
رضوی
हज़रत इमाम हुसैन का चेहलुम का मिलियन मार्च दुशमनों के लिए डरावना सपना
मौलाना इमाम मुहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर मिलियन मार्च को दुशमनों के मुक़ाबले में सत्य प्रेमियों की मोर्चाबंदी का नाम दिया और कहा कि चेहलुम के अवसर का मिलियन मार्च दुशमनों के लिए डरावना सपना बन गया है।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम मुहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर मिलियन मार्च को दुशमनों के मुक़ाबले में सत्य प्रेमियों की मोर्चाबंदी का नाम दिया और कहा कि चेहलुम के अवसर का मिलियन मार्च दुशमनों के लिए डरावना सपना बन गया है।
हुज्जतुल इस्लाम मुहम्मद जवाद हाज अली अकबरी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में इमाम हुसैन के चेहलुम के कार्यक्रम के वैभवशाली आयोजन पर इराक़ की सरकार और जनता का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि जब तीन करोड़ श्रद्धालु लब्बैक या हुसैन का नारा लगाते हुए चेहलुम के मिलियन मार्च में आगे बढ़ते हैं तो साम्राज्यवादी ताक़तें कांप जाती हैं।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि इमाम हुसैन के चेहलुम का कार्यक्रम साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया को और तेज़ कर रहा है।
हुज्जतुल इस्लाम हाज अली अकबरी ने कहा कि इमाम हुसैन का चेहलुम इस्लाम को विजय दिलाएगा, उन्होंने कहा कि प्रतिरोध, आशा, दृढ़ता, अथक प्रयास, दुशमन से दूरी, ख़तरों से न डरना और इंसानों से प्रेम इमाम हुसैन के चेहलुम के संदेश हैं।
सऊदी और ईरानी विदेश मंत्रियों के बीच टेलीफोन बातचीत/गाज़ा समेत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा
सऊदी अरब के विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान और ईरान के विदेश मंत्री मनसब अब्बास अराक्ची ने टेलीफोन पर बातचीत की और गाज़ा समेत विभिन्न मुद्दों पर भी चर्चा की।
सऊदी अरब के विदेश मंत्री फैसल बिन फरहान और ईरान के विदेश मंत्री मनसब अब्बास अराक्ची ने टेलीफोन पर बातचीत की और गाज़ा समेत विभिन्न मुद्दों पर भी चर्चा की।
इस मौके पर दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय संबंधों के विकास और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर भी चर्चा हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने दोनों देशों के बीच निरंतर समन्वय और परामर्श के महत्व पर भी चर्चा की। इस बातचीत के दौरान क्षेत्र में सुरक्षा और शांति के ऊपर भी बात की गई।
फ़ोवाद शुक्र का बदला लेने के लिए हिज़्बुल्लाह की कार्यवाही में तीन महत्वपूर्ण संदेश
हिज़्बुल्लाह ने आधिकारिक रूप से जो बयान दिया है उसके अनुसार बदला लेने वाली कार्यवाही का यह पहला चरण था।
ज़ायोनी सरकार ने लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के एक वरिष्ठ कमांडर फ़ोवाद शुक्र को शहीद कर दिया था जिसके जवाब में रविवार को लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध हिज़्बुल्लाह ने सैकड़ों राकेटों, मिसाइलों और ड्रोनों से ज़ायोनी सेना के ठिकानों को लक्ष्य बनाया।
हिज़्बुल्लाह ने जो जवाबी और बदला लेने की कार्यवाही अंजाम दी उसमें कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु व संदेश मौजूद हैं।
पहलाः हिज़्बुल्लाह की कार्यवाही ज़ायोनी सरकार की ख़ुफ़िया जानकारियों की विफ़लता की सूचक है। इस्राईल ने हिज़्बुल्लाह के जवाबी हमले से पहले ही हमला कर दिया और कहा कि हमने हिज़्बुल्लाह के राकेट लांचर और दूसरे महत्वपूर्ण ठिकानों को नष्ट कर दिया जबकि हिज़्बुल्लाह ने इस्राईली हमलों के बाद 300 से अधिक राकेटों को फ़ायर किया और ड्रोनों को उड़ाकर इस्राईली सेना के ठिकानों को लक्ष्य बनाया।
अगर इस्राईल ने हिज़्बुल्लाह के महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया था तो उन राकेटों और मिसाइलों को कहां से फ़ायर किया गया? इसी प्रकार हिज़्बुल्लाह ने अपने ड्रोनों को कहां से उड़ाया?
