
رضوی
फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के सामने ज़ायोनी शासन ढेर
ज़ायोनी शासन के विशेषज्ञों ने कहा है कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन पर फ़िलिस्तीनियों के मीज़ाइल हमलों की स्थिति में, इस्राईल की सेना को अपनी कमज़ोरियों का सामना करना पड़ेगा।
फ़िलिस्तीनी इन्फ़ारमेशन सेन्टर की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी शासन के विशेषज्ञ यूसुफ़ शबरा ने कहा कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन पर हमले की स्थिति में लगभग बीस लाख इस्राईली बेघर हो जाएंगे और मीज़ाइल हमलों का निशाना बने रहेंगे और बस्तियों के ख़ाली करने और सुरक्षा के न होने की समस्या युद्ध के दौरान जारी रहेगी।
यूसुफ़ शबरा ने कहा कि इस्राईल को इन हालात के लिए स्वयं को तैयार रखना चाहिए कि दसियो हज़ार मीज़ाइल इस्राईल पर गिरेंगे क्योंकि इस्राईली सेना के कमान्डरों में आंतरिक मोर्चे की सुरक्षा में शंका पायी जाती है।
अमरीकी विशेषज्ञ की रिपोर्ट के आधार पर ज़ायोनी शासन के पूर्व युद्धमंत्री मूशे यालून ने 2014 में 50 दिवसीय युद्ध में फ़िलिस्तीनी गुटों के मीज़ाइल हमलों के मुक़ाबले में बस्तियों के निवासियों के समर्थन के मुद्दे को सुरक्षा कमेटी की बैठक में पेश नहीं किया था किन्तु उनकी योजना हमले पर आधारित थी।
म्यांमार में मलेशिया के राजदूत को तलब किया गया
म्यांमार के उप विदेशमंत्री ने म्यांमार के मुसलमानों के जनसंहार के बारे में मलेशिया के प्रधानमंत्री के बयान पर आपत्ति जताते हुए मलेशिया के राजदूत को विदेशमंत्रालय में तलब किया है।
न्यूज़ इलेवन की रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार के उप विदेशमंत्री ने बुधवार को मलेशिया के राजदूत हनीफ़ बिन अब्दुर्रहमान को तलब करके देश के बारे में मलेशियाई प्रधानमंत्री के बयान पर स्पीष्टीकरण मांगा है।
म्यांमार के उप विदशेमंत्री "तीन कियाओ" ने मलेशिया के राजदूत से मुलाक़ात में राख़ीन प्रांत में मुसलमानों के जातीय जनसंहार के समाचारों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि मलेशिया के प्रधानमंत्री के ग़ैर ज़िम्मेदाराना बनाया से क्षेत्र में हिंसा बढ़ सकती है।
ज्ञात रहे कि रविवार को मलेशिया के हज़ारों लोगों ने प्रधानमंत्री नजीब तून रज़्ज़ाक़ की उपस्थिति में कुआल्लांमपूर के एक स्टेडियम में एकत्रित होकर म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार की निंदा की थी।
मलेशिया के प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अपने भाषण में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार की निंदा करते हुए म्यांमार की विदेशमंत्री और सरकार की सर्वोच्च सलाहकार आंग सांग सूची से मांग की थी कि मुसलमानों का जनसंहार रोका जाए और उनकी रक्षा की जाए।
म्यांमार के राख़ीन प्रांत में 2012 से रोहिंग्या मुसलमानों पर बौद्ध चरमपंथियों के हमले हो रहे हैं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत
आठ रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी क़मरी को अभी सूरज निकला भी नहीं था कि सच्चाई और मार्गदर्शन के सूरज इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम शहीद हो गये जिससे पूरा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।
इमाम और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजन समस्त मानवीय सदगुणों के उत्कृष्टतम प्रतीक हैं। इन महान हस्तियों की पावन जीवनी विश्ववासियों के समक्ष संपूर्ण इंसान की तस्वीर पेश करती है। ऐसा परिपूर्ण इंसान जिसने महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने और उसके दुश्मनों से दूरी बनाये रखने के लिए उपासना और जेहाद आदि समस्त क्षेत्रों में सत्य के मार्ग को तय किया हों। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सच्चाई और मार्गदर्शन के सूरज हैं। उन्होंने अपनी छोटी उम्र के अधिकांश भाग को अपनी इच्छा के विपरीत अपने पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के साथ सामर्रा की अस्कर नामक छावनी में व्यतीत किया। अपने पिता इमाम अली नक़ी अलहिस्सलाम की शहादत के बाद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला और अत्याचारी शासकों और बहुत अधिक प्रतिबंध होने के बावजूद उन्होंने 6 वर्षों तक ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार- प्रसार किया।
