
رضوی
ग़ज़ा के ख़ैमे पर इस्राईली हमले में 11 फ़िलिस्तीनी शहीद
रफ़ह में कल देर रात इस्राईली हमलों में कम से कम 25 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए। इस्राईली सैनिकों ने शरण के लिए लगाए गए ख़ैमों पर भी हमला किया जिसमें 11 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए।
रफ़ह ग़ज़ा पट्टी का एसा शहर है जहां दस लाख से अधिक फ़िलिस्तीनियों ने दूसरे इलाक़ों से जाकर शरण ली है और बहुत से लोग ख़ैमों में रहने पर मजबूर हैं।
ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार यह हमला एक अस्पताल के क़रीब हुआ जिसमें 50 लोग घायल भी हुए हैं।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि इस्राईली विमानों ने ख़ैमों पर सीधे बमबारी की जिनके भीतर फ़िलिस्तीनी परिवार मौजूद थे।
दूसरी ओर ग़ज़ा के इलाक़े ख़ान युनुस में हमास ने झड़पों में तीन इस्राईली सैनिकों को ढेर कर दिया।
इस्राईली मीडिया ने भी 3 सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की है। इस्राईली मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यह सैनिक तब मारे गए जब सैनिक एक इमारत का जायज़ा ले रहे थे कि इसी बीच हमास ने इमारत को धमाके सक उड़ा दिया।
ज़ायोनियों का आर्थिक बहिष्कार किया जाए : रईसी
ईरान के राष्ट्रपति कहते हैं कि अवैध ज़ायोनी शासन को यदि आर्थिक चोट पहुंचाई जाए तो वह अपने बहुत से अपराधों को रोक सकता है।
राष्ट्रपति रईसी ने कहा है कि ज़ायोनियों के अत्याचारों को रूकवाने का व्यवहारिक मार्ग, इस अवैध शासन के साथ आर्थिक संबन्धों का विच्छेद करना है। इराक़ के राष्ट्रपति अब्दुल्लतीफ़ रशीद के साथ मुलाक़ात में ईरान के राष्ट्रपति ने ज़ायोनी अपराधों को रुकवाने का यह मार्ग बताया।
अल्जीरिया में ग़ैस का निर्यात करने वाले देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों के साथ भेंटवार्ता में सैयद इब्राहीम रईसी ने यह बात इराक़ के राष्ट्रपति से कही। इस मुलाक़ात में उन्होंने फ़िलिस्तीन के संदर्भ में कुछ इस्लामी और अरब देशों द्वारा अपना दायित्व न निभाए जाने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि ज़ायोनियों के अपराधों को रुकवाने का व्यवहारिक मार्ग, उसके साथ सारे ही आर्थिक संबन्धों को तोड़ना है।
अपने संबोधन के दूसरे भाग में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, हमेशा ही एक मज़बूत इराक़ का पक्षधर है। उनका कहना था कि हम इराक़ की सुरक्षा को अपनी सुरक्षा समझते हैं। इसको हासिल करने के लिए दोनो राष्ट्रों के युवाओं ने अपना ख़ून दिया है। ईरान के राष्ट्रपति के अनुसार इराक़ के साथ ईरान के संबन्ध इतने अधिक मज़बूत हो जाएं जिससे अवैध ज़ायोनी शासन निराश हो जाए।
शहबाज़ शरीफ़ फिर बने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
पाकिस्तान मुस्लिम लीग एन के नेता शहबाज़ शरीफ़ एक बार फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए हैं।
पाकिस्तान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री के भाई शहबाज़ शरीफ़ ने शनिवार 2 मार्च 2024 को प्रधानमंत्री पद के लिए अपना नामांकन दाखिल किया था। उनके मुक़ाबले में पीटीआई के नेता उमर अय्यूब ख़ान ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी। प्रधानमंत्री पद के चुनाव में शहबाज़ शरीफ़ को 201 वोट मिले जबकि उमर अय्यूब ख़ान को 92 वोट हासिल हुए। इस प्रकार से शहबाज़ शरीफ़ के हाथों में एक बार फिर पाकिस्तान की कमान आ गई है।
सोमवार को शहबाज़ शरीफ़, पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। इससे पहले भी शहबाज़ शरीफ अप्रैल 2022 से अगस्त 2023 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पद पर रह चुके हैं।
