
رضوی
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जीवन में समाज के वंचित वर्ग के साथ मिल कर रहने का जो मानदंड है वह गरिमा का उसूल है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की नज़र में जो क़ुरआन का दृष्टिकोण है, हर व्यक्ति की गरिमा होती है जो ईश्वर की ओर से दी गयी है। इसलिए हर उस समाज में संबंध का आधार मानवीय प्रतिष्ठा होगी जो ईश्वरीय मूल्यों पर चलता हो। ऐसे समाज में मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुंचाने वाली चीज़ों का चलन नहीं होता।
11 ज़ीक़ादा पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का शुभ जिन्म दिवस है। ईरान में 1 ज़ीक़ादा से 11 ज़ीकादा को दहे करामत अर्थात मानव गरिमा का दस दिन घोषित किया गया है।
मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा को इंसान की मूल विशेषताओं के रूप में अहमियत हासिल रही है और इस विशेषता पर इंसान के बारे में होने वाले अध्ययनों में विशेष रूप से ध्यान दिया गया है।
गरिमा इंसान के उच्च स्थान और अन्य प्राणियों से उसकी श्रेष्ठता को बयान करती है। हर धर्म, मत और मानव विज्ञान में इस विषेशता की विशेष आयाम से समीक्षा की गयी है।
मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा के विषय को इस्लामी क्रान्ति के संविधान में विशेष रूप से अहमियत दी गयी है। इसी प्रकार मानवीय गरिमा को इस्लाम के बुनियादी उसूलों जैसे एकेश्वरवाद, पैग़म्बरी और प्रलय जैसे मूल उसूलों के साथ बयान किया गया है।
ईरान में 1 से 11 ज़ीक़ादा के बीच के दिनों ने यह अवसर प्रदान किया कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अनुयायी न सिर्फ़ ईरान बल्कि पूरी दुनिया में जहां कहीं भी हों, मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा के अर्थ और इस्लामी शिक्षाओं, संस्कृति और मुसलमान महापुरुषों के आचरण के ज़रिए इसे व्यवहारिक रूप से समझें। मानवीय गरिमा से परिचय इस्लामी व मानवीय संबंधों के आधार पर समाज की स्थापना के लिए पृष्ठिभूमि है।
धार्मिक ग्रंथों पर ध्यान देने से यह बिन्दु स्पष्ट हो जाता है कि मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा का आधार एकेश्वरवाद पर गहरी आस्था और सभी इंसान में पैदाइश की दृष्टि से समानता होने पर टिका है। इंसान पैदाइशी सज्जनता के कारण अन्य प्राणियों पर श्रेष्ठता रखता है। दूसरा बिन्दु इस विशेषता की दृष्टि से सभी आदमी एक समान हैं क्योंकि सब इंसान को ईश्वर ने पैदा किया है और सबके सब ईश्वर के मोहताज हैं। क़ुरआनी शिक्षाओं के अनुसार, कोई भी इंसान इंसानियत की दृष्टि से किसी दूसरे इंसान से श्रेष्ठ नहीं है बल्कि ईश्वर के आदेश का पालन और उसका भय एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति पर श्रेष्ठता का आधार है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के हुजरात सूरे की आयत नंबर 13 में ईश्वर कह रहा है, ईश्वर के निकट तुम में सबसे ज़्यादा सम्मानीय वह है जो उससे सबसे ज़्यादा डरता हो।
आस्था का यह आधार जिसे क़ुरआन ने बताया है, एक ओर जातीय भाषाई और मौंगोलिक अंतरों को नकारता है तो दूसरी ओर मानव समाज के एक एक व्यक्ति को उनके बीच विदित अंतर के बावजूद एक दूसरे से जोड़ता है और सुसंगत मानता है। इस दृष्टिकोण में मानवीय गरिमा तक पहुंचने का मार्ग ईश्वरीय आदेश के पालन और उससे डरने में निहित है। दूसरे शब्दों में गरिमा तक पहुंचने के लिए दुनिया में ईश्वर की परम सत्ता को मानना होगा और हर स्थिति में ईश्वर का पालन करना होगा। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के आचरण में यह विशेषता भलिभांति दिखाई देती है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की नज़र में मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा को हासिल करने का एक रास्ता ईश्वरीय आदेश का पालन और उससे डरना है। इब्राहीम बिन अब्बास के हवाले से रवायत में है, “एक दिन एक व्यक्ति ने उनसे कहा, ईश्वर की सौगंध ज़मीन पर आपके बाप-दादाओं से ज़्यादा कोई सज्जन दिखाई नहीं देता। तो इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा, ईश्वर के डर से उन्हें सज्जनता मिली।”
