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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ भारत में विरोध प्रदर्शन जारी है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ आज पंजाब में आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता एक दिन की भूख हड़ताल पर चले गए हैं.

पंजाब भर में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता जिला मुख्यालयों के पास भूख हड़ताल पर बैठे हैं. रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पंजाब राज्य के आम आदमी पार्टी विधायक भी एक दिन की सांकेतिक भूख हड़ताल पर चले गए हैं, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मानसिंह भी शामिल हुए हैं।

बता दें कि पिछले रविवार को इंडिया अलायंस ने दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 31 मार्च को दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ एक महारैली का भी आयोजन किया था.

याद रहे कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भारत के प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिन्हें दिल्ली की एक विशेष अदालत ने 15 अप्रैल तक जेल भेज दिया है। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद देशभर में बीजेपी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया.

हमास के प्रमुख इस्माइल हानियेह ने इस बात पर जोर दिया है कि जो भी बातचीत होगी उसमें गाजा में स्थायी युद्धविराम और कब्जे वाले ज़ायोनी बलों की पूर्ण वापसी शामिल होनी चाहिए।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस्माइल हनियेह ने इस बात पर जोर दिया है कि बातचीत में गाजा में स्थायी युद्धविराम और यहां से कब्जा करने वाले सैनिकों की पूर्ण वापसी शामिल होनी चाहिए।

इस रिपोर्ट के मुताबिक कल इस्माइल हानियेह और मध्यस्थों के बीच काहिरा वार्ता को लेकर कई बार टेलीफोन पर बातचीत हुई.

बताया गया है कि इस्माइल हनियेह ने टेलीफोन पर बातचीत में मध्यस्थों से आग्रह किया है कि जो भी बातचीत हो, उसमें स्थायी युद्धविराम, गाजा से कब्जे वाले ज़ायोनी सैनिकों की पूर्ण वापसी और फिलिस्तीनी शरणार्थियों की उनके क्षेत्रों में बिना शर्त वापसी शामिल होनी चाहिए। मुझे शामिल होना चाहिए.

गौरतलब है कि काहिरा में हमास और ज़ायोनी सरकार के बीच संघर्ष विराम और कैदियों की अदला-बदली को लेकर मार्च में बातचीत शुरू हुई थी, जो पिछले गुरुवार को बिना किसी नतीजे के ख़त्म हो गई। फ़िलिस्तीनी स्थिरीकरण मोर्चा के नेताओं का कहना है कि ज़ायोनी सरकार ने अब तक काहिरा वार्ता में दिखाया है कि वह युद्ध को रोकना नहीं चाहती है और ज़ायोनी सरकार फ़िलिस्तीनियों को कोई सुविधा दिए बिना अपने युद्धबंदियों को मुक्त करने का प्रयास कर रही है जैसे-जैसे वार्ता रुकती रही, हमास प्रतिनिधिमंडल ने अप्रत्यक्ष वार्ता छोड़ दी और परामर्श के लिए फ़िलिस्तीन लौट आया।

लाखों नमाज़ियों ने इज़राइल द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद शबे क़द्र (रमज़ान की सत्ताईसवीं )को मस्जिद ए अलअक्सा में नमाज़ अदा की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार कब्ज़ा करने वाले ज़ायोनीवादियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, लाखों रोज़ेदारों ने शबे क़द्र (रमजान की सत्ताईसवीं) को  अलअक्सा मस्जिद में मग़रिबिन और तरावीह की नमाज़ अदा की।

कुद्स के बंदोबस्ती मंत्रालय ने घोषणा की कि 200,000 रोज़ेदारों ने अलअक्सा मस्जिद में मगरबीन और तरावीह की नमाज़ अदा की।

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सेना ने अलअक्सा ए मस्जिद के प्रवेश द्वारों पर उपासकों पर हमला किया और उन्हें मारा पिटा,नमाज़ के बाद नमाज़ियों और मुअतक्फीन ने गाज़ा की हिमायत में नारे लगाए

ग़ज़्ज़ा युद्ध के 180 से अधिक दिन गुज़र जाने के बावजूद हिब्रू भाषा के संचार माध्यमों में ज़ायोनी शासन के मंत्रीमण्डल के क्रियाकलापों की आलोचना बढ़ती जा रही है।

ज़ायोनी समाचारपत्र हआरेत्ज़ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए छह महीनों का समय बीतने के बावजूद इस्राईल की हालत, दिन-प्रतिदिन ख़राब होती जा रही है।

इस रिपोर्ट में आया है कि हमको युद्ध रोक देना चाहिए और हमास में नियंत्रण से अपने बंदियों को वापस उनके घरों को लाना चाहिए।  समाचारपत्र हआरेत्ज़ के अनुसार ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतनयाहू को अपने पद से हट जाना चाहिए।

ज़ायोनी संचार माध्यमों में इस बात पर विशेष रूप से बल दिया गया है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए आधा साल गुज़र चुका है किंतु अबतक निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सके हैं।  इन 6 महीनों के दौरान न तो कोई हमारा बंधक वापस अपने घर पर आया है और न ही हमास को पराजित किया जा सका है।

हआरेत्ज़ की रिपोर्ट बताती है कि इस्राईल को अपने क्रियाकलापों पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि निर्धारित लक्ष्यों तक पहुंचना बहुत ही कठिन दिखाई दे रहा है।  ज़ायोनी शासन के लिए ग़ज़्ज़ा युद्ध में उसके रिज़र्व फोर्स के कम से कम 1500 सैनिकों के हताहत होने हज़ारों के घायल होने की बात बताती है कि इस्राईलियों को इस युद्ध का बड़ा बदला देना होगा।

 

