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दाइश के ख़िलाफ़ अमरीकी गठबंधन नाकाम है, वरिष्ठ नेता
22 नवंबर 2016 स्लोवेनिया के राष्ट्रपति बोरत पाहोर (बाएं) और वरिष्ठ नेता (दाएं) की मुलाक़ात की तस्वीर
तेहरान दौरे पर आए स्लोवेनिया गणराज्य के राष्ट्रपति बारूत पाखोर ने वरिष्ठ नेता से मंगलवार को मुलाक़ात की।
इस अवसर पर वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने क्षेत्र की दर्दनाक घटनाओं और कुछ शक्तियों की ओर से राष्ट्रों पर थोपी गयी जंग व अस्थिरता की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान स्वाधीन देशों से हमेशा यह कहता रहा है कि वे राष्ट्रों पर दबाव से निपटने में अपना सक्रिय योगदान दें न कि ख़ामोश तमाशा देखते रहें।
इस अवसर पर स्लोवेनिया के राष्ट्रपति ने ईरानी अधिकारियों के साथ सार्थक बातचीत का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका देश ईरान के साथ सभी क्षेत्र में संबंध बढ़ाने में रुचि रखता है।
22 नवंबर 2016 को ईरानी राष्ट्रपति रूहानी(बाएं) स्लोवेनिया के राष्ट्रपति बोरत पाहोर (बीच में) और वरिष्ठ नेता (दाएं) की मुलाक़ात की तस्वीर
वरिष्ठ नेता ने पश्चिम एशियाई देशों में हिंसक झड़प और दाइश जैसे आतंकवादी गुट के वजूद को कुछ शक्तियों के हस्तक्षेप का नतीजा बताया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि सभी देशों का यह कर्तव्य है कि वह इन झड़पों की आग को ख़ामोश करने में अपना योगदान दें और इस्लामी गणतंत्र ईरान भी कुछ वर्चस्ववादी शक्तियों के दुष्प्रचार के विपरीत इस उद्देश्य के लिए सक्रिय है, लेकिन दूसरे देशों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने दाइश के ख़िलाफ़ अमरीकी गठजोड़ को नाकाम बताया और इस नाकामी के कारण की व्याख्या में इस संदर्भ में मौजूद दो दृष्टिकोण का उल्लेख किया। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पहले दृष्टिकोण के अनुसार, अमरीका दाइश का सफ़ाया करना नहीं चाहता बल्कि इसके संदर्भ में ऐसा रवैया अपनाना चाहता है कि यह मुश्किल इराक़ और सीरिया में उसी तरह बनी रहे जिस तरह ब्रिटेन ने भारत के उपनिवेश के दौरान कश्मीर के संबंध में रवैया अपनाया कि उसे न भरने वाले घाव की तरह छोड़ दिया जिसके नतीजे में आज तक दो पड़ोसी देश भारत-पाकिस्तान इस विषय पर मतभेद का शिकार हैं।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कहा कि दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार, अमरीकी दाइश की समस्या को हल करना चाहते हैं लेकिन तंत्र ऐसा नहीं है कि वे इस काम को कर पाएं। जैसा कि दोनों दृष्टिकोण का नतीजा एक जैसा रहा और आज इराक़ ख़ास तौर पर सीरिया की स्थिति बहुत कठिन है।
उन्होंने यमन पर सऊदी अरब के 20 महीने से जारी हमले और यमन की मूल रचनाओं की तबाही को भी क्षेत्र की मौजूदा कटु घटनाओं में गिनवाते हुए कहा कि स्वाधीन सरकारों को इन घटनाओं से निपटना चाहिए, क्योंकि एक राष्ट्र की पीड़ा वास्तव में पूरी मानवता की पीड़ा के समान है।
वरिष्ठ नेता ने ईरान के परमाणु समझौते जेसीपीओए के क्रियान्वयन पर पूरी तरह प्रतिबद्ध रहने का उल्लेख करते हुए, सामने वाले पक्ष की प्रतिबद्धताओं का पालन न करने के कारण आलोचना की।
