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रूस की धमकी, यूरोप पर हमला करने के लिए दूसरे देशों को देंगे अत्याधुनिक हथियार
यूक्रेन रूस संकट के बीच रूस पर हमले के लिए यूक्रेन को आधुनिक हथियार देने के यूरोप और अमेरिका के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पुतिन ने चेतावनी दी है कि वह अन्य देशों को यूरोपीय देशों पर हमले के लिए लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें दे सकते हैं।
रूस ने जर्मनी को साफ़ चेतवानी देते हुए कहा कि रूस में लक्ष्यों पर हमला करने के लिए यूक्रेन को जर्मनी अपने हथियारों की सप्लाई कर रहा है। रूस के मुताबिक हमले में जर्मनी के हथियारों का इस्तेमाल करना एक 'खतरनाक कदम' होगा। पुतिन ने चेतावनी दी कि रूस पश्चिमी लक्ष्यों पर हमला करने के लिए दूसरे देशों को लंबी दूरी के हथियार दे सकता है।
हिज़्बुल्लाह का ज़ायोनी सैन्य अड्डे पर ड्रोन हमला, 2 इस्राईली सैनिक हलाक
हिज़्बुल्लाह ने इस्राईल के खिलाफ अपने सैन्य अभियान को बढ़ाते हुए मक़बूज़ा फिलिस्तीन में ज़ायोनी सैन्य अड्डे पर विध्वंसक ड्रोन से हमले किये जिसमे कम से कम 2 ज़ायोनी सैनिकों के मारे जाने की खबर है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हार्फ़िश शहर पर आत्मघाती ड्रोन हमले के नतीजे में ज़ायोनी शासन के 2 सैनिक मारे गए और 20 अन्य घायल हो गए। ज़ायोनी मीडिया ने अस्पताल के सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि 20 घायलों में से पांच लोगों की स्थिति गंभीर है।
ज़ायोनी सूत्रों का कहना है कि घायलों को निकटतम चिकित्सा केंद्र तक पहुँचाने के लिए तीन हेलीकॉप्टरों को घटनास्थल पर भेजा गया है। खास बात यह है कि हिज़्बुल्लाह ने यह हमले करते हुए इस्राईल के सभी सुरक्षा उपायों को नकारा कर दिया। ज़ायोनी सेना का कहना है कि वह इस बात की जांच करेंगे कि इस हमले के समय खतरे के सायरन क्यों नहीं बजे।
इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक था
1970 के दशक में तेल के उत्पादन और उसके मूल्य में वृद्धि के साथ ही ईरान के अत्याचारी शासक मुहम्मद रज़ा पहलवी को अधिक शक्ति का आभास हुआ और उसने अपने विरोधियों के दमन और उन्हें यातनाए देने में वृद्धि कर दी। शाह की सरकार ने पागलपन की सीमा तक पश्चिम विशेष कर अमरीका से सैन्य शस्त्रों व उपकरणों तथा उपभोग की वस्तुओं की ख़रीदारी में वृद्धि की तथा इस्राईल के साथ खुल कर व्यापारिक एवं सैन्य संबंध स्थापित किए। मार्च 1975 के अंत में शाह ने दिखावे के रस्ताख़ीज़ नामक दल के गठन और एकदलीय व्यवस्था की स्थापाना के साथ ही तानाशाही को उसकी चरम सीमा पर पहुंचा दिया। उसने घोषणा की कि समस्त ईरानी जनता को इस दल का सदस्य बनना चाहिए और जो भी इसका विरोधी है वह ईरान से निकल जाए। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इसके तुरंत बाद एक फ़तवा जारी करके घोषणा की कि इस दल द्वारा इस्लाम तथा ईरान के मुस्लिम राष्ट्र के हितों के विरोध के कारण इसमें शामिल होना हराम और मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार की सहायता करने के समान है। इमाम ख़ुमैनी तथा कुछ अन्य धर्मगुरुओं के फ़तवे अत्यंत प्रभावी रहे और शाह की सरकार के व्यापक प्रचारों के बावजूद कुछ साल के बाद उसने रस्ताख़ीज़ दल की पराजय की घोषणा करते हुए उसे भंग कर दिया।
अक्तूबर वर्ष 1977 में शाह के एजेंटों के हाथों इराक़ में इमाम ख़ुमैनी के बड़े पुत्र आयतुल्लाह सैयद मुस्तफ़ा ख़ुमैनी की शहादत और इस उपलक्ष्य में ईरान में आयोजित होने वाली शोक सभाएं, ईरान के धार्मिक केंद्रों तथा जनता के पुनः उठ खड़े होने का आरंभ बिंदु थीं। उसी समय इमाम ख़ुमैनी ने इस घटना को ईश्वर की गुप्त कृपा बताया था। शाह की सरकार द्वारा इमाम ख़ुमैनी और धर्मगुरुओं के साथ शत्रुता के क्रम को आगे बढ़ाते हुए शाह के एक दरबारी लेखक ने इमाम के विरुद्ध एक अपमाजनक लेख लिख कर ईरानी जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। इस लेख के विरोध में जनता सड़कों पर निकल आई। आरंभ में पवित्र नगर क़ुम के कुछ धार्मिक छात्रों और क्रांतिकारियों ने 9 जनवरी वर्ष 1978 को सड़कों पर निकल कर प्रदर्शन किया जिसे पुलिस ने ख़ून में नहला दिया। किंतु धीरे धीरे अन्य नगरों के लोगों ने भी क़ुम की जनता की भांति प्रदर्शन आरंभ कर दिए और दमन एवं घुटन के वातावरण का कड़ा विरोध किया।
आंदोलन दिन प्रतिदनि बढ़ता जा रहा था और शाह को विवश हो कर अपने प्रधानमंत्री को बदलना पड़ा। अगला प्रधानमंत्री जाफ़र शरीफ़ इमामी था जो राष्ट्रीय संधि की सरकार के नारे के साथ सत्ता में आया था। उसके शासन काल में राजधानी तेहरान के एक चौराहे पर लोगों का बड़ी निर्ममता से जनसंहार किया गया जिसके बाद तेहरान तथा ईरान के 11 अन्य बड़े नगरों में कर्फ़्यू लगा दिया गया। इमाम ख़ुमैनी ने, जो इराक़ से स्थिति पर गहरी दृष्टि रखे हुए थे, ईरानी जनता के नाम एक संदेश में हताहत होने वालों के परिजनों से सहृदयता जताते हुए आंदोलन के भविष्य को इस प्रकार चित्रित कियाः “शाह को जान लेना चाहिए कि ईरानी राष्ट्र को उसका मार्ग मिल गया है और वह जब तक अपराधियों को उनके सही ठिकाने तक नहीं पहुंचा देगा, चैन से नहीं बैठेगा। ईरानी राष्ट्र अपने व अपने पूर्वजों का प्रतिशोध इस क्रूर परिवार से अवश्य लेगा। ईश्वर की इच्छा से अब पूरे देश में तानाशाही व सरकार के विरुद्ध आवाज़ें उठ रही हैं और ये आवाज़ें अधिक तेज़ होती जाएंगी”। शाह की सरकार के विरुद्ध संघर्ष को आगे बढ़ाने में इमाम ख़ुमैनी की एक शैली जनता को अहिंसा, हड़ताल और व्यापक प्रदर्शन का निमंत्रण देने पर आधारित थी। इस प्रकार ईरान की जनता ने इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में अत्याचारी तानाशाही शासन के विरुद्ध सार्वजनिक आंदोलन आरंभ किया।
इराक़ की बअसी सरकार के दबाव और विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के चलते इमाम ख़ुमैनी अक्तूबर वर्ष 1978 में इराक़ से फ़्रान्स की ओर प्रस्थान कर गए और पेरिस के उपनगरीय क्षेत्र नोफ़ेल लोशातो में रहने लगे। फ़्रान्स के तत्कालीन राष्ट्रपति ने एक संदेश में इमाम ख़ुमैनी से कहा कि वे हर प्रकार की राजनैतिक गतिविधि से दूर रहें। उन्होंने इसके उत्तर में कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि इस प्रकार का प्रतिबंध प्रजातंत्र के दावों से विरोधाभास रखता है और वे कभी भी अपनी गतिविधियों और लक्ष्यों की अनदेखी नहीं करेंगे। इमाम ख़ुमैनी चार महीनों तक नोफ़ेल लोशातो में रहे और इस अवधि में यह स्थान, विश्व के महत्वपूर्ण सामाचारिक केंद्र में परिवर्तित हो गया था। उन्होंने विभिन्न साक्षात्कारों और भेंटों में शाह की सरकार के अत्याचारों और ईरान में अमरीका के हस्तक्षेप से पर्दा उठाया तथा संसार के समक्ष अपने दृष्टिकोण रखे। इस प्रकार संसार के बहुत से लोग उनके आंदोलन के लक्ष्यों व विचारों से अवगत हुए। ईरान में भी मंत्रालयों, कार्यालयों यहां तक कि सैनिक केंद्रों में भी हड़तालें होने लगीं जिसके परिणाम स्वरूप शाह जनवरी वर्ष 1979 में ईरान से भाग गया। इसके 18 दिन बाद इमाम ख़ुमैनी वर्षों से देश से दूर रहने के बाद स्वदेश लौटे। उनके विवेकपूर्ण नेतृत्व की छाया में तथा ईरानी जनता के त्याग व बलिदान से 11 फ़रवरी वर्ष 1979 को ईरान से शाह के अत्याचारी शासन की समाप्ति हुई। अभी इस ऐतिहासिक परिवर्तन को दो महीने भी नहीं हुए थे कि ईरान की 98 प्रतिशत जनता ने एक जनमत संग्रह में इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के पक्ष में मत दिया।
