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अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन कहते हैं कि उन्हें यक़ीन है कि ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू इस्राईल के लिए फ़ायदेमंद से ज़्यादा नुक़सानदेह हैं।

एमएसएनबीसी टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए जो बाइडन ने कहा कि ग़ज़ा जंग को नेतनयाहू जिस तरह हैंडल कर रहे हैं उसको देखकर यही लगता है कि वो इस्राईल को फ़ायदा नहीं नुक़सान पहुंचा रहे हैं।

जो बाइडन ने यह भी कहा कि रफ़ह शहर पर हमले का मामला उनकी रेड लाइन है। अब सवाल यह है कि अगर जो बाइडन की सोच वाक़ई यही है तो उन्होंने ग़ज़ा युद्ध के पहले दिन से ज़ायोनी शासन के खुलकर समर्थन का एलान क्यों किया। जो बाइडन यहां तक आगे चले गए कि उन्होंने ज़ायोनी शासन के हमलों में फ़िलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों के नरसंहार को सेल्फ़ डिफ़ेंस का नाम दिया और ज़ायोनी शासन की मदद के लिए एयर ब्रिज बना दिया ताकि इस्राईल को ग़ज़ा पट्टी पर हमलों में किसी भी तरह हथियारों की कोई कमी न हो। जो बाइडन ने पूरी ताक़त लगा दी कि ज़ायोनी शासन को शिकस्त से बचाएं।

सच्चाई यह है कि जो बाइडन ग़ज़ा में जारी नस्लीय सफ़ाए की जंग में नेतनयाहू का अपराध में पूरी तरह भागीदार हैं। उन्होंने 2 हज़ार से ज़्यादा अमरीकी मेरीन्ज़ भेजे हैं जो ग़ज़ा युद्ध में ज़ायोनी शासन की मदद कर रहे हैं। जो बाइडन ने ग़ज़ा पट्टी में तटीय इलाक़े में एक अस्थायी बंदरगाह बनाने की तैयारी भी शुरू कर दी है। नाम तो यह दिया है कि मानवीय सहायता गज़ा वासियों तक पहुंचाने का यह ज़रिया है लेकिन दरअस्ल यह ज़ायोनी शासन की भयानक साज़िश को अमली जामा पहनाने की कोशिश है।

नेतनयाहू का जहां तक सवाल है तो उनकी मूर्खता और नाकामियों से पर्दा हटाने वाली उनकी ग़लतियां नहीं बल्कि फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ की विवेकपूर्ण कंट्रोल एंड कमांड सेंटर की गतिविधियां और फ़ैसले हैं जिन्होंने अपनी बहादुरी और दूरदर्शिता से इस्राईल के साथ ही अमरीका की भी योजनाओं पर पानी फेर दिया है।

इस्माईल हनिया ने सात अक्तूबर को फ़िलिस्तीन के इतिहास का महत्वपूर्ण मोड़ बताया है।

हमास के नेता ने कहा कि 7 अक्तूर 2023 की तारीख़, फ़िलिस्तीन के इतिहास का एतिहासिक मोड़ इसलिए है क्योंकि वर्चस्ववादी देशों ने फ़िलिस्तीन के मुद्दे को हमेशा के लिए भुलाने के भरसक प्रयास किये किंतु सात अक्तूबर की घटना ने फ़िलिस्तीन के मुद्दे को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।

अपने एक भाषण में इस्माईल हनिया का कहना था कि वर्तमान समय में अवैध ज़ायोनी शासन, शताब्दी का सबसे बड़ा अपराध अंजाम दे रहा है।  हालांकि उसको आज नहीं तो कल, अपनी करतूतों का भुगतान, करना होगा।  हमास के नेता के अनुसार फ़िलिस्तीनियों के कड़े प्रतिरोध के कारण ज़ायोनी कभी भी अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाएंगे।  उन्होंने कहा कि हर प्रकार की समस्याओं का मुक़ाबला करने के बावजूद ग़ज़्ज़ावासी, यहां पर बाक़ी रहेंगे।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के नेता ने कहा कि व्यापक स्तर पर जनसंहार करने के बावजूद बिना किसी सहमति के इस्राईल अपना एक बंधक भी नहीं आज़ाद करा पाएगा।  हनिया ने बताया कि वार्ता के दौरान हमने पांच नियम निर्धारित किये हैं इन नियमों को लागू किये बिना कोई भी वार्ता संभव नहीं होगी।  इस्माईल हनिया का कहना है कि अपने बंधकों को स्वतंत्र कराने के बाद इस्राईल एक बार फिर से ग़ज़्ज़ा पर व्यापक हमले करने के चक्कर में है।

 फ़्रांसीसी सिंगर और रैपर Milanie Georgiades " मिलेनी जोरजियाड्स " का कहना है कि मुसलमान बनने के बाद मेरे नए जीवन में जो खुशियां आईं वे ईश्वर पर ईमान की वजह से हैं!

