رضوی

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इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते।

इस्लामी दुनिया में इंसान की एक अजीब दास्तान सामने आती है, इस्लामी तालीमात की रौशनी में इंसान केवल एक चलने फिरने और बोलने बात करने वाली मख़लूक़ नहीं है बल्कि क़ुर्आन की निगाह में इंसान की हक़ीक़त इससे कहीं ज़्यादा अहम है जिसे कुछ जुमलों में नहीं समेटा जा सकता, क़ुर्आन में इंसान की ख़ूबियों को भी बयान किया है और उसके बुरे किरदार को भी पेश किया है।

क़ुर्आन ने ख़ूबसूरत और बेहतरीन अंदाज़ से तारीफ़ भी की है और उसकी बुराईयों का ज़िक्र किया है, जहां इस इंसान को फ़रिश्तों से बेहतर पेश किया गया है वहीं इसके जानवरों से भी बदतर किरदार का भी ज़िक्र किया है, क़ुर्आन की निगाह में इंसान के पास वह ताक़त है जिससे वह पूरी दुनिया पर कंट्रोल हासिल कर सकता है और फ़रिश्तों से काम भी ले सकता है लेकिन उसके साथ साथ अगर नीचे गिरने पर आ जाए तो असफ़लुस साफ़ेलीन में भी गिर सकता है।

इस आर्टिकल में इंसान की उन तारीफ़ का ज़िक्र किया जा रहा है जिसे क़ुर्आन मे अलग अलग आयतों में अलग अलग अंदाज़ से इंसानी वैल्यूज़ के तौर पर ज़िक्र किया है।

 इंसान ज़मीन पर अल्लाह का ख़लीफ़ा है, इरशाद होता है, और जब तुम्हारे रब ने इंसान को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से बताया, फ़रिश्तों ने कहा, क्या तू ज़मीन में उसको पैदा करेगा जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा, अल्लाह ने फ़रमाया, बेशक मुझे वह मालूम है जिसे तुम नहीं जानते। (सूरए बक़रह, आयत 30)

एक दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है, और उसी अल्लाह ने तुम (इंसानों) को ज़मीन पर अपना नायब बनाया है ताकि तुम्हें दी हुई पूंजी से तुम्हारा इम्तेहान लिया जाए। (सूरए अनआम, आयत 165)

इंसान की इल्मी प्रतिभा और क्षमता दूसरी सारी उसकी पैदा की हुई मख़लूक़ से ज़्यादा है।

इरशाद होता है कि, और अल्लाह ने आदम को सब चीज़ों के नाम सिखाए (उन्हें सारी हक़ीक़तों का इल्म दे दिया) फिर फ़रिश्तों से कहा, मुझे उनके नाम बताओ, वह बोले हम सिर्फ़ उतना इल्म रखते हैं जितना तूने सिखाया है, फिर अल्लाह ने हज़रत आदम से फ़रमाया, ऐ आदम तुम इनको उन चीज़ों के नाम सिखा दो, फिर आदम ने सब चीज़ों के नाम सिखा दिए, तो अल्लाह ने फ़रमाया, क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आसमानों और ज़मीन की छिपी चीज़ों को अच्छी तरह जानता हूं जिसे तुम ज़ाहिर करते हो और छिपाते हो। (सूरए बक़रह, आयत 31 से 33)

इंसान की फ़ितरत ख़ुदा की मारेफ़त है और वह अपनी फ़ितरत की गहराईयों में अल्लाह की मारेफ़त रखता है और उसके वुजूद को पहचानता है, इंसान के दिमाग़ में पैदा होने वाली शंकाएं और शक और उसके बातिल विचार उसका अपनी फ़ितरत से हट जाने की वजह से है।

इरशाद होता है कि, अभी आदम के बेटे अपने वालेदैन की सुल्ब में ही थे कि अल्लाह ने उनसे अपने वुजूद के बारे में गवाही ली और उन लोगों ने गवाही दी। (सूरए आराफ़, आयत 172)

या एक दूसरी जगह फ़रमाया, तो अपना चेहरा दीन की तरफ़ रख दो, वही जो ख़ुदाई फ़ितरत है और उसने सारे लोगों को उसी फ़ितरत पर पैदा किया है। (सूरए रूम, आयत 43)

इंसान में पेड़ पौधों, पत्थरों और जानवरों में पाए जाने वाले तत्वों के अलावा एक आसमानी और मानवी तत्व भी मौजूद हैं यानी इंसान जिस्म और रूह से मिल कर बना है।

इरशाद होता है कि, उसने जो चीज़ बनाई वह बेहतरीन बनाई, इंसान की पैदाइश मिट्टी से शुरू की फिर उसकी औलाद को हक़ीर और पस्त पानी से पैदा किया फिर उसे सजाया और उसमें अपनी रूह फ़ूंकी। (सूरए सजदा, आयत 7 से 9)

इंसान की पैदाइश कोई हादसा नहीं है बल्कि उसकी पैदाइश यक़ीनी थी और वह अल्लाह का चुना हुआ है।

इरशाद होता है कि, अल्लाह ने आदम को चुना फिर उनकी तरफ़ ख़ास ध्यान दिया और उनकी हिदायत की। (सूरए ताहा, आयत 122)

