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इमाम ख़ामेनेई ने बुधवार को शिक्षक दिवस (शहीद मुताह्हरी की शहादत की सालगिरह) पर पूरे ईरान के हज़ारों शिक्षकों और बुद्धिजीवियों के साथ मुलाक़ात में, अमेरिका और अन्य देशों में फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन में प्रदर्शनों के विस्तार को इस बात की निशानी बताया कि विश्व जनमत के स्तर पर ग़ज़ा का मसला प्राथमिकता के रूप में ज़िंदा है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस्राईल के जुर्मों और अमेरिका की इन अपराधों में भागीदारी ने क़ाबिज़ शासन को नकार देने और अमरीका के बारे में नकारात्मक सोच रखने के ईरान के स्टैंड को दुरुस्त साबित कर दिया है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि इस्राईल के अपराधों में पूरी तरह अमेरिका के शामिल होने के कारण अमेरिकी के प्रति ईरानी राष्ट्र की नकारात्मक सोच सही साबित होती है।

शिक्षकों और बुद्धिजीवियों के साथ मुलाक़ात में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने हर दिन अवैध अधिकृत शासन पर आम जनमत के बढ़ते दबाव को ज़रूरी बताया और कहा किः

"ज़ायोनी पागल कुत्ते के बर्बर और निर्दयता भरे व्यवहार से इस्लामी गणराज्य और ईरानी राष्ट्र के स्टैंड की सच्चाई साबित हो गई। तीस हज़ार से ज़्यादा लोगों की हत्या, जिनमें आधी महिलाएं और बच्चे थे, ज़ायोनी शासन की दुष्ट प्रकृति और पूरी दुनिया के सामने ईरान के स्टैंड की सत्यता को उजागर कर दिया है।"

इमाम ख़ामेनेई ने इस्राईल के अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले छात्रों के "किसी तोड़ फोड़ के बग़ैर शांतिपूर्ण विरोध" को कुचलने की अमरीका और संबंधित संस्थाओं की शैली को अमरीकी सरकार के बारे में ईरान की नकारात्मक सोच के दुरुस्त होने की एक और दलील बताया। उन्होंने कहाः

"इस मुद्दे ने सभी को दिखा दिया कि ग़ज़ा में आम नागरिकों का क़त्ले आम करने के ज़ायोनियों के ना क़ाबिले माफ़ी अपराध में अमरीका भी लिप्त और भागीदार है और ज़ाहिरी तौर पर की जाने वाली उनकी कुछ हमदर्दी भरी बातें सरासर झूठ हैं, इसलिए ईरान का यह कहना बिल्कुल दुरुस्त साबित हुआ कि अमरीका सरकार के बारे में कोई अच्छी सोच नहीं रखी जा सकती और उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।"

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे का केवल एक ही हल है और वह हल ईरान ने पेश किया है और वह यह है कि फ़िलिस्तीन उसके असली मालिकों को वापस मिलना चाहिए चाहे वे मुसलमान हों, इसाई हों या यहूदी हों।

इमाम ख़ामेनेई कहते हैं, पश्चिमी एशिया की समस्या तब तक हल नहीं होगी जब तक फ़िलिस्तीन अपने मालिकों के पास वापस नहीं आ जाता, भले ही वे ज़ायोनी शासन को अगले बीस या तीस वर्षों तक बचाए रखने की कोशिश करें- वैसे इंशाअल्लाह वे कामयाब नहीं होंगे- यह समस्या हल नहीं होगी।

इमाम ख़ामेनेई आगे कहते हैं किः

"फ़िलिस्तीन को उसके असली मालिकों को वापस करना ही होगा, फ़िलिस्तीन में सरकार और शासन की स्थापना के बाद, वहां के लोग यह ख़ुद फ़ैसला करें कि उन्हें ज़ायोनियों के साथ क्या करना है।"

ज़ायोनी शासन और क्षेत्र के देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने की हो रही कोशिशों और गतिविधियों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा:

