رضوی

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ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी नामक झूठी किताब, पिछले साल ईरान में पश्चिम के समर्थन से हुए उपद्रव से संबन्धित ईरान विरोधी झूठ का पुलंदा है।

ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी नामक किताब को फ़ारसी भाषी 5 पश्चिमी संचार माध्यमों ने केवल 46 दिनों के घटनाक्रम के आधार पर अपने हिसाब से तैयार किया है।

झूठी किताब ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी

ईरान की छवि को ख़राब करने के उद्देश्य से फ़ारसी भाषा में एक किताब तैयार की गई है जिसका शीर्षक है, "ज़न,ज़िंदगी, आज़ादी" जिसका हिंदी में अनुवाद होगा-महिला,जीवन, स्वतंत्रता।

पार्सटुडे के अनुसार ज़न, ज़िंदगी, आज़ादी नामक झूठी किताब, पिछले साल ईरान में पश्चिम के समर्थन से हुए उपद्रव से संबन्धित ईरान विरोधी झूठ का पुलंदा है।  ईरान विरोधी कुछ पश्चिमी देशों ने पिछले साल 2023 में ईरान के विरुद्ध एक षडयंत्र लागू किया था।  इस षडयंत्र से उनका उद्देश्य, ईरान की आर्थिक समस्याओं की आड़ में यूनिवर्सिटियों को लक्ष्य बनाकर देश को गृहयुद्ध में झोंकना था।

वाइस आफ अमरीका की सरकारी कर्मचारी महीस अलीनेज़ाद जो ईरान विरोधी अभियान के मुख्य तत्वों में से एक हैं।

ईरान विरोधी पश्चिमी धड़ा, अपने षडयंत्र को लागू कर ही रहा था कि इसी बीच शहरीवर माह अर्थात अगस्त 2023 के अंत में पुलिस की कस्डटी में महसा अमीनी नामक ईरानी लड़की की मौत हो जाती है।वह ईरानी कुर्द जाति से संबन्धित थी जो एक अल्पसंख्यक समुदाय है।  इस मुद्दे ने पश्चिमी नेताओं को एक अच्छा अवसर उपलब्ध करवा दिया।  इस बीच औपनिवेशिक इतिहास रखने वाले देशों से संबन्धित फारसी भाषी चैनेलों ने अपनी गतिविधियां तेज़ कर दीं और वे चौबीसों घंटे ईरान विरोधी दुष्प्रचार में लग गए।  उदाहरण स्वरूप बीबीसी के फारसी भाषी टीवी चैनेल ने अपने चेहरे पर पड़ी तथाकथित निष्पक्षता की नक़ाब हटाते हुए ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध कमर कस ली।

ईरान में फैलाई गई अशांति के काल में अर्थात 14 सितंबर 2023 से 31 अक्तूबर 2023 तक 46 दिनों के भीतर ईरान विरोधी फारसी भाषी 5 संचार माध्यमों ने 38000 झूठ फैलाए।  वे ईरान विरोधी पश्चिमी संचार माध्यम, जिन्होंने 46 दिनों के भीतर 38000 से अधिक झूठ फैलाए उनके नाम इस प्रकार से हैं।  ब्रिटेन सरकार से संबन्धित बीबीसी की फार्सी सेवा, सऊदी अरब और इस्राईल का आशीर्वाद प्राप्त "ईरान इंटरनैश्नल" चैनेल, अमरीकी सरकार से संबन्धित "वाइस आफ अमेरिका" और "रादियो फर्दा" तथा ब्रिटेन और इस्राईल की कृपाद्ष्टि से संचालित "मनोतो" नामक चैनेल।

"ज़न, ज़िंदगी, आज़ादी" नामक उपद्रव से कुछ पश्चिमी राजनेताओं का दिखावटी समर्थन

झूठ का पुलिंदा, ज़न,ज़िंगदी,आज़ादी नामक किताब पिछले वर्ष उपद्रव से संबन्धित उन झूठी बातों का संग्रह है जिसमें एकल ईरान को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से ईरानी जनता की शांति एवं सुकून को छीनने के प्रयास किये गए।

एक उपद्रवी सड़कों और राजमार्गों को बंद करते हुए

इस किताब के पहले अध्याय में पश्चिम द्वारा तैयार की गई योजना के अन्तर्गत आम जनमत को भ्रमित करने के लिए ख़ूब बढा-चढाकर हत्याओं का उल्लेख किया गया।  यहां तक कि उस दौरान ईरान के किसी भी भाग में अगर किसी की भी मौत होती थी तो उसको भी यही दिखाया जाता था कि मानो उसको उपद्रव के दौरान ईरान की सरकार ने मारा है।

सावर्जनिक संपत्तियों, बैंकों और मस्जिदों को नुक़सान पहुंचाते उपद्ववी

उनके लिए उस समय ख़ूबसूरत लड़कियों का अधिक महत्व था क्योंकि उनके द्वारा गढ़े गए नारे ज़न-ज़िंदगी,आज़ादी से वे अधिक निकट दिखाई देती थीं।  इस दौरान ईरान में जो लोग किसी एक्सीडेंट में मर जाते या जो लोग आत्महत्याएं कर रहे थे उन सबको एसे दिखाया जा रहा था कि मानो वे पुलिस कर्मियों के हाथों मारे गए हैं।  बात तो इससे भी बहुत आगे बढ चुकी थी।  यहां तक कि बहुत से वे लोग जो ज़िंदा थे उनको भी मुर्दा दिखाया गया।  इसके अतिरिक्त जो लोग ग़ुडों या लफ़ंगों के हाथो मारे गए उनको भी ईरान की पुलिस के खाते में ही डाल दिया गया।

