
رضوی
बंदगी की बहार- 2
पवित्र रमज़ान के दिन चल रहे हैं।
हर तरफ़ अल्लाह के बंदे उसकी उपासना में लीन हैं और उसका सामिप्य प्राप्त करने के लिए रोज़े रख रहे हैं, जिधर देखो पवित्र क़ुरआन की तिलावत हो रही है, पवित्र क़ुरआन की तिलावत मानो कान में रस घोल रही है। पवित्र क़ुरआन की सुन्दर मनमोहक तिलावत, बसंत ऋतु के महकते फूलों की सुगंध में मिश्रित होकर दिलो को ईश्वरीय प्रेम का प्रकाश प्राप्त करने के लिए तैयार करती करती है। रमज़ान का पवित्र महीना पवित्र क़ुरआन से प्रेम का पाठ सिखाता है। पूरी दुनिया में दूसरे महीनों की तुलना में इस महीने में पवित्र क़ुरआन की अधिक तिलावत होती है क्योंकि रोज़ेदार व्यक्ति की आत्मिक प्रफुल्लता और पवित्रता, पवित्र क़ुरआन की मन छू लेने वाली तिलावत के समुद्र में ग़ोते लगाने लगती है और उसमें क़ुरआने मजीद की अधिक से अधिक तिलावत करने की भावना पैदा होती है और इस प्रकार एक रोज़ेदार एक महीने अर्थात तीस रोज़ों के दौरान कई कई बार पूरा पूरा क़ुरआन ख़त्म कर देता है। आश्चर्य की बात यह है कि इंसान पवित्र क़ुरआन की जितनी बार तिलावत करेगा उसे हर बार नई चीज़ का आभास होगा और उसकी जान को प्रकाशमयी बना देती है। यह पवित्र क़ुरआन की विशेषता है। सूरए ज़ुमर की आयत संख्या 23 में इस बात की ओर संकेत किया गया हैः अल्लाह ने बेहतरीन बात इस पुस्तक के रूप में उतारी है जिसकी आयतें आपस में मिलती जुलती हैं और बार बार दोहराई गयी हैं कि इनसे ईश्वरीय भय रखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, इसके बाद उनके शरीर और दिल ईश्वर की याद के लिए नर्म हो जाते हैं, यही अल्लाह का वास्तविक मार्गदर्शन है और वह जिसको चाहता है प्रदान कर देता है और जिसको पथभ्रष्टता में छोड़ दे उसको कोई मार्गदर्शन करने वाला नहीं है।
पवित्र क़ुरआन के आकर्षण इतने मनमोहक और सुन्दर हैं कि मनुष्य की आत्मा और उसकी भावना को न केवल हतप्रभ कर देते हैं बल्कि उसे अपना बेक़रार प्रेमी बना देता है। ब्रिटेन के ईसाई शोधकर्ता कैन्ट ग्रैक ज़ंग पवित्र क़ुरआन के आकर्षण को चुंबकीय मैदान और ज़ंग लगे दिलों पर सान करने वाले के रूप में बताया। और कहा कि काफ़ी है कि दिल चुंबकीय मैदान में पवित्र क़ुरआन के आकर्षण होते हैं, इस मैदान की कशिश और खिंचाव ऐसा है कि अब वह उसे छोड़ता ही नहीं है।
पवित्र रमज़ान का महीना ईश्वर की कृपा के द्वार को खुलवाने का महीना है। इस महीने के आने से रोज़ा रखने वाले अपने वजूद में ताज़गी का एहसास करते हैं। महान ईश्वर इस महीने अपने बंदों को अपने दस्तरख़ान पर हर प्रकार की नेमतों व अनुकंपाओं से नवाज़ता है।
कहा जा सकता है कि रमज़ान के महीने का एक बड़ा भाग पवित्र क़ुरआन से संबंधित है। इस महीने रोज़ेदार अपने दिलों के खेत में पवित्र क़ुरआन की प्रकाशमयी शिक्षाओं के बीज बोने का प्रयास करता है, ताकि वह पले बढ़े और आख़िर में इस महीने में आत्मिक आहार के लिए पवित्र क़ुरआन के फल का चयन करे। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन और पवित्र रमज़ान के बीच एक प्रकार का विशेष संबंध है। जैसा कि बसंत ऋतु में मनुष्य और प्रकृति प्रफुल्लित व तरोताज़ा हो जाती है और अपना नया जीवन शुरु कर ती है पवित्र रमज़ान भी क़ुरआन का बहार है। इस महीने पवित्र क़ुरआन को पसंद करने अन्य महीनों की तुलना में इस महीने अधिक क़ुरआन से निकट होते हैं और पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल करके, उसकी आयतों को याद करके और उसके बताए हुए मार्ग पर चलकर अपने दिलों को फिर से ज़िंदा कर सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का एक प्रसिद्ध कथन है कि अल्लाह की किताब को याद करें, क्योंकि क़ुरआन दिलों की बहार है।
पवित्र रमज़ान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि क़ुरआन इसी महीने में आसमान से उतरा है। दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि इस पवित्र महीने में पैग़म्बरे इस्लाम के दिल पर पूरा क़ुरआन उतरा है। सूरए बक़रा की आयत संख्या 185 में कहा गया है कि रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है और इसमें मार्गदर्शन और सत्य व असत्य को पहचानने की स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं इसीलिए जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित रहे, उसका यह दायित्व है कि रोज़े रखे और जो मरीज़ हो या वह इतने ही दिन दूसरे समय में रखे। ईश्वर तुम्हमारे बारे में सरलता चाहता है, कष्ट नहीं चाहता और इतने ही दिन का आदेश इसलिए है कि तुम संख्या पूरी कर दो और अल्लाह के दिए हुए मार्गदर्शन पर उसके बडप्पन को स्वीकार करो और शायद तुम इस प्रकार के शुक्र करने वाले बंदे बन जाओ।
