رضوی

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8 फरवरी को हुए चुनाव में हुई गड़बड़ी की जांच की मांग कर रहे अमेरिका को पाकिस्तान ने फटकार लगाई है।

अमेरिका के सुझावों को पाकिस्तान ने नकार दिया है। पाकिस्तान ने कहा है कि किसी भी बाहरी देश के आदेश के आगे पाकिस्तान झुकने वाला देश नहीं है। शुक्रवार को पाकिस्तानी विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज बलूच ने कहा कि कोई भी देश  स्वतंत्र और संप्रभु देश पाकिस्तान को आदेश नहीं दे सकता।

मुमताज ने बताया कि हम पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में निर्णय लेने के लिए अपने संप्रभु अधिकार में यकीन रखते हैं।  मुमताज बलूच ने इस तरह के बयान तब दिए हैं, जब उनके अमेरिकी समकक्ष ने पाकिस्तान के चुनाव में जांच की मांगों को आगे बढ़ाने की बात कही थी। सप्ताह की शुरुआत में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा था कि चुनाव के दौरान हुई गड़बड़ी के दावों की पाकिस्तानी कानून के मुताबिक पारदर्शिता पूर्ण जांच की जानी चाहिए।

मैथ्यू मिलर ने यह भी कहा था कि कथित धांधली की जांच को हम आगे बढ़ते देखना चाहते हैं और जल्द ही खत्म होते देखना चाहते हैं।

हाल ही में पाकिस्तान में हुए चुनावों में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने जमकर धांधली का आरोप लगाया था। इमरान खान ने अमेरिका से चुनाव में हस्तक्षेप करने की मांग की थी। इमरान खान के समर्थक कई उम्मीदवारों ने धांधली के आरोपों को लेकर कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था। पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने नतीजे घोषित करने में भी काफी समय लगाया था।

पाकिस्तान चुनाव आयोग ने शुक्रवार को राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा करते हुए 9 मार्च को मतदान की तारीख निर्धारित की है। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का करीब 11 साल बाद एक बार फिर राष्ट्रपति बनना तय माना जा रहा है। इस समय पाकिस्तान में डॉ. आरिफ अल्वी राष्ट्रपति के पद पर विराजमान हैं।

इस्राईली टीवी चैनल-14 की रिपोर्ट के मुताबिक़, ग़ज़ा युद्ध को लेकर इस्राईली सेना में मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं, जिसके बाद कुछ उच्च सैन्य अधिकारियों और ज़ायोनी सेना की ख़ुफ़िया इकाई के अधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफ़ा देने की घोषणा की है।

रिपोर्ट के मुताबिक़, ग़ज़ा में निर्दोष फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार करने वाली इस्राईली सेना के अधिकारियों का सामूहिक इस्तीफ़ा, ग़ज़ा में युद्ध जारी रखने के मुद्दे पर सेना के अधिकारियों के बीच विरोध को दर्शाता है।

इस्तीफ़ा देने वाले अधिकारियों में इस्राईली सेना के प्रवक्ता डैनियल हेगरी का नाम भी शामिल है।

इससे पहले भी इस्राईली मीडिया में ग़ज़ा युद्ध को लेकर ज़ायोनी सेना में उत्पन्न होने वाले मतभेदों को लेकर रिपोर्टें प्रकाशित हुई थीं।

इस्राईली टीवी चैनल-12 ने भी चीफ़ ऑफ़ जनरल स्टाफ़, सेना के ख़ुफ़िया विभाग के प्रमुख, आंतरिक सुरक्षा के प्रमुख और दक्षिणी क्षेत्र के कमांडर के संभावित इस्तीफ़ों की सूचना दी थी।

7 अक्तूबर को हमास के अल-अक़्सा तूफ़ान ऑपरेशन के बाद ज़ायोनी सेना ने ग़ज़ा के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू कर दिया था। इस दौरान, हज़ारों इस्राईली पुलिस बल और सैनिक अपनी मानसिक स्थिति ख़राब होने के कारण इस्तीफ़ा देने या समय पूर्व सेवानिवृत्त होने पर आमादा हैं।

गज्जा पट्टी के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एलान किया है कि गत 24 घंटों के दौरान इस्राईली हमलों में 124 फिलिस्तीनी शहीद हुए हैं इस प्रकार सात अक्तूबर से अब तक इस्राईली हमलों में शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या तीस हज़ार 534 हो गयी है।

इसी प्रकार गज्जा पट्टी के स्वास्थ्यमंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार गत 24 घंटों के दौरान जायोनी सरकार ने गज्जा पट्टी में 13 बार हमला किया जिसमें 124 फिलिस्तीनी शहीद और 210 घायल हुए हैं।

इसी प्रकार गज्ज़ा पट्टी के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एलान किया है कि जायोनी सैनिकों ने 150 दिनों के दौरान चिकित्सा स्टाफ के 364 व्यक्तियों को शहीद किया जबकि अस्पतालों के प्रबंधकों सहित चिकित्सा स्टाफ के 269 व्यक्तियों को गिरफ्तार भी कर लिया है।

फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के खिलाफ जायोनी सरकार के अपराध 150 दिनों से जारी हैं और इस संकट के समाधान के लिए प्रयास यथावत जारी हैं परंतु जायोनी सैनिकों ने अपने अपराधों से एक बड़ी मानव त्रासदी उत्पन्न कर रखी है।

जायोनी सरकार ने अपने पाश्विक हमलों के साथ गज्जा पट्टी का कड़ा परिवेष्टन कर रखा है जिसकी वजह से स्थिति और भयावह हो गयी है और फिलिस्तीन के मज़लूम और निर्दोष लोगों को दवा, खाद्य पदार्थ और ज़रूरत की दूसरी चीज़ें नहीं मिल पा रही हैं जिसकी वजह से मानव त्रासदी बहुत विषम रूप धारण कर चुकी है।

सोमवार, 04 मार्च 2024 17:32

इस्राईल का आयरन डोम हैक

हैकरों के एक गुट ने कहा है कि हमने इस्राईल की रक्षा प्रणाली आयरन डोम को हैक कर लिया है।

समाचार एजेन्सी तसनीम की रिपोर्ट के अनुसार हैकरों के एक गुट ने एक बयान जारी करके एलान किया है कि आयरन डोम के एक भाग को हैक कर लिया है। "हन्ज़ला" नामक गुट ने टेलीग्राम पर बताया है कि उसने इस्राईल के आयरन डोम को हैक कर लिया है।

इस गुट ने कुछ तस्वीरों को प्रकाशित करके कहा है कि उसने आयरन डोम के राडार और उसे नियंत्रित करने वाले सिस्टम को हैक कर लिया है और उसके संचालकों के लिए चेतावनी संदेश भेजा है।

इसी तरह इस संदेश में आया है कि हन्ज़ला नामक गुट ने आयरन डोम को हैक कर लिया है और हम रफह के साथ रहेंगे और यह एक चेतावनी है। इसी प्रकार हन्ज़ला गुट ने आयरन डोम की कुछ तस्वीरों को भी प्रकाशित करके कहा है कि हम तुम्हारे राडार पर हैं और तुम्हारे विमानों को आसमान में लक्ष्य बना सकते हैं मगर हम तुम्हारी तरह नहीं हैं, हम अतिग्रहणकारियों की भांति बच्चों की हत्या नहीं करते हैं, यह एक चेतावनी और काम का आरंभ है।

इसी प्रकार हैकर करने वाले इस गुट की रिपोर्ट में आया है कि हम बेर सबआ क्षेत्र की कुछ आधारभूत संरचनाओं को भी नष्ट कर सकते हैं।

ज्ञात रहे है कि आयरन डोम इस्राईली सेना का एअर डिफेन्स सिस्टम है जिसे प्रतिरोधक गुटों की ओर से फायर किये जाने वाले राकटों और मिसाइलों को निष्क्रिय करने के लिए तैनात किया गया है।

रविवार, 03 मार्च 2024 16:01

जीने की कला -1

जीवन, एक तोहफ़ा है जो हमें प्रदान किया गया है।

ज़िंदगी अच्छाई-बुराई, उतार-चढ़ाव, ऊंच-नीच और सुख-दुख से भरी होती है। कभी बहुत कठिनाई में जीवन गुज़रता है तो कभी इतना अच्छा व मनमोहक गुज़रता है कि समय बीतने का पता ही नहीं चलता। कठिनाइयां वास्तव में हर व्यक्ति के जीव के अनुभव होते हैं। जब हमें पता चलता है कि कठिनाइयां भी गुज़र जाती हैं और जीवन के आनंद भी समाप्त होने वाले हैं तो हम न तो कठिनाइयों में व्याकुल होते हैं और न ख़ुशी में हद से बाहर होते हैं। अतः हमें अपने लिए सबसे उत्तम चीज़ें तैयार करनी चाहिए और जीवन के तोहफ़े का सबसे अच्छे ढंग से प्रयोग करना चाहिए।

हममें यह क्षमता है कि अपने इरादे, संकल्प, निरंतर प्रयास और अनुभवों से पाठ लेकर निराशा को आशा में, पराजय को विजय में और आंसू को मुस्कान में बदल दें। हमें बेहतर जीवन जीने की कला आनी चाहिए ताकि अपने जीवन के एक-एक क्षण में हमें प्रफुल्लता और सुख का आभास हो। बेहतरीन क्षणों का निर्माण स्वयं हमारे अपने हाथ में है। श्रोताओ हमारे साथ रहिए ताकि इस कार्यक्रम के माध्यम से एक नया अनुभव हासिल करें। एक ऐसी शुरुआत करें जो हमारी ज़िंदगी में एक नया मौसम पैदा करे और जीवन के स्तर को बेहतर बनाए।

