
رضوی
अरबईने इमाम हुसैन, ज़ाएरीन की खिदमत करते हुए बच्चे
इमाम हुसैन अ.स. के अरबईन के मौके पर होने वाला मार्च दुनिया के सबसे शानदार और भावुक धार्मिक समारोहों में से एक है जो हमेशा त्याग, सहानुभूति, ईमानदारी और यक़ीन के सबसे सुंदर उदाहरण पेश करता है।
ईरान की तरफ़ से इजराइल के ख़िलाफ़ स्मार्ट पॉवर का इस्तेमाल, भारतीय राजनयिक की नज़र में
भारत के एक पूर्व राजनयिक भद्र कुमार का ख़याल है कि ईरान अपनी स्मार्ट शक्ति का इस्तेमाल करके, इजराइली शासन की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रभावी हमला करेगा और इस्राईल के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन कम कर देगा।
"ईरान के स्मार्ट पॉवर से इज़राइल को बड़ा झटका" शीर्षक के अंतर्गत एक लेख में भारत के पूर्व राजनयिक एम. के. भद्र कुमार पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रमों पर रोशनी डालते हुए इस क्षेत्र में ईरान की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।
उनका मानना है कि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में हालिया बदलाव, ईरान की बढ़ती शक्ति और अमेरिका की ईरान विरोधी नीतियों के लिए क्षेत्रीय समर्थन में कमी के संकेत देते हैं।
लेखक यह इशारा करते हुए कि ईरान की नई सरकार, दुनिया के साथ रचनात्मक बातचीत की कोशिश में है, इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ईरान की विदेश नीति में इन परिवर्तनों के इज़राइल और अमेरिका के के लिए महत्वपूर्ण परिणाम होंगे।
उनका कहना था कि श्री मसऊद पिज़िश्कियान की चुनाव में जीत, ईरान में एक धड़े की शक्ति को ज़ाहिर करती है, एक ऐसा धड़ा जो उन पुरानी नीतियों को अप्रभावी बना सकता है जिनका इस्तेमाल देश के दुश्मनों द्वारा ईरान में सामाजिक अस्थिरता भड़काने के लिए किया जाता रहा है।
श्री कुमार ने इन घटनाक्रमों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर भी रोशनी डाली और डॉक्टर पिज़िश्कियान से तत्काल बैठक के लिए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी के अनुरोध की तरफ़ इशारा किया।
श्री भद्र कुमार ग्रॉसी के इस क़दम को ईरान और आईएईए के बीच बातचीत के महत्व का संकेत मानते हैं जिससे परमाणु सहयोग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हो सकता है।
लेख के दूसरे हिस्से में भारत के पूर्व राजनयिक एम. के. भद्र कुमार ईरान के प्रति फ़ार्स की खाड़ी के देशों के दृष्टिकोण में बदलाव की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि ये देश, विशेष रूप से सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात, वाशिंगटन के ईरान विरोधी रुख से ख़ुद को दूर कर रहे हैं।
वह अरब लीग की आतंकवादी संगठनों की सूची से हिजबुल्लाह का नाम हटाने को, जिसे अमेरिकी दबाव के कारण शामिल किया गया था, दृष्टिकोण के इस बदलाव के इशारों में एक मानते हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इन बदलावों को ख़ासकर इस्राईल के लिए एक गंभीर ख़तरा माना जाता है।
वह कहते हैं:
आम तौर पर, फ़ार्स की खाड़ी के रजवाड़े, जो ईरान के घटनाक्रमों पर क़रीब से नज़र रखते हैं, पैराडाइम में बदलाव महसूस कर रहे हैं। अहम बात यह है कि श्री पिज़िश्कियान, कट्टरपंथ के परिणामों से निपटने के लिए एक क्षेत्रीय गठबंधन पर ज़ोर देते हैं।
श्री कुमार डॉक्टर पिज़िश्कियान के शब्दों का भी हवाला देते हैं कि: कट्टरपंथियों की आवाज़ से लगभग दो अरब शांतिप्रिय मुसलमानों की आवाज़ दबनी नहीं चाहिए, इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है।
लेखक लिखते हैं कि 1979 की इस्लामी क्रांति के पैंतालीस साल बाद, इस्लामी गणतंत्र को संयम और तर्कसंगतता की आवाज़ के रूप में पेश किया गया! वह कहते हैं:
अलबत्ता, इसका मतलब यह नहीं है कि ईरान और प्रतिरोध के मोर्चे के अन्य सदस्य, इज़राइल की हालिया कार्रवाइयों पर अपने जवाबी हमले को नरम कर देंगे। हनिया की हत्या का ईरान का प्रतिशोध, निश्चित रूप से उससे भी अधिक गंभीर और दर्दनाक होगा जिसका तेल अवीव ने अब तक अनुभव किया है।
भारत के पूर्व राजनयिक श्री कुमार का मानना है कि ईरान के साथ युद्ध, अरब देशों के साथ इजराइली शासन के पिछले युद्धों से बहुत अलग होगा। उनके अनुसार, यह युद्ध तब तक अंतहीन रहेगा जब तक इज़राइल फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना की अनुमति नहीं दे देता।
वह लिखते हैं: इजराइल की जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाएगी, जैसा कि हिज़्बुल्लाह के साथ हुआ था। ईरान के मध्यावधि और दीर्घकालिक फ़ायदे, इज़राइल की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं और इसके साथ ही, युद्ध कई मोर्चों पर और ग़ैर-सरकारी खिलाड़ियों के साथ होगा।
आर्टिकल में आगे आया है:
अमेरिका की ओर से किसी प्रकार की हरी झंडी के बिना, इस बात पर विश्वास करना कठिन है कि इज़राइल ने अपने दम पर ईरान की संप्रभुता पर हमला किया होगा जो कि युद्ध के समान होता है। यह "ज्ञात अज्ञात" वजह स्थिति को बहुत ही खतरनाक बना देती है।
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला ख़ामेनेई पहले ही इजराइली क्षेत्र पर सीधे हमले का आदेश दे चुके हैं। श्री कुमार ने क्षेत्र में अमेरिकी नौसैनिक बलों की तैनाती की ओर भी इशारा किया और इसे स्थिति के बिगड़ने और ईरान और इजराइल के बीच तनाव बढ़ने की संभावना का संकेत क़रार दिया है।
इस संबंध में वह पेंटागन द्वारा जारी रिपोर्टों का हवाला देते हैं जो फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र और पूर्वी भूमध्य सागर में 12 अमेरिकी युद्धपोतों की तैनाती के बारे में जानकारी देती हैं।
भारत के पूर्व राजनयिक श्री कुमार के अनुसार, इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू, पश्चिम एशिया में एक नई वास्तविकता बनाने की कोशिश कर रहे हैं और इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका के समर्थन का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कुमार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि नेतन्याहू इन प्रयासों में न केवल निर्देशक बल्कि स्क्रिप्ट राइटर की भूमिका भी निभाते हैं और अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को उनके साथ समन्वय करने पर मजबूर करना चाहते हैं।
आख़िर में, भद्र कुमार ने यह नतीजा दिया कि पश्चिम एशिया के हालिया घटनाक्रम, क्षेत्र में शक्ति संतुलन में बड़े बदलाव का संकेत देते हैं जिसका क्षेत्र की भविष्य की नीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
उनके अनुसार, ईरान एक अहम खिलाड़ी के रूप में, इजराइल की शत्रुतापूर्ण नीतियों पर प्रभावी हमला करने और इस शासन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को कम करने के लिए अपनी स्मार्ट शक्ति का इस्तेमाल करने में कामयाब रहा है।
सोत्र:
M.K. Bhadrakumar. 2024. Iran To Hit Israel Hard With Smart Power. Eurasiareview
मिस्टर युनाइटेड नेशन्स! लिसेन!
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के क़ानून के आर्टिकल 8 के अनुसार, किसी तीसरे पक्ष द्वारा किसी दूसरे देश की आधिकारिक यात्रा के दौरान किसी देश की आधिकारिक पार्टी के नेता की हत्या का प्रयास एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है।
पार्सटुडे यह लेख ज़ायोनी शासन द्वारा ईरान में हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माईल हनिया और उनके बॉडीगार्ड की हत्या के बाद लिखा गया। यह एक खुला हुआ पत्र है जो संयुक्त राष्ट्र संघ की व्यवहारिक कमज़ोरी और उसके द्वारा नज़र अंदाज़ किए जाने की आलोचना करता है:
सरकारों की अंतर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी के अनुसार, जिसे 2001 में संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्राष्ट्रीय क़ानून आयोग द्वारा बनाया गया था, क्या आपकी आतंकवादी कृत्यों के हवाले से कोई ज़िम्मेदारी नहीं हैं?! क्या ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के विभिन्न आयामों के संबंध में आतंकवाद विरोधी प्रस्ताव और संधियां पारित की हैं?! इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में एक "आतंकवादी बांबिंग के ख़िलाफ अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन" है, जिस पर दुनिया के 164 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।
इस कन्वेंशन के अनुच्छेद 2 के अनुसार, जो कोई भी किसी सार्वजनिक स्थान, सरकारी भवन और सार्वजनिक परिवहन सिस्टम्स के स्टेशनों पर किसी भी तरह से विस्फोटक पदार्थ लाने, रखने और विस्फोट करने का प्रयास करता है, जिससे लोगों में तबाही आती है, चोट या मौत होती है, वह आतंकवादी कृत्य करता है।
मिस्टर युनाइटेड नेशन्स!
क्या 2001 में संयुक्त इंटरनैशनल लॉ कमीशन में पास होने वाले State International Responsibility प्रस्ताव के मुताबिक़ आतंकी गतिविधियों के बारे में आपकी कोई रेस्पांसिबिलिटी नहीं है?! क्या यह सच नहीं है कि इंटरनैशनल कम्युनिटी ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के अलग अलग पहलुओं के बारे में कई आतंकवाद विरोधी प्रस्ताव पास कर रखे हैं? टेररिस्ट बॉम्बिंग कन्वेंशन इनमें से बड़ा महत्वपूर्ण कन्वेंशन हैं जिस पर दुनिया के 164 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।
इस कन्वेंशन का दूसरा अनुच्छेद कहता है कि जो भी, जिस तरह से भी किसी सार्वजनिक स्थान पर, सरकारी इमारत में, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के स्टेशनों पर विस्फोटक पदार्थ ले जाने, प्लांट करने और विस्फोट करने में लिप्त हो और उसके नतीजे में विध्वंस हो या कोई घायल हो या मारा जाए तो उसने आतंकी हरकत की है।
मिस्टर यूएनओ!