याद रहे कि पाकिस्तान में पिछले दिनों आम चुनाव हुए थे। इन चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया था। बाद में नवाज़ शरीफ़ के दल ने पीपीपी और एमक्यूएम के साथ गठबंधन बनाकर सरकार बनाने का फैसला किया था। गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए शहबाज़ शरीफ़ मैदान में जबकि उनके मुक़ाबले में सुन्नी इत्तेहा काउंसिल के उम्मीदवार उमर अय्यूब ख़ान थे
तालेबान के शिष्टमण्डल ने किया चाबहार का दौरा
तालेबान ने ईरान की चाबहार बंदरगाह पर अपने आर्थिक प्रतिनिधित्व को खोलने की मांग की है।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार तालेबान के वित्त मंत्रालय ने एक बयान जारी करके ईरान की चाबहार बंदरगाह पर अपने आर्थिक प्रतिनिधित्व की उपस्थति की मांग की है। यह बात तालेबान के आर्थिक प्रतिनिधिमण्डल ने ईरानी राष्ट्रपति के सलाहकार एवं मुक्त तथा आज़ाद क्षेत्रों की परिषद के सचिव के साथ मुलाक़ात में कही।
ईरान के दक्षिण पूर्व के सीस्तान व बलोचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह की यात्रा पर आए तालेबान के वित्तीए एवं आर्थिक प्रतिनिधिमण्डल ने ईरानी अधिकारियों के भेंट करके परिवहन श्रंखला को चालू करने और अफ़ग़ानिस्तान के व्यापारियों के लिए आसानी पैदा करने के बारे में विचार-विमर्श किया।
इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान के लिए ईरान के राजदूत तथा अफ़ग़ानिस्तान के मामलों में ईरान के राष्ट्रपति के विशेष दूत हसन काज़मी क़ुम्मी ने भी तालेबान की ओर से ईरान के साथ व्यापारिक संबन्धों को बढ़ाने की इच्छा का उल्लेख किया था। उन्होंने बताया कि तालेबान की सराकर इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ वित्तीय एवं व्यापारिक संबन्धों को बढ़ाने की इच्छुक है।
काज़मी क़ुम्मी का कहना था कि चाबहार बंदरगाह पर तालेबान के व्यापारिक प्रतिनिधिमण्डल की उपस्थति के बाद यहां पर प्राइवेट सेक्टर में शीध्र ही पूंजीनिवेश होने लगेगा।
उल्लेखनीय है कि ईरान की चाबहार बंदरगाह, अफ़ग़ानिस्तान और केन्द्रीय एशिया के देशों के लिए स्वतंत्र पानी तक पहुंचने का सबसे नज़दीक रास्ता है।
आयतुल्लाह इमामी काशानी का निधन
नेतृत्व विशेषज्ञों की सभा के प्रतिनिधि और तेहरान के अंतरिम इमाम जुमा आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी का एक घंटे पहले दिल का दौरा पड़ने से घर पर निधन हो गया।उनका जन्म 10 मेहर 1310 को काशान मे हुआ था और वह शहीद मोतहरी हाई स्कूल के प्रमुख थे और इस्लामी क्रांति की जीत के बाद उन्होंने इमाम खुमैनी के आदेश पर कई पदों पर कार्य किया था.
दोस्तों के अधिकार
दोस्तो के हुक़ूक़, वह बुनियादी मसला है जिसके ज़रिये दोस्ती को मज़बूत से मज़बूत तर बनाया जा सकता है, मौला ए काऍनात (अ) के कलाम में दोस्तों के माद्दी व मानवी हुक़ुक़ के बयान के साथ उनकी अदायगी की भी ताईद की गयी है, चुनान्चे अमीर अल मोमिनीन (अ) इमामे हसन (अ) को तहरीर किये गये ख़त में इरशाद फ़रमाते हैं :
(احمل نفسک)) यानी “अपने नफ़्स को अपने भाई के बारे में क़ते ताअल्लुक़ के मुक़ाबले में ताअल्लुक़ जोड़ने, रूगरदानी के मुक़ाबले में मेहरबानी, बुख़्ल के मुक़ाबले में अता, दूरी के मुक़ाबले में क़ुर्बत, शिद्दत के मुक़ाबले में नर्मी और जुर्म के मुक़ाबले में माज़ेरत पर आमादा करो, गोया तुम उसके ग़ुलाम और वह तुम्हारा आक़ा व वली ए नेमत है।”
हज़रत अमीरल मोमिनीन (अ) के इस क़िस्म के फ़रामीन जिनमें इंसान को दोस्तों से हुस्ने सुलूक और उनकी ग़लतियों से दरगुज़र करने की ताकीद की गयी है दर अस्ल उन मवारिद के लिये हैं जिनमें दो दोस्तों के बहमी ताल्लुक़ात का जायज़ा लिया गया है, यानी दोस्त आपस में किस तरह का बर्ताव करें और कौन कौन सी बातों का ख़्याल रख़े। मज़कूरा फ़रामीन के अलावा क़ुछ ऐसे इरशादात भी हैं जिनमें दोस्तों की ग़ैर मौजूदगी या दूसरों के साथ दोस्तों के सिलसिले में बर्तावों का अंदाज़ बताया गया है। जैसा कि अमीरल मोमिनीन (अ) इरशाद फ़रमाते हैं:
(لا یکون الصدیق) यानी “दोस्त उस वक़्त तक दोस्त नही हो सकता जब तक तीन मौक़ों पर दोस्त के काम न आये, मुसीबत के मौक़े पर, ग़ैर मौजूदगी में और मरने के बाद ”
एक मक़ाम पर फ़रमाते हैं :
“दोस्त वह होता है जो ग़ैर मौजूदगी में भी दोस्ती निभाये और जो तुम्हारी परवाह न करे वह तुम्हारा दुश्मन है। ”
दोस्तो के हुक़ूक़ का एक तसव्वुर हमारे यहाँ सब साँझा क़िस्म का पाया जाया है यानी दोस्त के हुक़ूक़ व मफ़ादात को इस क़िस्म का मुशतरक अम्र समझा जाता है जिसमें दूसरे को दख़ालत का पूरा पूरा हक़ हासिल होता है। और बाज़ औक़ात इस क़िस्म के तसव्वुर के नतीजे में दोस्त के हुक़ूक़ दोस्त के हाथो पामाल होते हैं। अमीरल मोमिनीन (अ) हुक़ूक़ के इस नाजायज़ इस्तेमाल से मना फ़रमाते है:
(.لا تضیعن حق اخیک ..) यानी “ बाहमी रवाबित व दोस्ती की बुनियाद पर अपने किसी भाई की हक़ तल्फ़ी न करो क्योकि फिर वह भाई कहाँ रहा जिसका तुमने हक़ तल्फ़ कर दिया। ”
दोस्तो के बारे में लोगों की बातों पर कान न धरने के सिलसिले में आप (अ) फ़रमाते है :
(.ایها الناس من عرف من اخیه .)यानी “ ऐ लोगों अगर तुम्हे अपने किसी भाई के दीन की पुख़्तगी और अमल की दुरुस्तगी का इल्म हो तो फिर उसके बारे में लोगों की बातों को अहमियत न दो। ”
दोस्त और दोस्ती की हदें
दोस्त और दोस्ती के बे शुमार फ़वायेद और अहमियत के पेशे नज़र बहुत से लोग दोस्ती में किसी क़िस्म की हुदूद व क़ुयूद के पाबंद नही होते, और दोस्त के सामने अपने सब राज़ बयान कर देते हैं लेकिन मकतबे इमाम अली (अ) में दोस्ती इंतिहाई गहरी व पाकीज़ा होने के बावजूद एक दायरे में महदूद है। जिसे हदे एतिदाल भी कहा जाता है। चुनान्चे इमामे अली (अ) फ़रमाते है :
(احبب حبیبک هونا ما .) यानी “ दोस्त से एक महदूद हद तक दोस्ती करो क्योकि मुम्किन है कि वह एक दिन तुम्हारा दुश्मन हो जाये और दुश्मन से दुश्मनी बस एक हद तक ही रखो शायद वह किसी दिन तुम्हारा दोस्त बन जाये। ”
अमीरल मोमिनीन (अ) के इस फ़रमान में ये हिकमत पोशीदा है कि इंसान अपने राज़ का ग़ुलाम होता है, अगर इंसान किसी दोस्त के सामने अपने तमाम राज़ बयान कर दे और ज़माने के नशेब व फ़राज़ दोस्त को दुश्मन बना दें तो इंसान ख़ुद ब ख़ुद अपने दुश्मन का ग़ुलाम बन जायेगा।
हमारे मआशरे में दोस्त सिर्फ़ इन्ही अफ़राद को तसव्वुर किया जाता है जिनसे इंसान बज़ाते ख़ुद दोस्ती उस्तुवार करता है। जबकि अमीरल मोमिनीन (अ) दोस्तों के दायरे को मज़ीद वुसअत दे कर इंसान के हलक़ ए अहबाब में दो क़िस्म के दोस्तों का इज़ाफ़ा फ़रमाते हैं :
यानी “ तुम्हारे दोस्त भी तीन तरह के हैं और दुश्मन भी तीन क़िस्म के हैं। तुम्हारा दोस्त, तुम्हारे दोस्त का दोस्त और तुम्हारे दुश्मन का दुश्मन तुम्हारे दोस्त हैं…… ”
आम तौर पर हम दोस्तों की उन दो क़िस्मों से ग़ाफ़िल रहते हैं जिसके नतीजे में बाज़ औक़ात क़रीबी दोस्तों से हाथ धोना पड़ते हैं।
दोस्तों के लिये मुफ़ीद और नुक़सान देह चीज़े
दोस्तों के हुक़ूक़ की अदायगी ही दर हक़ीक़त दोस्ती को मज़बूत और पायदार करती है लेकिन उसके अलावा भी क़ुछ ऐसे असबाब व अवामिल हैं जो दोस्ती के रिश्ते के लिये निहायत मुफ़ीद शुमार होते हैं जैसा कि अमीरल मोमिनीन (अ) फ़रमाते हैं :
(البشاشه حباله الموده) “ कुशादा रुई मोहब्बत का जाल है। ”
इसी तरह आप फ़रमाते है:
नर्म ख़ूँ, क़ौम की मुहब्बत को हमेशा के लिये हासिल कर लेता है।
इसी तरह जहाँ हुक़ूक़ की अदायगी में कोताही के नतीजे में दोस्ती जैसा मज़बूत रिश्ता कमज़ोर हो जाता है वही कुछ और चीज़ों की वजह से उसमें दराड़ पड़ जाती हैं चुनान्चे अमीरल मोमिनीन (अ) फ़रमाते हैं :
(حسد الصدیق من سقم الموده) यानी “ दोस्त का हसद करना दोस्ती की ख़ामी है। ”
या हज़रत (अ) का ये फ़रमान
