
رضوی
समूचे ईरान में मतदान आरंभ,नेक काम में इस्तेख़ारा करने की ज़रूरत नहीं हैः सर्वोच्च नेता
ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने आज सुबह स्थानीय समय के अनुसार 8 बजे अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आज सुबह हुसैनिये इमाम ख़ुमैनी में पत्रकारों की उपस्थिति में कहा कि मैं सिफारिश करता हूं कि जितनी जल्दी संभव हो लोग उतनी जल्दी अपने मताधिकार का प्रयोग करें।
सर्वोच्च नेता ने बल देकर कहा कि मैं दो सिफारिशें करता हूं मेरी पहली सिफारिश लोगों से यह है कि कुरआन ने हमसे कहा है कि فاستبقوا الخیرات नेक काम में प्रतिस्पर्धा करो और दूसरे से आगे जाने की कोशिश करो, मैंने पिछले चुनाव में भी कहा था और आज भी बल देकर कह रहा हूं कि जल्द से जल्द इस अवसर से लाभ उठायें और जितनी जल्दी हो सके अपने मताधिकार का प्रयोग करें।
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि मेरी दूसरी सिफारिश यह है कि जिस मतदान केन्द्र पर भी मत दें जिस संख्या में उस मतदान केन्द्र पर मत ज़रूरी हैं उस संख्या में मतदान करें उससे कम मत न दें मिसाल के तौर पर तेहरान में सर्वोच्च नेतृत्त का चयन करने वाली परिषद को 16 प्रतिनिधियों को वोट देने की ज़रूरत है तो 16 मत दें उससे कम नहीं।
सर्वोच्च नेता ने कहा कि ईरानी लोगों को जान लेना चाहिये कि आज दुनिया के बहुत से लोगों की नज़रें ईरान और आप पर लगी हैं और वे यह जानना व देखना चाहते हैं कि आप चुनावों में क्या करते हैं और आपके चुनाव का नतीजा क्या होता है। उन्होंने कहा कि हमारे दोस्तों और ईरानी राष्ट्र से प्रेम करने वालों और इसी प्रकार ईरानी राष्ट्र का बुरा चाहने वाले सबकी नज़रें ईरान पर लगी हुईं हैं इस बात पर ध्यान दीजिये। दोस्तों को प्रसन्न व खुशहाल कीजिये और बुरा चाहने वालों को निराश। इसी प्रकार इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने मतदान में भाग लेने में असमंजस का शिकार लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मेरी आखिरी बात यह है कि नेक काम में इस्तेखारा करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
इंसान ज़ाती शराफ़त और करामत का मालिक
अल्लाह ने इंसान को दूसरी बहुत सी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत अता की है लेकिन वह अपनी हक़ीक़त को ख़ुद उसी समय पहचान सकता है जब वह अपने अंदर पाई जाने वाली शराफ़त को समझ ले और अपने आपको पस्ती, ज़िल्लत और नफ़्सानी ख़्वाहिशों से दूर समझे।
इरशाह होता है कि, बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी और हमने उनको ज़गलों और समुद्र पर हाकिम क़रार दिया और हमने उनको अपनी बहुत सारी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत दी। (सूरए बनी इस्राईल, आयत 70)
इंसान का बातिन अच्छे अख़लाक़ का मालिक होता है और वह अपनी उसी बातिन की ताक़त से हर नेक और बद को पहचान लेता है।
अल्लाह का इरशाद है कि, और क़सम है इंसान के नफ़्स की और उसके संयम की कि उसको (अल्लाह ने) अच्छी और बुरी चीज़ों की पहचान दी। (सूरए शम्स, आयत 7 से 9)
इंसान के दिल के सुकून का केवल इलाज अल्लाह की याद और उसका ज़िक्र है, उसकी ख़्वाहिशें बे इंतेहा हैं लेकिन ख़्वाहिशों के पूरा हो जाने के बाद वह उन चीज़ों से दूरी बना लेता है, लेकिन अगर वही ख़्वाहिशें अल्लाह की ज़ात से मिला देने वाली हों तो उसे उस समय तक चैन नहीं मिलता जब तक वह अल्लाह की ज़ात तक न पहुंच जाए।
इरशाह होता है कि, बेशक अल्लाह के ज़िक्र से ही दिलों को चैन मिलता है। (सूरए रअद, आयत 28)
या अल्लाह फ़रमाता है कि, ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुंचने में बहुत तकलीफ़ बर्दाश्त करता है और आख़िरकार तुम्हें उससे मिलना है। (सूरए इंशेक़ाक़, आयत 6)
ज़मीन के सारी नेमतें इंसान के लिए पैदा की गई हैं।
इरशाद होता है कि, वही है जिसने जो कुछ ज़मीन में है तुम्हारे लिए पैदा किया है। (सूरए बक़रह, आयत 29)
