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तेल, गैस और पेट्रोकेमिकल के क्षेत्र में ईरान तथा यूरोप के बीच 3 अरब यूरो का समझौता हुआ है।

ईरान की ग़दीर पूंजिनिवेश कंपनी के सीईओ ग़ुलाम रज़ा सुलैमानी ने यह ख़बर दी है। उन्होंने अपने एक इंटर्व्यू में कहा है कि यूरोपीय कंपनियों के साथ तेल, गैस, पेट्रोकेमिकल, बिजलीघर, सीमेंट और मूल संरचनाओं से संबंधित लगभग 3 अरब यूरो मूल्य की परियोजनाओं के संबंध में सहमति हुई है। इन परियोजनाओं से संबंधित लगभग 1 अरब यूरो के बारे में फ़ैसला, अंतिम चरण में है।

ग़ुलाम रज़ा सुलैमानी ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि बाक़ी 2 अरब यूरो की परियोजनाओं के बारे में तकनीकी बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा कि इतालवी व यूनानी कंपनियों के साथ परियोजनाओं को लागू करने से संबंधित समझौते को अंतिम रूप दिया जा चुका है और उन पर काम भी शुरु हो गया है।

 

लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के वरिष्ठ कमांडर शहीद मुस्तफ़ा बदरुद्दीन के परिजनों ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस मुलाक़ात में शहीद बदरुद्दीन के साहस और शौर्य की सराहना करते हुए कहा कि मैंने इस महान शहीद के ठोस और फ़ौलादी व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ सुना है और ईश्वर से उनके दर्जे उच्च करने और आप लोगों के धैर्य की प्रार्थना करता हूं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि हिज़्बुल्लाह और प्रतिरोधकर्ताओं के अस्तित्व की बरकत से लेबनान एक आदर्श भूमि में बदल चुका है और वास्तव में एेसी जगहें कम ही होंगी जहां इतने सारे सच्चे ईमान वाले और निष्ठावान लोग मौजूद हों।

उन्होंने कहा कि यद्यपि भौगोलिक दृष्टि से लेबनान एक छोटा सा देश है लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से वह पूरे क्षेत्र में प्रभाव रखता है और एेसा प्रतिरोध आंदोलन के शहीदों के ख़ून की बरकत से है। इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शहीद मुस्तफ़ा बदरुद्दीन के पुत्र अली बदरुद्दीन को अपनी अंगूूठी भेंट स्वरूप दी। ज्ञात रहे कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के वरिष्ठ कमांडर मुस्तफ़ा बदरुद्दीन 13 मई को सीरिया की राजधानी दमिश्क़ के हवाई अड्डे के निकट तकफ़ीरी आतंकी गुटों द्वारा किए गए तोपख़ाने के हमले में शहीद हो गए थे।  

 

इस्राईल की ओर से पाबंदी लगाए जाने के बावजूद ग़ज़्ज़ा से आने वाले तीन सौ से अधिक फ़िलिस्तीनी बैतुल मुक़द्दस में नमाज़े जुमा में भाग लेने के लिए पहुंचे हैं।

फ़िलिस्तीन के नागरिक मामलों के अधिकारी ने बताया है कि शुक्रवार को ग़ज़्ज़ा के 300 से अधिक नागरिक बैत हानून से हो कर अतिग्रहित बैतुल मुक़द्दस पहुंच गए ताकि मस्जिदुल अक़सा में होने वाली नमाज़े जुमा में भाग ले सकें। ज्ञात रहे कि इस्राईली सैनिक फ़िलिस्तीनी नमाज़ियों को बड़ी मुश्किल से मस्जिदुल अक़सा में नमाज़े जुमा में भाग लेने की अनुमति देते हैं और 45 साल से कम आयु के लोगों को नमाज़े जुमा में शामिल होने की अनुमति नहीं होती।

