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एक इस्राईली धर्मगुरू ने ज़ायोनी टेलीवीजन चैनल से बात करते हुए ज़ायोनी शासन की कमज़ोरी और बाहरी दिखावे पर आधारित सैयद हसन नसरुल्लाह के बयान की पुष्टि की है।

ज़ायोनी शासन के एक वरिष्ठ धर्मगुरू ने ज़ायोनी शासन के टेलीवीजन चैनल-10 से बात करते हुए लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध संगठन हिज़्बुल्लाह के महासचिव की इस मिसाल की ओर संकेत करते हुए कि इस्राईल मकड़ी के जाल से भी कमज़ोर है, कहा कि मैं समझता हूं कि सैयद हसन नसरुल्लाह हम से बेहतर तरीक़े से हमारे शासन को पहचानते हैं।

ज़ायोनी शासन के इस धर्म गुरू का कहना है कि जब सैयद हसन नसरुल्लाह ने इस्राईल को मकड़ी के जाले से कमज़ोर बताया था तो हमने उस समय उनके बयान को इस्राईल के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध समझा था कि यह बातें हिज़्बुल्लाह के प्रतिरोधकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए कही गयी है किन्तु मैं यह समझता हूं कि सैयद हसन नसरुल्लाह, हम से बेहतर इस्राईल को समझते हैं।

इस यहूदी धर्मगुरू ने हालिया दिनों में हैफ़ा में भीषण आग और उस पर नियंत्रण पाने में इस्राईली शासन की अक्षमता की ओर संकेत करते हुए कहा कि आग लगे हुए कई दिन हो गये किन्तु हमारी पराजित सरकार उस पर नियंत्रण पाने में सफल नहीं हो सकी। अब मुझे विश्वास नहीं है कि क्षेत्र में युद्ध आरंभ होने की स्थिति में इस्राईल कम से कम अपनी जनता की रक्षा में सफल नहीं हो सकेगा।

इस इस्राईली धर्म गुरू ने कहा कि दुनिया ने 2000 और 2006 में हमारा मज़ाक़ उड़ाया और नितिन याहू के कारण, दुनिया पहले से अधिक हम पर हंस रही है।

 

रविवार, 27 नवम्बर 2016 07:30

जॉर्डन में मस्जिद अबूदर्वेश

 

 

 

जॉर्डन की राजधानी अम्मान में मस्जिद अबूदर्वेश, इस शहर में पर्यटकों के लिऐ एक आकर्षण से है।

 

इस मस्जिद की वास्तुशिल्प डिजाइन, 1961 में बनाई गई है जो सीरिया की पारंपरिक वास्तुकला का एक उदाहरण है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 





















 

 

'इस्लामिक स्टडीज स्कूल के विशेष ख़िज़ां मोसम का हिफ़्ज़े कुरान कार्यक्रम का समापन समारोह,हाफ़िज़ों, विद्वानों, अधिकारियों, गणमान्य व्यक्तियों और क्वेटा में विभिन्न सुन्नियों के क़ुरानी स्कूलों के भावुक छात्रों की उपस्थिति में आयोजित किया गया।

इन कार्यक्रमों का उद्देश्य छात्रों को कुरान याद करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

मौलाना अब्दुल हक़ हाशमी, पाकिस्तान बलूचिस्तान के जमाअते इस्लामी के अमीर ने हिफ़्ज़े कुरान समापन समारोह कार्यक्रम में कहा है कि वह दिल जो पवित्र कुरान ख़ज़ाना हैं दुनिया और आख़िरत में सम्मान की बात है और बिना शक के खुशी की राह, कुरान पर अमल करना है।

बलूचिस्तान के जमाअते इस्लामी के अमीर ने सरकारी अधिकारियों व पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ पार्टियों की आलोचना करते हुऐ कहाःयह लोग स्वयं देश में क़ुरानी सिस्टम को लागु करने में बड़ी रूकावट हैं और इस्लाम व क़ुरान के निज़ाम पर अमल किऐ बिना देश की स्थित में बदलाव मुम्किन नहीं है।

यह समारोह हाफ़िज़ों को पुरस्कार दान कर के और उनकी रैंकिंग की रक्षा करने के साथ समाप्त हो गया।

 

वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि तकफ़ीरियों ने कायर्तापूर्ण प्रतिशोध के ज़रिए एक बार फिर अपने घिनौने चेहरे को सबके सामने प्रकट कर दिया है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने इराक़ में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दसियों श्रद्धालुओं की दर्दनाक शहादत के बाद शनिवार को एक संदेश में कहा कि तकफ़ीरी अपराधी गुटों ने कि अर्बईन की महारैली व श्रद्धालुओं को मिली अपार सुरक्षा से जिनके घिनौने षड्यंत्र नाकाम हो गए, कायर्तापूर्ण प्रतिशोध के ज़रिए अपने घिनौने रूप को सबके सामने स्पष्ट कर दिया।

