رضوی

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संयुक्त राष्ट्र समिति के फैसले के बाद 170 सदस्य देशों ने फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया। फैसले में कहा गया है कि फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की पुष्टि की गई है।

संयुक्त राष्ट्र समिति के फैसले के बाद 170 सदस्य देशों ने फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया। सामाजिक, मानवीय और सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार करने के लिए तीसरी परिषद में फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार पर एक मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया गया। मसौदा प्रस्ताव को 170 सकारात्मक वोटों और 6 नकारात्मक वोटों के साथ मंजूरी दी गई जबकि 9 सदस्यों ने तटस्थता दिखाई। अर्जेंटीना, इज़राइल, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पैराग्वे और संयुक्त राज्य अमेरिका ने मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। फैसले में कहा गया है कि फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की पुष्टि की गई है। प्रस्ताव में कहा गया कि सभी देशों को क्षेत्र में शांति के माहौल में रहने का अधिकार है, और सभी राज्यों और संयुक्त राष्ट्र संगठनों से फिलिस्तीनी लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार प्राप्त करने में समर्थन देने का आह्वान किया गया।

दूसरी ओर, फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने 1988 में अल्जीरिया की राजधानी में फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात द्वारा घोषित "फिलिस्तीनी स्वतंत्रता की घोषणा" की 36वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक बयान दिया। अब्बास ने कहा कि दो-राज्य समाधान पर बातचीत गाजा पर इजरायल के हमलों की समाप्ति के साथ शुरू होनी चाहिए। उन्होंने युद्धविराम की भी अपील की. हमास के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बसीम नईम ने भी अपने बयान में एक टेलीविजन चैनल से कहा कि हम घिरे गाजा में तत्काल युद्धविराम के लिए तैयार हैं, हालांकि, इजरायल ने महीनों से कोई गंभीर प्रस्ताव नहीं दिया है।

लेबनान और सीरिया यात्रा पर गए ईरान के सुप्रीम लीडर के विशेष दूत और पूर्व पार्लियामेंट स्पीकर अली लारीजानी ने लेबनान और फिलिस्तीन में ज़ायोनी अत्याचारों के खिलाफ जारी प्रतिरोधी संघर्ष का समर्थन करते हुए कहा है कि ईरान हर तरह से प्रतिरोध का समर्थन जारी रखेगा।

अल-मायादीन के रिपोर्टर को साक्षात्कार देते हुए उन्होंने कहा कि दक्षिण लेबनान में युद्ध के दौरान ज़ायोनी सरकार की विफलता उजागर हो गई है। उन्होंने कहा कि लेबनान और सीरिया की यात्रा के दौरान सर्वोच्च नेता का विशेष संदेश बश्शार-असद और लेबनान के पार्लियामेंट स्पीकर को दिया गया था. इन संदेशों का मुख्य उद्देश्य प्रतिरोध के लिए ईरान के समर्थन की घोषणा करना है। उन्होंने कहा कि प्रतिरोध मजबूत और स्थिर है जिसके लिए किसी की सलाह और आदेश की जरूरत नहीं है। लारिजानी ने कहा कि अगर अमेरिका और इस्राईल संघर्ष विराम की शर्तों का उल्लंघन नहीं करते हैं तो एक समझौते पर पहुंचा जा सकता है। मैं अपना व्यक्तिगत विचार नहीं दे सकता क्योंकि यह लेबनानी सरकार का काम है।

उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह एक तार्किक और मज़बूत संगठन है जिसके नेताओं के पास मजबूत राजनीतिक विचार हैं। हमें उनके फैसलों पर भरोसा है और हम उसका समर्थन करते हैं।

लखनऊ में नक्ख़ास पुलिस चौकी के नज़दीक विश्वविख्यात शिया धर्मगुरू ख़तीबे अकबर मौलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अतहर के नाम पर बनने वाले गेट (द्वार) का शिलान्यास किया गया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार,आज लखनऊ में नक्ख़ास पुलिस चौकी के नज़दीक विश्वविख्यात शिया धर्मगुरू ख़तीबे अकबर मौलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अतहर के नाम पर बनने वाले गेट (द्वार) का शिलान्यास किया गया हैं।

बता दें कि लईक़ आग़ा पार्षद कश्मीरी मोहल्ला वार्ड नगर निगम, लखनऊ द्वारा कार्यकारिणी सदन में यह इस गेट को बनावाने का प्रस्ताव पास कराया गया था।

इस गेट की संगेबुनियाद शिया व अहले सुन्नत उलमा हज़रात के दस्ते मुबारक से रखी गयी। इस मौके पर हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैय्यद फ़रीदुल हसन साहब (प्रिंसिपल, मदरसए जामए नाज़मिया, लखनऊ), जनाब मौलाना डॉ0 यासूब अब्बास साहब, हज़रत मौलाना फ़ज़लुल मन्नान साहब (इमामे जुमा, टीले वाली मस्जिद, लखनऊ), हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुस्लिम साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना रज़ा अब्बास साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना क़मर अब्बास साहब, मौलाना अनवर हुसैन रिज़वी साहब,

हुज्जतुल इस्लाम मौलाना इब्राहीम साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हसन मीरपुरी साहब, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना फ़राज़ वास्ती साहब, मौलाना कुमैल अब्बास साहब, मौलाना अली जाफ़र साहब, मौलाना अली हुसैन कुम्मी साहब, मौलाना मज़ाहिर रिज़वी साहब, मौलाना सदफ़ जौनपुरी साहब, जनाब लईक आग़ा छम्मन साहब (पार्षद, कश्मीरी मोहल्ला वार्ड, नगर निगम, लखनऊ)

