رضوی

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हिज़्बुल्लाह लेबनान ने एक बयान में कहा है कि उसने ज़ायोनी सैनिकों और उनके बख्तरबंद वाहनों को निशाना बनाया।

हिजबुल्लाह ने एक बयान में कहा है कि उसने उत्तरी अधिकृत फिलिस्तीन में अल-मलिकी सैन्य अड्डे को मोर्टार गोले और गाइडेड मिसाइलों से निशाना बनाया है.

ज़ायोनी मीडिया ने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट में कहा था कि उत्तरी क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन के अल-मल्किया और डिशोन टाउन में अलार्म सायरन सुना गया है।

ज़ायोनी शासन द्वारा गाजा में अपना आक्रमण शुरू करने के एक दिन बाद लेबनान के हिजबुल्लाह ने उत्तरी कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। जिसके बाद ज़ायोनीवादियों में दहशत की लहर फैल गई और प्रतिरोध के हमलों के डर से उत्तरी कब्जे वाले फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों से हजारों लोग भागने को मजबूर हो गए - ज़ायोनी सरकार ने तोपखाने और हवाई हमलों से लेबनान के सीमावर्ती क्षेत्रों को भी निशाना बनाया।

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

أللّهُمَّ اجْعَلني فيہ مُحِبّاً لِأوْليائكَ وَمُعادِياً لِأعْدائِكَ مُسْتَنّاً بِسُنَّۃ خاتمِ أنبيائكَ يا عاصمَ قٌلٌوب النَّبيّينَ.

अल्लाह हुम्मज अलनी फ़ीहि मुहिब्बन ले औलियाएक, व मुआदियन ले आदाएक, मुस तनन बे सुन्नति ख़ातिमि अंबियाएक, या आसिमा क़ुलूबिन नबीय्यीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! मुझे इस महीने में अपने औलिया और दोस्तों का दोस्त और अपने दुश्मनों का दुश्मन क़रार दे, मुझे अपने पैग़म्बरों के आख़री पैग़म्बर की राह व रविश पर चलने की सिफ़त से आरास्ता कर दे, ऐ अंबिया के दिलों की हिफ़ाज़त करने वाले.

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

 

 

 

 

शुक्रवार, 05 अप्रैल 2024 18:11

बंदगी की बहार- 25

मज़ान के पवित्र महीने के अंतिम दिन चल रहे हैं और हम ईश्वरीय दया के असीम समुद्र के तट के निकट पहुंचते जा रहे हैं।

रमज़ान के महीने में रोज़ेदार की सांसें, उपासना के बराबर होती हैं और इसमें की जाने वाली उपासनाएं सबसे अधिक स्वीकृत होती हैं। ईश्वर ने अपने बंदों को आदेश दिया है कि वे दिन में खाने-पीने से दूर रहें, उसका डर पैदा करें और बुराइयों से दूर रहें ताकि अपने अस्तित्व पर ईश्वरीय प्रकाश के प्रभाव को महसूस कर सकें।

रोज़ेदार व्यक्ति पूरे महीने में ईश्वर का विशेष अतिथि होता है और इस व्यापक दस्तरख़ान पर सर्वोत्तम आध्यात्मिक क्षणों का अनुभव करता है। एक महीने का यह अभ्यास, ईश्वर की पहचान हासिल करने और उससे आत्मीयता का बहुत अच्छा अवसर है। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम रोज़े को ईश्वर की बंदगी के शहर में प्रवेश का दरवाज़ा बताते हुए कहते हैं कि हर चीज़ का एक दरवाज़ा होता है और उपासना का दरवाज़ा, रोज़ा है। रोज़ा, भलाइयां करने के अभ्यास तक पहुंचने का पुल है। अतः हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें बंदगी के संसार में प्रवेश का सामर्थ्य प्रदान करे।

रमज़ान के पवित्र महीने के कार्यक्रम इस प्रकार तैयार किए गए हैं कि मनुष्य अपना ध्यान रखने के साथ ही साथ दूसरों पर भी ध्यान दे सके। इस बात का अर्थ, दूसरे इंसानों के मामलों को देखना और उनके दुखों व समस्याओं को कम करना है। रमज़ान के महीने में लोगों को बहुत सी चीज़ों से दूर रहने के लिए कहा गया है ताकि वे अपनी आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित करके सक्षम हो सकें ग़रीबों व दरिद्रों का दुख भी बांट सकें। इस महीने में रोज़ेदार व्यक्ति उन लोगों के दुखों से अवगत होता है जो जीवन की समस्याओं में घिरे हुए हैं और अपनी आजीविका चलाने में सक्षम नहीं हैं।

जो लोग सुबह से लेकर रात तक कष्ट सहन करते हैं ताकि कुछ लेकर और सुखी मन से अपने घर लौट सकें लेकिन वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता नहीं रखते। इस तरह के लोगों की समस्याओं को किस तरह समझा जा सकता है? क्या वंचित की कठिन परिस्थितियों को समझने और महसूस करने के लिए रोज़ा रखने और भूख-प्यास सहन करने से अच्छा कोई दूसरा मार्ग है। रमज़ान का महीना लोगों के अध्यात्म व नैतिकता को बढ़ाने के अलावा उनके अंदर भलाई और सद्कर्म की भावना मज़बूत करता है।

इस्लामी शिक्षाओं और धर्मगुरुओं के चरित्र से हमें पता चलता है कि धार्मिक आदेशों व अनिवार्य उपासनाओं के पालन के बाद ईश्वर से सामिप्य का सबसे बड़ा साधन, ईश्वर के बंदों के साथ भलाई है। ईश्वर के प्रिय बंदे भी सदैव लोगों की सेवा करते थे और स्वयं उनकी समस्याएं दूर करने के लिए आगे आते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से पूछा गया कि सबसे प्रिय व्यक्ति कौन है? उन्होंने उत्तर दिया कि वह जिसका अस्तित्व लोगों के लिए अधिक लाभदायक हो।

