رضوی

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गुरुवार, 21 अगस्त 2025 10:31

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जन्म रमज़ान मास की पन्द्रहवी (15) तारीख को सन् तीन (3) हिजरी में मदीना नामक शहर में हुआ था। जलालुद्दीन नामक इतिहासकार अपनी किताब तारीख़ुल खुलफ़ा में लिखता है कि आपकी मुखाकृति हज़रत पैगम्बर से बहुत अधिक मिलती थी।

पालन पोषण

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पालन पोषन आपके माता पिता व आपके नाना हज़रत पैगम्बर (स0) की देख रेख में हुआ। तथा इन तीनो महान् व्यक्तियों ने मिल कर हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम में मानवता के समस्त गुणों को विकसित किया।

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इमामत का समय

शिया सम्प्रदाय की विचारधारा के अनुसार इमाम जन्म से ही इमाम होता है। परन्तु वह अपने से पहले वाले इमाम के स्वर्गवास के बाद ही इमामत के पद को ग्रहन करता है। अतः हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी अपने पिता हज़रत इमाम अली की शहादत के बाद इमामत पद को सँभाला।

जब आपने इमामत के पवित्र पद को ग्रहन किया तो चारो और अराजकता फैली हुई थी। व इसका कारण आपके पिता की आकस्मिक शहादत थी। अतः माविया ने जो कि शाम नामक प्रान्त का गवर्नर था इस स्थिति से लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सहयोगियों ने आप के साथ विश्वासघात किया उन्होने धन ,दौलत ,पद व सुविधाओं के लालच में माविया से साँठ गाँठ करली। इस स्थिति में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सम्मुखदो मार्ग थे एक तो यह कि शत्रु के साथ युद्ध करते हुए अपनी सेना के साथ शहीद होजाये। या दूसरे यह कि वह अपने सच्चे मित्रों व सेना को क़त्ल होने से बचालें व शत्रु से संधि करले । इस अवस्था में इमाम ने अपनी स्थित का सही अंकन किया सरदारों के विश्वासघात व सेन्य शक्ति के अभाव में माविया से संधि करना ही उचित समझा।

संधि की शर्तें

1-माविया को इस शर्त पर सत्ता हस्तान्त्रित की जाती है कि वह अल्लाह की किताब (कुरऑन) पैगम्बर व उनके नेक उत्तराधिकारियों की शैली के अनुसार कार्य करेगा।

2-माविया के बाद सत्ता इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ओर हस्तान्त्रित होगी व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के न होने की अवस्था में सत्ता इमाम हुसैन को सौंपी जायेगी। माविया को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने बाद किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे।

3-नमाज़े जुमा में इमाम अली पर होने वाला सब (अप शब्द कहना) समाप्त किया जाये। तथा हज़रत अली को अच्छाई के साथ याद किया जाये।

4-कूफ़े के धन कोष में मौजूद धन राशी पर माविया का कोई अधिकार न होगा। तथा वह प्रति वर्ष बीस लाख दिरहम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को भेजेगा। व शासकीय अता (धन प्रदानता) में बनी हाशिम को बनी उमैया पर वरीयता देगा। जमल व सिफ़्फ़ीन के युद्धो में भाग लेने वाले हज़रत इमाम अली के सैनिको के बच्चों के मध्य दस लाख दिरहमों का विभाजन किया जाये तथा यह धन रीशी इरान के दाराबगर्द नामक प्रदेश की आय से जुटाई जाये।

5-अल्लाह की पृथ्वी पर मानवता को सुरक्षा प्रदान की जाये चाहे वह शाम में रहते हों या यमन मे हिजाज़ में रहते हों या इराक़ में काले हों या गोरे। माविया को चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति को उस के भूत काल के व्यवहार के कारण सज़ा न दे।इराक़ वासियों से शत्रुता पूर्ण व्यवहार न करे। हज़रत अली के समस्त सहयोगियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाये। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ,इमाम हुसैन व पैगम्बर के परिवार के किसी भी सदस्य की प्रकट या परोक्ष रूप से बुराई न कीजाये।

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के संधि प्रस्ताव ने माविया के चेहरे पर पड़ी नक़ाब को उलट दिया तथा लोगों को उसके असली चेहरे से परिचित कराया कि माविया का वास्तविक चरित्र क्या है।

इमाम हसन (अ) के दान देने और क्षमा करने की कहानी।

एक दिन इमाम हसन (अ) घोड़े पर सवार कहीं जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया। इमाम हसन (अ) चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे ,जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो इमाम हसन (अ) ने उसे मुसकुरा कर सलाम किया और कहने लगेः

ऐ शेख़ ,मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है ,अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं ,अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं ,अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं ,अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है।

सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।

यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि “हिल्मुल- हसन ” अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।

इबादत

पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था ,हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।

इमाम हसन गरीबो के साथ

इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया “ मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं ,और उससे आस लगाये रहता हूं ,इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।

हज़रत इमामे हसन (अ.स.) के कथन

१. जो शख़्स (मनुष्य) हराम ज़राये से दौलत (धन) जमा करता है ख़ुदावन्दे आलम उसे फ़क़ीरी और बेकसी में मुबतला करता है।

