप को देख कर मर्दों के रवैये को पहचानती है, बेटा अपने बाप से ज़िंदगी के उसूलों और तौर तरीक़ों को सीखता है, वह अपने बाप से बीवी और बच्चों से सुलूक करने को सीखता है, और अपनी मां के तौर तरीक़ों से औरत को पहचानता है, और अपनी आने वाली ज़िंदगी के लिए उसी को देख कर प्लान बनाता है।

इसलिए ज़िम्मेदार और जानकार लोगों के लिए ज़रूरी है कि शुरू में अपने अंदर सुधार पैदा करें, अगर उनके आमाल, किरदार और अख़लाक़ में कमियां हैं तो उसको सुधारें, अच्छे सिफ़ात और नेक आदतें इख़्तेयार करें और किरदार को सजाएं, संक्षेप में बस इतना समझ लें कि अपने आप को एक अच्छा और मुकम्मल इंसान बनाएं उसके बाद बच्चों की पैदाइश और उनकी तरबियत की राह में क़दम आगे बढ़ाएं, इसलिए मां बाप को पहले यह सोचना चाहिए कि वह किस तरह का बच्चा समाज के हवाले करना चाहते हैं, अगर उन्हें यह पसंद है कि उनका बच्चा नेक अख़लाक़ वाला, इंसानियत से प्रेम करने वाला, दीनदार, शरीफ़, बहादुर, ज़िम्मेदार, मेहेरबान हो तो ख़ुद उन्हें भी ऐसा ही होना चाहिए ताकि वह बच्चे के लिए आइडियल क़रार पाएं, जिस मां की तमन्ना हो कि उसकी बेटी ज़िम्मेदार, मेहेरबान, समझदार, शौहर से वफ़ादारी करने वाली, तहज़ीब वाली, हर तरह के हालात में गुज़र बसर करने वाली, और मुनज़्ज़म हो तो उसे पहले ख़ुद इन सिफ़ात को अपने अंदर लाना होगा, अगर मां बुरे अख़लाक़, बे अदब, सुस्त, ग़ैर मुनज़्ज़म, दूसरों से ज़्यादा तवक़्क़ो रखने वाली, बहाना बनाने वाली तो वह केवल नसीहत करने से अच्छी बेटी तरबियत नहीं कर सकती।

डॉ. जलाली लिखते हैं कि बच्चों को भावनाओं और जज़्बात के हिसाब से वही लोग तरबियत कर सकते हैं जिन्होंने अपने बचपन और नौजवानी और जवानी में सही तरबियत पाई हो, जो मां बाप आपस में नाराज़ रहते हों और छोटी छोटी बातों पर झगड़ा करते हों या जिन लोगों तरबियत को शरई ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि एक फ़ॉरमेल्टी समझ के अंजाम देते हों और बच्चों को नफ़रत की निगाह से देखते हों, या जो लोग तरबियत करने का हौसला न रखते हों, या जिनको ख़ुद पर अपने बच्चों की सही तरबियत करने का भरोसा ही न हो तो ऐसे वालेदैन अपने बच्चों की भावनाओं, जज़्बात और एहसास को सही रास्ते पर नहीं लगा सकते हैं।

इसके बाद डॉ. जलाली लिखते हैं कि बच्चे की तरबियत जिस किसी के भी ज़िम्मे हो उसे चाहिए कि कभी कभी अपने किरदार और अपने सिफ़ात पर भी निगाह डाले और अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में सोचे और कमियों को दूर करे।

इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि जो शख़्स किसी का लीडर और पेशवा बनना चाहता है उसे चाहिए कि पहले वह अपने अंदर सुधार लाए फिर दूसरों को सुधारे, और दूसरों को ज़ुबान से अदब और अख़लाक़ सिखाने से पहले अपने किरदार से अदब सिखाए, और जो इंसान ख़ुद को तालीम और अदब सिखाता है वह उस इंसान से ज़्यादा इज़्ज़त और सम्मान का हक़दार है जो दूसरों को अदब सिखाता है। (नहजुल बलाग़ा, कलेमाते क़ेसार, 73)

एक दूसरे मौक़े पर इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि तुम अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करो ताकि तुम्हारे बच्चे तुम्हारा सम्मान करें। (ग़ोररुल हेकम, पेज 78)

पैग़म्बर स.अ. अबूज़र से फ़रमाते हैं, जब कोई शख़्स ख़ुद नेक होता है तो अल्लाह उसके नेक हो जाने से उसकी औलाद और उसकी औलाद की औलाद को भी नेक बना देता है। (मकारिमुल अख़लाक़, पेज 546)

इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि, अगर दूसरों को सुधारना और सही तरबियत करना चाहते हो तो इस सिलसिले की शुरुआत अपनी ज़ात में सुधार पैदा कर के करो, और अगर दूसरों को सुधारना चाहा और अपने को और अपने आप को बुरा ही रहने दिया तो यह सबसे बड़ा ऐब और सबसे बड़ी ग़लती होगी। (ग़ोररुल हेकम, पेज 278)

इसी तरह इमाम अली अ.स. की एक और हदीस इस विषय पर इस तरह रौशनी डालती है कि जिस नसीहत के लिए ज़ुबान ख़ामोश हो और किरदार बोल रहा हो तो उसे कोई कान बाहर नहीं निकाल सकता और इसके बराबर किसी नसीहत का कोई फ़ायदा नहीं हो सकता। (ग़ोररुल हेकम, पेज 232)

क़ुरआन की तिलावत की फ़ज़ीलत और उसका सवाब

 

क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से अपने बंदों के लिए एक अहद और मीसाक़ है मुसलमान को चाहिए कि वह अपना अहद नामा ध्यान से पढ़े और रोज़ाना पचास आयतों की तिलावत करे।उसके बाद आपने फ़रमाया क़ुरआन की तिलावत ज़रूर किया करो इसलिए कि क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़ जन्नत के दर्जे होंगे जब क़यामत का दिन होगा तो क़ुरआन पढ़ने वाले से कहा जाएगा क़ुरआन पढ़ते जाओ और अपने दरजात बुलंद करते जाओ फिर वह जैसे जैसे आयतों की तिलावत करेगा उसके दरजात बुलंद होते चले जाएंगे।

,क़ुरआन वह आसमानी क़ानून और इलाही नामूस है जो लोगों की दुनिया और आख़ेरत की ज़मानत देता है, क़ुरआन की हर आयत हिदायत का स्रोत, रहमत और रहनुमाई की खान है।

जो भी हमेशा बाक़ी रहने वाली सआदत और दीन व दुनिया की कामयाबी का उम्मीदवार है उसे दिन रात क़ुरआन से अहद और पैमान बांधना चाहिए, उसकी आयतों को अपने दिमाग़ में जगह दे, और उन्हें अपनी फ़िक्र और आदत में शामिल करे ताकि हमेशा की कामयाबी और कभी ख़त्म न होने वाले व्यापार की तरफ़ क़दम बढ़ा सके।

क़ुरआन की फ़ज़ीलत में मासूमीन अ.स. और उनके अजदाद से बहुत सी हदीसें नक़्ल हुई हैं, जैसाकि इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया: जो शख़्स रात में दस आयतों की तिलावत करे उसका नाम ग़ाफ़ेलीन (जो अल्लाह की याद से दूर रहते हैं) में नहीं लिखा जाएगा, और जो शख़्स पचास आयतों की तिलावत करे उसका नाम ज़ाकिरीन (जो अल्लाह को याद करते हैं) में लिखा जाएगा, और जो शख़्स सौ आयतों की तिलावत करे

क़ानेतीन (इबादत गुज़ारों) में लिखा जाएगा और जो शख़्स दो सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम ख़ाशेईन (जो अल्लाह के सामने विनम्र हैं) में लिखा जाएगा और जो शख़्स तीन सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम सआदत मंदों में लिखा जाएगा,

जो शख़्स पांच सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम इबादत और अल्लाह की परस्तिश की कोशिश करने वालों में लिखा जाएगा और जो शख़्स हज़ार आयतों की तिलावत करे वह ऐसा है जैसे उसने अल्लाह की राह में बहुत ज़्यादा सोना दिया हो।इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. फ़रमाते हैं: क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से अपने बंदों के लिए एक अहद और मीसाक़ है, मुसलमान को चाहिए कि वह अपना अहद नामा ध्यान से पढ़े और रोज़ाना पचास आयतों की तिलावत करे।

उसके बाद आपने फ़रमाया: क़ुरआन की तिलावत ज़रूर किया करो (इसलिए कि) क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़ जन्नत के दर्जे होंगे, जब क़यामत का दिन होगा तो क़ुरआन पढ़ने वाले से कहा जाएगा क़ुरआन पढ़ते जाओ और अपने दरजात बुलंद करते जाओ, फिर वह जैसे जैसे आयतों की तिलावत करेगा उसके दरजात बुलंद होते चले जाएंगे।

हदीस की किताबों में उलमा ने इस मज़मून की बहुत सी रिवायतों को एक जगह जमा कर दिया ताकि जिन्हें शौक़ है वह इन्हें पढ़ सकें।

इन्हीं रिवायतों में क़ुरआन में देख कर तिलावत करना ज़ुबानी तिलावत से कहीं बेहतर है जैसाकि हदीस में इमाम सादिक़ अ.स. ने फ़रमाया: जब इसहाक़ इब्ने अम्मार ने पूछा कि मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो मैंने क़ुरआन हिफ़्ज़ कर लिया है और ज़ुबानी ही उसकी तिलावत करता हूं, मौला आप बताइए क्या इसी तरह बेहतर है या फिर देख कर तिलावत करूं?

