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वर्चस्ववादी व्यवस्था ईरान की जो छवि दुनिया के सामने पेश कर रही है वह उसके बिल्कुल ही विपरीत हैः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उन देशों के साथ वैज्ञानिक संपर्क बनाने को आवश्यक बताया है जिन्होंने बहुत तेज़ी से प्रगति की है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार को तेहरान में मेधावी और प्रतिभाशाली छात्रों से भेंट की। उन्होंने पूरे देश में हज़ारों की संख्या में मेधावी छात्रों की उपस्थिति को ईरान के आशाजनक भविष्य का परिचायक बताया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि वर्तमान समय में ईरान की छवि को नकारात्मक ढंग से बिगाड़कर प्रस्तुत करना शत्रुओं की कार्यसूचि में सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि वर्चस्ववादी व्यवस्था ईरान की जो छवि दुनिया के सामने पेश कर रही है वह वास्तव में उसके बिल्कुल ही विपरीत है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने देश के लिए अच्छे एवं उपयोगी कार्यक्रमों के निर्माण में मेधावी युवाओं की भूमिका का उल्लेख करते हुए ईरान की वैज्ञानिक प्रगति, परस्पर सहयोग, श्रम बल के सही उपयोग और राष्ट्रीय पहचान को बहुत आवश्यक बताया।आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने देश की वैज्ञानिक प्रगति में ईरान के प्रतिभाशाली एवं मेधावी लोगों के प्रभाव की ओर संकेत करते हुए कहा कि यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से प्रगति करते हैं तो फिर शत्रु की धमकियां हमेशा नहीं रहेंगी बल्कि वे कम होती जाएंगी।
उन्होंने इस ओर संकेत किया कि विगत में ईरान आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से पिछड़ गया था। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पहलवी काल में विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में ईरान का योगदान मात्र शून्य दश्मलव एक प्रतिशत था जबकि ईरान की जनसंख्या विश्व की लगभग एक प्रतिशत थी। उनका कहना था कि वर्तमान समय में विज्ञान के क्षेत्र में ईरान का योगदान दो प्रतिशत हो चुका है। वरिष्ठ नेता का कहना था कि हमें इसे पर्याप्त नहीं समझना चाहिए। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि विगत में वैज्ञानिक या अन्य क्षेत्रों में ईरान के पिछड़ेपन का मूल कारण अयोग्य तथा दूसरों पर निरभर शासकों की उपस्थिति थी जो राष्ट्र के सामने घमण्ड करते और जनता की बिल्कुल भी चिंता नहीं करते थे।
जीत सत्य की होती है और ईरानी राष्ट्र पाबंदियों व साज़िशों के ख़िलाफ़ कामयाब होगाः आयतुल्लाह इमामी काशानी
जुमे के इमाम ने कहा है कि ईरानी राष्ट्र हर प्रकार की पाबंदियों व साज़िशों के ख़िलाफ़ विजयी होगा।
तेहरान के अस्थायी जुमे के इमाम आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने नमाज़ के विशेष भाषण में कहा कि ईरानी राष्ट्र विश्व साम्राज्य व इस्लाम के दुश्मनों की ओर से लगने वाली सभी पाबंदियों व साज़िशों के ख़िलाफ़ कामयाब होगा।
उन्होंने शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में इस बात का उल्लेख करते हुए कि इस्लामी देशों में मुश्किलों को हल करने का अपार सामर्थ्य मौजूद है, कहा कि आगामी सफलता ईरानी राष्ट्र की है, महान ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ दुश्मन के सपने कभी पूरे नहीं होंगे और वह ईरान पर वर्चस्व जमाने की अपनी इच्छा क़ब्र में लेकर जाएंगे।
आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने ईरान में असंतोष व आर्थिक समस्या पैदा करने के लिए अमरीका की साज़िश की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमरीका का लक्ष्य राष्ट्र और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के बीच अविश्वास पैदा करना है, लेकिन ईरानी राष्ट्र इन साज़िशों के ख़िलाफ़ समझदारी से डटा हुआ है जिससे दुश्मन नाकाम होकर रहेगा।
देश में कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान नहीं हो, वरिष्ठ नेता