इमाम, मार्गदर्शन में बुद्धि और नसीहत के महत्व की ओर संकेत करते हुए इस प्रकार फरमाते हैं।“ दिल में इच्छा और आंतरिक भावना के विभिन्न विचार होते हैं परंतु बुद्धि रुकावट बनती है और अनुभवों के भंडार से नया ज्ञान प्राप्त होता है। और नसीहत मार्गदर्शन का कारण है।“
पापों से रोकने वाले कारक के रूप में भय और आशा के बारे में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जो भय और आशा अपने स्वामी को उस बुरे कार्य से न रोक सके जो उसके लिए उपलब्ध हो गया है और उस मुसीबत पर धैर्य न करे जो उस पर आ गयी है तो उसका क्या लाभ है? इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पाप को हल्का समझने के बारे में फरमाते हैं” माफ़ न किए जाने वाले पापों में से एक पाप यह है कि पाप करने वाला यह कहे कि काश इस पाप के अलावा किसी और का दंड न दिया जाता।“
इन सब बातों के अलावा इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम लोगों के विभिन्न वर्गों को अपने अनुयाइयों से पहचनवाते और कहते थे कि मार्गदर्शन के लिए किस गुट को समय विशेष करना चाहिये। वास्तव में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपने चाहने वालों को यह बताते थे कि मार्गदर्शन में संबोधक की पहचान बहुत ज़रूरी है। “क़ासिम हरवी” नाम का इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का एक अनुयाई कहता है” इमाम के हाथ का लिखा हुआ एक पत्र उनके एक अनुयाई के हाथ में पहुंचा। इस पत्र को लेकर इमाम के कुछ अनुयाइयों के मध्य बहस हो गयी तो मैंने इमाम के नाम एक पत्र लिखा ताकि उन्हें उनके अनुयाइयों के मध्य मतभेद से सूचित कर दूं और इस संबंध में मार्गदर्शन प्राप्त करूं। मेरे पत्र के उत्तर में इमाम ने लिखा” बेशक ईश्वर ने बुद्धिमान लोगों को संबोधित किया है और पैग़म्बरे इस्लाम से बढ़कर किसी ने अपनी पैग़म्बरी को सिद्ध करने के लिए तर्क पेश नहीं किया। इसके बावजूद सबने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम जादूगर और झूठे हैं। ईश्वर ने हर उस व्यक्ति का पथप्रदर्शन किया जो मार्गदर्शन को स्वीकार करने वाला था। क्योंकि बहुत से लोग तर्क को स्वीकार करते हैं। जब भी ईश्वर सत्य व हक़ को अस्तित्व में न लाना चाहे चाहे तो कभी भी अस्तित्व में नहीं आयेगा। उसने पैग़म्बरों को भेजा ताकि वे लोगों को डरायें और आशा दिलायें और कमज़ोर एवं शक्ति की हालत में स्पष्ट रूप से लोगों को सत्य के लिए आमंत्रित करें और सदैव उनसे बात करें ताकि ईश्वर अपने आदेश को लागू करे। लोगों के विभिन्न वर्ग हैं जो समझ- बूझ व अंतर्दृष्टि रखते हैं उन्होंने मुक्ति व कल्याण का मार्ग पहचान लिया और सच व हक़ को भाग लिया और मज़बूत शाखाओं से जुड़े रहे तथा उन्होंने किसी प्रकार का संदेह नहीं किया और दूसरे की शरण में नहीं गये। लोगों का दूसरा वर्ग उन लोगों का है जिन्होंने हक़ को उसके पात्रों से नहीं लिया वे उन लोगों की भांति हैं जो समुद्र में यात्रा करते हैं और समुद्र में उसकी लहरों से व्याकुल हो जाते हैं और उसकी लहरों के शांत हो जाने से उन्हें शांति हो जाती है। लोगों का एक वर्ग शैतान का अनुयाई हो गया है और वह सत्य के अनुयाइयों की बातों को रद्द करता है और अपनी ईर्ष्या के कारण वह सत्य को असत्य से पराजित करता है। इस आधार पर जो लोग इधर- उधर भटकते हैं उन्हें उनकी हाल पर छोड़ दो।“
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अच्छाई का आदेश देने और पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों के मध्य सुधार करने के उद्देश्य से विभिन्न शैलियों का प्रयोग करते थे। जिस समय इमाम कारावास में थे उन्होंने अपने सदव्यवहार से कारावास के कर्मचारियों को इस प्रकार परिवर्तित कर दिया करते थे कि जब वे कारावास से बाहर जाते थे तो इमाम के सदगुणों व विशेषताओं से सबसे अधिक जानकार होते थे। शैख कुलैनी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक उसूले काफी में इस प्रकार लिखते हैं” मोअतज़ ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करने के बाद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर भारी