पाकिस्तान, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन सीरते पैगंबर (PBUH) का मेज़बान
अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी पाकिस्तान में ईरानी सांस्कृतिक हाउस के हवाले से, यह दो दिवसीय सम्मेलन "कुरान और सुन्नते नबवी के दृष्टकोण से समाज में कल्याण और सामाजिक न्याय" अल्लामा इकबाल आज़ाद विश्वविद्यालय इस्लामाबाद में आयोजित किया जाएगा।
शाहिद सिद्दीकी, इस्लामाबाद में अल्लामा इकबाल आज़ाद विश्वविद्यालय के चेयरमैन ने एक संवाददाता सम्मेलन में इस समाचार की घोषणा करते हुऐ कहाः कि अल्लामा इकबाल आज़ाद विश्वविद्यालय के अरबी भाषा और इस्लामी विज्ञान समूह इस सम्मेलन के आयोजक हैं।
पाकिस्तान और अन्य देशों के वैज्ञानिकों को इस्लामाबाद, सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है और अपने लेखों को सम्मेलन विषय के साथ पेश करें।
मस्कत में इमाम अली (अ.स) और इमाम सादिक (अ.स) से संबंधित कुरान की प्रदर्शनी
अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी अखबार «ओमान के टाइम्स»के हवाले से,ओमान में भारत महोत्सव के हिस्से में, भारतीय दूतावास ने मस्कट में इस्लामी सुलेख प्रदर्शनी आयोजित करने की कार्वाई की है।
यह सुलेख प्रदर्शनी कल, 21 नवंबर से शुरू होगई है और 3 दिसंबर तक मुफ़्त दर्शकों के लिए मेज़बान रहेगी।
इस प्रदर्शनी में कुरान की चयनित आयतों से सुलेख की कला के 40काम को प्रदर्शित किया गया है।
इन दुर्लभ सुलेखन पांडुलिपियों के बीच इमामों (अ.स) से संबंधित प्रतियां भी प्रदर्शन के लिऐ रखी गई हैं।
प्रदर्शन पर सभी प्रदर्शित काम रामपुर, भारत में इमाम रज़ा (अ.स) पुस्तकालय से वाबस्ता हैं, जो इस्लामी हिन्दी कला का एक खजाना माना जाता है और 1774 में स्थापित किया गया था।
करबला, श्रद्धालुओं ने रचा इतिहास, दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम और जमाअत की नमाज़
दुनिया के 60 देशों से दसियों लाख की संख्या में पवित्र नगर कर्बला पहुंच कर श्रद्धालुओं ने सोमवार को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम मनाया।
कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम का कार्यक्रम कई दिन पहले शुरु हो जाता है। रविवार को भी दसियों लाख की संख्या में श्रद्धालुओं ने कर्बला पहुंच कर पूरी तरह शांतिपूर्ण माहौल में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में भंग डालने की षड्यंत्रकारियों की योजना के बावजूद, दसियों हज़ार की संख्या में सुरक्षा बल की कोशिश से शांतिपूर्ण माहौल क़ाएम रहा।
इस अवसर पर इराक़ी राष्ट्रपति फ़ोआद मासूम ने शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम में पैदल चल कर भाग लेने वाले श्रद्धालुओं और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने वाले सशस्त्र बल की कोशिशों की सराहना की। चेहलुम के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए 30000 सुरक्षा बल तैनात थे। इराक़ी सुरक्षा बल ने देश में दाइश के आतंकियों से संघर्ष के दौरान चेहलुम के शांतिपूर्ण आयोजन से अपने दायित्व को अच्छी तरह अंजाम देने की क्षमता साबित कर दी।
रविवार को पवित्र नगर नजफ़ से कर्बला के बीच लगभग 80 किलोमीटर लंबे मार्ग पर दसियों लाख श्रद्धालुओं ने सामूहिक रूप से दोपहर की नमाज़ पढ़ी। यह इतिहास में संयुक्त रूप से नमाज़ पढ़ने की सबसे बड़ी घटना है।