ज़न,ज़िंदगी,आज़ादी नामक आन्दोलन के समर्थक एटीएम को नष्ट करते हुए।

अमरीका का समर्थन प्राप्त ईरान विरोधी अभियान ने उपद्रव के दौरान जैसे ही मृतकों के बारे में अफवाहें आरंभ कीं तो जनमत को भड़काने, लोगों को निराश करने और अधिकारियों तथा जनता के बीच दूरी पैदा करने के उद्देश्य से व्यापक स्तर पर झूठ फैलाना शुरू कर दिया गया।  जब इस काल्पनिक प्रक्रिया ने अपने हिसाब से इस्लामी गणतंत्र ईरान की समाप्ति को निकट देखा तो उसने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की बीमारी और ईरान के अधिकारियों के पश्चिम की ओर फरार होने की झूठी ख़बरें फैलानी शुरू कर दीं

उपद्रव के दौरान देश में अधिक से अधिक अशांति को दर्शाने के लिए पुरानी फ़िल्मों या अलग-अलग तिथियों के चित्रों को एक साथ दिखाया जाने लगा और फिर इनके माध्यम से झूठी ख़बरों की बमबारी की गई।  दुश्मन के संचार माध्यमों ने व्यापक स्तर पर जाने माने लोगों, विद्धार्थियों और पत्रकारों की गिरफ़्तारियों की झूठी ख़बरों के साथ ही जेल के बंदियों को यातानाएं देने जैसी झूठी ख़बरों को भी खूब चलाया।

अमरीका और पश्चिम ने अपने देशी और विदेशी तत्वों को अलर्ट करने के साथ ही आम लोगों को भड़काने के लिए जो उपाय ढूंढे थे उनमे से एक था सेलिब्रिटी का प्रयोग करना ताकि उनके माध्यम से दुष्प्रचार की आग तेज़ी से भड़काई जा सके।

सेलिब्रिटीज़ में कुछ एसे भी थे जो पहले से विदेशों में रह रहे थे और जिनकी ईरान विरोधी गतिविधियां पूर्व में ही सिद्ध हो चुकी थीं।  इनमें से कुछ एसी भी सेलिब्रिटीज़ थीं जो ईरान विरोधी प्रक्रिया का समर्थन करने के बावजूद देश के भीतर से अपनी गतिविधियां अंजाम दे रही थीं। कुछ एसे चेहरे भी थे जिनका पूरा प्रयास यह था कि किसी तरह से वे पश्चिम का आशीर्वाद प्राप्त करने में सफल हो जाएं।  इन्होंने इस काम के लिए ईरानी जनता और ईरान की शासन व्यवस्था को क्षति पहुंचाने के साथ ही अमरीका और यूरोप में अपनी नागरिक के काम को सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की।

इसी बीच कुछ एसे व्यक्तित्व भी दिखाई दिये जो क्रांति विरोधी मीडिया के दबाव में आकर सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विवश थे हालांकि उनमें से कुछ माहौल से प्रभावित भी दिखाई दिये।

 

      

इस्लामी सहयोग संगठन ओआईसी ने एक बयान जारी कर कहा है कि बैतुल मुक़द्दस, फिलिस्तीन का अभिन्न अंग और उसकी राजधानी है और मस्जिदुल अल-अक्सा मुसलमानों का एकमात्र इबादत स्थल है।

इस्लामी सहयोग संगठन के बयान के मुताबिक, ज़ायोनी शासन मस्जिदुल अक्सा की सीमाओं पर लोहे की सलाखें लगाकर और इस पवित्र स्थान तक पहुंचने के लिए बाधाएं खड़ी करके पहले क़िबला की कानूनी और ऐतिहासिक स्थिति को बदलना चाहता है।

ओआईसी के इस बयान में ज़ायोनियों की इन हरकतों को अस्वीकार्य और निंदनीय बताया गया है।

इस्लामी सहयोग संगठन के बयान में मस्जिदुल अल-अक्सा और उसके प्रांगणों तथा वहां मौजूद नमाज़ियों पर ज़ायोनी कट्टरपंथियों और सैनिकों के हमलों को अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया है।

बयान में कहा गया है कि ज़ायोनी शासन, मस्जिदुल अल-अक्सा और मुसलमानों और ईसाइयों के धार्मिक और पवित्र स्थानों पर लगातार घुसपैठ करके अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है जो अंतरराष्ट्रीय क़नून के खिलाफ है।

इस्लामी सहयोग संगठन के बयान में कहा गया है कि मस्जिदुल अल-अक्सा और बैतुल मुक़द्दस में पवित्र स्थानों का अनादर और इबादतों की स्वतंत्रता के उल्लंघन के परिणामों की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से ज़ायोनी शासन पर है।

इस बयान में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की गई है कि वह अपनी ज़िम्मेदारियां निभाए और ज़ायोनी शासन की कार्रवाइयों को रोकें जो पूरे क्षेत्र में हिंसा और तनाव पैदा कर रहा हैं और सुरक्षा तथा स्थिरता को प्रभावित कर रहा है।

यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रभारी जोसेफ बोरेल ने ग़ज़ा में इस्राईल के नरसंहार को लेकर चेतावनी दी है।