हम सौभाग्य तक पहुंचने के लिए हमेशा कोशिश करते रहते हैं ताकि एक मूल सिद्धांत तक पहुंच जाएं जबकि इस तरह की किसी संजीवनी बूटी का अस्तित्व ही नहीं है। चूंकि हर इंसान की सोच और उसकी रुचियां दूसरों से भिन्न होती हैं अतः सभी के लिए कोई एक मूल सिद्धांत निर्धारित नहीं किया जा सकता। अलबत्ता यही व्यक्तिगत भिन्नता हर इंसान को बेहतर जीवन जीने के लिए उत्तम मार्ग की खोज के लिए प्रेरित करती रहती है।

बेहतर ज़िंदगी के लिए कुछ मूल नियम होते हैं जिन्हें धार्मिक नेताओं, विचारकों और मनोवैज्ञानिकों ने बयान किया है। इन बातों पर ध्यान, आगे बढ़ने के लिए मनुष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। इन लोगों का मानना है किजो चीज़ पहले चरण में बेहतर जीवन के लिए सक्रिय होनी चाहिए वह मन और मस्तिष्क है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य का मस्तिष्क की असाधारण शक्ति है और इसी आधार पर कहा जाता है कि आपके लिए घटने वाली सभी घटनाओं में आपके विचार निर्णायक होते हैं और आप उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं।

इंसान में इस बात की शक्ति होती है कि वह अपने मन के मॉडल में सुधार करे। जीवन में मनुष्य ने जिन ग़लतियों का अनुभव किया है उनको ध्यान में रख कर वह एक ऐसे बिंदु तक पहुंच जाता है जहां वह अपने मार्ग की समीक्षा कर सकता है। उदाहरण स्वरूप वह यह समझ सकता है कि अगर वर्षों पहले उसने अमुक फ़ैसला किया होता तो आज उसका जीवन बेहतर होता लेकिन उसने एक ग़लत फ़ैसला किया जिसके कारण वह अमुक समस्याओं में ग्रस्त हो गया।

कुछ लोग अपने कामों पर सोच विचार नहीं करते और एक प्रकार से उनका मानना होता है कि जो कुछ होता है वह भले के लिए ही होता है। वे बेहतर जीवन के प्रयास में नहीं होते और अपने आपको एक पत्ते की तरह हवा के झोंकों में छोड़ देते हैं। बुद्धि को छोड़ देना और बातों पर चिंतन न करना, मनुष्य को अनेक कठिनाइयों में ग्रस्त कर देता है। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व अन्य ईश्वरीय पैग़म्बर हमेशा, लोगों की बुद्धि और मस्तिष्क के प्रशिक्षण का प्रयास किया करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम कोशिश करते थे कि बुद्धिमत्ता और मामलों पर सोच विचार के लिए मुसलमानों का मार्गदर्शन करें ताकि उनका जीवन बेहतर हो सके।

सोच, आत्मा का प्रशिक्षण करके उसे परिपूर्ण बनाती है। सोच और चिंतन के माध्यम से ही ग़लतियां कम होती हैं और मनुष्य की मानवीय शक्तियां प्रकट होती हैं। सोच और विचार, सृष्टि की वास्तविकताओं की ओर सीधा रास्ता खोलती हैं। सोच में एक आकर्षण शक्ति होती है जो सोचने वाले व्यक्ति और जिस चीज़ के बारे में वह सोच रहा होता है, उसे जोड़ देती है और उनके बीच संपर्क स्थापित कर देती है। जब भलाइयों के बारे में चिंतन जारी रहता है तो वह व्यक्ति धीरे धीरे अच्छाइयों की ओर आकृष्ट होने लगता है और उसका व्यवहार भी अच्छा होने लगता है।

यह वह वास्तविकता है जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों के कथनों में बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि सोच, मनुष्य को भलाइयों और उन पर अमल करने की ओर निमंत्रण देती है। जो भी सोच और विचार के माध्यम से अपनी उन महान शक्तियों को जो उसके अंदर निहित हैं, बाहर निकाल ले और जागृत कर दे तो यह बात मनुष्य को बेहतर जीवन का तोहफ़ा प्रदान करती है।

गहरी और सही सोच के मार्ग में जो एक समस्या और रुकावट है वह यह है कि इंसान को पूरे दिन बहुत अधिक विचारों का सामना रहता है जिनमें उसका मन उलझा रहता है। कभी मनुष्य अतीत की कटु घटनाओं के बारे में सोचता रहता है कि जिससे उसकी स्थिति पर कोई सकारत्मक प्रभाव नहीं पड़ने वाला है बल्कि इसके विपरीत उसकी शक्तियां कमज़ोर पड़ जाती हैं और उसकी प्रसन्नता समाप्त होने लगती है। बुरी यादों के बारे में सोच मनुष्य की ध्यान योग्य ऊर्जा ले लेती है। इस लिए विचारों पर नियंत्रण मनुष्य के लिए बहुत ज़रूरी है। विचारों में सुधार और उन पर नियंत्रण मनुष्य की बड़ी पुरानी आकांक्षा रही है।

