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इज़रायली हमलों में अब तक 202 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों की शहादत
7 अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक कुल 202 पत्रकार शहीद हो चुके हैं यह आंकड़े न केवल पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की भयावहता को उजागर करते हैं, बल्कि उस कठिनाई को भी रेखांकित करते हैं जिसके बीच फ़िलिस्तीनी पत्रकार अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार , फ़िलिस्तीनी पत्रकार संघ ने 2024 में इज़रायली शासन द्वारा फ़िलिस्तीनी पत्रकारों पर किए गए हमलों पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है।
फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी शहाब के हवाले से 2024 के दौरान इज़रायली हमलों में 111 पत्रकार शहीद हुए यह आंकड़ा पत्रकारों के खिलाफ इज़रायली हमलों की गंभीरता और मीडिया स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे को दर्शाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, 7 अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक कुल 202 पत्रकार शहीद हो चुके हैं। ये आंकड़े न केवल पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की भयावहता को उजागर करते हैं, बल्कि उस कठिनाई को भी रेखांकित करते हैं जिसके बीच फ़िलिस्तीनी पत्रकार अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इज़रायल द्वारा 145 पत्रकारों को हिरासत में लिया गया, जिनमें से करीब 60 अभी भी जेलों में बंद हैं इनमें से दो पत्रकार अब तक लापता हैं, जिनका कोई सुराग नहीं मिल सका है। यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और प्रेस स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है।
इज़रायली हमलों के कारण होने वाले कुल नुकसानों की ओर ध्यान दिलाते हुए, रिपोर्ट में बताया गया कि 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 45,805 लोग शहीद हो चुके हैं।
घायलों की संख्या भी चौंकाने वाली है जो 109,064 तक पहुंच गई है यह आंकड़े न केवल मानव जीवन की अपूरणीय क्षति को दर्शाते हैं बल्कि यह भी दिखाते हैं कि मीडिया कर्मियों पर हमले न केवल स्वतंत्रता पर हमला हैं बल्कि यह उस सच्चाई को दबाने की कोशिश है जो दुनिया के सामने लाई जानी चाहिए।
फ़िलिस्तीनी पत्रकार संघ ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों से अपील की है कि वे इस अत्याचार के खिलाफ ठोस कदम उठाएं और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
अर्दोग़ान को चोट देने की तैयारी में लगा इस्राईल, सीरिया बनेगा रणक्षेत्र
फिलिस्तीन और सीरिया से ग़द्दारी करते हुए इस्राईल और अमेरिका के अरमानों को पूरा करने के जुटे अर्दोग़ान को अब इस्राईल से ही ज़ोर का झटका लगने वाला है। पिछले एक साल से भी अधिक समय से फिलिस्तीन में क़त्ले आम कर रहा इस्राईल अब अपने निकट सहयोगी अर्दोग़ान को झटका देने को तैयार है। इस्राईल नाटो सदस्य तुर्की के साथ युद्ध को लेकर तैयारी करने जा रहा है। नागेल कमेटी ने रक्षा बजट और सुरक्षा रणनीति से जुड़ी रिपोर्ट में इस्राईल को तुर्की के साथ सीधी टक्कर के लिए तैयार रहने को कहा है। ज़ायोनी सरकार ने इस समिति का गठन किया था। कमेटी ने कहा है कि तुर्की की महत्वाकांक्षा है कि खत्म हो चुके ओटोमन साम्राज्य की ताकत को फिर बहाल किया जाए। तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोग़ान की मुस्लिम दुनिया का खलीफा बनने की चाहत अवैध राष्ट्र के साथ तनाव बढ़ा सकती है, जो संभवतः संघर्ष में बदल सकता है।