आपने फ़रमाया: क़ुरआन देख कर तिलावत किया करो यह बेहतर तरीक़ा है, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि क़ुरआन में देखना भी इबादत है, जो शख़्स क़ुरआन देख कर तिलावत करे उसकी आंखों की रौशनी में इज़ाफ़ा होता है और उसके वालेदैन के अज़ाब में कमी कर दी जाती है।

इसी तरह जिन घरों में क़ुरआन की तिलावत होती है उसके असर का भी ज़िक्र रिवायतों में मौजूद हैं:

वह घर जिसमें क़ुरआन की तिलावत की जाती हो और अल्लाह का ज़िक्र किया जाता हो उसकी बरकतों में इज़ाफ़ा होता है उसमें फ़रिश्तों का नुज़ूल होता है, शैतान उस घर को छोड़ देते हैं,

और यह घर आसमान वालों को रौशन देते हैं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह आसमान के सितारे ज़मीन वालों को रौशनी देते हैं, और वह घर जिसमें क़ुरआन की तिलावत नहीं होती और अल्लाह का ज़िक्र नहीं होता उसमें बरकत कम होती है, फ़रिश्ते ऐसे घरों को छोड़ देते हैं और शैतान बस जाते हैं।

 

पिछले 45 वर्षों में इस्लामी गणतंत्र ईरान की सबसे महत्वपूर्ण सफलताओं और उपलब्धियों में से एक पूरी तरह से सुरक्षित वातावरण में 39 चुनावों का आयोजन रहा है।

 

इस्लामी काउंसिल या संसद के 12वें सत्र और नेतृत्व विशेषज्ञों की सभा के छठे सत्र के चुनाव शुक्रवार पहली मार्च को आयोजित होंगे। चुनाव से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक उन्हें सुरक्षित और तनाव मुक्त वातावरण में आयोजित कराना है।

 

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने शुक्रवार के चुनावों के संबंध में चार रणनीतियां निर्धारित की हैं। जिनमें मज़बूत भागीदारी, वास्तविक प्रतिस्पर्धा, वास्तविक सुरक्षित चुनाव और पूर्ण सुरक्षा शामिल है। इस संबंध में, गृह मंत्रालय के उप सुरक्षा अधिकारी और देश के चुनाव सुरक्षा मुख्यालय के प्रमुख सैय्यद मजीद मीर अहमदी ने घोषणा की है कि ढाई लाख से अधिक सुरक्षा बल, चुनाव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति को संभालने के लिए तैनात किए जा रहे हैं।

 

ईरान में चुनावों की सुरक्षा पर प्रकाश डालने का एक कारण ईरान की जनसांख्यिकीय संरचना है। ईरान जातीय और जनजातीय विविधता वाला देश है और चुनावों और लोकप्रिय भागीदारी में जातीय और जनजातीय पहलू प्रमुख हैं।

 

हालांकि, ईरान के पिछले 39 चुनावों में थोड़ी सी भी असुरक्षा दिखाई नहीं दी है, इसीलिए सुरक्षित माहौल में चुनाव कराना इस्लामी गणतंत्र ईरान की ठोस उपलब्धियों में से एक है।

 

इस संबंध में, एक चुनाव आयोजन के बाद, इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा था कि हमें वास्तव में ईश्वर का अदा करना चाहिए, क्योंकि सुरक्षा और शांति के माहौल में चुनावों का आयोजन एक बड़ी उपलब्धि है। यहां तक ​​कि जहां परस्पर विरोधी उद्देश्य हों; राजनीतिक मतभेद हों, दो शहरों के बीच अंतर हो, उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा हो; वहां कहीं कोई कटु घटना नहीं घटी है।

 

