رضوی

رضوی

अंसारुल्लाह के नेता अब्दुल मलिक अल-हौसी ने घोषणा की है कि यमन अपने सिद्धांतवादी और ईमानदार रुख पर कायम रहते हुए ज़ायोनी सरकार के खिलाफ सैन्य और जनता के मोर्चे पर पूरी तरह से प्रतिरोध जारी रखेगा।

सना में यमनी प्रधानमंत्री और कैबिनेट पर ज़ायोनी सरकार के हमले के बाद अंसारुल्लाह के नेता सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने अपने संबोधन में कहा कि इजरायली हमलों के बावजूद यमन अपने सिद्धांतवादी और ईमानदार रुख पर कायम रहेगा।

हम दुश्मन के मुकाबले में अपना रुख बनाए रखते हुए कार्रवाइयों का सिलसिला जारी रखेंगे। हम इस पवित्र जंग में दाखिल हो चुके हैं जो दुश्मन ज़ायोनी के खिलाफ है; ऐसा दुश्मन जो न सिर्फ मुस्लिम उम्माह बल्कि पूरी इंसानियत और मानवता के लिए खतरा है।

अलहौसी ने कहा कि हम दुश्मन के खिलाफ सभी मोर्चों पर डट कर खड़े हैं। हमारे बहादुर पुरुष, महिलाएं और बच्चे ईमान और इरादे के साथ इस महान जंग में शामिल हैं और लगातार सक्रिय हैं; चाहे वह बड़े पैमाने पर जुलूस और प्रदर्शन हों या फिर बौद्धिक और सामाजिक गतिविधियां। हमारे लोगों की यह हरकत समझदारी और जागरूकता पर आधारित है और दुश्मन का कोई भी खतरा या कार्रवाई उनके संकल्प को कमजोर नहीं कर सकती।

उन्होंने कहा कि यमनी राष्ट्र अल्लाह तआला के वादे पर ईमान रखते हुए खुदा की राह में स्थिरता का मुज़ाहरा कर रहा है। इस रास्ते में हम सब्र और स्थिरता से काम लेंगे क्योंकि अल्लाह सब्र करने वालों को पसंद करता है।

अंसारुल्लाह के नेता ने कहा कि देश की सुरक्षा एजेंसियों ने व्यापक कोशिशों के ज़रिए आंतरिक मोर्चे की बेहतरी में अहम कामयाबियां हासिल की हैं और यह सिलसिला पूरी जनता और राष्ट्रीय समर्थन के साथ जारी है।

यमनी राष्ट्र ने कबायली राष्ट्रीय घोषणापत्र पर दस्तखत, दुश्मनों के खिलाफ प्रदर्शनों में शिरकत और कबायली जमावड़ों के आयोजन के ज़रिए अपनी सुरक्षा एजेंसियों और उनकी ज़िम्मेदारियों की भरपूर हिमायत का एलान किया है। किसी भी स्तर पर, राजनीतिक या गैर-राजनीतिक, कोई भी गद्दारी क़बूल नहीं है।

यमनी राष्ट्र चौकन्नेपन के साथ हर उस साजिश के मुकाबले में खड़ा है जो ज़ायोनी दुश्मन से सहयोग या उसकी स्कीमों और जुर्मों को अंजाम देने के लिए की जाती हो। जो भी शख्स दुश्मन की खिदमत करे, वह असल मायनों में गद्दार है और आम लोग ऐसी गद्दारी पर खामोशी या सब्र नहीं दिखाएंगे।

उन्होंने कहा कि यमनी राष्ट्र का रुख एक है और कुरान करीम, शरीयत इस्लामिया और उससे लिए गए कानूनों की बुनियाद पर दुश्मन के मुकाबले में स्थिरता इख्तियार करती है।