(من اطاع الواشی ضیع الصدیق) यानी “ जो चुग़ुलख़ोर की बात पर एतिमाद करता है वह दोस्त को खो देता है ”
एक और मक़ाम पर दोस्ती के लिये नुकसान देह आमिल की जानिब इशारा फ़रमाते हैं :
“ जिस ने अपने मोमिन भाई को शर्मिन्दा किया समझो कि उससे जुदा हो गया। और दोस्ती के सिलसिले में मौला ए काऍनात (अ) के सुनहरे कलिमात को बे तरतीब से जोड़ कर दोस्त और दोस्ती के ख़्वाहिशमंद अफ़राद की ख़िदमत में इस उम्मीद बल्कि इस यक़ीन के साथ पेश कर रहे हैं कि अगर हम उन राहनुमा उसूलो को अपने लिये नमून ए अमल क़रार दें तो यक़ीनन अमीरे काऍनात (अ) के इस फ़रमान की अमली तसवीर बन सकते हैं जिसमें आप (अ) फ़रमाते हैं :
(خالطوا الناس مخالطه ان متم..) “ लोगों के साथ इस तरह से रहो कि अगर मर जाओ तो तुम पर रोयें और अगर ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे मुश्ताक़ हों। ”
घर परिवार और बच्चे -1
इस साप्ताहिक कार्यक्रम में बच्चों के प्रशिक्षण, उनके प्रति माता-पिता के दायित्व, प्रशिक्षण के लिए उचित वातावरण और माता-पिता के प्रति बच्चों की ज़िम्मेदारी के विषयों पर चर्चा की गई है।
जेम्स ए ब्रेवर का कहना है कि भाग्यशाली मां-बाप वह हैं जिनकी अच्छी संतान हो और भाग्यशाली संतान वह है जिसके अच्छे मां-बाप हों।
जेम्स ए ब्रेवर का कहना है कि भाग्यशाली मां-बाप वह हैं जिनकी अच्छी संतान हो और भाग्यशाली संतान वह है जिसके अच्छे मां-बाप हों।
बच्चों का पालन-पोषण और मां बाप से उनके संबंधों का विषय मानव जीवन में हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है। बल्कि यह कहना उचित होगा कि पालन-पोषण मानव समाज की सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तिगत गतिविधि है जिसका परिवार और समाज पर सबसे गहरा प्रभाव पड़ता है। पालन-पोषण द्वारा ही मां-बाप व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को आने वाली नस्लों तक हस्तांतरित करते हैं। मां-बाप अपने बच्चों का पालन-पोषण किस प्रकार करते हैं और उनके अपने बच्चों के साथ संबंध कैसे हैं, इसका उनके व्यक्तिगत और विशेष रूप से सामाजिक जीवन पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि बच्चों के लालन पालन और उनके विकास को मां-बाप और संतान के बीच संबंधों के परिदृश्य में देखा जाता है।
और यह संबंध बच्चों के व्यवहार, आचरण एवं मानसिकता की रूपरेखा तैयार करने में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं।
लेकिन तेज़ी से बदल रहे आज के आधुनिक दौर में कि जब भौगोलिक फ़ासले सिमटते जा रहे हैं और सामाजिक ताने बाने का आधार और उसकी रूपरेखा नए नए रूप धारण कर रही है, इस रिश्ते में बड़ी जटिलताएं उत्पन्न हो रही हैं। समाज में टेक्नॉलॉजी के विस्तार और मानव जीवन में उसकी बढ़ती भूमिका ने इंसानों के रिश्तों पर गहरा प्रभाव छोड़ा है और अतीत की तुलना में इंसान की जीवन शैली में जितना परिवर्तन आया है उतना ही उसके रिश्तों में जटितलताएं उत्पन्न हुई हैं। इससे दुनिया का सबसे पवित्र, भावनात्मक, अटूट, प्राकृतिक एवं ख़ूनी रिश्ता, मां-बाप और संतान के बीच का रिश्ता भी अछूता नहीं रहा है। आज के समय की यह एक समस्या है, जिसका अनुभव लगभग हर कोई किसी न किसी प्रकार से अपने जीवन में करता है। इसलिए अगर इसकी उपेक्षा की जाती रही तो इंसान को उसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। इसी के साथ इस वास्तविकता से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मानव समाज में होने वाला परिवर्तन जीवन का ही एक भाग है जिसे टाला नहीं जा सकता। यहां सवाल यह उठता है कि फिर इस सबसे पवित्र रिश्ते में आने वाली समस्याओं का हल क्या है? इस रिश्ते के शरीर पर पड़ने वाले घावों का उपचार कैसे करें? इस रिश्ते पर जमने वाली धूल को कैसे साफ़ करें ताकि मां-बाप और संतान दोनों ही इसकी मिठास, इसकी चाश्नी और इसकी पवित्रता का वैसे ही अनुभव कर सकें जैसा ईश्वर ने उसे बनाया है। विश्व भर के बड़े बड़े विद्वानों, मनोवैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों ने इस समस्या के अनेक समाधान पेश किए हैं। इस सबके बीच सबसे बेहतर एवं प्रभावशाली समाधान उस शैली को माना गया है जिसकी शुरूआत बच्चों से नहीं बल्कि पति-पत्नि के जीवन के तौर तरीक़ो और उनके मां-बाप बनने से पहले की मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थिति से होती है।