सूरए दुख़ान की आयतें भी इस बात की ओर संकेत करती हैं कि क़ुरआन एक अनुकंपा और विभूति वाली रात में उतरा है। इसी परिधि में सूरए क़द्र की पहली आयत में आया है कि निसंदेह हमने इसे शबे क़द्र में नाज़िल किया है।
अब यह सवाल पैदा होता है कि पवित्र क़ुरआन उतरा कैसे? इस की ओर पवित्र क़ुरआन की आयतें दो प्रकार की ओर संकेत करती हैं। कुछ आयतें इस बात की ओर संकत करती हैं कि पूरा क़ुरआन एक बार ही में उतरा और वह शबे क़द्र में एक साथ ही उतरा है जबकि कुछ अन्य आयतों में बताया गया है कि पवित्र क़ुरआन 23 वर्षों के दौरान धीरे धीरे उतरा है। दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि समय और स्थान के अनुसार आयतें और सूरए उतरे हैं।
पवित्र क़ुरआन वह किताब है जो पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुई है, यही वह किताब है जो मनुष्यों के लिए मार्गदर्शन और व्यवस्थित क़ानून है। इसी समस्त शिक्षाएं समय और स्थान से परे हैं। अर्थात इसकी आयतें और इसके सूरे किसी विशेष समय और स्थान से विशेष नहीं हैं बल्कि यह किताब प्रलय तक के लिए समस्त मानव जाति के लिए एक व्यापक और व्यवस्थित क़ानून और ईश्वरीय कार्यक्रम है।
पवित्र क़ुरआन में ईश्वरीय सामिप्य प्राप्त करने, वांछित भविष्य निर्धारण और कल्याण की प्राप्ति के लिए बेहतरीन कार्यक्रम हैं। जैसा कि इस्लाम धर्म के उदय काल में भी इसने यह सब बताया था कि लोगों को क्या करना है और क्या नहीं करना है? ठीक उसी तक आज भी यह लोगों की आवश्यकताओं का जवाब दे रहा है। इस पुस्तक को दूरदर्शी ईश्वर ने लोगों को कल्याण पर पहुंचने, अपने लक्ष्यों की प्राप्ति और ईश्वर का सामिप्य राप्त करने के मार्गदर्शन के लिए उतारा है।
पवित्र क़ुरआन, हमेशा बाक़ी रहने वाली किताब है जिसने मानवता के लिए एक समग्र और व्यापक धर्म पेश किया। पवित्र क़ुरआन ने मानवता की सभी समस्याओं का निवारण कर दिया है।
पवित्र रमज़ान के दिन और रात दोनों ही पापों के प्रायश्चित के लिए उचित समय हैं। प्रायश्चित का फ़ायदा यह होता है कि वह इंसान को ग़फ़लत या अपनी आत्मा के संबंध में लापरवाही से बाहर निकाल लाता है। जब इंसान प्रायश्चित के बारे में सोचता है तब उसे वह सारे पाप याद आते हैं जो उसने अपने मन पर किए या दूसरों के हक़ में अत्याचार किए। उस वक़्त वह घमंड और ग़फ़लत से बच जाता है। इस स्थिति में इंसान को यह पता चलता है कि वह कितना छोटा व तुच्छ है और ईश्वर की नेमतों और अनुकंपाओं के सामने कितना एहसानफ़रामोश व कृतघ्न पाता है। उस वक़्त इंसान ईश्वर के सामने शर्मिन्दगी का एहसास करता है और पछताता है। यह प्रायश्चित का पहला फ़ायदा है। इंसान अपनी ग़लतियों व बुराइयों से अवगत होने के बाद ईश्वर से क्षमा मांगता है। क्योंकि ईश्वर उसकी कमियों पर पर्दा डालता है और वह सभी बुराइयों से पाक करने वाला है। ईश्वर ने वादा किया है जो भी उससे प्रायश्चित करेगा अर्थात सच्चे मन से अपने पापों की क्षमा चाहेगा तो वह उसे माफ़ कर देगा और ईश्वर को बहुत ज़्यादा प्रायश्चित को स्वीकार करने वाला पाएगा।
पवित्र रमज़ान के महीने का अध्यात्मिक माहौल उपासना, पवित्र क़ुरआन की तिलावत, एक दूसरे का ख़्याल रखने तथा वंचितों की सहायता के वातावरण से भर दें। आइये रमज़ान के इस उचित वातावरण का फ़ायदा उठाते हुए समाज में दोस्ती और भाईचारे को फैला दें।
मस्जिद में एक साथ पढ़ी जाने वाली नमाज़ों, पवित्र रमज़ान में आयोजित होने वाली प्रशिक्षण की विशेष क्लासों में भाग लेकर, उपदेशों के कार्यक्रम में भाग लेकर, मस्जिदों और घरों में आयोजित होने वाली क़ुरआन की क्लासें लगाकर मनुष्य रमज़ान के दिनों को अच्छी तरह व्यतीत कर सकता और इस प्रकार से वह स्वयं को ईश्वर से निकट कर सकता है।
पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रह की आयत संख्या 183 में आया है कि हे ईमान वालों तुम्हारे ऊपर रोज़े इसी प्रकार लिख दिए गये हैं जिस प्रकार तुम्हारे पहले वालों पर लिखे गये थे, शायद तुम इसी प्रकार ईश्वरीय भय रखने वाले हो जाओ।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि ईश्वरीय पुस्तक तौरेत रमज़ान महीने की छह तारीख़ को, इंजील रमज़ान की बारह तारीख़ को, ज़बूर रमज़ान की 18 तारीख़ को तथा क़ुरआन शबे क़द्र में नाज़िल हुआ।
ईश्वरीय आतिथ्य- 2
रमज़ान का महीना चल रहा है। यह वह महीना है जिसमें बंदा अल्लाह का मेहमान होता है। यह मेहमानी भी दूसरी मेहमानियों की भांति सबसे सुन्दर और सबसे मीठी होती है और इसका समय भी सीमित होता है और हमको इसकी क़द्र समझनी चाहिए और इस छोटी अवधि से भरपूर लाभ उठाना चाहिए। आज के इस कार्यक्रम में हम शाबान के महीने के अंतिम दिनों में पैग़्मबरे इस्लाम द्वारा मस्जिद में दिए गये विशेष भाषण के कुछ अंशों पर चर्चा करेंगे। यह ख़ुतबा, इतिहास में ख़ुतबए शाबानिया के नाम से प्रसिद्ध है।
रमज़ानुल मुबारक अपनी रहमतों, बरकतों और आध्यात्मिक ख़ुबसूरतियों के साथ एक बार फिर आया है। रमज़ान का मुबारक महीना शुरू होने से पहले रसूले अकरम स. लोगों को इस महीने के लिये तैयार करते थे। रसूलुल्लाह (स) का एक ख़ुतबा है जिसे ख़ुतबए शाबानिया कहते हैं, इसमें इस तरह आया हैः रमजान का महीना तुम्हारी ओर अपनी बरकत और रहमत के साथ आ रहा है। जिसमें पाप माफ़ होते हैं, यह महीना ईश्वर के यहां सारे महीनों से बेहतर और श्रेष्ठ है। जिसके दिन दूसरे महीनों के दिनों से बेहतर, जिसकी रातें दूसरे महीनों की रातों से बेहतर और जिसकी घड़ियां दूसरे महीनों की घड़ियों से बेहतर हैं।
जी हां दयालु ईश्वर का एक महीना है जो हर वर्ष एक विशेष समय पर एक विशेष समयावधि के लिए अपने मेहमानों की सेवा करता है। इस भव्य और अद्वितीय मेहमानसराय में रहने वालों का फ़रिश्ते भ्रमण करते हैं और इस मेहमानसराय के चारो ओर चक्कर लगाते हैं। इस शहर में जिसका क्षेत्रफल समस्त ईश्वरीय बंदें हैं, जगह जगह पर ईश्वरीय दूतों और उसके ख़ास बंदों के क़दमों के निशान पाए जाते हैं। इस शहर की गलियां और कूचे, सब अल्लाह की ओर समाप्त होते हैं। शहर बहुत सुन्दर और विस्तृत है किन्तु इसके समस्त रास्ते छोटे हैं और यात्रा बहुत तेज़ी से होती है। गलियों के बाग़ यद्यपि प्राचीन हैं किन्तु ख़राब नहीं हैं, गलियां साफ़ सुथरी और पानी से धुली हुई हैं इसके किनारे हरे भरे पेड़ पौधे लगे हुए हैं, सूरज की रोशनी की वजह से गलियों में अंधेरा नहीं है, यह सब चीज़ें अल्लाह के मेहमानों का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। गलियों के बीच में अल्लाह के ख़ास बंदों के सुन्दर घर बने हुए हैं जिनसे पवित्र क़ुरआन की तिलावत की आवाज़ें कानों में रस घोलती हैं और अल्लाह के नेक बंदों को अपनी ओर साम्मोहित करती हैं। मानो पैग़म्बरे इस्लाम पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रह की आयत संख्या 185 की तिलावत कर रहे हैं जिसमें कहा गया है कि पवित्र रमज़ान वह महीना है जिसमें क़ुरआन उतारा गया है जो लोगों के लिए मार्गदर्शन है और इसमं मार्गदर्शन और सत्य व अस्त्य की पहचान की स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं इसीलिए जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित रहे उसका दायित्व है कि रोज़े रखे और जो बीमार या यात्री हो वह इतने ही दिन दूसरे समय में रखे। ईश्वर तुम्हारे बारे में आसानी चाहता है कष्ट नहीं चाहता, और इतने ही दिन का आदेश इसलिए है कि तुम संख्या पूरी कर दो और अल्लाह के दिए मार्गदर्शन पर उसकी महानता को स्वीकार करो और शायद तुम इस प्रकार उसके आभारी बंदे बन जाओ।
