
رضوی
ईश्चारश आतिथ्श- 6
रमज़ान महीने में पवित्र क़ुरआन को चाहने वाले पहले से अधिक क़ुरआन से निकट हो जाते हैं और पवित्र क़ुरआन की तिलावत करके और उसकी शिक्षाओं को समझकर और उस पर अमल करके अपने दिलों को नया जीवन प्रदान करते हैं।
सालभर में आने वाली फ़सलों में सबसे सुन्दर और प्रफुल्लतादायक फ़सल बहार या बसंत ऋतु है। इस फ़सल में चारों ओर हरियाली ही हरियाली नज़र आती है और पेड़ पौधे हरी हरी कोंपलों का वस्त्र धारण कर लेते हैं। बसंत ऋतु, प्रेम और ताज़गी की संदेशवाहक है। यह ख़ुशियों और आपसी मेलजोल का मौसम है। यही कारण है कि इस मौसम को दुनिया का हर व्यक्ति पसंद करता है। बहार के आने से दिल में ख़ुशियां भर जाती हैं और दिल प्रफुल्लित हो जाता है और इंसान में नयी जान पैदा हो जाती है।
बसंत की सुन्दर प्रकृति में ईश्वर का प्रेम और कृपा को हर समय से अधिक देखा जा सकता है। जो लोग बहार के मौसम से आनंद उठाते हैं और इस मौसम को अधिक पसंद करते हैं वे इस मौसम से ज़्यादा किसी और मौसम में ख़ुश नहीं हो सकते, वे हरियाली के उगने, दुनिया के दोबारा जीवित होने और अपनी आत्मा के प्रफुल्लित होने का दृश्य अपनी आंखों से देखते हैं और परलोक में उड़ान भरने का आभास करता हैं। यहां पर पवित्र क़ुरआन को दोस्त रखने वालों का भी यही हाल होता है वे भी पवित्र क़ुरआन में ईश्वर की कृपा और दया का दीदार करते हैं और पवित्र क़ुरआन की मनमोहक और प्रफुल्लतादायक आयतों की तिलावत सुनकर अपनी जान को तरोताज़ा करते हैं।
यह चीज़ ठीक उसी तरह है जब अंधेरी रात के बाद सूरज अपने प्रकाश से मुर्दा प्रकृति को दोबारा ज़िंदा करता है, क़ुरआन की दमकती धूप भी मुर्दा दिलों और आत्मा के अवसाद को ताज़गी और प्रफुल्लता प्रदान करती और उसको नया जीवन प्रदान करती है। पवित्र क़ुरआन दिलों की बसंत और पवित्र रमज़ान, क़ुरआन की बहार का मौसम है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के हवाले से एक हदीस में आया है जिसमें वह फ़रमाते हैं कि हर चीज़ के लिए बहार हैं और क़ुरआन की बहार, पवित्र रमज़ान है। यह इस प्रकार कि इस पवित्र महीने में हम सभी को अल्लाह की मेहमानी का निमंत्रण दिया गया है और हम क़ुरआन की बहार और वास्तव में उसकी अद्वितीय सुन्दरता के इस महीने में साक्षी होते हैं।
इस महीने में पवित्र क़ुरआन को चाहने वाले और उसके मित्र पहले से अधिक क़ुरआन से निकट हो जाते हैं और पवित्र क़ुरआन की तिलावत करके और उसकी शिक्षाओं को समझकर और उस पर अमल करके अपने दिलों को नया जीवन प्रदान करते हैं। जैसा कि बहार के मौसम में हर ओर हरियाली होती है और पेड़ों पर कोंपले आ जाती हैं। पवित्र रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन की तिलावत और उसमें चिंतन मनन से मनुष्य में नयी जान पैदा हो जाती है और उसमें आत्मा का पुनर्जन्म होता है क्योंकि मनुष्य की प्रकृति, पवित्र क़ुरआन से बहुत मेल खाती है और क़ुरआने मजीद की आयतें, दिलों को तैयार करती हैं और अपनी ओर सम्मोहित करती हैं। पवित्र क़ुरआन सूरए ज़ुमर की आयत संख्या 23 में अपने बयान के अध्यात्यिमक आकर्षण के बारे में कहता है कि अल्लाह ने बेहतरीन बात इस पुस्तक के रूप में उतारी है जिसकी आयतें आपस में मिलती जुलती हैं और बार बार दोहराई गयी हैं कि उनसे ईश्वर का भय रखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, इसके बाद उनके शरीर और दिल यादे ख़ुदा के लिए नर्म हो जाते हैं। यही अल्लाह का वास्तविक मार्गदर्शन है वह जिसको चाहता है प्रदान करता है और जिसको वह पथभ्रष्टता में छोड़ दे उसका कोई मार्गदर्शन करने वाला नहीं है। यही कारण है कि रिवायतों में पवित्र क़ुरआन को दिलों के बहार के रूप में याद किया गया है।