आज अधिकांश परिवारों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वे अपने बच्चों को संस्कारित कैसे बनाएं और उनका सही पालन-पोषण कैसे करें और इसके लिए किन मानदंड एवं सिद्धांतों का पालन करें। अधिकांश मां-बाप यह शिकायत करते नज़र आते हैं कि हम अपने बच्चों को हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं और हर तरह से उनका ख़याल रखते हैं लेकिन इसके बावजूद बच्चे उनकी बात नहीं सुनते। दूसरी ओर बच्चों को यह आम शिकायत है कि मां-बाप तरह तरह के बहानों से उन पर अपने विचार थोपते हैं और उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप करते हैं। यह समस्या कभी कभी तो इतनी जटिल हो जाती है कि दोनों ही पक्ष मानसिक दबाव का शिकार हो जाते हैं और बहुत ही ख़तरनाक क़दम उठा लेते हैं।
यह विषय इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि आम तौर पर हर कोई अपने जीवन में दो आयामों से इसका अनुभव करता है, सबसे पहले इंसान संतान होने का अनुभव करता है और अपनी आयु के दूसरे चरण में वह मां-बाप होने का अनुभव करता है।
इसलिए इंसान अपने जीवन के दूसरे चरण में प्रवेश करने के बाद अगर वही ग़लतियां दोहराएगा जो उसके मां-बाप ने की थीं और जिनका अनुभव उसने संतान के रूप में किया था तो यह सिलसिला जारी रहेगा और इस समस्या का कभी समाधान नहीं निकल पाएगा। इसलिए इस हम सबसे पहले इस समस्या के समाधान के रूप में संतान के सही पालन-पोषण का उल्लेख करेंगे और उसके बाद मां-बाप और संतान के द्विपक्षीय संबंधों की चर्चा करेंगे।
यहां हम सबसे पहले इस सवाल का उत्तर देने की कोशिश करेंगे कि पालन-पोषण किया है?
आम तौर से पालन-पोषण या बाल संस्कार का मतलब है शिशु के जन्म से लेकर उसके व्यस्क होने तक उसे शिक्षित एवं संस्कारित करना, उसका लालन पालन करना और उसकी भौतिक एवं आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करना।
अंग्रेज़ी में पालन पोषण के लिए पैरेंटिंग शब्द का प्रयोग किया जाता है, जो लैटिन शब्द परेरे से लिया गया है, इसका मतलब होता है आगे बढ़ाना या उत्पादन करना।
इस्लामी शिक्षाओं में इसके लिए तालीमो तरबीयत शब्द का प्रयोग किया जाता है, इससे तात्पर्य है किसी को शिक्षित करना, उसका लालन पालन करना एवं संस्कार व नैतिकता सिखाना।
इस परिभाषा में कुछ बिंदु समान हैं और कुछ भिन्न। समान बिंदु यह है कि बच्चों की देखभाल करना और उन्हें संस्कार सिखाना पालन-पोषण का अनिवार्य भाग है। यहां पर ध्यान योग्य बिंदु यह है कि सामान्य परिभाषा में पालन-पोषण को शिशु के जन्म से उसके व्यस्क होने तक सीमित कर दिया गया है, जबकि इस्लामी शिक्षाओं में तालीमो तरबियत को जन्म और व्यस्क होने से सीमित नहीं किया गया है। इस्लामी शिक्षाओं में यह प्रक्रिया गर्भ धारण से पहले ही शुरू हो जाती है और गर्भावस्था के विभिन्न चरणों के दौरान और शिशु के जन्म के बाद उसके मां-बाप या अभिभावकों द्वारा हमेशा जारी रहती है, यहां तक कि वह इंसान ख़ुद मां-बाप के रूप में अब यह ज़िम्मेदारी अपने कांधों पर उठाता है।