चूंकि सोच और विचार मनुष्य के अस्तित्व के सबसे अहम आयाम और इसी तरह अन्य जीवों पर उसकी श्रेष्ठता का माध्यम है इस लिए इस बड़ी शक्ति से उत्तम ढंग से लाभ उठाया जाना चाहिए और सही तरीक़े से सोचने की शैली सीखनी चाहिए। क़ुरआने मजीद की आयतों और इसी तरह पैग़म्बर व उनके परिजनों की हदीसों में कहा गया है कि चिंतन की सबसे अच्छी शैली वह है जिसके माध्यम से मनुष्य वास्तविकताओं को खोजे और सृष्टि के रहस्यों का पता लगाए। इस संबंध में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि बंदे, बुद्धि के कारण अपने ईश्वर को पहचानते हैं और समझ जाते हैं कि वे उसकी रचना हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी कहते हैं कि बुद्धि के माध्यम से ईश्वर की पहचान ठोस बनती है।

मनुष्य को बेहतर जीवन गुज़ारने के लिए सृष्टि, रचयिता और उसकी असीम शक्ति के बारे में सोच-विचार और चिंतन की ज़रूरत है। ईश्वर की पहचान और अनन्य पालनहार पर भरोसा मनुष्य को शांति प्रदान करता है। जब हमें यह ज्ञात होता है कि अपनी असीम शक्ति के साथ ईश्वर हमेशा हमें देख रहा है, हमारा ध्यान रख रहा है और अगर हम उससे प्रार्थना करें तो वह स्वीकर करता है तो यह आभास ही हमें व्यर्थ चिंताओं और भय से दूर कर देता है। ईश्वर की पहचान हमारे दिलों को प्रकाशमान कर देती है और बुद्धि को वास्तविकताओं की प्राप्ति के लिए अधिक तैयार कर देती है।

सूरए आले इमरान की आयत नंबर 191 में हम पढ़ते हैं कि बुद्धिमान लोग वे हैं जो (हर हाल में चाहे) खड़े हों, बैठे हों और लेटे हों, ईश्वर को याद करते हैं और आकाशों और धरती की सृष्टि के बारे में सोचते रहते हैं (और कहते हैं) हे हमारे पालनहार! तूने इस (ब्रह्माण्ड) की रचना अकारण नहीं की है, तू (बेकार व फ़ालतू कार्यों से दूर व) पवित्र है, तो हमें नरक के दण्ड से सुरक्षित रख। क़ुरआने मजीद इन लोगों को बुद्धिमान बताता है। अर्थात बुद्धिमान वही लोग हैं जो हर स्थिति ईश्वर को याद और सृष्टि की रचना के बारे में चिंतन करते हैं।

इस प्रकार के लोग सृष्टि की रचना के बारे में सोच-विचार करके, ब्रह्मांड के रचयिता व युक्तिकर्ता के अस्तित्व को समझ जाते हैं और यही उनके लिए उसकी स्थायी याद है। उन्हें विश्वास होता है कि इस सांसारिक जीवन के बाद एक अमर जीवन है जिसमें ईश्वर ने उन्हें पारितोषिक देने का वादा किया है। क़ुरआने मजीद की दृष्टि में बुद्धिमान लोग इस बात को समझ जाते हैं कि परलोक के अस्तित्व के बिना इस सृष्टि की रचना की व्यर्थ है। वे ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं। यह विचार मनुष्य को भलाई के लिए प्रेरित करता है और बुराइयों से दूर रखता है। यही सोच मनुष्य को बेहतर जीवन बिताने का तोहफ़ा देती है।

सृष्टि व प्रलय के बारे में चिंतन मनन, इस बात पर विश्वास कि ईश्वर कोई भी काम अकारण व व्यर्थ नहीं करता और सृष्टि की रचना का लक्ष्य भलाइयों व परिपूर्णता के लिए मनुष्यों का प्रशिक्षण करना है, नैतिकता व शिष्टाचार को मज़बूत बनाता है। इस प्रकार की सोच वाला व्यक्ति अवगुणों व सद्गुणों के अंतर को अच्छी तरह से समझने लगता है और भलाइयों की ओर क़दम बढ़ाता है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि बुद्धि यह है कि मनुष्य, बुरे व अवांछित कर्म के मुक़ाबले में अच्छे काम को पहचान जाए।

तो अब समय आ गया है कि हम अपनी आयु के क्षणों पर एक नज़र डालें और देखें कि हमने अपनी उम्र किस तरह बिताई है? क्या हमने बुद्धिमत्ता से काम लिया है या केवल अनुभव पर अनुभव करते जा रहे हैं? सबसे अच्छा मार्ग सोच-विचार व चिंतन है। इसी से शुरुआत करनी चाहिए और इस अनंत मार्ग पर हम एक दूसरे के साथ रहेंगे और बेहतर जीवन के दूसरे आयामों की समीक्षा करते रहेंगे। तो श्रोताओ अगले कार्यक्रम तक के लिए हमें अनुमति दीजिए।

हेनरी का कहना है कि यह बात मेरी समझ में नहीं आती कि ईसा मसीह ने सूली पर क्यों कहा कहा था कि हे ईश्वर! तूने मुझको क्यों छोड़ दिया? हेनरी कहते हैं कि मैं इस बात को तो मानता था कि ईसा मसीह का जन्म बिना पिता के हुआ है किंतु यह बात मेरी समझ में नहीं आती थी कि जब हम इसाइयों की नज़र में ईसा मसीह, ईश्वर की सबसे अच्छी सृष्टि थे तो फिर ईश्वर ने उनको हमारे गुनाहों की माफ़ी के लिए क्यों मार डाला?