या इरशाद होता है कि, और अपनी तरफ़ से तुम्हारे कंट्रोल में दे दिया है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है उसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो फ़िक्र करते हैं। (सूरए जासिया, आयत 13)
अल्लाह ने इंसान को केवल इस लिए पैदा किया है कि वह दुनिया में केवल अपने अल्लाह की इबादत करे और उसके अहकाम की पाबंदी करे, उसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के अम्र की इताअत करना है।
इरशाद होता है कि, और हमने इंसान को नहीं पैदा किया मगर केवल इसलिए कि वह मेरी इबादत करें। (सूरए हश्र, आयत 19)
इंसान अल्लाह की इबादत और उसकी याद के बिना नहीं रह सकता, अगर वह अल्लाह को भूल जाए तो अपने आप को भी भूल जाता है और वह नहीं जानता कि वह कौन है और किस लिए है और क्या करे क्या न करे कहां जाए कहां न जाए उसे कुछ समझ नहीं आता।
इरशाद होता है कि, बेशक तुम उन लोगों में से हो जो अल्लाह को भूल गए, और फिर अल्लाह ने उनके लिए उनकी जानें भुला दीं। (सूरए हश्र, आयत 19)
इंसान जैसे ही दुनिया से जाता है और उसकी रूह के चेहरे से जिस्म का पर्दा जो कि रूह के चेहरे का भी पर्दा है उठ जाता है तो उस समय उस पर ऐसी बहुत सी हक़ीक़तें ज़ाहिर होती हैं जो उसके लिए इस दुनिया में छिपी रहती हैं।
अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने तुझसे पर्दा हटा दिया, तेरी नज़र आज तेज़ है। (सूरए क़ाफ़, आयत 22)
इंसान दुनिया में हमेशा भौतिक (माद्दी) मामलों के हल के लिए ही कोशिशें नहीं करता और उसको केवल भौतिक ज़रूरतें ही हाथ पैर मारने पर मजबूर नहीं करतीं, बल्कि कभी कभी वह किसी बुलंद मक़सद को हासिल करने के लिए भी कोशिशें करता है और मुमकिन है कि उस अमल से उसके दिमाग़ में केवल अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने के और कोई मक़सद न हो।
इरशाद होता है कि, ऐ नफ़्से मुतमइन्ना तू अपने रब की तरफ़ लौट जा, तू उससे राज़ी वह तुझ से राज़ी। (सूरए फ़ज्र, आयत 27-28)
इसी तरह एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, अल्लाह ने ईमान वाले मर्दों और औरतों से बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बहती हैं जिनमें वह हमेशा रहेंगे और आलीशान मकानों का भी वादा किया है, लेकिन अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करना उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है। (सूरए तौबा, आयत 73)
ऊपर बयान की गई बातों से यह नतीजा सामने आता है कि इंसान वह मौजूद है जो पैदा तो एक कमज़ोर चीज़ से होता है लेकिन वह धीरे धीरे कमाल की तरफ़ क़दम बढ़ाता है और अल्लाह की ओर से ज़मीन पर ख़लीफ़ा होने की फ़ज़लीत को हासिल कर लेता है, और उसको सुकून केवल तभी हासिल होता है जब वह अल्लाह का ज़िक्र करता है और उसकी याद में ज़िंदगी गुज़ारता है, वह अल्लाह की याद में ख़ुद को फ़ना कर दे उसके बाद वह ख़ुद ही अपनी इल्मी और अमली प्रतिभाओं और क्षमताओं को महसूस करेगा।
क़ुरआन की निगाह में इंसान की अहमियत
इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते।
इस्लामी दुनिया में इंसान की एक अजीब दास्तान सामने आती है, इस्लामी तालीमात की रौशनी में इंसान केवल एक चलने फिरने और बोलने बात करने वाली मख़लूक़ नहीं है बल्कि क़ुर्आन की निगाह में इंसान की हक़ीक़त इससे कहीं ज़्यादा अहम है जिसे कुछ जुमलों में नहीं समेटा जा सकता, क़ुर्आन में इंसान की ख़ूबियों को भी बयान किया है और उसके बुरे किरदार को भी पेश किया है।
क़ुर्आन ने ख़ूबसूरत और बेहतरीन अंदाज़ से तारीफ़ भी की है और उसकी बुराईयों का ज़िक्र किया है, जहां इस इंसान को फ़रिश्तों से बेहतर पेश किया गया है वहीं इसके जानवरों से भी बदतर किरदार का भी ज़िक्र किया है, क़ुर्आन की निगाह में इंसान के पास वह ताक़त है जिससे वह पूरी दुनिया पर कंट्रोल हासिल कर सकता है और फ़रिश्तों से काम भी ले सकता है लेकिन उसके साथ साथ अगर नीचे गिरने पर आ जाए तो असफ़लुस साफ़ेलीन में भी गिर सकता है।