दबाव डाल रखा यहां तक कि उसने कई बार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल में डाल दिया। मोअतज़ का प्रयास होता था कि वह सबसे क्रूर व्यक्ति को इमाम पर निगरानी के लिए तैनात करे ताकि वह इमाम को खूब कष्ट पहुंचाये। एक बार उसने इमाम को सालेह बिन वसीफ़ नाम के व्यक्ति के हवाले किया। सालेह, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का कट्टर विरोधी व दुश्मन था। उसने अच्छा मौक़ा समझा। उसने स्वयं से तुच्छ व्यक्तियों को कारावास में इमाम पर नियुक्त किया ताकि वह रात-दिन इमाम को कष्ट पहुंचाये। एक दिन अब्बासियों का एक गुट सालेह बिन वसीफ़ के पास आया। सालेह ने उनसे कहा मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं? जिन्हें मैं जानता था उनमें से बहुत ही क्रूर व तुच्छ दो व्यक्तियों को इमाम पर नज़र रखने के लिए तैनात किया था परंतु कुछ ही समय में इमाम ने उन ऐसा प्रभाव डाला कि वे उपासना करने वाले बन गये। मैंने उनसे पूछा कि उनके बारे में क्या कहते हो? तो उन्होंने उत्तर दिया उसके बारे में क्या कहूं जो दिनों को रोज़ा रखता है और रातों को सुबह तक नमाज़ पढ़ता है न बात करता है और न उपासना के अलावा कुछ और करता है। हम जब भी उसे देखते हैं उसके दबदबे से थर्राने लगते हैं।“
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम हर गुट व दल के साथ उचित व्यवहार के लिए उस के हिसाब से शैली अपनाते थे। कभी नसीहत, कभी चेतावनी, कभी विशेष व्यक्तियों का प्रशिक्षण और उन्हें शैक्षणिक केन्द्रों में भेजते थे। प्रसिद्ध लेखक इब्ने शहर आशूब लिखते हैं कि इस्हाक़ केन्दी को इस्लामी और अरब जगत का दर्शनशास्त्री समझा जाता था और वह इराक में रहता था। उसने “तनाक़ुज़े कुरआन” अर्थात कुरआन के विरोधाभास नाम की एक किताब लिखी। एक दिन उसका एक शिष्य इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की सेवा में गया। इमाम ने उससे फरमाया क्यों तुम अपने उस्ताद की बातों का उत्तर नहीं देते? उसने कहा कि हम सब शिष्य हैं हम अपने उस्ताद की ग़लतियों पर आपत्ति नहीं कर सकते! इमाम ने फरमाया अगर तुम्हें कोई बात बताई जाये तो तुम उसे अपने उस्ताद से बता सकते हो उसके शिष्य ने कहा हां। इमाम ने फरमाया जब यहां से लौट कर जाना तो अपने उस्ताद के पास जाना और उससे प्रेम व गर्मजोशी से पेश आना और उससे निकट होने का प्रयास करो और जब पूरी तरह निकट हो जाओ तो उससे कहना। मेरे सामने एक समस्या पेश आई है और वह यह है कि क्या यह संभव है कि क़ुरआन के कहने वाले ने उस अर्थ के अलावा किसी और अर्थ का इरादा किया हो जो आप सोच रहे हैं? वह जवाब में कहेगा हां यह संभव है इस प्रकार का उसका तात्पर्य हो सकता है। उस समय तुम कहना आप को क्या पता? शायद क़ुरआन की बोती की कहने वाले ने उस अर्थ के अलावा किसी दूसरे अर्थ का इरादा किया हो जिसे आप सोच रहे हैं और आपने उसके शब्दों का प्रयोग दूसरे अर्थ में किया हो? इमाम ने यहां पर आगे कहा” वह समझदार इंसान है इस बिन्दु को बयान करना काफी है कि उसका ध्यान अपनी ग़लती की ओर चला जाये। शिष्य ने इमाम के कहने के अनुसार व्यवहार किया। उस्ताद ने सच्चाई स्वीकार कर लेने के बाद उसे शपथ दी कि तुम यह बताओ कि तुमने यह बात कहां सुनी। अंततः शिष्य ने बता दिया कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार फरमाया था। केन्दी ने भी कहा अब तुमने वास्तविकता कही। उसके बाद उसने कहा कि इस प्रकार का सवाल इस परिवार की शोभा है। उसके बाद उसने आग मंगवाई और तनाक़ुज़े क़ुरआन नाम की किताब में जो कुछ लिखा था उसे जला दिया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पूरी तरह अब्बासी शासकों के नियंत्रण में थे फिर भी वे इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पावन अस्तित्व को सहन नहीं कर पा रहे थे इसी आधार पर वे इमाम को रास्ते से हटा देने की सोच में पड़ गये। इसी कारण अत्याचारी अब्बासी शासक मोअतमिद ने एक षडयंत्र रचकर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को ज़हर दे दिया। इमाम उसी ज़हर के कारण कई दिनों तक बीमारी के बिस्तर पर पड़े रहे और उन दिनों मोअतमिद लगातार दरबार के चिकित्सकों को इमाम के पास भेजता था ताकि लोग यह समझें कि इमाम बीमार हैं और दूसरी ओर इमाम का दिखावटी उपचार करके लोगों की सहानुभूति प्राप्त करे और स्थिति पर भी पैनी नज़र रख सके और अगर इमाम के उत्तराधिकारी के संबंध में कोई संदिग्ध गतिविधि भी दिखाई दे तो उसे उसकी रिपोर्ट दी जाये। इमाम कुछ समय की कठिन बीमारी के बाद आठ रबीउल अव्वल 260 हिजरी क़मरी को शुक्रवार के दिन सुबह की नमाज़ के समय शहीद हो गये। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम 29 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहे पर 6 वर्षों की इमामत के दौरान उन पर पवित्र क़ुरआन की व्याख्या, इस्लाम की शुद्ध शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार के साथ ऐसे सुपुत्र के पालने की जिम्मेदारी थी जो अंतिम समय में प्रकट होगा और अत्याचार से भरी पूरी दुनिया एवं पूरी मानवता को मुक्ति दिलायेगा। महामुक्तिदाता हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम 255 हिजरी क़मरी में पैदा हुए थे और महान ईश्वर के आदेश से वह आज तक जीवित हैं और लोगों की नज़रों से ओझल हैं और महान ईश्वर के आदेश से प्रकट होंगे और पूरे संसार को न्याय से भर देंगे और हर तरफ शांति ही शांति होगी।
ईरानी संसद सभापति: अमरीका को उसके निर्णय का जवाब दिया जाएगा।
ईरान के संसद सभापति डाक्टर अली लारीजानी ने ईरान विरोधी दस वर्षीय प्रतिबंधों की समय सीमा बढ़ाने के क़ानून के बारे में सेनेट के निर्णय को यातनादायक कार्यवाही बताया है।
संसद सभापति ने मंगलवार की शाम एक पत्रकार सम्मेलन में अमरीका की ओर से जेसीपीओए के उल्लंघन और ईरान विरोधी प्रतिबंधों के जारी रहने के बारे में कहा कि देश की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और जेसीपीओए के क्रियान्वयन पर नज़र रखने वाली परिषद, अमरीका की इन कार्यवाहियों के मुक़ाबले के बारे में फ़ैसला करेगी।
डाक्टर अली लारीजानी ने कहा कि जेसीपीओए के दस्तावेज़ के 70वें अनुच्छेद में आया है कि सरकार को अपने प्रतिरक्षा आधारों को मज़बूत करना चाहिए और मीज़ाइल के क्षेत्र में भी ईरान को अपनी मीज़ाइल क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए।
संसद सभापति ने कहा कि परमाणु समझौता, ईरान और अमरीका के मध्य हुआ कोई समझौता नहीं है बल्कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र संघ में पास हुआ है और इसी के आधार पर एक प्रस्ताव भी पारित किया गया है और यह कोई बात नहीं हुई कि एक देश इसके बारे में फ़ैसला करे और इसका उल्लंघन करे।
संसद सभापति ने सीरिया संकट के बारे में कहा कि सीरिया संकट के समाधान का बेहतरीन मार्ग, राजनैतिक वार्ता है क्योंकि सैन्य समाधान का कोई परिणाम सामने नहीं आएगा। संसद सभापति ने इसी प्रकार इराक़ के बारे में कहा कि ईरान ने सदैव इराक़ की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान किया है।
संसद सभापति ने कहा कि क्षेत्र की विषम परिस्थिति से सबसे अधिक लाभ ज़ायोनी शासन उठा रहा है क्योंकि इन परिस्थितियों में फ़िलिस्तीनी जनता के उमंगों के लिए प्रयास करना कठिन हो गया है। उन्होंने कहा कि समस्त देशों को चाहिए कि इस संबंध में अपने सहयोग बढ़ाएं।
अमेरिका में मुसलमानों को हिंसात्मक हमलों का सामना।
आधिकारिक रूप से डोनल्ड ट्रंप के सत्ता की बागडोर संभालने से पहले इस्लामी केन्द्रों और मुसलमानों पर हमले ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के कुछ परिणाम हैं जो अभी से स्पष्ट हो गये हैं।
अमेरिका में हालिया सप्ताहों विशेषकर इस देश में राष्ट्रपति चुनावों के परिणामों की घोषणा के बाद इस देश की अधिकांश मुसलमान महिलाओं को हिंसात्मक हमलों का सामना रहा है।
इस संबंध में अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसमें आया है कि अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने चुनावी प्रचार के दौरान जो अतिवादी भाषण दिये थे वे इस देश में विशेषकर मुसलमानों के विरुद्ध घृणा और अपराध में वृद्धि का कारण बने हैं।
आधिकारिक रूप से डोनल्ड ट्रंप के सत्ता की बागडोर संभालने से पहले इस्लामी केन्द्रों और मुसलमानों पर हमले ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के कुछ परिणाम हैं जो अभी से स्पष्ट हो गये हैं।
