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ब्रिटिश की राजधानी में फ़िलिस्तीनी समर्थकों की गिरफ़्तारी जारी
ब्रिटेन की राजधानी में पुलिस ने शहर में फ़िलिस्तीन समर्थको और कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया हैं।
शनिवार को फिलिस्तीन के समर्थकों ने दक्षिणी गाजा शहर राफा पर ज़ायोनी शासन के चल रहे हमलों के खिलाफ लंदन के केंद्र में ब्रिटिश संसद के पास प्रदर्शन किया और जुल्म को बंद करने की मांग की।
फिलिस्तीनी झंडा लेकर इन प्रदर्शनकारियों ने फिलिस्तीनियों के समर्थन, ज़ायोनी शासन की निंदा और गाजा के लोगों के साथ एकजुटता के नारे लगाए और नारों वाली तख्तियां ले रखी थी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदर्शनकारियों ने भाषण में गाजा के एक शख्स ने कहा कि उत्तरी गाजा में अब सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि हर कोई भूख और बीमारी के खतरे का सामना कर रहा हैं।
उन्होंने कहा कि गाजा से एक व्यक्ति ने उन्हें गाजा से एक तस्वीर भेजी जिसमें एक फिलिस्तीनी, जिसका सामान्य वजन 80 किलोग्राम था भूख और बीमारी के कारण आधा वजन कम हो गया।
उन्होंने बताया कि गाजा पट्टी में गर्भवती महिलाओं को अपनी मृत्यु और अपने बच्चे की मृत्यु के बीच चयन करना पड रहा है।
उनके भाषण के बाद सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने लंदन शहर में मार्च करना शुरू कर दिया, लेकिन शहर के पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सड़कों पर आगे नहीं बढ़ने दिया।
चिली भी इजरायल के खिलाफ हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज कराने वाले देशों में शामिल
चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिच ने घोषणा की है कि उनका देश गाजा में इजरायल के चल रहे नरसंहार के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट में शिकायत करने वालों में शामिल होगा
एक रिपोर्ट के अनुसार फ़िलिस्तीन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जारी है, जबकि दक्षिण अमेरिकी देश चिली ने घोषणा की है कि उसके देश ने ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में शिकायत दर्ज की है।
नेशनल कांग्रेस को संबोधित करते हुए चिली के राष्ट्रपति ने गाजा में मानवीय स्थिति को विनाशकारी बताया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से निर्णायक प्रतिक्रिया का आह्वान किया हैं।
2011 में चिली द्वारा फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने के बाद चिली के उच्च पदस्थ अधिकारियों ने हाल के महीनों में गाजा पर इज़राइल के हमलों की बार बार निंदा की है।
गेब्रियल बोरिच ने चिली के सांसदों से कहा कि चिली उस मामले का समर्थन करेगा जो दक्षिण अफ्रीका ने हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इज़राइल के खिलाफ दायर किया हैं।
ईरानोफ़ोबिया को हवा देने के मक़सद से हॉलीवुड ने 300 नस्लभेदी सीरियल बनाया
वार्नर ब्रदर्स कंपनी में टीवी सीरियल के रूप में "300" नामक ईरान विरोधी फ़िल्म बनाने पर काम शुरु किया जो अभी अपने पहले चरण में है।
वैरायटी की रिपोर्ट के अनुसार, हॉलीवुड एक बार फिर नस्लभेदी फ़िल्म "300" से लिए गए ग़ैर-ईरानी विषयों पर काम कर रहा है और वेब सीरीज़ के रूप में इसे पेश करने का इरादा रखता है।