स्नेह, लोगों की सेवा और उन्हें लाभ पहुंचाने की जड़ मनुष्य के अस्तित्व में है और मानवीय प्रवृत्ति के अनुसार है। इसके अलावा मनुष्य का सामाजिक जीवन भी इस बात की मांग करता है कि वह हमेशा दूसरों से संपर्क में रहे और उनके साथ लेन-देन करता रहे। लोगों के साथ भलाई उस पेड़ की तरह है जिसकी अनेक शाखाएं होती हैं। माता-पिता के साथ भलाई उन्हीं में से एक है। इसी तरह अपने परिजनों, अनाथों और दरिद्रों के साथ भलाई उन बातों में है जिन पर क़ुरआने मजीद में बहुत अधिक बल दिया गया है। सूरए नह्ल की आयत क्रमांक 90 में कहा गया है। ईश्वर तुम्हें न्याय, भलाई और निकटवर्तियों के साथ जुड़े रहने का आदेश देता है और व्यभिचार, बुराई व अत्याचार से रोकता है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ज़मीन पर ईश्वर के कुछ ऐसे बंदे हैं जो लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की कोशि करते हैं। वे लोग प्रलय में सुरक्षित हैं। भलाई का अर्थ है बिना किसी बदले की आशा के अच्छा काम करना। क़ुरआने मजीद की आयतें, ईश्वर की दया व कृपा का पात्र बनने का एक मार्ग भले कर्मों को बताती हैं क्योंकि भला कर्म ईश्वर की दया को जोश में ले आता है और ईश्वर भले कर्म करने वालों को पसंद करता है। भलाई के मनुष्य के जीवन पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और उसे अनेक समस्याओं व कठिनाइयों से मुक्ति दिलाते हैं। इसी प्रकार से भला काम, लोगों के मध्य मित्रता व सदभावना को भी बढ़ावा देता है। जो समाज यह चाहता है कि सांसारिक कल्याण और वास्तविक शांति का पात्र बने तो उसे चाहिए कि अपने सदस्यों के मध्य कृपा व मित्रता की भावना को मज़बूत बनाए। इस के लिए रमज़ान के पवित्र महीने में प्राप्त अनमोल अवसरों से लाभ उठाना चाहिए और विशेष कर वंचितों और निर्धनों की अपनी क्षमता भर मदद करना चाहिए।

एक दिन मदीना के रहने वाला सअलबा नामक एक व्यक्ति पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास गया और उसने कहाः हे पैगम्बरे इस्लाम! ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह मुझे ढेर सारा धन दे दे। पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि हे सअलबा! जाओ संतोष से काम लो और जो कुछ इस समय तुम्हारी रोज़ी है उस पर ईश्वर का आभार प्रकट करो क्योंकि तुम अधिक धन का आभार नहीं प्रकट कर पाओगे। सअलबा चला गया और कुछ दिन बाद फिर पैग़म्बरे इस्लाम के पास गया और दोबारा अपनी वही इच्छा दोहराई। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस बार भी उसके लिए प्रार्थना करने से इन्कार कर दिया। कुछ दिनों के बाद सअलबा तीसरी बार पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में पहुंचा और अपनी पहले वाली इच्छा दोहराते हुए कहने लगाः हे ईश्वर के दूत! आप ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह मुझे बहुत अधिक धन दे दे, अगर ईश्वर मुझे ढेर सारा धन देता है तो मैं उसमें से ईश्वर का अधिकार अदा करूंगा और निर्धनों और ज़रूरत रखने वाले रिश्तेदारों की मदद करूंगा। पैगम्बरे इस्लाम ने जब सअलबा का इतना आग्रह देखा तो उसकी बात मान ली और उसके लिए दुआ कर दी।

पैग़म्बरे इस्लाम की दुआ के बाद, कुछ भेड़ों के स्वामी सअलबा की संपत्ति में अपार वृद्धि होने लगी। उसके पास भेड़ों की संख्या इतनी बढ़ गयी कि उसके लिए मदीना नगर में रहना कठिन हो गया। वह अपनी भेड़ों के लेकर मदीना नगर से बाहर चला गया और चूंकि वह स्वंय ही अपनी भेड़ें चराता था इस लिए नमाज़ के समय, पैगम्बरे इस्लाम के पास मस्जिद में आना उसके लिए कठिन हो गया इस लिए वह अकेले ही नमाज़ पढ़ने लगा। पैग़म्बरे इस्लाम की दुआ की वजह से उसकी भेड़ों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही थी जिसकी वजह से सअलबा, मदीना नगर से और दूर चला गया। फिर इस संसारिक मोह माया में वह इतना फंसा कि उसके लिए हफ्ते में एक बार भी मदीना नगर जाना और नमाज़े जमाअत में भाग लेना संभव नहीं रह गया।

जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लाम को सअलबा की स्थिति का ज्ञान हुआ तो उन्होंने तीन बार कहाः धिक्कार हो सअलबा पर। कुछ समय बाद ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के पास ज़कात की आयत भेजी और उन्हें आदेश दिया कि वे धनवानों से ज़कात लें और दरिद्रों को दें। उन्होंने सअलबा समेत मदीने के धनवान लोगों के पास अपने प्रतिनिधि भेजे। जब सअलबा ने पैग़म्बर का पत्र देखा तो कहा कि यह बात मुझ पर लागू नहीं होती, यह तो जिज़या टैक्स है जिसे ग़ैर मुस्लिमों को अदा करना चाहिए। तुम लोग दूसरों के पास जाओ, मैं इस बारे में विचार करूंगा।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के प्रतिनिधि पुनः सअलबा के पास गए और उसने फिर ज़कात देने से इन्कार कर दिया और कहा कि यह बात उस पर लागू नहीं होती। वे लोग लौट गए और उन्होंने पूरी घटना उन्हें बताई। उन्होंने कहा कि धिक्कार हो सअलबा पर। उसी समय सूरए तौबा की 75वीं और 76वीं आयतें नाज़िल हुई जिनमें ईश्वर ने कहा हैः और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने ईश्वर से प्रतिज्ञा की थी कि यदि तू अपनी कृपा से हमें प्रदान कर देगा तो निश्चित रूप से हम दान दक्षिणा करेंगे और भले लोगों में से हो जाएंगे। (9:75) तो जब ईश्वर ने अपनी कृपा से उन्हें प्रदान कर दिया तो उन्होंने उसमें कन्जूसी की और (प्रतिज्ञा को) पीठ दिखा कर मुंह फेर लिया।

