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पिछले काफी समय से आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं। खाने पीने की चीज़ों पर बढ़ती बेतहाशा महंगाई के साथ बिजली के आसमान छूटे दामों ने आग पर घी का काम किया है।

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में बिजली की ऊंची दरें और आटे की कीमत पर बवाल मचा हुआ है। खाने की वस्तुओं की ऊंची कीमत के खिलाफ आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़प हो गई। प्रदर्शनकारियों द्वारा पथराव और बोतलें फेंके जाने के बाद पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और हवाई फायरिंग कर स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश की, लेकिन इस झड़प में एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए, घायलों में अधिकतर पुलिसकर्मी हैं।

 

शनिवार को भी पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़पें हुईं और पूरे इलाके में चक्का जाम और शटर डाउन हड़ताल की गई थी। रविवार को प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच हिंसक झड़पें हो गईं।

 

पीओके केप्रधान मंत्री चौधरी अनवारुल हक ने कहा कि सरकार मीरपुर में हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद एक अधिकारी की मौत और 70 से अधिक अन्य के घायल होने के बाद बिजली और गेहूं के आटे की कीमतों में राहत देने के लिए तैयार थी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में क्षेत्र की स्थिति से संबंधित एक आपात बैठक बुलाई है

देश में आम चुनाव के बीच एक बार फिर इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे समेत देश के 12 एयरपोर्ट्स और 20 से अधिक अस्पतालों को बम से उड़ाने की धमकी मिली है जिसके बाद सुरक्षा एजेंसिया जांच में जुट गई।

अस्पताल में भर्ती मरीजों व तीमारदारों में किसी तरह की अफरा-तफरी या घबराहट होने की संभावना को देखते हुए जांच सदस्यों ने बम की धमकी की बात बताए बगैर मॉक ड्रिल बताते हुए अस्पतालों में जांच की। इस दौरान अस्पतालों में अंदर आने और बाहर जाने पर रोक लगा दी गई। घंटों की मशक्कत के बाद भी जांच दलों को अस्पतालों में कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला।

दिल्ली में स्कूलों को बम से उड़़ाने की धमकी के 10 दिन बाद आइजीआइ सहित देशभर के 12 हवाई अड्डों को बम से उड़ाने की धमकी मिली है। राजधानी के 20 से अधिक अस्पतालों व उत्तर-रेलवे के सीपीआरओ की बिल्डिंग को भी बम से उड़ाने की धमकी वाला ईमेल मिला। तत्काल मौके पर पहुंची पुलिस और बम निरोधक दस्तों को अस्पतालों की जांच में कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला।

 

ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना की ओर से जनसंहार शुरू करने के बाद से ही ज़ायोनी सेना में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है। ज़ायोनी मीडिया ने ग़ज़्ज़ा पर हमले के बाद से ही ज़ायोनी सेना में मानसिक रोग का शिकार हो रहे फौजियों के बारे में खबर देते हुए कहा कि अल अक़्सा स्टॉर्म के बाद से अब तक कम से कम ज़ायोनी सेना के 10 सैन्याधिकारी और जवान आत्महत्या कर चुके हैं।

ज़ायोनी मीडिया ने कहा कि खुद को गोली मारने या धमाके से उड़ाने वाले इन फौजियों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति बेहद दर्दनाक है। ज़ायोनी शासन के रेडियो और टेलीविजन प्रसारण संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़्ज़ा पट्टी के खिलाफ युद्ध की शुरुआत के बाद से, मक़बूज़ा फिलिस्तीन में मानसिक और भावनात्मक समस्याएं, नींद की गोलियों, नशीली दवाओं, ड्रग्स और नशीले पदार्थों का उपयोग तीन गुना बढ़ गया है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़ायोनी शरणार्थियों के बीच नशीली दवाओं का उपयोग बढ़ गया है। आंकड़ों के अनुसार, 33% से अधिक ज़ायोनी शरणार्थी नशीली दवाओं का उपयोग करते हैं।

ज़ायोनी मीडिया ने चेतावनी देते हुए कहा कि जंग के बाद रिज़र्व बलों पर सरकार को विशेष ध्यान देना होगा हाल ही में जंग से पलटे एक सैनिक ने मानसिक समस्याओं के कारण अपने एक साथी की बिना किसी कारण और लड़ाई के गोली मारकर हत्या कर दी।