अंसारुल्लाह के नेता ने आगे कहा कि यमन की सुरक्षा एजेंसियां कामयाबी के साथ अपनी ज़िम्मेदारियां अदा कर रही हैं। यह सिलसिला आने वाले दिनों में भी जारी रहेगा। यह कामयाबियां ज़ायोनी दुश्मन के जुर्मों को नाकाम बनाने में बड़ी भूमिका अदा कर रही हैं, चाहे वह यमनी राष्ट्र के खिलाफ हों या सरकारी और जनता की संस्थाओं के खिलाफ।

उन्होंने कहा कि दुश्मनों के दबाव और हमलों के बावजूद यमनी मिल्लत का रुख स्थिर और मजबूत है। अल्लाह के वादे पर पूरा भरोसा ने उन्हें बड़ी कामयाबियों से हमकिनार किया है और उनके लिए ईमानी इज्जत रची है।

यमनी जनता उम्मीद के साथ अल्लाह की नस्र पर भरोसा रखते हुए, प्रतिरोध का रास्ता जारी रखेगी और कैदियों की आज़ादी, ज़ख्मियों के सेहतयाब होने और मज़लूम कौमों खासकर फिलिस्तीन की फतह के लिए दुआगो रहेगी।

सोमवार आठ रबीउल अव्वल बराबर 1 सितंबर हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है।

आठ रबीउल सन 260 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम इराक़ के सामर्रा शहर में शहीद कर दिए गये। उन्होंने अपनी 29 साल की ज़िन्दगी में दुश्मनों की ओर से बहुत से दुख उठाए और तत्कालीन अब्बासी शासक ‘मोतमिद’ के किराए के टट्टुओं के हाथों इराक़ के सामर्रा इलाक़े में ज़हर से शहीद हो गए।

हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को उनके महान पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के निकट दफ़्न किया गया। इस अवसर पर हर साल इस्लामी जगत में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से श्रद्धा रखने वाले, हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का शोक मनाते हैं।

हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने बहुत से शिष्यों और बुद्धिजीवियों का प्रशिक्षण किया जो अपने समय के प्रसिद्ध और महान बुद्धिजीवी बनकर सामने आए। हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के जीवन काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।

पहला तेरह वर्षीय चरण उन्होंने पवित्र नगर मदीने में व्यतीत किया, दूसरा दस वर्षीय काल, इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभालने के बाद सामर्रा में व्यतीत किया और तीसरा काल छह वर्षीय था जो उनकी इमामत का काल था।

उन्हें असकरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तत्तकालीन अब्बासी शासक ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को असकरिया नामक एक सैन्य क्षेत्र में रहने पर मजबूर किया था ताकि अब्बासी शासक उन पर नज़र रख सके।

यही कारण है कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम अस्करीयैन के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के अवसर पर  हौज़ा न्यूज़ अपने समस्त श्रोताओ और पाठकों के सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करता है।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा फ़िलिस्तीन को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने के फ़ैसले के बाद, अन्य पश्चिमी देशों ने भी इसी तरह के कदम उठाए हैं, जिससे इज़राइल और उसके सहयोगी अमेरिका नाराज़ हैं।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों द्वारा फ़िलिस्तीन को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने के फ़ैसले के बाद, अन्य पश्चिमी देशों ने भी इसी तरह के कदम उठाए हैं, जिससे इज़राइल और उसके सहयोगी अमेरिका नाराज़ हैं। इस फ़ैसले ने एक बार फिर ग़ज्ज़ा में विनाशकारी युद्ध को समाप्त करने के कूटनीतिक प्रयासों के केंद्र में द्वि-राज्य समाधान को ला दिया है। पिछले हफ़्ते इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को लिखे एक पत्र में, राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा: "फ़िलिस्तीनी लोगों को अपना राज्य देने का हमारा दृढ़ संकल्प इस विश्वास पर आधारित है कि इज़राइल की सुरक्षा के लिए स्थायी शांति आवश्यक है।" मैक्रों ने आगे कहा: "फ्रांस के कूटनीतिक प्रयास ग़ज़्ज़ा में व्याप्त भयानक मानवीय संकट पर हमारे गुस्से का परिणाम हैं, जिसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।"