"कुछ लोग यह सोचते हैं कि इस काम से समस्या का समाधान हो जाएगा, जबकि अगर मान भी लें कि अरबों और उसके आसपास के देशों के साथ ज़ायोनी शासन के संबंध समान्य हो जाते हैं, तो न केवल इससे समस्या को कोई हल नहीं होगा बल्कि मुश्किलें उन सरकारों के सामने खड़ी हो जाएंगी जिन्होंने क़ाबिज़ शासन के अपराधों की ओर से आंखें मूंदकर उससे दोस्ती कर ली है और फिर ऐसे देशों की जनता ही अपनी सरकारों के पीछे पड़ जाएगी।"

 

इमाम ख़ामेनेईः फ़िलिस्तीन को उसके असली मालिकों को वापस लौटाना होगा

इस मुलाक़ात में इमाम ख़ामेनेई ने शिक्षक दिवस की बधाई भी देते हुए कहा कि टीचरों का सम्मान करना और उनका शुक्रिया अदा करना देश के एक-एक व्यक्ति का फ़र्ज है। उनका कहना था कि महत्व और प्रभाव के मामले में शिक्षा और तरबियत की तुलना किसी अन्य संस्थान से नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा किः

"युवा पीढ़ी की पहचान बनाना और उनमें जोश और उम्मीद जगाना, लगातार बदलाव, टीचरों को आर्थिक तौर पर मज़बूत बनाना, शिक्षा-प्रशिक्षण संस्थानों का समर्थन, सहायक शैक्षिक संस्थानों का सशक्तिकरण और शिक्षक समाज के लिए आदर्शों को तय करना, शिक्षा और प्रशिक्षण के कार्यक्रम के मुख्य विषय है।"

"इम्पावरमेंट" एक दूसरा टॉपिक था जिसे अयातुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शिक्षा व प्रशिक्षण विभाग के कर्तव्य के तौर पर उठाया। उन्होंने कहाः

"शिक्षकों की आजीविका और भौतिक सशक्तिकरण पर हमेशा ज़ोर दिया गया है और अब इस क्षेत्र में हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।"

 

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता का कहना था कि सामाजिक बुराइयां पैदा होने और उनके प्रसार की रोकथाम युवाओं से उनकी अहम अपेक्षा है। उन्होंने कहाः

"इसके लिए महत्वपूर्ण और ज़रूरी यह है कि स्कूलों में सामाजिक बुराइयां पैदा न हों, और इस पर नज़र रखना और उनकी रोकथाम प्रशैक्षिक डिपार्टमेंट की ज़िम्मेदारियों में से एक है।"

देश और इस्लामी व्यवस्था के मौलिक मुद्दों को नौजवानों और युवाओं के लिए सही रूप से पेश किया जाना दूसरा अहम काम है जो तरबियती डिपार्टमेंट की ज़िम्मेदारियों में है और जिसकी ओर सर्वोच्च नेता ने इशारा किया। उन्होंने कहाः

"अगर देश के लाखों बच्चे और युवा देश के मूलभूत हितों और महत्वपूर्ण मुद्दों को समझें और पहचानें, दोस्त और दुश्मन के बीच अंतर को अच्छी तरह समझें, और देश के दुश्मनों के लक्ष्यों के प्रति जागरूक रहें और शत्रुओं के ख़िलाफ़ तैयार रहें, तो ऐसी स्थिति में मीडिया और राजनीति के क्षेत्र में दुश्मनों का भारी निवेश बेअसर हो जाएगा।"

इमाम ख़ामेनेई ने आगे कहाः

"छात्रों, युवाओं और बच्चों को व्यवस्था की मूल नीतियों और गतिविधियों के तर्कों की जानकारी होनी चाहिए और उन्हें मालूम होना चाहिए कि "अमेरिका मुर्दाबाद" और "इस्राईल मुर्दाबाद" के नारे के पीछे क्या तर्क छिपा है और क्यों इस्लामी व्यवस्था कुछ देशों और सरकारों के साथ संबंध स्थापित नहीं करना चाहती।"

