
رضوی
शहीद कासिम सुलेमानी की जीवनशैली सभी के लिए एक आदर्श
ईरान के लोरेस्तान प्रांत में प्रतिनिधि वली फकीह ने कहा: ईमानदारी और संरक्षकता हज कासिम स्कूल की प्रमुख विशेषताओं में से हैं।
ख़ुर्रमाबाद के प्रतिनिधि से बातचीत के दौरान लुरेस्टन प्रांत में वली फ़िक़ह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अहमद रज़ा शाहरुखी ने कहा: "सरदार शहीद क़ासिम सुलेमानी, जो दिलों के नेता हैं, उनकी जीवन शैली एक आदर्श उदाहरण है हम सभी को इस शहीद के जीवन के प्रमुख पहलुओं को समाज के सभी वर्गों, विशेषकर युवा पीढ़ी को समझाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा: शहीद हज कासिम सुलेमानी ने उन्हीं विचारों और सिद्धांतों के साथ इस्लामी भूमि की रक्षा की और क्रांति के सर्वोच्च नेता मुदज़िला अल-अली ने भी उन्हें एक स्कूल के रूप में पेश किया।
खुर्रमाबाद के इमाम जुमा ने कहा: हज कासिम के स्कूल में कई महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं। वक्ताओं, शोधकर्ताओं और लेखकों को अपने उपदेशों और लेखों में इन तत्वों का वर्णन करना चाहिए।
हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन शाहरखी ने हज कासिम स्कूल की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख किया और कहा: ईमानदारी, दासता, अखंडता और पवित्रता के लिए अहल अल-बेत का प्यार, संरक्षकता, साहस और बहादुरी इस स्कूल की मुख्य विशेषताएं हैं।
उन्होंने आगे कहा: शहादत, युद्ध के मैदान में निडरता और उत्पीड़ितों और वंचितों के समर्थन के लिए देश की सीमाओं के बाहर उपस्थिति भी हज कासिम स्कूल की विशेषताओं में से एक है।
मध्य पूर्व में स्थिरता स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य के बिना संभव नहीं
फिलिस्तीनी तहरीक फतह ने एक बार फिर ज़ोर देकर कहा है कि गाजा पर इजरायल की आक्रमकता को समाप्त करना गाजा और पश्चिमी तट का पुन, एकीकरण करना और यरुशलम को राजधानी घोषित करके फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
एक रिपोर्ट के अनुसार , फिलिस्तीनी आंदोलन फतह ने एक बार फिर इस बात पर ज़ोर दिया है कि गाज़ा पर इज़राइल की आक्रामकता को समाप्त करना गाज़ा और पश्चिमी तट का पुनः एकीकरण करना, और यरुशलम को राजधानी घोषित करके फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
फतह आंदोलन ने फिलिस्तीन क्रांति की साठवीं वर्षगांठ के अवसर पर जारी एक बयान में कहा कि एक स्वतंत्र और स्वायत्त फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के बिना मध्य पूर्व में शांति, स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करना असंभव है।
बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी की निंदा की गई है, जो इज़राइल को गाज़ा में नरसंहार की लड़ाई जारी रखने, पश्चिमी तट पर हमलों गिरफ्तारियों और सामूहिक सज़ा की नीतियों को बढ़ावा देने का प्रोत्साहन दे रही है इसलिए फिलिस्तीनी राज्य के बिना न तो शांति संभव है और न ही मध्य पूर्व में वास्तविक सहअस्तित्व।
अधिक ठंड के कारण ग़ाज़ा में कई बच्चों की मौत
संघर्ष और ठंड के कारण ग़ाज़ा में कई बच्चों की मौत,हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक महज़ हफ़्तेभर में ग़ाज़ा में 6 बच्चों की सर्दी के कारण मौत हो गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,संघर्ष और ठंड के कारण ग़ाज़ा में कई बच्चों की मौत,हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक महज़ हफ़्तेभर में ग़ाज़ा में 6 बच्चों की सर्दी के कारण मौत हो गई है।
दरअसल भीषण ठंड में भी बेघर हो चुके हज़ारों फ़िलस्तीनी टेंट्स में रहने के लिए मजबूर हैं यूएन का कहना है कि इसराइल की पाबंदियों की वजह से ग़ाज़ा में मदद नहीं पहुंचा पा रही है।
इसराइल के जुल्म के कारण ग़ज़ा में सहायता पहुंचाने से कई अंजुमन वंचित है ग़ज़ा में इजरायल के फौजी किसी भी चीज को प्रवेश होने की अनुमति नहीं दे रहे हैं जिसके कारण परिवार के कई सदस्य और बच्चे मर चुके हैं
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
नाम व लक़ब (उपाधियां)
आपका नाम मुहम्मद व आपका मुख्य लक़ब बाक़िरूल उलूम है।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 57 हिजरी मे रजब मास की प्रथम तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
माता पिता
हज़रत इमाम बाकिर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़ातिमा पुत्री हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हैं।
पालन पोषण
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का पालन पोषण तीन वर्षों की आयु तक आपके दादा इमाम हुसैन व आपके पिता इमाम सज्जाद अलैहिमुस्सलाम की देख रेख मे हुआ। जब आपकी आयु साढ़े तीन वर्ष की थी उस समय कर्बला की घटना घटित हुई। तथा आपको अन्य बालकों के साथ क़ैदी बनाया गया। अर्थात आप का बाल्य काल विपत्तियों व कठिनाईयों के मध्य गुज़रा।
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का शिक्षण कार्य़
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत की अवधि मे शिक्षा के क्षेत्र मे जो दीपक ज्वलित किये उनका प्रकाश आज तक फैला हुआ हैं। इमाम ने फ़िक़्ह व इस्लामी सिद्धान्तो के अतिरिक्त ज्ञान के अन्य क्षेत्रों मे भी शिक्षण किया। तथा अपने ज्ञान व प्रशिक्षण के द्वारा ज्ञानी व आदर्श शिष्यों को प्रशिक्षित कर संसार के सम्मुख उपस्थित किया। आप अपने समय मे सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे। महान विद्वान मुहम्मद पुत्र मुस्लिम ,ज़ुरारा पुत्र आयुन ,अबु नसीर ,हश्शाम पुत्र सालिम ,जाबिर पुत्र यज़ीद ,हिमरान पुत्र आयुन ,यज़ीद पुत्र मुआविया अजःली ,आपके मुख्यः शिष्यगण हैं।
इब्ने हज्रे हीतमी नामक एक सुन्नी विद्वान इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखता है कि इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने संसार को ज्ञान के छुपे हुए स्रोतो से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान व बुद्धिमत्ता का इस प्रकार वर्नण किया कि वर्तमान समय मे उनकी महानता सब पर प्रकाशित है।ज्ञान के क्षेत्र मे आपकी सेवाओं के कारण ही आपको बाक़िरूल उलूम कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञान को चीर कर निकालने वाला।
अब्दुल्लाह पुत्र अता नामक एक विद्वान कहता है कि मैंने देखा कि इस्लामी विद्वान जब इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की सभा मे बैठते थे तो ज्ञान के क्षेत्र मे अपने आपको बहुत छोटा समझते थे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने कथनो को सिद्ध करने के लिए कुऑन की आयात प्रस्तुत करते थे। तथा कहते थे कि मैं जो कुछ भी कहूँ उसके बारे मे प्रश्न कर ?मैं बताऊँगा कि वह कुरआन मे कहाँ पर है।
इमाम बाक़िर और ईसाई पादरी
एक बार इमाम बाक़िर (अ.स.) ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाकिर (अ.स) भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।
थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम (अ.स) पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।
पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।
पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे ?????
