رضوی

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हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सैयद सदरुद्दीन क़बांची ने कहा: हमें इस युग के दौरान मीडिया के माध्यम से इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के उद्देश्य को समझाने की ज़रूरत है, इसलिए हमें इसे सार्वजनिक करना चाहिए और इसे सभी तक फैलाना चाहिए।

नजफ अशरफ के इमामे जुमा हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सैयद सदरुद्दीन कबांची ने नजफ अशरफ में हुसैनियाह फातिमा में नमाज जुमा के खुत्बे मे कहा: हमारा लक्ष्य मीडिया के माध्यम से इमाम हुसैन (अ) को बढ़ावा देना है। मुझे समझाने की जरूरत है इसलिए हमें इसे पूरी दुनिया में प्रचारित और प्रसारित करना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर बोलते हुए, उन्होंने कहा: इस्लाम कहता है कि युवाओं को मार्गदर्शन करने के अलावा, उनके पास कुछ अन्य अधिकार भी हैं, अल्लाह के रसूल (स) एक हदीस में कहा गया है: मैं आपकी कामना करता हूं युवाओं के प्रति दयालु रहें, क्योंकि युवा सबसे दयालु लोग हैं।

इमाम जुमा नजफ अशरफ ने कहा: लेकिन पश्चिमी सभ्यता कहती है कि युवाओं को भटकने का पूरा अधिकार है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन कबानची ने कहा: गाजा के शहीदों की संख्या 40 हजार तक पहुंच गई है और यहूदियों का कहना है कि गाजा के लोगों और उनके बच्चों का नरसंहार किया जाना चाहिए और यह नरसंहार हमारा अधिकार है और न्याय कहता है कि हम उनका नरसंहार करते हैं।

उन्होंने कहा: इज़राइल के सामने आत्मसमर्पण करने का मतलब है दो मिलियन फ़िलिस्तीनियों को मारना, इसलिए प्रतिरोध हर कीमत पर जारी रहना चाहिए और भगवान ने हमें जीत का वादा किया है और हमारी जीत होगी।

नजफ अशरफ के इमाम जुमा ने कहा: इमाम हुसैन (अ) का दौरा करना बहुत सराहनीय है और इस संबंध में इमाम अतहर (अ) की ओर से अनगिनत परंपराएं रही हैं।

Brandeis University के अध्ययनकर्ता अपने अध्ययन में इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंध का उल्टा असर निकला है।

अमेरिका के वाशिंग्टन पोस्ट समाचार पत्र में एक मशहूर लेखक फ़रीद ज़करिया ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है" ईरान के मुक़ाबले में अमेरिका की विफ़ल नीति को वास्तव में स्ट्रैटेजी नहीं कहा जा सकता" इस लेख में उन्होंने ईरान के मुक़ाबले में अमेरिकी नीति की विफ़लता के कारणों की समीक्षा की है।

उन्होंने अपने लेख में इस बिन्दु की ओर संकेत किया है कि ईरान के मुक़ाबले में वाशिंग्टन की नीति एकजुट स्ट्रैटेजी के बजाये दबाव डालने वाले दृष्टिकोण में परिवर्तित हो गयी है।

हालिया वर्षों में ईरान के मुक़ाबले में अमेरिकी स्ट्रैटेजी की विफ़लता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस नीति के विफ़ल होने का कारण यह है कि एक एकजुट स्ट्रैटेजी के बजाये वह दबाव डालने की अधिकतम नीति हो गयी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मई 2018 में ईरान के साथ होने वाले परमाणु समझौते से निकल गये थे उसके बाद से उन्होंने ईरान के ख़िलाफ़ अधिकतम दबाव की नीति अपनाई।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के ज़माने में 370 प्रतिबंध थे जो डोनाल्ड ट्रंप के ज़माने में बढ़कर 1500 हो गये। इस प्रकार ईरान विश्व के उस देश में परिवर्तित हो गया जिस पर सबसे अधिक प्रतिबंध हैं। यह उस हालत में है जब परमाणु वार्ता की दूसरी शक्तियां जैसे यूरोपीय देश, रूस और चीन अमेरिका की इस नीति के विरोधी थे।

अमेरिका ने दोबारा ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाकर व्यवहारिक रूप से इन देशों को ईरान के साथ व्यापार करने से रोक दिया किन्तु अमेरिका की इस नीति का नतीजा क्या हुआ? ईरान परमाणु सीमितता से आज़ाद हुआ था उसने बड़ी तेज़ी से अपने परमाणु कार्यक्रम में प्रगति की। परमाणु ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी IAEA के अनुसार जिस समय परमाणु समझौता हुआ था उसकी अपेक्षा इस समय ईरान के पास उससे 30 गुना अधिक संवर्द्धित यूरेनियम है।