जनाब अब्बास मुर्तुज़ा शम्सी साहब, सीनियर सहाफ़ी जनाब ज़हीर मुस्तफ़ा साहब, जनाब हसन मेहदी छब्बू साहब, जनाब शबीहे रज़ा बाक़री साहब (प्रिंसिपल, शिया पी0जी0 कालेज, लखनऊ), जनाब सै0 हसन सईद नक़वी साहब (प्रिंसिपल, शिया इण्टर कालेज, लखनऊ)

जनाब शकील अहमद साहब (प्रिंसिपल, सुन्नी इण्टर कालेज, लखनऊ), जनाब वक़ी सिद्दीकी साहब (वरिष्ठ कांग्रेस नेता) जनाब नुसरत हुसैन लाला साहब (सेक्रेट्री, तहफफुज़े अज़ा, लखनऊ) के साथ बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।

रविवार, 17 नवम्बर 2024 19:09

तेहरान और रियाज़ का इरादा

सऊदी अरब की Armed Forces के Chief of Staff General फ़य्याज़ बिन हामिद अर्रूवैली ने अपने ईरानी समकक्ष से तेहरान में भेंटवार्ता की।

ईरान और सऊदी अरब के संबंध मार्च 2023 से नये चरण में दाख़िल हो गये हैं और दोनों देशों ने सात वर्ष के तनाव के बाद द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार की दिशा में क़दम उठाया है।

तेहरान और रियाज़ के संबंधों में विस्तार का एक चिन्ह दोनों देशों के अधिकारियों की एक दूसरे के देशों की डिप्लोमेटिक यात्रा है जो होती रहती है और ईरान और सऊदी अरब के अधिकारी क्षेत्रीय परिवर्तनों और द्विपक्षीय संबंधों के बारे में विचारों का आदान- प्रदान करते हैं।

दो महीने से कम की अवधि में दोनों देशों के अधिकारियों ने कई बार एक दूसरे के देशों की यात्रा की है।

ईरान के विदेशमंत्री सैयद अब्बास इराक़ची अभी पिछले महीने अक्तूबर के आरंभ में सऊदी अरब की यात्रा पर गये थे जहां उन्होंने इस देश के विदेशमंत्री के अलावा सऊदी क्राउंन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से भी भेंटवार्ता की थी।

अंतरराष्ट्रीय मामलों में ईरानी विदेशमंत्री के सहायक काज़िम ग़रीबाबादी भी अभी हाल ही में सऊदी अरब की यात्रा पर गये थे। इसी प्रकार ईरान के उपराष्ट्रपति मोहम्मद रज़ा आरिफ़ और विदेशमंत्री सैय्यद अब्बास इराक़ची भी अभी हाल ही में सऊदी अरब की यात्रा पर गये थे।

 इसी बीच इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान से टेलीफ़ोनी वार्ता की और इस वार्ता में उन्होंने सऊदी अरब के साथ द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार और क्षेत्रीय सहकारिता को अधिक व विस्तृत किये जाने पर बल दिया। सऊदी युवराज ने भी इस वार्ता में कहा कि ईरान और सऊदी अरब के संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं और हमें उम्मीद है कि दोनों देशों के संबंध समस्त क्षेत्रों में प्रगति करें और विस्तृत हों।

महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इस समय सऊदी अरब की आर्मड फ़ोर्सेज़ के चीफ़ की तेहरान यात्रा कई गुना अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है। क्योंकि दोनों देशों के राजनीतिक और डिप्लोमेटिक अधिकारियों के अलावा सैन्य अधिकारियों की एक दूसरे के देशों के यात्रा कम होती है। यह विषय इस बात का सूचक है कि ईरान और सऊदी अरब के संबंध महत्वपूर्ण दिशा में अग्रसर हैं और वे दूसरे देशों में घटने वाली घटनाओं या पश्चिम एशिया में जारी असुरक्षा की घटनाओं से प्रभावित नहीं हैं।

यह भेंटवार्ता ऐसे समय में हुई है जब डोनाल्ड ट्रंप एक बार फ़िर अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिये गये हैं। उल्लेखनीय है कि जब डोनाल्ड ट्रंप पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तो उस समय ईरान और सऊदी अरब के संबंध तनावपूर्ण थे।

 

 

संचार माध्यमों में इस बात का व्योरा प्रकाशित नहीं किया गया कि दोनों देशों की आर्मड फ़ोर्सेज़ के चीफ़ों के मध्य क्या वार्ता हुई परंतु कुछ संचार माध्यमों ने रिपोर्ट दी है कि ईरान की आर्डम फ़ोर्सज़ के चीफ़ मेजर मोहम्मद बाक़िरी ने इस भेंटवार्ता में एलान किया है कि ईरान चाहता है कि अगले साल फ़ार्स की खाड़ी में जो नौसैनिक सैन्य अभ्यास होने वाला है सऊदी अरब उसमें भाग ले यह भागीदारी चाहे भाग लेने वाले देश व पक्ष के रूप में हो या पर्यवेक्षक देश के रूप में।

इस संबंध में अंतिम बिन्दु यह है कि ईरान और सऊदी अरब के अधिकारियों की एक दूसरे के देशों की यात्रा और इसी प्रकार दोनों देशों के अधिकारियों के बयान इस बात के सूचक हैं कि दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार को पहली प्राथमिकता दे रखा है।

स्पष्ट है कि ईरान और सऊदी अरब के संबंधों में विस्तार और उसमें प्रगाढ़ता फ़िलिस्तीन संकट सहित क्षेत्र के दूसरे संकटों के समाधान में बहुत महत्वपूर्ण हैं।

