رضوی

رضوی

  उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा (स.अ) की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

  उम्मत की मां जनाबे ख़दीजा (स.अ) एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून हैं. आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे हिन्द थी, आप के वालिद ख़ुवैल्द इब्ने असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते ज़ायदा इब्ने असम था।

  इन दोनों का नसब आगे चल कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नसब से मिल जाता है, आप की वफ़ात माहे मुबारक रमज़ान की दसवीं तारीख़ (बेअसत के दसवें साल) में मक्का शहर में हुई और मक्का के मशहूर क़ब्रिस्तान जन्नतुल मोअल्ला में आप दफ़्न हुईं जहां आज भी आपकी क़ब्र साहिबाने मारेफ़त की ज़ियारतगाह बनी हुई है।

  *जनाबे ख़दीजा (स.अ) की शादी*

  जनाबे ख़दीजा की उम्र २८ बरस की थी जब आप की शादी पैग़म्बरे इस्लाम (स) से हुई और आप रसूले ख़ुदा (स) से ख़ानदानी रिश्तेदारी तो रखती ही थीं उसके अलावा आप ने चचाज़ाद भाई वरक़ह इब्ने नौफ़िल से आप के फ़ज़ाएल सुने थे और यहूदी और ईसाई उलमा से आप की नबुव्वत और रिसालत की जो ख़बरें उन तक पहुंची थीं इन्हीं सब चीज़ों की वजह से अपने दिमाग़ में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) को जगह दे चुकी थीं और दिल ही दिल में आप पर ईमान ला चुकी थीं।

  *इस्लाम के एलान से पहले आप के अलक़ाब*

  इस्लाम के एलान से पहले आप के बहुत सम्मानित अलक़ाब थे जैसेकि:

  मुबारकह: इंजील में जहां पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बशारत का ज़िक्र है वहीं पर जनाबे ख़दीजा (स) के मुबारकह होने और जन्नत में जनाबे मरयम (स) के साथ हमनशीनी का भी ज़िक्र है।

  ताहिरा: अरब के ज़माने जाहिलिय्यत में पाकदामन औरतों की तादाद बहुत कम थी और समाज की ख़राबियों की वजह से ज़ियादातर औरतों का किरदार दाग़दार होता था, उस दौर में भी जनाबे ख़दीजा को अपनी पाकीज़गी की वजह से ताहिरा के लक़ब से नवाज़ा गया जो आप के बुलंद मर्तबे की दलील है।

  सय्यदुन निसा: उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

  *क़ुरआन और रिवायात में आप का ज़िक्र*

  जैसा कि ज़िक्र हुआ है कि आप अपने चचेरे भाई से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के फ़ज़ाएल और अज़मत के बारे में सुन चुकी थीं जिस के बाद न केवल यह कि आप पैग़म्बरे ख़ुदा (स) की नबुव्वत और रिसालत के बारे में जानती थीं बल्कि दिल ही दिल में ईमान भी ला चुकी थीं.

  इमाम अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में क़ासेआ नामी ख़ुत्बे में फ़रमाते हैं कि: जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत का नूर चमका उसकी रौशनी पैग़म्बरे ख़ुदा (स) और जनाबे ख़दीजा के घर के अलावा किसी और घर में नहीं थी और मैं उनमें तीसरा शख़्स था जो रिसालत के नूर को देखता और नबुव्वत की ख़ुशबू सूंघता था। आप का मर्तबा इतना बुलंद था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप से फ़रमाते थे: ऐ ख़दीजा! अल्लाह रोज़ाना कई मर्तबा तुम्हारी वजह से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता है...

? *अल्लाह हुम्मा अज्जिल ले वलियेकल फ़रज...*

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नए हिजरी शम्सी साल के पहले दिन बुधवार 20 मार्च की शाम को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों के हज़ारों लोगों से मुलाक़ात की।