इंडोनेशिया में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, इस देश के 60 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि उन्हें दक्षिण पूर्व एशिया में संयुक्त राज्य अमेरिका की सुरक्षा भूमिका पर भरोसा नहीं है।

अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन ने व्हाइट हाउस में अपना कार्यभार संभालने के बाद से ही दक्षिण पूर्व एशिया पर उन्होंने अधिक फोकस रखा। बाइडन इस क्षेत्र को अमेरिकी रणनीति के लिए एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में देखते हैं। क्वाड (Quad) और ऑकस (AUKUS)  जैसे छोटे समूहों और अमेरिका, जापान और फिलीपींस के त्रिपक्षीय संबंधों के लिए एक प्रमुख क्षेत्र माना जाता है। जिसकी वजह से क्षेत्र में बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा तेज़ हो गई है और इस समय जो स्थिति है उससे दक्षिण पूर्व एशियाई देश काफी चिंतित हैं।

रणनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से अमेरिका ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में अपनी सुरक्षा गतिविधियों का विस्तार किया है। ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों ने 2021 से 2023 तक कुल 525 द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किए, जिनमें से 33 प्रतिशत में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भाग लिया।

दक्षिणपूर्व एशिया के जल में एक अमेरिकी सैनिक की तस्वीर

इंडोनेशिया में, एक सर्वेक्षण में लगभग 60.7 प्रतिशत लोग जिन्होंन इस सर्वे में भाग लिया उनका मानना है कि उन्हें दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में अमेरिकी सुरक्षा भूमिका पर बहुत कम या बिल्कुल भरोसा नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यवहार से पता चलता है कि उसका क्षेत्र की सुरक्षा चिंताओं को कम करने का कोई इरादा नहीं है। बल्कि, उसका उद्देश्य "चीन एक ख़तरा है" के विचार को हवा देना है, जो अमेरिका को क्षेत्र में "सैन्य" प्रतिस्पर्धा और क्षेत्र के देशों की सुरक्षा चिंताओं को तेज़ करने का अवसर देता है। आर्थिक सहयोग के संदर्भ में, हालांकि बाइडन प्रशासन ने आईपीईएफ लॉन्च किया, लेकिन वार्ता के नतीजे निराशाजनक हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ घनिष्ठ जुड़ाव की उम्मीदें कम हो सकती हैं।

अमेरिका की कार्यवाहियों से निस्बतन इस पुर अमन इलाक़े में नई चुनौतियां पैदा हुई हैं। इसने आसियान पर केंद्रित क्षेत्रीय बहुपक्षीय आर्थिक सहयोग ढांचे को भी महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र के अपने मानदंड हैं और उसे "आसियान" जैसे मज़बूत आंतरिक संबंधों की आवश्यकता है, जो क्षेत्रीय शांति और पारस्परिक विकास को दृढ़ता से बनाए रखते हुए, क्षेत्रीय मामलों में अपनी केंद्रीय भूमिका और बीच एक गतिशील संतुलन बनाए रखने के महत्व पर ज़ोर देता है। आसियान के माध्यम से आंतरिक संबंध स्वाभाविक रूप से किसी भी बड़ी शक्ति को इस क्षेत्र में प्रभावी असर डालने की अनुमति नहीं देते हैं और इसके सदस्य देशों को लचीला और एकीकृत बनाते हैं। यदि गंभीरता से लिया जाए तो आसियान जैसा परस्पर प्रभाव डालना वाला संगठन अगर सही से अपने कार्यों को अंजाम दे तो इसके सदस्य देश किसी भी महा शक्ति के एजेंट या उसके पिट्ठू के तौर पर काम नहीं करेंगे।

कुवैत यूनिवर्सिटी में फ़िक़्हे मक़ारिन और इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर शेख आदिल मुबारक अल-मुतैरात ने ग़ज़्ज़ा में जारी जनसंहार पर बात करते हुए कहा कि इस वक़्त अतिक्रमणकारी काफिर यहूदियों और मुसलमानों के बीच जंग जारी है ऐसे में अगर कोई इस्राईल की ज़रा सी भी मदद करता है और हमास, समेत फिलिस्तीनी मुजाहिद संस्थाओं के खिलाफ एक लफ्ज़ भी बोलता है तो वह काफिर और मुर्तद है। मुसलमानों पर वाजिब है कि वह अपने मुसलमान भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलकर खड़े हों।