इस मेहमान की आवभगत करने में अल्लाह के हज़ारों सुन्दर फ़रिश्ते व्यस्त हैं। यह फ़रिश्ते अल्लाह की उपासना में व्यस्त होने के साथ ही अपने ख़ास मेहमानों का विशेष ख़्याल रख रहे हैं। कभी कभी अपने कृपालु हाथों को मेहमान की ओर बढ़ाते हैं और कभी इस मेहमान के लिए दुआ करने के लिए मेज़बान की ओर हाथ बढ़ाते हैं। ईश्वर भी पूरी ख़ुशी से अपने बंदों के हक़ में उनकी दुआओं को स्वीकार करता है। तभी कुछ फ़रिश्ते स्वर्ग के फलों से भरा दस्तरख़ान बिछाते हैं जबकि दूसरे फ़रिश्ते ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने और उसको ख़ुश करने के लिए जा नमाज़ अर्थात नमाज़ पढ़ने की विशेष दरी बिछाते हैं। कुछ फ़रिश्ते अल्लाह से अपने दिल बात करने में व्यस्त हो जाते हैं और सब मिलकर ईश्वर के बंदों की दिल की बात ईश्वर तक पहुंचाते हैं। यही वह फ़रिश्ते हैं जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि मुझे जिब्राइल ने अल्लाह के हवाले से बताया है कि मैंने अपने फ़रिश्तों को अपने बंदों के लिए दुआ करने की अनुमति नहीं दी मगर यह कि उनकी दुआएं स्वीकार करूं। पवित्र रमज़ान के महीने में कुछ फ़रिश्तों पर मैं यह ज़िम्मेदारी डाल देता हूं कि वह रोज़ेदारों के लिए दुआएं करें, रोज़ेदारों के लिए यह दुआएं, ईश्वर से भलाई और अच्छाई की मांग है। कुछ फ़रिश्तों को इस मेहमानसराए की रक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी, वह शैतान और उसके चेले चापड़ों को इस भव्य मेहमानी में आने नहीं देते ताकि मेहमान एकांत में बिना किसी रोकटोक के अपने ईश्वर से अपने दिल की बात कर सके और शैतान की दुष्टता और उसके बहकावे से सुरक्षित रह सके। मेहमानसराए के रक्षक, दिनों रात इसके रहने वालों पर नज़र रखते हैं और अपने प्रकाश से उनके भीतर की हर प्रकार की बुराई और गंदगी को दूर करते हैं और मेहमानों को ईश्वर के प्रकाशमयी दरबार से निकट करते हैं और अल्लाह के मार्ग पर चलने वाले उसके रास्ते को रोशनी प्रदान करते हैं।
ईश्वरीय शहर के पूरे घर पवित्र क़ुरआन के उतरने से जगमगा रहे हैं और यहीं से ईश्वर के ख़ास बंदे अल्लाह के लिए अपनी दुआओं का तोहफ़ा भेजते हैं। क़ुरआन दिलों में ईश्वरीय भय पैदा करता है और उसकी आयतों की तिलावत, आयतों में चिंतन मनन की चुप्पी को तोड़ नहीं सकता। पवित्र क़ुरआन की तिलावत से तत्वदर्शिता और दूरदर्शिता बढ़ती है, क़ुरआने मजीद की तिलावत, नम्रता प्रदान करती है और कोई भी दुआ में गर्व नहीं करता। शौक़ के आंसू से, ईश्वर के डर से निकलने वाली आह की मिठास को दूर नहीं होती। क़ुरआन की मदद से जो तुला, संतुलन और मीज़ान किताब है, इस शहर के निवासियों के जीवन में संतुलन पैदा होता है।
रात के समय इस मेहमानसराए का माहौल ही अलग तरह का होता है, मन की बात कहने का समय आ पहुंचता है, सुबह तड़के दिलों पर लगे हुए ताले खुल जाते हैं। ईश्वरीय प्रकाश और क्षमा का चांद, उसके मेहमानों को अपनी रोशनी में रंग देता है। उनकी रातें, दिन से अधिक उज्जवल है, उनके दिन, रात से अधिक शांतपूर्ण है, यह रमज़ान की एक अन्य विशेषता है।
मेहमान, इस मेहमानसराए में अजनबी पन का आभास नहीं करते। मेहमानों की अपनी एक ख़ास जगहें हैं, कुछ लोग सामान्य रूप से ईश्वर से दूर नहीं हैं जबकि कुछ दूसरे लोग थोड़ी दूरी पर हैं। यहां पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मेहानसराए में रहने वाले ईश्वर की उपस्थिति से भलिभांति अवगत हैं। वह ईश्वर की ओर अपने हाथ बढ़ाते हैं किन्तु अल्लाह को हमेशा से अधिक स्वयं से निकट पाते हैं और उसकी मुलाक़ात को उतावले रहते हैं।
इस मेहमानसराए में भूख और प्यास का अलग ही माहौल होता है। इसमें मेहमानों को वचन दिया जाता है कि यदि वह शाम तक अपने मुंह में खाने के दाने और पानी की एक बूंद भी न रखें और अपने शरीर को ख़ाने पीने से दूर रखेंगे तो ईश्वर उनकी जानों को अपने प्याले से तृप्त कर देगा। इस मेहमानसराए में दुनिया की वास्तविकता को देखा जा सकता और परलोक की मिठास को चखा जा सकता है। यहां पर यह समझा जा सकता है कि दुनिया से जितना कम लाभ उठाया जाए तो उसका परलोक का जीवन उतना ही बेहतर होगा।
मेहमान हर नमाज़ में अपने दिल की बातें ईश्वर के सामने रखते हैं और ईश्वर से बातें करते हैं। उन्हें जब भी अपने दिल की बात बयान करने और ईश्वर से दुआ करने का अवसर मिलता है तो वह इतना ख़ुश होते हैं कि मानो ईश्वर के समक्ष पहली बार पेश हो रहे हैं। इस मेहमानसराए में रहने वाले कभी भी दुनिया के मामले में दुआ नहीं करते और जब भी ईश्वर से बात करते हैं तो उनकी आंखों में आसू होता है, दिल में डर और जबान पर पछतावे के शब्द। जब कोई व्यक्ति किसी से डरता है तो उससे दूर ही रहता है किन्तु अल्लाह के बंदों में ऐसा नहीं है बंदा अल्लाह से डरने के बावजूद उससे दूर नहीं होता, क्योंकि वह उसकी ओर हमेशा चलता रहता है, इसीलिए उससे निकट रहता है किन्तु पहुंचने का क्रम कभी समाप्त नहीं होता, वह उपासना और इबादत में लीन रहता है मानो उसने ईश्वर की उपासना में सारी उम्र व्यतीत कर दी हो और अब वह अतीत की भरपायी करने पर आ गया हो।