इस आर्टिकल में इंसान की उन तारीफ़ का ज़िक्र किया जा रहा है जिसे क़ुर्आन मे अलग अलग आयतों में अलग अलग अंदाज़ से इंसानी वैल्यूज़ के तौर पर ज़िक्र किया है।
इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते। (सूरए बक़रह, आयत 30)
एक दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है, और उसी अल्लाह ने तुम (इंसानों) को ज़मीन पर अपना नायब बनाया है ताकि तुम्हें दी हुई पूंजी से तुम्हारा इम्तेहान लिया जाए। (सूरए अनआम, आयत 165)
इंसान की इल्मी प्रतिभा और क्षमता दूसरी सारी उसकी पैदा की हुई मख़लूक़ से ज़्यादा है।
इरशाद होता है कि, और अल्लाह ने आदम को सब चीज़ों के नाम सिखाए (उन्हें सारी हक़ीक़तों का इल्म दे दिया) फिर फ़रिश्तों से कहा, मुझे उनके नाम बताओ, वह बोले हम सिर्फ़ उतना इल्म रखते हैं जितना तूने सिखाया है, फिर अल्लाह ने हज़रत आदम से फ़रमाया, ऐ आदम तुम इनको उन चीज़ों के नाम सिखा दो, फिर आदम ने सब चीज़ों के नाम सिखा दिए, तो अल्लाह ने फ़रमाया, क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आसमानों और ज़मीन की छिपी चीज़ों को अच्छी तरह जानता हूं जिसे तुम ज़ाहिर करते हो और छिपाते हो। (सूरए बक़रह, आयत 31 से 33)
इंसान की फ़ितरत ख़ुदा की मारेफ़त है और वह अपनी फ़ितरत की गहराईयों में अल्लाह की मारेफ़त रखता है और उसके वुजूद को पहचानता है, इंसान के दिमाग़ में पैदा होने वाली शंकाएं और शक और उसके बातिल विचार उसका अपनी फ़ितरत से हट जाने की वजह से है।
इरशाद होता है कि, अभी आदम के बेटे अपने वालेदैन की सुल्ब में ही थे कि अल्लाह ने उनसे अपने वुजूद के बारे में गवाही ली और उन लोगों ने गवाही दी। (सूरए आराफ़, आयत 172)
या एक दूसरी जगह फ़रमाया, तो अपना चेहरा दीन की तरफ़ रख दो, वही जो ख़ुदाई फ़ितरत है और उसने सारे लोगों को उसी फ़ितरत पर पैदा किया है। (सूरए रूम, आयत 43)
इंसान में पेड़ पौधों, पत्थरों और जानवरों में पाए जाने वाले तत्वों के अलावा एक आसमानी और मानवी तत्व भी मौजूद हैं यानी इंसान जिस्म और रूह से मिल कर बना है।
इरशाद होता है कि, उसने जो चीज़ बनाई वह बेहतरीन बनाई, इंसान की पैदाइश मिट्टी से शुरू की फिर उसकी औलाद को हक़ीर और पस्त पानी से पैदा किया फिर उसे सजाया और उसमें अपनी रूह फ़ूंकी। (सूरए सजदा, आयत 7 से 9)
इंसान की पैदाइश कोई हादसा नहीं है बल्कि उसकी पैदाइश यक़ीनी थी और वह अल्लाह का चुना हुआ है।
इरशाद होता है कि, अल्लाह ने आदम को चुना फिर उनकी तरफ़ ख़ास ध्यान दिया और उनकी हिदायत की। (सूरए ताहा, आयत 122)
इंसान आज़ाद और आज़ाद शख़्सियत का मालिक है, वह अल्लाह का अमानतदार और उस अमानत को दूसरों तक पहुंचाने का ज़िम्मेदार है।
उससे यह भी चाहा गया है कि वह अपनी मेहनत और कोशिशों से ज़मीन को आबाद करे और सआदत और बदबख़्ती के रास्तों में से एक को अपनी मर्ज़ी से चुन ले।
इरशाद होता है कि, हमने आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों के सामने अपनी अमानत पेश की (उसकी ज़िम्मेदारी) किसी ने क़ुबूल नहीं की और (सब) डर गए हालांकि इंसान ने इस (ज़िम्मेदारी) को उठा लिया, बेशक यह बड़ा ज़ालिम और नादान है। (सूरए अहज़ाब, आयत 72)
या एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने इंसान को मिले जुले नुत्फ़े से पैदा किया ताकि उसका इम्तेहान लें फिर हमने उसको सुनने वाला और देखने वाला बनाया फिर हमने उसको रास्ता दिखाया अब वह शुक्र करने वाला है या नाशुक्री करने वाला है, या वह हमारे दिखाए हुए रास्ते पर चलेगा और सआदत तक पहुंच जाएगा या नेमत का कुफ़रान करेगा और गुमराह हो जाएगा। (सूरए दहर, आयत 2-3)
इस्लाम में कोई जाति और नस्ल से बड़ा नहीं होता
