رضوی

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पाकिस्तान के जमात-ए-इस्लामी (जेआई) के महासचिव हमीद सूफी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जमात-ए-इस्लामी देश की सबसे बड़ी इस्लामी राजनीतिक पार्टी है। पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में कुछ अज्ञात लोगों ने हमीद सूफी की गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने बताया कि घटना उस समय हुई जब हमीद सूफी नमाज अदा करके मस्जिद से बाहर आ रहे थे।

जमात-ए-इस्लामी (जेआई) के महासचिव हमीद सूफी पर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बाजौर में गोलियों से हमला किया गया।  पुलिस ने बताया कि इनायत कला बाजार के पास कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने उन पर गोलियां चलाईं। हमीद सूफी नमाज के बाद मस्जिद से बाहर आ रहे थे, तभी मोटरसाइकिल सवार दो लोगों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं।  इस घटना की जिम्मेदारी दाएश समूह ने ली है।

 

 

इराकी प्रतिरोधी आंदोलन अहद अल्लाह के प्रमुख ने कहा कि अपराधी अमेरिका की अगुवाई में दुश्मनों का लक्ष्य केवल ग़ाज़ा, लेबनान और सीरिया नहीं है बल्कि यह देश दुश्मन के उद्देश्यों का एक हिस्सा हैं और दुश्मनों का असली लक्ष्य इस्लामी गणराज्य ईरान है।

एक रिपोर्ट के अनुसार , इराकी प्रतिरोधी आंदोलन अहद अल्लाह के प्रमुख हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम अलहैदरी ने धार्मिक मदरसों के तहत क़ुम की जामे मस्जिद में शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह की याद में आयोजित मजलिस-ए-अज़ा में कहा कि शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह वली-ए-फ़क़ीह के पूर्णत अनुयायी थे।

वली ए फक़ीह के प्रति निष्ठा, इस महान शहीद के जीवन की विशेषता थी। सैयद हसन नसरुल्लाह, प्रतिरोध आंदोलन के नेता चुने जाने से पहले वली-ए-फ़क़ीह के एक महान सिपाही प्रेमी और निष्ठावान कार्यकर्ता थे।

 

उन्होंने यह बताते हुए कि आज प्रतिरोध का मुद्दा, इस्लामी शासन की एक महत्वपूर्ण चर्चा है आगे कहा कि अपराधी अमेरिका की अगुवाई में दुश्मनों का लक्ष्य केवल ग़ाज़ा, लेबनान और सीरिया नहीं है बल्कि ये देश दुश्मनों के लक्ष्यों का एक हिस्सा हैं और दुश्मनों का असली लक्ष्य इस्लामी गणराज्य ईरान और वली-ए-फक़ीह है।

हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम अलहैदरी ने कहा कि आज जिहाद-ए-तबयीन सत्य की व्याख्या के लिए संघर्ष सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है।

इराकी आंदोलन अहद अल्लाह के प्रमुख ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे सांस्कृतिक, सैन्य और सामाजिक में विशेष रूप से दुश्मनों की साज़िशों को विफल करने के प्रयासों की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाह-ए-उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई सहित अन्य विशेषज्ञों ने बार बार इस्लामी ईरान के खिलाफ चल रही साज़िशों की ओर संकेत किया है और दुश्मन की साज़िशों को नाकाम बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।

हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हाशिम अलहैदरी ने कहा कि वली ए फक़ीह के प्रति निष्ठा केवल एक नारा नहीं है बल्कि इसे व्यावहारिक जीवन में साबित करना होगा। आज क्रांति के नेता के आदेश अर्थात "जिहाद-ए-तबयीन" पर अमल करना सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है।

उन्होंने आगे कहा कि शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह हर शब ए आशूरा और रोज़-ए-आशूरा पूरी बहादुरी के साथ क्रांति के नेता के प्रति अपनी निष्ठा की पुष्टि करते थे जबकि बैरूत का माहौल क़ुम और तेहरान जैसा स्वतंत्र नहीं है।

 

 

 

 

 

ईरान के मिशगिन शहर के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम बा वक़ार ने कहा है कि महिलाओं की स्थिति और पद को परिभाषित करने में इस्लाम की शुद्ध संस्कृति और पश्चिम की गुमराह सभ्यता के बीच पूर्ण अंतर है, जहां महिला को इस्लाम में आदर्श रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं, जबकि पश्चिमी विचारधारा महिलाओं को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत करती है।

ईरान के मिशगिन के इमाम जुम्मा हुज्जतुल इस्लाम बा वक़ार ने अपने जुमे के खुत्बे में इस्लामी और पश्चिमी सभ्यताओं में महिलाओं की स्थिति के बीच अंतर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस्लाम की विचारधारा में महिला को एक आदर्श व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि पश्चिम में महिला को एक व्यावसायिक वस्तु के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

उन्होंने हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के शहादत दिवस पर संवेदना व्यक्त की और उनके व्यक्तित्व को "पैगंबर और विलायत का प्रतीक" और "इस्लामी शिक्षा का सर्वोच्च उदाहरण" बताया। हुज्जतुल-इस्लाम बा वक़ार ने जोर देकर कहा कि हमें अपने जीवन में फ़ातेमी और अलवी जीवन शैली को अपनाना चाहिए और हजरत ज़हरा (स) की दुआओ में निहित संदेश को समझना चाहिए।