ज्ञात रहे गुरुवार की रात बग़दाद के दक्षिण में बाबिल प्रांत के केन्द्र हिल्ला शहर के शूमली इलाक़े में एक पेट्रोल पंप पर पेट्रोल के टैंकर में हुए धमाके से, लगभग 100 श्रद्धालु शहीद और दर्जनों घायल हुए। इस आतंकवादी धमाके में बड़ी संख्या में ईरानी श्रद्धालु शहीद हुए। दाइश ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली थी।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि नाइजीरिया, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों से तकफ़ीरी विचारधारा के लोगों के घिनौने अपराध की ख़बरें आ रही हैं जो सभी मुसलमानों व मानवता का दिल रखने वालों को तकफ़ीरी लहर और उसकी समर्थक सरकारों की ओर से ख़तरे का पता दे रही हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने शुक्रवार को ईरान में हुयी ट्रेन दुर्घटना में हताहत होने वालों की आत्मा की शांति की और घायलों के जल्द ठीक होने की कामना की।

ज्ञात रहे शुक्रवार को तेहरान के पूरब में स्थित सेमनान प्रांत के हफ़्त-ख़ान रेलवे स्टेशन पर दो ट्रेनों की टक्कर हुयी, जिसमें 40 से ज़्यादा लोग हताहत और 100 से ज़्यादा घायल हुए।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने संबोधन में कहा कि अमरीकी सरकार ने अबतक समग्र परमाणु समझौते का कई बार उल्लंघन किया है।
उन्होंने कहा कि अमरीका ने ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों में दस वर्ष की जो वृद्धि की है यदि उसका पालन किया गया तो निश्चित रूप से यह जेसीपीओए का उल्लंघन होगा। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीकी सरकार को मालूम होना चाहिए कि ईरान इन प्रतिबंधों के लागू होने पर उचित कार्यवाही करेगा।
वरिष्ठ नेता ने ईरानी अधिकारियों और जेसीपीओए के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के बयानों की ओर संकेत करते हुए, जिसमें उन्होंने परमाणु समझौते का लक्ष्य, प्रतिबंधों और दबावों की समाप्ति बताया था, कहा कि परमाणु समझौते या जेसीपीओए को ईरानी राष्ट्र और देश पर दबाव डालने के हथकंडे में परिवर्तित नहीं होना चाहिए।
उन्होंने ईरान और अमरीकी सरकार से जुड़े मुद्दों के बारे में कहा कि फिलहाल हमारा अमरीका में सत्ता में आने वाली नई सरकार के बारे में फ़ैसला करने का कोई इरादा नहीं है।
दूसरी ओर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने चेहलुम के मिलियन मार्च को एक भव्य ऐतिहासिक वास्तविकता और ईश्वरीय अनुकंपा बताया है।
ज्ञात रहे कि बुधवार को स्वयं सेवी बल बसीज के हज़ारों जवानों और कमान्डर्स ने वरिष्ठ नेता से तेहरान में मुलाक़ात की। वरिष्ठ नेता ने इस असवर पर अपने संबोधन में चेहलुम के मिलियन मार्च को एक भव्य एैतिहासिक वास्तविकता और ईश्वरीय अनुकंपा का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के चेहलुम मार्च ने दुनिया वालों को दिखा दिया कि यह मार्ग, प्रेम और तत्वदर्शिता के साथ है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस भव्य ई्श्वरीय अनुकंपा का आभार व्यक्त किया जाना बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस ईश्वरीय अनुकंपा का आभार यह है कि चेहलुम के मार्च के दौरान जो भाईचार, मित्रता, कृपा और प्रेम की भावना पैदा हुई उसको सुरक्षित रखा जाए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने संबोधन में स्वयं सेवी बल बसीज को इस्लामी क्रांति की आश्चर्यजनक अनुकंपा बताया। उन्होंने कहा कि इमाम ख़ुमैनी को स्वयंसेवी बल के गठन का विचार ईश्वर ने अपने संदेश इलहाम द्वारा दिया। उन्होंने बसीज के विरुद्ध दुश्मनों के षड्यंत्रों की ओर से सचेत करते हुए कहा कि शत्रु का एक षडयंत्र, अपना प्रभाव बनाना है। एक वर्ष से अधिक समय से इस बारे में कई बार चेतावनी दी जा चुकी है।

 

इस्राईल की एक संचार सेवा कंपनी दुनिया भर के तानाशाहों को जासूसी की सेवा दे रही है।

क़ुद्स नेट के अनुसार, इस इस्राइली कंपनी का नाम सेलेब्राइट है। संचार क्षेत्र में सक्रिय यह कंपनी मोबाइल फ़ोन सहित निजी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हैक करने वाले गैजेट बनाती है और दुनिया में 115 तानाशाही व्यवस्थाओं को उनके विरोधियों की निजी जानकारी हासिल करने में मदद करती है।