इंसान आज़ाद और आज़ाद शख़्सियत का मालिक है, वह अल्लाह का अमानतदार और उस अमानत को दूसरों तक पहुंचाने का ज़िम्मेदार है।

उससे यह भी चाहा गया है कि वह अपनी मेहनत और कोशिशों से ज़मीन को आबाद करे और सआदत और बदबख़्ती के रास्तों में से एक को अपनी मर्ज़ी से चुन ले।

इरशाद होता है कि, हमने आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों के सामने अपनी अमानत पेश की (उसकी ज़िम्मेदारी) किसी ने क़ुबूल नहीं की और (सब) डर गए हालांकि इंसान ने इस (ज़िम्मेदारी) को उठा लिया, बेशक यह बड़ा ज़ालिम और नादान है। (सूरए अहज़ाब, आयत 72)

या एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने इंसान को मिले जुले नुत्फ़े से पैदा किया ताकि उसका इम्तेहान लें फिर हमने उसको सुनने वाला और देखने वाला बनाया फिर हमने उसको रास्ता दिखाया अब वह शुक्र करने वाला है या नाशुक्री करने वाला है, या वह हमारे दिखाए हुए रास्ते पर चलेगा और सआदत तक पहुंच जाएगा या नेमत का कुफ़रान करेगा और गुमराह हो जाएगा। (सूरए दहर, आयत 2-3)

हमारा विश्वास है कि सारे ईश्वरीय दूत  विशेषकर  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने किसी भी “नस्ली” या “क़ौमी” या जातीय उच्चता को क़बूल नही किया। इन की नज़र में दुनिया के तमाम इँसान बराबर थे चाहे वह किसी भी ज़बान,नस्ल या क़ौम से ताल्लुक़ रखते हों।

क़ुरआन तमाम इंसानों को संबोधित करते हुए कहता है कि

يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ‌ وَأُنثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَ‌فُوا  إِنَّ أَكْرَ‌مَكُمْ عِندَ اللَّـهِ أَتْقَاكُمْ

“या अय्युहा अन्नासु इन्ना ख़लक़ना कुम मिन ज़करिन व उनसा व जअलना कुम शुउबन व क़बाइला लितअरफ़ू इन्ना अकरमा कुम इन्दा अल्लाहि अतक़ा कुम (सूरए हुजरात आयत 13)

यानी ऐ इँसानों हम ने तुम को एक मर्द और औरत से पैदा किया फिर हम ने तुम को क़बीलों में बाँट दिया ताकि तुम एक दूसरे को पहचानो (लेकिन यह बरतरी और उच्चता का आधार नही है) तुम में अल्लाह के नज़दीक वह मोहतरम है जो तक़वे में ज़्यादा है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स)की एक बहुत मशहूर हदीस है जो आप ने हज के दौरान  मिना की धरती पर ऊँट पर सवार हो कर लोगों की तरफ़ रुख़ कर के इरशाद फ़रमाई थीः

يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ رَبَّكُمْ وَاحِدٌ , وَإِنَّ أَبَاكُمْ وَاحِدٌ , أَلا لا فَضْلَ لِعَرَبِيٍّ عَلَى أَعْجَمِيٍّ ، وَلا لِعَجَمِيٍّ عَلَى عَرَبِيٍّ , وَلا أَسْوَدَ عَلَى أَحْمَرَ , وَلا أَحْمَرَ عَلَى أَسْوَدَ إِلا بِتَقْوَى اللَّهِ , أَلا هَلْ بَلَّغْتُ ؟ " , قَالُوا : بَلَّغَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ : " فَلْيُبَلِّغِ الشَّاهِدُ الْغَائِبَ

“या अय्युहा अन्नासि अला इन्ना रब्बा कुम वाहिदिन व इन्ना अबा कुम वाहिदिन अला ला फ़ज़ला लिअर्बियिन अला अजमियिन ,व ला लिअजमियिन अला अर्बियिन ,व ला लिअसवदिन अला अहमरिन ,व ला लिअहमरिन अला असवदिन ,इल्ला बित्तक़वा ,अला हल बल्लग़तु ? क़ालू नअम ! क़ाला लियुबल्लिग़ अश्शाहिदु अलग़ाइबा ”

यानी ऐ लोगो जान लो कि तुम्हारा ख़ुदा एक है और तुम्हारे माँ बाप भी एक हैं,ना अर्बों को अजमियों पर बरतरी हासिल है न अजमियों को अर्बों पर, गोरों को कालों पर बरतरी है और न कालों को गोरों पर अगर किसी को किसी पर बरतरी है तो वह तक़वे के एतबार से है।

फिर आप ने सवाल किया कि क्या मैं ने अल्लाह के हुक्म को पहुँचा दिया है? सब ने कहा कि जी हाँ आप ने अल्लाह के हुक्म को पहुँचा दिया है। फिर आप ने फ़रमाया कि जो लोग यहाँ पर मौजूद है वह इस बात को उन लोगों तक भी पहुँचा दें जो यहाँ पर मौजूद नही है।

 

 

फ़िलिसतीन के हमास आंदोलन के पोलित ब्योरो चीफ़ इस्माईल हनीया ने ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करने के लिए फ़िलिस्तीनियों की तैयारी का उल्लेख करते हुए संघर्ष विराम के बारे में फ़िलिस्तीनी संगठनों की शर्तें बयान कर दीं।