मस्जिद से अज़ान देने पर लगा 200 डालर का जुर्माना
फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में मस्जिद से अज़ान देने पर इस्राईल ने मोअज़्ज़िन पर 200 डालर का जुर्माना लगाया है।
रश्या टूडे के अनुसार इस्राईल ने अपने आदेश की अवहेलना के आरोप में फ़िलिस्तीनी क्षेत्र की एक मस्जिद में लाउढय्वरका ये अज़ान देने वाले पर जुर्माने लगाया है। कुछ दिन पहले ज़ायोनी शासन की संसद ने बैतुल मुक़द्दस की मस्जिदों में अज़ान दिये जाने पर प्रतिबंध की घोषणा की थी। इस तानाशाही आदेश का फ़िलिस्तीनी, व्यापक स्तर पर विरोध कर रहे हैं। शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के बाद ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों ने इस ज़ायोनी आदेश का विरोध करते हुए प्रदर्शन किये थे। इस इस्राईल आदेश के विरोध में उसी दिन सैकड़ों फ़िलिस्तीनियों ने अपने-अपने घरों से अज़ान दी थी।
इस्राईल के आज़ान विरोधी नए क़ानून के अनुसार मस्जिद से अज़ान देने वाले के विरुद्ध तत्काल कार्यवाही की जाएगी जिसमें उसे सज़ा और जुर्माना दोनो हो सकते हैं।
चेहलुम के बाद भी कर्बला में लाखों श्रद्धालु मौजूद
कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए कड़े प्रबंध किए गए हैं।
इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के बाद भी इराक़ के पवित्र नगर कर्बला में देश और विदेश से पहुंचने वाले लाखों ज़ायरीन मौजूद हैं, जिसके कारण इराक़ी सुरक्षा बलों ने सुरक्षा प्रबंध को अधिक कड़ा दिया है।
कर्बला के पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इमाम हुसैन के चेहलुम के अवसर पर 2 करोड़ 30 लाख लोग ज़ियारत के लिए कर्बला पहुंचे।
अधिकारियों का कहना है कि इस अवसर पर विश्व भर के देशों से कर्बला पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 30 लाख थी, इनमें सबसे अधिक संख्या ईरानी नागरिकों की थी।
कर्बला के गवर्नर अक़ील तरीही के मुताबिक़, इस वर्ष चेहलुम पर अभूतपूर्व संख्या में श्रद्धालु कर्बला पहुंचे हैं।
इमाम हुसैन का चेहलुम, दुनिया के मुसलमानों के मध्य एकता का सबसे बड़ा प्रतीक
इस वर्ष हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम, श्रद्धालुओं की भव्य उपस्थिति से मुसलमानों के मध्य एकता का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया है।
ईरान सहित दुनिया के दो करोड़ से अधिक तीर्थयात्री और श्रद्धालु चेहुलुम के दिन करबला पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं जबकि दसियों लाख श्रद्धालु करबला पहुंचकर जूलूसों, शोक सभाओं और विभिन्न कार्यक्रमों में उपस्थित हैं। नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल के बूढ़े तक यात्रा की कठिनाईयां सहन करके करबला की ओर रवाना हैं।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अज़ादार लब्बैक या हुसैन के नारे लगाकर मानो यह कहना चाहते हैं कि हे इमाम यद्यपि हम करबला के मैदान में नहीं थे किन्तु आज भी हम समय के यज़ीद अमरीका और ज़ायोनी शासन, दाइश, नुस्रा फ़्रंट और अलक़ायदा जैसे आतंकियों और साम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष का अपना दायित्व निभाते रहेंगे।