लियोन बेन पेरेट्ज़ ने जो सेलेब्राइट कंपनी के कार्यकारिणी अधिकारी हैं, इस बारे में कहा, जब भी कोई नया मोबाइल फ़ोन बाज़ार में आता है, कंपनी के 250 कर्मचारी उस फ़ोन में कमी का पता लगाने की कोशिश करते हैं, ताकि उसके कोड को हैक कर सकें।

बेन पेरेट्ज़ ने कहा कि सेलेब्राइट कंपनी उन संदेशों को फिर से हासिल कर सकती है जो कई साल पहले भेजे गए और मोबाइल फ़ोन की मेमरी से मिट गए हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार, अमरीकी फ़ेडरल पुलिस की जांच इकाई भी सेलब्राइट की सेवा लेती है।

दुनिया में 115 से ज़्यादा देश की जासूसी सेवाओं के साथ सेलब्राइट कंपनी के सहयोग से दुनिया भर में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की चिंता बढ़ गयी है।  

 

राष्ट्र संघ के बाद यूरोपीय संघ ने रोहिंग्या मुसलमानों की वर्तमान दयनीय स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

यूरोपीय संघ की ओर से जारी बयान में म्यंमार के राख़ीन प्रांत में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए इस समुदाय के लिए मानवीय सहायता भेजे जाने की मांग की है।

दूसरी ओर अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्रसंघ के एक उच्चाधिकारी ने कहा था कि म्यंमार प्रशासन, रोहिंग्या मुसलमानों का जातीय सफाया कर रहा है।  जान मैक्किसिक ने कहा कि म्यांमार की पुलिस और वहां के सीमा सुरक्षाबल 9 अक्तूबर से रोहिंग्या मुसलमानों को सामूहिक रूप से दंडित कर रहे हैं।  जून के अंत में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अपनी एक रिपोर्ट में घोषणा की थी कि रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध म्यंमार सरकार की कार्यवाही को मानवता के विरुद्ध अपराध कहा जा सकता है।

ज्ञात रहे कि म्यंमार की सरकार इस देश के राख़ीन प्रांत में रहने वाले 13 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानोंं को अपना नागरिक स्वीकार नहीं कर रही है बल्कि उनको अवैध प्रवासी घोषित किया है।  यही कारण है कि रोहिंग्या मुसलमान लंबे समय से विषम परिस्थितियों में रह रहे हैं।

 

इमाम हुसैन (अ) की शहादत के 40 दिन बीत जाने के बाद यानी 20 सफ़र को चेहलुम के दिन दुनिया भर में इमाम हुसैन (अ) के प्रेमी ऐसी हस्ती का सोग मनाते हैं, जिसने संपूर्ण मानवता की रक्षा की और जिसकी शहादत ने इस्लाम को जीवनदान दिया।

चेहलुम ऐसे लोगों की याद ताज़ा करता है, जिन्होंने, मानवता, इस्लाम और क़ुरान के लिए न केवल अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया, बल्कि अपनी जान भी क़ुरबान कर दी। इमाम हुसैन की शहादत के दिन यानी आशूरा के दिन और उसके बाद उनके चेहलुम तक हज़रत ज़ैनब की भूमिका बहुत अहम है। कर्बला में अपनी अहम भूमिका के बाद, इमाम हुसैन के आंदोलन को जारी रखने में भी उनकी भूमिका अद्वितीय है।  

हज़रत ज़ैनब (स) हज़रत अली (अ) और जनाबे फ़ातिमा (अ) की बेटी हैं। वे पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) की नवासी हैं। कर्बला में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद, उनकी महत्वपूर्ण भूमिका शुरू हुई। ऐसी भूमिका जिसने इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन को आगे बढ़ाया, जो चेहलुम के दिन अपने चरम पर पहुंचा।

40 दिन तक क़ैदी बने रहने के बावजूद, हज़रत ज़ैनब ने पूरे साहस से और तार्किक शैली अपनाकर इमाम हुसैन (अ) के उद्देश्यों की रक्षा की। आशूर अर्थात मोहर्रम के महीने की दस तारीख़ की शाम, यज़ीद की सेना ने कर्बला की लड़ाई में मारे गए अपने सैनिकों को दफ़्न कर दिया। लेकिन इमाम हुसैन (अ) और उनके वफ़ादार साथियों के पवित्र शव ज़मीन पर ऐसे ही पड़े रहे और उन्हें दफ़्न करने की अनुमति नहीं दी गई। यज़ीद के सैन्य अधिकारियों ने बंदी बनाए गए इमाम हुसैन के परिजनों को जिनमें अधिकांश संख्या महिलाओं और बच्चों की थी,  ज़मीन पर पड़े शहीदों के शवों के निकट से गुज़ारा, ताकि शहीदों और उनके परिजनों का अधिक से अधिक अपमान कर सकें।

 

