رضوی

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बहरैन में इज़राइली राजदूत की वापसी के बाद पूरे देश में तनाव बढ़ गया है और जनता ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मनामा समेत कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए और इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने के खिलाफ जोरदार नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की भी खबरें आई हैं।

बहरैन में इज़राइली राजदूत की वापसी के बाद पूरे देश में तनाव बढ़ गया है और जनता ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। मनामा समेत कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए और इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने के खिलाफ जोरदार नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की भी खबरें आई हैं।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने देर शाम प्रदर्शनों के दौरान इज़राइल विरोधी नारे लगाए और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश की कि बहरीन के लोग इज़राइल समर्थक नीतियों के खिलाफ हैं। प्रदर्शनकारियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "बहरैन राष्ट्र" सरकार के ज़ायोनी एजेंडे के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।

यह विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुआ जब बहरीन के विदेश मंत्री अब्दुल्लातिफ़ बिन राशिद अल-ज़यानी ने 27 अगस्त, 2025 को नए इज़राइली राजदूत "शमूएल रोएल" के परिचय पत्र स्वीकार किए। गौरतलब है कि 2023 में ग़ज़्ज़ा युद्ध के बाद बहरैन ने तेल अवीव से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था और दोनों देशों के बीच संबंध निलंबित कर दिए गए थे।

दो साल बाद इज़राइली राजदूत की वापसी ने बहरैन के विभिन्न हिस्सों में जनाक्रोश को और भड़का दिया है। विरोध प्रदर्शन मनामा, दाराज़ और अन्य शहरों में फैल गए हैं, जहाँ प्रदर्शनकारियों ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया और इज़राइल के साथ संबंधों को "राष्ट्र-विरोधी नीति" बताया।

विरोध प्रदर्शनों के वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किए जा रहे हैं, जिनमें सार्वजनिक नारेबाजी और सुरक्षा बलों द्वारा बल प्रयोग के दृश्य दिखाई दे रहे हैं।

 गुरुवार को सना में इज़राईली शासन की हवाई हमले में शहीद हुए यमन के प्रधानमंत्री अहमद अलरहवी" और उनके साथियों के शवों का अंतिम संस्कार समारोह आज सुबह आयोजित किया गया।

अलमसीरा के हवाले से यमन के हज़ारों लोग देश के अधिकारियों, जिनमें प्रधानमंत्री और कई मंत्री शामिल हैं, के आधिकारिक अंतिम संस्कार समारोह में भाग लेने के लिए यमन की राजधानी के अलसबीन चौक की ओर जा रहे हैं, जो इजरायल के हवाई हमले में शहीद हुए थे।

वादा की गई विजय और सियोनिस्ट शासन के आतंकवादी हमले में शहीद हुए लोगों की अंतिम संस्कार प्रार्थना सना के "अल-शाब" मस्जिद में आयोजित की गई।

यमन के परिवर्तन और पुनर्निर्माण सरकार के कार्यवाहक प्रमुख "मोहम्मद मफ्ताह" ने शहीदों के अंतिम संस्कार समारोह में भाग लेते हुए कहा, हम जोर देकर कहते हैं कि हम एक सम्मानजनक स्थिति में हैं और हम गाजा का समर्थन करने से कभी पीछे नहीं हटेंगे। यमन ने आज सच्चाई के समर्थन में अपने लोगों को आगे बढ़ाया है और हम इस पर गर्व और संतुष्ट हैं, लेकिन इस संबंध में हम अभी भी अपर्याप्त महसूस करते हैं।

उन्होंने कहा,हम एक बड़े और प्रभावी युद्ध में शामिल हो गए हैं और अमेरिका से टकरा गए हैं यह युद्ध केवल सैन्य नहीं था बल्कि एक आर्थिक युद्ध था और दुश्मन ने हर लक्ष्य पर हमला किया।

यमन के कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने कहा,दुश्मन ने यमन को घेरने के लिए यमन के बंदरगाहों को निशाना बनाया लेकिन उसके लक्ष्य विफल रहे क्योंकि बंदरगाह अभी भी सक्रिय हैं और कोई संकट पैदा नहीं हुआ है। सरकार की गतिविधियों के बारे में कोई चिंता नहीं है और शहीदों का खून हमें अपने मिशन और कर्तव्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित और दृढ़ करता है। सरकार की गतिविधियाँ बाधित नहीं हुई हैं।

मोहम्मद मिफ्ताह ने कहा,स्थिति अच्छी है और दुश्मन हार गया है। हम यमन के लोगों की हर मोर्चे पर उपस्थिति की सराहना करते हैं और यह उपस्थिति है जिसने दुश्मन को हराया है। जो कुछ भी देशद्रोही, भाड़े के लोग प्रचार कर रहे हैं वह बिना किसी आधार के है।

यमन सरकार के शहीदों के अंतिम संस्कार समारोह शुरू होने से पहले, यमन सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल "यहया सरीय" ने एक बयान जारी कर घोषणा की थी कि देश की मिसाइल इकाई ने लाल सागर में एक इजरायली तेल टैंकर को निशाना बनाया है।

उन्होंने अपने बयान में जोर देकर कहा कि यमन सशस्त्र बलों ने गाजा के समर्थन में इस ऑपरेशन को बैलिस्टिक मिसाइल से किया है।

गुरुवार को सियोनिस्ट कब्जे वाले शासन के सना पर हवाई हमले में, परिवर्तन और पुनर्निर्माण सरकार के प्रधानमंत्री "अहमद गालिब नासिर अल-रहवी" उनके साथ कई मंत्री शहीद हो गए।

यमन के अंसार अल्लाह आंदोलन ने आज घोषणा की कि पिछले गुरुवार को सना में सियोनिस्ट शासन के हवाई हमले में प्रधानमंत्री और 9 मंत्री, जिनमें न्याय, अर्थव्यवस्था, विदेश मामले और सूचना मंत्री शामिल हैं शहीद हो गए

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जाफ़र ज़ादेह ने कहा,हालाँकि मिम्बर मस्जिद में उपदेश देने का स्थान महत्वपूर्ण है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ध्यान देना चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मंसूर जाफ़र ज़ादेह क़ुम के हौज़ा ए इल्मिया के एक शिक्षक, ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता के साथ बातचीत में, अधिक प्रभावी प्रचार के लिए हौज़े को मौके देने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए कहा, हमने पिछले दंगों में दुश्मन का हाथ साफ़-साफ़ देखा।वह दुश्मन जो पुलिस की गला काटता है।

विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक केंद्रों में अशांति फैलाता है शिया महिला से हिजाब खींचता है। ये घटनाएँ हमारे लिए एक सबक होनी चाहिए, हमने देखा कि महिला महसा अमीनी की मृत्यु के बाद कुछ लोगों ने भावुकतापूर्ण व्यवहार किया और दुश्मन का हाथ नहीं देखा।

उन्होंने कहा,उन साधनों में से एक जिसका दुश्मन ने भरपूर फायदा उठाया, वह "सोशल मीडिया" है। कई युवा इस प्लेटफॉर्म पर थे जिन्होंने इस खुले और बिना सीमा वाले माहौल में धोखा खाया और नुकसान उठाया, एक ऐसा मंच जहाँ अच्छा काम भी किया जाए तो उसे महत्वहीन दिखाया जाता है।

सोशल मीडिया को बिना नियंत्रण और उपेक्षित छोड़कर उसमें अच्छा काम नहीं किया जा सकता। हमारे युवा पिछले कुछ वर्षों में गहराई से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं और हम इसके नुकसान देख रहे हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जाफ़र ज़ादेह ने कहा,सार्वजनिक संस्कृति में विभिन्न संस्थाएँ शामिल थीं हौज़ा ए इल्मिया की भूमिका को भी इन संस्थाओं में से एक के रूप में जाँचा जाना चाहिए, हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता कि हौज़ा ने अपनी सारी क्षमताओं का उपयोग किया है, लेकिन वास्तव में हौज़ा ए इल्मिया ने अपने पास मौजूद क्षमता के आधार पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। हौज़े ने अलग-अलग समय पर विभिन्न तरीकों से विभिन्न प्रचारों को व्यवस्थित किया है जो उसकी सकारात्मक भूमिका को दर्शाता है।

उन्होंने जोर देकर कहा, हालाँकि मिम्बर (मस्जिद में उपदेश देने का स्थान) महत्वपूर्ण है, लेकिन सोशल मीडिया पर भी ध्यान देना चाहिए।

क़ुम के हौज़ा ए इल्मिया के शिक्षक ने यह सवाल उठाते हुए कहा,क्या प्रचार का महत्वपूर्ण मंच हौज़ा के हाथ में है कि हम हौज़ा से इतनी उम्मीद रखें? उन्होंने कहा,जो लोग काम कर सकते हैं, वे विश्वविद्यालय, इस्लामी प्रचार मंत्रालय और इस तरह की अन्य संस्थाएँ हैं।

हाँ, हममें कमियाँ हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम कुछ न करें। प्रचार का मंच और महत्वपूर्ण नीतियाँ हौज़े के हाथ में नहीं हैं; अगर वे देते तो हौज़ा अधिक प्रभावी ढंग से काम करता। हौज़े से उम्मीद उतनी ही होनी चाहिए जितनी सुविधाएँ उसे दी गई हैं, लेकिन इस सीमा के भीतर भी उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और और भी बेहतर कर सकता है।

उन्होंने स्पष्ट किया,हम देख रहे हैं कि हौज़ा ने सामग्री के निर्माण में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और काम आगे बढ़ाया है लेकिन समस्या युवाओं और अधिकारियों तक संदेश पहुँचाने में है, यह काम सूचना तंत्र, रेडियो-टेलीविजन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स द्वारा किया जाना चाहिए।

आज के युवाओं से संवाद का माध्यम सिनेमा, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम और इस तरह के अन्य प्लेटफॉर्म हैं। समस्या यह नहीं है कि हमारे पास शासन संबंधी इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) नहीं है; समस्या यह नहीं है कि सामग्री का निर्माण नहीं हुआ है, बल्कि समस्या यह है कि यह सामग्री युवाओं तक अच्छी तरह से नहीं पहुँच पा रही है।