इमाम (अ.स) ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।
पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगे ?क्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः हाँ ,इसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।
पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।
उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बिस्मिल्लाह ,सवाल करे।
पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।
क्या इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।
पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम (अ.स) से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम (अ.स) से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः
ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।
खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।
इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।
हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के कथन
१. जो शख़्स किसी मुसलमान को धोका दे या सताये वह मुसलमान नहीं।
२. यतीम बच्चों पर माँ बाप की तरह मेहरबानी करो।
३. खाने से पहले हाथ धोने से फ़ख़्र (निर्धनता) कम होता है और खाने के बाद हाथ धोने से ग़ुस्सा (क्रोध) ।
४. क़र्ज़ कम करो ताकि आज़ाद रहो और गुनाह (पाप) कम करो ताकि मौत में आसानी हो।
५. हमेशा नेक काम करो ताकि फ़ायदा उठाओ बुरी बातों से परहेज़ (बचो) करो ताकि हमेशा महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहो।
६. ताअत (अनुसरण) व क़नाअत (आत्मसंतोष) बे नियाज़ी (बे परवाही) और इज़्ज़त का बायस है और गुनाह व लालच बदबख़्ती (अभाग्य) और ज़िल्लत का मोजिब (कारण) है।
७. जिस लज़्ज़त में अन्जाम कार पशेमानी हो नेकी नहीं।
८. दुनिया फ़क़त दो आदमियों के लिये बायसे ख़ैर (शुभ होने का कारण) है एक वह जो नेक आमाल में रोज़ इज़ाफ़ा करे ,दूसरा वह जो गुज़िश्ता गुनाहों (भूतकालीन पाप) की तलाफ़ी तौबा (प्रायश्चित) के ज़रिये करे।
९. अक़लमन्द वह है जिसका किरदार (चरित्र) उसकी गुफ़्तार (कथन) की तसदीक़ (प्रमाणित) करे और लोगों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करे।
१०. बदतरीन शख़्स वह जो अपने को बेहतरीन (अच्छा) शख़्स ज़ाहिर करे।
११. अपने दोस्त के दुश्मनों से रफ़ाक़त (मित्रता) मत करो वरना अपने दोस्त को गवाँ (खो) दोगे।
१२. हर काम को उसके वक़्त (समय) पर अन्जाम (पूरा करो) दो जल्दबाज़ी से परहेज़ (बचो) करो।
१३. बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा (रहजाना) बेकसों की मदद और ग़मज़दो की दिलजूई में है।
१४. जो दिन गुज़र गया वह तो पलट कर आयेगा नहीं और आने वाले कल पर भरोसा किया नहीं जा सकता।
१५. हर इन्सान अपनी ज़बान के नीचे पोशीदा (छिपा) है जब बात करता है तो पहचाना जाता है।
१६. माहे मुबारक रमज़ान के रोज़े अज़ाबे इलाही के लिये ढाल हैं।
१७. काहिली से बचो (क्योंकि) काहिल अपने हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) अदा नहीं कर सकता।
१८. तुम में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो नादानों (अज्ञानियों) से फ़रार ( दूर भागे) करे।
१९. बुज़ुर्गों (अपने से बड़ों का) का एहतेराम (आदर) करो क्योंकि उनका एहतेराम (आदर) ख़ुदा की इबादत (तपस्या) के मानिन्द (तरह) है।
२०. सिल्हे रहम (अच्छा सुलूक) घरों की आबादी और तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) है।
२१. इसराफ़ (अपव्यय) में नेकी (अच्छाई) नहीं और नेकियों में इसराफ़ का वुजूद (अस्तित्व) नहीं।
२२. जिस मामले में पूरी वाक़्फ़ियत (जानकारी) नहीं उसमें दख़्ल मत दो वरना (मौक़े की ताक में रहने वाले) बुरे और बदकिरदार (दुष्कर्मी) लोग तुमकों मलामत का निशाना बनायेंगे।
२३. हमेशा लोगों से सच बोलो ताकि सच सुनों (याद रखो) सच्चाई तलवार से भी ज़्यादा तेज़ है।
२४. लोगों से मुआशेरत (अच्छा रहन सहन) निस्फ़ (आधा) ईमान है और उनसे नर्म बर्ताव आधी ज़िन्दगी।
२५. ज़ुल्म (अन्याय) फ़ौरी (तुरन्त) अज़ाब का बायस है।
२६. नागहानिए हादसात (अचानक घटनायें) से बचाने वाली कोई चीज़ दुआ से बेहतर नहीं ।
२७. मुनाफिक़ (जिसका अन्दरुनी और बाहरी व्यवहार में अन्तर हो ) से भी ख़ुश अख़लाक़ी से बात करो ।
२८. मोमिन से दोस्ती में ख़ुलूस पैदा करो ।
२९. हक़ (सत्य) के रास्ते (पथ) पर चलने के लिए सब्र का पेशा इख़्तियार करो ।
३०. ख़ुदावन्दे आलम मज़लूमों (जिनके साथ अन्याय किया गया हो) की फ़रयाद को सुनता है और सितमगारों (जिन्होंने ज़ुल्म किया हो) के लिए कमीनगाह में है ।
३१. सलाम और ख़ुश गुफ़्तारी गुनाहों से बख़्शिश (मुक्ति) का बायस (कारण) है।
३२. इल्म (ज्ञान) हासिल (प्राप्त) करो ताकि लोग तुम्हें पहचानें और उस पर अमल करो ताकि तुम्हारा शुमार ओलमा (ज्ञानियों) में हो।
३३. इबादते इलाही में ख़ास ख़्याल रखो आमाले ख़ैर (शुभकार्य) में जल्दी करो और बुराईयों से इज्तेनाब (बचो) करो।
३४. जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं क्या छोड़ा लेकिन जब फ़रिश्ते (ईश्वरीय दूत) सवाल करते हैं क्या भेजा ?