इमाम हुसैन (अ) ने अपमानजनक जीवन पर सम्मानजनक मौत को प्राथमिकता दी, हालांकि दुश्मन इमाम हुसैन को जीवन और मौत के बाद कमज़ोर दर्शाना चाहता था। उन्होंने महिलाओं और बच्चों को क्षत-विक्षत हुए उनके प्यारों के शवों के निकट से गुज़ारा। इनमें इन महिलाओं का कोई भाई है, कोई पति है तो कोई बेटा। लेकिन यह महिलाएं विलाप नहीं करती हैं। इसलिए कि उनकी नज़रें हज़रत ज़ैनब (स) पर टिकी हुई थीं। वे हज़रत ज़ैनब के पीछे पीछे चल रही थीं। जब हज़रत ज़ैनब इमाम हुसैन (अ) के क्षत-विक्षत पवित्र शरीर के निकट से गुज़रीं, कि जिस पर सिर नहीं था और कोई अंग अपनी असली स्थिति में नहीं था, थोड़ा सा झुकीं। शरीर पर पड़े पत्थरों और टूटे हुए भालों को धीरे धीरे हटाया, अपने दोनों हाथों को आसमान की ओर उठाया और कहा, हे ईश्वर हमारी इस क़ुर्बानी को क़बूल कर। यह उस महिला की आवाज़ है, जिसके बारे में सब जानते हैं कि वह अपने भाई इमाम हुसैन से कितना प्यार करती थी और इमाम हुसैन उसके लिए सब कुछ थे। लेकिन उसने यह कहकर यह एलान कर दिया कि हमने इमाम हुसैन को ईश्वर और उसके धर्म के मार्ग में क़ुर्बान कर दिया। अब हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारी इस क़ुर्बानी को क़बूल कर ले।

इब्ने ज़ियाद ने अपने दरबार में क़ैदी बनाकर लाए गए इमाम हुसैन के परिजनों में से हज़रत ज़ैनब से जब कहा, तुमने देखा ईश्वर ने तुम्हारे भाई के साथ क्या किया? उन्होंने जवाब में कहा, ईश्वर की सौगंध, मैंने सुन्दरता के अलावा कुछ नहीं देखा। वे ऐसे लोग थे कि जिन्हें ईश्वर ने शहादत प्रदान की और वे अपनी मंज़िल की ओर चले गए। शहीदों के सरदार इमाम हुसैन की शहादत के बारे में हज़रत ज़ैनब ने यह दृष्टिकोण अपनाया, जिससे अन्य महिलाएं भी अपने शहीदों के प्रति अपने कर्तव्य को समझ गईं कि यह समय रोने पीटने का नहीं है, बल्कि अत्याचारियों और हत्यारों के मुक़ाबले में दृढ़ता और डट जाने का समय है। अपने इस व्यवहार से हज़रत ज़ैनब एवं अन्य महिलाओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि हमने पूर्ण ज्ञान और जानकारी के साथ अपने इमाम का मार्ग चुना है और अगर ईश्वरीय धर्म को इससे भी अधिक क़ुर्बानी की ज़रूरत होगी तो हम तैयार हैं।

दमिश्क़ में भी हज़रत ज़ैनब के भाषण ने यज़ीद के शासन की ईंट से ईंट बजा दी। यह वह शहर था, जिसे काफ़ी सजाया गया था, लेकिन हज़रत ज़ैनब के भाषण के बाद, यहां सन्नाटा पसर गया। बनी उमय्या शासन के अधिकारी जो कर्बला की लड़ाई में अपनी तथाकथित जीत पर अपनी खालों में नहीं समा रहे थे, हज़रत ज़ैनब और पैग़म्बरे इस्लाम के सामने मजबूर हो गए।

 

जनाबे ज़ैनब हज़रत अली (अ) की बेटी हैं, जो बहादुरी और वीरता के शिखर पर हैं। यही कारण है कि सिर से पैर तक हथियारों से लैस दुश्मन के सामने उन्हें किसी तरह का कोई संकोच नहीं हुआ और उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी बात कही और अत्याचारी दुश्मन को उसकी औक़ात बता दी। इब्ने ज़ियाद के दरबार में, सत्ता के रौब में आए बिना वे उसे अत्याचारी और भ्रष्ट क़रार देते हुए कहती हैं, हम आभारी हैं उस ईश्वर के जिसने मोहम्मद (स) को अपना दूत बनाकर हमें सम्मान दिया और बुराईयों से दूर रखा। जो लो कि भ्रष्ट व्यक्ति अपमानित होता है और बुराई करने वाला झूठ बोलता है।

यज़ीद के दरबार में भी उसे ललकार कर कहती हैं, अगर हालात ने मुझे आज तुझ जैसे से बात करने पर मजबूर किया है, तो जान ले कि मेरे निकट तेरी कोई हैसियत नहीं है, लेकिन तेरी निंदा करने को मैं अहम समझती हूं। हज़रत ज़ैनब की बातों ने लोगों की नज़रों में यज़ीद को इतना तुच्छ और बेहैसियत कर दिया था कि उसने हज़रत ज़ैनब और अन्य बंदियों को तुरंत आज़ाद करके मदीना भेजने का आदेश दे दिया। इसलिए कि दमिश्क़ यज़ीद की राजधानी था, और यहां अन्य इलाक़ों से व्यापारियों और अधिकारियों का आना जाना रहता था। यह नई स्थिति किसी भी तरह से यज़ीद के पक्ष में नहीं थी। इसलिए उसने हज़रत ज़नब और उनके साथियों को मदीना लौटाने का आदेश दिया।