उस समय अब्बासी शासक मोतमिद के हाथ में सत्ता थी। वह सोचता या कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपने मार्ग से हटाकर वह उनकी याद को भी लोगों के मन से मिटा देगा और वे सदैव के लिए भुला दिए जाएंगे किन्तु जिस दीपक को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों ने जलाया हो वह कभी बुझ नहीं सकता बल्कि वह मानवता का सदैव मार्गदर्शन करता रहे गा।
जैसाकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैं: मेरे परिजन नूह की नौका की भांति हैं जिसने उनके दामन में पनाह ली वह मुक्ति पाएगा और जो उनसे दूर होगा वह डूब जाएगा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के अवसर पर पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों पर ईश्वर का सलाम हो हम इस बात के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं कि उसने मानवता के मार्गदर्शन के लिए इस महान हस्ती को संसार में भेजा।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की पहचान और उनके समक्ष विनम्रता के बारे में कहते हैं: जिसे अपने धार्मिक बंधुओं के अधिकारों की अधिक पहचान हो और वह उसके लिए अधिक प्रयास करे, ईश्वर के निकट उसका स्थान बहुत ऊंचा होगा। जो अपने धार्मिक बंधुओं से विनम्रता से मिले तो ईश्वर के निकट उसकी गणना सत्यवादियों व सत्य के अनुयाइयों में होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत अर्थात ईश्वरीय आदेशानुसार जनता के मार्गदर्शन का काल, अब्बासी शासन श्रृंखला का सर्वाधिक हिंसाग्रस्त काल था। अब्बासी शासकों की अयोग्यता और दरबरियों में आपस में अंतरकलह, जनता में असंतोषत और निरंतर विद्रोह, दिगभ्रमित विचारों का प्रसार, उस काल की राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल के कारणों में थे। शासक, जनता का शोषण कर रहे थे और वंचितों व बेसहारा लोगों की संपत्ति बलपूर्वक हथि रहे थे। वे जनता के पैसों से भव्य महलों का निर्माण करते थे और जनता की निर्धनता व समस्याओं की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते थे।
अब्बासी शासक अपने अत्याचारी शासन को चलाने के लिए किसी भी अपराध की ओर से संकोच नहीं करते थे और समाज के सभी वर्गों के साथ उनका व्यवहार कठोर था। उस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को और अधिक घुटन भरे वातावरण का सामना था। क्योंकि ये हस्तियां अत्याचार व भ्रष्टाचार के समक्ष मौन धारण नहीं करती थीं बल्कि उनके विरुद्ध आवाज़ उठाती थीं।
अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी और उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को मदीना नगर से जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का केन्द्र था, तत्कालीन अब्बासी शासन की राजधानी सामर्रा नगर पलायन के लिए विवश किया। सामर्रा नगर में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासन के अधिकारियों के नियंत्रण में थे। उन्हें सप्ताह में कुछ दिन अब्बासी शासन के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। अब्बासी शासक, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर विभिन्न शैलियों से दबाव डालते थे क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह कथन सब को याद था कि विश्व को उत्याचार से मुक्ति दिलाने वाला उन्हीं का पौत्र होगा। वह मानवता को मुक्ति दिलाने वाले वही मोक्षदाता हैं जिन के प्रकट होने से संसार से अत्याचार जड़ से समाप्त हो जाएगा। ऐसे किसी शिशु के जन्म की कल्पना, अत्याचारी अब्बासी शासकों को अत्यधिक भयभीत करने वाली थी।
अब्बासी शासकों के व्यापक स्तर पर प्रयासों के बावजूद इस शिशु के जन्म लेने का ईश्वर का इरादा व्यावहारिक हुआ और इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने इस संसार में क़दम रखा। इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के जन्म के पश्चात, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कठिन भविष्य का सामना करने के लिए समाज को तैयार करने का बीड़ा उइया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम उचित अवसरों पर ग़ैबत अर्थात इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम के लोगों की दृष्टि से ओझल रहने के काल की विशेषताओं तथा संसार के भावी नेतृत्व में अपने सुपुत्र की प्रभावी भूमिका का उल्लेख करते थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बल दिया करते थे कि उनके सुपुत्र के हातों पूरे विश्व में न्याय व शांति स्थापित होगी।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जिसकी भी दृष्टि उन पर पड़ती वह ठहर कर उन्हें देखने लगता और बरबस उनकी प्रशंसा करता था।

अब्बासी शासन की इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से शत्रुता के बावजूद इस शासन का एक मंत्री इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व का उल्लेख इन शब्दों में करता है। मैंने सामर्रा में हसन बिन अली के जैसा किसी को न पाया। गरिमा, सुचरित्र और उदारता में कोई उनके जैसे नहीं मिला।लांकि वह युवा हैं किन्तु बनी हाशिम उन्हें अपने वृद्धों पर वरीयता देते हैं। वह इतने महान हैं कि मित्र और शत्रु दोनों ही प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते।
वंचितों और बेसहारों पर इमाम की कृपादृष्टि उनके लिए आशा की किरण थी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा से लाभान्वित होने वाला एक व्यक्ति कहता है: मेरी और मेरे पिता की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी थी कि लोगों की दान दक्षिणा से बड़ी मुश्किल से जीवन व्यतीत हो रहा था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से भेंट करना बहुत कठिन था क्योंकि अब्बासी शासन ने उन पर बहुत रोकटोक लगा रखी थी। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की उदारता विख्यात थी। वे समस्याओं में घिरे लोगों की सहायता के लिए जाने जाते थे। इसलिए मुझे आशा थी कि वे मेरी आर्थिक समस्या का निदान करेंगे। मार्ग में पिता ने मुझसे कहा कि यदि इमाम पॉच सौ दिरहम दे दें तो मेरी बहुत सी समस्याओं का निदान हो जाएगा। मैं भी मन ही मन सोच रहा था कि यदि इमाम मुझे तीन सौ दिरहम दे दें तो में जबल नगर जाकर अपना नया जीवन आरंभ करुंगा। हम लोग इमाम के घर में प्रविष्ट हुए और एक कमरे में प्रतीक्ष करने लगे। उनके एक संबंधी, कमरे में आए और पॉंच सौ और तीन सौ दिरहम की दो थेलियां पिता को और मुझे दे दीं। में आश्चर्य में पड़ गया, समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मैं और पिता आश्चर्य की स्थिति में थे कि इमाम के दूत ने मुझसे कहा: इमाम ने तुम्हें जबल नगर जाने से रोका है बल्कि जीवन यापन के लिए सूरा नगर का सुझाव दिया है। ईश्वर का आभार व्यक्त करते हुए बहुत प्रसन्न हो कर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर से निकला मैं इमाम के सुझाव के अनुसार सूरा नगर गया और इमाम की सहायता से वहॉ अच्छा जीवन व्यतीत करने लगा। यह सब पैग़म्बरे इस्लाम के महान पौत्र इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की कृपा दृष्टि का फल था।

उस समय लोगों के विचारों पर संकीर्णता छाई हुई थी और धर्म में नई नई बातें शामिल की जा रही थीं, ऐसी स्थिति में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने धर्म के वास्तविक रुप को लोगों के सामने स्पष्ट किया। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम के अन्य परिजनों की भांति ज्ञान का अथाह सागर था। लोगों की ज़बान पर इमाम अलैहिस्सलाम के ज्ञान की चर्चा रहती थी। वे सत्य के मार्ग की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते थे। शास्त्रार्थों में इमाम ऐसे प्रभावी र्तक देते थे कि तत्कालीन अरब दार्शनिक याक़ूब बिन इस्हाक़ कन्दी ने इमाम से शास्त्रर्थ के पश्चात उस किताब को जला दिया जिसमें उसने कुछ धार्मिक बातों की आलोचना की थी। उस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को लोगों तक अपना दृष्टिकोण पहुंचाने में भी कठिनाइयों का सामना था। इसलिए इमाम अनेक शैलियों तथा अपने विश्वस्नीय प्रतिनिधियों के माध्यम से जनसंपर्क बनाते थे और सुदूर क्षेत्रों के मुसल्मानों की स्थिति से अवगत होते थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ईश्वर की इतनी उपासना करते थे कि बहुत से पथभ्रष्ट उनकी उपासना को देखकर सत्य के मार्ग पर आ जाते थे। ऐसे ही लोगों में सालेह बिन वसीक़ नामक जेलर भी था। जिस समय इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल ले जाया गया उस समय सालेह बिन वसीक़ जेलर था। वह इमाम के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसकी गणना उस समय के महाउपासकों व धर्मनिष्ठों में होने लगी। वह कहता है:जैसे ही में इमाम को देखता हूं, मेरे भीतर ऐसा परिवर्तन होने लगता है कि मैं स्वंय पर नियंत्रण नहीं रख पाता और ईश्वर की उपासना करने लगता हूं।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं: मिथ्या, व्यक्ति को झूठ , बेइमानी, वचन तोड़ने और छल कपट की ओर ले जाती है और सत्य के मार्ग से दूर कर देती है। मिथ्याचारी व्यक्ति भरोसे के योग्य नहीं है। जान लो कि मिथ्या को समझने के लिए पैनी दृष्टि और बहुत चेतना की आवश्यक्ता होती है।

एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं: तुम्हारा जीवन बहुत सीमित और इसके दिन निर्धारित है और मृत्यु अचानक आ पहुंचती है। जो सदकर्म करता है उससे लाभानिवत होता है और जो बुराई करता उसके परिणाम में उसे पछतावा होता है तुम्हें धर्म को समझने, शिष्टाचार अपनाने, और सदकर्म की अनुशंसा करता हूं।

अपने प्रियः अध्ययन कर्ताओं के लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के कुछ मार्ग दर्शक कथन प्रस्तुत किये जारहे हैं।
1- अल्लाह
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह वह है कि जब प्राणी विपत्तियों व कठिनाईयों मे फस कर चारो ओर से निराश हो जाता है और प्रजा से उसकी आशा समाप्त होजाती है तो वह फिर उसकी (अल्लाह) शरण लेता है।
2- हक़ को छोड़ना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिस आदरनीय व्यक्ति ने हक़ को छोड़ा वह अपमानित हुआ और जिस नीच ने हक़ पर अमल किया वह आदरनीय हो गया।
3- तक़लीद
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जनता को चाहिए कि अपनी आत्मा की रक्षा करने वाले, धर्म की रक्षा करने वाले, इन्द्रीयो का विरोध करने वाले, तथा अल्लाह की अज्ञा पालन करने वाले फ़कीह (धर्म विद्वान) की तक़लीद(अनुसरन) करें।
4- भविष्य
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि शीघ्र ही मानवता पर एक ऐसा समय आने वाला है जिसमे मनुषय चेहरे से प्रसन्न दिखाई देगें परन्तु उनके हृदय अँधकार मय होंगे। ऐसे समय मे अल्लाह ने जिन कार्यो का आदेश दिया है वह क्रियात्मक रूप प्राप्त नही कर पायेंगे और अल्लाह ने जिन कार्यो से दूर रहने का आदेश दिया है लोग उन कार्यों को करेंगे। ऐसे समय मे इमानदार व्यक्ति को नीच समझा जायेगा तथा अल्लाह के आदेशो का खुले आम उलंघन करने वाले को आदर की दृष्टि से देखा जायेगा।
5- नसीहत (सदुपदेश)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिसने अपने मोमिन भाई को छुप कर सदुपदेश दिया उसने उसके साथ भलाई की। तथा जिसने खुले आम उसको सदुपदेश दिया उसने उसके साथ बुराई की।
6- सर्वोत्तम भाई
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम्हारा सर्वोत्तम भाई वह है जो तुम्हारी बुराईयों को भूल जाये व तुमने जो इस पर ऐहसान किया है उसको याद रखे।