हिब्रू भाषा के संचार माध्यमों के अनुसार इस्राईल के मंत्रीमण्डल की विफलता केवल ग़ज़्ज़ा तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसका उत्तरी मोर्चा भी उसके लिए मुसीबत बना हुआ है क्योंकि वहां पर इस्राईलियों की वापसी के लिए इस क्षेत्र से हिज़बुल्ला को पीछे हटाना लगभग असंभव दिखाई दे रहा है।

यह संचार माध्यम इस बात की पुष्टि करते हैं कि सात अक्तूबर से लेकर अबतक इस्राईल की हालत हर रोज़ ख़राब होती जा रह है।  हम इस्राईल के भीतर उसकी कूटनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबन्धी समस्याओं में अभूतपूर्व वृद्धि के साक्षी हैं।

ग़ज़्ज़ा युद्ध के छह महीने गुज़रने के साथ ही इस्राईल, अपनी वैधता खो चुका है।  इस समय वह बहुत ही अलग-थलग पड़ चुका है।  इसके अधिकारियों को इस समय प्रतिबंधों और क़ानूनी कार्यवाहियों का ख़तरनाक ढंग से सामना है।

इस बीच इस्राईल ने वार्ता प्रक्रिया की तुलना में सैन्य दबाव डालने को वरीयता यह कहते हुए दे रखी है कि जब-जब हमास पर दबाव बढ़ा है, उसकी रणनीति लचीली हो जाती है।  हालांकि ज़ायोनियों की यह स्ट्रैटेजी भी विफल सिद्ध हुई।  ग़ज़्ज़ा युद्ध के आरंभ से अबतक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कम से कम 604 इस्राईली सैनिक मारे जा चुके हैं।

इससे पहले अवैध ज़ायोनी शासन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री एहूद ओलमर्ट ने ग़ज़्ज़ा युद्ध के तत्काल रोके जाने और इस्राईली बंदियों की वापसी पर बल दिया था।  उन्होंने कहा था कि इस स्थति में इस्राईल की उपलब्धि, युद्ध को जारी रखने की तुलना में अधिक होती।ओलमर्ट का कहना है कि नेतनयाहू, स्वयं को मुक्ति दिलाने के लिए युद्ध को जारी रखे हुए है वह इस्राईली बंदियों की आज़ादी के लिए युद्ध नहीं कर रहा है। उनका कहना था कि इस युद्ध में नेतनयाहू की ओर से निर्धारित किये गए लक्ष्य, हासिल नहीं हो पाएंगे।

  ग़ज़्ज़ा युद्ध से संबन्धित ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार इस युद्ध में ज़ायोनियों के हमलों में अबतक 33000 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  ज़ायोनियों के हमलों से 75000 से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं।

याद रहे कि ब्रिटिश उपनिवेशवादा के षडयंत्र के अन्तर्गत सन 1917 में इस्राईल के गठन की योजना तैयार हो चुकी थी किंतु विश्व के अन्य देशों से फ़िलिस्तीन की भूमि की ओर यहूदियों के पलायन के बाद 1948 में अवैध ज़ायोनी शासन के गठन की घोषणा की गई।  उस समय से लेकर अबतक ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों की भूमि पर क़ब्ज़ा करने और उनके जातीय सफाए की कार्यवाहियां विभिन्न शैलियों में जारी हैं।

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

أللّهُمَّ ارْزُقني فيہ فَضْلَ لَيلَة القَدرِ وَصَيِّرْ اُمُوري فيہ مِنَ العُسرِ إلى اليُسرِ وَاقبَلْ مَعاذيري وَحُطَّ عَنِّي الذَّنب وَالوِزْرَ يا رَؤُفاً بِعِبادِہ الصّالحينَ.

अल्लाह हुम्मर ज़ुक्नी फ़ीहि फ़ज़्ला लैलतिल क़द्र, व सय्यिर उमूरी फ़ीहि मिनल उसरि इलल युस्र, वक़-बल मआज़ीरी व हुत्ता अन्नीज़ ज़न्ब, वल विज़रा या रउफ़न बे इबादिहिस्सालिहीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! इस महीने में मुझे शबे क़द्र की फ़ज़ीलत इनायत फ़रमा, और मेरे कामों को दुश्वारियों से आसानी की तरफ़ मोड़ दे, मेरे उज़्र (माफ़ी) को क़ुबूल फ़रमा, मुझ से हर गुनाह और हर बोझ को दूर कर दे, ऐ अपने नेक बन्दों पर मेहरबानी करने वाले.

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम,

रविवार, 07 अप्रैल 2024 17:58

ईश्वरीय आतिथ्य- 27

आप में से बहुत से रोज़े से होंगे।

आशा है आप पवित्र रमज़ान के आध्यात्मिक माहौल में अपने दिन अच्छी तरह गुज़ार रहे होंगे। ईश्वर आपकी उपासनाओं को स्वीकार करे। हम सब पवित्र रमज़ान के मूल्यवान समय की अहमियत को समझें और इससे ज़्यादा से ज़्यादा आध्यात्मिक लाभ उठाएं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान की अपनी विशेष प्रार्थना में ईश्वर से इस तरह वंदना करते हैंः "हे पालनहार! इस महीने में हमें रिश्तेदारों के साथ भलाई करने में हमें सफल बना और हम उनसे मुलाक़ात करे, पड़ोसियों के साथ दान दक्षिणा करें, अपनी धन संपत्ति को ज़कात देकर पाक करें और जो हम से दूर हो गए हैं उनसे मेल जोल क़ायम करें।"

रोज़ा रखने का एक फ़ायदा यह कि सभी इंसान चाहे अमीर हों या ग़रीब सब ईश्वर के सामने हाज़िर हों और अमीर लोग भी ग़रीबों व वंचितों की तरह भुख के दर्द को समझें तथा उनकी मदद करें। वास्तव में रोज़ा एक तरह से सामाजिक भागीदारी का प्रदर्शन है। अमीर लोग वंचितों को अपने यहां ईश्वरीय दस्तरख़ान पर दावत देते और उनसे मेलजोल क़ायम करते हैं।