    उन्होंने क़ौम के सभी लोगों को नौरोज़ की मुबारकबाद पेश करते हुए, प्रकृति की बहार और अध्यात्म की बहार के एक साथ आगमन को इंसान के जिस्म, आत्मा और जान की ताज़गी की राह समतल होने का सबब बताया और कहा कि रमज़ानुल मुबारक की ताक़त और कमाल ये है कि वो रोज़े, इबादत और दुआओं के ज़रिए ग़ाफ़िल न रहने वाले इंसान को शौक़ जद्दोजेहद के साथ बेहतरी और बंदगी की राह की ओर ले आता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि ग़ज़ा के वाक़ेयात और कथित सभ्य व मानवाधिकार की रक्षा की दावेदार दुनिया की नज़रों के सामने 30000 से ज़्याद बच्चों, औरतों, बूढ़ों और जवानों के क़त्ले आम ने पश्चिमी दुनिया पर छाए हुए अंधकार को स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा कि अमरीका और योरोप वालों ने न सिर्फ़ यह कि क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन के जुर्म की रोकथाम नहीं की बल्कि आग़ाज़ के दिनों में ही मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन का दौरा करके अपने सपोर्ट का एलान किया और अपराध जारी रखने के लिए तरह तरह के हथियार और मदद भेजी।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पश्चिम एशिया में प्रतिरोध के मोर्चे के गठन की उपयोगिता उजागर होने को हालिया कुछ महीनों के दौरान के वाक़यों का नतीजा बताया और कहा कि इन वाक़यों ने दिखा दिया कि इस क्षेत्र में प्रतिरोध के मोर्चे की मौजूदगी, सबसे अहम मुद्दों में से एक है और बेदार ज़मीरों से निकलने वाले तथा ज़ायोनी अपराधियों के 70 वर्षीय ज़ुल्म व नाजायज़ क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ गठित होने वाले इस मोर्चे को दिन ब दिन अधिक मज़बूत बनाना चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने प्रतिरोध के मोर्चे की क्षमता के सामने आने को ग़ज़ा की मौजूदा जंग का एक और नतीजा बताया और कहा कि पश्चिम वालों को भी और क्षेत्र की सरकारों को भी प्रतिरोध के मोर्चे की ताक़त व सलाहियतों के बारे में कुछ पता नहीं था लेकिन आज ग़ज़ा के मज़लूम अवाम के सब्र, हमास और दूसरे प्रतिरोधी गुटों सहित फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के इरादे व संकल्प और लेबनान, यमन तथा इराक़ में प्रतिरोध की ताक़त व संकल्प उनकी नज़रों के सामने हैं।

उन्होंने प्रतिरोध के मोर्चे की ताक़त के ज़ाहिर होने को अमरीकियों के अंदाज़ों और क्षेत्रीय मुल्कों पर हावी होने की उनकी योजना के नाकाम होने का सबब बताया और कहा कि प्रतिरोध की ताक़त ने उनके अंदाज़ों को नाकाम कर दिया और ये दिखा दिया कि अमरीकी न सिर्फ़ इलाक़े पर हावी नहीं हो सकते बल्कि वो क्षेत्र में रुक भी नहीं सकते और इलाक़े से निकलने पर मजबूर हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने सभी के लिए ज़ायोनी शासन की संकटमय स्थिति के ज़ाहिर हो जाने को ग़ज़ा के वाक़यों की एक और उपयोगिता बताया और कहा कि इन वाक़यों ने दिखा दिया कि ज़ायोनी सरकार न सिर्फ़ यह कि अपनी रक्षा करने में संकट का शिकार है बल्कि वो संकट से बाहर निकलने में भी संकट का शिकार है क्योंकि ग़ज़ा की जंग में दाख़िल होकर वो एक दलदल में फंस गयी है और वो चाहे ग़ज़ा से बाहर निकले या न निकले उसकी हार तय है। 

उन्होंने कहा कि क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन के अधिकारियों के बीच गहरे मतभेद और टकराव इस शासन को पतन के क़रीब कर रहे हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि अमरीका ने ग़ज़ा के मामले में सबसे बुरा स्टैंड लिया, कहा कि लंदन, पेरिस और ख़ुद अमरीका में सड़कों पर फ़िलिस्तीनियों के हित में अवाम के प्रदर्शन हक़ीक़त में अमरीका से नफ़रत का एलान हैं।

उन्होंने ग़ज़ा के मामले में अमरीका के ग़लत स्टैंड और अंदाज़े को दुनिया में अमरीका से नफ़रत बढ़ने और क्षेत्र में उससे नफ़रत में दस गुना इज़ाफ़े का सबब बताया और कहा कि यमन से इराक़ और सीरिया से लेबनान तक क्षेत्र में जहाँ भी प्रतिरोध के वीर मुजाहिद अमरीकियों के ख़िलाफ़ कोई भी कार्यवाही करते हैं, अमरीकी उसे ईरान से जोड़ देते हैं, जिससे पता चलता है कि अमरीकियों ने क्षेत्र के अवाम और उसके वीर व इरादों से भरपूर जवानों को नहीं पहचाना है और यही ग़लत अंदाज़ा निश्चित तौर पर अमरीकियों को धूल चटा देगा।

उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि इस्लामी गणराज्य जितना मुमकिन है प्रतिरोध का सपोर्ट और मदद कर रहा है, कहा कि अलबत्ता ये ख़ुद रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ हैं जो फ़ैसला लेती और कार्यवाही करती हैं और वो बिल्कुल सही हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि क्षेत्र में मौजूद ज़ुल्म के स्रोत यानी ज़ायोनी शासन के वजूद को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए और हम हर उस शख़्स के समर्थक और मददगार हैं जो इस इस्लामी, इंसानी और अंतरात्मा के जेहाद में शामिल हो।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़ेताब के एक दूसरे हिस्से में इस साल को "अवाम की भागीदारी से पैदावार में छलांग" का नाम दिए जाने को एक अहम नारा बताया और कहा कि अधिकारियों की योजनाबंदी और कोशिश से, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सक्रियता के लिए अवाम लामबंद हो जाएं तो पैदावार में छलांग के बहुत ही अहम नारे को व्यवहारिक बनाना मुमकिन हो जाएगा।

उन्होंने ईरान की अर्थव्यवस्था के ताने बाने को बिखेरने और ईरानी क़ौम को घुटने टेकने पर मजबूर करने की अमरीका और उसके पिछलग्गुओं की मुसलसल कोशिशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अल्लाह की मदद से वो अब तक अपने इस मक़सद में नाकाम रहे हैं और इसके बाद भी अधिकारियों और अवाम की कोशिश, जद्दो जेहद, इरादे और संकल्प से नाकाम ही रहेंगे।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने विदेशी व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक कोशिशों के जारी रहने को भी ज़रूरी व अहम बताते हुए कहा कि मुल्कों के साथ सहमति पत्रों को समझौतों में बदलना चाहिए ताकि उनके नतीजे व्यवहारिक तौर पर नज़र आएं।

उन्होंने राष्ट्रीय हित और मुल्क के उज्जवल भविष्य को, ईमान और उम्मीद पर निर्भर बताया और कहा कि अगर दिलों में उम्मीद की किरण बुझ जाए तो फिर कोई भी काम नहीं होगा।

उन्होंने प्रतिभावान जवान, काम के लिए तैयार क़ौम, बेनज़ीर राष्ट्रीय संसाधन और विशिष्ट भौगोलिक पोज़ीशन को ईरान की तरक़्क़ी के जारी रहने की बेपनाह गुंजाइशों में गिनवाते हुए कहा कि तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी है कि सभी भविष्य की ओर से आशावान रहें।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कमज़ोरियों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाने और विकास व तरक़्क़ी के इंकार के लिए तरह तरह के प्रचारिक हथकंडों के इस्तेमाल को दुश्मन की मुसलसल जारी रहने वाली साज़िशों में बताया और कहा कि वो बरसों से इस तरह के काम कर रहा है लेकिन मुल्क के भीतर हमें इस तरह की ग़लती व ग़फ़लत का शिकार नहीं होना चाहिए।

उन्होंने जवानों को दुश्मन की साज़िशों से आगाह रहने की ताकीद करते हुए कहा कि दुश्मन आपको निराश करना चाहते हैं और तरक़्क़ी की कुछ आवाज़ें आप तक नहीं पहुंचने देना चाहते हैं लेकिन आप दुश्मन की निराशाजनक कोशिशों से ज़्यादा उम्मीद और तरक़्क़ी के लिए काम कीजिए।

 

साल 1403 हिजरी शम्सी के पहले दिन 20 लाख से अधिक लोगों ने हरम ए इमाम रज़ा (अ.स.) की दरगाह का दौरा किया और दरगाह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया, एक रिपोर्ट के अनुसार ,साल 1403 हिजरी शम्सी के पहले दिन 20 लाख से अधिक लोगों ने हरम ए इमाम रज़ा (अ.स.) की दरगाह का दौरा किया और दरगाह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया,