7- मूर्ख व बुद्धिमान
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि मूर्ख का दिल उसकी ज़बान पर होता है। और बुद्धि मान की ज़बान उसके दिल मे होती है।
8- लज्जा का घर
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अनुचित कार्य रूपी (घोड़े) पर सवार होगा वह उससे लज्जा के घर मे उतरेगा। अर्थात जो व्यक्ति अनुचित कार्य करेगा वह अपमानित व लज्जित होगा।
9- क्रोध
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्रोध समस्त बुराईयों की कुँजी है।
10- व्यर्थ का वाद विवाद
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि व्यर्थ का वाद विवाद न करो वरना तुम्हारा आदर समाप्त हो जायेगा और मज़ाक़ न करो वरना लोगों का (तुम्हारे ऊपर) साहस बढ़ जायेगा।
11- अपमान का कारण
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि मोमिन के लिए यह बात बहुत बुरी है कि वह ऐसी वस्तु या बात की ओर उन्मुख हो जो उसके अपमान का कारण बने।
12- दो सर्व श्रेष्ठ बातें
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि दो विशेषताऐं ऐसी हैं जिनसे श्रेष्ठ कोई विशेषता नही है। (1) अल्लाह पर ईमान रखना व (2) अपने मोमिन भाई को लाभ पहुचाना।
13- बुरा पड़ोसी
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि अच्छी बात को छिपाने व बुरी बात का प्रचार करने वाला पड़ोसी कमर तोड़ देने वाली विपत्ति के समान है।
14- इन्केसारी (नम्रता)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि नम्रता एक ऐसा गुण है जिससे ईर्श्या नही की जासकती।
15- ग़मगीन (शोकाकुल)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि शोकाकुल व्यक्तियों के सम्मुख प्रसन्नता प्रकट करना शिष्ठाचार के विऱुद्ध है।
16- द्वेष
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि द्वेष रखने वाले व्यक्ति सबसे अधिक दुखित रहते है।
17- झूट बुराईयों की चाबी (कुँजी)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि समस्त बुराईयों को एक कमरे मे बन्द कर दिया गया है, व इस कमरे की चाबी झूट को बनाया गया है। अर्थात झूट समस्त बुराईयों की जड़ है।
18- नेअमत (अल्लाह से प्राप्त हर प्रकार की सम्पत्ति)
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि नेअमत को धन्यवाद करने वाले के अतिरिक्त कोई नही समझ सकता और आरिफ़ ( ज्ञानी) के अतिरिक्त अन्य नेअमत का धन्यवाद नही कर सकते।
19- अयोग्य की प्रशंसा
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि अयोग्य व्यक्ति की प्रशंसा करना तोहमत(मिथ्यारोप) लगाने के समान है।
20- आदरनीय
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि धूर्तता के आधार पर सबसे निर्बल शत्रु वह है जो अपनी शत्रुता को प्रकट कर दे।
21- आदत का छुड़ाना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि मूर्ख को प्रशिक्षित करना और किसी वस्तु के आदी से उसकी आदत छुड़ाना मौजज़े के समान है। अर्थात यह दोनो कार्य कठिन हैँ।
22- माँगने मे गिड़गिड़ाना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि (किसी व्यक्ति) से कुछ माँगने के लिए गिड़गिड़ाना अपमान व दुख का कारण बनता है।
23- शिष्ठा चारी
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि तुम्हारे शिष्टा चीरी होने के लिए यही पर्याप्त है, कि तुम दूसरों की जिस बात को पसंद नही करते उसे स्वंय भी न करो।
24- दानशीलता व कायरता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि दानशीलता की एक सीमा होती है उससे आगे अपव्यय है। इसी प्रकार दूर दर्शिता व सावधानी की भी एक सीमा है अगर इस से आगे बढ़ा जाये तो यह कायरता है।
25- कंजूसी व वीरता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि कम व्यय की भी एक सीमा होती है अगर इस से आगे बढ़ा जाये तो यह कँजूसी है। इसी प्रकार वीरता की भी एक सीमा होती है अगर इस से आगे बढ़ा जाये तो वह तहव्वुर है। अर्थात अत्यधिक वीरता।

26- मित्रों की अधिकता
हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिसको अल्लाह से डरने की आदत हो, दानशीलता जिसकी प्रकृति मे हो तथा जो गंभीरता को अपनाये हुए हो ऐसे व्यक्ति के मित्रों की संख्या अधिक होती है।
27- हार्दिक प्रसन्नता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि जब हृदय प्रसन्न हो उस समय ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयास करो। व जिस समय हृदय प्रसन्नता की मुद्रा मे न हो उस समय स्वतन्त्र रहो।
28- रोज़े को अनिवार्य करने का कारण
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि अल्लाह ने रोज़े को इस लिए अनिवार्य किया ताकि धनी लोग भूख प्यास की कठिनाईयों समझ कर निर्धनो पर दया करें।
29- जीविका
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि जिस जीविका का उत्तरदायित्व अल्लाह ने अपने ऊपर लिया है उसकी प्राप्ती को वाजिब कार्यों के मार्ग मे बाधक न बनाओ।
30- इबादत
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि रोज़े नमाज़ की अधिकता इबादत नही है। अपितु अल्लाह के आदेशों के बारे मे (उनको समझने के लिए) चिंतन करना इबादत है।
31- हमारे लिए शोभा बनो
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपने अनुयाईयों से कहा कि अल्हा से डरो व हमारे लिए शोभा का कारण बनो हमारे लिए बुराई का कारण न बनो।
32- लालची
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि लालची व्यक्ति अपने मुक़द्दर से अधिक प्राप्त नही कर सकता।
33- व्यर्थ हंसना
आदरनीय इमाम हसन अस्करी ने कहा कि आश्चर्य के बिना हंसना मूर्खता का लक्षण है।
34- पाप से न डरना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो लोगों के सामने पाप करने से नही डरता वह अल्लाह से भी नही डरता।
35- प्रसन्नता व लज्जा
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुमको अल्प आयु प्रदान की गयी है और जीवित रहने के लिए गिनती के कुछ दिन दिये गये हैं मृत्यु किसी भी समय आकस्मिक आसकती है। जो (इस संसार) मे पुण्यों की खेती करेगा वह प्रसन्न व लाभान्वित होगा। व जो पापों की खेती करेगा वह लज्जित होगा। प्रत्येक व्यक्ति को वही फल मिलेगा जिसकी वह खेती करेगा। अर्थात जैसे कार्य इस संसार मे करेगा उसको उन्ही कार्यो के अनुसार बदला दिया जायेगा।

36- बैठने मे शिष्ठा चार
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि जो व्यक्ति किसी सभा मे निम्ण स्थान पर प्रसन्नता पूर्वक बैठ जाये तो उसके वहाँ से उठने के समय तक अल्लाह व फ़रिश्ते उस पर दयावान रहते है।
37- मित्रता व शत्रुता
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि
क-अच्छे व्यक्तियों की अच्छे व्यक्तियों से मित्रता अच्छे व्यक्तियों के लिए पुण्य है।
ख-बुरे लोगों की अच्छे लोगों से मित्रता यह अच्छे लोगों के लिए श्रेष्ठता है।
ग-बुरे लोगों की अच्छे लोगों से शत्रुता यह अच्छे लोगों के लिए शोभनीय है
घ-अच्छे लोगों की बुरे लोगों से शत्रुता यह बुरे लोगों के लिए लज्जा है।
38- सलाम करना
हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलामने कहा कि अपने पास से गुज़रने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सलाम करना शिष्टाचार है।
।।अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिंव व आलि मुहम्मद।।

इमाम हसन असकरी (अ) ने अब्बासी शासन के सख्त दबाव और कड़ी निगरानी के बीच इमामत का भार उठाया। उन्होंने सूझ-बूझ से काम लेकर वफादार प्रतिनिधियों का एक नेटवर्क तैयार किया और सबसे कठिन परिस्थितियों में भी शियो से संपर्क बनाए रखा। इसके साथ ही, उन्होंने उन्हें ग़ैबत कुबरा के दौर के लिए तैयार किया।

इमाम हसन असकरी (अ) की शहादत दिवस के मौके पर उनकी ज़िंदगी और इमामत से जुड़े चार महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया जा रहा है ताकि उनकी ज़िंदगी के विभिन्न पहलुओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके। इसका मकसद इमाम की शख्सियत और उनके आध्यात्मिक नेतृत्व को गहराई से जानना है।

सवाल 1: इमाम अस्करी (अ) सामर्रा में क्यों बसे?

जवाब: इमाम हसन अस्करी (अ) को उनके वालिद इमाम हादी (अ) के साथ बचपन से ही अब्बासी खलीफाओं ने जबरन सामर्रा बुला लिया था। सामर्रा अब्बासीयो की सैन्य राजधानी थी, और इस शहर में इमामों को स्थापित करके, वे लोगों के साथ उनके संपर्क को सीमित करना चाहते थे और उन पर कड़ी निगरानी रखना चाहते थे। एक ओर, सरकार इमाम अस्करी (अ) के वंश से महदी मौऊद के जन्म की धार्मिक खबरों के कारण इस आंदोलन को नियंत्रित करने और यहाँ तक कि नष्ट करने की कोशिश कर रही थी; और दूसरी ओर, उसे उनके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव और अलवी आंदोलनों के खतरे का डर था। इस कारण, इमाम अस्करी (अ) सामर्रा की सैन्य छावनी तक ही सीमित थे और स्वतंत्र रूप से कार्य करने में असमर्थ थे। हालाँकि, समर्थकों के एक गुप्त नेटवर्क के साथ, उन्होंने शियो का मार्गदर्शन किया और अब्बासियों की इमामत को समाप्त करने की योजना के सफल हुए बिना इमाम महदी (अ) के पवित्र अस्तित्व की रक्षा की।

सवाल 2: इमाम हसन अस्करी (अ) के कितने बच्चे थे?