इंडोनेशिया में भारी बारिश के बाद तबाही फैली हुई है। बारिश के बाद कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बन गए है। इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर भारी बारिश और ज्वालामुखी की ढलानों से बहते कीचड़ के कारण अचानक बाढ़ आ गई जिसकी चपेट में आने की वजह से कम से कम 37 लोगों की मौत हो गई और 12 से अधिक लोग लापता हैं।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी के प्रवक्ता अब्दुल मुहारी ने कहा कि मानसून की बारिश और माउंट मारापी की ठंडे लावे वाली ढलानों से कीचड़ बह बह कर आ रहा है। भारी कीचड़ की वजह से भूस्खलन हो रहा है वहीँ भारी बारिश के कारण आधी रात एक नदी में उफान आ गया। नदी में आए उफान के कारण पश्चिम सुमात्रा प्रांत के चार जिलों के कई गांव बाढ़ की चपेट में आ गए।

इंडोनेशिया सरकार के इस अधिकारी ने बताया कि कई लोग बाढ़ में बह गए और 100 से अधिक घर और इमारतें जलमग्न हो गईं। ठंडा लावा ज्वालामुखीय सामग्री और मलबे का वह मिश्रण है जो बारिश में ज्वालामुखी की ढलानों से बहता है।

अफ़ग़ानिस्तान में भारी बारिश और बाढ़ के कारण हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। अब तक 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई 2000 से अधिक घर बाढ़ में बाह गए हैं हज़ारों लोग घायल हैं जबकि हालात इतने भयावह हैं कि ट्रक्स और गाडी के माध्यम से राहत सामग्री भी नहीं पहुंचाई जा सकती जिसके लिए मजबूरी में गधों और खच्चरों का सहारा लिया जा रहा है।

अफगानिस्तान के कई क्षेत्रों में भारी बाढ़ के बाद विश्व खाद्य कार्यक्रम ने बताया कि अधिकांश बाढ़ प्रभावित क्षेत्र ट्रकों द्वारा पहुंच योग्य नहीं हैं। संगठन ने एक तस्वीर साझा की, जिसमें सहायता कर्मी गधों का उपयोग करके बगलान में आपातकालीन आपूर्ति कर रहे हैं। यूएन डब्ल्यूएफपी ने एक्स पर पोस्ट कर यह जानकारी दी। डब्ल्यूएफपी को लोगों को भोजन दिलाने के लिए हर विकल्प का सहारा लेना पड़ा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हालात इतने खराब हैं कि कुछ इलाक़ों में दो हफ़्तों से बिजली भी नहीं है।

विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़ने वाली ईरानी महिलाओं के परिचय के तहत, समीरा जन्नतदोस्त की ज़िंदगी के बारे में जानिए कि उन्होंने कब से कुकिंग का काम शुरू किया, कितनी किताबें लिखीं, कितनी क्लासें चलाती हैं और उन्हें कौन कौन से इनाम मिल चुके हैं।

समीरा जन्नतदोस्द ईरान की पहली महिला शैफ़ हैं, जिन्हें फ़ूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइज़ेशन (एफ़एओ) द्वारा ईरानी व्यंजनों की प्रथम महिला और देश के तकनीकी और व्यावसायिक संगठन द्वारा ईरान की सर्वश्रेष्ठ महिला के रूप में चुना गया है।

आज हम आपका परिचय समीरा जन्नतदोस्त से करवा रहे हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन या एफ़एओ ने ईरान की प्रथम महिला शैफ़ के तौर पर चुना है। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के प्रतिष्ठित पुरस्कारों और ख़िताबों से नवाज़ा जा चुका है। उन्होंने कुकिंग बुक की विश्व प्रतियोगिता में पहले स्थान के लिए गोरमैंड अवार्ड्स और बेस्ट ऑफ़ द बेस्ट अवार्ड जीते हैं। इसी प्रतियोगिता में 2018 में उन्हें उनकी ड्राई स्वीट्स किताब के लिए एक विशेष पुरस्कार दिया गया और उनकी हॉट एंड कोल्ड ड्रिंक्स किताब को दुनिया की शीर्ष 7 पुस्तकों में से एक के रूप में मान्यता दी गई।