इस्माईल हनीया ने कहा कि हम ज़ायोनी शासन के साथ बातचीत में नर्मी दिखा रहे हैं लेकिन इस्राईल से लंबी जंग के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी शासन क़त्ले आम, लोगों को विस्थापित करने, यातनाएं देने और भुखमरी में झोंकने जैसे भयानक अपराध कर रहा है मगर यह भी हक़ीक़त है कि कई महीने से यह क़ाबिज़ शासन फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ के मुक़ाबले में बेबस होकर रह गया है। उसका बस केवल बच्चों, महिलाओं और आम नागरिकों पर चलता है। उसे लगता है कि मस्जिदुल अक़सा की घेराबंदी करके और ज़ायोनी सेटलर्ज़ को खुली छूट देकर तूफ़ान अलक़सा आप्रेशन से इस्राईल पर पड़ने वाली मार का असर कम कर सकता है।

हमास के नेता ने ग़ज़ा पट्टी के ज़मीनी हालात को मद्देनज़र रखते हुए दो महत्वपूर्ण बिंदु पेश किए। एक तो उन्होंने यह बात दो टूक शब्दों में कही कि फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करते रहने की क्षमता मौजूद है और तूफ़ान अलअक़सा आप्रेशन से यह हक़ीक़त पहले ही उजागर हो गई।

दूसरा पहले यह है कि हमास और फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास बड़ी संख्या में इस्राईली क़ैदी मौजूद हैं और वे इस्राईल से बातचीत में मज़बूत पोज़ीशिन में हैं।

हालिया हफ़्तों में अपनी कमज़ोरी खुल जाने के बाद ज़ायोनी शासन इस कोशिश में है कि संघर्ष विराम की बातचीत के नाम पर किसी तरह इस्राईल के भीतर जारी संकट पर पर्दा डाले। ज़ायोनी शासन के अधिकारियों को हालिया दिनों इस्राईली क़ैदियों के परिवारों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। नतीजे में ज़ायोनी प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू और अन्य मंत्रियों के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गए हैं। क़ैदियों के परिवारों का कहना है कि प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य सब झूठे हैं।

हमास को इस्राईल की आंतरिक स्थिति की भी पूरी ख़बर है और उसे फ़िलिस्तीनी संगठनों की क्षमताओं की भी पूरी जानकारी है। हमास की शर्त है कि फ़िलिस्तीनी नागरिकों, महिलाओं और बच्चों पर इस्राईल हमला बंद करे और ज़ायोनी सैनिक ग़ज़ा पट्टी से पूरी तरह बाहर निकल जाएं।

 हमास के नेताओं ने अन्य फ़िलिस्तीनी संगठनों से संघर्ष विराम के मुख्य बिंदुओं के बारे में बातचीत शुरू कर दी है। हमास इसके साथ ही दूसरे देशों के अधिकारियों से ही बातचीत कर रहा है। फ़िलिस्तीनी संगठनों ने हालात को देखते हुए साफ़ कर दिया है कि जब तक पूरी तरह स्थायी संघर्ष विराम नहीं हो जाता, ग़ज़ा पट्टी से इस्राईली सेनाएं बाहर नहीं निकल जातीं, ग़ज़ा की नाकाबंदी समाप्त नहीं कर दी जाती तब तक इस्राईली क़ैदियों को हरगिज़ रिहा नहीं किया जाएगा।

अतीत के अनेक उदाहरण हैं जो बताते हैं कि ज़ायोनी शासन न तो किसी प्रतिबद्धता पर अमल करता है और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय कानून मानने को तैयार है। यही वजह है कि हमास दूसरे फ़िलिस्तीनी संगठन ज़ायोनी शासन से अप्रत्यक्ष बातचीत में इस बात की गैरेंटी हासिल करना चाहता हैं कि ज़ायोनी शासन पर दबाव डाला जाएगा किवह अपनी प्रतिबद्धताओं पर अमल करे। 

 

ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमलों की शुरुआत के लगभग पांच महीने बाद, यूनिसेफ़ ने घोषणा की है कि क्षेत्र में दस लाख से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं।

यूनिसेफ़ ने एक बयान में कहा कि ग़ज़्ज़ा के 95 प्रतिशत परिवारों में बुज़ुर्ग हैं जो अपने बच्चों को खिलाने के लिए कम खाते हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ की इस सहायक कंपनी ने अपने बयान में कहा है कि गाजा में खाद्य पदार्थों की निरंतर डिलीवरी की बहुत जरूरत है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष रिपोर्टर माइकल फ़ख़्री ने भी गार्डियन से बो करते हुए कहा कि इस्राईल जानबूझकर फ़िलिस्तीनियों को भूखा मार रहा है। उनका कहना था कि भोजन तक पहुंच को रोकना एक युद्ध अपराध है और नरसंहार है।

उन्होंने इंटरव्यू में कहा कि ग़ज़्ज़ा में मानवीय सहायता रोकने या छोटी मछली पकड़ने वाली नौकाओं, ग्रीनहाउस गैसों और बगीचों को नष्ट करने का, सिवाय लोगों को भोजन से वंचित करने के कोई कारण नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र के इस अधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जानबूझकर लोगों को भोजन से वंचित करना एक अपराध है और इस्राईल ने साबित कर दिया है कि वह सभी फ़िलिस्तीनियों या उनके एक बड़े हिस्से को सिर्फ़ इसलिए ख़त्म करना चाहता है क्योंकि वे फ़िलिस्तीनी हैं।