इमाम ख़ुमैनी जनता की भूमिका पर अत्यधिक बल देते थे। उनके दृष्टिकोण में जिस प्रकार से धर्म, राजनीति से अलग नहीं है उसी प्रकार सरकार भी जनता से अलग नहीं है। वे इस संबंध में कहते हैः“ हमारी सरकार का स्वरूप इस्लामी गणतंत्र है। गणतंत्र का अर्थ यह है कि यह लोगों के बहुमत पर आधारित है और इस्लामी का अर्थ यह है कि यह इस्लाम के क़ानूनों के अनुसार है”। दूसरी ओर इमाम ख़ुमैनी राजनैतिक मामलों में जनता की भागीदारी को, चुनावों में भाग लेने से इतर समझते थे और इस बात को उन्होंने अनेक बार अपने भाषणों और वक्तव्यों में बयान भी किया था।
ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने ईरान की इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को धराशाही करने का हर संभव प्रयास किया। वे जानते थे कि ईरान की इस्लामी क्रांति अन्य देशों में भी जनांदोलन आरंभ होने का कारण बन सकती है और राष्ट्रों को अत्याचारी शासकों के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए प्रेरित कर सकती है। ईरान की इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले हेतु साम्राज्य की एक शैली यह थी कि इमाम ख़ुमैनी की हत्या के लिए देश के कुछ बिके हुए तत्वों को प्रयोग किया जाए क्योंकि वे जानते थे कि सरकार के नेतृत्व में उनकी भूमिका अद्वितीय है किंतु उनकी हत्या का षड्यंत्र विफल हो गया।
इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को उखाड़ फेंकने हेतु शत्रुओं की एक अन्य शैली, देश को भीतर से तोड़ना और उसका विभाजन करना था। शत्रुओं ने ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में जातीय भावनाएं भड़का कर बड़ी समस्याएं उत्पन्न कीं किंतु इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला और इस्लामी क्रांति के महान नेता की युक्तियों और जनता द्वारा उनके आज्ञापालन से ये समस्याएं भी समाप्त हो गईं। इमाम ख़ुमैनी एकता व एकजुटता के लिए सदैव जनता का आह्वान करते रहते थे और कहते थे कि धर्म और जाति को दृष्टिगत रखे बिना सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए और हर ईरानी को पूरी स्वतंत्रता के साथ न्यायपूर्ण जीवन बिताने का अवसर दिया जाना चाहिए।
जब साम्राज्यवादियों को ईरानी जनता की एकजुटता और इमाम ख़ुमैनी के सशक्त नेतृत्व के मुक़ाबले में पराजय हो गई तो उन्होंने ईरान के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों और विषैले कुप्रचारों को भी पर्याप्त नहीं समझा और ईरान पर आठ वर्षीय युद्ध थोप दिया। ईरान की त्यागी जनता को, जो अभी अभी तानाशाही शासन के चंगुल से मुक्त हुई थी और इस्लाम की शरण में स्वतंत्रता का स्वाद चखना चाहती थी, एक असमान युद्ध का सामना करना पड़ा। सद्दाम द्वारा ईरान पर थोपे गए युद्ध ने, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व के एक अन्य आयाम को प्रदर्शित किया और वे युद्ध के उतार-चढ़ाव से भरे काल से जनता को आगे बढ़ाने में सफल रहे। अमरीका, इस्राईल, फ़्रान्स और जर्मनी के अतिरिक्त तीस अन्य देशों ने इराक़ को शस्त्र, सैन्य उपकरण तथा सैनिक दिए जबकि ईरान पर प्रतिबंध लगे हुए थे और इस युद्ध के लिए वह बड़ी कठिनाई से सैन्य उपकरण उपलब्ध कर पाता था। इस बीच ईरानी योद्धाओं का मुख्य शस्त्र, साहस, ईमान और ईश्वर का भय था। अपने नेता के आदेश पर बड़ी संख्या में रणक्षेत्र का रुख़ करने वाले ईरानी योद्धाओं ने अपने देश व क्रांति की रक्षा में त्याग, बलिदान और साहस की अमर गाथा लिख दी।
इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक था। वे जीवन में अनुशासन और कार्यक्रम के अंतर्गत काम करने पर कटिबद्ध थे। वे अपने दिन और रात के समय में से एक निर्धारित समय उपासना, क़ुरआने मजीद की तिलावत और अध्ययन में बिताते थे। दिन में तीन चार बार पंद्रह पंद्रह मिनट टहलना और उसी दौरान धीमे स्वर में ईश्वर का गुणगान करना तथा चिंतन मनन करना भी उनके व्यक्तित्व का भाग था। यद्यपि उनकी आयु नब्बे वर्ष तक पहुंच रही थी किंतु वे संसार के सबसे अधिक काम करने वाले राजनेताओं में से एक समझे जाते थे। प्रतिदिन के अध्ययन के अतिरिक्त वे देश के रेडियो व टीवी के समाचार सुनने व देखने के अतिरिक्त कुछ विदेशी रेडियो सेवाओं के समाचारों व समीक्षाओं पर भी ध्यान देते थे ताकि क्रांति के शत्रुओं के प्रचारों से भली भांति अवगत रहें। प्रतिदिन की भेंटें और सरकारी अधिकारियों के साथ होने वाली बैठकें कभी इस बात का कारण नहीं बनती थीं कि आम लोगों के साथ इमाम ख़ुमैनी के संपर्क में कमी आ जाए। वे समाज के भविष्य के बारे में जो भी निर्णय लेते थे उसे अवश्य ही पहले जनता के समक्ष प्रस्तुत करते थे। उनके समक्ष बैठने वाले लोग बरबस ही उनके आध्यात्मिक तेज व आकर्षण से प्रभावित हो जाते थे और उनकी आंखों से आंसू बहने लगते थे। लोग हृदय की गहराइयों से अपने नारों में ईश्वर से प्रार्थना करते थे कि वह इमाम ख़ुमैनी को दीर्घायु प्रदान करे। कुल मिला कर यह कि इमाम ख़ुमैनी का संपूर्ण जीवन ईश्वर तथा लोगों की सेवा के लिए समर्पित था।
अंततः 3 जून वर्ष 1989 को उस हृदय ने धड़कना बंद कर दिया जिसने दसियों लाख हृदयों को ईश्वर व अध्यात्म के प्रकाश की ओर उन्मुख किया था। कई लम्बी शल्य चिकित्साओं के बाद इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने 87 वर्ष की आयु में इस संसार को विदा कहा। उन्होंने अपनी वसीयत के अंत में लिखा थाः“ मैं शांत हृदय, संतुष्ट मन, प्रसन्न आत्मा और ईश्वर की कृपा के प्रति आशावान अंतरात्मा के साथ भाइयों और बहनों की सेवा से विदा लेकर अपने अनंत ठिकाने की ओर प्रस्थान कर रहा हूं और मुझे आप लोगों की नेक दुआओं की बहुत आवश्यकता है”।
सैयद रूहुल्लाह मूसवी ख़ुमैनी महान धर्मगुरू
उन महान हस्तियों के नाम और याद को जीवित रखना जिन्होंने राष्ट्रों के भविष्य को ईश्वरीय विचारों और अपने अथक प्रयासों से उज्जवल बनाया है, एक आवश्यक कार्य है। इस श्रंखला में हम प्रयास करेंगे कि समकालीन ईरान की धर्म व ज्ञान से संबंधित प्रभावी हस्तियों से आपको परिचित कराएं। इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह मानव इतिहास की सबसे उल्लेखनीय हस्तियों में से एक समझे जाते हैं जिन्होंने समकालीन इतिहास में एक ईश्वरीय आंदोलन के माध्यम से पूरे संसार को प्रभावित किया। उन्होंने ईश्वरीय पैग़म्बरों और इमामों की सत्य की आवाज़ को प्रतिबिंबित किया। वे पहलवी शासन के अत्याचारपूर्ण एवं घुटन भरे काल में लोगों के बीच से उठे और एक प्रकाशमान फ़ानूस की भांति लोगों के हृदयों को अन्धकार से प्रकाश की ओर मार्गदर्शित किया। इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन से ईरानी जनता के भविष्य को एक नया आयाम मिला और लोग उनके ईश्वरीय मार्गदर्शन की सहायता से, इस्लामी क्रांति की विभूति से लाभान्वित हुए। इस्लामी क्रांति के वर्तमान नेता आयतुल्लाहिल उज़मा इमाम ख़ामेनेई, जो इमाम ख़ुमैनी के सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक हैं, उनके बारे में कहते हैं। इंसाफ़ से देखा जाए तो हमारे प्रिय इमाम और नेता के महान व्यक्तित्व कि तुलना ईश्वर के पैग़म्बरों और इमामों के बाद किसी अन्य व्यक्ति से नहीं की जा सकती। वे हमारे बीच ईश्वर की अमानत, हमारे लिए ईश्वर का तर्क और ईश्वर की महानता का चिन्ह थे। जब मनुष्य उन्हें देखता था तो धर्म के नेताओं की महानता पर उसे विश्वास आ जाता था।
