رضوی

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क़ुद्स दिवस की तारीख़ समझने के लिए सबसे पहले हमें यह पता होना ज़रूरी है कि ईरान में सन 1979 में इस्लामी इन्क़लाब के रहबर हज़रत आयतुल्लाह इमाम ख़ुमैनी र.ह ने यह एलान किया था कि माहे रमज़ान के अलविदा जुमे को सारी दुनिया क़ुद्स दिवस की शक्ल में मनाएं।

दरअसल क़ुद्स का सीधा राब्ता मुसलमानों के क़िब्लए अव्वल बैतूल मुक़द्दस यानी मस्जिदे अक़्सा जो कि फ़िलिस्तीन में है, उसपर इस्राईल ने आज से 76 साल पहले (सन 1948) में नाजायज़ कब्ज़ा कर लिया था जो आज तक क़ायम है।

इस्लामी तारीख़ के मुताबिक़ ख़ानए काबा से पहले मस्जिदे अक़्सा ही मुसलमानों का क़िब्ला हुआ करती थी और सारी दुनिया के मुसलमान बैतूल मुक़द्दस की तरफ़ (चौदह साल तक) रुख़ करके नमाज़ पढ़ते थे, उसके बाद ख़ुदा के हुक्म से क़िब्ला बैतूल मुक़द्दस से बदलकर ख़ानए काबा कर दिया गया था जो अभी भी मौजूदा क़िब्ला है।

तारीख़ के मुताबिक़ मस्जिदे अक़्सा सिर्फ़ पहला क़िब्ला ही नहीं बल्कि कुछ और वजह से भी मुसलमानों के लिए ख़ास और अहम है। रसूले ख़ुदा (स) अपनी ज़िन्दगी में मस्जिदे अक़्सा तशरीफ़ ले गए थे और वही से आप मेराज पर गए थे। इसी तरह इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के हवाले से हदीस में मिलता है कि आप फ़रमाते है: मस्जिदे अक़्सा इस्लाम की एक बहुत अहम मस्जिद है और यहां पर नमाज़ और इबादत करने का बहुत सवाब है। बहुत ही अफ़सोस की बात है कि यह मस्जिद आज ज़ालिम यहूदियों के नाजायज़ क़ब्ज़े में है।

  इस की शुरुवात सबसे पहले सन 1917 में हुई जब ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री जेम्स बिल्फौर ने फ़िलिस्तीन में एक यहूदी मुल्क़ बनाने की पेशकश रखी और कहा कि इस काम में लंदन पूरी तरह से मदद करेगा और उसके बाद हुआ भी यही कि धीरे धीरे दुनिया भर के यहूदियों को फ़िलिस्तीन पहुंचाया जाने लगा और बिलआख़िर 15 मई सन 1948 में इस्राईल को एक यहूदी देश की शक्ल में मंजूरी दे दी गई और दुनिया में पहली बार इस्राईल नाम का एक नजीस यहूदी मुल्क़ वजूद में आया।

इस के बाद इस्राईल और अरब मुल्क़ों के दरमियान बहुतसी जंगे हुई मगर अरब मुल्क़ हार गए और काफ़ी जान माल का नुक़सान हो जाने और अपनी राज गद्दियां बचाने के ख़ौफ़ से सारे अरब मुल्क़ ख़ामोश हो गए और उनकी ख़ामोशी को अरब मुल्क़ों की तरफ़ से हरी झंडी भी मान लिया गया। जब सारे अरब मुल्क़ थक हारकर अपने मफ़ाद के ख़ातिर ख़ामोश हो गए तो ऐसे हालात में फिर वह मुजाहिदे मर्दे मैदान खड़ा हुआ जिसे दुनिया रूहुल्लाह अल मूसवी, इमाम ख़ुमैनी के नाम से जानती है।