एक दूश के राजनैतिक दल के नेता की दूसरे देश की सरकारी यात्रा के दौरान तीसरी ताक़त के हाथों टारगेट किलिंग इंटरनैशनल क्रिमनल कोर्ट के घोषणात्रपत्र के 8वें आर्टिकल के अनुसार एक अंतर्राष्ट्रीय अपराध है। एक फ़िलिस्तीनी पोलीटिकल फ़ीगर की हत्या फ़िलिस्तीन की सावरेंटी पर हमला और उस आर्टिकल के मुताबिक़ जिसका हवाला दिया और युएनओ जनरल असेंबली के प्रस्ताव 3314 के अनुसार भी अंतराष्ट्रीय अपराध और अग्रेशन है।
मिस्टर यूएनओ!
ज़ायोनिस्ट रेजीम की कार्यवाही यूएनओ चार्टर के कई आर्टिकल्ज़ का वाइलेशन है। चार्टर के आर्टिकल 2 में देशों की अखंडता, राजनैतिक स्वाधीनता और संप्रभुता की बात की गई है। इज़राइल ने फ़िलिस्तीन के हमास आंदोलन के नेता को दूसरे देश में क़त्ल किया है यह मेज़बान देश यानी ईरान की संप्रभुता का हनन है। सब जानते हैं कि किसी भी देश के अधिकारियों पर हमला चाहे वो सैन्य अधिकारी हों या सिविलियन अधिकारी हों उस देश की संप्रभुता पर हमला है।
मिस्टर यूनएनओ!
इस्माईल हनीया फ़िलस्तीन की एक क़ानूनी पोलिटिकल पार्टी के नेता और एक राजनेता की हैसियत से डिप्लोमैटिक पास्पोर्ट के साथ ईरान आए थे। हम सब जानते हैं कि किसी भी देश की सरकार से जुड़े व्यक्ति और सम्पत्ति को दूसरे देश में इम्युनिटी हासिल होती है। इसलिए जो इस आतंकवादी हमले ने सरकारों की इम्युनिटी के क़ानून को भी तोड़ा है और साथ ही यह दूसरे देश की अखंडता पर हमला भी है। इस। इस चार्टर के सातवें आर्टिकल में साफ़ तौर पर कहा गया है कि दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। क़ाबिज़ रेजीम ने ईरान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया और यह हरकत ईरान की सरकार की सूचना और अनुमति के बग़ैर अंजाम दी गई।
मिस्टर यूएनओ!
क़ाबिज़ इस्राईल के इस अपराधी गैंग का यह अमल अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद है। यह सरकार सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ हिंसा को गैर क़ानूनी तरीक़े से इस्तेमाल कर रही है और उसका मक़सद आतंकित तरना है। यह अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का सबसे बुनियादी तत्व है जिसके नतीजे में इस्माईल हनीया और उनके बाडीगार्ड की मौत हुई। इस्राईल के इस अपराध पर उसे अंतर्राष्ट्रीय तौर पर जवाबदेह ठहराना ज़रूरी है।
मिस्टर यूएनओ!
इस रेजीम के रिकार्ड में जनसंहार और अग्रेशन की घटनाओं की लंबी सूची है। अपने क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में वह रोज़ाना मानवता विरोधी अपराध कर रही है। हैरत है कि उसे अंतर्राष्ट्रीय वर्चस्ववाद और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का समर्थन भी हासिल है। हर हक़ीक़त हमारे सामने दुनिया में यह एसी रेजीम है जो किसी भी अंतर्राष्ट्रीय क़ानून की पाबंद नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद भी जो अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदार है ज़ायोनिस्ट रेजीम के अधिकारियों पर अंकुश लगाने में बेबस है। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि ज़ायोनिस्ट रेजीम युनाइटैड स्टेट्स की सत्ता का एक हिस्सा है।
मिस्टर यूएनओ!