सैयद रूहुल्लाह मूसवी ख़ुमैनी का जन्म 30 शहरीवर वर्ष 1281 हिजरी शमसी बराबर 21 सितम्बर वर्ष 1902 ईसवी को केंद्रीय ईरान के ख़ुमैन नगर में एक धार्मिक व पढ़े लिखे परिवार में हुआ था। उनके पिता एक साहसी धर्मगुरू थे जिन पर लोग अत्यधिक विश्वास करते थे। उन्होंने स्थानीय ग़ुंडों से, जिन्होंने ख़ुमैन नगर के लोगों की जान और उनके माल को ख़तरे में डाल रखा था, कड़ा संघर्ष किया और अंततः उन्हीं के हाथों मारे गए। उस समय इमाम ख़ुमैनी की आयु केवल पांच महीने थी। उन्होंने अपना बचपन अपनी माता की छत्रछाया में व्यतीत किया। वह समय ईरान में संवैधानिक क्रांति और उसके बाद के राजनैतिक व सामाजिक परिवर्तनों का काल था। इमाम ख़ुमैनी इन परिवर्तनों पर गहरी दृष्टि रखते थे और उनसे अनुभव प्राप्त करते थे। उनके बचपन व किशोरावस्था की कुछ प्रभावी घटनाएं उनके द्वारा बनाए गए चित्रों और सुलेखन में प्रतिबिंबित होती हैं। उदाहरण स्वरूप उन्होंने दस वर्ष की आयु में अपनी डायरी में इस्लाम की मर्यादा कहां है? राष्ट्रीय आंदोलन किधर है? शीर्षक के अंतर्गत एक लघु कविता लिखी थी जिसमें राजनैतिक समस्याओं की ओर संकेत किया गया है। पंद्रह वर्ष की आयु में इमाम ख़ुमैनी अपनी स्नेही माता की छाया से भी वंचित हो गए।
इमाम ख़ुमैनी ने बचपन में ही अपनी प्रवीणता के सहारे अरबी साहित्य, तर्कशास्त्र, धर्मशास्त्र और इसी प्रकार उस समय प्रचलित बहुत से ज्ञानों के आरंभिक भाग की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। वर्ष 1297 हिजरी शमसी में वे केंद्रीय ईरान के अराक नगर के उच्च धार्मिक शिक्षा केंद्र में प्रवेश लिया और फिर वहां से पवित्र नगर क़ुम के उच्च धार्मिक शिक्षा केंद्र का रुख़ किया। क़ुम में उन्होंने आयतुल्लाह हायरी जैसे महान धर्मगुरुओं से शिक्षा प्राप्त की। अपनी तीव्र बुद्धि के कारण इमाम ख़ुमैनी ने विभिन्न ज्ञानों की शिक्षा बड़ी तीव्रता से पूरी कर ली। उन्होंने धर्मशास्त्र, उसूले फ़िक़्ह के अतिरिक्त दर्शन शास्त्र की शिक्षा अपने काल के सबसे महान गुरू अर्थात आयतुल्लाह मीरज़ा मुहम्मद अली शाहाबादी से प्राप्त की। इमाम ख़ुमैनी ने वर्ष 1308 हिजरी शमसी में 27 वर्ष की आयु में ख़दीजा सक़फ़ी से विवाह किया।
वर्ष 1316 में जब इमाम ख़ुमैनी की आयु 35 वर्ष थी तो उनकी गणना क़ुम नगर के प्रख्यात धर्मगुरुओं में होने लगी थी। उस समय अधिकांश युवा छात्र उनके पाठों में भाग लेने के इच्छुक होते थे। वर्ष 1320 हिजरी क़मरी तक इमाम रूहुल्लाह ख़ुमैनी अधिकतर पढ़ने, पढ़ाने और पुस्तकें लिखने में व्यस्त रहे किंतु इसी के साथ उनके भीतर अत्याचार से संघर्ष की भावना भी परवान चढ़ती रही। उस काल में उनकी मुख्य चिंता क़ुम के धार्मिक शिक्षा केंद्र की रक्षा और प्रगति थी। वे समाज की परिस्थितियों को दृष्टिगत रख कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि धार्मिक शिक्षा केंद्रों को मज़बूत बनाने तथा लोगों व धर्मगुरुओं के बीच संबंध को सुदृढ़ करने से ही आंतरिक अत्याचारी शासन और विदेशी साम्राज्य के चंगुल से देश की जनता को मुक्ति दिलाई जा सकती है। वे इसी प्रकार समकालीन ईरान के इतिहास से संबंधित पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करके अपने ज्ञान में वृद्धि कर रहे थे। वे अन्य इस्लामी समाजों की राजनैतिक व सामाजिक परिस्थितियों पर गहरी दृष्टि रखते थे। इमाम ख़ुमैनी नूरुल्लाह इस्फ़हानी और शहीद सैयद हसन मुदर्रिस जैसे क्रांतिकारी एवं संघर्षकर्ता धर्मगुरुओं से भी परिचित हुए। इन वर्षों में पहलवी परिवार के पहले शासक रज़ा ख़ान ने पूरे देश में भय व आतंक का वातावरण फैला रखा था और हर उठने वाली आवाज़ का उत्तर हत्या, जेल या निर्वासन से दिया जाता था।
वर्ष 1320 हिजरी शमसी में मुहम्मद रज़ा पहलवी के सत्ता में आने के साथ ही इमाम ख़ुमैनी धार्मिक व राजनैतिक मामलों में अधिक खुल कर सामने आ गए। उन्होंने वर्ष 1340 तक क्रांतिकारी छात्रों का प्रशिक्षण किया और मूल्यवान पुस्तकें लिखीं। इसी के साथ वे राजनैतिक मामलों विशेष कर वर्ष 1329 में तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण के मामले पर भी विशेष ध्यान देते रहे। वर्ष 1340 में शीया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू आयतुल्लाहिल उज़मा बोरूजेर्दी का निधन हुआ और बहुत से लोगों व धार्मिक छात्रों ने जो इमाम ख़ुमैनी की ज्ञान, नैतिकता व राजनीति से संबंधित विशेषताओं से अवगत थे उन्हें वरिष्ठ धर्मगुरू बनाए जाने की मांग की। ये उस समय की घटनाएं हैं जब वर्ष 1953 के विद्रोह के बाद ईरान में अमरीकी सरकार का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। अमरीकी सरकार ने मुहम्मद रज़ा शाह पर दबाव डाला कि वह दिखावे के लिए कुछ सुधार करे। शाह ने अमरीका के इस दबाव के उत्तर में वर्ष 1962 में कई कार्यक्रमों को पारित किया जिनमें कुछ इस्लाम विरोधी बिंदु भी मौजूद थे। इमाम ख़ुमैनी ने अपनी दूरदर्शिता से इन बातों को भांप लिया और अमरीका के दृष्टिगत सुधारों के मुक़ाबले में पूर्ण रूप से डट गए। उन्होंने क़ुम तथा तेहरान के बड़े धर्मगुरुओं के साथ मिल कर व्यापक विरोध किया किंतु शाह चाहता था कि अमरीकी सुधारों को एक दिखावे के जनमत संग्रह के माध्यम से पारित करवा दे। इमाम ख़ुमैनी ने शाह के जनमत संग्रह के बहिष्कार का आह्वान किया। उनके आग्रह और प्रतिरोध के कारण ईरान के बड़े बड़े धर्म गुरुओं ने खुल कर उस जनमत संग्रह का विरोध किया और उसमें भाग लेने को धार्मिक दृष्टि से हराम या वर्जित घोषित कर दिया। इमाम ख़ुमैनी ने वर्ष 1341 के अंतिम दिनों में शाह के सुधार कार्यक्रमों के विरुद्ध एक कड़ा बयान जारी किया। तेहरान के लोग उनके समर्थन में सड़कों पर निकल आए और पुलिस ने लोगों के प्रदर्शनों पर आक्रमण कर दिया। शाह ने, जो चाहता था कि जिस प्रकार से भी संभव हो, अमरीका के प्रति अपनी वफ़ादारी को सिद्ध कर दे, लोगों के ख़ून से होली खेली।
वर्ष 1342 हिजरी शमसी के आरंभिक दिनों में शाह के एजेंटों ने सादे कपड़ों में क़ुम के एक बड़े धार्मिक शिक्षा केंद्र मदरसए फ़ैज़िया में छात्रों के समूह में उपद्रव मचाया और फिर पुलिस ने उन छात्रों का जनसंहार किया। इसी के साथ तबरीज़ नगर में भी एक धार्मिक शिक्षा केंद्र पर आक्रमण किया गया। उन दिनों क़ुम नगर में इमाम ख़ुमैनी का घर पर प्रतिदिन क्रांतिकारियों और क्रोधित लोगों का जमावड़ा होता था जो धर्मगुरुओं के समर्थन के लिए क़ुम नगर आते थे। इमाम ख़ुमैनी इन भेंटों में पूरी निर्भीकता के साथ शाह को सभी अपराधों का ज़िम्मेदार और अमरीका व इस्राईल का घटक बताते थे तथा आंदोलन चलाने के लिए लोगों का आह्वान किया करते थे। इमाम ख़ुमैनी ने मदरसए फ़ैज़िया के धार्मिक छात्रों के जनसंहार पर दिए गए अपने एक संदेश में कहा कि मैं जब यह भ्रष्ट सरकार हट नहीं जाती तब तक मैं चैन से नहीं बैठूंगा। इसके बाद उन्हें गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। इमाम ख़ुमैनी की गिरफ़्तारी का समाचार मिलते ही 15 ख़ुर्दाद वर्ष 1342 बराबर 5 जून वर्ष 1963 को पूरे ईरान के सभी नगरों की जनता सड़कों पर निकल आई और देश व्यापी प्रदर्शन आरंभ हो गए। लोगों ने या हमें भी मार डालो या ख़ुमैनी को रिहा करो के नारे लगा कर शाह के महल में भूकम्प पैदा कर दिया।