हताशा से भरे वातावरण में चमकने वाला प्रकाश, सच्चाई की तलाश में भटकने वालों को अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है।  चमकने वाला यह प्रकाश कुछ और नहीं बल्कि इस्लाम है।  वर्तमान समय में संसार में प्रतिदिन मुसलमान होने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है। 

हेनरी शूलेन जूनियर एक अमरीकी हैं।  वह न्यूयार्क के रहने वाले हैं।  वह बहुत ही सक्रिय, भावुक और सच्चे इंसान हैं।  मुसलमान हो जाने के बाद हेनरी का यह प्रयास है कि वह दूसरों का मार्दर्शन करते हुए उनको भी सच्चाई बताने का प्रयास करें।  हेनरी द्वारा इस्लाम स्वीकार करने की घटना वास्तव में सुनने वाली है।

एक अमरीकी युवा Henry Shulen Junior हेनरी शूलेन जूनियर का कहना है कि मैं पाबंदी से चर्च या गिरजाघर जाया करता था।  मैंने तीन से चार महीनों तक क़ुरआन और इंजील का तुलनात्मक अध्ययन किया।  इस्लाम एकेशेवरवाद की बात कहता है जिसका अर्थ होता है कि ईश्वर एक है।  क़ुरआन के हिसाब से हज़रत ईसा, ईश्वर के दूत हैं।  इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि हज़रत ईसा लोगों के पापों के प्रायश्चित के लिए नहीं मारे गए।  जब मुझको यह पता चला तो इस बात का आभास हुआ कि मेरा भी तो यही मानना है और मैं इसी पर विश्वास रखता हूं।

बहुत से वे ईसाई जो मुसलमान होते हैं उनके मुसलमान होने का एक कारण इसाई धर्म में पाए जाने वाले कुछ विरोधाभास हैं।  हेनरी जूनियर के दिमाग़ को किशोर अवस्था से ही यह विरोधाभास परेशान किये हुए था।  हेनरी का कहना है कि यह बात मेरी समझ में नहीं आती कि ईसा मसीह ने सूली पर क्यों कहा कहा था कि हे ईश्वर! तूने मुझको क्यों छोड़ दिया? हेनरी कहते हैं कि मैं इस बात को तो मानता था कि ईसा मसीह का जन्म बिना पिता के हुआ है किंतु यह बात मेरी समझ में नहीं आती थी कि जब हम इसाइयों की नज़र में ईसा मसीह, ईश्वर की सबसे अच्छी सृष्टि थे तो फिर ईश्वर ने उनको हमारे गुनाहों की माफ़ी के लिए क्यों मार डाला? मैं ईश्वर से क्यों यह नहीं कह सकता कि मुझको इस बात पर अफ़सोस है?  यह सारी बातें मेरी समझ से पूरी तरह से बाहर थीं।

हेनरी जूनियर का कहना था कि यह कैसे संभव है कि ईसा मसीह, ईश्वर भी और ईश्वर की संतान भी? यह विरोधाभास मेरी समझ से परे है।  अगर ईसा मसीह, ईश्वर हैं तो फिर यह कैसे संभव है कि ईश्वर, 9 महीनों तक मां के पेट में रहे और जन्म के बाद वह मां के दूध पर निर्भर रहे।  फिर इस नशवर संसार में 30 वर्षों तक ज़िंदगी गुज़ारने के बाद नरक में चला जाए।  इसाईयों का मानना है कि ईसा को सूली दे दी गई और वे तीन दिनों के लिए नरक चले गए ताकि पूरी मानव जाति के पापों का प्रायश्चित हो जाए।  इसके बाद वे जीवित हो गए।  हेनरी जूनियर ने एक इसाई पादरी से पूछा था कि अगर ईसा मसीह ही ईश्वर या ख़ुदा हैं तो फिर यह बताइए कि जब वे तीन दिनों के लिए मर गए थे तो इस दौरान, संसार का संचालन कौन कर रहा था? हेनरी का कहना है कि पादरी ने मेरे इस सवाल का जवाब संतुष्ट करने वाला नहीं दिया।