इस बेबसीरीज़ की कहानी किस के इर्दगिर्द घूमती है इस बारे में अभी तक सटीक ब्योरा हासिल नहीं हो सका है लेकिन कहा जाता है कि यह वेबसीरिज़ 2006 की नफ़रती फ़िल्म "300" का प्रीक्वल है।
इस परियोजना के लिए अभी तक कोई लेखक या मंच तय नहीं किया गया है और बातचीत चल रही है। "300" के निर्देशक और लेखक ज़ैक स्नाइडर हैं जबकि वह वेबसीरिज़ के डायरेक्टर और प्रोड्युसर के लिए बातचीत कर रहे हैं।
डेबोरा स्नाइडर जो "300" के एग्ज़क्टिव प्रोड्युसर थे, एग्ज़क्टिव प्रोड्युसर के रूप में वापसी करेंगे जबकि वेबसीरिज बनाने के लिए अन्य फ़िल्म निर्माताओं से भी बातचीत चल रही है।
"300" को इसी नाम के ग्राफ़िक उपन्यास से लिया गया और "फ्रैंक मिलर" और "लिन वर्ली" ने इसको फ़िल्मी रूप दिया। यह फ़िल्म 1962 की फ़िल्म "300 स्पार्टन्स" से भी प्रेरित है।
फ़िल्म की कहानी इस तरह से है कि स्पार्टा के राजा लियोनिदास, ईरान के राजा ज़ेरक्स प्रथम की बहुत बड़ी सेना के खिलाफ चुनिंदा सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी का नेतृत्व करता है।
इस फ़िल्म में जेरार्ड बटलर ने लियोनिदास का किरदार अदा किया है जबकि रोड्रिगो सेंटोरो ने ज़ेरक्स की भूमिका निभाई है।
2014 में बनी 300: राइज़ ऑफ़ एन एम्पायर, असली फ़िल्म की अगली कड़ी थी जो मिलर के ग्राफ़िक उपन्यास ज़ेरक्से पर आधारित थी। स्नाइडर ने फिर से इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखी लेकिन इसे निर्देशित नहीं किया।
फिल्मों को सीरियल्स में बदलना हालिया वर्षों में हॉलीवुड के मुख्य विचारों में रहा है।
फ़िल्म "300" को इसकी निर्माण तकनीकों के लिए काफ़ी सराहा गया था लेकिन इसे आइटम के लेहाज़ से बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा। फिल्म समीक्षक रोजर एबर्ट ने इस फ़िल्म की आलोचना करते हुए कहा कहा: फिल्म में किरदार एक-आयामी हैं और कैरिकेचर से बहुत ज़्यादा मिलते जुलते हैं।
"रोजर एबर्ट" उन आलोचकों थे जिन्होंने इस फ़िल्म को फांसीवादी उमंगों का जश्न क़रार दिया था।
फ़िल्म मैगज़ीन "आर्ट शॉक" के ज्यूरी थॉमस विलमैन ने भी कहा: यह फ़िल्म "इराक़ युद्ध में अमेरिकी सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रोपेगैंडा फिल्म की तरह हास्यास्पद, अनाड़ी और कभी-कभी बचकानी लगती है और ऐसा लगता है यह फ़िल्म एक अपवित्र गठबंधन और एक शर्मनाक फांसीवादी मानसिकता पैदा हुई है जबकि स्पार्टन्स के ख़िलाफ ईरानियों द्वारा चलाए जाने वाले तीरों के निशानों को ग़लत होता दिखाया गया, यह सिर्फ़ स्क्रिप्ट लेखक की निर्लज्जता पर हंसी आने जैसा है।
ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में नामांकन पत्र जमा करने का सिलसिला जारी
ईरान के आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन पत्र जमा करने का सिलसिला जारी है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ईरान के आगामी राष्ट्रपति चुनावों में नामांकन पत्र जमा करने की प्रक्रिया आज चौथे दिन भी जारी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार सुबह 8 बजे चुनाव में भाग लेने के इच्छुक लोगों ने गृह मंत्रालय में स्थापित चुनाव आयोग के कार्यालय में अपना नामांकन पत्र जमा कर दिया है।
चुनाव आयोग के मुताबिक, पहले तीन दिनों के दौरान कुल 80 लोगों ने अपना नामांकन पत्र जमा किया है जिनमें से 72 पुरुष और 8 महिलाएं हैं।
ईरानी चुनाव आयोग के मुताबिक, 17 लोगों के नामांकन पत्र नामांकन की शर्तें पूरी कर चुके हैं और बाकी के पर्चे शर्तें पूरी न करने या पूरा न होने के कारण खारिज कर दिए गए हैं।
