رضوی

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राष्ट्रपति रईसी कहते हैं कि ईरान की विदेश नीति में अफ्रीका महाद्वीप को विशेष महत्व हासिल है।

अल्जीरिया की यात्रा पर निकलने से पहले राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने बताया कि अल्जीरिया के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर गैस निर्यात करने वाले देशों के संगठन की सातवी शिखर बैठक में भाग लेने के उद्देश्य से वे अल्जीरिया जा रहे हें।

उन्होंने कहा कि अल्जीरिया वह देश है जिसने वर्चस्ववादियों का मुक़ाबला किया।  यही कारण है कि ईरान की जनता उनके इस प्रतिरोध का सम्मान करती है।  ईरान के राष्ट्रपति का कहना था कि अल्जीरिया, इस्लामी संस्कृति का हिस्सा रहा है।  उन्होंने कहा कि तेल और गैस निर्यात करने वाले देशों के संगठन जीईसीएफ ने ईरान और अल्जीरिया को अधिक निकट ला दिया है।

राष्ट्रपति रईसी कहते हैं कि इस्लामी गणतंत्र ईरान और अल्जीरिया में एक समानता यह है कि दोनो देश यह मानते हैं कि एकपक्षवाद का मुक़ाबला किया जाना चाहिए।  उन्होंने कहा कि ईरान के व्यापारियों के लिए अल्जीरिया एक बहुत उचित बाज़ार है और दूसरी ओर ईरान भी फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती देशों तथा केन्द्रीय एशिया के देशों के साथ अपने संबन्धों के कारण अल्जीरिया के व्यापारियों के लिए बहुत अच्छी संपर्क की भूमिका निभा सकता है।

ईरानी राष्ट्रपति कहते हैं कि गैस के निर्यातक देश होने के नाते हम क्षेत्र में इसके केन्द्र की भूमिका निभा सकते हैं।  उन्होंने कहा कि इस बैठक के इतर वे बैठक में भाग लेने वाले नेताओं से भेंटवार्ता करेंगे।

शुक्रवार, 01 मार्च 2024 16:12

इस्लाम में बाल अधिकार- 1

इस कार्यक्रम श्रंख्ला में इस्लाम की दृष्टि से बच्चों के अधिकारों की समीक्षा करेंगे।

साथ ही इस विषय की बाल अधिकार कन्वेन्शन सहित अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों से तुलना, दोनों के बीच समानताएं, इस्लाम की अधिकार से संबंधित व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अंतर की समीक्षा करेंगे।

बच्चे समाज का वह समूह है जिसे सबसे ज़्यादा ख़तरा रहता है और सबसे पहले नाना प्रकार की मुसीबतों, दबावों और बड़ों के जीवन से पैदा हुयी मुश्किलों के निशाने पर होते और उसे झेलते हैं। पूरी दुनिया में दसियों लाख बच्चे अनाथ होने, जंग की वजह से विस्थापन की समस्या, प्राकृतिक आपदाएं, अनुचित आहार, प्रदूषण और उससे पैदा होने वाली बीमारियों, मां बाप के नशेड़ी होने, मां बाप के बीच तलाक़ से पैदा मुश्किलों की वजह से बहुत मुसीबतें सहन करते हैं या फिर बुरे लोगों के चंगुल में फंस जाते हैं जो उनका दुरुपयोग करते हुए उनसे मादक पदार्थ का वितरण या मजबूरी वाले काम करवाते या उनका यौन शोषण करते हैं। विकासशील देशों में बच्चों को कुपोषण, स्वास्थ्य सेवा, उपचार और शिक्षा सुविधा के अभाव का ज़्यादा सामना होता है लेकिन विकसित देशों में बच्चों को पारिवारिक बंधन के कमज़ोर होने और नैतिक बुराइयों का सामना है।

मनुष्य की परवरिश और विकास में बचपन का बहुत अहम रोल होता है। वास्तव में बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास की बुनियाद बचपन के वर्षों में पड़ती है। इसलिए इस दौर पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। इस काम के लिए बच्चों के लिए ऐसे क़ानून बनाए जाएं जो उनके लिए उचित हों और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोशिश की जाए। बच्चे अपनी कम उम्र की वजह से कमज़ोर होते हैं इसलिए उन्हें बड़ों के समर्थन व देखभाल की ज़रूरत होती है। बच्चों के कमज़ोर होने की वजह से यह ज़रूरी है कि उनके समर्थन में क़ानून बनाकर और उन्हें ज़रूरी संरक्षण देकर उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का मार्ग प्रशस्त किया जाए। वास्तव में बच्चों के लिए विशेष क़ानून के गठन का आधार मनोविज्ञान का यह सिद्धांत है कि बच्चे न सिर्फ़ शारिरिक बल्कि मानसिक व भावनात्मक दृष्टि से बड़ों से अलग होते हैं और उनकी अपनी विशेष इच्छाएं व ज़रूरतें होती हैं, इसलिए अधिकार की दृष्टि से उन्हें विशेष क़ानून की ज़रूरत होती है जो बड़ों से अलग हो। इस्लाम ने इस विषय की अहमियत के मद्देनज़र बाल अधिकार के संबंध में बहुत ही मूल्यवान शिक्षाएं दी हैं जिनका हम इस कार्यक्रम श्रंख्ला में वर्णन और उनकी समीक्षा करेंगे। पहले हम बाल अधिकार का अर्थ, इसके इतिहास और इसके आधार पर चर्चा करेंगे।