इस्लामी क्रांति के नेता हमेशा पूर्ण सुरक्षा में चुनाव कराने पर ज़ोर देते हैं, इसका एक महत्वपूर्ण कारण चुनाव के लिए उनके इच्छित कार्य से संबंधित है। उनका मानना ​​है कि ईरान में चुनाव से एकता आनी चाहिए। इस संबंध में, उन्होंने कहा था कि राजनीतिक मतभेदों से दुश्मनों के ख़िलाफ़ ईरानी राष्ट्र की राष्ट्रीय एकता पर असर नहीं पड़ना चाहिए।

 

यह महत्वपूर्ण और ठोस उपलब्धि ऐसी स्थिति में हासिल की गई है, जहां इस्लामी गणतंत्र ईरान के दुश्मनों ने एक तरफ़ चुनाव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने और उस पर सवाल उठाने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी है और भ्रम और असुरक्षा का माहौल पैदा करने का प्रयास किया है।

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान की ख़ुफ़िया एजेंसियों के आंकड़ों के अनुसार, पिछले सितंबर से दुश्मन अराजकता और असुरक्षा पैदा करके ऐसे हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे थे, जिससे पहली मार्च को चुनावों के आयोजन में बाधा उत्पन्न हो सके।

 

 

 

 

 

 

 

कुछ पश्चिमी सरकारें अब भी मानवाधिकारों को एक हथकण्डे के रूप में प्रयोग कर रही हैं।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जर्मनी द्वारा इस्लामी गणतंत्र ईरान पर आरोप लगाने को इस देश की ओर से ज़ायोनियों के समर्थन पर पर्दा डालने के अर्थ में बताया है।

नासरि कनआनी ने कहा कि यह कैसी विडंबना है कि कुछ पश्चिमी सरकारें, मानवाधिकारों का हनन करने वालों का खुला समर्थन करने के बावजूद, मानवाधिकारों के रक्षक बनने का दावा करती हैं।

उनका कहना था कि जर्मनी की सरकार, मानवाधिकारों के समर्थन का दावा करने के बावजूद अवैध ज़ायोनी शासन का समर्थन करती है और उसके द्वारा फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध की जा रहीं मानवता विरोधी कार्यवाहियों को अनदेखा कर रही है।  वह मानवाधिकारों को हथकण्डे के रूप में प्रयोग करती है।  वह मानवाधिकारों को दूसरे देशों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रयोग करती है।

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि मैं जर्मनी को सलाह देता हूं कि वह मानवाधिकारों को राजनीतिक खिलवाड़ न बनाएं।  उन्होंने कहा कि पूरे ग़ज़्ज़ा की अत्यधिक चिंताजनक स्थति, चीख़-चीख़ कर मानवाधिकारों के दावेदारों की वास्तविकता को बता रही है।

अगर वास्तव में जर्मनी और उसके घटक, मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरते हैं तो उनको चाहिए कि वे ग़ज़़्ज़ा में ज़ायोनियों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों की जांच करने के लिए एक विशेष तथ्यपरक समिति का गठन करे।

 

फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन में एक बार फिर दुनिया के अलग-अलग देशों में प्रदर्शन हुए हैं।

फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन में प्रदर्शन जारी रखते हुए, स्पेन, ब्रिटेन, स्वीडन, हॉलैंड और अमेरिकी शहरों सांटा मोनिका और हंट्सविले में भी जनता ज़ायोनियों के नरसंहार और क्रूरता का विरोध करते हुए सड़कों पर उतरे।

फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों ने ज़ायोनी विरोधी नारे लगाए और ग़ज़्ज़ा पर हमलों को तत्काल रोकने और स्थायी युद्धविराम के साथ-साथ ज़ायोनी शासन को अमेरिकी सहायता को बंद करने की भी मांग की।

इन अपराधों पर दुनियाभर में कड़ी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जा रही हैं और दुनिया के सभी देशों के लोगों, विभिन्न सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने की अपील की है।

भारत; दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के नए शाही इमाम की ताजपोशी

 

भारत की राजधानी दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के नए शाही इमाम की ताजपोशी हो गई है, नए शाही इमाम सैयद शाबान बुखारी हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सय्यद शाबान बुखारी को दिल्ली की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के नए शाही इमाम के रूप मे ताज पहनाया गया है। यह प्रक्रिया शबे बरात के मौके पर की गई। इस अवसर पर जामिया मस्जिद के सहन मे आयोजित एक प्रतिष्ठित बैठक में देश-विदेश की प्रमुख हस्तियों ने हिस्सा लिया।