लेकिन आधुनिक दौर में तालीमो तरबियत या पालन-पोषण की यह व्यापक प्रक्रिया इस्लामी शिक्षाओं से ही विशेष नहीं रह गई है। मेडिकल साइंस में क्रांतिकारी प्रगति और नई नई मशीनों एवं उपकरणों द्वारा गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में शिशु के विकास और उसके सुनने एवं समझने की योग्यता और उसके द्वारा विभिन्न प्रतिक्रियाएं देने की बात सामने आने के बाद, मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्री और बाल विशेषज्ञ अब इस बात पर बल देते हैं कि मां-बाप को चाहिए कि गर्भावस्था में शिशु की देखभाल के अलावा उसे संस्कारित बनाने और शिक्षित करने की प्रक्रिया शुरू कर दें। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि 1400 वर्ष पूर्व इस्लाम ने पालन-पोषण के संबंध में जो व्यापक दृष्टिकोण दिया था आज साइंस ने उसके केवल कुछ ही आयामों से पर्दा उठाया है। इस बात को दृष्टि में रखते हुए इस कार्यक्रम श्रंखला में जहां हम अपने विषय की प्रस्तुति के लिए संबंधित विज्ञान और आधुनिक अनुसंधानों का सहारा लेंगे वहीं इस्लामी शिक्षाओं से भी लाभ उठायेंगे।
ईरान भ्रमण- 1 ( किरमानशाह )
इस कार्यक्रम में हम ईरान के पर्यटन क्षेत्रों से आपको अवगत कराएंगे और ईरान के सुन्दर दृश्यों की आपको सैर कराएंगे।
इस नई कार्यक्रम श्रंखला को किरमानशाह प्रांत और किरमानशाह शहर से शुरु करते हैं। आपने निश्चित रूप से सुना होगा कि नवम्बर 2017 में किरमानशाह में भीषण भूकंप आया था और इस प्रांत के कुछ शहरों को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचा था किन्तु आपको जानकार यह हैरानी होगी कि यह ईरान के प्राचीन और सुन्दर शहरों में से एक है।
किरमानशाह इतना अधिक प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध है कि दुनिया भर के लोग यहां की ऐतिहासिक धरोहरों को देखने और यहां के मनोरम दृश्य से आनंदित होने के लिए आते हैं। किरमानशाह में बहुत अधिक प्राकृतिक और मनोरम दृश्य हैं। जो पर्यटक किरमानशाह आता है वह प्रफुल्लित हो जाता है।
जब भी किरमानशाह का नाम आता है तो हमारे मन में क्या चीज़ उभर कर सामने आती है? यहां के प्रसिद्ध चावल के आंटे के बिस्कुट, ताक़े बुस्तान और बीस्तून का नाम ही मन में आते हैं? किरमान शाह जाते ही पहली नज़र बीस्तून नामक शिलालेख पर पड़ती है। यह शिलालेख फ़रहाद तराश का है। यह शिलालेख बहुत प्रसिद्ध है और पत्थर का सबसे बड़ा शिलालेख है। जब इस शिलालेख को देखते हैं तो पर्यटक इसके वैभव से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
किरनमानशाह का बीस्तून इलाक़ा ही दुनिया की प्रसिद्ध धरोहरों में पंजीकृत है। इसमें ज़बरदस्त और अनेक प्रकार की डिज़ाइनें मौजूद हैं। बीस्तून की पहाड़ी पर एक ख़ुदायाने नामक स्थान है। कहा जाता है कि यह स्थान दारयूश हख़ामनेशी के आदेश पर पत्थर पर लिखा गया गया है। बताया जाता है कि यह शिलालेख अकीदी कीलाक्षरी, एलामी और प्राचीन पारसी लिपी में लिखे हुए हैं। यह शिलालेख महान दारयूश की वैभवता का गीत गाता है।
हरकूल की मूर्ति की भी अनदेखी नहीं की जा सकती जो इस क्षेत्र की अद्भुत कलाकृतिया में से एक है। यह बहुत ही सुन्दर मूर्ति है जिसे बड़ी फ़ुर्सत से बनाया गया है । इस मूर्ति के हाथ में एक जाम है जो उसकी सुन्दरता को चार चांद लगा देता है।
बीस्तून की पहाड़ी, शीरीन और फ़रहाद की प्रेम कथा की कहानी सुनती है। शीरीन अरमनी शहज़ादी थी। दुनिया का कोई भी इंसान होगा जिसने फ़रहाद और शीरीन की प्रेम कथा न सुनी हो। बीस्तून क्षेत्र में प्रविष्ट होने से पहले आपको बीस्तून की पहाड़ियों का सामना करना पड़ता है। यह इतना सुन्दर पहाड़ है कि दूर से ही लोग उसको देखते रह जाते हैं।
यह पहाड़ स्थानीय लोगों विशेषकर पर्यटकों के निकट अपना विशेष महत्व रखता है। इस सुन्दर कांम्लेक्स की तरह एक अन्य सुन्दर चीज़ शाह अब्बासिया कारवांसराए है। इस कारवां सराए को चार ऐवान की शैली पर बनाया गया है। अलबत्ता यह कहा जा सकता है कि इस कारवांसरा में कुछ वर्ष पहले मरम्मत हुई और अब इस पुनर्निमार्ण की वजह से यह बीस्तून लाले नामक एक भव्य होटल में परिवर्तित हो गया है।