सअलबा को किसी ने जा कर बताया कि ईश्वर ने ज़कात देने के संबंध में तुम्हारी अवज्ञा के बारे में कुछ आयतें भेजी हैं। यह सुन कर वह बहुत दुखी हुआ और मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास पहुंचा। उसने पछतावा प्रकट किया और ज़कात देने के लिए अपनी तैयारी की बात कही लेकिन पैग़म्बर ने कहा कि हे सअलबा! ईश्वर ने मुझे तुम्हारी ज़कात लेने से मना किया है। सअलबा उठा और अपने सिर पर मिट्टी डालते हुए रोने लगा लेकिन पैग़म्बर ने कहाः तूने ईश्वर के आदेश के पालन से इन्कार कर दिया था।

इतिहास में आया है कि ईरानी विद्वान बुज़ुर्गमेहर रोम के एक दार्शनिक और भारत के एक चिकित्सक के साथ कहीं बैठा हुआ था। वे लोग इस विषय पर बात कर रहे थे कि दुनिया की सबसे कष्टदायक चीज़ क्या है? रोम के दार्शिनक ने कहा कि मेरे विचार में ग़रीबी व दरिद्रता के साथ कमज़ोरी व बुढ़ापा सबसे अधिक कष्टदायक है। भारतीय चिकित्सक ने कहा कि मेरे विचार में रोगी शरीर व दुखी आत्मा से अधिक कष्टदायक कोई चीज़ नहीं है। इन बातों को सुनने के बाद बुज़ुर्गमेहर ने कहा। मेरे विचार में मनुष्य के लिए इस बात से कठिन कोई चीज़ नहीं है कि उसकी मौत निकट हो और उसका दामन सद्कर्मों से ख़ाली हो। उसकी बात सुन कर रोमी दार्शनिक और भारतीय चिकित्सक ने उसकी काफ़ी सराहना की।

शुक्रवार, 05 अप्रैल 2024 18:09

ईश्वरीय आतिथ्य- 25

रमज़ान का महीना जारी है और हम सब ईश्वर के अतिथि हैं।

रमज़ान जिस तरह से रोज़ा रखने वाले के मन और आत्मा को बदलता और स्वच्छ करता है उसी तरह से इस्लामी देशों के शहरों को भी अलग रंग में रंग देता है । दुआओं की आवाज़ें, इफ्तार की तैयारी , दावतें और शाम के वक्त बाज़ारों में खास तरह की चहल पहल , ऐसी चीज़े हैं जो रमज़ान के महीने में ज़्यादा स्पष्ट रूप से और अलग तरह से नज़र आती हैं। ईरान में भी अन्य इस्लामी देशों की भांति रमज़ान का विशेष रूप हर नगर में देखने को मिलता है  लेकिन मशहद और कुम जैसे पवित्र नगरों में अंदाज़ , ज़रा अलग होता है और अलग होने के साथ ही इतना मनमोहक होता है कि हर आस्थावान का मन मोह लेता है।

रमज़ान का ईरानियों के मध्य एक विशेष महत्व है लेकिन पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का जहां रौज़ा स्थित है अर्थात मशहद नगर में , रमज़ान गुज़ारने की बात ही और है। ईश्वर को तो अपने दासों की मनोकामना को पूरा करने के लिए बहाना चाहिए इसी लिए उसने विभिन्न दिन, महीने और स्थल विशेष किये हैं और कहा है कि इन जगहों पर दुआ करो तो तुम्हारी दुआ जल्दी कुबूल होगी तो फिर मशहद का क्या कहना जहां पैगम्बरे इस्लाम के परिवार से संबंध रखने वाली एक महान हस्ती दफ़्न है।

 रमज़ान के पवित्र महीने में मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े का माहौल अधिक आध्यात्मिक हो जाता है और हर तरफ लोग दुआ व प्रार्थना में व्यस्त नज़र आते हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़, जगह जगह बैठ कर कुरआन व दुआ पढ़ते लोग, कुरआने मजीद की  तिलावत की आवाज़, मन को विचित्र प्रकार की शांति प्रदान करती है। इस जगह पहुंच कर मनुष्य को, कुरआने मजीद और पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के मध्य वास्तविक संबंध का पता चलता है और यहां पर लोगों को पैगम्बरे इसलाम की उस हदीस के अर्थ का पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा कि ऐ लोगो मैं तुम्हारे मध्य दो चीज़े छोड़ कर जा रहा हूँ एक अल्लाह की किताब दूसरे मेरे  परिजन यह दोनों एक साथ मेरे पास हौज़े कौसर पर आएंगे  अगर तुम इन दोनों को थामे रहे तो कभी भी भटक नही सकते।

 मशहद में इमाम रज़ा के रौज़े से संबंधित ट्रस्ट, आस्तानाए कु़द्स रज़वी का दारुलक़ुरआन, रमज़ान के महीने में कुरआने मजीद से संबंधित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करता है ताकि इस पवित्र स्थल पर ज़ियारत के लिए जाने वाले उनका लाभ उठा सकें। इन कार्यक्रमों में रौज़े के विभिन्न भागों में हर दिन कुरआने मजीद के दस पारों अर्थात खंडों की तिलावत होती है  और महिलाओं  और पुरुषों के लिए भी अलग अलग कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के रौज़े का वह भाग जिसे गौहरशाद प्रांगण कहा जाता है  रमज़ान में विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बनता है क्योंकि पूरे रमज़ान के महीने में इस प्रांगण में कुरआने मजीद की तिलावत के कार्यक्रम में ईरान के विश्व विख्यात व प्रसिद्ध क़ारी भाग लेते हैं और कुरआने मजीद की तिलावत करते हैं। इन्हीं क़ारियों में से एक जवाद सुलैमानी हैं जिन्हें इस पवित्र स्थल में कुरआने मजीद की तिलावत का मौक़ा मिला है। वह इस बात का उल्लेख करते हुए कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में तिलावत करना उनके लिए बहुत गौरव की बात है कहते हैं कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं के सामने और इस पवित्र स्थल पर कुरआने मजीद की तिलावत मेरे लिए बहुत गर्व की बात है और मेरे ख्याल में कुरआने मजीद के संदर्भ में मेरी अब तक की सभी गतिविधियों में यह सब से बड़ा और गौरवशाली अवसर है। वह कहते हैं कि इस पवित्र महीने में मनुष्य का जीवन, कुरआने मजीद के साथ मिल जाता है और निश्चित रूप से इस महीने की एक विशेषता यह भी है कि मनुष्य कुरआने मजीद से बेहद निकट हो जाता है वैसे साल के अन्य महीनों में भी इन्सान को कुरआने मजीद की तिलावत करते रहना चाहिए ताकि इसके लाभ उसे मिलते रहें।

इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के रौज़े में तिलावत के इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले यदुल्लाह सुबहानी का संबंध ईरान के इस्फहान प्रान्त से है वह कहते हैं कि मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में दर्शन के लिए आया तो मैंने वहां तिलावत का कार्यक्रम देखा और जब मैं ने  उस कार्यक्रम  में भाग लिया तो मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे ईश्वरीय तेज मेरी आत्मा में उतर गया है। इस कार्यक्रम में तिलावत के साथ ही कुरआनी आयतों के अर्थों का भी वर्णन होता है जो बहुत लाभ दायक है।

 मशहद नगर में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए जाने वालों को इफ्तार भी करायी जाती है और  यह कार्यक्रम हर साल, रमज़ान के महीने में आयोजित होता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में हर साल आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में हर रोज़ 13 हज़ार लोगों को इफ़्तार दी जाती है और इफ्तार में बुलाने का यह तरीका है कि रोज़ै के सेवक मशहद में ज़ियारत के लिए जाने वालों को , होटलों  बसों और अन्य स्थानों पर , इफ्तारी का कूपन बांटते हैं जिसे लेकर लोग , इफ्तार के कार्यक्रम में भाग लेते हैं ।  यह सम्पूर्ण इफ्तारी का कार्यक्रम होता है जबकि रौज़े में हर रोज़ एक लाख से अधिक रोज़ादारों को हल्की इफ्तारी बांटी जाती है। इस प्रकार से रमज़ान के एक महीने के भीतर लगभग तीस लाख लोगों को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में इफ्तार करायी जाती है।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़ै की आध्यात्मिकता इस सीमा तक है कि बहुत से गैर मुस्लिम भी वहां ज़ियारत  के लिए जाते और फिर इतना प्रभावित होते हैं कि धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन जाते हैं। नव मुस्लिमों का एक गुट दक्षिणी कोरिया और अलजीरिया से ईरान आया था। उस गुट में शामिल दक्षिण कोरिया के एक युवा ने कहा कि मैं ईसाई था लेकिन मुझे संतुष्टि नहीं मिली इसी लिए मैं वह्हाबियों की एक मस्जिद में गया और इस्लाम स्वीकार कर लिया लेकिन वहाबियों के पास तर्क की कोई शक्ति नहीं है इसी लिए वह मुझे मेरे सवालों का सही जवाब नहीं दे पाए इस लिए मैंने विभिन्न इस्लामी मतों का अध्ययन किया और अंत में शिया मत के बारे में मुझे पता चला और मैं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में आकर शिया मुसलमान बन गया। मेरी नज़र में शिया मत सब से अधिक तार्किक मत है।

बेलारूस की भाषा विद , ओल्का ओन्सेतविच ने दो बार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े का दर्शन करने के बाद, इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उन्होंने अपना नया नाम " हदीस" रखा। वह कहती हैंः मैंने अरबी सीखी और कु़रआन पढ़ा, मैंने इस्लाम धर्म को मित्रता और शांति का धर्म पाया और इसी लिए मैंने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया। मैं बहुत खुश हूं कि ईश्वर में इस प्रकार से मुझ पर कृपा की विशेष कर इस लिए भी कि यह कृपा मुझ पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में हुई।

इस्लाम और सभी धर्मों में पवित्र स्थलों का महत्व इसी लिए होता है क्योंकि यह स्थल मनुष्य को अध्यात्मिकता से निकट और भौतिकता से दूर करते हैं इस लिए इन स्थानों पर जाकर मनुष्य को चितंन मनन का अवसर मिलता है।  धर्म की दृष्टि में, मनुष्य को अपने सभी मामलों में, पहचान व जानकारी की आवश्यकता होती है क्योंकि जानकारी व सही विचारों के बिना मनुष्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकता। इस्लाम में, सही रूप से चिंतन करने का इतना अधिक महत्व है कि एक घंटा चिंतन करने को , ७० वर्ष की उपासना से अधिक श्रेष्ठ बताया गया है। क्योंकि सृष्टि के अचरजों में चितंन व विचार , मनुष्य के ह्रदय  में तत्वदर्शिता व ज्ञान के सोते जारी कर देता है । पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम कहते हैः

" चिंतन, तत्वदर्शिता के द्वार की कुंजी है।"  और चिंतन मनन का समय पवित्र स्थलों में अधिक मिलता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े पर यदि कोई रमज़ान के महीने में जाए तो फिर उसका लाभ निश्चित रूप से अन्य दिनों की तुलना में बहुत अधिक है। ईश्वर हम सब को यह अवसर प्रदान करें।

 

 

 

 

 

 

इमाम ख़ुमैनी बैत अल-मकदिस को पवित्र और इस्लामी स्थानों में से एक मानते थे और इसमें प्रार्थना करने की सिफारिश की गई थी। 1962 में इस्लामिक मूवमेंट की शुरुआत के बाद से ही उन्हें कुद्स शरीफ की चिंता थी. कुद्स पर इमाम खुमैनी का रुख उस स्थिति में था जब वैश्विक ज़ायोनीवाद फ़िलिस्तीन और कुद्स के मुद्दे को अरब दुनिया तक सीमित करने की कोशिश कर रहा था। 1962 में ईरान में इस्लामी आंदोलन की शुरुआत के साथ, इमाम खुमैनी ने ईरानी सरकार से इज़राइल और बहाइयों के साथ संबंध तोड़ने के लिए कहा और आंदोलन को जारी रखते हुए, उन्होंने यरूशलेम को मुसलमानों को वापस करने पर जोर दिया।इज़राइल के साथ अपने संबंधों को छिपाने के लिए, पहलवी सरकार के एजेंटों ने यह समझाने की कोशिश की कि इज़राइल और बहाई; ईसाई राज्यों से अलग नहीं हैं और वे सभी एक जैसे हैं। इमाम ख़ुमैनी ने इस मुद्दे को क़ुरान के पाठ के विरुद्ध और इस हड़पने वाले देश की पहचान और बहाई के झूठे संप्रदाय के समर्थन की घोषणा की और इज़राइल के साथ संबंधों को धर्म की आवश्यकताओं के विपरीत घोषित किया और ईरानी राष्ट्र माना। इस महान पाप से मुक्त हो जाओ.

