
رضوی
ईरान के विदेश मंत्रालय की ओर से विश्व क़ुद्स दिवस के दिन प्रदर्शन का आह्वान
विश्व क़ुद्स दिवस पर ईरान की ओर से सारे स्वतंत्रता प्रेमियों से प्रदर्शन का आह्वान किया गया।
विश्व क़ुद्स दिवस के दृष्टिगत इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके सारे देशों और मुसलमान राष्ट्रों तथा विश्व के समस्त स्वतंत्रता प्रेमियों से एकजुट होकर 5 अप्रैल को फ़िलिस्तीन की अत्याचारग्रस्त जनता के समर्थन का आह्वान किया है।
ईरान के विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की एतिहासिक पहल की वर्षगांठ पर, जिसमें पवित्र रमज़ान के अन्तिम जुमे को "विश्व क़ुद्स दिवस" का नाम दिया गया था।
इस समय फ़िलिस्तीन का मुद्दा और पवित्र क़ुद्स की स्वतंत्रता का विषय, मानवता और स्वतंत्रता की रक्षा, न्याय की प्राप्ति और क़ब्ज़े तथा उत्पीड़न के विरोध को व्यक्त करने में दुनिया की सभी जातियों और धर्मों की एकता का प्रतीक बन चुका हैं।
ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनियों के हमले के छठे महीने इस समय फ़िलिस्तीन और वहां की अत्याचारग्रस्त जनता की दुर्दशा, पूरी मानवता के लिए बहुत बड़ी त्रासदी बन चुकी है। अवैध ज़ायोनी शासन, फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध अपने भयावह अपराधों को जारी रखे हुए है।
उसके हाथों लगभग चालीस हज़ार निर्दोष बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं और पुरुषों का जनसंहार किया जा चुका है। इसी के साथ यह जातिवादी आतंकी आवासीय घरों, अस्पतालों, स्कूलों, मस्जिदों, गिरजाघरों के साथ ही मूलभूत संरचना को नष्ट कर रहा है। इन अत्याचारों के साथ वह ग़ज़्ज़ा वासियों को भूखा रखकर उनको मार रहा है।
पवित्र रमज़ान के महीने में मुसलमानों के पहले क़िब्ले बैतुल मुक़द्दस का अनादर, इस पवित्र स्थल के आंगन में नमाज़ियों पर हमले और उनकी पिटाई, फ़िलिस्तीनी महिला बंदियों पर अत्याचार और उनको यातनाएं देने जैसा काम न केवल ग़ज़्ज़ा में बल्कि पूरे फ़िलिस्तीन में जारी है। इस अवैध शासन ने पूरे फ़िलिस्तीन को लाखों फ़िलिस्तीनियों के लिए एक ओपेन जेल में परिवर्तित कर दिया है। उसने इस स्थान को मानवता की हत्या और मानव की अंतरात्मा के क़ब्रिस्तान में बदल दिया है।
इस बयान में अमरीका और पश्चिम के व्यवहार के संदर्भ में आया है कि निःसन्देह, इन अत्याचारों के कलंक का टीका, इस अवैध शासन और उसके उन समर्थकों के माथे से कभी भी नहीं हटेगा जिसमें अमरीका और पश्चिमी सरकारें शामिल हैं।
इन्होंने न केवल यह कि इन अत्याचारों को रोकने की कोई कोशिश नहीं की बल्कि हमले के पहले ही दिन से उसको हथियार भेजकर और वहां की यात्राएं करके समर्थन किया। यह बात कभी भी मानव इतिहास के पटल से मिट नहीं सकती।
वर्तमान समय में फ़िलिस्तीनियों विशेषकर प्रतिरोधकर्ताओं की बहादुरी उनके धैर्य एवं प्रतिरोध ने ज़ायोनियों के तथाकथित अजेय के नारे को मिट्टी में मिला दिया। इस समय ज़ायोनी और उसके समर्थक, विश्व के आम लोगों की घृणा की दलदल में फंसे हुए हैं। एसे में अवैध ज़ायोनी शासन की पराजय निश्चित है जो ईश्वरीय वादे के अनुरूप है।
अब ज़ायोनी और वर्चस्ववादी मीडिया भी इस काम में सक्षम नहीं रहा है कि वह क्षेत्रीय राष्ट्रों की जागरूकता से उत्पन्न इस प्रतिरोध को ईरान से जोड़कर ज़ायोनियों की निश्चित पराजय को रोक नहीं पाएगा।
गाजा में दसियों और फिलिस्तीनी शहीद
फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ग़ज़ा में हमलावर ज़ायोनी सेना के हमलों में इकहत्तर से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए हैं और सौ से अधिक घायल हुए हैं।
सहर न्यूज़/आलम इस्लाम: प्राप्त समाचार के अनुसार फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि ज़ायोनी सेना ने पिछले घंटों के दौरान सात चरणों में नरसंहार और अन्य अपराध किये हैं। फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय की घोषणा के अनुसार, लगभग 8,000 फ़िलिस्तीनी अभी भी लापता हैं और मलबे के नीचे दबे हुए हैं, और संसाधनों की कमी और ज़ायोनी सरकार द्वारा जारी हमलों के कारण राहत दल उन्हें बचाने में असमर्थ हैं।
ज़ायोनी सैनिकों ने पश्चिमी जॉर्डन में चालीस फ़िलिस्तीनियों को भी गिरफ़्तार किया है, जिनमें बच्चे और पूर्व कैदी भी शामिल हैं।
फिलिस्तीनी शिक्षा मंत्रालय ने यह भी घोषणा की है कि 7 अक्टूबर को गाजा पट्टी के खिलाफ युद्ध की शुरुआत के बाद से इस पट्टी पर ज़ायोनी कब्जे वाली सेना के हमलों में 6,500 फिलिस्तीनी छात्र शहीद हो चुके हैं। फ़िलिस्तीनी मंत्रालय ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि युद्ध की शुरुआत के बाद से, इज़राइल ने 480 स्कूलों पर बमबारी की और उन्हें नष्ट कर दिया है।
फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि 7 अक्टूबर से गाजा में चल रहे युद्ध में शहीदों की संख्या 32,916 और घायलों की संख्या 75,494 हो गई है.