एक दिन एक  व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की सेवा में हाज़िर हुआ और उसने कहाः "हे ईश्वरीय दूत! मैं अपने रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करता हूं और उनसे मेल जोल रखता हूं लेकिन वे मुझे सताते हैं। इसलिए मैंने फ़ैसला किया है कि उनसे मेल जोल छोड़ दूं।" यह सुनकर पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः "उस समय ईश्वर तुम्हें भी छोड़ देगा।"

यह सुनकर उस व्यक्ति ने पैग़म्बरे इस्लाम से सवाल किया कि मुझे क्या करना चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः "जो तुम्हें किसी चीज़ से मना करे तुम उसके साथ उदारता दिखाओ। जिसने तुमसे संबंध तोड़ लिए हैं उससे संबंध क़ायम करो और जिसने तुम पर अत्याचार किया है उसे भुला दो। जब ऐसा करोगे तब ईश्वर तुम्हारा मददगार होगा।"

वास्तव में जनसेवा और लोगों की ईश्वर की प्रसन्नता के लिए मदद करना सबसे बड़ी उपासनाओं में से एक है। इस मार्ग में सिर्फ़ पैसों व भौतिक संसाधनों से मदद सीमित नहीं है बल्कि इंसान किसी दूसरे इंसान की किसी मुश्किल को हल करे तो इसे भी भलाई में गिना जाता है, चाहे किसी मोमिन को ख़ुश करना और उसके मन से किसी तरह दुख को दूर करना हो।

हज़रत इमामा जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "जो व्यक्ति अपने मोमिन भाई के चेहरे से एक तिनका हटाए ईश्वर उसे दस पुन्य देता है और जो कोई किसी मोमिन बंदे के मुस्कुराने की वजह बने तो यह उसके लिए पुन्य गिना जाएगा।"             

पवित्र रमज़ान में ज़कात निकलाना और दान दक्षिणा करना ईश्वर का सामीण्य हासिल करने का एक अन्य साधन है। ज़कात ईश्वर का हक़ है कि जिसे मोमिन इंसान अपने धन से शरीआ क़ानून के अनुसार निकालता  है और निर्धनों को देता है। पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में ज़कात की अहमियत का उल्लेख मिलता है। जैसा कि मायदा नामक सूरे की आयत नंबर 12 में ईश्वर ने पापों की क्षमा और स्वर्ग में प्रवेश को ज़कात निकालने से सशर्त किया है। जैसा कि इस आयत में ईश्वर कह रहा हैः "हम तुम्हारे साथ हैं अगर नमाज़ क़ायम करो  और ज़कात अदा करो। मेरे दूतों पर ईमान लाओ, उनका साथ दो और मदद करो। ईश्वर को क़र्ज़ दो तो तुम्हारे पापों को क्षमा  कर दूंगा और तुम्हे स्वर्ग के ऐसे बाग़ों में दाख़िल करूंगा जिसके नीचे नदियां बहती हैं।"

पवित्र क़ुरआन में कई स्थान पर नमाज़  और ज़कात का एक साथ उल्लेख मिलता है जिससे पता चलता है कि नमाज़ ईश्वर के सामने सिर झुकाकर ख़ुद को तुच्छ ज़ाहिर करने के अर्थ में और ज़कात अपने व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में मौजूद कमियों की भरपायी करने के साथ साथ मुक्ति व कल्याण की गारंटी है। ईश्वर तौबा नामक सूरे की आयत नंबर 71वीं आयत में ज़कात देने वालों को अपनी कृपा का पात्र बनाना ख़ुद के लिए अनिवार्य क़रार दिया है। जैसा कि इस आयत में ईश्वर कह रहा है, “ईमान लाने वाले पुरुष व महिला एक दूसरे के मददगार हैं। एक दूसरे को अच्छाई का हुक्म देते और बुराई से रोकते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात अदा करते हैं, ईश्वर और उसके पैग़म्बर का आज्ञापालन करते हैं, जल्द ही ईश्वर उन्हें अपनी कृपा का पात्र बनाएगा। ईश्वर सर्वशक्तिमान व तत्वदर्शी है।”

ज़कात 9 चीज़ों पर निकलती है। गेहूं, जौ, ख़जूर, किशमिश, सोना, चांदी, ऊंट, गाय और भेड़ बकरी।

जो व्यक्ति इनमें से किसी एक चीज़ का उतनी मात्रा में स्वामी हो कि जिस पर ज़कात निकलती है तो उसे एक निश्चित मात्रा में ज़कात निकालनी होगी। वास्तव में ज़कात इस भाग को कहते हैं जो मोमिन बंदा अपनी धन संपत्ति में से निकालता और निर्धनों को देता है। यही वजह है कि ज़कात की अदायगी को धन संपत्ति के बढ़ने और मन व आत्मा के पाक होने का कारण बताया गया है।   

