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हज पर चर्चा करने के लिए ईरानी प्रतिनिधिमंडल सऊदी अरब की यात्रा
हज की वेबसाइट के हवाले से, हुज्जतु ल इस्लाम सैय्यद अली क़ाजी, हज और तीर्थयात्रा मामलों में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि और ईरानियों के सरपरस्त ने कहा, इन्शाअल्लाह, उसी तारीख पर कि सऊदी अधिकारियों ने कहा है ईरानी प्रतिनिधिमंडल वार्ता के लिए सऊदी अरब की यात्रा करेगा।
हज मामलों में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि इस बारे में कि ईरानी प्रतिनिधिमंडल किस तारीख में सऊदी अरब का दौरा करेगा, कहाः ईरानी प्रतिनिधिमंडल 24 फ़रवरी को सऊदी अरब की यात्रा करेगा और हम आशा करते हैं कि इस बैठक में अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सकें और विशिष्ट परिणाम प्राप्त कर सकें।
क़ाज़ी अस्कर इस बारे में कि हमारे देश के विदेश मंत्री ने घोषणा की है कि हज तमत्तो इस साल ना मुम्किन है,कहाःकि वर्तमान में इस बारे में कोई बात यक़ीनी नहीं है और हम जब तक हमारे लिऐ शरायत मौजूद होंगे तो हज में जाऐंगे लेकि बिला शक समस्याऐं अधिक हैं उनका समाधान होना चाहिऐ।
ईरान से भारत तेल निर्यात में रिकार्ड तोड़ वृद्धि
पश्चिम की ओर से ईरान पर लगे प्रतिबंधों के हटने के बाद भारतीय तेल कंपनियों ने ईरान से बड़ी मात्रा में तेल आयात करना आरंभ कर दिया है।
रोइटर्ज़ के हवाले से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार भारत ने वर्ष 2016 में ईरान से तेल आयात करने में रिकार्ड तोड़ वृद्धि की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत द्वारा ईरान से बड़ी मात्रा में तेल ख़रीदने की वजह से वर्ष 2016 में ईरान, भारत के तेल की आपूर्ति करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है जबकि वर्ष 2015 में ईरान पांचवें नंबर पर था। प्रतिबंधों से पहले तक ईरान, भारत को तेल की आपूर्ति करने वाले दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश था।
रिपोर्टों से पता चलता है कि वर्ष 2016 में दुनिया में तीसरे नंबर पर सबसे अधिक तेल ख़र्च करने वाले देश के रूप में भारत ने प्रतिदिन चार लाख 73 हज़ार बैरल तेल ईरान से ख़रीदे जबकि वर्ष 2015 में यह संख्या 2 लाख 8 हज़ार तीन सौ बैरल प्रतिदिन थी।
दिसंबर के महीने पिछले वर्ष की तुलना में ईरान से भारत ने तीन गुना तेल आयात किया है और इस प्रकार प्रतिदिन पांच लाख 46 हज़ार 600 बैरल तेल ईरान से ख़रीदता रहा है। भारतीय तेल कंपनियों ने वर्ष 2015 में ईरान पर लगे पश्चिम के प्रतिबंधों और बीमा समस्याओं के कारण ईरान से तेल ख़रीदना कम कर दिया था।
रिलायंस इन्टरप्राइज़ेज़, भारत पेट्रोलियम, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम और मित्तल एनर्जी जैसी भारत की प्रसिद्ध तेल कंपनियों ने पिछले वर्ष तेहरान की ओर से दी गयी भारी छूट के बाद ईरान से पुनः तेल की ख़रीदारी शुरु कर दी।
पिछले सप्ताह म्यांमार से 22 हजार मुसलमानों ने फरार किया
समाचार चैनल अल-आलम के हवाले से, संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय ने सोमवार को कहाःपिछले सात दिनों में, 22 हजार रोहिंग्याई मुसलमान म्यांमार से बांग्लादेश के लिए भाग गए। पिछले वर्ष अक्टूबर से म्यांमार में रोहिंग्याई मुसलमानों के खिलाफ सैन्य अभियान की शुरुआत के बाद से, 65 हजार लोग बांग्लादेश के लिए भाग चुके हैं।