तेहरान और बगदाद के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने तेहरान और बगदाद के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहिम रायसी ने इराकी प्रधान मंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी के साथ टेलीफोन पर बातचीत में, कांसुलर अनुभाग पर नरसंहार ज़ायोनी शासन द्वारा आतंकवादी हमले पर इराकी सरकार की प्रतिक्रिया व्यक्त की। दमिश्क में ईरानी दूतावास ने सहानुभूति व्यक्त करने और इस आतंकवादी हमले की निंदा करते हुए एक बयान जारी करने के लिए देश और सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि आज, पैंतालीस वर्षों के बाद, दुनिया के सभी देशों को इसकी वैधता और शुद्धता का एहसास हुआ है। इस्लामी गणतंत्र ईरान की स्थिति.
राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने दमनकारी ज़ायोनी सरकार के खिलाफ ईरान और इराक के संयुक्त रुख को दोनों देशों के लोगों के बीच एकजुटता का प्रतीक बताया और फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में इराकी सरकार के दृढ़ रुख की सराहना करते हुए सभी इस्लामी देशों से भी ऐसा करने को कहा। .उन्होंने स्टैंड लेने पर जोर दिया.
इस टेलीफोन बातचीत में, इराकी प्रधान मंत्री मुहम्मद शिया अल-सुदानी ने ईरानी के कांसुलर अनुभाग पर आक्रामक ज़ायोनी सरकार के आतंकवादी हमले में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के मेजर जनरल मोहम्मद रज़ा ज़ाहिदी और उनके कुछ सहयोगियों की शहादत पर अपनी संवेदना व्यक्त की। सीरिया में दूतावास। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के प्रतिष्ठित और शक्तिशाली नेतृत्व की छाया में, इस्लामी प्रतिरोध को अंतिम और निर्णायक जीत मिलेगी।
दांत की डॉक्टर और हाफिज़ ए कुरआन महिला ग़ाज़ा में शाहिद
ग़ाज़ा में इसराइल हमले के कारण दांत की डॉक्टर और हाफिज ए कुरआन महिला शीमा जमाल नईम और गाजा पट्टी में सर्वोच्च पाठ करने वाली शहीद हुई।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,अलजज़ीरा के अनुसार,शीमा नईम ने संलग्न दस्तावेज़ का अध्ययन करना शुरू कर दिया था लेकिन ज़ायोनी शासन की बमबारी ने उसे नहीं छोड़ा और शहीद हो गई।
फ़िलिस्तीनी माँ, पत्नी, बेटी और बहन शीमा (उम्मे तिसीर) ने कम उम्र में ही कुरान याद कर लिया था और उसके परिवार और दोस्तों ने उसे एक दयालु, उदार, बुद्धिमान, सहिष्णु और शुद्ध व्यक्ति बताया हैं।
शीमा नईम ने दंत चिकित्सा संकाय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया वह अंग्रेजी और जर्मन में पारंगत थी और तुर्की, फ्रेंच और हिब्रू भाषाओं से भी अच्छी तरह परिचित थी।
शीमा की महत्वाकांक्षा और खुद के विकास की चाहत यहीं खत्म नहीं हुई, स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद उन्होंने डिजाइन, भाषा सीखने और विपणन में विभिन्न पाठ्यक्रमों में भाग लिया, हालांकि अपने तीन साल के बेटे, तिसिर की देखभाल में उन्हें काफी समय लग गया।
शीमा ने अपने जीवन के आखिरी दिन अलबलह में अपने विस्थापित परिवार के साथ बिताए, वह अपने बेटे, बहन और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ज़ायोनी शासन के लड़ाकों की बमबारी में शहीद हो गई।
पश्चिमी जॉर्डन में फ़िलिस्तीनियों और ज़ायोनी सैनिकों के बीच भीषण लड़ाई
कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के आक्रामक सैनिकों ने पश्चिमी जॉर्डन के उत्तर में स्थित जेनिन पर हमला किया है, जहाँ फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन और ज़ायोनी सैनिकों के बीच भीषण झड़पें हुई हैं।
फ़िलिस्तीन की समा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, फ़िलिस्तीनी स्थानीय सूत्रों ने जानकारी दी है कि जेनिन के दक्षिण क़बातिया में फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन और ज़ायोनी सैनिकों के बीच भीषण झड़प हुई है।