ईरान की जनता के व्यापक विरोध के बाद शाह के सैनिकों ने विशेष रूप से तेहरान व क़ुम में बड़ी निर्ममता के साथ प्रदर्शनों को कुचलने का प्रयास किया किंतु कुछ ही महीने बाद शाह, इमाम ख़ुमैनी को रिहा करने पर विवश हो गया। उन्होंने रिहा होने के बाद शाह की ओर से दी जाने वाली धमकियों की अनदेखी करते हुए अपने विभिन्न भाषणों में लोगों को अत्याचार व तानाशाही के विरुद्ध संघर्ष का निमंत्रण दिया। उन्होंने अपने एक ऐतिहासिक भाषण में लोगों को अतिग्रहणकारी इस्राईली सरकार के साथ शाह के गुप्त किंतु व्यापक संबंधों के बारे में बताया और साथ ही ईरान के आंतरिक मामलों में अमरीका के अत्याचारपूर्ण हस्तक्षेप से पर्दा उठाते हुए जनता को शाह के राष्ट्र विरोधी कार्यों से अवगत कराया। ये बातें सुन कर ईरानी जनता के क्रोध में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती गई। शाह ने, जब यह देखा कि वह धमकी और लोभ से इमाम ख़ुमैनी को रोक नहीं सकता तो उसने उन्हें देश निकाला दे दिया। वर्ष 1965 के अंत में उन्हें तुर्की और वहां से एक साल बाद इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ निर्वासित कर दिया गया और इस प्रकार उनके चौदह वर्षीय निर्वासन का आरंभ हुआ।
असंख्य कठिनाइयों और दुखों के बावजूद इमाम ख़ुमैनी निर्वासन के दौरान भी संघर्ष से पीछे नहीं हटे। इस अवधि में उन्होंने अपने संदेशों और भाषणों के माध्यमों से कैसेटों व पम्फ़लेटों के रूप में जनता तक पहुंचते थे, लोगों में आशा की किरण को जगाए रखा। इमाम ख़ुमैनी ने वर्ष 1976 में अरबों और इस्राईल के बीच होने वाले छः दिवसीय युद्ध के उपलक्ष्य में एक फ़तवा जारी किया और इस्राईल के सथ मुसलमान राष्ट्रों के हर प्रकार के राजनैतिक एवं आर्थिक संबन्धों और इसी प्रकार इस्राईल निर्मित वस्तुओं के प्रयोग को हराम बताया। इमाम ख़ुमैनी ने ईरान में अपने संघर्ष से जहां ईरान में संघर्षकर्ता बनाए वहीं उन्होंने ईरान के अतिरिक्त इराक, लेबनान, मिस्र, पाकिस्तान तथा अन्य इस्लामी देशों में बड़ी संख्या में अपने अनुयाई बनाए।
ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी र. की बरसी।
यह वह दिन है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह इस नश्वर संसार से चले गये। एक ऐसी हस्ती जिसने ईरान के इतिहास पर गहरा व निर्णायक असर डाला और साथ ही जनता के इरादे को इस्लामी गणतंत्र ईरान के सांचे में पेश किया। इमाम ख़ुमैनी ईरानी राष्ट्र सहित सारे मुसलमानों के लिए सिर्फ़ एक राजनेता ही नहीं बल्कि वह एक बड़े धर्मगुरू, सादा जीवन बिताने वाले और अत्याचार व अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष के प्रतीक भी थे। यही वजह है कि इमाम ख़ुमैनी के स्वर्गवास को आज 28 साल गुज़रने के बाद भी उनकी याद लोगों के दिलों में उसी तरह बाक़ी और उनकी बातें लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है
आज की दुनिया में जो अत्याचार व अन्याय से भरी हुयी है, इमाम ख़ुमैनी की भेदभाव व अतिक्रमण के ख़िलाफ़ डटे रहने की शिक्षाएं, मार्गदर्शक का काम कर रही हैं। उनका मानना था, “इस संसार में पहले इंसान के क़दम रखते ही अच्छे और बुरे लोगों के बीच विवाद का द्वार खुल गया।” इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इस्लाम को अत्याचारियों के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए प्रेरणा का बेहतरीन माध्यम मानते थे, क्योंकि इस धर्म की शिक्षाओं में अत्याचार के विरोध पर साफ़ तौर पर बल दिया गया है। वह साफ़ तौर पर कहते थे, “हमारे धार्मिक आदेशों ने कि जिनके ज़रिए सबसे ज़्यादा प्रगति की जा सकती है, हमारे लिए मार्ग निर्धारित किए हैं। हम इन आदेशों और दुनिया के महान नेता हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के नेतृत्व के सहारे उन सभी शक्तियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करेंगे जो हमारे राष्ट्र पर अतिक्रमण करने का इरादा रखती हैं।” यही वजह है कि जब हम इमाम ख़ुमैनी के ईरान में अत्याचारी पहलवी शासन, अमरीका और ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं उनका यह संघर्ष इस्लामी मूल्यों के आधार पर था जो अत्याचार को पसंद नहीं करता और अत्याचारियों के ख़िलाफ़ संघर्ष पर बल देता है।
देश के भीतर अत्याचार और विश्व साम्राज्य के ख़िलाफ़ संघर्ष में वीरता और दृढ़ता इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व की स्पष्ट विशेषताएं थीं। उनमें ये विशेषताएं ईश्वर पर भरोसे से पैदा हुयी थी। वह हर काम में ईश्वर पर भरोसा करते थे। इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक को पवित्र क़ुरआन के मोहम्मद सूरे की आयत नंबर 7 पर गहरी आस्था थी जिसमें ईश्वर कह रहा है, “अगर तुम ईश्वर की मदद करो तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा।” यही वजह है कि इमाम ख़ुमैनी पहलवी शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष के दौरान कभी भी निराश नहीं हुए। अमरीकी हथकंडों और उसकी दुश्मनी के सामने कभी नहीं घबराए। क्योंकि इमाम ख़ुमैनी ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानते थे और उसे अपना और लोगों का मददगार समझते थे। इस महान शक्ति के भरोसे दुनिया के राष्ट्रों को अमरीकी वर्चस्ववाद और आंतरिक स्तर पर मौजूद अत्याचारियों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध के लिए प्रेरित करते और उन्हें यह वचन देते थे कि अगर वे ऐसा करेंगे तो सफलता उनके क़दम चूमेगी।
ईश्वर के बाद इमाम ख़ुमैनी जनता की शक्ति पर भरोसा करते थे। उनका मानना था कि अगर आम लोग जागरुक व एकजुट हो जाएं तो कोई भी शक्ति उनके सामने टिक नहीं सकती। इमाम ख़ुमैनी इस्लामी क्रान्ति में जनता की भूमिका के बारे में कहते हैं, “इस बात में शक नहीं कि इस्लामी क्रान्ति के बाक़ी रहने का रहस्य भी वही है जो उसकी सफलता का रहस्य है और राष्ट्र सफलता के रहस्य को जानता है और आने वाली पीढ़ियां भी इतिहास में यह पढेंगी कि उसके दो मुख्य स्तंभ इस्लामी शासन जैसे उच्च उद्देश्य की प्राप्ति की भावना और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूरे राष्ट्र की एकजुटता थी।”
इमाम ख़ुमैनी अपने वंशज पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का अनुसरण करते थे और पवित्र क़ुरआन के फ़त्ह नामक सूरे की अंतिम आयत उन पर चरितार्थ होती थी कि जिसमें ईश्वर कह रहा है, “मोहम्मद ईश्वरीय दूत हैं। जो लोग उनके साथ हैं वे नास्तिकों के ख़िलाफ़ कठोर लेकिन आपस में मेहरबान हैं।” इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हमेशा देश के अधिकारियों पर बल देते थे कि आम लोगों की मुश्किलों को हल करें। इसी प्रकार वह ख़ुद भी एक मेहरबान पिता के समान आम जनता का समर्थन करते थे। लोग भी उनसे गहरी श्रद्धा रखते थे और उनके निर्देशों को पूरी तनमयता से स्वीकार करते और उस पर अमल करते थे। इमाम ख़ुमैनी व जनता के बीच यह संबंध शाह के पतन के लिए जारी संघर्ष और इराक़ के पूर्व तानाशाह सद्दाम के हमले से ईरान की भूमि की रक्षा के दौरान पूरी तरह स्पष्ट था।