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहा है कि देश में किसी तरह की कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका कोई समाधान नहीं हो।
बुधवार की रात ईरान के राष्ट्रपति, संसद सभापति और न्यायपालिका प्रमुख के साथ मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने कहा, देश की मौजूदा आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए और लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए असाधारण प्रयासों की ज़रूरत है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि बैंकिंग, रोज़गार, मंहगाई और लिक्विडिटी जैसी आर्थिक समस्याओं के लिए गंभीर एवं महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए जाने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा, देश की वर्तमान परिस्थितियों के कारण, विद्वानों को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास है और वे अपने अनुभवों को अधिकारियों तक पहुंचा रहे हैं।
अमरीकी एकपक्षीय प्रतिबंधों एवं आंतरिक आर्थिक समस्याओं का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा, इन दोनों समस्याओं के समाधान के लिए तार्किक क़दम उठाए जाने चाहिएं, ताकि जनता की समस्याओं का समाधान निकले और दुश्मन को निराशा हाथ लगे।
ईरान-भारत के बीच चाबहार बंदरगाह के संबंध में अहम बैठक
ईरान-भारत ने चाबहार बंदरगाह में पूंजिनिवेश और दोनों देशों के समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के मार्गों की समीक्षा की।
इरना के अनुसार, ईरान के जहाज़रानी व बंदरगाह विभाग के प्रबंधक निदेशक मोहम्मद रास्ताद ने भारत के अपने दो दिवसीय दौरे पर इस देश के जहाज़रानी मंत्रालय के सचिव और मुख्य बंदरगाहों के निदेशकों से बातचीत की।
मोहम्मद रास्ताद और भारतीय बंदरगाहों के निदेशकों के साथ बैठक में दोनों देशों के बीच समुद्री व बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग में विस्तार तथा ईरान की चाबहार बंदरगाह के पहले फ़ेज़ में भारतीय कंपनी आईपीजीएल के साथ हुए समझौते की समीक्षा हुयी।
दोनों पक्षों ने चाबहार बंदरगाह के कन्टेनर टर्मिनल में भारतीय कंपनी द्वारा उपकरणों की ख़रीदारी के मामले को अंतिम रूप देने के बारे में बातचीत की और ईरान, भारत व अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों की उपस्थिति में त्रिपक्षीय चाबहार ट्रान्ज़िट सहमतिपत्र को लागू करने के लिए पहली बैठक के आयोजन पर बल दिया।
चाबहार ओमान सागर के उत्तरी छोर पर स्थित ईरान की अहम बंदरगाह है। यह बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र तक पहुंच और अपनी रणनैतिक स्थिति के मद्देनज़र क्षेत्र के देशों के साथ ईरान के व्यापारिक लेन-देन में विशेष अहमियत रखती है।
ईरान-भारत के बीच 2017 में व्यापारिक लेन-देन 13 अरब 70 करोड़ डॉलर का था।
इस्राईली सैनिकों की फ़ायरिंग में 7 फ़िलिस्तीनी शहीद, 100 से ज़्यादा घायल
12 अक्तूबर 2018 को ग़ज़्जा शहर के पूर्वी भाग में ग़ज़्जा पट्टी और अतिग्रहित क्षेत्र की सीमा पर जलते हुए टायरों से निकलते धुएं और इस्राईली फ़ोर्सेज़ द्वारा आंसू गैस के गोले के इस्तेमाल बीच इकट्ठा फ़िलिस्तीनी
नाकाबंदी से घिरे ग़ज़्ज़ा पट्टी और अतिग्रहित क्षेत्र की सीमा पर फ़िलिस्तीन के इस्राईल द्वारा अतिग्रहण के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान इस्राईली फ़ोर्सेज़ की फ़ायरिंग में कम से कम 7 फ़िलिस्तीनी शहीद और 112 घायल हुए।
ग़ज़्ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि शुक्रवार को इस्राईली फ़ोर्सेज़ की फ़ायरिंग में 6 फ़िलिस्तीनी हताहत हुए। ये फ़िलिस्तीनी अलबुरैज शरणार्थी कैंप के पूरब में शहीद हुए।
ग़ज़्ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ़ अलक़िदरा ने अलबुरैज शरणार्थी कैंप के पूरब में शहीद होने वाले फ़िलिस्तीनियों की पहचान अहमद अत्ताविल 27 साल, मोहम्मद इस्माईल 29 साल, अब्दुल्लाह अद्दुग़मा 25 साल, अहमद अबू नईम 17 साल, अफ़ीफ़ी अफ़ीफ़ी 18 साल, तामिर अबू इरमाना 22 साल और मोहम्मद अब्बास 21 साल बतायी।