क़ैदियों का काफ़िले को बहुत कठिनाईयों और यातनाओं के साथ शाम या वर्तमान के सीरिया ले जाया गया। हालांकि वहां से मदीना वापस लौटाते समय इन कठिनाईयों को कुछ कम कर दिया गया था। यज़ीन ने जनक्रांति और अधिक अपमान से बचने के लिए काफ़िले के मुखिया नोमान बिन बशीर को आदेश दिया कि प़ैग़म्बरे इस्लाम के क़ैदी परिजनों के साथ अधिक कड़ा व्यवहार न करे। इसीलिए बशीर ने कर्बला में क़ैदी बनने वालों के साथ दमिश्क़ से मदीना तक की यात्रा के बीच कड़ा व्यवहार नहीं किया। इन क़ैदियों को कूफ़े से शाम तक की यात्रा के दौरान जानबूझकर लम्बे रास्ते और विभिन्न शहरों से होकर गुज़ारा गया, लेकिन शाम से मदीना वापस लौटते समय छोटे रास्ते का चयन किया गया और तेज़ी से रास्ता तय किया गया, ताकि जितने जल्दी संभव हो सके वे कर्बला पहुंच जाएं। क़ैदी कर्बला की उस सरज़मीन पर वापस लौटने के लिए एक एक पल गिन रहे थे, जहां उनके चहीतों का ख़ून बहाया गया था। यात्रा की कठिनाईयों को सहन करते हुए वे आशूर के 40 दिन बाद अर्थात 20 सफ़र को कर्बला पहुंच गए।

इमाम हुसैन (अ) की पवित्र क़ब्र की सबसे पहले जाबिर बिन अंसानी ने ज़ियार की थी। वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथियों में से थे और अहले बैत से विशेष श्रद्धा रखते थे। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जो चेहलुम के दिन कर्बला पहुंचे और चेहलुम के दिन इमाम हुसैन की क़ब्र की ज़ियारत की परम्परा की शुरूआत की। चेहलुम के दिन जाबिर के साथ कर्बला पहुंचने वाले व्यक्ति का नाम अतिया ऊफ़ी था, वे जाबिर के दास और क़ुरान के व्याख्याकर्ता थे। अतिया ऊफ़ी का कहना है कि मैं इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत करने जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी के साथ कर्बला पहुंचा। जाबिर नहरे फ़ुरात पर गए। वहां उन्होंने स्नान किया। उसके बाद हम पवित्र क़ब्र की ओर चल दिए। जाबिर हर क़दम पर ईश्वर का गुणगान करते थे। जब हम क़ब्र के निकट पहुंचे तो उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे क़ब्र पर ले चलो, मैंने उनका हाथ पकड़ा और क़ब्र पर रख दिया। उन्होंने तीन बार कहा, या हुसैन, या हुसैन, या हुसैन और बेहोश होकर गिर पड़े। जैसे ही उन्हें होश आया इमाम हुसैन (अ) को संबोधित करते हुए कहा, हे हुसैन क्यों मेरा जवाब नहीं दे रहे हो? उसके बाद ख़ुद ही अपनी बात का जवाब दिया और कहा, आप किस तरह जवाब दे सकते हैं, जबकि आपका सिर क़लम कर दिया गया। मैं गवाही देता हूं कि आप अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली (अ) के बेटे हैं, आप पर अल्लाह का दुरूद और सलाम हो।

 

उसके बाद जाबिर इमाम हुसैन के साथियों की क़ब्रों पर गए और कहा, सलाम हो तुम पर इमाम हुसैन (अ) के मार्ग में शहीद होने वाली आत्माओं। मैं गवाही देता हूं कि तुमने नमाज़ की स्थापना की, ज़कात अदा की और अच्छे कार्यों का आहवान किया और लोगों को बुराई से रोका, नास्तिकों से जेहाद किया, यहां तक अपनी जानें क़ुर्बान कर दीं।