पवित्र क़ुरआन, ईश्वर का बड़ा चमत्कार और इस्लाम के अमर होने का प्रमाण है। यह ईश्वरीय किताब, विभिन्न षड्यंत्रों के बावजूद, हर प्रकार की फेरबदल से सुरक्षित है और मानवीय समाज को पथभ्रष्टता और बुराई से मुक्ति दिला रही है। पवित्र क़ुरआन ने ईश्वर की ओर से आने के अपने आंरभिक समय से पवित्र और साफ़ दिलों को अपनी जीवनदायक आयतों द्वारा आकर्षित किया। पवित्र क़ुरआन ने अपने सार्थक नियमों से पतन का शिकार और पाश्विक जाति को सभ्य समाज और प्रशिक्षित इंसान में परिवर्तित कर दिया। ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन को उतार कर जो पूर्ण और व्यापक है, समस्त लोगों पर यह तर्क पूरा कर दिया और कहा कि क़ुरआन की भांति कोई भी किताब, मनुष्य की आवश्यताओं का जवाब नहीं दे सकता। पवित्र क़ुरआन की आयतें और इसमें वर्णित चीज़ों से पता चलता है कि यह किताब किसी इंसान की नहीं है बल्कि अमर चमत्कार है जो किसी इंसान से ऊपर की ओर से है। चौदह से अधिक शताब्दी गुज़रने के बावजूद दुनिया में आज भी इस्लाम के ज़िंदा प्रभाव से इस वास्तविकता का पता चलता है कि क़ुरआने करीम अपने पक्के और वैज्ञानिक तर्कों, गहरी और सकारात्मक बातों और शिष्टाचारिक नियमों के साथ मनुष्य के जीवन के लिए बेहतरीन किताब है। इसी ईश्वर की किताब की शिक्षाओं की छत्रछाया में लोग सत्य का मार्ग तलाश करते हैं और सत्य के इच्छुक लोग इसके प्रकाश से ही स्वयं को लाभान्वित करते हैं। ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरए फ़ुस्सेलत की आयत संख्या 41 और 42 में कहता है कि जिसके निकट, सामने या पीछे किसी ओर से असत्य आ भी नहीं सकता कि यह तत्वदर्शी ईश्वर और हमीद की ओर से उतारी हुई किताब है।
पवित्र क़ुरआन का संदेश, समस्त इंसानों के लिए पारदर्शी और स्पष्ट संदेश हैं। पवित्र क़ुरआन अच्छाई को स्वीकार करने और बुराई तथा विस्तारवाद और वर्चस्व को नकाराता है, यह इस प्रकार है कि पवित्र क़ुरआन मानव जीवन में चाहे व व्यक्तिगत हो या सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक या आर्थिक क्षेत्र हो, सभी में मनुष्यों के लिए बेहतरीन शरणस्थली बन सकता है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि जब भी तुम्हें कोई परेशानी हो, रात का अंधेरा हो या कोई भी समस्या तो तुम क़ुरआन की शरण में आ जाओ और तुम्हारे लिए आवश्यक है कि पवित्र क़ुरआन से सहायता मांगो। अन्य महीनों की तुलना में पवित्र रमज़ान में क़ुरआन की तिलावत के बहुत फ़ायदे हैं। रमज़ान का महीना, ईश्वर से निकट करने के लिए मनुष्य द्वारा लाभ उठाने के लिए भूमि समतल करने तथा स्वच्छ माहौल में सांस लेने का माहौल प्रशस्त करता है। इस लक्ष्य की प्राति के लिए बेहतरीन संसाधन, पवित्र क़ुरआन है। इसी संबंध में पैग़म्बरे इस्लाम शाबान के महीने के अंतिम दिनों में दिए गये ख़ुतबए शाबानिया में कहते हैं कि रमज़ान के महीने क़ुरआन की एक आयत की तिलावत, क़ुरआन ख़त्म करने का सवाब रखती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई भी पवित्र रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन की तिलावत करने और उससे लाभ उठाने पर बल देते हुए कहते हैं कि रमज़ान के महीने की जान रोज़ा है जो रोज़ेदारों के लिए प्रकाशमयी और अध्यात्मिक माहौल होता है और उसे ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति के लिए तैयार करता है। रमज़ान के महीने में यह सब चीज़ें, नमाज़, रोज़े, दायित्वों और दुआओं के साथ होती हैं, यदि आप इन चीज़ों पर ध्यान दें और क़ुरआन की तिलावत भी बढ़ा दें कि कहा गय है कि रमज़ान का महीना, क़ुरआन की बसंत है, भ्रष्टाचार, बिखराव और बर्बादी जैसी चीज़ों से अपनी मुक्ति, पुनर्निमाण और आत्मनिर्माण का एक काल है। बहुत ही अच्छा अवसर है। मामला यह है कि हम पवित्र रमज़ान के महीने में अल्लाह की ओर जाने की यह प्रक्रिया अंजाम दें और यह प्रक्रिया अंजाम पा सकती है।
पवित्र रमज़ान, पवित्र क़ुरआन के उतरने का महीना है। सूरए बक़रा की आयत संख्या 185 में आया है कि रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है और इसमें मार्गदर्शन और सत्य व असत्य की पहचान की स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं इसीलिए जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित रहे, उसका दायित्व है कि रोज़ा रखे और जो मरीज़ या यात्री हो वह इतने ही दिन दूसरे समय में रखे, ईश्वर तुम्हारे बारे में आसानी चाहता है, कष्ट नहीं चाहता, और इतने ही दिन का आदेश इसीलिए है कि तुम संख्या पूरे कर दो और अल्लाह के दिये हुए मार्गदर्शन पर उसके बड़प्पन को स्वीकार करो और शायद तुम इस प्रकार आभार व्यक्त करने वाले बंदे बन जाओ। पवित्र क़ुरआन का रमज़ान के महीने में उतरना, इस विशेष योग्यता के लिए है कि इस महीने से लाभ उठा सके ताकि इस महीने में उतरने वाली किताब की तिलावत करें। चूंकि दूसरी आसमानी किताबें भी रमज़ान के महीने में उतरी हैं।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से रिवायत में हम पढ़ चुके हैं कि तौरेत पवित्र रमज़ान की छह तारीख़ को। इंजील बारह तारीख को और ज़बूर 18 रमज़ान को उतरी और पवित्र क़ुरआन क़द्र की रात उतरा है