इस शहर का माहौल स्वर्ग की ख़ुशबू से भरा हुआ है। इस शहर के निवासी यद्पि अपने संबंध में कठोर हैं लेकिन एक दूसरे के प्रति दयालु हैं। कभी कभी लोग ख़ुद को आत्मिक दृष्टि से इतना ऊंचा पाते हैं कि उन्हें लगता है कि वे उन फ़रिश्तों से भी ऊंचे हैं जो उनकी सैवा में लग रहते हैं। हमेशा मुस्कुराते रहते हैं और हर एक के साथ दुयालु और कृपालु होते हैं और सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। वह जितना भूखे होंगे दूसरों की भूख मिटाने के प्रयास में रहेंगे और यदि उनका पेट भरा होगा तो वह दूसरे से शर्माते हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए इंसान की आयत संख्या 8 और 9 में ईश्वर कहता है कि हम केवल अल्लाह की मर्ज़ी के कारण यह उसकी मुहब्बत में मिसकीन, यतीम और क़ैदी को खाना खिलाते हैं, ईश्वर की प्रसन्नता में खिलाते हैं, न तुम से कोई बदला चाहते हैं न शुक्रिया।
ग़ज़्ज़ावासियों की सहायता करना इस्लामी जगत का धार्मिक कर्तव्य : वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि ग़ज़्ज़ावासियों की सहायता करना इस्लामी जगत का धार्मिक कर्तव्य है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि अवैध ज़ायोनी शासन की किसी भी प्रकार की सहायता करना हराम है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि पवित्र क़ुरआन की क़िराअत जैसे महान काम का मुख्य उद्देश्य, आम लोगों तक इस पवित्र पुस्तक के संदेश को पहुंचाना होना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने पवित्र रमज़ान के पहले दिन मंगलवार को पवित्र क़ुरआन से संबन्धित बैठक में देश के भीतर जवान क़ारियों की बढ़ती संख्या पर प्रसन्नता जताई। उन्होंने कहा कि यह इस्लामी क्रांति की विभूतियों में से एक है। उन्होंने कहा कि क़ुरआन का पढ़ना एक ईश्वरीय कला है।
वरिष्ठ नेता का कहना था कि पवित्र क़ुरआन का पाठ करने वाले का महत्वपूर्ण दायित्व, सुनने वालों के दिमाग़ में उसके सही अर्थ एवं क़ुरआन की सही तस्वीर को पहुंचाना है। यही कारण है कि क़ुरआन के क़ारी, ईश्वरीय संदेश को लोगों तक पहुंचाने वालों जैसे होते हैं। एसे में उनको स्वयं को एक ईश्वरीय संदेशवाहक के रूप में तैयार करना चाहिए।
सुप्रीम लीडर ने कहा कि पवित्र क़ुरआन पढ़ने के कार्यक्रम को अधिक से अधिक मस्जिदों और घरों में आयोजित किया जाए। उन्होंने कहा कि इन कार्यक्रमों में पवित्र क़ुरआन के अनुवाद और उसकी व्याख्या पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इस काम से समाज में धार्मिक शिक्षा से स्तर को सुधारने की भूमिका प्रशस्त होगी।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ग़ज़्ज़ा में युवाओ के उन चित्रों का उल्लेख किया जिनमें वे पवित्र क़ुरआन पढ़ते दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि ग़ज़्ज़ा में प्रतरिोध के चरम को, पवित्र क़ुरआन की सही समझ और उसपर अमल करना बताया। आपने कहा कि ग़ज़्ज़ा में अत्याचार और प्रतिरोध दोनों ही अपने चरम पर दिखाई दे रहे हैं। उनका कहना था कि ग़ज़्ज़ा के लोगों को भूख और प्यास से मारने जैसे काम को पश्चिमी सभ्यता का भयानक रूप बताया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई का कहना था कि ज़ायोनियों के पास हालांकि अमरीका और पश्चिम की ओर से दिये गए विभिन्न प्रकार के हथियार है, किंतु उसको ग़ज़्ज़ा में एसे कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने दुश्मन को नाको चने चबवा दिये। वरिष्ठ नेता के अनुसार प्रतिरोध की लगभग 90 प्रतिशत क्षमता अभी भी सुरक्षित है। फ़िलिस्तीनियों का कड़ा प्रतिरोध, ज़ायोनियों की नाक को रगड़वा देगा।
सुप्रीम लीडर का कहना है कि ग़ज़्ज़ावासियों की सहायता करना इस्लामी जगत का धार्मिक कर्तव्य है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि अवैध ज़ायोनी शासन की किसी भी प्रकार की सहायता हराम है। बहुत खेद की बात है कि कुछ मुसलमान देश और सरकारें, यह काम कर रही हैं किंतु एक दिन उनको पछताना होगा और अपने किये का अंजाम भुगतना पड़ेगा।
सुरक्षा परिषद की अक्षमता भी है ग़ज़्ज़ा में युद्ध विराम की रुकावट