बच्चा और नौजवान ऐसे शब्द हैं जिनकी व्याख्या की ज़रूरत है। बच्चे और नौजवान की परिभाषा इस तरह हो कि दोनों के बीच सीमा स्पष्ट रहे। इस संबंध में वयस्कता और उठान शब्दों की समीक्षा करेंगे। अलबत्ता आपको यह भी बताएंगे कि अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में बच्चा शब्द का क्या अर्थ लिया गया है। बाल अधिकार के संबंध में सबसे अहम अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में 1989 में पारित हुए बाल अधिकार कन्वेन्शन भी है जिसमें बच्चा शब्द को परिभाषित किया गया है। बाल अधिकार कन्वेन्शन के अनुच्छेद 1 में आया हैः"इस कन्वेन्शन की नज़र में 18 साल से कम उम्र वाला बच्चा है। बच्चों के बारे में लागू क़ानून के अनुसार, व्यस्कता की उम्र और कम निर्धारित होनी चाहिए।"

बाल अधिकार कन्वेन्शन के अनुच्छेद-1 के बारे में कुछ अहम बिन्दु हैः पहला बिन्दु यह है कि उक्त अनुच्छेद में बाल काल की समाप्ति का उल्लेख है जबकि इसके शुरु होने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इस ख़ामोशी के दो अर्थ हो सकते हैं। एक यह कह सकते हैं कि चूंकि बचपन उस समय शुरु होता है जब बच्चा पैदा होता है, इसलिए इसके वर्णन की ज़रूरत नहीं है। दूसरे अर्थ के लिए पहले इस विषय का उल्लेख ज़रूरी है कि बाल अधिकार कन्वेन्शन के संकलन के समय बचपन शुरु होने के बारे में बहस मौजूद थी। पोलैंड की ओर से प्रस्तावित प्रारूप में आया थाः "इंसान के बच्चे का बचपन, उसके पैदा होने के क्षण से शुरु होता है।" कुछ लोग यह कह सकते हैं कि इस दृष्टिकोण को पेश करने के पीछे, पूर्वी योरोप में गर्भपात को सही ठहराने की भावना रही हो और इस वाक्य के ज़रिए वे नहीं चाहते थे कि बच्चे की पैदाइश से पहले बचपन के दौर के निर्धारण के ज़रिए गर्भपात की अनुमति के विषय पर प्रश्न चिन्ह लगे।

इसके मुक़ाबले में आयरलैंड, वेटिकन और लैटिन अमरीकी देशों का यह मानना था कि बचपन का दौर मां के गर्भाधारण होते ही शुरु हो जाता है। इस विषय की इस्लाम की दृष्टि से भी समीक्षा की जा सकती है। ऐसा लगता है कि बचपन की शुरुआत गर्भाधारण से शुरु हो जाती है। अमरीका में जिस समय यह स्पष्ट हो जाता है कि भ्रूण पैदा होने और बाक़ी रहने के योग्य है, उसी समय से बचपन का दौर शुरु हो जाता है।                

दृष्टिकोणों में अंतर इस बात का कारण कि बना संयुक्त राष्ट्र महासभा में बाल अधिकार कन्वेन्शन का पहला अनुच्छेद बचपन की शुरुआत के बारे ख़ामोश रहे। ऐसा लगता है कि बपचन की शुरुआत को देशों के अपने अपने आंतरिक क़ानून के अनुसार माना जाए। अलबत्ता यह बात कोई कह सकता है कि जब तक बच्चा पैदा नहीं हुआ, उस समय तक उस पर बच्चे का शब्द चरितार्थ नहीं हो सकता बल्कि जब बच्चे शब्द का इस्तेमाल होता है तो उससे मन में एक ऐसे इंसान की तस्वीर आती है जो मौजूद है न वह भ्रूण जिसके बारे में पता नहीं कि वह ज़िन्दा पैदा होगा या नहीं।

ऐसा लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का विगत की तुलना में इस बारे में दृष्टिकोण कुछ बदल गया है क्योंकि 1959 में बाल अधिकार के घोषणापत्र की प्रस्तावना में आया हैः " बच्चे को शारीरिक व बौद्धिक दृष्टि से समर्थन, विशेष ध्यान और ख़ास तौर पर उसे पैदा होने से पहले और उसके बाद क़ानूनी समर्थन की ज़रूरत है..." लेकिन बाल अधिकार कन्वेन्शन में इस विषय की ओर कोई संकेत नहीं किया गया है।              

बाल अधिकार कन्वेन्शन के पहले अनुच्छेद में एक अहम बिन्दु यह हैः "सिवाए  यह कि बच्चे के बारे में व्यस्कता की उम्र कम निर्धारित हो।" इस वाक का अर्थ यह है कि कन्वेन्शन में बच्चे के बचपन के समय का निर्धारण हुआ है, इस बिन्दु की ओर भी ध्यान दिया गया है कि मुमकिन है कुछ देशों के आंतरिक क़ानून में बचपन के दौर के ख़त्म होने की अवधि अलग और 18 साल से कम हो। वास्तव में इस कन्वेन्शन में 18 साल से कम उम्र को एक तरह से आधिकारिक मान्यता दी गयी है।

दूसरी बात यह है कि इस कन्वेन्शन ने वयस्क ता और विकास को एक दूसरे से अलग नहीं किया है मानो वयस्क ता और उठान को एक माना है। अर्थात बच्चे के 18 साल होने पर उसे उसके सभी अधिकार को लागू करने के योग्य मानता और उसे स्वतंत्रता के साथ काम करने की इजाज़त देता है। अलबत्ता यह भी कहा जा सकता है कि कुछ देशों में ख़ास तौर पर ग़ैर इस्लामी देशों में बाल अधिकार और बाल अधिकार कन्वेन्शन की विषयवस्तु "उठान" को मद्देनज़र रख का निर्धारित की गयी है और उनके पास बचपन के दौर के ख़त्म होने के लिए वयस्कता जैसा कोई अर्थ नहीं है।