बंदगी की बहार- 6
पवित्र रमज़ान, ईश्वर का महीना है।
इस महीने में रोज़ा रखने वाला ईश्वर का मेहमान होता है। मेहमानी एसी चीज़ है जिसके बारे में कुछ बातों की जानकारी बहुत आवश्यक है जैसे मेज़बान कौन है, मेहमानी का समय और स्थान क्या है। इसके अतिरिक्त यह भी ज्ञात चाहिये कि मेहमानी में जाने के लिए किस प्रकार की तैयारी की जाए? यह ज़रूरी है कि ईश्वर की मेहमानी के लिए रोज़ेदार को स्वयं को भीतरी और बाहरी हिसाब से तैयार करना चाहिए। इस महीने की हमें पहले से तैयारी करनी चाहिए। सूरे बक़रा की आयत संख्या 185 में ईश्वर कहता हैः रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें ईश्वर की ओर से क़ुरआन उतरा है जो लोगों का मार्गदर्शक है तथा, असत्य से सत्य को अलग करने हेतु स्पष्ट तर्कों व मार्गदर्शन को लिए हुए है, तो तुम में से जो कोई भी ये महीना पाए तो उसे रोज़ा रखना चाहिए और जो कोई बीमार या यात्रा में हो तो वह उतने ही दिन किसी अन्य महीने में रोज़ा रखे, ईश्वर तुम्हारे लिए सरलता चाहता है, कठिनाई नहीं, तो तुम रोज़ा रखो यहां तक कि दिनों की संख्या पूरी हो जाए और मार्गदर्शन देने के लिए तुम ईश्वर का महिमागान करो और शायद तुम (ईश्वर के प्रति) कृतज्ञ हो।
एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि रोज़े का अर्थ स्वयं को खाने और पीने से रोकना मात्र नहीं है। खाने और पीने से रुकने के अतिरिक्त कुछ अन्य शर्तें भी हैं जिनका अनुपालन किया जाना चाहिए।
रोज़ा रखने की पहली शर्त उसकी नियत करना है। वास्तव में नियत हर काम की आत्मा होती है। इसका कारण यह है कि कोई भी उपासना बिना नियत के सही नहीं है और जो काम ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाए वह काम सबसे सही काम होता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने एक साथी हज़रत अबूज़र को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे अबूज़र! हर काम के लिए मनुष्य को पवित्र नीयत करनी चाहिए। नियत या उद्देश्य के पवित्र होने से उसका महत्व बढ़ता है। जो काम जितनी अच्छी नियत से किया जाएगा उसका महत्व उतना ही अधिक होगा। अच्छी या शद्ध नियत की तुलना में बुरी नियत होती है। बुरी नियत से अगर कोई अच्छा काम भी किया जाएगा तो भी उसका कोई महत्व नहीं होगा। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि प्रत्येक कर्म के लिए नियत होनी आवश्यक है।
रोज़ा रखने का मामला भी नियत से अपवाद नहीं है। रोज़े को ईश्वर का समीपता की नियत से करना चाहिए। जब मनुष्य यह सोच कर कोई काम करेगा कि वह इसे केवल ईश्वर की प्रसन्ता के लिए कर रहा है तो उसका महत्व बढ़ जाता है। रोज़ की नियत जितनी पाक होगी उसका महत्व उतना ही अधिक बढ़ता जाएगा। अगर ईश्वर की उपासना पूरी निष्ठा के साथ की जाए तो उसे ईश्वर अवश्य स्वीकार करता है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत ज़हरा (स) अपने एक ख़ुत्बे में कहती हैं कि ईश्वर ने रोज़े को तुम्हारे भीतर निष्ठा उत्पन्न करने के लिए अनिवार्य किया है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम भी इस संबन्ध में कहते हैं कि ईश्वर ने रमज़ान के महीने को आत्मा की शुद्धता और विचारों की पवित्रता के लिए निर्धारित किया है।
रोज़े की एक अन्य शर्त एटीकेट या संस्कारों का ध्यान रखना है। संस्कार, दूसरों के साथ किये जाने वाले उस व्यवहार को कहते हैं जिसमें शालीनता भी सम्मिलित हो। इस प्रकार के व्यवहार का संबन्ध मनुष्य के प्रशिक्षण से होता है। इसमें चाल-चलन, वार्ता, लोगों के साथ व्यवहार और इसी प्रकार की बहुत सी चीजें आती हैं। रोज़े के दौरान अच्छे व्यवहार का अर्थ है पापों से बचना, प्रायश्चित करना, झूठ से दूर रहना, पर नारी पर दृष्टि न डालना और हर प्रकार की बुराई से बचने का प्रयास करते रहना। रमज़ान में यह काम करना किसी सीमा तक सरल हो जाता है। रमज़ान के पवित्र महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने, प्रायश्चित करने, दान-दक्षिणा करने, लोगों की सहायता करने और अन्य भले काम करने से मनुष्य उच्च स्थान तक पहुंच सकता है।