इस रिपोर्ट के अनुसार फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन ने ज़ायोनी सैनिकों के रास्ते में कई बम विस्फोट किये। दूसरी ओर, कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार ने भी अपनी सहायता सेना इस क्षेत्र में भेज दी है, कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के आक्रामक सैनिक हर दिन पश्चिमी जॉर्डन के उन इलाकों को निशाना बना रहे हैं जहाँ फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन और ज़ायोनी सैनिकों के बीच भीषण झड़पें हो रही हैं। कब्ज़ा करने वाली सेना ने बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार कर लिया।
फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन की जवाबी कार्रवाई
इस्लामिक जिहाद फिलिस्तीन की सैन्य शाखा सराया अल-कुद्स ने गाजा के पास अवैध ज़ायोनी बस्तियों पर मिसाइल हमला किया है।
शहाब न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, फिलिस्तीन में इस्लामिक जिहाद की सैन्य शाखा, सराया अल-कुद्स ने घोषणा की है कि गाजा के उत्पीड़ित नागरिकों के खिलाफ बर्बर ज़ायोनी आक्रामकता के जवाब में, गाजा के पास अवैध बस्तियों के विभिन्न क्षेत्रों सुदिरुट और नायर एम समेत अन्य इलाके मिसाइल हमलों की चपेट में आ गए हैं। इस संबंध में ज़ायोनी सरकार के रेडियो ने यह भी घोषणा की है कि उत्तरी कब्जे वाले फ़िलिस्तीन में अल-मुतला ज़ायोनी बस्तियों के क्षेत्र पर दो मिसाइलें भी दागी गईं।
इससे पहले बुधवार को ज़ायोनी मीडिया ने बताया कि वेस्ट बैंक में एक कार की चपेट में आने से चार ज़ायोनी पुलिस अधिकारी घायल हो गए।
माहे रमज़ान के चौबीसवें दिन की दुआ (24)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللَّـهُمَّ اِنّي اَسْئَلُكَ فيهِ ما يُرْضيكَ، وَاَعُوذُبِكَ مِمّا يُؤْذيكَ، وَاَسْئَلُكَ التَّوْفيقَ فيهِ لاَِنْ اُطيعَكَ وَلا اَعْصِيَكَ، يا جَوادَ السّآئِلينَ...
अल्लाह हुम्मा इन्नी अस अलुका फ़ीहि मा युरज़ीक, व अऊज़ु बेका मिम्मा यूज़ीक, व अस अलुका अत्तौफ़ीक़ा फ़ीहि ले अन उतीअका व ला आसियक, या जवादस्साएलीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने में तेरे दर पर हर उस चीज़ का सवाली हूं जो तुझे ख़ूशनूद करती है, और हर उस चीज़ से तेरी पनाह का तलबगार हूं जो तुझे नाराज़ करती है, और तुझसे तौफ़ीक़ का तलबगार हूं कि मैं तेरा इताअत गुज़ार रहूं, और तेरी नाफ़रमानी न करूं, ऐ सवालियों को बहुत ज़ियादा अता करने वाले...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
ईश्वरीय आतिथ्य- 24
एकता की रक्षा और फूट व विवाद से दूरी, पैगम्बरे इस्लाम , इमामों और धर्म के मार्गदर्शकों की शैली रही है।
कुरआने मजीद ने भी अपने विभिन्न आयतों में मुसलमानों को एकजुटता व एकता का आदेश दिया है और कहा है कि फूट व मतभेद से दूर रहो। सूरए आले इमरान की आयत नंबर 64 में कहा गया है कि अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और फूट व मतभेद से दूर रहो।
क़ुरआने मजीद में कई आयतें ऐसी हैं जिनमें मुसलमानों के बीच एकता पर बल दिया गया है। शिया सुन्नी सभी समीक्षकों का यह मानना है कि कुरआने मजीद रमज़ान के महीने में और " शबे क़द्र " कही जाने वाली रात में उतरा है। किसी भी मुसलमान को इस बात में संदेह नहीं है कि क़ुरआने मजीद विश्व के सभी लोगों के लिए मार्गदर्शन का साधन है। सूरए बक़रह की आयत नंबर 185 में कहा गया है कि, रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरआन उतरा है, लोगों के मार्गदर्शन के लिए और सत्य व असत्य में फर्क के लिए । कुरआने मजीद की इस आयत के दृष्टिगत यह पूरी तरह से साबित होता है कि यह किताब पूरी दुनिया के मार्गदर्शन के लिए है अर्थात न केवल यह कि क़ुरआने मजीद एकता का कारण है बल्कि यह इस्लामी एकता के मार्ग भी सुझाता है।