समीरा जन्नतदोस्त

 जन्नतदोस्त अब तक 6 किताबें लिख चुकी हैं। अध्ययन की दृष्टि से यह किताबें बहुत महत्वपूर्ण हैं और बड़ी संख्या में लोगों ने इनका स्वागत किया है। भविष्य में भी उनकी नई किताबें बाज़ार में आने वाली हैं।

वह ईरान के पश्चिमोत्तर में स्थित तबरेज़ शहर की रहने वाली हैं और उनके 3 बच्चे हैं। उन्होंने 11 साल की उम्र में खाना बनाना शुरू कर दिया था। ख़ुद उनका कहना है कि मुझे खाना बनाने से ज़्यादा किसी दूसरे काम में आनंद नहीं आता था। उन्होंने 25 साल की उम्र से खाना बनाने की शिक्षा देना शुरू किया और सन 1371 हिजरी शम्सी में तबरेज़ में खाद्य उद्योग के क्षेत्र में तकनीकी और व्यावसायिक संगठन से जुड़ी एक आधिकारिक वर्कशॉप का उद्घाटन किया।

उनका कहना हैः अगर महिलाओं को सफल जीवन जीना है तो अपने घर के किचन से शुरुआत करना चाहिए। खाना बनाना उनके लिए एक ऐसी रस्म है, जिसमें एक महिला, लज़ीज़ खाना चखने और परिवार को एक साथ लाने और परिजनों के बंधन को मज़बूत करने की भूमिका अदा करती है।

समीरा जन्नतदोस्त के लिए खाना बनाना एक पवित्र पेशे की तरह है। एक ऐसा पेशा, जिसके लिए समय देना पड़ता है, दिलसोज़ी करनी पड़ती है और उसे जीवित रखना पड़ता है। यही वजह है जब उन्होंने खाना बनाने पर अपनी पहली किताब प्रकाशित की तो उसकी प्रस्तावना में उन सभी महिलाओं का शुक्रिया अदा किया जो आज भी खाना तैयार करने को महत्व देती हैं और उसका सम्मान करती हैं।

समीरा जन्नतदोस्त अपनी एक किताब के साथ

 उन्होंने अपनी इस किताबा की प्रस्तावना में लिखा हैः मेरी यह किताब उन सभी लोगों को समर्पित है, जो अभी भी अपने प्रियजनों के साथ अपने प्यार और स्नेह को खाने की टेबल पर साझा करते हैं। एक समझदार मां और पत्नी जानती है कि वह अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ अपने प्यार और स्नेह को लज़ीज़ खाने के ज़रिए ज़ाहिर कर सकती है। याद रखिए कि मां के खाने की महक हमेशा के लिए हमारे दिमाग़ में  बस जाती है और हम मां के खाने की तुलना में कोई भी खाना पसंद नहीं करते हैं। दस्तरख़ान का सम्मान ही परिवार का सम्मान है।

जन्नत दोस्त क़दम ब क़दम आगे बढ़ी हैं, ताकि एक ईरानी महिला के रूप में ईरानी खानों को नया जीवन प्रदान कर सकें और उन्हें नए रंग और नई महक के साथ दस्तरख़ान पर सजा सकें। वह कहती हैः जब तक ईरानी खाना है, तो पास्ता की क्या ज़रूरत है? सही में बड़ा अफ़सोस होता है कि विविध प्रकार के ईरानी खानों के बावजूद, लोग पास्ता और पित्ज़ा जैसे विलायती खाने खाते हैं। हर देश में वर्षों बीत जाने के बाद, लोग इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वहां की जलवायु के दृष्टिगत कौन से खाने बेहतर रहेंगे, ताकि लोग स्वस्थ रह सकें। उदाहरण स्वरूप, भारत के लोग मिर्च और मसालों वाले खाने खाते हैं ताकि भारत के उमस भरे मौसम में रह सकें, या उत्तरी ईरान में लोग जो खाने खाते हैं, वह आज़रबाइजान में खाए जाने वाले खानों से अलग हैं। ऐसे में क्या यह सही है कि हम इस खाने की समृद्ध संस्कृति को पैरों तले रौंद दें और ऐसे देशों का खान-पान अपना लें, जिनका ईरान की परम्परा से कोई लेना-देना नहीं है?