इस्राईली, फ़ेसबुक में और अफ्रीक़ी मूल के अमेरिकियों की आड़ में मुसलमानों पर हमले कर रहे हैं।
मेटा कंपनी के शोधकर्ताओं ने एक गुट का रहस्योद्घाटन किया है जो इस्राईली प्रोपैगंडा से संबंधित था। इसी प्रकार मेटा कंपनी के शोधकर्ताओं ने अब तक फ़ेसबुक के 510 अकाउंट, 11 पेज, और इंस्टाग्राम पर 32 अकाउंट्स का पता लगाया है।
पार्सटुडे ने Endgadget मेटा के हवाले से एलान किया है कि एक इस्राईली बाज़ार कंपनी फ़ेसबुक पर फेक अकाउंट का इस्तेमाल करके फेसबुक प्लेटफ़ार्म और इंस्टाग्राम में अपने प्रभाव व कंपेन को मज़बूत करने के प्रयास में है।
इस इस्राईली कंपेन ने अमेरिका और कनाडा में आडियंस और यूज़र्स को लक्ष्य बनाया है और फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ इस्राईल ने जो जंग आरंभ कर रखी है उसके संबंध में झूठी चीज़ों व तथ्यों को प्रकाशित व प्रसारित किया है।
इन अकाउंट्स ने अपना परिचय यहूदी और अमेरिकी अफ़्रीक़ी मूल के छात्रों और इसी प्रकार चिंतित नागरिकों के रूप में किया है और ऐसी पोस्टों को शेयर किया है जिसमें इस्राईल के सैनिक हमलों की प्रशंसा की गयी है और इस्राईल की आलोचना करने वाली राष्ट्रसंघ से संबंधित अनरवा जैसी संस्था पर हमला किया गया है।
मेटा कंपनी द्वारा प्रकाशित जानकारियों के अनुसार इन पोस्टों में इस्लामोफोबिया को कनाडा में शेयर किया गया है और मुसलमानों को उदारवाद का दुश्मन बताया गया है।
जो समीक्षा की गयी है उसके अनुसार उनमें से अधिकांश अकाउंट्स इस्राईल की STOIC कंपनी और इसी प्रकार X और YouTube के साथ सहयोग करते थे और इस्राईल और हमास के मध्य जंग और मध्यपूर्व में इस्राईल की नीतियों के आधार पर ऐसा किया गया है।
यह रिपोर्ट इसी तरह इस बात की सूचक है कि जो लोग इन अकाउंटों के पीछे हैं उनके अनुसार राजनेताओं के पेजों, संचार माध्यमों और दूसरे आम लोगों के पेजों पर बहुत अधिक दृष्टिकोणों को लिखकर मानसिक दबाव बनाने का प्रयास किया जाता था।
दुनिया हमास की ऋणी क्यों है?
पश्चिम पूरी ताक़त के साथ इस्राईल का समर्थन कर रहा है और इस्राईल व ज़ायोनी फ़िलिस्तीन के निहत्थे लोगों के ख़िलाफ़ जघन्य से जघन्य अपराध अंजाम देने में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं ले रहे हैं ऐसी हालत में प्रतिरोध का अंतरराष्ट्रीय मोर्चा पश्चिम और इस्राईरल के अत्याचार के ख़िलाफ़ दिन- प्रतिदिन फैलता जा रहा है।
ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए लगभग 240 दिन बीत रहे हैं और इस्राईल के पाश्विक हमलों में अब तक 36 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 82 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हो चुके हैं परंतु ज़ायोनी व इस्राईल न केवल अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सके हैं बल्कि क्षेत्र से बाहर अत्याचार विरोधी प्रतिरोध मज़बूत और विस्तृत होता जा रहा है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई ने अमेरिकी छात्रों के नाम अपने हालिया पत्र में बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु पर ध्यान दिया। इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने अपने पत्र में लिखा था कि दुनिया के बहुत से ज़िन्दा ज़मीर बेदार हो गये हैं और हक़ीक़त व वास्तविकता स्पष्ट हो रही है। प्रतिरोध का मोर्चा मज़बूत हो गया है और अधिक मज़बूत होगा और इतिहास भी करवट ले रहा है।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नस्रुल्लाह ने अपने हालिया वक्तव्य में जो यह कहा था कि आज प्रतिरोध पहले से अधिक बड़ा, विस्तृत और मज़बूत हो गया है उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