पुस्तक एवं वाचन सप्ताह के अवसर पर पुस्तक पढ़ने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि देश में पुस्तक पढ़ने का चलन कम हो रहा है और लोग सोशल मीडिया पर अधिक समय बिता रहे हैं। उन्होंने पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने और परिवार में पढ़ने की आदत विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

हुज्जतुल इस्लाम बा वक़ार ने अरब में इस्लामिक सम्मेलन में दो-राज्य समाधान प्रस्ताव की आलोचना की और कहा कि फिलिस्तीनी लोगों के नरसंहार पर अरब देशों की चुप्पी दुखद है। उन्होंने कहा कि प्रतिरोध मोर्चा ज़ायोनी सरकार के साथ साजिश को कभी सफल नहीं होने देगा।

उन्होंने अमेरिकी चुनाव और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों की आलोचना की और कहा कि दोनों अमेरिकी पार्टियां विश्व युद्ध के लिए जिम्मेदार हैं और उनके हाथ लाखों निर्दोष लोगों के खून से रंगे हैं।

अंत में, उन्होंने प्रतिरोध मोर्चे को दिए गए समर्थन के लिए ईरान के लोगों को धन्यवाद दिया और इसे इस्लामी भाईचारे का सबसे अच्छा उदाहरण बताया।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने ख़ोज़ा शिया जामा मस्जिद पालागली मुंबई में नमाज़ ए जुमआ का खुतबा देते हुए अय्याम ए फातेमियह की मुनासिबत से ताज़ियत पेश की और कहा कि अय्याम ए फातेमियह तालीमात-ए-अहल-ए-बैत और ख़ास तौर पर फातिमा स.ल की तालीमात पर अमल करने का बेहतरीन मौका है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार ने ख़ोज़ा शिया जामा मस्जिद पालागली मुंबई में नमाज़-ए-जुम्मा का खुतबा देते हुए अय्याम ए फातेमियह की मुनासिबत से ताज़ियत पेश की और कहा कि अय्याम ए फातेमियह तालीमात-ए-अहल-ए-बैत और ख़ास तौर पर फातिमा (अ.स.) की तालीमात पर अमल करने का बेहतरीन मौका है।

मौलाना ने नमाज़ियों को तकवा-ए-इलाही की नसीहत देते हुए कहा कि अमीर-ए-काइनात अली अलैहिस्सलाम की यही सिफारिश और वसीयत है कि तकवा अपनाओ, यक़ीनन दुनिया और आख़िरत की कामयाबी तकवा अपनाने में है। तकवा अपनाने के लिए कोई ख़ास वक्त या समय नहीं बताया गया है, इंसान को हमेशा तकवा अपनाने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन जब ख़ास दिन आते हैं, ख़ास तारीखें आती हैं, तो उस समय ज्यादा मौका मिलता है कि इंसान अपने आप को संवारें, बनाएँ। अय्याम ए फातेमियह सबसे बेहतरीन मौका है कि हम तालीमात-ए-अहल-ए-बैत विशेष रूप से सैयदा आलमियान (अ.स.) की तालीमात पर अमल कर के अपने आप को मुत्तकी और परहेज़गार बनाएं।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने खुतबा-ए-फदक की अहमियत को बयान करते हुए कहा कि अय्याम ए फातेमियह में ख़ास तौर पर शहज़ादी के पैग़ाम को पढ़ें, सुनें, उस पर गौर-ओ-फिक्र करें और उस पर अमल करें। एक बेहतरीन पैग़ाम उनका खुतबा-ए-फदक है, जिसमें आपने विभिन्न मुद्दों को बयान किया है।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार ने कहा कि अइम्मा-ए-मासूमीन अलैहिस्सलाम की हदीसों में यह बयान किया गया है कि अगर इंसान को दुनिया और आख़िरत दोनों की कामयाबी चाहिए, तो उस पर ज़रूरी है कि वह कुछ बातों का ख़्याल रखे। इन में से एक अहम बात यह है कि तुम्हारी नजात के लिए यह काफ़ी है कि तुम जन्नत में ही जाओगे अगर इस पर अमल करोगे तो कभी भी जहन्नम में नहीं जाओगे। इसमें से एक चीज़ का नाम है अल्लाह की माअरिफत (जानकारी)। जिस ने अल्लाह की माअरिफत हासिल की उसकी इबादत की उसे पहचाना, वह कामयाब हुआ।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने खुतबा-ए-फदक के फकरे "मैं ख़ुदा की नेमतों पर उसकी हम्द करती हूं और उसके इल्हाम पर शुक्र करती हूं, उसकी बेहिसाब नेमतों पर उसकी हम्द-ओ-तन्हा बजा लाती हूं, जो नेमतें हैं जिनकी कोई इंतिहा नहीं और जिनकी तलाफ़ी और तदारुक नहीं किया जा सकता को बयान करते हुए हम्द, मदीह और शुक्र की वज़ाहत की।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रज़वी ने खुतबा-ए-फदक के फकरे "मैं गवाह देती हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और उसका कोई शरीक नहीं। क़लिमे-ए-तौहीद वह क़लिमा है जिसे इखलास की तौहील की गई है" को बयान करते हुए कहा कि तौहीद हमारे अमल की क़बूलियत की शर्त है, तौहीद हमारे लिए दारोमदार है और इसी तौहीद का दरस इस खुतबे में दिया जा रहा है।

लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हमारे अमल में इखलास पाया जाए। यहाँ पर सिर्फ़ तौहीद ज़बान से इक़रार करने की चीज़ नहीं है, क्योंकि तौहीद को ख़ुदा ने  किला क़रार दिया है, जिसे इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने हदीस-ए-सिल्सिलतुल ज़हब में बयान किया है। शहज़ादी ने इस खुतबे में जो तौहीद का दरस दिया है, वह सिर्फ़ तौहीद-ए-नज़री नहीं, बल्कि तौहीद-ए-अमली भी है।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने दुश्मन-शिनासी पर ज़ोर देते हुए खुतबा-ए-फदक की रोशनी में शैतानी हतकंडों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि शैतान दिलों में कीना पैदा करता है, याद-ए-ख़ुदा से ग़ाफ़िल करता है, इंसान के गुनाहों का बहाना पेश करता है, झूठा वादा करता है, घमंड और तकब्बुर का वादा करता है, अरमानों और ख्वाहिशों में इज़ाफा करता है, आपस में इख़तलाफ़ और झगड़े करवाता है।

मौलाना सैयद रूहे ज़फ़ार रिज़वी ने दूसरे खुतबे में तकवा-ए-इलाही और तालीमात-ए-इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के हसूल और अमल की नसीहत देते हुए फरमाया कि चुनाव का दौर है, दीन ने हमें सियासत से दूर रहने का हुक्म नहीं दिया है, यह और बात है कि अगर बातिल सियासत हो, इस्लाह नहीं कर सकते तो हमें एहतियात करना चाहिए, लेकिन जहां पर खुद मुल्क का दावा यह है कि चुनाव हमारे मुल्क को तरक्की देता है तो यहाँ हमारी ज़िम्मेदारी है कि सबसे पहला फ़र्ज़ हम सबका यह है कि चुनाव में हिस्सा लें, वोट डालें, यह आपका काम इबादत के तौर पर गिना जाएगा, नतीजा ख़ुदा के हाथ में है, लेकिन सबसे पहली ज़िम्मेदारी यह है कि हम इस चुनाव में हिस्सा लें, वोट डालें।

आख़िर में मौलाना सैयद रूह ज़फ़र रज़वी ने आलमी मंजर-नामे की तरफ इशारा करते हुए आलम-ए-इस्लाम की मुश्किलात को बयान किया और फरमाया कि हमें दुनिया के हालात से ग़ाफ़िल नहीं होना चाहिए।

 

 

 

 

 

ईरान के मध्य प्रांत के हौज़ा इल्मिया के शिक्षक ने कहा कि अय्याम अज़ा ए फ़ातमिया (स) अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं, विशेष रूप से हज़रत ज़हरा (स) की शिक्षाओं का प्रचार करने का सबसे अच्छा अवसर है।

"अराक ईरान में प्रचारकों की आज की शिक्षाओं के बारे में जागरूकता" शीर्षक वाली बैठक हौज़ा के शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम अब्दुल्लाही की उपस्थिति में आयोजित की गई, जिसमें छात्रों और शिक्षकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

हुज्जतुल-इस्लाम अब्दुल्लाही ने यौम-ए-उल-हुसरा के नाम की ओर इशारा किया और कहा कि पुनरुत्थान के दिन उन लोगों को गहरा अफसोस होगा जिन्होंने अहले-बैत (अ) के संबंध में अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कीं।

यह कहते हुए कि अय्याम फ़ातिमा (स) अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं, विशेष रूप से हज़रत ज़हरा (स) की शिक्षाओं का प्रचार करने का सबसे अच्छा अवसर है, उन्होंने कहा कि हमारी पहली ज़िम्मेदारी, हज़रत ज़हरा (स) हैं। ) अल्लाह के बारे में उनका ज्ञान चार तरीकों से प्राप्त किया जाता है और इसे दूसरों तक पहुंचाया जा सकता है।

अराक प्रातं के हौज़ा इल्मिया के शिक्षक ने कहा कि पहला ज्ञान कुरान की आयतों और अहले-बैत (अ) से संबंधित आयतों पर विचार करने से प्राप्त होता है, इन आयतों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हज़रत ज़हरा (स) की महिमा का बयान किया गया है।

उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के दूसरे तरीके को विश्वसनीय रिवायतो को बताया और कहा कि हज़रत फातिमा ज़हरा के ज्ञान का तीसरा तरीका उनसे संबंधित शोध है और चौथा तरीका स्वयं छात्रों के इतिहास से शोध है।

हुज्जतुल-इस्लाम अब्दुल्लाही ने कहा कि हमारी दूसरी जिम्मेदारी अहले-बैत (अ) से प्यार करना है, उनके नाम पर अपने बच्चों का नाम रखना, अहले-बैत और फातिमा (स) की सभाओं में भाग लेना है।

हौज़ा के शिक्षक अब्दुल्लाही ने अहले-बैत (अ) के समर्थन और आज्ञाकारिता के उदाहरणों का वर्णन करते हुए कहा कि हमारी तीसरी जिम्मेदारी अहले-बैत (अ) का पालन करना है और आखिरी जिम्मेदारी है उनका समर्थन करना है।