एक ओर इमाम ख़ुमैनी इस्लाम और जनता के दुश्मनों का दृढ़ता से मुक़ाबला करते तो दूसरी ओर इस्लामी जगत के भीतर हमेशा एकता, समरस्ता व भाईचारे के लिए कोशिश करते थे। वह राष्ट्रों से भी और सरकारों से भी एकता की अपील करते हुए बल देते थे, “अगर इस्लामी सरकारें जो सभी चीज़ों से संपन्न हैं, जिनके पास बहुत ज़्यादा भंडार हैं, आपस में एकजुट हो जाएं, तो इस एकता के नतीजे में उन्हें किसी दूसरी चीज़, देश या शक्ति की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।” इसके साथ ही इमाम ख़ुमैनी ने इस बिन्दु की ओर भी ध्यान था कि इस्लाम के दुश्मनों के साथ इस्लामी जगत के भीतर भी कुछ सरकारें व गुट मौजूद हैं जो मुसलमानों के बीच एकता के ख़िलाफ़ हैं ताकि इस प्रकार अपने पश्चिमी दोस्तों के हितों का रास्ता समतल करें। इमाम ख़ुमैनी की नज़र में मुसलमानों के बीच एकता के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट सऊदी सरकार है कि जिसका आधार पथभ्रष्ट वहाबी मत की शिक्षाए हैं। एक स्थान पर इमाम ख़ुमैनी फ़रमाते हैं, “जैसे ही एकता के लिए कोई आवाज़ उठती है तो उसी वक़्त हेजाज़ से एक व्यक्ति यह कहता हुआ नज़र आता है कि पैग़म्बरे इस्लाम का शुभ जन्म दिवस मनाना शिर्क अर्थात अनेकेश्वरवाद है। मुझे नहीं मालूम कि यह बात किस आधार पर कही जा रही है, यह कैसे अनेकेश्वरवाद हो सकता है? अलबत्ता ऐसा कहने वाला वहाबी है। वहाबियों को सुन्नी मत के लोग भी नहीं मानते। ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ हम उन्हें नहीं मानते बल्कि सुन्नी भाई भी उन्हें नहीं मानते।”
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का मानना था कि वहाबियत एक पथभ्रष्ट विचारधारा है जो मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण बनेगी। जैसा कि मौजूदा दौर में हम यह देख रहे हैं कि इस हिंसक व आधारहीन मत के अनुयायी इराक़, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान, यमन, और लीबिया में लोगों के ख़ून से होली खेल रहे हैं। वास्तव में ये लोग इस्लाम के दुश्मनों की सेवा कर रहे हैं। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह आले सऊद और वहाबियों के बारे में बहुत ही गहरी बात कहते हैं,“क्या मुसलमानों को यह नज़र नहीं आ रहा है कि आज दुनिया में वहाबियत के केन्द्र साज़िश व जासूसी के गढ़ बन चुके हैं जो एक ओर कुलीन वर्ग के इस्लाम, अबू सुफ़ियान के इस्लाम, दरबारी कठमुल्लों के इस्लाम, धार्मिक केन्द्रों व यूनिवर्सिटियों के विवेकहीन लोगों का बड़ा पवित्र दिखने वाले इस्लाम, तबाही व बर्बादी में ले जाने वाले इस्लाम, धन व ताक़त के इस्लाम, धोखा, साज़िश व ग़ुलाम बनाने वाले इस्लाम, पीड़ितों व निर्धनों पर पूंजिपतियों के इस्लाम, और एक शब्द में अमरीकी इस्लाम का प्रचार कर रहे हैं और दूसरी ओर पूरी दुनिया को लूटने वाले अमरीकियों के सामने अपना सिर झुकाते हैं।”
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह जो बातें सऊदियों की इस्लामी जगत से ग़द्दारी के बारे में कह गए, ऐसा लगता है कि वे हमारे बीच मौजूद हैं और अपनी आंखों से ये होता हुआ देख रहे हैं। जैसा कि पवित्र मक्का में ईरानी श्रद्धालुओं के जनसंहार की बरसी के अवसर पर अपने संदेश में लिखते हैं, “मुसलमान यह नहीं जानता कि यह दर्द किससे बांटे कि आले सऊद इस्राईल को यक़ीन दिलाता है कि हम अपने हथियार तुम्हारे ख़िलाफ़ इस्तेमाल नहीं करेंगे और अपनी बात को साबित करने के लिए ईरान के साथ संबंध विच्छेद करता है।”
इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने सभी कठिनाइयों व रुकावटों के बावजूद ईरान में एक ऐसी सरकार की बुनियाद रखी जो पथभ्रष्ट व रूढ़ीवादी वहाबी विचारधारा के मुक़ाबले में प्रगतिशील इस्लाम की प्रतीक और प्रजातांत्रिक है। आज 38 साल गुज़रने के बाद भी इस्लामी गणतंत्र ईरान दुनिया में एक शक्तिशाली शासन के तौर पर पहचाना जाता है कि जिसका आधार इस्लामी सिद्धांत और जनता की राय है
ईरान में 19 मई को ताज़ा चुनाव आयोजित हुए जो पूरी आज़ादी व प्रतिस्पर्धा के साथ संपन्न हुए कि जिसके दौरान जनता ने अपने मतों से राष्ट्रपति और नगर परिषद के सदस्यों को चुना। यह ऐसा चुनाव है जिसकी सऊदी अरब की जनता सहित फ़ार्स खाड़ी के शाही शासन वाले ज़्यादातर देशों की जनता कामना करती है। इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी नियमों और जनता पर भरोसे के सहारे शुरु में भी शासन व्यवस्था के चयन का अख़्तियार जनता को सौंप दिया और जनता के राय से शासन व्यवस्था का गठन हुआ। इमाम ख़ुमैनी के योग्य उत्तराधिकारी वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई जनता के संबंध में इमाम ख़ुमैनी के दृष्टिकोण के बारे में कहते हैं, “इमाम जब जनता के बारे में बात करते थे तो यह बातें भावनात्मक नहीं होती थीं। जैसे बहुत से देशों के नेताओं की तरह सिर्फ़ बातों की हद तक जनता पर निर्भरता की बातें नहीं करते थे बल्कि वे व्यवहारिक रूप से जनता के स्थान को अहमियत देते थे। ऐसे लोग बहुत कम नज़र आते हैं जो इमाम के जितना आम लोगों से मन की गहराई से प्रेम करे और उन पर भरोसा करे क्योंकि उन्हें जनता की आस्था व वीरता पर भरोसा था।”
इमाम ख़ुमैनी के स्वर्गवास के बाद उनकी भव्य शवयात्रा और उनकी शोकसभाएं ख़ुद इस बात का पता देती हैं कि आम लोग इमाम ख़ुमैनी से कितनी गहरी श्रद्धा रखते थे। क्योंकि इमाम ख़ुमैनी ऐसे नेता थे जिन्होंने पूरा जीवन आम लोगों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था और वे मन की गहरायी से आम लोगों से प्रेम करते थे। जनता और इमाम ख़ुमैनी के बीच इस गहरे लगाव की वजह से 38 साल गुज़रने के बाद भी इमाम ख़ुमैनी के क्रान्तिकारी विचार न सिर्फ़ ईरान बल्कि दुनिया के अन्य देशों में लोकप्रिय हो रहे हैं।
इमाम ख़ुमैनी र.ह.एक महान हस्ती
चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किए
चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किया और इस्लामी प्रतिरोध का झंडा पूरी दुनिया पर फहराया।
इमाम खुमैनी की पाक और इलाही ख़ौफ़ से भरी ज़िंदगी इलाही रौशनी फ़ैलाने वाला आईना है और वह पैगम्बरे इस्लाम (स) की जीवनशैली से प्रभावित रहा है। इमाम खुमैनी ने पैगम्बरे इस्लाम (स) की ज़िंदगी के सभी आयामों को अपने लिये आदर्श बनाते हुये पश्चिमी और पूर्वी समाजों के कल्चर की गलत व अभद्र बातों को रद्द करके आध्यात्म एंव अल्लाह पर यक़ीन की भावना समाजों में फैला दी और यही वह माहौल था जिसमें बहादुर और ऐसे जवानों का प्रशिक्षण हुआ जिन्होने इस्लाम का बोलबाला करने में अपने ज़िंदगी को क़ुरबान करने में भी हिचकिचाहट से काम नहीं लिया।
पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स) की पैगम्बरी के ऐलान अर्थात बेसत की तारीख़ भी जल्दी ही गुज़री है इसलिये हम इमाम खुमैनी के कैरेक्टर पर इस पहलू से रौशनी डालने की कोशिश करेंगे कि उन्होने इस युग में किस तरह पैगम्बरे इस्लाम (स) के चरित्र और व्यवहार को व्यवहारिक रूप में पेश किया।
पश्चिमी दुनिया में घरेलू कामकाज को महत्वहीन समझा जाता है। यही कारण है कि अनेक महिलायें अपने समय को घर के बाहर गुज़ारने में ज़्यादा रूचि रखती हैं। जबकि पैगम्बरे इस्लाम (स) के हवाले से बताया जाता है कि पैगम्बरे इस्लाम (स) ने एक दिन अपने पास मौजूद लोगों से पूछा कि वह कौन से क्षण हैं जब औरत अल्लाह से बहुत क़रीब होती है?