इस्राईली लेखक एलन पापे ने स्पेन के एक समाचार पत्र "अलपाइस" के साथ वार्ता में कहा कि ज़ायोनी सरकार द्वारा ग़ज़्ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार व नस्ली सफ़ाया जारी है और मेरा मानना है कि फ़िलिस्तीन को ख़त्म करने के लिए इस्राईल के हाथ एक एतिहासिक अवसर लग गया है।

साथ ही एलन पापे ने बल देकर कहा कि तेलअवीव के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने का इस समय बेहतरीन मौक़ा है।

एलन पापे एक इस्राईली इतिहासकार और लेखक है। इस समय जो कुछ ग़ज़ा पट्टी में हो रहा है उसने शुक्रवार को इसे बयान करते हुए कहा कि ग़ज़ा पट्टी में इस्राईल की नीति केवल नस्ली सफ़ाया है, न केवल इस वजह से कि इस्राईली हमलों की भेंट चढ़ने वाले अधिकांश बच्चे और महिलायें हैं बल्कि उसकी वजह यह  है कि इस्राईली हमलों के पीछे एक विचारधारा व धारणा है जिसके अनुसार ग़ज़ा पट्टी के सारे लोगों और फ़िलिस्तीनियों का अंत कर दिया जाना चाहिये।

स्पेनिश समाचार पत्र "अलपाइस" के पत्रकार ने जब इस्राईली लेखक व इतिहासकार एलन पापे से पूछा कि आपने कुछ महीने पहले इस बात का प्रमाण पेश किया था कि ज़ायोनिज़्म की विचारधारा का अंत हो रहा है तो क्या आपका अब भी यही मानना है? इस सवाल के जवाब में उसने कहा कि जी बिल्कुल अभी भी मेरा वही मानना है। हां मैंने कई चीज़ों का उल्लेख किया है और वे एक साथ मिलकर ज़ायोनिज़्म विचारधारा का अंत कर सकती हैं और जब मैंने लेख लिखा था उस समय से लेकर अब तक उसमें वृद्धि हो गयी है।

7 अक्तूबर 2023 से इस्राईली सरकार ने पश्चिमी देशों के व्यापक समर्थन से ग़ज़ा पट्टी में और जार्डन नदी के पश्चिमी किनारे पर फ़िलिस्तीन के निहत्थे और मज़लूम लोगों का बड़े व व्यापक पैमाने पर नरसंहार आरंभ कर रखा है।

अंतिम आंकड़ों के अनुसार ग़ज़ा पट्टी पर ज़ायोनी सरकार के हमलों में अब तक 43 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और एक लाख सात हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हो चुके हैं।

ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति के तहत ज़ायोनी सरकार का ढांचा वर्ष 1917 में ही तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों व क्षेत्रों से यहूदियों व ज़ायोनियों को लाकर फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार ने अपने अवैध अस्तित्व की घोषणा कर दी। उस समय से लेकर आजतक विभिन्न बहानों से फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा यथावत जारी है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित कुछ देश इस्राईल की साम्राज्यवादी सरकार के भंग व अंत किये जाने और इसी प्रकार इस बात के इच्छुक हैं कि जो यहूदी व ज़ायोनी जहां से आये हैं वहीं वापस चले जायें।

मौलाना सैयद अशरफ़ अली ग़रवी ने भारत में अय्यामे फ़ातेमिया के अवसर पर आयोजित मजलिस ए अज़ा को संबोधित करते हुए कहा कि अहले बैत अ.स. के अय्यामे विलादत व शहदत पर दीनी खिदमत करने का बेहतरीन अवसर है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के दिन 13 जमादीुल अव्वल को मदरसा क़ुरआन व इतरत, कदम रसूल, चकिया में मजलिस-ए-अज़ा का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम की शुरुआत मौलवी अज़ीम ने तिलावत-ए-क़ुरआन से की और संचालन के कार्य मौलाना हसन अली साहब ने संभाले।

मौलाना मोहम्मद हैदर फैज़ी ने अपनी तक़रीर में मस्जिद अमजदिया, चक से प्रकाशित होने वाले रिसाला "नूरु सकलैन" की अहमियत और उपयोगिता की ओर इशारा किया।

इसके बाद मौलाना मोज़िज़ अब्बास ने हज़रत ख़दीजा अलकुबरा की वार्षिक रिपोर्ट पेश की। यह बात स्पष्ट है कि समाज कल्याण के उद्देश्य से सन्दूक़ हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा की स्थापना 8 वर्ष पहले हुई थी।

मदरसा क़ुरआन व इतरत के निदेशक मौलाना मोहम्मद अली गौहर ने शिक्षा और तालीम की अहमियत तथा आल-ए-मोहम्मद के ज्ञान के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए सन्दूक़ हज़रत ख़दीजा अल-कुबरा की स्थापना और इसके उद्देश्यों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि दुनिया न पहले हज़रत ख़दीजा के माल से बेनियाज़ थी और न आज बेनियाज़ है।

अंत में, आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अशरफ़ अली ग़रवी ने मजलिस-ए-अज़ा को संबोधित किया।

मौलाना सैयद अशरफ़ अली ग़ुरवी ने सदक़ा की अहमियत और इसके फ़ायदों पर रौशनी डालते हुए कहा कि अहल-ए-बैत अ.स. के जन्म और शहादत के दिन धार्मिक सेवाओं का बेहतरीन अवसर होते हैं।