म्यांमार सेना, रोहिंग्याई मुसलमानों पर नौ पुलिस वालों की हत्या का आरोप लगाती है। बहुत से रोहिंग्याई शरणार्थियों ने, म्यांमार सेना पर नरसंहार, बलात्कार के कृत्य और मकान जलाने का आरोप लगाया है।
पिछले हफ्ते, म्यांमार सरकार ने वादा किया था 4 अधिकारियों को जिन्हों ने एक वीडियो में रोहिंग्याई युवाओं के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल किया है परिक्षण करेगी। लेकिन इस देश की सरकार, सेना और सुरक्षा बलों के खिलाफ लगाऐ गए सभी आरोपों से इनकार कर दिया।
कुछ 1 मिल्युन 1 लाख रोहिंग्याई मुस्लिम म्यांमार के राखिने राज्य में रहते हैं,इस देश की बहुमत बौद्ध ने उन्हें धार्मिक अल्पसंख्यकों के बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया है। "यांग ली", म्यांमार मामलों में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के प्रतिनिधि ने वर्तमान में इस देश का दौरा किया है।
आयतुल्लाह हाशिमी रफसन्जानी का निधन, वरिष्ठ नेता का शोक संदेश
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने एक संदेश में आयतुल्लाह हाशमी रफसन्जानी के निधन का संवेदना प्रकट की है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने अपने संदेश में कहा है कि बहुत दुख की बात है कि इस्लामी क्राति के आंदोलन में साथ साथ संघर्ष करने वाले और इस्लामी गणतंत्र के काल में बरसों तक एक साथ काम करने वाले अपने पुराने साथी हुज्जतुलइस्लाम वल मुसलेमीन हाज शैख अकबर हाशमी रफसंजानी के अचानक निधन की खबर मिली।
आयतुल्लाह हाशमी रफसन्जानी का निधन!
मेरे लिए 59 वर्षों तक एक साथ काम करने वाले अपने इस साथी को खोना कठिन है। इन दसियों वर्षों के दौरान हमने न जाने कितनी कठिनाइयां सहन की और न जाने कितने अवसरों पर हमारी समान सोच व विचारधारा ने हमें एक राह पर आगे बढ़ाया और खतरों को स्वीकार करने और कोशिश करने पर हमें प्रोत्साहित किया।
वरिष्ठ नेता ने अपने संदेश में कहा है कि इस लंबी अवधि में मतों और विचारों में मतभेद हमारी उस दोस्ती के बंधन को कमज़ोर नहीं कर पाए जिसका आरंभ पवित्र नगर कर्बला से हुआ था और न ही इन हालिया वर्षों में वैचारिक मतभेदों से फायदा उठाने की भरसक कोशिश करने वाले मेरे प्रति उनके प्रेम में कमी ला पाए।
वह राजशाही शासन व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष की पहली पीढ़ी के अनुदाहरणीय आदर्श थे और इस खतरनाक व दुखदायी राह में बहुत दुख उठाये हुए थे। वर्षों तक उन्होंने सावाक की ओर से दी जाने वाली यातनाएं सहन की जेल गये लेकिन डटे रहे और फिर पवित्र रक्षा के दौरान बड़ी बड़ी ज़िम्मेदारियां उठायीं संसद सभापति रहे और विशेषज्ञ परिषद आदि के प्रमुख रहे और यह सब उतार चढ़ाव भरे इस पुराने संघर्षकर्ता के जीवन के स्वर्णिम अध्ययाय हैं।
हाश्मी रफसन्जानी के निधन के बाद अब मैं किसी एेसी हस्ती को नहीं जानता जिसके साथ उतार चढ़ाव भरे व इतिहासिक चरण में मेरा संयुक्त व दीर्घकालिक अनुभव हो। इस समय यह प्राचीन संघर्षकर्ता विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से भरे अपने कर्मपत्र के साथ ईश्वरीय अदालत में है और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के हम तमाम अधिकारियों का भविष्य यही है।