हमारा विश्वास है कि सारे ईश्वरीय दूत विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने किसी भी “नस्ली” या “क़ौमी” या जातीय उच्चता को क़बूल नही किया। इन की नज़र में दुनिया के तमाम इँसान बराबर थे चाहे वह किसी भी ज़बान,नस्ल या क़ौम से ताल्लुक़ रखते हों।
क़ुरआन तमाम इंसानों को संबोधित करते हुए कहता है कि
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ وَأُنثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّـهِ أَتْقَاكُمْ
“या अय्युहा अन्नासु इन्ना ख़लक़ना कुम मिन ज़करिन व उनसा व जअलना कुम शुउबन व क़बाइला लितअरफ़ू इन्ना अकरमा कुम इन्दा अल्लाहि अतक़ा कुम (सूरए हुजरात आयत 13)
यानी ऐ इँसानों हम ने तुम को एक मर्द और औरत से पैदा किया फिर हम ने तुम को क़बीलों में बाँट दिया ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो (लेकिन यह बरतरी और उच्चता का आधार नही है) तुम में अल्लाह के नज़दीक वह मोहतरम है जो तक़वे में ज़्यादा है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स)की एक बहुत मशहूर हदीस है जो आप ने हज के दौरान मिना की धरती पर ऊँट पर सवार हो कर लोगों की तरफ़ रुख़ कर के इरशाद फ़रमाई थीः
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ رَبَّكُمْ وَاحِدٌ , وَإِنَّ أَبَاكُمْ وَاحِدٌ , أَلا لا فَضْلَ لِعَرَبِيٍّ عَلَى أَعْجَمِيٍّ ، وَلا لِعَجَمِيٍّ عَلَى عَرَبِيٍّ , وَلا أَسْوَدَ عَلَى أَحْمَرَ , وَلا أَحْمَرَ عَلَى أَسْوَدَ إِلا بِتَقْوَى اللَّهِ , أَلا هَلْ بَلَّغْتُ ؟ " , قَالُوا : بَلَّغَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ : " فَلْيُبَلِّغِ الشَّاهِدُ الْغَائِبَ
“या अय्युहा अन्नासि अला इन्ना रब्बा कुम वाहिदिन व इन्ना अबा कुम वाहिदिन अला ला फ़ज़ला लिअर्बियिन अला अजमियिन ,व ला लिअजमियिन अला अर्बियिन ,व ला लिअसवदिन अला अहमरिन ,व ला लिअहमरिन अला असवदिन ,इल्ला बित्तक़वा ,अला हल बल्लग़तु ? क़ालू नअम ! क़ाला लियुबल्लिग़ अश्शाहिदु अलग़ाइबा ”
यानी ऐ लोगो जान लो कि तुम्हारा ख़ुदा एक है और तुम्हारे माँ बाप भी एक हैं,ना अर्बों को अजमियों पर बरतरी हासिल है न अजमियों को अर्बों पर, गोरों को कालों पर बरतरी है और न कालों को गोरों पर अगर किसी को किसी पर बरतरी है तो वह तक़वे के एतबार से है।
फिर आप ने सवाल किया कि क्या मैं ने अल्लाह के हुक्म को पहुँचा दिया है? सब ने कहा कि जी हाँ आप ने अल्लाह के हुक्म को पहुँचा दिया है। फिर आप ने फ़रमाया कि जो लोग यहाँ पर मौजूद है वह इस बात को उन लोगों तक भी पहुँचा दें जो यहाँ पर मौजूद नही है।
संघर्ष विराम की वार्ता जारी रखने के लिए फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ की शर्त
फ़िलिसतीन के हमास आंदोलन के पोलित ब्योरो चीफ़ इस्माईल हनीया ने ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करने के लिए फ़िलिस्तीनियों की तैयारी का उल्लेख करते हुए संघर्ष विराम के बारे में फ़िलिस्तीनी संगठनों की शर्तें बयान कर दीं।
इस्माईल हनीया ने कहा कि हम ज़ायोनी शासन के साथ बातचीत में नर्मी दिखा रहे हैं लेकिन इस्राईल से लंबी जंग के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी शासन क़त्ले आम, लोगों को विस्थापित करने, यातनाएं देने और भुखमरी में झोंकने जैसे भयानक अपराध कर रहा है मगर यह भी हक़ीक़त है कि कई महीने से यह क़ाबिज़ शासन फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के मुक़ाबले में बेबस होकर रह गया है। उसका बस केवल बच्चों, महिलाओं और आम नागरिकों पर चलता है। उसे लगता है कि मस्जिदुल अक़सा की घेराबंदी करके और ज़ायोनी सेटलर्ज़ को खुली छूट देकर तूफ़ान अलक़सा आप्रेशन से इस्राईल पर पड़ने वाली मार का असर कम कर सकता है।
हमास के नेता ने ग़ज़ा पट्टी के ज़मीनी हालात को मद्देनज़र रखते हुए दो महत्वपूर्ण बिंदु पेश किए। एक तो उन्होंने यह बात दो टूक शब्दों में कही कि फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करते रहने की क्षमता मौजूद है और तूफ़ान अलअक़सा आप्रेशन से यह हक़ीक़त पहले ही उजागर हो गई।