इस समय शहीदों के सरदार हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और हुसैनी सेना के ध्वजवाहक हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के रौज़ों के बीच श्रद्धालुओं का सैलाब नज़र आ रहा है और करबला का पूरा वातावरण लब्बैक या हुसैन के गगन भेदी नारों से गूंज रहा है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर पवित्र नगर नजफ़ से कर्बला तक मार्च करने वालों ने दुनिया के लोगों के नाम एक ख़त प्रकाशित किया है, जिसमें दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों से अत्याचार से संघर्ष की अपील के साथ इस बात को स्पष्ट किया है कि साम्राज्यवादी अपने हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रों के बीच फूट डालते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहुलम के मार्च में भाग लेने वालों ने पीड़ितों के समर्थन और आतंकवाद से संघर्ष पर विशेष बल दिया।
इराक़ी सरकार ने भी अपने बयान में कहा कि लगभग 30 लाख विदेशी तीर्थयात्री करबला पहुंच चुके हैं। भारत, पाकिस्तान, ईरान, बहरैन, सऊदी अरब, क़तर, कुवैत, दक्षिणी अफ़्रीक़ा, ब्रिटेन और अमरीका की अन्जुमनें करबला में जूलूस निकाल रही हैं।
अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे के बारे में हमारा कोई दृष्टिकोण नहीं है, वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अमरीका में संपन्न हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव के परिणाम की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमारा इस चुनाव के बारे में कोई दृष्टिकोण नहीं है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीका वही अमरीका है जिसने ईरानी राष्ट्र को पिछले 37 साल के दौरान कोई भलाई नहीं पहुंचायी, हालांकि इस दौरान डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स दोनों दलों, की सरकारें थीं।
इस्फ़हान के हज़ारों लोगों ने बुधवार की सुबह तेहरान में वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की। इस अवसर पर आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने बल दिया कि दुनिया में उन लोगों के विपरीत कि जिनमें से कुछ अमरीका के राष्ट्रपति पद के चुनावी नतीजे से दुखी और कुछ ख़ुश हैं, हम न तो दुखी हैं और न ही ख़ुश। वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमें इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और न ही किसी प्रकार की चिंता है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईश्वर की कृपा से हर प्रकार की घटना का सामना करने के लिए भी हम तैयार हैं।
उन्होंने अमरीका में राष्ट्रपति पद के चुनावी अभियान के दौरान अमरीकी समाज की भीतरी समस्याओं के बारे में हुई चर्चा की ओर इशारा करते हुए कहा कि जो व्यक्ति अमरीका में राष्ट्रपति के रूप में चुने गए हैं उन्होंने चुनावी प्रतिस्पर्धा के दौरान कहा था कि जो पैसे हमने पिछले कुछ साल के दौरान जंग पर ख़र्च किए, अगर उन पैसों को अमरीका के भीतर उपयोग किया जाता तो इस देश का दो बार निर्माण हो सकता था, क्या वे लोग जिन्हें यह ख़्याली बातें अच्छी लगीं, इसका अर्थ समझते हैं?