जिस समय परमाणु समझौता हुआ था उस समय परमाणु हथियार बनाने के लिए जिस मात्रा में संवर्धित यूरेनियम की आवश्यकता थी उसके लिए एक वर्ष समय की आवश्यकता थी परंतु अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पिछले महीने एलान किया है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने से एक या दो हफ़्ते की दूरी पर है।

 

 दूसरी ओर ईरान ने विदेशी दबावों को बर्दाश्त करने के साथ क्षेत्रीय गुटों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत किया है। इन गुटों में लेबनान का हिज़्बुल्लाह, ग़ज़ा में हमास, यमन में हूसी और इराक़ एवं सीरिया में प्रतिरोधक गुट हैं। इन गुटों के प्रतिरोध के कारण इस्राईल को लंबी और ख़तरे से भरी लड़ाई का सामना है। लालसागर से इस्राईल जाने वाले लगभग 70 प्रतिशत जहानों की आवाजाही में विघ्न उत्पन्न हो गया है और ईरान ने इराक़ और सीरिया को अपने साथ कर लिया है। हम किसी भी दृष्टि से देखें ईरान के संबंध में वाशिंग्टन की नीति विफ़ल व नाकाम हो गयी है।

ईरान के ख़िलाफ़ अधिकतम दबाव की नाकामी का कारण क्या है? Brandeis University के एक अन्य अध्ययनकर्ता हादी काहिलज़ादे अपने अध्ययन में इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाया है उसका ईरान के मध्यम वर्ग पर उल्टा असर पड़ा है। बहुत से ईरानी आरंभ से ही परमाणु वार्ता के पक्ष में नहीं थे और उनका मानना था कि इसका कोई लाभ नहीं है और जब अमेरिका एकपक्षीय रूप से परमाणु समझौते से निकल गया तो उन्होंने इसे अपने दृष्टिकोण की सच्चाई और हक़्क़ानियत के रूप में देखा। इसी प्रकार यह विषय इस बात का कारण बना कि ईरानियों ने अपने दरवाज़ों को चीनी निवेशकों के लिए खोल दिया। 

 

परिणाम स्वरूप वाशिंग्टन ने ईरान के मुक़ाबले में अधिकतम दबाव की जो नीति अपनाई है नाकामी और विफ़लता के सिवा उसका कोई अन्य परिणाम नहीं निकला है। दबाव के तरीक़ों व माध्यमों पर ध्यान देने के बजाये अमेरिका और उसके घटकों को एक ऐसी अपनाये जाने की ज़रूरत है जिसमें ईरान को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार कर लिये जाने की ज़रूरत है और वे ऐसी नीति अपनायें जो तनावों को कम करने का कारण बने। संभव है कि ऐसी नीति का अपनाया जाना तनाव के कम होने का कारण न बने परंतु लंबे समय तक चलने वाले युद्ध और क्षेत्र में ख़ूनी हिंसा की रोकथाम का कारण ज़रूर करेगी

इंटरनेशनल यूनियन ऑफ रेज़िस्टेंस स्कॉलर्स के प्रमुख ने कहा: यह प्रतिरोध दिव्य है, यह कठिन परिस्थितियों का सामना करता है, कांटों के बीच फूल उगाता है, ड्रेगन की गोद में रेंगता है, इसलिए यह दोहा बैठक का बहिष्कार भी कर सकता है।

लेबनान में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ रेसिस्टेंस स्कॉलर्स के प्रमुख शेख माहिर हम्मूद ने दोहा बैठक के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए और कहा: जब हम फिलिस्तीन, लेबनान और इस साहसी प्रतिरोध की स्थितियों और स्थितियों पर चर्चा करते हैं। अन्य कुल्हाड़ियों, तो हम देखते हैं कि यह प्रतिरोध दिव्य है, यह कठिन परिस्थितियों का सामना करता है, कांटों के बीच फूल उगाता है, ड्रेगन की गोद में रेंगता है, इसलिए यह दोहा बैठक का बहिष्कार भी कर सकता है।

उन्होंने कहा: जिस बैठक से कोई फ़ायदा नहीं होता और जिसमें ज़ायोनीवादियों पर दबाव बनाने की शक्ति भी नहीं होती, प्रतिरोध धुरी बड़े गर्व और सम्मान के साथ इस बैठक का बहिष्कार करती है।