रिपोर्ट के अनुसार, घायल होने वाले फ़िलिस्तीनियों की संख्या 112 है जिनमें बच्चे और औरतें भी शामिल हैं। इनमें ज़्यादातर झड़प के दौरान गोलियों से घायल हुए।
घायलों में एक लड़की गंभीर रूप से घायल थी जबकि 5 अन्य लोगों की स्थिति चिंताजनक बनी हुयी थी।
अमरीका, अफ़ानिस्तान में युद्ध हार गया है
17 वर्ष पूर्व 7 अक्तूबर 2001 को अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था, लेकिन 17 वर्ष बीत जाने के बाद वाशिंगटन और उसके घटकों को न केवल इस देश में कोई सफलता नहीं मिली है, बल्कि वे यह जंग हार गए हैं।
जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान की अधिकांश जनता का मानना है कि अमरीका, उनके देश में यह युद्ध हार गया है, उसी तरह अमरीकी जनता का भी यही मानना है कि उनका देश अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध हार रहा है और अमरीकी सैनिकों को इस देश से निकल जाना चाहिए।
अमरीका ने नाइन इलेवन की घटना के बाद अल-क़ायदा और तालिबान को ख़त्म करने के दावे के साथ अफ़ग़ानिस्तान पर धावा बोल दिया था। इसके अलावा अमरीका का दावा था कि वह चरमपंथ को मिटाकर इश देश में शांति व्यवस्था की स्थापना कर देगा। हालांकि ज़मीनी सच्चाई यह बताती है कि न केवल अमरीका अपने घोषित लक्ष्यों में से एक भी हासिल नहीं कर सका है, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान पहले से भी अधिक अस्थिर हुआ है और आतंकवाद एवं चरमपंथ का विस्तार पहले से भी अधिक हुआ है। इसके अलावा, अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति में इश देश में मादक पदार्थों की पैदावार एवं तस्करी में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अमरीकी सेना कि जिसने अफ़ग़ानिस्तान की जनता को आतंकवाद एवं चरमपंथ से मुक्ति दिलाने के नारे के साथ काबुल पर हमला किया था, आज आतंकवाद के प्रसार एवं अस्थिरता का मुख्य कारण वह ख़ुद है।
अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय एक ग़ैर सरकारी संगठन का कहना है कि इस साल केवल सितम्बर के महीने में अमरीका और नाटो के हवाई हमलों में 100 से अधिक आम नागरिक मारे गए हैं। इस संदर्भ में काबुल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ैसर का कहना है कि अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति हमारे देश में अशांति एवं अस्थिरता का मुख्य कारण है। अमरीका का लक्ष्य शुरू से ही शांति की स्थापना नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य कुछ और है, इसीलिए वह इस देश में स्थिरता नहीं चाहता है।
राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ माइकल ह्यूज़ का मानना है कि अमरीका की नज़र अफ़ग़ानिस्तान के खनिज संसाधनों पर है, जिसके लिए उसे इस देश में बने रहने के लिए कोई न कोई बहाना तो चाहिए होगा।
ईरानः अगले छे महीनों के भीतर 3 ईरानी उपग्रहों का प्रक्षेपण
ईरान की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था के प्रमुख ने कहा है कि अगले छे महीनों के दौरान ईरान में बने तीन उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जाएगें।
मुर्तुज़ा बरारी ने रविवार को तेहरान के अमीर कबीर विश्वविद्यालय में आयोजित उपग्रह सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि उनकी संस्था अनुसंधान के चरण से उत्पादन के चरण में प्रवेश कर रही है और अगले छे महीनों दौरान तीन उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए तैयार है।
उन्होंने बताया कि प्रक्षेपण के लिए तैयार उपग्रहों के नाम, " दोस्ती" " पयाम और " नाहीद-1" हैं
उन्होंने बताया कि इन तीनों उपग्रहों को बनाने का काम तेज़ी से जारी है और ईरान की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था की प्राथमिकता दूर संचार ढांचे को मज़बूत करना है।
ईरान विश्व के उन 9 देशों में शामिल हैं जिनके पास अंतरिक्ष विज्ञान के पूरे चक्र की तकनीक है।
ईरान के तेल को लेकर अमेरिका और चीन के बीच युद्ध की संभावना बढ़ी!
अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों के नए चरण का हवाले देते हुए कहा है कि बीजिंग और वॉशिंग्टन के बीच भविष्य में युद्ध, तेल पर होगा।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि चीन, जो ईरान के कच्चे तेल के एक चौथाई का ख़रिदार है वह इस समय ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाए गए एकपक्षीय प्रतिबंधों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिरोध का धुरी बन गया है। “पीडब्ल्यूएम ऑयल” इंस्टीट्यूट में तेल के बाज़ार के जानकार “स्टफ़ान बर्नूक” का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए इस बात की संभावना कम ही दिखाई देती है कि बीजिंग, वॉशिंग्टन की मांगों को स्वीकार करेगा।
अमेरिकी समाचार पत्र ने ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों के आरंभ होने और उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उत्पन्न हुई अस्थिरता की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि, ईरान के तेल के सबसे बड़े ख़रीदार देश, तेहरान पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ हैं। लेकिन वित्तीय मामलों में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार को डॉलर की ज़रूरत है और साथ ही यूरोप, तेल के व्यापार में निजी कंपनियों पर निर्भर है और अमेरिका के मुक़ाबले में अपने हितों की सुरक्षा की आवश्यकता के मद्देनज़र यूरोपीय संघ ईरान विरोधी अमेरिकी प्रतिबंधों समक्ष भरपूर मुक़ाबला करने की स्थिति में नहीं है।
थिंक टैंक, सेंटर फ़ॉर न्यू अमेरिकन सेक्युरिटी संस्था के विशेषज्ञ पीटर हार्ल, जो बराक ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल में ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने के संबंध में कार्य करते थे और अब भी ट्रम्प सरकार में अमेरिका के सुरक्षा केंद्र के सदस्य हैं, उन्होंने इस संबंध में कहा है कि चीन दूसरे देशों के मुक़ाबले में अमेरिकी प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने में अधिक सक्षम है। हार्ल ने कहा कि चीन के पास बहुत सी छोटी ऑयल रिफ़ाइनरियां हैं जिनके बारे में अमेरिकी सरकार को पता ही नहीं है और दूसरी ओर चीन के पास अपनी राष्ट्रीय मुद्रा युआन से तेल आयात करने का अनुभव भी है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि चीन अपनी बड़ी सरकारी तेल रिफ़ाइनरियों के माध्यम से तेल आयात को कम करने का इच्छुक है।
एक अन्य टीकाकार माइकल हेरिसून का मानना है कि चीन द्वारा अमेरिका के मुक़ाबले में उठाए जा रहे क़दमों का मुख्य उद्देश्य अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर लगाए गए अधिक करों का जवाब देना है। उन्होंने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का धैर्य, सऊदी अरब के तेल के उत्पादन में वृद्धि से जुड़ा हुआ है। हेरिसून का कहना है कि ट्रम्प के लिए तेल उत्पादन में वृद्धि, ईरानी तेल के ख़रीदारों पर और अधिक दबाव डालने के बराबर है लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति को इस बारे में कोई जल्दबाज़ी नहीं है।
