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मोरक्को में हसन द्वितीय की मस्जिद
मस्जिद हसन द्वितीय की मीनार जो 210 मीटर लंबी है और दुनिया में सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है, मोरक्को में Daralbyza या कैसाब्लांका के तटीय शहर में है'और उसका ऐक हिस्सा पानी पर स्थित है।
ईरान ने एस-300 का सफल टेस्ट किया + वीडियो
ईरान के केन्द्रीय मरुस्थलीय क्षेत्र में मीज़ाईल रक्षा तंत्र एस-300 का सफलतापूर्वक टेस्ट हुआ और यह तंत्र सेना के हवाले हो गया।
रूस से ख़रीदे गए इस रक्षा तंत्र का शनिवार को ऑप्रेश्नल टेस्ट किया गया ताकि इसकी उपयोगिता की समीक्षा हो सके। टेस्ट के दौरान इस तंत्र ने ड्रोन और बलिस्टिक मीज़ाईल सहित विभिन्न मीज़ाइलों को मार्ग में रोक कर ध्वस्त किया।
ख़ातमुल अंबिया एयर डिफ़ेंस बेस के कमान्डर ब्रिगेडियर फ़रज़ाद इस्माईली ने शनिवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि एस-300 डिफ़ेन्स सिस्टम, मिरसाद और तलाश जैसे ईरान के शक्तिशाली डिफ़ेन्स तंत्र की तरह सेना के हवाले हुआ ताकि देश की वायु सीमा ज़्यादा से ज़्यादा सुरक्षित रहे।
उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि दुश्मन की ललकार का जवाब जंग के मैदान में देंगे, कहा कि ईरानी विशेषज्ञों ने इस डिफ़ेन्स तंत्र को ख़तरों व ऑप्रेश्नल नक़्शे के अनुसार टेस्ट किया। रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया कि इस तंत्र को किस जगह टेस्ट किया गया।
फ़रज़ाद इस्माईली ने इसी प्रकार बताया कि एस-300 के पूरी तरह ईरानी संस्करण का निकट भविष्य में टेस्ट किया जाएगा जिसका नाम ‘बावर-373’ होगा।
ईरान से भारत तक गैस पाइप लाइन का काम जल्द ही शुरू होगा।
दक्षिण एशिया गैस इंटरप्राइसेज़ (सेज) के एक अधिकारी ने कहा है कि ईरान से भारत के लिए ओमान की खाड़ी और हिंद महासागर के माध्यम से गैस पाइप लाइन का निर्माण किया जाएगा।
सेज कंपनी के प्रबंधक इयान नैश का कहना है कि ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध समाप्त होने के बाद क्षेत्र की स्थिति में पर्याप्त बदलाव आया है जिसके कारण अब ईरान, भारत और ओमान के बीच समुद्री रास्ते गैस पाइप लाइन बिछाई जाएगी।
कंपनी का कहना है कि समुद्री गैस पाइप लाइन पर 4.5 अरब डॉलर खर्च होंगे, यह लाइन दक्षिणी ईरान से ओमान की खाड़ी के माध्यम से पश्चिमी भारत के गुजरात प्रांत पहुंचाई जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1400 किलोमीटर लंबाई की यह पाइप लाइन पाकिस्तान के विशेष आर्थिक समुद्री क्षेत्र की अनदेखी करते हुए भारत तक निर्माण किया जाएगा।
गौरतलब है कि ईरान और ओमान के बीच पहले से ही इस प्रकार के समझौते तय पा चुका है ईरान से 20 मिलियन क्यूबिक गैस ओमान आयात करेगा जिसकी लागत 60 अरब डॉलर होगी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में 51 सीटों के लिए मतदान जारी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में सोमवार को 12 ज़िलों की 51 सीटों के लिए मतदान जारी है।
अमेठी, सुल्तानपुर, फ़ैज़ाबाद, बाराबंकी, अम्बेडकर नगर, बहराईच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, बस्ती, सिद्धार्थनगर और संत कबीर नगर ज़िलों में मतदान सुबह सात बजे शुरू हुआ और शाम पांच बजे तक जारी रहेगा। स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान के लिए व्यापक प्रबंध किये गये हैं और भारत-नेपाल सीमा और अन्य ज़िलों और राज्यों से लगी सीमाएं सील कर दी गई हैं। पांचवें चरण में 40 महिलाओं सहित 607 उम्मीदवार मैदान में हैं।