इस्लामी क्रांति के चरम पर, ईरानी लोकप्रिय आंदोलन के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता के बावजूद, उन्होंने यरूशलेम और फिलिस्तीन को याद किया और मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल-सादात और मेनकेम बेगिन के बीच कैंप डेविड समझौते (1357/1979) की निंदा की। मिस्र ने यरूशलेम से मुसलमानों की वापसी की मांग की।

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद यरूशलेम की आजादी का मुद्दा इमाम खुमैनी की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में शामिल हो गया और 17 फरवरी 1979 को फिलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल और यासर अराफात के साथ बैठक में उन्होंने यरूशलेम की आजादी के बारे में बात की। जेरूसलम. और उनसे कहा कि दुश्मन पर जीत और बैत-उल-मकदिस की आजादी के लिए खुदा पर भरोसा रखें।वह सभी शक्तियों से परे है. 12 सितंबर 1980 को उन्होंने फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजराइल के अपराधों का जिक्र करते हुए इजराइल की राजधानी को येरूशलम ले जाने की चेतावनी दी थी. इस्लामी क्रांति के शुरुआती दिनों में, फ़िलिस्तीनी दूतावास ने इज़रायली दूतावास का स्थान ले लिया।

इमाम खुमैनी ने 7 अगस्त, 1979 को ईरान और दुनिया के मुसलमानों को एक संदेश में फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन और अल-कुद्स की मुक्ति के लिए दुनिया भर के मुसलमानों की एकता के लिए 13/रमज़ान 1399 हिजरी का आह्वान किया। उन्होंने रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को जश्न मनाने की घोषणा की और उन्होंने लोगों और इस्लामी सरकारों से हड़पने वाले इज़राइल के हाथ को कम करने के लिए समर्थन देने को कहा। और रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को, जो क़यामत के दिन में से एक था और फ़िलिस्तीनी लोगों के भाग्य का निर्धारण कर सकता था, फ़िलिस्तीनी लोगों के कानूनी अधिकारों के समर्थन में हमारी एकजुटता की घोषणा करते हैं।

विश्व कुद्स दिवस की विशेषताएं

 1979 में, विश्व कुद्स दिवस के अवसर पर, इमाम खुमैनी ने विभिन्न वर्गों के लोगों को अपने संबोधन में, कुद्स दिवस को इस्लाम के पुनरुद्धार का दिन, इस्लामी सरकार का दिन, उत्पीड़ितों के लिए अहंकारियों के खिलाफ लड़ने का दिन कहा। महाशक्तियाँ. उत्पीड़ित राष्ट्रों के भाग्य के निर्धारण का दिन और अहंकारियों पर उत्पीड़ितों की जीत का दिन, साहस का दिन, सभी देशों में मुसलमानों को कुद्स को बचाने और पहचानने के लिए इस्लामी गणतंत्र का झंडा उठाना चाहिए। प्रतिबद्ध लोगों में से पाखंडी और याद रखें कि प्रतिबद्ध व्यक्ति वे हैं जो यौम-ए-कुद्स पर विश्वास करते हैं

 

 

रमज़ान में एकता प्रतीक एक अन्य उपासना  " एतेकाफ़" है। कुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर 125 में कहा गया है कि हम ने इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर  को तवाफ करने वालों, रहने वालों, रुक और सजदा करने वालों के लिए पवित्र करो। सभी इस्लामी मतों का कहना है कि मस्जिद में विशेष दिनों में रहना, जिसे " एतेकाफ़" कहा जाता है , एक पुण्य वाला कर्म है । " एतेकाफ़" दो भागों पर आधारित होता है, एक मस्जिद में ठहरना और रोज़ा रखना। हालांकि यह उपासना, व्यक्तिगत रूप से और अकेले होती है लेकिन पैगम्बरे इस्लाम की शैली के अनुसार एक सामूहिक रूप से भी अंजाम दिया जा सकता है और इसी लिए बहुत से इस्लामी देशों में एक उपासना सामूहिक रूप से अंजाम दी जाती है। निश्चित रूप से जब एक मुसलमान , रोजा रख कर तीन दिनों तक मस्जिद में रहता है और ईश्वर की उपासना करता है तो इसके उसके मन व मस्तिष्क पर बड़े सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं और उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। इसके साथ ही चूंकि वह यह काम सामूहिक रूप से करता है इस लिए उसमें सामाजिक विषयों और समाज में अपने दूसरों भाइयों की समस्याओं के निपटारे में रूचि पैदा होती है।

