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आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी ने (जबल आमुल) नामक महान कॉन्फ्रेंस के अवसर पर अपने संदेश में कहा कि ईरान हमेशा प्रतिरोधी मोर्चे (मुक़ावेमत) के साथ खड़ा है और उसका समर्थन करता रहेगा ईरान की सशस्त्र सेनाएं पूरी ताकत के साथ इसराइल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं और किसी भी आक्रामकता का कड़ा जवाब देगा।

एक रिपोर्ट के अनुसार, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी ने "जबल आमुल" कॉन्फ्रेंस में शामिल उलमा और राजनीतिक एवं शैक्षिक हस्तियों को संबोधित करते हुए एक व्यापक संदेश दिया जिसमें उलमा के ऐतिहासिक महत्व और उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि इस्लाम के इतिहास में उलमा की भूमिका हमेशा से प्रमुख और प्रभावशाली रही है। एक धार्मिक, ईमानदार और संघर्षशील कारक वह होता है जिसने हमेशा धर्म की रक्षा की है विशेष रूप से जबल आमुल के उलमा का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है जिन्होंने शेख बहाई, शहीद अव्वल, शहीद सानी, मुहकिक करकी और अल्लामा अमीनी जैसी महान हस्तियों को जन्म दिया।

हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने कहा कि आज के दौर में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हसन नसरुल्लाह जैसे संघर्षशील आलिम ने प्रतिरोध (मुकावेमत) में एक नया अध्याय लिखा है, जिन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और साहस के साथ इसराइल के बुरे इरादों को नाकाम किया और स्वतंत्रता प्रेमियों के लिए नई राहें खोलीं।

उन्होंने आगे कहा कि ईरान की सरकार और जनता प्रतिरोधी मोर्चे के साथ खड़ी हैं और अपनी सशस्त्र सेनाओं के माध्यम से इसराइल की सभी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए हैं उन्होंने इस विश्वास का इज़हार किया कि रहबर ए मोज़्ज़म इंक़लाब की रहनुमाई में यह प्रतिरोधी मोर्चा विजय प्राप्त करेगा।

आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने ग़ाज़ा, लेबनान, सीरिया, इराक और ईरान के सभी शहीदों विशेष रूप से सैयद ए मुकावमत सैयद हसन नसरुल्लाह और सैयद हाशिम सफीउद्दीन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस कॉन्फ्रेंस के आयोजकों का भी धन्यवाद किया।

 

 

 

 

 

इस्लामी क्रांति के नेता ने हमास आंदोलन और हिज़्बुल्लाह के मज़बूत और शक्तिशाली प्रतिरोध का ज़िक्र करते हुए कहा कि ईश्वर की मदद के वादों और पिछले दशकों में हिज़्बुल्लाह और हमास के सफल अनुभवों के आधार पर ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में हालिया संघर्षों में भी निश्चित रूप से प्रतिरोधी मोर्चे की जीत होगी।

इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनई ने गुरुवार की सुबह विशेषज्ञों की एसेंबली के सदस्यों के मुलाक़ात में कहा कि ग़ज़ा और लेबनान में जो अपराध किए जा रहे हैं, उसमें अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों के हाथ ख़ून में डूबे हुए हैं। उन्होंने आगे कहाः दुनिया और क्षेत्र देखेंगे कि एक दिन इन मुजाहिदीन के हाथों ज़ायोनी शासन की स्पष्ट हार होगी।

सुप्रीम लीडर ने कहा कि पिछले 4 दशकों के दौरान, हिज़्बुल्लाह ने विभिन्न चरणों में बेरूत, सेदा और सूर और आख़िरकार दक्षिणी लेबनान से पूरी तरह पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और इस देश के गांवों और शहरों और पहाड़ियों को इस अशुभ शासन के वजूद से पाक कर दिया। 

इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि विभिन्न प्रकार के सामरिक, प्रचारिक और आर्थिक हथियारों से लैस और अमरीकी राष्ट्रपतियों जैसे विश्व के बड़े शैतानों का समर्थन प्राप्त दुश्मन को हराने वाले हिज़्बुल्लाह की शक्ति आश्चर्यचकित करने वाली है, जो दिन ब दिन बढ़ रही है और आज एक छोटे से समूह से एक बड़ी शक्ति में बदल चुकी है। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध का भी यही अनुभव रहा है। वह भी 1388 शम्सी हिजरी से आज तक 9 बार ज़ायोनी शासन से टकरा चुका है और हर बार ज़ायोनी शासन पर हावी रहा है।