इस मध्य हिजाब करने के कारण सबसे अधिक मुसलमान महिलाओं को सामाजिक, मानसिक और दूसरे प्रकार के हमलों का सामना है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों की घोषणा से लेकर अब तक 700 से अधिक बार अमेरिकी मुसलमानों के विरुद्ध हमले पंजीकृत हो चुके हैं। इन हमलों से मुकाबले के लिए बहुत सी मुसलमान महिलाएं हमलों से बचाव की प्रशिक्षण क्लासों में जाने पर बाध्य हुई हैं।
डोनल्ड ट्रंप ने इस्लाम विरोधी अपने एक भाषण में कहा था कि अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश को रोका जाना चाहिये।
अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भी डोनल्ड ट्रंप का यही दृष्टिकोण है। वास्तव में डोनल्ड ट्रंप के इस्लाम और मुसलमान विरोधी वक्तव्यों ने अमेरिका में दक्षिणपंथियों और जातीवादियों को आवश्यक बहाना दे दिया है ताकि वे इस्लामी केन्द्रों और मुसलमानों पर अपने हमलों को जारी रख सकें।
अभी कुछ दिन पूर्व अमेरिका और इस्लामी संबंधों की परिषद ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी कि अमेरिका में मुसलमानों के प्रति जो नकारात्मक आभास है वह इस देश के राजनीतिक वातावरण से प्रभावित है और इसी संबंध में अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश को रोके जाने पर आधारित उसने डोनल्ड ट्रंप के वक्तव्य की ओर संकेत किया।
मस्जिदों और उपासना स्थलों पर हमले व आग लगाये जाने, इसी प्रकार मुसलमानों के साथ भेदभाव और हमलों को अमेरिकी समाज में मौजूद इस्लामोफोबिया के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
ईरान ने अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी कीं, आईएईए
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए ने पुष्टि की है कि ईरान ने परमाणु समझौते के अंतर्गत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करते हुए 11 टन भारी पानी देश से बाहर भेज दिया है।
कूटनयिक सूत्रों ने आईएईए के दस्तावेज़ों के आधार पर रिपोर्ट दी है कि आईएईए ने छह दिसम्बर को यह पुष्टि कर दी कि ईरान 11 टन भारी पानी बाहर भेज चुका है जिसके बाद ईरान के पास भारी पानी का भंडार 130 टन से कम हो गया है।
ईरान ने छह विश्व शक्तियों के साथ हुए परमाणु समझौते के तहत अपना परमाणु कार्यक्रम सीमित किया है लेकिन दूसरी अमरीका ने इस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं नहीं पूरी की हैं बल्कि परमाणु समझौते का बार बार उल्लंघन किया है। इस संदर्भ में ताज़ा घटना ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों के क़ानून की अवधि बढ़ाने संबंधी बिल का अमरीकी कांग्रेस से पारित होना है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने घोषणा कर दी है कि वह अमरीका द्वारा परमाणु समझौते के उल्लंघन पर निश्चित रूप से जवाबी कार्यवाही करेगा।
रोहिंगिया मुसलमानों के जनसंहार की जांच के लिए कूफ़ी अन्नान की मियांमार यात्रा
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कूफ़ी अन्नान म्यांमार की सेना के हाथों रोहिंगिया मुसलमानों के जनसंहार के बारे में जांच के लिए राख़ीन प्रांत पहुंचे हैं।
प्रेस टीवी के अनुसार अन्नान एक टीम के साथ शुक्रवार को एेसी स्थिति में राख़ीन प्रांत पहुंचे कि जब म्यांमार के सरकारी आंकड़ों के अनुसार हालिया वर्षों में सेना के हाथों सैकड़ों रोहिंगिया मुसलमान मारे गए हैं। कूफ़ी अन्नान के म्यांमार पहुंचने पर इस देश के कुछ सरकार विरोधियों ने सरकार के विरुद्ध नारे लगाए और विदेश मंत्री तथा सरकार की वरिष्ठ सलाहकार आंग सांग सूची के ख़िलाफ़ नारे लगाए। सूची विदित रूप से प्रजातांत्रिक सिद्धांतों पर कटिबद्धता की बात करती हैं लेकिन उन्होंने रोहिंगिया मुसलमानों की स्थिति की अनदेखी करके देश में नस्ली भेदभाव को औपचारिकता प्रदान कर दी है।
आंग सान सूची ने अगस्त में अन्नान से अपील की थी कि वे एक टीम के साथ रोहिंगिया मुसलमानों के जनसंहार के कारणों की जांच करें। हालिया वर्षों में रोहिंगिया मुसलमानों के विरुद्ध चरमपंथी बौद्धों की हिंसक कार्यवाहियों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं जबकि तीस हज़ार से अधिक रोहिंगिया मुसलमान बेघर हो गए हैं।रोहिंगिया मुसलमान म्यांमार में नागरिक अधिकारों से वंचित हैं और एक लाख बीस हज़ार से अधिक रोहिंगिया मुसलमान शरणार्थी शिविरों में अत्यंत दयनीय स्थिति में जीवन बिता रहे हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का स्वर्गवास और इमाम हसन की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा अपने स्वर्गवास से पहले इस्लाम को परिपूर्ण धर्म के रूप में मानवता के सामने पेश कर चुके थे।