चेहलुम का दिन हज़रत ज़ैनब के कर्बला वापस पहुंचने का दिन है। हज़रत ज़ैनब ने 40 दिन बहुत कठिनाईयों बिताए हैं। वह महिला जिसे टूट जाना चाहिए था, वह जीतकर वापस लौट रही है। उसने इन 40 दिनों में अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह से अंजाम दिया है। हालांकि इमाम हुसैन पर होने वाले अत्याचारों का ग़म ऐसा शोला था, जो किसी के भी दिल को जलाकर राख कर सकता था, हज़रत ज़ैनब की तो बात ही अलग है। उन्होंने अत्यधिक कठिनाईयों को सहन किया, कोड़े खाए, भूखी और प्यासी रहीं और क़ैदी बनाई गईं, लेकिन कसी भी अत्याचार ने उन्हें भाई की दूरी से अधिक नहीं सताया था। इसीलिए जब उन्होंने कर्बला में प्रवेश किया और इमाम हुसैन (अ) के पवित्र मज़ार पर पहुंचीं तो बहुत ही दर्दनाक आवाज़ में अपने भाई को पुकारा, हे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यारे लाडले, हे मक्का और मिना के लाडले और हे ज़हरा और अली के बेटे, आह। इन शब्दों ने जो ऐसे दुखी दिल से निकल रहे थे, जो ग़मों से भरा हुआ था, वहां मौजूद लोगों को व्याकुल कर दिया। कोई ऐसी आंख नहीं थी, जिससे आंसू नहीं निकल रहे थे और लोग ऊंची आवाज़ों में विलाप कर रहे थे

 

बुधवार, 23 नवम्बर 2016 11:45

ज़ियारते अरबईन

20 सफ़र को कर्बला के अमर शहीदों का चेहलुम होता है। इस दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विशेष ज़ियारत है।

यह ज़ियारत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से श्रद्धा दर्शाने के लिए पढ़ी जाती है। वह हुसैन जिन्होंने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में,  अपनी शहादत व साहस से लोगों को उस अज्ञानता से मुक्ति दिलाई जो बनी उमय्या के दुष्प्रचार से फैली थी कि जिसकी वजह से लोग क़ुरआन की शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण से दूर हो गए थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वीरता भरे आंदोलन ने बनी उमय्या के प्रचारिक अभियान की अस्लियत खोल कर रख दी, जो ख़ुद को पैग़म्बरे इस्लाम का वारिस कहते थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन ने यज़ीदियों की ग़लत रीतियों का अंत किया और शुद्ध इस्लाम को जीवन दिया।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कहते हैं, “ईश्वर पर आस्था रखने वाले मोमिन बंदे की पांच निशानियां हैं। 51 रकअत नमाज़ पढ़ना, (जिसमें 17 रकअत अनिवार्य और 34 रकअत ग़ैर अनिवार्य नमाज़ शामिल है,) अरबईन की ज़ियारत, दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, सजदे के समय माथे को मिट्टी पर रखना और नमाज़ में बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम ऊंची आवाज़ से कहना।”

 

अरबईन मनाने के लिए कई ज़ियारतें हैं। इनमें से एक ज़ियारत अरबईन के नाम से मशहूर है। यह वह ज़ियारत है जिसे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने लिखवाया है। यह वह ज़ियारत है जो उच्च इस्लामी शिक्षाओं से समृद्ध है। इस ज़ियारत में अध्यात्म व उपासना, बलिदान व शहादत, ईश्वर की प्रसन्नता और उसके मार्ग में संघर्ष की बाते हैं। इस अहम ज़ियारत में इतनी उच्च बाते हैं कि पढ़ने वाला कर्बला के अमर शहीदों के साथ यह प्रतिक्षा करता है कि जहां कहीं भी होगा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मार्ग पर चलेगा।

 

ज़ियारते अरबईन भी दूसरी ज़ियारतों की तरह सलाम से शुरु होती है। श्रद्धालु इस सलाम के द्वारा इमाम हुसैन के प्रति अपने आदर और सद्भावना का एलान करता है। इस सलाम में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत इब्राहीम और हज़रत आदम की विशेषताओं से संपन्न मानता है। जैसे पैग़म्बरे इस्लाम का ईश्वर का प्रिय होना, हज़रत इब्राहीम का ईश्वर का मित्र होना और हज़रत आदम का ईश्वर का उत्तराधिकारी होना। श्रद्धालु इस सलाम के ज़रिए इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व को सभी बड़े ईश्वरीयदूतों के व्यक्तित्व का संग्रह मानता है। इस ज़ियारत में एक जगह पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सभी ईश्वरीय दूतों का वारिस कह कर सलाम किया गया है। इसलिए चेहलुम की याद मनाना हज़रत आदम से लेकर सभी ईश्वरीय दूतों के अभियान की पुष्टि करने के समान है।

 

जो भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला की घटना को सुनता है, उसकी आंखों से आंसू निकलने लगता है। यह आंसू उन आंसुओं से अलग है जो एक इंसान किसी मुसीबत या अपने किसी निकटवर्ती की जुदाई पर बहाता है। जो आंसू इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मुसीबत की याद में बहता है, अगर वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के उद्देश्य की पहचान के साथ बहे तो ऐसा आंसू इंसान को परालौकिक दुनिया से जोड़ता है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मायदा नामक सूरे की 83वीं आयत में ईश्वर कहता है, और जब वे पैग़म्बर पर उतरने वाली आयत को सुनते हैं तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगता है, क्योंकि उन्होंने सत्य को पहचाना और कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! हम ईमान लाए हैं और हमारा नाम गवाहों में लिख। इसी तरह श्रद्धालु भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर सलाम भेजने के साथ उन पर हुए अत्याचारी ओर इशारा करते हुए कहता है, सलाम हो उस हुसैन पर जिन पर ज़ुल्म किया गया, सलाम हो उस महान हस्ती पर जो मुसीबतों में घिरा हुआ था और जिसे रुला रुका कर मारा गया।   