जन्नतदोस्त अपनी एक क्लास में

 ख़ास तौर पर रमज़ान के महीने के लिए मुरब्बा या जैम और हलवा बनाने की उनकी क्लासों में सबसे ज़्यादा भीड़ रहती है। इस संदर्भ में वह ख़ुद कहती हैः शुरुआत में जब मुझे ज़्यादा अनुभव नहीं था तो मुझे अपना कोई मनपसंद मुरब्बा या हलवा तैयार करने में महीनों लग जाते थे लेकिन मैंने कभी भी किसी की कॉपी करने की कोशिश नहीं की और दूसरे स्रोतों से पढ़ाने का प्रयास नहीं किया। आपको यक़ीन नहीं होगा कि मैंने एक बोरी मूली का इस्तेमाल किया था ताकि उससे अच्छा जैम बना सकूं। संक्षेप में कहूं तो मैंने खाना बनाने में तरह तरह के नए नए नुस्खों का इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से न सिर्फ़ तबरेज़ बल्कि दूसरे शहरों की महिलाएं भी मेरी खाना बनाने की क्लासों में भाग लेने के लिए रुची लेने लगीं। इसीलिए मैंने अपनी वर्कशॉप पानीज़ की दूसरी शाख़ा की तेहरान में स्थापना की।

जन्नतदोस्त ने जब किताब लिखना शुरू किया तो कई लोगों ने सलाह दी कि विभिन्न देशों के खानों के बारे में लिखो, ताकि उसकी ज़्यादा बिक्री हो। लेकिन उन्होंने सिर्फ़ अपने दिल की बात सुनी। उनका कहना हैः मैं एक ईरानी शैफ़ हूं, इसलिए बेहतर होगा कि पहले ईरानी खानों की बात करूं और उन्हें पूरी दुनिया के सामने पेश करूं। "आशपज़िये मिलल" किताब में खाना पकाने के अपने अनुभवों के ज़रिए मैंने भोजन के स्वाद को अपने राष्ट्र के स्वाद में बदल दिया। मैंने किताब की शुरुआत में यह स्पष्टीकरण दिया है ताकि अगर कोई ग़ैर-ईरानी व्यक्ति इस किताब को पढ़े तो उसे एहसास हो कि मैं अपने राष्ट्र के स्वाद को महत्व देती हूं और मैंने खानों के स्वाद को ईरानी शैली में और अपने देश वासियों के अनुसार बदल दिया है।

उन्होंने टीवी कार्यक्रमों में भी खाना बनाना सिखाया है, और राष्ट्रीय कौशल प्रतियोगिताओं में एक विशेषज्ञ और एक महिला उद्यमी के रूप में काम किया है। इन दिनों उनका सारा ध्यान, क्लासों और किताबों पर है। इस बारे में वह कहती हैः ईरानी व्यंजन का अच्छी तरह से परिचय नहीं करवाया गया है। आप दुनिया में जहां भी जाते हैं, यहां तक ​​कि यूरोपीय देशों में भी तो आप देखते हैं कि उनके सबसे अच्छे होटलों में एक चीनी या भारतीय रेस्तरां होता है, लेकिन आपको ईरानी रेस्तरां नहीं दिखाई देगा। इसकी वजह यह है कि हम अपने खाने की संस्कृति को अच्छी तरह से पेश नहीं कर सके हैं। ऐसी किताबों के प्रकाशन से हो सकता है कि आज ईरानियों के ख़राब पोषण की जगह, उचित संस्कृति ले ले।

जन्नतदोस्त आगे कहती हैः ईरानी खानों का एक लम्बा इतिहास और संस्कृति है। ईरानी खानों ने यह रूप हकीम अबू अली सीना के ज्ञान व अनुभवों के आधार पर और क्षेत्रीय व जलवायु के अनुसार यह रूप लिया है। प्राचीन काल से ही ईरानी यह बात जानते हैं कि किस चीज़ को किस चीज़ के साथ खाना चाहिए तो लाभ होगा और किस चीज़ को किस चीज़ के साथ खाने से नुक़सान होगा। उन्हें पता है कि किन मसालों और सब्ज़ियों को मिलाकर खाने से शरीर स्वस्थ रहेगा, इसीलिए उन्हें साथ में खाया जाना चाहिए।