न्यूज़ीलैंड, फ़िनलैंड और पुर्तगाल सहित कुछ अन्य देश भी इसी तरह के कदम पर विचार कर रहे हैं। नेतन्याहू ने फ़िलिस्तीनी राज्य का दर्जा अस्वीकार कर दिया है और ग़ज़्ज़ा में सैन्य अभियान को और तेज़ करने की योजना बना रहा हैं। इज़राइल और अमेरिका का कहना है कि फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने से चरमपंथियों का हौसला बढ़ेगा। गौरतलब है कि ग़ज़्ज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 को इज़राइल पर हमास के नेतृत्व वाले हमले के साथ शुरू हुए युद्ध में अब तक 63,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। फ़्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और माल्टा ने घोषणा की है कि वे 23 सितंबर से शुरू होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र के दौरान फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने की अपनी प्रतिबद्धता को औपचारिक रूप देंगे।

 "ग्लोबल सॉलिडैरिटी फ्लोटिला" स्पेन से खाद्य सहायता, डॉक्टरों और मानवाधिकार स्वयंसेवकों के साथ रवाना हुआ;जिसमें 44 देशों के 300 से ज़्यादा स्वयंसेवक और हज़ारों टन सहायता सामग्री थी।  4 सितंबर को ट्यूनीशिया से और नावें जुड़ेंगी।

50 से ज़्यादा नावों वाला "ग्लोबल सॉलिडैरिटी फ़्लोटिला" रविवार को स्थानीय समयानुसार दोपहर 3:30 बजे गाज़ा के लिए रवाना हुआ, जिसमें 44 देशों के 300 से ज़्यादा स्वयंसेवक और हज़ारों टन सहायता सामग्री थी। यह अब तक का सबसे बड़ा स्वतंत्रता फ़्लोटिला है और इज़राइल के ख़िलाफ़ वैश्विक जन विरोध का प्रतीक भी है। इस काफ़िले में बड़ी संख्या में डॉक्टर भी शामिल हैं जो गाज़ा की अवैध घेराबंदी को तोड़ना चाहते हैं और वहाँ घायलों के इलाज के लिए अपनी सेवाएँ देना चाहते हैं। स्पेन के बार्सिलोना बंदरगाह पर "ग्लोबल सॉलिडैरिटी फ़्लोटिला" को रवाना होते देखने के लिए हज़ारों लोग जमा हुए। दुनिया भर से 26,000 से ज़्यादा लोगों ने इस काफ़िले का हिस्सा बनने के लिए आवेदन किया है। शुरुआत में, इस काफ़िले में 50 से ज़्यादा नावें शामिल हैं, लेकिन गुरुवार को ट्यूनीशिया के तट से कई और नावें और जहाज़ इसमें शामिल होंगे।

फ़्लोटिला को विदा करने के लिए उमड़ी भीड़

फ़्लोटिला में शामिल "फ़मिलिया" नाव पर सवार पत्रकार मौरिसियो मोरालेस ने अल जज़ीरा को बताया, "यहाँ (काफिले के रवाना होने के समय) लोगों की संख्या आश्चर्यजनक थी। किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि इतने सारे लोग स्वयंसेवकों को अलविदा कहने आएंगे। हमारा मनोबल ऊँचा है। इस नाव पर सवार लोग एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं, लेकिन गाज़ा के मुद्दे में हर किसी की अपनी विशिष्ट भूमिका है।"

ग्रेटा थुनबर्ग का मीडिया को संबोधन

रवाना होने से कुछ घंटे पहले, स्वीडिश युवा कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग और फ़्लोटिला की कई अन्य प्रमुख हस्तियों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया और फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार के लिए इज़राइल की कड़ी आलोचना की। थुनबर्ग ने कहा, "फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़राइल के नरसंहार के इरादे बिल्कुल साफ़ हैं। वह फ़िलिस्तीनी लोगों का सफ़ाया करना चाहता है और गाज़ा पट्टी पर कब्ज़ा करना चाहता है।" उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और नेताओं पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वे "अंतर्राष्ट्रीय क़ानून लागू करने में विफल रहे हैं।"