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम दूसरों का सम्मान ख़ास तौर पर समाज के वंचित वर्ग का सम्मान करने पर विशेष रूप से ध्यान देते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का एक नौकर उनके व्यवहार व आचरण के एक पहलू के बारे में कहता है, “जब भी इमाम को दिन चर्या से ख़ाली समय मिलता तो परिवार के सदस्यों और पास में रहने वालों को अपने पास बुलाते और उनके बात करते। जब भी दस्तरख़ान पर मौजूद होते तो छोटे-बड़े यहां तक कि नौकरों को भी दस्तरख़ान पर बुलाते थे।”
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के इससे भी श्रेष्ठ मानवीय आचरण की एक मिसाल यासिर नामक नौकर ने बयान की है। वह कहता है, “इमाम नौकरों व मज़दूरों से कहते थे कि अगर मैं तुम लोगों के पास इस स्थिति में पहुंचू कि तुम लोग खाना खा रहे हो तो खड़े मत होना यहां तक कि खाना समाप्त हो जाए।” अकसर ऐसा होता था कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम हममें से किसी को किसी काम के लिए बुलाते और हम कह देते थे कि खाना खा रहे हैं तो कहते थे उसे खाना ख़त्म करने दो।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने ऐसे दौर में परिवार के सदस्यों और अपने पास रहने वालों के साथ ऐसा व्यवहार अपनाया कि जब उस दौर में नैतिकता के मानदंड कुछ और थे। उस दौर के अज्ञानता के दौर में नौकरों और नौकरानियों को कोई अधिकार हासिल नहीं था और वे अपने स्वामियों के निकट होने का साहस नहीं कर सकते थे लेकिन इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की दानशीलता के दस्तरख़ान पर सब नौकर बैठते थे और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उनसे प्रेमपूर्ण व्यवहार में कहते थे कि तुम लोग भी इंसान हो और तुम्हें भी मानवीय व नैतिक अधिकार हासिल है अगर ऐसा न हो तुम्हारे साथ भी अत्याचार हुआ है।
बल्ख़ का एक व्यक्ति इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ख़ुरासान के सफ़र में उनके साथ था और उनके इस व्यवहार को अपनी आंखों से देखता है। वह कहता है,“ख़ुरासान के सफ़र में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के साथ था। एक दिन उन्हें जब खाने की इच्छा हुयी तो उन्होंने सभी नौकरों को जिसमें अश्वेत भी थे और दूसरे लोगों को दस्तरख़ान पर बुलाया। मैंने कहा बेहतर होगा कि वे दूसरे दस्तरख़ान पर खाना खाएं। उन्होंने कहा, हम सबका पालनहार एक है। हमारी मां हव्वा और बाप आदम हैं और पुन्य कर्म पर निर्भर है।”
जो चीज़ इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के जीवन में समाज के वंचित वर्ग के साथ मिल कर रहने में मानदंड के रूप में दिखाई देती है वह गरिमा का उसूल है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की नज़र में हर व्यक्ति को ईश्वर की ओर से विशेष स्थान हासिल है। इसलिए ईश्वरीय मूल्यों पर आधारित समाज में मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा संबंध का आधार बनती है और इस गरिमा को नुक़सान पहुंचाने वाली चीज़ों को छोड़ दिया जाता है। मिसाल के तौर पर मानवीय गरिमा को नुक़सान पहुंचाने वाला एक तत्व आज़ादी का छिन जाना है। इस संदर्भ में ज़करिया नामक एक व्यक्ति कहता है, “मैंने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से उस ग़ैर मुसलमान व्यक्ति के बारे में परामर्श मांगा जो भूख व निर्धनता के कारण अपने बेटे को मेरे पास लाया और उसने कहा, मेरा बेटा तुम्हारे अधिकार में है तुम खाना पानी दो और उसे ग़ुलाम बना लो।”