"छात्रों को राष्ट्रीय दृष्टिकोण (पर्स्पेक्टिव) देना" एक और अपेक्षा थी कि जिसकी ओर सर्वोच्च नेता ने इशारा किया और कहा:

"राष्ट्रीय दृष्टिकोण का अर्थ यह है कि छात्र जानता हो कि शिक्षा और क्लास प्रगति की संपूर्ण प्रक्रिया का एक हिस्सा है और यह देश और शासन व्यवस्था को आगे ले जाने वाली विशाल मशीनरी का एक भाग है। इसलिए छात्रों को राष्ट्रीय सम्मान, देश की उपलब्धियों, सही तरीक़ों से होने वाली जीत के साथ-साथ ख़तरों और दुश्मनों के बारे में भी जानकारी देना ज़रूरी है।"

उन्होंने उम्मीद जगाना शिक्षकों की ज़िम्मेदारियों का हिस्सा मानते हुए कहाः

"उम्मीद देश के भविष्य की गारंटी है, और अगर कोई युवाओं के दिल और आत्मा में उम्मीद जगाता है, तो उसने वास्तव में देश के भविष्य के निर्माण में मदद की है, और यही कारण है कि हम बार-बार उम्मीद जगाने पर ज़ोर देते हैं।"

बुधवार, 01 मई 2024 15:49

अहंकार क्यों होता है ?

घमंड शैतान का हथियार है। ग़ुरुर यानी घमंड शैतान का हथियार है। यह इंसान में क्यों पैदा होता है , इसकी ‎बहुत ‎सी वजहें हो सकती हैं। लेकिन उससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वजह जो भी ‎हो। कभी ‎इसकी वजह ओहदा होता है।

दूसरी वजह कामयाबी है। कभी इंसान ‎जो काम करता है उसमें उसे ‎कामयाबी मिलती है और आगे बढ़ता है तो इस ‎मौक़े पर भी उसमें घमंड पैदा हो जाता ‎है कि मैंने यह काम कर लिया।

एक ‎और वजह, अल्लाह की नेमतों से धोखा खाना है। ‎जिसके बारे में बहुत सी ‎दुआओं यहां तक कि क़ुरआने मजीद में भी कहा गया है कि ‎‎“तुम धोखा न ‎खाओ“। शैतान तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखे में ‎न डाल ‎दे! अल्लाह के बारे में धोखे में रहने का क्या मतलब है?

इसका यह मतलब ‎है कि इंसान अल्लाह की तरफ़ से बिल्कुल बेफ़िक्र हो जाए! उसे अल्लाह का ‎ज़रा ‎भी ख़्याल न रहे। मिसाल के तौर पर यह कहे कि हम तो पैग़म्बर के ‎ख़ानदान के ‎चाहने वालों में से हैं, अल्लाह हमें कुछ नहीं बोलेगा! इसे कहते हैं ‎कि ख़ुदा के ‎सिलसिले में धोखे में रहना। “और सब से ज़्यादा बदक़िस्मत वह है ‎जो तेरे बारे में ‎धोखे में रहे“ मेरे ख़्याल से सहीफ़ए सज़्जादिया की दुआ है। ‎शायद दुआ नंबर 46 ‎है, जुमे के दिन की दुआ। इसे कहते हैं धोखे में रहना। ‎घमंड करना भी इसी तरह ‎है। ‎

आयतुल्लाह ख़ामेनेई

इस्लामी शिक्षाओं के मुताबिक़, मज़दूरों की क्षमताओं का विकास, एक ज़िम्मेदारी है। हदीस में है कि अगर कोई किसी मज़दूर पर अत्याचार करे, उसकी मज़दूरी या वेतन के बारे में अन्याय करेगा, तो उसके सभी पुण्य बर्बाद हो जाएंगे।

इस्लामी हदीसों और ख़ास तौर पर शिया मुसलमानों की धार्मिक किताबों में काम और मेहनत को लोक और परलोक से जोड़कर देखा गया है। इसके बारे में काफ़ी ज़्यादा सिफ़ारिश की गई है। वह काम या मज़दूरी जो परिवार के पालन-पोषण के लिए की जाती है, उसे जिहाद का दर्जा दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस या इंटरनेशनल लेबर डे पर हम शिया मुसलमानों के इमामों की चार सिफ़ारिशों का ज़िक्र कर रहे हैः