सरदार शहीद क़ासिम सुलैमानी फ़ौजी सरहदों के साथ साथ अख़्लाक़ी सरहदों के रक्षक थें
जनरल कासिम सुलैमानी एक महान फ़ौजी के साथ साथ हमदर्द बाप परिवार वालों और समाज वालों से मेहरबानी से पेश आना हर मैदान में जितनी तारीफ की जाए कम हैं।
फ़ौजी संगठनों में ट्रेनिंग पाने और ऊंचे ओहदों तक पहुंचने वाले ज़्यादातर लोगों के पास, जो इस माहौल में पहुंचने से पहले जो भी नज़रिया और मेज़ाज रखते हों, फ़ौजी संगठन और माहौल में ख़ुद को ढालने के लिए अपने रवैये और नज़िरये को बदलने के अलावा कोई चारा नहीं होता। इस माहौल का तक़ाज़ा यह है कि अगर कोई हुक्म इंसान की सोच और व्यक्तिगत नज़रिये के ख़िलाफ़ भी है तब भी उस पर अमल किया जाए।
स्वाभाविक सी बात है कि इस तरह के माहौल में ढलना और उसे बर्दाश्त करना, कठिन और थका देने वाला होता है। इस माहौल का सबसे अहम नतीजा सारे सदस्यों की सोच, नज़रिये और रवैये को एक जैसा बनाना है।
अलग तरह के ऑप्रेशन्ज़ और जंग के मुख़्तलिफ़ मैदानों में काम कर चुके एक तजुर्बेकार कमांडर की हैसियत से शहीद क़ासिम सुलैमानी बड़े हैरतअंगेज़ तरीक़े से एक आला दर्जे के फ़ौजी कमांडर की ज़िम्मेदारियों, जिनमें से कुछ बहुत ही ख़ुश्क और पूरी तरह डिसिप्लिन वाली ज़िम्मेदारियां थीं और अख़लाक़ी मूल्यों पर अमल करने वाले एक इंसान, हमदर्द बाप और मेहरबान दोस्त के किरदार के बीच बहुत रोचक और कलात्मक तरीक़े से तालमेल बनाने में कामयाब हुए। इस लेख में शहीद अलहाज क़ासिम सुलैमानी की कुछ अहम ख़ुसूसियतों का सरसरी तौर पर जायज़ा लिया गया है।
सादगी और विनम्रता
चाहे व्यक्तिगत ज़िन्दगी हो या जंग का मैदान हो, शहीद क़ासिम सुलैमानी अपने पहनावे और रहन सहन के लेहाज़ से भी और बर्ताव के लेहाज़ से भी बहुत विनम्र मेज़ाज के थे। अपने ओहदे के बरख़िलाफ़ उनकी ज़िन्दगी के संसाधन एक आम इंसान की तरह ही थे।
ज़्यादातर प्रोग्रामों में जैसे शहीदों और अपने साथियों के जनाज़े के जुलूस, शहीदों के घरवालों और शहीदों के बच्चों से मुलाक़ात, तक़रीरों और अवाम से मुलाक़ातों में वह बिना किसी प्रोटोकोल के शरीक होते थे। वह इस बात से बड़ी शिद्दत से परहेज़ करते थे कि प्रोग्रामों या बैठकों में तवज्जो का केन्द्र बनें।
यहाँ तक कि एक बार किसी प्रोग्राम में तय पाया था कि दाइश को शिकस्त देने पर इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स को सम्मानित किया जाए, शहीद सुलैमानी को यह भनक लग गई कि ख़ुद उन्हें सम्मानित करने का प्रोग्राम है तो उन्होंने इस प्रोग्राम में शिरकत ही नहीं की और अपनी तरफ़ से एक नुमाइंदे को भेज दिया। उनकी यह सादगी और विनम्रता, जंग के मैदान में भी और उनके साथियों के बीच भी बहुत वाज़ेह थी।
सिहापियों से उनका रिश्ता कमांडर और सिपाही से ज़्यादा बाप-बेटे या दो भाइयों वाला था। उनके मातहत सिपाही फ़ौजी क़ानून और डिसिप्लिन से ज़्यादा उनसे मोहब्बत और अपनी दिली ख़्वाहिश की बिना पर उनके हुक्म की तामील करते थे। उनकी सादगी और इंकेसारी का अहम नमूना यह था कि सभी उन्हें, उनके नाम से पहचानते थे और फ़ौजी रैंक के बजाए, उनके नाम से पुकारते थे और कहते थेः हाज क़ासिम!