२. दो चीज़ो से बेहतर कोई शैय (चीज़) नहीं एक अल्लाह पर ईमान और दूसरे ख़िदमते ख़ल्क (परोपकार)।

३. ख़ामोश सदक़ा (गुप्त दान) ख़ुदावन्दे आलम के ग़ज़ब (प्रकोप) को ख़त्म कर देता है।

४. हमेशा नेक लोगों की सोहबत (संगत) इख़्तेयार (ग्रहण) करो ताकि अगर कोई कारे नेक (अच्छा कार्य) करो तो तुम्हारी सताएश (प्रशंसा) करें और अगर कोई ग़लती हो जाये तो मुतावज्जेह (ध्यान दियालें) करें।

५. जिसने ग़लत तरीक़े से माल जमा किया वह माल ग़लत जगहों पर और नागहानि-ए-हवादिस (अचानक घटित होने) में सर्फ़ होता है।

६. हर शख़्स की क़ीमत उसके इल्म के बराबर है।

७. तक़वा (सँयम ,ईश्वर से भय) से बेहतर लिबास ,क़नाअत (आत्मसंतोष) से बेहतर माल ,मेहरबानी व रहम से बेहतर एहसान मुझे न मिला।

८. बुरी आदतें जाहिलों की मुआशेरत (कुसंग) में और नेक ख़साएल (अच्छी आदतें) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की सोहबत (संगत) से मिलते हैं।

९. अपने दिल को वाएज़ व नसीहत (अच्छे उपदेश) से ज़िन्दा रखो।

१०. गुनाहगारों (पापियों) को नाउम्मीद (निराश) मत करो (क्योंकि) कितने गुनाहगार ऐसे गुज़रे जिनकी आक़ेबत ब-ख़ैर हुई।

११. सबसे बेचारा वह शख़्स है जो अपने लिये दोस्त (मित्र) न बना पाये।

१२. जो शख़्स दुनिया की बेऐतबारी को जानते हुए उस पर ग़ुरूर (घमण्ड) करे बड़ा नादान है।

१३. ख़ुश अख़लाक़ (सुशील) बनो ताकि क़यामत (महाप्रलय) के दिन तुम पर नर्मी की जाए।

१४. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह इन्सान को नेकियों से महरूम कर देता है।

१५. हमेशा नेक बात कहो ताकि नेकि से याद किये जाओ।

१६. अल्लाह की ख़ुशनूदी माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है और अल्लाह का ग़ज़ब उनके ग़ज़ब के साथ है।

१७. अल्लाह की किताब पढ़ा करो और अल्लाह की नाराज़गी और ग़ज़ब से ख़बरदार रहो।

१८. बुख़्ल (कंजूसी) और ईमान एक साथ किसी के दिल में जमा नहीं हो सकता।

१९. किसी इन्सान को दूसरे पर तरजीह (प्राथमिकता) नहीं दी जा सकती मगर दीन या किसी नेक काम की वजह से।

२०. मैने किसी सितमगर को सितम रसीदा के मानिन्द नहीं देखा मगर हासिद (ईर्ष्यालु) को।

२१. अपने इल्म (ज्ञान) को दूसरों तक पहुँचाओ और दूसरों के इल्म (ज्ञान) को ख़ुद हासिल करो।

२२. अपने भाईयें से फ़ी सबीलिल्लाह (केवल ईशवर के लिए) भाई चारा रखो।

२३. नेकियों और अच्छाइयों का अन्जाम उसके आग़ाज़ (प्रारम्भ) से बेहतर है।

२४. अच्छाई से लज़्ज़त बख़्श कोई और मसर्रत नहीं।

२५. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से पेश आती हो।

२६. जिसका हाफ़ेज़ा (याद्दाश्त) क़वी (ताक़तवर) न हो और अपना दर्स (पाठ) पूरे तौर से याद न कर पाता हो उसे चाहिये के वह उस्ताद के बयान करदा मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर करे और अपने पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) करे ताकि वक़्ते ज़रूरत काम आये।

२७. जितना मिले उसपर ख़ुश रहना इन्सान को पाकदामनी तक ले जाता है।

२८. नुक़सान उठाने वाला वह शख़्स है जो ओमूरे दुनिया (सांसारिक कार्य) में इस तरह मश्ग़ूल रहे के आख़ेरत (आख़रत) के ओमूर रह जायें।

२९. धोका और मक्र (छल) ख़ासतौर से उस शख़्स के साथ जिसने तुमको अमीन (सच्चा) समझा कुफ़्र है।

३०. गुनाह क़ुबूलियते दुआ में मानेअ और बदख़ुल्क़ी शर व फ़साद का बायस (कारण) है।

३१. तेज़ चलने से मोमिन का वेक़ार (आत्मसम्मान) कम होता है और बाज़ार में चलते हुए खाना पस्ती (नीचता) की अलामत है।

३२. जब कोई तुम्हारा ख़ैर अन्देश (शुभचिन्तक) अक़्लमन्द तुमको कुछ बताये तो उसे क़ुबूल करो और उसकी ख़िलाफ़ वर्ज़ी (विरोध) से बचो क्योंकि उसमें हलाक़त है।