बार्सिलोना स्थित फ़िलिस्तीनी कार्यकर्ता सैफ़ अबू काश्चेक ने फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार की निंदा करते हुए कहा, "गाज़ा में फ़िलिस्तीनी लोग भूख से मर रहे हैं क्योंकि सरकार जानबूझकर उन्हें भूखा मार रही है।"

काफिले में कितनी नावें हैं

"ग्लोबल समूद फ़्लोटिला" स्वयंसेवकों का एक स्वतंत्र समूह है जिसका किसी भी सरकार या राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। अरबी में समूद का अर्थ "दृढ़ता" या "साहस" होता है। इसमें शामिल लोग इस तथ्य के बावजूद दृढ़ हैं कि इज़राइल ने 2010 से किसी भी "फ़्रीडम फ़्लोटिला" को गाज़ा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी है।

रविवार को काफिले के रवाना होने के बाद अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि इसमें कितनी नावें हैं, लेकिन अल जज़ीरा ने बताया कि काफिले में 50 से ज़्यादा नावें और एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 100 नावें थीं।

44 देशों के नागरिक काफिले का एक हिस्सा

समुद फ्लोटिला की आयोजकों में से एक, यास्मीन अकार ने पुष्टि की कि इस काफिले में, जिसमें 44 देशों के प्रतिनिधिमंडल शामिल हैं, ग्रीस, इटली और ट्यूनीशिया के विभिन्न बंदरगाहों से आने वाली नौकाओं के साथ संख्या बढ़ेगी।

सितंबर के मध्य में ग़ज़्ज़ा पहुँचेगा

यह नौसैनिक काफिला, जिसमें कार्यकर्ता, यूरोपीय सांसद और विभिन्न देशों के प्रमुख हस्तियाँ शामिल हैं, सितंबर के मध्य तक गाजा पहुँचने की उम्मीद है। पुर्तगाल की वामपंथी सांसद मारियाना मोराटागुआ, जो इस मिशन में शामिल होंगी, ने कहा कि यह फ्लोटिला "अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक वैध मिशन" है।

 हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस की मजलिस के बाद इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इमाम मुहम्मद तक़ी इमाम अली नक़ी और इमाम हसन अस्करी अलैहेमुस्सलाम के बारे में रिसर्च और लेखन पर ताकीद की गई हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मिंबरों और किताबों में इमाम मोहम्मद तक़ी, इमाम अली नक़ी और इमाम हसन अस्करी अलैहेमुस्सलाम के कम ज़िक्र होने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी दौर में शिया तादाद और इल्मी सतह की नज़र से इतना नहीं फैले जितना इन तीन इमामों के दौर में फैले।  

उन्होंने शनिवार को दोपहर में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस की मजलिस के अंत में, इस साहसी इमाम, उनके पिता और बेटे के, शिया मत के दायरे और ख़ुसूसियत के लेहाज़ से विस्तार में बेजोड़ योगदान की ओर इशारा किया और कहा कि इस्लामी इतिहास के किसी भी दौर में, शिया मत इन तीन इमामों के दौर जितना नहीं फैला।

इमाम अली नक़ी और इमाम मोहम्मद तक़ी के दौर में बग़दाद और कूफ़ा शियों के मुख्य केन्द्र बन गए और इन हस्तियों का शिया मत की शिक्षाओं के प्रचलन में बेमिसाल योगदान रहा है।  