जंग के मैदान में भी अख़लाक़ी वैल्यूज़ पर पूरी तवज्जो
जंग के इलाक़ों में, जहाँ जंगी हथियारों की फ़ायरिंग की आवाज़ हर तरफ़ से सुनाई देती है, शहीद क़ासिम सुलैमानी मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर ख़ुद को दाइश के ख़िलाफ़ कठिन ऑप्रेशनों के लिए तैयार करने वाले प्रतिरोध के जियालों के लिए मुख़्तसर तक़रीर किया करते थे। जंग के हालात से परिचित लोगों के लिए जनरल सुलैमानी की अख़लाक़ी बातों के सिलसिले में शायद सबसे पहला ख़याल यह आए कि वह अपने जांबाज़ों और फ़ोर्सेज़ को यह नसीहत कर रहे होंगे कि जंगी क़ैदियों के साथ बुरा बर्ताव न करें या औरतों और बच्चों के साथ बुरा सुलूक न करें।
हक़ीक़त यह है कि शहीद क़ासिम सुलैमानी एक सच्चे मुसलमान सिपाही की हैसियत से इन सारी चीज़ों का बहुत बारीकी से ख़्याल रखते थे। उनकी अख़लाकी महानता का एक छोटा सा पहलू उनकी इस बात से झलकता हैः ʺहमें, जो यहाँ (जंग के मैदान में) मौजूद हैं, हलाल और हराम पर गहरी नज़र रखनी चाहिए...हम, दूसरों के घरों को मनमाने ढंग से इस्तेमाल नहीं कर सकते।ʺ
जंग के इलाक़े में मौजूद ग़ैर फ़ौजी लोगों के जिस्म और जज़्बात को किसी तरह का कोई नुक़सान न पहुंचे, यह शहीद सुलैमानी के जंग के मैदान के अख़लाक़ का बुनियादी उसूल था और इस अख़लाक़ की बुनियाद इस्लाम की मूल शिक्षाएं और इस्लामी विचार थे।
एक बार सीरिया में दाइश के साथ जारी जंग में किसी इलाक़े में जनरल सुलैमानी ने किसी वीरान घर में नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ के बाद एक ख़त में घर के मालिक से नमाज़ पढ़ने की इजाज़त मांगी और अपना पता और टेलीफ़ोन नंबर तक उस घर में रख दिया ताकि बाद में घर के मालिक को अगर उनके वहाँ नमाज़ पढ़ने पर कोई एतराज़ हो या कोई मुतालेबा हो तो वह उसे पेश कर सके।
इसी तरह लड़ाई के दौरान एक जंगी इलाक़े के मुआयने की जनरन सुलैमानी की एक क्लिप मौजूद है जिसमें अचानक वह एक घबराई हुयी गाय को देखते हैं। वह ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहते हैं और गाय के क़रीब जाकर खाने पीने की चीज़ें उसे देते हैं।
शहीद जनरल सुलैमानी का अख़लाक़ के लेहाज़ से चिंता का दायरा इतना व्यापक था उसमें ईरान के पहाड़ी इलाक़े के हिरन भी आते थे। इराक़ में दाइश के ख़िलाफ़ जंग के दौरान, ठंडक के मौसम में, उन्होंने आईआरजीसी की कमान के हेडक्वार्टर से संपर्क किया और अपने साथियों से कहा कि वह छावनी के क़रीब के हिरनों के लिए, जो क़रीब के पहाड़ में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, चारा रख दें क्योंकि सर्दी के मौसम में इन हिरनों के लिए अपने लिए चारा ढूंढना बड़ा कठिन होगा।
जनरल सुलैमानी की अज़ीम शख़्सियत का राज़
शहीद जनरल सुलैमानी जहाँ फ़ौजी और स्ट्रैटिजिक मामलों की पहचान में इतनी महारत रखते थे कि साम्राज्यवादी मोर्चे में उनके दुश्मन तक उनकी फ़ौजी ताक़त व सलाहियत के क़ायल थे, वहीं अख़लाक़ी बारीकियां उनके लिए इनती अहम थीं कि अपने बहुत ही व्यस्त मन में भी वह उनके लिए मुनासिब सोच और अमल के लिए गुंजाइश निकाल लेते हैं।