३३. नादानों की बातों की बेहतरीन जवाब ख़ामोशी है।

३४. हासिद (ईर्ष्यालु) को लज़्ज़त ,बख़ील (कंजूस) को आराम और फ़ासिक़ (ईशवरीय आदेशों का मन से विरोध) को एहतेराम (आदर) तमाम लोगों से कम मिलता है।

३५. बेहतरीन किरदार गुर्सना (भूखे) को खाना खिलाना और बेहतरीन काम जाएज़ काम में मशग़ूल (लिप्त) रहना।

३६. जब तुम बुरे काम से परेशान हो और नेक कामों से ख़ुशहाल तो समझ लो के तुम मोमिन हो।

३७. बेहतर यह है के तुम अपने दुश्मन पर ग़लबा (विजय) हासिल (प्राप्त) करने से पहले अपने नफ़्स पर क़ाबू पा लो।

३८. बख़ील (कंजूस) इन्सान अपने अज़ीज़ों (रिश्तेदारों) में ख़ार रहता है।

३९. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह (पाप) इन्सान के हस्नात (अच्छाइयों) को भी तबाह (बर्बाद) कर देता है।

४०. जिसके पास अज़्म (द्रढ़ता) व इरादा है वह दूसरों लोगों के मुक़ाबले में अपने ऊपर मुसल्लत (हावी) है।

माविया से सुलह के बाद जबकि इमाम हसन (अ.स.) ने हुकुमत को छोड़ दिया था लेकिन फिर भी माविया का आपके वूजुदे मुबारक को बरदाश्त करना बहुत सख्त था और वैसे भी सिर्फ इमाम हसन (अ.स) ही वो शख्सियत थे कि जो माविया को अपनी मनमानी करने और यज़ीद को अपना जानशीन बनाने और खिलाफत को विरासती करने मे सबसे बड़े मुखालिफ थे और उस दौर मे सिर्फ इमाम हसन (अ.स.) ही वो सलाहियत रखते थे कि जो उम्मत की रहबरी और हिदायत के लिऐ जरूरी थी ।

और सुलह के बाद से ही हमेशा उसकी कोशीश रही कि किसी भी तरह से इमाम हसन (अ.स.) को जल्दी से जल्दी मौत के दामन मे पहुंचा दे लिहाजा पोशीदा तौर पर उसने इस काम के लिऐ मदीने की मस्जिद मे भी कई दफा इमाम हसन (अ.स.) पर हमले कराऐ लेकिन जब इन हमलो का कोई नतीजा नही निकला तो माविया ने इमाम हसन (अ.स) की ज़ौजा जोदा बिन्ते अशअस के ज़रीए आपको ज़हर दिलाकर शहीद करा दिया।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 50 हिजरी मे सफ़र मास की 28 तरीख को हुई।

समाधि

जब इमाम हसन (अ.स.) की शहादत का वक्त करीब आया तो आपने अपने भाई इमाम हुसैन (अ.स.) को अपने करीब बुलाया और उन हज़रत से इरशाद फरमायाः ये तीसरी मरतबा है कि मुझे ज़हर दिया गया है लेकिन इस से पहले जहर असर नही कर पाया था औऱ क्यों कि इस बार असर कर गया है तो मै मर जाऊंगा और जब मै मर जाऊं तो मुझे मेरे नाना रसूले खुदा (स.अ.व.व) के पहलु मे दफ्न कर देना क्योंकि कोई भी मुझसे ज्यादा वहाँ दफ्न होने का हक़दार नही है लेकिन अगर मेरे उस जगह दफ्न होने की मुखालिफत हो तो इस हाल मे ख़ून का एक क़तरा भी न बहने देना।

और जब इमाम शहीद हो गऐ और उनके जिस्मे अतहर को रसूले खुदा (स.अ.व.व) के रोज़ाऐ मुबारक मे दफ्न करने के लिऐ ले जाया जाने लगा तो मरवान बिन हकम और सईद बिन आस आपके वहा दफ्न होने की मुखालिफत करने लगे और उनके साथ-साथ आयशा भी मुखालिफत करने लगी और कहने लगी कि मै हसन के यही दफ्न होने की बिल्कुल इजाज़त नही दूंगी क्यो कि ये मेरा घर है।

इस पर आयशा के भतीजे कासिम बिन मौहम्मद बिन अबुबकर ने कहा कि क्या दोबारा जमल जैसा फितना खड़ा करना चाहती हो ?