रोज़ा रखने वाले के हृदय को रोज़े के दौरान रोज़े के साथ रहना चाहिए। जिस प्रकार से रोज़ेदार को कई प्रकार के कामों से बचना चाहिए उसी प्रकार से उसे अपने मन को भी हर बुरी सोच से दूर रखना चाहिए। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर, तौरेत में कहता है कि हे आदम की संतान! अपने समय और मन को मेरे लिए स्वच्छ करो। यदि तू एसा करता है तो हम तुम्हारे हृदय को संतोष्ट देते हुए तुमको आवश्यकता मुक्त कर देंगे। हम तुमको तुम्हारी आंतरिक इच्छाओं के बंधन से मुक्ति दिलाएंगे। तुम्हें जिस चीज़ की ज़रूरत होगी उसे हम स्वय उपलब्ध करवाएंगे और हम तुमको दूसरों पर निर्भर नहीं होने देंगे। हम तुम्हारे हृदय को अपने भय से भर देंगे ताकि किसी अन्य का भय तुम्हारे भीतर न रहने पाए।
रोज़े के लिए यह बहुत आवश्यक है कि रोज़ा केवल मनुष्य का न हो बल्कि उसके शरीर के सारे ही अंगों का भी रोज़ा होना चाहिए। इस बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जब तुम रोज़ा रखते हो तो फिर तुम्हारे शरीर के अंगों का भी रोज़ा होना चाहिए जैसे कानों, आखों, ज़बान और अन्य अंगों का रोज़ा। एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि तुम्हारे लिए आवश्यक है कि तुम रोज़े के दौरान एक-दूसरे से झगड़ा न करो, हसद न करो, ग़ीबत न करो, झूठी क़सम न खाओ, गाली न बको, दूसरों का अपमान न करो, अत्याचार से बचो, आशान्वित रहो निराशा से बचो, सदैव ईश्वर की याद में रहो, उसकी उपासना करते रहो। जहां तक हो सके शांत रहो। व्यर्थ की बातें करने से बचो, तुम्हारे मन में ईश्वर का भय होना चाहिए। अपने हृदय और आंखों को ईश्वर की याद में लगा दो। कुल मिलाकर तुमको स्वयं को शुद्ध करना चाहिए। जो बातें बताई गईं अगर उनका ध्यान रखा जाए तो रोज़ेदार ने वास्तव में ईश्वर के आदेश का पालन किया है। अब यदि इन बातों का अनुपालन न किया जाए या उनमें से कुछ पर अमल न किया जाए तो उसी अनुपात में उसका महत्व कम होता है।
ग़ीबत अर्थात पीठ पीछे बुराई करने से हालांकि रोज़ा बातिल नहीं होता किंतु इससे रोज़े के सकारात्मक प्रभाव कम होते हैं। इस प्रकार रोज़े का लक्ष्य ही प्रभावित होता है और मनुष्य तक़वे से दूर हो जाता है। झूठ बोलना, आरोप लगाना, मज़ाक़ उड़ाना, अनुचित बातें करना, विश्वासघात करना और इसी प्रकार की बुराइयां रोज़े के प्रभाव को कम करती हैं और उससे होने वाले लाभ में कमी आती है। वास्तविक रोज़ेदार वह होता है जो रोज़े के लक्ष्य को समझता है और उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है। इस प्रकार से वह रोज़े के मूल लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि जो व्यक्ति रोज़े की स्थिति में अपने कानों, आखों और ज़बान पर नियंत्रण रखे तो ईश्वर उसके रोज़े को स्वीकार करेगा।
रोज़े के संबन्ध में एक रोचक बात यह है कि जहां रोज़े में खाने और पीने से रोका गया है वहीं सहर और इफ़्तार में खाने पर बल भी दिय गया है। इस्लामी शिक्षाओं में सहर के समय खाने की बहुत अनुशंसा की गई है। कहा गया है कि सहर के समय कुछ न कुछ अवश्य खाना चाहिए चाहे एक खजूर ही क्यों न हो। इसी प्रकार उस रोज़े से रोक भी गया है जिसमें इफ़्तार में कुछ भी न खाया जाए और फिर सहर में भी कुछ न खाया जाए।
विख्यात धर्मगुरू शेख मुफ़ीद अपनी पुस्तक "मक़ना" में लिखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में आया है कि सहर खाना चाहिए चाहे एक खजूर या एक घूंट पानी हो क्यों न हो। रोज़ा खोलने या सहर के समय जो चीज़ खाई जाए उसका हलाल होना आवश्यक है। तफ़सीरे अलबयान में कहा गया है कि इफ़्तार के समय हलाल से कमाया हुआ एक लुक़्मा ईश्वर के निकट पूरी रात में उपासना करने से अधिक प्रिय है अतः रोज़ेदार को हराम खानों से बचना चाहिए क्योंकि हराम खाना, धर्म की दृष्टि में विष समान है।