इसाई धर्म की शिक्षाओं में पाए जाने वाले विरोधाभास और उससे संबन्धित प्रश्नों के संतोश जनक उत्तर न मिल पाने के कारण हेनरी जूनियर ने 17 वर्ष की आयु से चर्च जाना छोड़ दिया।  हेनरी सत्रह वर्षों के बाद से चर्च नहीं जा रहा था किंतु ईश्वर पर उनकी आस्था बाक़ी थी और वह अधर्मी नहीं हुए थे।  इस घटना के तीन वर्षों के बाद जब हेनरी की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब हो चुकी थी उस समय उनके साथ एक घटना घटी जिसने उनके जीवन को परिवर्तित कर दिया।  इस घटना के बारे में हेनरी जूनियर का कहना था कि बीस साल में मेरी स्थिति इतनी ख़राब हो गई कि मेरे पास घर नहीं रहा।  अब जब मैं बेघर हो गया तो एक बार रात के वक़्त मैं रोटी ख़रीदने के लिए जा रहा था।  रास्ते में मैं पालनहार से यह दुआ करता हुआ जा रहा था कि अगर तू मुझको इस हालत से बाहर निकाल दे तो जिस तरह से तू चाहेगा मैं उसी तरह से तेरी उपासना करूंगा।  हेनरी का कहना था कि मैं नहीं जानता कि यह दुआ थी या कुछ और किंतु मैंने रास्ते में जो कुछ कहा वह यही था।  अगले दिन मैं अपने पुराने मुहल्ले से एक दूसरे मुहल्ले में जा रहा था।  वहां पर एक यूनिवर्सिटी थी।  उस समय मैं इंटर मीडिएट की पढ़ाई छोड़ चुका था।  मैंने मन ही मन सोचा कि क्यों न मैं इस यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर अपनी पढ़ाई जारी रखूं?  इसी विचार के साथ मैंने यूनिवर्सिटी में प्रवेश की परीक्षा में भाग लेने का निर्णय किया और उसमें सफल भी रहा।  कुछ दिनों के बाद एक सुपर मार्केट में मुझको नौकरी मिल गई।  हेनरी का कहना है कि मेरा एक दोस्त था जो बेरोज़गार था।  वह भी काम की तलाश में भटक रहा था।  उसके माता और पिता ने मुझसे कहा था कि अगर हो सके तो हमारे बेटे के लिए कोई काम ढूंढ दो।  हेनरी ने कहा कि मैंने अपने मित्र के माता-पिता से कहा कि क्या आप मेरे रहने का कोई इन्तेज़ाम कर सकते हैं? इसपर उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे लिए एक कमरे का प्रबंध कर सकते हैं जिसमें तुम रह सको।  अमरीकी युवा हेनरी शूलेन जूनियर का कहना था कि लगभग 72 घण्टों के भीतर मेरे दोस्त के लिए काम और मेरे रहने के लिए जगह का प्रबंध हो गया।  इस प्रकार से मैने यूनिवर्सिटी जाना आरंभ कर दिया।

आगे के बारे में हेनरी का कहना था कि जब मैंने यूनिवर्सिटी में जाना आरंभ किया तो वहां पर मेरे कई मित्र बन गए जिसमें कुछ विदेशी भी थे।  हेनरी ने बताया कि वहां पर बांग्लादेश के भी कुछ छात्रों से मेरी दोस्ती हो गई।  मैंने उनसे इस्लाम के बारे में बातचीत की।  वे कहते हैं कि अपने बांग्लादेशी मित्रों से मैं अक्सर इस्लाम के बारे में बात किया करता था।  हेनरी कहते हैं कि जब मैंने उनसे कहा कि तुम अपने धर्म के हिसाब से मुझको ईसा मसीह के बारे में बताओ तो उनका कहना था कि हमारा यह मानना है कि ईसा मसीह, बिना पिता के पैदा हुए थे और उनकी माता हज़रत मरयम थीं।  मेरे मुसलमान दोस्तों ने बताया कि हम इस बात को नहीं मानते कि ईसा मसीह, हमारे गुनाहों की वजह से मारे गए अर्थात मनुष्यों के पापों के प्रायश्चित के लिए ईसा मसीह को मार दिया गया।  बाद में उन्होंने मुझको पढ़ने के लिए क़ुरआन दिया।

हेनरी का कहना है कि मैंने कई महीनों तक इंजील और क़ुरआन का तुल्नात्मक अध्ययन किया।  क़ुरआन पढ़कर मुझको पता चला कि इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार ईश्वर एक है और ईसा मसीह, ईश्वर के दूत हैं।  उनको लोगों के पापों के प्रायश्चित के लिए नहीं मारा गया।  हेनरी कहते हैं कि मैंने महसूस किया कि यह वे बातें हैं जिनको मैं मानता हूं।  मुझको लगा कि अब शायद मुझको मेरे पश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।  इसके बाद से हेनरी ने क़ुरआन पढ़ना आरंभ कर दिया।  यह वास्तविकता है कि पवित्र क़ुरआन एक चमत्कार है जो वास्वतिकता के खोजियों का उचित मार्गदर्शन करता है।  Henry Shulen Junior हेनरी शूलेन जूनियर के साथ भी कुछ एसा ही हुआ और वह वास्तविकता से अवगत होकर मुसलमान हो गए।