तक़रीबन सन 1979 में इमाम ख़ुमैनी साहब ने नाजायज़ इस्राईली हुकूमत के मुक़ाबले में बैतूल मुक़द्दस की आज़ादी के लिए माहे रमज़ान के आख़िरी अलविदा जुमे को *यौमे क़ुद्स* का नाम दिया और अपने अहम पैग़ाम में आप ने यह एलान किया और तक़रीबन सभी मुस्लिम और अरब हुकूमतों के साथ साथ पूरी दुनिया को इस्राईली फ़ित्ने के बारे में आगाह किया और सारी दुनिया के मुसलमानों से अपील की कि वह इस नाजायज़ क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ आपस में एकजुट हो जाएं और हर साल रमज़ान के अलविदा जुमे को *यौमे क़ुद्स* मनाएं और मुसलमानों के इस्लामी क़ानूनों और उनके हुक़ूक़ के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करें। जहां इमाम ख़ुमैनी ने *यौमे क़ुद्स* को इस्लाम के ज़िन्दा होने का दिन क़रार दिया वहीं आपके अलावा बहुत से और दीगर आयतुल्लाह और इस्लामी उलमा ने भी *यौमे क़ुद्स* को तमाम मुसलमानों की इस्लामी ज़िम्मेदारी क़रार दी।

लिहाज़ा सन 1979 में इमाम ख़ुमैनी साहब के इसी एलान के बाद से आज तक न सिर्फ़ भारत बल्कि सारी दुनिया के तमाम मुल्क़ों में जहां जहां भी मुसलमान, ख़ास तौर पर शीआ मुस्लिम रहते है, वह माहे रमज़ान के अलविदा जुमे को मस्जिदे अक़्सा और फ़िलिस्तीनियों की आज़ादी के लिए एहतजाज करते हैं और रैलियां निकालते हैं।

हमें यह भी मालूम होना चाहिए कि आज तक फ़िलिस्तीनी अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं और जद्दोजहद कर रहे हैं और इस्राईल अपनी भरपूर ज़ालिम शैतानी ताक़त से उनको कुचलता आ रहा है, जब हम अपने घर में पुर सुकून होकर रोज़ा इफ़्तार करते हैं उस वक़्त उसी फ़िलिस्तीन में हज़ारों मुसलमान इस्राईली बमों का निशाना बनते हैं, उनकी इज़्ज़त और नामूस के साथ ज़ुल्म किया जाता है और यह सब आज तक जारी है और इस ज़ुल्म पर सारी दुनिया के मुमालिक ख़ामोश है, क्योंकि इस्राईल को अमरीका और लंदन का साथ मिला हुआ है।

इस साल भी दुनियाभर में नमाज़े जुमा और एहतजाजी रैलियां मुमकिन हो रही है इसलिए इस बार हमें चाहिए कि इस्राईल के ख़िलाफ़ और बैतूल मुक़द्दस के हक़ में अपनी आवाज़ को तमाम मस्जिदों से बुलंद करें और जहां तक जितना मुमकिन हो सके मोमिनीन को इस के बारे में बताएं और एतजाजी रैलियों का आयोजन करें।

अल्लाह मज़लूमों के हक़ में हम सब की दुआओं को क़ुबूल फ़रमाएं और ज़ालिमीन को निस्त व नाबूद करें... आमीन

 

 

शुक्रवार, 05 अप्रैल 2024 18:31

क़ुद्स दिवस पर रैली क्यों ?