इन दिनों में महफ़िलों और मजलिसों के साथ-साथ धार्मिक और समाज कल्याण की गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए ताकि सेवा-ए-खल्क़ के सिलसिले में अहल-ए-बैत अ.स. की सीरत पर अमल किया जा सके।

मौलाना सैयद अशरफ़ अली ग़रवी ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के फज़ाइल, मनाक़िब, अज़मत और मसइब का वर्णन करते हुए उनकी सीरत पर अमल करने की ताकीद की।

हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल.की मज़लूमा शहादत की याद में सालाना जलूस ए फातिमिया का आयोजन किया गया जिसकी अगुवाई हज़रत आयतुल्लाह हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफी ने की यह जुलूस केंद्रीय कार्यालय से शुरू होकर हरम हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.में समाप्त हुआ।

एक रिपोर्ट के अनुसार,हज़रत फातिमा ज़हरा स.ल.की मज़लूमा शहादत की याद में सालाना जलूस ए फातिमिया का आयोजन किया गया जिसकी अगुवाई हज़रत आयतुल्लाह हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफी ने की यह जुलूस केंद्रीय कार्यालय से शुरू होकर हरम हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.में समाप्त हुआ।

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अ.स और हज़रत इमामे ज़माना अ.ज की मुबारक ख़िदमत में उनकी जद्दा माजेदा की मज़लूमाना शहादत का पुर्सा पेश करने के लिए केंद्रीय कार्यालय नजफ़ अशरफ़ से हरम-ए-हज़रत अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.स) तक सालाना जुलूसे अज़ा-ए-फ़ातेमिया की क़ियादत मरज ए मुसलेमिन हज़रत आयतुल्लाह अल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने की जिसमें हौज़ा-ए-इल्मिया नजफ़ अशरफ़ के फ़ाज़िल उलमा-ए-कराम असातिज़ा, तुलबा-ए-कराम और मोमिनीन ने शिरकत फ़रमाई।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन

अज़ा ए फ़ातिमिया का अहया अहले बैत अ.स से वफादारी और हक़ीक़ी इस्लाम-ए-मोहम्मदी की तजदीद है।

मरज-ए-आली क़द्र ने फ़रमाया कि बिला शुब्हा अज़ा-ए-फ़ातेमिया का अहया अहले बैत अ.स से वफादारी और हक़ीक़ी इस्लाम-ए-मोहम्मदी की तजदीद है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ ने अपने वालिद स.अ. के दीन के दिफ़ा में मसाएब व आलाम को बर्दाश्त किया और इस राह में अज़ीम क़ुर्बानियां पेश कीं सैय्यदा ज़हरा स.अ तकामुल-ए-इंसानियत की अलामत हैं।

मरज-ए-आली क़द्र  ने फ़रमाया कि सैय्यदा ज़हरा स.अ इंसानियत के लिए एक अज़ीम मिसाल हैं और वो असली कमाल की तजसीम हैं जिसे अल्लाह तआला इंसान के लिए चाहता है।

उन्होंने तमाम मोमिनीन ख़ास तौर पर ख़वातीन को दावत दी कि वो उनकी सीरत को एक मिसाली बेटी, बीवी और मां के तौर पर अपनाएं।

दूसरी जानिब मरज-ए-आली क़द्र के फ़रज़ंद और केंद्रीय कार्यालय के निदेशक हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने अपने बयान में फ़रमाया कि जुलूसे अज़ा-ए-फ़ातेमिया सालाना अज़ा का सिलसिला है जिसके ज़रिए मोमेनीन ज़ुल्म और दहशतगर्दी के तमाम अशकाल से इन्कार और बरा'अत का इज़हार करते हैं।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन

उन्होंने मज़ीद ताकीद करते हुए फ़रमाया कि सैय्यदा ज़हरा स.अ पर हमला इस्लामी उम्मत पर आने वाले तमाम मसाएब की इब्तिदा और शुरुआत थी।

 

हुज्जतुल इस्लाम शेख अली नजफ़ी ने ज़ोर देते हुए कहा कि अज़ा-ए-फ़ातिमिया अहले बैत अ.स से वफ़ादारी और मोहब्बत का एक मुसलसल ऐलान है, और ये इस बात की तस्दीक़ है कि हक़ व अदल के लिए क़ुर्बानी का सिलसिला जारी रहेगा, जिसके दिफ़ा में हज़रत फ़ातिमा स.अ ने अज़ीम क़ुर्बानियां पेश कीं हैं।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा अलहाज़ हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी के नेतृत्व में जुलूस ए अज़ा ए फ़ातेमिया का आयोजन

वाज़ेह रहे कि ये सालाना जुलूस-ए-अज़ा केंद्रीय कार्यालय से शुरू होकर हरम-ए-अमीरुल मोमिनीन अ.स पर इख़्तेताम पज़ीर हुआ, जहां मजलिस-ए-अज़ा का एहतेमाम किया गया और जुलूस के मुशारेकीन ने हज़रत अमीरुल मोमिनीन अ.स .की ख़िदमत में ताज़ियत और पुर्सा पेश किया।

 

 

 

 

 

मशहूर इतिहासकार ज़हबी ने अपनी किताब लिसानुल मीज़ान की पहली जिल्द पेज न. 268 में अहमद नाम के विषय पर लिखते हुए एक रिवायत पूरी सनद के साथ ज़िक्र करने के बाद कहते हैं कि मोहम्मद इब्ने अहमद हम्माद कूफ़ी जिनका शुमार अहले सुन्नत के बड़े मोहद्दिस में होता है बयान करते हैं कि बिना किसी शक के, उमर ने अपने पैरों से फ़ातिमा स.अ.की शान में ऐसी गुस्ताख़ी की थी कि मोहसिन शहीद हो गए।