एक इंटरव्यू में जोसेफ़ बोरेल ने कहा कि आज ग़ज़ा में युद्ध के कारण ज़ायोनी शासन के प्रति दुनिया का नज़रिया बदल रहा है और तेल अवीव का समर्थन कम हो रहा है।

उन्होंने कहा कि जिसे मैं विश्वास के साथ नरसंहार कह सकता हूं, उससे दुनिया के लोग चिंतित हैं।

जोसेफ बोरेल ने कहा कि 30 हज़ार से अधिक नागरिक मारे गए हैं जो कल्पना से परे है।

उन्होंने दावा किया कि यूरोपीय संघ ने फ़िलिस्तीनी मुद्दे के लिए कुछ प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा है जिसमें दो-राज्य समाधान भी शामिल है जिसमें फिलिस्तीनियों को अपनी ज़मीन और सरकार रखने का अधिकार होगा।

जोसेफ बोरेल ने ग़ज़ा में मानवीय संकट पर चिंता व्यक्त की और कहा कि ज़ायोनी शासन भूख को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा कि लाखों लोग सचमुच भूख से मर रहे हैं और कई बच्चे भी कुपोषण से पीड़ित हैं। इस वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं।

उन्होंने ग़ज़ा में सहायता में रुकावट को भोजन और भुखमरी का मुख्य कारण बताया और कहा कि यह कहा जा सकता है कि इस्राईल भूख को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस बात के बहुत से सबूत हैं कि सीमाओं पर बाधाओं के कारण सहायता आपूर्ति ग़ज़ा तक नहीं पहुंच पा रही है और इस संबंध में इस्राईल के दावों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

भारत के निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया है।

इस बार भी सात चरणों में मतदान कराये जाएंगे जबकि रिज़ल्ट चार जून को घोषित किए जाएंगे। चुनाव आयोग ने साथ ही चार राज्यों में भी विधानसभा चुनाव कराए जाने का ऐलान कर दिया है।

543 सीटों के लिए 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और एक जून को मतदान होगा. 19 अप्रैल को पहले चरण में 102 सीट, 26 अप्रैल को दूसरे चरण में 89 सीट, 7 मई को तीसरे चरण में 94 सीट, 13 मई को चौथे चरण में 96 सीट, 20 मई को पांचवें चरण में 49 सीट, 25 मई को छठे चरण में 57 सीट और एक जून को सातवें और अंतिम चरण में 57 सीटों पर वोटिंग होगी।

साथ ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव भी कराए जाएंगे। आंध्र प्रदेश की 175 विधानसभा सीटों के लिए 13 मई को मतदान होगा. साथ ही अरुणाचल प्रदेश की 60 और सिक्किम की 32 विधानसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे, ओडिशा विधानसभा चुनाव चार चरणों में होंगे।

वहीं लोकसभा चुनावों के साथ विभिन्न राज्यों में 26 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव भी होंगे।

मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 16 जून को खत्म हो रहा है और नई लोकसभा का गठन उससे पहले होना है। आंध्र प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा में विधानसभाओं का कार्यकाल भी जून में अलग-अलग तारीखों पर खत्म हो रहा है।

चुनाव की घोषणा करते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि हमारी टीम अब पूरी हो चुकी है, हम भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव के लिए पूरी तरह तैयार हैं, हमारा वादा इस तरह से राष्ट्रीय चुनाव कराने का है, जिससे विश्व स्तर पर भारत का गौरव बढ़े।

निर्वाचन आयोग ने कहा कि देश में 97 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं, 10.5 लाख से अधिक मतदान केंद्र हैं, 55 लाख ईवीएम का इस्तेमाल होगा, कुल मतदाताओं में 49.7 करोड़ पुरुष, 47.1 करोड़ महिलाएं, 48 हजार ट्रांसजेंडर शामिल हैं, वहीं ऐसे मतदाताओं की संख्या 1.8 करोड़ है, जो पहली बार मतदान करेंगे।

उन्होंने कहा कि हमारी मतदाता सूची में 85 साल से अधिक उम्र के 82 लाख और 100 साल से अधिक उम्र के 2.18 लाख मतदाता शामिल हैं. देशभर में मतदाता लिंगानुपात 948 है, 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं की संख्या अधिक है, पूरे भारत में 85 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाताओं और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए घर से मतदान की सुविधा उपलब्ध होगी।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि इस बार 85 साल से अधिक उम्र के लोग घर बैठकर वोट कर सकते हैं, 85 वर्ष से अधिक उम्र के जितने भी मतदाता हैं, उनके घर जाकर मतदान करवाया जाएगा। इस बार देश में पहली बार ये व्यवस्था एक साथ लागू होगी कि जो 85 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाता हैं और जिन्हें 40 प्रतिशत से अधिक की विकलांगता है, उनके पास हम फॉर्म पहुंचाएंगे, अगर वो मतदान का ये विकल्प चुनते हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं है. हिंसा से जुड़ी कोई भी शिकायत 100 मिनट में दूर होगी, हमारा वादा इस तरह से राष्ट्रीय चुनाव कराने का है, जिससे विश्व स्तर पर भारत का गौरव बढ़े, उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गए हैं. अपराधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है, वहीं, सीमाओं पर ड्रोन से निगरानी होगी, अब तक 3400 करोड़ का कैश पकड़ा गया था. कुछ राज्यों में धन कुथ में बल का प्रयोग ज्यादा हो रहा है।