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा, “इंसान आज़ाद है। आज़ाद स्थिति में उसे ख़रीदा और बेचा नहीं जा सकता। यह काम करना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।”
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इस बात से मानवीय गरिमा व प्रतिष्ठा का पता चलता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की नज़र में इंसान आज़ाद है और उसकी आर्थिक ज़रूरतें उसे दूसरों का ग़ुलाम नहीं बना सकतीं और ईश्वर की ओर से उसे हासिल आज़ादी नहीं छीन सकती चाहे वह ग़ैर मुसलमान ही क्यों न हो। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का यह व्यवाहर ख़ास तौर पर समाज के वंचित वर्ग के लोगों के साथ ज़्यादा दिखाई देता है क्योंकि गरिमा पर आधारित नैतिकता से इंसान अपनी पहचान पाता है, अपने स्थान को पहचानता है और यही चीज़ व्यक्तिगत व सामाजिक गतिविधियों का स्रोत बनती है। इसके मुक़ाबले में लोगों के साथ अपमानजनक व्यवहार और उनके मानवीय स्थान को नज़रअंदाज़ करने के कारण आत्मसम्मान के ख़त्म होने सहित दूसरे नुक़सानदेह परिणाम सामने आते हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के आचरण में मानवीय गरिमा की रक्षा की एक और मिसाल दान-दक्षिणा के समय लोगों की इज़्ज़त की रक्षा है। मानवीय प्रतिष्ठा व आत्म-सम्मान पर आंच आने की एक स्थिति ऐसी होती है जब किसी व्यक्ति को ख़ास तौर पर खोतपीते व्यक्ति को विशेष स्थिति में दूसरों के पैसों की मदद की ज़रूरत पड़े। प्रायः ऐसे लोगों के लिए दूसरों से मदद मांगना बड़ा सख़्त होता है। यसअ बिन हम्ज़ा नामक व्यक्ति कहता है कि एक दिन बहुत लोगों के साथ इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पास बैठा मौजूद उनके बातचीत कर रहा था। लोग उनसे धार्मिक कर्तव्यों और धर्म में हलाल व वर्जित चीज़ों के बारे में सवाल कर रहे थे। इस बीच एक व्यक्ति पहुंचा। उसने सलाम करने के बाद इमाम से अपना परिचय कराया और कहा कि आपके अनुयाइयों में हूं। अपने घर से हज के लिए गया था और अब रास्ते का ख़र्च खो गया है। आपसे मदद चाहता हूं ताकि अपने शहर पहुंच सकूं और चूंकि सदक़ा नामक दान पाने का पात्र नहीं हूं अपने घर पहुंच कर आपकी ओर से मदद के पैसों को आपके नाम पर दान कर दूंगा। इस बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उसे ढारस बंधाई और उससे बैठने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद सभा में सिर्फ़ तीन लोग मौजूद थे। इस बीच इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम दूसरे कमरे में गए। कुछ देर के बाद उन्होंने अपना हाथ दरवाज़े से बाहर निकाला और कहा, वह ख़ुरासानी व्यक्ति कहा है? उसने कहा मौजूद हूं। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा यह 200 दीनार ले लो, सफ़र सहित दूसरे ख़र्चे पूरे करना और मेरी तरफ़ से दान करने की ज़रूरत नहीं है। अब चले जाओ ताकि आमना-सामना न हो। मौजूद लोगों में से एक व्यक्ति ने पूछाः मैं आप पर क़ुर्बान जाऊं आपने उसके साथ भलाई की और बहुत ज़्यादा पैसे दिए। क्यों उसके सामने नहीं आए? इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा, मुझे पसंद नहीं कि निवेदन करने की पीड़ा उसके चेहरे पर देखूं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के विचार व व्यवहार से पता चलता है कि इस्लामी महापुरुषों के निकट मानवीय गरिमा और इंसान का सम्मान कितनी अहमियत रखता है। कुल मिलाकर यह नतीजा निकाला जा सकता है कि इस्लामी शिक्षाओं में इंसान को सब प्राणियों में श्रेष्ठ बताया गया है। यह पैदाइशी गरिमा बहुत से इस्लामी आदेश व अधिकार का आधार है। इस्लामी संस्कृति में दूसरों के साथ मिल कर रहने का उसूल इंसान की गरिमा के मद्देनज़र बनाया गया है जिसकी मिसाल इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के व्यवहार में दिखाई देती है।