३५. बेहतरीन इन्सान वह है जिसका वजूद दूसरों के लिये फ़ायदा रसां (लाभकारी) हो।
३६. क़ायम आले मोहम्मद (अ.स.) वह इमाम हैं जिनको ख़ुदावन्दे आलम तमाम मज़ाहब पर ग़लबा ऐनायत (प्रदान) करेगा।
३७. खाना ख़ूब चबाकर खाओ और सेर होने से पहले खाना छोड़ दो।
३८. ख़ालिस इबादत (सच्चे मन से तपस्या) यह है कि इन्सान ख़ुदा के सिवा किसी से उम्मीदवार न हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से डरे नहीं।
३९. उजलत (जल्दी) हर काम में नापसन्दीदा मगर रफ़े शर (बुराई को दूर करने में) में।
४०. जिस तरह इन्सान अपने लिये तहक़ीराना (अनादर) लहजा नापसन्द करता है दूसरों से भी तहक़ीराना (अनादर) लहजे में गुफ़्तगू (बात चीत) न करे।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 114 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की सातवीँ (7) तिथि को सोमवार के दिन हुई। बनी उमैय्या के ख़लीफ़ा हश्शाम पुत्र अब्दुल मलिक के आदेशानुसार एक षड़यन्त्र के अन्तर्गत आपको विष पान कराया गया। शहादत के समय आपकी आयु 57 वर्ष थी।
समाधि
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। प्रत्येक वर्ष लाखो श्रृद्धालु आपकी समाधि पर सलाम व दर्शन हेतू जाते हैं।
हज 2025;हज यात्रियों की सुविधा के लिए हज खर्च जमा करने की अंतिम तारीख 6 जनवरी
हज कमिटी ऑफ इंडिया ने हज यात्रियों की सुविधा के लिए और जनमानस की मांग पर वेटिंग लिस्ट में चयनित हज यात्रियों के लिए हज खर्च की पहली और दूसरी किस्त की राशि ₹2,72,300 जमा करने की अंतिम तारीख 6 जनवरी 2025 तक बढ़ा दी है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , नई दिल्ली/ हज कमिटी ऑफ इंडिया ने हज यात्रियों की सुविधा के लिए और जनमानस की मांग पर वेटिंग लिस्ट में चयनित हज यात्रियों के लिए हज खर्च की पहली और दूसरी किस्त की राशि ₹2,72,300 जमा करने की अंतिम तारीख 6 जनवरी 2025 तक बढ़ा दी है।
ड्रॉ में पहले से चयनित हज यात्री भी 6 जनवरी तक हज खर्च की दूसरी किस्त ₹1,42,000 जमा कर सकते हैं।
हज कमिटी ऑफ इंडिय द्वारा जारी सर्कुलर में हज यात्रियों से इस सुविधा का लाभ उठाने की अपील की गई है यह अंतिम तारीख है और इसके बाद किसी और विस्तार की संभावना नहीं है।
हज यात्री https://hajcommittee.gov.in वेबसाइट या हज सुविधा ऐप के माध्यम से क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, या यूपीआई द्वारा ई-पेमेंट कर सकते हैं।
यात्री स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की किसी भी शाखा में पे-इन स्लिप और बैंक रेफरेंस नंबर के जरिए हज समिति के खाते में राशि जमा कर सकते हैं।
वेटिंग लिस्ट से चयनित यात्री, राशि जमा करने के बाद 8 जनवरी 2025 तक निम्नलिखित दस्तावेज
जमा करें:
- मूल अंतर्राष्ट्रीय पासपोर्ट (मशीन रीडेबल) और उसका स्व-सत्यापित कॉपी।
- मेडिकल स्क्रीनिंग और फिटनेस प्रमाणपत्र।
- शपथ पत्र।
- बैंक की पे स्लिप।
- हज आवेदन फॉर्म की प्रति।
हज खर्च की तीसरी किस्त की घोषणा हवाई यात्रा किराए और सऊदी अरब में होने वाले खर्चों के निर्धारण के बाद की जाएगी।
अधिक जानकारी के लिए
हज कमिटी ऑफ इंडिया,
की वेबसाइट https://hajcommittee.gov.in या राज्य हज समितियों के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।
सीरिया और इराक में तुर्की और इज़राईली योजनाएं असफल हो चुकी हैं
इराक की सैयदुशोहदा बटालियन के महासचिव ने तुर्की के राष्ट्रपति को चेतावनी देते हुए कहा,आपकी विस्तारवादी योजनाएं ज़ुल्म के शिकार लोगों की मदद करने के बजाय ज़ायोनी सरकार के हित में हैं सीरिया में आपकी सेना की मौजूदगी आपकी योजनाओं की असफलता की शुरुआत है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , इराक की सैयदुशोहदा बटालियन के महासचिव अबूआला अलविलाई ने तुर्की के राष्ट्रपति को चेतावनी देते हुए कहा कि आपकी विस्तारवादी योजनाएं ज़ुल्म के शिकार लोगों की मदद के बजाय ज़ायोनी सरकार के हित में हैं सीरिया में आपकी सेना की उपस्थिति आपकी योजनाओं की असफलता की शुरुआत है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सैयदुशोहदा बटालियन के महासचिव ने यह बयान एक्स (पूर्व ट्विटर) पर जारी एक संदेश में दिया यह प्रतिक्रिया तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान के हालिया बयानों के जवाब में आई।
उन्होंने एर्दोगान की फिलिस्तीन और बैतुल मुकद्दस पर की गई टिप्पणियों की आलोचना करते हुए निनवा अलअनबार और सलाहुद्दीन जैसे इराकी क्षेत्रों में तुर्की द्वारा तकफीरी और आतंकवादी समूहों को समर्थन देने का आरोप लगाया।