 

 

 

 

 

शुक्रवार, 15 नवम्बर 2024 14:37

हज़रत मोहसिन की शहादत

शिया और सुन्नी स्रोतों में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि हज़रत मोहसिन इमाम अली (अ.) और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की संतान थे जो दूसरे ख़लीफ़ा उमर या क़ुनफ़ुज़ द्वारा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) को दरवाज़े और दीवार की बीच दबा दिए जाने के कारण शहीद हो गए थे। (1) यहां पर इस नुक्ते पर ध्यान देना आवश्यक है कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) के घर का घेराव और उन पर हमला चाहे जिसके द्वारा भी किया गया हो लेकिन इस कार्य के करने वालों का उस समय की सत्ता से संबंध अवश्य था।

हम आपके सामने नमूने के तौर पर शिया और सुन्नी पुस्तकों से कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ पेश कर रहे हैं ताकि पढ़ने वालों को इस घटनाक्रम और इसमें लिप्त लोगों के बारे में फैसला करने में आसानी हो सके।

शिया स्रोत

आगे जो भी रिवायतें बयान की जाएंगी उनसे पता चलता है कि हज़रत मोहसिन फ़ातेमा ज़हरा (स.) की औलाद थे जिनके शहीद कर दिया गया था।

  1. अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः अगर तुम्हारे सिक़्त (पेट में मर जाने वाले) होने वाले बच्चे तुम को क़यामत में देखें जब कि तुमने उनका कोई नाम न रखा हो तो सिक़्त हुआ बच्चा अपने पिता से कहेगाः मेरा कोई नाम क्यों नहीं रखा जब कि पैग़म्बर (स.) ने मोहसिन का नाम पैदा होने से पहले ही रख दिया था। (2)
  2. पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमायाः ... फ़ातेमा ज़हरा (स) को मारा जाएगा जब कि वह गर्भवती होगी, इस मार से उसका बेटा पेट में मर जाएगा और वह ख़ुद भी उसी मार के कारण इन दुनिया से चली जाएंगी। (3)
  3. स्वर्गीय तबरेसी कहते हैः अबूबक्र ने क़ुनफ़ुज़ को आदेश दिया कि फ़ातेमा को मारो, इस आदेश के साथ ही शोर शराबा बढ़ गया और उन (फ़ातेमा) को अली से दूर कर दिया गया और क़ुनफ़ुज़ सामने आया उसने पूरी संगदिली और बर्बरता के साथ पैग़म्बर की बेटी को दरवाज़े और दीवार के बीच पीस दिया, उसका यह कार्य इतना तेज़ था कि उनका पहलू टूट गया और उनका बच्चा पेट में ही सिक़्त हो गया। (4)

सुन्नी स्रोत

  1. इब्राहीम बिन सय्यार नेज़ाम मअतज़ेली ने बहुत सी किताबों में फ़ातेमा ज़हरा (स) के घर पर लोगों के आने के बाद की घटनाओं के बारे में लिखा है। वह कहता हैः अबूबक्र के लिए बैअत लिए जाने के दिन उमर ने फ़ातेमा ज़हरा (स.) के पेट पर मारा जिसकी वजह से उनका बेटा जिसका नाम उन्होंने मोहसिन रखा था सिक्त हो गया। (5)
  2. अहमद बिन मोहम्मद जो इब्ने अभी दारम के नाम से प्रसिद्ध हैं और जिनको मोहद्दिस कूफ़ी कहा जाता है (357 निधन) जिनके बारे में मोहम्मद बिन अहमद बिन हम्माद कूफ़ी कहते हैं: “वह अपने पूरे जीवनकाल में केवल सही रास्ते पर चले” कहते हैं: मेरे सामने यह ख़बर दी गई किः उमर ने फ़ातेमा को लात मारी और उनका बेटा मोहसिन उनके पेट में सिक़्त हो गया। (6)
  3. इब्ने सअद अपनी पुस्तक तबक़ात और बलाज़री अनसाबुल अशराफ़ में लिखते हैं: वह संताने जिनकी माँ पैग़म्बर की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) हैं उनके नाम यह हैं: हसन, हुसैन मोहसिन, ज़ैनब कुबरा, उम्मे कुलसूम। और मोहसिन हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) के घर पर हमले वाली घटना में सिक़्त हो गए।

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  1. अलमग़ाज़ी, इब्ने अभी शैबा जिल्द 8, पेज 572
शुक्रवार, 15 नवम्बर 2024 14:36

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का मरसिया

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा पर दुखों के पहाड़ कब से टूटना आरम्भ हुए इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि जैसे ही पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संसार से अपनी आखें मूंदी, मुसीबतें आना आरम्भ हो गईं, और इन मुसीबतों का सिलसिला एक के बाद एक बढ़ता ही चला गया।

इतिहासकारों ने लिखा है कि पैग़म्बर की शहादत के बाद तीन दिन तक उनका जनाज़ा रखा रहा और मुसलमान सक़ीफ़ा नबी साएदा में अबूबक्र की ख़िलाफ़त में व्यस्त रहे, और यह केवल अली और उनके कुछ साथी ही थे जिन्होंने पैग़म्बर को दफ़्न किया।