पवित्र रमज़ान में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की उपासना के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि रसूले ख़ुदा, रमज़ान के अन्तिम दस दिनों में अपने सोने के बिस्तर को अलग रख देते थे और ईश्वर की उपासना में लग जाया करते थे। 22 रमज़ान की रात जब आ जाती थी तो वे अपने घरवालों को रात में सोने नहीं देते और उनसे उपासना करने को कहते। जब किसी को नींद आती तो उसपर पानी की छींटे डालते थे। इसी प्रकार से हज़रत फ़ातेमा ज़हरा भी रमज़ान में रातों को उपासना करतीं। वे अपने घरवालों को रात में जागने के लिए प्रेरित करती थीं। वे रात में घरवालों को खाना कम ही देती थीं ताकि उनको नींद न आए। पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा कहती थीं कि खेद है उस व्यक्ति पर जो इस महत्वपूर्ण रात की अनुकंपाओं से वंचित रह जाए।
अंत में यह कहा जा सकता है कि पवित्र रमज़ान में हमें अधिक से अधिक ईश्वर की उपासना करनी चाहिए, सांसारिक मायामोह से बचना चाहिए, बुराइयों से दूरी बनानी चाहिए, निर्धनों की अधिक से अधिक सहायता करते हुए लोगों के लिए भलाई करते रहना चाहिए।
ईरानी नए साल के पहले दिन इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का ख़ेताब, तेहरान में
नए ईरानी साल का पहला दिन (ईदे नौरोज़) रमज़ान मुबारक में पड़ने के मद्देनज़र, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के ख़ेताब का प्रोग्राम, 1 फ़रवरदीन 1403 हिजरी शम्सी (20 मार्च 2024) को पवित्र शहर मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में आयोजित नहीं होगा बल्कि ये प्रोग्राम 1 फ़रवरदीन को तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में आयोजित होगा, जिसमें अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़े शिरकत करेंगे।
याद रहे कि नब्बे के दशक के आरंभिक वर्षों में ईदे नौरोज़ के रमज़ान मुबारक में पड़ने और इसी तरह कोरोना महामारी के फैलाव के दौरान भी, नए हिजरी शम्सी साल के आग़ाज़ पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के ख़ेताब का प्रोग्राम, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में आयोजित नहीं हुआ था।
माहे रमज़ान के छठवें दिन की दुआ (6)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّٰهُمَّ لاَ تَخْذُلْنِی فِیهِ لِتَعَرُّضِ مَعْصِیَتِكَ وَلاَ تَضْرِبْنِی بِسِیاطِ نَقِمَتِكَ وَزَحْزِحْنِی فِیهِ مِنْ مُوجِباتِ سَخَطِكَ، بِمَنِّكَ وَأَیادِیكَ یَا مُنْتَهی رَغْبَةِ الرَّاغِبِینَ۔
ऐ माबूद ! आज के दिन मुझे छोड़ ना दें!कि
तेरी नाफ़रमानी में लग जाऊं और ना मुझे अपने ग़ज़ब का ताज़ियाना मार,आज के दिन मुझे अपने एहसान और नेमत से अपनी नाराज़गी के कामों से बचाए रखें ए रग़बत करने वालों की आखिरी उम्मीदगाह,
रमज़ान का हर पल इंसान के खुदा से करीब हौने का मौका
हौज़ा में तब्लीगी और सांस्कृतिक मामलों के प्रमुख उलमिया खावरान ने कहा: रमज़ान वह महीना है जिसे अल्लाह ताला ने अन्य महीनों की तुलना में सम्मान और महानता प्रदान की है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता के अनुसार, हौज़ा उलमिया खावरान में तब्लीगी और सांस्कृतिक मामलों के प्रमुख होजतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन अराश राजाबी ने पवित्र के अवसर पर "शिक्षक की उपस्थिति में शुद्ध क्षण" विषय पर बात की। रमज़ान का महीना। डुरान ने कहा: रमज़ान एक ऐसा महीना है जिसे भगवान ने अन्य महीनों की तुलना में सम्मान और महानता दी है। इसकी महानता इस कारण है कि इसका प्रत्येक क्षण मनुष्य के लिए ईश्वर की निकटता प्राप्त करने का अवसर है।
उन्होंने आगे कहा: रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरान प्रकट हुआ था। हमें यथासंभव उनके आशीर्वाद का आनंद लेना चाहिए।
ख़्वाज़ा उलमिया खावरान में उपदेश और सांस्कृतिक मामलों के प्रमुख ने कहा: सर्वशक्तिमान ईश्वर ने इस महीने को मनुष्य के लिए अपने ज्ञान का स्रोत घोषित किया है। रिवायतों में कहा गया है कि "अलसूम ली वा इन्ना अज्जी बाह" तो मालूम होता है कि खुदा ने इस महीने के तमाम लम्हों को अपने साथ खास बनाया है और बड़ा इनाम देने का वादा किया है।
मशहद में अंतर्राष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी का आयोजन 8 देशों ने लिया हिस्सा