अबूआला अलविलाई ने कहा,पिछले अनुभवों ने साबित किया है कि तकफीरी समूहों का समर्थन और इन क्षेत्रों पर कब्जा करने की आपकी कोशिशें इराकी प्रतिरोध के सामने विफल रही हैं। आपकी सभी साजिशें नाकाम साबित हुई हैं।
उन्होंने आगे कहा,आज भी आपकी विस्तारवादी योजनाएं ज़ायोनी सरकार के लाभ के लिए हैं न कि मजलूमों की मदद के लिए सीरिया में आपकी सेना की मौजूदगी और आपके द्वारा चलाए जा रहे ‘ममर ए दाऊद’ जैसे प्रोजेक्ट की असफलता आपकी पराजय का संकेत है।
सैयदुशोहदा बटालियन के महासचिव ने कहा, आपको सीरिया और इराक में पहले की तरह फिर से असफलता का सामना करना पड़ेगा आपके हालिया कदम आपके लिए शर्मिंदगी और बदनामी के अलावा कुछ नहीं लाएंगे।
गौरतलब है कि यह बयान ऐसे समय में आया है जब तुर्की ने हाल के दिनों में उत्तरी सीरिया में अपनी सैन्य गतिविधियों को तेज कर दिया है और वहां अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ा दिया है।
फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने यमन को मिसाइल हमलों की सफलता पर बधाई दी
यमन की सशस्त्र सेनाओं द्वारा इज़रायली शासन पर किए गए मिसाइल हमलों का फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों ने न केवल स्वागत किया, बल्कि इसे इज़राइल शासन के खिलाफ बढ़ते संघर्ष में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,यमन की सशस्त्र सेनाओं द्वारा इज़रायली शासन पर किए गए मिसाइल हमलों का फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों ने न केवल स्वागत किया, बल्कि इसे ज़ायोनी शासन के खिलाफ बढ़ते संघर्ष में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन मुजाहिदीने फिलिस्तीन ने मंगलवार सुबह अपने बयान में कहा,हम यमन की सशस्त्र सेनाओं के मुजाहिदीन द्वारा ज़ायोनी कब्जे के गढ़ पर किए गए नए मिसाइल हमले की बधाई देते हैं यह हमला यमन की अदम्य शक्ति और उनके संघर्ष की वैधता का प्रमाण है।
अलजज़ीरा नेटवर्क ने इस बयान को उद्धृत करते हुए कहा कि यमन की ओर से होने वाले ये हमले इज़रायली अमेरिकी आक्रमण की विफलता का स्पष्ट संकेत हैं। यमन के इन हमलों ने न केवल इज़रायली शासन की सैन्य क्षमता को चुनौती दी है बल्कि यह भी दिखाया है कि यमन की जनता और उसकी सेना अपने सम्मान और संप्रभुता की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।
कुछ समय पहले इज़रायली सेना ने एक बयान में पुष्टि की कि यमन से दागी गई कम से कम दो बैलिस्टिक मिसाइलें तेल अवीव की ओर लक्षित थीं जिसके बाद उनके रक्षा तंत्र सक्रिय हो गए। इस हमले ने ज़ायोनी शासन की रक्षा प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया और यह संदेश दिया कि यमन के मुजाहिदीन अब एक निर्णायक भूमिका निभाने में सक्षम हैं।
यमन का यह कदम एक स्पष्ट संदेश है कि वे न केवल अपने देश पर हो रहे आक्रमण का प्रतिरोध कर रहे हैं, बल्कि फिलिस्तीन समेत उन सभी अन्यायों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, जो इज़रायल और उसके सहयोगियों द्वारा दुनिया भर में किए जा रहे हैं।
यह हमले यह भी दर्शाते हैं कि यमन और फिलिस्तीन के प्रतिरोध बल आपसी एकजुटता और सहयोग से इज़रायली शासन को कमजोर करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहे हैं।
यमन की यह कार्रवाई केवल सैन्य महत्व तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष का प्रतीक भी है, जिसमें वह अन्याय के खिलाफ खड़े होने वाले हर समुदाय और राष्ट्र को प्रेरित करती है।
दुनिया के चार मुख्य संकट और उनका समाधान
मजलिसे खुबरेगान रहबरी के प्रमुख आयतुल्लाह अब्बास काबी ने समकालीन दुनिया के चार प्रमुख संकटों और उनके समाधान के बारे में विस्तार से बताया।
आयतुल्लाह अब्बास काबी, ने इंसानी समाज के वर्तमान संकटों पर चर्चा करते हुए कहा कि समकालीन मानव के पास चार प्रमुख संकट हैं, जो आधुनिक सभ्यता के कारण उत्पन्न हुए हैं। उन्होंने कहा: "पहला संकट है, विचार और व्यवहार में नास्तिकता का शासन। यानी इंसान वह जीवन जीने लगा है जिसमें वह ईश्वर, पैगंबरों के मार्गदर्शन, और आख़िरत के नज़रिए से दूर है। यही समकालीन मानव का जीवन है।"
आयतुल्लाह अब्बास काबी ने इन संकटों को आधुनिक सभ्यता से उत्पन्न बताया और इसके समाधान की दिशा भी प्रस्तुत की।