ईरान, ईरानी जनता और दुनिया के आज़ाद इंसानों के पास इस अपराध का इंतेक़ाम लेने का अधिकार पूरी तरह सुरक्षित है।
पेरिस ओलंपिक 2024 , ईरान के खेल कारवाँ के नाम सर्वोच्च नेता का शुक्रिया संदेश
ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पेरिस ओलंपिक 2024 में ईरान के खेल कारवां के मुक़ाबले पूरे होने पर शुक्रिया संदेश जारी किया।
राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के प्रमुख के एक ख़त के जवाब में अपने एक संदेश में उन्होंने देश के खिलाड़ियों, खेल संघों के प्रमुखों और कोचों का शुक्रिया अदा किया है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता का संदेश इस प्रकार है:
बिस्मेही तआला
प्यारे और अच्छे जज़्बे वाले और मज़बूत इरादे के खिलाड़ियों, खेल संघों के प्रमुखों, कोचों और राष्ट्रीय ओलंपिक समिति का दिल से शुक्रिया जो हालिया मुक़ाबलों में खेल के मैदान में देश की ख़ुशी और गौरव का कारण बने। आप सब कामयाब रहें, इनशाअल्लाह।
सैयद अली ख़ामेनेई
12 अगस्त 2024
ओलंपिक राष्ट्रीय कमेटी के प्रमुख महमूद ख़ुस्रवी वफ़ा ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के खिलाड़ियों के कारवां की कुछ उपलब्धियों के संबंध में "ख़ादिमुर्रज़ा" शीर्षक के अंतर्गत लिखा और जानकारी दी थी। इस पत्र में उन्होंने ईरानी महिला ख़िलाड़ियों को मिलने वाली कुछ उपलब्धियों और उनके अच्छे प्रदर्शन का ज़िक्र किया था।
ईरानी खिलाड़ियों के कारवां ने पेरिस ओलंपिक 2024 में कुछ खेलों में पदक प्राप्त किया और फ्री स्टाइल कुश्ती और ताइक्वांडो में ओलंपिक में उप चैंपियन का ख़िताब जीत लिया। पेरिस ओलंपिक में 200 से अधिक देशों के खिलाड़ियों ने भाग लिया।
पेरिस ओलंपिक में यूक्रेन 22वें स्थान पर, बेल्जियम 25वें स्थान पर, डेनमार्क 29वें स्थान पर, ऑस्ट्रिया 36वें स्थान पर, दक्षिण अफ्रीक़ा 44वें स्थान पर, मिस्र 52वें स्थान पर, तुर्किये 64वें स्थान पर और भारत 71वें स्थान पर रहा जबकि ईरान 21वें स्थान पर रहा।
ज्ञात रहे कि पेरिस ओलंपिक 2024 में ईरान के खेल कारवां ने ग्रीको रोमन और फ़्री स्टाइल कुश्ती और ताइक्वांडो में 12 पदक (3 स्वर्ण, 6 रजत और 3 कांस्य पदक) जीते।
नस्लवाद को लेकर ब्रिटिश में तोड़फोड़ और हंगामा
ब्रिटिश में तोड़फोड़ हिंसक प्रदर्शन के दौरान लीवरपूल, हल, ब्रिस्टल, मैनचेस्टर, ब्लैकपूल और बेलफास्ट में बोतलें फेंकी गईं कई जगहों पर पुलिस पर हमले किए।
ब्रिटिश में तोड़फोड़ हिंसक प्रदर्शन के दौरान लीवरपूल, हल, ब्रिस्टल, मैनचेस्टर, ब्लैकपूल और बेलफास्ट में बोतलें फेंकी गईं कई जगहों पर पुलिस पर हमले किए।
जो गोरे कभी आधी दुनिया पर राज किया करते थे वे अब हम जैसे लोगों से कह रहे हैं कि आपने यहां आकर हमारी नौकरियां छीन लीं हैं आख़िर ऐसा क्यों है?
लगभग 70-75 साल पहले हमारे पूर्वज गोरों से आज़ादी पाने के लिए अपने घर से निकले थे.ब्रिटेन में होटलों पर दुकानों पर मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं।
वज़ीर ए आज़म कहते हैं कि यह बदमाश हैं वहीं मीडिया कहता है कि ये प्रो-यूके विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं ब्रिटेन में तीन बच्चियों की मौत के बाद हिंसक प्रदर्शन अब तक 90 लोग गिरफ़्तारकोई यह नहीं बताता कि यह ग़ुस्सा गोरे देशों से आए आप्रवासियों पर क्यों नहीं निकलता है।
सरकार भी और गोरे नागरिक भी अपने घरों के दरवाजे़ खोलकर उनका स्वागत करते हैं. ऐसा करना भी चाहिए।
गोरा भले ही कम पढ़ा लिखा हो भारत पाकिस्तान जैसे देश में जाकर वह खुद को प्रधान समझने लगता है और अगर वहां से कोई सर्जन बनकर भी आ जाए तो कई गोरों के लिए वह अप्रवासी और ग़ैरक़ानूनी ही रहता है।
जब किसी ढाके वाले के ढाबे का चिकन टिक्का मसाला खा-खा कर बीमार पड़ जाएगा तो उसका इलाज कोई गुजरात से आया डॉक्टर ही करेगा, नर्स भी जमैका की होगी. और फिर दवा लेने के लिए फ़ार्मेसी जाएगा।
वहां भी कोई हमारा ही भाई-बहन खड़ा होगा .ब्रिटेन के चुनावों में जीत का परचम लहराने वाले ये हैं भारतीय मूल के नेताब्रिटेन के राजनेताओं ने अपनी सारी अक्षमताओं का भार विदेश से आए काले और भूरे लोगों पर डाल दिया है।
गाज़ा में इज़रायली ज़ुल्म का सिलसिला जारी अब तक 20 लाख बेघर और 10हज़ार लापता
गाज़ा में ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि इज़राईली शासन के लगातार हमलों के कारण 20 लाख लोग बे घर हो चुके हैं और घायलों में 70% महिलाएँ और बच्चे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार फिलिस्तीनी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स द्वारा रविवार को जारी आंकड़े बताते हैं कि इजरायली सरकार ने पिछले अक्टूबर से गाज़ा की 1.8 प्रतिशत आबादी को मार डाला है।
