رضوی

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फिलिस्तीनी इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माइल हनीयेह की शहादत के बाद हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख के रूप में यह्या सनवार को चुना गया हैं।

अलजज़ीरा के हवाले से फिलिस्तीनी इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माइल हनीयेह की शहादत को एक सप्ताह भी नहीं बीता था जब हमास ने एक बयान में घोषणा की कि उसने यह्या सनवार को राजनीतिक कार्यालय के नेता के रूप में शहीद इस्माइल हानियेह के उत्तराधिकारी के रूप में चुना है।

यह इस तथ्य के बावजूद है कि हमास के राजनीतिक कार्यालय के पूर्व प्रमुख खालिद मेशाल जैसे विभिन्न विकल्पों को शहीद हनियेह के उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तावित किया गया था लेकिन गाजा के खिलाफ़ इज़राईल शासन के विनाशकारी युद्ध के बीच सेनवार की पसंद स्ट्रिप के कई संदेश और निहितार्थ हैं।

सनवार एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने अपना अधिकांश जीवन ज़ायोनी शासन की जेलों में और फिर इस शासन के साथ युद्ध में बिताया हैं।

यह्या सनवार सुरक्षा और राजनीतिक हलके और न ही ज़ायोनी निवासी उसके साथ सहज महसूस करते हैं और तेल अवीव उसे क्षेत्र में अपने सबसे खतरनाक दुश्मन के रूप में पहचानता है।

सेनवार कि जो ज़ायोनी शासन और उसके समाज को अच्छी तरह से जानते है और वे भी उसे अच्छी तरह से जानते हैं, क़ल्बे मैदान से हमास के राजनीतिक कार्यालय का नेतृत्व करते हैं। वह मूसा अबू मरज़ौक, खालिद मेशाल और शाहिद इस्माइल हनियेह के बाद हमास के चौथे नेता के रूप में यह पद संभाल रहे हैं।

 

 

 

 

 

दुनियाभर में चर्चा के केंद्र में आए बांग्लादेश को लेकर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का बयान तेज़ी से वायरल हो रहा है। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने बयान दिया है कि बांग्लादेश में जो हो रहा है वो यहां भी हो सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में ये बात कही। उन्होंने कहा कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य लग सकता है। हम भले ही जीत का जश्न मना रहे हों, हालांकि निश्चित रूप से कुछ लोगों का मानना ​​है कि वह जीत या 2024 की सफलता शायद मामूली थी, शायद बहुत कुछ करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘सच्चाई यह है कि सतह के नीचे कुछ है। बांग्लादेश में जो हो रहा है वह यहां भी हो सकता है।’ बांग्लादेश में जून से आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है, अगस्त में ये और हिंसक हो गया। कई लोगों की जान चली गई, लोगों की बढ़ती आवाज के कारण ही शेख हसीना की कुर्सी चली गई और उन्हें देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

 

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री हसीना के देश छोड़ने और अभूतपूर्व उथल-पुथल के बीच पुलिस स्टेशन वीरान हो गए हैं। देश के ज्यादातर पुलिस स्टेशनों, जिनमें राजधानी ढाका भी शामिल है, में इस समय कोई पुलिसकर्मी मौजूद नहीं है। वे सभी सुरक्षित स्थानों पर शरण लिए हुए हैं। कई लोग निजी सुरक्षा के लिए अपने रिश्तेदारों के यहां रह रहे हैं। हाल ही में अपदस्थ अवामी लीग सरकार के करीबी उच्च पदस्थ अधिकारी छिप गए हैं।

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, देश में हिंसक सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के 20 से ज्यादा नेताओं के शव मिले हैं। देश में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। अभिनेता शांतो खान और उनके पिता की हत्या कर दी गई है। वह शापला मीडिया के मालिक हैं। जानकारी के मुताबिक, दोनों लोगों की उपद्रवियों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी।

एक जर्मन महिला को फिलिस्तीन के समर्थन और इस्राईल के युद्ध अपराधों का विरोध उस समय भारी पद गया जब जर्मनी की एक अदालत ने इस महिला को कठोर सज़ा सुनाई।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमले के बाद बर्लिन में विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें एक 22 साल की महिला ने फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाए थे। इस नारे को नवंबर में गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया, जिसको लेकर अब अदालत ने महिला को सजा सुनाई है।

अदालत ने इस घटना पर फैसला करते हुए कहा कि जंग के शुरू होने के तुरंत ही इस तरह के नारे लगाने का मतलब अवैध राष्ट्र के अस्तित्व का खंडन और हमास के हमले को सपोर्ट करना माना जा सकता है।

एवा ने फिलिस्तीन के समर्थन में 11 अक्टूबर को किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान नारे लगाए थे। एवा ने नारा लगाते हुए कहा था कि "from the river to the sea, Palestine will be free" इस स्लोगन का अर्थ फिलिस्तानियों की आजादी से है।