शाही इमाम का पद संभालने से पहले सय्यद शाबान बुखारी नायब शाही इमाम के कर्तव्यों का पदभार संभाल रहे थे।  उनके पिता सययद अहमद बुखारी ने पहले ही उनके शाही इमाम पद पर आसीन होने की घोषणा कर दी थी और इसके लिए 25 फरवरी (शब-ए-बारात) का दिन तय किया गया था। ताजपोशी के लिए आयोजित सभा मे सय्यद अहमद बुखारी ने अपने बेटे को शाही इमाम का पद सौंपते हुए और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते हुए कहा, ''जामिया मस्जिद दिल्ली की यह परंपरा रही है कि इमाम अपने जीवनकाल मे अपने बेटे को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते है। "

सय्यद अहमद बुखारी ने कहा कि "मै इमामत कार्यालय की लगभग 400 साल पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए विद्वानों, मुफ्तियों, मशाइखों, मुसलमानों और शहर के बुजुर्गों की उपस्थिति में अपने बेटे सययद शाबान बुखारी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर रहा हूं।" अल्लाह सययद शाबान बुखारी को परिवार की परंपरा का संरक्षक बनायें।”

कहा जाता है कि इस मस्जिद के निर्माण के बाद बादशाह शाहजहाँ ने बुखारा (अब उज्बेकिस्तान) के राजा से इमामत के लिए एक धार्मिक विद्वान भेजने को कहा था। बुखारा के राजा ने सय्यद अब्दुल गफूर शाह बुखारी को दिल्ली भेजा, 24 मई 1656 को उन्हें जामा मस्जिद का इमाम नियुक्त किया गया। इसके बाद शाहजहाँ ने उन्हें शाही इमाम की उपाधि दी, जो आज भी प्रचलित है।

1- अल्लाह की याद

क़ुरआन पढ़ने वाला अल्लाह की याद से तिलावत शुरू करता है अर्थात कहता है कि बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम और यही ज़िक्र उसको अल्लाह की तरफ़ आकर्षित करता है।यूँ तो क़ुरआन पढ़ने वाला कभी भी अल्लाह की ओर से अचेत नही रहता । और यह बात उसकी आत्मा के विकास में सहायक बनती है।

2- हक़ के दरवाज़ों का खुलना

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा हैं कि बिस्मिल्लाह पढ़ कर हक़ के दरवाज़ो को खोलो । बस क़ुरआन पढ़ने के लाभों और प्रभावों में से एक यह भी है कि जब क़ुरआन पढ़ने वाला क़ुरआन पढ़ने के लिए बिस्मिल्लाह कहता है तो उसके लिए हक़ के दरवाज़े खुल जाते हैं।

3- गुनाह के दरवाज़ों का बन्द होना

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि आउज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिर्रजीम पढ़कर गुनाहों के दरवाज़ों को बंद करो। इस तरह जब इंसान क़ुरआन पढ़ने से पहले आउज़ुबिल्लाह पढ़ता है तो इससे गुनाहों के दरवाज़े बन्द हो जाते हैं।

 

4- क़ुरआन पढ़ने से पहले और बाद में दुआ माँगने का अवसर

क़ुरआन पढ़ने के नियमों में से एक यह है कि क़ुरआन पढ़ने से पहले और बाद में दुआ करनी चाहिए। दुआ के द्वारा इंसान अल्लाह से वार्तालाप करता है। और उससे अपनी आवश्यक्ता की पूर्ती हेतू दुआ माँगता है। और इसका परिणाम यह होता है कि अल्लाह उसकी बात को सुनता है और उसकी आवश्यक्ताओं की पूर्ती करता है। और यह बात इंसान के भौतिक व आध्यात्मिक विकास मे सहायक बनती है।

5- क़ुरआन पढ़ने वाले का ईनाम

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के इस कथन का वर्णन करते हैं कि जो इंसान क़ुरआन को खोल कर इसकी तिलावत करे और इसको खत्म करे तो अल्लाह की बारगाह में इसकी एक दुआ क़बूल होती है। जी हाँ दुआ का क़बूल होना ही क़ुरआन पढ़ने वाले का इनआम है।

6- क़ुरआन ईमान की दृढता का कारण बनता है

क़ुरआने करीम के सूरए तौबा की आयत न. 124 में वर्णन हुआ है कि जब कोई सूरह नाज़िल होता है तो इन में से कुछ लोग यह व्यंग करते हैं कि तुम में से किस के ईमान में वृद्धि हुई है। तो याद रखो कि जो ईमान लाने वाले हैं उनही के ईमान में वृद्धि होती है और वही खुश भी होते हैं।

 