ईरान के पारस-1 उपग्रह का सफलता से अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया गया।

रूस के सायोज़ लांचर से ईरान के पारस-1 उपग्रह को सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया।

पारस-1 उपग्रह को गुरूवार 29 फरवरी 2024 को सुबह लांच किया गया।  ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये का कहना था कि ईरान के भीतर माहदश्त और क़िश्म में दो एसे स्टेशन हैं जो पारस-1 उपग्रह के डेटाज़ को एकत्रित करेंगे।

ख़याम के बाद पारस-1 एसा दूसरा ईरानी उपग्रह है जिसको रूसी प्रक्षेपण केन्द्र से भेजा गया है।  पिछले दो वर्षों के दौरान अंतरिक्ष में ईरान की ओर से 12 उपग्रह भेजे जा चुके हैं जिनमें पारस-1 बारहवां उपग्रह है।अन्य उपग्रहों की तुलना में ईरान के पारस-1 उपग्रह में अधिक उन्नत प्रणालियां पाई जाती है जिनको ईरानी विशेषज्ञों ने बनाया है।

इसकी विशेषताओं के बारे में ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये ने बताया कि पारस-1 उपग्रह वास्तव में अनुसंधानिक उपग्रह है जो कई प्रकार के काम करने में सक्षम है।

जैसे जैसे पहली मार्च को 12वीं संसद और विशेषज्ञ एसेंबली के 6वें कार्यकाल के चुनाव निकट आ रहे हैं, सबसे बेहतरीन और सबसे योग्य प्रत्याशी को चुनने का मुद्दा, पिछले सभी चुनावों की तरह प्रमुख बिंदुओं में बदल गया है और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने एक बार फिर विशेष रूप से इस बात ज़ोर दिया है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और विशेषज्ञ एसेंबली अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा। इसी संदर्भ में शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने बुधवार को तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने संबोधन में, चुनावों में राष्ट्र की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला तत्व बताया।

उन्होंने सबसे उचित और योग्य उम्मीदवार की विशेषताएं बयान करते हुए कहा कि जनता की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलों को दूर करने और देश के विकास का रास्ता समतल होता है,  इस हिसाब से चुनाव, देश का सिस्टम सही चलाने वाले स्तंभों में से एक है।

मौजूदा संसद का कार्यकाल मई में समाप्त हो रहा है। संसद की 290 सीटों के लिए 15200 उम्मीवारों के नामों को निरीक्षण संस्था की ओर से मंज़ूरी मिली है। यह वर्ष 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से उम्मीवारों की सबसे बड़ी संख्या है।

उम्मीदवारों में 1713 महिलाएं हैं जो वर्ष 2020 के संसदीय चुनाव में भाग लेने वाली 819 महिला उम्मीदवारों की तुलना में दो गुना है।

संसद के चुनाव के साथ ही विशेषज्ञ असेंबली की 88 सीटों के लिए 144 धर्मगुरुओं के बीच मुक़ाबला हो रहा है। यह संस्था देश के सुप्रीम लीडर के कामकाज पर नज़र रखती है और अगला सुप्रीम लीडर चुनने का अधिकार उसे होता है।

ईरान की जनता सांसदों, राष्ट्रपति और शहर और गांव परिषद के सदस्यों और इस्लामी परिषदों के सदस्यों की नियुक्ति करती है, इसीलिए ईरान की राजनीतिक व्यवस्था में लोगों की प्रमुख भूमिका और स्थान है। इस्लामी व्यवस्था ने हमेशा जनता की अधिकतम भागीदारी पर ज़ोर दिया है और यह न केवल व्यवस्था के अधिकार के स्तर को बढ़ाने के लिए है बल्कि ईरानी जनता की मानवीय गरिमा का सम्मान और रक्षा करने के लिए भी है।

दूसरा मुद्दा, ईरान के चुनाव में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है। ईरान में होने वाले चुनावों में व्यक्तियों और गुटों के बीच प्रतिस्पर्धा ज़बरदस्त तरीक़े से होती है और मतपेटियों में प्रत्याशियों के भाग पड़े होते हैं और देश का चुनाव आयोग पारदर्शिता के साथ मतगणना कराता है और जीतने वाले प्रत्याशियों के नामों का एलान करता है। ईरान में व्यक्तियों और दलों के बीच एक वास्तविक प्रतिस्पर्धा का ख़ूबसूरत दृश्य भी नज़र आता है।

यह ऐसी हालत में है कि दुश्मनों ने ईरान के चुनावों के लिए साज़िशें रच रखी हैं और यहां तक ​​कि उनकी खुफिया एजेंसियों ने भी चुनावों पर पूरी तरह से नजर रख रखी है और मीडिया की ताकत का उपयोग करके इसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं।

इराक़ के राष्ट्रपति का कहना है कि बग़दाद के सभी क्षेत्रों में तेहरान के साथ मजबूत संबंध हैं।

ईरान और इराक़ के बीच विभिन्न राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में