पहले मज़दूरी का निर्धारण उसके बाद काम

हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैः पैग़म्बरे इस्लाम ने मज़दूरी के निर्धारण से पहले, मज़दूर से काम लेने के लिए मना किया है। (मन ला याहज़रुल फ़क़ीह, जिल्द4 पेज10)

पसीना सूखने से पहले मज़दूरी दे देना

इमाम जाफ़िर सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मज़दूरी दे दो। (अल-काफ़ी, जिल्द5, पेज289)

मुसलमान और ग़ैर-मुसलमान के बीच कोई फ़र्क़ नहीं है

एक नाबीना और बूढ़ा शख़्स भीख मांगता हुआ हज़रत अली (अ) के नज़दीक से गुज़रा। इमाम (अ) ने अपने साथियों से पूछाः यह शख़्स कौन है और क्यों मांग रहा है? उन्होंने जवाब दियाः यह एक ईसाई है। इमाम ने आलोचनात्मक लहजे में कहाः जब तक उसमें काम करने की ताक़त थी, उससे काम लिया गया, अब वह बूढ़ा हो गया है और उसमें काम करने की ताक़त नहीं है, तो उसकी रोज़ी-रोटी की परवाह क्यों नहीं की जा रही है? सरकारी ख़ज़ाने से उसका  ख़र्च अदा किया जाए। वसायलुश्शिया, जिल्द 15, पेज66)

सबसे बड़ा गुनाह

इमाम जाफ़िर सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः तीन गुनाह सबसे बुरे गुनाह हैः बेज़बान हैवान की हत्या करना, बीवी का मेहर अदा नहीं करना और मज़दूर की मज़दूरी अदा नहीं करना। (मकारेमुल अख़लाक़)

संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार उच्चायुक्त ने फिलिस्तीन समर्थक अमेरिकी छात्रों के खिलाफ पुलिस की हिंसक कार्रवाई पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

आईआरएनए की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार के उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने एक बयान जारी कर फिलिस्तीन के समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों के खिलाफ पुलिस के हिंसक व्यवहार पर चिंता जताई है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे छात्रों की गिरफ्तारी और उन्हें शिक्षा से वंचित किए जाने की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की अनुचित कार्रवाइयों से चिंतित हैं।

अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी पुलिस ने फिलिस्तीन समर्थक छात्रों को बेरहमी से जमीन पर घसीटा, प्रताड़ित किया और उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।

गौरतलब है कि अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से शुरू हुआ फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शनों का सिलसिला इस देश के सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों के साथ-साथ फ्रांस, जर्मनी, कनाडा समेत सभी पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों तक फैल गया है. , ग्रेट ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नरसंहार ज़ायोनी सरकार, संयुक्त राज्य अमेरिका के अटूट समर्थन के साथ, मानवाधिकारों और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की आंखों के सामने लगभग सात महीने से गाजा पर क्रूर बमबारी और निर्दोष लोगों का नरसंहार जारी रखे हुए है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने चेतावनी दी है कि राफा में इजरायली सेना के ऑपरेशन के परिणामस्वरूप मानवीय त्रासदी हो सकती है।

IRNA की रिपोर्ट के मुताबिक, टेड्रोस ने सोशल नेटवर्क डब्ल्यूएचओ ने गाजा में बच्चों की हत्या करने वाली ज़ायोनी सरकार की कार्रवाइयों की कड़ी आलोचना की थी और इसे मानवता के माथे पर करारा प्रहार बताया था।

टेड्रोस ने कहा कि गाजा में हजारों बच्चों की हत्या मानवता पर एक दाग है और आक्रामकता अब समाप्त होनी चाहिए, उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनियों को भोजन, दवा, ईंधन और चिकित्सा उपकरणों और बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित किया जाना एक अमानवीय और असहनीय कदम है -कई विशेषज्ञों का कहना है कि ज़ायोनी प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का युद्ध जारी रखने का मकसद अपने राजनीतिक करियर को बचाना और कानूनी कार्यवाही से बचना है।