उन्होंने इतिहास और कला के अनेक क्षेत्रों में इन इमामों की ज़िंदगी और शिक्षाओं पर प्रकाश डालने पर बल दिया और इन क्षेत्रों में इन तीनों महान इमामों का कम ज़िक्र होने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अफ़सोस की बात है कि इतिहास लेखन, किताब लेखन यहाँ तक कि हमारे मिंबरों पर इन तीन महान इमामों की ज़िंदगी और इनकी शिक्षाओं का कम ज़िक्र होता है, बहुत ही मुनासिब होगा कि इस क्षेत्र में रिसर्च स्कालर और कलाकार काम करें और ज़्यादा रचनाएं वजूद में आएं।  

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ज़ियारते जामिया को अनमोल रत्न की संज्ञा दी और कहा कि अगर इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की कोशिशें न होतीं तो आज हमारे पास ज़ियारते जामिआ कबीरह न होती, इस ज़ियारत में मौजूद इल्म और अध्यात्म कि जिनकी बुनियाद क़ुरआनी आयतें और शियों की शुद्ध हक़ीक़तें हैं, इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इल्मी गहराई और व्यापाकता का आइना हैं।   

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने एक नावेल का ज़िक्र किया जो हाल ही में उनकी नज़र से गुज़रा और जिसमें इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक चमत्कार का ज़िक्र था। उनका कहना था कि इस मैदान में इस अंदाज़ से बहुत कम काम हुआ है और ज़रूरत है कि इस तरह की रचनाएं ज़्यादा तादाद में सामने आएं।

अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में देर रात आए भीषण भूकंप ने तबाही मचा दी। रिपोर्टों के अनुसार अब तक 600 लोगों की मौत हो चुकी है और एक हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं।

अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में देर रात आए भीषण भूकंप ने तबाही मचा दी। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार अब तक 600 लोगों की मौत हो चुकी है और एक हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं।

भूकंप का केंद्र जलालाबाद शहर से 8 किलोमीटर भूगर्भ में था, जिसकी तीव्रता 6 रिकॉर्ड की गई। भूकंप के बाद पांच और झटके (आफ्टरशॉक) भी महसूस किए गए, जिनकी तीव्रता 4.3 से 5.2 के बीच रही।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटने वाली अफगान एजेंसी ने बताया कि सबसे अधिक जानहानि नूरगल, सुवाकी, वाटापुर, मनोगी और चपा दर्रा जिलों में हुई, जहां कई गांव पूरी तरह से मलबे में दब गए हैं। आशंका जताई जा रही है कि अभी भी सैकड़ों लोग मलबे में फंसे हुए हैं।

बचाव कार्य जारी है और रक्षा, आंतरिक मामलों और स्वास्थ्य मंत्रालयों की टीमें मौके पर पहुंच चुकी हैं। हेलीकॉप्टरों के जरिए घायलों को नंगरहार क्षेत्रीय अस्पताल पहुंचाया जा रहा है।

अफगानिस्तान की इस्लामी अमीरात के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि पीड़ितों की जान बचाने के लिए अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करें।

भूकंप के झटके नंगरहार, लगमान, काबुल और खैबर पख्तूनख्वा के कुछ इलाकों में भी महसूस किए गए।

8 रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी क़मरी को इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई थी आपकी क़ब्र इराक़ के सामर्रा नगर में है। 

8 रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी क़मरी को इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई थी आपकी क़ब्र इराक़ के सामर्रा नगर में है। 

इमाम हसन असकरी की शहादत के दुखद अवसर पर कल रात से ईरान में शोक सभाओं का क्रम जारी है वक्ता और धर्मगुरू इस संबन्ध में अपने प्रवचनों को इमाम की विशेषताएं एवं उनके बलिदान का उल्लेख कर रहे हैं। 

मजलिसों के साथ ही साथ मातम और सीनाज़नी की जा रही है।  हर ओर शोक का समा बंधा हुआ है ईरान के धार्मिक नगरों मशहद और क़ुम में श्रद्धाुलओं की संख्या बहुत अधिक है जो इमाम की शहादत मनाने के लिए ईरान के विभिन्न नगरों से वहां पहुंचे हैं।  