दूसरा पहले यह है कि हमास और फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास बड़ी संख्या में इस्राईली क़ैदी मौजूद हैं और वे इस्राईल से बातचीत में मज़बूत पोज़ीशिन में हैं।
हालिया हफ़्तों में अपनी कमज़ोरी खुल जाने के बाद ज़ायोनी शासन इस कोशिश में है कि संघर्ष विराम की बातचीत के नाम पर किसी तरह इस्राईल के भीतर जारी संकट पर पर्दा डाले। ज़ायोनी शासन के अधिकारियों को हालिया दिनों इस्राईली क़ैदियों के परिवारों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। नतीजे में ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू और अन्य मंत्रियों के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गए हैं। क़ैदियों के परिवारों का कहना है कि प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य सब झूठे हैं।
हमास को इस्राईल की आंतरिक स्थिति की भी पूरी ख़बर है और उसे फ़िलिस्तीनी संगठनों की क्षमताओं की भी पूरी जानकारी है। हमास की शर्त है कि फ़िलिस्तीनी नागरिकों, महिलाओं और बच्चों पर इस्राईल हमला बंद करे और ज़ायोनी सैनिक ग़ज़ा पट्टी से पूरी तरह बाहर निकल जाएं।
हमास के नेताओं ने अन्य फ़िलिस्तीनी संगठनों से संघर्ष विराम के मुख्य बिंदुओं के बारे में बातचीत शुरू कर दी है। हमास इसके साथ ही दूसरे देशों के अधिकारियों से ही बातचीत कर रहा है। फ़िलिस्तीनी संगठनों ने हालात को देखते हुए साफ़ कर दिया है कि जब तक पूरी तरह स्थायी संघर्ष विराम नहीं हो जाता, ग़ज़ा पट्टी से इस्राईली सेनाएं बाहर नहीं निकल जातीं, ग़ज़ा की नाकाबंदी समाप्त नहीं कर दी जाती तब तक इस्राईली क़ैदियों को हरगिज़ रिहा नहीं किया जाएगा।
अतीत के अनेक उदाहरण हैं जो बताते हैं कि ज़ायोनी शासन न तो किसी प्रतिबद्धता पर अमल करता है और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून मानने को तैयार है। यही वजह है कि हमास दूसरे फ़िलिस्तीनी संगठन ज़ायोनी शासन से अप्रत्यक्ष बातचीत में इस बात की गैरेंटी हासिल करना चाहता हैं कि ज़ायोनी शासन पर दबाव डाला जाएगा किवह अपनी प्रतिबद्धताओं पर अमल करे।
ग़ज़्ज़ा की दयनीय स्थिति, बच्चे सबसे अधिक प्रभावित, दुनिया ख़ामोश
ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमलों की शुरुआत के लगभग पांच महीने बाद, यूनिसेफ़ ने घोषणा की है कि क्षेत्र में दस लाख से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं।
यूनिसेफ़ ने एक बयान में कहा कि ग़ज़्ज़ा के 95 प्रतिशत परिवारों में बुज़ुर्ग हैं जो अपने बच्चों को खिलाने के लिए कम खाते हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ की इस सहायक कंपनी ने अपने बयान में कहा है कि गाजा में खाद्य पदार्थों की निरंतर डिलीवरी की बहुत जरूरत है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष रिपोर्टर माइकल फ़ख़्री ने भी गार्डियन से बो करते हुए कहा कि इस्राईल जानबूझकर फ़िलिस्तीनियों को भूखा मार रहा है। उनका कहना था कि भोजन तक पहुंच को रोकना एक युद्ध अपराध है और नरसंहार है।
उन्होंने इंटरव्यू में कहा कि ग़ज़्ज़ा में मानवीय सहायता रोकने या छोटी मछली पकड़ने वाली नौकाओं, ग्रीनहाउस गैसों और बगीचों को नष्ट करने का, सिवाय लोगों को भोजन से वंचित करने के कोई कारण नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र के इस अधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जानबूझकर लोगों को भोजन से वंचित करना एक अपराध है और इस्राईल ने साबित कर दिया है कि वह सभी फ़िलिस्तीनियों या उनके एक बड़े हिस्से को सिर्फ़ इसलिए ख़त्म करना चाहता है क्योंकि वे फ़िलिस्तीनी हैं।
ईरानी उपग्रह पारस-1 का सफल प्रक्षेपण
ईरान के पारस-1 उपग्रह का सफलता से अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया गया।