रणनीतिक संबंध व्यापक हैं और दोनों ही देशों के शीर्ष नेताओं की इच्छा, सहयोग और द्विपक्षीय बातचीत के स्तर को बढ़ाना है।

इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार इराक़ के राष्ट्रपति अब्दुल लतीफ रशीद ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बग़दाद के इस्लामिक गणतंत्र ईरान के साथ मजबूत संबंध हैं जिन्हें विशेष रूप से वाणिज्यिक बातचीत के क्षेत्र में देखा जा सकता है।

अब्दुल लतीफ़ रशीद ने अपने पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ इराक़ के अच्छे संबंधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इराक की वापसी के लिए देश में सुरक्षा और स्थिरता स्थापित करने के प्रयास आवश्यक हैं।

इराक़ के राष्ट्रपति ने कहा कि विदेशी हस्तक्षेप का इराक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और सरकार, देश में स्थिति को शांत करने और सभी राजनीतिक दलों और सुरक्षा संस्थाओं के साथ एक समझौते पर पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है।

राष्ट्रपति अब्दुल लतीफ रशीद ने अमेरिकी ठिकानों पर इराक़ी प्रतिरोधकर्ता गुटों के हालिया हमलों को ग़ज़्ज़ा की स्थिति से जोड़ा और कहा कि ग़ज़्ज़ा में जो हो रहा है उसके बारे में हमारी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है और हम फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के कानूनी अधिकारों और स्वतंत्र एवं सुरक्षित राज्य की स्थापना का समर्थन करते हैं।

इराक़ के राष्ट्रपति ने इराक़ से विदेशी सेनाओं की वापसी पर सहमति बनने की भी उम्मीद जताई है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा में पश्चिम के हाथों जातीय सफ़ाया इतना शर्मनाक हो गया है कि अमरीकी फ़ौजी अफ़सर आत्मदाह कर लेता है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा।इसी संदर्भ में  शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।

इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा।  इसी संदर्भ में  शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।

इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पहली बार वोट डालने वाले हज़ारों नौजवानों और कुछ शहीदों के घरवालों से बुधवार 28 फ़रवरी को तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने संबोधन में, चुनावों में क़ौम की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला तत्व बताया।  उन्होंने सबसे उचित उम्मीदवार की विशेषताएं बयान करते हुए कहा कि अवाम की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलों को दूर करने और देश की तरक़्क़ी का रास्ता समतल होता है।  इस हिसाब से चुनाव, देश का सिस्टम सही चलाने वाले स्तंभों में से एक है।

इस्लामी क्रांति के नेता ने क्रांति से पहले ईरान के चुनावों के दिखावे के होने पर आधारित पहलवी शासन के कुछ अधिकारियों के लिखित बयानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जैसा कि उन्होंने इस बात को माना है कि चुनावों से पहले ही शाही दरबार में, यहाँ तक कि कभी-कभी कुछ विदेशी दूतावासों में कामयाब उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर दी जाती थी और बैलेट बॉक्सों से वही लिस्ट बाहर आती थी।

उन्होंने फ़्रांस और पूर्व सोवियत संघ जैसे बड़ी क्रांतियों के बाद तानाशाही गुटों के शासन की ओर इशारा करते हुए कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने जनता पर भरपूर भरोसा करके और बैलेट बाक्सों को महत्व देकर क्रांति की सफलता के बाद क़रीब 50 दिनों के भीतर इस बात के लिए रेफ़्रेंडम कराया कि अवाम को किस तरह का शासन चाहिए ताकि राष्ट्र, देश और क्रांति के अस्ली मालिक, सभी मसलों के बारे में फ़ैसला करे।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने उन घटिया दुश्मनों की ओर इशारा करते हुए जो ईरान और शुक्रवार के चुनावों पर नज़रें गड़ाए हुए हैं, कहा कि अमरीका, यूरोप के अधिकतर राजनेता, घटिया ज़ायोनी शासन और बड़े-बड़े पूंजिपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियां, जो विभिन्न कारणों से पूरे ध्यान से ईरान के मसलों पर नज़र रखती हैं, हर चीज़ से ज़्यादा चुनावों में ईरानी जनता की भागीदारी और ईरानी जनता की शक्ति से डरती हैं।

उन्होंने कहा कि दुश्मनों ने देखा कि इसी निर्णायक जनता की ताक़त ने अमरीका और ब्रिटेन द्वारा समर्थित निरंकुश शाही शासन को जड़ से उखाड़ फेंका और थोपे गए युद्ध में सद्दाम को, उसके सभी पूर्वी व पश्चिमी तथा क्षेत्रीय समर्थकों के बावजूद, अपमानित किया और धूल चटा दी।  इसी वजह से चुनाव, देश की राष्ट्रीय शक्ति को दुनिया के सामने पेश करने का प्रतीक हैं।

इस्लामी क्रांति के नेता ने चुनावों में जनता भी भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति के प्रदर्शन और राष्ट्रीय शक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी बताया।  उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के बिना कोई भी चीज़ बाक़ी नहीं रहेगी और अगर दुश्मन ने राष्ट्रीय ताक़त के संबंध में ईरानियों में ज़रा भी कमजोरी देखी तो विभिन्न आयामों से वह राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल देगा।