आयतुल्लाह ख़ामेनई ने हिज़्बुल्लाह को मज़बूत बताते हुए कहाः सैयद हसन नसरुल्लाह और सैयद सफ़ीद्दीन जैसी महान हस्तियों के अभाव के बावजूद, हिज़्बुल्लाह संगठन भरपूर आत्मविश्वास से दुश्मन से लोहा ले रहा है और दुश्मन उसे हराने में न सक्षम था और भविष्य में भी नहीं होगा।

अपने भाषण के एक अन्य हिस्से में सुप्रीम लीडर ने महान प्ररिरोधकर्ता सैयद हसन नसरुल्लाह की शहादत के चालीस दिन बीत जाने के अवसर पर उन्हें और शहीद हनिया, सफ़ियुद्दीन, सिनवर और नीलफ़रोशान जैसे प्रतिरोध के महान कमांडरों को याद करते हुए कहाः इन शहीदों ने इस्लाम और प्रतिरोध मोर्चे की शक्ति और गौरव कई गुना बढ़ा दिया।

हिज़्बुल्लाह को शहीद नसरुल्लाह की यादगार बताते हुए उन्होंने कहाः प्रतिरोध के लीडर के साहस, समझ, धैर्य और अजीब विश्वास के कारण, हिज़्बुल्लाह ने ऐसा ज़बरदस्त विकास किया है कि विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस होने के बावजूद दुश्मन उस पर जीत हासिल नहीं कर सका और इस आश्चर्यचकित शक्ति पर जीत हासिल कर भी नहीं पाएगा।

इस्लामी क्रांति के नेता का कहना था कि इस युद्ध में भी फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध की जीत हुई है। क्योंकि इस युद्ध में ज़ायोनी शासन का लक्ष्य, हमास को जड़ से उखाड़ फेंकना था, लेकिन वह दसियों हज़ार आम नागरिकों के नरसंहार और प्रतिरोध और हमास के नेताओं को शहीद करने और दुनिया वालों के सामने अपना बदसूरत, घृणित और निंदीय चेहरा पेश करने के बावजूद, इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका। हमास आज भी प्रतिरोध कर रहा है, जिसका मतलब है कि ज़ायोनी शासन को हार का मुंह देखना पड़ा है।

क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने इज़राइल की आक्रामकता और इस्लामी देशों के खिलाफ उसकी नापाक योजनाओं की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इज़राइल का उद्देश्य केवल फ़िलस्तीन पर नहीं, बल्कि पूरे इस्लामी दुनिया पर हुकूमत स्थापित करना है और उसके खिलाफ प्रतिरोध ही उम्मत ए मुस्लिम की प्रतिष्ठा की गारंटी है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने शुक्रवार के ख़ुतबे में इज़राइली आक्रामकता इस्लामी देशों के खिलाफ उसकी नापाक योजनाओं और वैश्विक ताकतों द्वारा इज़राइल को दी जा रही समर्थन की कड़ी आलोचना की।

उन्होंने कहा कि इज़राइल न केवल एक अवैध राज्य है बल्कि एक सैन्य अड्डा है जो पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस्लामी दुनिया के खिलाफ षड्यंत्र करता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह के चालीसवें (चेहलुम) के अवसर पर उनकी कुर्बानियों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सैयद हसन नसरुल्लाह ने इस्लामी क्रांति से प्रेरित होकर क्षेत्र में प्रतिरोध की नींव रखी और अरब देशों को नए संकल्प के साथ मुकाबले की राह दिखाई।

उन्होंने पिछले सात दशकों में इज़राइल के खिलाफ अरब देशों की असफलताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इन असफलताओं का कारण इस्लामी दुनिया में एकता की कमी और पश्चिमी ताकतों द्वारा इज़राइल को निरंतर समर्थन प्रदान करना है।

उन्होंने कहा कि हर बार जब अरब देशों ने इज़राइल का सामना करने की कोशिश की तो वैश्विक शक्तियों ने इज़राइल का साथ दिया जिससे अरब दुनिया को हार का सामना करना पड़ा।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने वैश्विक समुदाय विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद की आलोचना करते हुए कहा कि इज़राइल ने कभी भी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रस्तावों को महत्व नहीं दिया और अपने अपराधों को निर्भीक होकर जारी रखा। उन्होंने कहा कि इज़राइल का असली उद्देश्य इस्लामी दुनिया को पीछे रखना और उसके आंतरिक मामलों में विघटन उत्पन्न करना है।