- नास्तिकता का संकट: आयतुल्लाह काबी ने सबसे पहले विचार और व्यवहार में नास्तिकता के शासन को प्रमुख संकट बताया। नास्तिकता का मतलब केवल ईश्वर और आख़िरत में विश्वास न करना नहीं, बल्कि व्यवहार में भी ईश्वर से दूर हो जाना है। यह संकट जीवन में व्यावहारिक रूप से ईश्वर को भुलाने और भौतिक सुखों की ओर झुकाव से उत्पन्न होता है, जो इंसान के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जिम्मेदारी की अनदेखी: दूसरा संकट यह है कि समकालीन व्यक्ति अपने व्यक्तिगत सुख और भोग में उलझा रहता है और सामाजिक जिम्मेदारियों से बेखबर रहता है। इस सोच के परिणामस्वरूप एक व्यक्तिवादी और लिबरल दृष्टिकोण पैदा होता है, जिसमें कुछ लोग भौतिक सुखों के मुकाबले दूसरों से पीछे रह जाते हैं।
- तागूत का शासन और शैतानी शक्तियों का प्रभुत्व: तीसरा संकट तागूत (तानाशाही) और शैतानी शक्तियों का प्रभुत्व है, जो दुनिया भर में संकटों का कारण बनते हैं। यह संकट वीटो अधिकार, सुरक्षा परिषद जैसी संस्थाओं के अन्यायपूर्ण प्रबंधन के कारण उत्पन्न होते हैं।
- मानव गरिमा का विनाश: चौथा संकट मानव गरिमा का स्वेच्छा से विनाश है, जिसमें कुछ लोग अपनी इच्छाशक्ति से अपनी पहचान और मानवता को ही नकार देते हैं। इस तरह के उदाहरण यूरोप में देखे गए हैं, जहां कुछ लोग जानवरों जैसी पहचान अपनाते हैं।
आयतुल्लाह काबी ने इन संकटों का समाधान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि समाधान चार प्रमुख मार्गों में निहित हैं:
- ईश्वर में विश्वासऔर नास्तिकता के खिलाफ जीवन जीना।
- अच्छे कार्यों का निर्माणकरना, जो समाज को लाभ पहुंचाए और साझा जिम्मेदारी को उत्पन्न करे।
- ईश्वर के नेतृत्व में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन।
- मानवता, गरिमा और अच्छे कार्यों पर धैर्यरखना।
इन समाधानों को अपनाकर हम वैश्विक स्तर पर बदलाव ला सकते हैं और मानवता को विनाश से बचा सकते हैं।
आतंकवाद का कमजोर और कम होना शहीद सुलेमानी की कोशिशों का नतीजा
निस्संदेह, हर निष्पक्ष दिमाग और हर जागरूक व्यक्ति इस बात की पुष्टि करता है कि इस्लामी दुनिया में आतंकवाद का कमजोर होना और कम होना शहीद कासिम सुलेमानी जैसे प्रियजनों के चौबीसों घंटे के प्रयासों का परिणाम है। इसलिए एक ईरानी और एक मुसलमान के रूप में हमें ऐसे दयालु बच्चों पर गर्व होना चाहिए।
कुर्दिस्तान प्रांत में, होज़ा समाचार एजेंसी के रिपोर्टर से बातचीत में शिक्षक अब्दुर्रहमान खोदाई ने कहा: "यह कहना सही है कि जनरल हाज कासिम सुलेमानी सेना के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक थे, और पिछले वर्षों में मध्य पूर्व और पूरे क्षेत्र में उनका राजनीतिक प्रभाव बहुत बड़ा था।"
बानेह शहर के इमाम जुमा ने कहा: "जनरल हाज कासिम सुलेमानी की क्षेत्र में उपस्थिति और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी समूहों के खिलाफ उनकी लड़ाई ने शत्रु देशों की रणनीतियों को उलट दिया।"
इस सुन्नी विद्वान ने इस पर जोर देते हुए कहा: "क्षेत्रीय आतंकवाद का उद्देश्य मध्य पूर्व में नया नक़्शा बनाना था, और यह योजना शत्रु देशों ने तैयार की थी। दुश्मन ने आईएसआईएस जैसे आतंकवादी समूहों को खड़ा किया, उन्हें हथियार दिए और उनसे दो मुख्य लक्ष्य हासिल करने की कोशिश की: पहला, इस्लाम धर्म की छवि को दुनिया में खराब करना और दूसरा, मध्य पूर्व का नक़्शा बदलना। लेकिन, शुक्र है कि शहीद हाज कासिम सुलेमानी जैसे महान नेताओं की मौजूदगी के कारण, ये दोनों योजनाएँ पूरी तरह से नाकाम हो गईं।"
मौलाना खोदाई ने कहा: "बिना किसी संदेह के, हर निष्पक्ष और जागरूक व्यक्ति यह स्वीकार करेगा कि इस्लामिक दुनिया में आतंकवाद का कमजोर होना और उसकी हार शहीद हाज कासिम सुलेमानी जैसे महान नेताओं के दिन-रात के प्रयासों का परिणाम है। इसलिए, हमें एक ईरानी और मुसलमान के रूप में ऐसे अद्भुत व्यक्तित्वों पर गर्व होना चाहिए।"
बानेह शहर के इमाम-ए-जुमे ने कहा: "आज, हाज कासिम सुलेमानी की शहादत के पांच साल बाद, उनका नाम पहले से भी ज्यादा प्रमुख है और उनका विचारधारा पहले से भी ज्यादा प्रभावी है। यह महान जनरल हर किसी के लिए स्वतंत्रता, हिंसा और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष का आदर्श उदाहरण बन गए हैं।"
इस्लाम और सेक्योलरिज़्म
इस्लाम और सिक्योलरिज़्म आज की दुनिया के दो महत्वपूर्ण दृष्टिकोण (नज़रियात) हैं और इन्हीं की वजह से आज दुनिया दो गुरूप में विभाजित है।
इनमें से एक इस्लामी दृष्टिकोण है और दूसरा सिक्योलरिज़्म ,यानी इंसानों का पेश किया हुआ दृष्टिकोण ।