बीस्तून के बाद, किरमानशाह से कुछ किलोमीटर की दूरी पर जब हम किरमानशाह में प्रविष्ट होते हैं जो किरमानशाह में प्रविष्ट होने से पहले जो चीज़ हमें सबसे पहले नज़र आती है वह प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र ताक़े बुस्ताने है। ताक़े बुस्ताने, पत्थरों पर बनी डिज़ाइनों और शिलालेखों का एक समूह है। इस समूह में पत्थर की सुन्दर डिज़ाइनों से शिकार, संगीत यंत्र बजाते हुए लोग, राजा के सिर पर मुकुट लगाने जैसे सुन्दर दृश्य देखने को मिलते हैं।
ताक़े बुस्तान में वास्तव में अर्धचंद्र की तरह तो ताक़ शामिल है जिनमें से एक दूसरे से छोटा है। इन दोनों छोटे ताक़ों के सामने एक छोटी सी झील बहती हुई नज़र आती है जो पहाड़ से निकलने वाले सोते से उत्पन्न हुई है। वहां पर बड़ी संख्या में वृक्ष भी देखे जा सकते हैं जिन्होंने इस स्थान की सुन्दरता को चार चांद लगा दिया है। बताया जाता है कि यह मनोरंजन स्थल महान ख़ुसरू परवेज़ का शिकार स्थल था।
आप कल्पना करें कि जब आप पैदल चल रहे हैं या किसी स्थान से आपका गुज़र हो रहा हो तो आपकी को भुने हुए कबाब की सुगंध आए। दंदे कबाब, हमेशा से किरमानशाह की यात्रा पर आने वाले पर्यटकों की सेवा के लिए तत्पर रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में बने पार्क जो पर्वातांचल में स्थित हैं, ताक़े बुस्तान के उत्तरी भाग में जबकि दूसरा हिस्सा क्षेत्र के मनोरंजन स्थल से मिला हुआ है। किरमानशाह में बहुत सी सुन्दर इमारतें भी हैं जिनका संबंध प्राचीन कालों से रहा है। यह इमारातें क़ाजारी और पहला शासन श्रंखला के काल से संबंधित हैं। इन्हीं सुन्दर इमारतों में से एक मस्जिदे शाफ़ई है जो बहुत ही सुन्दर और देखने योग्य है। यह ईरान की सुन्दर मस्जिदों में से एक है।
मस्जिदे शाफ़ई को तुर्की की मस्जिदों की वास्तुकला शैली पर बनाया गया है जिसकी ऊंची मीनारों से शहर की सुन्दरता में चार चांद लग गए हैं। इस सुन्दर मस्जिद का दूसरा छोर जिसमें सुन्नी समुदाय के लोग नमाज़ पढ़ते हैं, किरमानशाह के बाज़ार से मिलता है।
किरमानशाह का बाज़ार 150 साल से अधिक साल पुराना है। विभिन्न प्रकार के कारवांसराए, मस्जिदें, व्यायाम स्थल और पारंपरिक स्नानगृह, प्राचीन काल से ही किरमानशाह की एतिहासिक और सांस्कृतिक प्राचीनता की गाथा सुनाते हैं। किरमानशाह का बाज़ार जो अपने समय में मध्यपूर्व का सबसे बड़ा बाज़ार था, मनमोहक गतिविधियों, उत्पादन तथा सांस्कृतिक व सामाजिक कामों का केन्द्र समझा जाता था। इस प्रसिद्ध बाज़ार में मुख्य रूस से ज़रगरों के बाज़ार, इस्लामी बाज़ार और तोपख़ाना बाज़ार की ओर संकेत किया जा सकता है।
इस बाज़ार में आधुनिक वास्तुकला और प्राचीन वास्तुकला के मिश्रण को भलि भांति देखा जा सकता है और यह इतना सुन्दर है कि पर्यटक पहली ही नज़र में खिंचा चला आता है। वर्तमान समय में भी इस बाज़ार में विभिन्न प्रकार के वस्त्रों की बुनाई, हस्तउद्योग, दरी की बुनाई इत्यादि देखा जा सकता है और यह सब किरमानशाह की स्थानीय कला का जीता जागता नमूना पेश करती हैं।
इसी प्रकार यह बाज़ार पर्यटकों के लिए अपने सगे संबंधियों के लिए उपहार ले जाने का मुख्य केन्द्र है। पर्यटक यहां से, काक नामक बिस्कुट, खजूर वाला बिस्कुट, विभिन्न प्रकार की स्थानीय मिठाइयां और इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की , दरियां, वस्त्र और अनेक प्रकार की वस्तुएं अपने सगे संबंधियों के लिए उपहार स्वरूप ले जा सकते हैं।