कुछ इस्लामी देश और हाकिम ऐसे हैं जिन्होंने फ़िलिस्तीन, क़ुद्स और बैतुल मुक़द्दस की आज़ादी के लिए न केवल यह कि आवाज़ नहीं उठाई बल्कि आपस में भेदभाव और नफ़रत फैला कर बैतुल मुक़द्दस पर क़ब्ज़ा करने वाले इस्राईल का साथ दे रहे हैं, इसलिए सोंचने और ध्यान देने का समय है और साथ मिल कर क़ुद्स डे पर समाज के इस कैंसर के विरुध्द आवाज़ उठाएं और बैतुल मुक़द्दस की आज़ादी में हिस्सेदार बनें।

जंग का विरोध

ग़ज़्ज़ा में होने वाले वहशी हमलों और वहां पर होने वाली जंग को रोकना इस रैली का सबसे अहम मक़सद है, वहां जंग में अधिकतर आम नागरिकों को शिकार बना कर उनके साथ वहशियाना सुलूक होता है और इस दरिंदगी को इंसानियत के नाते ख़त्म करना ज़रूरी है, क़ुद्स रैली में भाग लेना वहां पर होने वाली जंग और आम जनता के क़त्लेआम के ख़िलाफ़ अपनी नफ़रत को ज़ाहिर करना है।

आप ख़ुद सोंचे और फ़ैसला करें जिन लोगों के ज़ुल्म और अत्याचारों का हाल यह है कि वह घायल और ज़ख़्मी होने वाले आम नागरिकों तक पहुंचने वाली दवाईयों की गाड़ियां और उनके पनाह लेने वाली जगहों को बम से उड़ा देता हो क्या उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना इंसानियत के अलावा कुछ और है? इसी लिए इस रैली में भाग लेना ज़रूरी है ताकि ज़ालिमों के ज़ुल्म और उनकी दरिंदगी उनके अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा कर अमन, शांति और सुलह की मांग की जा सके।

इंसानियत की रक्षा

बेशक हम सभी इंसानी उसूलों के पाबंद हैं कि जिनमें सबसे अहम किसी भी परिस्तिथि में लोगों की जान को बचाना है, इंसानी जान की क़ीमत इनती ज़्यादा है कि शायद ही दुनिया में उसकी अहमियत के बराबर कुछ हो, और निहत्थे आम शहरियों की जान की हिफ़ाज़त को किसी भी जंग में वरीयता दी जाती है, न ही उनपर कोई हमला करता है न ही उनपर बम बरसाता है,

लेकिन आप निगाह उठा कर देख लीजिए फ़िलिस्तीन के शहरों पर चाहे ग़ज़्जा हो या रफ़ा, चाहे ख़ान यूनुस हो चाहे क़ुद्स, हर जगह के बच्चे और औरतें तक ज़ायोनी दरिंदों के शिकार हैं, कोई भी उनके हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाला नहीं है, डेमोक्रासी और मानवाधिकार का झूठा दावा करने वालों से उनके भेदभाव के बारे में कोई आवाज़ उठाने वाला तक नहीं है। क़ुर्आनी तालीमात की रौशनी में इंसानियत की मदद और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज़ उठाना और ज़ायोनी दरिंदों के ख़िलाफ़ फ़रियाद बुलंद करना करामत और बुज़ुर्गी कहलाता है।

मुसलमानों की रक्षा

इस्लाम ने मुसलमानों की रक्षा को वाजिब क़रार देने के साथ साथ इस्लामी सरहदों की रक्षा को भी ज़रूरी बताया है, वह भी ऐसे मुसलमान जो ग़ज़्ज़ा में पिछले लगभग 10 सालों ज़ायोनी दरिंदों के बीच घिरे हुए हैं जिनकी न कोई पनाहगाह है न कोई उनके हाल पर अफ़सोस करने वाला और उनकी दर्द भरी चीख़ों को आसमान के अलावा कोई सुनने वाला नहीं है, दीनी तालीमात की रौशनी उनकी मदद और उनकी फ़रियाद को सुनना हमारी ज़िम्मेदारी है,