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने अमरीका में राष्ट्रपति पद की चुनावी प्रतिस्पर्धा के दौरान इस देश में मौजूद ग़रीबी और व्यापक समस्याओं पर हुई चर्चा की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमरीका ने हालिया वर्षो में इस देश की जनता के पैसों को युद्धों में लुटाया जिसके नतीजे में अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, लीबिया, यमन और सीरिया में हज़ारों आम लोगों का जनसंहार हुआ और इन देशों के मूल ढांचे तबाह हो गए।
वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल दिया कि अमरीका में चुनावी प्रतिस्पर्धा के दौरान जिन वास्तविक बातों पर चर्चा हुयी, ये विषय हालिया वर्षों में बार-बार उठे लेकिन कुछ लोग इसे स्वीकार करना नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा कि पहचान का अर्थ यह है कि आपको यह समझ होनी चाहिए कि आपका किससे मुक़ाबला है और वह आपके बारे में क्या सोचता है, अगर आप अपनी आंख बंद कर लेंगे तो निःसन्देह नुक़सान उठाएंगे।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल दिया कि जबतक राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक मज़बूती रहेगी और देश के वरिष्ठ अधिकारी व बुद्धिजीवी मानसिक दृष्टि से मज़बूत रहेंगे, देश को कोई ख़तरा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र की युवा पीढ़ी को ख़ास तौर पर क्रान्तिकारी भावना के साथ आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि देश का मुख्य मुद्दा कुछ बहस, हंगामे और इधर-उधर के विषय नहीं हैं, बल्कि क्रान्तिकारी भावना की रक्षा और इसी भावना के साथ बढ़ना मुख्य मुद्दा है।
म्यांमार में 234 रोहिंग्या मुसलमान गिरफ़्तार
म्यांमार की सेना ने एक बयान जारी करके राख़ीन प्रांत में 234 लोगों की गिरफ़्तारी की सूचना दी है।
बयान में कहा गया है कि अक्तूबर के आरंभ में सुरक्षा बलों द्वारा राख़ीन प्रांत का नियंत्रण अपने हाथ में लिए जाने के बाद से अबतक 69 रोहिंग्या मुसलमान हताहत और 234 गिरफ़्तार हुए हैं। म्यांमार की सेना ने सैनिकों द्वारा बच्चों व महिलाओं के साथ हिंसक व्यवहार और लोगों के घर जलाए जाने संबंधी रिपोर्टों को ख़ारिज कर दिया है।
इस बीच कुछ संचार माध्यमों ने बताया है कि हालिया दिनों में म्यांमार की सेना के हमलों में सैकड़ों रोहिंग्या मुसलमान मारे जा चुके हैं। बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा पर स्थित राख़ीन प्रांत का नियंत्रण इस समय सैनिकों के हाथ में है। 9 अक्तूबर को अज्ञात लोगों ने म्यांमार की एक सीमावर्ती चौकी पर हमला करके 9 सैनिकों की हत्या कर दी थी। मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वाॅच ने उपग्रह से लिए गए चित्रों के हवाले से बताया है कि हालिया सप्ताहों में राख़ीन प्रांत के अशांत क्षेत्रों में 400 से अधिक इमारतों को जला दिया गया है।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम, हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा जैसी हस्तियों के साथ रहने से हज़रत ज़ैनब के व्यक्तित्व पर इन हस्तियों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। हज़रत ज़ैनब ने प्रेम व स्नेह से भरे परिवार में प्रशिक्षण पाया। इस परिवार के वातावरण में, दानशीलता, बलिदान, उपासना और सज्जनता जैसी विशेषताएं अपने सही रूप में चरितार्थ थीं। इसलिए इस परिवार के बच्चों का इतने अच्छे वातावरण में पालन - पोषण हुआ। हज़रत अली अलैहिस्सलाम व फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह के बच्चों में नैतिकता, ज्ञान, तत्वदर्शिता और दूर्दर्शिता जैसे गुण समाए हुए थे, क्योंकि मानवता के सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षकों से उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