दूसरे दस्तावेज़ों में भी बच्चों की परिभाषा मिलती है। जैसा कि 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित अंतर्राष्ट्रीय नागरिक व सामाजिक अधिकार प्रतिज्ञापत्र के अनुच्छेद 5 और 6 में मौत की सज़ा के बारे में आया हैः "18 साल से कम उम्र व्यक्ति के संबंध में मौत की सज़ा का हुक्म लागू नहीं होगा और गर्भवती औरत के बारे में भी लागू नहीं होगा।"    

कुछ दूसरे अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ भी हैं जिनमें बचपन के दौर के ख़त्म होने की उम्र का वर्णन मिलता है। जैसा कि 1962 में जनेवा में ग़ुलामी और ग़ुलाम बेचने पर रोक लगाने वाले पूरक समझौते की धारा 1 की चौथी उपधारा, बाल अधिकार कन्वेन्शन की धारा 2 और विश्व स्वास्थ्य संगठन के दृष्टिकोण के अनुसार बच्चा शब्द उसके लिए इस्तेमाल होगा जिसकी उम्र 18 साल से कम हो। बहरहाल अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों से यह अर्थ निकलता है कि बचपन का दौर गुज़रने और वयस्कता शुरु होने के लिए कि जिसके नतीजे में व्यक्तिगत व सामाजिक ज़िम्मेदारी मिलती है, 18 साल की उम्र को मद्देनज़र रखा गया है और 18 साल को ही विकास की उम्र माना गया है।

 

तहरीके दीनदारी, यानी बीसवीं सदी में इमामिया स्कूलों की स्थापना, एक दिव्य और आध्यात्मिक योजना थी जिसमें खतीब-ए-आज़म मौलाना सैयद गुलाम अस्करी ताबा सारा अल्लाह तआला की मदद से सफल हुए। वह घड़ी कितनी शुभ रही होगी जब मृतक के ज़हन मे यह विचार आया होगा, जैसे जा बा लब को, बे आबो गियाह सहरा मे पानी मिल जाए और वह हलाक होने से बच जाए। और प्रभावी प्रबंधन असंभव चीजों में से एक है, लेकिन ईमानदारी और मेहनत का नतीजा कुछ और ही होता है।

आज, उपमहाद्वीप (भारत और पाकिस्तान) के कई छात्र, जो इमामिया स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, इमामिया स्कूल से स्नातक होने के बाद, क़ुम और नजफ़ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, अहले-बैत के स्कूल का प्रचार और प्रसार करने में सक्रिय हैं।

वर्तमान आवश्यकताएँ:

लेकिन आज की जरूरतें कुछ और हैं। बेशक, अगर खतीब आजम मौलाना गुलाम अस्करी आज जीवित होते, तो देश के युवाओं की चिंता करते और उन्हें धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ समसामयिक ज्ञान भी प्रदान करते। अच्छी, उपयोगी और सस्ती योजना शिक्षा उनके दिमाग में रही होगी, क्योंकि वह एक आंदोलनी विद्वान और मर्दे मुजाहिद थे, इज्तिहाद के बारे में सोचते थे और ऊर्जा खर्च करते थे और फिर उदारतापूर्वक उन लोगों को लेते थे जो लक्ष्य की ओर बढ़ने में सक्षम थे। बेशक, कोई भी शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्य असंभव है बिना टीम वर्क के जहां हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए जी-जान से जुट जाता है और हर छोटी-बड़ी संख्या अपनी-अपनी भूमिका निभाती है, वही लक्ष्य है। जहां ऐसे नेताओं की उच्चस्तरीय दूरदर्शिता राष्ट्रहित के तहत रणनीतिक आंदोलन में चार चांद लगा देती है। व्यक्तिगत हित, चाहे वह ईरान की इस्लामी क्रांति की नींव हो या सर सैयद अहमद खान आंदोलन या हर जगह धार्मिक आंदोलन, राष्ट्रीय हित हर चीज से ऊपर हैं। उपरोक्त स्पष्ट है, पुनरुत्थान और नवीनीकरण की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।

राष्ट्रीय संस्थाएँ:

अफ़सोस, हमारी राष्ट्रीय संस्थाएँ, धार्मिक विद्यालय और धार्मिक स्कूल अब राष्ट्रीय भावना से ख़ाली हो गए हैं। प्रशिक्षण की प्रक्रिया रुकी हुई है, बल्कि यह सांसारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक साधन बनती जा रही है। इस अराजकता में राष्ट्र को एक गुलाम अस्करी की आवश्यकता है।

18 शाबान सन 145 हिजरी 9 मई 1985 ई. तहरीके दीनदारी मौलाना सैयद गुलाम अस्करी ताबा सारा की वफात की तारीख है और यह लिखावट एक श्रद्धांजलि भी है और देश व कौम के दानवीरों के लिए एक याद भी।

ईश्वर दिवंगत मौलाना और उनके सभी साथियों तथा देश के उन सभी लोगों को क्षमा करें जिन्होंने इस आंदोलन में कदम से कदम मिलाकर भाग लिया है और यदि वे जीवित हैं तो उन्हें और अधिक सफलता प्रदान कर। हज़रत महदी (अ) के ज़हूर की उम्मीद के साथ।

 

 

 

 

 

ईरानी राष्ट्र का इतिहास कई हज़ार साल पुराना है।

इस दौरान उसने ऐसे बहुत सारे महापुरुषों को जन्म दिया है जो पूरी दुनिया में ईरान और ईरानियों के गर्व का कारण बने हैं और उनमें से एक विश्व विख्यात शायर हकीम अबूल क़ासिम फिरदौसी हैं जिन्हें ईरानी इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है।