इस संसार के अन्त में लौटने का कोई मार्ग नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे अविकसित व विकरित बच्चा विकास करने एवं विकार दूर करने के लिये पुनः माता के पेट में नहीं जा सकता तथा पेड़ से टूटा हुआ फल दोबारा पेड़ में नहीं लग सकता।

यह एक प्रकार से हमारे लिये चेतावनी है कि हम जान लें कि सम्भव है कि एक पल में सब कुछ समाप्त हो जाये, तौबा व प्रायश्चित के मार्ग बन्द हो जायें, भले कर्मों का कोई अवसर न बचे और हम लालसा और हसरत के साथ इस संसार से चले जायें। अतः रमज़ान के पवित्र समय को हमें अपने नैतिक विकास का महत्वपूर्ण अवसर समझना चाहिये।

हज़रत अली (अ) का कथन है कि पापी विचारों से दूरी मन का रोज़ा है जो पेट के रोज़े अर्थात भूख-प्यास सहन करने से बढ़ कर होता है।

अब आइये पैगम्बरे इस्लाम(स) के पौत्र इमाम सज्जाद(अ) की दुआ मकारेमुल अखलाक़ अर्थात शिष्टाचार व नैतिकता के चरण का एक भाग सुनते हैः हे ईश्वर मेरे प्रति पापियों एवं अत्याचारियों की ईष्या को प्रेम व मित्रता में परिवर्तित कर दे।

ईष्या किसी के पास से उस अनुकंपा के समाप्त हो जाने की आरज़ू को कहते हैं जिसे वह अनुकंपा प्राप्त होनी ही चाहिये। जो लोग ईश्वर एवं इस्लामी शिक्षाओं पर पूर्ण विश्वास रखते हैं वे कभी दूसरों के पास से अनुकंपाओं के समाप्त होजाने की कामना नहीं करते बल्कि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि स्वयं उनको भी वह अनुकंपा प्राप्त हो जाये।

परन्तु पाखंण्डी एवं बिना ईमान वाले लोग ईर्ष्या करते हैं और चाहते हैं कि दूसरों के पास कोई अच्छी वस्तु या गुण न रहे। पैगम्बरे इस्लाम(स) के एक अन्य पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़(अ) का कहना है कि ईमान वाला व्यक्ति ईर्ष्या नहीं करता बल्कि इच्छा करता है कि ईश्वर उसे भी वैसी ही अनुकंपा प्रदान करदे जबकि पाखंण्डी ईर्ष्या करता है और अनुकंपा के अन्त की इच्छा करता है।

इस आधार पर दूसरों को प्राप्त अनुकंपाओं से ईर्ष्या का कारण अधिकतर धन या पद होता है परन्तु इमाम सज्जाद(अ) के पास न तो धन था कि ईर्ष्यालु लोग ईर्ष्या करते न ही शासन व सरकार में उन्हें कोई पद प्राप्त था कि जलने वाले उससे जलते, इस लिये उनसे शत्रुओं की ईर्ष्य़ा का कारण उनकी उत्तम क्षमतायें, महान गुण, अद्वतीय आध्यात्मिक स्थान एवं ईश्वर पर उनका दृढ़ विश्वास था।

इमाम की दृष्टि में मनुष्य के लिये सर्वश्रेष्ठ मूल्य अपने पालनहार से उसका विशुद्ध संपर्क है और इमाम के पास यह अनुकंपा मौजूद थी और इसी लिये वे किसी भी भौतिक व सांसारिक वस्तु की परवा नहीं करते थे। इस्लाम में यही वास्तविक वैराग है।

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 17:01

बंदगी की बहार- 4

रमज़ान के महीने ने अपनी अपार विभूतियों और असीम ईश्वरीय क्षमा व दया के साथ हमें अपना अतिथि बनाया है।

इस पवित्र महीने की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों ने अनेक हदीसें बयान की हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपनी एक दुआ में रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों के बारे में कहते हैं। प्रभुवर! हमें इस महीने की विशेषताओं को समझने और इसका सत्कार करने का सामर्थ्य प्रदान कर।

रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों को समझने का अर्थ इस महीने की वास्तविकता को समझना है। जो भी इस महीने के गुणों को सही ढंग से समझ लेगा और इस महीने की महानता को पहचान जाएगा निश्चित रूप से वह अपना समय इसमें निष्ठापूर्ण ढंग से उपासना में व्यतीत करेगा। रमज़ान के महीने की एक विशेषता, इसका आध्यात्मिक स्थान और ईश्वर के निकट इसकी विशेष स्थिति है। अनन्य ईश्वर ने इस महीने को एक पवित्र, शीतल व उबलते हुए पानी के सोते की तरह रखा है ताकि उसके बंदे एक महीने के दौरान अपनी आत्मा को उसमें धोएं, अपने अस्तित्व से पापों को दूर करें और ईश्वरीय प्रकाश की ओर आगे बढ़ें। यह महीना, पवित्र होने और आध्यात्मिक छलांग लगाने का है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि अगर कोई बंदा रमज़ान के महीने के महत्व को समझ जाता तो यही कामना करता कि पूरा साल, ईश्वर के आतिथ्य का महीना रहे।