इस्लाम ने , मुसलमानों को एक दूसरे का भाई बताया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि लोगों को एक दूसरे पर वरीयता, उनकी धर्मपराणता के आधार पर ही दी जाएगी तो फिर यह इस्लाम धर्म अपने अनुयाइयों से यह आशा रखता है कि एकजुटता के लिए आगे बढ़ेंगे और इस्लामी देश एक दूसरे के साथ सहयोग करेंगे लेकिन इस्लामी जगत के बहुत से मुद्दों विशेषकर फिलिस्तीनी मुद्दे पर यदि गौर किया जाए तो यह कटु वास्तविकता स्पष्ट होती है कि बहुत से ताकतवर इस्लामी देश, इस मुद्दे के बारे में एकजुटता के साथ रुख अपनाने की क्षमता नहीं रखते और इस्लामी हितों के खिलाफ, इस्राईल व अमरीका के साथ संबंध बढ़ा रहे हैं। आज इस्लामी जगत की सब से बड़ी समस्या, आपसी झगड़े हैं जो हर मुसलमान के लिए दुख की बात है। यदि हम रमज़ान के महीने और उसकी विभूतियों पर चिंतन करें तो हमें यह महीना, इस्लामी जगत की समस्याओं के समाधान का अच्छ अवसर नज़र आएगा और निश्चित रूप से इस्लामी संयुक्त बिन्दुओं पर ध्यान देकर, मुसलमान महानता की चोटियों तक पहुंच सकते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं कि अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत नींद से जागे और इस्लाम को एकमात्र ईश्वरीय मार्ग के रूप में चुन ले और उस पर मज़बूती के साथ क़दम बढ़ाए। अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत, एकजुटता की रक्षा करे और संयुक्त दुश्मन के सामने, जिससे सभी इस्लामी संगठनों ने नुक़सान उठाया है अर्थात साम्राज्य और ज़ायोनिज्म के ख़िलाफ़ एकजुटता के साथ डट जाएं, एक नारा लगाए , एक प्रचार करें और एक ही राह पर चलें। इन्शाअल्लाह उन्हें ईश्वर की कृपा का पात्र बनाया जाएगा और ईश्वरीय परंपराओं और नियमों के अनुसार उनकी मदद भी होगी  और वह आगे बढ़ेंगे।

 

 

 

 

 

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि इस साल का विश्व क़ुद्स दिवस, इंशाल्ला ईरानी राष्ट्र की मौजूदगी और स्वतंत्रता प्रेमी एवं मुसलमान राष्ट्रों की उपस्थति से अवैध ज़ायोनी शासन के विरुद्ध एक अन्तर्राष्ट्रीय दहाड़ में परिवर्तित होगा।

इमाम ख़ामेनेई ने बुधवार को ईरान की तीनों पालिकाओं के प्रमुखों और अधिकारियों के साथ भेंट में कहा कि ग़ज़्ज़ा जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा विश्व जनमत की प्राथमिकता से बाहर हो जाए।

आप ने कहा कि ज़ायोनियों के हाथों जातीय सफाया, जनसंहार, बच्चों और महिलाओं पर हमले, बीमारों तथा अस्पतालों पर हमले, हालिया इतिहास में अभूतपूर्व हैं।  यह अपराध इतने गंभीर हैं कि पश्चिमी सभ्यता में पलेबढ़े लोग तक अपना विरोध जताने लगे हैं।

सर्वोच्च नेता ने छह महीनों से जारी ग़ज़्ज़ा युद्ध का निष्कर्ष निकालते हुए ज़ायोनी शासन दो आयामों से पराजित बताया।  उनकी पहली पराजय का कारण 7 अक्तूबर का अलअक़सा तूफान आपरेश है।

ख़ुफ़िया जानकारी और सैन्य वर्चस्व का दावा करने वाले शासन को उस प्रतिरोधी गुट से पराजित होना पड़ा जिसके पास संभावनाएं भी बहुत सीमित हैं।  ज़ायोनियों की इस विफलता और अपमान की भरपाई कभी भी नहीं हो पाएगी।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ज़ायोनियों की दूसरी पराजय को उसके द्वारा ग़ज़्ज़ा के लिए निर्धारित किये गए लक्ष्यों को न प्राप्त करना बताया।  उन्होंने कहा कि हालांकि अवैध ज़ायोनी शासन को अमरीका का आर्थिक, सैनिक और कूटनीतिक हर प्रकार का समर्थन हासिल है किंतु इसके बावजूद वे अपने घोषित लक्ष्यों में से एक लक्ष्य को भी हासिल करने में विफल रहे।

सर्वोच्च नेता कहते हैं कि वे प्रतिरोध को विशेषकर हमास को पूरी तरह से नष्ट करना चाहते थे जबकि वर्तमान समय में हमास, जेहादे इस्लामी और ग़ज़्ज़ा के सारे ही प्रतिरोधी गुट, हर प्रकार की समस्याओं के बावजूद अवैध ज़ायोनी शासन को करारी चोट पहुंचा रहे हैं।  उन्होंने हिंसक व्यवहार और महिलाओं एवं बच्चों की हत्या करने को, प्रतिरोधकर्ताओं के मुक़ाबले में ज़ायोनी शासन की अक्षमता बताया।

वरिष्ठ नेता के अनुसार ज़ायोनियों की पराजय जारी रहेगी और हताशा में की गई सीरिया जैसी कार्यवाही से उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाएगा हालांकि उसका बदला भी उनको मिलेगा।

 इमाम ख़ामेनेई का कहना है कि ज़ायोनियों की मुक्ति उस जाल से संभव नहीं है जिसे उन्होंने स्वयं ही तैयार किया है।  अवैध ज़ायोनी शासन दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होता जा रहा है जिसका अंत निकट है।  हम आशा करते हैं कि हमारे युवा, उस दिन को भी देखें कि जब बैतुल मुक़द्दस, मुसलमानों के अधिकार में हो और वे वहां पर नमाज़ पढ़ें और इस्लामी जगत अवैध ज़ायोनी शासन के अंत का जश्न मनाए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी शासन व्यवस्था के जारी रहने को इस्लामी जगत के लिए महान अवसर बताते हुए कहा कि अलअक़सा तूफान आपरेशन के बाद क्षेत्रीय समीकरण और प्रतिरोध मोर्चों की स्थति बदल चुकी है जो भविष्य में इससे अधिक परिवर्तित होगी।  हालांकि इन परिवर्तनों के अनुरूप ढलना अपरिहार्य है किंतु उनको जानना चाहिए कि वे इस क्षेत्र में इस्लामी समाज पर कभी हुकूमत नहीं कर पाएंगे।

सुप्रीम लीडर ने आज की भेंट में जनता के लिए काम, जन कल्याण और देश की प्रगति के लिए प्रयास को ईश्वर के लिए किया गया काम बताया।  उन्होंने कहा कि लोगों की समस्याओं के समाधान का प्रयास अर्थात ईश्वर के लिए काम करने की भावना का बदला ईश्वर देता है।