इस चरण में वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, रामशिव राजभर, पूर्व मंत्री लालजी वर्मा और अमिता सिंह जैसे बड़े नेताओं के राजनीतिक भाग्य का फ़ैसला होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में केवल 57 प्रतिशत मतदान को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने इसे बढ़ाने के लिये कई क़दम उठाए हैं। प्राप्त सूचना के अनुसार सुबह दस बजे तक 13 प्रतिशत मतदान हुआ था। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाक़ी बचे दो चरणों में 4 और 8 मार्च को वोट डाले जाएंगे।
ज़ायोनी शासन के पतन के लक्षण दिखाई देने लगे हैं, फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं की हर ज़रूरी मदद की जानी चाहिए
तेहरान में छठीं अंतर्राष्ट्रीय फ़िलिस्तीन कान्फ़्रेन्स का आयोजन हुआ जिसका उदघाटन इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के भाषण से हुआ।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में कहा कि फ़िलिस्तीन की कहानी और फ़िलिस्तीनी जनता की सहनशीलता, प्रतिरोध और मज़लूमियत हर न्यायप्रेमी और स्वतंत्रता प्रेमी इंसान को दुखी कर देती है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इतिहास के किसी भी भाग में दुनिया का कोई भी राष्ट्र एसे अत्याचारी से रूबरू नहीं हुआ कि बाहर से रची जाने वाली साज़िश के तहत पूरे देश पर क़ब्ज़ा कर लिया जाए, वहां की जनता को निर्वासित कर दिया जाए और उसके स्थान पर दुनिया भर से एकत्रित करके एक समूह को बसा दिया जाए। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह भी इतिहास का एक काला अध्याय है जो अन्य काले अध्यायों की तरह ईश्वर की कृपा से बंद हो जाएगा।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह सम्मेलन अत्यंत कठिन क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में आयोजित हो रहा है। हमारा यह क्षेत्र जो फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष का समर्थक रहा है, इन दिनों हिंसा तथा विभिन्न संकटों में फंसा हुआ है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के अलग अलग संकटों के कारण फ़िलिस्तीन का विषय प्रभावित हुआ है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इन संकटों पर विचार करने से हमें समझ में आता है कि इन से लाभ उठाने वाली शक्तियां कौन हैं? वही हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में ज़ायोनी शासन का गठन किया है ताकि एक दीर्घकालिक टकराव थोप कर इस क्षेत्र की स्थिरता और उन्नति का रास्ता रोक दें।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के राजनैतिक समर्थन की कदापि उपेक्षा नहीं करना चाहिए। अलग अलग वैचारिक रुजहान और स्वभाव के मुस्लिम राष्ट्र और सभी स्वतंत्रता प्रेमी एक लक्ष्य पर एकत्रित हो सकते हैं और वह लक्ष्य है फ़िलिस्तीन तथा उसकी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की अनिवार्यता।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज़ायोनी शासन के बिखराव के लक्षण स्पष्ट होते जा रहे हैं और उसके समर्थकों विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका पर छाने वाली कमज़ोरी के बाद देखने में आ रहा है कि धीरे धीरे माहौल भी ज़ायोनी शासन की शत्रुतापूर्ण, ग़ैर क़ानूनी और ग़ैर इंसानी कार्यवाहियों से मुक़ाबले की ओर बढ़ रही हैं।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता का बर्बरतापूर्ण दमन, बड़े पैमाने पर गिरफ़तारियां, जनसंहार, भूमियों पर क़ब्ज़ा और वहां यहूदी बस्तियों का निर्माण, बैतुल मुक़द्दस और मुस्जिदुल अक़सा में इस्लामी व ईसाई धार्मिक स्थानों की पहिचान बदलने की कोशिशें और दूसरे बहुत से अत्याचार जारी हैं और इन अत्याचारों को अमरीका तथा कुछ पश्चिमी सरकारों का समर्थन प्राप्त है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र ने जो अंतर्राष्ट्रीय ज़ायोनिज़्म और उसे धूर्त समर्थकों से मुक़ाबले को बोझ अकेले उठाए हुए है, बड़े बड़े दावे करने वालों को एक अवसर दिया कि वह अपने दावों को व्यवहारिक करें।