बर्लिन में इस तरह के नारे बैन किए गए हैं। अदालत में अब इस मामले में फैसला सुनाते हुए उस पर 600 यूरो यानी 60 हजार से ज्यादा का जुर्माना लगाया गया है। एवा के वकील अलेक्जेंडर गोर्स्की ने अदालत के इस फैसले को फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के लिए ब्लैक डे बताया है।

रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव से मुलाक़ात में इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में अमेरिका सहित कुछ शक्तियों के एकछत्र प्रभुत्व और वर्चस्व का दौर समाप्त हो गया है।

बहुध्रुवीय विश्व व्यव्सथा को बढ़ावा देने की दिशा में ईरान और रूस के बीच पाया जाने वाले समान नज़रिये और सहयोग से निश्चित रूप से वैश्विक सुरक्षा और शांति को और बढ़ावा मिलेगा। रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के अधिकारियों से मिलने के लिए तेहरान की यात्रा की है।

ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु से अपनी मुलाक़ात में ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए भयानक अपराधों और क्षेत्र में युद्ध की आग भड़काने के लिए इस शासन की कार्रवाइयों का ज़िक्र करते हुए मानवाधिकार के दावेदार के रूप में अमेरिका और कुछ पश्चिमी देशों की ओर से ज़ायोनी शासन की आलोचना की।

राष्ट्रपति श्री पिज़िश्कियान ने कहा कि ग़ज़ा के मज़लूम और असहाय लोगों के खिलाफ ज़ायोनी शासन की आपराधिक कार्रवाइयां, साथ ही ईरान में हमास आंदोलन के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माईल हनिया की हत्या की कार्रवाइ, सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और नियमों के उल्लंघन का खुला उदाहरण है। उन्होंने कहा: ईरान क्षेत्र में युद्ध और संकट का दायरा बढ़ाना नहीं चाहता है लेकिन इस्राईली शासन को अपने अपराधों और अहंकार का जवाब निश्चित रूप से मिलेगा।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने भी रूस के साथ संबंधों के विस्तार को ईरान की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में क़रार दिया और दोनों देशों के बीच हुए समझौतों के कार्यान्वयन में तेजी लाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने और ज़ायोनी शासन के आपराधिक कृत्यों की निंदा करने में रूस के रुख की सराहना करते हुए, चिकित्सा विशेषज्ञों ने दोनों देशों के बीच, विशेष रूप से राजनीतिक और आर्थिक मामलों में बातचीत विकसित करने के लिए इस्लामी गणराज्य ईरान के दृढ़ संकल्प पर जोर दिया।

इस मुलाक़ात में रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु ने ईरान को क्षेत्र में रूस के प्रमुख और रणनीतिक सहयोगियों में क़रार दिया और उन्होंने एक बहुध्रुवीय दुनिया बनाने और क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों के संयुक्त प्रयासों पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की।

उन्होंने कहा: रूस और ईरान के बीच सभी क्षेत्रों में संबंध बढ़ रहे हैं और बातचीत के विस्तार की बहुत अच्छी संभावनाएं पायी जाती हैं।

रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव ने भी उत्तर-दक्षिण गलियारे सहित दोनों देशों के बीच संयुक्त परियोजनाओं को पूरा करने में तेजी लाने में अपने देश की रुचि पर जोर दिया और स्पष्ट किया: रूस, संयुक्त राष्ट्र संघ, ब्रिक्स और शंघाई जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ सहयोग को बहुत महत्व देता है।

 

 

ईरान हमास लीडर इस्माइल हानिया की हत्या का बदला लेने की पूरी तैयारी कर चुका है। सूत्रों के मुताबिक-ईरानी सेना किसी भी वक्त इस्राईल पर हमला कर सकती है। हमले की आशंका को देखते हुए इस्राईल पूरी तरह से अलर्ट मोड पर आ गया है। अपने सभी नागरिकों को हाई अलर्ट कर दिया है।

ईरान की अंडरग्राउंड मिसाइल सिटी में इस वक्त हलचल बहुत तेज है। ईरानी सेना साइलो के पास बैलिस्टिक मिसाइलें पहुंचा रही है। ईरान ने घोषणा कर दी है कि अवैध राष्ट्र पर अब तक का सबसे बड़ा और विध्वंसक हमला होने जा रहा है।