यह एक स्पष्ट हक़ीक़त है कि इंसान की तखलीक़ (सृष्टि) से लेकर आज तक कभी भी इल्हामी और एलाही दृष्टिकोण में किसी क़िस्म का फेर बदल नहीं हुआ वह क़तई (निश्चित) है। तौहीद (एकेश्वरवाद) और मलाएका का तसव्वुर (कल्पना), रिसालत और आखिरत का अक़ीदा, क़द्रो क़ज़ा पर ईमान और हज़रत आदम के अख़लाक़ से लेकर आज तक और आज से लेकर क़्यामत तक के लिए यकसाँ और ग़ैर मुतग़य्यर (अपरिवर्तित) हैं जबकि दूसरी तरफ इसी अर्से में हज़ारों इंसानी नज़रियात (दृष्टिकोण) वजूद में आए। पहले पहल लोगों और समाज नें उनको हाथों हाथ लिया मगर कुछ समय बाद खुद इंसानों नें न केवल इस दृष्टिकोण को झुटलाया बल्कि नौबत यहाँ तक पहुँच गई कि इंसान नें इसका मज़ाक़ तक उड़ा डाला। आसमानी ज्ञान में सूरज के सुकून का नज़रिया (दृष्टिकोण), हैवानात के ज्ञान में जानदार चीज़ों के बेजान होने का नज़रिया (दृष्टिकोण), इल्मे कीमिया (रसायन का ज्ञान) में धातुओं की संख्या का नज़रिया (दृष्टिकोण), ज़मीनी ज्ञान में ज़लज़ले के कारणों का नज़रिया वग़ैरह इसकी रौशन मिसालें हैं और अगर निज़ामे हयात के हवाले से देखा जाए तो माज़ी (अतीत) क़रीब में फाशज़म, कम्यूनिज़्म, सोशलिज़्म इसकी मिसालें हैं कि कभी तो यह नज़रियात छा गए मगर कुछ साल बाद यह इंसानों के लिए घातक (मोहलिक) सिद्ध होने की वजह से रद्द कर दिए गए। बहस का खुलासा यह है कि एलाही नज़रियात (दृष्टिकोण) क़तई होते हैं और कोई भी इंसानी नज़रिया क़तई (निश्चित) नही हो सकता।
अंग्रेज़ी शब्द Secular वास्तव में लैटीन भाषा के “सेक्यूलम” शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ है “आज का दौर ” और उर्दू में प्रायः इसका अनूवाद ला-दीनियत (अधर्मता) किया जाता है। सेक्यूलर नज़रिया (दृष्टिकोण) के मानने वाले लोगों की तरफ से इस अनूवाद पर यह आपत्ती की जाती है कि सेक्योलरिज़्म धर्म का इंकार नहीं करता, यह तो सिर्फ रोज़ाना की ज़िन्दगी और सामूहिक विषय (मआमले) में मज़हब के हस्तक्षेप का विरोधी है, इस लिए लोग सेक्योलरिज़्म का अनूवाद ला-दीनियत (अधर्मता) के बजाए “दुनवियत ” करते हैं। अगर ज़रा सा गहराई में जायें तो यह हक़ीक़त स्पष्ट हो जाती है कि वह खुद उसको ला-दीनियत (अधर्मता) क़रार दे रहे हैं। दीन का अर्थ है “ज़िन्दगी करने का नियम और दस्तूर ”। अगर यह किसी धर्म की बुनियाद पर है तो यह उस धर्म का दीन है जैसे इस्लामी तर्ज़े ज़िन्दगी का अर्थ दीने इस्लाम है और अगर यह तर्ज़े ज़िन्दगी किसी भी मज़हब की राहनुमाई के बग़ैर चल कहा है तो यह ला-दीनी निज़ाम या ला-दीनियत है ।
सेक्योलरिज़्म का तारीख़ी पस मंज़र (पृष्ठभूमि) इस परिभाषा (इस्तेलाह) को समझने में बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। इस दृष्टिकोण का संस्थापक जार्ज जैकब होली ओक को कहा जाता है। यह सन 1818 में बर्मिंघम (इंग्लैंड) में पैदा हुआ था। यह समय चर्च की हुक्मरानी का दौर था। यह दौर इतिहास के उन पृष्ठों से सम्बन्धित है जब चर्च ने धर्म के नाम पर लोगों पर ज़ुल्म किया दरहालांकि हज़रत ईसा खुदा के नबी थे उन्होनें खुदा की इबादत का पाठ पढ़ाया था और आखिरत के दिन की सज़ा का एहसास दिलाया था मगर चर्च और उसके मानने वालों नें हज़रत ईसा के बताए हुए ज्ञान और चीज़ों को बदल डाला और इसी बदलाव के ज़रिए चर्च की इस्टेबलिश्मेंट क़ायम कर दी और सब को इसके शिकंजे में जकड़ दिया।
दीन शब्द का अर्थ खुदा की इबादत था मगर जब चर्च ने खुदा की इबादत के बजाए इंसानों की इबादत करना सिखानी शुरूअ कर दी तो यह प्रकृति (Nature) के खिलाफ बग़ावत थी और इसका नतीजा तबाही की सूरत में ज़ाहिर होना ही था। एक तरफ चर्च के लोग मज़हब के ठेकेदार बन गए थे और हज़रत ईसा को खुदा का बेटा बना डाला। करोड़ों लोगों ने इस दृष्टिकोण को मान लिया जबकि यह प्रकृति (फितरत) के खिलाफ था। इस लिए एक मुद्दत बाद इसके खिलाफ प्रतिक्रिया हुई। दूसरी तरफ चर्च ने ज्ञान की वास्तविकता को अपनी इजारा दारी क़रार देकर इंसानी अक़्ल के प्रयोग के दरवाज़े बंद कर दिए। यह वह समय था जब चर्च की इस बढ़ती हुई इजारा दारी के खिलाफ विद्रोह प्रकट हुआ और धर्म के विरूद्ध इस विद्रोह को सिक्योलरिज़्म का नाम दिया गया। सिक्योलरिज़्म के मानने वालों ने धर्म को ज़िन्दगी के निज़ाम (व्यवस्था) से अलग करके आज़ादी के उसूल की बुनियाद पर एक निज़ामे ज़िन्दगी तरतीब (क्रम) दिया। उन्होंने जहाँ धर्म को एक तरफ रख कर ज्ञान की हक़ीक़त की तलाश शुरू कर दी और किसी भी ग़ैर मरई क़ुव्वत के वजूद को मानने से इनकार कर दिया वहीं उन्होंने चर्च के विरोध में यह नज़रिया (दृष्टिकोण) भी क़ायम किया कि तरक़्क़ी की वजह से लोगों की अक़्ल इस क़दर तरक़्क़ी कर चुकी है कि जिस तरह वह फितरत (Nature) के क़ानून से वाक़िफ हो गई है यूं ही अपनी ज़ात से सम्बंधित उसे किसी तरह की इल्हामी हिदायात की ज़रूरत कतई नहीं रही उनकी इस सोच नें धर्म का सम्बंध उनके निज़ामे ज़िन्दगी से पूरी तरह से खतम कर दिया।