उन्होंने भरपूर भागीदारी से मज़बूत चुनाव का एक अहम नतीजा, मज़बूत लोगों का चयन और मज़बूत संसद का गठन और इसके नतीजे में मुश्किलों का अंत और मुल्क की तरक़्क़ी को बताया और चुनावों के दूसरे नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चुनावों के दौरान राजनैतिक समझ में तरक़्क़ी और जवानों में समीक्षा करने की क्षमता में वृद्धि, बहुत क़ीमती चीज़ है क्योंकि इससे दुश्मन, उसके तरीक़ों और उसके हथकंडों की पहचान होगी जिसके नतीजे में इन चीज़ों से निपटने की राहों की पहचान होगी और दुश्मनों के षडयंत्रों को विफल बनाया जा सकेगा।

इस्लामी क्रांति के नेता ने अपने संबोधन के आख़िरी हिस्से में एक बार फिर ग़ज़ा के मसले को इस्लामी दुनिया का बुनियादी मसला बताते हुए कहा कि ग़ज़ा के मसले ने इस्लामी दुनिया को पहचनवा दिया और सभी को पता चल गया कि इस्लाम और धर्म का तत्व, मज़बूती, दृढ़ता और ज़ायोनियों की इतनी ज़्यादा बमबारी और जुर्म के मुक़ाबले में घुटने ने टेकने की बुनियाद है।

उन्होंने आगे कहा कि इस मसले ने पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता का असली चेहरा भी दुनिया के सामने पेश कर दिया।  इससे पता चल गया कि इस कलचर में पले हुए राजनेता, ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए को मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं। कुछ ज़बानी बातों के बावजूद वे व्यवहारिक तौर पर यूएन सेक्युरिटी काउंसिल के प्रस्तावों को वीटो करके जुर्म को रुकवाने में रुकावट डाल रहे हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के जुर्म का विरोध करते हुए अमरीकी सेना के एक अफ़सर की आत्मदाह की घटना को अमरीका और पश्चिम की भ्रष्ट व अत्याचारी संस्कृति को अमानवीय नीतियों की रुसवाई के चरम की एक निशानी बताया।  आपने कहा कि इस व्यक्ति तक नें इस संस्कृति के घिनौने रूप को महसूस कर लिया, जो ख़ुद भी पश्चिमी कलचर में पला था।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उम्मीद जताई कि अल्लाह, इस्लाम, मुसलमानों, फ़िलिस्तीन और ख़ास तौर पर ग़ज़ा की पूरी तरह मदद करेगा।

 

यमन के अंसारुल्लाह संगठन के नेता ने फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन पर बल देते हुए कहा है कि अधिकांश देश और सरकारें मूकदर्शक बनी हुई हैं और उनमें से कुछ दुश्मनों के साथ मिल गयी हैं और गुप्त रूप से ज़ायोनी दुश्मन का समर्थन कर रही हैं।

अब्दुल मलिक बदरुद्दीन हूसी ने कहा कि जायोनी सरकार के हमलों के कारण फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों को बदतरीन कठिनाइयों व समस्याओं का सामना है। उन्होंने कहा कि गज्जा पर इस्राईल के पाश्विक हमलों के पहले दिन ही अमेरिका, ब्रिटेन और अधिकांश बड़े यूरोपीय देशों ने जायोनी दुश्मन का विभिन्न प्रकार से समर्थन किया।

उन्होंने कहा कि जायोनी सरकार के पास बहुत अधिक सैनिक संभावना व हथियार होने के बावजूद अमेरिका और पश्चिम ने विभिन्न प्रकार के हथियारों, पैसों और तकनीक से जायोनी सरकार की मदद की।

उन्होंने कहा कि अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में तीसरी बार प्रस्ताव को वीटो करके पारित होने से रोक दिया और जायोनी दुश्मन की मदद की। उन्होंने कहा कि अमेरिका फिलिस्तीनी लोगों की हत्या व नरसंहार पर आग्रह करता है और वह गज्जा में फिलिस्तीन के लोगों के भूखा रहने का समर्थन कर रहा है।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि इस्राईल के अपराधों में अमेरिका उसका अस्ली भागीदार है और जायोनी सरकार के अपराधों में उसका समर्थन ब्रिटेन से वाशिंग्टन को विरासत में मिली है, वाशिंग्टन कमज़ोरों के समर्थन में सुरक्षा परिषद और राष्ट्रसंघ की भूमिका में रुकावट व बाधा बन रहा है।

यमन के अंसारुल्लाह संगठन के नेता ने कहा कि फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के प्रति मुसलमानों का समर्थन कहां है? फिलिस्तीनी लोग समर्थन व मदद के पात्र हैं और कुछ सरकारों की चुप्पी, अपराधों को अंजाम देने में जायोनी सरकार के दुस्साहस का कारण बनी है। उन्होंने कहा कि गज्जा पट्टी की स्थिति जितनी बदतर हो रही है मुसलमानों की ज़िम्मेदारी उतनी अधिक हो रही है, क्या मुसलमान सहायता करने के लिए गज्जा वासियों के पूर्णरूप से खत्म हो जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं?