ज़कात की एक क़िस्म फ़ित्रा कहलाती है। यह ज़कात ईदुल फ़ित्र की रात निकाली जाती है और यह उन लोगों के लिए निकालना अनिवार्य है जो इसके निकालने में सक्षम हैं। इस ज़कात के तहत घर के अभिभावक पर ज़रूरी है कि वह घर के हर सदस्य की ओर से तीन किलो गेहूं, या तीन किलो चावल, या तीन किलो मकई, या रोटी और इनमें से किसी एक की क़ीमत निकाले और निर्धन व्यक्ति को दे दे। चूंकि यह ज़कात आम तौर पर खाद्य पदार्थ पर निकलती है इसलिए यह निर्धनों व वंचितों की खाद्य पदार्थ की ज़रूरत को पूरी करने में प्रभावी स्रोत बन सकती है। ईश्वर हर एक को अपनी विशेष कृपा का पात्र नहीं बनाता बल्कि उन मोमिन बंदों को अपनी विशेष कृपा का पात्र बनाता है जो ज़कात निकालते और ईश्वर से डरते हैं। पवित्र क़ुरआन की आराफ़ नामक सूरे की आयत नंबर 156 में ईश्वर कह रहा है, “मेरी कृपा सृष्टि की हर चीज़ को अपने घेरे में लिए है और जल्द ही इसे उन लोगों के लिए निर्धारित कर दूं जो सदाचारी हैं, ज़कात देते हैं और हमारी निशानियों पर आस्था रखते हैं।” इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, “ईश्वर के निकट सबसे पसंददीदा वह है जो सबसे ज़्यादा दानी है और सबसे दानी व्यक्ति वह है जो अपने माल की ज़कात अदा करे।”

पवित्र रमज़ान में इंसान को संपर्क का एक अहम अवसर अपने आस-पास और समाज के लोगों पर ध्यान से मिलता है। पवित्र रमज़ान में लोगों पर बल दिया गया है कि अपनी क्षमता भर अपनी धन संपत्ति में से कुछ ईश्वर के मार्ग में ख़र्च कर दिलों को एक दूसरे के निकट करें। पवित्र रमज़ान में वंचितों व ज़रूरतमंदों को इफ़्तारी देना मुसलमानों की एक सुंदर परंपरा है। इस्लाम में प्रेम व स्नेह को आधार की तरह अहमियत दी गयी है और बल दिया गया है कि इंसानों का आपस में एक दूसरे से संपर्क व संबंध सम्मान व घनिष्ठता पर आधारित हो। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम दूसरों के साथ अपने सामाजिक संबंध में सबसे ज़्यादा सम्मान व स्नेह का प्रदर्शन करते थे। स्पष्ट सी बात है जिस समाज में संबंध स्नेह व सम्मान पर आधारित होगा ऐसे समाज पर ईश्वर कृपा निरंतर बनी रहेगी। यही वजह है कि पवित्र रमज़ान में इफ़्तारी देने पर बहुत बल दिया गया है। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, “इफ़्तार के समय पुन्य करो। रोज़ेदारों को इफ़्तार की दावत दो चाहे कुछ खजूरों या पानी के एक घूंट भर ही क्यों न हो।”

पैग़म्बरे इस्लाम के इसी आदेश के मद्देनज़र इस्लामी गणतंत्र ईरान में जगह जगह मस्जिदों और रास्तों पर इफ़्तार की सुविधा रखी जाती है ताकि रोज़ेदार अपना रोज़ा खोल सकें। इस तरह ईमान की शुद्दता व स्नेह ज़ाहिर होता है और प्रेम व स्नेह सामाजिक व्यवहार में ख़ास तौर पर सामाजिक दृष्टि से अनिवार्य कर्मों में प्रकट होता है। यही वजह है कि नमाज़ी और उपासना करने वाले ज़्यादा दान दक्षिणा करते हैं। इसी तरह पवित्र रमज़ान में ज़रूरतमंदों और अनाथों को खाना खिलाने का अलग ही आनंद है। उम्मीद करते हैं कि हम सभी इस पवित्र महीने में दूसरों की ख़ास तौर पर अनाथों की मदद करना नहीं भूलेंगे क्योंकि अनाथों को दूसरों की तुलना में अधिक मदद की ज़रूरत होती है। 

 

 

रविवार, 07 अप्रैल 2024 17:56

बंदगी की बहार- 27

वित्र रमज़ान को ख़त्म होने में कुछ दिन बचे हैं। इस महीने के दिन दूसरे महीनों के दिन से बहुत भिन्न हैं।

यूं तो रमज़ान के दिन विदित ख़ुशियों से दूर नज़र आते हैं लेकिन इस महीने में भीतरी ख़ुशी हासिल होती है। वास्तव में हम सभी ने ईश्वरीय उपासना का अद्वितीय अनुभव हासिल किया। सुबह जल्दी उठ कर प्रार्थना करना, पवित्र क़ुरआन की तिलावत, पापों का प्रायश्चित, सहरी का दस्तरख़ान इत्यादि, इन सब बातों से मिलने वाले आनंद को शब्दों में बयान करना कठिन है। वास्तव में रमज़ान के इन दिनों और रातों में रोज़ेदार ईश्वर का मेहमान होता और किसी जश्न में बुलाए गए मेहमान की तरह जश्न के मीठे क्षणों का आनंद लेता है। ईश्वर से आशा है कि बाक़ी बचे हुए दिनों में वह हम सब पर अपनी कृपा की वर्षा करेगा।

ख़ुशी यूं तो चेहरे पर मुस्कुराहट, गहमा गहमी व हुल्लड़ के रूप में प्रकट होती है लेकिन उसका स्रोत भीतरी होता है। मनोविज्ञान की नज़र में इंसान के व्यवहार व भावना के पीछे उसके विचार होते हैं। चूंकि धर्म की बुनियाद इंसान के भीतर को सुधारना है, इसलिए धर्म इंसान की उत्तेजनाओं व जोश को शोधित करता है। एक संपूर्ण धर्म के रूप में इस्लाम एक ओर इंसान को अपने ज़ाहिर को साफ़ सुथरा रखने और शिष्ट व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है तो दूसरी ओर इंसान के भीतर के प्रशिक्षण के लिए उसे एकेश्वरवाद, अपने और सृष्टि के बारे में चिंतन मनन से परिचित कराता है।