पेंटागन ने भी ज़ायोनी शासन को अलर्ट करते हुए कहा है कि ईरान इस बार 2 हजार मिसाइलों से हमला करने जा रहा है। किसी भी वक्त यह हमला हो सकता है। ज़ायोनी शासन ने अलर्ट जारी करते हुए किर्यत शमोना और ऊपरी गलील से नहरिया तक, उत्तरी फिलिस्तीन में रह रहे ज़ायोनी अतिक्रमणकारियों को संरक्षित क्षेत्रों के करीब रहने का निर्देश दिया है। अगले 48 घंटे तक खुले में नहीं निकलने के लिए कहा गया है। दूसरी ओर ईरान ने भी अपना एयरस्पेस बंद कर दिया है।

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) चूंकि फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) थे इस लिये आप में सीरते मोहम्मदिया का होना लाज़मी था। अल्लामा मोहम्मद इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि एक शख़्स ने आपको बुरा भला कहा, आपने फ़रमाया , भाई मैंने तो तेरा कुछ नहीं बिगाड़ा अगर कोई हाजत रखता हो तो बता ताकि मैं पूरी करूं। वह शरमिन्दा हो कर आपके अख़लाख का कलमा पढ़ने लगा।

(मतालेबुल सुवेल सफ़ा 267)

अल्लामा हजरे मक्की लिखते हैं, एक शख़्स ने आपकी बुराई आपके मुंह पर की, आपने उस से बे तवज्जीही बरती। उसने मुख़ातिब कर के कहा मैं तुम को कह रह हूँ। आप ने फ़रमाया मैं हुक्मे ख़ुदा ‘‘ वा अर्ज़ अनालन जाहेलीन ’’ जाहिलों की बात की परवाह न करो, पर अमल कर रहा हूँ। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120)

अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि एक शख़्स ने आप से आ कर कहा कि फ़लां शख़्स आपकी बुराई कर रहा था। आपने फ़रमाया कि मुझे उसके पास ले चलो, जब वहां पहुँचे, तो उस से फ़रमाया भाई जो बात तूने मेरे लिये कही है, अगर मैंने ऐसा किया हो तो खु़दा मुझे बख़्शे और अगर नहीं किया तो ख़ुदा तुझे बख़्शे कि तूने बोहतान लगाया।

एक रवायत में है कि आप मस्जिद से निकल कर चले तो एक शख़्श आपको सख़्त अल्फ़ाज़ में गालियां देने लगा। आपने फ़रमाया कि अगर कोई हाजत रखता है तो मैं पूरी करूँ, ‘‘ अच्छा ले ’’ यह पांच हज़ार दिरहम। वह शरमिन्दा हो गया।

एक रवायत में है कि एक शख़्स ने आप पर बोहतान बांधा। आपने फ़रमाया मेरे और जहन्नम के दरमियान एक खाई है अगर मैंने उसे तय कर लिया तो परवाह नहीं, जो जी चाहे कहो और अगर उसे पार न कर सकूं तो मैं इस से ज़्यादा बुराई का मुस्तहक़ हूँ जो तुमने की। (नूरूल अबसार सफ़ा 126- 127)

अल्लामा दमीरी लिखते हैं कि एक शामी हज़रत अली (अ.स.) को गालियां दे रहा था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने फ़रमाया, भाई तुम मुसाफ़िर मालूम होते हो, अच्छा मेरे साथ चलो, मेरे यहां क़याम करो और जो हाजत रखते हो बताओ ताकि मैं पूरी करूं। वह शरमिन्दा हो कर चला गया। (हैवातुल हैवान जिल्द 1 सफ़ा 121)

अल्लामा तबरिसी लिखते हैं कि एक शख़्स ने आपसे बयान किया कि फ़लां शख़्स आपको गुमराह और बिदअती कहता है। आपने फ़रमाया अफ़सोस है कि तुम ने उसकी हम नशीनी और दोस्ती का कोई ख़्याल न रखा और उसकी बुराई मुझसे बयान कर दी। देखो यह ग़ीबत है अब ऐसा कभी न करना। (एहतेजाज सफ़ा 304)

जब कोई सायल आपके पास आता तो ख़ुश व मसरूर हो जाते थे और फ़रमाते थे कि ख़ुदा तेरा भला करे कि तू मेरा ज़ादे राहे आख़ेरत उठाने के लिये आ गया है। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 263)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) सहीफ़ा ए कामेला में इरशाद फ़रमाते हंै, ख़ुदा वन्दा मेरा कोई दरजा न बढ़ा, मगर यह कि इतना ही खुद मेरे नज़दीक मुझको घटा और मेरे लिये कोई ज़ाहिरी इज़्ज़त न पैदा कर मगर यह कि ख़ुद मेरे नज़दीक इतनी ही बातनी लज़्ज़त पैदा कर दे।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और सहीफ़ा ए कामेला