आपके दफ़्न के बाद कुछ लोग हज़रते ज़हरा के पास आए और आपके सामने पैग़म्बर की वफ़ात पर शोक व्यक्त किया तो आपने फ़रमायाः कैसे तुम्हारे दिलों ने यह गवारा किया कि उनके पवित्र शरीर को दफ़्न कर दो? जब्कि वह नबी रहमत और لولاك لما خلقت الافلاك के मिस्दाक़ थे।

लोगों ने कहाः हे पैग़म्बर की बेटी हमें भी दुख हैं लेकिन ईश्वर की मर्ज़ी के आगे किसकी चलती है, यही वह समय था कि जब फ़ातेमा ने चीख़ मारी और पैग़म्बर की क़ब्र पर आईं और उसकी मिट्टी को उठाकर अपनी आँखों पर मली और आप बेताबी के साथ रोती जाती थी और आपकी क़ब्र के पास आपने इस प्रकार मरसिया पढ़ा।

قل للمغيّب تحت اثواب الثري

ان كنت تسمع صرختي و ندائيا

صبت علي مصائب لو انها

صبت علي الايام صرن لياليا

قد كنت ذات حميً بظلّ محمد

لا اخش من ضيم و كان حماليا

فاليوم اخضع للذليل و اتّقي

ضيمي و ادفع ظالمي بردائيا

فاذا بكت قمريّة في ليلها

شجنا علي غصن بكيت صباحيا

فلاجعلنّ الحزن بعدك مونسي

ولا جعلن الدمع فيك و شاحيا

अनुवादः जिसने अहमद (स) की पवित्र क़ब्र की ख़ुश्बू को सूंघा हैं उसको इत्र सूंघने की आवश्यकता नहीं है, मुझ पर वह मसाएब ढाए गए कि अगर दिनों पर पड़ते तो वह रात की तरह अंधेरे हो जाते, कह दो उससे जो मिट्टी के कपड़ों के नीचे छिप गया है, अगर होते तो मेरी फ़रियाद और नाले को सुनते, मैं मोहम्मद (स) के साये में समर्थित थी, और आपके परचम के नीचे मुझे किसी भी ज़ुल्म का डर नहीं था, लेकिन आज मैं तुच्छ लोगों से पामाल हो गई और मैं डरती हूं उस अत्याचार से जो मुझपर हो रहे हैं, और मैं अपनी चादर से ख़ुद की सुरक्षा कर रही हूं, और जिस प्रकार अंधेरी रात में चांद शाखाओं पर रोता है मैं भी ग़म के साथ सुबह और शाम रोती हूं, हे पिता आपके बाद मेरा हमदम मेरा ग़म है, यानी ग़म और दुखों को मैं आपके बाद आपना हमदम बना लिया है, और आपकी जुदाई में आसुओं को मैंने अपने गले की माला बना लिया है।

शुक्रवार, 15 नवम्बर 2024 14:34

हज़रत फ़ातेमा की शहादत

कृपालु मां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत का दिन है। हालांकि इस महान हस्ती ने इस नश्वर संसार में बहुत कम समय बिताया किन्तु उनका अस्तित्व इस्लाम और मुसलमानों को बहुत से फ़ायदे पहुंचने का आधार बना। ऐसी महान हस्ती के जीवन व व्यक्तित्व की समीक्षा से किताबें भरी हुयी हैं और उनके जीवन से बहुत से पाठ मिलते हैं जैसे धर्मपरायणता, ईश्वर से भय तथा उन्हें जीवन का आदर्श बनाने की प्रेरणा। इस दुखद अवसर पर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन के मूल्यवान आयाम पर चर्चा करेंगे और ईश्वर से अपने लिए इस महान हस्ती को आदर्श बनाने की कामना करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम सबसे अधिक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से स्नेह करते थे और आपका पवित्र वंश हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से चला। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का प्रशिक्षण ईश्वरीय दूत के घर में हुआ। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की ज़बान से क़ुरआन को सुना और उसके आदेशों को व्यवहार में उतार कर अपनी आत्मा को सुशोभित कर लिया। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के व्यक्तित्व ऐसे गुणों से सुसज्जित हैं कि कोई और महिला उनके स्तर तक पहुंचती ही नहीं। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें लोक-परलोक की महिलाओं की सरदार का ख़िताब दिया। इसके साथ ही हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अरब प्रायद्वीप की तत्कालीन कलाओं से परिचित थीं। जैसा कि कुछ युद्धों में अपने पिता पैग़म्बरे इस्लाम के जख़्मों पर बहुत ही अच्छे ढंग से मरहम-पट्टी करती थीं। घर का काम भी बिना किसी की सहायता के करती थीं। उन्होंने अपने बच्चों का श्रेष्ठ ढंग से प्रिशिक्षण किया और ऐसे किसी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती थीं जिससे उनका और उनके परिवार का संबंध न हो। सिर्फ़ आवश्यकता पड़ने पर ही वे बात करती थीं और जब तक उनसे कोई कुछ नहीं पूछता उस समय तक उत्तर नहीं देती थीं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की महानता के बारे में बहुत से कथन पाए जाते हैं।

