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ज़बनेर का कहना है कि सभी ब्रिटिश मीडिया इस्राईली लॉबी के प्रभाव में हैं। वे इस्राईल के अप्रमाणित व अपुष्ट दावों को साझा करके जो कि निरा झूठ है, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ नफ़रत की आग भड़काते हैं।

बातचीत का दूसरा भाग

प्रोफ़ेसर हैम ब्रेशीथ-ज़बनेर, एक प्रसिद्ध इस्राईली यहूदी शिक्षाविद हैं और उनका संबंध तथाकथित होलोकॉस्ट से बचे से है। वह एक लेखक, फ़िल्म अध्ययन शोधकर्ता और फिल्म निर्माता होने के साथ इस्राईली सेना के पूर्व सैनिक भी हैं। हालिया दशकों में, ब्रेशीथ-ज़बनेर फ़िलिस्तीनियों के साथ इस्राईल के बर्ताव के मुखर आलोचक बन गए हैं। उनके विचार में, ब्रिटिश मीडिया भयावह रूप से इस्लामोफ़ोबिक, एम्पेरियलिस्ट और अंधा है।

यहां हम फ़िलिस्तीनी नरसंहार के लिए ब्रिटिश और इस्राईली मीडिया की पृष्ठभूमि के बारे में (the new arab) पत्रिका से सलवा अमोर (Salwa Amor) के सवालों के जवाब पर एक नज़र डालते हैं।

नफ़रत की आग भड़काने में इस्राईली मीडिया कितना कारगर रहा है?

इस्राईली मीडिया ग़ज़ा की जनता को अमानवीय प्राणियों के रूप में पेश करता है। वे फ़िलिस्तीनियों की पीड़ा नहीं दिखाते और उन्हें इंसान के रूप में नहीं देखते। वे ग़ज़ा में होने वाले अपराधों को स्पष्ट रूप से नज़रअंदाज करते हैं। वे अपने सैनिकों के काले कारनामों को साहस और वीरता के रूप में पेश करते हैं। इस्राईली सेना को वास्तव में युद्ध के शिकार के रूप में दिखाया जाता है। मीडिया, इमारतों और सैनिकों पर बमबारी को गर्व से दिखाता है। वे यह नहीं दिखाते कि ये इस्राईली सैनिक फ़िलिस्तीनियों के साथ क्या कर रहे हैं।

आप एक ओर हमास की निंदा करने और दूसरी ओर इस्राईली नरसंहार की निंदा न करने की ज़िद के बारे में ब्रिटिश मीडिया की स्थिति को कैसे समझते हैं?

 मुझे लगता है कि ब्रिटिश मीडिया मीडिया भयावह रूप से इस्लामोफ़ोबिक, एम्पेरियलिस्ट और अंधा है। सभी अंग्रेज़ी मीडिया इस्राईली लॉबी के प्रभाव में हैं। वे इस्राईल के अप्रमाणित दावों को साझा करके जो कि निरा झूठ हैं, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नफ़रत भड़काते हैं। झूठ जैसे, "शिशुओं का सिर काटना, सामूहिक बलात्कार और लोगों को जिंदा जला दिया जाना वग़ैरह... यह सूची बहुत लंबी है। जब उनका झूठ उजागर होता है, तो ब्रिटिश मीडिया उन्हें अनदेखा कर देता है या उन्हें पूरी तरह से किनारे लगा देता है। हमास को कभी भी इस्राईल के झूठ का जवाब देने की अनुमति नहीं दी गई और ग़ज़ा में एक भी विदेशी पत्रकार के बिना, अंग्रेज़ी मीडिया यरूशलेम और तेल अवीव से इस्राईल के झूठ फैला रहा था। ब्रिटिश मीडिया ने नरसंहार को इस्राईल के अपनी रक्षा के अधिकार के रूप में दिखाया। ब्रिटिश सरकार 1917 की तरह ज़ायोनी कार्ड खेल रही है। ब्रिटिश साम्राज्य एक और अपराध को अंजाम दे रहा है। ब्रिटिश सरकार का मानना ​​है कि इस हक़ीक़त के बावजूद कि युद्ध अपराध करने वाले शासन को हथियार बेचना अवैध है, उन्हें और अधिक हथियार बेचती है।

इस्राईल के इस दावे से आप क्या समझते हैं कि उसकी कार्यवाही आत्मरक्षा है?