अंतर्राष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी में मशहद के अबू सईद हॉल में 20 बूथों के साथ 8 से अधिक देशों के लोगों ने भाग लिया हैं इस कुरआन प्रदर्शनी में बच्चों और किशोरों के लिए विशेष कुरआन कार्यक्रम और मनोरंजन प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,12 मार्च से ईरान के मशहद शहर में 17वीं अंतर्राष्ट्रीय कुरान प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है और 23 मार्च की शाम को यह आधिकारिक तौर पर अधिकारियों की उपस्थिति में शुरू हुई।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय कुरआन प्रदर्शनी में 20 बूथ वाले मशहद के अबू सईद हॉल में 8 से ज़्यादा देशों के लोग हिस्सा ले रहे हैं।
गौरतलब है कि इस कुरआन प्रदर्शनी में बच्चों और किशोरों के लिए विशेष कुरान कार्यक्रम और मनोरंजन प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी।
संस्थान इरशाद ख़ुरासान रिज़वी के प्रमुख हमीद समदी ने इस प्रदर्शनी के बारे में बात करते हुए कहा इस प्रदर्शनी में सांस्कृतिक उत्पादों और कुरान शैली के साथ प्रस्तुत किया जायगा।
रमजान का महीना खुद को नैतिकता के गहनों से सजाने का महीना है: इमाम जुमा नजफ अशरफ
हुज्जत अल-इस्लाम वा मुस्लिमीन सैयद सद्र अल-दीन कबानची ने कहा: रमज़ान का महीना खुद को नैतिकता से सुशोभित करने का महीना है और यही कारण है कि नैतिकता के विद्वान इस महीने को आत्म-प्रशिक्षण के लिए एक नए साल की शुरुआत कहते हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, नजफ अशरफ जुमा हुजतुल इस्लाम वा मुस्लिमीन के इमाम सैयद सदरुद्दीन कबानची ने कल अपने शुक्रवार के प्रार्थना उपदेश में कहा: बिडेन ने इस सप्ताह अपने एक भाषण में कहा है कि हमने मध्य पूर्व पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया है। .ईरान के खतरों को नियंत्रित करने के लिए किया गया है।
उन्होंने कहा: बिडेन के अनुसार, यमन के खिलाफ युद्ध में अमेरिका के समर्थन का उद्देश्य आईएसआईएस का पूर्ण समर्थन, क्षेत्रीय देशों के राष्ट्रपतियों को उखाड़ फेंकना और नए राष्ट्रपतियों का चुनाव, रूस के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन का समर्थन करना है। गाजा के खिलाफ युद्ध। इजराइल के लिए मजबूत समर्थन है और ईरान के खतरे को नियंत्रित करने का प्रयास है।
हिज्जत अल-इस्लाम वा अल-मुसलमीन कबान्ची ने कहा: यद्यपि अमेरिका की नीति और विचारधारा पूरी दुनिया पर हावी होने की है, लेकिन सच्चाई यह है कि हम एक ऐसे दौर में हैं जहां राष्ट्र जाग गए हैं और इस्लाम के मार्गदर्शन में उनकी स्वतंत्रता शुरू हो गई है।
इमाम जुमा नजफ अशरफ ने अपने उपदेश के दूसरे भाग में कहा: अल्लाह के दूत, भगवान उन्हें आशीर्वाद दें और उन्हें शांति प्रदान करें, उन्होंने शाबान के आखिरी शुक्रवार को अपना उपदेश देते हुए 15 शैक्षिक और नैतिक मुद्दों का उल्लेख किया। सलीम ने निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया इस उपदेश में:
- भगवान आपको उपवास करने में मदद करें, 2. अल्लाह आपको कुरान पढ़ने में सक्षम बनाए, 3. कयामत के दिन रोजा रखते हुए भूख और प्यास को याद रखें। 4- गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें और दान दें। 5- अपने बड़ों का सम्मान करें. 6- छोटों पर दया करें. 7- दयालु बनो. 8- अपनी ज़ुबान को क़ाबू में रखें, 9- अपनी आँखों को वर्जनाओं से बचाएं। 10- जिन बातों को सुनना जायज़ नहीं है उनसे बचो, 11- अनाथों से सहानुभूति रखो. 12- अल्लाह से तौबा करो। 13- ईश्वर से प्रार्थना करें. 14- इस्तिग़फ़ार के ज़रिए अपने आप को जहन्नम की आग से बचाएं। 15- लंबे सजदे से अपने गुनाहों का बोझ हल्का करें।
उन्होंने कहा: यह सब दर्शाता है कि रमज़ान का महीना खुद को नैतिक आभूषणों से सजाने का महीना है और यही कारण है कि नैतिकता के विद्वान इस महीने को आत्म-प्रशिक्षण के लिए एक नए साल की शुरुआत कहते हैं और कहते हैं। रमज़ान का महीना इस बात का प्रतीक है वर्ष की शुरुआत उन लोगों के लिए है जो पूजा और दासता का मार्ग तय करना चाहते हैं और इस महान मार्ग पर चलना चाहते हैं।
दुनिया समझ गयी कि ग़ज़ा के अवाम मज़लूम और फ़ातेह हैं