सूरए इनफ़ाल की दूसरी आयत में वर्णन होता है कि अगर उनके सामने क़ुरआन की आयतों की तिलावत की जाये तो उनके ईमान में वृद्धि हो जाये।

7- क़ुरआने करीम शिफ़ा( स्वास्थ्य) प्रदान करता है

क़रआने करीम परोक्ष रोगो के लिए दवा है। इंसान के आत्मीय रोगों का उपचार क़ुरआन के द्वारा ही होता है।जैसे कि क़ुरआने करीम के सूरए फ़ुस्सेलत की आयत न. 44 के अन्तर्गत वर्णन हुआ है कि ऐ रसूल कह दीजिये कि यह किताब ईमान वालों के लिए शिफ़ा और हिदायत है। इससे यह अर्थ निकलता है कि क़ुरआन पढ़ने वाले को सबसे पहले क़ुरआन की शिफ़ा प्राप्त होती है।

8- अल्लाह की रहमत का उतरना

क़ुरआन पढ़ने वाले पर अल्लाह की रहमत की बारिश होती है।

9- अल्लाह की तरफ़ से हिदायत(मार्ग दर्शन)

क़ुरआने करीम हिदायत की किताब है। अल्लाह की तरफ़ से उन्ही लोगों को हिदायत प्राप्त होती है जो मुत्तक़ी हैं और क़ुरआन की ज़्यादा तिलावत करते हैं।

10- बाह्य और आन्तरिक पवित्रता

इंसान क़ुरआन पढ़ते समय उसके नियमों का पालन करता है। यह कार्य उसकी आत्मा के उत्थान और पवित्रता मे सहायक बनता है। जब क़ुरआन पढ़ने वाला क़ुरान पढ़ने से पहले वज़ू या ग़ुस्ल करता है तो इस कार्य से उसके अन्दर एक विशेष प्रकार का तेज पैदा होता है। जो इसकी आन्तरिक पवित्रता मे सहायक बनता है।

11- सेहत

इंसान क़ुरआन पढ़ने से पहले बहुत सी तैय्यारियाँ करता है जैसे मिस्वाक करना,वज़ू या ग़ुस्ल करना पाक साफ़ कपड़े पहनना आदि। और यह सब कार्य वह हैं जिनसे इंसान की सेहत की रक्षा होती है।

12- अहले क़ुरआन होना

क़ुरआने करीम को पढ़ने और इससे लगाव होने की वजह से इंसान पर इसके बहुत से प्रभाव पड़ते है। जिसके फल स्वरूप वह क़ुरआन का अनुसरण करने वाला व्यक्ति बन जाता है। अर्थात उसके अन्दर क़ुरआनी अखलाक़, आस्था और पवित्रता पैदा हो जाती है।दूसरे शब्दों मे कहा जा सकता है कि वह क़ुरआन के रंग रूप में ढल जाता है।

13- विचार शक्ति का विकास

जब इंसान क़ुरआन पढ़ता है और उसके भाव में चिंतन करता है तो इस चिंतन फल स्वरूप उसकी विचार शक्ति की क्षमता बढती है। जिसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता है। विशेष रूप से उसके ज्ञान के क्षेत्र को प्रभावित करता है।

14- आखोँ की इबादत

हज़रत रसूले अकरम स. ने फ़रमाया कि क़ुरआन के शब्दों की तरफ़ देखना भी इबादत है।यह इबादत केवल उन लोगो के भाग्य मे आती है जो क़ुरआन को पढ़ते हैं।

15-संतान का प्रशिक्षण

जब माता पिता हर रोज़ पाबन्दी के साथ घर पर क़ुरआन पढ़ेंते हैं तो उनकी संतान पर इसके बहुत अच्छे प्रभाव पड़ते हैं। इस प्रकार इस कार्य से अप्रत्यक्ष रूप से उनका प्रशिक्षण होता है। जिसके फल स्वरूप वह धीरे धीरे क़ुरआन के भाव से परिचित हो जाते हैं।

16- गुनाहों का कफ़्फ़ारा

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन पढ़ा करो क्यों कि यह गुनाहों का कफ़्फ़ारा है।

17- दोज़ख की ढाल

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन का पढ़ना दोज़ख (नरक) के लिए ढाल है और इसके द्वारा इंसान अल्लाह के अज़ाब से सुरक्षित रहता है। जी हाँ अगर कोई इंसान क़ुरआन को पढ़े और उसकी शिक्षाओं पर क्रियान्वित हो तो उसका रास्ता नरकीय लोगों से अलग हो जाता है।