भारत में जारी आम चुनाव के बाद सत्ताधारी दल के नेताओं समेत प्रधानमंत्री मोदी लगातार अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को अपने भाषणों में निशाने पर रखे हुए हैं। पीएम मोदी ने कांग्रेस पर वोट-बैंक की राजनीति में शामिल होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उसे अन्य धर्मों की परवाह नहीं है। मोदी ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों पर मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण देने और वंचित जातियों का आरक्षण कम करने का आरोप लगाया।

कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए मोदी ने कहा कि जब तक मोदी जिंदा है, मैं दलितों का, एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण धर्म के आधार पर मुसलमानों को नहीं देने दूंगा। मोदी के सुर में सुर मिलाते हुए भाजपा के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने भी मुसलमानों के बहाने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि मुसलमानों को आप ओबीसी के नाम पर आरक्षण मत दीजिए। देश में ओबीसी, मुसलमान नहीं हो सकते हैं और आप किस तरह से मुसलमानों को ओबीसी बना सकते हैं। ओबीसी को पूरा का पूरा 27 प्रतिशत आरक्षण देना चाहिए। आप उनसे इसे छीन नहीं सकते हैं।

18 साल तक अमेरिकी राजनयिक के रूप में काम कर चुकीं हला रहारित ने अचानक बिडेन प्रशासन छोड़ने का कारण बताते हुए कहा है कि वह गाजा युद्ध के मुद्दे पर किसी के लिए अमेरिका से अधिक नफरत का कारण नहीं बनना चाहती हैं।

प्राप्त समाचार के अनुसार, हला रहारित ने पिछले सप्ताह अमेरिकी विदेश विभाग से इस्तीफा दे दिया था, अपने इस्तीफे से पहले वह दुबई में अमेरिकी राजनयिक थीं। हला रहारित 18 वर्षों तक अमेरिकी विदेश विभाग में थे और अरबी भाषा के दुभाषिया थे।

एक अमेरिकी अखबार को दिए इंटरव्यू में हला रहारित ने कहा कि उन्होंने कहा कि अपने 18 साल के करियर में उन्होंने हमेशा इस बारे में नीतिगत चर्चा देखी है कि अमेरिका क्या गलत कर रहा है और क्या सही है, लेकिन यह आश्चर्यजनक और ठंडी स्थिति पहली बार थी। गाजा संघर्ष का जन्म हुआ, इसलिए उन्होंने अक्टूबर से गाजा स्थिति पर साक्षात्कार देना बंद कर दिया।

हला रहारित ने कहा कि विदेश विभाग के लोग डर के मारे गाजा का जिक्र तक करने से बचते हैं। उन्होंने कहा कि विदेश विभाग गाजा पर जिन बिंदुओं पर चर्चा करता था वे उत्तेजक थे, उन बिंदुओं ने फिलिस्तीनियों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया, उन्होंने फिलिस्तीनियों की दुर्दशा का जिक्र नहीं किया।

हला रहारित ने कहा कि अगर उन्होंने विदेश विभाग के बिंदुओं पर चर्चा की होती तो लोग टीवी पर जूता मारने के बारे में सोचते, अमेरिकी ध्वज जलाने के बारे में सोचते और अमेरिकी सेना पर रॉकेट दागने के बारे में सोचते. उन्होंने कहा कि उन्हें डर है कि अनाथ फिलिस्तीनी बच्चे कल हथियार उठाकर बदला लेने के लिए खड़े न हो जाएं क्योंकि अमेरिकी नीति पूरी पीढ़ी को बदला लेने के लिए उकसा रही है.