उन्होंने उम्मत ए मुस्लिम को फ़िलस्तीन के मुद्दे पर एकजुट रहने की सलाह दी और इस्लामी देशों को चेतावनी दी कि इज़राइल का उद्देश्य केवल फ़िलस्तीन पर कब्जा करना नहीं है बल्कि पूरे इस्लामी जगत पर अपनी सत्ता स्थापित करना है।

उन्होंने कहा कि प्रतिरोध और इस्लामी एकता ही वे एकमात्र रास्ते हैं जिनसे इस्लामी दुनिया अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता को सुरक्षित रख सकती है।

क़ुम के इमाम जुमआ ने इस्लामी प्रतिरोध विशेष रूप से हिज़बुल्लाह और हमास जैसी संगठनों के समर्थन पर जोर देते हुए कहा कि ये प्रतिरोधी शक्तियां उम्मत-ए-मुस्लिम की बचे रहने और उसके सम्मान की प्रतीक हैं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि हिज़बुल्लाह और अन्य प्रतिरोधी आंदोलन इज़राइल के सामने मजबूती से खड़े रहेंगे और इस्लामी दुनिया के अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

अंत में उन्होंने हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की जयंती और नर्सिंग डे के अवसर पर ईरान, लेबनान और फ़लस्तीन के सभी नर्सों को बधाई दी उन्होंने जनता से प्रतिरोधी मोर्चे का समर्थन जारी रखने और पीड़ित फ़िलस्तीनी लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति और सहायता बढ़ाने की अपील की हैं।

 

इजरायली संसद ने गुरुवार को एक ऐसे अजीब कानून को मंजूरी दे दी, जो कब्जे वाले क्षेत्रों से इजरायलियों के खिलाफ हमलों में भाग लेने वाले फिलिस्तीनियों के परिवार के सदस्यों के निष्कासन और निर्वासन की अनुमति देता है।

इस बिल को दूसरे और तीसरे रीडिंग में 61 वोटों के साथ मंजूरी दे दी गई, जबकि विपक्ष में 41 वोट पड़े, और अब यह एक कानून बन गया है जो ज़ायोनी शासन के अरब नागरिकों और पूर्वी यरूशलेम मे रहने वाले फिलिस्तीनोय को व्यापक रूप से लक्षित करता है।

इस कानून मे यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि परिवारों या रिश्तेदारों को कहां निर्वासित किया जाएगा, लेकिन इजरायली मीडिया के अनुसार, गाजा निर्वासित लोगों के गंतव्यों में से एक है।

नया कानून आंतरिक मंत्री को यह निर्धारित करने का अधिकार भी देता है कि परिवार के किस सदस्य को निर्वासित किया जाएगा यदि सबूत प्रस्तुत किया जाता है कि परिवार के किसी सदस्य को हमले से पहले पता था या उसका समर्थन किया गया था।

संसद के बयान में घोषणा की गई कि इस कानून के अनुसार, निर्वासन की अवधि इजरायली नागरिकता वाले व्यक्ति के लिए 7 से 15 साल के बीच और कानूनी निवास परमिट वाले व्यक्ति के लिए 10 से 20 साल के बीच होगी।

इसके अलावा आज, केंसेट ने एक और कानून पारित किया, जिसके अनुसार चौदह वर्ष से कम उम्र के फ़िलिस्तीनी बच्चों को, जिसे इज़राइल आतंकवाद या आतंकवादी गतिविधियों कहता है, उससे संबंधित हत्या के अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो उनकी गिरफ्तारी की अनुमति है और कानूनी है।

 

 

 

 

 

आयरिश अधिकारियों ने इस देश में फ़िलिस्तीनी राजदूत की तैनाती पर सहमति जताई है।

आयरलैंड के सरकारी अधिकारियों ने मंगलवार 5 नवंबर को एलान किया है कि इस समय जीलान वह्बे अब्दुल मजीद आयरलैंड में फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष हैं और अब वह नये पद पर आसीन होंगे।

समाचार एजेन्सी मेहर के हवाले से बताया है कि पिछले महीने आयरलैंड ने कुछ यूरोपीय देशों के साथ फ़िलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दी।

फ़िलिस्तीन ने भी अक्तूबर महीने में एलान किया है कि वह आयरलैंड के साथ अपने डिप्लोमैटिक संबंधों को प्रतिनिधिमंडल की सतह से दूतावास की सतह पर ले जाना चाहता है और अब उसने अपना एक राजदूत आयरलैंड के लिए चुना है।