किसी ने भी कोई उचित जवाब नहीं दिया। जब हज़रत फ़ातिमा की बारी आई तो उन्होने कहा वह क्षण जब औरत अपने घर में रहकर अपने घरेलू कामों और संतान के प्रशिक्षण में व्यस्त होती है तो वह अल्लाह के बहुत ज़्यादा क़रीब होती है। इमाम खुमैनी र.ह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पदचिन्हों पर चलते हुये घर के माहौल में मां की भूमिका पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देते थे।
कभी-कभी लोग इमाम ख़ुमैनी से कहते थे कि औरत क्यों घर में रहे तो वह जवाब देते थे कि घर के कामों को महत्वहीन न समझो, अगर कोई एक आदमी का प्रशिक्षण कर सके तो उसने समाज के लिये बहुत बड़ा काम किया है। मुहब्बत व प्यार औरत में बहुत ज़्यादा होता है और परिवार का माहौल और आधार प्यार पर ही होता है।
इमाम खुमैनी अपने अमल और व्यवहार में अपनी बीवी के बहुत अच्छे सहायक थे। इमाम खुमैनी की बीवी कहती हैः चूंकि बच्चे रात को बहुत रोते थे और सवेरे तक जागते रहते थे, इस बात के दृष्टिगत इमाम खुमैनी ने रात के समय को बांट दिया था। इस तरह से कि दो घंटे वह बच्चों को संभालते और मैं सोती थी और फिर दो घंटे वह सोते थे और मैं बच्चों को संभालती थी।
अच्छी व चरित्रवान संतान, कामयाब ज़िंदगी का प्रमाण होती है। माँ बाप के लिये जो बात बहुत ज़्यादा महत्व रखती है वह यह है कि उनका व्यवसाय और काम तथा ज़िंदगी की कठिनाइयां उनको इतना व्यस्त न कर दें कि वह अपनी संतान के पालन पोषण एवं प्रशिक्षण की अनदेखी करने लगें।
पैगम्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छी संतान, जन्नत के फूलों में से एक फूल है इसलिये ज़रूरी है कि माँ-बाप अपने बच्चों के विकास और कामयाबियों के लिये कोशिश करते रहें।
इमाम ख़ुमैनी बच्चों के प्रशिक्षण की ओर से बहुत ज़्यादा सावधान रहते थे। उन्होने अपनी एक बेटी से, जिन्होंने अपने बच्चे की शैतानियों की शिकायत की थी कहा थाः उसकी शैतानियों को सहन करके तुमको जो सवाब मिलता है उसको मैं अपनी सारी इबादतों के सवाब से बदलने को तैयार हूं। इस तरह इमाम खुमैनी बताना चाहते थे कि बच्चों की शैतानियों पर क्रोधित न हों, और संतान के पालने पोसने में मायें जो कठिनाइयां सहन करती हैं वह अल्लाह की निगाह में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और परिवार व समाज के लिये भी इनका महत्व बहुत ज़्यादा है।
इमाम खुमैनी र.ह के क़रीबी संबंधियों में से एक का कहना है कि इमाम खुमैनी का मानना था कि बच्चों को आज़ादी दी जाए। जब वह सात साल का हो जाये तो उसके लिये सीमायें निर्धारित करो। वह इसी तरह कहते थे कि बच्चों से हमेशा सच बोलें ताकि वह भी सच्चे बनें, बच्चों का आदर्श हमेशा माँ बाप होते हैं। अगर उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तो वह अच्छे बनेंगे। आप बच्चे से जो बात करें उसे व्यवहारिक बनायें।
हजरत मोहम्मद (स) बच्चों के प्रति बहुत कृपालु थे। उन्हें चूमते थे और दूसरों से भी ऐसा करने को कहते थे। बच्चों से प्यार करने के संबंध में वह कहते थेः जो भी अपनी बेटी को ख़ुश करे तो उसका सवाब ऐसा है जैसे हजरत इस्माईल पैगम्बर की संतान में से किसी दास को ग़ुलामी से आज़ाद किया हो और वह आदमी जो अपने बेटे को ख़ुश करे वह ऐसे आदमी की तरह है जो अल्लाह के डर में रोता रहा हो और ऐसे आदमी का इनाम व पुरस्कार जन्नत है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़िंदगी बहुत ही साधारण, बल्कि साधारण से भी नीचे स्तर की थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके ज़िंदगी के बारे में बताते हैं कि पैग़म्बर (स) ग़ुलामों की दावत को स्वीकार करके उनके साथ भोजन कर लेते थे। वह ज़मीन पर बैठते और अपने हाथ से बकरी का दूध दूहते थे। जब कोई उनसे मिलने आता था तो वह टेक लगाकर नहीं बैठते थे लोगों के सम्मान में वह कठिन कामों को भी स्वीकार कर लेते और उन्हें पूरा करते थे।
इमाम ख़ुमैनी र.ह भी अपनी ज़िंदगी के सभी चरणों में चाहे वह क़ुम के फ़ैज़िया मदरसे में उनकी पढ़ाई का ज़माना रहा हो या इस्लामी रिपब्लिक ईरान की लीडरशिप का समय उनकी ज़िंदगी हमेशा, साधारण स्तर की रही है। वह कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि उनकी ज़िंदगी का स्तर देश के साधारण लोगों के स्तर से ऊपर रहे।
इमाम ख़ुमैनी के एक साथी का कहना है कि जब वह इराक़ के पाक शहर नजफ़ में रह रहे थे तो उस समय उनका घर, किराये का घर था जो नया नहीं था। वह ऐसा घर था जिसमें साधारण स्टूडेंट्स रहते थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी की जीवन स्तर साधारण स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि उनसे भी नीचे स्तर का था। ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद हुकूमती सिस्टम का नेतृत्व संभालने के बाद से अपनी ज़िंदगी के अंत तक जमारान इमामबाड़े के पीछे एक छोटे से घर में रहे।
उनकी ज़िंदगी का आदर्श चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) थे इसलिये उन्होंने अपने घर के भीतर आराम देने वाला कोई छोटा सा परिवर्तन भी स्वीकार नहीं किया और इराक़ द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में भी वह अपने उसी साधारण से पुराने घर में रहे और वहीं पर अपने छोटे से कमरे में दुनिया के नेताओं से मुलाक़ात भी करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण, व्यवहार और शिष्टाचार के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेतृत्व की कठिनाइयों को कभी बयान नहीं किया और कभी भी स्वयं को दूसरों से आगे लाने की कोशिश भी नहीं की। वह हमेशा यही मानते और कहते रहे कि “मुझे अगर जनता का सेवक कहो तो यह इससे अच्छा है कि मुझे नेता कहो।
इमाम ख़ुमैनी जब भी जंग के जियालों के बीच होते तो कहते थे कि मैं जेहाद और शहादत से पीछे रह गया हूं इसलिये आपके सामने लज्जित हूं। जंग में हुसैन फ़हमीदे नामक नौजवान के शहीद होने के बाद उसके बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह कहना बहुत मशहूर है कि हमारा नेता बारह साल का वह किशोर है जिसने अपने नन्हे से दिल के साथ, जिसकी क़ीमत हमारी सैकड़ों ज़बानों और क़लम से बढ़कर है हैंड ग्रेनेड के साथ ख़ुद को दुश्मन के टैंक के नीचे डाल दिया, उसे उड़ा दिया और ख़ुद भी शहीद हो गया।
लोगों के प्यार का पात्र बनना और उनके दिलों पर राज करना, विभिन्न कारणों से होता है और उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं। कभी भौतिक कारण होते हैं और कभी निजी विशेषताएं होती हैं जो दूसरों को आकर्षित करती हैं और कभी यह कारण आध्यात्मिक एवं इलाही होते हैं और आदमी की विशेषताएं अल्लाह और धर्म से जुड़ी होती हैं।
अल्लाह ने पाक क़ुरआन में वचन दिया है कि जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और भले काम करते हैं, अल्लाह उनका प्यार दिलों में डाल देता है। इस इलाही वचन को पूरा होते हम सबसे ज़्यादा हज़रत मुहम्मद (स) के कैरेक्टर में देखते हैं कि जिनका प्यार दुनिया के डेढ अरब मुसलमानों के दिलों में बसा हुआ है।
इमाम ख़ुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यार में डूबे हुए दिल के साथ इस ज़माने के लोगों के दिलों में बहुत बड़ी जगह रखते हैं। इमाम ख़ुमैनी के बारे में उनके संपर्क में आने वाले ईरानियों ने तो उनके कैरेक्टर के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा है ही, विदेशियों ने भी माना है कि इमाम ख़ुमैनी समय और स्थान में सीमित नहीं थे।
दुनिया के विभिन्न नेताओं यहां तक कि अमरीकियों में भी जिसने इमाम ख़ुमैनी से मुलाक़ात की वह उनके कैरेक्टर और बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इमाम ख़ुमैनी पूरे संतोष के साथ साधारण शब्दों में ठोस और सुदृढ़ बातें करते थे। उनके शांत मन और ठोस संकल्प को बड़ी से बड़ी घटनाएं और ख़तरे भी प्रभावित नहीं कर पाते थे।
