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इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने 30 दिसंबर 2009 की घटना के अवसर पर इस अनुदाहरणीय कारनामे और जनता की वैचारिक शक्ति को इस्लामी व्यवस्था की शक्ति का एक उदाहरण बताया।

वरिष्ठ नेता ने 9 दैय 1388 बराबर 30 दिसंबर 2009 के कारनामे की वर्षगांठ के पूर्व अपने एक संबोधन में   इस्लाम से सम्राज्यवादियों की दुश्मनी और द्वेष तथा इस्लामी शासन व्यवस्था को समाप्त करने के उनके प्रयासों की ओर संकेत किया।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को कहा कि साम्राज्यवादी शक्तियां, इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र के संकल्प तथा उसकी भौतिक व अध्यात्मिक शक्ति छीन लेना चाहती हैं।  उन्होंने कहा कि इसके मुक़ाबले में इस शक्ति को सुरक्षित रखकर इसमें दिन-प्रतिदिन वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक कथन की ओर संकेत करते हुए कहा कि मानवीय समाज में भलाई और कल्याण की प्राप्ति, शक्ति की छाया में संभव है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लाम की छाया में प्राप्त होने वाली सैन्य शक्ति और क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव, वर्चस्ववादी शक्तियों के क्रोध का कारण बना है।  उन्होंने कहा कि विश्व की वर्चस्ववादी व्यवस्था, संसार में हर प्रकार की अत्याचार विरोधी प्रक्रिया का विरोध करती है किंतु उस विरोध के मुक़ाबले में वह घुटने टेकने पर विवश हो जाती है जो अपने पूरे अस्तित्व के साथ सामने आ जाता है।    

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि ईरान द्वारा विश्व वर्चस्ववाद का विरोध, उसके विरुद्ध शत्रुता और षडयंत्रों का कारण बना है।  उन्होंने बल देकर कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान को इस शत्रुता के मुक़ाबले के लिए अपनी शक्ति को बढ़ाना चाहिए।  

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता के लगभग 40 वर्ष व्यतीत होने के बावजूद 22 बहमन के दिन पूरे राष्ट्र का सड़कों पर निकल आना, इस्लामी शासन व्यवस्था की शक्ति और उसके प्रभाव का परिचायक है।  उन्होंने कहा कि यह बात पूरी दुनिया में अद्धितीय है।

 

फ्रांसीसी समाचार एजेंसी ने एक रिपोर्ट में ईरानी ईसाइयों को मिलने वाली सुरक्षा के बारे में लिखा है कि ईरान, ईसाइयों के लिए मध्यपूर्व का सबसे सुरक्षित देश है।

इस समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी (र.ह) ने क्रांति के बाद यह आदेश दिया था कि ईरान में रहने वाले ईसाइयों, यहूदियों और पारसियों को भी वैसा ही सम्मान दिया जाए जैसा इस देश में रहने वाले मुसलमानों को दिया जाता है और किसी के साथ धर्म के नाम पर भेदभाव न बरता जाए।

 

फ्रांस की समाचार एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में तेहारान में रहने वाले ईसाई धर्म के लोगों द्वारा क्रिसमस के जश्न को पूरी स्वतंत्रता और सरकार के भरपूर सहयोग से मनाए जाने की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि ईरानी ईसाइयों को अधिकारियों की ओर से किसी प्रकार के प्रतिबंधों का सामना नहीं करना पड़ता है।

 

एएफ़पी ने ईरानी ईसाइयों के वरिष्ठ धार्मिक नेता "रम्ज़ी गारमू" से विशेष बातचीत की है। समाचार एजेंसी ने ईसाई धर्मगुरू से हुई बातचीत की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि रम्ज़ी गारमू ने ईरान में विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्राप्त सुरक्षा का उल्लेख करते हुए कहा है कि मैं इस बात के लिए ईश्वर का आभारी हूँ कि इस युद्धग्रस्त क्षेत्र में ईरान शांति का केंद्र है।  

 

लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन के महासचिव ने मंगलवार को लेबनान के वरिष्ठ धर्मगुरु शेख अब्दुन्नासिर जबरी के श्रद्धांजिल अर्पित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण के दौरान इस्लामी जगत के विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार पेश किये।

सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि इस्लामी जगत को इस समय चरमपंथ नाम के एक अत्याधिक भयानक खतरे का सामना है  इस लिए हमें उन सभी लोगों के मुक़ाबले में खड़े हो जाना चाहिए जो इस्लाम में चरमपंथ फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। 

सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि तकफीरी विचार धारा इस्लामी जगत में उत्पन्न होने वाली सब से अधिक घातक चीज़ है और कुछ जगहों में शिया मुसलमान भी विशेष प्रकार की नीति अपनाते हैं जिन्हें ब्रिटिश शिया कहा जाता हैऔर जैसा कि ईरान के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा खामेनई ने कहा है इस विशेष प्रकार के शिया गुट ने भी तकफीरियों की नीति अपनायी है और इस्लामी आस्थाओं का अपमान करते हैं। 

सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि इन दोनों प्रकार की तकफीरी विचारधारा रखने वालों के पास सेटेलाइट टीवी चैनल और संचार माध्यम हैं किंतु इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन के टीवी चैनल पर अरब और नाइल सेट ने प्रतिबंध लगा रखा है और यह कोई संयोग नहीं है।

सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि इस्लामी राष्ट्र किसी भी दशा में फिलिस्तीन के मुद्दे से पीछे नहीं हटेगा और इस राह में किसी भी प्रकार के बलिदान में संकोच नहीं करेगा।

टोक्यो की ग्रांड मस्जिद धार्मिक व महान वास्तुकला के साथ इस्लामी स्मारकों में एक है। यह इबादी जगह जो ऊंचे मीनार रखती है पुराने उस्मानी वास्तुकला की शैली और इस्तांबुल की जामेअ ब्लू मस्जिद के समान(या सुल्तान अहमत मस्जिद)पर बनाई गई है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


 

 

 




 

 

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी समाचार «पाकिस्तान में ईसाई» के हवाले से, इस कार्यक्रम में मुस्लिम विद्वानों ने मसीह (अ.स) के जन्म और ईसाई विद्वानों ने पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के जन्म की एक-दूसरे को बधाई दी और भाषण दिया।

विक्टर Savra पाकिस्तानी पाद्री जो इस कार्यक्रम के आयोजन के जिम्मेदार थे,ने कहाःयह सभा मुसलमानों और ईसाइयों के बीच संबंधों को मजबूत बनाने वाली है।

उन्होंने कहा: हम बाइबल को भी और कुरान को भी पढ़ते हैं। पैगंबर मुहम्मद के जन्म का उत्सव ईसाइयों के घर पर भी आयोजित किया जाता है, और यह सभी पाकिस्तानी नागरिकों के लिए एक मॉडल हो सकता है।

उन्होंने जातियों और धर्मों के बीच शांति और सद्भाव बनाने के लिए कोशिश और अधिक प्रयासों की भी आवश्यकता पर बल दिया।

इसी तरह इटली में पाकिस्तानी दूतावास ने भी मसीह के जन्म का जश्न मुसलमानों और ईसाइयों की उपस्थिति के साथ आयोजित किया।

 

रूस ने ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की निंदा के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को विश्व समुदाय का दृष्टिकोण क़रार दिया है।

इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार रूस के विदेशमंत्रालय ने शनिवार को अपने एक बयान में कहा है कि रूस ने अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर कालोनियों के निर्माण के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है क्योंकि इसकी विषय वस्तु उस आधार पर तैयार की गयी थी जिसमें कहा गया है कि विश्व समुदाय का मानना है कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर क़ालोनियों का निर्माण ग़ैर क़ानूनी है।

रूस के विदेशमंत्रालय ने अपने बयान में बल दिया है कि बस्तियों के बारे में प्रस्ताव पिछले आठ वर्ष में पहली बार सुरक्षा परिषद में पास हुआ है।

रूसी विदेशमंत्रालय के बयान में कहा गया है कि मध्यपूर्व के विवाद का हल केवल फ़िलिस्तीनी पक्षों और इस्राईल के मध्य बिना पूर्व शर्त और प्रत्यक्ष वार्ता से ही संभव है और फ़िलिस्तीनियों और इस्राईल के मध्य वार्ता आरंभ करने में सहायता करने वाले मध्यपूर्व के अंतर्राष्ट्रीय गुट चार के एक पक्ष के रूप में रूस के प्रयास भी इसी परिधि में हैं।

रूस के विदेशमंत्रालय के बयान में अंत में कहा गया है कि रूस, फ़िलिस्तीनी और इस्राईली पक्षों के मध्य वार्ता की मेज़बानी करने के लिए तैयार है।

ज्ञात रहे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने फ़िलिस्तीनियों की अतिग्रहित ज़मीनों पर इन कॉलोनियों का निर्माण तुरंत रुकने पर आधारित प्रस्ताव नंबर 2334 पारित किया। यह सुरक्षा परिषद का अभूतपूर्व क़दम है। इस प्रस्ताव का मसौदा मलेशिया, वेनेज़ोएला, न्यूज़ीलैंड और सेनेगल ने पेश किया। इस प्रस्ताव के पक्ष में 14 मत पड़े जबकि अमरीका ने मतदान में भाग नहीं लिया।  

 

 

संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण को समाप्त करने के उद्देश्य से पेश किया गया प्रस्ताव पारित हो गया है।

अल आलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण को समाप्त करने के लिए यह प्रस्ताव मिस्र ने सुरक्षा परिषद में पेश किया जिस पर शुक्रवार को मतदान हुआ।

इस प्रस्ताव के पक्ष में सुरक्षा परिषद के 14 सदस्यों ने मत दिया जबकि केवल अमरीका ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

इस प्रस्ताव के आधार पर इस्राईल की यह ज़िम्मेदारी है कि वह पूर्वी बैतुल मुक़द्दस सहित अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में निर्माण संबंधी अपनी समस्त गतिविधियों को तुरंत रोक दे।

अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की निंदा में मिस्र ने जो प्रस्ताव का मसौदा सुरक्षा परिषद में पेश किया था उस पर गुरूवार को मतदान होना था किन्तु मिस्र ने घोषणा की कि यह मतदान टल गया है।

न्यूजीलैंड, वेनेज़ुएला, मलेशिया और सिंगापूर ने शुक्रवार को मिस्र से मांग की थी कि वह इस्राईल विरोधी प्रस्ताव पर मतदान के लिए समय सीमा निर्धारित करे। अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण को रोकने से संबंधित प्रस्ताव पर शुक्रवार को मतदान हुआ।

 

इस्राईल की सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख ने कहा है कि अगर इस्राईल 2006 की 33 दिवसीय जंग की तुलना में पहले से ज़्यादा तय्यार हो तब भी उसमें लेबनान के हिज़्बुल्लाह के साथ नई जंग शुरु करने का साहस नहीं है।

संवाददाता के अनुसार, ग्यूरा आइलैंड हिज़्बुल्लाह के साथ टकराव और उन तत्वों से दूर रहने के इच्छुक हैं जिनके कारण हिज़्बुल्लाह के साथ जंग हो सकती है।

आइलैंड ने कहा कि हिज़्बुल्लाह से जंग न करने के पीछे इस डर का कारण हिज़्बुल्लाह के पास मौजूद हथियार और मीज़ाइलों का भंडार है।

ज़ायोनी शासन के गुप्तचर आंकलन के अनुसार, हिज़्बुल्लाह के पास विभिन्न दूरी की मारक क्षमता वाले लगभग 130000 मीज़ाईल है।

इस्राईल की सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख ने कहा कि रक्षा मंत्री अविग्डोर लिबरमैन ने अप्रत्यक्ष तौर पर इस बात को माना है कि हिज़्बुल्लाह की सैन्य शक्ति बढ़ रही है।

ग्यूरा आइलैंड ने कहा कि सीरिया जंग का अंत कि जिसके मोर्चे के  विजेताओं में हिज़्बुल्लाह है, इस्राईल को बहुत कठिन विकल्प के सामने क़रार देगा।

 

 

पाकिस्तान से अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी इस संगोष्ठी में विभिन्न शिया और सुन्नी दलों जैसे जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान, शिया उलेमा काउंसिल, मजलिसे वहदतुल मुस्लिमीन के विद्वानों और विचारकों और अन्य दलों ने भाग लिया।

इस सेमिनार के वक्ताओं ने दुनिया में मुसलमानों की समस्याओं को हल करने के लिए उचित तरीकों की तलाश और मुस्लिम एकता में विद्वानों की भूमिका पर भाषण दिऐ।

इस संगोष्ठी में जो कि "एकता वीक और ईद मिलाद नबी (स.) " के अवसर पर आयोजित की गई थी, अल्लामा सैयद साजिद अली नक़वी, पाकिस्तान में सर्वोच्च नेता प्रतिनिधित्व, मौलवी राजा नासिर अब्बास, मुस्लिम एकता की परिषद के महासचिव और लियाकत बलूच, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के महासचिव ने इस्लामी संप्रदायों के बीच एकता पर जोर देने के साथ, सुन्नियों और शियाओं के बीच मतभेद को इस्लाम के दुश्मनों की साजिश बताई और पाकिस्तान में एकता पैदा करने में विद्वानों की भूमिका की बात की।

सेमिनार में मौजूद उलमा ने वर्तमान इस्लामी दुनिया में समस्याओं की ओर इशारा करते हुऐ मानव व इंसानी मुल्यों की रक्षा में उलमा व धार्मिक विचारकों की भूमिका को ज़रूरी तथा मुस्लिम विश्व में मतभेद को खतरनाक बताया।

वक्ताओं ने बल दियाःवर्तमान समय में इस्लामी समुदाय को उच्च स्तर पर समझौते व ऐकता की ज़रूरत है और यह समझ और ऐकता इस्लामी समुदाय में हासिल हो सकता है जब ऐक संयुक्त बोलती ज़बान वजूद में आजाऐ। और यह समझ और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिऐ एक दूसरे के विचारों का सम्मान करना पड़ेगा, इस्लामी समुदायों में ऐकता के लिऐ ऐक दूसरे की सुनना,सम्मान करना और स्वीकार करने का माहौल बनाना पड़ेगा।

 

भारत की राजधानी नयी दिल्ली में मंगलवार को रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में प्रदर्शन हुए।

मंगलवार को नयी दिल्ली में होने वाले प्रदर्शन में रोहिंग्या पलायनकर्ताओं ने भी भाग लिया।प्रदर्शन कारियों ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार की आलोचना की और दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के सामने एकत्रित होकर रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की चुप्पी की आलोचना की।

याद रहे हालिया सप्ताहों में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचारों का सिलसिला तेज़ हो गया है जिसकी विश्व स्तर पर आलोचना की जा रही है।