इस्लाम की किसी मज़हब से कोई दुश्मनी नहीं है इस्लाम ज़ुल्म करने और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ख़ामोश रहने से मना करता है फिर चाहे ज़ुल्म करने और सहने वाला मुसलमान ही क्यों न हो क्योंकि इस्लाम जंग और युध्द का मज़हब नहीं है और जो इस्लाम के नाम पर ख़ून ख़राबा कर रहे हैं वह मुसलमान ही नहीं है, और अगर अरब के देश फ़िलिस्तीनियों की पीठ में छूरा न घोंपे तो फ़िलिस्तीन को किसी दूसरे की मदद की ज़रूरत भी नहीं होगी।

मज़लूमों का समर्थन

इस्लामी तालीमात में मज़लूमों के समर्थन पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है, और मज़लूमों के समर्थन में आवाज़ उठाने के लिए सरहदें कभी रुकावट नहीं बनतीं, दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी इंसान पर अगर ज़ुल्म हो रहा है तो उसके समर्थन और ज़ालिम के विरोध में आवाज़ उठाना एक ज़िंदा इंसान की पहचान है वरना हम में और जंगल में पास पास में उगे पेड़ों के बीच कोई फ़र्क़ नहीं रह जाएगा जैसे वह हैं तो पास पास लेकिन एक दूसरे के हाल चाल से बे ख़बर रहते हैं वैसे ही हमारा हाल होगा।

इंसाफ़ और सुलह की मांग

अगर हम सभी राजनीतिक पार्टियों की सुबह से शाम तक की कोशिशों के पीछे पाए जाने वाले कारण पर ध्यान दें और उसे एक जुमले में बयान करना चाहें तो वह यह होगा कि सभी राजनीतिक पार्टियां जिनमें थोड़ी भी इंसानियत पाई जाती है तो वह लोगों के बीच इंसाफ़ और न्याय प्रणाली को क़ायम करने की पूरी कोशिश करेगा, और यह बात किसी ख़ास जगह ख़ास लोगों या ख़ास विचारधारा से जुड़ें लोगों से विशेष नहीं है, और फ़िलिस्तीनियों की शुरू से आज तक यही कोशिश है कि उनके बीच अदालत इंसाफ़ और सुलह क़ायम हो सके।

जब से लोगों ने पूरी आज़ादी और अधिकार के साथ हमास को ग़ज़्ज़ा में सत्ता के लिए चुना तभी से इस्राईल ने ग़ज़्ज़ा को अपनी मिसाईलों और बमों का निशाना बनाते हुए वहां के मासूम बच्चों तक को अपनी हैवानियत को शिकार बनाया, और हद तो यह है कि अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती ज़ख़्मी लोगों तक को अपनी दरिंदगी का शिकार बना रखा है। पिछले 10 सालों से इस्राईल हुकूमत ने हर तरह की हैवानियत और दरिंदगी को अपना लिया ताकि हमास को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकें लेकिन हमास और कुछ उनके समर्थन करने वाले दूसरे जवान हैं जिनकी प्रतिरोध के आगे ख़ुद इस्राईल घुटने टेकने पर मजबूर दिखाई देता है।

आपसी इत्तेहाद और भाईचारे की अलामत

आज के इस दौर में जहां लोकल से लेकर इंटरनेशनल एजेंसियां लोगों को आपस में तोड़ने की कोशिश में दिन रात लगी हैं वहां कुछ ऐसे लोगों का होना बहुत ज़रूरी है जो एक साथ कंधे से कंधा मिला कर साम्राज्वादी शक्तियों को मुंह तोड़ जवाब देना चाहिए।

 

ध्यान रहे इस्राईल की दुश्मनी फ़िलिस्तीन या ग़ज़्ज़ा या हमास से नहीं है बल्कि यह दरिंदे हर उस आवाज़ को हमेशा के लिए दबा देना चाहते हैं जो आपसी भाईचारे और इत्तेहाद के पैग़ाम को फैला रही हो, दुश्मन जानता है पूरे इस्लामी जगत की निगाहें इसी क़ुद्स पर टिकी हुई हैं और इसी के नाम से सारे मुसलमान अपने अक़ीदती मतभेद भुला कर एक साथ अपने क़िबल-ए-अव्वल की आज़ादी के लिए सड़कों पर उतर आते हैं।