हालिया वर्षों में इस्लाम की तरफ़ उन्मुख होकर मुसलमान होने वालों में से एक, फ़्रांसीसी सिंगर और रैपर Milanie Georgiades "मिलेनी जोरजियाड्स" भी हैं जिनका स्टेज नाम Diam's "डिएम्स" है।  उन्होंने ख्याति के शिखर पर इस्लाम स्वीकार किया।

Milanie Georgiades "मिलेनी जोरजियाड्स" का जन्म 25 जूलाई 1980 को साइप्रस में हुआ था।  मिलेनी या डिएम्स के पिता यूनानी थे जबकि उनकी माता फ़्रांसीसी थीं।  डिएम्स का बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।  जब डिएम्स की आयु चार वर्ष की थी तो उनके माता-पिता अच्छे भविष्य की आशा में उसको लेकर फ़्रांस चले आए।  फ़्रांस में आने के बाद डिएम्स की ज़िन्दगी अच्छी होने की जगह और ख़राब हो गई।  हुआ यह कि सात वर्ष की आयु में वह अपने माता-पिता से हाथ धो बैठीं।  अब डिएम्स के जीवन में अधिक उथल पुथल आरंभ हो गई।  बेसहारा होने की वजह से डिएम्स को अनाथालय जाना पड़ा।  अनाथालय में उन्होंने अनाथों के साथ रहकर जो समय गुज़ारा उससे वह बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थीं।  वह सदैव परेशान रहा करती थीं।

सन 1994 में डिएम्स के जीवन में एक बदलाव आया।  डिएम्स के भीतर गीत और संगीत की अपार क्षमता मौजूद थी। उन्होंने इस क्षेत्र में क़दम बढ़ाए और बहुत ही कम समय में संगीत की दुनिया में वह छा गईं।  संगीत के क्षेत्र में डिएम्स इतनी मश्हूर हो चुकी थीं कि उनको फ़्रांस में संगीत की दुनिया की शहज़ादी कहा जाने लगा।  अब डिएम्स के पास दौलत और शोहरत सब कुछ था।  उन्होंने कई ख्याति प्राप्त अवार्ड भी जीते।  उनसे आटोग्राफ लेने वालों की संख्या बहुत अधिक थी।  इतना सब कुछ होने के बावजूद धन-दौलत और शोहरत कोई भी चीज़ डिएम्स को भीतर से शांत नहीं कर पाई।  डिएम्स भीतर से अशांत और व्याकुल रहा करती थीं।  सन 2007 में डिएम्स, अवसाद या डिप्रेशन का शिकार हो गई जिसके कारण उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

अस्पताल से वापस आने के बाद डिएम्स एक बार अपनी एक मुसलमान दोस्त से मिलने उसके घर पर गईं।  शाम के समय वह अपने मित्र के घर पहुंचीं।  जब डिएम्स अपने मित्र के घर पहुंची तो सहेली ने उनका स्वागत करते हुए उन्हें बिठाया और कहा कि अगर तुम बुरा न मानो तो मैं कुछ देर के लिए नमाज़ पढ़ने जा रही हूं।  नमाज़ ख़्त्म होते ही मैं आ जाऊंगी।  यह कहकर वह बराबर वाले कमरे में नमाज़ पढ़ने चली गई और डिएम्स वहीं पर बैठ गईं।  कुछ ही देर में डिएम्स भी बराबर वाले कमरे में गईं जहां पर उनकी दोस्त नमाज़ पढ़ रही थी।  डिएम्स ने पहली बार किसी को इस प्रकार की उपासना करते हुए देखा।  उनको अपने मित्र की उपासना का अंदाज़ विचित्र सा लगा।  नमाज़ ख़त्म होने के बाद डिएम्स ने अपनी सहेली से नमाज़ के बारे में पूछा।  उन्होंने पूछा कि क्या मैं भी यह काम कर सकती हूं?  बाद में डिएम्स का कहना था कि मुझको यह काम करके अभूतपूर्व शांति मिली।  कुछ समय के बाद डिएम्स, मुसलमान हो गईं।

जब डिएम्स से पूछा गया कि क्या आपने अनन्य ईशवर की याद को संगीत का विकल्प बना लिया है तो इसके जवाब में डिएम्स का कहना था कि नहीं ऐसा नहीं है।  उन्होंने कहा कि दोनों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती।  अब मैं केवल ईश्वर के प्रेम में जी रही हूं।  मुझको अब अकेलेपन का एहसास नहीं रहा।  मेरे जीवन को एक अर्थ मिल गया है।  पूर्व फ़्रांसीसी सिंगर और रैपर डिएम्स कहती हैं कि अब मैं अपनी पूरी निष्ठा से पांच बार नमाज़ पढ़ती हूं जिससे मुझको बहुत शांति मिलती है।

डिएम्स कहती हैं कि हो सकता है कि कुछ लोग यह सोचते हों कि कुछ बंधनों और पाबंदियों के कारण हम मुसलमान, सौभाग्यशाली नहीं हैं जबकि ऐसा नहीं है।  डिएम्स जो विगत में एक मश्हूर गायिका थीं अब पश्चिमी संगीत के बारे में कहती हैं कि वास्तव में अब मैं संगीत नहीं सुनती हूं।  मैं यह नहीं चाहती कि इस प्रकार के संगीत को मुझ पर थोपा जाए।  डिएम्स कहती हैं कि मैं सोचती हूं कि पश्चिमी संगीत ख़तरे उत्पन्न कर सकता है।  वे कहती हैं कि इसको स्वीकार करना एक प्रकार की मूर्खता है।  उनका कहना है कि अब मैं बदल चुकी हूं और संगीत के वातावरण से कोई संपर्क रखना ही नहीं चाहती।