मैं दिल की गहराइयों से उनके लिए ईश्वर की कृपा व क्षमाशीलता की दुआ करता हूं और उनकी जीवन साथी, उनकी संतान , भाइयों और अन्य परिजनों की सेवा में संवेदना प्रकट करता हूं।
ईश्वर हमें और उन्हें माफ करे।
सैयद अली ख़ामेनई।
19 दैय 1395 हिजरी शम्सी
इराक़, सीरिया, यमन और लीबिया के विभाजन के प्रयास में है ब्रिटेनः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल देकर कहा है कि एक आत्मनिर्भर और प्रगतिशील ईरान के मुख्य शत्रु अमरीका, ब्रिटेन, अंतर्राष्ट्रीय पूंजीपति और ज़ायोनी हैं।
19 दैय माह 1356 हिजरी शम्सी बराबर 8 जनवरी 1978 की क्रांतिकारी कार्यवाही की वर्षगांठ के अवसर पर पवित्र नगर क़ुम के हज़ारों लोगों ने तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की। उन्होंने गगनभेदी नारे लगाकर अपने लोकप्रिय धर्मगुरू और नेता के प्रति असीम प्रेम प्रकट किया।
पवित्र नगर क़ुम से आए हज़ारों क्रांतिकारी नागरिकों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा कि मुख्य विदेशी शत्रुओं को एक नारे में नहीं बल्कि एक तर्क संगत आधार पर आधारित वास्तविकता में देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमरीका के तथाकथित चरित्रवान विदेशमंत्री ने अपने विदाई पत्र में अगली सरकार को सलाह दी है कि ईरान के साथ कड़ाई की जाए और प्रतिबंधों को जारी रखा जाए क्योंकि ईरान से कड़ाई द्वारा ही विशिष्टताएं प्राप्त की जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि इस शत्रु में और उस शत्रुता में कोई अंतर नहीं है जो ईरान को दुश्मनी की धुरी कहता है।
वरिष्ठ नेता ने ब्रिटेन की दुश्मनी के बारे में कहा कि बूढ़ा और निष्क्रय ब्रिटिश साम्राज्यवाद, एक बार फिर फ़ार्स की खाड़ी में आ पहुंचा है और क्षेत्र के अपने घटक देशों को प्रयोग करके अपने हितों को साधाने के प्रयास में है। अब जबकि वह स्वयं एक वास्तविक ख़तरा है, दावा कर रहा है कि ईरान ख़तरा है।
उन्होंने कहा कि आज ब्रिटिश हल्क़े, क्षेत्र और ईरान के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं और उनमें से एक षड्यंत्र, क्षेत्र के देशों इराक़, सीरिया, यमन और लीबिया को विभाजित करना है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि वे लोग ईरान के बारे में भी इसी प्रकार के विचार रखते हैं किंतु वे ईरानी जनमत से बहुत डरते हैं इसलिए ईरान का नाम नहीं लेते।
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन अपने हिसाब से जेसीपीओए के बाद के चरण में ईरान पर प्रतिबंध लगाने और उसको सीमित करने के लिए कार्यक्रम बना रहा है और इसी प्रकार वह ईरान सहित क्षेत्र के स्थानीय लोगों को ट्रेनिंग दे कर सशस्त्र कर रहा है ताकि यह लोग बुरी तरह से इस्लामी व्यवस्था और ईरानी राष्ट्र के पीछे पड़ जाएं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने राजनीति से धर्म को अलग करने और धार्मिक राजनीति से मुक़ाबले के लिए अमरीका और ब्रिटेन के थिंक टैंकों के षड्यंत्रों और योजनाओं की ओर से संकेत करते हुए कहा कि यह लोग एेसे धर्म के प्रयास में हैं जो मस्जिदों और घरों के अंदर और लोगों के भीतर सीमित रहने वाला धर्म हो न कि एेसा धर्म जो आर्थिक और राजनैतिक मैदान में सक्रिय होने के साथ दुश्मन के वर्चस्व को नकारने वाला हो।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दुश्मन उस धर्म से डरते हैं जो अर्थशास्त्र, शक्ति, राजनीति, सेना और वित्तीय सिस्टम सहित पूरी एक व्यवस्था हो, यही कारण है कि शुद्ध धर्म वह है जो जीवन से अलग न हो और राजनीत को भी अपने साथ लिए हो।
वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार दुश्मनों द्वारा ईरानी राष्ट्र की सही पहचान न होने की ओर संकेत करते हुए सन 88 हिजरी शम्समी में हुए दंगों को दुश्मनों के ग़लत समीकरणों की स्पष्ट निशानी बताया। उन्होंने कहा कि दुश्मनों ने 88 हिजरी शम्सी में दंगे करवाकर अपने हिसाब से मिशप को संवेदनशील चरण में पहुंचा दिया था किन्तु 9 दैय की घटना ने सभी को आश्चर्य चकित कर दिया जो 19 दैय 1356 की क्रांति से प्रेरित थी।
ज्ञात रहे कि क़ुम के हज़ारों लोगों ने 19 देइ 1356 की क्रांतिकारी घटना की 39वीं वर्षगांठ पर तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से भेंट की।
देश की प्रगति पूरी गति से जारी रहनी चाहिएः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बल दिया है कि एक राष्ट्र और एक देश की वैज्ञानिक प्रगति के साथ क्रांतिकारी और उच्च अध्यात्मिक उमंगे, क्षेत्र, इस्लामी जगत और दुनिया के लिए आदर्श बनने की भूमिका प्रशस्त करेंगी।
वरिष्ठ नेता से सोमवार को शरीफ़ पाॅलिटेक्निक कालेज के मेधावी और पदक प्राप्त करने वाले छात्रों ने मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने कहा कि भौतिक क्षेत्र में पश्चिम की भारी प्रगति के बावजूद, पश्चिमी सभ्यता के वर्तमान आधारों की कमज़ोरी, कमियों और मतभेदों का कारण, ईश्वरीय व अध्यात्मिक उमंगों का न होना है।
उन्होंने कहा कि अमरीका के कुछ विचारकों और बुद्धिजीवियों ने स्पष्ट रूप से पश्चिमी समाजों विशेषकर अमरीका में विभिन्न प्रकार की वैचारिक, वैज्ञानिक और शिष्टाचारिक पथभ्रष्टताओं, पारिवारिक आधारों के धराशायी होने, हिंसाओं में दिन प्रतिदिन की वृद्धि, नैतिक भ्रष्टाचार और आत्महत्याओं की बात स्वीकार की है।
उन्होंने अमरीकी समाज में बढ़ती हिंसाओं और हथियारों से लोगों के जनसंहार की ओर संकेत करते हुए कहा कि अमरीका में शस्त्रों के प्रचलन और लोगों को मौत के घाट उतार देना, एक गंभीर समस्या में परिवर्तित हो गया है और इसका उपचार, लोगों के मध्य हथियारों के प्रयोग को रोकना है किन्तु अमरीका में शस्त्र निर्माण कंपनियों के माफ़िया के वर्चस्व के कारण इस देश के सत्ताधारी लोगों में शस्त्रों के प्रयोग को ग़ैर क़ानूनी करने का साहस नहीं है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था से कैसे लाभ उठाया जाए यह देशों के लक्ष्यों पर निर्भर है। उनका कहना था कि यह विषय कि प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था विश्व शक्तियों के मुक़ाबले में चाहे वह बुरा चाहने वाली हों या बुरा चाहने वाली न हों, ईरान की रक्षा करेगी और यह एक अटल सच्चाई है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले ढेड़ सौ वर्ष के दौरान अमरीका की वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति का कारण प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था