जवाब: कुछ स्रोतों में कई बच्चों के नामों का उल्लेख है; हालाँकि, शिया विद्वानों के बीच प्रचलित मत यह है कि इमाम हसन अस्करी (अ) का केवल एक ही बच्चा था; एक ऐसा बच्चा जिसका नाम और उपनाम रसूल अल्लाह (स) के समान था और जिसकी माँ नरजिस नाम की एक कुलीन महिला थीं।

शेख मुफ़ीद ने अपनी रचनाओं में इस बात पर ज़ोर दिया है कि इमाम अस्करी (अ) के इस बच्चे के अलावा, न तो खुले तौर पर और न ही गुप्त रूप से, कोई और संतान नहीं थी। शेख कुलैनी ने "काफ़ी" में, शेख तबरसी ने "आलाम उल वरा" में और अन्य बुज़ुर्गों ने भी यही राय व्यक्त की है, और अल्लामा मजलिसी ने "बिहार उल अनवार" में भी अन्य संतानों से संबंधित कथाओं को अस्वीकार किया है और उन्हें अविश्वसनीय माना है।

ऐतिहासिक प्रमाण भी इस मत की पुष्टि करते हैं। उदाहरण के लिए, इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, यह दिखाने के लिए कि उनकी कोई संतान नहीं है, उनकी विरासत को उनकी माँ और भाई के बीच बाँटने का आदेश दिया गया। यह दर्शाता है कि इसम महदी (अ) के अलावा कोई और शामिल नहीं था।

इन सभी प्रमाणों के आधार पर, शिया विद्वानों का दृढ़ विश्वास है कि इमाम हसन अस्करी (अ) के इकलौते पुत्र इमाम महदी (अ) हैं।

सवाल 3: इमाम हसन अस्करी (अ) अपनी नज़रबंदी के दौरान शियो से कैसे संवाद करते थे?

जवाब: कुछ रवायतों से पता चलता है कि इमाम हसन के जीवन में कम से कम एक ऐसा दौर ज़रूर आया जब इमाम से उनके घर पर सीधे मिलना संभव नहीं था, और शियो को आमतौर पर इमाम के शासन केंद्र से आने-जाने के दौरान उनसे मिलने का मौका मिलता था। "अल-ग़ैबा तूसी" किताब में बताया गया है कि नबाह के दिन (जिस दिन इमाम शासन केंद्र में जाते थे) लोगों में उत्साह और खुशी का माहौल होता था और सड़कें भीड़ से भर जाती थीं। जब इमाम सड़क पर दिखाई देते, तो शोर-शराबा शांत हो जाता और इमाम लोगों के बीच से गुज़रते। अली इब्न जाफ़र हलबी से रिवायत करते हैं: एक दिन जब इमाम ख़िलाफ़त के लिए रवाना होने वाले थे, हम उनके आने का इंतज़ार करने के लिए अस्कर में इकट्ठा हुए; इसी दौरान, इमाम की ओर से हमें एक संदेश मिला, जिसमें लिखा था: "ألّا یسلمنّ علیّ أحد و لا یشیر الیّ بیده و لا یؤمئ فإنّکم لا تؤمنون علی أنفسکم अल्ला यस्लेमन्ना अलय्या अहदुन वला योशीरो एला बेयदेहि वला यूमी फ़इन्नकुम ला तूमेनूना अला अंफ़ोसेकुम।" कोई भी मुझे सलाम न करे, न ही कोई इशारा करे, क्योंकि तुम सुरक्षित नहीं हो!

इसलिए, शियो के लिए इमाम से संवाद करना बहुत मुश्किल था; वे गुप्त रूप से इमाम को प्रश्न और पत्र भेजते थे, कुछ लोग काम के बहाने उनसे मिलने आते थे, और कोई भी संपर्क जानलेवा हो सकता था।

इस संवाद को व्यवस्थित करने के लिए, इमाम ने विभिन्न शहरों में विश्वसनीय प्रतिनिधियों का एक नेटवर्क बनाया था जो उनके और शियो के बीच संपर्क सूत्र थे। इमाम की शहादत के बाद, यह तरीका जारी रहा और उस समय के इमाम (अ) के विशेष प्रतिनिधियों के रूप में विस्तारित हुआ।

सवाल 4: इमाम हसन असकरी (अ) ने हज़रत नरजिस खातून (स) से कैसे विवाह किया और क्या वह रोमन सम्राट की पोती थीं?

जवाब: विश्वसनीय शिया स्रोतों में हज़रत नरजिस खातून (स) को पूर्वी रोमन सम्राट के पुत्र "येशुआ" की पुत्री और पैग़म्बर ईसा (अ) के शिष्य "शमून" की वंशज के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें, जिन्हें "मलिका" और "सिकल" के नाम से भी जाना जाता है, अल्लाह की मरज़ी से इमाम हसन असकरी (अ) की पत्नी चुना गया था।

आख्यानों के अनुसार, हज़रत नरजिस खातून, प्रेरणादायक स्वप्न देखने और धर्म स्वीकार करने के बाद, मुसलमानों और रोमनों के बीच हुए एक युद्ध में बंदी बना ली गईं और सामर्रा पहुँचीं। इमाम अली नक़ी (अ) ने ईश्वरीय कृपा से उनके लिए अहले बैत परिवार में शामिल होने का मार्ग तैयार किया और उन्हें इस्लाम की शिक्षाएँ सिखाने के लिए अपनी बहन हकीमा खातून को सौंप दिया। फिर इमाम हसन असकरी (अ) ने उनसे विवाह किया और इमाम हादी (अ) ने उनकी स्थिति का परिचय देते हुए कहा: "वह मेरे पुत्र हसन की पत्नी और क़ायम ए आले मुहम्मद (अ) की माँ हैं।"

हज़रत नरजिस ख़ातून के जीवन और वंश का वर्णन शेख़ तूसी द्वारा रचित अल-ग़ैबा, कमालुद्दीन शेख़ सदूक़ और अल्लामा मजलिसी द्वारा रचित बिहार उल अनवार जैसे विश्वसनीय स्रोतों में मिलता है, और इतिहासकारों ने उनके रोमन मूल और सामर्रा में उनके आगमन की कहानी का भी उल्लेख किया है।

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इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

हमेशा से यह सुन्नत रही है कि ऐसे बुज़ुर्गों की ज़िंदगी और उनके किरदार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है जिनमें इंसानी पहलू मौजूद रहा हो, उनमें अल्लाह के भेजे हुए नबी और अलवी मकतब के रहनुमा वह ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की ओर से सारे इंसानों के लिए बेहतरीन आइडियल बनाए गए हैं।

शियों के गयारहवें इमाम हज़रत इमाम हसन असकरी अ.स. 232 हिजरी में मदीना शहर में पैदा हुए, चूंकि आप भी अपने वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. की तरह सामर्रा के असकर नामी इलाक़े में मुक़ीम थे इसलिए आप असकरी के नाम से मशहूर हुए, आपकी कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब नक़ी और ज़की है, आपने 6 साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और 28 साल की उम्र में मोतमद अब्बासी के हाथों शहीद हो गए।

इमाम हसन असकरी अ.स. की रणनीति

इमाम हसन असकरी अ.स. ने हर तरह के दबाव और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद दीन की हिफ़ाज़त और इस्लाम विरोधी विचारधारा का मुक़ाबला करने के लिए अनेक राजनीतिक, सामाजिक और इल्मी कोशिशें अंजाम देते रहे और अब्बासी हुकूमत की इस्लाम की नाबूदी की साज़िश को नाकाम कर दिया, आपकी इमामत के दौरान कुछ अहम रणनीतियां इस तरह थीं.

इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए इल्मी कोशिशें, विरोधियों के कटाक्ष का जवाब, हक़ीक़ी इस्लाम और सही विचारधारा का प्रचार, ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम, शियों की विशेष कर क़रीबी साथियों की जो हर तरह का ख़तरा मोल ले कर हर समय इमाम अ.स. के इर्द गिर्द रहते थे उनकी माली मदद करना, कठिनाईयों से निपटने के लिए बुज़ुर्ग शियों का हौसला बढ़ाना और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को मज़बूत करना, शियों के अक़ीदों और इमामत का इंकार करने वालों के लिए इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करना और अपने बेटे इमाम महदी अ.स. की ग़ैबत के लिए शियों की फ़िक्र को तैयार करना।

इल्मी कोशिशें

हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में हालात की ख़राबी और अब्बासी हुकूमत की ओर से कड़ी पाबंदियों की वजह से आप समाज में अपने इलाही इल्म को नहीं फैला सके लेकिन इन सब पाबंदियों के बावजूद ऐसे शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से हर एक अपने तौर पर इस्लामी मआरिफ़ और इमाम अ.स. के इल्म को लोगों तक पहुंचाने में अहम रोल निभाता रहा, शैख़ तूसी र.ह. ने आपके शागिर्दों की तादाद सौ से ज़्यादा नक़्ल की है, जिनमें अहमद इब्ने इसहाक़ क़ुम्मी, उस्मान इब्ने सईद और अली इब्ने जाफ़र जैसे बुज़ुर्ग शिया उलमा शामिल हैं, कभी कभी मुसलमानों और शियों के लिए ऐसी मुश्किलें और कठिनाईयां पेश आ जाती थीं कि उन्हें केवल इमाम हसन असकरी अ.स. ही हल कर सकते थे, ऐसे मौक़ों पर इमाम अ.स. अपने इमामत के इल्म और हैरान कर देने वाली तदबीरों से कठिन से कठिन मुश्किल को हल कर दिया करते थे।

शियों का आपसी संपर्क

इमाम हसन असकरी अ.स. के दौर में अनेक इलाक़ों और कई शहरों में शिया फैल चुके थे और कई इलाक़ों में अच्छी ख़ासी तादाद में थे जैसे कूफ़ा, बग़दाद, नेशापुर, क़ुम, मदाएन, ख़ुरासान, यमन और सामर्रा शियों के बुनियादी मरकज़ में से थे, शिया इलाक़ों का इस तरह तेज़ी से फैलने और कई इलाक़ों में शियों का अच्छी ख़ासी तादाद में होने को देखते हुए ज़रूरी था कि उनके बीच आपस में एक दूसरे से संपर्क बनाए रहें ताकि उनकी दीनी और सियासी रहनुमाई हो सके और उन सभी को एक साथ मंज़िल तक पहुंचाया जा सके, यह ज़रूरत इमाम मोहम्मद तक़ी अ.स. के दौर ही से महसूस हो रही थी और वकालत से संबंधित सिस्टम को ईजाद कर के और अलग अलग इलाकों में वकीलों को भेज कर इस काम को शुरू किया जा चुका था, इमाम हसन असकरी अ.स. ने भी इसी को जारी रखा, जैसाकि तारीख़ी हवाले से यह बात साबित है कि आपने शियों के अहम और बुज़ुर्ग लोगों में से अपने वकीलों को चुन कर उनको अलग अलग इलाक़ों में भेज दिया।

ख़त और दूत (क़ासिद) का सिलसिला

वकालत का सिस्टम क़ायम करने के अलावा इमाम हसन असकरी अ.स. अपने सफ़ीर और क़ासिद को भेज कर भी अपने शियों और मानने वालों से संपंर्क करते थे और इस तरह उनकी मुश्किलों को दूर करते थे, अबुल अदयान (जोकि आपके क़रीबी सहाबी थे) के काम उन्हीं कोशिशों का नतीजा हैं, वह इमाम के ख़तों को आपके शियों तक पहुंचाते और उनके ख़तों, सवालों, मुश्किलों, ख़ुम्स और दूसरे माल शियों से लेकर सामर्रा में इमाम अ.स. तक पहुंचाते थे।