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि जिस ज़माने में यथार्थवाद के नाम पर और न्यूनतम अधिकारों को भी हाथ से निकल जाने से बचाने के नाम पर ज़ायोनी शासन से संधि का प्रस्ताव पेश किया गया, फ़िलिस्तीनी जनता यहां तक कि उन संगठनों ने भी जिनकी नज़र में इस प्रस्ताव की विफलता पहले से ही निश्चित थी, इसे एक अवसर दिया। अलबत्ता इस्लामी गणतंत्र ईरान ने शुरू से ही इस विचार को ग़लत ठहराया और उसके विनाशकारी परिणामों की ओर से सचेत किया। उन्होंने कहा कि इस शैली को जो अवसर दिया गया उससे फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष को नुक़सान पहुंचा लेकिन इसका फ़ायदा यह हुआ कि यथार्थवाद की कल्पना का ग़लत होना साबित हो गया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज़ायोनी शासन से सांठगांठ की शैली की ख़राबी केवल यह नहीं थी कि इसमें एक राष्ट्र के अधिकार को नज़रअंदाज़ करके अतिग्रहणकारी शासन को औपचारिकता दे गई, बल्कि इसकी सबसे बड़ी ख़राबी यह है कि फ़िलिस्तीन की वर्तमान स्थिति से इसकी कोई समानता नहीं है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र तीन दशकों के दौरान दो अलग अगल माडल आज़मा चुका है और समझ चुका है कि कौन सा माडल उसकी स्थिति से किस सीमा तक समन्वय रखता है। सांठगाठ की शैली के मुक़ाबले में दूसरी शैली इंतेफ़ाज़ा आंदोलन और संघर्ष की शैली है जिसने इस राष्ट्र को महान उपलब्धियों से संपन्न किया है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि यह समझने की ज़रूरत है कि अगर संघर्ष का रास्ता न अपनाया जाता तो आज क्या हालत होती? संघर्ष की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि ज़ायोनी शासन की बड़ी योजनाएं ठप्प पड़ गईं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि संघर्ष ने पूरे क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लेने के ज़ायोनी शासन के इरादों को नाकाम कर दिया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अतीत के युद्धों का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 1973 के युद्ध में सीमित स्तर पर ही सही जो सफलताएं मिलीं उनमें संघर्ष की भूमिका को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि वर्ष 1982 से संघर्ष का दायित्व व्यवहारिक रूप से फ़िलिस्तीन के भीतर मौजूद जनता के कंधों पर आ गया, इसी बीच लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह का उदय हुआ जो फ़िलिस्तीनियों के संघर्ष में मददगार बना।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दक्षिणी लेबनान की आज़ादी, गज़्ज़ा की आज़ादी वास्तव में फ़िलिस्तीन को पूरी तरह आज़ाद करवाने के चरणबद्ध संघर्ष के दो महत्वपूर्ण अध्याय समझे जाते हैं। उन्होंने कहा कि 80 के दशक के आरंभ से लेकर बाद के समय तक ज़ायोनी शासन न केवल यह कि नए क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा नहीं कर सका बल्कि दक्षिणी लेबनान से उसे पीछे हटना पड़ा और यह पक्रिया गज़्ज़ा से ज़ायोनी शासन के निष्कासन के रूप में आगे बढ़ी।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि 33 दिवसीय लेबनान युद्ध में लेबनान की जनता और हिज़्बुल्लाह के जवानों तक सहायता पहुंचाने के सारे रास्ते बंद हो गए थे लेकिन ईश्वर की कृपा से और लेबनान की महान जनता की अपार क्षमताओं की मदद से ज़ायोनी शासन और उसके असली समर्थक अमरीका को शर्मनाक पराजय का मुंह देखना पड़ा और अब वह आसानी से इस इलाक़े पर हमले की हिम्मत नहीं कर पाएंगे।