धर्म का एक अहम उद्देश्य इंसान को वास्तविक जीवन तक पहुंचाना है। इसी लिए धार्मिक शिक्षाओं में इंसान की हमेशा के लिए समाप्ने का विचार नहीं है बल्कि धर्म इंसान के जीवन को अमर मानता है। पवित्र क़ुरआन की नज़र में पूरी सृष्टि हरकत में है। अगर इस दृष्टि से इस्लाम को देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि सभी शिक्षाओं व धार्मिक विषयों में जीवन के लक्ष्ण मौजूद हैं। धर्म का ज्ञान से अटूट संबंध है। जिन्होंने उपासना की दुनिया की सैर की है वह ऐसे आनंदायक माहौल का आभास करते हैं जिसमें दुख दर्द का कोई स्थान नहीं होता बल्कि सिर्फ़ आनंद ही आनंद होता है। जो उपासना करते हैं वे अपने मन में ईश्वर से प्रेम को महसूस करते हैं और उनके सामने आत्मज्ञान का द्वार खुल जाता है। इस्लाम ऐसा धर्म है जिसमें व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों प्रकार के नियम हैं जिन पर अमल करके इंसान संतुष्टि का आभास करता है। नमाज़, रोज़ा, हज, ख़ुम्स और ज़कात जैसे अनिवार्य कर्मों और उपासना संबंधी दूसरे कर्मों का इंसान के मन पर बहुत अच्छा असर पड़ता है। यहां तक कि इस्लाम की सामाजिक शिक्षाएं भी समाज और ईश्वरीय रचनाओं की सेवा, ईश्वर की उपासना और वंदना से अलग नहीं है। सामाजिक मामलों में इस्लाम की अनुशंसाओं पर अमल से इंसानों के बीच मेल जोल, दोस्ती व समरसता बढ़ेगी। जब किसी समाज के इंसान एक दूसरे की सेवा करते हैं तो उस समाज का माहौल सौहार्दपूर्ण बन जाता है और उस समाज के लोग अपने जीवन के हर क्षण का आनंद उठाते हैं।

इंसान को ख़ुश करने वाली चीज़ों की समीक्षा में दो प्रकार की चीज़े सामने आती हैं। एक भौतिक और दूसरी आध्यात्मिक। जिन चीज़ों से आध्यात्मिक आनंद मिलता है ज़रूरी नहीं है कि उनसे भौतिक फ़ायदा भी मिले। इस तरह के आनंद बाक़ी रहते और व्यापक रूप से असर डालते हैं लेकिन भौतिक आनंद और ख़ुशियां इंसान के भौतिक जीवन से जुड़ी होती हैं और उनका असर अल्पावधि का होता है और कभी कभी तो उनका असर बहुत ही नुक़सानदेह होता है। जैसा कि ईश्वर पवित्र क़ुरआन के ताहा सूरे की आयत नंबर 124 में फ़रमाता हैः जो भी ईश्वर की याद से मुंह मोड़े उसके सामने कठिनाइयां होंगी। इस विषय को अगर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पता चलेगा कि ईश्वर की याद का फ़ायदा यह है कि इंसान उन चीज़ों से दूर हो जाता है जो उसके मन में तनाव पैदा करती हैं। ईश्वर से निकट संबंध से इंसान परिपूर्णतः की ओर बढ़ता है नतीजे में अपने जीवन को लक्ष्यपूर्ण बनाता है। यही वजह है कि जब हम धार्मिक आस्था व मूल्यों का पालन करने वालों लोगों को देखते हैं तो पाते हैं कि वे कठिन से कठिन हालात में भी आशा नहीं छोड़ते और उनकी आस्था पर कोई असर नहीं पड़ता।                         

आपको ऐसे लोगों का अवश्य सामना हुआ होगा जो भौतिक दृष्टि से बहुत समृद्ध लगते हैं। लेकिन इसके बावजूद जीवन के संबंध में शिकायत करते हैं। इसके मुक़ाबले में ऐसे लोग भी होते हैं जो भौतिक दृष्टि से इतने समृद्ध नहीं होते लेकिन ख़ुशियों भरा जीवन बिताते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ख़ुद को सौभाग्यशाली समझने की भावना का संबंध बहुत हद तक भौतिक संसाधन से नहीं है। चूंकि इंसान के कल्याण का संबंध बहुत हद तक जीवन के अध्यात्मिक मामलों से जुड़ा है इसलिए ईश्वरीय धर्म इंसान को अध्यात्मिक आनंद की ओर प्रेरित करते हैं। ईश्वर पर भरोसा रखने वाले व्यक्ति की नज़र में किसी चीज़ का आनंद ईश्वर की वंदना से अधिक नहीं है यही वजह है कि धर्म परायण लोग नमाज़, रोज़ा और वंदना में आनंद महसूस करते हैं और इस तरह के लोग सांसारिक व परालौकिक जीवन की आशा में बहुत सी कठिनाइयों का मुक़ाबला करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः "मेरी नज़र में आधी रात में दो रकअत नमाज़ जो कुछ दुनिया में मूल्यवान चीज़ें हैं उनसे अधिक मूल्य रखती है।"

नए शोध दर्शाते हैं कि इस्लाम में रोज़ा एक सार्थक कार्यक्रम है और बहुत आयाम से इंसान के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। रोज़ा दूसरी उपासनाओं की तरह मन को आनंदित करता और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। चूंकि इंसान रोज़े में ईश्वर की याद में होता है, इसलिए उसके ख़ुश रहने के अधिक साधन मुहैया होते हैं। रोज़ेदार व्यक्ति ईश्वर की प्रसन्नता में खाने पानी से दूर रहता और पवित्र क़ुरआन की तिलावत करता है जिससे उसके मन में ईश्वर पर भरोसा बढ़ता है, वह अपने भीतर आनंद महसूस करता है और उसके भीतर से दुख चला जाता है। वास्तव में पवित्र रमज़ान में रोज़ा रखने वाला अपने मन में अधिक आनंद का आभास करता है। जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः रोज़ा रखने वाले के लिए दो प्रकार की ख़ुशी हैः एक इफ़्तार के समय और दूसरी प्रलय में ईश्वर से मुलाक़ात के समय। इस तरह पवित्र रमज़ान में आध्यात्मिक संपर्क से मन को बहुत अधिक सुकून मिलता है।                    