शेख हम्मूद ने इस संबंध में पूछा: यह कौन सी शक्ति है कि ईरान पिछले कई वर्षों से विभिन्न युद्धों और घेराबंदी के खिलाफ मजबूत और प्रतिरोधी रहा है? आज भी वह आक्रमणकारियों के जवाब में परमाणु हथियार से हमला करने की धमकी देने में सक्षम है और क्रांति के सर्वोच्च नेता कहते हैं कि हम इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए तैयार हैं।

 

 

 

 

 

ईरान के फ़ार्स प्रांत में हौज़ा उलमिया के निदेशक ने अरबईन हुसैनी को सामूहिक मामलों का एक उत्कृष्ट उदाहरण बताया और कहा: अरबईन वॉक इस्लामी संस्कारों में से एक है, यहां तक ​​​​कि अरबईन वॉक इस्लामी एकता का सबसे अच्छा उदाहरण है।

ईरान के फ़ार्स प्रांत में हौज़ा उलमिया के निदेशक होजतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन अब्दुल रज़ा महमूदी ने हरम मुतहर शाहचराघ (ए.एस.) में आयोजित "हरम से हराम" सम्मेलन में पैदल तीर्थयात्रा का इतिहास बताया। हज़रत अल-शाहदा (ए.एस.) की और इसकी पृष्ठभूमि की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा: इतिहासकारों की परंपराओं में जो स्पष्ट रूप से कहा गया है वह यह है कि यह पूजा शेख अंसारी के समय से विद्वानों और लोगों के बीच मौजूद है।

उन्होंने आगे कहा: शेख अंसारी एक महान व्यक्तित्व हैं जो अपने मामलों, प्रयासों के प्रति गंभीर थे और उनके शिक्षण में कोई भी क्षण ऐसा नहीं था जब वह छात्रों के अध्ययन, अध्यापन और शिक्षा में संलग्न न रहे हों.

फ़ार्स मदरसा के निदेशक ने अरबईन वॉक की महिमा का वर्णन किया और कहा: एक छोटा कार्यक्रम आयोजित करने के लिए लोगों के बीच कई दिनों तक समन्वय और घोषणा आदि की आवश्यकता होती है, लेकिन अरबईन हुसैनी (एएस) देखें जहां इश्क-ए- हुसैन बिना किसी तालमेल के 2 करोड़ की भीड़ को अपनी ओर खींच लेते हैं.

होज़ा उलमिया के संपादक ने कहा: अरबईन वॉक इस्लामी संस्कारों में से एक है, यहां तक ​​​​कि अरबईन वॉक इस्लामी एकता का सबसे अच्छा उदाहरण है।

 

 

 

 

 

जुहैर इब्ने कैन इब्ने क़ीस अल अम्मारी जबली अपनी कौम के शरीफ और रईस थे आपने कूफे में सुकूनत इख्तेयार की थी और वहीँ पर रहते थे आप बड़े शुजा और बहादुर थे अक्सर लड़ाइयों में शरीक रहते थे पहले उस्मानी थे फिर 60 हिजरी में हुस्सैनी अलअल्वी हो गए ।

जुहैर इब्ने कैन इब्ने क़ीस अल अम्मारी जबली अपनी कौम के शरीफ और रईस थे आपने कूफे में सुकूनत इख्तेयार की थी और वहीँ पर रहते थे आप बड़े शुजा और बहादुर थे अक्सर लड़ाइयों में शरीक रहते थे पहले उस्मानी थे फिर 60 हिजरी में हुस्सैनी अलअल्वी हो गए।

60 हिजरी में हज के लिए अहलो अयाल समेत गए थे । वहां से वापस कूफे आ रहे थे की रास्ते में इमाम हुसैन अलै० से मुलाकात हो गई । एक दिन ऐसी जगह उनके ख्याम नसब हुए की इमाम हुसैन अलै० के खेमे भी सामने थे।

जब जुहैर खाना खाने के लिए बैठे तो इमाम हुसैन अलै० का कासिद पहुच गया। उसने सलाम के बाद कहा जुहैर तुम को फ़रज़न्दे रसूल ने याद किया है यह सुन कर सबको सकता हो गया और हाथों से निवाले गिर पड़े।

जुहैर की बीवी जिस का नाम ‘वलहम बिनते उमर , था जुहैर की तरफ मुतावज्जे हो कर कहने लगीं जुहैर क्या सोचते हो? खुशनसीब तुमको फ़रज़न्दे रसूल ने याद किया है उठो और उनकी खिदमत में हाजिर हो जाओ।

जुहैर उठे और खिदमते इमाम हुसैन अलै० में हाजिर हुए  थोड़ी देर के बाद जो वापिस आये तो उनका चेरा निहायत बश्शाश था। ख़ुशी के साथ आसार उनके चेहरे से जाहिर थे।