दुनिया को वह अल्लाह का दरबार मानते थे और अल्लाह की कृपा और मदद पर पूरा यक़ीन रखते थे तथा यह विषय, नेतृत्व संबन्धी उनके इरादों के बारे में बहुत प्रभावी था। इस बात को साबित करने के लिए बस यह बताना काफ़ी होगा कि जब सद्दाम की फ़ौज ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के फ़ौरन बाद ईरान पर अचानक हमला किया तो इमाम ख़ुमैनी ने जनता से बड़े ही सादे शब्दों में कहा था कि “एक चोर आया, उसने एक पत्थर फेंका और भाग गया”।
इमाम के यह सादे से शब्द, रौशनी और शांति का स्रोत बनकर लोगों में शांति तथा हिम्मत भरने लगे और चमत्कार दिखाने लगे। हमारी दुआ है कि उनकी आत्मा शांत और उनकी याद सदा जीवित रहे।
इमाम ख़ुमैनी ने फिलिस्तीन के बारे में जो कहा सच हो रहा है : आयतुल्लाह ख़ामेनेई
इमाम खुमैनी की 35वीं वर्षगांठ के अवसर पर इमाम खुमैनी के रौज़े में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी की याद में हर साल आयोजित होने वाली सभा इमाम खुमैनी के प्रति निष्ठा ओर उनसे अपने वादे की याद के साथ साथ देश के विकास के लिए एक महान सबक है।
ईरान के शहीद राष्ट्रपति के बारे में बात करते हुए आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि राष्ट्रपति रईसी और उनके साथियों की शहादत क्रांति के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है जिसमें हमने प्रिय और बेनजीर राष्ट्रपति को खो दिया है।
उन्होंने कहा कि आज फिलिस्तीन के बारे में इमाम खुमैनी की भविष्यवाणी हर्फ़ ब हर्फ़ सही और सच साबित हो रही है। इमाम ख़ुमैनी ने कहा था कि मैं इस्राईल के विघटन की आहट सुन रहा हूं। फ़िलिस्तीन आज दुनिया का सबसे बड़ा विषय बन गया है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस्लामिक क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि अल-अक्सा तूफान ने ज़ायोनी शासन को हराने के लिए निर्णायक वार किया है।
इमाम ख़ुमैनी र.ह.की पैंतीसवीं बरसी के मौके पर सुप्रीम लीडर ने बहुत अहम पैगाम दिया
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार की सुबह इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की पैंतीसवीं बरसी के प्रोग्राम में एक विशाल जनसभा को ख़ेताब करते हुए इमाम ख़ुमैनी के विचार व नज़रियों में फ़िलिस्तीन के मुद्दे की ख़ास अहमियत को बयान किया और कहा कि फ़िलिस्तीन के बारे में इमाम ख़ुमैनी की पचास साल पहले की भविष्यवाणी धीरे धीरे पूरी हो रही है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार की सुबह इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की पैंतीसवीं बरसी के प्रोग्राम में एक विशाल जनसभा को ख़ेताब करते हुए इमाम ख़ुमैनी के विचार व नज़रियों में फ़िलिस्तीन के मुद्दे की ख़ास अहमियत को बयान किया और कहा कि फ़िलिस्तीन के बारे में इमाम ख़ुमैनी की पचास साल पहले की भविष्यवाणी धीरे- धीरे पूरी हो रही है।
उन्होंने कहा कि चमत्कारी तूफ़ान अलअक़्सा ऑप्रेशन ने क्षेत्र और इस्लामी जगत पर वर्चस्व जमाने की बड़ी साज़िश को नाकाम बनाते हुए ज़ायोनी सरकार को पतन के रास्ते पर डाल दिया है और ग़ज़ा के अवाम के ईमान से भरे और तारीफ़ के क़ाबिल प्रतिरोध के नतीजे में ज़ायोनी सरकार दुनिया वालों की नज़रों के सामने पिघलती जा रही है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच के पहले हिस्से में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के विचारों और नज़रियों में फ़िलिस्तीन के मसले की अहमियत को बयान करते हे कहा कि उन्होंने इस्लामी आंदोलन के आग़ाज़ के पहले दिन से ही फ़िलिस्तीन के मसले को अहमियत दी और बड़ी बारीकी से भविष्य पर नज़र रखते हुए फ़िलिस्तीनी क़ौम के सामने एक रास्ते का सुझाव रखा और इमाम ख़ुमैनी का यह बहुत ही अहम नज़रिया धीरे- धीरे व्यवहारिक होता जा रहा है।
उन्होंने इस्लामी आंदोलन के आग़ाज़ में ही ईरान की ज़ालिम व दमनकारी सरकश सरकार के गिरने और इसी तरह पूर्व सोवियत संघ के शासन और दबदबे के दौर में कम्युनिस्ट सरकार के अंत की भविष्यवाणी को इमाम ख़ुमैनी की बसीरत के दो दूसरे नमूने क़रार दिया।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के साथ वार्ता से कोई उम्मीद न रखने, फ़िलिस्तीनी क़ौम के मैदान में उतरने, अपना हक़ हासिल
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के साथ वार्ता से कोई उम्मीद न रखने, फ़िलिस्तीनी क़ौम के मैदान में उतरने, अपना हक़ हासिल करने और सभी क़ौमों ख़ास तौर पर मुसलमान क़ौमों की ओर से फ़िलिस्तीनियों की मदद को, फ़िलिस्तीनी क़ौम की फ़तह के लिए इमाम ख़ुमैनी के नज़रिये का निचोड़ क़रार दिया और कहा कि ये अज़ीम वाक़या भी इस वक़्त व्यवहारिक हो रहा है।
उन्होंने अलअक़्सा ऑप्रेशन की वजह से ज़ायोनी सरकार के मैदान के एक कोने में फंस जाने की ओर इशारा करते हुए कहा कि अगरचे अमरीका और बहुत सी पश्चिमी सरकारें इस सरकार की निरंतर मदद कर रही हैं लेकिन वो जानती हैं कि क़ाबिज़ सरकार को बचाने का कोई रास्ता नहीं है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने क्षेत्र की अहम ज़रूरतों के पूरा होने और अपराधी सरकार पर भारी वार को अलअक़्सा ऑप्रेशन की दो मुख्य ख़ुसूसियतें बताया और कहा कि अमरीका, विश्व ज़ायोनीवाद के एजेंटों और कुछ क्षेत्रीय सरकारों ने क्षेत्र के हालात और संबंधों को बदलने के लिए एक सटीक साज़िश तैयार कर रखी थी ताकि ज़ायोनी सरकार और क्षेत्र की सरकारों के बीच अपने मद्देनज़र संबंध क़ायम करवा कर पश्चिमी एशिया और पूरे इस्लामी जगत की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर मनहूस ज़ायोनी सरकार के वर्चस्व का रास्ता समतल कर दें।
उन्होंने कहा कि यह मनहूस चाल व्यवहारिक होने के बिलकुल क़रीब पहुंच चुकी थी कि अलअक़्सा का चमत्कार करने वाला तूफ़ान शुरू हो गया और उसने अमरीका, ज़ायोनीवाद और उनके पिट्ठुओं के ताने बाने को बिखेर दिया, इस तरह से कि पिछले आठ महीने के वाक़यों के बाद इस साज़िश के फिर से पलटने की कोई संभावना नहीं है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ालिम हुकूमत के अभूतपूर्म अपराधों और बेहद निर्दयता और अमरीकी सरकार की ओर से उस बर्बरता के सपोर्ट को, क्षेत्र पर ज़ायोनी सरकार को थोपने की बड़ी वैश्विक साज़िश के नाकाम हो जाने पर बौखलाहट और तिलमिलाहट वाली प्रतिक्रिया क़रार दिया।
उन्होंने तूफ़ान अलअक़्सा ऑप्रेशन की दूसरी ख़ुसूसियत यानी ज़ायोनी सरकार पर निर्णायक वार की व्याख्या करते हुए अमरीकी और यूरोपीय समीक्षकों और माहिरों यहाँ तक कि ख़ुद मनहूस सरकार के पिट्ठुओं के एतेराफ़ का हवाला दिया और कहा कि वो भी यह बात मान रहे हैं कि क़ाबिज़ सरकार अपने बड़े बड़े दावों के बावजूद एक प्रतिरोधी गुट से बुरी तरह शिकस्त खा चुकी है और 8 महीने के बाद भी अपने किसी छोटे से लक्ष्य को भी हासिल नहीं कर सकी है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने 21वीं सदी को बदलने के लिए तूफ़ान अलअक़्सा ऑप्रेशन की ताक़त के बारे में एक पश्चिमी पर्यवेक्षकों की समीक्षा की ओर इशारा करते हुए कहा कि दूसरे पर्यवेक्षकों और इतिहासकारों ने भी ज़ायोनी सरकार की बदहवासी, उलटे पलायन की लहर, क़ब्ज़ा किए गए इलाक़ों में रहने वालों की रक्षा में अक्षमता और ज़ायोनीवाद के प्रोजेक्ट के अंतिम सांसें लेने की ओर इशारा किया है और बल दिया है कि दुनिया, ज़ायोनी सरकार के अंत की प्रक्रिया के शुरूआती बिंदु पर खड़ी है।
उन्होंने मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन से उलटे पलायन की लहर के गंभीर होने के बारे में एक ज़ायोनी सुरक्षा टीकाकार की बातों की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस ज़ायोनी टीकाकार का कहना है कि इस्राईली अधिकारियों की बहसों और उनके बीच मतभेदों की बातें अगर मीडिया में आ जाएं तो 40 लाख लोग इस्राईल से चले जाएंगे