जिस वक्त इमाम के वहा दफ्न की मुखालिफत की जा रही थी तो वो लोग कि जो इमाम की मैय्यत मे शिरकत के लिऐ आऐ हुऐ थे चाहते थे कि मरवानीयो के साथ जंग करे और इस काम के लिऐ इमाम हुसैन (अ.स.) से इजाज़त मांगने लगे लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) ने इमाम हसन की वसीयत को याद दिलाया और इमाम हसन (अ.स.) को जन्नतुल बकी मे दफ्न कर दिया।

 ।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिं

1- हमेशा ग़ोर व फ़िक्र करते थे।

2- ज़्यादा तर चुप रहते थे।

3- अच्छे अख़लाक़ के मालिक थे।

4- किसी का भी अपमान नहीं करते थे।

5- दुनिया की मुशकिलात पर कभी ग़ुस्सा नहीं करते थे।

6- अगर किसी का हक़ पामाल होता देखते थे तो जब तक हक़ न मिल जाऐ ग़ुस्सा रहते थे और उन को कोई पहचान नहीं पाता था।

7- इशारा करते समय पूरे हाथ से इशारा करते थे।

8- जब वह खुश होते थे तो पलकों को बन्द कर लिया करते थे।

9- ज़ौर से हसने की जगह आप सिर्फ़ मुसकुराते थे।

10- फ़रमाते थे जो कोई ज़रूरत मन्द मुझ तक नहीं पहुंच सकता तुम उस तक पहुंचो।

11- जिस के पास जितना ईमान होता था रसूल उसका उतना ही ऐहतेराम किया करते थे।

12- लोगों से प्रेम करते थे और उन को कभी अपने आप से दूर नहीं करते थे।

13- हर काम में ऐतेदाल पसन्द थे और कमी और ज़्यादती का परहेज़ करते थे।

14- बिला वजह की बातों से परहेज़ करते थे।

15- ज़िम्मेदारी को अंजाम देने में किसी भी तरह की सुसती नहीं करते थे।

16- रसूल (स.) के नज़दीक सब से अच्छा शख़्स वोह है जो लोगों की भलाई चाहता है।

17- पैग़म्बर (स.) किसी मेहफ़िल, अंजुमन, और जलसे में नहीं बेठते थे जो यादे ख़ुदा से ख़ाली हो।

18- मजलिस में अपने लिये कोई ख़ास जगह मोअय्यन नहीं करते थे।

19- जब किसी मजमे में जाते थे तो ख़ाली जगह ठूंड कर बैठ जाते थे और अपने असहाब को भी हुक्म देते थे कि इस तरह किया करें।

20- जब कोई ज़रूरत मन्द आप के पास आता था तो उसकी ज़रूरत को पूरा करते थे या फिर अपनी बातों से उसको राज़ी कर लेते थे।

21- आप का तर्ज़े अमल इतना अच्छा था कि लोग आपको एक शफ़ीक़ बाप समझते थे और सब लोग उन के नज़दीक एक जैसे थे

22- आप की नशिस्त व बरख़्वास्त बुर्दबारी, शर्म व हया, सच्चाई और अमानत पर होती थी।

23- किसी की बुराई नहीं करते थे और न किसी की ज़्यादा तारीफ़ करते थे।

24- रसूले ख़ुदा (स.) तीन चीज़ों से परहेज़ करते थे झगड़ा, बिला वजह बोलना, बिना ज़रूरत के बात करना।

25- कभी किसी को बुरा भला नहीं कहते थे।

26- लोगों की बुराईयों को तलाश नहीं करते थे।

27- बिना किसी ज़रूरत के गुफ़तगू नहीं करते थे।

28- किसी की बात नहीं काटते थे मगर यह कि ज़रूरत से ज़्यादा हो।

29- बड़े इतमेनान और आराम के साथ क़दम उठाते थे।

30- आप की गुफ़तगू मुख़तसर, जामे और पुर सुकून और मझी हुई होती थी और आप की आवाज़ तमाम लोगों से अच्छी और दिल नशीन होती थी।

31- रसूले ख़ुदा (स.) सब से ज़्यादा बहादुर, और सब से ज़्यादा सख़ी थे।

32- पैग़म्बर (स.) तमाम मुशकिलात में सब्र से काम लिया करते थे।

33- पैग़म्बर (स.) ज़मीर पर बैठ कर ख़ाना ख़ाते थे।

34- अपने हाथों से अपने जूते टांकते और कपड़े सिलते थे।

35- इतना ख़ुदा से डरते थे कि आंसूओं से जानमाज़ भीग जाया करती थी।

36- हर रोज़ सत्तर बार इसतग़फ़ार पढ़ते थे।

37- अपनी ज़िन्दगी का एक लमहा भी बेकार नहीं गुज़ारा।

38- तमाम लोगों के बाद रसूल को ग़ुस्सा आता था और सब से पहले राज़ी होते थे।

39- आप मालदार और फ़क़ीर दोनों से एक ही तरह से मिलते थे और मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाते) करते थे और अपने हाथ को दूसरों से पहले नहीं खींचते थे।

40- आप लोगों से मिज़ाह (हसी मज़ाक) फ़रमाते थे ताकि लोगों को ख़ुश कर सकें

इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मैं उसको पसन्द नहीं करता कि जिस इंसान को मौत आ जाऐ और वह रसूल (स.) की सीरत पर अमल न करता हो।

 

 

ज़ियारते आशूरा के मशहूर फ़र्क़े «या आबाअब्दुल्लाह लक़द अज़मत अलरज़ीया» में इस हक़ीक़त का इतिराफ़ किया गया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और आपके अहले बैतؑ की शहादत ऐसी अज़ीम और दिल दहलाने वाली मुसीबत है जिसने पूरी कइनात को ग़मज़दा कर दिया हैं।