किताब सहीफ़ा ए कामेला आपकी दुआओं का मजमूआ है। इसमें बेशुमार उलूम व फ़ुनून के जौहर मौजूद हैं। यह पहली सदी की तसनीफ़ है। (मआलिम अल उलेमा सफ़ा 1 तबआ ईरान) इसे उलेमा ए इस्लाम ने ज़ुबूरे आले मोहम्मद (स.अ.) और इन्जीले अहलेबैत (अ.स.) कहा है। (नेयाबुल मोअद्दता सफ़ा 499 व फ़ेहरिस्त कुतुब ख़ाना ए तेहरान सफ़ा 36) और उसकी फ़साहत व बलाग़त मआनी को देख कर उसे कुतुबे समाविया और सहफ़े लौहिया व अरशिया का दरजा दिया गया है। (रियाज़ुल सालीक़ैन सफ़ा 1) इसकी चालीस हज़ार शरहें हैं जिनमें मेरे नज़दीक रियाज़ुल सालीकैन को फ़ौकी़यत हासिल है।

हश्शाम बिन अब्दुल मलिक और क़सीदा ए फ़रज़दक़

अब्दुल मलिक इब्ने मरवान का सन् 105 में ख़लीफ़ा होने वाला बेटा हश्शाम बिन अब्दुल मलिक अपने बा पके अहदे हुकूमत में एक मरतबा हज्जे बैतुल्लाह के लिये मक्के मोअज़्ज़मा गया। मनासिके हज बजा लाने के सिलसिले में तवाफ़ से फ़राग़त के बाद हजरे असवद का बोसा देने आगे बढ़ा और पूरी कोशिश के बवजूद हाजियों की कसरत की वजह से हजरे असवद के पास न पहुँच सका। आखि़र कार एक कुर्सी पर बैठ कर मजमे के छटने का इन्तेज़ार करने लगा। हश्शाम के गिर्द उसके मानने वालों का अम्बोह कसीर था। यह बैठा हुआ इन्तेज़ार ही कर रहा था कि नागाह एक तरफ़ से फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बरामद हुए। आपने तवाफ़ के बाद ज्यों ही हजरे असवद की तरफ़ रूख़ किया मजमा फटना लगा, हाजी हटने लगे, रास्ता साफ़ हो गया और आप क़रीब पहुँच कर तक़बील फ़रमाने लगे। हश्शाम जो कुर्सी पर बैठा हुआ था हालात का मुतालेआ कर रहा था जल भुन कर ख़ाक हो गया और उसके साथी बहरे हैरत में ग़र्क़ हो गये। एक मुंह चढ़े ने हश्शाम से पूछा, हुज़ूर यह कौन हैं? हश्शाम ने यह समझते हुए कि अगर तअर्रूफ़ करा दिया और इन्हें बता दिया कि यह ख़ानदाने रिसालत के चश्मों चिराग़ हैं तो कहीं मेरे मानने वालों की निगाह मेरी तरफ़ से फिर कर उनकी तरफ़ मुड़ न जाये। तजाहुले आरोफ़ाना के तौर पर कहने लगा, ‘‘ मआ अरफ़ा ’’ मैं नहीं पहचानता। यह सुन कर शायरे दरबार जनाब फ़रज़दक़ से न रहा गया और उन्होंने शामियों की तरफ़ मुख़ातिब हो कर कहा, ‘‘ अना अराफ़ा ’’ इसे मैं जानता हूँ कि यह कौन हैं, ‘‘ मुझ से सुनो ’’ यह कह कर उन्होंने इरतेजालन और फ़िल बदीहा एक अज़ीम उश्शान क़सीदा पढ़ना शुरू कर दिया जिसका पहला शेर यह है तरजुमा यह वह शख़्स है जिस को खाना ए काबा हिल्लो हरम सब पहचानते हैं और उसके क़दम रखने की जगह, क़दम की चाप को ज़मीन बतहा भी महसूस कर लेती है। मैं इस रदीफ़ में इस क़सीदे का उर्दू मनजूम तरजुमा र्दजे ज़ैल करता हूँ।

यह वह है जानता है मक्का जिसके नक़्शे क़दम

ख़ुदा का घर भी है, आगाह और हिल्लो हरम

जो बेहतरीन ख़लाएक़ है उस का है फ़रज़न्द

है पाक व ज़ाहिद व पाकीज़ा व बुलन्द हशम

कु़रैश लिखते हैं जब , इसे तू कहते हैं

बुर्ज़ुगियों पे हुई इसकी इन्तेहाए करम

इस क़सीदे के तमाम नाक़ेलीन ने पहला शेर यह लिखा है।

हाज़ल लज़ी ताअररूफ अल बतहा व तातहू

वाअल बैतया अरफ़हू वाअलहलव अलहरम

लेकिन यह मालूम होने के बाद कि क़सीदे के लिये मतला ज़रूरी होता है। उसे पहला शेर क़रार नहीं दिया जा सकता, अल बत्ता यह मुम्किन है कि यह समझा जाए कि शायर ने मौक़े के लेहाज़ से अपने क़सीदे की इस वक़्त पढ़ने की इब्तेदा इसी शेर से की थी और मुवर्रेख़ीन ने इसी शेर को पहला शेर क़रार दे दिया। अल्लामा अब्दुल्लाह इब्ने मोहम्मद इब्ने यूसुफ़ ज़ाज़नी अल मौतूफ़ी 231 हिजरी शरहे सबहे मुअल्लेक़ात में लिखते हैं कि इस क़सीदे का पहला शेर यह है।