रमज़ान के पवित्र महीने की एक अन्य विशेषता इसमें क़ुरआने मजीद व अन्य बड़ी आसमानी किताबों का भेजा जाना है। क़ुरआने मजीद, तौरैत, इन्जील, ज़बूर और हज़रत इब्राहीम व हज़रत मूसा की किताबें इसी पवित्र महीने में भेजी गई हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं। पूरा क़ुरआन रमज़ान के महीने में शबे क़द्र में एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ अर्थात भेजा गया। फिर वह बीस साल में क्रमबद्ध ढंग से उन पर नाज़िल हुआ। हज़रत इब्राहीम की किताब, रमज़ान महीने की पहली रात में, तौरैत, रमज़ान के छठे दिन, इंजील, रमज़ान के तेरहवें दिन और ज़बूर रमज़ान की 18वीं तारीख़ को नाज़िल हुई है।

 

रमज़ान महीने की विशेषताएं और उसके गुण असीम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की हदीस है कि रमज़ान के महीने में की गईं भलाइयां स्वीकृत होती हैं और बुराइयां क्षमा की जाती हैं। जिसने रमज़ान के महीने में क़ुरआने मजीद की एक आयत की तिलावत की वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने अन्य महीनों में पूरे क़ुरआन की तिलावत की हो। रमज़ान का महीना, विभूति, दया, क्षमा, तौबा व ईश्वर की ओर लौटने का महीना है। अगर किसी को रमज़ान के महीने में क्षमा न किया गया तो फिर किस महीने में क्षमा किया जाएगा? ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह इस महीने में तुम्हारे रोज़ों को स्वीकार करे और इसे तुम्हारी आयु का अंतिम वर्ष क़रार न दे, तुम्हें उसके आज्ञापालन का सामर्थ्य प्रदान करे और उसकी अवज्ञा से तुम्हें दूर रखे कि निश्चित रूप से प्रार्थना के लिए ईश्वर से बेहतर कोई नहीं है।

रमज़ान महीने की एक अन्य अहम विशेषता यह है कि ईश्वर इस विभूतियों भरे महीने में, ईमान वालों पर शैतानों को वर्चस्व को रोक देता है और उन्हें बेड़ियों में जकड़ देता है। यही कारण है कि इस महीने में मनुष्य की आत्मा अधिक शांत रहती है और वह इस स्वर्णिम अवसर को अपनी आत्मा के प्रशिक्षण और अध्यात्म तक पहुंच के लिए प्रयोग कर सकता है। दयावान ईश्वर ने आत्मिक व आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक ईमान वालों की पहुंच के लिए रमज़ान के पवित्र महीने और रोज़ों में ख़ास विशेषताएं रखी हैं। उसने न खाने और न पीने जैसी सीमितताओं के मुक़ाबले में अपने बंदों के लिए अत्यंत मूल्यवान पारितोषिक दृष्टिगत रखे हैं जिन्हें बयान करना संभव नहीं है।

इस ईश्वरीय आतिथ्य में न केवल यह कि उपासनाओं का पूण्य कई गुना अधिक मिलता है बल्कि इस महीने में ईमान वालों का सोना और सांस लेना भी उपासना और ईश्वरीय गुणगान समझा जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का कथन है कि इस महीने में तुम्हारी सांसें ईश्वर का गुणगान और तुम्हारी नींद ईश्वर की उपासना है। ईश्वर की यह विशेष व बेजोड़ कृपादृष्टि साल के किसी भी अन्य महीने या दिन में दिखाई नहीं देती।

इस पवित्र महीने में रोज़ा रखने का बहुत अधिक पुण्य और विभूतियां हैं। रोज़ा रखने से मनुष्य की आत्मा कोमल होती है, उसका संकल्प मज़बूत होता है और उसकी आंतरिक इच्छाएं नियंत्रित होती हैं। अगर इंसान अपनी वासना और आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित कर ले और उनकी लगाम अपने हाथ में ले ले तो फिर वह आध्यात्मिक पहलू से अपना प्रशिक्षण कर सकता है और वांछित पवित्रता व परिपूर्णता तक पहुंच सकता है। अगर इंसान अपनी प्रगति की मार्ग की बाधाओं को एक एक करके हटाना और अपने आपको शारीरिक वासनाओं में व्यस्त नहीं रखना चाहता तो रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखना उसके लिए सबसे अच्छा अवसर है। क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 183 में कहा गया हैः हे ईमान वालो! तुम पर रोज़े उसी तरह अनिवार्य किए गए जिस प्रकार तुमसे पहले वालों पर अनिवार्य किए गए थे कि शायद तुममें ईश्वर का भय पैदा हो जाए।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से रमज़ान के महीने में रोज़े की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः लोगों पर रोज़ा इस लिए अनिवार्य किया गया ताकि वे भूख और प्यास की पीड़ा और तकलीफ़ को समझ सकें और फिर प्रलय की भूख, प्यास और अभाव की पीड़ाओं को समझ सकें जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि तुम रोज़े में अपनी भूख और प्यास के माध्यम से प्रलय में अपनी भूख और प्यास को याद करो। यह याद मनुष्य को प्रलय के लिए तैयारी करने पर प्रेरित करती है और वह ईश्वर की प्रसन्नता के लिए अधिक कोशिश करता है। यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने रोज़ा रखने वालों को यह मूल्यवान शुभ सूचना दी है कि रमज़ान के पवित्र महीने का आरंभ, दया है, उसका मध्यम भाग, क्षमा है और उसका अंत नरक की आग से मुक्ति है।