अबु अब्दिल्लाह मोहम्मद बिन इस्माईल बुख़ारी सुन्नी समुदाय की सबसे प्रसिद्ध किताबों से एक सही बुख़ारी में पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन का उल्लेख करते हैं जिसमें उन्होंने कहाः फ़ातेमा मेरा टुकड़ा है जिसने उन्हें क्रोधित किया उसने मुझे क्रोधित किया। बुख़ारी एक और स्थान पर कहते हैः फ़ातेमा स्वर्ग की महिलाओं की सरदार हैं।

सुन्नी समुदाय के एक और बड़े धर्मगुरु अहमद इब्ने हंबल कि जिनके मत के अनुसरण करने वाले हंबली कहलाते हैं, अपनी किताब के तीसरे खंड में मालिक बिन अनस के हवाले से एक कथन का उल्लेख करते हैः पैग़म्बरे इस्लाम पूरे छह महीने तक जब वे सुबह की नमाज़ के लिए जाते तो हज़रत फ़ातेमा के घर से गुज़रते और कहते थेः नमाज़ नमाज़ हे परिजनो! और फिर पवित्र क़ुरआन के अहज़ाब नामक सुरे की 33 वीं आयत की तिलावत करते थे जिसमें ईश्वर कह रहा हैः हे पैग़म्बर परिजनो! ईश्वर का इरादा यह है कि आपसे हर बुराई को दूर रखे और इस तरह पवित्र रखे जैसा पवित्र होना चाहिए।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की एक पत्नी हज़रत आयशा के हवाले से इस्लामी इतिहास में आया है। वह कहती हैः मैंने बात करने में पैग़म्बरे इस्लाम से समानता में हज़रत फ़ातेमा जैसा किसी को नहीं देखा। वह जब भी अपने पिता के पास आती थीं तो पैग़म्बर उनके सम्मान में अपने स्थान से उठ जाते थे, उनके हाथ चूमते थे, उनका हार्दिक स्वागत करते थे और उन्हें अपने विशेष स्थान पर बिठाते थे और जब भी पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत फ़ातेमा के यहां जाते थे तो वह भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थीं।

प्रसिद्ध धर्म गुरु फ़ख़रूद्दीन राज़ी ने पवित्र क़ुरआन के कौसर नामक सूरे की व्याख्या में कौसर से तात्पर्य कई बातें बताई हैं जिनमें से एक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के वंश से पैग़म्बरे इस्लाम के वंश का आगे बढ़ना है। वह कहते हैः यह आयत पैग़म्बरे इस्लाम के शत्रुओं की ताने के जवाब में है जो पैग़म्बरे इस्लाम को अबतर कहते थे जिसका अर्थ हैः निःसंतान। इस आयत का उद्देश्य यह है कि ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम को ऐसा वंश देगा जो सदैव बाक़ी रहेगा। ध्यान देने से स्पष्ट हो जाता है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन बड़ी संख्या में मारे गए किन्तु अभी भी पूरे संसार में वे बाक़ी हैं। जबकि बनी उमय्या परिवार में कि जिनके बच्चों की संख्या बहुत थी इस समय कोई उल्लेखनीय व्यक्ति नहीं है किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के बच्चों को देखें तो इमाम मोहम्मद बाक़िर, इमाम जाफ़र सादिक़, इमाम मूसा काज़िम, इमाम रज़ा इत्यादि जैसे महाविद्वान व महान हस्तियां आज भी अमर हैं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का अस्तित्व विभिन्न आयामों से पूरी दुनिया के लोगों के लिए आदर्श है और शीया, सुन्नी तथा ईसाई विद्वानों तथा पूर्वविदों ने उनके जीवन की समीक्षा की है।

फ़्रांसीसी विचारक हेनरी कॉर्बेन की गिनती पश्चिम के बड़े दार्शनिकों में होती है। उन्होंने भी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जीवन की समीक्षा की है। हेनरी कॉर्बेन ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जीवन को ईश्वर की पूर्ण पहचान का माध्यम बताया है। उन्होंने अपनी एक किताब में कि जिसका हिन्दी रूपांतर आध्यात्मिक दुनिया है, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बारे में लिखा हैः हज़रत फ़ातेमा के अस्तित्व की विशेषताओं पर यदि ध्यान दिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि उनका अस्तित्व ईश्वर के अस्तित्व का प्रतिबिंबन है।

प्रसिद्ध फ़्रांसीसी पूर्वविद व शोधकर्ता लुई मैसिन्यून ने अपने जीवन का एक कालखंड हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्तित्व के बारे में शोध पर समर्पित किया और उन्होंने इस संदर्भ में बहुत प्रयास किए हैं। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और नजरान के ईसाइयों के बीच मुबाहेला नामक घटना के संबंध में एक शोधपत्र लिखा है जो मदीना में घटी थी। इस लेख में उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर संकेत किया है। वे अपने शोध-पत्र में कहते हैः हज़रत इब्राहीम की प्रार्थना में हज़रत फ़ातेमा के वंश से बारह प्रकाश की किरणों का उल्लेख है... तौरैत में मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और उनकी महान सुपुत्री और हज़रत इस्माईल और हज़रत इस्हाक़ जैसे दो सुपुत्र हसन और हुसैन की शुभसूचना है और हज़रत ईसा की इंजील अहमद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के आने की शुभसूचना देती है जिनके एक महान बेटी होगी।