क़ुरआने मजीद,पैग़म्बरे इस्लाम को एकता व भाईचारे का आह्वान करने वाला बताता है और उनके शिष्टाचार की सराहना करता है। पैगम्बरे इस्लाम की जीवनी एकता के लिए किये जाने वाले प्रयासों से भरी है। पैगम्बरे इस्लाम ने पलायन या हिजरत के पहले साल ही, अपने साथ पलायन करने वाले मुहाजिरों और मदीना के स्थाननीय लोगों अन्सार के मध्य " वधुत्व बंधन " बांधा और उन्हें एक दूसरे का भाई बनाया । यह दोनों लोग, जाति, वंश, वातावरण और आर्थिक स्थिति की दृष्टि से एक दूसरे से बहुत भिन्न थे। इसी लिए जब मक्का से पैगम्बरे इस्लाम के साथ पलायन करने वाले मदीना नगर पहुंचे और वहां रहने लगे तो यह चिंता होने लगी कि कहीं उनमें आपस में फूट न पड़ जाए इसी लिए पैगम्बरे इस्लाम ने मदीने के स्थानीय लोगों और मक्का तथा अन्य नगरों से मुसलमान होकर मदीना पहुंचने वालों के बीच यह रिश्ता बनाया जिसका उन सब ने अंत तक निर्वाह भी किया। इसके साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने इस काम से यह स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम में एकता का क्या महत्व है।
मुसलमानों को पैगम्बरे इस्लाम का अनुसरण और क़ुरआने मजीद की शिक्षाओं का पालन करते हुए हमेशा, संयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए और फूट व मतभेद से दूर रहना चाहिए। कुरआने मजीद में एकता पैदा करने वाला एक अन्य साधन, रमज़ान का महीना है । रमज़ान को पूरी दुनिया के मुसलमानों के बीच एकता का एक मजबूत प्रतीक समझना चाहिए। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने का जो संस्कार है उसमें विभिन्न मतों और विचारों के साथ पूरी दुनिया के सभी मुसलमान, एक समान नज़र आते हैं । इस महीने में दुनिया के विभिन्न देशों में रहने वाले मुसलमानों के रीति व रिवाज दर्शनीय होते हैं और यदि उन पर ध्यान दिया जाए तो सब के काम एक समान नज़र आते हैं । दुनिया के सारे मुसलमान, रमज़ान में, भोर में एक निर्धारित समय पर " सहरी" खाने के लिए उठते हैं, नमाज़ पढ़ते, क़ुरआन पढ़ते हैं । मुसलमान, सुबह की अज़ान से लेकर मगरिब की अज़ान तक रोज़ा रखते हैं और भूखों को खाना खिलाने, अनाथों का ध्यान रखने और निर्धनों की मदद जैसे भले काम करके, ईश्वर को स्वंय से प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं।
रमज़ान का महीना ऐसा महीना है जिसमें मुसलमान एक प्रकार से आंतरिक रूप से बदलाव का आभास करते हैं और इस बदलाव के बाद उनके जीवन में सकारात्मकता अधिक हो जाती है। इस मुबारक महीने में पूरी दुनिया के मुसलमान एक राष्ट्र में बदल जाते हैं और एक साथ ईश्वर की उपासना करते हैं। विशेष कर " शबे क़द्र" कही जाने वाली रातों में ईश्वर के समक्ष अपने पापों के लिए उससे क्षमा मांगते हैं। जिस तरह से काबा, पूरी दुनिया के मुसलमानों को एकत्रित करता है उसी तरह रमज़ान का महीना भी मुसलमानों को एक दस्तरखान पर बिठाता है और उनके भीतर एकजुटता का आभास मज़बूत करता है। दुनिया भर के मुसलमानों को " शबे क़द्र" की महानता के बारे में पता है। यह पवित्र रमज़ान की विशेष रातें हैं जिन्हें शबे क़द्र कहा जाता है यह रातें ईश्वर की कृपा का चरम बिन्दु समझी जाती हैं। इन रातों में ईश्वर अपने बंदों पर विशेष कृपा करता है । इन रातों की महानता का स्वंय ईश्वर ने क़द्र नामक सूरे में गुणगान करते हुए कहा है, "तुम क्या जानो शबे क़द्र क्या है।" इसके बाद ईश्वर ने इस रात को हज़ार महीनों से बेहतर बताया है और इस रात के शुरु होने से सुबह सवेरे तक की समयावधि को शांति का समय कहा है।
वास्तव में ईश्वर ने शबे क़द्र के ज़रिए बंदों को यह अवसर दिया है कि वे अपने सद्कर्मों को परिपूर्ण करे। यह रातें 21 से 23 रमज़ान के बीच में हैं शिया मुसलमानों का यही मानना है किंतु सुन्नी मुसलमानों के अनुसार 27 रमज़ान की रात भी शबे क़द्र हो सकती है। यही वजह है कि शबे कद्र में उपासना के पुण्य के लिए मुसलमान, 21 , 23 और 27 रमज़ान की रातों को विशेष प्रकार से उपासना करते हैं।