टी आर टी समाचार वेबसाइट के अनुसार, इस कार्यालय ने एक बयान में घोषणा की कि 7 अक्टूबर, 2023 से गाजा पर इजरायली सरकार के हमलों में 39,000 से अधिक लोग शहीद हो गए हैं।
कार्यालय ने कहा कि गाज़ा में शहीद हुए फ़िलिस्तीनी लोगों में से लगभग 24 प्रतिशत युवा थे यह आंकड़े यह भी बताते हैं कि लगभग 3,500 बच्चे कुपोषण और भोजन की कमी के कारण मृत्यु के कगार पर हैं।
गाज़ा में घायलों में 70 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं, जबकि लगभग 10,000 लोग अभी भी लापता हैं और लगभग 2 मिलियन लोग बे घर हो गए हैं।
शनिवार की रात को इजरायली सेना ने हाल के हफ्तों में गाजा पट्टी में सबसे बड़े नरसंहारों में से एक को अंजाम दिया जिसमें "हे अल-दर्ज" क्षेत्र में अलतबयिन स्कूल पर हवाई हमला किया गया हैं।
जिसके परिणामस्वरूप हमला हुआ 100 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीदों और दर्जनों घायल और लापता में दुनिया भर के देशों और महत्वपूर्ण हस्तियों ने इस त्रासदी पर अपना गुस्सा व्यक्त किया और निंदा और शोक का संदेश जारी किया हैं।
ईरान हमेशा से क्षेत्र और वैश्विक स्तर पर शांति और सुरक्षा चाहता है
ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान ने यूरोपीय काउंसिल के प्रमुख से टेलीफोन पर बातचीत की बातचीत के दौरान कहा,अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों की पॉलिसी और नीति के कारण इज़राईली सरकार अधिक अहंकारी हो गई है।
ईरान के राष्ट्रपति डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान ने यूरोपीय परिषद के प्रमुख चार्ल्स मशल के साथ टेलीफोन पर मध्य पूर्व की नवीनतम स्थिति पर चर्चा की और कहा,अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों की दोगाला नीति के कारण इज़राईली सरकार अधिक अहंकारी हो गई है।
उन्होंने इस मौके पर आपसी संबंधों और ज़ायोनी सरकार के आक्रामक हमलों के कारण क्षेत्र में उत्पन्न संकट पर भी चर्चा की हैं।
ईरानी राष्ट्रपति ने कहा ईरान हमेशा क्षेत्र और विश्व स्तर पर शांति और सुलह चाहता है इसीलिए हमने शांति और स्थिरता के खतरों का मुकाबला करने में हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा इज़राईली शासन के कारण क्षेत्र की शांति और स्थिरता लगातार खतरे में है अमेरिका और यूरोपीय देशों को दोहरी नीति छोड़नी चाहिए क्योंकि यह नीति इज़राईल शासन को आपराधिक हमले करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान ने कहा, यदि पार्टियां अपने वादे निभाती हैं तो ईरान और यूरोप के बीच परमाणु मुद्दों पर बातचीत फिर से शुरू हो सकती हैं।
गौरतलब है कि यूरोपीय परिषद के प्रमुख ने अपनी बातचीत के दौरान उम्मीद जताई कि ईरान और यूरोपीय देशों के बीच आपसी हितों वाले संबंध फिर से शुरू होंगें।
ईरान का जवाब निश्चित है, अली बाक़िरी
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय के ज़िम्मेदार ने ज़ायोनी सरकार की आतंकवादी कार्यवाही में हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख को शहीद करने और इसी प्रकार ग़ज़ा पट्टी में ताबेईन स्कूल पर इस्राईली हमले के संबंध में वार्ता की।
ईरान के विदेशमंत्रालय के ज़िम्मेदार अली बाक़ेरी ने बेल्जियम, नीदरलैंड, इंडोनेशिया और हमास आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सहायक से अलग- अलग टेलीफ़ोनी वार्ता की।
अली बाक़ेरी ने बेल्जियम की विदेशमंत्री Hadja Lahbib के साथ टेलीफ़ोनी वार्ता में ज़ायोनी सरकार द्वारा 10 महीने से अधिक समय से किये जा रहे अपराधों और फ़िलिस्तीनियों के नस्ली सफ़ाये की ओर संकेत किया और कहा कि ज़ायोनी सरकार ने ग़ज़ा पट्टी में एक स्कूल को लक्ष्य बनाकर और इबादत के समय इस स्थान पर निर्दोष लोगों को शहीद करके और बैरूत में आवासीय क्षेत्रों पर हमला करके और तेहरान में इस्माईल हनिया को कायरतापूर्ण ढंग से शहीद करके क्षेत्र की शांति व सुरक्षा का उल्लंघन किया है।अली बाक़ेरी ने इस टेलीफ़ोनी वार्ता में कहा कि ईरान अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के आधार पर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा व संप्रभुता की रक्षा के लिए अतिक्रमणकारी ज़ायोनी सरकार को करारा जवाब देगा।
इस टेलीफ़ोनी वार्ता में बेल्जियम की विदेशमंत्री Hadja Lahbib ने भी अपना भविष्य निर्धारित करने हेतु फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के अधिकारों का समर्थन किया और ज़ायोनी सरकार द्वारा कालोनियों के निर्माण की भर्त्सना की और कहा कि बेल्जियम बेघर होने वाले फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थन करता है और साथ ही वह कालोनियों में रहने वाले अतिवादी ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाये जाने का समर्थन करता है।