ज़ियारते आशूरा के मशहूर फ़र्क़े «या आबाअब्दुल्लाह लक़द अज़मत अलरज़ीया» में इस हक़ीक़त का इतिराफ़ किया गया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और आपके अहले बैतؑ की शहादत ऐसी अज़ीम और दिल दहलाने वाली मुसीबत है जिसने पूरी कइनात को ग़मज़दा कर दिया हैं।

यह फ़र्क़ा दरअसल अहले बैतؑ अ.स.के साथ हमदर्दी और कर्बला के हादसे की अज़मत को समझने की दावत देता है। इसमें यह साफ़ किया गया है कि यह मुसीबत किसी एक क़ौम या दौर तक सीमित नहीं बल्कि हमेशा के लिए आज़ाद दिलों पर असर डालती रहेगी और मोहब्बत रखने वालों के दिलों पर इसका बोझ बाकी रहेगा।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत सबसे बड़ी और दिल दहला देने वाली मुसीबत है। इस हादसे की ख़ासियत यह है कि इसमें सिर्फ एक नेक और हक़ तलब शख़्स को नहीं बल्कि एक मासूम इमाम, असहाब-ए-केसाअ के पाँचवें फ़रद और रसूल अल्लाह स.ल.व. की बेटी हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल. के फ़रज़ंद को ऐसे लोगों ने शहीद किया जो खुद को उम्मत-ए-पैग़ंबर कहते थे। यह वाक़िया निहायत दर्दनाक और तारीख में बे मिसाल है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसे अज़ीम इमाम को रोज़-ए-रौशन में मैदान-ए-करबला में शहीद करना ऐसा वाक़िया था जिसे तारीख़ कभी भूला नहीं सकती।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की एक रिवायत के मुताबिक, इमाम हुसैनؑ असहाब-ए-कसाअ में सबसे आख़िरी शख़्सियत थे, और आपकी शहादत ग़ोया सब असहाब-ए-किसाअ के जाने के बराबर थी। इसी वजह से आपकी मुसीबत को सबसे क़ठिन और बदतर दिन कहा गया है।

 

 

 

इज़राइल के युद्ध मंत्री योव गैलेंट ने माना है कि ईरान के साथ संभावित टकराव और गाज़ा में चल रहे युद्ध ने इज़राइल पर भारी वित्तीय दबाव डाला है और भारी नुकसान होने का खतरा है।

इज़राइल के युद्ध मंत्री योव गैलेंट ने माना है कि ईरान के साथ संभावित टकराव और गाज़ा में चल रहे युद्ध ने इज़राइल पर भारी वित्तीय दबाव डाला है।

गैलेंट ने कहा कि असाधारण सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से ईरान से खतरों के मद्देनजर, रक्षा मंत्रालय के बजट में वृद्धि अत्यंत आवश्यक है ताकि इज़राइल अपने रक्षात्मक लक्ष्यों को प्राप्त कर सके और गाज़ा में अपने सैन्य अभियानों को जारी रख सके।

उन्होंने आगे कहा कि ईरान के खतरों का सामना करने और गाज़ा में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए रक्षा मंत्रालय के लिए अतिरिक्त संसाधन अनिवार्य हैं।

इससे पहले, इज़राइली चैनल 13 ने रिपोर्ट दी थी कि इज़राइल की अर्थव्यवस्था इस वर्ष की दूसरी तिमाही में खत्म हो गई, और गाज़ा युद्ध के शुरू होने के बाद यह पहली बार दर्ज की गई गिरावट थी। इसके अलावा, ईरान के साथ तनाव का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

इसी तरह दैनिक अखबार माअरीव ने बताया कि ईरान के साथ युद्ध ने इज़राइल पर अरबों डॉलर का बोझ डाल दिया है जिसका अनुमान लगभग 14 अरब डॉलर लगाया गया है। इसके अतिरिक्त, ज़ायोनी मीडिया के अनुसार, केवल गाजा पर हमले की लागत अब तक 81 अरब डॉलर से अधिक हो चुकी है।

ख़ैर-उल-अमल टीवी के तत्वावधान में ऑस्ट्रेलियाई विक्टोरियन संसद में हुसैन दिवस का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न धर्मों और वर्गों की हस्तियों ने भाग लिया और इमाम हुसैन के मानवता और न्याय के संदेश को श्रद्धांजलि अर्पित की।

ख़ैर-उल-अमल टीवी के तत्वावधान में ऑस्ट्रेलियाई विक्टोरियन संसद में लगातार दूसरी बार हुसैन दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर, ख़ैर-उल-अमल टीवी के प्रमुख सैयद असद तक़वा ने कार्यक्रम की शुरुआत से अंत तक प्रमुख भूमिका निभाई और प्रबंधन के कर्तव्यों का निर्वहन किया।

शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष और मेलबर्न में जुमे की नमाज़ के इमाम, हुज्जतुल इस्लाम वा मुसलमीन मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी ने कर्बला से एक ऑडियो भाषण दिया, जिसे उनके बेटे सैयद मुहम्मद काज़िम रिज़वी ने प्रस्तुत किया। अपने संबोधन में, मौलाना ने इमाम हुसैन (अ.स.) के अमर बलिदान और उसके वैश्विक प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का संदेश मानवीय गरिमा, न्याय और नैतिक मूल्यों का संदेश है। इसका व्यावहारिक प्रमाण यह है कि आज ऑस्ट्रेलियाई संसद में विभिन्न जातियों और नस्लों के लोग एकत्रित हुए हैं।

मौलाना सय्यद अबुल कासिम रिज़वी के पुत्र सय्यद मुहम्मद काज़िम रिज़वी

उन्होंने आगे कहा: "मैं ऑस्ट्रेलियाई संसद, मंत्रियों और सभी प्रतिभागियों का आभारी हूँ। मैं सिर्फ़ अपनी भागीदारी के कारण हुसैन दिवस को स्थगित नहीं कर सकता, बल्कि मैं कर्बला में आप सभी का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ।"

इस कार्यक्रम में संसद सदस्य, कुलपति, प्रोफेसर और विभिन्न धर्मों के शिया, सुन्नी, हिंदू, सिख और ईसाई धर्मों के प्रतिनिधि शामिल हुए। मौलाना वकार कादरी, श्री राणा शाहिद, हिंदू और सिख धर्मगुरुओं के साथ-साथ सांसद लूबा और अन्य सदस्यों ने इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित की।

विशेष अतिथि हुज्जतुल इस्लाम डॉ. मौलाना सैयद मुहम्मद अली औन नक़वी ने अपने संबोधन में कहा: "यह ऑस्ट्रेलियाई संसद में मेरा पहला भाषण है। यह इमाम हुसैन के संदेश की सार्वभौमिकता ही है कि हुसैन के मानवता और न्याय के संदेश की प्रतिध्वनि पश्चिमी संसद में भी सुनाई दे रही है। आज के उत्पीड़न और हिंसा के युग में, हुसैन के संदेश को फैलाने की सख्त ज़रूरत है।"इस समारोह में शिया उलेमा परिषद का प्रतिनिधित्व हुज्जतुल इस्लाम शेख यास, डॉ. सैयद मसूद हसन और डॉ. सैयद मुहम्मद रिज़वी ने किया।

मजलिस खुबरेगान रहबरी के सदस्य, आयतुल्लाह अब्बास काबी ने कहा है कि इमाम हुसैन (अ) ने अज्ञानता की व्यवस्था के विरुद्ध अपने खून से लड़ाई लड़ी और इस्लाम को जीवित रखा, और प्रत्येक इमाम ने अपने समय में इस्लाम की रक्षा में भूमिका निभाई, और यह निरंतरता इस्लामी क्रांति में भी प्रमुख है।

मजलिस खुबरेगान रहबरी के सदस्य, आयतुल्लाह अब्बास काबी ने कहा है कि इमाम हुसैन (अ) ने अज्ञानता की व्यवस्था के विरुद्ध अपने खून से लड़ाई लड़ी और इस्लाम को जीवित रखा, और प्रत्येक इमाम ने अपने समय में इस्लाम की रक्षा में भूमिका निभाई, और यह निरंतरता इस्लामी क्रांति में भी प्रमुख है।

अहवाज़ स्थित खुज़िस्तान हौज़ा ए इल्मिया के प्रशासकों को संबोधित करते हुए, आयतुल्लाह काबी ने कहा कि इस्लाम केवल एक व्यक्तिगत या उपासना धर्म नहीं है, बल्कि एक व्यापक धर्म है जो मानव सभ्यता का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है। इसमें एकेश्वरवाद, न्याय, मानवीय गरिमा, ज्ञान, आध्यात्मिकता, त्याग, विवेकशीलता और संरक्षकता जैसे मूलभूत सिद्धांत शामिल हैं, जो व्यक्ति और समाज के सभी पहलुओं को प्रभावित करते हैं।

उन्होंने कहा कि इस्लाम ने अज्ञानता की सभ्यता के विरुद्ध एक वैज्ञानिक, नैतिक और राजनीतिक व्यवस्था प्रस्तुत की है, जो रहस्योद्घाटन, निश्चितता और ईश्वरीय संरक्षकता पर आधारित है। इसी आधार पर इस्लामी सभ्यता के तीन मूलभूत स्तंभ स्थापित होते हैं: संस्कृति का कुरानिक और पैगंबरी सिद्धांत, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति से लाभान्वित होना, और सैन्य एवं रक्षात्मक शक्ति।

आयतुल्लाह काबी ने इस्लामी क्रांति को इस्लामी सभ्यता के पुनरुत्थान की एक व्यावहारिक अभिव्यक्ति बताया और कहा कि इमाम खुमैनी (र) और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई के मार्गदर्शन में, धर्म और सभ्यता एक नए रूप में उभरे हैं।

उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम के दुश्मनों ने क्रांति की शुरुआत से ही विभिन्न चरणों में इसे सीमित या नष्ट करने की कोशिश की है, लेकिन हमेशा असफल रहे हैं। यहाँ तक कि हाल ही में हुआ 12-दिवसीय युद्ध भी वास्तव में "सभ्यता उन्मूलन" की एक साजिश थी, जिसमें दुश्मन ने हर संभव प्रयास किया, लेकिन अंततः ईरान को हराने में विफल रहा और इसके बजाय खुद एक गंभीर और रणनीतिक झटका झेला।

आयतुल्लाह काबी ने ज़ोर देकर कहा कि यदि ईरानी राष्ट्र एकता, विलायत-उल-फ़क़ीह और प्रतिरोध की भावना को बनाए रखता है, तो "सभ्यता प्रतिस्पर्धा" का चरण भी "सभ्यता विजय" में बदल जाएगा, और यह अंततः दुनिया के उद्धारकर्ता, हज़रत बक़ियातुल्लाह अल-आज़म (अ) के ज़ुहूर का मार्ग प्रशस्त करेगा।

हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के ख़तीब, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली फखरी ने कहा है कि सच्ची बंदगी और इबादत हासिल करने के लिए एक संपूर्ण इंसान बनना ज़रूरी है, और इमाम अस्र (अज्ज़) की ज़ियारत और तौबा की चाहत को दिलों में ज़िंदा रखना ईमान और ज्ञान की निशानी है।

हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के ख़तीब, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली फखरी ने कहा है कि सच्ची बंदगी और इबादत हासिल करने के लिए एक संपूर्ण इंसान बनना ज़रूरी है, और इमाम अस्र (अज्ज़) की ज़ियारत और तौबा की चाहत को दिलों में ज़िंदा रखना ईमान और ज्ञान की निशानी है।

हज़रत मासूमा (स) की पवित्र दरगाह पर सफ़र के आखिरी दस दिनों की मजलिसो को संबोधित करते हुए, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन अली फ़ख़री ने कहा कि एक कामिल इंसान का साथ इंसानी परफेक्शन और बंदगी की राह में अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि मासूम इमाम से लगाव हर तरह की रूहानी रुकावटों को दूर कर देता है।

उन्होंने कहा कि पवित्र क़ुरआन भी इस बात पर ज़ोर देता है कि सच्ची बंदगी तभी हासिल होती है जब इंसान मासूम इमाम की गोद में खुद को डाल लेता है ताकि वह हमें हिदायत की राह पर चला सके।

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन फखरी ने आगे कहा कि हर मोमिन को उस मासूम इमाम की ज़ियारत की चाहत और प्रेम से भर जाना चाहिए ताकि वह उनके ज्ञान और आशीर्वाद से लाभान्वित हो सके। कभी-कभी एकांत और एकांत में इमाम (अ) से बात करनी चाहिए और अपने दिल में ज़ियारत और मिलन की प्यास बढ़ानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि "ऐ हसन के बेटे, जल्दी करो" का स्मरण हमारी सच्ची तड़प का प्रतीक होना चाहिए, क्योंकि इमाम महदी (अ) का ज़ुहूर होना ऐसे समय में होगा जब दुनिया भर के दिल इमाम की ज़ियारत की प्यास और लालसा से भरे होंगे।

हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के खतीब ने कहा कि इमाम असर (अ) का ज्ञान आध्यात्मिक प्यास बुझाने का आधार है, क्योंकि इस दुनिया और आख़िरत का हर ज्ञान और वास्तविकता, ईश्वर की छत्रछाया में ही प्राप्त होती है।

उन्होंने यह कहकर निष्कर्ष निकाला कि मासूमीन (अ) की दरगाह पर जाते समय पहली दुआ इमाम से मिलने और उनसे जुड़ने की होनी चाहिए, क्योंकि यह संपर्क हृदय की ज्योति, सच्चे ज्ञान और अल्लाह की ओर यात्रा का द्वार खोलता है।

लखनऊ में चल रही मजलिसो में खिताब करते हुए, मौलाना जावेद हैदर ज़ैदी ने कहा कि इमाम हुसैन (अ) की कुर्बानी मानवता को अत्याचार के विरुद्ध डटकर खड़े होने और दीन की सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाने का संदेश देती है।

अरबईन-ए-हुसैनी के बाद भी, शहर अज़ा लखनऊ में इमाम हुसैन (अ) की मजलिसो का सिलसिला अकीदत और सम्मान के साथ जारी है। इसी सिलसिले में, लखनऊ के काज़मैन स्थित मरहूम नज़ीर अब्बास ज़ैदपुरी के अज़ा खाने में एक मजलिस आयोजित की गई, जिसे मौलाना जावेद हैदर ज़ैदी ने संबोधित किया।

मजलिस की शुरुआत हदीसे-किसा की तिलावत से हुई। बाद में, मौलाना ने पवित्र क़ुरआन की आयत मवद्दत की रोशनी में अहले-बैत-अत्हार (अ) की महानता और उनके पद व प्रतिष्ठा पर विस्तार से बात की।