अमेरिका के सप्ताहिक समाचार पत्र बारून ने अपनी रिपोर्ट के अंत में लिखा है कि ईरान और चीन के सामने ट्रम्प द्वारा उठाए जा रहे कड़े क़दमों का एक ख़ास उद्देश्य है जिस तक ट्रम्प पहुंचना चाहते हैं, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा ईरान के ख़िलाफ़ की जा रही सभी कार्यवाहियां तेहरान पर किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं डाल सकती हैं।
अमेरिका और इस्राईल को इराक़ के अलफ़तह गठबंधन की चेतावनी
इराक़ के अलफ़तह गठबंधन की प्रतिनिधि इंतेसा अलमूसवी ने अमेरिका और इस्राईल को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर इराक़े प्रतिरोध मार्चे हश्दुश्शाबी के ठिकानों पर किसी भी तरह की कार्यवाही की गई तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़ अत्याचारी ज़ायोनी शासन के युद्ध मंत्री लेबरमैन ने कुछ दिनों पहले धमकी दी थी कि, इराक़ में प्रतिरोध मोर्चे के ठिकानों पर हमले किए जा सकते हैं। इराक़ के अलफ़तह गठबंधन की प्रतिनिधि इंतेसार अलमूसवी ने एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि, अमेरिका और इस्राईल एक बार फिर इराक़ को उस आतंकवाद की आग में झोकना चाहते हैं जिस आतंकवाद को देश की सेना और स्वयंसेवी बल हश्दुश्शाबी के जवानों ने पराजित किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और इस्राईल लगातार इस संबंध में प्रयास कर रहे हैं कि कैसे वह इराक़ में दाइश को जीवित कर सकें ताकि वे अपने खोए हुए उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें।
इंतेसार अलमूसवी ने कहा कि अमेरिका और इस्राईल यह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर उन्होंने एक बार फिर युद्ध आरंभ किया तो उसको समाप्त करना उनके हाथ में नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2017 में इराक़ में तकफ़ीरी आतंकवादियों के मारे जाने और उनके गुटों के तबाह हो जाने के बाद इस देश की विभिन्न पार्टियां, हस्तियां, जनता और मीडिया, इराक़ से विदेशी सेना विशेषकर अमेरिकी सेना के वापस लौट जाने की मांग कर रहे हैं।
भारत ने ईरान से तेल आयात में की वृद्धि
भारतीय संचार माध्यमों ने ईरान से नई दिल्ली द्वारा तेल की ख़रीद में वृद्धि की बात कही है।
एक मश्हूर भारतीय टीवी चैनेल के अनुसार अमरीका के तेल आयात करने वाली भारतीय कंपनियों ने अपने आयात की मात्रा घटाते हुए ईरान से तेल आयात बढ़ा दिया है। इस रिपोर्ट के आधार पर अमरीका की ओर से भारत को निर्यात किये जाने वाले तेल में सितंबर में 84 हज़ार बैरेल तेल प्रतिदिन का ह्रास हुआ है। इस प्रकार जून और जूलाई में अमरीका की ओर से भारत के लिए तेल निर्यात में कमी हुई है।
रिपोर्ट के आधार पर 2017 के आरंभिक पांच महीनों में भारत की ओर से ईरान से कच्चे तेल का आयात 9 मिलयन टन था जो सन 2018 में 13 मिलयन टन पहुंच गया है।
ज्ञात रहे कि अमरीका की ओर से परमाणु समझौते से एकपक्षीय रूप में निकल जाने के बाद 8 मई 2018 को यह एलान किया गया था कि 4 नवंबर 2018 से ईरान से तेल, गैस और पैट्रोकैमिकल के निर्यात को ज़ीरो तक पहुंचा देंगे।