       

ज़ियारते अरबईन के दूसरे भाग में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विलायत, दानशीलता, मोक्ष और पवित्रता की गवाई देते हुए कहता है, हे ईश्वर! मैं गवाही देता हूं कि हुसैन अलैहिस्सलाम तेरे वली और तेरे वली के बेटे हैं। वह चुने हुए और तेरे चुने हुए बंदे के बेटे हैं। हे ईश्वर मैं गवाही देता हूं कि तूने उन्हें शहादत के ज़रिए सम्मानित किया और उन्हें मोक्ष दिया। उन्हें पवित्र वंश में पैदा किया, उन्हें सभी ईश्वरीयदूतों की मीरास दी, बड़ों में से एक बड़ा, मार्गदर्शकों में से एक मार्गदर्शक, रक्षकों में एक रक्षक और लोगों पर अपने उत्तराधिकारी के रूप में हुज्जत अर्थात तर्क क़रार दिया।

 

 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का उस ईश्वरीयत दूत ने पालन-पोषण किया, जिसे ईश्वर ने पूरी सृष्टि के लिए कृपा क़रार दिया। जैसा कि ईश्वर ने अंबिया नामक सूरे की 107वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम से कहा, हमने आपको दुनियावालों के लिए सिर्फ़ कृपा बनाकर भेजा है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यज़ीद के सिपाहियों से बहुत ही अच्छे ढंग से बात की। उन्हें नसीहत की यहां तक कि जब वह घोड़े से ज़मीन पर गिरे तब भी उनके मार्गदर्शन की कोशिश की और अंततः अपने पवित्र ख़ून को लोगों की गुमराही से मार्गदर्शन के लिए भेंट कर दिया। इसलिए जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत पढ़ते हैं, तो उसमें यह भी पढ़ते हैं कि हे पालनहार! हुसैन ने लोगों के मार्गदर्शन में किसी प्रकार के बहाने की गुंजाइश नहीं छोड़ी। उन्होंने निःसंकोच लोगों की भलाई की और अपनी जान को तेरे मार्ग में न्योछावर कर दिया।

 

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मक्के से निकलने से पहले अपने भाई मोहम्मद हनफ़िया को एक वसीयत लिखी, जिसमें अपने अभियान के उद्देश्य का उल्लेख किया है। इस वसीयत में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा, मैंने अपने नाना के धर्म में सुधार, लोगों को भलाई की ओर बुलाने और बुराई से रोकने के लिए अभियान चलाया है। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दौर में धर्म में बहुत से बदलाव कर दिए गए थे। उनके पास पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए धर्म की रक्षा और उसे सही रूप में बाद की नस्लों तक पहुंचाने के लिए अभियान चलाने के सिवा कोई और रास्ता नहीं था ताकि सबको बताएं कि मौजूदा धर्म को बहुत बदल दिया गया है और इस धर्म में, पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए धर्म की तुलना में बहुत अंतर आ गया है। तो श्रद्धालु ज़ियारते अरबईन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अभियान का उद्देश्य यूं बयान करता है, हे प्रभु! हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी जान तुझ पर न्योछावर कर दी और अपने पूरे वजूद को तुझे दे दिया ताकि तेरे बंदों को अज्ञानता और पथभ्रष्टता से मुक्ति दिलाए।

 

जो गुट इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़िलाफ़ था और जिसने उन्हें शहीद किया वे ऐसे लोग थे जो दुनिया से धोखा खा गए। उनका पेट हराम के पैसों से भरा हुआ था। उन्होंने अपनी परलोक को बहुत थोड़ी सी क़ीमत पर बेच दिया। श्रद्धालु ज़ियारते अरबईन में और आगे पढ़ता है, और वे दुनिया पर मर-मिटने वाले पाप का बोझ अपने कांधे पर रखकर नरक की आग में जलने का पात्र बने। तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पूरे धैर्य के साथ उनके ख़िलाफ़ जिहाद किया यहां तक कि तेरे आदेश के पालन के दौरान उनका ख़ून बहाया गया और उनके अपमान को सही समझा गया।

 

आशूर की पूर्व संध्या और आशूर के दिन कर्बला में इमाम हुसैन के घरवालों और उनके साथियों की उनसे वफ़ादारी की मिसाल कहीं नहीं मिलती और इससे भी बढ़ कर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ओर से ईश्वर से किए गए वादे को पूरा करने की मिसाल कहीं नहीं मिलती।

 