इस तरह मग़रिब (पश्चिम) की बनाई हुई इस्तलाह (परिभाषा), सिक्योलरिज़्म का अर्थ हुआ धर्म को पूरी तरह से रद्द करते हुए आज़ादी के उसूल की बुनियाद पर निज़ामे ज़िन्दगी को बनाना। उनके इंसान आज़ाद हैं,क़ौम आज़ाद है ,पार्लियामेंट आज़ाद है। आज़ादी का यह उसूल ऐसा है कि इस से ऊपर कुछ नहीं, इसमें कोई बदलाव मुम्किन नहीं। यही आज़ादी आज मग़रिब (पश्चिम) वालों का धर्म है और और यह चर्च और उसकी हिदायात से बड़ी है जिसकी स्पष्ट मिसाल यह है कि 17 देशों में मर्द मर्द से औरत औरत से की शादियों को क़ानूनी बना दिया गया है। यह आज़ादी तो है लेकिन धर्म और मज़हब से इसका दूर का भी सम्बंध नही है सिक्योलरिज़्म के इस तारीखी पस मंज़र ने इस हक़ीक़त को बेनक़ाब किया कि इस से मुराद व्यक्तिगत और सामुहिक मआमलात में धर्म का कोई हस्तक्षेप नही है।
सिक्योलरिज़्म के मानने वालों के नज़दीक धर्म और मज़हब की क़द्रो क़ीमत क्या है ? हम देखते हैं कि एक दौर में चर्च की हुकूमतों और लोगों, दोनों पर हुक्मरानी थी मगर सिक्योलरिज़्म के इस जुहूर के बाद यूरोप और अमरीका में सिक्योलरिज़्म को अपनाया गया और मज़हब को वेटीकन सिटी में बंद कर दिया गया। सिक्योलर हुकूमतों की सरहदें (सीमा) धीरे धीरे बढ़ती गयीं और धार्मिक हुकूमत वेटीकन सिटी आज दुनिया की सबसे छोटी हुकूमत का नम्बर पा गई जिसका रक़बा 17 मुरब्बा मील है। सिक्योलरिज़्म के मानने वालों नें केवल धर्म से विरोध पर निर्भर न थे बल्कि एक हाथ और आगे बढ़कर तरक़्क़ी का नज़रिया पेश कर दिया जिसका अर्थ है इंसान का आग़ाज़ इंसान नहीं था बल्कि उसकी अस्ल जानवर है। इस नज़रिये (दृष्टिकोण) पर उन्होने अपने इल्मी ढ़ांचे की बुनियाद रखी। अगर इस नज़रिये (दृष्टिकोण) की बुनियादों पर ग़ौर किया जाए तो यह ख़ुद ब ख़ुद मरदूद क़रार पाता है सबसे पहले यह कि जिन हक़ीक़तों पर इस नज़रिये (दृष्टिकोण) का दारोमदार है वह अब तक मालूम नहीं हैं साइंसदाँ (Scientist) अब भी नबाताती इरतेक़ा के वाक़ेए होने की अस्ल तरकीब के लिए सरगरदाँ हैं और यह Logic का उसूल है कि किसी चीज़ को नामालूम हक़ीक़तो की बुनियाद पर सिद्ध नही किया जा सकता वह सिर्फ मालूम हक़ीक़तो की बुनियाद पर ही सिद्ध की जा सकती है। फिर यह कि अगर मान भी लिया जाए कि इंसान की मौजूदा शक्ल व सूरत और कैफियते इरतेक़ा का नतीजा है कि इरतेक़ा के अमल को जारी रखने से किसने रोक दिया ? और ज़्यादा बदलाव क्यों नही हो रहा है ? क़दीम ज़माने से इंसान ने खुद को ऐसा ही इंसान पाया है जैसा वह आज है वही दो टांगें, दो हाथ, दो आँखें, एक नाक और मुंह वग़ैरा। अगर यह सूरते इरतेक़ा का मज़हर है तो फिर और तब्दीलियाँ भी होनी चाहिए जो कि नही हो रहीं। इससे सिद्ध हुआ कि इस नज़रिये की कोई इल्मी और अक़्ली बुनियाद नही। । सिक्योलरिज़्म के दिए हुए इस नज़रिये की बदौलत इंसान ख़ुद को जानवरों की एक क़िस्म समझ कर उनके जैसे काम करने लगता है। कभी लिबास से आरी, कभी अख़लाक़ से खाली, कभी खाहिशे नफ्स का पैरवी करने वाला तो कभी ज़िम्मेदारियों का एहसास नही।
इस्लाम एक मुकम्मल निज़ामे हयात है यह इंसान के व्यक्तिगत और सामुहिक दोनो मआमलों में शामिल होता है। इसकी बुनियाद, ठोस अक़ीदे जिसमें किसी तरह का बदलाव नही हो सकता और इंसान की फलाह (मुक्ति) के लिए बना निज़ामे इबादत, पर रखी गई है। इस्लाम का मक़सद इंसान को तमाम ज़ंजीरों के शिकन्जे से निकाल कर सब बनाए हुए खुदाओं की खुदाई को रद्द करते हुए एक खुदा के आगे झुकाना है दूसरे शब्दों में इस्लामे हक़ीक़ी (वास्तविक) आज़ादी का दूसरा नाम है, फिक्र व इज़हार की आज़ादी, अज़्म व अमल की आज़ादी। जबकि दूसरी तरफ सिक्योलरिज़्म एक ऐसा निज़ामें ज़िन्दगी है जो मज़हब से संबन्धित नही है। इस नज़रिये (दृष्टिकोण) ने रोज़ाना की ज़िन्दगी के मआमलों में खुदा का हिदायत की ज़रूरत को रद्द कर दिया है इसके अनुसार इरतेक़ा के अमल के नतीजे में अक़्ल, शऊर, और समझ के इस मर्तबे पर पहुंच चुका है कि अब वह खुद को किसी ग़ैर मरई क़ुव्वत के हवाले किए बग़ैर अपनी दूनिया के मआमलों को चला सकता है यानि एक सेक्यूलर आदमी के लिए उसकी मरज़ी उसका तर्ज़े हयात है उसकी अक़्ल और इल्म (ज्ञान) उसकी मार्ग दर्शक है।
एक सवाल ???