आयरलैंड गणराज्य उन गिने- चुने यूरोपीय देशों में से है जिसे ज़ायोनी सेना द्वारा फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के नस्ली सफ़ाये पर एतराज़ है और इस देश के सांसदों ने बारमबार ज़ायोनी सरकार द्वारा नस्ली सफ़ाये और दूसरे अपराधों के जारी रखने पर यूरोपीय संघ सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समाजों व मंचों पर आपत्ति जताई है।

हज़रत ज़ैनब अ.स. की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुर्आन की मुफ़स्सिरा थीं, और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अ.स. कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब अ.स. कूफ़े की औरतों के लिए क़ुर्आन की तफ़सीर बयान करती थीं

हज़रत ज़ैनब अ.स. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिल अव्वल को मदीने में पैदा हुईं, आपके वालिद इमाम अली अ.स. और मां हज़रत ज़हरा स.अ. थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब की मां शहीद हुई, आपने अपने ज़िदगी में बहुत सारी मुसीबतों का सामना किया,

मां बाप की शहादत से ले कर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आपने देखी, और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आपके जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 46)

आपके बहुत सारे लक़ब हैं जिनमें से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलेमा, मोहद्देसा, आरेफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं, आपके सिफ़ात और आपकी विशेषताएं देख कर आपको अक़ील-ए-बनी हाशिम कहा जाता है, आपकी शादी हज़रत जाफ़र के बेटे अब्दुल्लाह से हुई थी, और आपके दो बेटे औन और मोहम्मद कर्बला में इमाम हुसैन अ.स. के साथ दीन को बचाने की ख़ातिर शहीद कर दिए गए थे। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 210)

आमतौर से बच्चों के नाम उनके मां बाप रखते हैं लेकिन हज़रत ज़ैनब अ.स. का नाम आपके नाना पैग़म्बर स.अ. ने रखा।

जब आपकी विलादत हुई तो पैग़म्बर स.अ. सफ़र पर गए हुए थे जब आप वापस आए और जैसे ही आपको हज़रत ज़ैनब अ.स. की विलादत की ख़बर मिली आप तुरंत इमाम अली अ.स. के घर आए और हज़रत ज़ैनब अ.स. को गोद में ले कर प्यार किया और उसी समय आपने ज़ैनब यानी बाप की ज़ीनत नाम रखा। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 39)

 

इंसान की अहमियत उसके इल्म और ज्ञान से पहचानी जाती है, जैसाकि क़ुर्आन में सूरए बक़रह की आयत न. 31 और 32 में हज़रत आदम अ.स. के बारे में भी यही कहा गया है, और सबसे अहम इल्म और ज्ञान वह है जो सीधे अल्लाह से हासिल किया जाए जिसे इल्मे लदुन्नी कहा जाता है, हज़रत ज़ैनब अ.स. का इल्म भी कुछ इसी तरह का था जैसाकि इमाम सज्जाद अ.स. ने आपको आलिम-ए-ग़ैरे मोअल्लमा नाम दिया यानी ऐसी आलिमा जिसने दुनिया में किसी से कुछ सीखा न हो। (मुनतहल आमाल, जिल्द 1, पेज 298)

औरत के लिए सबसे बड़ा कमाल और सबसे बड़ी सआदत यह है कि उसकी पाकीज़गी और पवित्रता पर कोई सवाल न कर सके, हज़रत ज़ैनब अ.स. ने पवित्रता का सबक़ अपने वालिद से सीखा जैसाकि यहया माज़नदरानी से रिवायत है कि मैंने कई सालों तक मदीने में इमाम अली अ.स. की ख़िदमत की है और मेरा घर हज़रत ज़ैनब अ.स. के घर से बिल्कुल क़रीब था लेकिन कभी न मैंने उनको देखा और ना ही उनकी आवाज़ सुनी।

आप जब भी पैग़म्बर स.अ. की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहतीं तो रात के सन्नाटे में जातीं और आपके साथ आगे आगे इमाम अली अ.स. चलते और आपके दाहिने इमाम हसन अ.स. और बाएं इमाम हुसैन अ.स. चलते, और जब पैग़म्बर स.अ. की क़ब्र के क़रीब पहुंचते तो पहले इमाम अली अ.स. जा कर चिराग़ की रौशनी को धीमा कर देते थे, एक बार इमाम हसन अ.स. ने अपने वालिद से इसका कारण पूछा तो आपने जवाब दिया कि मुझे डर है कि कहीं कोई हज़रत ज़ैनब अ.स. को देख न ले।