इस्राईल पिछले कई सालों से ग़ज़्ज़ा की नाकाबंदी और उस पर क़ब्ज़ा किए बैठा है और बैतुल मुक़द्दस पर तो 60 साल से ज़्यादा हो चुके हैं लेकिन अभी तक इतने सारे इस्लामी देश आपस में मिल कर उसे आज़ाद तक नहीं करा सके उसका कारण यही है कि अभी भी कुछ इस्लामी देश और हाकिम ऐसे हैं जिन्होंने फ़िलिस्तीन, क़ुद्स और बैतुल मुक़द्दस की आज़ादी के लिए न केवल यह कि आवाज़ नहीं उठाई बल्कि आपस में भेदभाव और नफ़रत फैला कर बैतुल मुक़द्दस पर क़ब्ज़ा करने वाले इस्राईल का साथ दे रहे हैं, इसलिए सोंचने और ध्यान देने का समय है और साथ मिल कर क़ुद्स डे पर समाज के इस कैंसर के विरुध्द आवाज़ उठाएं और बैतुल मुक़द्दस की आज़ादी में हिस्सेदार बनें।

एक बयान में, फिलिस्तीन के राष्ट्रीय और इस्लामी समूहों ने मुस्लिम उम्माह, अरब जगत और दुनिया के सभी स्वतंत्रता सेनानियों से विश्व अल-कुद्स दिवस के जुलूसों और रैलियों में व्यापक रूप से भाग लेने की अपील की है। दमनकारी ज़ायोनी शासन अपनी घृणा व्यक्त करें।

एक बयान में, फिलिस्तीन के राष्ट्रीय और इस्लामी समूहों ने मुस्लिम उम्माह, अरब दुनिया और दुनिया के सभी स्वतंत्रतावादियों से विश्व अल-कुद्स दिवस के जुलूसों और रैलियों में व्यापक रूप से भाग लेने की अपील की है। रमज़ान के अलविदा शुक्रवार को फ़िलिस्तीनियों के प्रति अपना पूर्ण समर्थन घोषित करें और दमनकारी ज़ायोनी सरकार के प्रति अपनी पूर्ण घृणा और घृणा व्यक्त करें।

बयान में कहा गया है कि दुनिया के सभी समूहों, पार्टियों, यूनियनों और युवाओं को आमंत्रित किया जाता है कि वे अपने देशों की सरकारों पर दमनकारी ज़ायोनी शासन को हथियारों की आपूर्ति बंद करने और नरसंहार के लिए दमनकारी ज़ायोनी शासन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करें। और फ़िलिस्तीनी नागरिकों का नरसंहार और उसके सभी अपराधों के लिए उसे ज़िम्मेदार ठहराना।

बयान में कहा गया है कि दुनिया के सभी समूहों, पार्टियों, संघों और युवाओं को आमंत्रित किया जाता है कि वे विभिन्न देशों की सरकारों पर अपना रुख बदलने के लिए दबाव डालें और उन्हें फिलिस्तीनियों का समर्थन करने और फिलिस्तीनियों के लिए अपना समर्थन घोषित करने के लिए मजबूर करें।

इस्लामिक क्रांति के संस्थापक, हज़रत इमाम खुमैनी (आरए) का उद्देश्य, रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को अल-कुद्स के दिन के रूप में नामित करना, मुस्लिम उम्माह की नज़र में फिलिस्तीन मुद्दे को जीवित करना था।

अल-कुद्स दिवस वास्तव में फिलिस्तीन के जीवन का नाम है और हज़रत इमाम खुमैनी (आरए) ने आखिरी शुक्रवार को अल-कुद्स दिवस के रूप में बुलाया और इस्लामी उम्माह के दिमाग में फिलिस्तीन मुद्दे को हमेशा के लिए पुनर्जीवित कर दिया।