सैयद हसन नस्रुल्लाह ने जायोनियों के अपराधों के खिलाफ अमेरिकी और पश्चिमी विश्व विद्यालयों में छात्रों के प्रदर्शनों की ओर संकेत किया और कहा कि प्रतिरोध का भविष्य निश्चित रूप से उज्वल और विजयी है और इसका संबंध केवल समय से है।
प्रतिरोध का मोर्चा मज़बूती की दिशा में
आज इस्राईल और ज़ायोनियों के अपराधों की सुरक्षा परिषद में भर्त्सना नहीं की जा रही है और पश्चिम इस्राईल के ख़िलाफ़ प्रस्ताव को वीटो कर देता है ऐसे हालात में अमेरिकी और यूरोपीय छात्र अतंरराष्ट्रीय संगठनों और देशों के दृष्टिकोणों से निराश होकर ख़ुद मैदान में और सड़कों पर आ गये हैं और ग़ज़्ज़ा व फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं।
पूरी दुनिया में मानवीय दबाव इस बात का कारण बना है कि बहुत से देशों ने फ़िलिस्तीनी देश की हक्क़ानियत को मान्यता देना आरंभ कर दिया है और अतिग्रहकारी जायोनियों का अस्ली चेहरा दुनिया के सामने स्पष्ट होता जा रहा है और कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इस बयान को कोई महत्व नहीं दे रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि फ़िलिस्तीनी देश के गठन के मामले का समाधान वार्ता द्वारा होना चाहिये न कि एक तरफ़ा मान्यता देने के ज़रिये।
आयरलैंड और स्पेन द्वारा फ़िलिस्तीनी देश को मान्यता देने के बाद शीघ्र ही दूसरे यूरोपीय देश भी फ़िलिस्तीन को मान्यता देंगे।
वर्षों से अमेरिका और यूरोपीय देशों जैसी पश्चिमी शक्तियां अवैध जायोनी सरकार को मान्यता दिलाने का पूरा प्रयास कर रही हैं और राष्ट्रसंघ में इस्राईल की भर्त्सना में पारित होने वाले प्रस्ताव को अमेरिका वीटो करता है।
हालीवुड भी वर्षों से जायोनी सरकार की छवी को अच्छी बनाकर पेश करने का प्रयास कर रहा है और इस चीज़ को उसने अपनी कार्यसूची में शामिल कर रखा है। अवैध जायोनी सरकार का वित्तीय और हथियारों से समर्थन अमेरिका और बहुत से पश्चिमी व ग़ैर पश्चिमी देशों की विदेश नीति का अटल सिद्धांत बन गया है।
साथ ही साम्राज्यवादी शक्तियां फ़िलिस्तीन के संबंध में विश्व जनमत को नियंत्रित करने के लिए जो प्रयास रही हैं और वे जो चाह रही हैं उस तरह से हालात व कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ रहे हैं।
वर्षों से इस्लामी प्रतिरोध ने साम्राज्यवादी, पश्चिमी और अवैध ज़ायोनी सरकार के हितों को पश्चिम एशिया में गम्भीर चुनौती में डाल दिया है। विश्व जनमत के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करने की आवश्यक क्षमता प्रतिरोध के पास मौजूद है। जैसे वर्चस्ववाद का विरोध, न्याय प्रेम, शांति प्रेम, प्रतिष्ठा प्रेम और आध्यात्मिकता की ओर रुझान आदि।
प्राप्त रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि बहुत से देशों में लोगों ने इस्राईली कंपनियों, कारखानों और संगठनों के साथ सहयोग का बहिष्कार कर रखा है और उनके देश की कंपनियों ने इस्राईल के साथ सहयोग को रोक दिया है।