जनरल सुलैमानी की इतनी बहुमुखी शख़्सियत की इस कैफ़ियत की वजह उनके विचारों और नज़रियों में ढूंढी जा सकती है।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई जनरल सुलैमानी की शख़्सियत के बारे में कहते हैः ʺवह हक़ीक़त में सबके लिए क़ुरबानी का जज़्बा रखते थे। दूसरी ओर वह ख़ुलूस से काम करने वाले आध्यात्मिक और परहेज़ागर आदमी थे, उनमें सही अर्थों में आध्यात्मिकता थी और ज़रा भी दिखावा नहीं करते थे।
अलग अलग दुश्मनों के मुक़ाबले में वह अलग अलग मुल्कों के बियाबानों और पहाड़ी इलाक़ों में गए। वह इस्लाम और इमाम ख़ुमैनी की दर्सगाह में परवान चढ़ने वालों में नुमायां इंसान थे, उन्होंने अपनी पूरी उम्र अल्लाह की राह में जेहाद करते हुए गुज़ार दी।
सीरिया में ISIS की क्रूर कार्रवाई, कई नागरिकों को मौत के घाट उतारा
सीरिया की सत्ता पर क़ब्ज़ा जमाने के बाद तकफीरी आतंकी गुटों का क्रूर चेहरा खुल कर सामने आ रहा है। सीरिया मे तकफीरी आतंकियों के अत्याचार का शिकार 9 लोगों के शव मिले हैं।
सीरियाई सूत्रों ने कहा है कि दैरूज़्ज़ोर और हुम्स के निवासी आतंकियों के निशाने पर हैं। पिछले 24 घंटों के दौरान आतंकवादी संगठन ISIS ने 9 लोगों की हत्या कर दी है। पीड़ितों के शव बरामद कर लिए गए हैं, जिनमें से कुछ सीरियाई सेना के जवान भी हैं।
दैरूज़्ज़ोर और अन्य क्षेत्रों असद सरकार के पतन के बाद, आईएसआईएस तत्वों ने दर्जनों सैनिकों का अपहरण कर लिया और जिनमे से कुछ लोगों का अभी तक कोई अता पता नहीं है।
सूत्रों ने आगे कहा कि सीरिया में असद शासन के अंत के बाद आईएसआईएस के क्रूर अभियान तेज हो गए हैं, जबकि जोलानी शांति स्थापित करने के बजाय, ज़ायोनी अमेरिकी योजना को पूरा करने के लिए जुटा हुआ है।
महाकुंभ को बम से उड़ाने की धमकी, नासिर निकला आयुष
भारत मे इसलामोफोबिया के तहत नित नए हथकंडों के बीच अब महाकुंभ मे बम धमाकों की धमकी दी गई है। खास बात यह है कि नासिर के फर्जी नाम से यह धमकी किसी मुस्लिम ने नहीं बल्कि कट्टर हिन्दुत्व का शिकार आयुष ने दी।
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) मे महाकुंभ की तैयारी के बीच बिहार के पूर्णिया से नासिर पठान नाम के शख्स ने सोशल मीडिया पर प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ मेले को बम से उड़ाने की धमकी दी है। इस धमकी के बाद पुलिस सक्रिय हुई और पूर्णिया से एक युवक को गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी के बाद पता चला कि धमकी देने वाला शख्स मुस्लिम नहीं बल्कि हिंदू है जिसका असली नाम आयुष कुमार जायसवाल है। यूपी पुलिस ने भवानीपुर थाने की मदद से शनिवार को आयुष को गिरफ्तार कर लिया।
जूलानी की चुप्पी और सीरिया में अमेरिकन और तुर्क सैनिकों में वृद्धि
सीरियाई सूत्रों के अनुसार, वाशिंगटन ने सीरिया के रक़्क़ा में एक उन्नत और विकसित सैन्य अड्डा बनाने के लिए पहला क़दम उठा लिया और उसे जूलानी की कमान में काम करने वाले तत्वों के किसी भी हमले या विरोध का सामना तक नहीं करना पड़ा ।