पवित्र रमज़ान में रोज़ादारों को ख़ुशी देने वाला एक और तत्व सुबह सवेरे सहरी के लिए उठना है। सुबह सवेरे उठने का एक फ़ायदा ईश्वर की निष्ठापूर्ण प्रार्थना है। यह प्रार्थना कभी नमाज़े शब नामक विशेष नमाज़ के रूप में प्रकट होती है जिससे मन को बहुत आनंद मिलता है। यह देखा गया है कि जो लोग सुबह सवेरे उठते हैं वह प्रफुल्लित रहते हैं। सुबह सवेरे उठने का एक फ़ायदा यह है कि इंसान की कार्यकुशलता बढ़ती है। रात में सोने की वजह से सहरी के समय उठने से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक दृष्टि से अधिक तय्यार रहता है। यही वजह है कि इस्लाम में बल दिया गया है कि सुबह सवेरे उठने से रोज़ी व आजीविका बढ़ती है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया हैः "सुबह सवेरे अपनी रोज़ी रोटी और ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निकलो। सुबह उठना बर्कत व विभूतियां लाता है।" सुबह उठने के विशेष शिष्टाचार हैं। एक शिष्टाचार मिस्वाक या दातुन करना है। इसी तरह पवित्र क़ुरआन की तिलावत और नमाज़े शब पढ़ना अन्य उपासनाएं हैं जिन पर बल दिया गया है। यद्यपि पवित्र क़ुरआन को कभी भी पढ़ सकते हैं लेकिन सुबह के वक़्त इसे पढ़ने का अलग ही आनंद है। जैसा कि एक मसल हैः अगर तुम अपने सिर पर सेब की एक टोकरी लेकर गलियों व बाज़ारों में फिरो तो ऐसा करने से तुम्हें किसी तरह की ऊर्जा नहीं मिलेगी बल्कि तुम्हारी शारीरिक ऊर्जा ही कम होगी लेकिन अगर उस टोकरी में से एक सेब खालो तो तुम्हें ऊर्जा व प्रफुल्लता मिलेगी। पवित्र क़ुरआन भी सेब की टोकरी की तरह है। अगर उसकी आयतें व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर असर कर जाए और उसे अपने जीवन में उतार ले तो उसे ऊर्जा व आत्मज्ञान मिलेगा।

आध्यात्मिक आयाम से भी ख़ुशी का धर्म के साथ निकट संबंध है। मिसाल के तौर पर ईश्वर से प्रार्थना, पवित्र क़ुरआन की तिलावत या रोज़ा रखने से व्यक्ति जो महसूस करता है ये उसी की मिसाल है। धार्मिक शिक्षाओं में दर्शन करने या यात्रा पर जाने को भी सुकून देने वाला कारक बताया गया है। अलबत्ता जीवन के प्रति इंसान के मन में जितना सार्थक दृष्टिकोण होगा उतना अधिक वह संतुष्टि का आभास करेगा। यद्यपि लोग अलग अलग चीज़ों से ख़ुश होते हैं लेकिन अहम बात यह है कि इंसान ख़ुश व आशावान रहे और भला जीवन बिताए।  

कार्यक्रम के इस भाग में आपको 27वीं रमज़ान को पढ़ी जाने वाली दुआ के एक भाग से परिचित कराने जा रहे हैं। इस दुआ के एक टुकड़े में प्रार्थी ईश्वर से कहता है कि इस महीने में हमारे काम को आसान कर दे। ईश्वर कभी नहीं चाहता कि इंसान कठिनाई उठाए बल्कि वह इंसान के लिए आसानी व सुकून चाहता है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के बक़रा सूरे की आयत नंबर 185 में ईश्वर कहता हैः "ईश्वर तुम्हारे लिए आसानी चाहता है, तुम्हारे लिए कठिनाई नहीं चाहता।" लेकिन भौतिक जीवन के आनंद कठिनाई से हासिल होते हैं। अलबत्ता इन कठिनाइयों को कुछ उपायों से आसान कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर निर्धनों व अनाथों की मदद से जीवन यापन की कठिनाइयां कम होती हैं। रिवायत में है कि एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम के पास आया और उसने कहाः हे ईश्वरीय दूत मेरा हाथ पैसों से ख़ाली है। जीवन बहुत कठिनाइयों में है। पैग़म्बरे इस्लाम ने उस व्यक्ति से फ़रमायाः दान कर। उस व्यक्ति ने कहा कि मैंने आपकी सेवा में अर्ज़ किया कि मेरा हाथ पैसों से ख़ाली है और आप दान करने के लिए कह रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः दान करो कि दान रोज़ी को अपनी ओर खींच कर लाता है।

ईश्वर की एक और विशेषता यह है कि वह बंदों के पापों को क्षमा कर देता है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के ज़ुमर सूरे की आयत नंबर 53 में ईश्वर अपनी क्षमाशीलता के बारे में कहता हैः "हे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले मेरे बंदो! ईश्वर की कृपा से निराश मत हो कि ईश्वर सभी पाप को क्षमा कर देगा। वह बहुत ही क्षमाशील व मेहरबान है।" इस आयत में ईश्वर ने सभी के लिए अपनी क्षमाशीलता का दामन खोल दिया है ताकि वे अपने पापों का प्रायश्चित कर उसकी ओर पलट आएं।

 