2006 के युद्ध में अमरीका व इस्राईल को पराजय हुई थी, हसन नसरुल्लाह
लेबनान के हिज़बुल्लाह आंदोलन के महासचिव ने कहा है कि 33 दिवसीय युद्ध के दौरान इस्राईली सेना के ढांचे को भारी अघात पहुंचा और इस शासन की महत्वकांक्षा उसकी लज्जाजनक पराजय का कारण बनी।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने शनिवार को सन 2006 में इस्राईल के खिलाफ युद्ध में विजय की दसवीं सालगिरह पर भाषण में बल दिया कि इस्राईल और अमरीका ने वर्ष 2006 के युद्ध में पराजय का सामना किया और उस युद्ध का फैसला भी आज यमन के युद्ध की तरह, अमरीका ने किया था।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि इस युद्ध में इस्राईली उद्देश्यों की विफलता, इस्लामी प्रतिरोध की सब से बड़ी उपलब्धि रही है।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि आज इस्राईल, इस्लामी प्रतिरोध से भयभीत है और आज दस साल पहले की तुलना में लेबनान अधिक सुरक्षित है तथा दक्षिणी लेबनान इस्राईल के साथ बिना किसी शांति समझौते के सुरक्षित व शांत है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने इसी प्रकार उन सभी देशों के प्रति आभार प्रकट किया जो इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन के साथ खड़े हैं।
याद रहे जूलाई सन 2006 में इस्राईली सेना और लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन के मध्य हुए युद्ध में लेबनान को विजय प्राप्त हुई थी और इस दौरान 119 इस्राईली सैनिक मारे गये थे।
इस युद्ध में हिज़्बुल्लाह ने अवैध अधिकृत फिलिस्तीन के विभिन्न क्षेत्रों पर राकेट की बारिश कर दी थी।
फ़िलिस्तीनियों के घर तोड़ने पर फ़्रांस नाराज़
ज़ायोनी शासन द्वारा फ़िलिस्तीनियों के घर तोड़ने पर फ़्रांस ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
फ़्रांस ने कहा है कि फ़िलिस्तीनियों के घरों को अकारण तोड़ा जाना, अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन है।
फ्रांस के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि हम इस्राईल से मांग करते हैं कि वह यह काम न करे क्योंकि यह अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध है। प्रवक्ता ने कहा कि इस वर्ष इस्राईल द्वारा फ़िलिस्तीनियों के घरों को तोड़े जाने की यह तीसरी घटना है जो वास्तव में खेदजनक है। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी हाल ही में फ़िलिस्तीनियों की कृषि की भूमिकों को क्षति पहुंचाई गई थी।
फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि बड़े खेद की बात है कि दक्षिणी अलख़लील नगर में भी एेसी कई परियोजनाओं को ज़ायोनी शासन ने क्षति पहुंचाई जिसके लिए धन, यूरोपीय संघ ने दिया था।
ज्ञात रहे कि इससे पहले फ़िलिस्तीन की मानवाधिकार संस्था ने बताया था कि इस वर्ष के आरंभ में इस्राईल ने जार्डन नदी के पश्चिमी तट पर फ़िलिस्तीनियों के लगभग 168 घर गिरा दिये जिसके कारण 740 फ़िलिस्तीनी बेघर हो गए जिनके पास अबतक कोई रहने का सहारा नहीं है।
इथियोपिया, विरोध प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के हमले में 90 से अधिक मरे
इथियोपिया के ओरोमिया और अमहरा इलाक़ों में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों के बर्बर हमलों में दर्जनों लोगों की मौत हो गई है।