सीरियाई सूत्रों ने जूलानी के इशारे पर सीरिया के रक़्क़ा में पहले अमेरिकी सैन्य अड्डे के निर्माण की शुरुआत की सूचना दी है।
सीरियाई सूत्रों ने एलान किया है कि तीन हफ़्ते पहले से, अमेरिकी सेनाएं सीरिया में 10 सैन्य ठिकानों में अपने रैंकों को पुनर्गठित कर रही हैं और सैनिकों और सैन्य उपकरणों को इराक़ से सीरिया पहुंचा रही हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी विशेष बलों को रक़्क़ा के बाहरी इलाक़े में सीरियाई सेना से संबद्ध एक सैन्य अड्डे पर तैनात किया गया है और इसके प्रवेश द्वार बंद कर दिए हैं।
कुछ दिनों पहले, यह बताया गया था कि अमेरिकी स्पेशल फ़ोर्स जिन्हें डेल्टा के नाम से जाना जाता है, खुद को एक ब्रांच-बेस पर तैनात करने के लिए, इराक़ के अल-वलीद बार्डर से सीरिया के रक़्क़ा पहुंची।
इस बीच, सीरियाई कुर्द डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ) ने उत्तरी सीरिया में अलेप्पो के उपनगरीय इलाक़े में स्थित तिशरीन बांध के आसपास के इलाकों में एक पहाड़ी पर एक सैन्य अड्डा बनाने के तुर्किए के प्रयास की सूचना दी है।
इस ख़बर का एलान करते हुए सीरियाई कुर्दिश डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ) ने पुष्टि की कि उन्होंने बनाए जा रहे तुर्किए के बेस पर हमला किया है।
अमेरिका समर्थित एसडीएफ ग्रुप पूर्वोत्तर सीरिया को नियंत्रित करता है, हालांकि, सीरिया में तुर्किये और उसके सहयोगी एसडीएफ़ के ख़िलाफ हैं और उक्त क्षेत्रों को उसके नियंत्रण से निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
सीरिया पर अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व में तुर्किए के क़रीबी सशस्त्र विपक्षी गुटों के नियंत्रण और अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस सहित दूसरे पश्चिमी देशों के प्रतिनिधियों के साथ इस ग्रुप के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकों से दबाव बढ़ने की वजह से एसडीएफ़ पर दबाव बढ़ने की उम्मीदें ज़्यसासदा हो गयी हैं।
ठीक उसी समय जब अमेरिका और तुर्किए ने सीरिया में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने जर्मन विदेश मंत्री से सीरिया में रूस के सैन्य ठिकाने के बारे में अटकलें लगाने के बजाय अपने देश में अमेरिकी अड्डों के भविष्य पर बातचीत करने की अपील की है।
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता "मारिया ज़खारोवा" ने जर्मन विदेश मंत्री के हालिया बयानों के बारे में जिसमें उन्होंने कहा कि रूस को सीरिया में सैन्य अड्डों से वंचित कर दिया चाहिए, कहा कि यह बयान अमेरिकी सैन्य बेस की मेजबानी करने वाले देश की विदेशमंत्री द्वारा दिए जा रहे हैं।
यहां पर मेरा एक सवाल है: क्या जर्मन विदेश मंत्री वाशिंगटन से ऐसा अनुरोध करने के लिए तैयार हैं?
ज़ाखारोवा के अनुसार, जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक सीरिया में रूसी ठिकानों के बारे में अटकलें लगाने के बजाय अपने देश में अमेरिकी ठिकानों के भविष्य के बारे में बात करना पसंद करेंगी?