रोचक बात यह है कि हिज़्बुल्लाह ने यह जवाबी हमला उस समय किया कि जब इस्राईल में पूरी तरह चौकसी बरती जा रही थी और ज़ायोनी अधिकारियों ने इससे पहले दावा किया था कि वे हिज़्बुल्लाह की जवाबी कार्यवाही को रोकने का प्रयास करेंगे।
दूसराः हिज़्बुल्लाह ने जो जवाबी हमला अंजाम दिया उसमें दूसरा बिन्दु यह है कि इसमें इस्राईली सेना के 10 से अधिक ठिकानों को लक्ष्य बनाया गया जिसमें मोसाद, शाबाक और तेअलीव में ज़ायोनी सेना की जानकारियों के ठिकाने थे। दूसरे शब्दों में हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल के ख़िलाफ़ अब तक की सबसे बड़ी कार्यवाही अंजाम दी है। साथ ही हिज़्बुल्लाह ने अपने वादे के अनुसार फ़ोवाद शुक्र के बदले की कार्यवाही अकेले दम पर और स्वतंत्र ढंग से अंजाम दी।
तीसराः हिज़्बुल्लाह ने जो आधिकारिक बयान दिया है उसके अनुसार यह बदले की कार्यवाही का पहला चरण था। इस आधारिक बयान का एक अर्थ यह है कि हिज़्बुल्लाह चाहता है कि बदले की भावना अब भी इस्राइलियों में बाक़ी रहे। अलबत्ता इसका दूसरा अर्थ भी यह हो सकता है कि बदले की दूसरे चरण की कार्यवाही की प्रतीक्षा में रहना चाहिये और यह ज्ञात नहीं है कि दूसरे चरण की कार्यवाही पहले चरण से भिन्न होगी या उससे अधिक सख़्त व कड़ी होगी।
ज़ायोनियों के लिए सबसे बुरी परिस्थिति यह है कि इस कार्यवाही व हमले के बाद दूसरे हमले की प्रतीक्षा में रहें जो इससे भी अधिक पीड़ादायक या अधिक स्ट्रैटेजिक वाली होगी।
फ़िलिस्तीनीयों के समर्थन में एक न्यूयॉर्क नेटवर्क लॉन्च किया गया
फिलिस्तीन के साथ एकजुटता में अनुभव साझा करने और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फिलिस्तीन के लिए सबसे बड़ा वैश्विक छात्र सहायता नेटवर्क न्यूयॉर्क शहर में लॉन्च किया गया।
अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और कई अरब और इस्लामी देशों सहित दुनिया के विभिन्न विश्वविद्यालयों के सैकड़ों छात्र दल शामिल हैं।
बुधवार, 21 अगस्त को फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले छात्र कार्यकर्ताओं, छात्र संगठनों और यूनियनों ने फिलिस्तीन के समर्थन में बढ़ते अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के जवाब में और गाजा युद्ध को रोकने के लिए "ग्लोबल स्टूडेंट नेटवर्क फॉर फिलिस्तीन सपोर्ट" (जीएसपीएन) की स्थापना और लॉन्च करने की कोशिश की।
शासन के नरसंहार और विश्वविद्यालयों में इजरायली शासन के निवेश का बहिष्कार करने की घोषणा की गई।
अपने लॉन्च के अवसर पर, इस नेटवर्क ने एक बयान में घोषणा की कि यह छात्र कार्यकर्ताओं को रणनीतियों का आदान-प्रदान करने और अनुभव साझा करने और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक सुरक्षित और विश्वसनीय मंच प्रदान करता है और फिलिस्तीन समर्थक छात्र कार्यकर्ताओं के लिए समर्थन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
बयान में कहा गया है कि नेटवर्क फिलिस्तीन समर्थक छात्रों, विशेष रूप से दूरदराज या अलग-थलग समुदायों में रहने वाले छात्रों को प्रभावी रणनीतियों को लागू करने और अपने समुदायों में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए आवश्यक उपकरण, समर्थन और ज्ञान से लैस करना चाहता है।
इस नेटवर्क के छात्र नेताओं का कहना है कि वे वैश्विक स्तर पर फ़िलिस्तीनियों की आवाज़ को मजबूत करने, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध पर दुनिया का ध्यान केंद्रित करने, साथ ही न्याय के लिए विरोध प्रदर्शनों और अभियानों के समन्वय के साथ-साथ एक वैश्विक नेटवर्क के निर्माण के लिए "रक्षा", "शिक्षा", "कार्य" और "एकता" के चार बुनियादी लक्ष्यों के लिए छात्र कार्यकर्ता प्रतिबद्ध हैं।