जब हम दुनिया से जा चुकी महान हस्तियों की जीवनी और उन चीज़ों पर नज़र डालते हैं जो वे छोड़कर गये होते हैं और उन चीज़ों की तुलना महान हस्तियों से करते हैं तो हम यह पाते हैं कि विभिन्न दौर और शताब्दियों के दौरान फिरदौसी ईरान के सबसे प्रभावी विचारक और शायर हैं।

शाहनामा कहे हुए शताब्दियों का समय गुज़र रहा है परंतु आज भी उसकी सुन्दर व रोचक कहानियां लोगों में प्रचलित हैं। मानो रुस्तम ने ईरान की समस्त गलियों का भ्रमण किया है और हर जगह  यादगार छोड़ी है और दूसरी जगह की यात्रा पर हैं। ईरान के जो पारंपरिक चायखाने हैं आज भी उनकी दीवारों पर फ़िरदौसी के शाहनामे की मनोहर कहानियों के चित्र अंकित हैं और नगाड़ा बजाने वाला रुस्तम की बहादुरी की कुछ कहानियों को पढ़कर और सियावश की कहानियों या सोहराब के शोकपत्र को पढ़कर सुनने वाले को पौराणिक यात्रा पर ले जाता है।

शाहनामे को कहे हुए शताब्दियों का समय बीत चुका है परंतु आज भी बहुत से ग्रामीण और किसान फ़िरदौसी के शाहनामे की कहानियों को बयान करते हैं और कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि वे फिरदौसी के शाहनामे की कहानियों को स्थानीय भाषा में रूपांतरित कर देते हैं। रुस्तम की याद ग्रामीणों और किसानों के दिल में आशा का दीप जलाती है और सियावश, इस्फंदयार और सोहराब पर पड़ने वाले दुःखों से दिल दुःखी हो जाते हैं।

फ़िरदौसी का शाहनामा ईरानी वंशवृक्ष है। फ़िरदौसी का शाहनामा ईरान और ईरानियों का कई हज़ार वर्षीय पुराना इतिहास है। इसमें इंसान की सृष्टि, मानव सभ्यता की परिपूर्णता, निरंतर समस्त शैतानी प्रतीकों से युद्ध, सरकारों के गठन के काल और अंतिम प्राचीन सरकार की समाप्ति आदि विषयों का वर्णन किया गया है। फ़िरदौसी का शाहनामा ईरानी राष्ट्र और ईरान की कई हज़ार वर्षीय पुरानी संस्कृति का खज़ाना है। इसी प्रकार यह शाहनामा बुद्धि और ईरानी विचार का इंसाइक्लोपीडिया है और इसी कारण सुरक्षा की जानी चाहिये।

शाहनामा फ़िरदौसी का विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है जबकि जो वैचारिक सूक्ष्मता है उसका दूसरी भाषाओं में अनुवाद नहीं किया जा सकता। यही नहीं, फ़िरदौसी का शाहनामा उस राष्ट्र का सांस्कृतिक आइना है जिसकी सभ्यता, संस्कृति और परम्परा व शिष्टाचार दूसरे राष्ट्रों से बुनियादी अंतर रखता है और फ़िरदौसी के शाहनामे की महानता व वैचारिक शक्ति ने दूसरे राष्ट्रों को भी प्रभावित किया है। यूरोपीय साहित्यकारों ने फ़िरदौसी के मानवीय संदेशों व विचारों को समझा है और उसे मानव सभ्यता की मूल्यवान धरोहर समझते हैं जबकि कुछ उसे दुनिया का सबसे बड़ा साहित्यिक व वैचारिक शाहकार मानते हैं। उनमें जो साहित्यकार, विचारक और विद्वान पक्षपाती नहीं थे उन्होंने फ़िरदौसी के शाहनामे को सबसे बेहतर बताया है। यूरोपीय साहित्यकार “यान रिपका” ने फ़िरदौसी के शाहनामे के बारे में कहा है कि यह एक निश्चित वास्तविकता है कि दुनिया में किसी राष्ट्र के पास इस प्रकार का महान इतिहास व शाहनामा नहीं है जिसमें पौराणिक काल से लेकर सातवीं शताब्दी तक की समस्त एतिहासिक परम्परायें मौजूद हों।

वर्ष 2009 में फ़िरदौसी फ़ाउंडेशन ने राष्ट्रसंघ की सांस्कृतिक संस्था यूनिस्को को प्रस्ताव दिया था कि फ़िरदौसी के शाहनामे के एक हज़ार साल पूरा हो जाने के उपलक्ष्य में 2009 का नाम फिरदौसी, राष्ट्रीय इतिहास और शाहनामा वर्ष दिया जाये।

इसी आधार पर हमने उचित समझा कि विश्व विख्यात महान शायर फिरदौसी और उनके शाहनामे से दुनिया को परिचित करायें।

 जब ईरान में सामानी सरकार का अंत हो रहा था और इसी प्रकार समरक़न्द में फारसी शायरी के जनक रूदकी का जब निधन हुआ तो उसके साथ ही ईरान के एक गांव में विश्व प्रसिद्ध शायर अबूल कासिम फिरदौसी का जन्म हुआ।