आज का मार्डन ज़माना इस्लाम और सिक्योलरिज़्म को एक बताने पर तुला हुआ है। ऊपर लिखी गई तहरीर से सिक्योलरिज़्म का मफहूम (अर्थ) तो स्पष्ट है जाता है अब इस बात का जायज़ा लेते हैं कि इस्लाम और सिक्योलरिज़्म का एक होना तो कहाँ, वह तो एक दूसरे की अपोज़िट बुनियादों पर खड़े हैं।
सबसे पहली बात यह है कि सिक्योलरिज़्म चर्च के विरूद्ध विरोध का नाम है और इस्लाम में कोई चर्च है ही नही जैसा कि खुदा का इर्शाद हैः व रोहबानिया इब्तदऊहा मा कतबना अलैहिम...
और रसूल (स) की हदीस है: इस्लाम में रोहबानियत नही है।
और जब आयत : इत्तख़ज़ू अहबारहुम व रोहबानहुम अरबाबन मिन दूनिल्लाह, नाज़िल हुई तो अदी इब्ने हातिम ने इस पर एतिराज़ किया कि हम तो ऐसा नही करते थे मगर रसूले खुदा (स) के तवज्जोह दिलाने पर उन्होने यह बात तस्लीम की कि हम अपने उलमा के हलाल किए हुए को हलाल और हराम किए को हराम मानते थे आपने (अ) फरमाया कि तुम्हारे इसी काम को खुदा ने रब मानने से ताबीर किया है मगर इस्लाम की तारीख में हज़ारों कमियों और कोताहियों के बावजूद आज तक किसी ने चर्च की तरह हलाल और हराम को निश्चित करने की हिम्मत नही की तो फिर इस्लाम के मानने वालों को इनकार कर दिया है सिक्योलरिज़्म की ज़रूरत कहाँ ? इस्लाम में हरगिज़ इस बात की गुन्जाइश नही कि कोई विशेष तबक़ा मज़हब का इजारा दार बन जाए। पहले युग (क़र्न) में सब लोग बग़ैर किसी रोक टोक के क़ुरआन और सुन्नत से मदद लेते थे और आज भी बुनियादी उसूल यही है कि जिस तरह हर इंसान के लिए डाक्टर बनना ज़रूरी नही है लेकिन सेहत के बुनियादी उसूल की जानकारी ज़रूरी है इसी तरह हर इंसान के लिए शरियत में महारते ताम्मा हासिल करना तो ज़रूरी नही लेकिन बुनियादी उसूल से संबन्धित उनकी तालीम और ज्ञान से आगाही ज़रूरी है। इस तरह इस्लाम ने मज़हबी इजारा दारी का खात्मा कर दिया।
चर्च ने खुद को खुदा और लोगों के दरमियान लाज़मी (आवश्यक) वसीला क़रार दिया इसके अपोज़िट इस्लाम ने: व इज़ा सालका एबादी अन्नी फानी क़रीबुन ओजिबो दावतद-दा इज़ा दआन,का पैग़ाम देकर इंसानी तकरीम (अभीवादन) को चार चांद लगा दिए। हज़रत (स) ने अपनी बेटी को खुद अपनी निजात का सामान करने को कहा और उनकी निजात की ज़िम्मेदारी की ज़िम्मेदारी क़ुबूल नही की। इसमें भी दर हक़ीक़त इंसानी तकरीम (अभीवादन) का यह पहलू सब पर भारी है कि हर इंसान का मआमला उसके खुदा के साथ होगा। चर्च ने हज़रत ईसा के सूली पर चढ़ने की कहानी खुद बना करके हर आदमी के लिए गुनाहों को अंजाम देने का रास्ता खोल दिया। जब कि इस्लाम ने ला तज़दू ज़ुर्रतन व ज़िद उख़रा... का सुनहरा उसूल देकर हर शख्स को अपने आमाल की जज़ा और सज़ा का ज़िम्मेदार ठहराया और इसमें और इसमे इंसाफ को इतना ज़्यादा ध्यान में रखा कि: तब्बत यदा अबी लहब व तब..... कहकर रिश्तेदारी के लिहाज़ का मुकम्मल तौर पर सफाया कर दिया।
चर्च ने पहले औरत की मज़म्मत (निन्दा) की , उसको बुराई की जड़ बताया और फिर उसको यह यक़ीन दिलाया कि इज़्ज़त का मक़ाम पाने के लिए तुम्हे मर्द के साथ साथ चलना पड़ेगा और जब औरत मर्द वाले काम करती भी है तो हक़ीक़त में बड़ाई उसकी नही मर्द की साबित होती है मगर इस्लाम ने मर्द और औरत के लिए फ़रीज़ों और ज़िम्मेदारियों को बताने के बाद दोनों को बराबर की सज़ा और जज़ा के वादे दिए। ज़ात की बुनियाद पर दोनों के मक़ाम में कोई टकराव नही रखा।
चर्च की ऊपर बताई हुई कमियों और बुराई का नतीजा सिक्योलरिज़्म था और इस्लाम में तो यह खामियां है ही नहीं सिक्योलरिज़्म की गुन्जाइश कहाँ ?
आज के सिक्योलरिज़्म तबक़े की एक दलील यह भी है कि हम टेक्नालाजी पश्चिम वालों से ले रहे हैं तो इसके चलाने का तरीक़ा क्यों नहीं ? इसमे क्या बुराई है ? इसका सादा सा जवाब यह है कि हम उनसे टेक्नालाजी तो ले सकते है मगर निज़ामे ज़िन्दगी नही, दूसरा यह कि उन्होने भी नए उलूम (ज्ञान) हम से लिए थे, क्या उन्होने हमारा निज़ामे ज़िन्दगी क़ुबूल किया था ?
ऊपर बयान हुई हक़ीक़तों से हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि सिक्योलरिज़्म पश्चिम से आई हुई इस्तलाह (परिभाषा) है हमे इसकी हरगिज़ ज़रूरत नही है, फिर यह कि इस्लाम की तारीख में कभी भी ऐसे हालात पैदा ही नही हुए कि हमे भी चर्च के ज़ुल्म के शिकार लोगों की तरह मज़हब के खिलाफ बग़ावत और सिक्योलरिज़्म की ज़रूरत पड़ती।