पाकिस्तान के कालाबाग में अरबईन के जुलूस के दौरान तक्फिरायों का हमला,2 शहीद 80 घायल
पाकिस्तान के शहर मियांवाली कालाबाग इलाके में कट्टरपंथियों और वाहाबीयों का चेहल्लूम के मौके पर हमला जिसमें दो आज़ादार शहीद और 80 लगभग घायल हो गए
पाकिस्तान के शहर मियांवाली कालाबाग इलाके में कट्टरपंथियों और वाहाबीयों का चेहल्लूम के मौके पर हमला जिसमें दो आज़ादार शहीद और 80 लगभग घायल हो गए।
एक रिपोर्ट के मुताबिक,क्षेत्र का सामूहिक अरबईन कार्यक्रम कई दशकों से कालाबाग शहर में आयोजित किया जाता रहा है जिसमें क्षेत्र भर से श्रद्धालु भाग लेते हैं कोरोना के दिनों से ही लोग नियमित रूप से माशी (वाक) कर जुलूस में शामिल होते हैं।
बताया जा रहा है कि इस बार कालाबाग के स्थानीय और शिया सुन्नी उलेमा ने चेतावनी दी है कि आज तकफ़ीरियों ने नमाज़ के समय अपना कार्यक्रम बनाया है जिसमें सभी लोग इकट्ठा हो रहे हैं और उनका मुख्य लक्ष्य अरबईन की नमाज़ में खलल डालना और जुलूस पर हमला करना है।
जिसके बाद संस्थाओं के प्रमुखों और अल्लामा सैयद इफ्तिखार हुसैन नकवी की अध्यक्षता में जुलूस की एसओपी बनाई गई और जुलूस और मातमी शांतिपूर्ण रहे इसके लिए विरोधियों की सभी मांगें मान ली गईं फिर भी हमला किया।
तकफ़ीरियों ने एक बैठक में निर्णय लिया कि आस्थावान छोटे-छोटे समूहों में जाएंगे और दोपहर 12 बजे के बाद कालाबाग में प्रवेश करेंगें।
रिपोर्ट के मुताबिक, शोक मनाने वालों द्वारा एसओपी का सख्ती से पालन किया गया, लेकिन जब लोग बाजार पहुंचे तो कट्टरपंथियों द्वारा छतों से ईंट-पत्थर बरसाना शुरू कर दिया गया।
चेहल्लुम के मौके पर आलम और तिरंगा लहरा कर दिया एकता का पैगाम
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहल्लुम सोमवार को आयोजित किया गया इस मौके पर बेरूनी और स्थानीय अंजुमनों ने नौहा व मातम कर वक्त के इमाम को पुरसा पेश किया।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहल्लुम सोमवार को आयोजित किया गया इस मौके पर बेरूनी और स्थानीय अंजुमनों ने नौहा व मातम कर वक्त के इमाम को पुरसा पेश किया।
हज़रत इमाम हुसैन की याद में मरहूम सैयद अनवर हुसैन के परिवार की ओर से मजलिस चेहल्लुम का आयोजन सोमवार को किया गया। इसमें स्थानीय लोगों के साथ बाहर के भी मेहमानों ने हिस्सा लिया।
मजलिस को यूपी के मौलाना गुलाम अली नकवी ने संबोधित किया वहीं, शबीह गोपालपुरी, फरमान जंगी पुरी, अमन मुजफ्फर पुरी ने नौहा और पेश खानी किया। जुलूस अनवर आर्केड से निकल कर अंजुमन प्लाजा, उर्दू लाइब्रेरी, डेली मार्केट, चर्च रोड, विक्रांत चौक, कर्बला चौक होते हुए कर्बला पहुंच कर संपन्न हुआ।
चेहल्लुम के मजलिस को मौलाना गुलाम अली नकवी, मौलाना सैयद बाकर रजा दानिश और मौलाना नसीर आजमी ने संबोधित किया।
मातमी जुलूस का चर्च रोड में शिविर लगा कर स्वागत किया गया जुलूस में शामिल मातम कर रहे तमाम लोगों का गुलाब जल से छिड़काव कर स्वागत किया।
कर्बला के शहीदों के चालीसवें पर गमज़दा माहौल में निकला चेहल्लुम का जुलूस
लखनऊ में कर्बला के शहीदों के चालीसवें पर चेहल्लुम का जुलूस निकला अज़ादार नंगे पावं शहीदों को पुरसा देने के लिये जुलूस में हिस्सा लिए।
पुराने लखनऊ में कर्बला के शहीदों के चालीसवें पर चेहल्लुम का जुलूस निकला अज़ादार नंगे पावं शहीदों को पुरसा देने के लिये जुलूस में हिस्सा लिए।
रोते हैं सब खास-ओ-आम चेहल्लुम हुआ तमाम, चले आओ ए जव्वारों चले आओ, मेरी आवाज पे लब्बैक पुकारे जाओ। दर्द भरे नौहों और या हुसैन, या हुसैन की सदाओं के साथ अजादारों के गमजदा चेहरे नम आंखों से कर्बला के शहीदों को पुरसा दे रहे थे।