फ़िरदौसी के जन्म के बारे में हमारे पास जो प्रमाण हैं वे इस बात के सूचक हैं कि फ़िरदौसी का जन्म लगभग 329 या 330 हिजरी कमरी यानी 940 से 941 ईसवी में तूस के एक गांव “पाज” में हुआ है। एतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार उस समय तूस नगर को भी बोखारा की भांति ईरान का सांस्कृतिक ध्रुव समझा जाता था। बोखारा मात्र वह नगर था जो ज्ञान अर्जित करने का आधिकारिक केन्द्र था और उसे अब्बासी खलीफा का समर्थन प्राप्त था और तूस नगर को ईरान का सांस्कृतिक केन्द्र समझा जाता था।

बहुत से इतिहासकारों और अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि  अबू मंसूरी ने अपना शाहनामा तूस नगर में ही पूरा किया और उसके बाद दक़ीक़ी, फ़िरदौसी और असदी तूसी ने भी अपनी रचनाओं को इसी नगर में पूरा किया जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस नगर में ईरान दोस्ती की भावना प्रचलित थी। इसी प्रकार सांस्कृतिक मामलों का रुझान इस बात का परिचायक है कि तूस नगर प्राचीन यादों का केन्द्र भी था।

विश्व विख्यात महान शायर फ़िरदौसी के बचपने के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। फिरदौसी के लगभग डेढ़ शताब्दी बाद के लेखक नेज़ामी अरुज़ी कहते हैं कि फिरदौसी का संबंध तूस के गणमान्य, प्रतिष्ठित और धनाढ्य परिवार से था। फ़िरदौसी ने स्वयं इस बात की ओर संकेत किया है कि जवानी में उन्होंने बड़े आराम का जीवन व्यतीत किया है।

फ़िरदौसी के काल में गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों की जो स्थिति थी उससे अवगत होने के बाद किसी सीमा तक फ़िरदौसी के जीवन के बारे में कह सकते हैं। फ़िरदौसी का संबंध तूस नगर के देहकानान अर्थात गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों से था। ईरान में इस्लामी काल में देहकानान गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों को कहा जाता था। इसी प्रकार देहक़ानान शिष्टाचार, परम्पराओं और पुरानी यादों को सुरक्षित रखने वाले लोगों को कहा जाता था। देहक़ानान के बच्चे अपेक्षाकृत आराम से रहते थे और वे नैतिकता, इतिहास, संस्कृति और ईरानी परम्पराओं की शिक्षा ग्रहण करते थे और विश्व विख्यात शायर फ़िरदौसी की ज़बान की जो पवित्रता है वह पारिवारिक प्रशिक्षा का ही परिणाम है।

फ़िरदौसी के समय जो दूसरे शायर थे उनकी रचनाओं की तुलना जब फिरदौसी की रचनाओं से करते हैं तो उनमें अंतर को अच्छी तरह समझ सकते हैं। फ़िरदौसी एक प्रतिष्ठित परिवार में पले- बढ़े थे और अपने नगर में उन्होंने मान- सम्मान का जीवन व्यतीत किया। इसी कारण उन्होंने किसी भी शासक के सामने सिर नहीं झुकाया और शाहनामे के नायकों की भांति उनके अंदर भी प्रशंसनीय विशेषताएं थीं।

फ़िरदौसी ने बाल्याकाल से ही अपने समय के ज्ञानों को अर्जित कर आरंभ किया और उस समय जो चीज़ें प्रचलित थीं उनका ज्ञान हासिल कर लिया। उन्होंने फारसी भाषा के अलावा पहलवी भाषा भी सीखी। उस समय पहलवी भाषा प्राचीन संस्कृति, इतिहास व दूसरे ज्ञानों को हासिल करने का मूल्यवान स्रोत थी। इसी प्रकार फिरदौसी अरबी भाषा से भी अवगत थे। बाद में फिरदौसी ने यूनानी तर्क और दर्शनशास्त्र आदि की शिक्षा भी प्राप्त कर ली। यूनानी दर्शनशास्त्र के बारे में उन्होंने जो शिक्षा प्राप्त की थी उसे उनके पूरे शाहनामे विशेषकर उसकी प्रस्तावना में देखा जा सकता है। शाहनामे को लिखने में 30 वर्ष का समय लगा। इस बात के दृष्टिगत फ़िरदौसी पर अध्ययन करने वाले कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि फिरदौसी ने शायरी लगभग 58 वर्ष की आयु में आरंभ की जबकि कुछ अन्य शाहनामे और उसमें मौजूद कहानियों को प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं और उनका मानना है कि फिरदौसी ने शायरी को जवानी में ही आरंभ कर दिया था। जैसे बीजन और मनीजे की कहानी है और इस कहानी का संबंध उनकी जवानी के काल से है। क्योंकि इन शोधकर्ताओं का मानना है कि बीजन और मनीजे की पूरी कहानी से फिरदौसी के युवाकाल की महक आती है।

फिरदौसी के शाहनामे पर दृष्टि डालने से शेरों में उनकी परिपक्वता को समझा जा सकता है और यह खुद शेर कहने में फिरदौसी के लंबे अतीत का परिचायक हो सकता है।

फिरदौसी ने कुछ उन प्राचीन कहानियों को भी शेर का रूप दे दिया जो मौखिक रूप से लोगों के मध्य प्रचलित हैं। इसी प्रकार उन्होंने उन कहानियों को भी शेर का रूप दे दिया जो लिखित रूप में मौजूद थीं। शायद इस प्रकार की कहानियों की प्रतियां हुआ करती थीं जो एक दूसरे के हाथों में जाया करती थीं।