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मात्र 6 वर्षों तक इमामत की थी। आठ रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी कमरी को अब्बासी खलीफा ने ज़हर दिलवा कर आपको शहीद कर दिया। उस समय इमाम की उम्र मात्र 28 साल थी। उस दिन पूरा इस्लामी जगत विशेषकर सामर्रा शोक में डूब गया। 

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पार्थिव शरीर को उसी घर में अपने पिता की समाधि के बगल में दफ्न कर दिया गया जिसमें आपको नज़रबंद करके रखा गया था।

कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आन्दोलन पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि यह न तो दस दिन के भीतर लिए गए किसी अचानक निर्णय का परिणाम था और न ही इसकी योजना यज़ीद के शासन को देखकर तैयार की गई थी।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के जीवन में ही इस स्थिति का अनुमान लगा लिया गया था कि इस्लाम के समानता और जनाधिकारों पर आधारित मानवीय सिद्धांत, जब भी किसी अत्याचारी के मार्ग में बाधा उत्पन्न करेंगे, उन्हें मिटाने का प्रयास किया जाएगा और इस्लाम के नाम पर अपनी मनमानी तथा एश्वर्य का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के जीवन में अनके अन्यायी और दुराचारी व्यक्तियों ने वाह्य रूप से तो इस्लाम स्वीकार कर लिया था परन्तु वे सदैव पैग़म्बरे इस्लाम और उनकी शिक्षाओं को अपने हितों के विपरीत समझते रहे और इसी कारण उनसे और उनके परिजनों से सदैव शत्रुता करते रहे।  दूसरी ओर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने अपने परिजनों का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा और चरित्र निर्माण सबकुछ ईश्वरीय धर्म के अनुसार किया था और उनको एसी आध्यात्मिक एवं मानसिक परिपक्वता प्रदान कर दी थी कि वे बचपन से ही अपने महान सिद्धांतों पर अडिग रहते थे।  यह रीति उनके समस्त परिवार में प्रचलित थी।  इस विषय में पुत्र और पुत्रियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था।  इसीलिए जिस गोदी में पलने वाले पुत्र हसन व हुसैन बनकर मानव जाति के लिए आदर्श बन गए उसी प्रकार उसी गोदी और उसी घर में पलने वाली बेटियों ने ज़ैनब और उम्मे कुल्सूम बनकर यज़ीदी शासन की चूलें हिला दीं।  इस परिवार में पुरुषों और महिलाओं के महत्व में कोई अंतर नही था।  यदि अंतर था तो बस उनके कार्यक्षेत्रों में।  इस्लामी आदर्शों की सुरक्षा के क्षेत्र में ही यही अंतर देखने में आता है।  बचपन मे तीन महीने की अवधि में नाना और फिर माता के स्वर्गवास के पश्चात समाज तथा राजनीति के विभिन्न रूप, लोगों के बदलते रंग और इस्लाम को मिटाने के अत्याचारियों के समस्त प्रयास हुसैन और ज़ैनब ने साथ-साथ देखे थे और उनसे निबटने का ढंग भी उन्होंने साथ-साथ सीखा था।