समूचे ब्रह्मांड का नक्शा दयालु ईश्वर की इच्छानुसार है, ईश्वर आसमान से लेकर ब्रह्मांड की हर चीज़ का नक्शा तैयार करता है।

महान ईश्वर जब किसी व्यक्ति या गुट को सज़ा देना चाहता है तो पहले से नक्शा तैयार करता है इसका भी स्रोत महान ईश्वर की रहमत व दया है।

पवित्र कुरआन के बड़े व्याख्याकर्ता आयतुल्लाहिल उज़्मा जवाद आमुली ने सूरे रहमान की व्याख्या में अपने दर्स में महान ईश्वर की रहमत, न्याय और अज़ाब के बारे में कुछ बिन्दुओं को बयान किया।

उन्होंने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के अनुसार महान ईश्वर की रहमत के बारे में जानना चाहिये कि समूचा ब्रह्मांड दयालु ईश्वर की इच्छानुसार है। आसमान से लेकर समूचे ब्रह्मांड की हर वस्तु को वह व्यवस्थित करता है। महान ईश्वर जब किसी व्यक्ति या गुट को सज़ा देना चाहता है तो पहले से उसका नक्शा तैयार करता है कि यह खुद उसकी असीम दया का परिणाम है।

वह कहते हैं अगर महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में फरमाया है कि "हे बुद्धिमान लोग क़ेसास में तुम्हारे लिए ज़िन्दगी है" तो जी हां ऐसा ही है। यह क़ेसास और हत्यारे को दंडित करना दर्दनाक है किन्तु साथ ही समाज के लिए न्याय और दया भी है।

महान ईश्वर जब किसी को दंडित करना चाहता है तो वास्तव में वह बदला लेना या दुश्मनी नहीं निकालना चाहता है बल्कि वह उसे जगाना चाहता है या उससे किसी के अधिकार को लेना चाहता है! ऐसा नहीं है कि उसकी तरफ से एक हिंसा या दर्द है वह मात्र न्याय है और न्याय भी रहमत व दया है।

आयतुल्लाह जवाद आमुली इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सूरे रहमान अरूसे कुरआन के नाम से मशहूर है। अब इस सूरे का नाम रहमान है अरूसे कुरआन है। उसकी वजह यह है कि महान ईश्वर हर चीज़ को उसकी जगह पर रखता व व्यवस्थित करता है। ऐसा नहीं है कि महान ईश्वर केवल जन्नत और उसकी नेअमतों की प्रशंसा करता है और जहन्नम के बारे में उदाहरण के तौर पर कहे कि धैर्य करो! दोनों प्रशंसनीय हैं। इस सूरे में अज़ाब व दंड की आयतें कम नहीं हैं। अगर जहन्नम न होती तो ब्रह्मांड में कमी थी। दुनिया में इतने सारे ज़ालिम हैं और मज़लूमों का हक़ उन्होंने ले लिया है किस तरह न्याय स्थापित किया जाता? इस आधार पर महान ईश्वर एक जगह जन्नत को बनाता है और एक जगह जहन्नम को बनाता है और दोनों का आधार दया और न्याय है।

इमाम ख़ुमैनी के मत में सबसे पहले जो चीज़ नज़र आती है वह 'शुद्ध मोहम्मदी इस्लाम' पर ताकीद और अमरीकी इस्लाम को नकारना है। इमाम ख़ुमैनी ने शुद्ध इस्लाम को अमरीकी इस्लाम के विपरीत क़रार दिया है। अमरीकी इस्लाम क्या है। हमारे दौर में, इमाम ख़ुमैनी के ज़माने में और हर दौर में जहाँ तक हमारी जानकारी है, मुमकिन है भविष्य में भी यही रहे कि अमरीकी इस्लाम की दो शाखाएं हैं। एक है नास्तिकतावादी इस्लाम और दूसरा रूढ़ीवादी इस्लाम। इमाम ख़ुमैनी ने उन लोगों को जो नास्तिकतावादी विचार रखते थे यानी धर्म को, समाज को, इंसानों के सामाजिक संबंधों को इस्लाम से अलग रखने के समर्थक थे, हमेशा उन लोगों की श्रेणी में रखा जो धर्म के संबंध में रूढ़िवादी नज़रिया रखते हैं। यानी धर्म के बारे में ऐसा रूढ़ीवादी नज़रिया जो नई सोच के इंसान की समझ के बाहर हो। इमाम ख़ुमैनी इन दोनों नज़रियों के लोगों का एक श्रेणी में ज़िक्र करते थे।

आज अगर आप ग़ौर कीजिए तो देखेंगे कि इस्लामी जगत में इन दोनों शाखाओं के नमूने मौजूद हैं और दोनों को दुनिया की विस्तारवादी ताक़तों और अमरीका का समर्थन का हासिल है। आज भटके हुए गुटों जैसे दाइश और अलक़ाएदा वग़ैरह को भी अमरीका और इस्राईल का समर्थन हासिल है और इसी तरह ऐसे हल्क़ों को भी अमरीका की सरपरस्ती हासिल है जिनका नाम तो इस्लामी है लेकिन इस्लामी व्यवहार और इस्लामी शरीअत व धर्मशास्त्र से उनका दूर का भी कोई नाता नहीं है। हमारे महान नेता की निगाह में शुद्ध इस्लाम वह है जिसकी बुनियाद क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम का जीवन है।