विदेशमंत्री कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा में जनसंहार ने शताब्दी की अभूतपूर्व आपदा की चेतावनी की घंटी बजा दी है।
ग़ज़्ज़ावासियों के जारी जनसंहार के दृष्टिगत इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव, राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के प्रमुख, ओआईसी के महासचिव और इस संस्था के सदस्य देशों के विदेशमंत्रियों के नाम अलग-अलग पत्र भेजे हैं।
अपने पत्र में हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान लिखते हैं कि एसे हालात में कि जब हम ग़ज़्ज़ा में निर्दोष फ़िलिस्तीनियों पर किये जा रहे घोर अत्याचारों को रूकवाने में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की अक्षमता को देख रहे हैं तो फिर फ़िलिस्तीनियों के समर्थन के लिए ग़ज़्ज़ा में तत्काल युद्ध विराम कराने के उद्देश्य से विश्व समुदाय की ओर से गंभीर क़दम उठाना अब अपरिहार्य हो गया है।
उनका कहना था कि जिस तरह से ग़ज़्ज़ा में लगातार हमले किये जा रहे हैं और ग़ज़्ज़ावासियों के लिए मानवीय सहायता के साथ ही खाने-पीने की वस्तुओं को भी रोका जा रहा है उससे लगता है कि यह काम फ़िलिस्तीनियों की नस्ल को समाप्त करने के उद्देश्य से किये जा रहे हैं। इसी काम ने वर्तमान शताब्दी की आपदा के लिए चेतावनी की घंटी बजा दी है।
ईरान के विदेशमंत्री कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनियों द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियां सिद्ध करती हैं कि यह अवैध शासन, जानबूझकर फ़िलिस्तीनियों के समूल विनाश की योजना को क्रियान्वित कर रहा है। हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान कहते हैं कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, अवैध ज़ायोनी शासन की इन कार्यवाहियों की खुलकर भर्त्सना करता है।
भारत, सीएए के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे युवा संगठन
भारतीय संसद में अधिनियम पारित होने के चार साल बाद केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) नियम, 2024 को अधिसूचित करने के एक दिन बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की युवा शाखा डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया नियमों पर रोक लगाने की मांग को लेकर अपनी याचिकाओं के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने आवेदन में आईयूएमएल ने जिसकी अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है, कहा कि नियम नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2(1)(बी) द्वारा बनाई गई छूट के तहत कवर किए गए व्यक्तियों को नागरिकता देने के लिए एक अत्यधिक संक्षिप्त और फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया बनाते हैं, जो स्पष्ट रूप से मनमाना है और केवल उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों के एक वर्ग के पक्ष में अनुचित लाभ पैदा करता है, जो अनुच्छेद 14 और 15 के तहत अनुमति योग्य नहीं है।
आईयूएमएल ने कहा कि अधिकार प्राप्त समिति, जो आवेदनों की जांच कर सकती है, की संरचना परिभाषित नहीं है। इसने आगे कहा कि नियम नागरिकता नियम 2009 के तहत पंजीकरण के लिए ‘जांच के स्तर’ को खत्म करते हैं और दस्तावेजों को सत्यापित करने की शक्ति जिला स्तरीय समिति को देते हैं।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आईयूएमएल ने इस बात का भी जिक्र किया है कि कैसे केंद्र ने लगभग पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट में विवादास्पद सीएए के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के प्रयास को यह तर्क देकर टाल दिया था कि नियम तैयार नहीं किए गए थे।
आईयूएमएल ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अधिनियम पर रोक लगाने के लिए दबाव डाला था। हालांकि, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नियम तैयार नहीं किए गए हैं और इसलिए कार्यान्वयन नहीं होगा, ये रिट याचिकाएं साढ़े चार वर्षों से लंबित हैं।
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उन गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई) को भारतीय नागरिकता प्रदान करना चाहती है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए थे।