इमाम ख़ामेनेई ने इस वर्ष के नारे, "जनता की भागीदारी से पैदावार में छलांग" को साकार करने के लिए क्या करें और क्या न करें की व्याख्या करते हुए सरकारी हस्तक्षेप की ओर संकेत किया।  उन्होंने इसमें कमी का उल्लेख करते हुए कहा कि जनता की आर्थिक, वैचारिक और पहल करने जैसी संभावनाओं को सामने लाने में देश के लिए अधिक लाभ है।  उन्होंने मानवीय क्षमताओं को प्राकृतिक क्षमताओं से अधिक महत्वपूर्ण बताया।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरानी राष्ट्र के पास विश्व की औसत से अधिक प्रतिभा है।  यहां पर 36 मिलयन युवाओं में से 14 मिलयन के पास उच्च शिक्षा है।  30 लाख से अधिक स्टूडेंट, एक लाख से अधिक फेकल्टी मेंमबर्स और डेढ लाख से अधिक डाक्टर हैं।

उन्होंने देश की असधारण क्षमताओं के कारण आर्थिक स्थति में सुधार के लिए लोगों की उम्मीदों को जायज़ बताते हुए कहा कि 64 महत्वपूर्ण खनिज पदार्थों के साथ ईरान, दुनिया के लगभग सात प्रतिशत संसाधनों का स्वामी है जबकि ईरान की जनसंख्या विश्व की मात्र एक प्रतिशत है।  यह बहुत ही उपयुक्त क्षमता है।

सर्वोच्च नेता के अनुसार लगभग 37 मिलयन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि, इस महत्वपूर्ण कृषि क्षमता के संचान के लिए जल प्रबंधन की संभावना तथा स्टील और सीमेंट जैसे उत्पादों में वैश्विक उत्पाद के शीर्ष रैंक में ईरान की मौजूदगी, देश की अन्य क्षमताओं में शामिल है।

इस्लामिक क्रांति के संस्थापक, हज़रत इमाम खुमैनी (आरए) का उद्देश्य, रमज़ान के आखिरी शुक्रवार को अल-कुद्स के दिन के रूप में नामित करना, मुस्लिम उम्माह की नज़र में फिलिस्तीन मुद्दे को जीवित करना था।

अल-कुद्स दिवस वास्तव में फिलिस्तीन के जीवन का नाम है और हज़रत इमाम खुमैनी (आरए) ने आखिरी शुक्रवार को अल-कुद्स दिवस के रूप में बुलाया और इस्लामी उम्माह के दिमाग में फिलिस्तीन मुद्दे को हमेशा के लिए पुनर्जीवित कर दिया।

  अल-कुद्स दिवस ने साबित कर दिया कि फिलिस्तीनी लोग अकेले नहीं हैं। हम उनके दुःख-दर्द में बराबर के भागीदार हैं। हम तब तक चीन से नहीं बैठेंगे जब तक सभी फ़िलिस्तीनी शरणार्थी अपने घर नहीं लौट जाते।

आज यरूशलम को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से पहली चुनौती इजराइल की कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देना है। दूसरी चुनौती येरूशलम की आबादी और पहचान को ख़त्म कर इसे यहूदी बनाना है. तीसरी चुनौती यरूशलेम और अल-अक्सा मस्जिद में पवित्र स्थानों का अपमान और अपवित्रता है, जबकि चौथी चुनौती सेंचुरी डील है और पांचवीं चुनौती पश्चिमी जॉर्डन का इज़राइल में एकीकरण है। और छठी चुनौती है गाजा के उत्पीड़ित लोगों का नरसंहार.

संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल अपने सहयोगी अरब शासकों के साथ पिछले 74 वर्षों से फिलिस्तीनी मुद्दे को दबाने की असफल साजिश रच रहे हैं, लेकिन फिलिस्तीनी मुद्दा दिन-ब-दिन प्रमुख होता जा रहा है और इस संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के प्रयास असफल रहा।

अल-कुद्स दिवस के अवसर पर, हमें यरूशलेम और फिलिस्तीन मुद्दे पर दृढ़ और दृढ़ विश्वास है, और हम यह भी मानते हैं कि यरूशलेम अपने असली उत्तराधिकारियों को मिलेगा और भटकते फिलिस्तीनी एक दिन जीत के साथ अपने वतन लौटेंगे। इच्छा ईश्वर की कृपा हो।

गाजा पर ज़ायोनी आक्रमण और वैश्विक स्तर पर इज़राइल के खिलाफ पाए गए दुःख और गुस्से और बड़ी रैलियों, कुद्स इंतिफादा की व्यापक और बढ़ती सफलताओं और फिलिस्तीनियों के जोरदार संघर्ष के साथ, इस वर्ष का विश्व अल-कुद्स दिवस एक अलग दिन है। इस्लामी दुनिया के इतिहास में यह घटना पवित्र दिन होगी।

इसलिए भी कि अस्थायी और नकली ज़ायोनी सरकार की सैन्य शक्ति का भ्रम टूट गया है और स्वयं ज़ायोनी भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं और ऐसी परिस्थितियों में मुस्लिम उम्माह और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के संघर्ष के इतिहास में इस बार का दिवस मनाया जाता है। अल-कुद्स का एक विशेष महत्व है।

अल-अक्सा मस्जिद खतीब अल-शेख इकरामा साबरी ने अपने एक बयान में कहा कि कुद्स आज़ाद होगा और फ़िलिस्तीनी लोग अलर्ट पर हैं।

अल-अक्सा मस्जिद खतीब ने कहा कि अल-अक्सा मस्जिद अपनी इस्लामी और फिलिस्तीनी पहचान के कारण हमेशा इजरायल के हमले का शिकार रही है क्योंकि ज़ायोनी सरकार इस पहचान को खत्म करना चाहती थी।

स्टैजमैट फ्रंट से जुड़े पर्यवेक्षकों का कहना है कि फ़िलिस्तीनी सरकार हिज़्बुल्लाह के रॉकेटों से अपनी रक्षा नहीं कर सकती है और पिछले 6 महीनों से वह एक समूह को हरा नहीं पाई है, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ रहा है और वह गाजा के दलदल में है। बुरी तरह फंस चुका है और वहां से निकलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है तो वह कैसे सैन्य बल के जरिए अपने कैदियों को स्टैजमैट फ्रंट के मुजाहिदीन की जेल से छुड़ा सकता है.