क़ासिद और दूत के अलावा इमाम अ.स. ख़तों द्वारा भी अपने शियों से संपर्क में रहते थे और उनकी अपने ख़तों से हिदायत करते थे, इसकी मिसाल इमाम अ.स. का वह ख़त है जो आपने इब्ने बाबवैह र.ह. (शैख़ सदूक़ र.ह. के वालिद) को लिखा था, इसके अलावा इमाम अ.स. ने क़ुम और आवह के शियों को भी ख़त लिखे थे जिनका मज़मून शिया किताबों में मौजूद है।

ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम

इमाम हसन असकरी अ.स. सारी पाबंदियों और हुकूमत की ओर से कड़ी निगरानी के बावजूद कुछ ख़ुफ़िया राजनीतिक क़दम उठा कर शियों की रहनुमाई करते रहते थे, और आपके यह राजनीतिक क़दम दरबारी जासूसों से इसलिए छिपे रहते थे क्योंकि आप बहुत ही सूझबूझ से वह क़दम उठाते थे, जैसे आपके बहुत क़रीबी सहाबी उस्मान इब्ने सईद का तेल की दुकान की आड़ में इमाम अ.स. का पैग़ाम शियों तक पहुंचाना, इमाम हसन असकरी अ.स. के शिया जो भी चीज़ या माल इमाम अ.स. तक पहुंचाना चाहते थे वह उस्मान को दे दिया करते थे और वह यह चीज़ें घी के डिब्बों और तेल की मश्कों में छिपा कर इमाम अ.स. तक पहुंचा दिया करते थे, इमाम अ.स. की कड़ी निगरानी के बावजूद दुश्मन की नाक के नीचे ऐसी बहादुरी वाले क़दम उठाने की वजह से आपकी 6 साल की इमामत अब्बासियों के ख़तरनाक क़ैदख़ानों में गुज़री।

शियों की माली मदद

आपका एक और अहम क़दम शियों की विशेष कर क़रीबी असहाब की माली मदद करना था, इमाम अ.स. के कुछ असहाब माली मुश्किल लेकर आते थे और आप उनकी मुश्किल को दूर करते थे, आपके इस अमल की वजह से वह लोग माली परेशानियों से घबरा कर हुकूमती और दरबारी इदारों की ओर आकर्षित होने से बच जाते थे।

इस बारे में अबू हाशिम जाफ़री कहते हैं कि मैं आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था, मैंने सोंचा कि एक ख़त द्वारा अपने हाल को इमाम हसन असकरी अ.स. तक पहुंचाऊं, लेकिन मुझे शर्म आई और मैंने अपना इरादा बदल दिया, जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि इमाम अ.स. ने मेरे लिए 100 दीनार भेजे हुए हैं और एक ख़त भी लिखा है कि जब कभी तुम्हें ज़रूरत हो तो शर्माना नहीं, हमसे मांग लेना इंशा अल्लाह तुम्हारी मुश्किल दूर हो जाएगी।

बुज़ुर्ग शियों और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करना

इमाम हसन असकरी अ.स. की एक बहुत अहम राजनीतिक गतिविधि यह थी कि आप शियों के अज़ीम मक़सद को हासिल करने की राह में आने वाली तकलीफ़ों और अब्बासी हाकिमों की साज़िशों का मुक़ाबला करने के लिए शिया बुज़ुर्गों की सियासी हवाले से तरबियत करते और उनके राजनीतिक मतों को मज़बूत करते थे, चूंकि शिया बुज़ुर्ग शख़्सियतों पर हुकूमत का सख़्त दबाव होता था इसलिए इमाम अ.स. हर एक को उसके विचारों और उसकी फ़िक्र के हिसाब से उसका हौसला बढ़ाते और उनकी रहनुमाई करते थे ताकि कठिन समय में उनका सब्र और हौसला बना रहे और वह अपनी राजनीतिक ज़िम्मेदारियों को सही तरीक़े से निभा सकें, इस हवाले से इमाम अ.स. ने जो ख़त अली इब्ने हुसैन इब्ने बाबवैह क़ुम्मी र.ह. को लिखा उसमें फ़रमाते हैं कि हमारे शिया कठिन दौर से गुज़रेंगे यहां तक कि मेरा बेटा ज़ुहूर करेगा, यही मेरा वह बेटा होगा जिसके बारे में अल्लाह के रसूल ने बशारत दी है कि वह ज़मीन को अदालत और इंसाफ़ से इस तरह भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म और अत्याचार से भरी होगी।

इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल

हमारे सभी इमाम अल्लाह से संपंर्क में रहने की वजह से इल्मे ग़ैब रखते थे और ऐसे हालात में जब इस्लाम की सच्चाई या मुसलमानों के सामाजिक फ़ायदे ख़तरे में पड़ जाएं तो उस समय उस इल्म का इस्तेमाल करते थे, हालांकि इमाम हसन असकरी अ.स. की ज़िंदगी को अगर देखा जाए तो यह बात अच्छी तरह सामने आ जाएगी कि आपने दूसरे इमामों को देखते हुए इल्मे ग़ैब का ज़्यादा इज़हार किया है, और उसकी सीधी वजह उस दौर के भयानक हालात और ख़तरनाक माहौल था, क्योंकि जबसे आपके वालिद इमाम अली नक़ी अ.स. को सामर्रा ले जाया गया तबसे आप कड़ी निगरानी में थे, अब्बासी हुकूमत की सख़्तियों और निगरानी की वजह से हालात ऐसे हो गए थे कि आप अपने बाद आने वाले इमाम अ.स. को खुल कर नहीं पहचनवा पा रहे थे, जिसकी वजह से कुछ शियों के दिलों में शक बैठने लगा था, इमाम अ.स. उन शक और मन की शंकाओं को दूर करने और उस दौर के ख़तरों से अपने असहाब को बचाने के लिए और गुमराहों की हिदायत करने के लिए आप इल्मे ग़ैब का इस्तेमाल करते हुए ग़ैब की ख़बरें दिया करते थे।

इस्लामी तालीमात की हिफ़ाज़त

हुकूमतों द्वारा इमामों का आम मुसलमानों से संपंर्क न बनाने देने के पीछे का राज़ यह है कि कुछ हाकिम चाहते थे कि इस्लामी ख़ेलाफ़त की आड़ में आम मुसलमानों को अपनी ओर खींच लिया जाए और फिर जिस तरह चाहें और जो चाहें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उनको रखा जाए, नतीजे में जवानों के अक़ीदों को कमज़ोर किया जाता था और उनको ऐसे बातिल अक़ीदों और नीच सोंच में उलझा देते थे ताकि आम मुसलमानों को गुमराह करने का प्लान कामयाब हो सकें।

इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर एक कठिन दौर था जिसमें अनेक तरह की फ़िक्रें और विचारधाराएं इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बन चुकी थीं, लेकिन आपने अपने वालिद और दादा की तरह एक पल के लिए भी इस साज़िश से ध्यान नहीं हटाया बल्कि पूरी सावधानी और गंभीरता के साथ इस्लाम की ग़लत तस्वीर बताने वालों, सूफ़ियत, ग़ुलू करने वालों, शिर्क और भी इसके अलावा बहुत सारी ख़ुराफ़ात और वाहियात जो मज़हब के नाम पर दीन का हिस्सा बताई जा रही थीं उन सबका मुक़ाबला किया और इनमें से किसी को भी अपने दौर में पनपने नहीं दिया।

इमाम हसन असकरी अ.स. और इस्लाम का ज़िंदा बाक़ी रखना

अब्बासी हुकूमत दौर और ख़ास कर इमाम हसन असकरी अ.स. का दौर उन सबसे बुरे दौर में से एक था जिसमें हाकिमों की अय्याशी, उनके ज़ुल्म और अत्याचार, दीनी मामलात से बे रुख़ी, और दूसरी ओर मुसलमानों के इलाक़ों में ग़रीबी के फैलने की वजह से दीनी वैल्यूज़ ख़त्म हो चुकी थीं, इसलिए अगर इमाम हसन असकरी अ.स. द्वारा दिन रात की जाने वाली मेहनतें और कोशिशें न होतीं तो अब्बासियों की सियासत की वजह से इस्लाम का नाम भी लोगों के दिमाग़ से मिट जाता, हालांकि इमाम अ.स. ख़ुद अब्बासी हाकिमों की कड़ी निगरानी में थे लेकिन आपने हर इस्लामी शहर में अपने वकीलों को तैनात कर रखा था जिनके द्वारा मुसलमानों के हालात मालूम करते रहते थे, कुछ शहरों की मस्जिदें और इमारतें भी इमाम अ.स. के हुक्म से बनाई गईं, जिसमें ईरान के क़ुम शहर में मौजूद इमाम हसन असकरी (अ.स.) मस्जिद शामिल है, इससे पता चलता है कि आप अपने वकीलों और इल्मे इमामत से मुसलमानों की हर तरह की मुश्किल और उनकी पिछड़ेपन को जानते और उसे दूर करते थे।

इमाम हसन अस्करी (अ) के शहादत दिवस के अवसर पर, अख़लाक़, ईमान और जीवन के तौर-तरीकों से संबंधित इमाम हम्माम की 31 हदीसें मुसलमानों के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शन के रूप में प्रकाशित की जा रही हैं।

ग्यारहवें इमाम, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) की हदीसें इस दुनिया और आख़िरत के लिए, हर मुसलमान और हर जगह आज़ाद इंसान के लिए मार्गदर्शन और जलती हुई मशाल हैं, जिसका दिल रहमते इलाही  से लाभ उठाने के लिए तत्पर है, इस दुनिया और आख़िरत के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश और एक चमकती हुई मशाल हैं। इस अज़ीम इमाम की शहादत दिवस के अवसर पर उनकी कुछ प्रमाणित और विश्वसनीय हदीसों का दिल और जान से अध्ययन करेंगे:।

1- ईमान की निशानी

قالَ (علیه السلام) : عَلامَهُ الاْیمانِ خَمْسٌ: التَّخَتُّمُ بِالْیَمینِ، وَ صَلاهُ الإحْدی وَ خَمْسینَ، وَالْجَهْرُ بِبِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحیم، وَ تَعْفیرُ الْجَبین، وَ زِیارَهُ الاْرْبَعینَ क़ाला अलैहिस्सलामोः अलामतुल ईमाने ख़म्सुनः अत तख़त्तमो बिल यमीने, व सालतुल एहदा व खम्सीना, वल जहरो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम, व तअफ़ीरुल जबीन, व ज़ियारतुल अरबईना

इमाम (अ) ने फ़रमाया: ईमान की पाँच निशानियाँ: दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, इक्यावन रकअत नमाज़ (वाजिब और मुस्तहब) पढ़ना, (ज़ोहर और अस्र की नमाज़ मे) ज़ोर से "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम" पढ़ना, सजदा करते समय पेशानी को खाक पर रखना, और इमाम हुसैन (अ) ज़ियारत अरबईन अंजाम देना।