उनका मानना है कि खाना बनाना, सिर्फ़ पेट भरने के लिए खाना बनाना ही नहीं है। बल्कि यह एक कला है। खाना बनाना एक सुंदर अनुभव है, जो परिवार की नींव को मज़बूत करता है, अगर सही तरीक़े से काम किया जाए तो सभी एक दस्तरख़ान पर इकट्ठा हो जाते हैं और परिवार और उसके स्वास्थ्य की अवधारणा को एक वास्तविकता प्रदान करता है।

इस ईरानी महिला ने विश्व स्तर पर साबित कर दिया कि दुनिया के सभी प्रसिद्ध शैफ़ मर्द नहीं है। इसलिए कि ईरानी महिलाएं अपने मूल खानों की वजह से दुनिया में ईरान के नाम को ऊंचा कर सकती हैं। जिस तरह से कि वे खेल या दूसरे क्षेत्रों में कर रही हैं।

दक्षिणी गाजा के राफा क्षेत्र की केंद्रीय आपातकालीन समिति का कहना है कि राफा शहर पर ज़ायोनी सेना के जमीनी हमले की शुरुआत के बाद से लगभग 120 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए हैं और सैकड़ों घायल हो गए हैं।

हमारे संवाददाता के अनुसार राफ़ा की केंद्रीय आपातकालीन समिति ने शनिवार को अपने बयान में कहा कि राफ़ा शहर में ज़ायोनी सरकार के नरसंहार में लगभग तीस फ़िलिस्तीनी नागरिक शहीद हो गए, जबकि इसमें शहीदों की संख्या शहर दो हजार तक पहुंच गया है. बयान में कहा गया है कि जमीनी ऑपरेशन की शुरुआत के बाद से लगभग 120 लोग शहीद हो गए हैं और सैकड़ों घायल हो गए हैं। समिति ने जोर देकर कहा कि ज़ायोनी सरकार द्वारा गाजा पट्टी के विभिन्न क्षेत्रों पर बमबारी के कारण हजारों निवासियों को प्रांत के केंद्र और पश्चिम में भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जहां विस्थापित लोग रह रहे हैं।

बयान में कहा गया है कि गाजा के विभिन्न इलाकों, खासकर राफा पर ज़ायोनी सरकार की भारी बमबारी के कारण उनकी जान ख़तरे में है। समिति ने कहा कि राफा क्रॉसिंग के बंद होने से उन नागरिकों के जीवन पर असर पड़ेगा जो तुरंत सहायता पर निर्भर हैं, जिन्हें कब्जे वाले ज़ायोनी शासन राफा क्रॉसिंग से प्रवेश करने से रोक रहा है। राफा की केंद्रीय आपातकालीन समिति ने कहा कि राफा क्रॉसिंग को बंद करना राफा में एकमात्र कुवैती अस्पताल के संचालन को रोकने के बराबर होगा, जो आवश्यक वस्तुओं की गंभीर कमी और शहीदों और घायलों की संख्या में वृद्धि के कारण अभी भी सीमित है। काम हो रहा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सार्वजनिक बहस के निमंत्रण को लोकतंत्र के लिए सकारात्मक पहल बताया और कहा कि इस तरह की बहस से संबंधित पक्षों के दृष्टिकोण को समझने और विकल्प चुनने में मदद मिलेगी.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि वह किसी भी मुद्दे पर पीएम मोदी के साथ सार्वजनिक बहस के लिए तैयार हैं और अगर ऐसा होता है, तो वह या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जन खड़गे इसमें भाग लेंगे. राहुल गांधी ने कहा कि प्रमुख दलों के लिए स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मंच के माध्यम से देश के सामने अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करना एक सकारात्मक पहल होगी। कांग्रेस इस पहल का स्वागत करती है और बहस का निमंत्रण स्वीकार करती है। देश को यह भी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस चर्चा में हिस्सा लेंगे.

इस संबंध में पूर्व जज मदन बी लोकर, पूर्व जज अजीत पी शाह और पत्रकार एन राम की ओर से मिले निमंत्रण का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस बहस के लिए तैयार है. उन्होंने पत्र के जवाब में लिखा कि 'आपके निमंत्रण पर मैंने श्री खड़गे जी से बात की है. हम सहमत हैं कि इस तरह की चर्चा से हमें अपने दृष्टिकोण को समझने और विकल्प चुनने में मदद मिलेगी। कांग्रेस नेता ने बहस के लिए तय स्थान और समय की जानकारी देने का अनुरोध किया है ताकि इसमें भाग लेने की तैयारी की जा सके.