 हज़रत ज़ैनब का विवाह अपने चाचा जाफ़र के पुत्र अब्दुल्लाह से हुआ था।  अब्दुल्लाह स्वयं भी अद्वितीय व्यक्तित्व के स्वामी थे और अली व फ़ातिमा की सुपुत्री ज़ैनब भी अनुदाहरणीय थीं।  विवाह के समय उन्होंने शर्त रखी थी कि उनको उनके भाइयों से उन्हें अलग रखने पर विवश नहीं किय जाएगा और यदि भाई हुसैन कभी मदीना नगर छोड़कर गए तो वे भी उनके साथ जाएंगी।  पति ने विवाह की इस शर्त का सदैव सम्मान किया।  हज़रत ज़ैनब, अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र के दो पुत्रों, औन और मुहम्मद की माता थीं।  यह बच्चे अभी दस बारह वर्ष ही के थे कि इमाम हुसैन को यज़ीद का समर्थन न करने के कारण मदीना नगर छोड़ना पड़ा।  हज़रत ज़ैनब अपने काल की राजनैतिक परिस्थितियों को भी भलि-भांति समझ रही थीं और यज़ीद की बैअत अर्थात आज्ञापालन न करने का परिणाम भी जानती थीं।  वे व्याकुल थीं परन्तु पति की बीमारी को देखकर चुप थीं।  इसी बीच अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र ने स्वयं ही उनसे इस संवेदनशील स्थिति में भाई के साथ जाने को कहा और यह भी कहा कि बच्चों को भी अपने साथ ले जाओ तथा यदि समय आजाए, जिसकी संभावना है, तो एक बेटे को अपनी ओर से और दूसरे की मेरी ओर से पैग़म्बरे इस्लाम से सुपुत्र हुसैन पर से न्योछावर कर देना।   इन बातों से एसा प्रतीत होता है कि अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र भी जानते थे कि इमाम हुसैन का मिशन, ज़ैनब के बिना पूरा नहीं हो सकता।

 ज़ैनब कर्बला में आ गईं। कर्बला में उनके साथ आने वाले अपने बच्चे ही नहीं बल्कि भाइयों के बच्चे भी उन्ही की गोदी मे पलकर बड़े हुए थे और यही नहीं माता उम्मुलबनीन की कोख से जन्में चारों भाइयों का बचपन भी उन्ही की गोदी में खेला था।

 ज़ैनब कर्बला में अपने भाई हुसैन के लिए पल-पल बढ़ते ख़तरों का आभास करके ही कांप जाती थीं।  इसीलिए वे भाई से कहती थीं कि पत्र लिखकर अपने मित्रों को सहायता के लिए बुला लीजिए।  विभिन्न अवसरों पर देखा गया कि इमाम हुसैन अपनी बहन से संवेदनशील विषयों पर राय लिया करते थे और परिस्थितियों को नियंत्रित करने में भी हज़रत ज़ैनब सदैव अपने भाई के साथ रहीं।

 नौ मुहर्रम की रात्रि जो हुसैन और उनके साथियों के जीवन की अन्तिम रात्रि थी, हज़रत ज़ैनब ने अपने दोनों बच्चों को इस बात पर पूरी तरह से तैयार कर लिया था कि उन्हें इमाम हुसैन की रक्षा के लिए रणक्षेत्र मे शत्रु का सामना करना होगा और इस लक्ष्य के लिए मृत्यु को गले लगाना होगा।  बच्चों ने भी इमाम हुसैन के सिद्धांतों की महानता को इस सीमा तक समझ लिया था कि मृत्यु उनकी दृष्टि में आकर्षक बन गई थी।

 आशूर के दिन जनाब ज़ैनब ने अपने हाथों से बच्चों को युद्ध के लिए तैयार किया और उनसे कहा था कि औन और मुहम्मद हे मेरे प्रिय बच्चो! हुसैन और उनके लक्ष्य की सुरक्षा के लिए तुम्हारा बलिदान अत्यंत आवश्यक है वरना यह मां तुम्हें कभी मौत की घाटी में नहीं जाने देती।  देखो रणक्षेत्र में मेरी लाज रख लेना।  और बच्चों ने एसा ही किया।

कई सालों की देरी और संघर्ष के बाद, इराकी संसद की मंजूरी और बगदाद व वाशिंगटन के बीच समझौते के तहत कल शनिवार को इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की औपचारिक शुरुआत होने जा रही है।

कई सालों की देरी और संघर्ष के बाद, इराकी संसद की मंजूरी और बगदाद व वाशिंगटन के बीच समझौते के तहत कल शनिवार को इराक से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की औपचारिक शुरुआत होने जा रही है।