रूस के सायोज़ लांचर से ईरान के पारस-1 उपग्रह को सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया।
पारस-1 उपग्रह को गुरूवार 29 फरवरी 2024 को सुबह लांच किया गया। ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये का कहना था कि ईरान के भीतर माहदश्त और क़िश्म में दो एसे स्टेशन हैं जो पारस-1 उपग्रह के डेटाज़ को एकत्रित करेंगे।
ख़याम के बाद पारस-1 एसा दूसरा ईरानी उपग्रह है जिसको रूसी प्रक्षेपण केन्द्र से भेजा गया है। पिछले दो वर्षों के दौरान अंतरिक्ष में ईरान की ओर से 12 उपग्रह भेजे जा चुके हैं जिनमें पारस-1 बारहवां उपग्रह है।अन्य उपग्रहों की तुलना में ईरान के पारस-1 उपग्रह में अधिक उन्नत प्रणालियां पाई जाती है जिनको ईरानी विशेषज्ञों ने बनाया है।
इसकी विशेषताओं के बारे में ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये ने बताया कि पारस-1 उपग्रह वास्तव में अनुसंधानिक उपग्रह है जो कई प्रकार के काम करने में सक्षम है।
ईरान में चुनाव, दुश्मनों की नज़र, जनता देगी वोट की चोट
जैसे जैसे पहली मार्च को 12वीं संसद और विशेषज्ञ एसेंबली के 6वें कार्यकाल के चुनाव निकट आ रहे हैं, सबसे बेहतरीन और सबसे योग्य प्रत्याशी को चुनने का मुद्दा, पिछले सभी चुनावों की तरह प्रमुख बिंदुओं में बदल गया है और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने एक बार फिर विशेष रूप से इस बात ज़ोर दिया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और विशेषज्ञ एसेंबली अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा। इसी संदर्भ में शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने बुधवार को तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने संबोधन में, चुनावों में राष्ट्र की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला तत्व बताया।
उन्होंने सबसे उचित और योग्य उम्मीदवार की विशेषताएं बयान करते हुए कहा कि जनता की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलों को दूर करने और देश के विकास का रास्ता समतल होता है, इस हिसाब से चुनाव, देश का सिस्टम सही चलाने वाले स्तंभों में से एक है।
मौजूदा संसद का कार्यकाल मई में समाप्त हो रहा है। संसद की 290 सीटों के लिए 15200 उम्मीवारों के नामों को निरीक्षण संस्था की ओर से मंज़ूरी मिली है। यह वर्ष 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से उम्मीवारों की सबसे बड़ी संख्या है।
उम्मीदवारों में 1713 महिलाएं हैं जो वर्ष 2020 के संसदीय चुनाव में भाग लेने वाली 819 महिला उम्मीदवारों की तुलना में दो गुना है।
संसद के चुनाव के साथ ही विशेषज्ञ असेंबली की 88 सीटों के लिए 144 धर्मगुरुओं के बीच मुक़ाबला हो रहा है। यह संस्था देश के सुप्रीम लीडर के कामकाज पर नज़र रखती है और अगला सुप्रीम लीडर चुनने का अधिकार उसे होता है।
ईरान की जनता सांसदों, राष्ट्रपति और शहर और गांव परिषद के सदस्यों और इस्लामी परिषदों के सदस्यों की नियुक्ति करती है, इसीलिए ईरान की राजनीतिक व्यवस्था में लोगों की प्रमुख भूमिका और स्थान है। इस्लामी व्यवस्था ने हमेशा जनता की अधिकतम भागीदारी पर ज़ोर दिया है और यह न केवल व्यवस्था के अधिकार के स्तर को बढ़ाने के लिए है बल्कि ईरानी जनता की मानवीय गरिमा का सम्मान और रक्षा करने के लिए भी है।
दूसरा मुद्दा, ईरान के चुनाव में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है। ईरान में होने वाले चुनावों में व्यक्तियों और गुटों के बीच प्रतिस्पर्धा ज़बरदस्त तरीक़े से होती है और मतपेटियों में प्रत्याशियों के भाग पड़े होते हैं और देश का चुनाव आयोग पारदर्शिता के साथ मतगणना कराता है और जीतने वाले प्रत्याशियों के नामों का एलान करता है। ईरान में व्यक्तियों और दलों के बीच एक वास्तविक प्रतिस्पर्धा का ख़ूबसूरत दृश्य भी नज़र आता है।