हज़रत इमाम हुसैन सहित कर्बला के 72 शहीदों के चालीसवें पर सोमवार को चेहल्लुम का जुलूस निकला अजादार नंगे पावं शहीदों को पुरसा देने के लिये जुलूस में साथ हो लिये। जुलूस में शामिल मातमी अंजुमने अपने अलम के साथ आंखों में अश्क भरे मातम करती हुई चल रहीं थीं।
कर्बला के शहीदों के चेहल्लुम के जुलूस में शामिल होने के लिये अंजुमनें व अजादार बड़ी तादात में सुबह से ही विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित इमामबाड़ा नाजिम साहब पहुंचना शुरू हो गये।
दोपहर में इमामबाड़े में मौलाना कल्बे जवाद नकवी के बेटे मौलाना कल्बे अहमद ने मजलिस को खिताब करते हुये कैदखाना ए शाम में मनाए गये चेहल्लुम का मंजर बयान किया तो वहां मौजूद अजादार गमगीन हो गये। मजलिस के बाद एक एक कर मातमी अंजुमन के निकलने कासिलसिला शुरू हुआ।
जुलूस में सबसे आगे हजरत अब्बास का परचम था। इसके साए में शहर की तमाम अंजुमनें नौहाख्वानी करती हुई जुलूस में बढ़ चलीं।
अंजुमनों के मातमदार जंजीर, कमा व सीनाजनी कर कर्बला के शहीदों को अपने खून से पुरसा दे रहे थे। इसके पीछे कर्बला के शहीदों के शबीह ए ताबूत और ऊंटो पर अमारियां शामिल थीं।
इसके अलावा जुलूस में हजरत अब्बास की निशानी अलम, हजरत इमाम हुसैन के छ माह के बेटे हजरत अली असगर का गहवारा और हजरत इमाम हुसैन की सवारी का प्रतीक जुलजनाह भी साथ-साथ था।
इस बार एक क्विंटल ड्राई फ्रूट से बना आलम भी शामिल किया गया। अजादारों ने इन तबर्रुकात की जियारत कर दुआयें मांगी। जुलूस विक्टोरिया स्ट्रीट से नक्खास चौराहा,टूरियागंज, हैदरगंज, बुलाकी अडडा, एवरेडी चौराहा होते हुये देर शाम तालकटोरा कर्बला पहुंच कर संपन्न हुआ। शहर में जन्माष्टमी और चेहल्लुम एक साथ होने की वजह से चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात की गई थी।
कराची में शिया आबादी पर तकफ़ीरीयों का हमला एक जवान शहीद कई घायल
पाकिस्तान के कराची शहर में शिया आबादी पर तकफ़ीरीयों का हमला,हमले के परिणामस्वरूप एक नौजवान शहीद कई गंभीर रूप से घायल
सिंध सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने प्रतिबंधित सिपाहे सहाबा के सशस्त्र आतंकवादियों को शबे चेहल्लुम इमाम हुसैन अ.स.के अवसर पर एक रैली आयोजित करने की अनुमति दी गई थी।
उसी दौरान एक तकफीरी गिरोह हथियारबंद समूह ने सबील हुसैनी पर हमला कर दिया लेकिन जवाबी पत्थरबाजी के कारण आतंकी भाग निकले।
एक रिपोर्ट के मुताबिक इमाम हुसैन अ.स. के चेहलम से एक दिन पहले कराची शहर में सांप्रदायिक दंगे भड़काने की नापाक साजिश के नतीजे में देश विरोधी आतंकी संगठन सिपाहे सहाबा और लश्कर-ए-झांगवी के हथियारबंद आतंकियों ने कराची मे गोलाबरी की और शियाओ के घरों पर हमला किया ।
पथराव और गोलीबारी के परिणामस्वरूप, एक युवा शिया सैयद जुनैद हैदर मेहदी शहीद हो गए और कई युवा गंभीर रूप से घयाल हैे।
इस मौके पर भारी संख्या में पुलिस और रेंजर्स भी मौके पर पहुंची बाद में शिया उलेमा काउंसिल सिंध के अध्यक्ष अल्लामा असद इकबाल जै़दी के नेतृत्व में जुनैद हैदर महदी की अंतिम संस्कार की दुआ की गई। जिसमें हजारों की संख्या में शियाने हैदरकरार ने भाग लिया।
अमेरिका में इस्लामोफोबिक में इज़ाफा
न्यूयॉर्क में एक मुस्लिम व्यक्ति पर हुए हमले को नस्लवादी अपराध की जांच के लिए सोमवार को दोषी ठहराया गया हैं।
अमेरिका में एक 34 वर्षीय व्यक्ति ने न्यूयॉर्क शहर में एक मुस्लिम युवक पर हमला किया और इस्लाम विरोधी नारे लगाए साथ उसका अपमान किया और फिर उस पर हमला किया।