विपक्षी नेताओं ने समाचा एजेंसी एएफ़पी को मरने वालों की संख्या 50 से अधिक बतायी है, जबकि मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से कहा है कि पिछले दो दिन में 90 से अधिक लोग मारे गए हैं।
ओरोमिया और अमहरा में लोग राजनीतिक सुधारों, न्याय और क़ानून व्यवस्था जैसी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे।
सरकार की ओर से इस प्रकार की क्रूर कार्यवाही से लोगों का ग़ुस्सा और भड़क सकता है।
इन दोनों इलाकों में इथियोपिया के दो सबसे बड़े जन-जातीय समूह रहते हैं।
सूत्रों के अनुसार, पुलिस और सेना के ट्रेनिंग बेस समेत कई जगहों पर बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में रखा गया है और कई लोगों की मौत हिरासत के दौरान हुई है।
इस्राईल, ईरान को अदा करेगा 1.2 अरब डॉलर
स्वीज़रलैंड की मध्यस्थता करने वाली अदालत ने, इस्राईल की तेल कंपनी टीएओ को ईरान को 1.2 अरब डॉलर अदा करने का आदेश दिया है।
इस इस्राईली कंपनी की अपील को, स्वीज़रलैंड की इस अदालत ने ख़ारिज कर दिया है। यह भुगतान 1979 में ईरान में इस्लामी क्रान्ति से पहले इस्राईल को की गयी तेल की आपूर्ति से संबंधित है।
ज़ायोनी अख़बार हआरेत्ज़ के अनुसार, लूज़ान में स्वीज़रलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने इस्राईली कंपनी टीएओ को आदेश दिया कि वह ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी एनआईओसी को भुगतान करे।
स्वीज़रलैंड की अदालत के अनुसार, ईरानी तेल कंपनी एनआईओसी के ख़िलाफ़ पाबंदियां ख़त्म हो गयी हैं, इसलिए अब भुगतान के रास्ते में क़ानूनी तौर पर कोई चीज़ रुकावट नहीं है।
इस इस्राईली कंपनी को इसी प्रकार 2 लाख डॉलर अदालत पर आने वाले ख़र्च के भी अदा करने होंगे।
टीएओ ईरान के अंतिम तानाशाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन काल में ईरानी कंपनी एनआईओसी के साथ लेन-देन करती थी। इस्राइली कंपनी टैंकर जहाज़ का बेड़ा चलाती थी और ईरान के तेल को यूरोपीय ग्राहकों तक पहुंचाती थी।
1979 में ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद, इस इस्राइली कंपनी ने तीसरे पक्ष को बेचे गए तेल का भुगतान करवाने से मना कर दिया था।
इस्लामी गणतंत्र ईरान, इस्राईल को मान्यता नहीं देता। इसलिए ईरान ने तेल की बक़ाया राशि हासिल करने के लिए मध्यस्थता का रास्ता अपनाया।
यह विवादित रक़म लगभग 7 अरब डॉलर है।
2015 में स्वीज़रलैंड की इस अदातल ने इस्राईल को भुगतान करने का आदेश दिया किन्तु तेल अविव शासन ने इस आदेश के ख़िलाफ़ अपील की।
ज्ञात रहे ईरान और गुट पांच धन एक के बीच 2015 में हुए परमाणु समझौते के नतीजे में, ईरानी कंपनियों व हस्तियों के ख़िलाफ़ पाबंदियां हटा ली गयी हैं।
ईरान से भारत को गैस निर्यात की समीक्षा शुरु
ईरान की गैस निर्यातक राष्ट्रीय कंपनी के प्रबंधक ने सूचना दी है कि समुद्र में पाइप लाइन के ज़रिए भारत को गैस निर्यात की परियोजना के तकनीकी व आर्थिक पहुलओं की समीक्षा हो रही है।
अली रज़ा कामेली ने सोमवार को इस बात का उल्लेख करते हुए कि इस पाइप लाइन के निर्माण में पूंजि निवेश और इसे बिछाने का काम एक भारतीय कंपनी के ज़िम्मे है, कहा कि यह पाइप लाइन 1400 किलोमीटर लंबी होगी और कुछ जगह यह पाइप लाइन 3.5 किलोमीटर की गहराई में बिछी होगी। अब तक दुनिया में इतनी गहराई में पाइप लाइन नहीं बिछायी गयी है।
ईरान की गैस निर्यातक राष्ट्रीय कंपनी के प्रबंधक ने बताया कि भारत ने यूरोप की कई कंपनियों की भागीदारी से इस पाइप लाइन को बिछाने के अध्ययन का काम किया है और बताया है कि यह काम व्यवहारिक हो सकता है।
ईरान से भारत को गैस के निर्यात की परियोजना के समझौता ज्ञापन पर ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी और भारत की एसएजीई कंपनी के बीच 29 सितंबर 2009 को दस्तख़त हुए थे।
