दिल्ली के आरोप में लंबे समय से बिना किसी जमानत के जेल मे बंद JNU के पूर्व छात्र अध्यक्ष उमर खालिद को गुरुवार को दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट में एक बार फिर कोई राहत नहीं मिली।
उमर खालिद ने गुरुवार को दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट में दलील दी कि किसी व्हाट्सऐप ग्रुप में उनकी मौजूदगी मात्र से उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज करने की बुनियाद नहीं हो सकती है, न ही किसी तरह का विरोध-प्रदर्शन करने या बैठकों में हिस्सा लेने को आतंकवाद माना जा सकता है, लेकिन उनके मामले में पुलिस ऐसा ही मानती है।
खालिद के वकील ने अपने मुवक्किल के लिए जमानत की अपील करते हुए अभियोजन पक्ष के इस दावे की मुखालफत की कि खालिद ने स्टूडेंट्स को जमा करने और भड़काने और 'विघटनकारी' चक्का जाम की प्लानिंग करने के लिए व्हाट्सऐप पर 'सांप्रदायिक' ग्रुप बनाए थे.। वकील ने कहा कि उमर खालिद ऐसे किसी ग्रुप का एक्टिव मेंबर भी नहीं रहा। खालिद को जबरन ग्रुप में जोड़ा गया, उसने ग्रुप में एक भी संदेश पोस्ट नहीं किया ना कोई चैट की। वकील ने कहा, “मेरे मुवक्किल के खिलाफ यूएपीए के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। पुलिस विरोध-प्रदर्शन और बैठक में हिस्सा लेने को ही आतंकवाद के बराबर बता रही है। उमर खालिद के वकील ने कहा कि सह-आरोपी देवांगना कालिता और नताशा भी ऐसे सोशल ग्रुप का हिस्सा थे और उन पर हिंसा में “कहीं ज्यादा गंभीर इल्ज़ाम ” थे, लेकिन उन्हें मामले में जमानत दे दी गई।