मैनहट्टन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी ने कहा कि घटना 5 अगस्त को हुई और संदिग्ध को तीन दिन बाद 8 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया।
सोमवार, 27 अगस्त को इस घटना को अंजाम देने वाले संदिग्ध पर "घृणास्पद भाषण और नस्लवाद" का आरोप लगाया गया था और उसने अभी तक अपना अपराध स्वीकार नहीं किया है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने गाजा युद्ध और फिलिस्तीनियों पर ज़ायोनी शासन के हमलों की शुरुआत के बाद से अमेरिकी मुसलमानों और अरबों के खिलाफ बढ़ते खतरों की चेतावनी दी है।
मैनहट्टन जिला अटॉर्नी ने कहा कि अमेरिकी व्यक्ति ने उन पर केवल इसलिए हमला किया क्योंकि वह व्यक्ति मुस्लिम था उसने मुस्लिम पर थूका और नस्लवादी और इस्लाम विरोधी भाषा का इस्तेमाल किया।
उन्होंने आगे कहा कि हमलावर ने मुस्लिम को आतंकवादी' कहा और 'मुसलमान मुरदाबाद चिल्लाते हुए उस पर कई वार किए।
20 सफ़र करबला के शहीदो का चेहलुम
२० सफर सन् ६१ हिजरी कमरी, वह दिन है जिस दिन हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों को कर्बला में शहीद हुए चालिस दिन हुआ था। पूरी सृष्टि चालिस दिन से हज़रत इमाम हुसैन के शोक में डूबी हुई थी। जिन लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता करने की आवाज़ सुनी परंतु उनकी सहायता के लिए नहीं गये ऐसे लोगों को अपना वचन तोड़ने की पीड़ा चालिस दिनों से सता रही थी। चालिस दिन हो रहे थे जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवां में जीवित बच जाने वाले बच्चों और महिलाओं का शोक उनके हृदयविदारक दुःख का परिचायक था।
चालिस दिन के बाद कर्बला का लुटा हुआ कारवां शाम अर्थात वर्तमान सीरिया से दोबारा कर्बला पहुंचा है। इस कारवां में वे महिलाएं और बच्चे थे जिनके दिल टूट हुए थे और उन्हें पवित्र नगर मदीना भी लौटना था। जब यह कारवां शाम अर्थात वर्तमान सीरिया से दोबारा कर्बला पहुंचा तो उसे दसवीं मोहर्रम के दिन की घटनाओं की याद आ गयी। महिलाओं और बच्चों की रोने की आवाज़ कर्बला के मरुस्थल में गूंजने लगी।
दसवीं मोहर्रम ही वह दुःखद दिन था जब हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके ७२ निष्ठावान साथियों को तीन दिन का भूखा- प्यासा शहीद कर दिया गया था। हर माता अपने शहीद की क़ब्र पर विलाप कर रही थी। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शहीदों की क़ब्रों को देख रहे थे। उन्हें याद आया कि जब उनको इन शहीदों विशेषकर अपने पिता के घायल शरीर को कर्बला रेत पर छोड़कर जाना पड़ा था तो उनका मन किस सीमा तक दुःखी था परंतु उन्हें उनकी फूफी हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने सांत्वनापूर्ण वाक्यों से ढारस बंधाई थी और कहा था" जो कुछ तुम देख रहे हो उससे बेचैन मत हो।
ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मानने वालों के एक गुट से वचन लिया है कि वह बिखरे हुए और खून से लथपथ शरीर के अंगों को एकत्रित करेगा और दफ्न करेगा। वह गुट इस धरती पर तुम्हारे पिता की क़ब्र पर ऐसा चिन्ह लगा देगा जो समय बीतने के साथ न तो नष्ट होगा और न ही मिटेगा। अनेकेश्वरवादी और पथभ्रष्ठ लोग उसे मिटाने का प्रयास करेंगे परंतु उनका प्रयास तुम्हारे पिता की और प्रसिद्धि का कारण बनेगा"हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की भविष्यवाणी पूर्णरूप से सही थी। इतिहास में आया है कि कर्बला के अमर शहीदों के पवित्र शवों को बनी असद क़बीले के लोगों ने दफ्न किया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोकाकुल परिवार शहीदों के अन्य परिजनों के साथ तीन दिन तक कर्बला में रुका रहा और उसने अपने प्रियजनों का शोक मनाया