बश्शार असद" को सत्ता से हटाने के मक़सद से 27 नवम्बर 2024 की सुबह तक सीरिया में सशस्त्र विरोधियों ने देश के उत्तरी क्षेत्रों से अपना अभियान शुरू किया और अंततः 11 दिनों के बाद रविवार 8 दिसम्बर 2024 को दमिश्क शहर पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया जिसके बाद राष्ट्रपति बश्शार असद रूस भाग गये।
सीरिया में हालिया घटनाक्रम और इस देश पर विरोधियों का नियंत्रण तेज़ होने के बाद, रूस ने उत्तरी सीरिया से और इस देश के तटों पर स्थित ठिकानों से अपनी सेनाएं वापस बुला ली हैं लेकिन उसने अपने दो मुख्य ठिकानों, लाज़ेकिया के हमीमीम एयर बेस और तरतूस के नौसैनिक केंद्र को नहीं छोड़ा है।
बश्शार अल-असद की सरकार गिरने से पहले ईरान ने सीरिया से अपनी सलाहकार सेनाएं भी वापस बुला ली थीं। आईएसआईएस और अन्य आतंकवादी गुटों के हमले के बाद सीरियाई सरकार के सरकारी निमंत्रण पर ईरानी सलाहकार बलों को इस देश में भेजा गया था।
ज़ायोनी शासन ने दिसंबर मे 10 पत्रकारों की हत्या की
अवैध राष्ट्र इस्राईल ने गज़्ज़ा मे अपनी जनसंहार मुहिम के बीच पत्रकारों को भी जमकर निशाना बनाया है। फ़िलिस्तीनी पत्रकार संघ ने एक बयान में कहा है कि ज़ायोनी शासन लगातार फ़िलिस्तीनी पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बना रहा है, जिसे पत्रकारों की सुनियोजित हत्या कहा जा सकता है।
इस बयान में कहा गया है कि पिछले महीने में, अतिक्रमणकारी ज़ायोनी सेना ने फिलिस्तीनी पत्रकारों के खिलाफ, विशेष रूप से गज़्ज़ा पट्टी में, अधिकारों के उल्लंघन, हमलों और जघन्य अपराध के 84 मामले किए, जिससे 10 पत्रकार शहीद हो गए। इनमें से पांच शहीदों को गज़्ज़ा के घटनाक्रम को सक्रिय रूप से कवर करते समय निशाना बनाया गया। इसके अलावा, फ़िलिस्तीनी पत्रकारों के परिवार के 8 सदस्य ज़ायोनी हमलों में शहीद हो गए और पत्रकारों और उनके परिवारों की 3 मंजिलें नष्ट हो गईं। दिसंबर महीने के दौरान गज़्ज़ा पट्टी में पांच पत्रकार घायल भी हुए।
इस्राईली हमलों के परिणामस्वरूप ग़ज़्ज़ा में कई मस्जिदों को नुकसान
फिलिस्तीनी बंदोबस्ती और धार्मिक मामलों के मंत्रालय ने रविवार को घोषणा की कि इजरायली हमलों के दौरान गाजा में दर्जनों मस्जिदें क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गईं।
फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने कहा कि ज़ायोनी हमलों के परिणामस्वरूप गाजा में 1000 से अधिक मस्जिदें क्षतिग्रस्त हो गईं। तुर्की समाचार एजेंसी "टीआरटी" के अनुसार, फिलिस्तीनी अवकाफ मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि 815 मस्जिदें पूरी तरह से नष्ट हो गईं, जबकि 151 अन्य आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गईं।
वक़्फ़ मंत्रालय ने कहा कि इन हमलों के दौरान 19 कब्रिस्तान और 3 चर्च भी नष्ट हो गए हैं। यह विनाश 2024 में गाजा के खिलाफ इजरायल के हमलों के दौरान हुआ था।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टोर्क ने भी हमलों की निंदा करते हुए कहा, "गाजा में मानवाधिकारों का विनाश दुनिया की आंखों के सामने जारी है।" उन्होंने कहा कि इजराइल के सैन्य अभियानों के परिणामस्वरूप हजारों लोग शहीद हुए हैं, बड़े पैमाने पर विस्थापित हुए हैं और गाजा का क्षेत्र नष्ट हो गया है।