अली बाक़ेरी ने इसी प्रकार नीदरलैंड के विदेशमंत्री कैस्पर वेल्डकैंप के साथ टेलीफ़ोनी वार्ता में ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी सरकार द्वारा एक स्कूल पर हमले और दसियों निर्दोष लोगों के शहीद व घायल होने की ओर संकेत किया और कहा कि अगर यही अपराध ज़ायोनी सरकार के अलावा कोई और सरकार अंजाम देती तो अब तक पश्चिमी देश इंसान और मानवाधिकार की रक्षा का राग अलापने लगते।
इस्लामी गणंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय के ज़िम्मेदार ने बल देकर कहा कि ज़ायोनी सरकार के अपराधों का जवाब ईरान का क़ानूनी अधिकार है और नीदरलैंड की सरकार को चाहिये कि वह ज़ायोनी सरकार के अपराधों की भर्त्सना के साथ अतिक्रमणकारी का जवाब देने हेतु ईरान के क़ानूनी अधिकार का समर्थन करे।
नीदरलैंड के विदेशमंत्री कैस्पर वैल्डकैंप ने भी कहा कि एक स्कूल पर हमला चिंता का विषय है और नीदरलैंड युद्ध विराम किये जाने, हिंसा को कम करने और ग़ज़ा पट्टी मानवता प्रेमी सहायता भेजे जाने की मांग करता है।
इसी प्रकार प्रकार अली बाक़ेरी ने इंडोनेशिया की विदेशमंत्री रेत्नो मर्सुदी के साथ टेलीफ़ोनी वार्ता में भी कहा कि वर्तमान समय में ज़ायोनी सरकार के अपराधों के कारण पश्चिम एशिया एक संकटमयी स्थिति व हालात से गुज़र रहा है और इस्लामी देशों को चाहिये कि ज़ायोनी सरकार के अपराधों के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों की सहायता करने का मार्ग प्रशस्त करें।
इस टेलीफ़ोनी वार्ता में इंडोनेशिया की विदेशमंत्री ने भी तेहरान में ज़ायोनी सरकार की हालिया हत्या सहित दूसरे अपराधों को अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया और इस्माईल हनिया की हत्या की भर्त्सना की और उसे इस्लामी गणतंत्र ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन बताया।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय के ज़िम्मेदार ने फ़िलिस्तीन के हमास आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के सहायक ख़लील अलहय्या से भी टेलीफ़ोनी वार्ता की और ग़ज़ा में ताबेईन स्कूल पर ज़ायोनी सरकार के नये हमले से संबंधित विस्तृत पैमाने पर ईरान के विचार- विमर्श की ओर संकेत किया और कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गम्भीर रूप से ज़ायोनी सरकार के ताज़ा अपराधों की भर्त्सना कराये जाने के प्रयास में है।
ख़लील अलहय्या ने भी इस टेलीफ़ोनी वार्ता में दसियों बच्चों और महिलाओं को शहीद करने में ज़ायोनी सरकार के ताज़ा अपराधों की ओर संकेत किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस आतंकवादी कार्यवाही की भर्त्सना की मांग की और इस संबंध में तेहरान के साथ विचार- विमर्श के जारी रहने पर बल दिया।
अरबईन हुसैनी के लिए 77 हज़ार से अधिक लोगों ने मेहरान बॉर्डर पार किया
ईरान के शहर इलाम के रोडवेज और ट्रांसपोर्ट के जनरल डायरेक्टर ने पिछले दिन और रात में 77 हज़ार 918 लोगों की आवाजाही की खबर दी हैं।
ईरान के शहर इलाम के रोडवेज और ट्रांसपोर्ट के जनरल डायरेक्टर ने पिछले दिन और रात में 77 हज़ार 918 लोगों की आवाजाही की खबर दी हैं।
सैयद ज़ाहिदैन चश्मख़वार ने सोमवार 12 अगस्त की सुबह एक साक्षात्कार मेहरान सीमा पर तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि का उल्लेख किया और कहा पिछले एक दिन और रात में 77 हजार 918 लोगों ने मेहरान अंतर्राष्ट्रीय सीमा से यात्रा की हैं। कुल 11,592 लोगों ने ईरान में प्रवेश किया और 66,326 लोगों ने मेहरान से इराक में प्रवेश किया हैं।
उन्होंने आगे कहा इस संख्या में से 11 हज़ार 213 लोग ईरान में दाखिल हुए और 64 हज़ार 270 लोग ईरान से इराक चले गए।
एलाम के सड़क और परिवहन के महानिदेशक ने कहा आंकड़ों के अनुसार 379 विदेशी नागरिकों ने देश में प्रवेश किया और 2056 लोगों ने शहीद कासिम सुलेमानी सीमा टर्मिनल के माध्यम से देश से इराक में प्रवेश किया हैं।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इलाम प्रांत और मेहरान की सीमा पूरे वर्ष तीर्थयात्रियों अरबईन हुसैनी और पवित्र तीर्थस्थलों के लिए यातायात की मुख्य सीमा है और पिछले वर्ष मेहरान अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अरबईन यातायात 30 मिलियन और 6 मिलियन से अधिक दर्ज किया गया था।
ज़ायोनियों की साम्राज्यवादी योजना को क्यों ख़त्म किया जाना चाहिए?
इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि साम्राज्यवादियों या बाहरी दबाव से मजबूर हुए बिना साम्राज्यवादियों ने शायद ही कभी साम्राज्यवादी शासन छोड़ा हो। इसीलिए, साम्राज्यवादियों के ख़िलाफ लगातार बढ़ती और निरंतर हिंसा को रोकने का एकमात्र और सही तरीका, कठोर आंतरिक और बाहरी दबाव का इस्तेमाल करना है। साम्राज्यवाद को ख़त्म करने का इतिहास सदैव हिंसा से जुड़ा रहा है।
हालांकि, ऐसे दुर्लभ मामलों में जहां छोटे द्वीपों को साम्राज्यवादी ताक़तों द्वारा ख़ाली कर दिया गया है और साम्राज्यवादियों के ख़ात्मे को सर्वसम्मति से नहीं बल्कि हिंसा के बिना किया गया है।
हमास, इजराइली शासन और उसके प्रति दुनिया में मौजूद विभिन्न दृष्टिकोणों पर चर्चा करने के लिए, किसी को ज़ायोनियों की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को समझना होगा और फिलिस्तीनी प्रतिरोध को साम्राज्यवादी विरोधी संघर्ष के रूप में पहचानना होगा।
पार्सटुडे पत्रिका के इस लेख में इस मुद्दे के कुछ पहलुओं पर रोशनी डाली जाएगी:
नरसंहार के मुद्दे का विश्लेषण, जिसे ज़ायोनियों के अस्तित्व के जन्म के बाद से अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की सरकारों ने नज़रअंदाज कर दिया है।
इससे पता चलता है कि फ़िलिस्तीन में हिंसा की जड़ 19वीं सदी के अंत में ज़ायोनियों के विस्तार और अप्रवासियों की एक साम्राज्यवादी योजना में निहित है क्योंकि ज़ायोनिज़्म, अप्रवासियों की अन्य साम्राज्यवादी योजनाओं की तरह, मूल आबादी को खत्म करने की कोशिश करता था।
जब हिंसा के बिना बहिष्कार हासिल नहीं किया जा सकता है तो साम्राज्यवादियों का समाधान ज़्यादा हिंसा के इस्तेमाल पर निर्भर हो जाता है और एकमात्र चीज़ जिसमें एक साम्राज्यवादी अप्रवासी योजना, स्वदेशी लोगों के खिलाफ अपनी हिंसा को समाप्त कर सकती है और यह तब ही मुमकिन होती है जब वह योजना समाप्त हो जाती है या ख़त्म हो जाती है।
हिंसा का प्रारूप
आधुनिक फ़िलिस्तीन में 1882 से 2000 तक हिंसा का इतिहास उल्लेखनीय है। 1882 में फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी अप्रवासियों के पहले ग्रुप का आगमन, सिर्फ़ हिंसा का पहला क़दम नहीं था।
अप्रवासियों की हिंसा, जानकारियों पर आधारित और जानबूझकर थी। इसका मतलब यह था कि फ़िलिस्तीन में प्रवेश करने से पहले अप्रवासियों द्वारा फ़िलिस्तीनियों को हिंसक तरीके से हटाना उनके लेखन, कल्पनाओं और सपनों में शामिल था:
"लोगों के बिना ज़मीन" दास्तान। ज़ायोनियों ने इस विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए 1918 में फ़िलिस्तीन पर ब्रिटिश क़ब्ज़े का इंतज़ार किया। कुछ साल बाद, 1920 के दशक के मध्य में, ब्रिटिश सरकार की मदद से ग्यारह गांवों का जातीय सफ़ाया कर दिया गया।
सिर्फ़ यहूदियों के लिए काम
फ़िलिस्तीनियों को बेदखल करने के प्रयास में हिंसा का यह पहला व्यवस्थित क़दम था। हिंसा का दूसरा रूप "यहूदी काम" की रणनीति थी जिसका मक़सद, फिलिस्तीनियों को श्रम बाज़ार से निकालकर बाहर फेंकना था।
इस रणनीति और जातीय सफाए के कारण फ़िलिस्तीनियों को अन्य स्थानों पर जबरन प्रवास करना पड़ा जो निश्चित रूप से, काम या उचित आवास मुहैया कराने में सक्षम नहीं थे।
अशुभ उपासना स्थल और इंतिफ़ाज़ा की शुरुआत
1929 में जब हिंसा की इन कार्रवाइयों को हरम अल-शरीफ़ की जगह पर अशुभ उपासना स्थल बनाने की बात के साथ जोड़ा गया तो फिलिस्तीनियों ने पहली बार हिंसा से जवाब दिया।
यह कोई समन्वित जवाब नहीं था, बल्कि फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी साम्राज्यवाद के कड़वे परिणामों के प्रति एक सहज और हताश प्रतिक्रिया थी।