इतिहास में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के एक साथी जाबिर बिन अब्दुल्लाह, जो नेत्रहीन थे, बनी हाशिम के क़बीले के कुछ व्यक्तियों के साथ पवित्र मदीना नगर से कर्बला इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पवित्र क़ब्र के दर्शन के लिए आये थे। उस समय जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने जाबिर को देखा तो कहा" हे जाबिर ईश्वर की सौगन्ध यहीं पर हमारे पुरुषों की हत्या की गई, हमारी महिलाओं को बंदी बनाया गया और हमारे ख़ैमों को जलाया गया"जाबिर ने अपने साथियों से कहा कि वे उन्हें हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पवित्र क़ब्र के पास ले चलें। जाबिर ने अपने हाथ को हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पवित्र क़ब्र पर रखा और इतना रोये कि बेहोश हो गये। जब होश आया तो उन्होंने कई बार हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम अपनी ज़बान से लिया और उन्हें पुकार कर कहा" मैं गवाही देता हूं कि आप सर्वश्रेष्ठ पैग़म्बर और सबसे बड़े मोमिन के सुपुत्र हैं। आप सबसे बड़े सदाचारियों की गोदी में पले हैं। आपने पावन जीवन बिताया और इस दुनिया से पवित्र गये और मोमिनों के हृदयों को अपने वियोग से दुःखी व क्षुब्ध कर दिया तो आप पर ईश्वर का सलाम हो"हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह भी, जिनकी दुख में डूबी आवाज़ दिलों को रुला रही थी, अपने प्राणप्रिय भाई हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र के निकट बैठ गयीं और धीरे- धीरे अपने भाई से बात करना और विलाप करना आरंभ किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह का हृदय दुःखों से भरा हुआ था परंतु वे कर्बला के महाआंदोलन के बाद की अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में सोच रही थीं। कर्बला की अमर घटना को शताब्दियों का समय बीत चुका है परंतु यह घटना आज भी चमकते सूरज की भांति अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का मार्ग दिखाती है।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन के अमर होने का एक कारण उसकी पहचान व स्वरूप है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने महाआंदोलन के आरंभ से कुछ सिद्धांतों को प्रस्तुत किया जिसे हर पवित्र प्रवृत्ति स्वीकार करती और उसकी सराहना करती है। आज़ादी, न्यायप्रेम और अत्याचार से संघर्ष सदैव ही इतिहास में पवित्र सिद्धांत रहे हैं। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन का लक्ष्य विशुद्ध इस्लाम को मिलावटी इस्लाम से अलग करना था। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चात अधिकांश शासक इस्लामी शिक्षाओं को अपने हितों की दिशा में प्रयोग करने का प्रयास करते थे। वे खोखला और फेर बदल किया हुआ इस्लाम चाहते थे ताकि अनभिज्ञ लोगों पर सरलता से शासन कर सकें।
इसी कारण अमवी शासक और उनके बाद की अत्याचारी सरकारें अपनी इच्छा के अनुसार इस्लाम की व्याख्या और उसका प्रचार- प्रसार करती थीं। हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने लोगों को दिग्भ्रमित करने में बनी उमय्या की भूमिका का विश्लेषण करते हुए बड़े गूढ बिन्दु की ओर संकेत किया और कहा" बनी उमय्या ने लोगों के लिए ईमान की पहचान का मार्ग खुला रखा परंतु अनेकेश्वरवाद की पहचान का मार्ग बंद कर दिया। ऐसा इसलिए किया कि जब वह लोगों को अनेकेश्वरवाद के लिए बुलाए तो लोगों को अनेकेश्वरवाद की पहचान ही न रहे"बनी उमय्या ने नमाज़, रोज़ा और हज जैसे धार्मिक दायित्वों को खोखला करने का बहुत प्रयास किया ताकि लोग इन उपासनाओं के केवल बाह्यरूप पर ध्यान दें। क्योंकि यदि लोग इस्लाम की जीवन दायक शिक्षाओं से अवगत हो जाते तो बनी उमय्या के अत्याचारी शासक अपनी सरकार ही बाक़ी नहीं रख सकते थे। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अनुसार सत्ता उच्च मानवीय लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाने का साधन है।
इस आधार पर आप बल देकर कहते हैं कि मैंने सत्ता की प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि ईश्वरीय धर्म के चिन्हों को पहचनवाने के लिए आंदोलन किया। उस अज्ञानता व घुटन के काल में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़िम्मेदारी यह थी कि वे अमवी शासकों की वास्तविकताओं को स्पष्ट करें और इस्लामी क्षेत्रों को इस प्रकार के अयोग्य, और भ्रष्ठ शासकों व लोगों से मुक्ति दिलायें। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मानना था कि समाज की गुमराही, धार्मिक शिक्षाओं से दूरी का परिणाम है। क्योंकि महान ईश्वर से दूरी मनुष्य को ऐसी घाटी में पहुंचा देती है जहां वह स्वयं से बेगाना हो जाता है। यह वह वास्तविकता है जो हर समय और हर क्षेत्र में जारी है। जिस समय लोग अत्याचारी व भ्रष्ठ शासकों का अनुसरण आरंभ कर देंगे उस समय समाज अपने स्वाभाविक व प्राकृतिक मार्ग से हट जायेगा।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसे महान व्यक्ति इस बात को नहीं देख सकते थे कि ग़लत लोग, लोगों को ईश्वर के अतिरिक्त किसी और की दासता स्वीकार करने पर बाध्य करें। जब इस्लाम प्रतिष्ठा, स्वतंत्रता और न्याय का धर्म है तो वह किस प्रकार मनुष्यों के अपमान व दासता को स्वीकार करे और अत्याचार के मुक़ाबले में मौन धारण करे? हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने दर्शा दिया कि जहां पर धर्म का आधार ख़तरे में है, जहां अत्याचार से सांठ- गांठ कर लेना मानवता एवं उच्च मानवीय मूल्यों की हत्या समान है वहां मौन धारण करना ईश्वरीय व्यक्तियों की शैली नहीं है।
हज़रत इमाम हुसैन के महाआंदोलन के अमर होने का एक कारण हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, जनाब ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और दूसरे इमामों तथा महान हस्तियों की दूरगामी सोच एवं इस महाआंदोलन के लक्ष्यों को पहचनवाने हेतु उनके प्रयास हैं। बनी उमय्या ने अफवाहें फैलाकर, संदेह उत्पन्न करके और दुष्प्रचार के दूसरे मार्गों का प्रयोग करके वास्तविकता को छिपाने का प्रयास किया और कर्बला की एतिहासिक घटना में असमंजस व संदेह उत्पन्न करने का प्रयास किया परंतु उन सबका प्रयास कर्बला की एतिहासिक घटना के पहले दिन से ही परिणामहीन रहा। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन का संदेश पहुंचाने वाले विवेकशील और समय की पूर्ण पहचान रखने वाले लोग थे। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबदीन अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के विभिन्न स्थानों पर दिये जाने वाले एतिहासिक भाषणों ने यज़ीदियों के चेहरों पर पड़ी नक़ाब को हटा दिया और उन्हें बुरी तरह अपमानित कर दिया।