  अल-कुद्स दिवस ने साबित कर दिया कि फिलिस्तीनी लोग अकेले नहीं हैं। हम उनके दुःख-दर्द में बराबर के भागीदार हैं। हम तब तक चीन से नहीं बैठेंगे जब तक सभी फ़िलिस्तीनी शरणार्थी अपने घर नहीं लौट जाते।

आज यरूशलम को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से पहली चुनौती इजराइल की कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देना है। दूसरी चुनौती येरुशलम की आबादी और पहचान को ख़त्म कर इसे यहूदी बनाना है. तीसरी चुनौती यरूशलेम और अल-अक्सा मस्जिद में पवित्र स्थानों का अपमान और अपवित्रता है, जबकि चौथी चुनौती सेंचुरी डील है और पांचवीं चुनौती पश्चिमी जॉर्डन का इज़राइल में एकीकरण है। और छठी चुनौती है गाजा के उत्पीड़ित लोगों का नरसंहार.

संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल अपने सहयोगी अरब शासकों के साथ पिछले 74 वर्षों से फिलिस्तीनी मुद्दे को दबाने की असफल साजिश रच रहे हैं, लेकिन फिलिस्तीनी मुद्दा दिन-ब-दिन प्रमुख होता जा रहा है और इस संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के प्रयास असफल रहा।

अल-कुद्स दिवस के अवसर पर, हमें यरूशलेम और फिलिस्तीन मुद्दे पर दृढ़ और दृढ़ विश्वास है, और हम यह भी मानते हैं कि यरूशलेम अपने असली उत्तराधिकारियों को मिलेगा और भटकते फिलिस्तीनी एक दिन जीत के साथ अपने वतन लौटेंगे ईश्वर की कृपा हो।

गाजा पर ज़ायोनी आक्रमण और इज़राइल के खिलाफ वैश्विक आक्रोश और विशाल रैलियों, कुद्स इंतिफादा की व्यापक और बढ़ती सफलताओं और फिलिस्तीनियों के तीव्र संघर्ष के साथ, इस वर्ष का विश्व अल-कुद्स दिवस इतिहास में एक अलग घटना है। इस्लामी दुनिया यह पवित्र दिन होगा.

इसलिए भी कि अस्थायी और नकली ज़ायोनी सरकार की सैन्य शक्ति का भ्रम टूट गया है और स्वयं ज़ायोनी भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं और ऐसी परिस्थितियों में मुस्लिम उम्माह और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के संघर्ष के इतिहास में इस बार का दिवस मनाया जाता है। अल-कुद्स का एक विशेष महत्व है।

अल-अक्सा मस्जिद खतीब अल-शेख इकरामा साबरी ने अपने एक बयान में कहा कि कुद्स आज़ाद होगा और फ़िलिस्तीनी लोग अलर्ट पर हैं।

अल-अक्सा मस्जिद खतीब ने कहा कि अल-अक्सा मस्जिद अपनी इस्लामी और फिलिस्तीनी पहचान के कारण हमेशा इजरायल के हमले का शिकार रही है क्योंकि ज़ायोनी सरकार इस पहचान को खत्म करना चाहती थी।

स्टैजमैट फ्रंट से जुड़े पर्यवेक्षकों का कहना है कि फ़िलिस्तीनी सरकार हिज़्बुल्लाह के रॉकेटों से अपनी रक्षा नहीं कर सकती है और पिछले 6 महीनों से वह एक समूह को हरा नहीं पाई है, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ रहा है और वह गाजा के दलदल में है। बुरी तरह फंस चुका है और वहां से निकलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है तो वह कैसे सैन्य बल के जरिए अपने कैदियों को स्टैजमैट फ्रंट के मुजाहिदीन की जेल से छुड़ा सकता है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय कुद्स दिवस पर अपने संदेश में कहा है कि आज पूरा देश ज़ायोनी आक्रमण और उत्पीड़न की निंदा कर रहा है.