रमज़ान में एकता प्रतीक एक अन्य उपासना " एतेकाफ़" है। कुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर 125 में कहा गया है कि हम ने इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ करने वालों, रहने वालों, रुक और सजदा करने वालों के लिए पवित्र करो। सभी इस्लामी मतों का कहना है कि मस्जिद में विशेष दिनों में रहना, जिसे " एतेकाफ़" कहा जाता है , एक पुण्य वाला कर्म है । " एतेकाफ़" दो भागों पर आधारित होता है, एक मस्जिद में ठहरना और रोज़ा रखना। हालांकि यह उपासना, व्यक्तिगत रूप से और अकेले होती है लेकिन पैगम्बरे इस्लाम की शैली के अनुसार एक सामूहिक रूप से भी अंजाम दिया जा सकता है और इसी लिए बहुत से इस्लामी देशों में एक उपासना सामूहिक रूप से अंजाम दी जाती है। निश्चित रूप से जब एक मुसलमान , रोजा रख कर तीन दिनों तक मस्जिद में रहता है और ईश्वर की उपासना करता है तो इसके उसके मन व मस्तिष्क पर बड़े सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। इसके साथ ही चूंकि वह यह काम सामूहिक रूप से करता है इस लिए उसमें सामाजिक विषयों और समाज में अपने दूसरों भाइयों की समस्याओं के निपटारे में रूचि पैदा होती है।
इस्लाम ने , मुसलमानों को एक दूसरे का भाई बताया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि लोगों को एक दूसरे पर वरीयता, उनकी धर्मपराणता के आधार पर ही दी जाएगी तो फिर यह इस्लाम धर्म अपने अनुयाइयों से यह आशा रखता है कि एकजुटता के लिए आगे बढ़ेंगे और इस्लामी देश एक दूसरे के साथ सहयोग करेंगे लेकिन इस्लामी जगत के बहुत से मुद्दों विशेषकर फिलिस्तीनी मुद्दे पर यदि गौर किया जाए तो यह कटु वास्तविकता स्पष्ट होती है कि बहुत से ताकतवर इस्लामी देश, इस मुद्दे के बारे में एकजुटता के साथ रुख अपनाने की क्षमता नहीं रखते और इस्लामी हितों के खिलाफ, इस्राईल व अमरीका के साथ संबंध बढ़ा रहे हैं। आज इस्लामी जगत की सब से बड़ी समस्या, आपसी झगड़े हैं जो हर मुसलमान के लिए दुख की बात है। यदि हम रमज़ान के महीने और उसकी विभूतियों पर चिंतन करें तो हमें यह महीना, इस्लामी जगत की समस्याओं के समाधान का अच्छ अवसर नज़र आएगा और निश्चित रूप से इस्लामी संयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान देकर, मुसलमान महानता की चोटियों तक पहुंच सकते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं कि अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत नींद से जागे और इस्लाम को एकमात्र ईश्वरीय मार्ग के रूप में चुन ले और उस पर मज़बूती के साथ क़दम बढ़ाए। अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत, एकजुटता की रक्षा करे और संयुक्त दुश्मन के सामने, जिससे सभी इस्लामी संगठनों ने नुक़सान उठाया है अर्थात साम्राज्य और ज़ायोनिज्म के ख़िलाफ़ एकजुटता के साथ डट जाएं, एक नारा लगाए , एक प्रचार करें और एक ही राह पर चलें। इन्शाअल्लाह उन्हें ईश्वर की कृपा का पात्र बनाया जाएगा और ईश्वरीय परंपराओं और नियमों के अनुसार उनकी मदद भी होगी और वह आगे बढ़ेंगे।
बंदगी की बहार- 24
हम रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दशक में हैं।
अध्यात्म व नैतिकता से परिपूर्ण यह महीना तीव्र गति से गुज़र जाता है। विशेष कर इसके अंतिम दस दिन, जिनमें शबे क़द्र भी है, इस प्रकार से गुज़र जाते हैं कि आभास तक नहीं होता। रमज़ान के महीने में हम अपने पूरे अस्तित्व से ईमान की मिठास को महसूस कर सकते हैं। यह महीना ईश्वर के गुणगान और रातों को जाग कर उसकी उपासना और दुआ का महीना है। इस पवित्र महीने के हर क्षण से कृपालु ईश्वर से प्रार्थना और अपने पापों के प्रायश्चित के लिए लाभ उठाना चाहिए। यह महीना ईश्वर की अनंत विभूतियों और अनुकंपाओं के साथ आता है और पापियों की तौबा व प्रायश्चित के साथ चला जाता है। यही कारण है कि रोज़ेदार व्यक्ति, ईश्वर के साथ अपने आध्यात्मिक जुड़ाव के चलते अपनी आत्मा और अंतरात्मा में गहरे परिवर्तनों का आभास करता है।
मनुष्य अच्छे व सकारात्मक व्यवहार और उचित परिस्थितियों के माध्यम से सफलता का मार्ग समतल कर सकता है। ईश्वर के सच्चे दास, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं जिसमें से एक, दूसरों के साथ विनम्रता है। वे बहुत विनम्र स्वभाव के होते हैं और अगर कोई उनकी बुराई करता भी है तो उसके उत्तर में वैसा ही व्यवहार नहीं करते बल्कि विनम्र रहते हैं। इस तरह उनके अच्छे व्यक्तित्व और नैतिक विशेषताओं का प्रदर्शन होता है। क़ुरआन मजीद के सूरए फ़ुरक़ान की कुछ आयतों में ईश्वर के अच्छे दासों की विशेषताओं का इस प्रकार उल्लेख किया गया है। ईश्वर के दास वे हैं जो बिना इतराए हुए सम्मानजनक ढंग से ज़मीन पर चलते हैं। और जब अज्ञानी लोग उन्हें संबोधित करते हैं तो वे उनसे अच्छी बात करते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अपने ईश्वर के सज्दों और उपासना में पूरी पूरी रात बिता देते हैं।