गाजा रेड क्रिसेंट के प्रमुख के अनुसार, इजरायली हमलों ने गाजा के 38 अस्पतालों में से 26 को पूरी तरह से अक्षम कर दिया है। पिछले हफ्ते, इजरायली सैनिकों ने कमाल अदवान अस्पताल पर हमला किया, अस्पताल के प्रमुख और 300 चिकित्सा कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया और मरीजों को जबरन बाहर निकाल दिया, जो गाजा की स्वास्थ्य प्रणाली के खिलाफ इजरायल का नवीनतम अपराध था।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त ने हमलों की जांच का आह्वान करते हुए कहा कि इजरायल के इस दावे की भी जांच की जानी चाहिए कि हमास साइटों का दुरुपयोग कर रहा है।
इमाम हादी अ.स.का ज़िक्र और उनके कथन हिदायत का एक महान स्रोत
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,हज़रत इमाम हादी अ.स.की शहादत को हज़ार साल से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन आज भी शैतानी स्वभाव वाले लोग सोशल मीडिया और दुश्मनों के प्रचार माध्यमों में इमाम हादी अ.स.को अपशब्द कहते और उनका अपमान करते हैं क्योंकि जहां इमाम हादी अ.स. का ज़िक्र और उनके कथन हों वहां हिदायत का एक महान स्रोत मौजूद होता है। दुश्मन यही चाहता है कि लोग उन्हें न पहचानें।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मीर हाशिम हुसैनी ने हरम ए मुतहर हज़रत मासूमा स.ल. क़ुम में ख़िताब करते हुए कहा,अहले-बैत अ.स. से हमें जो सबक मिलता है वह यह है कि घमंड और मायूसी से बचना चाहिए।
ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं अहले-बैत अ.स.ने हमें यह सिखाया है कि बुलंदी के समय घमंड न करें और हार के समय मायूस न हों।
उन्होंने कहा,हज़रत इमाम हादी अ.स.ने अपनी छोटी सी उम्र में हिदायत का महान कार्य अंजाम दिया उन्होंने ऐसे हालात में अपनी इमामत की ज़िम्मेदारी निभाई जब तमाम ज़ालिम और साम्राज्यवादी ताकतें इस कोशिश में थीं कि अहले बैत अ.स. और उनकी तालीमात का नामोनिशान मिटा दें लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके।
हरम-ए-मुतहर हज़रत मासूमा स के इस खतीब ने कहा,आज भी अहले-बैत अ.स. के दुश्मन इमाम हादी अ.स.को बदनाम करने और उनकी पहचान मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जहां उनका ज़िक्र होता है वहां हिदायत के चश्मे फूटते हैं।
उन्होंने आगे कहा,अफ़सोस की बात यह है कि कभी कभी समाज में कुछ लोगों के कथन जैसे 'क़ौल सादिक़', 'क़ौल रज़ा', 'क़ौल अलहादी' और अन्य इमामों के फरामीन से अधिक प्रचलित हो जाते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,
इमाम हादी अ.स. और अन्य इमामों अ.स.से नज़दीकी में अनगिनत बरकतें हैं। यही वजह है कि दुश्मनों ने उनकी तालीमात को मिटाने के लिए हर संभव कोशिश की लेकिन नाकाम रहे।
उन्होंने कहा,दुनियावी दौलत और इच्छाओं की वजह से कुछ लोगों ने इमाम रज़ा, इमाम जवाद और इमाम हादी अ.स. को छोड़कर वाक़िफ़िया फिरके की तरफ रुख कर लिया इमाम हादी अ.स. ने ऐसे दौर में बड़े कारनामे अंजाम दिए, जब मुनाफ़िक़त साम्राज्यवाद और बड़ी ताकतें अहले-बैत अ.स. का नाम मिटाने की कोशिश कर रही थीं।
इमाम तक़ी अ.स. का एक मुनाज़ेरा
इमाम रज़ा अ.स. को शहीद करने के बाद मामून चाहता था कि किसी