से लाभ उठाना था। उनका कहना था कि अलबत्ता अमरीकियों ने इस विचार को भौतिक लाभ और पैसे जमा करने के लिए प्रयोग किया किन्तु विश्व स्तर पर स्वीकृत इसी अनुभव से लाभ उठाते हुए सर्वेच्च लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार बल दिया कि ईरान में वैज्ञानिक प्रगति और वैज्ञानिक प्रयासों को कभी भी सुस्त नहीं होना चाहिए या कभी भी नहीं रुकना चाहिए बल्कि पूरी तेज़ी के साथ जारी रहना चाहिए।
रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में राष्ट्र संघ के महासचिव को ज़रीफ़ का पत्र
विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव को पत्र लिखकर म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की दुखद स्थिति पर गंभीर रूप से ध्यान देने की अपील की है।
मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने अंटोनियो गुटेरस को लिखे गए पत्र में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति बद से बदतर होने पर चिंता प्रकट की है। उन्होंने कहा है कि इन मुसलमानों के अधिकारों के हनन को तुरंत रोके जाने और उनतक तत्काल मानवीय सहायता पहुंचने की आवश्यकता से म्यांमार सरकार को अवगत कराया जाना चाहिए। इस पत्र में कहा गया है कि रोहिंग्या मुसलमान अपने आरंभिक अधिकारों से वंचित हैं और प्रतिदिन जनसंहार और हिंसक रवैये का शिकार बन रहे हैं जबकि उनमें से बहुत से लोग अन्य देशों में शरणार्थियों का जीवन बिता रहे हैं।
ईरान के विदेशमंत्री ने अपने पत्र में बल देकर कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति ने, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र और मानवाधिकारों के बुनियादों दस्तावेज़ों से विरोधाभास रखती है, विश्व समुदाय और इस्लामी जगत में गहरी चिंता उत्पन्न कर दी है। मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनियो गुटेरस को लिखे पत्र में कहा है कि म्यांमार की सरकार से विश्व समुदाय को अपेक्षा है कि रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति के बारे में पूरा कंट्रोल अपने हाथ में ले और इस बात की अनुमति न दे कि हिंसक व चरमपंथी गुट, बुद्धमत की शांतिपूर्ण छवि को बिगाड़ दें।
दुनिया की राजनीति झूठ और पाखंड से भरी पड़ी है।
आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी ने आज की दुनिया की राजनीति की आलोचना करते हुए कहा है कि दुनिया की राजनीति झूठ और पाखंड से भरी पड़ी है।
उन्होंने कहा कि हम दुनिया के राजनीतिक माहौल में अपने विश्वास को बहुत तेजी से खो रहे हैं और पश्चिम से दोहरे मापदंड की राजनीति ने एक अविश्वसनीय वातावरण बनाया है आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी ने कहा कि पश्चिम की ऐसी नीतियों का स्पष्ट उदाहरण सीरिया के हलब शहर में आतंकवादियों की हार है जिसके बाद घड़ियाली आंसू बहाए गए लेकिन हलब में हत्या किए जाने वाले मासूम बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन होगा।
यूनिसेफ के अनुसार, एक हजार यमनी मासूम बच्चे हर हफ़्ते हवाई और जमीनी बमबारी और कुपोषण के कारण मौत का शिकार होते हैं।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सौभाग्य से दुनिया पश्चिम नीतियों से बहुत अच्छी तरह परिचित है और उन्हें मगरमच्छ के आंसू बहाने से कोई लाभ नहीं होगा।