हमास नाम का फिलिस्तीनी और साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन, मध्यपूर्व के हालिया कुछ दशकों के परिवर्तनों में प्रभावी रहा है और ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रेरणा लेकर विस्तृत पैमाने पर रचनात्मक भूमिका निभा रहा है। साथ ही इस्लामी प्रतिरोध अपनी शक्ति में वृद्धि के साथ इराक़, सीरिया, लेबनान, फिलिस्तीन और यमन में वर्चस्ववादी शक्तियों के लिए चुनौती बन गया है।
प्रतिरोध की सोच के वैश्विक हो जाने से अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया मज़लूमों के हित में और साम्राज्यवादियों के अहित में परिवर्तित हो रही है। कितने ज़िन्दा व जागरुक ज़मीर व अंतरआत्मा के लोग प्रतिरोध का भाग बन जायेंगे और वे इतिहास की सही दिशा में खड़े होंगे।
दुनिया में दिन— प्रतिदिन बढ़ती आगाही व बेदारी और दुनिया के राष्ट्रों का बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों के ख़िलाफ़ एकजुट हो जाना, फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध हमास के अदम्य साहस का परिणाम है कि उसने साम्राज्यवादियों के समीकरणों पर पानी फेर दिया है और विश्व में नई व ग़ैर साम्राज्यवादी विश्व व्यवस्था उत्पन्न करने में बड़ी मदद की है।
2 हज यात्री साइकिल से लंबा सफर तय कर के इंग्लैंड से मदीना पहुंचे
दो ब्रिटिश मुसलमान हज को आदा करने के लिए कई महीनों की यात्रा करके और कई देशों की सीमाओं को पार करके साइकिल से मदीना पहुंचें।
इंग्लैंड से दो ब्रिटिश मुसलमान हज की रस्म को अदा करने के लिए साइकिल से मदीना मुनावारा पहुंच गए।
उन्होंने कुछ महीने पहले इस चैलेंज सफर का आगाज़ किया कई सीमाओं को पार करते हुए मदीना मुनव्वरा पहुंचे और जैसे ही मदीना मुनावारा पहुंचे तो लोगों ने इनका जबरदस्त स्वागत किया।
यह तीर्थयात्री अब मदीना से मक्का यात्रा करने के लिए तैयार हैं और वह मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह से सुरक्षित हैं, दुनिया भर से लोग इन तीर्थयात्रियों को अल्लाह के घर आने पक बधाई दे रहे हैं और उनके दृढ़ संकल्प की सराहना कर रहे हैं।
न्यूज़वीक का दावा, ईरान के बढ़ते हुए क़दम रोको नहीं तो...
पेंटागन की नीतियों पर निर्भर अन्य मैगज़ीन की तरह, न्यूज़वीक ने भी अफ़्रीक़ी तट पर संकट के लिए ईरान को दोषी ठहराया है।
अमेरिकी मैगज़ीन न्यूज़वीक ने इस्राईली लेखकों द्वारा लिखे गए एक लेख में कहा: जबकि अमेरिका और इस्राईल, लेबनान से यमन तक ईरान से जुड़ी स्थानीय शक्तियों के ख़तरों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, तेहरान चुपचाप एक और स्थानीय शक्ति बनाने में व्यस्त है जो जल्द ही अमेरिकी हितों के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर देगी।
इस मैगज़ीन के अनुसार, ये नई शक्तियां अफ़्रीक़ी तट के रणनीतिक इलाक़े में मौजूद हैं और ईरान इन देशों को आर्थिक और सैन्य रूप से मज़बूत करने के लिए वर्चस्ववादी पश्चिम की कमजोरी का इस्तेमाल कर रहा है।
मैगज़ीन अमेरिकी अधिकारियों और इस्राईली शासन को सलाह देती है कि काफ़ी देर होने से पहले इन समुदायों और क्षेत्रों के सशक्तिकरण का मुक़ाबला करने के लिए साहसिक कदम उठाएं।
आंतरिक शक्ति की कमी की वजह से तटवर्टी इलाक़े पश्चिमी साम्राज्यवाद और अमेरिकी हस्तक्षेपों से काफ़ी नुक़सान उठा चुके हैं इन्हीं सब वजहों से 2020 के बाद से कई अस्थिरताएं और समस्याएं पैदा हुई हैं।