फ़्रांसीसी सिंगर और रैपर Milanie Georgiades "मिलेनी जोरजियाड्स" जैसे कलाकारों द्वारा इस्लाम अपनाए जाने के कारण इस्लाम विरोधी बहुत क्रोधित हो गए हैं।  इन इस्लाम विरोधियों ने मिलेनी डिएम्स की छवि को ख़राब करने और उन्हें इस्लाम से वापस लाने के लिए बेहूदा कार्यवाहियां शुरू कर दीं विशेषकर इसलिए क्योंकि डिएम्स ने हिजाब पहनना आरंभ कर दिया है।  फ़्रांस जैसे देश में, जहां पर आज़ादी के बारे में बहुत बातें कही जाती हैं और यह बताया जाता है कि यहां पर पूर्ण रूप से स्वतंत्रता पाई जाती है, हिजाब करने वाली महिलाओं के लिए बाधाए उत्पन्न की गई हैं।  इस बारे में डिएम्स कहती हैं कि जब मैं मुसलमान हो गई तो पेरिस में मेरे कुछ ऐसे चित्र प्रकाशित किये गए जिनसे मुझको तकलीफ़ हुई।  यह मेरे वे निजी फोटो थे जिनको चुराकर छापा गया था।  उन्होंने कहा कि यह एक ख़तरनाक खेल था।  अपने विरोधियों को संबोधित करते हुए डिएम्स कहती हैं कि हर एक इंसान को यह कहने का अधिकार है कि वह अपने जीवन से संतुष्ट और खुश है।  जब ऐसा है तो इसको दूसरों को भी बताया जा सकता है।

डिएम्स कहती हैं कि ऐसा लगता है कि मेरा हिजाब, फ़्रांस में एक समस्या बन गया है।  वे कहती हैं कि यह सुनने को मिल रहा है कि मेरा काम राजनीति से प्रेरित था जो विद्रोह के समान है।  उन्होंने एक फ़्रांसीसी पत्रिका को दिये गए साक्षात्कार में कहा कि क्या जो इस्लाम को स्वीकार करता है या हिजाब पहनता है उसके पास वैचारिक स्वतंत्रता नहीं है?  वे कहती हैं कि हिजाब से वीरता, धैर्य, व्यक्तित्व, पक्का इरादा और संकल्प पैदा होता है।  हिजाब या पर्दे से स्त्री का आध्यात्म मज़बूत होता है।  मेरा हिजाब मेरे ईश्वर के साथ संपर्क का एक माध्यम है।  मैने पर्दा करने का फैसला स्वयं लिया है।  अब मैं अपने पूरे मन के साथ पर्दा करने लगी हूं। हिजाब करके मैंने अपने आप को पहचाना है।  सन 2015 में डिएम्स ने एक किताब लिखी जिसका नाम था, "फ़्रांसीसी मुसलमान मेलाई"।  इस किताब में उन्होंने विरोधियों का जवाब देते हुए इस्लाम के पक्ष में बहुत कुछ कहा है।

पश्चिम में व्यापक दुष्प्रचारों के माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया जाता है कि तकफ़ीरी एवं अन्य आतंकवादी गुटों की हिंसक कार्यवाहियां, इस्लामी विचारधारा से प्रभावित हैं।  इस प्रकार पश्चिमी संचार माध्यम सभी मुसलमानों को आतंकवादी दर्शाते हैं।  विशेष बात यह है कि इन आतंकवादी गुटों के बनाने में पश्चिमी सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।  पश्चिमी देशों के संचार माध्यमों की ओर से इस्लाम विरोधी व्यापक दुषप्रचारों के दृष्टिगत, अतिवादी दक्षिणपंथी और इस्लाम विरोधी दोनो ही पक्ष समस्त मुसलमानों को पश्चिम में की जाने वाली आतंकवादी घटनाओं का ज़िम्मेदार बताते हैं।

जनवरी सन 2015 में पेरिस में Charlie Hebdo "शार्ली हेब्दो" पत्रिका के कार्यालय पर होने वाले हमले के बाद पश्चिम विशेषकर फ़्रांस में मुसलमानों के विरुद्ध दुष्प्रचार और वहां के अतिवादियों द्वारा मुसलमानों के विरुद्ध हिंसक कार्यवाहियों में तेज़ी से वृद्धि हुई।  उस समय मिलेनी डिएम्स ने एक संदेश में इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की थी।  अपने शोक संदेश में उन्होंने लिखा था कि मैं फ़्रांसीसी हूं।  मुसलमान हूं।  मैं भी इस घटना से बहुत दुखी हूं।  वे लिखती है कि इस्लाम के नाम पर की जाने वाली इस प्रकार की हिंसा से मैं बहुत दुखी हूं।  इस्लाम ने आतंकवाद की निंदा की है और वह शांति का पक्षधर है।  इस्लाम प्रतिरोध या हिंसा का पाठ नहीं देता बल्कि वह मानव जाति को शांति एवं उच्च शिक्षा सिखाता है।  वे लिखती हैं कि वे लोग जो जातिवादी विचारधारा रखते हैं वास्तव में अनपढ़ और मूर्ख हैं।  इस्लाम हमें बुराइयों से दूर रखता है।

रविवार, 10 मार्च 2024 18:34

जीने की कला-2

हमने पहली कड़ी में चिंतन और विचार के महत्व के बारे में बात की थी हमने बताया कि अच्छे जीवन के लिए सबसे पहला क़दम यह है कि इंसान सोच विचार करने वाला हो।