या साएली एन हल अलजदू व अल करम

अन्दी बयान अज़ा, तलाबहा क़दम

क़सीदाऐ फ़रज़दक़ के मुतालिक़ एक ग़लत फ़हमी और उसका इज़ाला

इमामे अहले सुन्नत मोहम्मद अब्दुल क़ादिर सईद अलराफ़ई ने 1927 ई0 में शाएर अरब अबू अलतमाम हबीब अदस बिन हारस ताई आमली शामी बग़दाद के कीवान ‘‘ हमासह ’’ के मिस्र तबा कराया है। इसकी जिल्द 2 सफ़ा 284 पर इस क़सीदे के इब्तेदाई 6 अश्आर को नक़ल कर के लिखा है कि यह अश्आर ‘‘ हज़ीन अल कनानी ’’ के हैं। इसने उन्हें अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान की मदह में कहे थे, साथ ही साथ यह भी लिखा है ‘‘व अलनास यरोदन हाज़ह अल बयात अलप फ़रज़ोक़ यमदह बहा अली इबनुल हुसैन बिन अबी तालिब व हैग़लतमन रदहाफ़ह लान हाज़ा लेस ममायदहा बेही मिस्ल अली बिन अल हुसैन व लहमन अल फ़ज़ल अलबा हरमालैसा ला हद फ़ी वक़तहू ’’ और लोेग जो इन अबयात के मुताअल्लिक़ यह रवायत करते हैं कि यह फ़रज़दक़ के हैं और उसने उन्हें मदहे ‘‘ इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ‘‘ में कहा है ग़लत है क्यों कि यह अशआर उनके शायाने शान नहीं हैं वह तो अपने वक़्त के सब से बड़े साहेबे फ़ज़ीलत थे। मैं कहता हूँ कि यह अशआर फ़रज़दक ही के हैं क्यों कि इसे बेशुमार फ़हूल उलमा व मुवर्रेख़ीन ने उन्हीं के अश्आर तसलीम किए हैं जिनमें इमाम अल मोहक़ेक़ीन अल्लामा शेख़ मुफ़ीद अलै हिर रहमा मौतूफ़ी 413 हिजरी व इमाम ज़दज़नी अल मौतूफ़ी 431 हिजरी व अल्लामा इब्ने हजर मक्की व हाफ़िज़ अबू नईम और साहेबे मज़ा फिल अदब शामिल हैं। मुलाहेज़ा हो इरशाद मुफ़ीद सफ़ा 399 तबा ईरान 1303 इन उलमा के तसलीम करने के बाद किसी फ़रदे वाहिद के इनकार से कोई असर नहीं पड़ा।

पहुँच गया है यह इज़्ज़त की उस बुलन्दी पर

जहां पर जा सके इस्लाम के अरब व अजम

                 यह चाहता है कि ले हाथों हाथ रूकने हतीम

                 जो चूमने हजरे असवद , आए निज़्दे हरम

छड़ी है हाथ में , जिसके महकती है ख़ुशबू

व्ह हाथ जो नहीं इज़्ज़त में और शान में कम

                 नज़र झुकाए हैं सब यह हया है रोब से लोग

                 जो मुस्कुराए तो आजाए, बात करने का दम

जबीं के नूरे हिदायत से , कुफ्ऱ घटता है यूँ

ज़ियाए महर से तारीकियाँ,  हों जैसे कम

                 फ़ज़ीलत और नबीयो की इसके जद से है पस्त

                 तमाम उम्मतें, उम्मत से इसके रूतबे में कम

यह वह दरख़्त है जिसकी है जड़ खुदा का रसूल

इसी से फ़ितरत व आदात भी हैं पाक बहम

                 यह फ़ात्मा का है , फ़रज़न्द ‘‘ तू नहीं वाक़िफ़ ’’

                 इसी के जद से नबियों का बढ़ सका न क़दम

अज़ल से लिखी है , हक़ ने शराफ़तों अज़्ज़त

चला इसी के लिये लौह पर खु़दा का क़लम

                 जो कोई ग़ैज़ दिला दे , तो शेर से बढ़ जाए

                 सितम करे कोई इस पर तो मौत का नहीं ग़म

ज़र्र न होगा उसे तू , बने हज़ार अन्जान

इसे तो जानते हैं सब अरब तमाम अजम

                बरसते हब्र हैं हाथ इसके जिनका फ़ैज़ है आम

 