18- अल्लाह से वार्तालाप

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि अगर तुम में से कोई व्यक्ति यह इच्छा रखता हो कि अल्लाह से बाते करे तो उसे चाहिए कि वह क़ुरआन को पढ़े।

19- क़ुरआन पढ़ने से दिल ज़िन्दा होते हैं

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि क़ुरआन दिलो को ज़िन्दा करता है और बुरे कार्यों से रोकता है।

20- क़ुरआन पढ़ने से दिलों का ज़ंग भी साफ़ हो जाता है।

हज़रत रसूले अकरम स. ने कहा कि इन दिलों पर इस तरह ज़ंग लग गया है जिस तरह लोहे पर लग जाता है। प्रश्न किया गया कि फिर यह कैसे चमकेगें ? रसूल अकरम स. ने उत्तर दिया कि क़ुरआन पढ़ने से।

21- क़ुरआन पढ़ने से इंसान बुरईयों से दूर रहता है।

अगर इंसान क़ुरआन पढ़कर क़ुरआन के आदेशों का पलन करे तो वह वास्तव में बुराईयों से दूर हो जायेगा।

नोट--- यह लेख डा. मुहम्मह अली रिज़ाई की किताब उन्स बा क़ुरआन से लिया गया है। परन्तु अनुवाद की सुविधा के लिए कुछ स्थानों पर कमी ज़्यादती की गई है।(हिन्दी अनुवादक)

 

हज़रत पैग़म्बर स.अ. फ़रमाते हैं कि शाबान मेरा महीना है अगर इस महीने कोई एक रोज़ा भी रखेगा तो जन्नत उस पर वाजिब हो जाएगी, कुछ हदीसों में शाबान को सारे महीनों का सरदाद भी कहा गया है। (वसाएलुश-शिया, शैख़ हुर्रे आमुली, जिल्द 8, पेज 98)

एक रिवायत में इमाम सादिक़ अ.स. से नक़्ल है कि जिस समय माहे शाबान शुरू होता था मेरे जद इमाम सज्जाद अ.स. अपने असहाब और साथियों को जमा करते और फ़रमाते थे कि ऐ मेरे असहाब!

इस महीने की फज़ीलत को जानते हो? यह माहे शाबान है और पैग़म्बर स.अ. फ़रमाते थे कि शाबान मेरा महीना है इसलिए अल्लाह से क़रीब होने और पैग़म्बर स.अ. की मोहब्बत की ख़ातिर इस महीने में रोज़ा रखो, क़सम उस अल्लाह की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है मैंने अपने वालिद इमाम हुसैन अ.स. और उन्होंने अपने वालिद इमाम अली अ.स. से सुना है कि वह फ़रमाते थे कि जो भी अल्लाह से क़रीब होने और पैग़म्बर स.अ. से मोहब्बत की ख़ातिर रोज़ा रखेगा अल्लाह उससे मोहब्बत करेगा और उसको क़यामत के दिन अपने करम से क़रीब कर देगा और जन्नत उस पर वाजिब कर देगा।

सफ़वान से रिवायत नक़्ल हुई है कि इमाम सादिक़ अ.स. मुझ से फ़रमाते थे कि अपने आस पास रहने वाले लोगों को शाबान में रोज़ा रखने के लिए कहो, मैंने कहा आप पर क़ुर्बान हो जाऊं क्या शाबान के रोज़े की कोई फ़ज़ीलत है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया हां जिस समय पैग़म्बर स.अ. शाबान के चांद को देखते थे तो अपना पैग़ाम पूरे मदीने में इस तरह पहुंचवाते थे कि एक शख़्स हर गली मोहल्ले में ऐलान करता था कि ऐ मदीने वालों मैं अल्लाह की तरफ़ से भेजा गया हूं जान लो शाबान मेरा महीना है अल्लाह उस पर रहमत नाज़िल करे जिसने इस महीने रोज़ा रख कर मेरी मदद की। (बिहारुल अनवार, अल्लामा मजलिसी, जिल्द 94, पेज 56)

इमाम सादिक़ अ.स. से रिवायत नक़्ल हुई है इमाम अली अ.स. ने फ़रमाया जब से मदीने की गलियों में मुनादी की आवाज़ सुनी है तब से शाबान के रोज़े क़ज़ा नहीं किए और इंशा अल्लाह आगे चल कर भी अल्लाह की मदद से मैं कभी रमज़ान के रोज़े क़ज़ा नहीं करूंगा। (अल-मुराक़ेबात, पेज 173)

हदीस में मिलता है कि शाबान और रमज़ान के महीने के रोज़े रखना हक़ीक़त में अल्लाह की बारगाह में तौबा करना है। (अल-काफ़ी, शैख़ कुलैनी, जिल्द 4, पेज 93)