माली, बुर्किना फ़ासो, गिनी, नाइजर, गैबॉन, चाड और सूडान सभी ने साम्राज्यवाद की राजनीतिक-आर्थिक विरासत से प्रभावित होकर तख्तापलट देखा या सैन्य सरकारों का सामना किया है।
इस विरासत और पश्चिमी हस्तक्षेप ने चुनौतियों की परवाह किए बिना, इस्लामी नामों और पहचान का दुरुपयोग करने वाले डुप्लीकेट गुप्स को आगे बढ़ने की खुली छूट दे दी।
मिसाल के तौर पर इससे पहले, इस्राईली शासन ने पश्चिमी संस्थानों के माध्यम से सूडान में हस्तक्षेप किया और इस देश का विभाजन कर दिया और पूरे देश को तहस नहस करके रख दिया।
दिलचस्प बात यह है कि इस मैगज़ीन ने, पेंटागन की नीतियों पर निर्भर दूसरी मैगज़ीनों की तरह, अफ्रीका के इस हिस्से में संकट के लिए ईरान को दोषी ठहराया है।
इस मैगज़ीन के उक्त लेख के अनुसार, सूडान, सूडान की सत्तासीन परिषद के वर्तमान प्रमुख अब्दुल फ़त्ताह अल-बुरहान के नेतृत्व में, अमेरिकी समर्थन के वादे के बदले अक्टूबर 2020 में इस्राईल के साथ अब्राहम समझौते में शामिल हो गया।
हालांकि, 2021 में अल-बुरहान द्वारा सूडान की गवर्निंग काउंसिल को भंग करने के बाद, अमेरिका ने इस्राईली शासन पर खरतूम के साथ संबंध बेहतर न करने का दबाव डाला और फिर, अजीब ग़रीब ढंग से, 2023 में सूडान गृहयुद्ध की चपेट में आ गया।
न्यूज़वीक के आर्टिकल लिखने वाले स्तंभकार के दावे के अनुसार, सूडान के साथ पश्चिम के अतीत के बर्ताव की वजह से अल-बुरहान के पास सुरक्षा सहायता और आवश्यक सहायता के लिए तेहरान की ओर रुख़ करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
न्यूज़वीक के लेखक ने अपने लेख में लिखा कि ईरान, यूरेनियम उत्पादन के क्षेत्र में नाइजर की शक्ति को मजबूत करना चाहता है। यहां पर लेखक का यह भी दावा है कि यह काम ईरान के परमाणु कार्यक्रम की सेवा कर सकता है।
न्यूज़वीक के लेख में एक और खतरा बताया गया है और वह ईरान द्वारा माली, बुर्किना फ़ासो और अन्य तटवर्ती देशों के साथ अपने संबंधों को गहरा करने के मिलते जुलते प्रयास हैं। यह वह चीज़ है जिसे वर्चस्ववादी पश्चिम सहन नहीं कर पा रहे हैं।
इस अमेरिकी मैगज़ीन के लेख में एक और ख़तरा चाड और मोरीतानिया की आर्थिक स्वतंत्रता के लिए ईरान की सहायता का भी ज़िक्र किया गया है।
इससे भी दिलचस्प बात यह है कि न्यूज़वीक के लेखक ने न केवल इस्राईली शासन का नाम लिया, बल्कि इस शासन के साथ मिस्र और सऊदी अरब का भी नाम लिया और कहा कि ईरान इन तीनों ही के लिए ख़तरा है।
डॉक्टर सैयद इब्राहीम रईसी के कार्यकाल से ही ईरान ने सऊदी अरब और मिस्र के साथ संबंधों के विकास और विस्तार तथा मज़बूती को गंभीरता से अपने एजेंडे में शामिल कर रखा है।
इस मैगज़ीन का जिसने कभी-कभी पेंटागन के साथ अपने संबंधों ख़ुलासा भी किया है, लेख, इसके बदले अमेरिका और इस्राईल सहित उसके सहयोगियों से ईरान, रूस और चीन जैसे अन्य ग़ैर-पश्चिमी देशों के साथ अफ़्रीक़ी तट के संबंधों को कमजोर करने के तरीक़े तलाश करने के लिए कहता है खोजने के लिए कहता है और लोकतंत्र तथा मानवाधिकार जैसे मुद्दों के ज़रिए इन देशों पर दबाव बढ़ाने को कहता है।
न्यूज़वीक के आर्टिकल के लेखक इस्राईली विदेशमंत्रालय के पूर्व महानिदेशक और मिस्गाव (Misgav) राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान के वरिष्ठ सदस्य रोनेन लेवी (Ronen Levi) और मिस्गाव संस्थान के निदेशक आशर फ़्रेडमैन (Asher Fredman) हैं।
क्या अमेरिका, जापान और दक्षिणी कोरिया को चीन के साथ संबंध विकसित करने की इजाज़त देगा?