आपने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पाकीज़गी और पवित्रता को ध्यान में रखा, कूफ़ा और शाम जैसे घुटन के माहौल में जहां आपके सर पर चादर नहीं थी लेकिन फिर भी आप अपने हाथों से अपने चेहरे को छिपाए हुए थीं। (अल-ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या, पेज 345)

हज़रत ज़ैनब अ.स. की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुर्आन की मुफ़स्सिरा थीं, और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अ.स. कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब अ.स. कूफ़े की औरतों के लिए क़ुर्आन की तफ़सीर बयान करती थीं, एक दिन इमाम अली अ.स. घर में दाख़िल हुए देखा हज़रत ज़ैनब अ.स. सूरए मरयम के शुरू में आने वाले हुरूफ़े मोक़त्तए की तफ़सीर बयान कर रही थीं,

आपने हज़रत ज़ैनब अ.स. से कहा बेटी इसकी तफ़सीर मैं बयान करता हूं और फिर आपने फ़रमाया इन हुरूफ़ में अल्लाह ने एक बहुत बड़ी मुसीबत को राज़ बना कर रखा है और फिर आपने कर्बला की दास्तान को बयान किया जिसको सुन कर हज़रत ज़ैनब अ.स. बहुत रोईं।

 

शैख़ सदूक़ बयान करते हैं कि इमाम हुसैन अ.स. ने इमाम सज्जाद अ.स. की बीमारी के समय हज़रत ज़ैनब अ.स. को यह अनुमति दी थी कि जो लोग शरई मसले पूछें आप उनका जवाब दीजिएगा।

शैख़ तबरिसी ने नक़्ल किया है कि हज़रत ज़ैनब अ.स. ने बहुत सारी हदीसें अपनी मां हज़रत ज़हरा स.अ. बयान की है, इसी तरह एमादुल मोहद्देसीन से नक़्ल हुआ है कि आप अपनी मां, वालिद, भाईयों, उम्मे सलमा, उम्मे हानी और भी दूसरे लोगों से बहुत सी हदीसें बयान की हैं, और जिन लोगों ने आपसे हदीसें नक़्ल की हैं उनके नाम इस तरह हैं इब्ने अब्बास, इमाम सज्जाद अ.स., अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र।

इसी तरह फ़ाज़िल दरबंदी और भी दूसरे बहुत से उलमा ने हज़रत ज़ैनब अ.स. के बारे में  यह बात भी लिखी है कि हज़रत ज़ैनब अ.स. को इल्मे मनाया वल बलाया था यानी ऐसा इल्म जिसमें आने वाले समय में कौन सी घटना पेश आने वाली है इन सबके बारे में आपको मालूमात थी।

श्रीमती मोहसिनज़ादेह ने कहा: हुर्मुग़जान प्रांत के धार्मिक छात्र विभिन्न सांस्कृतिक और दूरदर्शी क्षेत्रों में जिहाद-ए-तबईन के अग्रदूत हैं।

ईरान के इस्लामी गणराज्य के हुर्मुज़गान प्रांत में हौज़ा इल्मिया खाहरान के सांस्कृतिक और उपदेशात्मक मामलों की संरक्षक श्रीमति मोहसिनज़ादेह ने हज़रत ज़ैनब के जन्म के अवसर पर हौज़ा न्यूज़ के संवाददाता के साथ एक साक्षात्कार के दौरान कहा: हज़रत ज़ैनब, हुर्मुज़गान प्रांत की धार्मिक छात्राएँ हैं, वह पैगंबर (स) के बाद विभिन्न सांस्कृतिक और दूरदर्शी कार्यक्रमों में जिहाद-ए-तबईन की वाहक हैं।

हौज़ा इल्मिया ख़ाहरान हुर्मज़गान के सांस्कृतिक और उपदेशात्मक मामलों के संरक्षक ने कहा: हज़रत ज़ैनब, धर्म, विश्वास और नैतिकता के क्षेत्र में सबसे अच्छा व्यावहारिक उदाहरण हैं।

उन्होंने कहा: हज़रत ज़ैनब के फ़रमानों मे, ईश्वर और न्याय के दिन पर विश्वास, धैर्य और धीरज, स्थितियों के बारे में जागरूकता, दर्शकों के बारे में जागरूकता, और ईश्वरीय सीमाओं का पालन, विशेष रूप से विनम्रता और शुद्धता, स्पष्ट रूप से देखा गया है।