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि गज़्ज़ा के क्षेत्र का प्रतिरोध जो अब प्रतिरोधक मोर्चे का अजेय दुर्ग बन चुका है बार बार होने वाले युद्धों में साबित कर चुका है कि ज़ायोनी शासन के पास एक राष्ट्र की इच्छ शक्ति के सामने टिकने की शक्ति नहीं है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज़ायोनी शासन के अस्तित्व से पैदा होने वाले ख़तरों की कदापि उपेक्षा नहीं करना चाहिए, इस लिए प्रतिरोधकर्ता मोर्चे को अपना संघर्ष जारी रखने के लिए सभी ज़रूरी संसाधनों से संपन्न किया जाना चाहिए और इस संबंध में क्षेत्र के सभी राष्ट्रों, सरकारों तथा दुनिया भर के स्वतंत्रता प्रेमियों की ज़िम्मेदारी है कि इस साहसी राष्ट्र की सारी ज़रूरतें पूरी करें और इस सिलसिले में पश्चिमी तट के क्षेत्र के प्रतिरोधकर्ता मोर्चे की मूल आवश्यकताओं की ओर से भी निश्चेत नहीं रहना चाहिए जो इस समय अपने कंधे पर इंतेफ़ाज़ा आंदोलन का बोझ उठाए हुए है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधक संगठनों को भी चाहिए कि अतीत से पाठ लेते हुए इस बिंदु पर ध्यान दें कि वह इस्लामी या अरब देशों के आपसी विवादों में और समुदायों के सांप्रदायिक झगड़ों में न पड़ें।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि जो संगठन भी ज़ायोनी शासन के विरुद्ध संघर्ष में डटा रहेगा हम उसके साथ हैं और जो संगठन भी इस रास्ते से हटा वह हमसे दूर हो गया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने फ़िलिस्तीनी संगठनों के आपसी मतभेद के बारे में कहा कि संगठनों में विचार की विविधता के कारण मतभेद स्वाभाविक है लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब यह मतभेद आपसी टकराव में बदल जाएं।
राजनीति में प्रवेश करने के लिए अमेरिका में मुसलमानों को आमंत्रित किया
अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी «mainepublic» से उद्धृत किया है कि अमेरिका में मुसलमान विवादास्पद राजनीतिक बहस के अधीन है लेकिन कार्यालयों में कुछ मुसलमान राजनीतिक प्रतिनिधी और गैर लाभ वाले समूह (Jetpac) मुसलमान सामाजिक और राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करने के लिए कोशिश करते हैं।
इस समूह के मिशन के हिस्से ने मुस्लिम उम्मीदवारों को राजनीतिक और सामाजिक मान्यता के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में मदद करती है।
" गैर लाभ वाले समूह (Jetpac) के संस्थापक और "कैम्ब्रिज" नगर परिषद के सदस्य नदीम Muezzinने कहा कि संभावित मुसलमान उम्मीदवार का रजिस्टर करना महत्वपूर्ण मुद्दा है।
उन्हों ने समूह को अमेरिका में राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए मुसलमानों को प्रोत्साहित किया है और कहा: कि पिछले दो दशकों में अमेरिका के मुसलमान बचाव की मुद्रा में रहते है लेकिन अब समयअपनी मौजदग़ी दर्ज करने का है।
हिज़्बुल्लाह के ख़तरनाक हथियार ने इस्राईल के होश उड़ाए
एक इस्राईली समाचारपत्र ने लिखा है कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के पास एेसा ख़तरनाक हथियार है जिनसे इस्राईल के शक्ति के समीकरण को बिगाड़ दिया है।
यदीऊत अहारनूत ने रविवार के अंक में लिखा है कि हिज़्बुल्लाह के पास रूस के "याख़ून्त" मीज़ाइल हैं जो अपने आप में दुनिया के सबसे विकसित मीज़ाइल हैं। ज़ायोनी शासन इससे पहले भी ऐसी स्थिति में हिज़्बुल्लाह के पास मौजूद इन मीज़ाइलों पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त कर चुका है। जब वह ख़ुद परमानु बमों से संपन्न शासन है। उसने दावा किया था कि लेबनान के तटों पर मौजूद इस्राईली व अमरीकी समुद्री जहाज़ों और बेड़ों के लिए भारी ख़तरे के कारण, ये मीज़ाइल शक्ति के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।