हरम ए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम में नए साल के मौके पर प्रोग्राम की शुरुआत कुरान करीम की तिलावत से हुई उसके बाद ईरान के विभिन्न भाषाओं और बोलियों में नए साल की शुभकामनाएं दी गईं ।

सिस्तान और बलूचिस्तान, लुरिस्तान और अजरबैजान उन प्रांतों में से जिन्होंने इस अवसर पर हज़रत इमाम रज़ा अ.स. की दरगाह के तीर्थयात्रियों और ईरान के लोगों को उनकी जबान में बधाई दी गई

इस प्रोग्राम के बाद दुआ सहर पढ़ी गई और उसके बाद कुछ नौजवानों ने बेहतरीन तरीके से एक साथ आज़ान दी,

ईरान की महिला धावक मरयम तूसी ने दक्षिणी अफ्रीका का पुरस्कार जीतकर रेकार्ड बनाया।

पार्स टुडे के अनुसार ईरान की महिला धावक मरयम तूसी ने साउथ अफ्रीका की एथेलेटिक प्रतियोगिता की चैंपियनशिप जीत ली।

ईरानी महिला धावक मरयम तूसी ने 100 और 200 मीटर में चैंपियनशिप का ख़िताब जीतने के अतिरिक्त उन्होंने 200 मीटर में अपने राष्ट्रीय रेकार्ड में भी सुधार किया।

इस प्रतियोगिता में मरयम तूसी, 23.35 सेकेण्ड (+0.3) का समय दर्ज करके अपने प्रतिद्दवी से पहले ही फिनिश लाइन पार करने में सफल रहीं।

ईरान की इस महिला एथलीट तूसी ने 100 मीटर की प्रतियोगिता में भाग लिया था।  इस प्रतियोगिता में तूसी ने 11.60 सैकेण्ड का कोरम दर्ज करके पहला ख़िताब जीतने में सफलता हासिल की।

विभिन्न षडयंत्रों के माध्यम से अमरीका, इराक़ में बाक़ी रहने की कोशिशें कर रहा है।

पार्स टुडे के अनुसार इराक में आम जनमत इस देश में आतंकवादी गुट दाइश की गतिविधियों को अमरीकी योजना का हिस्सा मानता है ताकि इस माध्यम से वह इराक़ में अपनी उपस्थति का औचित्य दर्शा सके।

इराक़ और अमरीकी अधिकारियों के बीच होने वाली आधिकारिक सहमति के बावजूद इराक़ से सारे विदेशी सैनिकों को बाहर निकालने पर आधारित इराक़ की संसद के प्रस्ताव को लागू करने में अमरीका आनाकानी कर रहा है।  अमरीका ने इराक़ में अपने बने रहने का बहाना, इस देश में मौजूद दाइश के तत्वों के विरुद्ध संघर्ष को बना रखा है।

यही वजह है कि इराक़ी जनता और वहां के जानकार इस देश में हालिया विस्फोटों और आतंकी हमलों को अमरीकी योजना का भाग बता रहे हैं जिनकों आतंकवादी गुट दाइश के तत्वों ने अंजाम दिया है।  उनका मानना है कि दाइश के बहाने अमरीका, इराक़ में अपनी उपस्थति को जारी रखना चाहता है।

इराक़ के एक विशेषज्ञ काज़िम अलहाज कहते हैं कि आतंकवादी तत्व, इराक़ में अमरीकी सैनिकों के आदेश पर गतिविधियां करते हैं।  उनका कहना है कि इराक़ से विदेशी सैनिकों विशेषकर अमरीकी सैनिकों की वापसी के साथ ही आतंकवाद से संबन्धित सभी सुरक्षा ख़तरे समाप्त हो जाएंगे।  अलहाज ने इराक़ में मौजूद अमरीकी सैनिकों को अतिग्रहरकारी बताते हुए कहा कि इन्होंने अमरीका और अवैध ज़ायोनी शासन से संनब्धित जासूसों के गुटों को इराक़ में स्थापित किया है।

इराक में आतंकी अमरीकी सैनिकों की संदिग्ध गतिविधियों के संदर्भ में चेतावनी देते हुए कुछ समय पहले जब्बार अलमामूरी ने बताया था कि इराक़ की सुरक्षा के बारे में अमरीका की नकारात्मक भूमिका, उसके द्वारा आतंकी गुटों के समर्थन और इस देश के राजनीतिक मामलों में वाशिग्टन के हस्तक्षेप से सारे ही लोग अवगत हैं।

फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफाए में लिप्त लोगों को दंडित किये जाने की मांग उठने लगी है।

पार्सटुडे के अनुसार पूर्व ट्वीटर तथा वर्तमान एक्स के अकाउंट पर जनसंहार में लिप्त अवैध ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों के लिए वैश्विक न्याय की बात कही गई है।

इस अकाउंट पर अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, अवैध ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री नेतनयाहू, यूरोपीय आयोग की प्रमुख उरसुला वानडेरलियेन, और विकीलीक्स के संस्थापक मैंडेक्स जूलियन असांजे के चित्रों को पेश करके लिखा गया है कि एक न्यापूर्ण दुनिया में जूलियन असांजे स्वतंत्र होकर ग़ज़्ज़ा के जनसंहार की रिपोर्टिंग कर सकेंगे जबकि बाइडेन, नेतनयाहू और उरसुला जैसे क़साई, फ़ांसी के फंदे की प्रतीक्षा में होंगे।

इस समय जब ज़ायोनी शासन, ग़ज़्ज़ा में निर्दोष फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार में लगा हुआ है, इस काम में पश्चिमी देश उसका खुलकर समर्थन कर रहे हैं।  मानवाधिकारों की सुरक्षा के अपने समस्त दावों के बावजूद पश्चिम, इस जनसंहार में ज़ायोनियों को हथियार उपलब्ध करवा रहा है।

फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में इराक़,यमन, लेबनान और सीरिया में प्रतिरोधक गुट, अवैध ज़ायोनी शासन हमले कर रहे हैं।

इराक़ के प्रतिरोध ने अत्याचार ग्रस्त फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करते हुए अतिग्रहकारियों के ठिकानों पर हमले किये हैं।

इराक़ी प्रतिरोध ने घोषणा की है उसने कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के भीतर बिन गोरियन हावाई अड्डे पर कई मिसाइल बरसाए हैं।  दूसरी ओर यमन की सेना ने भी ज़ायोनियों के ईलात बंदरगाह पर मिसाइलों से हमला किया है।  इसी के साथ यमन की सेना ने लाल सागर में अमरीका के Mado नामक जहाज को लक्ष्य बनाया है।  उधर हिज़बुल्ला ने भी लगातार पांच कार्यवाहियां करते हुए इस्राईल दुश्मन के कुछ सैन्य अड्डों पर मिसाइल और राकेटो से हमला किया है।

अवैध ज़ायोनी शासन ने पश्चिमी देशों के समर्थन से ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों का जनसंहार आरंभ कर रखा है।  इसके मुक़ाबले में ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध और इराक़,यमन, लेबनान और सीरिया में प्रतिरोधक गुटों ने घोषणा कर रखी है कि वे अवैध ज़ायोनी शासन से उसके अपराधों का बदला लेकर रहेंगे।  ग़ज़्ज़ा पर किये गए ज़ायोनियों के हमलों में अबतक 31 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  इन हमलों में 72 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं।

ब्रिटेन के समर्थन से विभिन्न देशों से यहूदियों का पलायन करवाकर 1917 से अवैध ज़ायोनी शासन के गठन की भूमिका प्रशस्त की गई थी।  बाद में सन 1948 में इस अवैध शासन के गठन का एलान कर दिया गया।  उस समय से ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार और उनकी भूमि पर क़ब्ज़ा करने का क्रम अबतक जारी है।

पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रमों में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़बुल्लाह की भूमिका का एक महत्वपूर्ण आयाम यह है कि इस आंदोलन ने बड़े पैमाने पर युद्ध में दाख़िल हुए बिना ही इस्राईल की हत्या मशीन में एक बड़ा व्यवधान पैदा कर दिया है।

पहली बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई जब ज़ायोनी शासन को अपने नियंत्रण वाली सीमाओं के भीतर अपने सभी आप्रेशन के फ़ैसलों पर हिज़्बुल्लाह के संभावित हमलों और जवाबी कार्यवाहियों पर नज़र रखनी पड़ी है।

हालिया महीनों में ग़ज़ा में हुए घटनाक्रम के दौरान, लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़बुल्लाह ने यह ज़ाहिर कर दिया कि वह कोई अनुभवहीन ताक़त नहीं है जो जल्दबाज़ी और उत्साह से भरकर कम समय में ही अपनी सारी शक्ति और हथियारों का प्रदर्शन कर दे।