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मंगलवार की सुबह पूरे मुल्क के नमाज़े जुमा के इमामों से मुलाक़ात की।
उन्होंने इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में रजब के महीने को साल के सबसे महान दिनों में बताया और सभी लोगों तथा मोमिनों को अल्लाह की इस अज़ीम नेमत और इसकी दुआओं से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने के साथ ही तौबा करने और गुनाहों की माफ़ी मांगने की सिफ़ारिश की।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ग़ज़ा के मसले और ग़ज़ा के अवाम के सब्र व दृढ़ता की ओर इशारा किया और इस बात पर बल देते हुए कि आज ग़ज़ा के मसले में जो एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है, अल्लाह की क़ुदरत साफ़ तौर पर नज़र आ रही है, कहा कि ग़ज़ा के मज़लूम और ताक़तवर लोग, दुनिया को अपनी जद्दोजेहद से प्रभावित करने में कामयाब रहे हैं और आज दुनिया इन लोगों और इन रेज़िस्टेंस गुटों को, महानायक के तौर पर देख रही है।
उन्होंने दुनिया की नज़रों में ग़जा के अवाम की मज़लूमियत के साथ ही उनकी फ़तह को उनके सब्र और अल्लाह पर भरोसे का फल और बरकत बताया और कहा कि इसके मुक़ाबले में आज दुनिया में कोई भी जंग में क़ाबिज़ व घटिया ज़ायोनी फ़ौज की फ़तह को नहीं मानता और दुनिया भर के लोगों और राजनेताओं की नज़र में यह शासन ज़ालिम, बेरहम, ख़ूंखार भेड़िये, पराजित और तबाह होने वाला है।
उन्होंने कहा कि ग़ज़ा के लोगों ने अपने प्रतिरोध से दुनिया के लोगों की निगाहों में इस्लाम का प्रचार किया और क़ुरआन मजीद को लोकप्रिय बना दिया है और हम अल्लाह से प्रतिरोध के मोर्चे ख़ास तौर पर ग़ज़ा के अवाम और मुजाहिदों के लिए दिन दूनी रात चौगुनी कामयाबी की दुआ करते हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह ग़ज़ा के अवाम के सपोर्ट में यमनी क़ौम और अंसारुल्लाह की सरकार के अज़ीम कारनामे को सराहते हुए कहा कि यमन के लोगों ने ज़ायोनी शासन के वजूद पर वार किया है और वो अमरीका की धमकी से नहीं डरे क्योंकि अल्लाह से डरने वाला इंसान, किसी दूसरे से नहीं डरता और उनका यह काम सचमुच अल्लाह की राह में जेहाद की मिसाल है।
उन्होंने उम्मीद ज़ाहिर की कि अल्लाह की मरज़ी से यह संगर्ष, दृढ़ता और जद्दोजेहद, फ़तह तक जारी रहेगी और अल्लाह उन सभी लोगों को अपनी मदद देगा जो उसकी मरज़ी की राह में क़दम बढ़ा रहे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब के एक दूसरे हिस्से में जुमे की इमामत को बहुत सख़्त कामों में से एक बताया क्योंकि जुमे के इमाम को अल्लाह की ओर ध्यान केन्द्रित रखना होता है और उसकी मरज़ी की प्राप्ति को अपना लक्ष्य बनाना होता है और साथ ही अवाम के हितों और उनकी रज़ामंदी को भी मद्देनज़र रखने की ज़रूरत होती है।
उन्होंने जुमे की नमाज़ में लोगों पर ख़ास ध्यान को इस्लाम में अवाम की बुनियादी पोज़ीशन की निशानी बताया और कहा कि इस्लामी सिस्टम में अवाम का किरदार और उनका हक़ इस तरह का है कि अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के बक़ौल अगर लोग न चाहें और न आएं तो उनके जैसे हक़दार शख़्स की ज़िम्मेदारी भी हट जाती है लेकिन अगर लोगों ने चाहा तो ज़िम्मेदारी क़ुबूल करना उस पर वाजिब है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह मुल्क और वैश्विक वाक़यों, दुश्मन की साज़िशों और योजनाओं, समाज की ज़रूरतों और तथ्यों से लोगों को आगाह करने को जुमे की नमाज़ के ख़ुतबों की ज़रूरी बातों का हिस्सा क़रार दिया।
उन्होंने जुमे की नमाज़ के ख़ुतबों के लिए ज़रूरी बातों के चयन और सुनने वालों की पहचान पर ताकीद करते हुए आज के जवानों के मन के मुख़्तलिफ़ क़िस्म की बातों व प्रोपैगंडों का निशाना बनने की ओर भी इशारा किया और कहा कि ज़रूरी बातों के चयन और सुनने वाले की मानसिकता की सही पहचान के लिए जुमे के इमाम का लोगों के साथ रहना और उनके साथ घुलना मिलना ज़रूरी है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने जुमे की इमामत की अहम ज़िम्मेदारी को अदा करने के लिए लोगों से हमदर्दी और उनसे लगाव को दूसरा ज़रूरी तत्व बताया।