अगर मनुष्य सृष्टि और उसमें पाई जाने वाली वस्तुओं को ईश्वर की रचनाएं और उसकी शक्ति का प्रदर्शन माने तो फिर वह दूसरों के समक्ष घमंड नहीं करेगा बल्कि वह उनके साथ प्रेम से पेश आएगा। विनम्र व्यक्ति इस सोच के साथ दूसरों से मिलता है कि अगर उसमें कोई गुण है भी तो वह ईश्वर की कृपा है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि तीन बातें प्रेम का कारण हैं। क्षमा याचना, विनम्रता और धर्म का अनुसरण।
कभी कभी ऐसा भी होता है कि विनम्रता या अच्छे व्यवहार से अपराधी या पथभ्रष्ठ लोग सही मार्ग पर आ जाते हैं और उन्हें अपनी ग़लतियों का आभास हो जाता है। इसके बाद वे अच्छे कामों और सच्चाई की ओर उन्मुख हो जाते हैं। यहीं यह बात भी उल्लेखनीय है कि विनम्रता और अपने आपको नीचा दिखाने में बहुत अंतर है। इस्लामी शिक्षाओं और मनोविज्ञान के अनुसार अपने आपको नीचा दिखाना मनुष्य के व्यक्तित्व की कमज़ोरी का परिचायक है कि जो प्रशंसनीय नहीं है जबकि विनम्रता का अर्थात दूसरों के समक्ष अपनी बड़ाई न करना है जो सराहनीय है। उदाहरण स्वरूप अगर कोई धनवान व्यक्ति निर्धन लोगों के बीच जाए तो यह प्रकट न करे कि वह धनवान है। या अगर कोई ज्ञानी, आम लोगों के बीच हो तो उन पर अपने ज्ञान का रौब झाड़ने की कोशिश न करे।
घमंड के संबंध में एक घटना आपके सामने पेश कर रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने साथियों के साथ बैठे हुए थे और उनके साथियों ने उन्हें इस प्रकार घेरे में ले रखा था मानो अंगूठी के बीच में नग हो। इस्लामी परंपरा के अनुसार जब कोई किसी बैठक या गोष्ठी में पहुंचे तो उसे जो ख़ाली स्थान दिखाई पड़े वहीं बैठ जाए चाहे वह जिस पद पर भी आसीन हो। एक ग़रीब मुसलमान, जिसके बाल बिखरे हुए और कपड़े फटे-पुराने थे, वहां आया और उसने इधर-उधर देखा और जो जगह ख़ाली दिखाई दी, वहीं पर बैठ गया। संयोग से वहीं पर एक धनवान व्यक्ति बैठा हुआ था। उस व्यक्ति ने अपने कपड़े समेटे और अपने स्थान से थोड़ा दूर खिसक गया। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने, जो बड़े ध्यान से यह बात देख रहे थे उस धनवान व्यक्ति की ओर मुख करके कहाः क्या तुम्हें यह भय हुआ कि उसकी दरिद्रता तुम से चिपक जाएगी? उसने कहाः नहीं, हे ईश्वर के दूत! पैग़म्बर ने फिर पूछाः क्या तुम्हें इस बात का डर लगा कि तुम्हारे धन का एक भाग उसके पास चला जाएगा? उस व्यक्ति ने उत्तर दियाः नहीं हे ईश्वर के पैग़म्बर। उन्होंने पूछाः क्या तुम इस बात से डर गए कि तुम्हारे कपड़े मैले हो जाएं? उसने कहाः नहीं या रसूल्लल्लाह। पैग़म्बर ने उससे पूछाः तो फिर तुम क्यों उसके पास से हट गए? वह धनवान व्यक्ति बहुत अधिक लज्जित हुआ। उसने कहा कि मैं स्वीकार करता हूं कि मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। अब मैं इस ग़लती की भरपाई और अपने पाप के प्रायश्चित के लिए अपनी संपत्ति का आधा भाग अपने इस मुसलमान बंधु को देने के लिए तैयार हूं जिसके संबंध में मैंने यह ग़लती की है किंतु उसी समय वह दरिद्र व्यक्ति बोल पड़ा कि मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं। लोगों ने आश्चर्य से इसका कारण पूछा। उसने कहा चूंकि मुझे भय है कि किसी दिन मैं भी घमंडी हो जाऊं और अपने मुसलमान भाई के साथ वैसा ही व्यवहार करूं जैसा आज इसने मेरे साथ किया है।
रमज़ान का पवित्र महीना हमें हर प्रकार के नैतिक गुण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। इन्हीं में से एक दूसरों की बुराइयों पर पर्दा डालना है। इस्लाम ने इस बात पर अत्यधिक बल दिया है कि कोई भी किसी की बुराइयों और कमियों को दूसरों से बयान न करे। हर व्यक्ति चाहता है कि उसमें जो कमियां और अवगुण हैं, उनसे दूसरे अवगत न हों। तो जब उसे भी दूसरों की कमियों का ज्ञान हो जाए तो उसे छिपाए रखना चाहिए। इस संबंध में हदीसों में कहा गया है कि ईश्वर हर किसी की हर बात से पूरी तरह अवगत है लेकिन वह उन बातों को दूसरों के सामने प्रकट करके अपमानित नहीं करता बल्कि लोगों की बुराइयों पर पर्दा डाले रखता है कि शायद वे सुधर जाएं और उन बुराइयों से तौबा करे लें।
कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के काल में बनी इस्राईल में ज़बरदस्त अकाल पड़ा। लोग उनके पास आए और कहने लगे कि आप नमाज़ पढ़ कर ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थन कीजिए कि वर्षा आ जाए। वे उठे और बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्रार्थना के लिए बाहर निकले। फिर वे एक स्थान पर पहुंचे और प्रार्थना की किंतु उन्होंने जितनी भी दुआ की, बारिश नहीं आई। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! वर्षा क्यों नहीं आ रही है, क्या तेरे निकट मेरा जो स्थान था वह अब नहीं रहा? ईश्वर की ओर से कहा गयाः नहीं मूसा! ऐसा नहीं है बल्कि तुम लोगों के बीच एक ऐसा व्यक्ति है जो चालीस वर्षों से मेरी अवज्ञा करते हुए पाप कर रहा है, उससे कहो कि भीड़ से अलग हो जाए तो मैं तुरंत वर्षा भेज दूंगा। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ऊंची आवाज़ से कहा, जो व्यक्ति चालीस वर्षों से ईश्वर की अवज्ञा कर रहा है, वह उठ कर हमारे बीच से निकल जाए क्योंकि उसी के कारण ईश्वर ने अपनी दया के द्वार बंद कर दिए हैं और वर्षा नहीं भेज रहा है। उस पापी व्यक्ति ने इधर-उधर देखा, कोई भी भीड़ में से नहीं उठा, वह समझ गया कि उसे ही लोगों के बीच से उठ कर जाना होगा। उसने अपने आपसे कहा कि क्या करूं, यदि मैं उठ कर जाता हूं तो सभी लोग मुझे देख लेंगे और मैं अपमानित हो जाऊंगा और यदि नहीं जाता हूं तो ईश्वर बारिश नहीं भेजेगा। यह सोचते सोचते उसका दिल भर आया और उसने सच्चे मन से तौबा की और अपने किए पर पछताने लगा। फिर उसने आकाश की ओर देखा और मन ही मन कहाः प्रभुवर! इतने सारे लोगों के बीच मुझे अपमानित होने से बचा ले। कुछ ही क्षणों के बाद बादल उमड़ आए और ऐसी बारिश हुई कि हर स्थान पर जल-थल हो गया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर से कहाः प्रभुवर! कोई भी उठ कर हमारे बीच से नहीं गया तो फिर किस प्रकार तूने वर्षा भेज दी? ईश्वर की ओर से कहा गयाः मैंने वर्षा उस व्यक्ति के कारण भेजी है जिसे मैंने भीड़ से अलग होने के लिए कहा था किंतु उसने सच्चे मन से तौबा कर ली है। हज़रत मूसा ने कहा कि प्रभुवर! मुझे उस व्यक्ति के दर्शन करा दे। ईश्वर ने कहाः हे मूसा! जब वह पाप कर रहा था तब तो मैंने उसे अपमानित नहीं किया तो अब जब वह तौबा कर चुका है तो मैं उसे अपमानित कर दूं?
इस पवित्र महीने की एक अहम विशेषता पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम पर क़ुरआने मजीद का नाज़िल होना है और इसी लिए क़ुरआने मजीद को रमज़ान के महीने की आत्मा कहा जाता है जिसने इसकी महानता में चार चांद लगा दिए हैं। यह आसमानी किताब लोक-परलोक में मनुष्य के कल्याण को सुनिश्चित बनाती है और जीवन के हर चरण में मनुष्य का मार्गदर्शन करती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस ईश्वरीय किताब के महत्व के बारे में कहते हैं। दिलों का बसंत और ज्ञान का सोता, क़ुरआन है और दिलों के लिए क़ुरआन के अलावा कोई प्रकाश नहीं है। क़ुरआने मजीद और रमज़ान के पवित्र महीने के अटूट रिश्ते के कारण ईरान में इस महीने में जगह जगह क़ुरआन की प्रदर्शनी लगाई जाती है।
इन्हीं में से एक क़ुरआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी है जो हर साल तेहरान में आयोजित होती है। इस प्रदर्शनी में संसार के अनेक देश भाग लेते हैं। इस बार की प्रदर्शनी 11 से 25 मई तक आयोजित हुई जिसमें तुर्की, यमन, भारत, इराक़, ओमान, इंडोनेशिया, ट्यूनीशिया, फ़िलिस्तीन, अफ़ग़ानिस्तान और रूस जैसे देशों ने भाग लिया। प्रदर्शनी में ईरान की 18 सरकारी संस्थाएं, 24 जन संस्थाएं, विश्वविद्यालयों से संबंधित 18 संस्थाएं, धार्मिक शिक्षा केंद्रों की 8 संस्थाएं और प्रांतों की 12 संस्थाएं शामिल थीं। यह प्रदर्शनी 38 हज़ार वर्ग मीटर के भूभाग पर लगाई गई और शाम पांच बजे से रात 12 बजे तक लोग इसका निरीक्षण कर सकते थे।