आज बहुत से मुसलमान हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की शहादत के बारे में तरह तरह की बातें करते हैं कोई बीमारी का ज़िक्र करता है तो कोई किसी और चीज़ का, इसी बात के चलते हम इस लेख में हज़रत ज़हरा स.अ. की शहादत को अहले सुन्नत के बड़े और ज्ञानी इतिहासकारों जैसे इब्ने क़ुतैबा, मोहम्मद इब्ने अब्दुल करीम शहरिस्तानी, इमाम शम्सुद्दीन ज़हबी, उमर रज़ा कोहाला, अहमद याक़ूबी, अहमद इब्ने यहया बेलाज़री, इब्ने अबिल हदीद, शहाबुद्दीन अहमद जो इब्ने अब्द अंदलुसी बुज़ुर्ग और अपने दौर के सबसे मशहूर और विशेष इतिहासकारों की किताबों से बयान कर रहे हैं।

 पैग़म्बर स.अ. की वफ़ात के बाद उनकी बेटी हज़रत ज़हरा स.अ. पर ढ़हाए जाने वाले बेशुमार और बेहिसाब ज़ुल्म और फिर उन्हीं ज़ुल्म की वजह से आपकी शहादत इस्लामी इतिहास की एक ऐसी हक़ीक़त है जिसका इंकार कर पाना ना मुमकिन है,

इसलिए कि इतिहास गवाह है कि बहुत कोशिशें हुईं और बहुत मेहनत की गई, क़लम ख़रीदे गए और केवल यही नहीं बल्कि इंसाफ़ पसंद इतिहासकारों पर बहुत सारी हक़ीक़तें छिपाने के लिए दबाव भी बनाया गया, लेकिन ज़ुल्म, वह भी इस्मत के घराने की नूरानी ख़ातून पर छिप भी कैसे सकता था, इसीलिए कुछ इंसाफ़ पसंद इतिहासकार और उलमा आगे बढ़े और उन्होंने अपनी किताबों में ज़ुल्म की उस पूरी दास्तान को लिखा जिसे आज भी बहुत से मुसलमान भुलाए बैठे हुए हैं, और इन इतिहासकारों ने कुछ ऐसे हाकिमों की सच्चाई को ज़ाहिर किया जो ख़ुद को पैग़म्बर स.अ. का जानशीन बताते हुए उन्हीं के ख़ानदान पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ रहे थे,

इन इतिहासकारों ने बिना किसी कट्टरता के अहले सुन्नत के इतने अहम और मोतबर स्रोत द्वारा हज़रत ज़हरा पर होने वाले ज़ुल्म जिसके नतीजे में आपकी शहादत हुई उसे नक़्ल किया है जिसका इंकार कर पाना आज की जवान नस्ल और पढ़े लिखे और इंसाफ़ पसंद मुसलमान के लिए मुमकिन नहीं है।

अबू मोहम्मद अब्दुल्लाह इब्ने मुस्लिम इब्ने क़ुतैब दैनवरी जो इब्ने क़ुतैबा के नाम से मशहूर थे और जिनकी वफ़ात 276 हिजरी में हुई थी, उन्होंने अपनी किताब अल-इमामह वस सियासह की पहली जिल्द के पेज न. 12 (तीसरा एडीशन, जिसकी दोनें जिल्दें एक ही किताब में छपी थीं) में अब्दुल्लाह इब्ने अब्दुर्रहमान से नक़्ल करते हुए लिखते हैं कि अबू बक्र ने जिन लोगों ने उनकी बैअत से इंकार किया था और इमाम अली अ.स. की पनाह में चले गए थे उनका पता लगवाया और उमर को उनके पास भेजा, उन सभी लोगों ने घर से बाहर निकलमे से मना कर दिया, फिर उमर ने आग और लकड़ी लाने का हुक्म दिया और इमाम अली अ.स. के घर में पनाह लेने वालों को पुकार कर कहा, उस ज़ात की क़सम जिसके क़ब्ज़े में उमर की जान है, तुम सब घर से बाहर निकल आओ वरना मैं इस घर को घर वालों समेत जला दूंगा, वहीं मौजूद किसी ने उमर की इस बात को सुन कर कहा ऐ अबू हफ़्स, क्या तुम्हें मालूम नहीं इस घर में फ़ातिमा (स.अ.) हैं, उमर ने कहा मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, मैं फिर भी आग लगा दूंगा।

उसी किताब की पहली जिल्द के पेज न. 13 पर रिवायत की सनद के साथ नक़्ल किया है कि, इस हादसे के कुछ दिन बाद उमर ने अबू बक्र से कहा, चलो फ़ातिमा (स.अ.) के पास चलें क्योंकि हमने उन्हें नाराज़ किया किया है,

यह दोनों आपसी मशविरे के बाद शहज़ादी की चौखट पर पहुंचे, लाख कोशिशें कर लीं लेकिन शहज़ादी ने इन लोगों से मुलाक़ात करने से मना कर दिया, फिर मजबूर हो कर इमाम अली अ.स. से कहा (ताकि वह इमाम अली अ.स. के कहने से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. उनसे बात करें, इस बात से यह समझा जा सकता है कि यह दोनों जानते थे कि अगर शहज़ादी नाराज़ रहीं तो आख़ेरत तो बाद में इनकी दुनिया भी बर्बाद है)