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने विश्व अल-कुद्स दिवस के अवसर पर अपने संदेश में कहा है कि हम अपने अविवाहित फ़िलिस्तीनी भाइयों और बहनों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां शाहबाज शरीफ ने कहा है कि इजरायली सरकार सात दशकों से फिलिस्तीन और येरुशलम की जमीन पर कब्जा कर रही है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय उसके अत्याचारों का मूक दर्शक बना हुआ है।

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से फ़िलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार रोकने के लिए दबाव बनाने की भी मांग की।

पाकिस्तान के विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक नेताओं ने भी जनता से विश्व अल-कुद्स दिवस के जुलूस में पूर्ण रूप से भाग लेने की अपील की है।

पाकिस्तान के अधिकांश शहरों में शुक्रवार की नमाज के बाद पवित्र अल-कुद्स दिवस के जुलूस निकाले गए, जबकि भारत के विभिन्न शहरों से प्राप्त रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि शुक्रवार की नमाज के बाद अंतर्राष्ट्रीय अल-कुद्स दिवस के जुलूस निकाले गए

सलाहुद्दीन फारूक़ी (अब्दुल हमीद मुल्लाज़ादे) आतंकवादी गुट जैशुल अद्ल का एक सरगना

ईरान उसे दाइश की भांति मोसाद की आतंकवादी नीतियों को आगे बढ़ाने ले जाने वाला मानता है। 

ईरान के दक्षिणपूर्व में स्थित सीस्तान व बलोचिस्तान प्रांत के गवर्नर के सुरक्षा बल के सहायक अलीरज़ा मर्हमती ने बुधवार की रात को आतंकवादी गुट जैशुल अद्ल द्वारा इस प्रांत के चाबहार और रास्क नामक दो नगरों में हमले की सूचना दी। जैशुल अद्ल को ईरान में जैशुज़्ज़ुल्म के नाम से जाना जाता है।

आतंकवादी गुट जैशुल अद्ल ने बुधवार की रात को रास्क और चाबहार में सिपाहे पासदारान के केन्द्रों पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया कि ईरानी सुरक्षा बलों के प्रतिरोध का सामना हुआ जिसकी वजह से आरंभिक घंटों में ही इस आतंकवादी गुट की योजना नाकाम हो गयी। इस्लामी गणतंत्र ईरान के सुरक्षा बल अब तक 16 आतंकवादियों को मौत की घाट उतार चुके हैं।

घोषित जानकारी के अनुसार सिपाहे पासदारान के थल सेना के कमांडर मोहम्मद पाकपूर ने कहा है कि मारे जाने वाले आतंकवादियों की संख्या 18 हो सकती है।

इस आतंकवादी हमले में ईरानी सुरक्षा बल के 11 जवान भी शहीद हो गये। इस समय चाबहार और रास्क में सुरक्षा व्यवस्था सामान्य हो चुकी है।

आतंकवादी गुट जैशुल अद्ल तकफीरी विचारधारा के साथ सीरिया में सलफी सहित दूसरे आतंकवादी गुटों का समर्थक है। यह आतंकवादी गुट जायोनी सरकार से संबंधित है और बारमबार सुरक्षा बलों की रिपोर्टों में आया है कि यह आतंकवादी गुट ईरान के दक्षिणपूर्व में स्थित सीस्तान व बलोचिस्तान प्रांत में कई हत्याओं और हमलों को स्वीकार कर चुका है। इसी प्रकार यह आतंकवादी गुट ज़ाहेदान में आतंकवादी हमले की ज़िम्मेदारी भी कबूल कर चुका है।

अमेरिकी वित्तमंत्रालय ने अपने नये दावे में एलान किया है कि उसने उन कंपनियों और लोगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है जिनका संबंध ईरान से है।