इसी प्रकार किरमानशाह के मुआवेनुल मुल्क नामक इमामबाड़े की इसारत को देखे बिना आपका क्षेमण अधूरा है। यह इमामबाड़े क़ाजारी शासन काल में बना है। अर्थात इमामबाड़े की इमारत क़ाजारी शासन काल से संबंधित है। तकियागाह या इमामबाड़े में टाइल का काम इस कला अद्वितीय नमूना पेश करता है। इस इमामबाड़े का प्रांगण बहुत बड़ा है जिसके मध्य में एक सुन्दर सा हौज़ बना हुआ है। इस प्रांगड़ के पश्चिमी छोर में एक हाल है जिसमें आईनाकारी का बेहतरीन नमूना पेश किया गया है। यह हाल हुसैनिया या इमामबाड़े के नाम से प्रसिद्ध है। यह हाल सुन्दर शिलालेखों और डिज़ाइनों से सुसज्जित हैं जिनका संबंध मुज़फ़्फ़रुद्दीन शाह के काल से है। इस तकीयेगाह या इमामबाड़े का लिपी और किताबत संग्राहलय देखने योग्य और अद्वितीय है।
यह कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति किरमानशाह आए और यहां के नीले और स्वच्छ पानी को न देखे तो उसने कुछ भी नहीं देखा। किरमानशाह में कई छोटी ब़ड़ी नदियां बहती हैं जिसके स्वच्छ और नीले पानी पर्यटकों को अपनी ओर सम्मोहित करते हैं। किरमानशाह की नीलूफ़र नामक झलि देखने में बहुत ही सुन्दर लगती हैं क्योंकि इन झलियों में सुन्दर नील कमल के फूल मार्गी के मौसम में झील के सतह का बहुत बड़ा भाग इन फूलों की कलियों और पत्तियों से ठक जाता है।
आवासीय क्षेत्रों पर ज़ायोनियों के हमले में कई फ़िलिस्तीनी शहीद
ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने ग़ज़्ज़ा के आवासीय क्षेत्र पर हमला करके कई फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया।
मेहर समाचार एजेन्सी के अनुसार ज़ायोनी युद्धक विमानों ने शनिवार की सुबह ग़ज़्ज़ा पट्टी के दैरुलबलह नामक आवासीय क्षेत्र पर बमबारी की। इस बमबारी में 6 फ़िलिस्तीनी शहीद हुए जबकि कई अन्य घायल हो गए। इससे पहले भी ज़ायोनियों की ओर से दैरुलबलह पर बमबारी की जा चुकी है। कुछ अन्य सूत्रों ने ग़ज़्ज़ा में अलग-अलग क्षेत्रों में ज़ायोनी सैनिकों और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं के बीच गंभीर झड़पों की सूचना दी है। क़िलक़ीलिए में दोनो पक्षों के बीच झड़पें जारी हैं।
इससे पहले ज़ायोनी सैनिकों ने उन फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार किया था जो मानवीय सहायता की प्रतीक्षा में खड़े थे। इस हमले में लगभग 112 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए जबकि 750 से अधिक घायल बताए जा रहे हैं।
ज़ायोनियों के हमलों में शहीद और घायल होने वाले हज़ारों फ़िलिस्तीनियों के अतिरिक्त कई ग़ैर सरकारी संगठन और संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेषज्ञ इस बात की आशंका कई बार जता चुके हैं कि पिछले पांच महीने से जारी जंग की वजह से ग़ज़्ज़ा में हज़ारों फ़िलिस्तीनियों को भुखमरी का सामना है। हालांकि राष्ट्रसंघ की रिपोर्ट तो इनकी संख्या लाखों में बता रही है।
अवैध ज़ायोनी शासन जहां एक ओर फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार कर रहा है वहीं पर वह दूसरी ओर राहत सामग्री में बाधा बनकर वह फ़िलिस्तीनियों को भूखों मारना चाहता है।
कई इस्राईली सैन्य ठिकानों पर हिज़्बुल्लाह के ताबड़तोड़ मिसाइल हमले
ग़ज़ा युद्ध के दैरान, जवाबी कार्यवाही करते हुए हिज़बुल्लाह ने 1948 के ज़ायोनी शासन के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में ज़ायोनी सैन्य ठिकानों पर कई बड़े हमले किए हैं।
लेबनान के अल-मयादीन टेलीविज़न ने हिज़बुल्लाह के एक संक्षिप्त बयान के हवाला से कहा है कि इस्लामी प्रतिरोधी संगठन ने शुक्रवार देर रात ख़िरबित मार बेस पर सतह से सतह पर मार करने वाले दो फ़लक मिसाइल दाग़े जो सटीक रूप से निर्धारित लक्ष्यों पर जाकर लगे।
हिज़बुल्लाह लड़ाकों ने कफ़र हिल्स में रुवैसत अल-आलम सैन्य ठिकाने में इस्राईली सैनिकों की एक सभा को भी निशाना बनाया, जिसमें कई सैनिकों के हताहत होने के समाचार हैं।
इसके अलावा, लेबनानी प्रतिरोधी समूह ने अल-मेनारा सैन्य स्थल के पास तैनात ज़ायोनी बलों को निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप कई सैनिक घायल हो गए।
हिज़्बुल्लाह ने अन्य सैन्य ठिकानों पर भी रॉकेट बरसाए और ज़ायोनी सैनिकों में दहशत बैठा दी।