रमज़ान का महीना बड़ी तेज़ी से गुज़रता है और हम उन राहगीरों की तरह हैं जिन्हें इस मार्ग पर बिना निश्चेतना के, सबसे अच्छे कर्मों और सबसे अच्छे व्यवहार के साथ आगे बढ़ना है। चूंकि इस्लाम में मनुष्य का सबसे बड़ा दायित्व आत्म निर्माण और अपने आपको बुराइयों से पवित्र करना है इस लिए रमज़ान का महीना, आत्म निर्माण, नैतिकता व मानवता तक पहुंचने का सबसे अच्छा अवसर है। आत्म निर्माण के लिए जिन बातों की सिफ़ारिश की गई है उनमें से एक अहम बात, अधिक बोलने से बचना है। मौन व कम बात करना ऐसा ख़ज़ाना है जो मनुष्य के मन में ईश्वर की पहचान के दरवाज़े खोल देता है। रमज़ान के महीने में, जो ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है, यह सिफ़ारिश और बढ़ जाती है कि कहीं रोज़ेदार व्यक्ति दूसरों की बुराई करने, उन पर आरोप लगाने और झूठ बोलने जैसे पापों में न ग्रस्त हो जाए।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम एक गली से गुज़र रहे थे कि उन्होंने एक महिला की आवाज़ सुनी जो अपनी दासी को गालियां दे रही थी। महिला ने सुन्नती रोज़ा भी रखा हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने आदेश दिया कि कुछ भोजन लाया जाए। फिर आपने उस महिला से कहा कि इसे खा लो। उसने कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर! मैं रोज़े से हूं। उन्होंने कहा कि तू किस प्रकार रोज़े से है कि अपनी दासी को गालियां दे रही है? इसके बाद आपने फ़रमाया कि रोज़ा केवल न खाना और न पीना नहीं है। इसके बाद आपने जो वाक्य कहा वह चिंतन का विषय है। उन्होंने कहाः रोज़ेदार कितने कम हैं और भूखे कितने ज़्यादा हैं।

धर्म व शिष्टाचार के नेताओं ने कम बात करने और मौन के बारे में बहुत सी सिफ़ारिशें की हैं। लुक़मान हकीम ने अपने बेटे से कहा हैः हे मेरे पुत्र! जब भी तुम यह सोचो कि बात करने का मूल्य चांदी है तो यह जान लो कि चुप रहने का मूल्य सोना है। कम बोलने और मौन के कुछ लाभ हैं जिन पर लोग कम ही ध्यान देते हैं और रमज़ान का महीना इस बात का अच्छा अवसर है कि हम उन पर विशेष ध्यान दें। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा है कि बुद्धि, ज्ञान व विनम्रता के चिन्हों में से एक मौन है।

निश्चित रूप से मौन, तत्वदर्शिता के दरवाज़ों में से एक है, मौन, प्रेम का कारण बनता है और हर अच्छे काम का मार्गदर्शक है। रोज़ेदार व्यक्ति, जिसकी आत्मा अधिक शांत होती है, कम बात करने और मौन का प्रयास कर सकता है और बात करने से पहले अधिक सोच-विचार कर सकता है। सोच-विचार एक बड़ी उपासना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि एक घंटे सोच विचार करना, सत्तर साल की उपासना से बेहतर है।

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 16:59

ईश्वरीय आतिथ्य- 4

रमज़ान का पवित्र महीना, आत्मनिर्माण और पापों से स्वयं को बचाने का बहुत अच्छा अवसर है।

यही कारण है कि बहुत से मुसलमान इस अवसर से लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।  रमज़ान का महीना विशेष महत्व का रखता है।  यह महीना अपनी आत्मा को पवित्र करने का बेहतरीन अवसर है।  यह लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करता है।  इस महीने में जो कुछ हासिल होता है वह कठिन उपासना का परिणाम होता है।  ईश्वर चाहता है कि मनुष्य, पवित्र रमज़ान में इबादत करके ईश्वर से डरता रहे ताकि उसे कल्याण प्राप्त हो सके।

इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि ईश्वर की उपासना करके मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य, कल्याण व सफलता प्राप्त करना है।  पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतों में तक़वा अर्थात ईश्वर से भय की बात कही गई है।  तक़वे का भी लक्ष्य, कल्याण हासिल करना है।  सूरए बक़रा की आयत संख्या 130 में ईश्वर कहता है कि और ईश्वर से डरते रहो ताकि तुम्हें फ़लाह या कल्याण प्राप्त हो जाए।  क़ुरआन की आयतों में 40 बार फ़लाह शब्द का प्रयोग उसके विभिन्न रूपों में किया गया है।

फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो कल्याण व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।  क़ुरआन के अनुसार वे स्वतंत्र लोग जो ईश्वर को दिल की गहराइयों से मानते हैं उनका ईश्वर पर अटूट भरोसा होता है।  ऐसे लोग कठिन परिश्रम करके अच्छाइयां प्राप्त करते हैं।  सूरे तौबा की 20वीं आयत में कहा गया है कि वे लोग जो ईमान और अमल अर्थात आस्था एवं कर्म को साथ-साथ रखते हैं, सफल रहते हैं।