2- हक़ीक़ी इबादत

قالَ (علیه السلام) : لَیْسَتِ الْعِبادَهُ کَثْرَهُ الصّیامِ وَالصَّلاهِ، وَ إنَّمَا الْعِبادَهُ کَثْرَهُ التَّفَکُّرِ فی أمْرِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसतिल इबादतो कसरतुस सियामे वस सलाते, व इन्नमल इबादतो कसरतुत तफ़क्कुरे फ़ि अमरिल्लाहे

इमाम (अ) ने फ़रमाया: इबादत ज़्यादा नमाज़ और रोज़ा नहीं है, बल्कि विभिन्न मामलों में अल्लाह की असीम शक्ति में चिंतन और भय के साथ इबादत है।

3- सबसे अच्छी विशेषता

قالَ (علیه السلام) : خَصْلَتانِ لَیْسَ فَوْقَهُما شَیْءٌ: الاْیمانُ بِاللهِ، وَنَفْعُ الاْخْوانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः खस्लताने लैसा फ़ौक़होमा शैउनः अल ईमानो बिल्लाह, व नफ़्उल अख़्वान

 इमाम (अ) ने फ़रमाया:  गुण और स्थितियाँ जिनसे ऊपर कोई चीज़ भी महत्वपूर्ण नहीं हैं: अल्लाह पर ईमान और विश्वास, दोस्तों और परिचितों को लाभ पहुँचाना।

4- लोगों के साथ अच्छा व्यवहार

قالَ (علیه السلام) : قُولُوا لِلنّاسِ حُسْناً، مُؤْمِنُهُمْ وَ مُخالِفُهُمْ، أمَّا الْمُؤْمِنُونَ فَیَبْسِطُ لَهُمْ وَجْهَهُ، وَ أمَّا الْمُخالِفُونَ فَیُکَلِّمُهُمْ بِالْمُداراهِ لاِجْتِذابِهِمْ إلَی الاْیِمانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः क़ूलू लिन्नासे हुसना, मोमेनोहुम व मुख़ालेफ़ोहुम, अम्मल मोमेनूना फ़यब्सेतो लहुम वज्हहू, व अम्मल मुख़ालेफ़ूना फ़योकल्लोमोहुम बिल मुदाराते लेइज्तेज़ाबेहिम एलल ईमान 

आपने फ़रमाया: दोस्तों और दुश्मनों के साथ दोस्ताना और मित्रवत व्यवहार करो, लेकिन ईमान वाले दोस्तों के साथ, एक कर्तव्य के रूप में, उन्हें हमेशा एक-दूसरे के साथ प्रसन्नतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए, लेकिन विरोधियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, ताकि सहिष्णुता और इस्लाम और उसके अहकाम की ओर आकर्षित रहे।

5- दोस्ती की निरंतरता

قالَ (علیه السلام) : اللِّحاقُ بِمَنْ تَرْجُو خَیْرٌ مِنَ المُقامِ مَعَ مَنْ لا تَأْمَّنُ شَرَّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः अल लेहाक़ो बेमन तरजू ख़ैरुम मिनल मुकामे मआ मन ला ताम्मनो शर्राहू

आपने फ़रमाया: किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दोस्ती और संगति जारी रखना बेहतर है जिसके साथ आपके रिश्ते अच्छे होने की संभावना हो, बजाय किसी ऐसे व्यक्ति के जिसके साथ व्यक्तिगत, वित्तीय, धार्मिक, आदि नुकसान की संभावना हो।

6- अफवाहें फैलाना और सत्ता की लालसा

قالَ (علیه السلام) : إیّاکَ وَ الاْذاعَهَ وَ طَلَبَ الرِّئاسَهِ، فَإنَّهُما یَدْعُوانِ إلَی الْهَلَکَهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इय्याका वल इज़ाअता व तलबर रियासते, फ़इन्नहोमा यदओवाने एलल हलकते

इमाम (अ) ने फ़रमाया: सावधान रहो कि तुम अफ़वाहें न फैलाओ, न ही बातें करो, न ही कोई पद और राज्य पाने की चाहत रखो और न ही उसके लिए प्यासे रहो, क्योंकि ये दोनों ही इंसान को बर्बाद कर देते हैं।

7- अक़्ल की खूबसूरती

قالَ (علیه السلام) : حُسْنُ الصُّورَهِ جَمالٌ ظاهِرٌ، وَ حُسْنُ الْعَقْلِ جَمالٌ باطِنٌ क़ाला अलैहिस्सलामोः हुस्नुस सूरते जमालुन ज़ाहेरुन, व हुस्नुल अक़्ले जमालुन बातेनुन

आप (अ) ने फ़रमाया: चेहरे की सुन्दरता और सौन्दर्य मनुष्य के बाहरी रूप में दिखाई देता है, और बुद्धि और ज्ञान की सुंदरता और सौन्दर्य मनुष्य के अंदर होती है।

8- गुप्त नसीहत

قالَ (علیه السلام) : مَنْ وَعَظَ أخاهُ سِرّاً فَقَدْ زانَهُ، وَمَنْ وَعَظَهُ عَلانِیَهً فَقَدْ شانَهُ  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन वअज़ा अख़ाहो सिर्रन फ़क़द ज़ानहू, व मन वअज़ा अलानियतन फ़क़द शानहू 

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने दोस्त या भाई को गुप्त रूप से नसीहत करता है, उसने उसको सम्मानित किया; और अगर यह सार्वजनिक है, तो उसका अपमान किया।

9- इलाही तक़वा

قالَ (علیه السلام) : مَنْ لَمْ یَتَّقِ وُجُوهَ النّاسِ لَمْ یَتَّقِ اللهَ  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन लम यत्तक़े वजूहन नासे लम यत्तक़िल्लाह

आप (अ) ने फ़रमाया: जो लोगों के सामने निडर रहता है और लोगों के नैतिक मुद्दों और अधिकारों का सम्मान नहीं करता, वह इलाही तक़वा का भी सम्मान नहीं करता।

10- मोमिन का अपमान

قالَ (علیه السلام) : ما أقْبَحَ بِالْمُؤْمِنِ أنْ تَکُونَ لَهُ رَغْبَهٌ تُذِلُّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा अक़्बहा बिल मोमिने अय तकूना लहू रग़बतुन तोज़िल्लोहू

इमाम (अ) ने फ़रमाया: एक मोमिन के लिए सबसे बुरी स्थिति और चरित्र यह है कि वह ऐसी इच्छा रखता है जो उसे अपमानित और लज्जित करती है।

11- सबसे अच्छे दोस्त

قالَ (علیه السلام) : خَیْرُ إخْوانِکَ مَنْ نَسَبَ ذَنْبَکَ إلَیْهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः ख़ैरो इख़वानेका मन नसबा ज़म्बका इलैह

इमाम (अ) ने फ़रमाया: सबसे अच्छा दोस्त और भाई वह है जो तुम्हारी गलतियों की ज़िम्मेदारी लेता है और खुद को दोषी मानता है।

12- अधिकार का त्याग

قالَ (علیه السلام) : ما تَرَکَ الْحَقَّ عَزیزٌ إلاّ ذَلَّ، وَلا أخَذَ بِهِ ذَلیلٌ إلاّ عَزَّ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा तरकल हक़्क़ा अज़ीज़ुन इल्ला ज़ल्ला, वला अख़ज़ा बेहि ज़लीलुन इल्ला अज़्ज़ा

आप (अ) ने फ़रमाया: "किसी भी पद या प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति ने सत्य का परित्याग नहीं किया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे अपमानित किया गया हो, और कोई भी व्यक्ति सत्य को न्याय के कटघरे में नहीं लाया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे सम्मानित किया गया हो।"

13- शियो की विशेषता

قالَ (علیه السلام) لِشیعَتِهِ: أوُصیکُمْ بِتَقْوَی اللهِ وَالْوَرَعِ فی دینِکُمْ وَالاْجْتِهادِ لِلّهِ، وَ صِدْقِ الْحَدیثِ، وَأداءِ الاْمانَهِ إلی مَنِ ائْتَمَنَکِمْ مِنْ بِرٍّ أوْ فاجِر، وِطُولِ السُّجُودِ، وَحُسْنِ الْجَوارِ  क़ाला अलैहिस्सलामोः लेशीअतेहिः ऊसीकुम बे तक़वल्लाहे वल वरऐ फ़ी दीनेकुम वल इज्तेहादे लिल्लाहे, वस सिद्क़िल हदीसे, व अदाइल अमानते ऐला मनेतमेनकुम मिन बिर्रिन औ फ़ाजेरिन, व तूलिस सुजूदे, व हुस्नि जवारे

इमाम (अ) ने अपने शियो से कहा: अल्लाह का तक़वा इख़्तियार करो और दीन के मामलों में नेक बनो, अल्लाह के क़रीब रहने की कोशिश करो और अपनी संगति में ईमानदारी दिखाओ, जो भी तुम्हें सौंपा गया है उसे सकुशल लौटाओ, अल्लाह के सामने सजदे को तूलानी करो और अपने पड़ोसियों के साथ नेकी और भलाई करो।

14- विनम्रता

قالَ (علیه السلام) : مَنْ تَواضَعَ فِی الدُّنْیا لاِخْوانِهِ فَهُوَ عِنْدَ اللهِ مِنْ الصِدّیقینَ، وَمِنْ شیعَهِ علیِّ بْنِ أبی طالِب (علیه السلام)حَقّاً  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन तवाज़आ फ़िद दुनिया लेइख़्वानेहि फ़होवा इन्दल्लाहे मिनस सिद्दीक़ीना, व मिन शीअते अली इब्ने अबि तालिब (अलैहिस सलामो) हक़्क़न

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई इस दुनिया में अपने दोस्तों और साथियों के सामने खुद को नम्र बनाएगा, वह अल्लाह के सामने नेक लोगों में और इमाम अली (अ) के शियो में से होगा।

15- बुखार की समाप्ति

قالَ (علیه السلام) : إنَّهُ یُکْتَبُ لِحُمَّی الرُّبْعِ عَلی وَرَقَه، وَ یُعَلِّقُها عَلَی الْمَحْمُومِ: «یا نارُکُونی بَرْداً»، فَإنَّهُ یَبْرَءُ بِإذْنِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नहू युकतबो लेहुम्मर रब्ऐ अला वरक़ते व योअल्लेक़ोहा अल महमूमेः या नारो कूनि बरदा, फ़इन्नहू यबरओ बेइज़्निल्लाह

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी दर्द और बुखार से पीड़ित है, वह कुरान की "सूरह अंबिया, आयत 69" में इस आयत को एक कागज़ पर लिखकर उसकी गर्दन मे लटका दे, ताकि वह अल्लाह तआला की इजाज़त से ठीक हो जाए।