बाइसंग़री का जो शाहनामा है उसकी प्रस्तावना में उसने इस संबंध में लिखा है कि जब फिरदौसी शाहनामा लिखने में व्यस्त थे तो वह हर कहानी को शेर का रूप देने में मशहूर थे और उसकी प्रतियों को आस- पास ले जाते थे। जैसाकि जब कोई रुस्तम और इस्फन्दयार की लड़ाई की प्रति रुस्तम बिन फख्रुद्दौला दैलमी के पास ले जाता था वह ले जाने वाले को 500 दीनार देते और फिरदौसी के लिए 1000 दीनार में भेजते थे।

 

 

 

 

ग़ज़्ज़ा पट्टी के मज़लूम लोग ग़ज्जा के अर्रशीद सड़क के अन्नाबलेसी चौराहे पर मानवताप्रेमी सहायता लेने की प्रतीक्षा में कतार में खड़े थे कि जायोनी सरकार ने उन पर हमला कर दिया।

इस्राईल के इस पाश्विक हमले में अब तक कम से कम 109 फिलिस्तीनी शहीद और 760 घायल हुए हैं।

गज्जा के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता अशरफ अलक़ुद्रा ने बताया है कि इस्राईल के इस हमले में शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या 109 हो गयी है।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया है कि अतिग्रहणकारी जायोनी सरकार ने टैंकों से उन सैकड़ों निर्दोष व निहत्थे लोगों पर हमला कर दिया जो मानवता प्रेमी सहायता लेने के लिए पंक्तियों में खड़े हुए थे। इसी प्रकार प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया है कि टैंकों के गोले मानवता प्रेमी सहायतों से लदे ट्रकों पर गिरे।

गज्जा में अश्शेफ़ा अस्पताल के एक ज़िम्मेदार ने भी बताया है कि सैकड़ों घायलों को इस अस्पताल में पहुंचाया गया है और चिकित्सा संभावना बहुत सीमित होने की वजह से उपचार करने वाला स्टाफ भारी दबाव में है। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि आज जो चीज़ हमने देखा है उसे देखकर अलमाअमदानी अस्पताल में होने वाले अपराधों की याद आ जाती है, हमारे पास आप्रेशन के केवल तीन छोटे कमरे हैं, सैकड़ों घायलों का उपचार नहीं किया जा सकता।

ज्ञात रहे कि जायोनी सरकार के जारी आतंकी हमलों में शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या 30 हज़ार से अधिक हो चुकी है।

सरदार हुसैन सलामी ने कहा: शहादत एक ईश्वरीय पसंद है और शहीद को ईश्वर द्वारा चुना जाता है और उसके लिए कई गुण होते है।

हौजा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, किरमान/मेजर जनरल हुसैन सलामी ने हरम की रक्षा करने वाले शहीदों के परिवारों के सम्मान में आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा: हम अपने दुश्मनों और उनके नापाक इरादों से अच्छी तरह अवगत है।  हम दुश्मनो को मुसलमानो पर हावी नही होने देंगे।

उन्होंने आगे कहा: शहादत एक ईश्वरीय विकल्प है। शहीद को स्वयं ईश्वर ने चुना है और वह अनगिनत गुणो का कायल है।

मेजर जनरल सलामी ने शहादत की विशेषताएं और नेमते बयान करते हुए कहा, हम दुश्मनो से घिरे देश के वासी है। सभी बुरी ताकते इस्लाम, क्रांति, हमारी इस्लामी व्यवस्था और लोगों की दुश्मन है।

उन्होंने आगे कहा: अमेरिका के नेतृत्व मे सभी झूठी शक्तियां, मानव इतिहास की सबसे बड़ी बुरी शक्ति, उनके सभी सहयोगी, साझेदार और उनके स्व-निर्मित तकफ़ीरी तत्व जो अपने धार्मिक विश्वासो से भटक गए है, इस्लाम के नाम पर अत्याचार कर रहे है। और छोटे-छोटे मासूम बच्चो को मार रहे है।

मेजर जनरल सलामी ने कहा: इन अपराधियो के जघन्य कृत्य एक जैसे है क्योंकि इस्राईली भी नरसंहार करते हैं, तकफ़ीरी भी करते है और यह एक स्पष्ट और निर्विवाद तथ्य है।

 

राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद इब्राहीम रईसी ने कहा है कि चुनाव में लोगों की भागीदारी देश की सुरक्षा को सुनिश्चित बनायेगा और देश की सशस्त्र सेना का मज़बूत पृष्ठपोषक होगा।

आज समूचे ईरान में देश की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी का 12वां और सर्वोच्च नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद का छठा मतदान हो रहा है।

राष्ट्रपति ने वायुसेना के वरिष्ठ कमांडरों से भेंट में सशस्त्र की प्रशंसा की और कहा कि जिस तरह से सशस्त्र सेना की योग्यता, क्षमता और बहादुरी ईरान की शक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा का कारण है उसी तरह विभिन्न क्षेत्रों विशेषकर चुनावों में लोगों की भागीदारी देश की सुरक्षा का कारण बनेगी।

इसी प्रकार राष्ट्रपति ने मिसाइल, ड्रोन और राडार जैसे सैन्य संसाधनों व उपकरणों के निर्माण में वायु सेना की क्षमता को इस सेना की आत्मनिर्भरता की एक झलक बताया और कहा कि सरकार देश की प्रतिरक्षा ज़रूरतों व संभावनाओं को पूरा करने के लिए हर आवश्यक कदम उठाये

ईरान में संसदीय और विशेषज्ञों की सभा के चुनावों के लिए मतदान जारी है। इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने ईरानी नागरिकों से दोस्तों को ख़ुश करने और दुश्मनों को निराश करने के लिए बड़ी संख्या में मतदान करने का आह्वान किया है।