सीएए को दिसम्बर 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई. हालांकि, मुस्लिम संगठनों और समूहों ने धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया और इसका विरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद बैंक ने चुनाव आयोग को डेटा सौंपा
सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बॉन्ड से संबंधित विवरण देने के लिए अतिरिक्त समय देने की अर्ज़ी खारिज किए जाने के बाद बैंक ने चुनाव आयोग को यह डेटा सौंप दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने इस बात की पुष्टि है कि बैंक विवरण दे चुका है. 15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताकर रद्द करते हुए कोर्ट ने बैंक से योजना से जुड़ी जानकारियां निर्वाचन आयोग को सौंपने को कहा था, जिसे अपनी वेबसाइट पर यह विवरण 13 मार्च तक अपलोड करना था।
सोमवार को अदालत ने यह समयसीमा 15 मार्च तक कर दी है। बताया गया है कि बैंक ने साल 2018 में इस योजना की शुरुआत के बाद से 30 किश्तों में 16,518 करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी किए हैं, जिसमें से सर्वाधिक राशि भाजपा को प्राप्त हुई है।
ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमले, इस्राईली मंत्री का बहिष्कार
तुर्की की गृह और सामाजिक सेवा की मंत्री ने ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन द्वारा फ़िलिस्तीनियों के चल रहे नरसंहार का विरोध करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के महिला आयोग की बैठक में ज़ायोनी शासन के सामाजिक मामलों के मंत्री के भाषण का बहिष्कार कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महिला आयोग का 68वां सत्र 11 मार्च को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में ईरान सहित 111 प्रतिनिधिमंडलों की भागीदारी के साथ शुरू हुआ।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, महिला आयोग की बैठक में जब ज़ायोनी मंत्री ने अपना भाषण शुरू किया तो तुर्की के घरेलू और सामाजिक सेवा की मंत्री ओज़डेमिर गोक्टस उठकर चली गयीं।
महिला आयोग की बैठक से बाहर निकलने के बाद ज़ायोनी मंत्री का भाषण शुरू होते ही उन्होंने कहा कि ग़ज़्ज़ा संकट को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि यह संकट ज़ायोनी आक्रमण के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ है जिसमें अब तक हज़ारों निर्दोष नागरिक मारे जा चुके हैं।
ईरान का विपक्ष, इस्राईल के साथ
इन हालात में कि जब विश्व के लोग पिछले कुछ महीनों से प्रदर्शन करके ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के अत्याचारों की निंदा कर रहे हैं, इस्लामी गणतंत्र ईरान का विपक्ष, पश्चिमी नेताओं के साथ अवैध ज़ायोनी शासन के समर्थन में लगा हुआ है।
ईरान का विपक्ष, रज़ा पहलवी का समर्थक है जो ईरान के अन्तिम शाह, मुह्मद रज़ा पहलवी का बेटा है। ईरान की इस्लामी क्रांति के साथ 1979 में मुहम्मद रज़ा पहलवी के शासन का अंत हो गया था। रज़ा पहलवी के समर्थक, अपनी रैलियों में ईरान के पुराने झंडे को लेकर अवैध ज़ायोनी शासन और नेतनयाहू का समर्थन करते हैं।
वास्तविकता यह है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध के आरंभ से ईरान के राजतंत्रवादी आंदोलन के समर्थकों की रणनीति ने फ़िलिस्तीन के अधिकांश समर्थकों को चिंतित कर रखा है। NUFDI की ही भांति पहलवी की समर्थक लाबी, फ़िलिस्तीनी समर्थकों को डराने-धमकाने में लगी है। रज़ा पहलवी के समर्थकों का फ़िलिस्तीनियों के समर्थकों के साथ टकराव, दर्शाता है कि वे ईरान के आम जनमत के विरोधी हैं जो आरंभ से भी फ़िलिस्तीनियों की आकांक्षाओं का समर्थन करता आया है। इस्लामी गणतंत्र ईरान का विपक्ष, ईरान के संदर्भ में अमरीका के आक्रमक रुख़ का समर्थन करता है जिमसें ईरानी जनता के विरुद्ध लगे प्रतिबंधों में वृद्धि भी शामिल है। ईरान के अन्तिम शाह, मुहम्मद रज़ा पहलवी की सत्ता 1979 तक रही। इस दौरान उसके इस्राईल के साथ मैत्रीपूर्ण संबन्ध थे। वह ऊर्जा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में इस्राईल के साथ सहयोग करता था। शीतयुद्ध के काल में वह अमरीकी ख़ेमे में था।