हला ने कहा, "एक इंसान के तौर पर, एक मां के तौर पर, यह कैसे संभव है कि मृत फिलिस्तीनी बच्चों का वीडियो आपको प्रभावित न करे?" उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि जिन बमों से फिलिस्तीनी बच्चों की मौत हुई, वे हमारे थे और इससे भी अधिक दुखद यह है कि मौतों के बावजूद हम इजराइल को और अधिक हथियार भेज रहे हैं।

हला ने इस मुद्दे पर अमेरिकी नीति को पागलपन करार दिया और कहा कि हमें हथियार नहीं कूटनीति की जरूरत है.

गूगल ने अपने कई कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है, लेकिन इसके बावजूद, इस कंपनी में इस्राईल-गूगल निंबस प्रोजेक्ट का विरोध कम नहीं हो रहा है।

दुनिया की दिग्गज टेक कंपनी गूगल के कई कर्मचारियों का कहना है कि वह इस प्रोजेक्ट में सहयोगी बनकर फ़िलिस्तीनियों की नस्लकुशी और जनसंहार का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं।

क़रीब एक महीने पहले की बात है कि गूगल ने फ़िलिस्तीन का समर्थन करने वाले अपने एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर को बाहर निकाल दिया। इस इंजीनियर का जुर्म सिर्फ़ इतना था कि उसने एक कांफ़्रेंस के बीच में खड़े होकर कहा था कि मैं ऐसे किसी सॉफ़्टवेयर प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बनना चाहता हूं, जो नस्लकुशी को बढ़ावा देता हो।

इस कर्मचारी को निकाले जाने के बारे में गूगल के प्रवक्ता ने असली वजह बयान किए बिना कहाः इस कर्मचारी को एक औपचारिक कार्यक्रम में दख़ल देने की वजह से निकाला गया है।

इसके बाद, न्यूयॉर्क और केलिफ़ोर्निया जैसे अमरीका के कई शहरों में गूगल के दफ़्तरों में कर्मचारियों ने विरोध शुरू कर दिया। यह कर्मचारी एक अरब बीस करोड़ डॉलर की लागत वाले निंबस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं।

इस्राईल के अपराधों का विरोध करने वाले क़रीब 50 से ज़्यादा कर्मचारियों को गूगल ने नौकरी से निकाल दिया है। निंबस ज़ायोनी शासन और उसकी आर्मी का एक क्लाउड कंप्यूटिंग प्रोजेक्ट ज़ायोनी शासन और उसकी आर्मी को क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस सर्विसिज़ देने के लिए गूगल ने इस प्रोजेक्ट पर 2021 में हस्ताक्षर किए थे।

इस समझौते का एक अहम पहलू यह है कि गूगल दुनिया भर से जुटाए गए डेटा को इस्राईल के हवाले कर सकता है, जिससे ज़ायोनी शासन और ज़ायोनी सेना को लोगों को निशाना बनाने और उनकी जासूसी करने में आसानी होगी।

गूगल ने अपने कर्मचारियों के विरोध की आवाज़ को दबाने का प्रयास किया है, हालांकि इससे पहले तक उसे अपने कर्मचारियों और सहयोगियों को समर्थन करने के लिए जाना जाता था, लेकिन इस्राईल के दबाव में उसने अपने प्रदर्शन करने वाले अपने कर्मचारियों को पुलिस के हवाले तक कर दिया।

आज़ादी की सीमा

ऐसा लगता है कि वर्षों से फ़िलिस्तीनियों की आज़ादी छीनने वाले इस्राईल ने अब अपने समर्थक दूसरे देशों में भी यही रणनीति अपना ली है और वह बोलने की आज़ादी का दावा करने वाले देशों में लोगों से बोलने की आज़ादी छीन लेना चाहता है।

जिस दन फ़्रांस ने 93 मीडर ऊंची लिबर्टी की मूरती अमरीका को सौंपी थी, किसी ने भी नहीं सोचा था कि इस देश में पीड़ित फ़िलिस्तनियों का समर्थन और इस्राईल के युद्ध अपराधों का विरोध करने वालों की आज़ादी को कुचल दिया जाएगा।