उन्होंने वापस आतें ही हुक्म दिया की सब खेमे इमाम हुसैन अलै० के खयाम के करीब नसब कर दे और बीवी से कहा मै तुमको तलाक दिए देता हूँ तुम अपने कबीले को वापिस चली जाओ मगर एक वाक़या मुझ से सुन लो।

जब लश्करे इस्लाम ने बल्खजर पर चढ़ाई की और फतहयाब हुए तो सब खुश थे और मै भी खुश था मुझे मसरूर देखकर सुलेमान फ़ारसी ने कहा की जुहैर तुम उस दिन इससे ज्यादा खुश होगे जिस दिन फरज़न्दे रसूल के साथ होकर जंग करोगे “।(अल-बसार अल-एन)

मै तुम्हे खुदा हाफिज कहता हुं और इमाम हुसैन अलै० के लश्कर में शरीक होता हूँ इसके बाद आप इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हुए और मरते दम तक साथ रहें यहाँ तक की शहीद  हो गए

मोअर्खींन का बयान है की जनाबे जुहैर इमाम हुसैन अलै० के हमराह चल रहे थे मकामे “जौह्शम” पर हुर्र की आमद के बाद आप ने खुतबे में असहाब से फरमाया की तुम वापस  चले जाओ उन्हें सिर्फ मेरी जान से मतलब है इस जवाब में जुहैर ने ही कहा था की हम हर हाल में आप पर कुर्बान होंगे।

जब हुर्र ने इमाम हुसैन अलै० की से मुज़हेमत की थी तो जनाब जुहैर ने इमाम हुसैंन की बारगाह में दरखास्त की थी अभी ये एक ही हजार है हुकुम दीजिये की उनका खातेमा कर दे। जिस के जवाब में इमामे हुसैन ने फ़रमाया था की हम इब्तेदाए जंग नहीं कर सकते । मोर्रखींन का ये बयान है की जब हजरते अब्बास एक शब की मोहलत लेने के लिए शबे आशुर निकले थे तो जनाबे जुहैर भी आप के साथ थे ।

शबे आशुर के ख़ुत्बे के जवाब में जनाबे जुहैर ने कमाले दिलेरी से अर्ज़ की थी की आप “मौला अगर 70 मर्तबा भी हम आप की मोहब्बत में कत्ल किये जाए तो भी कोई परवाह नही।

मोअर्र्खींन का इत्तेफाक है की सुबह आशुर जब इमाम हुसैन अलै0 ने अपने छोटे से लश्कर की तरतीब दी तो मैमना जनाबे जुहैर ही के सुपुर्द किया था ।

यौमे आशुर आपने जो कारे-नुमाया किया है वह तारीखे कर्बला के वर्को में मौजूद है। नमाज़े जोहर की जद्दो-जहद में भी आप आप का हिस्सा है। आपने पै-दर-पै दुश्मनों पर कई हमले किये और 150 को फना के घाट उतार दिया बिल आखिर अब्दुल्लाह इब्ने शबइ और मुहाजिर इब्ने अदस तमीमी के हाथो शहीद हुए।

 

 

 

 

 

सात अक्तूबर 2023 से आरंभ होने वाले ग़ज़ा युद्ध से अब तक ज़ायोनी सैनिकों का कर्मपत्र अनगिनत अपराधों से भरा होने के अतिरिक्त उन्होंने लगभग 170 फ़िलिस्तीनी रिपोर्टरों को भी शहीद कर दिया और उनमें से बहुत को घायल कर दिया है ताकि ग़ज़ा में जो युद्ध और ज़ायोनी सैनिकों का आतंक व अपराध जारी है दुनिया तक उसे पहुंचाने की प्रक्रिया में विघ्न उत्पन्न किया जा सके।

ईरान की मेहर न्यूज़ एजेन्सी ने अमेरिका के मशहूर रिपोर्टर और लेखक मार्क ग्लेन से इसी संबंध में और फ़िलिस्तीन मामले के संबंध में पश्चिम के दोहरे मापदंड के बारे में इंटरव्यू किया है जो इस प्रकार है।

ग़ज़ा युद्ध के दौरान दसियों पत्रकारों को लक्ष्य बनाकर मार दिया गया। क्या इतनी बड़ी संख्या में ज़ायोनी सैनिकों के हाथों रिपोर्टरों की हत्या संयोगवश है? या जानबूझ कर उन्हें लक्ष्य बनाया गया?