                 वह बरसा करते हैं , यकसाँ कभी नहीं हुए कम

वह नरम है, कि डर जल्द बाज़ियों का नहीं

है हुसने ख़ुल्क, इसी की तो ज़ीनते बाहम

                 मुसिबतों में क़बीलों के , बार उठाता है

                 हैं जितने खूब शमाएल, हैं इतने खूब करम

कभी न उसने कहा ‘‘ ला ’’ बजुज़ तशहुद के

अगर न होता तशहुद तो होता ‘‘ ला ’’ भी नअम

                 खि़लाफ़े वादा नहीं करता , यह मुबारक ज़ात

                 है मेज़ बान भी, अक़ल व इरादह भी है बहम

तमाम ख़लक़ पे एहसाने आम है इसका

इसी से उठ गया अफ़लासो रंजो फ़क्रा क़दम

            मोहब्बत इसकी है ‘‘ दीन ’’ और अदावत इसकी है कुफ़्र

है क़ुरबा इसका , निजातो पनाह का आलम

शुमार ज़ाहिदों का हो , तो पेशवा यहा हो

कि बेहतरीन ख़लाएक़ , इसीको कहते है हम

                 पहुँचना इसकी सख़ावत , ग़ैर मुम्किन है

                 सख़ी हों लाख न पांएगे इसकी गरदे क़दम

जो क़हत की हो  यह अबरे बारां हैं

जो भड़के जंग की आतिश यह शेर से नहीं कम

                 न मुफ़लिसी का असर है , फ़राग़ दस्ती पर

                 कि इसको ज़र की ख़ुशी है न बेज़री का अलम

इसी की चाह से जाती है आफ़त और बदी

इसी की वजह से आती है नेकी और करम

                 इसी का ज़िक्र मुक़द्दम है बाद ज़िक्रे खु़दा

                 इसी के नाम से हर बात ख़त्म करते हैं हम

मज़म्मत आने से इसके क़रीब भागती है

करीमे ख़लक़ हैं होती नहीं सख़ावत कम

                 ख़ुदा बन्दों में है कौन ऐसा जिसका सर

                 इसी घराने के एहसान से हुआ न हो ख़म

ख़ुदा को जानता है जो इसे भी जानता है

इसी के घर से मिला उम्मतों को दीन बहम

इस क़सीदे को सुन कर हश्शाम ग़ैज़ो ग़ज़ब से पेचो ताब खाने लगा और उसका नाम दरबारी शोअरा की फ़ेहरीस्त से निकाल कर उसे बमुक़ाम असफ़ान क़ैद कर दिया। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को जब इसकी क़ैद का हाल मालूम हुआ तो आपने बारह हज़ार दिरहम उसके पास भेजा। फ़रज़दक़ ने यह कह कर वापिस कर दिया कि मैंने दुनियावी उजरत के लिये क़सीदा नहीं कहा है इस से मैं क़सदे सवाब का इरादा रखता हूँ। हज़रत ने फ़रमाया कि हम आले मोहम्मद (अ.स.) का यह उसूल है कि जो चीज़ दे देते हैं फिर उसे वापस नहीं लेते। तुम इसे ले लो। खुदा तुम्हारी नियत का अजरे अज़ीम देगा, वह सब कुछ जानता है। ‘‘ फ़ा क़बलहल फ़रज़दक़ ’’ फ़रज़दक़ ने उसे क़ुबूल कर लिया। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120 मतालेबुल सुवेल सफ़ा 226, अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 403, मजालिसे अदब, जिल्द 6 सफ़ा 254, वसीलतुन नजात सफ़ा 320, तारीख़े अहमदी सफ़ा 328, तारीख़े आइम्मा सफ़ा 369, हुलयतुल अवलिया हाफ़िज़ अबू नईम रिसाला हक़ाएक लख़नऊ)

अल्लामा इब्ने हसन जारचवी लिखते हैं कि ‘‘ हश्शाम उनको एक हज़ार दीनार सालाना दिया करता था जब उसने यह रक़म बन्द कर दी तो यह बहुत परेशान हुए। माविया बिने अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़रे तय्यार ने कहा, फ़रज़दक़ घबराते क्यों हो , कितने साल ज़िन्दा रहने की उम्मीद है? उन्होंने कहा यही बीस साल। फ़रमाया कि यह बीस हज़ार दीनार ले लो और हश्शाम का ख़्याल छोड़ दो। उन्होंने कहा मुझे अबू मोहम्मद अली इब्नुल हुसैन (अ.स.) ने भी रक़म इनायत फ़रमाने का इरादा किया था मगर मैंने क़बूल नहीं किया। मैं दुनिया का नहीं आख़ेरत के अज्र का उम्मीदवार हूँ।