सात साल बाद, जब ब्रिटेन ने अधिक अप्रवासियों को अनुमति दी और अपनी सेना के साथ एक नई ज़ायोनी सरकार के गठन का समर्थन किया तो फिलिस्तीनियों ने और अधिक संगठित अभियान शुरू किया।
यह पहला इंतिफ़ाज़ा था जो तीन साल (1936-1939) तक चला और इसे अरब विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इस अवधि के दौरान, फिलिस्तीन के मेधावी वर्ग ने अंततः ज़ायोनियों को फिलिस्तीन और उसके लोगों के लिए एक संभावित खतरे के रूप में पहचान लिया।
रक्षा की आड़ में हमला
विद्रोह को दबाने में ब्रिटिश सेना के साथ सहयोग करने वाले ज़ायोनी पक्षपातियों के मुख्य ग्रुप को हेगाना कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है "रक्षा"।
फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ किसी भी आक्रामक कार्रवाई का वर्णन करने के लिए इजराइली कहानी में भी यही बात कही जाती है। यानी, किसी भी हमले को आत्मरक्षा के रूप में प्रस्तुत किया गया था, एक अवधारणा जो इजराइली सेना का नाम, इजराइल के रक्षा बलों के नाम से जोड़ती होती है।
ब्रिटिश प्रभाव के ज़माने से लेकर आज तक, इस सैन्य शक्ति का उपयोग, ज़मीनों और बाज़ारों को जब्त करने के लिए किया जाता रहा है।
इस सेना को फ़िलिस्तीन के साम्राज्यवादी विरोधी आंदोलन के हमलों के ख़िलाफ़ एक रक्षा बल के रूप में पेश किया गया था और इसीलिए यह 19वीं और 20वीं शताब्दी में अन्य साम्राज्यवादियों से अलग नहीं थी।
मक़तूल की जगह आतंकवादी का नाम देना
फ़र्क़ यह है कि आधुनिक इतिहास में ज़्यादातर मामलों में जहां साम्राज्यवाद, समाप्त हो गया है, साम्राज्यवादियों के कार्यों को हमलों के के रूप में देखा जाता है, न कि आत्मरक्षा के रूप में। ज़ायोनियों की बड़ी सफलता, हमलों को आत्मरक्षा और फ़िलिस्तीनियों के सशस्त्र संघर्ष को आतंकवाद के रूप में देखना है।
ब्रिटिश सरकार कम से कम 1948 तक हिंसा के दोनों कृत्यों को आतंकवाद मानती थी लेकिन उसने 1948 में फिलिस्तीनियों के खिलाफ सबसे ख़राब हिंसा की अनुमति देना जारी रखा, ठीक उसी समय जब वह फिलिस्तीनियों के जातीय सफाए का पहला चरण देख रही थी।
दिसम्बर 1947 और मई 1948 के बीच, जब ब्रिटेन अभी भी क़ानून और व्यवस्था का ज़िम्मेदार था, ज़ायोनी सैनिकों ने फिलिस्तीन के मुख्य शहरों और उनके आसपास के गांवों को नष्ट कर दिया था। यह आतंक से कहीं अधिक और मुख्यरूप से मानवता के विरुद्ध अपराध था।
मई और दिसम्बर 1948 के बीच जातीय सफाए का दूसरा चरण पूरा होने के बाद, फिलिस्तीनी आबादी के आधे हिस्से को जबरन निष्कासित कर दिया गया, उसके आधे गांवों को नष्ट कर दिया गया और इसके अधिकांश शहरों को सबसे हिंसक तरीकों से नष्ट कर दिया गया जो फिलिस्तीन ने सदियों से देखा है।
इससे पता चलता है कि फ़िलिस्तीन में हिंसा की जड़ 19वीं सदी के अंत में ज़ायोनियों के विस्तार और अप्रवासियों की एक साम्राज्यवादी योजना में निहित है क्योंकि ज़ायोनिज़्म, अप्रवासियों की अन्य साम्राज्यवादी योजनाओं की तरह, मूल आबादी को खत्म करने की कोशिश करता था।
जब हिंसा के बिना बहिष्कार हासिल नहीं किया जा सकता है तो साम्राज्यवादियों का समाधान ज़्यादा हिंसा के इस्तेमाल पर निर्भर हो जाता है और एकमात्र चीज़ जिसमें एक साम्राज्यवादी अप्रवासी योजना, स्वदेशी लोगों के खिलाफ अपनी हिंसा को समाप्त कर सकती है और यह तब ही मुमकिन होती है जब वह योजना समाप्त हो जाती है या ख़त्म हो जाती है।
स्रोत:
Ilan Pappe. 2024.To stop the century-long genocide in Palestine, uproot the source of all violence: Zionism. The new Arab.