16- अल्लाह की याद

قالَ (علیه السلام) : أکْثِرُوا ذِکْرَ اللهِ وَ ذِکْرَ الْمَوْتِ، وَ تَلاوَهَ الْقُرْآنِ، وَالصَّلاهَ عَلی النَّبیِّ (صلی الله علیه وآله وسلم)، فَإنَّ الصَّلاهَ عَلی رَسُولِ اللهِ عَشْرُ حَسَنات क़ाला अलैहिस्सलामोः अक़्सेरु ज़िक्रिल्लाहे व ज़िक्रिल मौते, व तलावतिल क़ुरआने, वस सलाता अलन नबीय्ये (सललल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) फ़इन्नस सलाता अला रसूलिल्लाहे अश्रो हसनात 

आपने फ़रमाया: अल्लाह तआला का ज़िक्र और मौत का ज़िक्र और उसके हालात, क़ुरआन की तिलावत और हज़रत रसूल और अहले बैत (अ) पर बार-बार सलाम भेजो, बेशक उन पर सलाम का सवाब दस नेकियाँ का सवाब है।

17- उम्र का उपयोग

قالَ (علیه السلام) : إنَّکُمْ فی آجالِ مَنْقُوصَه وَأیّام مَعْدُودَه، وَالْمَوْتُ یَأتی بَغْتَهً، مَنْ یَزْرَعُ شَرّاً یَحْصَدُ نِدامَهً क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नकुम फ़ी आजाले मंक़ूसते व अय्यामे मअदूदते, वल मौतो याती बग़्ततन, मन यज़्रओ शर्रन यहसदो निदामतन

आपने फ़रमाया: बेशक, तुम इंसानों की मौत एक छोटी सी अवधि में होगी, जो पहले से तय और निर्धारित है, और मौत अचानक और बिना किसी पूर्व सूचना के आती है और इंसान को मार देती है, इसलिए सावधान रहो कि जो कोई भी क़यामत के दिन इबादत, सेवा और नेक कामों में हर संभव कोशिश करेगा, उसे ईर्ष्या होगी क्योंकि उसने ज़्यादा नहीं किया, और जो कोई बुरा काम और पाप करेगा, उसे पछतावा और दुःख होगा।

18- नमाज़े शब

قالَ (علیه السلام) : إنّ الْوُصُولَ إلَی اللهِ عَزَّ وَ جَلَّ سَفَرٌ لا یُدْرَکُ إلاّ بِامْتِطاءِ اللَّیْلِ  क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नल वुसूला एलल्लाहे अज़्ज़ा व जल्ला सफ़रुन ला युदरको इल्ला बे इम्तेताइल लैले 

आपने फ़रमाया: बेशक, अल्लाह तआला और सर्वोच्च स्थानों तक पहुँचना एक ऐसी यात्रा है जो रात में जागकर इबादत और संतुष्टि और विभिन्न मामलों में तलाश करने के अलावा हासिल नहीं की जा सकती।

19- वाजेबात में सुस्ती

قالَ (علیه السلام) : لا یَشْغَلُکَ رِزْقٌ مَضْمُونٌ عَنْ عَمَل مَفْرُوض क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यशग़लोका रिज़्क़ुन मज़्मूमुन अन अमलि मफ़रूज़िन

आपने फ़रमाया: ध्यान रहे कि रोज़ी की तलाश - जिसकी गारंटी अल्लाह तआला ने दी है - आपको काम और वाजिब कामो से न रोके (अर्थात, ध्यान रहे कि आप अत्यधिक खोज और काम के कारण अपने वाजेबात के संबंध में आलसी और लापरवाह न हो जाएँ)।

20- आक़े वालेदैन

قالَ (علیه السلام) : جُرْأهُ الْوَلَدِ عَلی والِدِهِ فی صِغَرِهِ تَدْعُو إلَی الْعُقُوقِ فی کِبَرِهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः जुर्अतुल वलदे अला वालेदेहि फ़ि सिग़रेहि तदऊ एलल उक़ूक़े फ़ि केबरहि

आपने फ़रमाया: बचपन में पिता के सामने बच्चे का रोना और दुस्साहस करना, वयस्क होने पर पिता द्वारा उसके शाप और क्रोध का कारण बनेगा।

21- ज़ुहर और अस्र की नमाज़ों को मिलाना

قالَ (علیه السلام) : أجْمِعْ بَیْنَ الصَّلاتَیْنِ الظُّهْرِ وَالْعَصْرِ، تَری ما تُحِبُّ क़ाला अलैहिस्सलामोः अज्मेअ बैनस सलातैनिज़ ज़ोहरे वल अस्रे, तरा मा तोहिब्बो

आपने फ़रमाया: ज़ोहर और अस्र की नमाज़ें एक के बाद एक - जितनी जल्दी हो सके, अदा करो, जिससे गरीबी और कठिनाई दूर हो जाएगी और तुम अपने लक्ष्य तक पहुँच जाओगे।

22- सबसे नेक लोग

قالَ (علیه السلام) : أوْرَعُ النّاسِ مَنْ وَقَفَ عِنْدَ الشُّبْههِ، أعْبَدُ النّاسِ مَنْ أقامَ الْفَرائِضَ، أزْهَدُ النّاس مَنْ تَرَکَ الْحَرامَ، أشَدُّ النّاسِ اجْتِهاداً مَنْ تَرَکَ الذُّنُوبَ क़ाला अलैहिस्सलामोः औरउन नासे मन वक़फ़ा इंदश शुब्हते, आबदुन नासे मन अक़ामल फ़राएज़े, अज़हदुन नासे मन तरकल हरामे, अशद्दुन नासे इज्तेहादन मन तरकज़ ज़ोनूबे

आपने फ़रमाया: सबसे नेक इंसान वह है जो विभिन्न संदिग्ध मामलों से दूर रहता है; सबसे नेक इंसान वह है जो हर चीज़ से पहले इलाही वाजेबात का पालन करता है; सबसे तपस्वी वह व्यक्ति है जो हराम कान नहीं करता; सबसे शक्तिशाली व्यक्ति वह है जो हर परिस्थिति में हर पाप और त्रुटि का त्याग करता है।

23- पहचान नेमत है

قالَ (علیه السلام) : لا یَعْرِفُ النِّعْمَهَ إلاَّ الشّاکِرُ، وَلا یَشْکُرُ النِّعْمَهَ إلاَّ الْعارِفُ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यअरेफ़ुन्नेअमता इल्लश शाकेरो, वला यशकोरुन्नेअमता इल्लल आरेफ़ो

आपने फ़रमायाः कृतज्ञ के अलावा कोई भी नेमत का मूल्य नहीं जानता, और ज्ञानी के अलावा कोई भी नेमत के लिए कृतज्ञता व्यक्त नहीं कर सकता।

24- पाखंड की बुराई

قالَ (علیه السلام) : بِئْسَ الْعَبْدُ عَبْدٌ یَکُونُ ذا وَجْهَیْنِ وَ ذالِسانَیْنِ، یَطْری أخاهُ شاهِداً وَ یَأکُلُهُ غائِباً، إنْ أُعْطِیَ حَسَدَهُ، وَ إنْ ابْتُلِیَ خَذَلَهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः बेसल अब्दो अब्दुन यकूनो ज़ा वज्हैने व ज़ा लेसातैने, यतरा अख़ाहो शाहेदन व याकोलोहू ग़ाएबन, इन ओतेया हसदहू, व इब्तला ख़ज़लहू

आपने फ़रमाया: एक बुरा व्यक्ति वह है जिसके दो चेहरे और दो ज़बानें हों; वह अपने दोस्तों और भाइयों की उपस्थिति में प्रशंसा और महिमा करता है, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में और उनकी पीठ पीछे, निंदा करता है, जो शरीर का मांस खाने के समान है।

25- विनम्रता की निशानी

قالَ (علیه السلام) : مِنَ التَّواضُعِ السَّلامُ عَلی کُلِّ مَنْ تَمُرُّ بِهِ، وَ الْجُلُوسُ دُونَ شَرَفِ الْمَجْلِسِ क़ाला अलैहिस्सलामोः मिनत तवाज़ेइस सलामो अला कुल्ले मन तमोर्रो बेहि, वल जुलूसो दूना शरफ़िल मजलिसे

इमाम (अ) ने फ़रमाया: विनम्रता की एक निशानी यह है कि आप जिस किसी से भी मिलें, उसका अभिवादन करें और सभा में प्रवेश करते समय जहाँ भी हों, वहीं बैठ जाएँ - दूसरों को अपने लिए रास्ता खोलने के लिए मजबूर न करें।

26- जेदाल की बुराई

قالَ (علیه السلام) : لا تُمارِ فَیَذْهَبُ بَهاؤُکَ، وَ لا تُمازِحْ فَیُجْتَرَأُ عَلَیْکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला तोमारे फ़यज़्हबो बहाओका, वला तोमाज़ेहो फ़युज्तरओ अलैका

इमाम (अ) ने फ़रमाया: ऐसी किसी भी बहस या विवाद में न पड़ो जिससे तुम्हारी गरिमा कम हो जाए, अनुचित या अनावश्यक मज़ाक या हंसी-मज़ाक न करो, वरना लोग तुमसे नाराज़ हो जाएँगे।

27- औलिया ए इलाही की आज्ञाकारिता को प्राथमिकता देना

قالَ (علیه السلام) : مَنْ آثَرَ طاعَهَ أبَوَیْ دینِهِ مُحَمَّد وَ عَلیٍّ عَلَیْهِمَاالسَّلام عَلی طاعَهِ أبَوَیْ نَسَبِهِ، قالَ اللهُ عَزَّ وَ جَلَّ لِهُ: لاَُؤَ ثِرَنَّکَ کَما آثَرْتَنی، وَلاَُشَرِّفَنَّکَ بِحَضْرَهِ أبَوَیْ دینِکَ کَما شَرَّفْتَ نَفسَکَ بِإیثارِ حُبِّهِما عَلی حُبِّ أبَوَیْ نَسَبِکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः मन आसरा ताअता अबवय दीनेहि मुहम्मदिन व अलीयिन अलैहेमस्सलामो अला ताआते अबवय नसबेहि, क़ालल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला लहूः लेऊसेरन्नका कमा आसरतनी, वला ओशर्रेफ़न्नका बेहज़्रेहि अबवय दीनेका कमा शर्रफ़ता नफ़सका बेइसारे हुब्बेहेमा अला हुब्बे अबवय नसबेका

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी अपने भौतिक माता-पिता का अनुसरण करने की अपेक्षा पैगम्बर मुहम्मद (स) और अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) की आज्ञाकारिता और अनुसरण को प्राथमिकता देता है, अल्लाह उसे आशीर्वाद दे और उसे शांति प्रदान करे, अल्लाह तआला उसे संबोधित करता हैं: जिस प्रकार तुमने मेरे आदेशों को हर चीज़ पर प्राथमिकता दी, उसी प्रकार मैं तुम्हें दान और आशीर्वाद में प्राथमिकता देता हूँ, और मैं तुम्हें धार्मिक माता-पिता, अर्थात् हज़रत रसूल और इमाम अली (अ) का साथी बनाता हूँ, उसी प्रकार जैसे कि रुचि और प्रेम - व्यावहारिक और धार्मिक। उन्होंने खुद को हर चीज़ से पहले रखा।