 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग वाली दूसरी याचिका भी खारिज कर दी, जो शराब नीति में कथित घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में हैं।

भारत में मीडिया सूत्रों के मुताबिक, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन सिंह और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह उपराज्यपाल के अधीन आता है राष्ट्रपति का अधिकार क्षेत्र. हालाँकि, अदालत ने टिप्पणी की कि यह मुख्यमंत्री पर निर्भर है कि वह पद पर बने रहेंगे या नहीं।

पीठ ने कहा कि कभी-कभी व्यक्तिगत हित को राष्ट्रीय हित के अधीन करना पड़ता है लेकिन यह उनका यानी केजरीवाल का निजी फैसला है।

पीठ ने कहा कि वह केवल यह कह सकती है कि वह इस मामले पर फैसला नहीं कर सकती और इस मामले पर फैसला करना दिल्ली के उपराज्यपाल या भारत के राष्ट्रपति पर निर्भर है।

 

इस्राईल की युनिट 8200 एक इंटैलीजेंस एजेंसी है जो मीडिया के मंच पर सक्रिय है और अफ़वाहे फैलाना, सामाजिक टकराव को हवा देना, सिस्टम्ज़ को हैक करना और कोड व पासवर्ड का पता लगाना इस युनिट की गतिविधियों के मैदान हैं।

इस युनिट की स्थापना 1952 में कर दी गई यानी उस समय जब इस्राईली शासन की स्थापना को महज़ चार साल गुज़रे थे। इसकी स्थापना के लिए अमरीकी उपकरणों और संसाधनों का इस्तेमाल किया गया था। इस युनिट का मुख्यालय तेल अबीब के उत्तर में स्थित ग्लीलोट नामक इलाक़े में है। कर्मियों की संख्या की दृष्टि से इस्राईल के युद्ध मंत्रालय की यह सबसे बड़ी युनिट है। इसके कर्मियों में अधिकतर की उम्र 16 से 18 साल के बीच होती है।

डिफ़ेंस न्यूज़ वेबसाइट के अनुसार इस्राईल ने वर्ष 2003 में हाई स्कूल के हज़ारों छात्रों की इस युनिट में भर्ती की थी।

युनिट 8200 की ज़िम्मेदारियां

युनिट 8200 के कर्मी ज़ायोनी विचारों का प्रचार, पूर्वी दुनिया और इस्लामी जगत में घुसपैठ करना, पूर्वी समाजों और मुसलमानों के बारे में लोगों की सोच की नकारात्मक बनाना और नैतिक मूल्यओं व आस्थाओं को निशाना बनाना इस युनिट के मुख्य काम हैं। दरअस्ल इस्राईल ने एक साइबर फ़ोर्स बना रखी है जिसकी मदद से वह साबइर स्पेस और सोशल मीडिया पर भारत, पाकिस्तान, चीन, जापान और इस्लामी समाजों में विवाद और टकराव पैदा करता है। इसका मक़सद इस्राईल को शांत माहौल मुहैया करना है जिसमें वह अपनी विस्तारवादी योजनाओं पर काम कर सके।

युनिट 8200 इस्राईल की साइबर फ़ोर्से

इस समय युनिट 8200 के सैकड़ों कर्मी सोशल मीडिया यूज़र्स के भेष में अलग अलग देशों में अफ़वाहें फैलाने में व्यस्त हैं। स्वाधीन देशों के नेताओं की छवि ख़राब करना और राजनैतिक व धार्मिक टकराव पैदा करना इसका एजेंडा है।

यही युनिट कम्प्युटर वायरस बनाकर उसे दूसरे देशों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने और ज़ायोनी शासन का विरोध करने वाले देशों को नुक़सान पहुंचाने में व्यस्त है। इस युनिट के करतूतों में ईरान के सिविलियन परमाणु कार्यक्रम में बाधाएं डालना और इसके लिए स्टाक्सनेट जैसे वैयरस का इस्तेमाल शामिल है।

रायुल यौम अख़बार ने कुछ समय पहले ज़ायोनी सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी कि युनिट 8200 इस्लामी गणराज्य ईरान को साइबर और इलेक्ट्रानिक जंग में अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती है। यह भी महत्वपूर्ण बिंदु है कि इस इकाई में काम करने वाले कर्मी फ़ार्सी सहित अनेक विदेशी भाषाएं जानते हैं।

रिपोर्टों से पता चलता है कि ज़ायोनी सेना इस्लामी गणराज्य ईरान के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए अपने कर्मियों को बहुत छोटी उम्र से फ़ार्सी सिखाती है।इस युनिट का काम सोशल मीडिया की पोस्टों के नीचे भारी संख्या में कमेंट लिखना और ईरान की अहम हस्तियों की छवि ख़राब करना और ईरान की साम्राज्यवाद विरोध सोच को कमज़ोर करना है।

इन गतिविधियों के साथ ही इस युनिट के लोग जासूसी के मक़सद से अलग अलग देशों में सोशल मीडिया यूज़र्स की जानकारियां एकतत्रित करते हैं।

इस युनिट की अन्य गतिविधियों में पश्चिमी एशिया में टारगेट किलिंग की घटनाओं में सहयोग देना है।

वर्ष 2010 में न्यूयार्क टाइम्ज़ ने अमरीका के एक अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट छापी थी कि इस युनिट के लोग सीरिया में आप्रेशन कर रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि इस युनिट ने वर्ष 2007 में सीरिया के परमाणु प्रतिष्ठानों की जानकारियां एकत्रित कीं और इस्राईली वायु सेना के हवाले कर दीं ताकि वह इन केन्द्रो को ध्वस्त कर सके।

इस्राईल के सुरक्षा सूत्रों का कहना है कि यह युनिट क्षेत्र के देशों में टारगेट किलिंग के आप्रेशनों के लिए ड्रोन विमानों का भी इस्तेमाल करती है।

इस्राईल के सामरिक व सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ यूसी मेलमैन ने इस बारे में बताया कि इस्राईल में इंटैलीजेंस का कोई भी आप्रेशन नहीं है जिसमें युनिट 8200 की भूमिका न हो। विदेशों में इस्राईल के हर आप्रेशन में इंटैलीजेंस सपोर्ट इसी युनिट का होता है।