समझदार और तार्किक लोगों विशेष उन लोगों के लिए जो ज़ायोनी सरकार के क्रियाकलापों से अवगत हैं पूरी तरह स्पष्ट है कि ज़ायोनी सैनिक जानबूझ कर पत्रकारों की हत्या करते हैं। इस्राईल की ग़ैर क़ानूनी बुनियाद झूठ और पाखंड पर रखी गयी है। जब ज़ायोनी सरकार ग़ज़ा पट्टी के ताबेईन स्कूल पर बमबारी करती है या रिपोर्टों की हत्या करती है तो ग़लती से ऐसा होने का दावा करती है जबकि यह ज़ायोनी सरकार के अपराधों का एक भाग है। ज़ायोनी सैनिक जानबूझकर न केवल रिपोर्टों की हत्या करते हैं बल्कि इस काम से उन्हें आनंद भी आता है।

सवाल यह उठता है कि क्यों ज़ायोनी सैनिक रिपोर्टरों को निशाना बनाते हैं विशेषकर इस बात के दृष्टिगत कि पूरी दुनिया में डेमोक्रेसी में विस्तार के लिए पत्रकारों और संचार माध्यमों के अस्तित्व को ज़रूरी समझा जाता है?

यूनान, रोम, यूरोप, मध्यपूर्व और सुदूरपूर्व सहित विभिन्न क्षेत्रों व कालों में यहूदियों ने यह सीख लिया कि ग़ैर यहूदी किस प्रकार या क्या सोचते हैं और उनकी सोच को ध्यान में रखकर वे व्यवहार करते हैं। इसी कारण वर्ष 1897 में थ्यूडर हर्तज़ेल द्वारा ज़ायोनियों की पहली कांग्रेस के आयोजन के कुछ समय बाद फ़िलिस्तीन और मध्यपूर्व के दूसरे हिस्सों पर क़ब्ज़ा लेने का विचार उनके दिल में पैदा हुआ और बड़ी तेज़ी से उस समय मौजूद संचार माध्यमों विशेषकर अमेरिका और पश्चिम में मौजूद संचार माध्यमों पर क़ब्ज़ा और अपने नियंत्रण में कर लिया। यहूदियों ने यह बात समझ लिया कि जो कुछ उनके दिमाग़ में है उसे व्यवहारिक बनाने के लिए उन देशों के लोगों के ज़ेहनों पर क़ब्ज़ा करना ज़रूरी है। इसका अर्थ लोग, जो देखते हैं, सुनते हैं, पढ़ते हैं और कल्पना करते हैं उन सब पर क़ब्ज़ा करना है।

 

अब सवाल यह उठता है कि जब रिपोर्ट पहुंचाने के लिए पत्रकारों और संचार माध्यमों का होना ज़रूरी है तो फ़िर ज़ायोनी सरकार रिपोर्टरों को क्यों लक्ष्य बनाती है? वास्तविकता यह है कि इस्राईल को डेमोक्रेसी से कुछ लेनादेना नहीं है और उसे कभी भी न तो डेमोक्रेसी पसंद थी और न है। ठीक उस भ्रष्ट और गंदे इंसान की भांति जो दुर्गन्ध को छिपाने व दबाने के लिए इत्र का सहारा लेते हैं इस्राईल भी ठीक उसी तरह अपने कृत्यों व अपराधों को छिपाने के लिए डेमोक्रेसी जैसे शब्दों का सहारा लेता है जबकि उसकी वास्तविक पहचान दाइश जैसे ख़ूख़ार आतंकवादी से अधिक मिलती है और वह अपने किसी विरोधी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं है।

जैसाकि आप जानते हैं कि रिपोर्टर वास्तविकताओं के साक्षी और उसे लोगों तक पहुंचाना उनकी ज़िम्मेदारी है परंतु ज़ायोनी सरकार के हाथों रिपोर्टरों र्की हत्या पर पश्चिमी व यूरोपीय देशों ने क्यों चुप्पी साध रखी है? इस प्रकार के दोहरे मापदंड का औचित्य कैसे दर्शाया जा सकता है? अगर रूसी सैनिक यूक्रेन युद्ध में लगभग 170 रिपोर्टरों की हत्या करते तो पश्चिमी संचार माध्यम क्या करते?