यह ऐसी हालत में है कि दुश्मनों ने ईरान के चुनावों के लिए साज़िशें रच रखी हैं और यहां तक कि उनकी खुफिया एजेंसियों ने भी चुनावों पर पूरी तरह से नजर रख रखी है और मीडिया की ताकत का उपयोग करके इसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं।
इराक़ और ईरान के संबंध बहुत मज़बूत हैं
इराक़ के राष्ट्रपति का कहना है कि बग़दाद के सभी क्षेत्रों में तेहरान के साथ मजबूत संबंध हैं।
ईरान और इराक़ के बीच विभिन्न राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में
रणनीतिक संबंध व्यापक हैं और दोनों ही देशों के शीर्ष नेताओं की इच्छा, सहयोग और द्विपक्षीय बातचीत के स्तर को बढ़ाना है।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार इराक़ के राष्ट्रपति अब्दुल लतीफ रशीद ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बग़दाद के इस्लामिक गणतंत्र ईरान के साथ मजबूत संबंध हैं जिन्हें विशेष रूप से वाणिज्यिक बातचीत के क्षेत्र में देखा जा सकता है।
अब्दुल लतीफ़ रशीद ने अपने पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ इराक़ के अच्छे संबंधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इराक की वापसी के लिए देश में सुरक्षा और स्थिरता स्थापित करने के प्रयास आवश्यक हैं।
इराक़ के राष्ट्रपति ने कहा कि विदेशी हस्तक्षेप का इराक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और सरकार, देश में स्थिति को शांत करने और सभी राजनीतिक दलों और सुरक्षा संस्थाओं के साथ एक समझौते पर पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है।
राष्ट्रपति अब्दुल लतीफ रशीद ने अमेरिकी ठिकानों पर इराक़ी प्रतिरोधकर्ता गुटों के हालिया हमलों को ग़ज़्ज़ा की स्थिति से जोड़ा और कहा कि ग़ज़्ज़ा में जो हो रहा है उसके बारे में हमारी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है और हम फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के कानूनी अधिकारों और स्वतंत्र एवं सुरक्षित राज्य की स्थापना का समर्थन करते हैं।
इराक़ के राष्ट्रपति ने इराक़ से विदेशी सेनाओं की वापसी पर सहमति बनने की भी उम्मीद जताई है।
शहीदों के परिवार और पहली बार मतदान करने वाले आज मिले वरिष्ठ नेता से
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा में पश्चिम के हाथों जातीय सफ़ाया इतना शर्मनाक हो गया है कि अमरीकी फ़ौजी अफ़सर आत्मदाह कर लेता है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा।इसी संदर्भ में शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा। इसी संदर्भ में शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पहली बार वोट डालने वाले हज़ारों नौजवानों और कुछ शहीदों के घरवालों से बुधवार 28 फ़रवरी को तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।
उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने संबोधन में, चुनावों में क़ौम की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला तत्व बताया। उन्होंने सबसे उचित उम्मीदवार की विशेषताएं बयान करते हुए कहा कि अवाम की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलों को दूर करने और देश की तरक़्क़ी का रास्ता समतल होता है। इस हिसाब से चुनाव, देश का सिस्टम सही चलाने वाले स्तंभों में से एक है।
इस्लामी क्रांति के नेता ने क्रांति से पहले ईरान के चुनावों के दिखावे के होने पर आधारित पहलवी शासन के कुछ अधिकारियों के लिखित बयानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जैसा कि उन्होंने इस बात को माना है कि चुनावों से पहले ही शाही दरबार में, यहाँ तक कि कभी-कभी कुछ विदेशी दूतावासों में कामयाब उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर दी जाती थी और बैलेट बॉक्सों से वही लिस्ट बाहर आती थी।