हज़रत ज़ैनब में बचपन से ही ज्ञान की प्राप्ति की जिज्ञासा थी। अथाह ज्ञान से संपन्न परिवार में जीवन ने उनके सामने ज्ञान के द्वार खोल दिए थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के कथनों के हवाले से इस्लामी इतिहास में आया है कि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा को ईश्वर की ओर से कुछ ज्ञान प्राप्त था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने एक भाषण में हज़रत ज़ैनब को संबोधित करते हुए कहा थाः आप ईश्वर की कृपा से ऐसी विद्वान है जिसका कोई शिक्षक नहीं है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन की आयतों की व्याख्याकार थीं। जिस समय उनके महान पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े में ख़लीफ़ा थे यह महान महिला अपने घर में क्लास का आयोजन करती तथा पवित्र क़ुरआन की आयतों की बहुत ही रोचक ढंग से व्याख्या किया करती थीं। हज़रत ज़ैनब द्वारा शाम और कूफ़े के बाज़ारों में दिए गए भाषण उनके व्यापक ज्ञान के साक्षी हैं। शोधकर्ताओं ने इन भाषणों का अनुवाद तथा इनकी व्याख्या की है। ये भाषण इस्लामी ज्ञान विशेष रूप से पवित्र क़ुरआन पर उस महान हस्ती के व्यापक ज्ञान के सूचक हैं।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान की बहुत प्रशंसा की गई है। जैसा कि इतिहास में आया है कि इस महान महिला ने अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनिवार्य उपासना के साथ साथ ग़ैर अनिवार्य उपासना करने में भी तनिक पीछे नहीं रहीं। हज़रत ज़ैनब को उपासना से इतना लगाव था कि उनकी गणना रात भर उपासना करने वालों में होती थी और किसी भी प्रकार की स्थिति ईश्वर की उपासना से उन्हें रोक नहीं पाती थी। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम बंदी के दिनों में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक लगाव की प्रशंसा करते हुए कहते हैः मेरी फुफी ज़ैनब, कूफ़े से शाम तक अनिवार्य नमाज़ों के साथ - साथ ग़ैर अनिवार्य नमाज़ें भी पढ़ती थीं और कुछ स्थानों पर भूख और प्यास के कारण अपनी नमाज़े बैठ कर पढ़ा करती थीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो अपनी बहन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक स्थान से अवगत थे, जिस समय रणक्षेत्र में जाने के लिए अंतिम विदाई के लिए अपनी बहन से मिलने आए तो उनसे अनुरोध करते हुए यह कहा थाः मेरी बहन मध्यरात्रि की नमाज़ में मुझे न भूलिएगा।
हज़रत ज़ैनब के पति हज़रत अब्दुल्लाह बिन जाफ़र की गण्ना अपने काल के सज्जन व्यक्तियों में होती थी। उनके पास बहुत धन संपत्ति थी किन्तु हज़रत ज़ैनब बहुत ही सादा जीवन बिताती थीं भौतिक वस्तुओं से उन्हें तनिक भी लगाव नहीं था। यही कारण था कि जब उन्हें यह आभास हो गया कि ईश्वरीय धर्म में बहुत सी ग़लत बातों का समावेश कर दिया गया है और वह संकट में है तो सब कुछ छोड़ कर वे अपने प्राणप्रिय भाई हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ मक्का और फिर कर्बला गईं।
उन्होंने मदीना में एक आराम का जीवन व्यतित करने की तुलना में कर्बला की शौर्यगाथा में भाग लेने को प्राथमिकता दी। इस महान महिला ने अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ उच्च मानवीय सिद्धांत को पेश किया किन्तु हज़रत ज़ैनब की वीरता कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात सामने आई। उन्होंने उस समय अपनी वीरता का प्रदर्शन किया जब अत्याचारी बनी उमैया शासन के आतंक से लोगों के मुंह बंद थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात किसी में बनी उमैया शासन के विरुद्ध खुल कर बोलने का साहस तक नहीं था ऐसी स्थिति में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अत्याचारी शासकों के भ्रष्टाचारों का पिटारा खोला। उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्टाचारी उमवी शासक यज़ीद के सामने बड़ी वीरता से कहाः हे यज़ीद! सत्ता के नशे ने तेरे मन से मानवता को समाप्त कर दिया है। तू परलोक में दण्डित लोगों के साथ होगा। तुझ पर ईश्वर का प्रकोप हो । मेरी दृष्टि में तू बहुत ही तुच्छ व नीच है। तू ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के धर्म को मिटाना चाहता, मगर याद रख तू अपने पूरे प्रयास के बाद भी हमारे धर्म को समाप्त न कर सकेगा वह सदैव रहेगा किन्तु तू मिट जाएगा।