'मुहम्मद' मक़्बूज़ह ज़मीनों में सबसे लोकप्रिय नाम
तुर्की अनातोलिया समाचार एजेंसी के हवाले से, इन आँकड़े के आधार पर 2630 नवजात मुस्लिम बच्चों के नाम मोहम्मद रखे गऐ, और 1414यहूदी बच्चे के नामकरण नौवआम दिया गया।
इसी तरह 480 नवजात मुस्लिम लड़कियों के नाम "मर्यम" और 1,445 यहूदी नवजात लड़कियों के नाम नौवआ से नामित हुईं।
इन आंकड़ों के आधार पर 844 बच्चे "अहमद" नाम के साथ नामित हुऐ।
इसराइल शासन द्वारा सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मक़्बूज़ह क्षेत्र की जनसंख्या85 लाख थी, और उस में से 20 प्रतिशत कि अनुमान है लगभग एक मिल्युन 400 हजार लोग, अरबों के रूप में रह रहे हैं।
हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस
आज हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस है जिन्होंने मानव जाति को आपस में एक दूसरे के साथ प्रेम करने की रीति सिखाई।
ईसा मसीह पर सलाम हो जो ईश्वर की निशानी और शांति की शुभसूचना देने वाले हैं। उनके आगमन से मानवता ने दोस्ती व मोहब्बत सीखी। उनका वजूद ग़रीबों के लिए आसरा था। वह ग़रीबों के इतने हमदर्द थे कि धनवान उनके धर्म को ग़रीबों से विशेष समझते थे।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश बहुत ही हैरत में डालने वाली घटना है जिसका पवित्र क़ुरआन में उल्लेख है। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपनी पवित्र मां के पेट से चमत्कार के ज़रिए पैदा हुए हालांकि हज़रत मरयम का कोई शौहर नहीं था। ईश्वर पवित्र क़ुरआन में हज़रत इमरान की बेटी हज़रत मरयम अलैहस्सलाम के बारे में आया है कि वह चरित्रवान व सदाचारी महिला थीं। इस महान महिला को बचपन से ही ईश्वर पर गहरी श्रद्धा थी और उपासना व आत्मशुद्धि के ज़रिए आध्यात्म के उस चरण पर पहुंची कि उनके पास स्वर्ग से खाना आने लगा। संगीत
एक दिन हज़रत मरयम ईश्वर की उपासना में लीन थीं कि अचानक ईश्वरीय संदेश ‘वही’ लाने वाले फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल उनके पास पहुंचे और उन्हें एक बेटे के जन्म की शुभसूचना दी। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के मरयम सूरे की आयत नंबर 16 से 21 में इस घटना का उल्लेख है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम उन महान ईश्वरीयत दूतों में हैं जिनका पवित्र क़ुरआन में बहुत सम्मान के साथ उल्लेख है। उन्हें ईश्वर की बात और ईश्वर की आत्मा की उपाधि के रूप में याद किया गया है। पवित्र क़ुरआन में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का 45 बार उल्लेख है और कई बार उन्हें मसीह के ख़िताब से याद किया गया है। उनकी मां हज़रत मरयम दुनिया की सदाचारी व चुनी हुयी महिलाओं में हैं। उन्होंने तपस्या से ईश्वर का सामिप्य हासिल किया। यहां तक कि ईश्वरीय फ़रिश्ते ने उन्हें हज़रत मसीह के शुभ जन्म की ख़ुशख़बरी दी।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र ईश्वर की निशानियों में है कि उसने अपनी कुछ मख़लूक़ की पैदाइश को किसी कारण के अधीन नहीं रखा है। कुछ लोगों ने हज़रत ईसा के बिना बाप के जन्म को उनके ईश्वर होने की दलील दी जबकि कुछ लोगों ने इसे उनकी मां पर लाछन लगाने के लिए एक सुबूत माना या उनकी पैदाइश पर ही शक किया। ईसाइयों का एक गुट पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से मिलने मदीना पहुंचा। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम से बातचीत के दौरान हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की बिना बाप के पैदाइश को उनके ईश्वर होने का चिन्ह कहा। इस बीच पैग़म्बरे इस्लाम पर सूरे आले इमरान की आयत नंबर 59 उतरी जिसमें ईश्वर ने उनके जवाब में कहा, “मरयम के बेटे ईसा की पैदाइश आदम की पैदाइश की तरह है (बल्कि आदम की पैदाइश अधिक अहम है)” अगर बिना बाप के पैदा होना उनके ईश्वर होने का चिन्ह है तो फिर हज़रत आदम को भी जिन्हें बिना मां-बाप के पैदा किया गया ईश्वर माने हालांकि उनके बारे में किसी ने इस प्रकार की बात नहीं कही है।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का जिस दौर में जन्म हुआ वह अत्याचार से भरा हुआ दौर था। वह ऐसा दौर था जिसमें एक ईश्वरीय दूत के वजूद की ज़रूरत महसूस हो रही थी ताकि लोगों का मार्गदर्शन हो और वे पथभ्रष्टता से मुक्ति पाएं। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने अपनी पैग़म्बरी का एलान किया और लोगों को सदाचारिता व एकेश्वरवाद की ओर बुलाया। उन्होंने बनी इस्राईल की मुक्ति और उनके बीच व्याप्त गुमराही को ख़त्म करने के लिए बहुत कठिनाई झेली और बहुत बलिदान दिया। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बैतुल मुक़द्दस में विद्वानों के क्लास में पहुंचते, उनकी बात सुनते और उस पर विचार करते थे। वह देखते थे कि लोग बड़ी आसानी से इस तरह की बात सुनकर उस पर विश्वास कर लेते थे। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम इस तरह ख़ुद को उनके साथ समन्वित नहीं कर सके और अपने विचार पेश करने के लिए लोगों के बीच आ गए और सत्य के ज़रिए विद्वानों के साथ बहस की यहां तक कि कुछ ज्योतिष हज़रत ईसा पर क्रोधित हुए और उनके सवालों को उन्होंने नज़रअंदाज़ किया। धीरे-धीरे हालात ऐसे हो गए कि जब भी हज़रत ईसा मसीह कोई बात कहते लोग उनकी बात पूरे ध्यान से सुनते। इस प्रकार वे लोग लाजवाब होने लगे जिनकी ग़लत आस्था थी। उस समय तक कोई ज्योतिषों की ग़लत आस्था के ख़िलाफ़ बहस नहीं करता या अपनी बात को ज्योतिषियों की बात पर वरीयता देता। लेकिन हज़रत ईसा उनकी आपत्तियों पर ध्यान नहीं देते। ज्योतिषियों में क्रोध व द्वेष भी हज़रत ईसा को उनकी शैली से नहीं रोक सका बल्कि वे उनके ख़िलाफ़ सवालों की भरमार करते और अपने तर्क से उन्हें लाजवाब कर देते थे।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर ईश्वरीय संदेश वही उतरती थी। ईश्वर ने उन्हें इंजील ग्रंथ के साथ लोगों के मार्गदर्शन के लिए नियुक्त किया। वह 30 साल की उम्र में पैग़म्बर नियुक्त हुए और लोगों को अपनी शिक्षा की ओर बुलाते और इस बात की कोशिश करते कि यहूदियों को पथभ्रष्टता से बचाएं और उन वर्जित व वैध चीज़ों को उनके सामने बयान करें जिनके बारे में उनमें मतभेद हैं। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की एक ज़िम्मेदारी यह भी थी कि वह अपने बाद आने वाले ईश्वरीय दूत अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के आगमन की शुभ सूचना दें कि जिनका नाम बाइबल में ‘अहमद’ है। ईश्वर ने इस घटना को हज़रत ईसा की ज़बान से यूं बयान किया है, “और जब ईसा बिन मरयम ने कहा, हे बनी इस्राईल! निःसंदेह मैं ईश्वर की ओर से तुम्हारी ओर भेजा गया हूं और तौरैत की पुष्टि करता हूं और तुम्हे अपने बाद आने वाले पैग़म्बर की शुभसूचना देता हूं जिसका नाम अहमद है।”
इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के उच्च स्थान के बारे में कहते हैं, “इस्लाम में हज़रत ईसा का बहुत सम्मान है। उन्हें बहुत बड़ा ईश्वरीय दूत माना है। उनका और उनकी मां हज़रत मरयम का पवित्र क़ुरआन में बहुत समर्थन किया गया है। हम मुसलमान हज़रत मसीह को ईश्वर का बड़ा पैग़म्बर मानते हैं। क़ुरआन में हज़रत मसीह को बड़ा पैग़म्बर कहा गया है।” एक अन्य स्थान पर इमाम ख़मैनी कहते हैं, “हज़रत ईसा मसीह का पूरा वजूद ही चमत्कार था। वह ऐसी मां से पैदा हुए जिन्हें किसी पुरुष ने छुआ नहीं था। चमत्कार यह था कि उन्होंने पालने में बात किया। यह चमत्कार था कि मानवता के लिए शांति व अध्यात्म लाए। ईसा मसीह शांति के दूत थे और वे चाहते थे कि दुनिया में शांति रहे।”
मानव जाति की मुक्ति का अंतिम नुस्ख़ा पेश करने वाले धर्म के रूप में इस्लाम, दूसरे आसमानी धर्म और ईश्वरीय दूतों की पुष्टि करता है और सबसे उनके सम्मान का आहवान करता है। इसी तरह दूसरे आसमानी धर्मों की तरह इस्लाम भी एकेश्वरवाद का ध्वजवाहक है। ईश्वर इस बारे में पवित्र क़ुरआन के निसा सूरे की आयत नंबर 136 में कहता है, “हे ईमान लाने वालो! ईश्वर, उसके पैग़म्बरे और उस पर उतरे ग्रंथ और उससे पहले उतरने वाले ग्रंथों पर आस्था रखो तो जो कोई भी ईश्वर, उसके फ़रिश्तों, उसके पैग़म्बरों व किताबों का इंकार करे तो वह पथभ्रष्टता में है।” इस्लाम ने सभी ईश्वरीय दूतों की पुष्टि की है और मुसलमान भी सभी ईश्वरीय दूतों को मानते हैं। इन महापुरुषों के नैतिक व शैक्षिक निर्देशों का पालन, मुक्ति के ख़ज़ाने तक पहुंचाने वाले मानचित्र की तरह है।
ईरान में ईसाई हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस का जश्न मनाते हैं। तेहरान, इस्फ़हान और तबरीज़ जैसे बड़े शहरों में दुकानों के शोकेस, सुपर मार्केट व होटलों के प्रवेश द्वार और इन शहरों में ईसाई मोहल्लों में क्रिस्मस ट्री लाल, हरे और सुनहरे रंग के उपहारों के पैकेट से सजे होते हैं। ईरान में कुछ ईसाई 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं और पहली जनवरी को नव वर्ष का जश्न मनाते हैं जबकि अर्मनी ईसाई 6 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं।
ईरान में ईसाइयों, यहूदियों और ज़रतुश्तियों को धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता दी गयी है और ईरानी संसद में उनका प्रतिनिधित्व भी है। ये अल्पसंख्यक पूरी आज़ादी से अपने धार्मिक समारोह का आयोजन करते हैं।
ईरान में एक अर्मनी ईसाई राफ़ी मोरादयान्स का कहना है, “किसी भी इस्लामी देश में ईसाई उस तरह क्रिसमस का जश्न नहीं मना सकते जिस तरह हम ईरान में मनाते हैं।”
ईरान की 8 करोड़ की आबादी का 97 फ़ीसद हिस्सा मुसलमान है और 3 फ़ीसद ग़ैर मुसलमान है। इसके बावजूद इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान में आसमानी धर्मों के अनुयाइयों को बहुत से मामलों में मुसलमानों के समान अधिकार हासिल हैं।