इसी प्रकार अब्दुल मलिक अलहूसी ने कहा कि गज्जा में भूख के कारण मरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है और बहुत से मरने वाले बच्चे और बड़ी उम्र के लोग हैं यहां तक कि जानवरों का चारा भी खत्म हो रहा है। गज्जा में लाखों फिलिस्तीनी भूखे हैं और इस्लामी देशों व राष्ट्रों से वे मदद चाह रहे हैं।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि जायोनी सरकार ने कुछ फिलिस्तीनी बंदियों की हत्या कर दी जिनमें महिलायें और बच्चे शामिल हैं। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि पश्चिम, महिलाओं के अधिकारों के समर्थन का दम भरता है जब इस्राईल फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों की हत्या करता है तो महिलाओं के समर्थन का उनका नारा कहां चला जाता है?

इस समय पश्चिम से महिलाओं के समर्थन में कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिम, गैर अखलाक़ी, अनैतिक या समाजों को तबाह करने वाली बातों में महिलाओं के समर्थन में नारा लगाता है।

बहरहाल अमेरिका, पश्चिम और यूरोपीय देश मानवाधिकार, बाल अधिकार और महिला अधिकार के दावे में कितने सच्चे हैं यह सब फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के संबंध में उनके क्रिया कलापों से पूरी तरह पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट हो गया है और उनके चेहरों पर मानवताप्रेम नाम का जो मुखौटा था वह भी पूरी तरह जगज़ाहिर हो गया है।

बेटी अपनी मां को देखती है और उनसे ज़िंदगी के आदाब, शौहर से पेश आने के तरीक़े घर गृहस्थी संभालना और बच्चों की परवरिश का तरीक़ा सीखती है और अपने बाप को देख कर मर्दों के रवैये को पहचानती है, बेटा अपने बाप से ज़िंदगी के उसूलों और तौर तरीक़ों को सीखता है, वह अपने बाप से बीवी और बच्चों से सुलूक करने को सीखता है, और अपनी मां के तौर तरीक़ों से औरत को पहचानता है और अपनी आने वाली ज़िंदगी के लिए उसी को देख कर प्लान बनाता हैं।

बहुत से मां बाप ऐसे होते हैं जो तरबियत के लिए नसीहत और ज़ुबान से यह करो यह न करो कहने को काफ़ी समझते हैं, वह यह सोंचते हैं कि वह बच्चे को ज़ुबानी समझा बुझा रहे होते हैं तो वह तरबियत कर रहे होते हैं और ज़िंदगी में बाक़ी तरीक़ों पर ध्यान नहीं देते हैं,

यही वजह है कि ऐसे मां बाप अपने छोटे और कम उम्र बच्चों को तरबियत के क़ाबिल नहीं समझते और कहते हैं कि अभी बच्चा है कुछ नहीं समझेगा, जब बच्चा समझने के क़ाबिल हो जाता है तब तरबियत की शुरूआत करते हैं,

जब वह अच्छा बुरा समझने लगे तब उसकी तरबियत शुरू करते हैं, जबकि यह सोंच बिल्कुल ग़लत है, बच्चा अपनी पैदाइश के दिन से ही तरबियत के क़ाबिल होता है, वह पल पल तरबियत पाता है और एक विशेष मिज़ाज में ढ़लता चला जाता है चाहे मां बाप का ध्यान उस तरफ़ हो या न हो,

बच्चा तरबियत पाने के लिए इस बात का इंतेज़ार नहीं करता कि मां बाप उसे किसी काम का हुक्म दें या किसी चीज़ से रोकें, बच्चे का सेंसटिव और हस्सास दिमाग़ पहले ही दिन से एक कैमरे की तरह सारी चीज़ों की फ़िल्म बनाने लगते हैं और उसी के मुताबिक़ उसकी परवरिश होती है और वह तरबियत पाता है।

5 या 6 साल का बच्चा परवरिश पा चुका होता है और जो कुछ उसे बनना होता है बन चुका होता है, अच्छाई या बुराई का आदी बन चुका होता है इसलिए बाद की तरबियत बहुत मुश्किल होती है और उसका असर भी कम होता है,

बच्चा तो अपने मां बाप, अपने आस पास के लोग, उनके कामों उनकी बातचीत उनके रवैये उनके अख़लाक़ और अपने आस पास के माहौल का निरीक्षण (observe) करता है और उसकी तक़लीद करता है, वह मां बाप को सम्मान की निगाह से देखता है और उनके ज़िंदगी के तौर तरीक़े और कामों को अच्छाई और बुराई का मेयार क़रार देता है

और फिर उसी के मुताबिक़ अमल अंजाम देता है, बच्चे का वुजूद तो किसी सांचे में नहीं ढ़ला होता वह मां बाप को एक आइडियल समझ कर उनके मुताबिक़ अपने आप को ढ़ालता है, वह किरदार को देखता है बातों और नसीहतों पर ध्यान नहीं देता, अगर उसका किरदार उसका रवैया उसकी बातों के मुताबिक़ न हो तो वह किरदार को अपनाता है।

बेटी अपनी मां को देखती है और उनसे ज़िंदगी के आदाब, शौहर से पेश आने के तरीक़े, घर गृहस्थी संभालना और बच्चों की परवरिश का तरीक़ा सीखती है और अपने बाप को देख कर मर्दों के रवैये को पहचानती है, बेटा अपने बाप से ज़िंदगी के उसूलों और तौर तरीक़ों को सीखता है, वह अपने बाप से बीवी और बच्चों से सुलूक करने को सीखता है, और अपनी मां के तौर तरीक़ों से औरत को पहचानता है, और अपनी आने वाली ज़िंदगी के लिए उसी को देख कर प्लान बनाता है।