दूसराः इमाम ख़ुमैनी के उसूलों में से एक है अल्लाह की मदद पर भरोसा। अल्लाह के वादों की सच्चाई पर भरोसा, दूसरी ओर दुनिया की साम्राज्यवादी ताक़तों पर अविश्वास है। अल्लाह ने मोमिनों से वादा किया है और जो लोग इस वादे पर यक़ीन नहीं रखते, क़ुरआन में उन पर धिक्कार किया गया हैः "जो लोग अल्लाह के बारे में बुरे गुमान करते हैं, बुराई की गरदिश उन्हीं पर है। अल्लाह उनसे नाराज़ है और उन पर लानत करता है और उनके लिए जहन्नम तैयार रखी है और वह बहुत बुरा अंजाम है।"  अल्लाह के वादे पर यक़ीन, अल्लाह के वादे की सच्चाई पर यक़ीन। इमाम ख़ुमैनी के मत का एक स्तंभ यह है कि अल्लाह के वादे पर यक़ीन और भरोसा किया जाए।

तीसराः अवाम की इच्छा शक्ति और उनकी सलाहियत पर भरोसा करना तथा सराकारों से आस लगाने की मुख़ालेफ़त। यह इमाम ख़ुमैनी के आंदोलन का अहम उसूल है। उन्हें अवाम पर बड़ा भरोसा था। आर्थिक मामलों में भी अवाम पर बहुत भरोसा था और रक्षा के क्षेत्र में भी अवाम पर उन्हें बहुत भरोसा था। आपने आईआरजीसी फ़ोर्स और स्वयंसेवी फ़ोर्स का गठन किया। रक्षा क्षेत्र को जनता का मैदान बना दिया। प्रचारिक क्षेत्र में भी अवाम पर भरोसा और सबसे बढ़ कर मुल्क में चुनाव का मामला और मुल्क व राजनैतिक व्यवस्था को चलाने में अवाम की राय और मत पर भरोसा।

चौथा उसूलः मुल्क के आंतरिक मामलों से संबंधित है। इमाम ख़ुमैनी वंचित व दबे कुचले तबक़े का साथ देने पर बहुत बल देते थे। आर्थिक असमानता के बहुत ख़िलाफ़ थे। ऐश पसंदी के विचार को बड़ी बेबाकी से रद्द कर देते थे।

पांचवा बिन्दु विदेशी मामलों से संबंधित है। इमाम ख़ुमैनी खुले तौर पर विश्व साम्राज्य और अंतर्राष्ट्रीय ग़ुन्डागर्दी के ख़िलाफ़ सक्रिय मोर्चे का हिस्सा थे और इस बारे में कभी भी लचक नहीं दिखाते थे। यही वजह थी कि हमेशा दुनिया की ज़ालिम व साम्राज्यवादी ताक़तों तथा अंतर्राष्ट्रीय ग़ुन्डों के मुक़ाबले में पीड़ितों का साथ देते थे, पीड़ितों के समर्थन में खड़े नज़र आते थे।

इमाम ख़ुमैनी के मत का एक और बुनियादी उसूल मुल्क की स्वाधीनता पर ताकीद और विदेशी वर्चस्व को नकारना है। यह भी बहुत अहम चैप्टर है।

इमाम ख़ुमैनी की विचारधारा का एक और अहम उसूल क़ौमी एकता का मामला है। फूट की साज़िश चाहे वह धर्म व मत के नाम पर हो, शिया-सुन्नी मतभेद के नाम पर हो या जातीय बुनियादों पर, फ़ार्स, अरब, तुर्क, कुर्द, लुर और बलोच के नाम पर हो, पूरा ध्यान रहना चाहिए। फूट दुश्मन की बहुत बड़ी चाल है और इमाम ख़ुमैनी ने शुरू से ही क़ौमी एकता और अवाम में एकता पर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया और यह आपके अहम उसूलों में है। अमरीकियों की इतनी हिम्मत बढ़ गयी है कि सीधे तौर पर शिया और सुन्नी का नाम लेते हैं। शिया इस्लाम और सुन्नी इस्लाम, फिर इन में से एक का समर्थन और दूसरे की आलोचना करते हैं, जबकि इस्लामी गणराज्य ईरान ने पहले दिन से दोनों समुदायों के संबंध में समान नीति अपनायी। फ़िलिस्तीनी भाइयों के साथ जो सुन्नी है बिल्कुल वैसा ही बर्ताव किया जैसा बर्ताव हम ने लेबनान के हिज़्बुल्लाह के साथ किया जो शिया संगठन है। हमने हर जगह एक ही अंदाज़ से काम किया है।  इमाम ख़ामेनेई

इस्लाम में पड़ोसी के अधिकारों पर बहुत ज़ोर दिया गया है। पड़ोसियों स अच्छा बर्ताव अच्छा माहौल पैदा करता है जिसमें एक मुहल्ले के लोग अच्छा विकास करते हैं और समाज अच्छ होता है।

सबसे पहले हम पड़ोसी के हक़ के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कथन बयान करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने सहाबियों से पूछा कि जानते हो कि पड़ोसी का क्या हक़ होता है?

सहाबियों ने जवाब दिया कि नहीं!

पैग़म्बर ने फिर पड़ोसियों का हक़ इस तरह बयान कियाः

एक पड़ोसी का दूसरे पड़ोसियों पर हक़ है कि अगर बीमार पड़ जाए तो उसे देखने जाएं अगर उसकी मौत हो जाए तो उसके अंतिम संस्कार में शामिल हों, अगर तुमसे क़र्ज़ मांगे तो उसे दे दो, उसकी ख़ुशी में मुबारकबाद दो और ग़म के समय सांत्वना दो, अपनी इमारत उसकी इमारत से ऊंची न बनाओ कि हवा का बहाव रुक जाए, अगर फल ख़रीदो तो थोड़ा उसे तोहफ़े में दो अगर उसे नहीं दिया तो फल अपने बच्चों को न दो कि वो खाएं और पड़ोसी के बच्चे मुंह देखें, अच्छे खानों की ख़ुशबू से पड़ोसी को परेशान न करो, हां यह हो सकता है कि उसमें से खाना उसके लिए भेजो।

बेहारुल अनवार जिल्द 79 पेज 93