मनुष्य के हर कार्य को अच्छा काम नहीं कहा जा सकता।  केवल वही काम अच्छा काम माना जाएगा जो बुद्धि के आधार पर और पूरी निष्ठा के साथ किया गया हो।  इस प्रकार से ईश्वर, ऐसा काम करने का निमंत्रण देता है जिसे पूरी निष्ठा के साथ किया जाए।  अपने व्यवहार के बारे में मनुष्य के सतर्क रहने से वह अच्छे काम की ओर अग्रसर रहता है।  ऐसे में वह केवल वे काम ही करता है जिससे ईश्वर नाराज़ न हो।  जिन लोगों को इस बात पर विश्वास है कि ईश्वर हमें देख रहा है और हमारे सारे कर्मों से अवगत है वे सच्चाई के साथ भले काम करते हैं जो तक़वे का कारण बनते हैं।

अब जबकि रमज़ान का महीना चल रहा है एसे में हम यह काम बड़ी सरलता से कर सकते हैं।  रोज़ा रखकर आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है।  रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने पर अधिक से अधिक बल दिया गया है।  जितना भी संभव हो सके मनुष्य इस महीने में क़ुरआन पढ़ता रहे।  यहां पर यह बात ध्यान योग्य है कि केवल क़ुरआन का पढ़ना की पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका मुख्य लक्ष्य, क़ुरआन की बातों को समझकर उनपर अमल करना है।

रमज़ान के महीने के बारे में ईश्वर सूरे बक़रा की आयत संख्या 185 में कहता हैः रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन ईश्वर की ओर से उतरा है, जो लोगों का मार्गदर्शक है तथा, असत्य से सत्य को अलग करने हेतु स्पष्ट तर्कों व मार्गदर्शन को लिए हुए है, तो तुम में से जो कोई भी ये महीना पाए तो उसे रोज़ा रखना चाहिए और जो कोई बीमार या यात्रा में हो तो वह उतने ही दिन किसी अन्य महीने में रोज़ा रखे, ईश्वर तुम्हारे लिए सरलता चाहता है, कठिनाई नहीं, तो तुम रोज़ा रखो यहां तक कि दिनों की संख्या पूरी हो जाए और तुम्हें मार्गदर्शन देने के लिए ईश्वर का महिमागान करो और शायद तुम (ईश्वर के प्रति) कृतज्ञ हो।

पवित्र क़ुरआन का तेइसवां सूरा, मोमेनून है।  इसमें मोमिनों के बारे में बताया गया है ताकि उनकी सफलता को देखकर अन्य लोग भी कामयाबी के रास्ते पर आगे बढ़ें।  बाद में सफलता के लिए कुछ विशेषताएं बयान की गई हैं।  यह वे विशेषताए हैं जिनको व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर लागू किया जा सकता है।  आरंभ में ईश्वर, मोमिनों को सफल बताता है।  पहली आयत एक संक्षिप्त वाक्य में स्पष्ट रूप से लोक परलोक में ईमान वालों के निश्चित कल्याण व सफलता की सूचना देती है। इस आयत में फ़लाह शब्द का प्रयोग किया गया है।  आयत में प्रयोग होने वाले शब्द फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो विजय व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।

सूरे मोमेनून में मोमिनों की प्रशंसा करते हुए ईश्वर पहले नमाज़ का उल्लेख करता है।  नमाज़, ईश्वर से संपर्क का सबसे अच्छा माध्यम है।  ईश्वर कहता है कि मोमिन वे लोग हैं जो पूरी विनम्रता के साथ नमाज़ पढ़ते हैं।  विनम्रता ऐसी स्थिति है जिसका प्रभाव शरीर पर भी दिखाई देता है। रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वाले के लिए सबसे अच्छा काम अपने ईश्वर की उपासना करना है।  रोज़ेदार बड़ी ही श्रद्धा के साथ रमज़ान में अपने ईश्वर को याद करता है।

नमाज़, बंदगी का रहस्य और आज़ादी की पहचान है।  इस सूरे में नमाज़ के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता की ओर संकेत किया गया है जो लगभग सात आयतों में मिलता है।  रोज़ेदार, इन विशेषताओं का अध्ययन करके अपनी अच्छी विशेषताओं में अधिक से अधिक वृद्धि कर सकते हैं।  इन विशेषताओं को हमें ध्यान से पढ़ना चाहिए।  निश्चित रूप से ईश्वर पर ईमान रखने वाले सफल रहे कि जो अपनी नमाज़ों में विनम्र रहते हैं।  और जो लोग व्यर्थ बातों व कार्यों से मुंह मोड़ लेते हैं। और जो ज़कात अदा करते हैं।  और जो स्वयं को व्यभिचार से बचाते हैं। सिवाय अपनी पत्नियों या (ख़रीदी हुई) दासियों के, कि इस पर वे निन्दनीय नहीं हैं। तो जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा लांघने वाले है। और जो लोग अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हैं। और जो सदैव अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं। यही लोग तो वारिस हैं। जो स्वर्ग की विरासत पाएँगे (और) वे उसमें सदैव रहेंगे।

रमज़ान का महत्व समझाते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने पवित्र रमज़ान को जागरूकता का प्रमुख कारक बताते हुए कहा कि यह महीना, ईश्वर के मार्ग पर चलने का बहुत अच्छा ज़माना है।  इस महीने में कुछ लोग भलाई में एक-दूसरे से आगे बढ़ जाते हैं।  इसी महीने में कुछ लोग उदंडता करके अपना नुक़सान कर लेते हैं।  आश्चर्य है उन लोगों पर जो बहुत हंसते हैं और अपना समय खेल में गुज़ारते हैं।  उस दिन जब भलाई करने वालों को उनकी भलाई का बदला दिया जाएगा, एसे में बुराई करने वाले घाटा उठाएंगे।  ईश्वर के कथनानुसार वास्तविक कल्याण पाने वाले प्रकाश में रहेंगे।