उधर फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने आशंका जताई है कि एविग्डर लिबरमैन को ज़ायोनी शासन का युद्ध मंत्री बनाए जाने से फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध अपराधों और अत्याचारों की नई लहर शुरू हो सकती है। पीएलओ के कार्यकारी समिति के प्रमुख साएब उरैक़ात ने कहा कि लिबरमैन को इस्राईल का युद्ध मंत्री बनाए जाने से पहले की तुलना में जातिवादी कार्यवाहियों और ज़ायोनी काॅलोनियों के निर्माण में वृद्धि होगी और दो सरकारों के गठन की योजना ठप्प पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे धार्मिक व राजनैतिक चरमपंथ, आतंकवाद, हिंसा और रक्तपात में बढ़ोतरी होगी।  

 

 

इमामबाड़ों में अश्लीलता को रोकने और उनकी धार्मिक स्थिति को ख़त्म करने के ख़िलाफ़ 1 जून को ऐतिहासिक छोटे इमामबाड़े में एक विशाल जनसभा आयोजित होगी।

भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इमामबाड़ों की धार्मिक स्थिति को ख़त्म करने, इबादतगाहों को अपवित्र किए जाने की स़ाजिशों और हुसैनाबाद ट्रस्ट तथा वक़्फ़ बोर्ड में जारी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भारतीय शिया मुसलमानों द्वारा 1 जून को विशाल जनसभा आयोजित की जा रही है। 

लखनऊ से प्राप्त समाचारों के अनुसार यूपी के शिया मुसमलान बड़े पैमाने पर राज्य सरकार और ज़िला प्रशासन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की तैयारियों में व्यस्त हैं।

दूसरी ओर भारत में शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू और इमामे जुमा लखनऊ मौलाना सय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने एक बयान जारी करके कहा है कि योजनाबद्ध तरीक़े से हमारे इमाबाड़ों और इबादतगाहों की पवित्रता को ख़त्म किया जा रहा है, जिसमें प्रदेश सरकार और ज़िला प्रशासन का रवैया काफ़ी निराशाजनक है। उन्होंने कहा है कि अब जनता अब पूरी तरह जागरूक है इसलिये 1 जून को छोटे इमामबाड़े में जो जनसभा रखी गयी है उसमें सभी धर्मगुरुओं सहित मातमी अंजुमनों को आमंत्रित किया जाएगा।

 

मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि इमामबाडों की धार्मिक स्थिति ख़तरे में है और उनकी पवित्रता का हनन किया जा रहा है इसलिए हर एक का फर्ज़ है कि वह इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए। मौलाना ने कहा कि हिन्दू कट्टरपंथी गुट आरएसएस की नीति के तहत इमामबाड़ों की धार्मिक स्थिति को समाप्त किया जा रहा है यही कारण है कि हमारी इबादतगाहों में हो रही अश्लील हरकतों पर प्रदेश सरकार और प्रशासन चुप है।  

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने प्रतिरोध, शत्रुओं का अनुसरण न करने, इस्लामी और क्रांतिकारी पहचान की रक्षा को ईरानी राष्ट्र और इस्लामी व्यवस्था की शक्ति का मुख्य कारक बताया। उन्होंने कहा कि अमरीका और दूसरी शक्तियां, इस विषय से बहुत नराज़ हैं।

वरिष्ठ नेता ने सोमवार ख़ुर्रमशहर की स्वतंत्रा की वर्षगांठ के अवसर पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कैडिट कालेज में इस बात पर बल देते हुए कि साम्राज्यवादी ईरानी राष्ट्र के प्रतिरोध से नराज़ हैं, कहा कि साम्राज्यवादी मोर्चे ने पिछले 37 वर्षों के दौरान इस्लामी क्रांति को विफल बनाने के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाए और अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचे किन्तु वे विफल रहे।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अनुसरण के मुद्दे को आज ईरान और साम्राज्यवादी मोर्चे के बीच का मुद्दा बताया और कहा कि उन्होंने समस्त संसाधनों, दबावों और सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनैतिक एवं प्रचारिक प्रयासों और अपने विश्वासघाती पिट्ठुओं को प्रयोग किया ताकि इस्लामी व्यवस्था को घुटने टेकने और उसे अनुसरण पर विवश करें किन्तु जो चीज़ ईरानी राष्ट्र से साम्राज्यवादियों के भीषण क्रोध का कारण बना है, वह यह है कि लोग साम्राज्यवादियों का अनुसरण करने को तैयार नहीं हैं।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह विचारधारा अर्थात वही इस्लामी विचारधारा थी जिसके कारण ईरानी राष्ट्र साम्राज्यवादी और काफ़िर मोर्चे से प्रभावित नहीं हुआ।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने परमाणु ऊर्जा, मीज़ाइल क्षमता तथा मावाधिकारों के विषयों को बहाना बताया और बल दिया कि इन समस्त शत्रुताओं और बहाने बाज़ियों का मुख्य कारण, साम्राज्यवादियों का अनुसरण न करना है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि हालिया दिनों में मीज़ाइल क्षमता के बारे में उन्होंने बहुत हंगामे किये किन्तु उन्हें यह जान लेना चाहिए कि इन हंगामों का कोई लाभ नहीं होगा, वे कुछ बिगाड़ नहीं सकते।  

भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी ईरान पर प्रसन्नता जताई है।

सोमवार को ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई और राष्ट्रपति हसन रूहानी से मुलाक़ात के बाद मोदी ने ट्वीट किया कि इस यात्रा में ईरानी नेताओं के साथ सार्थक बातचीत हुई और हम अपने रिश्तों को अधिक मज़बूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

मोदी ने अपने ट्वीटर एकाउंट में लिखा कि मैं ईरान के अच्छे लोगों की दोस्ती के लिए शुक्रिया अदा करता हूं, ईरान की मेरी यात्रा लाभदायक रही, जिसके सकारात्मक परिणाम दोनों देशों को प्रभावित करेंगे।

मोदी की तेहरान यात्रा क दौरान, भारत और ईरान ने आपसी सहयोग के 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

इनमें सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन और चाबहार-ज़ाहेदान के बीच रेलवे लाइन बिछाने संबंधी समझौते प्रमुख हैं।

भारतीय प्रधान मंत्री दो दिवसीय ईरान यात्रा पर रविवार को दो तेहरान पहुंचे थे।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सोमवार की शाम अफगान राष्ट्रपति से भेंट में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने हमेशा अफगानिस्तान के हितों और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया है और वह सभी क्षेत्रों में इस देश के विकास को अपना विकास समझता है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इस भेंट में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अमरीका व ब्रिटेन जैसे कुछ देशों के विपरीत सदैव अफगान जनता के साथ सम्मान, भाईचारे और आतिथ्य प्रेम पर आधारित व्यवहार करता रहा है और अफगानिस्तान द्वारा अपने देश के प्राकृतिक संसाधनों से लाभ उठाने के प्रयास में ईरान उसकी हर प्रकार की सहायता के लिए तैयार है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि अफगानिस्तान को प्राकृतिक संसाधनों और मानव बल के रूप में दो बड़ी नेमत मिली है जिसके बल पर वह अच्छी तरह से विकास कर सकता है।

वरिष्ठ नेता ने दोनों देशों के मध्य सीमावर्ती नदियों के मामले के जल्द निपटारे की ज़रूरत पर बल दिया और कहा कि इस प्रकार के मुद्दे, ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों के मध्य शिकायत व दूरी का कारण नहीं बनने चाहिएं जो वास्तव में संयुक्त सीमा, संयुक्त संस्कृति व संयुक्त ज़रूरत रखते हैं।

इस भेंट में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी तेहरान में होने वाली वार्ता विशेषकर चाबहार के रास्ते ट्राज़िस्ट के लिए भारत के साथ हुए समझौते पर खुशी प्रकट की कहा कि हम ईरानी जनता की ओर से अफगान नागरिकों की मेज़बानी और अफगानिस्तान के प्रति आप की सकारात्मक दृष्टि के लिए सदैव आभारी रहेंगे और आशा है कि तेहरान वार्ता परस्पर संबंधों में अधिक विकास का कारण बनेगी।  

भारतीय सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ईरान यात्रा के अवसर पर ईरान के बक़ाया पैसों में से 750 मिलयन डालर, ईरान के अकान्ट में डाल दिये गए।