हमें चिंतन मनन की शुरुआत ईश्वर के बारे में और ब्रह्मांड के बारे में चिंतन से करना चाहिए और अपने मन मस्तिष्क का दायरा विस्तृत करना चाहिए। इंसान अपने शरीर के जिस अंग का भी अधिक प्रयोग करता है उसमें अधिक उत्थान और क्षमता पैदा होती है। ज़ाहिर है कि जब कोई इंसान चिंतन मनन पर अपना मन केन्द्रित करे तो उसकी चिंतन शक्ति का दायरा बढ़ता है और वह अपने जीवन में बेहतर निर्णय लेने की स्थिति में आ जाता है। एसा व्यक्ति अपने जीवन पर पूरी तरह नियंत्रण रखता है और जीवन के सभी मामलो के लिए उसका मस्तिष्क विशलेषण करने और समाधान निकालने में सक्षम हो जाता है। समय प्रबंधन विशलेषक एलेक मैकेन्ज़ी का कहना है कि हर विफलता का कारण बग़ैर चिंतन किए क़दम उठाना है।

हर काम में पहले चिंतन करने का आदेश सभी पैग़म्बरों और रसूले इस्लाम ने दिया है। बुद्धि का मतलब अज्ञानता का रास्ता बंद करना है। बुद्धि वही शक्ति है जो हक़ीक़त तक पहुंच जाती है। इंसान की इच्छाएं हमेशा नियंत्रण से बाहर होने की कोशिश करती हैं, वह जंगली जानवर की तरह होती हैं कि यदि उन्हें बांध कर न रखा जाए तो निरंकुश होकर बार बार झपट पड़ती हैं। यह इंसान को कभी किसी दिशा में और कभी किसी अन्य दिशा में खींचती हैं और इंसान संकट में उलझकर रह जाता है। इंसान की इच्छाओं पर बुद्धि का पहरा होना ज़रूरी है। पैग़म्बरे इस्लाम बुद्धि की परिभाषा में कहते हैं कि यह अज्ञानता को मिटाने का सबसे बड़ा हथियार है। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन हैः निश्चित रूप से बुद्धि अज्ञानता के मार्ग को बंद करने का नाम है, इंसान की इच्छाएं सबसे दुष्ट जानवर की भांति होती हैं  यदि उनके पांव में बेड़ी न डाली जाए तो वह हर तरफ़ चकराती फिरती हैं। अतः बुद्धि अज्ञानता के पांव में बेड़ियां डाल देती है।

कहते हैं कि एक मूर्ख व्यक्ति महान दार्शनिक अरस्तू के सामने एक ज्ञानी व्यक्ति की कमियां गिनवाने लगा और उसकी बुराई करने लगा। समझदार व्यक्ति ख़ामोश नहीं रहा बल्कि उस मूर्ख व्यक्ति को डांटने लगा। अरस्तू ने मूर्ख व्यक्ति से तो कुछ नहीं कहा लेकिन समझदार व्यक्ति को डांटा। उसने आश्चर्य से पूछा कि आप मुझें क्यों डांट रहे हैं जबकि बुरा भला कहना तो उस मूर्ख ने शुरू किया था? दूसरी बात यह है कि वह मूर्ख आदमी है जबकि मैंने तो ज्ञान हासिल किया है। अरस्तू ने जवाब दिया कि मैं भी इसी लिए तुमको डांट रहा हूं कि तुम समझदार आदमी हो और समझदार आदमी मूर्ख व्यक्ति को पहचानता है इसलिए कि वह ख़ुद भी किसी समय अज्ञानी था बाद मे उसने ज्ञान प्राप्त किया और ज्ञानी हो गया मगर अज्ञानी व्यक्ति ज्ञानी को नहीं पहचानता क्योंकि वह अब तक ज्ञान से दूर है।

क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार इंसान को यह अधिकार नहीं है कि जिस चीज़ को वह अनुचित समझता है उस पर विश्वास कर ले और एसी विशेषताएं अपने भीतर पैदा करे जो अच्छी नहीं हैं, वह काम करे जिसे वह उचित नहीं समझता। इस्लाम इंसानों को सोचने और चिंतन करने की आदत डालना चाहता है। ईश्वर क़ुरआन के सूरए युनुस की आयत संख्या 100 में कहता है कि ईश्वर उन लोगों पर जो चिंतन नहीं करते पस्ती डाल देता है।

विवेक और चिंतन इंसान के लिए अपने लौकिक जीवन को सुव्यवस्थित करने का सबसे अच्छा साधन है। इंसानों के बीच यदि कोई अंतर है तो वह उनके विचारों और सोच का अंतर है। हर व्यक्ति अपनी सोच और रुजहान के अनुसार अपने जीवन के मामलों को निपटाता है। सफल इंसान उच्च विचारों, सार्थक, अंकुरित और सृजनकारी सोच के साथ अपने लिए उपलब्धियां अर्जित करते हैं जबकि विफल लोग नकारात्मक सोच, दुर्भावना और अज्ञानता में अपने जीवन को अंधकार की गहराइयों में पहुंचा देते हैं।