अमेरिकी वित्तमंत्रालय ने एक महीना पहले भी तीन व्यक्तियों और चार संस्थाओं के खिलाफ इसी प्रकार का दावा करके प्रतिबंध लगा दिया था।

अमेरिका ने हालिया चार दशकों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के खिलाफ विभिन्न बहानों से जैसे बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाकर, सैनिक धमकी देकर, राजनीतिक जंग छेड़कर और कूटनीतिक दबाव डालर मनोवैज्ञानिक जंग छेड़ रखा है।

ईरान के खिलाफ अमेरिका की एकपक्षीय कार्यवाहियों और राजनीति के बेनतीजा होने के बावजूद अमेरिका तेहरान के खिलाफ ग़ैर कानूनी और संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणापत्र के खिलाफ कार्यवाहियों के जारी रखने पर आग्रह कर रहा है।

आज इस्लामी गणतंत्र ईरान की राजधानी तेहरान सहित पूरे देश में विश्व अल-कुद्स दिवस के जुलूस और रैलियाँ निकाली गईं, जो शुक्रवार की प्रार्थना केंद्रों पर पहुँचकर भव्य सभा में बदल गईं।

राजधानी तेहरान के विभिन्न इलाकों से विश्व अल-कुद्स दिवस की रैलियां तेहरान विश्वविद्यालय पहुंचकर एक भव्य सभा में बदल गईं। तेहरान के विभिन्न इलाकों से निकाली गई रैलियों में सभी उम्र और वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया.

राजधानी तेहरान में योम अल-कुद्स रैलियों में मुसलमानों और अन्य धर्मों के अनुयायियों सहित हजारों लोगों ने भाग लिया।

विश्व अल-कुद्स दिवस के अवसर पर तेहरान में हवाई हमले में शहीद हुए शहीदों के अंतिम संस्कार की रैलियों में राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी सहित बड़ी संख्या में उच्च पदस्थ अधिकारियों और अधिकारियों ने भी भाग लिया। दमिश्क में ईरानी दूतावास पर भी ज़ायोनी सरकार का कब्ज़ा हो गया

ज़ायोनी सरकार के सूत्रों ने एक रिपोर्ट में कहा है कि हमले के डर से ज़ायोनी सरकार के सात दूतावासों को खाली करा लिया गया है।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल ने बहरीन, मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को और तुर्की में अपने दूतावास खाली कर दिए हैं।

गौरतलब है कि ज़ायोनी सरकार ने पिछले सोमवार को कब्जे वाले गोलान क्षेत्र से सीरिया की राजधानी दमिश्क में इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावास से सटे कांसुलर खंड की इमारत पर हमला किया था, जिसके बाद इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स ने एक बयान में घोषणा की थी कि आक्रामक ज़ायोनी सरकार के मिसाइल हमले में जनरल मोहम्मद रज़ा ज़ाहिदी, मोहम्मद हादी हज रहीमी और उनके पांच साथी शहीद हो गये।

रमज़ान के पवित्र महीने के आखिरी शुक्रवार को, अंतर्राष्ट्रीय अल-कुद्स दिवस के अवसर पर, ज़ायोनी सैनिकों ने अल-अक्सा मस्जिद में फ़िलिस्तीनी उपासकों पर हमला किया और कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

रमज़ान के पवित्र महीने के जुम्मा अल-वदा के अवसर पर, फ़िलिस्तीनियों ने विश्व अल-कुद्स दिवस रैली में व्यापक रूप से भाग लिया और अल-अक्सा मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ के लिए एकत्र हुए, लेकिन ज़ायोनी सैनिकों ने इन उपासकों पर हमला कर दिया। और कई फ़िलिस्तीनियों को मार डाला। ज़ायोनी सैनिकों ने इन उपासकों के ख़िलाफ़ आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया। रिपोर्ट के मुताबिक, ज़ायोनी बलों ने आठ फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार कर लिया।