उसके बेटे रज़ा पहलवी ने हालिया कुछ वर्षों के दौरान इस्राईल से निकट होने के लिए अधिक प्रयास किये हैं। वे इस्राईल को अपना बहुत ही महत्वपूर्ण सहयोगी मानते हैं। उनका यह सहयोग उस समय अधिक सार्वजनिक हो गया जब अप्रैल सन 2023 में रज़ा पहलवी ने अपनी पत्नी के साथ अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में जाकर नेतनयाहू और इस शासन की सूचना मंत्री गीला गामलील के साथ बहुत ही गर्मजोशी के साथ मुलाक़ात की थी।
यह वह मुलाक़ात थी जिसमें रज़ा पहलवी के सलाहकार अमीर हुसैन एतेमादी और सईद क़ासिमी नेज़ाद भी उपस्थित थे जो वाशिगटन डीसी में डिफेंस आफ डेमोक्रेसी फाउंडेशन के दक्षिणपंथी थिंक टैंक के कर्मचारी हैं।
यह वे विवादित लोग हैं जो फ़िलिस्तीन विरोधी दृष्टिकोणों और युद्धोन्मादी सोच के कारण ईरानी राष्ट्र के निकट घृणा के पात्र हैं। यह लोग, ईरान के विरुद्ध प्रतिबंध लगाने और उसपर हमला करने के पक्षधर हैं। इन्होंने तो "फ़िलिस्तीन मुर्दाबाद" के नारे भी ट्वीट किये हैं। रज़ा पहलवी ने अवैध ज़ायोनी शासन की अपनी यात्रा में FDD के प्रमुख मार्क दूबोवीटर्ज़ से भी मुलाक़ात की थी। इस मुलाक़ात को संयुक्त राज्य अमरीका में इस्राईल के समर्थक गुटों ने काफ़ी हाईलाइट किया था।
ईरान के विपक्ष ने पिछली साल ज़न, ज़िंदगी, आज़ादी के नारे के साथ ईरानी समाज को नुक़सान पहुंचाने के प्रयास किये थे। ईरान का विपक्ष, वास्तव में ईरानी जनता का हमफ़िक्र नहीं है बल्कि इस्राईल और अमरीका में विरोधियों के साथ हैं। वे मानवीय एवं क्षेत्रीय दुष्परिणामों पर नज़र किये बिना ही ईरान की सरकार को गिराना चाहते हैं। यही वह चीज़ है जो ईरान की जनता में उनकी अविश्वसनीयता, अवैधता तथा जनता के लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति उनकी उपेक्षा को दर्शाती है।
इस्राईल के पूर्व जनरल ने किया स्वीकार, ग़ज़्ज़ा में सेना हार चुकी है
ज़ायोनी शासन के एक पूर्व सैन्य जनरल ने ज़ायोनी अधिकारियों की आलोचना करते हुए तेल अवीव के अपने सैन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफलता को स्वीकार करते हुए कहा है कि इस्राईल पहले ही ग़ज़्ज़ा में युद्ध हार चुका है।
ज़ायोनी शासन के पूर्व और रिज़र्व सेना के जनरल इसहाक़ बराक ने ग़ज़्ज़ा युद्ध को लेकर ज़ायोनी सैन्य प्रमुख की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि ज़ायोनी सरकार के कार्यों से उसकी जीत नहीं हो सकती है और इस्राईल, ग़ज़्ज़ा युद्ध हार गया है।
इस ज़ायोनी सैन्य जनरल ने कहा कि इस्राईल की सेना इस समय अपने मुक्ति की दोहाई दे रही है और उसे ख़ुद को बचाने के लिए सैन्य मज़बूती की आवश्यकता है।
ज़ायोनी सेना के पूर्व जनरल ने कहा कि जैसे ही ग़ज़्ज़ा युद्ध शुरू हुआ था तो उन्होंने ज़ायोनी अधिकारियों को चेतावनी दी कि इस्राईल को कोई परिणाम नहीं मिलेगा।
ज़ायोनी शासन के एक पूर्व और रिज़र्व सैन्य जनरल इसहाक बराक ने कहा कि ग़ज़्ज़ा पर हमले के बाद इस्राईल की सेना पहले से भी बदतर स्थिति का सामना कर रही है।
इस्राईली फौजी ठिकानों पर हिज़्बुल्लाह के मिसाइलों की बारिश
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लेबनान के एक रणनीतिक क्षेत्र पर इस्राईल के हमले के बाद हिज़्बुल्लाह ने जवाबी कार्यवाही करते हुए इस्राईली ठिकानों पर कम से कम 100 मिसाइल दाग़े हैं।
हिज़्बुल्लाह का कहना है कि उसके लड़ाकों ने कीला बैरक में इस्राईली वायु और मिसाइल कमांड सेंटर और दूसरे दो महत्वपूर्ण ठिकानों पर 100 से ज़्यादा मिसाइलों से हमला किया है।
इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन का कहना है कि यह कार्यवाही ग़ज़ा पट्टी में साहसी फ़िलिस्तीनियों के समर्थन और लेबनान में इस्राईली हमलों के जवाब में की गई है।
ग़ौरतलब है कि ज़ायोनी सेना ने बालबेक के इलाक़े को निशाना बनाया था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।
ज़ायोनी सेना ने पुष्टि की है कि मंगलवार सुबह, लगभग 100 रॉकेट दाग़े गए, जिनमें से कुछ को हवा में ही मार गिराया गया।
इस्राईली सेना का कहना है कि हिज़्बुल्लाह के रॉकेट हमलों में गैलिली क्षेत्र और क़ब्जे वाले गोलान हाइट्स को निशाना बनाया गया है, हालांकि ज़ायोनी शासन ने इस हमले में किसी तरह के नुक़सान की बात स्वीकार नहीं की है।