जीवन की कड़ियां और उसका पूरा नक़्शा हमारे अपने हाथ में होता है और इसका प्रबंधन हमारी बुद्धि द्वारा होता है। अलबत्ता कठिनाइयां और विपरीत परिस्थितियां हर इंसान के जीवन में आती रहती हैं। कठिन परिस्थितियों में ईश्वर पर भरोसा करना और उससे भलाई की दुआ करना चाहिए और अपनी बुद्धि से हालात को नियंत्रण में लाने की कोशिश करना चाहिए। उदाहरण स्वरूप हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपने बेटे की बीमारी की ख़बर सुनकर यह महसूस करे कि अब वह दीवार से जा लगा है और सारे रास्ते बंद हो गए हैं जबकि दूसरा व्यक्ति इस स्वभाव का होता है कि इस प्रकार की स्थिति का सामना होने पर तत्काल अपने बेटे के लिए योग्य डाक्टर की तलाश में लग जाता है।

जीवन के मामलों का सही प्रबंधन, सही योजनाबंदी, तथा नफ़ा नुक़सान का आंकलन विवेक और बुद्धि के माध्यम से ही होता है। इस्लामी कथनों और शिक्षाओं में जीवन के विषयों को सही प्रकार समझने के लिए बुद्धि और विवेक प्रयोग करने पर ज़ोर दिया गया है। इस बात पर अधिक बल दिया गया है कि कामों के अंजाम के बारे में पहले से ही अच्छी तरह सोच लिया जाए और समस्त संभावित परिस्थितियों के लिए पहले से ही तैयारी की जाए।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास आया और उसने कहा कि हे पैग़म्बर मुझे आप कोई नसीहत कर दीजिए। पैगम्बरे इस्लाम ने उससे तीन बार पूछा कि अगर मैं नसीहत करूं तो तुम उस पर अमल करोगे? उस व्यक्ति ने तीनों बार यही जवाब दिया कि हां मैं अमल करुंगा। पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि मैं तुम्हें नसीहत करता हूं कि जब भी कोई काम करना चाहो तो उसके अंजाम के बारे में अच्छी तरह विचार कर लो। यदि वह अंजाम तुम्हारे उत्थान और मार्गदर्शन में मददगार हो तो अंजाम दो और यदि वह गुमराही का कारण बने तो उससे परहेज़ करो।

उस व्यक्ति से अमल करने का वादा लेने की पैग़म्बरे इस्लाम की शैली से पता चलता है कि अंजाम के बारे में सोचना बहुत ज़रूरी है। पैग़म्बरे इस्लाम हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें चिंतन मनन की आदत होनी चाहिए कभी भी हमको एसे किसी काम में नहीं पड़ना चाहिए जिसके परिणामों के बारे में हमने पहले से ही अच्छी तरह सोच विचार और चिंतन नहीं किया है।

कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति जब कोई काम शुरू करता है तो पहले उसके अंजाम के बारे में सोच लेता है। वह यूंही कोई काम शुरू नहीं करता बल्कि उस काम के भौतिक और आध्यात्मिक लाभ का भलीभांति आंकलन कर लेता है। चूंकि इंसान की बुद्धि अच्छाई और बुराई के अंतर को समझन में मदद देती है अतः बुद्धि का प्रयोग करके किसी भी चीज़ और किसी भी काम के सभी संभावित आयामों और पहलुओं को समझा जा सकता है और भलीभांति समझ लेने के बाद उसे अंजाम दिया जा सकता है। मनोविशेषज्ञों का कहना है कि बुद्धि ब्रह्मांड को उत्थान और परिपूर्णता के अंतिम बिंदु पर ले जाने वाला साधन है।

पैग़म्बरे इस्लाम जीवन के मामलों में चिंतन मनन के महत्व को बयान करते हुए कहते हैं कि मैं अनुशसा करता हूं कि जब भी तुम कोई काम करना चाहो तो उसके अंजाम के बारे में पहले ही सोच लो, यदि उससे तुम्हें विकास और उत्थान मिलने वाला हो तो उसको अंजाम दो और यदि उससे ख़राबी और विनाश होने वाला हो तो उसे छोड़ दो।

कहते हैं कि एक दिन एक गौरैया अपना घोंसला बनाने में व्यवस्था थी। उसने बड़ी मेहनत करके एक पेड़ पर अपना घोसला बना लिया। उस जंगल में जहां वह पेड़ था एक हुदहुद रहता था जिसे बहुत बुद्धिमान माना जाता था। हुदहुद बार बार गौरैया से कह रहा था कि तुम इस पेड़ पर घोसला न बनाओ मगर गौरैया ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। दिन गुज़रते गए, उस गौरैया ने अपने घोसले में अंडे दिए और अपने अंडों की बड़ी देखभाल करती थी। अंडों से बच्चों के निकलने का समय क़रीब आ रहा था। एक दिन सुबह को लोगों के बोलने और आरी चलने की आवाज़ आने लगी। गौरैया ने यह आवाज़ सुनी तो बाहर देखा और यह देखकर रोने लगी कि उसी पेड़ को कुछ लोग काट रहे हैं जिस पर उसका घोसला है। वह रोती हुई हुदहुद के पास पहुंची। गौरैया ने कहा कि मेरी मदद करो। हुदहुद ने कहा कि तुमने एसे पेड़ पर घोंसला बनाया जो इंसानों के गुज़रने के रास्ते में पड़ता था। मैंने इसी लिए तुमको बार बार चेतावनी दी थी कि इस पेड़ पर घोंसला न बनाओ किसी और पेड़ पर घोसला बनाओ। अब कुछ नहीं हो सकता। जल्दबाज़ी करने और बिना सोचे काम करने का यही अंजाम है।