हालिया वर्षों में अमेरिका ने उत्तरी कोरिया को एक ख़तरनाक ड्रैगन के रूप में पेश किया है जिसका इरादा जापान और दक्षिणी कोरिया को जला देना है, इसी नैरेटिव के ज़रिए वह इन दोनों देशों की सुरक्षा और सैन्य प्रबंधन को नियंत्रित करने में कामयाब रहा है।
दक्षिणी कोरिया और जापान के नेताओं ने कई वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद हाल ही में अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन के साथ आर्थिक सहयोग बहाल करने की मांग की है लेकिन उनकी बातचीत कोरिया और जापान के लिए अमेरिकी इजाज़त की सीमा तक सीमित है।
हालिया त्रिपक्षीय बैठक साढ़े चार साल में पहली बार हुई थी जिसमें दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति, जापान के प्रधानमंत्री और चीन के दूसरे सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री केकियांग हाज़िर हुए।
वार्ता मुख्य रूप से उन मुद्दों पर केंद्रित थी जो सबके लिए आम और संयुक्त थे जैसे आपूर्ति श्रृंखलाओं की रक्षा करना, व्यापार को बढ़ावा देना और जनसंख्या की उम्र बढ़ने और उभरती संक्रामक बीमारियों की चुनौतियों पर सहयोग करना वग़ैरह। ताइवान और उत्तरी कोरिया जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों के संबंध में भी कुछ मुद्दे उठाए गए।
जापान, चीन और दक्षिणी कोरिया व्यावहारिक सहयोग के विस्तार पर सहमत हुए ताकि तीनों देशों की जनता इसके फ़ायदे को महसूस कर सके। बेशक यह वह चीज़ें हैं जिनके लिए दक्षिणी कोरिया और जापान को अमेरिका से इजाज़त लेने की ज़रूरत पड़ेगी।
कुछ अमेरिकी मीडिया ने चीन और उत्तरी कोरिया के ख़तरे जैसे विषयों को उजागर करके या बढ़ा चढ़ाकर पेश करके जापानी और दक्षिण कोरियाई निर्णय निर्माताओं के लिए मनोवैज्ञानिक रुकावटें पैदा करने की कोशिश की है।
मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक लेख में उत्तरी कोरिया के ख़तरे का ज़िक्र किया और चीन में लोकतंत्र की समस्या, माओवादियों का फिर से सिर उठाना, चीन में पूंजी की आवश्यकता के संकट और चीन की समस्याएं जैसी सुर्ख़ियां लगाईं।
चीनी कंपनियों ने जापानी और कोरियाई कस्टमर्ज़ को यह समझाने की कोशिश की है कि जापान और दक्षिण कोरिया के चीन के साथ संबंधों का फ़ायदा चीन को है जबकि परेशानी उन दोनों देशों को होगी।
बेशक, यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि चीन, आख़िरकार उत्तरी कोरिया को अमेरिकी सेना की धमकियों के ख़िलाफ़ एक खिलाड़ी के रूप में देखता है, न कि दक्षिण कोरिया और जापान के बीच संबंधों में हस्तक्षेप करने वाले खिलाड़ी के रूप में क्योंकि आम तौर पर उत्तरी कोरिया के पास ऐसी क्षमताएं नहीं पायी जाती हैं।
हालिया वर्षों में अमेरिका ने उत्तरी कोरिया को एक ख़तरनाक ड्रैगन के रूप में दिखाया है जिसका इरादा जापान और दक्षिणी कोरिया को जला देना है और इसी नैरेटिव के साथ वह इन दोनों देशों की सुरक्षा और सैन्य प्रबंधन को नियंत्रित करने में वह कामयाब रहा है जबकि दूसरी ओर चीन का यह ख़याल है कि समस्या एक राजनीतिक विवाद है और इसे राजनीतिक ज़बान या वार्ता द्वारा ही हल किया जाना चाहिए।
अमेरिका ने भी जापान और दक्षिणी कोरिया के उकसावे पर अब तक उत्तरी कोरिया और चीन के कथित ख़तरों के ख़िलाफ़ संवेदनशील सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया जबकि अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनियों को बहुत ज़्यादा फ़ायदा पहुंचा है।