हमें यह जानना चाहिए कि युद्ध 7 अक्टूबर को शुरू नहीं हुआ। इसकी शुरुआत 125 साल से भी पहले हुई थी। इसका हमेशा का लक्ष्य, फ़िलिस्तीन पर कब्ज़ा करना रहा है। ज़ायोनिज़्म के संस्थापक थियोडोर हर्ज़ल ने फ़िलिस्तीन को निर्जन करने की अपनी योजना के तहत 1890 के दशक में नरसंहार के नज़रिए की बुनियाद डाली और तभी यह नज़रिया शुरुआत हुआ।1948  में, नज़रिया यह था कि एक फ़िलिस्तीनी गांव के लोगों को मार डाला जाए या वे ख़ुद ही डर के मारे दूसरे गांवों की ओर फ़रार कर जाए।  आज ग़ज़ा में जो हो रहा है वह फिलिस्तीन को फिलिस्तीनियों से खाली करने की हर्ज़ल की योजना का ही विकसित रूप है। हालांकि, हम और जनता, सिर्फ़ तमाशा देख रहे हैं और यद्यपि मुमकिन है कि वे हमें अहमियत न दें लेकिन हम भविष्य में उन पर मुक़द्दमा चलाने के लिए सबूत इकट्ठा करने और उनके युद्ध अपराधों की गवाही देकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वैसा ही जैसा कुछ नाज़ियों के साथ हुआ था।

 

 

फिलिस्तीन को स्नायुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बनाने के लिए दिए गए प्रस्ताव का भारत ने समर्थन किया है। 193 सदस्यीय महासभा ने शुक्रवार को एक आपातकालीन विशेष सत्र के लिए बैठक की। इस दौरान अरब देशों की ओर से फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पेश किया गया और 'संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्यों का प्रवेश' के लिए प्रस्ताव रखा गया जिसका भारत ने स्वागत करते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया।

प्रस्ताव के पक्ष में 143 मत पड़े। जबकि नौ ने विरोध में वोट किए। वहीं, 25 ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया। वोट डाले जाने के बाद यूएनजीए हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

प्रस्ताव में कहा गया है कि फिलिस्तीन संयुक्त राष्ट्र में सदस्य बनने के योग्य है और उसे संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद-4 के अनुसार शामिल किया जाना चाहिए।

वहीँ फिलिस्तीन के लिए उमड़ते वैश्विक समर्थन और यूएन का पूर्ण सदस्य बनाने के प्रस्ताव से मक़बूज़ा फिलिस्तीन का ज़ायोनी शासन भड़क उठा है। फिलिस्तीन में पिछले सात महीने में ही 35 हज़ार से अधिक लोगों की हत्या कर चुके ज़ायोनी शासन ने इस प्रस्ताव की निंदा करते हुए आरोप लगाया कि यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र को आधुनिक समय के नाजियों के लिए खोलता है। 

 

फ़ारसी और उर्दू पांडुलिपियों की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर और जामिया हमदर्द के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, नई दिल्ली, फ़ारसी और उर्दू पांडुलिपियों की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर और जामिया हमदर्द के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए ।

एमओयू पर इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर (ईरान कल्चर हाउस), नई दिल्ली के निदेशक डॉ. मेहदी ख्वाजा पीरी और जामिया हमदर्द के कुलपति प्रो. (डॉ.) एम. अफ़्शार आलम की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।

गौरतलब है कि सदियों से एक समान और प्रभावी सभ्यता और संस्कृति वाले देश ईरान और भारत की सरकारों के साथ ही गैर-सरकारी संगठनों की ओर से भी दोनों देशों के बीच अक्सर सभ्य और सांस्कृतिक मामलों से संबंधित गतिविधियों का आयोजन किया जाता रहता है। कुछ इसी तरह इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर और जामिया हमदर्द ने बड़ा कदम उठाते हुए फारसी और उर्दू पांडुलिपियों की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

उल्लेखनीय है कि जामिया हमदर्द दिल्ली की लाइब्रेरी में बड़ी संख्या में ऐतिहासिक और वैज्ञानिक कलाकृतियाँ हैं। इस विषय में इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर, ईरान कल्चर हाउस में आयोजित कार्यक्रम में जामिया हमदर्द ने  इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर के साथ फ़ारसी और उर्दू पांडुलिपियों ( जो भारत और ईरान के बीच साझा विरासत हैं ) की मरम्मत, संरक्षण, डिजिटलीकरण और कैटलॉगिंग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।कार्यक्रम में ईरान के राजदूत डॉ. ईरज इलाही, जामिया हमदर्द के कुलपति प्रो. (डॉ.) एम. अफ़्शार आलम, ईरान के कल्चरल काउंसलर डॉ. फरीदुद्दीन, जामिया हमदर्द के रजिस्ट्रार डॉ. एमए सिकंदर, फारसी अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. कहरमन सुलेमानी , जामिया हमदर्द के परीक्षा नियंत्रक एस.एस. अख्तर, प्रोफेसर रईसुद्दीन लाइब्रेरियन जामिया हमदर्द, डॉ. रियाजुद्दीन डिप्टी लाइब्रेरियन , नुजहत अयूब सहायक लाइब्रेरियन , डॉ. मसूद रजा सहायक लाइब्रेरियन और तौहीद आलम जनसंपर्क अधिकारी जामिया हमदर्द एवं अन्य गणमाण्य वियक्ति उपस्थित थे।