इमाम अली अ.स. के कहने के बाद शहज़ादी ने इजाज़त तो दी लेकिन जैसे ही यह लोग शहज़ादी की बारगाह में पहुंचे शहज़ादी ने मुंह मोड़ लिया, और फिर इन दोनों ने सलाम किया लेकिन शहज़ादी ने सलाम का जवाब नहीं दिया, फिर अबू बक्र ने कहा क्या आप इसलिए नाराज़ हैं कि हमने आपकी मीरास और आपके शौहर का हक़ छीन लिया, शहज़ादी ने जवाब दिया कि ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे घर वाले तुम्हारी मीरास पाएं और हम पैग़म्बर स.अ. की मीरास से महरूम रहें? फिर आपने फ़रमाया, अगर मैं पैग़म्बर स.अ. से नक़्ल होने वाली हदीस सुनाऊं तब मान लोगे...., अबू बक्र ने कहा हां, फिर आपने फ़रमाया, तुम दोनों को अल्लाह की क़सम, सच बताना, क्या तुम लोगों ने पैग़म्बर स.अ. से नहीं सुना कि फ़ातिमा (स.अ.) की ख़ुशी मेरी ख़ुशी है, और फ़ातिमा (स.अ.) की नाराज़गी मेरी नाराज़गी है, जिसने फ़ातिमा (स.अ.) को राज़ी कर लिया उसने मुझे राज़ी कर लिया, जिसने फ़ातिमा (स.अ.) को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया?

उमर और अबू बक्र दोनों ने कहा, हां हमने यह हदीस पैग़म्बर (स.अ.) से सुनी है, फिर शहज़ादी ने फ़रमाया, मैं अल्लाह और उसके फ़रिश्तों को गवाह बना कर कहती हूं कि तुम दोनों ने मुझे नाराज़ किया और मैं तुम दोनों से राज़ी नहीं हूं, और जब पैग़म्बर स.अ. से मुलाक़ात करूंगी तुम दोनों की शिकायत करूंगी, यह सुनते ही अबू बक्र ने रोना शुरू कर दिया जबकि शहज़ादी यह कह रही थीं कि अल्लाह की क़सम ऐ अबू बक्र तेरे लिए हर नमाज़ में बद दुआ करूंगी।

मशहूर इतिहासकार ज़हबी ने अपनी किताब लिसानुल मीज़ान की पहली जिल्द पेज न. 268 में अहमद नाम के विषय पर लिखते हुए एक रिवायत पूरी सनद के साथ ज़िक्र करने के बाद कहते हैं कि मोहम्मद इब्ने अहमद हम्माद कूफ़ी (जिनका शुमार अहले सुन्नत के बड़े मोहद्दिस में होता है) बयान करते हैं कि बिना किसी शक के, उमर ने अपने पैरों से फ़ातिमा (स.अ.) की शान में ऐसी गुस्ताख़ी की थी कि मोहसिन शहीद हो गए थे। (अदब की वजह से मुझ में हिम्मत नहीं कि वह शब्द लिखूं जिसका इस्तेमाल किया गया है बाक़ी मतलब तो आप ख़ुद समझ गए होंगे)

उमर रज़ा कोहाला हालिया अहले सुन्नत के उलमा में से हैं, जिन्होंने अपनी किताब आलामुन निसा के पांचवे एडीशन (1404 हिजरी) में उसी रिवायत को सनद के साथ ज़िक्र किया है जिसे इब्ने क़ुतैबा ने भी नक़्ल किया है जिसका ऊपर ज़िक्र किया जा चुका है।

याक़ूबी अपनी इतिहास की किताब जो तारीख़े याक़ूबी के नाम से मशहूर है उसकी दूसरी जिल्द पेज न. 137 (बैरूत एडीशन) में अबू बक्र की हुकूमत के हालात के विषय पर चर्चा करते हुए लिखा है कि जिस समय अबू बक्र ज़िंदगी के आख़िरी समय में बीमार पड़े तो अब्दुर रहमान इब्ने औफ़ देखने के लिए गए और पूछा, ऐ पैग़म्बर (स.अ.) के ख़लीफ़ा कैसी तबीयत है तो उन्होंने जवाब दिया, मुझे पूरी ज़िंदगी में किसी चीज़ का पछतावा नहीं है, लेकिन तीन चीज़ें ऐसी हैं जिन पर अफ़सोस कर रहा हूं कि ऐ काश ऐसा न किया होता...., पूछने पर बताया कि ऐ काश ख़िलाफ़त की मसनद पर न बैठा होता, ऐ काश फ़ातिमा (स.अ.) के घर की तलाशी न हुई होती, ऐ काश फ़ातिमा (स.अ.) के घर में आग न लगाई होती..., चाहे वह मुझसे जंग का ऐलान ही क्यों न कर देतीं।

अहमद इब्ने यहया जो बेलाज़री के नाम से मशहूर हैं और जिनकी वफ़ात 279 हिजरी में हुई है वह अपनी किताब अन्साबुल अशराफ़ (मिस्र एडीशन) की पहली जिल्द के पेज न. 586 पर सक़ीफ़ा के मामले पर बहस करते हुए लिखते हैं कि, अबू बक्र ने इमाम अली अ.स. से बैअत लेने के लिए कुछ लोगों को भेजा, लेकिन इमाम अली अ.स. ने बैअत नहीं की, इसके बाद उमर आग के शोले लेकर इमाम अली अ.स. के घर की तरफ़ गया, दरवाज़े के पीछे हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) मौजूद थीं उन्होंने कहा ऐ उमर क्या तेरा इरादा मेरे घर को आग लगाने का है? उमर ने जवाब दिया, हां, बेलाज़री लिखते हैं कि उमर ने शहज़ादी से यह जुमला कहा कि मैं अपने इस काम को अंजाम देने के लिए उतना ही मज़बूत ईमान और अक़ीदा रखता हूं जितना आपके वालिद अपने लाए हुए दीन पर अक़ीदा और ईमान रखते थे।