जैसाकि इससे पहले हमने कहा कि ज़ायोनिज़्म एक प्रायोजित संगठन है जिसने पिछली एक शताब्दी से सामूहिक और ग़ैर सामूहिक संचार माध्यमों पर क़ब्ज़ा करना आरंभ कर दिया और इस लक्ष्य को उसने प्राप्त भी कर लिया है और धीरे- धीरे ज़ायोनियों ने संचार माध्यमों और रिपोर्टों के लिए क़ानून बना दिया और उन संचार माध्यमों और रिपोर्टों को रिपोर्ट देने से मना कर दिया जाता है जो उनके द्वारा निर्धारित नियमों व क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं जबकि संचार माध्यमों और रिपोर्टरों को इससे पहले उन विषयों के बारे में बहस करने और रिपोर्ट देने का पूरा अधिकार था।

यहूदियों को अपने विरोधियों की आवाज़ सुनने की ताक़त नहीं है यानी वे इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकते कि उनके ख़िलाफ़ कोई आवाज उठाये। इसी तरह वे अपने दृष्टिकोणों पर आपत्ति जताने वालों को भी सहन नहीं कर सकते और मध्यपूर्व पर क़ब्ज़ा उनकी सूची में पहले नंबर पर है।

वास्तव में प्रशंसा व सराहना इंसान की आंतरिक इच्छा है और इंसान आसान व सरल कार्यों की अपेक्षा नैतिक कार्यों की ओर अधिक रुझान रखता है और रिपोर्टर भी इस नियम व क़ानून से अपवाद नहीं हैं। हम पूरे विश्वास से इस बात की गवाही दे सकते हैं कि जब रिपोर्टर हक़ीक़त बताते व कहते हैं और सिस्टम को चुनौती देते हैं तो उनके लिए क्या और कौन सी घटनायें पेश आ सकती हैं।

वास्तविकता यह है कि दुनिया में स्वतंत्र संचार माध्यमों की संख्या बहुत कम है यानी उन संचार माध्यमों की संख्या बहुत कम है जो किसी घटना को पूरी सच्चाई से बयान करना चाहते हैं।

 

 इंटरनेश्नल सतह के अधिकांश संचार माध्यम दावा करते हैं कि वास्तविकता बयान करने से वे नहीं डरते हैं परंतु जब वास्तविकता को पूरी तरह सच्चाई से बयान करने का समय आता है तो वे पूरी ईमानदारी से ख़बर नहीं देते हैं क्योंकि वे इस बात को जानते हैं कि अगर सच्चाई से पूरी बात बता दी जायेगी तो पूरा मामला बदल जायेगा। किस विशेष रिपोर्टर या संचार माध्यम पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं तो इस बारे में हमारा कहना यह है कि सबसे पहले यह देखें कि इस मामले के बारे में ज़ायोनियों का दृष्टिकोण क्या है? अगर यह रिपोर्टर या संचार माध्यम वह नहीं कहता है जो ज़ायोनी कहते हैं तो मेरे अनुसार उस समय रिपोर्टर या संचार माध्यम अपनी पहली परीक्षा में कामयाब रहा है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में ईरान के स्थाई प्रतिनिधि व राजदूत ने सुरक्षा परिषद के नाम एक पत्र लिखकर ईरान विरोधी आरोपों को रद्द करते हुए कहा है कि अमेरिका क्षेत्र और विश्व में आतंकवाद का मूल समर्थक और प्रसारक है।

8 अगस्त 2024 को सुरक्षा परिषद की खुली बैठक में अमेरिकी राजदूत ने रूसी राजदूत के बयानों के जवाब में इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ आतंकवाद के संबंध में निराधार आरोप लगाया और अनुचित बातें कहीं।

राष्ट्रसंघ में ईरान के राजदूत अमीर सईद एरवानी ने सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष और राष्ट्रसंघ के महासचिव के नाम पत्र में अमेरिका के आरोपों के बारे में कहा कि ईरान कड़ाई से इन निराधार आरोपों का खंडन और उसकी भर्त्सना करता है। उन्होंने कहा कि यह हास्यास्पद और शर्म की बात है कि अमेरिका ऐसी स्थिति में ईरान पर आरोप लगा रहा है जब वह नस्ली सफ़ाया करने वाली ज़ायोनी सरकार का मुखर समर्थक है और बहुत सारे हथियारों को ज़ायोनी सरकार को दे रहा है ताकि वह फ़िलिस्तीन के बच्चों और महिलाओं सहित निर्दोष लोगों की हत्या व नरसंहार को जारी रख सके और ग़ज़ा पट्टी में हिंसा, रक्तपात और भय को अधिक लंबा कर सके।

राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने कहा कि ज़ायोनी सरकार के हालिया अपराध में कम से कम 100 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गये। राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत ने कहा कि जारी महीने की 10 तारीख़ को यानी 10 अगस्त को ज़ायोनी सरकार ने ग़ज़ा के केन्द्र में स्थित ताबेईन स्कूल पर हमला किया जिसमें कम से कम 100 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गये। शहीद होने वालों में सबसे अधिक संख्या बच्चों और महिलाओं की थी और यह किसी प्रकार के चूं- चेरा के बिना अमेरिकी समर्थन का परिणाम है।

उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त अमेरिका उन आतंकवादी गुटों का समर्थन करता है जिन्हें राष्ट्रसंघ आतंकवादी मानता है जैसे सीरिया में नुस्रा फ्रंट और यह कार्य राष्ट्रसंघ के घोषणापत्र का खुला उल्लंघन है।

 इसी प्रकार अमेरिका का यह काम अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का भी खुला उल्लंघन है और यह इस वास्तविकता का एक अन्य प्रमाण है कि अमेरिका क्षेत्र में आतंकवाद का अस्ली व मूल समर्थक है और इस प्रकार के काले अतीत के साथ अमेरिका इस लाएक़ नहीं है कि वह दूसरों पर आरोप लगाये या राष्ट्र संघ के दूसरे सदस्यों को नसीहत करे।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में ईरान के राजदूत ने सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के नाम अपने पत्र में मांग की है कि एक प्रमाण के रूप में इस पत्र को सुरक्षा परिषद में दर्ज करके इसका वितरण किया जाये।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के कमांडर-इन-चीफ ने ईरान की सीमाओं में इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के चेहलुम के मौके पर सभी उपलब्धियों के बारे में ऐलान किया है ताकि आने वाले ज़ायरीन को कोई तकलीफ ना हो।

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20 सफ़र को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके निष्ठावान तथा वफ़ादार साथियों का चेहलुम मनाया जाएगा और दुनियाभर से श्रद्धालु इस दिन ख़ुद को कर्बला पहुंचाने के लिए पैदल यात्रा करते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान के पुलिस प्रमुख जनरल ने दक्षिणी ईरान के खूज़िस्तान प्रांत का दौरा किया और तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए किए गए उपायों का जिक्र करते हुए शालमचे सीमा का दौरा किया हैं।

उन्होंने कहा कि ईरान और इराक़ से तीर्थयात्रियों के लिए प्रवेश और निकास सेन्टर बढ़ाने से तीर्थयात्रियों की आवाजाही आसान हो जाएगी।

ज़ायोनी शासन के युद्धमंत्री ने अमेरिका के रक्षा सचिव से मुलाक़ात में कहा है कि ईरान की तैयारी, तेहरान द्वारा इज़राइली शासन पर बड़े पैमाने पर हमले का संकेत दे रही है।

ज़ायोनी शासन की ख़ुफ़िया सेवाएं अपने सहयोगियों की मदद से ईरानी हमले की क्वालिटी, क्वान्टिटी और समय का पता लगाने की कोशिश कर रही हैं।

हिब्रू स्रोतों का हवाला देते हुए पार्सटुडे ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि  अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन और ज़ायोनी युद्धमंत्री योव गैलेंट ने क्षेत्र की ताज़ा स्थिति के बारे में विचार विमर्श किया।

इस फ़ोन कॉल में अमेरिकी रक्षामंत्री ने इस्राईल का समर्थन करने के लिए वाशिंगटन की प्रतिबद्धता पर ज़ोर देते हुए पश्चिम एशिया में अमेरिकी सैन्य क्षमताओं को मज़बूत करने, एफ़-35सी लड़ाकू विमानों और यूएसएस जॉर्जिया और मिसाइल पनडुब्बी से लैस अब्राहम लिंकन युद्धपोत को तेज़ी से इलाक़े में भेजने का एलान किया।

ज़ायोनी शासन के युद्धमंत्री ने अमेरिका के रक्षा सचिव से मुलाक़ात में यह भी कहा है कि ईरान की तैयारी, तेहरान द्वारा इज़राइल पर बड़े पैमाने पर हमले का संकेत दे रही है।

यह ऐसी हालत में है कि जब पश्चिम एशिया, मध्य एशिया और पूर्वी अफ़्रीक़ा के क्षेत्र में स्थित अमेरिकी आतंकवादी सेना के कमांड स्टाफ़ के जिसे सेंटकॉम कहा जाता है, कमांडर माइकल कुरिला ने मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन में पहुंचकर इजराइल के युद्धमंत्री गैलांट से मुलाकात की।

इस वरिष्ठ अमेरिकी सैन्य अधिकारी की यात्रा की समीक्षा, शहीद इस्माईल हनिया की हत्या पर ईरान के संभावित सैन्य हमले के संबंध में तेल अवीव से कोआरडीनेटर के तौर पर भी की जाती है।