वास्तविकता के खोजी हेनरी के लिए केवल मुसलमान होना पर्याप्त नहीं था।  हेनरी ने जब इस्लामी किताबों का अधिक अध्ययन किया तो उन्होंने लोगों से पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही।  इस बारे में उनको कोई ढंग का जवाब नहीं मिलता था।  अब वह पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक थे।  इसी दौरान हेनरी के सामने एक घटना घटी जिसके बाद उसको शिया मुसलमानों के बारे में जानने की उत्सुक्ता बढ़ती गई।  हुआ यह कि एक स्थान पर उन्होंने देखा कि एक मुसलमान धर्मगुरू अपने एक मानने वाले को डांटते हुए कह रहे थे कि तुमने क्यों एक शिया मुसलमान के साथ दोस्ती की? तुम उस शिया के साथ एक कमरे में क्यों रहते हो?  उस धर्मगुरू का कहना था कि शिया काफ़िर हैं और वे अली को पूजते हैं।

हेनरी का कहना है कि जब मैं इस घटना को देख रहा था तो मेरे मन में विचार आया कि पहले यह देखूं कि शिया कौन होते हैं और उनके विचार क्या हैं।  उनका कहना था कि इसी बात की खोज के लिए मैं एक इस्लामी केन्द्र गया जो मस्जिदे अहले बैत में था।  इस केन्द्र का काम लोगों का इस्लामी मार्गदर्शन करना था।  हेनरी कहते हैं कि मैं दो सप्ताहों तक लगातार शिया मुसलमानों के इस्लामी केन्द्र में गया जहां पर मैंने कई प्रकार के प्रश्न पूछे।  उनका कहना है कि इस केन्द्र के ज़िम्मेदार ने अपनी बातों के बहुत ही संतोषजनक उत्तर दिये।  बाद में उन्होंने मुझको पढ़ने के लिए एक पुस्तक दी जिसका नाम था, "देन आई वाज़ गाइडेड"।   मैंने इस पूरी पुस्तक का अध्ययन किया।  इस किताब के लेखक डाक्टर "मुहम्मद तीजानी" ने अपनी बातों को समझाने के लिए विशेष प्रकार की शैली अपनाई थी। उन्होंने क़ुरआन की आयतों के साथ पैग़म्बरे इस्लाम के केवल उन्ही कथनों का उल्लेख किया था जिसे शिया और सुन्नी मुसलमान दोनो ही मानते हैं।  हेनरी का कहना था कि इस किताब को पढ़ने के बाद मुझको वास्तविकता का पता चल गया और मैं शिया मुसलमान बन गया।

हेनरी शूलेन जूनियर के मुसलमान होने का प्रभाव उनकी पत्नी पर भी पड़ा।  इसके बावजूद उन्होंने अपनी पत्नी पर मुसलमान होने के लिए कोई दबाव नहीं डाला।  उनका कहना था कि जब भी मेरी पत्नी इस्लाम के बारे कुछ पूछती तो मैं उससे कहता था कि वे स्वयं इस्लामी किताबों का अध्ययन करें।  इसका परिणाम यह निकला कि काफ़ी अध्ययन करने के बाद हेनरी जूनियर की पत्नी भी शिया मुसलमान हो गईं।  हेनरी जूनियर के मुसलमान होने की कहानी भी बहुत रोचक है।  इस बारे में हेनरी कहते हैं कि एक दिन मैं अपने घर के किचन में था।  मेरी बीवी हाल ही में मुसलमान हुई थी।  रसोई में मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का क्या हुआ? इसका कारण यह था कि मेरी बीवी को यह बताया गया था कि पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद मानो इस्लामी इतिहास ही समाप्त हो गया।  इस सवाल के जवाब में मैंने अपनी पत्नी से फिर कहा कि अब तुम जाकर शिया मुसलमानों के इतिहास के बारे में पढ़ो।  हेनरी का कहना था कि इस घटना के कुछ सप्ताहों के बाद एक दिन मैंने देखा कि मेरी बीबी नमाज़ पढ़ रही है और उसके सामने सिजदागाह रखी हुई है।

इस समय हेनरी शूलेन जूनियर और उनकी पत्नी दोनों ही मुसलमान हो चुके हैं।  इन दोनों को दूसरों के बारे में अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास है।  इन दोनों ने यह फैसला किया है कि वे अपने अनुभवों को दूसरों तक पहुंचाएंगे और संसार के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले मुसलमानों की हर मुमकिन मदद करेंगे।  हेनरी का कहना है कि इस समय अमरीका में एसे भी मुसलमान हैं जिनके पास इतना पैसा भी नहीं है कि वे हिजाब के लिए कपड़ा और नमाज़ के लिए जानमाज़ ख़रीद सकें।  इस प्रकार के लोग किताबें ख़रीदने में भी सक्षम नहीं हैं।  उन्होंने कहा कि मैंने और मेरी बीवी ने मिलकर दो दर्जन से अधिक हिजाब, महिलाओं के लिए भिजवाए हैं।  उनका कहना है  कि इस प्रकार के कामों को हमें करते रहना चाहिए।  हेनरी का कहना है कि हमको नए मुसलमानों के लिए हिजाब, किताबें या अन्य सामान भेजने का प्रबंध करना चाहिए।

 

इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने वरिष्ठ धर्मगुरु और महत्वपूर्ण पदों पर रहकर देश की सेवा करने वाले वरिष्ठ अधिकारी आयतुल्लाह शैख़ मुहम्मद इमामी काशानी के निधन पर शोक संदेश जारी किया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अपने सांत्वना संदेश में लिखा कि बुज़ुर्ग आलिमे दीन मरहूम आयतुल्लाह अलहाज शैख़ मुहम्मद इमामी काशानी रहमतुल्लाह अलैह के इंतेक़ाल पर मैं उनके आदरणीय परिवार, परिजनों, शागिर्दों और चाहने वालों को ताज़ियत पेश करता हूं।

इस्लामी क्रांति के नेता ने आगे लिखा कि यह मुत्तक़ी, परहेज़गार आलिम दीन लंबे अर्से तक इंक़ेलाब से पहले संघर्षरत रहने वाले ओलमा के साथ और इंक़ेलाब के बाद संवेदनशील पदों पर रहकर देश और इस्लामी जुम्हूरी सिस्टम की सेवा में व्यस्त रहे।

आयतुल्लाह ख़ामेनई ने संदेश के आख़िर में लिखा कि उम्मीद है कि उनकी यह सारी नेकियां अल्लाह की बारगाह में मक़बूल होंगी। अल्लाह अपनी रहमत व मग़फ़ेरत मरहूम के शामिले हाल फ़रमाए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अम्मार हकीम ने आयतुल्लाह इमामी काशानी के निधन दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इराक की अलहिक्मा कौमी पार्टी के प्रमुख सैयद अम्मार हकीम ने मजलिस ए खबरगान रहबरी के प्रतिनिधि और तेहरान के इमाम जुमआ आयतुल्लाह इमामी काशानी के निधन दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।

जिसका पाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन

आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद इमामी काशानी के निधन पर, इमाम जुमआ तेहरान और विशेषज्ञों की परिषद के प्रतिनिधि और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता, और इस्लामी गणराज्य की सरकार ईरान और उनके परिवार के प्रतीत अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं:

मैं अल्लाह तआला से दुआ करता हूं कि अल्लाह तआला मरहूम की मफरत फरमाए उनके दरजत को बुलंद फरमाए परिवार वालों को सब्र आता  करें और उनको जवारे अहलेबैत अ.स.में जगह करार दें।

ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने आयतुल्लाह इमामी काशानी के निधन की खबर सुनकर दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने आयतुल्लाह इमामी काशानी के निधन की खबर सुनकर दु:ख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किया हैं।

शोक संदेश कुछ इस प्रकार है:

بسم الله الرحمن الرحیم

إذا ماتَ المؤمن الفقیه ثلُمَ فی ألإسلام ثُلمة لا یَسُدّها شَیء

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम   

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'उन

महान फाकीह, महान आलीम,आलेमे रब्बानी  आयतुल्लाह इमामी काशानी के निधन की खबर से बहुत दु:ख हुआ।

उन्होंने हमेशा राष्ट्र की सेवा करने और लोगों की मदद करने को अपना कर्तव्य समझा और ज्ञान को बढ़ावा देना और दीनी विद्यार्थियों की सेवा करना अपना कर्तव्य समझा वह कौम कि इस्लाह के लिए हमेशा पेश पेश रहे हैं।

मैं तमाम दीनी विद्यार्थियों और मरजय ए इकराम और विद्वानों और परिवार के प्रति अपनी संवेदना  व्यक्त करता हूं और अल्लाह ताला से दुआ करता हूं कि मरहूम के दरजात को बुलंद फरमाए परिवार वालों को सब्र अता करें मरहूम की मगफिरत करें।

सैयद इब्राहिम राईसी

सुरक्षा परिषद की ओर से ग़ज्ज़ा के लिए सहायता को बढ़ाए जाने की मांग की जा रही है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ने एक बयान जारी करके यह मांग की है कि ग़ज़्ज़ा के लिए मानवीय सहायता की मात्रा को बढ़ाया जाए।

इस परिषद ने ग़ज़्ज़ा में जारी ज़ायोनियों के हमलों पर चिंता जताते हुए वहां के मूलभूत प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का आह्वान किया है।  इसी के साथ सुरक्षा परिषद ने उत्तरी ग़ज़्ज़ा में सहायता के इंतेज़ार में खड़े आम फ़िलिस्तीनियों पर ज़ायोनी हमलों पर चिंता व्यक्त की है।

पिछले गुरूवार को उत्तरी ग़ज़्ज़ा में मानवीय सहायता की प्रतीक्षा में खड़े फ़िलिस्तीनियों पर ज़ायोनियों ने हमला कर दिया था जसमें कम से कम 104 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए थे।

हालांकि ज़ायोनियों के इस हमले का बहुत बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है किंतु मुख्य बात यह है कि फ़िलिस्तीनियों पर ज़ायोनियों के हमले रुक नहीं रहे हैं।  ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध ज़ायोनियों की हिंसक कार्यवाही के विरोध में विश्व के कई देशों विशेषकर पश्चिमी देशों में भी प्रदर्शन किये जा रहे हैं