बेलाज़री उसी किताब के पेज न. 587 में इब्ने अब्बास से रिवायत नक़्ल करते हैं कि जिस समय इमाम अली अ.स. ने बैअत करने से इंकार कर दिया, अबू बक्र ने उमर को हुक्म दिया कि जा कर अली (अ.स.) को घसीटते हुए मेरे पास लाओ...., उमर पहुंचा और फिर इमाम अली अ.स. से कुछ बातचीत हुई, फिर इमाम अली अ.स. ने एक जुमला उमर से कहा कि ख़ुदा की क़सम तुमको अबू बक्र के बाद कल हुकूमत की लालच यहां तक ख़ींच कर लाई है।

इब्ने अबिल हदीद मोतज़ली ने अपनी शरह की बीसवीं जिल्द पेज 16 और 17 में लिखते हैं कि जो लोग यह कहते हैं कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के घर पर हमला कर के बैअत का सवाल इसलिए किया गया ताकि मुसलमानों में मतभेद और फूट न पैदा हो और इस्लाम का निज़ाम महफ़ूज़ रहे, क्योंकि अगर बैअत न ली जाती तो मुसलमान दीन से पलट जाते....., इब्ने अबिल हदीद कहते हैं कि उन लोगों को यह बात क्यों समझ में नहीं आती कि जंगे जमल में भी तो हज़रत आएशा मुसलमानों के हाकिम को ख़िलाफ़ जंग करने क्यों आईं थीं..... ?? लेकिन उसके बाद भी इमाम अली अ.स. ने हुक्म दिया कि उनको पूरे सम्मान के साथ घर वापस पहुंचाओ....।

तो अब यहां मेरा सारे मुसलमानों से सवाल है कि अगर इस्लाम और दीन की हिफ़ाज़त के चलते और मुसलमानों में फूट न पड़ने को दलील बनाते हुए किसी पर जलता दरवाज़ा ढ़केलना सही हो सकता है उसके घर में आग लगाना सही हो सकता है, उस घर में रहने वाली एक ख़ातून को जलते दरवाज़े और दीवार के बीच में दबाया जा सकता है, उसके बाज़ू पर तलवार के ग़िलाफ़ से वार किया जा सकता है, वग़ैरगह वग़ैरह तो क्या यही काम उम्मत को आपसी मतभेद और आपसी फूट से बचाने और उनको दीने इस्लाम से वापस पिछले दीन पर पलटने से रोकने के लिए जंगे जमल में हज़रत आएशा के साथ मुसलमानों के ख़लीफ़ा नहीं कर सकते थे?

लेकिन मुसलमानों इतिहास पढ़ो तो इस नतीजे पर पहुंचोगे कि मुसलमानों के ख़लीफ़ा की शान होती क्या है... दो किरदार आपके सामने हैं, दोनों में मुसलमानों ही किताबों के हिसाब से मुसलमानों के ख़लीफ़ा और दूसरी तरफ़ उनकी बैअत न करने वाले लोग, एक तरफ़ पैग़म्बर स.अ. की बेटी और एक तरफ़ पैग़म्बर स.अ. की बीवी, लेकिन फ़र्क़ देखिए मुसलमानों के पहले ख़लीफ़ा ने दूसरे ख़लीफ़ा के साथ मिल कर पैग़म्बर स.अ. की बेटी के घर में आग लगाई, पैग़म्बर स.अ. की बेटी को ज़ख़्मी किया, पैग़म्बर स.अ. के नवासे को दुनिया में आने से पहले ही शहीद कर दिया, पैग़म्बर स.अ. की बेटी की आंखों के सामने उनके शौहर को खींच कर और घसीट कर ले जाया गया..... और दूसरी तरफ़ पूरी कोशिश की गई कि पैग़म्बर स.अ. की बीवी मुसलमानों के ख़लीफ़ा की बैअत न करने के बावजूद जंग में न आएं लेकिन वह आईं, लेकिन उसके बावजूद चौथे ख़लीफ़ा ने उन्हें पूरे सम्मान के साथ घर वापस भेजवाया.....

कोई भी अक़्लमंद और इंसाफ़ पसंद इंसान इस बात को क़ुबूल नहीं करेगा कि किसी की भी नामूस के साथ ऐसा सुलूक किया जाए..... लेकिन उसके बावजूद पैग़म्बर स.अ. की बेटी के साथ वह हुआ जिसे बयान करते हुए ज़ुबान लरज़ती है और जिसे लिखते हुए हाथ कांपते हैं।

शहाबुद्दीन अहमद जो इब्ने अब्दे रब अंदलुसी के नाम से मशहूर हैं अपनी किताब अल अक़्दुल फ़रीद की चौथी जिल्द के पेज न. 260 पर लिखते हैं कि जिस समय अबू बक्र ने उमर को यह कर बैअत के लिए भेजा कि अगर वह लोग बाहर न आए तो उनसे जंग करना उस समय इमाम अली अ.स., अब्बास और ज़ुबैर सभी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के घर में मौजूद थे, उमर हाथ में आग ले कर हज़रत ज़हरा स.अ. के घर की तरफ़ बढ़ा, दरवाज़े पर हज़रत ज़हरा मौजूद थीं, शहज़ादी ने कहा ऐ ख़त्ताब के बेटे, मेरा घर जलाने आए हो? उमर ने कहा अगर अबू बक्र की बैअत नहीं की तो आग लगा दूंगा।