जापान और दक्षिणी कोरिया मिलकर अपने इलाक़े में 80 हज़ार से अधिक अमेरिकी सैनिकों की मेजबानी कर रहे हैं और इन सैनिकों की उपस्थिति, अमरीका के निरंतर इस प्रोपेगैंडे के की वजह से है कि चीन और उत्तरी कोरिया ख़तरा पैदा कर रहे हैं। दो देश जिनका अमेरिका के विपरीत, कम से कम पिछली कुछ शताब्दियों में हमलों का कोई का इतिहास ही नहीं रहा है।
लेकिन कुछ जापानी और दक्षिणी कोरियाई राजनेताओं के अनुसार, उन्हें अमेरिका और पश्चिम द्वारा थोपी गई धारणाओं की ग़लती का एहसास हो गया है और वे अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
पूर्वी एशियाई यह पड़ोसी देशों को जो वैश्विक आर्थिक उत्पादन के पांचवें हिस्से से अधिक के भागीदार हैं, महामारी के बाद की आर्थिक मंदी से उभरने के लिए विशेष रूप से आपूर्ति श्रृंखला में क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग की ज़रूरत होगी।
चीन अपने तीन पड़ोसियों के बीच फ़्री ट्रेड समझौते पर बातचीत फिर से शुरू करने पर सहमत हो गया है जिसमें क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के साधन के रूप में अधिक आर्थिक सहयोग पर ज़ोर दिया गया है।
इस देश ने अमेरिका को एशियाई मामलों में एक हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पेश किया है जो जापान और दक्षिणी कोरिया पर पड़ोसियों की नीति के आधार पर क्षेत्रीय संबंधों के विकास को नियंत्रित करने के लिए दबाव डालता है जबकि चीन बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था का समर्थक है।
इमाम ख़ुमैनी ने इस्लाम को आकर्षण का केंद्र बनाया : इमाम जुमा नजफ़ अशरफ़
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सैयद सदरुद्दीन क़बांची ने कहा कि ज़िलक़ादा की 25 तारीख इमाम ख़ुमैनी की पुण्यतिथि है, हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि इमाम ख़ुमैनी ने कितनी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं।
इमाम जुमा, नजफ अशरफ हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुसलेमीन सैयद सदरुद्दीन कबांची ने नजफ अशरफ में जुमे के खुत्बे में कहा: 25 ज़िल-कायदा इमाम खुमैनी की पुण्यतिथि है, हमें चाहिए हमेशा याद रखें कि इमाम खुमैनी ने कितने महान कार्य किये हैं।
उन्होंने कहा: इमाम खुमैनी ने एक बार फिर इस्लाम को दुनिया के ध्यान का केंद्र बनाया, मुसलमानों के सम्मान को बहाल किया और राष्ट्रों के नेतृत्व में अधिकार की भूमिका को बहाल किया।
नजफ अशरफ के इमाम जुमा ने कहा: इमाम खुमैनी (र) ने फिलिस्तीन मुद्दे को पुनर्जीवित किया और दुनिया का नक्शा बदल दिया और पश्चिमी सभ्यता के ताबूत में पहली कील ठोक दी।
हुज्जुतल-इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद सदरुद्दीन कबांची ने कहा: इमाम खुमैनी की इस पुण्यतिथि के अवसर पर, हमें धर्म और पीड़ितों की सेवा को सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रखना चाहिए।
नजफ अशरफ के इमाम जुमा ने अपने दूसरे खुतबे में कहा: ये हज के दिन हैं और अब तक 18 हजार इराकी हज के लिए मक्का जा चुके हैं और हम चाहते हैं कि वे सुरक्षित वापस लौट आएं।
उन्होंने कहा: हज इस्लाम का एक स्तंभ है जो मनुष्य की आध्यात्मिकता और अर्थ को बढ़ाता है और अर्थव्यवस्था में सुधार करता है, जैसा कि हदीस में है: हज गरीबी को दूर करता है।