अंजाम के बारे में सोच लेना समझदार इंसानों की पहिचान है जिससे इंसान को अच्छी ज़िंदगी मिलती है। जो लोग अपने कामों के अंजाम के बारे में पहले ही सोचने और विचार करने की आदत नहीं रखते वह बार बार ग़लतियां करते और फिसलते हैं और वह बार बार नीचे गिरते हैं। कोई भी महत्वपूर्ण फ़ैसला करने के लिए ज़रूरी है कि सोचा जाए और आंकलन किया जाए। हर इंसान के लिए ज़रूरी है कि अपने काम के अंजाम के बारे में सोचे और इस तरह अपने जीवन को बेहतर बनाए। जो लोग अंजाम के बारे में सोचे बग़ैर काम करते हैं और भविष्य की संभावित परिस्थितियों का आंकलन किए बग़ैर फ़ैसला कर लेते हैं वह हमेशा मुसीबतों में फंसते हैं और रोज़ रोज़ पछताते और परेशान होते हैं। काम के सभी पहलुओं पर पहले से विचार कर लेना और भलीभांति सोच विचार करना सबसे उचित तरीक़ा है और इससे इंसान ख़ुद को गलतियों से बचा सकता है।

महापुरुषों का कहना है कि जो व्यक्ति बिना सोचे समझे और विवेक का प्रयोग किए बग़ैर कोई काम शुरू कर देता है वह उस यात्री की भांति है जो ग़लत रास्ते  पर चल पड़ा हो, वह अपनी रफ़तार जितनी बढ़ाएगा अपने रास्ते और अपने गंतव्य से उतना ही दूर होता जाएगा।

 

सोच विचार और अंजाम के आंकलन के मार्ग में एक बड़ी रुकावट है घमंड। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि जो व्यक्ति घमंड में पड़ जाता है वह अपने कामों के अंजाम के बारे में नहीं सोचा।

घमंड करने वाला इंसान कभी न कभी पछताता है क्योंकि एसी स्थिति में इंसान सही मूल्यांक नहीं कर पाता न ख़ुद को समझ पाता है और न दूसरों को समझ पाता है। वह अपने जीवन के मामलों के आंकलन में हमेशा ग़लती करता है और इसी के चलते उसे बार बार अनेक मामलों में पछताना पड़ता है।

ईरान के बारे में तथ्यपरक देशों की रिपोर्ट पर विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के बजाए अन्तर्राष्ट्रीय तथ्यपरक टीम को अपने ही देशों में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करनी चाहिए।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की तथ्यपरक समिति ने ईरान में पिछले साल होने वाले उपद्रवों के बारे अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि ईरान में मानवाधिकारों का हनन देखा गया है।  नासिर कनआनी ने इसका कड़ाई से खण्डन किया है।  उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में पेश की गई बातों का कोई भी क़ानूनी आधार नहीं है।

ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि यह रिपोर्ट बताती है कि इसको जर्मनी, ब्रिटेन, अमरीका और ज़ायोनियों से पैसे लेकर बनाया गया है जिनके आदेश पर इसको तैयार किया गया है।  उन्होंने बताया कि तथ्यपरक समिति का गठन करने वाले देश, ईरान के भीतर शासन की मज़बूती से अप्रसन्न हैं।  पिछले साल ईरान में अशांति फैलाने में उनका हाथ रहा किंतु उसमें भी वे विफल रहे इसलिए बहुत क्रोधित हैं।  अब वे एक रिपोर्ट पेश करके ईरानी राष्ट्र से बदला लेना चाहते हैं।

ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने कहा कि तथाकथित तथ्यपरक समिति का गठन करने वाले देशों के लिए उचित यह होगा कि वे ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के बजाए अपने ही देशों में किये जा रहे मानवाधिकारों के हनन के बारे में कोई कार्यवाही करें।  

पीएमएनएल और पीपीपी के संयुक्त प्रत्याशी अब पाकिस्तान के राष्ट्रपति होंगे। इस प्रकार से वे पाकिस्तान के 14वें राष्ट्रपति बने हैं।

राष्ट्रपति पद के चुनाव में शनिवार को आसिफ़ अली ज़रदारी को 255 वोट मिले जबकि उनके मुक़ाबले में अचकज़ई को 119 मत डाले गए।

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पार्टी ने एक बयान जारी करके इस देश के हालिया संसदीय चुनाव के परिणामों पर सवाल खड़े किये हैं।  इस पार्टी का दावा है कि हालिया चुनावों में गड़बड़ी के ही कारण नए राष्ट्रपति अस्तित्व में आए हैं।

हालिया दिनों में नवाज शरीफ की पार्टी PML-N और बिलावल भुट्टो की पार्टी PPP ने गठबंधन करके नई सरकार बनाने पर समझौता किया था।  इन दोनो दलों का लक्ष्य पहले तो तहरीके इंसाफ़ पार्टी को सत्ता के रास्ते से हटाना था क्योंकि हालिया संसदीय चुनाव में इमरान ख़ान से संबन्ध रखने वाले दल ने अधिक वोट हासिल किये थे।