श्रीमति मोहसिनज़ादेह ने कहा: हुर्मुज़गान प्रांत के धार्मिक छात्र हज़रत ज़ैनब के बाद विभिन्न सांस्कृतिक और दूरदर्शी कार्यक्रमों में जिहाद-ए-तबईन के अग्रणी हैं। उनकी धार्मिक गतिविधियों में इस्लामी संस्कारों को बढ़ावा देना और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में पुस्तक पढ़ना शामिल है।

हज़रत ज़ैनब स.ल. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिउल अव्वल सन 6 हिजरी को मदीने में पैदा हुईं, आप के वालिद हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई, आप ने अपनी ज़िदगी में बहुतसारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आप ने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आप के जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया।

हज़रत ज़ैनब स.ल. एक रिवायत के अनुसार 5 जमादिउल अव्वल सन 6 हिजरी को मदीने में पैदा हुईं, आप के वालिद हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हेरा स.अ थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई, आप ने अपनी ज़िदगी में बहुतसारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आप ने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आप के जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 46)

आपके बहुत सारे लक़ब हैं जिन में से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलिमा, मोहद्दिसा, आरिफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं, आप के सिफ़ात और आपकी विशेषताएं देखकर आपको अक़ीलए बनी हाशिम कहा जाता है, आप की शादी हज़रत जाफ़रे तैयार के बेटे जनाबे अब्दुल्लाह से हुई थी और आप के दो बेटे औन और मोहम्मद करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ दीन को बचाने के ख़ातिर शहीद कर दिए गए थे। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 210)

आम तौर से बच्चों के नाम उनके मां बाप रखते हैं लेकिन हज़रत ज़ैनब (स) का नाम आप के नाना पैग़म्बरे अकरम (स) ने रखा। जब आप की विलादत हुई तो पैग़म्बरे अकरम (स) सफ़र पर गए हुए थे जब आप वापस आए और जैसे ही आप को हज़रत ज़ैनब (स) की विलादत की ख़बर मिली आप तुरंत इमाम अली अलैहिस्सलाम के घर आए और हज़रत ज़ैनब (स) को गोद में ले कर प्यार किया और उसी समय आप ने ज़ैनब यानी बाप की ज़ीनत नाम रखा। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 39)

इंसान की अहमियत उसके इल्म और ज्ञान से पहचानी जाती है, जैसा कि क़ुरआन में सूरए बक़रह की आयत 31 और 32 में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बारे में भी यही कहा गया है और सबसे अहम इल्म और ज्ञान वह है जो सीधे अल्लाह से हासिल किया जाए जिसे *इल्मे लदुन्नी* कहा जाता है, हज़रत ज़ैनब (स) का इल्म भी कुछ इसी तरह का था जैसा कि इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने आप को आलिम-ए-ग़ैरे मोअल्लमा नाम दिया यानी ऐसी आलिमा जिसने दुनिया में किसी से कुछ सीखा न हो। (मुन्तहल आमाल, जिल्द 1, पेज 298)

औरत के लिए सबसे बड़ा कमाल और सबसे बड़ी सआदत यह है कि उसकी पाकीज़गी और पवित्रता पर कोई सवाल न कर सके, हज़रत ज़ैनब (स) ने पवित्रता का सबक़ अपने वालिद से सीखा जैसा कि यह्या माज़नदरानी से रिवायत है कि मैंने कई सालों तक मदीने में इमाम अली अलैहिस्सलाम की ख़िदमत की है और मेरा घर हज़रत ज़ैनब (स) के घर से बिल्कुल क़रीब था लेकिन कभी न मैंने उनको देखा और ना ही उनकी आवाज़ सुनी।

आप जब भी अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहतीं तो रात के सन्नाटे में जातीं और आप के साथ आगे आगे इमाम अली अलैहिस्सलाम चलते और आप के दाहिने इमाम हसन और बाएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम चलते और जब पैग़म्बरे अकरम (स) की क़ब्र के क़रीब पहुंचते तो पहले इमाम अली अलैहिस्सलाम जाकर चिराग़ की रौशनी को धीमा कर देते थे, एक बार इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद से इसका कारण पूछा तो आप ने जवाब दिया कि मुझे डर है कि कहीं कोई ना महरम मेरी बेटी ज़ैनब (स) को देख न ले।