क़ाहेरा विश्वविद्यालय में इस्लामी इतिहास के शिक्षक डाक्टर अली इब्राहीम हसन भी हज़रत फ़ातेमा की प्रशंसा में कहते हैः हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का जीवन इतिहास के स्वर्णिम पन्ने हैं।

उन पन्नों में उनके महान जीवन के विभिन्न पहलुओं को हम देखते हैं किन्तु वह बिलक़ीस या क़्लुपित्रा जैसी नहीं हैं कि जिनका वैभव उनके बड़े सिंहासन, अथाह संपत्ति व अद्वितीय सौंदर्य में दिखाई देता है और उनका साहस लश्कर भेजने और पुरुषों का नेतृत्व करने में नहीं है बल्कि हमारे सामने ऐसी हस्ती है जिनका वैभव पूरी दुनिया में फैला हुआ है। ऐसा वैभव जिसका आधार धन-संपत्ति नहीं बल्कि आत्मा की गहराई से निकला आध्यात्म है।

सुलैमान कतानी नामक ईसाई लेखक, कवि और साहित्यकार ने, जो इस्लामी हस्तियों को पहचनवाने से संबंधित बहुत सी प्रसिद्ध किताबें लिखी हैं, अपनी एक किताब में जिसका हिन्दी रुपान्तरः फ़ातेमा ज़हरा नियाम में छिपी तलवार है, लिखते हैः हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का स्थान इतना ऊंचा है कि उसके लिए ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का उल्लेख किया जाए। उनकी हस्ती के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की बेटी, अली अलैहिस्सलाम की पत्नी, हसन और हुसैन अलैहेमस्सलाम की मां और संसार की महान महिला हैं। सुलैमान कतानी अपनी किताब के अंत में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को संबोधित करते हुए कहते हैः हे मुस्तफ़ा की बेटी फ़ातेमा! हे धरती की सबसे प्रकाशमय हस्ती। आप ज़मीन पर केवल दो बार मुस्कुराईं। एक बार पिता के चेहरे पर जब वह परलोक सिधारने वाले थे और उन्होंने आपको इस बात की शुभसूचना दी थी कि तुम मुझसे मिलने वाली पहली हस्ती होगी और दूसरी बार आप उस समय मुस्कुराईं जब आप इस नश्वर संसार को छोड़ कर जा रही थीं। आपका जीवन स्नेह से भरा रहा। आपने पवित्र व चरित्रवान जीवन बिताया। सबसे पवित्र मां जिसने दो फूल को जन्म दिए, उनका प्रशिक्षण किया और उन्हें दूसरों को क्षमा करना सिखाया। आपने इस धरती को व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ विदा कहा और अमरलोक सिधार गयीं हे पैग़म्बर की बेटी! हे अली की पत्नी! हे हसन और हुसैन की मां! और हे सभी संसार व युग की महान महिला!

इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के महान व्यक्तित्व की इन शब्दों में प्रशंसा करते हैः मुसलमान महिलाओं को चाहिए कि अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और पारिवारिक जीवन में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन को बुद्धिमत्ता और ईश्वरीय पहचान की दृष्टि से आदर्श बनाएं और प्रार्थना, उपासना, इच्छाओं से संघर्ष, मंच पर उपस्थिति, सामाजिक, पारिवारिक, दांपत्य जीवन और बच्चों के प्रशिक्षण से संबंधित बड़े फ़ैसलों में उनका अनुसरण करें क्योंकि इस्लाम की इस महान हस्ती का जीवन यह दर्शाता है कि मुसलमान महिला राजनैतिक व व्यवसायिक मंच पर उपस्थिति और साथ ही समाज में शिक्षा, उपासना, दांपत्य जीवन और बच्चों के प्रशिक्षण के साथ सक्रिय भूमिका निभाने में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की अनुसरणकर्ता बन सकती है और ईश्वर के महान पैग़म्बर की महान बेटी को अपना आदर्श बना दे

शुक्रवार, 15 नवम्बर 2024 14:33

शहादते ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की तारीख़ पर

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा फ़ाज़िल लंकरानी (मद्दा ज़िल्लाहुल आली) का पैग़ाम

بسم الله الرحمن الرحيم

ان الذين يوذون الله و رسوله لعنهم الله في الدنيا و الاخرة و اعد لهم عذاباً مهيناً

قال رسول الله (ص) فاطمة بضعة مني يوذيني من اذاها

हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के दिन हैं। वह ज़हरा जो उम्मे अबीहा और मादरे आइम्मा -ए- मासूमीन अलैहिमुस्सलाम है। आप अहलेबैत इस्मत व तहारत का महवर हैं। आपकी ज़ाते बा बरकत एक ऐसी हक़ीक़त है जिसे आम इंसान तो क्या शिया और मुहिबाबाने अहलेबैत भी नही पहचान सके हैं। आपकी ज़ात की नूरानी हक़ीक़त ज़ुल्म, बुग़्ज़, दुश्मनी, हसद और जिहालत के पर्दों के पीछे छुप कर रह गई और अब क़ियामत तक ज़ाहिर भी नही होगी। शिया ही नही बल्कि तमाम इंसानियत और मलक व मलाकूत भी ऐसे वुजूद पर इफ़्तेख़ार करते हैं और अल्लाह के अता किये हुए इस कौसर को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वस्ल्लम के दीन की बक़ा और इंसानी समाज के उलूम व कमालात से मुज़य्यन होने को आपके बेटों का मरहूने मिन्नत समझते हैं। वाक़ेयन अगर ज़हरा सामुल्लाह अलैहा न होतीं और आइम्मा –ए- मासूमीन अलैहिमु अस्सलाम का वुजूदे मुनव्वर न होता, तो आलमे तकवीन व तशरी पर किस क़द्र अंधेरा छाया हुआ होता ?