हालांकि इससे पहले भी गूगल का इतिहास कोई पाक-साफ़ नहीं रहा है। 2018 में गूगल ने पेंटागन के साथ ड्रोन हमलों को अधिक सटीक बनाने के लिए एआई के इस्तेमाल वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि एक्सपर्ट का कहना है कि यह समझौता भी फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल सेना के लक्ष्यों को सटीक बनाने के लिए किया गया था।

 

निंबस प्रोजेक्ट के ज़रिए भी इस्राईल गूगल का इस्तेमाल करना चाहता है, ताकि उसकी पहुंच बेहतरीन सैन्य रसद तक हो सके।         

 

ऐसा भी सुनने में आ रहा है कि अगर गूगल ने इस समझौते पर अड़ियल रवैया जारी रखा तो उसे एक अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ सकता है। इस कंपनी के कर्मचारियों का नारा हैः गूगलर्स एगेंस्ट जेनोसाइड।

संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में चल रहे प्रदर्शनों के दौरान, ईरानी विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी फ़िलिस्तीन समर्थक छात्रों के समर्थन में और इज़रायली अत्याचारों की निंदा में प्रदर्शन किया है।

तस्नीम न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान में शरीफ विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों ने दुनिया भर के फिलिस्तीन समर्थक छात्रों के समर्थन में और इजरायली अत्याचारों की निंदा में प्रदर्शन किया और इन अत्याचारों की निंदा की - ईरान से भी पहले। संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के विश्वविद्यालयों के छात्रों के प्रति अपना समर्थन घोषित करते हुए इन विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए अमेरिकी पुलिस की कार्रवाई की निंदा की।

गौरतलब है कि फ़िलिस्तीनियों के समर्थन और हमलावर और नरसंहारक ज़ायोनी सरकार के अत्याचारों की निंदा में विरोध प्रदर्शन न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय से शुरू हुआ है और यह फ़्रांस, जर्मनी, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में भी फैल गया है।

ईरान ने कहा है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पुलिस की हिंसक कार्रवाई मानवाधिकारों के संबंध में वाशिंगटन के पाखंड का प्रमाण है।

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने अपनी साप्ताहिक प्रेस वार्ता में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों के खिलाफ पुलिस हिंसा की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि इन दिनों अमेरिकी विश्वविद्यालयों में जो कुछ हो रहा है वह संयुक्त राज्य अमेरिका और कुछ यूरोपीय सरकारों के समर्थन से गाजा में ज़ायोनी सरकार द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के नरसंहार के बारे में जन जागरूकता का संकेत है।

नासिर कनानी ने कहा कि जो लोग न्याय और निष्पक्षता को महत्व देते हैं, वे अपनी सरकारों द्वारा इजरायल द्वारा जारी नरसंहार को बर्दाश्त नहीं कर सकते। यूरोपीय सरकारों द्वारा समर्थित विपक्ष की आवाज को पुलिस हिंसा और दमन से दबाया नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि अमेरिका में विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ पुलिस की हिंसा हमारे लिए चिंताजनक और अस्वीकार्य है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस पर ध्यान देना चाहिए।

नासिर कनानी ने कहा कि अमेरिकी सरकार ने पुलिस को विश्वविद्यालय परिसरों के अंदर हिंसा की अनुमति देकर साबित कर दिया है कि मानवाधिकारों के बारे में उसके नारे खोखले हैं और विश्व जनमत को धोखा देने के लिए हैं। विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने कहा कि आज फिलिस्तीन का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है. उन्होंने गाजा में तत्काल युद्धविराम की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि संघर्ष विराम के साथ-साथ गाजा के लोगों के लिए सहायता के रास्ते भी पूरी तरह से खोलना भी जरूरी है. उन्होंने कहा कि अमेरिका दिखाता है कि वह युद्ध रोकना चाहता है लेकिन उसने अपने कार्यों से यह साबित कर दिया है कि वह ऐसा नहीं चाहता क्योंकि अगर अमेरिका वास्तव में युद्ध रोकना चाहता है तो उसे इजराइल का वित्तीय, राजनीतिक और सैन्य समर्थन और सहायता देनी होगी युद्ध रोक सकता है.