इराकी सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के सैनिक सबसे पहले अलअसद एयर बेस, बगदाद एयरपोर्ट और संयुक्त ऑपरेशन कमांड मुख्यालयों से निकलेंगे और फिर उन्हें अर्बिल कुर्दिस्तान इराक का केंद्र स्थानांतरित किया जाएगा।

सूत्रों ने स्पष्ट किया कि समझौते के मुताबिक केवल अमेरिकी सैन्य प्रशिक्षक इराक में मौजूद रहेंगे जिनका गठबंधन की वापसी से कोई संबंध नहीं है।

उल्लेखनीय है कि बगदाद और वाशिंगटन ने सितंबर 2024 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत अमेरिका की सैन्य उपस्थिति खत्म करके चरणबद्ध वापसी कार्यान्वित की जानी थी।

अमेरिकी सैनिक पहली बार 2003 में इराक पर हमले के बाद इस देश में दाखिल हुए थे। 2011 में उनकी बड़ी संख्या वापस बुलाई गई, लेकिन 2014 में दाएश (आईएसआईएस) के नाम पर दोबारा इराक लौट आए।

याद रहे कि जनवरी 2020 को इराकी संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें विदेशी सेनाओं की वापसी की मांग की गई थी। यह फैसला जनरल कासिम सुलेमानी और अबू मेंहदी अलमुहंदिस की अमेरिकी हमले में शहादत के कुछ दिनों बाद किया गया था।

प्रस्ताव में सरकार को बाध्य किया गया था कि वह देश की संप्रभुता की सुरक्षा के लिए इराकी सुरक्षा बलों को मजबूत करे और विदेशी सेनाओं के साथ हर तरह के समझौते को रद्द करे हालांकि अमेरिका ने इस पर अमल नहीं किया।

इराकी सूत्रों के मुताबिक हाल के दिनों में अलअसद बेस से अमेरिकी सामान के स्थानांतरण के सबूत भी मिले हैं, जो इस समझौते पर अमल का सबूत हैं।

अमेरिका और इराक के बीच तय समझौते के मुताबिक यह वापसी दो चरणों में पूरी होगी:

पहला चरण: सितंबर 2024 से सितंबर 2025 तक, जिसमें बगदाद और अन्य अड्डों से अमेरिकी सेनाएं निकलेंगी।

दूसरा चरण: सितंबर 2025 से सितंबर 2026 तक, जिसमें कुर्दिस्तान इराक से भी अमेरिकी सैनिक वापस जाएंगे।

इस तरह अगले साल से अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति केवल अर्बिल और उत्तरी इराक तक सीमित हो जाएगी, और सितंबर 2026 तक उनकी पूरी वापसी की उम्मीद है।

 संयुक्त राष्ट्र में रूस के उप प्रतिनिधि ने कहा कि यूरोपीय देशों द्वारा ईरान के ख़िलाफ स्नैपबैक मैकेनिज्म का उपयोग अप्रभावी है।

संयुक्त राष्ट्र में रूस के उप प्रतिनिधि ने यूरोपीय देशों द्वारा ईरान के ख़िलाफ स्नैपबैक मैकेनिज्म को सक्रिय करने के कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह कदम कानूनी रूप से किसी हैसियत का हामिल नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि रूस यह नहीं मानता कि सुरक्षा परिषद को यूरोपीय ट्रायका के इस कदम के आधार पर कोई फैसला करना चाहिए।

रूसी उप प्रतिनिधि ने स्पष्ट किया कि रूस और चीन ने अभी तक अपने प्रस्ताव के मसौदे पर सुरक्षा परिषद में मतदान के लिए कोई अनुरोध जमा नहीं किया है।

पहले सूत्रों ने बताया था कि रूस और चीन ईरान के परमाणु समझौते की अवधि को और छह महीने के लिए बढ़ाने के लिए सुरक्षा परिषद में पेश करने के लिए एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार कर रहे हैं।