उन्होंने कहा था कि मुझको नैतिकता को उच्च स्थान तक पहुंचाने के लिए भेजा गया है। जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम इस नश्वर संसार में आए उस समय अरब जगत में अज्ञानता का अंधेरा छाया हुआ था। ईश्वर के बारे में उस समय के अरब लोगों के विचार अंधविश्वासों पर आधारित थे। वे लोग ज्ञान से बहुत दूर थे। उस काल में महिलाओं को कोई विशेष महत्व प्राप्त नहीं था।
पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन में अथक प्रयास करते हुए अज्ञानता से संघर्ष किया और उस काल में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों को दूर करने के लिए अन्तिम समय तक प्रयास किये। अपने पहले संदेश में पैग़म्बरे इस्लाम ने ज्ञान के महत्व को समझाते हुए ज्ञान अर्जित करने पर बल दिया। उन्होंने लोगों को एकेश्वर की उपासना का निमंत्रण दिया।
वास्तव में ईश्वर द्वारा उसके दूतों को भेजने का मूल उद्देश्य यह था कि मनुष्यों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया जाए कि महान ईश्वर के अतिरिक्त किसी उन्य की उपासना नहीं करनी चाहिये। पैग़म्बरे इस्लाम ने जिस एकेश्वरवाद की आधारशिला रखी उसमें प्रेम और ईमान जैसे रत्न हैं। पैग़म्बर द्वारा बताया गया ईमान एसा ईमान है जो मनुष्य के दिल में होता है और वह सही दिशा में मनुष्य का मार्गदर्शन करता है। ईश्वर के अन्तिम दूत पैग़म्बरे इस्लाम, दया व कृपा की प्रतिमूर्ति थे। महान ईश्वर ने उन्हें पूरे संसार के लिए दया व कृपा का आदर्श बताया है। जिन लोगों ने वर्षों, पैग़म्बरे इस्लाम (स) से शत्रुता की थी पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें माफ कर दिया। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने हर प्रकार की हिंसा, अन्याय, भेदभाव और पक्षपात का विरोध किया और सबके साथ समान व्यवहार किया। पैग़म्बरे इस्लाम की कृपा और उनकी दया केवल उनके परिवार वालों या मानने वालों तक ही सीमित नहीं थी बल्कि इससे अन्य धर्मों के मानने वाले भी लाभान्वित होते थे। इस्लाम धर्म को भलिभांति पहचानने का एक मार्ग, पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन का अध्ययन है। पवित्र क़ुरआन में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को मानवता के लिए आदर्श के रूप में बताया गया है।
पवित्र क़ुरआन में अंतिम ईश्वरीय दूत की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख किया गया है और विभिन्न अवसरों पर उनके बारे में बताया गया है। ईश्वरीय संदेश में पैग़म्बरे इस्लाम के आज्ञापालन को ईश्वर के आज्ञापालन और उनकी अवज्ञा को ईश्वर की अवज्ञा की संज्ञा दी गई है। पवित्र क़ुरआन अनेक आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व व शिष्टाचार की प्रशंसा करता है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस्लाम इतने कम समय में जो विश्व के कोने-कोने में फैल गया उसका मुख्य कारण पैग़म्बरे इस्लाम का व्यक्तित्व था। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मुसलमान, पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन का अनुसरण करके लोक-परलोक में कल्याण प्राप्त कर सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम के दृष्टिगत समाज वह है जिसके सभी सदस्य एकेश्वरवाद के आधार पर एक-दूसरे से भाईचारा रखें। इस आदर्श समाज में भाईचारे की भावना प्रवाहित होगी और इसके सारे सदस्य एक दूसरे से एसे मिलेंगे जिससे एकता को बल मिले। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि प्रेम, मित्रता और दया में ईमान वाले एक शरीर के अंगों की भांति हैं। जब कोई अंग किसी समस्या के कारण पीड़ा में होता है तो यह पीड़ा अन्य अंगों को निश्चित रूप से प्रभावित करती है। एकता का पाठ सिखाने वाले पैग़म्बरे इस्लाम का एक क़दम यह है जो उन्होंने मक्के पर विजय प्राप्त करने के बाद उठाया। आपने कहा था कि हर मुसलमान, मुसलमान का भाई है। उसे अपने भाई पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। अपने भाई को अपमानित नहीं करना चाहिए और उसके साथ कभी भी विश्वासघात नहीं करना चाहिए।