इस प्रदर्शनी में भाग लेने वाले आयरलैंड के अहमद जोन्स का, जिन्होंने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया है, कहना है कि उनका जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ। वे दस वर्ष की आयु में घूमने के लिए ट्यूनीशिया गए और संयोग से उनकी यह यात्रा रमज़ान के महीने में हुई थी। वे दो हफ़्ते वहां रहे और इस महीने की आध्यात्मिकता से बहुत प्रभावित हुए। वे कहते हैं कि इसके बाद मैं अपने एक इराक़ी मित्र के माध्यम से इस्लाम से परिचित हुआ और क़ुरआने मजीद पढ़ कर मुझे एक अभूतपूर्व अनुभव हुआ। इसने मेरे अंदर बहुत परिवर्तन पैदा किया। इसके बाद मुझे उन सवालों के जवाब भी मिलने लगे जो काफ़ी समय से मेरे मन में थे, जैसे कि जीवन का लक्ष्य क्या है? सामाजिक संबंधों का सही स्वरूप क्या है? और मनुष्य की ज़िम्मेदारियां क्या हैं? इन सवालों के क़ुरआने मजीद से मुझे जो जवाब मिले वह बहुत सरल और समझ में आने वाले थे। मैं ईश्वर का आभार प्रकट करता हूं कि उसने मुझे सही रास्ता दिखाया और इस्लाम स्वीकार करने का सामर्थ्य प्रदान किया।
फ़िलिस्तीन, फ़िलिस्तीनियों का है
फ़िलिस्तीन, फ़िलिस्तीनियों का है और उन्हीं के इरादे से संचालित होना चाहिए। फ़िलिस्तीन की सभी जातियों और सभी धर्मों के मानने वालों के रिफ़्रेंडम का प्रस्ताव, जिसे हमने लगभग 20 साल पहले पेश किया है, वह एकमात्र नतीजा है जो फ़िलिस्तीन की आज और कल की चुनौतियों से सामने आना चाहिए। यह प्रस्ताव दिखाता है कि यहूदी विरोध का दावा, जिसका पश्चिम वाले लगातार ढिंढोरा पीटते रहते हैं, पूरी तरह निराधार है। इस प्रस्ताव के मुताबिक़ यहूदी, ईसाई और मुसलमान फ़िलिस्तीनी एक दूसरे के साथ एक रिफ़्रेंडम में हिस्सा लेंगे और फ़िलिस्तीनी देश की राजनैतिक व्यवस्था का निर्धारण करेंगे। जिस चीज़ को निश्चित रूप से जाना चाहिए वह ज़ायोनी व्यवस्था है और ज़ायोनिज़्म ख़ुद, यहूदी धर्म में एक ग़लत उपज है और पूरी तरह उस धर्म से अलग है।
फ़िलिस्तीन समस्या का इलाज क्या है? इलाज, साहसिक प्रतिरोध और डट कर मुक़ाबला है। फ़िलिस्तीनी राष्ट्र, फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं और फ़िलिस्तीनी संगठनों को अपने बलिदानी जेहाद के ज़रिए ज़ायोनी दुश्मन और अमरीका को धूल चटा देनी चाहिए। उसका रास्ता सिर्फ़ यह है और पूरे इस्लामी जगत को भी इनकी मदद करनी चाहिए, सभी मुस्लिम राष्ट्रों को फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करना चाहिए, उनका साथ देना चाहिए, यह इलाज है। अलबत्ता मेरा मानना है कि फ़िलिस्तीन के सशस्त्र संगठन डट जाएंगे, प्रतिरोध जारी रखेंगे, रास्ता, प्रतिरोध है।...
अलबत्ता फ़िलिस्तीन समस्या का बुनियादी और ठोस हल वही है जो हमने कुछ साल पहले बताया था और उसे अहम अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों में दर्ज भी कराया गया है, फ़िलिस्तीन के सभी मूल निवासियों के बीच, न उन लोगों के बीच जो किसी देश से आ कर फ़िलिस्तीन के इलाक़े में बस गए हैं, बल्कि जो लोग फ़िलिस्तीनी हैं, चाहे किसी भी धर्म के हों, मुसलमान हों, ईसाई हों या यहूदी हों, क्योंकि कुछ फ़िलिस्तीनी मुसलमान हैं, कुछ ईसाई हैं, कुछ यहूदी हैं, इन सबके बीच रिफ़्रेंडम कराया जाए और उन्हें स्वीकार्य व्यवस्था सत्ता में आए और वही पूरे फ़िलिस्तीन पर शासन करे, केवल उस इलाक़े पर नहीं जो उन्हीं के शब्दों में अवैध अधिकृत इलाक़ा है, फ़िलिस्तीन के एक भाग को अवैध अधिकृत इलाक़ा कहते हैं, पूरे फ़िलिस्तीन में एक सरकार जनता के सार्वजनिक वोटों से सत्ता में आए जो फ़िलिस्तीन के मामलों के बारे में फ़ैसला करे। नेतनयाहू जैसे लोगों के बारे में भी वही लोग फ़ैसला करें, अधिकार उनके हाथ में है। यह एकमात्र रास्ता है जो फ़िलिस्तीन में शांति और फ़िलिस्तीन समस्या के हल के बारे में पाया जाता है।