इतिहासकारों ने लिखा है कि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह की आवाज़ का प्रभाव ऐसा था कि सांस सीनों में रूक जाती थी। उनके भाषण की शैली ऐसी थी कि कूफा नगर के बड़े- बूढे कहते थे कि धन्य है ईश्वर! मानो अली की आवाज़ है जो उनकी बेटी ज़ैनब के गले से निकल रही है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कूफावासियों को संबोधित करते हुए कहा" ईश्वर का आभार व्यक्त करती हूं और अपने नाना मोहम्मद, चयनित और पवित्र लोगों पर सलाम भेजती हूं। हे कूफे के लोगों! हे धोखेबाज़ो और बेवफा लोग तुम लोग उस महिला की भांति हो जो रूई से धागा बुनती है और फिर धागे को रूई बना देती है। तुमने अपने ईमान को अपने जीवन और पाखंड का साधन बना रखा है और तुम्हारी दृष्टि में उसका कोई मूल्य नहीं है। तुम्हारे अंदर आत्ममुग्धता, झूठ, अकारण शत्रुता, तुच्छता और दूसरों पर आरोप लगाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। तुम किस तरह अंतिम पैग़म्बर के पौत्र और स्वर्ग के युवाओं के सरदार की हत्या के कलंक को स्वयं से मिटाओगे। तुम लोगों ने उसकी हत्या की है जो उन लोगों के लिए शरण था जिनके पास कोई शरण नहीं थी, वह परेशान लोगों का सहारा और धर्म व ज्ञान का स्रोत था।
हुसैन मानवता का सत्य की ओर मार्गदर्शन करने वाले, राष्ट्र व समुदाय के अगुवा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे। उनके माध्यम से तुम्हारा मार्गदर्शन होता था। उनकी छत्रछाया में तुम्हें कठिनाइयों में आराम मिलता था और उनके प्रकाश से तुम्हें गुमराही से मुक्ति मिलती थी। जान लो कि तुमने बहुत बुरा पाप किया है जिसके कारण तुम ईश्वर की दया से दूर हो गये हो। तुम्हारा प्रयास विफल हो गया है। ईश्वर के दरबार से तुम्हारा संपर्क टूट गया है और तुमने अपने सौदे में घाटा उठाया है। तुम्हारे पास अब पछताने और हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ नहीं है, तुम ईश्वरीय क्रोध के पात्र बन गये हो और तुम्हें अपमान का सामना है" हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के स्पष्ट करने वाले भाषणों के साथ हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जागरुक भरा भाषण बनी उमय्या के लक्ष्यों के मार्ग की बाधा बन गया।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की होशियारी व जानकारी ने आशूरा की एतिहासिक घटना को इतिहास की अमर घटना के रूप में सुरक्षित रखा। पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से पवित्र इमामों ने शत्रुओं के प्रचारों और वास्तविकताओं में फेर -बदल करने हेतु उनके प्रयासों को रोकने और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआंदोलन को अनुचित दर्शाने हेतु शत्रुओं के प्रयासों को विफल बनाने के लिए इस महाआंदोलन के लक्ष्यों को बयान किया। इमामत का महत्व और उसके स्थान को बयान करना तथा समाज में योग्य व भला नेतृत्व, बनी उमय्या के वास्तविक चेहरों को पहचनवाना और उनके अपराधों को स्पष्ट करना इमामों का ईश्वरीय दायित्व था। कर्बला की हृदयविदारक घटना और शहीदों की याद में शोक सभाओं का आयोजन, हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके निष्ठावान साथियों पर पड़ने वाली विपत्तियों पर रोना भी प्रभावी शैली थी जिसका पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने सहारा लिया ताकि कर्बला की अमर व एतिहासिक घटना को फेर- बदल एवं भूलाये जाने से सुरक्षित रखा जा सके।
इस आधार पर कर्बला का महाआंदलन इस्लामी जगत की भौगोलिक सीमा में सीमित नहीं रहा और वह विश्व के स्वतंत्रता प्रेमियों के लिए आदर्श पाठ बन गया। इस प्रकार से कि ग़ैर मुसलमानों ने भी इस महाआंदोल से प्रेरणा ली है। यह वही पैग़म्बरे इस्लाम के वचन का व्यवहारिक होना है जिसमें आपने कहा है कि हुसैन की शहादत के बाद मोमिनों के हृदयों में एक आग जल उठेगी जो कदापि ठंडी नहीं होगी और न बुझेगी"