मौलाना ने अपने संबोधन में कहा कि इमाम हुसैन (अ) की क़ुरबानी सिर्फ़ आँसू बहाने के लिए नहीं है, बल्कि यह हमें अत्याचार के ख़िलाफ़ डटकर खड़े होने, सच्चाई का साथ देने और मानवता का सम्मान करने की शिक्षा देती है। कर्बला का संदेश यही है कि हमें न्याय, धैर्य और दृढ़ता तथा धर्म की सेवा को अपने जीवन का आदर्श बनाना चाहिए।

अज़फ़र फ़ाउंडेशन के छात्रों की उत्कृष्ट सफलता के उपलक्ष्य में अलीगढ़ में आयोजित एक समारोह में वक्ताओं ने कहा कि छात्रों का उज्ज्वल भविष्य सही निर्णय लेने, कड़ी मेहनत और योजना पर निर्भर करता है।

अलीगढ़/अज़फ़र फ़ाउंडेशन के छात्रों की परीक्षाओं में उत्कृष्ट सफलता के अवसर पर, भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के केंद्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष सैयद मसूद हुसैन, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पूर्व पुस्तकालयाध्यक्ष असलम मेहदी और प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक डॉ. शुजात हुसैन ने कल रज़ा नगर, अलीगढ़ स्थित फ़ाउंडेशन का दौरा किया। फ़ाउंडेशन के निदेशक असगर मेहदी (आरज़ू) और छात्रों से मुलाकात के दौरान, अतिथियों ने उन्हें उत्कृष्ट परिणामों के लिए बधाई दी।

असगर मेहदी (आरज़ू) ने इस अवसर पर कहा कि फ़ाउंडेशन का उद्देश्य उन बच्चों को शिक्षित करना है जो आर्थिक समस्याओं या खराब परिवेश के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि सफलता का रहस्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रणाली और सकारात्मक वातावरण के साथ-साथ व्यावहारिक उपायों में निहित है।

सैयद मसूद हुसैन ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि उज्ज्वल भविष्य के लिए निर्णय लेना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने व्यावहारिक जीवन के अनुभव साझा करते हुए, केवल मेडिकल और इंजीनियरिंग को ही लक्ष्य न बनाकर, अन्य क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करने की सलाह दी। उन्होंने छात्रों को सिविल सेवा के साथ-साथ कर्मचारी चयन आयोग (SSC-CGL/CHSL) जैसी परीक्षाओं पर भी ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी, जहाँ हर साल हजारों रिक्तियाँ निकलती हैं।

असलम मेहदी ने छात्रों को सलाह देते हुए कहा कि योग्यता और निर्णय लेने की शक्ति व्यक्ति को ऊंचाइयों तक ले जा सकती है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हवाई जहाज देखने वाले बच्चों के मन में अलग-अलग विचार आते हैं; कुछ उसे कागज़ पर बनाते हैं, कुछ उसे रंगते हैं, कुछ पायलट बनने का सपना देखते हैं और कुछ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके हवाई जहाज बनाते हैं। यह सब निर्णय लेने और सही समय पर सही चुनाव करने पर निर्भर करता है।

डॉ. शुजात हुसैन ने अपने संबोधन में कहा कि करियर में सफलता के लिए उचित योजना बनाना अनिवार्य है। छात्रों को अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उसे प्राप्त करके अपने हृदय में समाज और राष्ट्र की सेवा का जज्बा जगाना चाहिए।

अंत में, असगर मेहदी (आरज़ू) ने आशा व्यक्त की कि अतिथियों का बहुमूल्य परामर्श छात्रों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगा और उनके शैक्षिक एवं व्यावसायिक भविष्य को आकार देने में सहायक होगा। उन्होंने फाउंडेशन की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता की भी अपील की।

लेबनानी मशहूर आलेमे दीन ने प्रतिरोध को निरस्त्र करने का विरोध करते हुए कहा कि कोई भी सांसारिक ताकत हिज़्बुल्लाह से उसके हथियार नहीं छीन सकता।

लेबनान के प्रमुख शिया धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम अहमद कबलान ने कहा,हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करना किसी भी ताकत के बस की बात नहीं है।

उन्होंने कहा, हिज़्बुल्लाह का सामना करने वाली धरती पर कोई ऐसी ताकत मौजूद नहीं है जो उसकी रक्षात्मक क्षमताओं को समाप्त कर सके।

हुज्जतुल इस्लाम कबलान ने आगे कहा, प्रतिरोध समूहों ने ऐतिहासिक बलिदानों और राष्ट्रीय एकजुटता के साथ इजरायल को हराया और लेबनान को कब्जाधारी ताकतों से मुक्त कराया।

उन्होंने हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करने के प्रयास को पागलपन और बेकार बताते हुए कहा, यह फैसला ज़ायोनी सरकार के हित में किया जा रहा है।

लेबनान के प्रमुख शिया धार्मिक विद्वान ने कहा, लेबनान फिर से इजरायल के कब्जे में नहीं जाएगा और हिज़्बुल्लाह कभी हार नहीं मानेगी।

ईरान के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ईरान सभी स्वतंत्र देशों के लिए गर्व का विषय है और लेबनान की प्रतिरोध शक्तियों को ईरान पर पूरा भरोसा है। ईरान ने मध्य पूर्व में नए नक्शे और ग्रेटर इजरायल की योजना को विफल कर दिया है।