28- बे अदब की निशानी

قالَ (علیه السلام) : لَیْسَ مِنَ الاْدَبِ إظْهارُ الْفَرَحِ عِنْدَ الْمَحْزُونِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसा मिनल अदबे इज़्हारुल फ़रहे इंदल महज़ूने

आप (अ) ने फ़रमाया: किसी पीड़ित और दुखी व्यक्ति की उपस्थिति में ख़ुशी और आनंद व्यक्त करना शिष्टाचार और मानवीय तथा इस्लामी नैतिकता नही है।

29- दूसरों के हुक़ूक़ पहचानना

قالَ (علیه السلام) : أعْرَفُ النّاسِ بِحُقُوقِ إخْوانِهِ، وَأشَدُّهُمْ قَضاءً لَها، أعْظَمُهُمْ عِنْدَاللهِ شَأناً क़ाला अलैहिस्सलामोः आरफ़ुन्नासे बेहुक़ूक़े इख़वानेहि, व अशद्दोहुम क़ज़ाअन लहा, आज़मोहुम इंदल्लाहे शानन

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने ही लोगों के अधिकारों को पहचानता और उनका सम्मान करता है और उनकी कठिनाइयों और ज़रूरतों को दूर करता है, उसे अल्लाह के यहाँ महानता और एक विशेष अवसर प्राप्त होगा।

30- इमाम का सम्मान

قالَ (علیه السلام) : اِتَّقُوا اللهُ وَ کُونُوا زَیْناً وَ لا تَکُونُوا شَیْناً، جُرُّوا إلَیْنا کُلَّ مَوَّدَه، وَ اَدْفَعُوا عَنّا کُلُّ قَبیح، فَإنَّهُ ما قیلَ فینا مِنْ حُسْن فَنَحْنُ أهْلُهُ، وَ ما قیلَ فینا مِنْ سُوء فَما نَحْنُ کَذلِکَ  क़ाला अलैहिस्सलामोः इत्तक़ुल्लाहो व कूनू जैनन वला तकूनू शयनन, जुर्रू इलैना कुल्ला मव्वदा, अदफ़ऊ अन्ना कुल्लो क़बीह, फ़इन्नहू मा क़ीला फ़ीना मिन हुस्ने फ़नहनो अहलोहू, व मा क़ीला फ़ीना मिन शूइन फ़मा नहनो कज़ालेका

आपने फ़रमाया: हर मामले में अल्लाह के तक़वा का सम्मान करो, और ज़ीनत बनो, और न ही शर्म का कारण बनो, लोगों को मेरे प्रेम और रुचि की ओर आकर्षित करने की कोशिश करो, और बुरी चीज़ों को मुझसे दूर रखो; वे हमारे गुणों के बारे में जो कुछ कहते हैं वह सही है और हम हर प्रकार के दोषों से मुक्त होंगे।

31- धर्मी विद्वान

قالَ (علیه السلام) : یَأتی عُلَماءُ شیعَتِنَاالْقَوّامُونَ لِضُعَفاءِ مُحِبّینا وَ أهْلِ وِلایَتِنا یَوْمَ الْقِیامَهِ، وَالاْنْوارُ تَسْطَعُ مِنْ تیجانِهِمْ عَلی رَأسِ کُلِّ واحِد مِنْهُمْ تاجُ بَهاء، قَدِ انْبَثَّتْ تِلْکَ الاْنْوارُ فی عَرَصاتِ الْقِیامَهِ وَ دُورِها مَسیرَهَ ثَلاثِمِائَهِ ألْفِ سَنَه क़ाला अलैहिस्सलामोः याती उलामाओ शीअतेनल कव्वामूना लेज़ोअफ़ाए मोहिब्बीना व अहले विलायतेना यौमल क़यामते, वल अनवारो तस्तओ मिन तीजानेहिम अला रासे कुल्ले वाहेदिन मिनहुम ताजो बहाए, क़दिन बस्सत तिलकल अनवारो फ़ी अरसातिल क़यामते व दूरेहा मसीरहा सलासेमेअते अलफ़े सनातिन 

इमाम (अ) ने फ़रमाया: वे शिया विद्वान और विद्वान जिन्होंने मार्गदर्शन और कठिनाइयों के निवारण के लिए मेरे मित्रों और समर्थकों की तलाश की है, क़यामत के दिन महशर रेगिस्तान में ऐसी स्थिति में प्रवेश करेंगे कि उनके सिरों पर सम्मान का मुकुट रखा जाएगा और प्रकाश पूरे स्थान को प्रकाशित करेगा और महशर के सभी लोग उस प्रकाश से लाभान्वित होंगे।

स्रोत:
1-उसूले काफ़ी,  भाग 1, पेज 519, हदीस 11

2- हदीक़ा तुश शिया, भाग 2, पेज 194, वाफ़, भाग 4, पेज 177, हदीस 42

3- मुस्तद्रिक अल-वसाइल, भाग 11, पेज 183, हदीस 12690

4- तोहफ़ उल उक़ूल, पेज 489, पेज 13, बिहार उल अनवार, भाग  75, पेज 374, हदीस 26,  अग्तान तबरसी: भाग 2, पेज 517, हदीस 340

5- तफसीर इमाम हसन अस्करी (स), पेज 345, हदीस 226

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का एक काम महामुक्तिदाता इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के काल से मोमिनीन को अवगत करना और यह बताना था कि ग़ैबत अर्थात नज़रों से ओझल होना।

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का एक काम महामुक्तिदाता इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के काल से मोमिनीन को अवगत करना और यह बताना था कि ग़ैबत अर्थात नज़रों से ओझल होना किस प्रकार का होगा।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के 11वें उत्तराधिकारी हैं उनका जन्म 232 हिजरी क़मरी में हुआ था उनके पिता मुसलमानों के 10वें इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और उनकी माता का नाम हदीसा था।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की सबसे प्रसिद्ध उपाधि हादी थी। इमाम हादी अलैहिस्सलाम को समय के अत्याचारी शासक बनी अब्बास ने शहीद करवा दिया था और उनकी शहादत के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व 11वें इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने संभाला।

इस्लामी रिवायतों के अनुसार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का एक कार्य इमाम ज़मान अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के संबंध में मोमिनों के मध्य भूमि प्रशस्त करना था और मोमिनों को यह बताना व समझाना था कि इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत किस प्रकार की होगी।

इमाम महदी अलैहिस्सलाम की फ़ज़ीलत और उनकी पहचान के संबंध में बहुत हदीसें हैं जिनका स्रोत महान ईश्वर है परंतु इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम द्वारा इस बात पर बल दिये जाने का महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय महत्व है।

मूसवी बग़दादी कहते हैं कि मैंने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से सुना है कि वह फ़रमाते थे कि आगाह व सावधान रहो कि जो पैग़म्बरे इस्लाम के बाद के इमामों को क़बूल करे परंतु वह इमाम मेहदी का इंकार करे तो वह उस व्यक्ति की भांति है जो समस्त ईश्वरीय पैग़म्बरों और उसके रसूलों को मानता हो परंतु पैग़म्बरे इस्लाम की नबुअत का इंकार कर दे इमाम मेंहदी के लिए ऐसी ग़ैबत है जिसके बारे में लोग संदेह करेंगे मगर वह जिसकी रक्षा अल्लाह करे।

अली बिन हमाम भी मोहम्मद बिन उस्मान अम्री से और वह अपने पिता से रिवायत करते हैं कि मैं इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पास बैठा हुआ था कि उनसे उस रिवायत के बारे में सुना जो उनके पूर्वजों से सुनी गयी थी जिसमें कहा गया था कि ज़मीन प्रलय तक हुज्जते ख़ुदा अर्थात अल्लाह के प्रतिनिधि से ख़ाली नहीं होगी और अगर कोई मर जाये और अपने ज़माने के इमाम को न पहचाने तो वह अज्ञानता की मौत मरता है।

इमाम ने इस हदीस का अर्थ बयान करते हुए फ़रमाया यह हक़ और सही बात है। यह बात रोज़े रौशन की तरह हक़ीक़त रखती है। इसके बाद लोगों ने इमाम से पूछा हे पैग़म्बरे इस्लाम के बेटे! आपके बाद कौन इमाम है?

इमाम ने फ़रमाया मेरा बेटा मोहम्मद (महदी) वह मेरे बाद इमाम है जो मर जाये और उसे न पहचाने वह अज्ञानता की मौत मरता है।

जान लो कि उसके लिए ग़ैबत है कि नादान व नासमझ लोग उससे विमुख हो जायेंगे और गुमराह लोग हलाक व बर्बाद हो जायेंगे और जो भी उसके ज़ुहूर के लिए नियत समय की बात करे वह झूठा है। महदी लोगों की मुक्ति के लिए अंतिम समय में आयेगा उसका ध्वज सफ़ेद होगा जो उसके सिर पर कूफ़ा और नजफ़ में लहरायेगा।

 लेबनान के हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव शेख़ नईम कासिम ने यमन के प्रधानमंत्री और मंत्रियों की शहादत पर शोक संदेश में कहा कि ज़ायोनी सरकार का यह कायरतापूर्ण हमला उसकी विफलता और युद्ध के मैदान में मुजाहिदीन के सामने कमज़ोर पड़ने को दर्शाता है।

लेबनान के हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव शेख़ नईम कासिम ने यमन के प्रधानमंत्री अहमद ग़ालिब अलरहवी और कई मंत्रियों की शहादत पर शोक संदेश जारी करते हुए कहा है कि ज़ायोनी सरकार का यह आपराधिक हमला उसकी पूर्ण विफलता और बर्बर व्यवहार को दर्शाता है।

उन्होंने अपने संदेश में अन्सारूल्लाह के नेता सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी को संबोधित करते हुए कहा कि इज़राइल ने यह कायरतापूर्ण हमला इसलिए किया क्योंकि वह युद्ध के मैदान में मुजाहिद कमांडरों और सशस्त्र बलों का मुकाबला करने की शक्ति नहीं रखता।

स्पष्ट रहे कि इससे पहले यमन की उच्च राजनीतिक परिषद के अध्यक्ष मेंहदी अलमशात ने भी प्रधानमंत्री और मंत्रियों की शहादत पर संवेदना व्यक्त करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यमन का बदला निश्चित है।

उन्होंने दुश्मनों को चेतावनी दी कि यमन की दृढ़ता को हराया नहीं जा सकता क्योंकि हमारा भरोसा ईश्वर पर है और उसका वादा है कि विजय विश्वासियों का नसीब है।