इज़राइल के लिए अमेरिका का पूर्ण समर्थन ऐसे समय में आया है कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सीबीएस के साथ रविवार को प्रसारित एक पूर्व-रिकॉर्डेड इन्टरव्यू में ज़ायोनी शासन की विध्वंसक कार्रवाईयों और ग़ज़ा में युद्धविराम की स्थापना के लिए ज़ायोनी अधिकारियों के उल्लंघनों का उल्लेख किए बिना कहा: वाइट हाउस नवम्बर में होने वाले अमेरिकी चुनाव से पहले संघर्ष विराम की उम्मीद कर रहा है।

ज्ञात रहे कि ज़ायोनी अधिकारियों ने अब तक हमास आंदोलन के साथ हर प्रकार के समझौते का विरोध किया है।

7  अक्टूबर, 2023 से, पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से, ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीन के असहाय और मज़लूम लोगों के ख़िलाफ़ ग़ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में एक नया विशाल और व्यापक नरसंहार शुरू किया है।

दूसरी ओर, ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध और लेबनान, इराक़, यमन और सीरिया में अन्य प्रतिरोधकर्ता गुटों ने एलान किया है कि अतिग्रहणकारी शासन इन अपराधों का हर्जाना अदा करेगा।

ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 को ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों के नए दौर की शुरुआत के बाद से 39 हजार से अधिक फिलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं जबकि 92 हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं।

ज्ञात रहे कि ब्रिटेन की साम्राज्यवादी योजना के तहत ज़ायोनी सरकार का बुनियादी ढांचा वर्ष 1917 में तैयार हो गया था और विश्व के विभिन्न देशों से यहूदियों व ज़ायोनियों को फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि में लाकर बसा दिया गया और वर्ष 1948 में ज़ायोनी सरकार के अवैध व ग़ैर क़ानूनी अस्तित्व की घोषणा कर दी गयी और तब से लेकर आज तक फ़िलिस्तीनियों की हत्या, नरसंहार और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा जारी है। इस्राईल अपने अस्तित्व से लेकर अब तक फ़िलिस्तीनी जनता के नरसंहार और उनकी पूरी भूमि को हड़पने के लिए विभिन्न सामूहिक हत्या की योजनाएं चला रहा है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान, इस्राईल के साम्राज्यवादी शासन के पतन और यहूदियों की उनके मूल देशों में वापसी के गंभीर समर्थकों में है। ग़ज़ा पट्टी पर अब तक के इस्राईल के हमलों में इस्राईल को अभी तक कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई और यह शासन दिन प्रतिदिन अपने आंतरिक और बाहरी संकटों में और अधिक डूबता जा रहा है।

इस दौरान ज़ायोनी शासन को इस क्षेत्र में नरसंहार, विनाश, युद्ध अपराध, अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन, सहायता संगठनों पर बमबारी और अकाल और भुखमरी फैलाने के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

इस्राईल भविष्य में किसी भी तरह की उपलब्धि हासिल किए हुए यह युद्ध बुरी तरह हार चुका है और लगभग 9 महीनों बाद भी, वह वर्षों से घेराबंदी में रहे एक छोटे से क्षेत्र में प्रतिरोधकर्ता गुटों को आत्मसमर्पण करने और विश्व जनमत का समर्थन हासिल करने में बुरी तरह नाकाम रहा है।

ईरान की नेश्नल रोबोटिक्स टीम ने 7 से 17 वर्ष आयु वर्ग में विश्व चैम्पियनशिप का उपविजेता का ख़िताब जीत लिया।

ईरान की 7 से 17 साल की नेश्नल रोबोटिक्स टीम ने बीजिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए पिछले साल से बेहतर प्रदर्शन किया और तकनीकी रिपोर्ट के मुताबिक टीम दूसरा स्थान हासिल करने में सफल रही।

ईरान की अंडर-17 प्रतियोगिता में, 48 एलीट रोबोटक्स टीम ने पांच लीग मुक़ाबलों में 3-3 के 16 के ग्रुप्स में भाग लिया। इन मुकाबलों में चीन पहले, ईरान दूसरे और रोमानिया तीसरे स्थान पर रहा।

इसके अलावा, 12 वर्ष से कम आयु के छात्रों के ग्रुप में, तीन छात्रों के दो रचनात्मक ग्रुप, प्रतियोगिता में दूसरे और तीसरे स्थान हासिल करने में सफल रहे और रजत और कांस्य पदक जीते। इस प्रतियोगिता में चीन ने पहला स्थान हासिल किया

इससे पहले, ईरान की छात्रों की राष्ट्रीय रोबोटिक्स टीम ने 2019 मलेशिया प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया था। ईरानी टीम 2022 भारत प्रतियोगिता और 2023 चीन प्रतियोगिता में रनरअप रही थी।