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की वीरता का स्रोत, ईश्वर पर उनका अटूट विश्वास था। क्योंकि मोमिन व्यक्ति सदैव ईश्वर पर भरोसा करता है और चूंकि वह ईश्वर को संसार में अपना सबसे बड़ा संरक्षक मानता है इसलिए निराश नहीं होता। जब ईश्वर पर विश्वास अटूट हो जाता है तो मनुष्य कठिनाइयों को हंसी ख़ुशी सहन करता है। ईश्वर पर विश्वास और धैर्य, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के पास दो ऐसी मूल्यवान शक्तियां थीं जिनसे उन्हें कठिनाईयों में सहायता मिली। इसलिए उन्होंने उच्च - विचार और दृढ़ विश्वास के सहारे कर्बला - आंदोलन के संदेश को फैलाने का विकल्प चुना। कर्बला से लेकर शाम और फिर शाम से मदीना तक राजनैतिक मंचों पर हज़रत ज़ैनब की उपस्थिति, अपने भाइयों और प्रिय परिजनों को खोने का विलाप करने के लिए नहीं थी। हज़रत ज़ैनब की दृष्टि में उस समय इस्लाम के विरुद्ध कुफ़्र और ईमान के सामने मिथ्या ने सिर उठाया था। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का आंदोलन बहुत व्यापक अर्थ लिए हुए था। उन्होंने भ्रष्टाचारी शासन को अपमानित करने तथा अंधकार और पथभ्रष्टता में फंसे इस्लामी जगत का मार्गदर्शन करने का संकल्प लिया था। इसलिए इस महान महिला ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात हुसैनी आंदोलन के संदेश को पहुंचाना अपना परम कर्तव्य समझा। उन्होंने अत्याचारी शासन के विरुद्ध अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने जीवन के इस चरण में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के अधिकारों की रक्षा की तथा शत्रु को कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना से लाभ उठाने से रोक दिया। हज़रत ज़ैनब के भाषण में वाक्पटुता इतनी आकर्षक थी कि लोगों के मन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की याद ताज़ा हो गई और लोगों के मन में उनके भाषणों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की शहादत के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने जिस समय कूफ़े में लोगों की एक बड़ी भीड़ को संबोधित किया तो लोग उनके ज्ञान एवं भाषण शैली से हत्प्रभ हो गए। इतिहास में है कि लोगों के बीच एक व्यक्ति पर हज़रत ज़ैनब के भाषण का ऐसा प्रभाव हुआ कि वह फूट फूट कर रोने लगा और उसी स्थिति में उसने कहाः हमारे माता पिता आप पर न्योछावर हो जाएं, आपके वृद्ध सर्वश्रेष्ठ वृद्ध, आपके बच्चे सर्वश्रेष्ठ बच्चे और आपकी महिलाएं संसार में सर्वश्रेष्ठ और उनकी पीढ़ियां सभी पीढ़ियों से श्रेष्ठ हैं।
कर्बला की घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को इतिहास की घटनाओं की भीड़ में खोने से बचाने के लिए निरंतर प्रयास किया। यद्यपि कर्बला की त्रासदीपूर्ण घटना के पश्चात हज़रत ज़ैनब अधिक जीवित नहीं रहीं किन्तु इस कम समय में उन्होंने इस्लामी जगत में जागरुकता की लहर दौड़ा दी थी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपनी उच्च- आत्मा और अटूट संकल्प के सहारे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अमर बना दिया ताकि मानव पीढ़ी, सदैव उससे प्रेरणा लेती रही। यह महान महिला कर्बला की घटना के पश्चात लगभग डेढ़ वर्ष तक जीवित रहीं और सत्य के मार्ग पर अथक प्रयास से भरा जीवन बिताने के पश्चात वर्ष 62 हिजरी क़मरी में इस नश्वर संसार से सिधार गईं।