इस्राईल की चिंता इस वजह से भी बढ़ गई है कि उसके पास इन मी़ज़ाइलों को रोकने या इनका रास्ता बदल देने की टेक्नोलोजी नहीं है। याख़ून्त मीज़ाइल 300 किलो मीटर की दूरी से किसी भी लक्ष्य को 750 मीटर प्रति सेकेंड की रफ़्तार से भेद सकता है। लक्ष्य को भेदते समय इसकी ऊंचाई केवल 10 से 15 मीटर होती है और इसी लिए इसे रडार पर नहीं देखा जा सकता। मुख्य रूप से समुद्री जहाज़ों को निशाना बनाने वाला याख़ून्त मीज़ाइल 200 किलो ग्राम का वाॅर हेड ले जाने में भी सक्षम है। रूस ने यह मीज़ाइल 2014 में नैटो के समुद्री जहाज़ों के संभावित हमले को रोकने के लिए क्रिमिया प्रायद्वीप में तैयार किया था।
यूरोप में कुरआन गतिविधियों के विकास के बारे में एक बैठक आयोजित की ग़ई
अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी ने «alkafeel.net» जानकारी डेटाबेस के अनुसार बताया कि यह संगोष्ठी प्रोफेसरों और शोधकर्ताओं की मौजुदग़ी जैसे नजफ मदरसे के प्रोफेसर "सैयद मोहम्मद अली Alhlv" और पवित्र हरमे अब्बासी के दारुल कुरआन के निदेशक "शेख जिया अल Zubaidi की मौजुदग़ी में आयोजित किया गया।
संगोष्ठी में यूरोप में कुरआन गतिविधियों के विकास और इस्लामी मोहम्मदी संस्कृति जो शांति, सआदत, सभ्य जीवन और मानवीय मूल्यों के लिए आमंत्रित करता है चर्चा की ग़ई।
"सैयद मोहम्मद अली Alhlv" ने संगोष्ठी में लंदन में कुरआन की गतिविधियों और समस्याओं के क्षेत्र में शामिल अन्य विषयों के लिए चिंताओं और सिफारिशों और सुझावों दिए
लंदन में पवित्र हरमे अब्बासी के दारुल कुरआन शाखा ने अब तक कई पाठ्यक्रम कुरआन विज्ञान और व्याख्या आयोजित कर चुका है
अमरीका, हिज़्बुल्लाह को औपचारिक रूप से स्वीकार करेः रूस
रूस के विदेशमंत्री ने कहा कि अमरीका को चाहिए कि वह दाइश से संघ के लिए हिज़्बुल्लाह को आधिकारिक रूप से स्वीकार करे।
रूस के विदेशमंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने एनटीवी चैनल से बात करते हुए कहा कि अमरीका को लेबनान के हिज़बुल्लाह को जिसे ईरान का समर्थन प्राप्त है और दाइश से संघर्ष कर रहा है, आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए।
उनका कहना था कि वर्तमान समय में ईरान और अमरीका के बीच दुश्मनी ओबामा के काल से कम नहीं है। रूस के विदेशमंत्री ने स्वीकार किया कि यदि अमरीका के नये राष्ट्रपति के निकट अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से संघर्ष को प्राथमिकता प्राप्त है तो उन्हें सीरिया में दाइश से संघर्ष करने वाली एक इकाई के रूप मे हिज़्बुल्लाह को स्वीकार करना चाहिए।
रूस के विदेशमंत्री ने कहा कि यदि वास्तविकताओं पर ध्यान दें तो हमें हिज़्बुल्लाह को दाइश से संघर्ष करने वाले के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
हमास की सैन्य शाख़ा के संस्थापक ग़ज्ज़ा में फ़िलिस्तीनी आंदोलन के प्रमुख चुने गए
फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन हमास ने ग़ज्ज़ा पट्टी में अपने नए नेता के नाम का एलान कर दिया है।
सोमवार को हमास के अधिकारियों ने बताया कि इस्लामी आंदोलन की सैन्य शाख़ा इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड के वरिष्ठ कमांडर याहया सिनवर को ग़ज्ज़ा पट्टी में हमास के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख चुना गया है।
सिनवर इस्माईल हनिया का स्थान लेंगे, जो ग़ज्ज़ा में प्रधान मंत्री का पद संभाल चुके हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हनिया, हमास के राजनीतिक ब्यूरो चीफ़ ख़ालिद मशअल का स्थान ले सकते हैं।
50 वर्षीय सिनवर इज्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड के संस्थापक हैं। इस्राईल ने उन्हें 1988 में गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया था। 2011 में इस्राईली सैनिक गिलाद शालित को आज़ाद करने के बदले इस्राईल ने 1,000 फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को रिहा किया था, जिसमें सिनवर भी शामिल थे।