अमरीका दिन ब दिन कमज़ोर होता जा रहा है, वरिष्ठ नेता
वरिष्ठ नेता ने बल दिया है कि जेसीपीओए से एक बार फिर अमरीकियों के साथ बातचीत का बेनतीजा होना, अमरीकियों की वादा ख़िलाफ़ी और उनकी बातों पर भरोसा न करना साबित हो गया।
सोमवार को देश के विभिन्न प्रांतों के विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों ने आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई से तेहरान में मुलाक़ात की। इस अवसर पर वरिष्ठ नेता ने कहा कि जेसीपीओए ने यह दर्शा दिया कि प्रगति और जनता की स्थिति के बेहतर होने का मार्ग देश के भीतर है न कि वे दुश्मन हैं जो क्षेत्र सहित दुनिया में ईरान के लिए मुश्किलें खड़ी करने की कोशिशों में रहते हैं।
उन्होंने जेसीपीओए के संबंध में अमरीका के व्यवहार से ईरानी राष्ट्र को हासिल हुए अनुभव पर बल देते हुए कहा, “वे हमसे कहते हैं कि आइये क्षेत्र के मामलों पर आपस में बातचीत करें किन्तु जेसीपीओए के अनुभव से लगता है कि यह एक घातक काम है और किसी भी मामले में अमरीकियों की बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता।”
वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीका की दुश्मनी और हस्तक्षेप सिर्फ़ इस्लामी गणतंत्र ईरान तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहा, “तुर्की की हालिया घटना में भी गंभीर आरोप लग रहे हैं कि विफल सैन्य विद्रोह, अमरीकी सहयोग से हुआ है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर यह बात साबित होती है तो अमरीका के लिए बहुत बड़ी बदनामी होगी।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने क्षेत्र के हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी शासन से सऊदी सरकार के संबंध का सार्वजनिक होना इस्लामी जगत की पीठ में छुरा घोंपने जैसा है जो बहुत बड़ी ग़द्दारी है। उन्होंने कहा कि इस मामले में भी अमरीका का हाथ है क्योंकि सऊदी सरकार अमरीका के सामने नतमस्तक है।
उन्होंने कहा कि यमन पर सऊदी अरब के अतिक्रमण, घरों, अस्पतालों और स्कूलों पर निरंतर बमबारी तथा बच्चों के जनसंहार जैसी घटनाएं सऊदी सरकार के अन्य अपराध हैं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि खेद की बात है कि जिस वक़्त संयुक्त राष्ट्र संघ ने लंबे समय के बाद इन अपराधों की निंदा करने का इरादा किया तो उसका मुंह पैसों, धमकियों और दबाव के ज़रिए बंद कर दिया गया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी जगत में फूट डालने के लिए तकफ़ीरी गुटों को मज़बूत करने में अमरीका का हाथ होने की ओर इशारा किया और कहा, “वे तकफ़ीरी गुटों से संघर्ष करने के अपने दावों के विपरीत कोई प्रभावी काम नहीं कर रहे हैं बल्कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार, वे इन गुटों की मदद भी करते हैं।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने क्षेत्रीय समस्याओं का हल मुसलमान राष्ट्रों व सरकारों के बीच आपसी एकता और अमरीका तथा कुछ यूरोपीय सरकार के साम्राज्यवादी लक्ष्यों के ख़िलाफ़ दृढ़ता पर निर्भर बताया। उन्होंने कहा कि अमरीका की सारी कोशिशों के बावजूद उसके षड्यंत्रों से पर्दा उठ गया है और क्षेत्र में अमरीका, दिन-प्रतिदिन और कमज़ोर होता जा रहा है।
भारत, स्कूल में ईद का समारोह आयोजित करने पर लगा लाखों का जुर्माना
भारत की राजधानी दिल्ली के पास स्थित गुड़गांव के तौरू में एक स्कूल को स्थानीय पंचायत ने अजीबोग़रीब फ़रमान सुनाया है। स्कूल पर ईद का समारोह आयोजित करने के लिए 5.5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है।