قل لا أسئلكم عليه اجراً الا المودة في القربي की रौशनी में तमाम इंसानों पर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का एक मानवी हक़ है और वह, यह कि उनके अहलेबैत से मुहब्बत की जाये और जिनमें सबसे पहली फ़र्द हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की ज़ात है। यह हुक्म एक फ़र्ज़ की सूरत में हर ज़माने के इंसानों के लिए है, फ़क़त पैग़म्बरे इस्लाम के ज़माने के लोगों से ही मख़सूस नही है। हज़रत ज़हरा से मुहब्बत का मतलब, उनका एहतेराम, उनकी याद व ज़िक्र को बाक़ी रखना और उन पर होने वाले ज़ुल्मों को ब्यान करना है। हम उन पर होने वाले ज़ुल्मों को कभी नही भूल सकते हैं। तारीख़ गवाह है कि बहुत कम मुद्दत में आप पर इतने ज़ुल्म हुए कि आपकी शहादत के बाद सय्यदुल मुवाह्हिद अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि ज़हरा के रंज व ग़म दायमी है, वह कभी खत्म होने वाले नही हैं। क्या इसके बाद भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शिया और पैग़म्बर (स.) की उम्मते इस हुज़्न व मातम को तर्क कर सकते हैं ? नही, कभी नही। लिहाज़ा अहले बैत के तमाम शियों व मुहिब्बों को चाहिए कि तीन जमादि उस सानी को (जो कि सही रिवायतों की बिना पर हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की तारीख़ है।) शहज़ादी के ज़िक्र को ज़िंदा रखें, मजालिस करें, आपके ऊपर होने वाले ज़ुल्मों को ब्यान करें और नौहा ख़वानी, मातम व गिरया के ज़रिये हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा से अपनी अक़ीदत को ज़ाहिर करते हुए, आपके हुक़ूक़ के एक हिस्से को आदा फ़रमायें। इन्शाल्लाह।

मुहम्मद फ़ाज़िल लंकरानी

2 जमादि उस सानी सन् 1425 हिजरी क़मरी

इमाम अली ने ये कलेमात सैय्यदतुन निसाइल आलमीन फ़ातेमा ज़हरा (स0) के दफ़्न के मौक़े पर पैग़म्बरे इस्लाम (स0) से राज़दाराना गुफ़्तगू के अन्दाज़ मे कहे  थे।

सलाम हो आप पर ऐ ख़ुदा के रसूल (स0) !

मेरी तरफ़ से और आपकी उस दुख़्तर की तरफ़ से जो आपके जवार में नाज़िल हो रही है और बहुत जल्दी आप से मुलहक़ हो रही है।

या रसूलल्लाह! मेरी क़ूवते सब्र आपकी मुन्तख़ब रोज़गार (बरगुज़ीदा) दुख़्तर के बारे में ख़त्म हुई जा रही है और मेरी हिम्मत साथ छोड़े दे रही है सिर्फ़ सहारा यह है के मैंने आपके फ़िराक़ के अज़ीम सदमे और जानकुन हादसे पर सब्र कर लिया है तो अब भी सब्र करूंगा कि मैंने ही आपको क़ब्र में उतारा था और मेरे ही सीने पर सर रखकर आपने इन्तेक़ाल फ़रमाया था।

बहरहाल मैं अल्लाह ही के लिये हूँ और मुझे भी उसी की बारगाह में वापस जाना है।

आज अमानत वापस चली गई और जो चीज़ मेरी तहवील में थी वह मुझसे छुड़ा ली गई। अब मेरा रंज व ग़म दायमी है और मेरी रातें नज़रे बेदारी हैं।

जब तक मुझे भी परवरदिगार उस घर तक न पहुंचा दे जहाँ आपका क़याम है।

अनक़रीब आपकी दुख़्तरे नेक अख़्तर उन हालात की इत्तेला देगी कि किस तरह आपकी उम्मत ने उस पर ज़ुल्म ढ़ाने के लिये इत्तेफ़ाक़ कर लिया था। आप उससे मुफ़स्सिल सवाल फ़रमाएं और जुमला हालात दरयाफ़्त करें।

अफ़सोस कि यह सब उस वक़्त हुआ है जब आपका ज़माना गुज़रे देर नहीं हुई है और अभी आपका तज़किरा बाक़ी है। मेरा सलाम हो आप दोनों पर, उस शख़्स का सलाम जो रूख़सत करने वाला है और दिल तंग व रंजीदा नहीं है।

मैं अगर इस क़ब्र से वापस चला जाऊं तो यह किसी दिले तंगी का नतीजा नहीं है और अगर यहीं ठहर जाऊं तो यह उस वादे के बेऐतबारी नहीं है जो परवरदिगार ने सब्र करने वालों से किया है।

नहजुल बलाग़ाः खुत्बा न. 202)