इसलिए ज़िम्मेदार और जानकार लोगों के लिए ज़रूरी है कि शुरू में अपने अंदर सुधार पैदा करें, अगर उनके आमाल, किरदार और अख़लाक़ में कमियां हैं तो उसको सुधारें, अच्छे सिफ़ात और नेक आदतें इख़्तेयार करें और किरदार को सजाएं, संक्षेप में बस इतना समझ लें कि अपने आप को एक अच्छा और मुकम्मल इंसान बनाएं उसके बाद बच्चों की पैदाइश और उनकी तरबियत की राह में क़दम आगे बढ़ाएं, इसलिए मां बाप को पहले यह सोचना चाहिए कि वह किस तरह का बच्चा समाज के हवाले करना चाहते हैं, अगर उन्हें यह पसंद है कि उनका बच्चा नेक अख़लाक़ वाला, इंसानियत से प्रेम करने वाला, दीनदार, शरीफ़, बहादुर, ज़िम्मेदार, मेहेरबान हो तो ख़ुद उन्हें भी ऐसा ही होना चाहिए ताकि वह बच्चे के लिए आइडियल क़रार पाएं, जिस मां की तमन्ना हो कि उसकी बेटी ज़िम्मेदार, मेहेरबान, समझदार, शौहर से वफ़ादारी करने वाली, तहज़ीब वाली, हर तरह के हालात में गुज़र बसर करने वाली, और मुनज़्ज़म हो तो उसे पहले ख़ुद इन सिफ़ात को अपने अंदर लाना होगा, अगर मां बुरे अख़लाक़, बे अदब, सुस्त, ग़ैर मुनज़्ज़म, दूसरों से ज़्यादा तवक़्क़ो रखने वाली, बहाना बनाने वाली तो वह केवल नसीहत करने से अच्छी बेटी तरबियत नहीं कर सकती।

डॉ. जलाली लिखते हैं कि बच्चों को भावनाओं और जज़्बात के हिसाब से वही लोग तरबियत कर सकते हैं जिन्होंने अपने बचपन और नौजवानी और जवानी में सही तरबियत पाई हो, जो मां बाप आपस में नाराज़ रहते हों और छोटी छोटी बातों पर झगड़ा करते हों या जिन लोगों तरबियत को शरई ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि एक फ़ॉरमेल्टी समझ के अंजाम देते हों और बच्चों को नफ़रत की निगाह से देखते हों, या जो लोग तरबियत करने का हौसला न रखते हों, या जिनको ख़ुद पर अपने बच्चों की सही तरबियत करने का भरोसा ही न हो तो ऐसे वालेदैन अपने बच्चों की भावनाओं, जज़्बात और एहसास को सही रास्ते पर नहीं लगा सकते हैं।

इसके बाद डॉ. जलाली लिखते हैं कि बच्चे की तरबियत जिस किसी के भी ज़िम्मे हो उसे चाहिए कि कभी कभी अपने किरदार और अपने सिफ़ात पर भी निगाह डाले और अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में सोचे और कमियों को दूर करे।

इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि जो शख़्स किसी का लीडर और पेशवा बनना चाहता है उसे चाहिए कि पहले वह अपने अंदर सुधार लाए फिर दूसरों को सुधारे, और दूसरों को ज़ुबान से अदब और अख़लाक़ सिखाने से पहले अपने किरदार से अदब सिखाए, और जो इंसान ख़ुद को तालीम और अदब सिखाता है वह उस इंसान से ज़्यादा इज़्ज़त और सम्मान का हक़दार है जो दूसरों को अदब सिखाता है। (नहजुल बलाग़ा, कलेमाते क़ेसार, 73)

एक दूसरे मौक़े पर इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि तुम अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करो ताकि तुम्हारे बच्चे तुम्हारा सम्मान करें। (ग़ोररुल हेकम, पेज 78)

पैग़म्बर स.अ. अबूज़र से फ़रमाते हैं, जब कोई शख़्स ख़ुद नेक होता है तो अल्लाह उसके नेक हो जाने से उसकी औलाद और उसकी औलाद की औलाद को भी नेक बना देता है। (मकारिमुल अख़लाक़, पेज 546)

इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि, अगर दूसरों को सुधारना और सही तरबियत करना चाहते हो तो इस सिलसिले की शुरुआत अपनी ज़ात में सुधार पैदा कर के करो, और अगर दूसरों को सुधारना चाहा और अपने को और अपने आप को बुरा ही रहने दिया तो यह सबसे बड़ा ऐब और सबसे बड़ी ग़लती होगी। (ग़ोररुल हेकम, पेज 278)

इसी तरह इमाम अली अ.स. की एक और हदीस इस विषय पर इस तरह रौशनी डालती है कि जिस नसीहत के लिए ज़ुबान ख़ामोश हो और किरदार बोल रहा हो तो उसे कोई कान बाहर नहीं निकाल सकता और इसके बराबर किसी नसीहत का कोई फ़ायदा नहीं हो सकता। (ग़ोररुल हेकम, पेज 232)