जामिया हमदर्द की लाइब्रेरी में मौजूद प्राचीन उर्दू और फारसी पांडुलिपियां दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते की ओर इशारा करती हैं। इस मौके पर  इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर के निदेशक डॉ. मेहदी ख्वाजा पीरी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ईरान और भारत सदियों से साझा और प्रभावी सभ्यता और संस्कृति वाले देश रहे हैं और जामिया हमदर्द इसका साक्षी है जहां दोनों देशों के कई महत्वपूर्ण साझा ऐतिहासिक कलाकृतियां मौजूद हैं।  उन्होंने कहा कि इस समझौते से इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर के माध्यम से लाखों अमूल्य ऐतिहासिक और विद्वत पांडुलिपियों को नया जीवन मिलेगा जिस से ईरान और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध अधिक मजबूत होंगे और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वागत योग्य कदम माना जाएगा। इसी प्रकार, ये सभी कलाकृतियाँ विद्वानों, बुद्धिजीवियों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति मानी जाएंगी।

 

 

 

 

 

एक ईरानी संसद सदस्य का कहना है कि दुनिया के सभी देशों को भेदभाव और अन्याय छोड़कर ज़ायोनी शासन से गंभीरता से निपटना चाहिए।

माहेर न्यूज़ रिपोर्टर से बात करते हुए, ईरान के इस्लामी गणराज्य की संसद मजलिस शूरा-ए-इस्लामी के सदस्य और अरक ​​प्रांत के लोगों के प्रतिनिधि मोहम्मद हसन आसिफारी ने ज़ायोनी पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता पर बल दिया। सरकार को पेरिस ओलिंपिक में भाग लेने से रोकें।

उन्होंने कहा: यूक्रेन पर रूसी हमलों के बाद, हमने देखा कि रूस और बेलारूस को सभी विश्व प्रतियोगिताओं और चैंपियनशिप में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था, और दूसरी ओर, रूस और बेलारूस में कोई खेल प्रतियोगिता आयोजित नहीं की गई थी।

उन्होंने जोर दिया: जिस तरह पिछले वर्षों में विभिन्न कारणों से रूस, बेलारूस और कुछ अन्य देशों को ओलंपिक खेलों में भाग लेने से रोका गया था, उसी तरह पिछले महीनों में ज़ायोनी सरकार द्वारा फिलिस्तीन पर किए गए बर्बर हमलों पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए 2024 पेरिस ओलंपिक खेलों में भाग लेना।

ईरान की संसद मजलिस शूरा-ए-इस्लामी में अरक प्रांत के जन प्रतिनिधि और संसद सदस्य ने कहा:

यदि दुनिया वास्तव में ज़ायोनी शासन द्वारा गाजा के उत्पीड़ित लोगों के उत्पीड़न से तंग आ चुकी है, तो उसे व्यवहार में ज़ायोनी शासन के खिलाफ उठना चाहिए, और पेरिस ओलंपिक खेल उन्हें ऐसा करने का एक अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया को ज़ायोनी सरकार के प्रतिनिधियों और खिलाड़ियों को खेलों में भाग लेने से रोकने के लिए आगे आना चाहिए।

उन्होंने कहा कि दुनिया के आज़ाद लोगों को यह दिखाना चाहिए कि वे ज़ायोनी शासन के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा: दुनिया के सभी देशों को संगठित होना चाहिए और आयोजकों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति से ज़ायोनी शासन पर प्रतिबंध लगाने और इस शासन के खिलाड़ियों को ओलंपिक में न भेजने की मांग करनी चाहिए।

ईरानी सांसद असिफ़ारी ने कहा: दुनिया के सभी देशों को भेदभाव और अन्याय छोड़कर ज़ायोनी सरकार से गंभीरता से निपटने का आह्वान करना चाहिए और ऐसा करने का एक उचित तरीका यह है कि ज़ायोनी सरकार का बहिष्कार करने का प्रयास किया जाए। ओलंपिक खेल करना होगा