भारतीय समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार गुड़गांव के तौरू में पंचायत ने मेवात ज़िले के ग्रीन डेल्स पब्लिक स्कूल के मुस्लिम छात्रों और शिक्षकों को निकालने का आदेश दिया है। साथ ही पंचायत ने स्कूल को छात्राओं के स्कर्ट की जगह सलवार कमीज़ पहनने का नियम लागू करने को कहा है।
समाचार पत्र के मुताबिक़ मेवाड़ जिले के तौरू कस्बे के हिन्दू परिवारों ने स्कूल प्रशासन पर इस्लामी शिक्षाओं को फ़ैलाने और उनके बच्चों पर इसके नियम थोपने का आरोप लगाया था। जिस पर मेवाड़ गांव की पंचायत ने यह फैसला सुनाया है।
दूसरी ओर स्कूल की मैनेजर हेमा शर्मा ने बताया है कि पंचायत के फ़रमान के बाद स्कूल की अकेली मुस्लिम धर्म की शिक्षिका नौकरी छोड़कर दिल्ली में रहने पर मजबूर हुई हैं। उन्होंने कहा कि हमारे स्कूल में सभी धर्म के बच्चे एक साथ पढ़ते और खेलते हैं। हम उन्हें सभी धर्मों के बारे में बताते हैं और उनका सम्मान करना सिखाते हैं।
इस मामले पर पंचायत के सदस्य टेक चंद सैनी ने आरोप लगाया कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को मुसलमान बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि बच्चों को क़ुरान की आयतें पढ़ने के लिए कहा जाता है। टेक चंद सैनी ने कहा कि स्कूल हिन्दू बच्चों के साथ बहुत बड़ी साज़िश रच रहा है।
राष्ट्रसंघ ने अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में जायोनी कालोनियों के निर्माण की भर्त्सना की
संयुक्त राष्ट्रसंघ और फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने बैतुल मुक़द्दस के पूर्व में ग़ैर कानूनी ढंग से 800 मकानों को बनाने हेतु इस्राईल की योजना की भर्त्सना की है।
प्रेस टीवी की रिपोर्ट के अनुसार मध्यपूर्व में तथाकथित शांतिप्रक्रिया के मामलों में संयुक्त राष्ट्रसंघ के विशेष दूत निकोलाए मलादनोफ़ Nickolay Mladenov ने ग़ैर कानूनी कालोनियों में विस्तार हेतु जायोनी शासन की कार्यवाही की भर्त्सना की। उन्होंने एक विज्ञप्ति जारी करके 770 मकान बनाने हेतु इस्राईली अधिकारियों के हालिया निर्णय की भर्त्सना की और उसे गैर कानूनी बताया।
इसी बीच फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा समिति के महासचिव साएब उरैक़ात ने घोषणा की है कि तेलअवीव का यह निर्णय इस्राईल द्वारा ग़ैर क़ानूनी ढंग से जायोनी कालोनियों के निर्माण को रोकवाने में विश्व समुदाय की विफलता का सूचक है।
ज्ञात रहे कि इस्राईल द्वारा जायोनी कालोनियों के निर्माण को शांति प्रक्रिया की दिशा में मुख्य रुकावट समझा जा रहा है।
900 लोग. भारत में इस्लाम में परिवर्तित
900 लोग. भारत में इस्लाम में परिवर्तित
अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी खबर "सन्डे स्टंडर्ड" के हवाले से, अली कोया, तर्बियह केंद्र निदेशक ने कहा: 2015 में 300 लोग सुब्हा केंद्र में और 600 लोग तर्बियह केंद्र में इस्लाम में परिवर्तित हुऐ हैं।
उन्होंने कहा कि ऐ मुसल्मानों की बातचीत, आय और खर्च के सभी विवरण केरल पुलिस विभाग और आवास विभाग को दे दिऐ गऐ हैं।
उन्हों ने कहा कि इन ऐ मुसल्मानों और वह लोग जो केरल में दइश में शामिल हुऐ हैं के बीच कोई संबंध मौजूद नहीं है।
ओमनी चांडी केरल के मुख्यमंत्री ने भी कहा: कि राज्य में 2667 महिलाऐं 2006 के बाद से इस्लाम में परिवर्तित हुई है।
केरल में 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी (लगभग एक तिहाई) है। शिया आबादी लगभग एक मिल्युन है।
कोचिन कालेकत सहित केरल के कुछ महत्वपूर्ण शहरों में, संख्या और मुसलमानों की भूमिका अहम है और malapouram जैसे क्षेत्रों में मुसलमानों की पूर्ण बहुमत है और कहा जाता है कि इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 95 प्रतिशत से अधिक है।
ऐक मस्जिद के इमाम के अनुसार केरल राज्य में मस्जिदों की संख्या 11 हजार पर पहुंच गई हैं।