पाकिस्तान में हालिया राष्ट्रपति चुनाव के संबन्ध में राजनीतिक मामलों के एक टीकाकार अब्बास ख़टक कहते हैं कि यह बात निश्चित रूप में कही जा सकती है कि पीएमएनएल और पीपीपी गठबंधन का मुख्य उद्देश्य तहरीके इंसाफ़ पार्टी को सत्ता में आने से रोकना था जिसमें वे पूरी तरह से सफल रहे।  हालांकि यह बात भी बहुत महत्वपूर्ण हैं कि इस गठबंधन को पाकिस्तान की वर्तमान समस्याओं का समाधान भी करना होगा क्योंकि वहां के लोग इसके इंतेज़ार में बैठे हैं।  दूसरी ओर कुछ हल्क़ों को यह आशा है कि पाकिस्तान की नई सरकार इस देश को आर्थिक दृष्टि से मज़बूत बनाने के प्रयास करेगी।

पिछली बार जिस दौरान आसिफ़ अली ज़रदारी, पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने थे उस दौरान उन्होंने इस देश के पड़ोसी देशों विशेषकर इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ व्यापारिक और आर्थिक क्षेत्रों में संबन्धों को अधिक मज़बूत किया था।  एसे में कहा जा सकता है कि दूसरी बार उनके राष्ट्रपति बनने से ईरान के साथ पाकिस्तान के संबन्धों को एक नई उड़ान मिल सकती है।  इस बात की आशा की जाती है कि आरिफ़ अलवी के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद आसिफ़ अली ज़रदारी का राष्ट्रपति काल, अपने पड़ोसी देशों के साथ पाकिस्तान के संबन्धों के अधिक फलने-फूलने के अवसर उपलब्ध करवाएगा।

बहुत से विशलेषक यह मानते हैं कि पाकिस्तान की भूतपूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के पति और इस देश के पूर्व विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो के पिता, 68 वर्षीय ज़रदारी, द्वारा राष्ट्रपति पद के संभालने से पाकिस्तान के पड़ोसी देशों विशेषकर अफ़ग़ानिस्तान में इस बात की प्रतीक्षा की जा रही है कि वहां की नई सरकार, इस्लामाबाद और काबुल के संबन्धों में मौजूद चुनौतियों को दूर करने के लिए निश्चित रूप से सकारात्मक क़दम उठाएगी।

अमरीका के राष्ट्रपति ग़ज़्ज़ा के बारे में अवैध ज़ायोनी शासन को लेकर विरोधाभासी बातें कह रहे हैं।

जो बाइडेन ने जहां यह कहा है कि ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के बारे में इस्राईल को ध्यान रखना चाहिए वहीं पर वे यह भी कहते हैं कि हम इस्राईल का समर्थन जारी रखेंगे।

एमएसएनबीसी के संवाददाता से बात करते हुए अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा कि इस्राईल का समर्थन बहुत ज़रूरी है जिसकी कोई लाल रेखा नहीं है।  उनका यह भी कहना था कि इस्राईल के लिए हथियारों की स्पलाई का काम रुक नहीं सकता।

ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनियों के हाथों 30000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों की शहादत की ओर संकेत करते हुए जो बाइडेन कहते हैं कि हमास को समाप्त करने के कारण इस्राईल को 30000 फ़िलिस्तीनियों की हत्या नहीं करनी चाहिए थी।  एक रेड लाइन होनी चाहिए थी।  अमरीकी राष्ट्रपति के अनुसार इस बारे में उसको अधिक सावधानी से काम लेना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि मैं पुनः इस्राईल जाकर वहां के सांसदों से युद्ध से संबन्धित विषयों पर वार्ता करना चाहता हूं।  इसी के साथ बाइडेन का कहना है कि इस्राईल को अपनी रक्षा का पूरा अधिकार है।

ज्ञात रहे कि फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमलों में अबतक 30960 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।इन पाश्चिक हमलों के दौरान 72524 फ़िलिस्तीनी घायल हो गए जिनमें से बहुत से घायल फ़िलिस्तीनियों के उपचार के लिए दवाएं उपलब्ध नहीं हैं।  विशेष बात यह है कि ग़ज़्ज़ा में अबतक जो 30960 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं उनमें 72 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं शामिल हैं।

इस सम्मेलन का आयोजन इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच आपसी समझ और सम्मान को ध्यान में रखते हुए किया गया था जिसमें भारत और ईरान की प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लाम और हिंदू धर्म मे महदी मोऊद की अवधारणा पर एक अंतर-धार्मिक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें मशहूर हस्तियों ने भाग लिया।

यह सम्मेलन "महदी मोऊद" के संबंध में विभिन्न धर्मों की अवधारणाओं और विद्वानों के विचारों का आदान-प्रदान करने और विषय पर मूलभूत मतभेदों को समझने का एक उत्कृष्ट माध्यम था।

इस अवसर पर, भारत में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदी महदवीपुर ने इस्लाम में महदीवत और महदी मोऊद की अवधारणा का उल्लेख किया और कहा: इस्लाम में एक उद्धारकर्ता  की अवधारणा हमेशा की अवधारणा से आती है। महदी मोऊद (अ.स.) को शामिल किया गया है, जो ज़ोहूर करेंगे और दुनिया में न्याय स्थापित करेंगे, यह विश्वास विशेष रूप से शियाओं के बीच केंद्रीय स्थान रखता है और यह कुछ मतभेदों के साथ सुन्नी भाइयों के बीच भी देखा जाता है।