पूरे ईरान में शुक्रवार को स्थानीय समयानुसार सुबह 8 बजे मतदान शुरू हुआ है। देश में 61 मिलियन से अधिक लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। वोटिंग की शुरूआत में तेहरान में अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहाः हम सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आज का दिन ईरानी राष्ट्र के लिए एक ख़ुशी का दिन हो और हमारे प्रिय लोगों और चुनाव संबंधित कार्यों में शामिल लोगों के प्रयासों का वांछित परिणाम निकले और ईरानी राष्ट्र को लाभ पहुंचे।

उन्होंने कहाः हमारी प्रिय जनता को यह पता होना चाहिए कि आज दुनिया में कई लोगों की नज़रें, ईरान और आप पर हैं। वे देखना चाहते हैं कि आप इस चुनाव में क्या करते हैं और आपके चुनाव का परिणाम क्या होगा। हमारे मित्र और ईरानी राष्ट्र में रुचि रखने वाले लोग, साथ ही हमारा बुरा चाहने वाले भी हमारे देश से संबंधित मुद्दों पर नज़र रखे हुए हैं। इस पर ध्यान दीजिए, दोस्तों को ख़ुश और बुरा चाहने वालों को निराश कीजिए।

गृह मंत्रालय के मतदान केंद्र पर अपना वोट डालने वाले ईरानी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी ने देश में चुनावों को एक राष्ट्रीय उत्सव और एकता का प्रतीक बताया है। उन्होंने कहाः हर एक वोट निर्णायक होता है, क्योंकि देश के सभी क्षेत्रों का भविष्य, लोगों के वोट से निर्धारित होता है। उन्होंने कहाः यह चुनाव एक राष्ट्रीय उत्सव और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है और सभी राजनीतिक समूह आज अपने उम्मीदवारों के साथ ईरानी राष्ट्र के लिए एक गौरवशाली दिन बनाने के लिए आगे आए हैं।

ईरानी राष्ट्रपति रईसी का कहना था कि इस चुनाव में ईरानी राष्ट्र की जीत होगी, और इसमें हार किसी की भी नहीं होगी, चाहे उम्मीदवारों को वोट मिलें या नहीं। क्योंकि उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा किया है, यानी चुनाव में भाग लेना।

15,000 से अधिक संसदीय उम्मीदवारों में से लोग 290 सदस्यों को चुनने के लिए मतदान कर रहे हैं। निर्वाचित सदस्य संसद में चार साल के कार्यकाल के लिए काम करेंगे। इसी के साथ विशेषज्ञों की सभा के 88 सदस्यों के लिए चुनाव हो रहा है। विशेषज्ञों की सभा का कार्यकाल आठ साल के लिए होता है, जो इस्लामी क्रांति के नेता की गतिविधियों की निगरानी और उसकी नियुक्ति का अधिकार रखती है।

 

ईरानी पुलिस के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल सईद मुंतज़िर अल-मेहदी ने कहा है कि चुनाव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए 1 लाख 90 हज़ार पुलिस बलों को तैनात किया गया है।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने आज सुबह स्थानीय समय के अनुसार 8 बजे अपने मताधिकार का प्रयोग किया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने आज सुबह हुसैनिये इमाम ख़ुमैनी में पत्रकारों की उपस्थिति में कहा कि मैं सिफारिश करता हूं कि जितनी जल्दी संभव हो लोग उतनी जल्दी अपने मताधिकार का प्रयोग करें। 

सर्वोच्च नेता ने बल देकर कहा कि मैं दो सिफारिशें करता हूं मेरी पहली सिफारिश लोगों से यह है कि कुरआन ने हमसे कहा है कि فاستبقوا الخیرات नेक काम में प्रतिस्पर्धा करो और दूसरे से आगे जाने की कोशिश करो, मैंने पिछले चुनाव में भी कहा था और आज भी बल देकर कह रहा हूं कि जल्द से जल्द इस अवसर से लाभ उठायें और जितनी जल्दी हो सके अपने मताधिकार का प्रयोग करें।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि मेरी दूसरी सिफारिश यह है कि जिस मतदान केन्द्र पर भी मत दें जिस संख्या में उस मतदान केन्द्र पर मत ज़रूरी हैं उस संख्या में मतदान करें उससे कम मत न दें मिसाल के तौर पर तेहरान में सर्वोच्च नेतृत्त का चयन करने वाली परिषद को 16 प्रतिनिधियों को वोट देने की ज़रूरत है तो 16 मत दें उससे कम नहीं।

सर्वोच्च नेता ने कहा कि ईरानी लोगों को जान लेना चाहिये कि आज दुनिया के बहुत से लोगों की नज़रें ईरान और आप पर लगी हैं और वे यह जानना व देखना चाहते हैं कि आप चुनावों में क्या करते हैं और आपके चुनाव का नतीजा क्या होता है। उन्होंने कहा कि हमारे दोस्तों और ईरानी राष्ट्र से प्रेम करने वालों और इसी प्रकार ईरानी राष्ट्र का बुरा चाहने वाले सबकी नज़रें ईरान पर लगी हुईं हैं इस बात पर ध्यान दीजिये। दोस्तों को प्रसन्न व खुशहाल कीजिये और बुरा चाहने वालों को निराश। इसी प्रकार इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने मतदान में भाग लेने में असमंजस का शिकार लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मेरी आखिरी बात यह है कि नेक काम में इस्तेखारा करने की कोई ज़रूरत नहीं है।

अल्लाह ने इंसान को दूसरी बहुत सी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत अता की है लेकिन वह अपनी हक़ीक़त को ख़ुद उसी समय पहचान सकता है जब वह अपने अंदर पाई जाने वाली शराफ़त को समझ ले और अपने आपको पस्ती, ज़िल्लत और नफ़्सानी ख़्वाहिशों से दूर समझे।