माहे शाबान के बहुत से आमाल नक़्ल हुए हैं, लेकिन रिवायतों में जिस अमल पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया गया है वह तौबा और इस्तेग़फ़ार है, इस महीने रोज़ाना 70 बार इस्तेग़फ़ार करना बाक़ी महीनों के 70 हज़ार बार के इस्तेग़फ़ार के बराबर है, इस महीने सदक़ा देने की भी बहुत फ़ज़ीलत बयान हुई है यहां तक कि हदीस में है माहे शाबान में सदक़ा दो चाहे वह सदक़ा आधा खजूर ही क्यों न हो ताकि अल्लाह जहन्नम की आग को तुम्हारे लिए हराम कर दे। (बिहारुल अनवार, जिल्द 94, पेज 72)

माहे शाबान में एक और अहम अमल जैसाकि पहले भी ज़िक्र हुआ है रोज़ा है, इमाम सादिक़ अ.स. से किसी ने माहे रजब के रोज़े के बारे में पूछा तो आपने फ़रमाया शाबान के रोज़े से क्यों ग़ाफ़िल हो? आपसे सवाल किया गया कि माहे शाबान में एक रोज़े का कितना सवाब है? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम एक रोज़े का सवाब जन्नत है। (अल-ख़ेसाल, शैख़ तूसी, जिल्द 2, पेज 605)

फिर सवाल किया कि इस महीने सबसे बेहतर अमल क्या है? आपने फ़रमाया सदक़ा देना और इस्तेग़फ़ार करना, जिसने इस महीने सदक़ा दिया अल्लाह उसकी तरबियत की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेता है। (अल-ख़ेसाल, शैख़ तूसी, जिल्द 2, पेज 605)

माहे शाबान की जुमेरात को रोज़ा रखने का सबसे ज़्यादा सवाब बयान किया गया है, रिवायत में है कि माहे शाबान की हर जुमेरात में आसमानों को सजाया जाता है फिर फ़रिश्ते अल्लाह से कहते हैं कि ख़ुदाया आज के दिन रोज़ा रखने वालों को बख़्श दे और उनकी दुआ क़ुबूल भी होती है। (वसाएलुश-शिया, जिल्द 10, पेज 493)

इसी तरह पैग़म्बर स.अ. की हदीस है कि जिसने माहे शाबान में जुमेरात और सोमवार को रोज़ा रखा अल्लाह उसकी 20 दुनयावी और 20 आख़ेरत की दुआओं को क़ुबूल करता है। (अल-एक़बाल, पेज 685)

इस महीने में हज़रत मोहम्मद स.अ. और उनकी आल अ.स. पर सलवात की बहुत ताकीद की गई है इसी तरह मुस्तहब नमाज़ों पर भी ज़ोर दिया गया है जिसको मफ़ातीहुल जेनान में इस महीने के आमाल में पढ़ा जा सकता है।

संक्षेप में इतना समझ लीजिए कि इस महीने में नमाज़, रोज़ा, ज़कात, अम्र बिल मारूफ़, नहि अन मुन्कर, सदक़ा, ग़रीबों और फ़क़ीरों की मदद, वालेदैन के साथ नेकी, पड़ोसियों का ख़्याल और रिश्तेदारों के साथ अच्छे बर्ताव की बहुत ज़्यादा ताकीद की गई है।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने अमेरिकी वायु सेना के एक सैनिक के आत्मदाह और मौत के लिए बाइडेन प्रशासन को ज़िम्मेदार ठहराया है।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी अपराधों और फ़िलिस्तीनियों के चल रहे नरसंहार के विरोध में एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी द्वारा आत्मदाह की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि अमेरिकी वायु सेना के जवान की आत्मदाह और मौत का ज़िम्मेदार, बाइडेन प्रशासन है।

फ़िलिस्तीन की सामा समाचार एजेंसी के अनुसार, फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने घोषणा की है कि आत्मदाह की यह घटना, जो बुशनल की मृत्यु में समाप्त हुई, नरसंहार में फ़िलिस्तीनी जनता की भागीदारी पर अमेरिकी जनता का रुख नहीं है और यह जनता की बढ़ती नाराज़गी का चिन्ह है। फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने मारे गए अमेरिकी सैनिक बुशनेल के परिवार और दोस्तों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की, उनके आत्मदाह के कार्य को मानवीय मूल्यों की रक्षा और उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों के समर्थन के रूप में बयान किया।