पैग़म्बरे इस्लाम ने एकता व एकजुटता को प्रबल बनाने के लिए नस्लभेद और जातिवाद को पूर्ण रूप से नकार दिया। इस्लाम ने जातिवाद और नस्लभेद से संघर्ष किया और कहा है कि केवल तक़वा या ईश्वरीय भय ही श्रेष्ठता का एकमात्र मापदंड है। उन्होंने नस्लभेद को समाप्त और एकता को मज़बूत करने के लिए बेलाले हब्शी और सलमान फ़ारसी को सम्मान दिया ताकि जातिवाद और नस्लभेद का अंत हो तथा ईश्वरीय व धार्मिक मूल्यों के पालन को सामाजिक महत्व प्राप्त हो।
पैग़म्बरे इस्लाम के बड़े नवासे हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का भी शहादत दिवस है। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के 40 वर्षों के बाद सन 50 हिजरी क़मरी को आज ही के दिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम, हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा के बड़े बेटे थे। अपने जीवन के आठ वर्ष उन्होंने अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम के साथ व्यतीत किये थे। पैग़म्बरे इस्लाम से उन्होंने बहुत कुछ सीखा था। कभी-कभी ऐसा भी होता था कि जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम पर वह्य नाज़िल होती थी उस समय इमाम हुसैन भी वहां पर हुआ करते थे। इन आयतों को वे अपनी माता हज़रत फ़ातेमा को सुनाया करते थे। इमाम हसन के बारे में कहा जाता है कि उनका व्यक्तित्व उनकी चाल-चलन सबकुछ पैग़म्बरे इस्लाम से मिलता-जुलता था। वे लोगों में बहुत अधिक दान-दक्षिणा किया करते थे जिसके कारण उन्हें करीमे अहलैबैत भी कहा जाता है। करीम का अर्थ होता है अधिक दान-दक्षिणा करने वाला।
अपने पिता इमाम अली की शहादत के बाद इमाम हसन ने ईश्वर की ओर से लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व संभाला था। जिस समय इमाम हसन ने यह ईश्वरीय दायित्व संभाला उस समय इस्लामी समाज बहुत ही संवेदनशील चरण से गुज़र रहा था। अपने एक संबोधन में इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम को, वास्तविकता को स्पष्ट करने वाले द्वीप की संज्ञा दी थी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वे पैग़म्बरे इस्लाम के मार्ग पर चलेंगे।
इमाम हसन के ईश्वरीय पद पर आसीन होने से माविया बहुत क्रोधित हुआ। सीरिया पर शासन करने वाले माविया ने इमाम हसन से मुक़ाबला करने की योजना बनाई। वह विभिन्न बहानों से इमाम हसन को क्षति पहुंचाने के प्रयास में लगा रहता था। इमाम हसन ने माविया को संबोधित करते हुए कहा था कि वह अपनी ग़लत हरकतें छोड़ दे। इस्लामी जगत का विशाल भाग इमाम हसन के शासन के अधीन था किन्तु इस दौरान मोआविया की ओर से निरंतर विध्वंसक कृत्य किए जा रहे थे जो सीरिया का तत्कालीन शासक था। माविया की ओर से अवज्ञा और विध्वंसक कृत्य के कारण युद्ध छिड़ने की नौबत आ गई थी और इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी युद्ध के लिए सेना तैयार कर ली थी किन्तु इस्लामी समाज की उस समय की स्थिति के दृष्टिगत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने युद्ध करने में संकोच से काम लिया। इसी समय माविया ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को शांति संधि का प्रस्ताव दिया और इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भविष्य को देखते हुए उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
शांति का प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने एक भाषण में कहा था कि इस समय युद्ध, मुसलमानों के हित में नहीं है। इसके बाद उन्होंने सूरए अंबिया की आयत संख्या 111 पढ़ी जिसके अनुसार शांति समझौता, लोगों की परीक्षा और उनके हित में है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम इस बात को भलिभांति समझ चुके थे कि उद्देश्य की प्राप्ति, सैन्य मार्ग से संभव नहीं है। इमाम हसन का उद्देश्य शुद्ध इस्लाम की रक्षा करना और उसे कुरीतियों से सुरक्षित करना था। ऐसे में इमाम के सामने माविया से संधि करने के सिवा कोई अन्य मार्ग नहीं था। यही कारण था कि वे सत्ता से हट गए ताकि इस्लामी जगत को और गंभीर ख़तरों से बचाया जाए। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने इस क़दम से यह दर्शा दिया कि वे सत्तालोलुप नहीं हैं क्योंकि ये सब उच्च उद्देश्य तक पहुंचने के साधन मात्र हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं को जीवित रखना और धर्म की रक्षा करना इमामों का मुख्य उद्देश्य रहा है। शासन का गठन करना, असत्य के ख़िलाफ़ उठ खड़े होना, शांति संधि करना और मौन इन सबके पीछे इमाम का उद्देश्य इस्लाम की रक्षा तथा पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को जीवित करना था। जब परिस्थिति ऐसी हुईं कि असत्य के ख़िलाफ़ उठ खड़े होना ज़रूरी हो गया तो वे उठ खड़े हुए और फिर उन्होंने मौत से टक्कर ली। यदि परिस्थिति ऐसी होतीं कि शांति संधि से इस्लाम की रक्षा हो सकती थी तो वे संधि करते थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी समाज की स्थिति इतनी संवेदनशील हो गयी थी कि माविया से जंग करने के परिणाम में इस्लाम के मिट जाने का ख़तरा मौजूद था।
इमाम हसन की गतिविधियों से माविया बहुत चिंतित था। उसने इनको रुकवाने के लिए बहुत प्रयास किये किंतु सफल नहीं हो सका। अंततः उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम की हत्या करने की योजना बनाई। इस प्रकार माविया ने एक षडयंत्र के अन्तर्गत सन 50 हिजरी क़मरी को इमाम को ज़हर दिलवाया जिसके कारण आज ही के दिन वे शहीद हो गए।
दोबारा प्रतिबंध, समझौते का उल्लंघन है, वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अमरीकी कांग्रेस को चेतावनी देते हुए कहा है कि एेसे प्रतिबंधों को दोबारा लागू करना जिन का समय समाप्त हो चुका हो, प्रतिबंध लगाना और वचनों का उल्लंघन है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनई ने रविवार को इस्लामी गणतंत्र ईरान की नौसेना दिवस के अवसार पर नौसेना के कमांडरों से मुलाकात की और ईरान के खिलाफ अमरीकी कांग्रेस की ओर से प्रतिबंधों की समय सीमा बढ़ाए जाने और इस दावे का उल्लेख करते हुए कि यह प्रतिबंध लगाना नहीं बल्कि पहले से लगे प्रतिबंध की सीमा बढ़ाना है, कहा कि नया प्रतिबंध लगाना या किसी प्रतिबंध की समय सीमा समाप्त होने के बाद उसे बढ़ाना एक ही बात है और समय सीमा बढ़ाना भी प्रतिबंध लगाना तथा दूसरे पक्ष की ओर से की गयी प्रतिबद्धता का उल्लंघन है।
वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार ईरान की नौसेना की विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की की सराहना की और कहा कि सभी योजनाओं और कार्यक्रमों को पूरा करना ज़रूरी है।
वरिष्ठ नेता ने कुछ देशों के विकास में जहाज़रानी के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान के पास बड़ी समुद्री सीमा और जहाज़रानी का पुराना अनुभव है इस आधार पर नौसेना की शक्ति और क्षमता इस्लामी व्यवस्था की शान और ईरान के इतिहास के अनुसार होना चाहिए।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इसी प्रकार आजा़द समुद्र में ईरानी नौसेना की शक्तिशाली उपस्थिति को ईरान की शक्ति में वृद्धि का कारण बताया और कहा कि अतंरराष्ट्रीय समुद्र में ईरानी नौसेना की उपस्थिति बढ़ायी जानी चाहिए।
वरिष्ठ नेता के भाषण से पहले ईरानी नौसेनाध्यक्ष एडमिरल हबीबुल्लाह सैयारी ने आज़ाद समुद्र में ईरानी नौसेना की शक्तिशाली उपस्थिति पर एक रिपोर्ट पेश की।
ईरान में हर साल 27 नवम्बर को नौसेना दिवस मनाया जाता है।
स्लोवाकिया में इस्लाम के लिए कोई स्थान नहीं,
पश्चिमी देशों में फैलाई जा रही इस्लाम विरोधी लहर के बीच स्लोवाकिया ने एक क़ानून पास किया है जो इस्लाम को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त धर्म का दर्जा देने से रोकता है।
यह प्रस्ताव दक्षिणपंथी स्लोवाक नेशनल पार्टी की ओर से संसद में पेश किया गया था। इसमें कहा गया है कि किसी भी धर्म को औपचारिक रूप से उस समय मान्यता प्राप्त हो सकती है जब उसके मानने वालों की संख्या कम से कम 50 हज़ार हो। पार्टी के नेता आंदरेज दान्को ने कहा कि हमें भविष्य में किसी भी मस्जिद के निर्माण को रोकने के लिए हर संभव क़दम उठाना चाहिए।
स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री राबर्ट फ़ीको कह चुके हैं कि इस देश में इस्लाम के लिए कोई स्थान नहीं है।