बेहारूल अनवार में है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने चालीस दीनार अता फ़रमाये और हुआ भी ऐसी ही कि फ़रज़दक़ उसके बाद चालीस साल और ज़िन्दा रहे। (तज़किरा मोहम्मद (स. .अ.) व आले मोहम्मद (अ.स.) जिल्द 2 सफ़ा 190)

 

 

 

क़यामत, अल्लाह तआला की रहमत, दया, हिकमत, नीति और उसके न्याय की नुमाइश का स्थान है इस बारे में क़ुर्आने मजीद में यह फ़रमाता हैः

उसने अपने ऊपर रहमत को लिख लिया है निश्चित रूप से वह तुम्हे क़यामत के दिन एक जगह जमा करेगा, जिसमें कोई शक नहीं है।

रहमत, अल्लाह तआला के उन गुणों में से जिन्हें सिफ़ाते कमालिया कहा जाता है और जिसका मतलब यह है कि अल्लाह तआला मख़लूक़ात (जीवों) की ज़रूरतों का पूरा करने वाला है और उनमें से हर एक को उसके कमाल व कौशल की तरफ़ रहनुमाई करके इसके मुनासिब व उचित स्थान तक पहुँचाता है। इंसानी ज़िन्दगी की विशेषताएं साफ़ तौर पर इंसान की अबदी व अनन्त ज़िन्दगी को बयान करती हैं इसलिए एक ऐसी जगह होना ज़रूरी है कि जहाँ इंसान अबदी ज़िन्दगी बिता सके।

क़यामत अल्लाह की नीति के अनुसार भी है क्योंकि यह दुनिया, कि जो लगातार हरकत और तब्दीली में है अगर यह उस प्वाइंट तक न पहुँचे कि जहाँ ठहराव हो तो यह दुनिया अपने आख़री लक्ष्य, मक़सद और मंज़िल तक नहीं पहुँचेगी और अल्लाह तआला से जो हर प्रकार से हकीम व नीतिज्ञ है, बेमक़सद काम अन्जाम पाना असम्भव है, जैसा कि इरशाद होता हैः

क्या तुमने यह सोच रखा है कि हमने तुमको बेकार पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलटा कर नहीं लाये जाओगे?

दूसरे स्थान पर यह बयान करने के बाद कि आसमान और ज़मीन और जो कुछ इनके बीच है अल्लाह तआला ने उन सब को बेकार पैदा नहीं किया है। क़यामत को बयान करने के बाद यह फ़रमाता हैः

क़यामत का एक और फ़लसफ़ा यह है कि अच्छे और बुरे तथा मोमिन और काफ़िर के बारे में अल्लाह तआला का न्याय पूरी तरह से लागू हो जाए क्योंकि दुनिया में सारे इन्सानों के एक साथ ज़िन्दगी गुज़ारने के आधार पर अल्लाह तआला के न्याय के अनुसार इनाम व सज़ा देने के क़ानून पर पूरी तरह अमल नामुमकिन है इस आधार पर एक ऐसी जगह का होना ज़रूरी है कि जहाँ अल्लाह तआला के इनाम व सज़ा पर आधारित क़ानून के लागू होने का इमकान पाया जाता हो, इस बारे में क़ुरआने मजीद में इरशाद होता हैः

 

 क्या हम मोमिनों और अच्छे काम करने वालों को ज़मीन पर फ़साद व उपद्रव फैलाने वालों और परहेज़गारों व सदाचारियों को गुनाहगारों व पापियों के बराबर क़रार देंगे?

इसी तरह इरशाद होता हैः

क्या हम बात मानने वालों को अपराधियों के बराबर क़रार देंगे, तुम्हे क्या हो गया है, कैसे फ़ैसला करते हो?

इस्लाम की निगाह में वह अमल सही है जो अल्लाह उसके रसूल स.अ. और इमामों के हुक्म के मुताबिक़ हों क्योंकि यही सेराते मुस्तक़ीम है, और जितना इंसान इस रास्ते से दूर होता जाएगा उतना ही गुमराही से क़रीब होता जाएगा।

इंसान को शरीयत के हिसाब से अमल करना चाहिए और ख़ुदा के अहकाम पर हर हाल में अमल करना चाहिए और इसी तरह दीनी अख़लाक़ पर अमल करना भी हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है, तभी उसको पता चलेगा कि उसके आमाल कहां तक अल्लाह के लिए हैं, और इसी तरह पैग़म्बर स.अ. और मासूमीन अ.स. की सीरत को अपनी ज़िंदगी के लिए आइडियल बनाना चाहिए ताकि अल्लाह हमें जिस रास्ते पर चलते हुए देखना चाहता है हम उस पर चल सकें, और सबसे ज़्यादा अहम बात यह कि अगर इंसान अपने आमाल को अल्लाह का पसंदीदा देखना चाहता है तो उसे आमाल में ख़ुलूस लाना पड़ेगा। ख़ुलूस, बंदगी की रूह का नाम है, ख़ुलूस के बिना इबादत किसी काम की नहीं है जैसाकि इमाम सादिक़ अ.स. ने फ़रमाया कि नीयत अमल से बेहतर है और याद रखना कि अमल की हक़ीक़त का नाम नीयत ही है। (उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 16) इसलिए अगर नीयत में ख़ुलूस नहीं पाया गया तो नीयत बेकार और जब नीयत बेकार तो अमल किसी क़ाबिल नहीं रह जाएगा।