आप ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पाकीज़गी और पवित्रता को ध्यान में रखा, कूफ़ा और शाम जैसे घुटन के माहौल में जहां आप के सर पर चादर नहीं थी लेकिन फिर भी आप अपने हाथों से अपने चेहरे को छिपाए हुए थीं। (अल-ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या, पेज 345)

हज़रत ज़ैनब (स) की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने किताब "ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या" में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुरआन की मुफ़स्सिरा थीं और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अलैहिस्सलाम कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब (स) कूफ़े की औरतों के लिए क़ुरआन की तफ़सीर बयान करती थीं, एक दिन इमाम अली (अ) घर में दाख़िल हुए देखा हज़रत ज़ैनब (स) सूरए मरियम के शुरू में आने वाले हुरूफ़े मुक़त्तए की तफ़सीर बयान कर रही थीं, आप ने हज़रत ज़ैनब से कहा: बेटी इसकी तफ़सीर मैं बयान करता हूं और फिर आपने फ़रमाया इन हुरूफ़ में अल्लाह ने एक बहुत बड़ी मुसीबत को राज़ बनाकर रखा है और फिर आप ने करबला की दास्तान को बयान किया जिसको सुनकर हज़रत ज़ैनब (स) बहुत रोईं।

जनाबे शैख़ सदूक़ बयान करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम की बीमारी के समय हज़रत ज़ैनब को यह अनुमति दी थी कि जो लोग शरई मसले पूछें आप उनका जवाब दीजिएगा।

शैख़ तबरिसी ने नक़्ल किया है कि हज़रत ज़ैनब (स) ने बहुत सारी हदीसें अपनी मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) से बयान की है, इसी तरह 'एमादुल मोहद्देसीन' से नक़्ल हुआ है कि आप ने अपनी मां, वालिद, भाईयों, जनाबे उम्मे सलमा, जनाबे उम्मे हानी और भी दूसरे लोगों से बहुतसी हदीसें बयान की हैं और जिन लोगों ने आप से हदीसें नक़्ल की हैं उनके नाम इस तरह हैं: अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम, अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र।

इसी तरह फ़ाज़िल दरबंदी और भी दूसरे बहुत से उलमा ने हज़रत ज़ैनब (स) के बारे में यह बात भी लिखी है कि हज़रत ज़ैनब को *"इल्मे मनाया वल बलाया"* था यानी ऐसा इल्म जिस में आने वाले समय में कौन सी घटना पेश आने वाली है इन सबके बारे में आप को मालूमात थी।

 

 

 

 

 

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी में वो तमाम आला इंसानी सिफ़ात नुमायां थीं जिनमें सब्र, शुजाअत, फ़साहत और बलाग़त शामिल हैं। आपने बचपन ही से अपने नाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम, अपने वालिद अली अलैहिस्सलाम, और अपनी मां फातेमा सलामुल्लाह अलैहा की सोहबत में तर्बियत पाई और इल्म ओ हिकमत का वो नूर हासिल किया जिसकी चमक कर्बला में दुश्मनों के लश्कर को लरज़ा देती थी।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की विलादत एक अज़ीम नेमत और मुबारक लम्हा है, जो तारीख़ में एक नक़ाबिले फ़रामोश और नूरानी यादगार के तौर पर हमारे दिलों में रौशन है। आपकी विलादत मदीना मुनव्वरा में 5 जमादी उल अव्वल 5 हिजरी को हुई। इमाम अली अलैहिस्सलाम और जनाबे  सैयदा फातिमा सलामुल्लाह अलैहा की आग़ोश-ए-मोहब्बत में आँखें खोलते ही ये नूरानी चेहरा एक ऐसे अज़्म और हौसले की अलामत बना जो बाद में कर्बला के मारके में अहल-ए-हक़ के लिए मशअल-ए-राह साबित हुआ।

आपका नाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने ज़ैनब रखा, जो दो अज़ीम सिफ़ात "ज़ैन" यानी ज़ीनत और "अब" यानी बाप के नाम का मजमुआ है। हज़रत ज़ैनब अपने वालिद अली इब्न अबी तालिब अलैहिस्सलाम की ऐसी ज़ीनत और उनके इल्म ओ हिकमत की वारिस बन गईं कि आपको "अक़ीला बनी हाशिम" का लक़ब दिया गया।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी में वो तमाम आला इंसानी सिफ़ात नुमायां थीं जिनमें सब्र, शुजाअत, फ़साहत और बलाग़त शामिल हैं। आपने बचपन ही से अपने नाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम, अपने वालिद अली अलैहिस्सलाम, और अपनी मां फातेमा सलामुल्लाह अलैहा की सोहबत में तर्बियत पाई और इल्म ओ हिकमत का वो नूर हासिल किया जिसकी चमक कर्बला में दुश्मनों के लश्कर को लरज़ा देती थी।