इर्ना की रिपोर्ट के अुनसार 750 मिलयन डालर में से 500 मिलयन डालर, मेंगलोर रिफायनरी ने अदा किये जबकि बाक़ी राशि का भुगतान अन्य तेल रिफ़ायनरी ने किया। यह पैसा, यूनियन बैंक आफ इंडिया के माध्यम से तुर्की की हैलिक बैंक में भेजा गया।

भारत की एस्सार तेल कंपनी ने भी घोषणा की है कि वह शीघ्र ही ईरान के बक़ाया 500 मिलयन डालर का भुगतान करेगी। इससे पहले भारतीय अधिकारियों ने कहा था कि ईरान की बक़ाया तेल राशि के भुगतान के लिए कोई उचित माध्यम उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि भारत पर ईरान का 6 दश्मलव 5 अरब डालर का तेल का बक़ाया है।

रक्षा मामलों में रूसी राष्ट्रपति के सलाहकार ने कहा है कि एक S-300 मीज़ाईल शील्ड ईरान को दी जा चुकी है और साल के अंत तक कई और शील्ड उसे दी जाएंगी।

विलादिमीर कोजीन ने गुरुवार को बताया कि उनके देश ने ईरान को S-300 नामक एक प्रक्षेपास्त्रिक ढाल दे दी है और जारी वर्ष की समाप्ति से पहले उसे कई और प्रक्षेपास्त्रिक ढाल दी जाएगी। उन्होंने बताया कि S-300 मिलने में विलम्ब पर ईरान ने जो शिकायत की थी उसे फ़िलहाल उसने टाल दिया है लेकिन अभी यह ज्ञात नहीं है कि वह इस शिकायत को कब वापस लेगा?

ज्ञात रहे कि ईरान और रूस ने वर्ष 2007 में एक समझौता किया था जिसके अनुसार रूस ईरान को कम से कम पांच S-300 प्रक्षेपास्त्रिक ढाल देने वाला था लेकिन वर्ष 2010 में रूस ने इस बहाने से कि यह प्रक्षेपास्त्रिक ढाल ईरान को बेचने से संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का उल्लंघन होगा, उसे तेहरान के हवाले करने से इन्कार कर दिया था। माॅस्को के इस निर्णय के बाद ईरान के रक्षा मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में शिकायत दर्ज कराके रूस से चार अरब डाॅलर के हर्जाने की मांग की थी। रूस के राष्ट्रपति ने इसी साल मार्च के महीने में एक आदेश जारी करके ईरान को S-300 बेचने पर लगी रोक समाप्त कर दी थी जिसके बाद यह प्रक्षेपास्त्रिक ढाल ईरान के हवाले करने का काम शुरू कर दिया गया था।  

इस्लामी देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्राईल द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी पर गहरी आपत्ती जताई।

 इस्लामी देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में ज़ायोनी शासन द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी के उस पोर्ट्रेट पर आपत्ति जताई जिसमें अवैध अधिकृत बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी दर्शाया गया है।

संयुक्त राष्ट्र संघ में फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल ने बृहस्पतिवार को संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून और महासभा के अध्यक्ष मोगेन्ज़ लिटकोफ़ को पत्र लिखकर ओआईसी के 57 सदस्य देशों की आपत्ति से अवगत करावाया और मांग की कि इस्रईल की इस प्रदर्शनी से उस तसवीर को फौरना हटाया जाना चाहिए।

फ़िलस्तीनी प्रतिनिधिमंडल ने अपने पत्र में कहा है कि एसी कोई भी चीज़ जो बैतुल मुक़द्दस पर ज़ायोनी शासन के दावे का समर्थन करे क़ानूनी, राजनैतिक और नैतिक रूप से ग़लत और अस्वीकार्य है।

फ़िलिस्तीनियों की मांग है कि वर्ष 1967 की सीमाओं के आधार पर फ़िलिस्तीन देश की स्थापना की जाए लेकिन इस्रईल लगातार अपनी अतिग्रहणकारी कार्यवाहियां जारी रखे हुए है।