फिलिस्तीनियों के समर्थन में, हिज़बुल्लाह ने पहले अवैध अधिकृत फिलिस्तीन के उत्तर में कॉर्नेट मिसाइलों और मोर्टार गोलों से टारगेट को निशाना बनाया और शक्तिशाली बुरकान मिसाइलों और आत्मघाती ड्रोन के साथ अपने हमलों का क्रम जारी रखा।

हिज़्बुल्लाह का एक जवान

हालिया वर्षों में लेबनान के हिज़बुल्लाह ने हथियारों और सैन्य उपकरणों की तैयारी और अपने जवानों के प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार करने के अलावा, एक विशेष मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पोज़ीशन हासिल कर ली है जिससे कोई भी साम्राज्यवादी शक्ति इस महत्वपूर्ण तत्व को पश्चिम एशियाई क्षेत्र में घुसने के अपने हिसाब किताब से अलग नहीं कर सकती।

मनोवैज्ञानिक रणनीति के संदर्भ में, हिज़बुल्लाह ने ज़ायोनी शासन को उत्तरी और दक्षिणी दोनों क्षेत्रों में एक साथ भय और आतंक के माहौल में उलझा दिया है और इस शासन की एकाग्रता और उसे अपने हमलों को जारी रखने की की क्षमताओं को बाधित कर दिया है।

इस तरह की रणनीति ने ग़ज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी प्रतिरोध को युद्ध जारी रखने के लिए अधिक अनुकूल माहौल प्रदान कर दिया है।

7  अक्टूबर के बाद, एक व्यापक और बहुपक्षीय सैन्य रणनीति के अंतर्गत, हिजबुल्लाह ने इस्राईल के रडारों और जासूसी उपकरणों के खिलाफ स्मार्ट ऑपरेशन किए और 2 लाख से अधिक ज़ायोनी बस्तियों के निवासियों को सोचे-समझे और हमलों से क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर कर दिया।

हालांकि फ़िलिस्तीन की हालिया घटनाओं के दौरान, कई प्रतिरोधकर्ता गुटों ने इस्राईल पर हमला किया लेकिन हम साहसपूर्वक कह ​​सकते हैं कि हिज़्बुल्लाह की लाजवाब शक्ति और लड़ने की ताक़त, इस आंदोलन की लड़ाई की समझ, बुद्धिमत्ता और नर्म शक्ति, अन्य प्रतिरोधकर्ता गुटों की तुलना में अधिक प्रभावी और कुशल रही है।

इस्राईल को हिज़बुल्लाह का मुंहतोड़ जवाब

हिज़्बुल्लाह की यहीं विशेषताएं इस्रईल के विस्तारवाद और युद्धोन्माद के लिए एक बड़ी बाधाएं हैं और इस तरह इन्हीं विशेषताओं ने दुनिया के ऊर्जा केंद्र के रूप में पश्चिम एशियाई क्षेत्र के लिए स्थिरता के स्तंभ की भूमिका निभाई है।हिज़्बुल्लाह लेबनान में शिया मुसलमानों का एक राजनीतिक-सैन्य संगठन है। यह आंदोलन स्वर्गीय इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के विचारों से प्रेरित होकर लेबनानी जनता के दिलों से पैदा हुआ है।

हिज़बुल्लाह ने कई मुख्य लक्ष्यों को प्राथमिकता दी है जिनमें पश्चिम एशियाई क्षेत्र में साम्राज्यवादियों का मुकाबला करना, ज़ायोनियों से लड़ना और लेबनान और फिलिस्तीन की स्थिरता में योगदान देना इत्यादि

रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने एक रिवायत में हज़रत ख़दीजातुल क़ुबरा स.ल.के मुकाम को बयान फरमाया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार ,,पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

:قال رسول اللہ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم

إنَّ جَبْرَئيلَ أتاني لَيْلَةً اُسري بي فَحينَ رَجَعْتُ قُلْتُ: يا جَبْرَئيلُ هَلْ لَكَ مِنْ حاجَةِ؟ قالَ: حاجَتي أنْ تَقْرَءَ عَلي خَديجَةَ مِنَ اللهِ وَ مِنِّي السّلامَ

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. फरमाया:

जिस रात मैं मेराज पर गया तो वापस आते हुए हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम मेरे पास आए/ मैंने उनसे कहा: ए जिब्राइल आपकी कोई हाजत है?तो उन्होंने जवाब दिया:(जी) मेरी हाजत यह है कि अल्लाह ताला और मेरी ओर से हज़रत ख़तीजा स.ल. को सलाम पहुंचा देना,

 

 

बिहारूल अनवार,भाग 18,पेज 385,हदीस नं 90

हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा उस ज़माने में भी आप की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

उम्मत की मां जनाबे ख़दीजा स.अ. एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून हैं आपका नाम ख़दीजा, कुन्नियत उम्मे हिन्द थी, आप के वालिद ख़ुवैल्द इब्ने असद और वालिदा का नाम फ़ातिमा बिन्ते ज़ायदा इब्ने असम था।

इन दोनों का नसब आगे चल कर पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.व.) के नसब से मिल जाता है, आप की वफ़ात माहे मुबारक रमज़ान की दसवीं तारीख़ बेअसत के दसवें साल, में मक्का शहर में हुई और मक्का के मशहूर क़ब्रिस्तान जन्नतुल मोअल्ला में आप दफ़्न हुईं जहां आज भी आपकी क़ब्र साहिबाने मारेफ़त की ज़ियारतगाह बनी हुई है।

जनाबे ख़दीजा (स.अ) की शादी

जनाबे ख़दीजा की उम्र २८ बरस की थी जब आप की शादी पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) से हुई और आप रसूले ख़ुदा (स.ल.) से ख़ानदानी रिश्तेदारी तो रखती ही थीं उसके अलावा आप ने चचाज़ाद भाई वरक़ह इब्ने नौफ़िल से आप के फ़ज़ाएल सुने थे और यहूदी और ईसाई उलमा से आप की नबुव्वत और रिसालत की जो ख़बरें उन तक पहुंची थीं इन्हीं सब चीज़ों की वजह से अपने दिमाग़ में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.ल.) को जगह दे चुकी थीं और दिल ही दिल में आप पर ईमान ला चुकी थीं।इस्लाम के एलान से पहले आप के अलक़ाब इस्लाम के एलान से पहले आप के बहुत सम्मानित अलक़ाब थें,

मुबारकह: इंजील में जहां पैग़म्बरे इस्लाम स.ल.व.व. की बशारत का ज़िक्र है वहीं पर जनाबे ख़दीजा (स.ल.)के मुबारकह होने और जन्नत में जनाबे मरयम (स) के साथ हमनशीनी का भी ज़िक्र है।

ताहिरा: अरब के ज़माने जाहिलिय्यत में पाकदामन औरतों की तादाद बहुत कम थी और समाज की ख़राबियों की वजह से ज़ियादातर औरतों का किरदार दाग़दार होता था, उस दौर में भी जनाबे ख़दीजा को अपनी पाकीज़गी की वजह से ताहिरा के लक़ब से नवाज़ा गया जो आप के बुलंद मर्तबे की दलील है।

सय्यदुन निसा: उस ज़माने में भी जनाबे ख़दीजा की शख़्सियत इतनी अज़ीम और इज़्ज़तदार थीं कि आप को औरतों का सरदार कहा जाता था।

क़ुरआन और रिवायात में आप का ज़िक्

जैसा कि ज़िक्र हुआ है कि आप अपने चचेरे भाई से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के फ़ज़ाएल और अज़मत के बारे में सुन चुकी थीं जिस के बाद न केवल यह कि आप पैग़म्बरे ख़ुदा (स) की नबुव्वत और रिसालत के बारे में जानती थीं बल्कि दिल ही दिल में ईमान भी ला चुकी थीं.

इमाम अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में क़ासेआ नामी ख़ुत्बे में फ़रमाते हैं कि: जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत का नूर चमका उसकी रौशनी पैग़म्बरे ख़ुदा (स) और जनाबे ख़दीजा के घर के अलावा किसी और घर में नहीं थी और मैं उनमें तीसरा शख़्स था जो रिसालत के नूर को देखता और नबुव्वत की ख़ुशबू सूंघता था। आप का मर्तबा इतना बुलंद था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) आप से फ़रमाते थे: ऐ ख़दीजा! अल्लाह रोज़ाना कई मर्तबा तुम्हारी वजह से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता हैं।