कर्बला का मैदान आपके किरदार ओ ईमान का सबसे बड़ा इम्तेहान था, और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने वहां अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन को मुकम्मल कर के साबित कर दिया कि आप एक सच्ची इंक़लाबी हैं। जब कर्बला में हर तरफ शोहदा के लाशे बिखरे हुए थे और ख़ैमे जलाए जा चुके थे, तब हज़रत ज़ैनब ने अपनी क़ुव्वत-ए-ईमानी से दुश्मनों को ललकारा और यज़ीद के दरबार में हक़ ओ सदाकत की आवाज़ बुलंद की।

आपकी सीरत हमें इस बात की तालीम देती है कि ज़ुल्म के सामने कभी सर न झुकाएं और हक़ की राह में इस्तेक़ामत का मुज़ाहेरा करें। हज़रत ज़ैनब की जद्दोजहद आज के दौर के मुसलमानों के लिए एक इंक़लाबी पैग़ाम है कि अगर दुनिया के हर महाज़ पर ज़ुल्म ओ नाइंसाफी का सामना हो, तब भी हक़ की आवाज़ को बुलंद करें और ज़ालिम के मुक़ाबले में डटे रहें।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी का ये पैग़ाम हमें बताता है कि अगर इंसान सब्र ओ इस्तेक़ामत के हथियार से लैस हो तो वो दुनिया के किसी भी ज़ालिम को शिकस्त दे सकता है। आज भी ये इंक़लाबी रूह हमारे दिलों को क़ुव्वत और ईमान अता करती है और हमें हक़ के रास्ते पर डटे रहने की तरग़ीब देती है।

विलादत-ए-ज़ैनब की दिली मुबारकबाद

 

 

 

 

 

हिज़बुल्लाह लेबनान के उप महासचिव शेख नईम कासिम ने सय्यद हसन नसरुल्लाह के चेहलुम के अवसर पर एक टेलीविज़न संबोधन में कहा: "आज हम सय्यद हसन नसरल्लाह की शहादत का चालीसवां दिन मना रहे हैं।" एक दृढ़ निश्चयी और साहसी नेता थे, जो विलायत के मार्ग के शिक्षक और फ़िलिस्तीन की स्वतंत्रता के वाहक थे।"

हिज़्बुल्लाह लेबनान के उप महासचिव शेख नईम कासिम ने सय्यद हसन नसरल्लाह के 40वें के अवसर पर एक टेलीविज़न संबोधन में कहा: सय्यद नसरुल्लाह एक दृढ़ और बहादुर नेता थे विलायत के रास्ते और फ़िलिस्तीन की आज़ादी के प्रणेता।

शेख कासिम ने कहा: "सय्यद नसरुल्लाह के शब्द एक ऐसी रोशनी हैं जो प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में दुनिया के दिलों में चमकी। उन्होंने दीने मुहम्मदन की मूल शिक्षाओं के आधार पर एक प्रतिरोध समूह का गठन किया, जिसमें सभी वर्ग शामिल थे, यह पार्टी युवाओं और बुजुर्गों, स्वतंत्रता सेनानियों और कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधि है।"

उन्होंने हिज़्बुल्लाह की व्यापक सेवाओं का ज़िक्र करते हुए कहा, "हिज़्बुल्लाह न केवल सेना में, बल्कि सांस्कृतिक, राजनीतिक, शैक्षिक और चिकित्सा क्षेत्रों में भी संगठित और सक्रिय है और यही वह पार्टी है जिसे सय्यद नसरुल्लाह ने अपने हाथों से खड़ा किया है।"

उन्होंने आगे कहा, "सैयद नसरल्लाह ने दुनिया के प्रतिरोध, मुजाहिदीन और आज़ाद लोगों के अग्रदूतों के दिलों में अपनी जगह बनाई, उन्होंने हुसैन के प्यार का झंडा उठाया और उसी रास्ते पर चलते रहे।"

यमन, इराक, लेबनान और ईरान के सहयोग की सराहना करते हुए कहा, "हम सभी प्रतिरोध मोर्चों और इस्लामी गणराज्य ईरान के महान समर्थन को श्रद्धांजलि देते हैं, जो फिलिस्तीन की मुक्ति के लिए समर्थन प्रदान कर रहा है।"