तरह से इमाम तक़ी अ.स. पर भी नज़र रखे और इस काम के लिये उसने अपनी बेटी उम्मे फ़ज़्ल का निकाह इमाम तक़ी से करना चाहा। इस बात पर तमाम अब्बासी मामून पर ऐतेराज़ करने लगे और कहने लगे कि अब जबकि अ़ली इब्ने मूसा रिज़ा अ.स. इस दुनिया से चले गये और खि़लाफ़त दुबारा हमारी तरफ़ लौटी है तो तू चाहता है कि फिर से खि़लाफ़त को अ़ली की औलाद को दे दे हम किसी भी हाल में यह शादी नहीं होने देगें। मामून ने पूछाः तुम क्या चाहते
इमाम तक़ी अ.स. का एक मुनाज़ेरा
इमाम रज़ा अ.स. को शहीद करने के बाद मामून चाहता था कि किसी तरह से इमाम तक़ी अ.स. पर भी नज़र रखे और इस काम के लिये उसने अपनी बेटी उम्मे फ़ज़्ल का निकाह इमाम तक़ी से करना चाहा।
इस बात पर तमाम अब्बासी मामून पर ऐतेराज़ करने लगे और कहने लगे कि अब जबकि अ़ली इब्ने मूसा रिज़ा अ.स. इस दुनिया से चले गये और खि़लाफ़त दुबारा हमारी तरफ़ लौटी है तो तू चाहता है कि फिर से खि़लाफ़त को अ़ली की औलाद को दे दे हम किसी भी हाल में यह शादी नहीं होने देगें।
मामून ने पूछाः तुम क्या चाहते हो? उन लोगों ने कहा ये लड़का नौजवान है और न ही इसके पास कोई इल्मो हिक्मत है तो मामून ने जवाब मे कहा तुम इस ख़ानदान को नहीं पहचानते अगर तुम चाहो तो आज़मा कर देख लो और किसी आलिम को बुला लाओ और इन से बहस करा लो ताकि मेरी बात की सच्चाई रौशन हो जाये।
अब्बासी लोगों ने याहिया बिन अक़सम नामक व्यक्ति को उसके इल्म की शोहरत की वजह से इमाम तक़ी अ.स. से मुनाज़रे के लिये चुना।
मामून ने एक जलसा रखा कि जिस में इमाम तक़ी अ.स. के इल्म और समझ को तौला जा सकता है। जब सब लोग हाज़िर हो गये तो याहिया ने मामून से पूछाः
क्या आपकी इजाज़त है कि मैं इस लड़के से सवाल करूं?
मामून ने कहा ख़ुद इन से इजाज़त लो, याहिया ने इमाम से इजाज़त ली तो इमाम ने फ़रमायाः जो कुछ भी पूछना चाहता है पूछ ले।
याहिया ने कहाः उस शख़्स के बारे में आप की क्या नज़र है कि जिसने अहराम की हालत में शिकार किया हो?
इमाम ने फ़रमायाः इस शख़्स ने शिकार को हिल मे मारा है या हरम में?
वो शख़्स अहराम की हालत में शिकार करने की मनाही को जानता था या नहीं जानता था??
उसने जानवर को जान के मारा है या ग़लती से??
ख़ुद वो शख़्स आज़ाद था या ग़ुलाम?
वह शख़्स छोटा था या बड़ा?
पहली बार यह काम किया था या पहले भी कर चुका था?
शिकार परिन्दा था या ज़मीनी जानवर?
छोटा जानवर था या बड़ा?
फिर से इस काम को करना चाहता है या अपनी ग़लती पर शरमिंदा है?
शिकार दिन में किया था या रात में?
अहराम उमरे का था या हज का?
याहिया बिन अक़सम अपने सवाल के अंदर होने वाले इतने सारे सवालों को सुन कर सकते में आ गया, उसकी कम इल्मी और कम हैसियती उसके चेहरे से दिखाई दे रही थी उसकी ज़बान ने काम करना बंद कर दिया था और तमाम मौजूदा लोगों ने उसकी हार को मान लिया था।
मामून ने कहा कि ख़ुदा का शुक्र कि जो मैं ने सोचा था वही हुआ है ओर फिर अपने रिश्तेदारों और ख़ानदान वालों से कहाः क्या अब उस बात को जान गये हो कि जिसे नहीं मान रहे थे?
कुछ देर बाद जलसा ख़त्म हो गया और सिवाये ख़लीफ़ा के ख़ास लोगों के सब लोग चले गये मामून ने इमाम तक़ी अ.स. की तरफ मुंह किया और इमाम के बयान किये हुवे हर एक मसले का जवाब इमाम से मालूम किया।
(ये आरटीकल जनाब मेहदी पेशवाई की किताब सीमाये पीशवायान से लिया गया है।)