अहले सुन्नत के इतने बड़े बड़े आलिमों और इतिहासकारों की इस चर्चा के बाद अब सब के लिए बिल्कुल साफ़ हो गया होगा कि शहज़ादी के घर में आग किसने लगाई

क़ुम अल-मुक़द्देसा के इमाम जुमआ ने अपने जुमा की नमाज के खुत्बे में हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के व्यक्तित्व को महिलाओं और युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श बताया, उन्होंने कहा कि उनका जीवन इबादत, शुद्धता और बलिदान का एक आदर्श उदाहरण है।

क़ुम अल-मुक़द्देसा के इमाम जुमआ ने अपने जुमा की नमाज के खुत्बे में हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के व्यक्तित्व को महिलाओं और युवा पीढ़ी के लिए एक आदर्श बताया, उन्होंने कहा कि उनका जीवन इबादत, शुद्धता और बलिदान का एक आदर्श उदाहरण है।

उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रही जंग की ओर इशारा करते हुए कहा, ईरान सरकार को सोशल मीडिया को लेकर उचित कानून बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर इस वक्त एक बड़ी जंग चल रही है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह पहले इसे एक सिस्टम के तहत लाए और फिर सुधारात्मक कदम उठाए।

उन्होंने अमेरिका की नीतियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पश्चिमी शक्तियां दुनिया को प्रभुत्वशाली और अधीन में बांटती हैं, लेकिन ईरान को किसी की गुलामी स्वीकार नहीं है। उन्होंने हिजबुल्लाह के नेता शहीद हसन नसरुल्लाह का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी शहादत के बावजूद प्रतिरोध की प्रक्रिया तेज हो गई है।

आयतुल्लाह बुशहरी ने सरकार से अगले साल का बजट बिना घाटे के तैयार करने और सार्वजनिक मुद्दों, विशेषकर मुद्रास्फीति और अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने को कहा।

उन्होंने मआद (प्रलय के दिन) पर विश्वास के महत्व को समझाया और कहा कि यह विश्वास व्यक्ति को जिम्मेदारी का एहसास कराता है और उसे बेहतर जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है।

उन्होंने महिलाओं की सेवाओं की सराहना करते हुए कहा कि लेबनान की मदद के लिए चलाए गए आंदोलन और प्रतिरोध में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जो सामाजिक समरसता का सबसे अच्छा उदाहरण है।

 

 

 

 

 

हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सदीकी ने वली ए फकीह को इमाम ज़माना अ.ज. के सबसे निकटतम व्यक्ति बताया जो सामाजिक भटकाव को समाप्त करते हैं। इस्लामी क्रांति के नेता, इमाम ख़ामेनेई, अल्लाह की ओर से उम्मत के लिए एक महान खजाना हैं, जिनकी सेहत और लंबी उम्र के लिए दुआएं करनी चाहिए।

एक रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन काज़िम सदीकी ने तेहरान में नमाज़-ए-जुमा के खुतबे में वली-ए-फकीह को इमाम ज़माना अ.ज. के सबसे निकटतम व्यक्ति बताया, जो सामाजिक भटकावों का अंत करते हैं।

उन्होंने इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई, को अल्लाह की ओर से उम्मत के लिए एक महान खजाना बताया और उनकी सेहत व लंबी उम्र के लिए दुआ करने की अपील की हैं।

हुज्जतुल इस्लाम सदीकी ने इस्लामी क्रांति को 'फातिमी क्रांति' करार देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य इस्लाम को किताबों से निकालकर वास्तविक जीवन में लागू करना था उन्होंने शहीदों की कुर्बानियों को इस्लामी मूल्यों के पुनर्जागरण के लिए महत्वपूर्ण बताया।

जुमा के खुतबे के दौरान उन्होंने प्रतिरोध के मोर्चे को इस्लाम और कुफ्र की जंग का अग्रिम मोर्चा बताया और कहा कि वर्तमान युद्ध धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य, तथा शराफत और शरारत के बीच है, न कि केवल इज़राइल और लेबनान या ग़ाज़ा के बीच।

तेहरान के अस्थायी इमामे जुमा ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स. के व्यक्तित्व का उल्लेख करते हुए उन्हें विलायत की रक्षक और त्याग एवं बलिदान का प्रतीक बताया उनके अनुसार, हज़रत फ़ातिमा स. ने अपनी जान और अपने बेटे की कुर्बानी देकर विलायत की रक्षा की।

रहबर-ए-इंक़लाब इस्लामी ने हज़रत ज़हरा स.ल. की ज़िंदगी को अनुपम बताया और कहा कि इमाम ख़ुमैनी रह.ने फरमाया कि अगर हज़रत फ़ातिमा स. पुरुष होतीं, तो वह इमाम बनतीं।

उन्होंने अमेरिका को लूटपाट प्रभुत्व और विद्रोह का केंद्र बताते हुए कहा कि उसके राजनीतिक तंत्र में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स में कोई अंतर नहीं है। अमेरिकी इज़राइल समर्थक नीतियों की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति की कैबिनेट ईरान के दुश्मनों से भरी हुई है।

खतीब-ए-जुमा ने इस्लामी देशों के नेताओं द्वारा फिलिस्तीन का समर्थन न करने पर अफसोस व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि दो-राज्य समाधान इज़राइल के अवैध कब्जे को स्वीकार करने के समान है और दुआ की कि अल्लाह मजलूम फिलिस्तीनियों और लेबनानियों के खून का बदला ले।

उन्होंने तक़वा को नेकियों की स्वीकार्यता की बुनियाद बताया और महिलाओं से पवित्रता और हिजाब को अपनाए रखने की सलाह दी।