इराक के लोगों के एक प्रतिनिधि और इस्लामी गणतंत्र ईरान की संसद में संसद सदस्य, मजलिस शूरा ने जोर दिया: यदि वास्तव में ऐसा होता है और ज़ायोनी शासन को 2024 पेरिस ओलंपिक खेलों में भाग लेने से रोका जाता है, तो राष्ट्रों को दुनिया, अंतरराष्ट्रीय संगठन और संस्थाएं आशान्वित रहेंगी, इस मुद्दे पर आम सहमति बननी चाहिए और संबंधित अधिकारियों और नीति निर्माताओं को इस मुद्दे पर दोहरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए।

उन्होंने कहा: ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले सभी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम देशों को इन खेलों में ज़ायोनी सरकार के प्रतिनिधियों और खिलाड़ियों के प्रवेश को रोकने की कोशिश करनी चाहिए।

अफ़ग़ानिस्तान में बारी बारिश के बाद आई बाढ़ में कम से कम 50 लोगों की मौत हो गयी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अफगानिस्तान के बगलान प्रांत में बारिश के बाद अचानक आई बाढ़ में कम से कम 50 लोगों की मौत हो गई। तालिबान के एक अधिकारी ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बाढ़ का असर राजधानी काबुल पर भी पड़ा है।

 बगलान में प्राकृतिक आपदा प्रबंधन के प्रांतीय निदेशक हिदायतुल्लाह हमदर्द ने बताया कि बाढ़ से घरों और संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कहा कि बाढ़ आने के बाद से अनेक लोग लापता हैं इससे मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है।

प्राकृतिक आपदा प्रबंधन मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि बाढ़ का असर राजधानी काबुल पर भी पड़ा है। उन्होंने बताया कि बचाव टीम ज़रूरतमंदों तक भोजन और अन्य सहायता भी पहुंचा रही हैं।

बता दें कि पिछले महीने भी देश में भारी बारिश और बाढ़ से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 70 लोगों की मौत हो गई थी तथा लगभग 2000 घर, 3 मस्जिदें और 4स्कूल क्षतिग्रस्त हो गए थे।

 

भारत और चीन के बीच काल रहे मनमुटाव के बीच लगभग 18 महीने बाद चीन के राजदूत भारत पहुँच गए हैं। भारत में चीन के राजदूत का पद करीब 18 महीने से खाली था, जो चार दशकों में सबसे लंबा अंतराल है। अब चीन के नए राजदूत शू फेइहोंग दिल्ली पहुंच गए हैं।

शू ने कहा कि चीन एक-दूसरे की चिंताओं को “समझने” और बातचीत के माध्यम से "विशिष्ट मुद्दों" का पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए भारत के साथ काम करने को तैयार है।

इससे पहले राजदूत के तौर पर अपना कार्यभार संभालने के लिए भारत रवाना होने से पहले फेइहोंग ने ‘पीटीआई-भाषा’ और चीन के ‘सीजीटीएन-टीवी’ के साथ बातचीत में चीन के इस रुख को दोहराया था कि उसका ट्रेड सरप्लस हासिल करने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा था, ‘‘भारत के व्यापार घाटे के पीछे कई कारक हैं। चीन, भारत की चिंता को समझता है। हमारा कभी भी ट्रेड सरप्लस हासिल रखने का इरादा नहीं रहा है।’’

 

कुवैत की बागडोर संभालने वाले अमीर शेख मिशाल ने कड़ा फैसला लेते हुए देश की संसद को भंग कर सारी शक्तियां और अधिकार अपने अधीन कर लिए हैं जिसकी वजह से देश में गंभीर राजनैतिक संकट खड़ा हो गया है।

राष्ट्रीय टीवी से अपने संबोधन में कुवैत नरेश ने संसद को भंग करने के साथ ही संविधान के कुछ अनुच्छेदों को भी निलंबित कर दिया। कहा गया है कि संविधान पर यह निलंबन चार साल से ज्यादा नहीं होगा। इस दौरान देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सभी पहलुओं का फिर से अध्ययन किया जाएगा। सरकारी टीवी के मुताबिक, इस दौरान नेशनल असेंबली की सभी शक्तियां कुवैत नरेश के पास होंगी।

83 वर्षीय कुवैती नरेश ने कहा, 'कुवैत हाल ही में कुछ कठिन समय से गुजर रहा है, जिससे देश को बचाने और अपने उच्चतम हितों को सुरक्षित करने के लिए कड़े फैसले लेने में झिझक या देरी की कोई जगह नहीं है।