इरशाह होता है कि, बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी और हमने उनको ज़गलों और समुद्र पर हाकिम क़रार दिया और हमने उनको अपनी बहुत सारी मख़लूक़ पर फ़ज़ीलत दी। (सूरए बनी इस्राईल, आयत 70)

इंसान का बातिन अच्छे अख़लाक़ का मालिक होता है और वह अपनी उसी बातिन की ताक़त से हर नेक और बद को पहचान लेता है।

अल्लाह का इरशाद है कि, और क़सम है इंसान के नफ़्स की और उसके संयम की कि उसको (अल्लाह ने) अच्छी और बुरी चीज़ों की पहचान दी। (सूरए शम्स, आयत 7 से 9)

इंसान के दिल के सुकून का केवल इलाज अल्लाह की याद और उसका ज़िक्र है, उसकी ख़्वाहिशें बे इंतेहा हैं लेकिन ख़्वाहिशों के पूरा हो जाने के बाद वह उन चीज़ों से दूरी बना लेता है, लेकिन अगर वही ख़्वाहिशें अल्लाह की ज़ात से मिला देने वाली हों तो उसे उस समय तक चैन नहीं मिलता जब तक वह अल्लाह की ज़ात तक न पहुंच जाए।

इरशाह होता है कि, बेशक अल्लाह के ज़िक्र से ही दिलों को चैन मिलता है। (सूरए रअद, आयत 28)

या अल्लाह फ़रमाता है कि, ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुंचने में बहुत तकलीफ़ बर्दाश्त करता है और आख़िरकार तुम्हें उससे मिलना है। (सूरए इंशेक़ाक़, आयत 6)

ज़मीन के सारी नेमतें इंसान के लिए पैदा की गई हैं।

इरशाद होता है कि, वही है जिसने जो कुछ ज़मीन में है तुम्हारे लिए पैदा किया है। (सूरए बक़रह, आयत 29)

या इरशाद होता है कि, और अपनी तरफ़ से तुम्हारे कंट्रोल में दे दिया है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है उसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो फ़िक्र करते हैं। (सूरए जासिया, आयत 13)

 अल्लाह ने इंसान को केवल इस लिए पैदा किया है कि वह दुनिया में केवल अपने अल्लाह की इबादत करे और उसके अहकाम की पाबंदी करे, उसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह के अम्र की इताअत करना है।

इरशाद होता है कि, और हमने इंसान को नहीं पैदा किया मगर केवल इसलिए कि वह मेरी इबादत करें। (सूरए हश्र, आयत 19)

 इंसान अल्लाह की इबादत और उसकी याद के बिना नहीं रह सकता, अगर वह अल्लाह को भूल जाए तो अपने आप को भी भूल जाता है और वह नहीं जानता कि वह कौन है और किस लिए है और क्या करे क्या न करे कहां जाए कहां न जाए उसे कुछ समझ नहीं आता।

इरशाद होता है कि, बेशक तुम उन लोगों में से हो जो अल्लाह को भूल गए, और फिर अल्लाह ने उनके लिए उनकी जानें भुला दीं। (सूरए हश्र, आयत 19)

इंसान जैसे ही दुनिया से जाता है और उसकी रूह के चेहरे से जिस्म का पर्दा जो कि रूह के चेहरे का भी पर्दा है उठ जाता है तो उस समय उस पर ऐसी बहुत सी हक़ीक़तें ज़ाहिर होती हैं जो उसके लिए इस दुनिया में छिपी रहती हैं।

अल्लाह फ़रमाता है कि, हमने तुझसे पर्दा हटा दिया, तेरी नज़र आज तेज़ है। (सूरए क़ाफ़, आयत 22)

 इंसान दुनिया में हमेशा भौतिक (माद्दी) मामलों के हल के लिए ही कोशिशें नहीं करता और उसको केवल भौतिक ज़रूरतें ही हाथ पैर मारने पर मजबूर नहीं करतीं, बल्कि कभी कभी वह किसी बुलंद मक़सद को हासिल करने के लिए भी कोशिशें करता है और मुमकिन है कि उस अमल से उसके दिमाग़ में केवल अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करने के और कोई मक़सद न हो।

इरशाद होता है कि, ऐ नफ़्से मुतमइन्ना तू अपने रब की तरफ़ लौट जा, तू उससे राज़ी वह तुझ से राज़ी। (सूरए फ़ज्र, आयत 27-28)

इसी तरह एक दूसरी जगह अल्लाह फ़रमाता है कि, अल्लाह ने ईमान वाले मर्दों और औरतों से बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बहती हैं जिनमें वह हमेशा रहेंगे और आलीशान मकानों का भी वादा किया है, लेकिन अल्लाह की मर्ज़ी हासिल करना उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है। (सूरए तौबा, आयत 73)

ऊपर बयान की गई बातों से यह नतीजा सामने आता है कि इंसान वह मौजूद है जो पैदा तो एक कमज़ोर चीज़ से होता है लेकिन वह धीरे धीरे कमाल की तरफ़ क़दम बढ़ाता है और अल्लाह की ओर से ज़मीन पर ख़लीफ़ा होने की फ़ज़लीत को हासिल कर लेता है, और उसको सुकून केवल तभी हासिल होता है जब वह अल्लाह का ज़िक्र करता है और उसकी याद में ज़िंदगी गुज़ारता है, वह अल्लाह की याद में ख़ुद को फ़ना कर दे उसके बाद वह ख़ुद ही अपनी इल्मी और अमली प्रतिभाओं और क्षमताओं को महसूस करेगा।