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फ़िलिस्तीन के मसले को दुनिया का पहला मुद्दा बनने और लंदन तथा पेरिस में और अमरीकी यूनिवर्सिटियों में ज़ायोनी विरोधी प्रदर्शनों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमरीकी व ज़ायोनी मीडिया और प्रोपैगंडा सेंटरों ने बरसों तक फ़िलिस्तीन के मसले को भुला दिए जाने के लिए कोशिश की लेकिन तूफ़ान अलअक़्सा ऑप्रेशन और ग़ज़ा के अवाम के प्रतिरोध के साए में आज फ़िलिस्तीन दुनिया का पहला मुद्दा है।
उन्होंने 40 हज़ार लोगों की शहादत और 15000 बच्चों और नवजात शिशुओं की शहादत सहित ग़ज़ा के लोगों की पीड़ाओं को ज़ायोनियों के चंगुल से निकलने की राह में फ़िलिस्तीनी क़ौम की ओर से अदा की जाने वाली भारी क़ीमत बताया और कहा कि ग़ज़ा के लोग, इस्लामी ईमान और क़ुरआन की आयतों पर अक़ीदे की बरकत से निरंतर पीड़ा बर्दाश्त कर रहे हैं और हैरतअंगेज़ प्रतिरोध के साथ प्रतिरोध के मुजाहिदों का समर्थन कर रहे हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने प्रतिरोध के अज़ीम मोर्चे की सलाहियतों के बारे में ज़ायोनी सरकार के ग़लत अंदाज़े को, इस सरकार के डेड एंड कोरिडोर में पहुंच जाने का सबब बताया जो उसे लगातार शिकस्त दे रहा है। उन्होंने कहा कि अल्लाह की मदद से उस बंद गली से निकलने का उसके पास कोई रास्ता नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि पश्चिम के प्रोपैगंडों के बावजूद ज़ायोनी सरकार, दुनिया के लोगों की नज़रों के सामने पिघलती और ख़त्म होती जा रही है और क़ौमों के साथ ही दुनिया की बहुत सी राजनैतिक हस्तियां यहाँ तक कि ज़ायोनी भी इस हक़ीक़त को समझ चुके हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब के दूसरे हिस्से में अज़ीज़ व मेहनती राष्ट्रपति और उनके साथियों की शहादत की दुखद घटना क ओर इशारा करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के साथियों में से हर एक शख़्स, अपने आप में एक मूल्यवान हस्ती थी।
उन्होंने इसी तरह शहीद राष्ट्रपति की ख़ुसूसियतों और सेवाओं को सराहते हुए और ख़िदमत की राह के शहीदों की शवयात्रा में क़ौम की ज़बरदस्त व मूल्यवान शिरकत की क़द्रदानी करते हुए कहा कि भविष्य के बहुत ही अहम चुनाव में अवाम की भरपूर शिरकत ख़िदमत की राह के शहीदों को अलविदा कहने के क़ौम के बेमिसाल कारनामे का ख़ुबसूरत पूरक होगी।
उन्होंने शहीद रईसी की नुमायां ख़ुसूसियतों का ज़िक्र करते हुए कहा कि सभी ने एतेराफ़ किया कि वे काम, अमल, सेवा और सच बोलने वाले इंसान थे और उन्होंने अवाम की ख़िदमत का एक नया पैमाना तैयार किया था और इतनी ज़्यादा और इतनी मात्रा में, इस सतह की ख़िदमत और ऐसी पाक नीयत और मेहनत मुल्क के ख़ादिमों के दरमियान नहीं रही है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि विदेश नीति में बहुत ज़्यादा बरकत वाली गतिविधियां, अवसरों के सही इस्तेमाल और दुनिया की अहम शख़्सियतों की नज़र में ईरान को नुमायां करना, शहीद रईसी की कुछ दूसरी ख़ुसूसियतें थीं। उन्होंने दुश्मनों और इंक़ेलाब के विरोधियों के बीच स्पष्ट हदबंदी और दुश्मन की मुस्कुराहट पर भरोसा न करने को शहीद रईसी की दूसरी ख़ुसूसियतें गिनावया जिनसे सीख लेने की ज़रूरत है।
उन्होंने इसी तरह शहीद अमीर अब्दुल्लाहियान को श्रद्धांजलि पेश करते हुए उन्हें सरगर्म, मेहनती और इनोवेटिव विदेश मंत्री और प्रभावी, बुद्धिमान और ऊसूलों का पाबंद वार्ताकार बताया।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ख़िदमत के शहीदों की शवयात्रा में क़ौम के दसियों लाख लोगों की शिरकत को एक नुमायां व समीक्षा योग्य कारनामा बताया और इसे इंक़ेलाब की तारीख़ में कड़वी व सख़्त घटनाओं के समय ईरानी क़ौम के इतिहास रचने वाले कारनामों का एक नमूना क़रार दिया।
उन्होंने कहा कि इस कारनामे ने दिखा दिया कि ईरानी क़ौम, एक संकल्प लेने वाली, डटी रहने वाली और ज़िंदा क़ौम है जो मुसीबत से नहीं हारती बल्कि उसकी दृढ़ता और जोश में इज़ाफ़ा हो जाता है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अवाम की ज़बरदस्त शिरकत का एक पैग़ाम, इंक़ेलाब के नारों को सपोर्ट देना बताया और कहा कि मरहूम रईसी साफ़ तौर पर इंक़ेलाब के नारों को बयान करते थे और वो ख़ुद इंक़ेलाब के नारों का प्रतीक थे।
उन्होंने अपने ख़ेताब के एक दूसरे भाग में आने वाले चुनाव को एक बड़ा व अहम नतीजे वाला काम बताया और कहा कि अगर यह चुनाव अच्छी तरह और शानदार तरीक़े से आयोजित हो जाए तो ईरानी क़ौम के लिए एक बड़ा कारनामा होगा और दुनिया में इसे असाधारण नज़र से देखा जाएगा।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपने ख़ेताब के आख़िरी हिस्से में चुनाव में अवाम की भरपूर शिरकत को ख़िदमत के शहीदों को अलविदा कहने के क़ौम के बेमिसाल कारनामे का अच्छा एंड क़रार दिया और कहा कि ईरानी क़ौम को जटिल अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपने हितों की रक्षा और अपनी स्ट्रैटेजिक गहराई को मज़बूत करने के लिए एक सक्रिय, आगाह और इंक़ेलाब की बुनियादों पर ईमान रखने वाले राष्ट्रपति की ज़रूरत है।
इमाम खुमैनी र.ह.की बरसी के मौके पर कई विदेशी मेहमानों का दौरा
3 जून को इमाम खुमैनी र.ह. की बरसी के मौके पर कई विदेशी मेहमानों ने ईरान का दौरा किया इस मौके पर वह दिवंगत इमाम की मृत्यु संग्रहालय के सात हॉल और लेफ्टिनेंट जनरल शहीद सुलेमानी के प्रतिरोध के सामान्य दृश्य का दौरा करेंगें।
नेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ द इस्लामिक रिवोल्यूशन एंड सेक्रेड डिफेंस के जनसंपर्क और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार 2 जून को, इमाम की मृत्यु स्मारक मुख्यालय के विदेशी मेहमानों का एक समूह, जो 35 वीं वर्षगांठ में भाग लेने के लिए हमारे देश की यात्रा पर गया था।
दिवंगत इमाम की मृत्यु उन्होंने संग्रहालय के सात हॉल और लेफ्टिनेंट जनरल शहीद सुलेमानी के प्रतिरोध के सामान्य दृश्य का दौरा किया है।
उक्त प्रतिनिधिमंडल ने संग्रहालय के अज्ञात शहीदों के स्मारक पर जाकर सम्मानित शहीदों को सम्मान देने के बाद संग्रहालय के सात कक्षों के साथ-साथ शहीद सुलेमानी के प्रतिरोध, कार्यों और प्रयासों के संपूर्ण प्रदर्शन का अवलोकन किया इराक और सीरिया में कुख्यात आईएसआईएस समूह के सामने और साथ ही द्वेष रखा गया था।
प्रतिरोध संग्रहालय और प्रदर्शनी, जो इस्लामी क्रांति और पवित्र रक्षा के राष्ट्रीय संग्रहालय का एक हिस्सा है, का गठन इस्लामी क्रांति के विचारों के आधार पर वर्चस्व प्रणाली के खिलाफ प्रतिरोध के कथा परिदृश्य के आधार पर किया गया था और साथ ही इस्लामी क्रांति पर आधारित था। पवित्र रक्षा के आठ साल भी, यह दुनिया भर में प्रतिरोध की धाराओं का वर्णन करता है।
इस्राईल में नेतन्याहू के खिलाफ विशाल विरोध प्रदर्शन, जल्द चुनाव की मांग
मक़बूज़ा फिलिस्तीन में एक बार फीर अतिक्रमणकारी ज़ायोनी नागरिकों ने नेतन्याहू के खिलाफ विशाल विरोध प्रदर्शन करते हुए जल्द चुनाव कराने की मांग की। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ तल अवीव की सड़कों पर एक बार फिर बड़े सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। 'टाइम्स ऑफ इस्राईल' ने के अनुसार बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने हमास के साथ बंधकों की अदला-बदली समझौते और बेंजामिन नेतन्याहू को प्रधानमंत्री के पद से हटाने एवं देश में तय समय से पहले जल्द चुनाव कराने की मांग की।
सात अक्तूबर के बाद से इसे सरकार विरोधी सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन बताया जा रहा है। प्रदर्शन में अकेले तल अवीव में 1,20,000 लोग पहुंचे। इसी तरह के विरोध प्रदर्शन देशभर के विभिन्न हिस्सों में भी देखने को मिले।
प्रदर्शनकारियों ने डेमोक्रेसी स्क्वायर, बिगिन रोड और कपलान स्ट्रीट के चौराहे पर जमकर विरोध प्रदर्शन किया। वहीं, यरूशलम में हजारों लोगों ने राष्ट्रपति निवास की ओर कूच किया। उन्होंने बंधकों की सुरक्षित वापसी की मांग की। इस दौरान ग़ज़्ज़ा में हमास द्वारा बंधक बनाए गए अतिक्रमणकारियों के प्रतीक पीले झंडे भी लहराए गए। प्रदर्शनकारियों ने 'बंधकों को वापस लाना होगा' के नारे लगाए।