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश के अधिकांश विभागों में भ्रष्टाचार फ़ैल गया जिस से देश का माहौल खराब हुआ है। दुर्भाग्य से भ्रष्टाचार सुरक्षा और आर्थिक संस्थानों तक पहुंच गया, न्याय प्रणाली में भी भ्रष्टाचार होने की बात कही गयी है।

संयुक्त राष्ट्र की महासभा में फ़िलिस्तीन को पूर्ण स्वतंत्र और स्वतंत्र राज्य का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीनी सदस्यता प्रस्ताव के लिए मतदान किया, जिसमें 143 देशों ने पक्ष में और 9 देशों ने विरोध में मतदान किया, जबकि 25 देश मतदान के दौरान सदन से अनुपस्थित रहे।

इससे पहले फ़िलिस्तीनी राजदूत ने कहा था कि प्रस्ताव पर हाँ वोट फ़िलिस्तीनियों के अस्तित्व के पक्ष में वोट है, यह वोट किसी राज्य के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि फ़िलिस्तीनियों को उनके राज्य से वंचित करने के प्रयासों के ख़िलाफ़ है।

उन्होंने कहा कि आज आपका वोट फिलिस्तीनियों के साथ आपकी एकजुटता के बारे में बहुत कुछ कहेगा और यह दिखाएगा कि आप कौन हैं और आप क्या चाहते हैं।

उधर, संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के राजदूत गिलाद एर्दान ने महासभा में पेश किये गये मसौदा प्रस्ताव की निंदा की है.

मलेशिया ने ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को नकारते हुए उनके स्वीकार करने से साफ़ इंकार कर दिया है। अमेरिका के उप वित्त मंत्री के नेतृत्व में वित्की मंत्रालय की एक टीम मलेशिया के दौरे पर पहुंची हुई है। अमेरिका का कहना है कि ईरान अपने प्रतिबंधित आयल प्रोडक्ट को मलेशिया में मौजूद कंपनियों की मदद से बेच रहा है ऐसे में ईरान पर प्रतिबंधों को और कड़ा किये जाने की ज़रूरत है जिस पर मलेशिया ने साफ़ किया है कि हम किसी भी देश के खिलाफ ऐसी एक तरफा पाबंदियों को क़ुबूल नहीं कर सकते।

मलेशिया के गृह मंत्री ने अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल के साथ बातचीत के बाद कहा कि मैंने अमेरिकी दल के साथ दोस्तना और अच्छे माहौल में हुई इस बैठक में साफ़ शब्दों में कह दिया है कि हम सिर्फ सुरक्षा परिषद की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को स्वीकार करते हैं बाक़ी किसी भी देश के खिलाफ लगाई गयी एक तरफा पाबंदियों का हमारे लिए कोई महत्व नहीं है।

गुजरात के अहमदाबाद जिले में स्थित पिराना गांव में हिंदुत्ववादियों की भीड़ ने इमाम शाह बाबा की 600 साल पुरानी दरगाह को तोड़कर वहां पर मूर्तियां स्थापित कर दीं।

जिसके बाद इलाक़े में तनाव का माहौल हो गया तथा दो समुदायों के बीच में तीखी नोकझोंक के बाद टकराव हो गया और जमकर पथराव हुआ, जिसमें चार लोग घायल हो गए।

द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद के एसपी ओमप्रकाश जाट ने मीडिया को बताया कि धर्मस्थल को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था, इमाम शाह बाबा रोज़ा ट्रस्ट में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के सदस्य हैं। यह जानने के बाद कि कब्रों को ध्वस्त किया जा रहा है, दोनों समुदायों के सदस्य बुधवार तड़के दरगाह में एकत्र हुए।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, कब्रों पर बनी संरचनाओं को ट्रस्टियों के हिंदू गुट ने तोड़ दिया, जिसके बाद दो समुदायों में पथराव और झड़प हो गईं। आरोप है कि हिंदुत्ववादी गुट ने दरगाह पर भगवा झंडे लहराए और जमकर तोड़फोड़ की।

दरगाह कमेटी के मुताबिक़, हमने कब्रों को तोड़ने पर आपत्ति जताई है और बहाली की मांग की है। पुलिस अधिकारियों ने हमें आश्वासन दिया है कि वह ट्रस्टियों से कब्रों का पुनर्निर्माण कराएंगे।

सुन्नी अवामी फोरम के अनुसार, नवीकरण की अनुमति की आड़ में, दरगाह ट्रस्ट और कुछ शरारती तत्वों द्वारा 2022 की शुरुआत से ही दरगाह को मंदिर में बदलने का प्रयास किया जा रहा है।