उन्होंने ईरानी अवाम की बेमिसाल ख़ुसूसियतों का भी ज़िक्र किया और कहा कि हमारे अवाम, बहुत अच्छे और मोमिन हैं और जो लोग कुछ ज़ाहिरी बातों की पाबंदी नहीं करते उनका दिल अल्लाह के साथ और आत्मिक मामलों की ओर उनका ध्यान है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दुश्मनों के तरह तरह के हमलों के मुक़ाबले में ईरान और इस्लामी सिस्टम की रक्षा के मुख़्तलिफ़ मैदानों में मौजूदगी के लिए तैयारी और वफ़ादारी को ईरानी अवाम की एक और नुमायां ख़ुसूसियत बताया और कहा कि जब भी मुल्क और इंक़ेलाब को रक्षा की ज़रूरत पड़ी हमारे अवाम ने सड़कों पर आकर सब्र और सपोर्ट का प्रदर्शन किया यहाँ तक कि जंग के मैदान में जाकर अपनी वफ़ादारी भी दिखाई है।
उन्होंने चुनावों में अवाम की भरपूर शिरकत पर बल देते हुए, चुनाव में शिरकत को, क़ानून बनाने और उसे लागू करने वालों के चयन के लिए अवाम का हक़ बताया।
भारतीय नौसेना ने 35 जलदस्युओं को पकड़ा
भारतीय तट से 1400 मील दूर एक व्यापारी जहाज को बंधक बनाने वाले जलदस्युओं पर नौसेना ने ऐसा हमला किया जिसके कारण उन्हें सरेंडर होने पर बाध्य होना पड़ा।
भारतीय नौसेना ने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर बंधक जहाज के चालक दल के 17 सदस्यों की सुरक्षित रिहाई भी सुनिश्चित की। समुद्री लुटेरों के खिलाफ अपने इस अभियान के लिए नौसेना ने अपने पी-8I समुद्री गश्ती विमान, फ्रंटलाइन जहाज आईएनएस कोलकाता और आईएनएस सुभद्रा और मानव रहित हवाई यान को तैनात किया।
अभियान के लिए सी-17 विमान से विशिष्ट मार्कोस कमांडो को उतारा गया। इससे पहले, नौसेना ने सोमालिया के पूर्वी तट पर जहाजों के अपहरण के सोमालियाई समुद्री डाकुओं के एक प्रयास को विफल कर दिया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार समुद्री डाकू रुएन नामक एक मालवाहक जहाज पर सवार थे जिसका करीब तीन महीने पहले अपहरण किया गया था।
भारतीय नौसेना के प्रवक्ता ने कहा कि आईएनएस कोलकाता ने पिछले 40 घंटों में ठोस कार्रवाई करके सभी 35 जलदस्यु को सफलतापूर्वक घेर लिया और आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया तथा बंधक बनाए गए जहाज से चालक दल के 17 सदस्यों की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित की।
नौसेना ने बताया कि एमवी रुएन का सोमालियाई जलदस्युओं ने 14 दिसंबर को अपहरण कर लिया था। पहले के बयान में नौसेना ने बताया था कि जहाज से भारतीय युद्धपोत पर गोलीबारी की गई और भारतीय जहाज की ओर से आत्म रक्षा में और नौवहन तथा नाविकों को जलदस्युओं के खतरे से बचाने के लिए आवश्यक न्यूतनम बल के साथ समुद्री डकैती से निपटने के वास्ते अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार कार्रवाई की गई। नौसेना ने कहा है कि जहाज पर सवार समुद्री डाकुओं से आत्मसमर्पण करने तथा उनके द्वारा बंधक बनाए जहाज तथा नागरिक को रिहा करने को कहा गया।
इस्राईल का आज फिर सीरिया पर हमला
सीरिया के सैनिक सूत्र ने बताया है कि जायोनी सरकार के युद्धक विमानों ने आज सुबह लगभग 12 बजकर 42 मिनट पर दमिश्क के पास हमला किया जो एक सुरक्षा कर्मी के घायल होने और कुछ क्षति पहुंचने का कारण बना।
समाचार एजेन्सी फार्स ने सीरिया की सरकारी समाचार एजेन्सी सना के हवाले से बताया है कि जायोनी दुश्मन ने गोलान पहाड़ की ऊंचाइयों की ओर से दक्षिण के कुछ क्षेत्रों को लक्ष्य बनाया। इसी प्रकार सीरिया के सैनिक सूत्र ने बताया है कि सीरिया के एअर डिफेन्स ने दुश्मनों के कई मिसाइलों को हवा में ही मार गिराया।
कुछ समय पहले लेबनान के अलमयादीन टीवी चैनल ने भी रिपोर्ट दी थी कि सीरिया के एअर डिफेन्स सिस्टम मिसाइलों को अलकलून की ऊंचाइयों और दमिश्क के समीप अलकस्तल क्षेत्र में मिसाइलों को निष्क्रिय बनाने के प्रयास में हैं।
जायोनी युद्धक विमान लेबनान की वायु सीमा का उल्लंघन करके या सीरिया की अतिग्रहित गोलान पहाड़ की ऊंचाइयों का प्रयोग करके सीरिया के पूरब और उत्तर में हमला करते हैं। सीरिया की सरकार ने बारमबार एलान किया है कि जायोनी सरकार और उसके क्षेत्रीय और पश्चिमी घटक आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रहे हैं। सीरिया की सेना ने अब तक बारमबार आतंकवादी गुटों के पास से इस्राईल निर्मित हथियारों की खेप पकड़ी है।