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 16:57

: قال رسول الله صلی اللہ علیه وآله وسلم

إِنَّ فِي الْجَنَّةِ بَابًا يُقَالُ لَهُ: الرَّيَّانُ، يَدْخُلُ مِنْهُ الصَّائِمُونَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ، لا يَدْخُلُ مِنْهُ أَحَدٌ غَيْرُهُمْ، يُقَالُ: أَيْنَ الصَّائِمُونَ؟ فَيَقُومُونَ لا يَدْخُلُ مِنْهُ أَحَدٌ غَيْرُهُمْ، فَإِذَا دَخَلُوا أُغْلِقَ فَلَمْ يَدْخُلْ مِنْهُ أَحَدٌ

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:

जन्नत में एक दरवाज़ा है जिसे रियान कहते हैं कयामत के दिन सिर्फ रोज़ेदार उस दरवाज़े से जन्नत में दाखिल होंगे और उनके अलावा कोई दूसरा उस दरवाज़े से जन्नत में दाखिल नहीं होगा, कयामत के दिन आवाज़ आएगी की रोज़ेदार कहां है बस वह उठाएंगे और उनके सिवा कोई दूसरा जन्नत में दाखिल नहीं होगा और जब वह दाखिल हो जाएंगे तो दरवाजा बंद हो जाएगा और कोई दूसरा उस में दाखिल नहीं होगा,

आलामुद्दीन फी सिफाते मोमिनीन,भाग 1,पेंज 278

 

 

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 16:56

माहे रमज़ान के चौथे दिन की दुआ (4)

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّهُمَّ قَوِّني فيہ عَلى اِقامَة اَمرِكَ وَاَذِقني فيہ حَلاوَة ذِكْرِكَ وَاَوْزِعْني فيہ لِأداءِ شُكْرِكَ بِكَرَمِكَ وَاحْفَظْني فيہ بِحِفظِكَ و َسَتْرِكَ يا اَبصَرَ النّاظِرينَ.

अल्लाह हुम्मा क़व्विनी फ़ीहि अला इक़ामति अम्रिक, व अज़िक़नी फ़ीहि हलावति ज़िकरिक, व औज़िअनी फ़ीहि ले अदाएका शुकरिक, बे करमिका वह फ़ज़ नी फ़ीहि बे हिफ़ज़िका व सतरिका या अबसरन नाज़िरीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! तू मुझे इस महीने में अपने अहकाम को क़ाएम करने की क़ुव्वत अता फ़रमा और मुझको अपने ज़िक्र की मिठास चखा और मुझे अपने करम से अपनी शुक्र गुज़ारी के लिए तैयार कर दे और अपनी पर्दापोशी व हिफ़ाज़त के ज़रिए मुझे महफ़ूज़ कर, ऐ देखभाल करने वालों में सबसे ज़ियादा देखभाल करने वाले...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम..

 

आज तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी की इमामत में अदा की गयी

आज तेहरान की केन्द्रीय नमाजे जुमा तेहरान के अस्थाई इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी की इमामत में अदा की गयी।

उन्होंने नमाज़े जुमा के ख़ुत्बों में गज्जा पट्टी में जायोनी सरकार के अपराधों की ओर संकेत करते हुए कहा कि फिलिस्तीन इस्लामी जगत का सर्वप्रथम मुद्दा है और हालिया समय में जायोनियों ने कई बार सीरिया और दूसरे क्षेत्रों में हमारे कमांडरों पर हमला किया अलबत्ता सीरिया, इराक, लेबनान और पाकिस्तान में उन्हें करारा जवाब मिला है और प्रतिरोध अच्छी पोज़ीशन में है और ईरानी प्रतिरोध के कमांडर सर बुलंद हैं।

इसी प्रकार हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा कि गज्जा युद्ध ने लोगों के लिए कठिनाइयां उत्पन्न की हैं परंतु साथ ही वह कुछ चीज़ों को स्पष्ट करता है एक अमेरिका और इस्राईल के सीमा रहित अपराध जो अपराध करने में किसी सीमा को नहीं मानते हैं, वे निहत्थे लोगों की हत्या कर रहे हैं, बीमारों और अस्पतालों पर हमला करके बच्चों की हत्या कर रहे हैं, गज्जा गज्जा पट्टी में न खाना है न पीना है न सुरक्षा और न आश्रय। इस हालत में इंसान खून का आंसू रोता है।

उन्होंने सवाल किया और कहा कि क्या गज्जा के लोग इंसान और मुसलमान नहीं हैं क्यों अरब सरकारें इस्राईल के साथ संबंध विच्छेद नहीं करती हैं जबकि उन्होंने अपना नाम मुसलमान रख रखा है और कुछ सरकारों ने इस्राईल की मदद की है और प्रतिरोध के खिलाफ काम कर रही हैं? इसी प्रकार उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने बिल्कुल सही कहा है कि प्रतिरोध जल्द ही इस्राईल की नाक रगड़ देगा इंशा अल्लाह इस प्रकार का दिन निकट है और उन देशों के लिए हसरत और शर्मिन्दगी का कारण बनेगा जो सामने नहीं आये हैं और काफिरों के साथ हो गये हैं और मुसलमानों को कमज़ोर किया है और वे बच्चों का खून बहाने में भागीदार हैं।