ईरान में भारत के सांस्कृतिक सलाहकार, डॉ. बलराम शुक्ला ने हिंदू धर्म में मुंजी आखेरुज ज़मान पर चर्चा करते हुए कहा: हिंदू धर्म मे मुंजी आखर की अवधारणा है जिसे "काल्कि अवतार" के रूप में जाना जाता है। जोकि विष्णु के अंतिम अवतार के रूप में जाहिर होगा, वह कलयुग की बुराई को समाप्त करेगा और दुनिया में व्यवस्था बहाल करेगा, ये दोनों एक उद्धारकर्ता के आने का प्रतिनिधित्व करते हैं जो दुनिया में न्याय लाएगा।

इस सम्मेलन में भारत में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदी मेहदीपुर , ईरान में भारत के सांस्कृतिक सलाहकार डॉ. बलराम शुक्ला और अदयान व मज़ाहिब विश्वविद्यालय में धर्म और सूफीवाद विभाग के निदेशक डॉ. मोहम्मद रूहानी ने बात की।

 

हिज़बुल्ला ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा के मामले में न्यूट्रल या तटस्थ रहना संभव ही नहीं है।

लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हिज़बुल्ला के उप महासचिव कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा की वर्तमान स्थति के बारे में दो दृष्टिकोंण पाए जाते हैं।

पहला दृष्टिको वहां पर जारी युद्ध से संबन्धित है जिसके अन्तर्गत फ़िलिस्तीनी जियाले पूरी क्षमता और धैर्य के साथ ज़ायोनियों का मुक़ाबला कर रहे हैं।  वे अपनी जान जोखिम में डालकर अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करवाना चाहते हैं।  इस काम के लिए वे हमले, अत्याचार, विध्वंस, भूख और प्यास सबको सहन कर रहे हैं।

नईम क़ासिम के अनुसार दूसरा दृष्टिकोण यह है कि ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के आक्रमण में अमरीका उसके साथ है।  उसी के समर्थन से अवैध ज़ायोनी शासन, ग़ज़्ज़ा के भीतर हर प्रकार के अपराध कर रहा है जिसमें अस्पतालों पर हमले और घायल फ़िलिस्तीनियों के उपचार में बाधाएं डालना भी शामिल है।

हिज़बुल्ला के नेता कहते हैं कि फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध हर प्रकार की पाश्विकता का प्रयोग करने के बावजूद अवैध ज़ायोनी शासन अबतक वहां पर कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया है बल्कि ग़ज़्ज़ा की दलदल में धंसता जा रहा है।

नईम क़ासिम ने कहा कि प्रतिरोध जारी रहेगा जो विजयी होगा।  यही कड़ा प्रतिरोध है जो अवैध ज़ायोनी शासन को उसके लक्ष्यों तक पहुंचने में बाधा बना हुआ है।  उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनियों का अलअक़सा तूफ़ान आपरेशन, पूरे विश्व स्तर पर है जिसके परिणाम पूरी दुनिया को दिखाई देंगे।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन शेख मुहम्मद संफ़ूर ने कहा: दमनकारी इस्राईलीयो ने ग़ज़्ज़ा को सहायता बंद कर दी है और पांच लाख फ़िलिस्तीनियों को भुखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, बहरीन की राजधानी मनामा में अल-द्राज़ टाउन के इमाम, जुम्मा हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमान शेख मुहम्मद संफ़ूर ने इमाम सादिक मस्जिद (अ) मे शुक्वार के उपदेश के  दौरान: दमनकारी इस्राईली सरकार ने ग़ज़्ज़ा में घरों को नष्ट कर दिया, अस्पतालों और शरणार्थी केंद्रों को नष्ट कर दिया लेकिन फिर भी उसका दिल नहीं भरा, उसने 30,000 से अधिक लोगों की जान लेना जारी रखा, और 70,000 फ़िलिस्तीनी लोगों को विस्थापित किया। जिनके पास कठोर ठंड और तीव्र बमबारी से बचाने के लिए कोई आश्रय नहीं था, लेकिन यह सब उनके दिल को ठंडा नहीं हुआ और उन्होंने फ़िलिस्तीनियों का पीछा किया और जहां भी वे गए, उन्हें निशाना बनाया।

उन्होंने कहा: इस अकथनीय क्रूरता के बावजूद, इस्राईलीयो का उत्पीड़न दिन-प्रतिदिन और अधिक क्रूर होता जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, आधे से अधिक लोग अकाल और भुखमरी से प्रभावित हुए हैं।

उन्होंने कहा: ज़ायोनी शासन का लक्ष्य फ़िलिस्तीनियों को उनकी ही ज़मीन से खदेड़ना और प्रतिरोध मोर्चे पर उनकी सभी शर्तों को स्वीकार करने के लिए दबाव डालना है, लेकिन गाजा के लोग चाहे कितने भी क्रूर और दमनकारी क्यों न हों, अपनी ज़मीन नहीं छोड़ेंगे। इस्राईली अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकेंगे और प्रतिरोध के बहादुर सैनिक एक के बाद एक उसे अपमानजनक तरीके से परास्त करते रहेंगे।