उन्होंने फ़्रांस और पूर्व सोवियत संघ जैसे बड़ी क्रांतियों के बाद तानाशाही गुटों के शासन की ओर इशारा करते हुए कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने जनता पर भरपूर भरोसा करके और बैलेट बाक्सों को महत्व देकर क्रांति की सफलता के बाद क़रीब 50 दिनों के भीतर इस बात के लिए रेफ़्रेंडम कराया कि अवाम को किस तरह का शासन चाहिए ताकि राष्ट्र, देश और क्रांति के अस्ली मालिक, सभी मसलों के बारे में फ़ैसला करे।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने उन घटिया दुश्मनों की ओर इशारा करते हुए जो ईरान और शुक्रवार के चुनावों पर नज़रें गड़ाए हुए हैं, कहा कि अमरीका, यूरोप के अधिकतर राजनेता, घटिया ज़ायोनी शासन और बड़े-बड़े पूंजिपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियां, जो विभिन्न कारणों से पूरे ध्यान से ईरान के मसलों पर नज़र रखती हैं, हर चीज़ से ज़्यादा चुनावों में ईरानी जनता की भागीदारी और ईरानी जनता की शक्ति से डरती हैं।
उन्होंने कहा कि दुश्मनों ने देखा कि इसी निर्णायक जनता की ताक़त ने अमरीका और ब्रिटेन द्वारा समर्थित निरंकुश शाही शासन को जड़ से उखाड़ फेंका और थोपे गए युद्ध में सद्दाम को, उसके सभी पूर्वी व पश्चिमी तथा क्षेत्रीय समर्थकों के बावजूद, अपमानित किया और धूल चटा दी। इसी वजह से चुनाव, देश की राष्ट्रीय शक्ति को दुनिया के सामने पेश करने का प्रतीक हैं।
इस्लामी क्रांति के नेता ने चुनावों में जनता भी भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति के प्रदर्शन और राष्ट्रीय शक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के बिना कोई भी चीज़ बाक़ी नहीं रहेगी और अगर दुश्मन ने राष्ट्रीय ताक़त के संबंध में ईरानियों में ज़रा भी कमजोरी देखी तो विभिन्न आयामों से वह राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल देगा।
उन्होंने भरपूर भागीदारी से मज़बूत चुनाव का एक अहम नतीजा, मज़बूत लोगों का चयन और मज़बूत संसद का गठन और इसके नतीजे में मुश्किलों का अंत और मुल्क की तरक़्क़ी को बताया और चुनावों के दूसरे नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चुनावों के दौरान राजनैतिक समझ में तरक़्क़ी और जवानों में समीक्षा करने की क्षमता में वृद्धि, बहुत क़ीमती चीज़ है क्योंकि इससे दुश्मन, उसके तरीक़ों और उसके हथकंडों की पहचान होगी जिसके नतीजे में इन चीज़ों से निपटने की राहों की पहचान होगी और दुश्मनों के षडयंत्रों को विफल बनाया जा सकेगा।
इस्लामी क्रांति के नेता ने अपने संबोधन के आख़िरी हिस्से में एक बार फिर ग़ज़ा के मसले को इस्लामी दुनिया का बुनियादी मसला बताते हुए कहा कि ग़ज़ा के मसले ने इस्लामी दुनिया को पहचनवा दिया और सभी को पता चल गया कि इस्लाम और धर्म का तत्व, मज़बूती, दृढ़ता और ज़ायोनियों की इतनी ज़्यादा बमबारी और जुर्म के मुक़ाबले में घुटने ने टेकने की बुनियाद है।
उन्होंने आगे कहा कि इस मसले ने पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता का असली चेहरा भी दुनिया के सामने पेश कर दिया। इससे पता चल गया कि इस कलचर में पले हुए राजनेता, ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए को मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं। कुछ ज़बानी बातों के बावजूद वे व्यवहारिक तौर पर यूएन सेक्युरिटी काउंसिल के प्रस्तावों को वीटो करके जुर्म को रुकवाने में रुकावट डाल रहे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के जुर्म का विरोध करते हुए अमरीकी सेना के एक अफ़सर की आत्मदाह की घटना को अमरीका और पश्चिम की भ्रष्ट व अत्याचारी संस्कृति को अमानवीय नीतियों की रुसवाई के चरम की एक निशानी बताया। आपने कहा कि इस व्यक्ति तक नें इस संस्कृति के घिनौने रूप को महसूस कर लिया, जो ख़ुद भी पश्चिमी कलचर में पला था।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उम्मीद जताई कि अल्लाह, इस्लाम, मुसलमानों, फ़िलिस्तीन और ख़ास तौर पर ग़ज़ा की पूरी तरह मदद करेगा।