श्रद्धालु एक बार फिर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सलाम करते हुए कहता है, हे हुसैन अलैहिस्सलाम! मैं गवाही देता हूं कि आप ईश्वर की ओर से अमानतदार और ईश्वर के अमानतदार के बेटे हैं। आपने पूरा जीवन भलाई में बिताया, प्रशंसनीय तरीक़े से गुज़र गए और शहीद हुए ऐसी हालत में कि वतन से दूर ज़ुल्म का शिकार हुए। ईश्वर उसे पूरा करने वाला है जिस चीज़ का उसने आपसे वादा किया है, उसे बर्बाद करे जिसने आपको छोड़ दिया, उसे अभिशाप दे जिसने आपको क़त्ल किया। मैं गवाही देता हूं कि आपने ईश्वर से किया हुआ वादा पूरा किया, ईश्वर के मार्ग में जिहाद किया यहां तक कि शहीद हो गए।          

सच्ची दोस्ती के संबंध में एक बात जो बहुत अहम है वह यह कि व्यक्ति अपने दोस्त के दोस्तों से भी मोहब्बत करता है और इसी तरह अपने दोस्त दुश्मनों से दूरी अख़्तियार करता है। ज़ियारते अरबईन में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दोस्तों से मोहब्बत और उनके दुश्मनों से विरक्तता की गवाही देते हुए श्रद्धालु कहता है, हे पालनहार!

 

तू गवाह रहना कि मैं उसे अपना दोस्त समझता हूं जो हुसैन अलैहिस्सलाम को अपना दोस्त समझे और जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से दुश्मनी करता है मैं उसे अपना दुश्मन समझता हूं।

 

ज़ियारते अरबईन में श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नैतिक गुणों को बयान करते हुए कहता है, मेरा धर्म और मेरा कल्याण आपके मार्गदर्शन पर निर्भर है। मेरा मन आपके सामने नत्मस्तक है और सारी बातों में मैं आपका अनुसरण करने वाला हूं। आपकी मदद के लिए तय्यार हूं यहां तक कि ईश्वर इजाज़त दे। तो मैं आपके साथ हूं न कि आपके दुश्मन के साथ। श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आज्ञापालन का दिल से वचन देते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों पर ईश्वर की कृपा की कामना के साथ अपनी ज़ियारत को ख़त्म करने के लिए कहता है, ईश्वर की कृपा हो आप पर, आपकी पवित्र आत्माओं और आपके पवित्र शवों पर, आपके हाज़िर, ग़ाएब, विदित व निहित पर ईश्वर की कृपा हो। इस तरह श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है ताकि ख़ुद को उनके श्रद्धालुओं में शामिल करा सके। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम के बड़े अनुयायी जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी चेहुलम के दिन अपनी ज़ियारत के अंत में कहते हैं, “उस ईश्वर की क़सम जिसने मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम को सत्य को पहुंचाने के लिए चुना। मैं भी उस चीज़ में आप शहीदों के साथ सहभागी हूं जो आप पर गुज़री है।” इस बात पर जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी के साथ मौजूद लोगों ने उनसे पूछा कि किस तरह हम उनके साथ सहभागी हैं जबकि हमने उनके साथ मिल कर ईश्वर के मार्ग में तलवार नहीं चलाई? जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने कहा, मैंने पैग़म्बरे इस्लाम को यह फ़रमाते सुना है, “जो जिस गुट से प्रेम रखता है प्रलय के दिन उसे उस गुट के साथ उठाया जाएगा और जो व्यक्ति किसी गुट के कर्म को पसंद करता है तो वह भी उनके कर्म में सहभागी होगा।”  

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी izhamburg.de, की वेबसाइट के हवाले से,यह टूर्नामेंट 12 दिसंबर तक जारी रहेगा और, पढ़ने में(भाई), हिफ़्ज़ (भाइयों और बहनों), तर्तील(बहनों) अवधारणाओं के क्षेत्र में (भाइयों और बहनों) , अज़ान (भाई) और तवाशीह (भाई, संगीत के बिना) आयोजित किया जाएगा।

यह टूर्नामेंट 2 आयु समूहों 16 वर्ष से कम और 16 से अधिक वर्षों से विशेष है विभिन्न इस्लामी संप्रदायों से यूरोप में रहने वाले मुसलमान बिना उम्र प्रतिबंध के भाग ले सकते हैं।

टूर्नामेंट का उद्घाटन समारोह शुक्रवार मुक़ाबले, 30 नवंबर से स्थानीय समय 5 बजे और समापन समारोह रविवार 2 दिसंबर को आयोजित किया जाएगा।

कुरान की शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देना और प्रकाशन कुरानी विशषज्ञों के विकास व खिलने के लिऐ ज़मीनासाज़ी, कुरान reciters व हाफ़िज़ो के लिऐ रहस्योद्घाटन के कलाम से बहुत परिचित होना, यूरोप के क़ुरानी समाज में एकजुटता पैदा करना,और उच्चतम reciters और memorizers के अनुभवों का आदान-प्रदान प्रतियोगिता के उद्देश्यों की घोषणा की गई है ।

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