ख़ुलूस का मतलब नीयत का शिर्क और दिखावे से पाक रखना है, हदीसों में बयान हुआ है कि ख़ुलूस का संबंध दिल से है उसके बारे में किसी सामने की चीज़ के जैसा फ़ैसला नहीं किया जा सकता जैसाकि पैग़म्बर स.अ. फ़रमाते हैं कि अल्लाह तुम्हारी दौलत और तुम्हारे चेहरों का नहीं देखता बल्कि उसकी निगाहें तुम लोगों के दिल और तुम्हारे आमाल पर रहती हैं। (मीज़ानुल-हिकमह, जिल्द 2, पेज 16)

इंसान का अपने को ख़ुलूस की उस मंज़िल तक पहुंचाना कि उसका हर काम केवल अल्लाह के लिए हो यह बहुत सख़्त काम है और हर कोई आसानी से इस मंज़िल तक पहुंचने का दावा नहीं कर सकता, हालांकि इंसान को मायूस नहीं होना चाहिए बल्कि जितना हो सके अपनी नीयत और आमाल में ख़ुलूस पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए, ज़ाहिर है कि जिस तरह इंसान अपने बदन को सही आकार में लाने के लिए पसीना बहाता है रोज़ दौड़ता है और दूसरे बहुत से काम करता है तब कहीं जा कर धीरे धीरे उसका बदन सही शेप में आता है उसी तरह अपनी रूह की पाकीज़गी और नीयत और आमाल में ख़ुलूस पैदा करने के लिए धीरे धीरे क़दम उठाना होगा, और जिस तरह अपने जिस्म को सही शेप में लाने के लिए हम कम मेहनत से शुरू करते हैं और फिर घंटों मेहनत करते और पसीना बहाते हैं उसी तरह ख़ुलूस पैदा करने के लिए शुरू में अपनी नीयत और अमल में ख़ुलूस लाने के लिए धीरे धीरे अपने दिल और दिमाग़ से शिर्क और दिखावे को दूर करें और फिर पूरे ध्यान के साथ हर छोटे बड़े काम में ख़ुलूस लाने की कोशिश करें, जो लोग ख़ुलूस की ऊंचाईयों तक पहुंचे हैं उन्होंने कड़ी मेहनत की है अपने नफ़्स के साथ जेहाद किया है अपनी ख़्वाहिशों को मारा है तब जा कर अपनी नीयत को ख़ालिस कर सके हैं और तब कहीं जा कर उनके अमल अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ हुए हैं।

इंसान को हमेशा अल्लाह से दुआ करना चाहिए कि वह काम के आख़िर तक ख़ुलूस बाक़ी रखने की तौफ़ीक़ दे, क्योंकि कभी कभी बीच रास्ते में कुछ ऐसी मुश्किलें आ जाती हैं जिनसे इंसान का ख़ुलूस को आख़िर तक बाक़ी रख पाना मुमकिन नहीं होता। हदीसों की किताबों में नीयत और अमल में ख़ुलूस पैदा करने के कुछ तरीक़े बताए हैं जिनमें से कुछ की तरफ़ इशारा किया जा रहा है ताकि उनको पहचान के और उन पर अमल कर के पता चल सके कि ख़ुलूस वाले काम किस के तरह होते हैं।

1- पैग़म्बर स.अ. फ़रमाते हैं कि ख़ुलूस वाले इंसान की चार तरीक़े की पहचान हैं, पहले यह कि उसका दिल पाक साफ़ होता है, दूसरे यह कि उसके हाथ पैर और दूसरे बदन के हिस्से सही और सालिम होते हैं, तीसरे यह कि लोग उनके नेक कामों से फ़ायदा हासिल करते हैं, चौथे यह कि उनसे लोगों को किसी तरह का कोई ख़तरा नहीं होता। (तोहफ़ुल-ओक़ूल, पेज 16)

 

2- इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि जिसका ज़ाहिर और बातिन एक जैसा हो और सामने और पीठ पीछे की बातें एक जैसी हों हक़ीक़त में उसने अमानत को अदा कर दिया और अपनी इबादतों में ख़ुलूस पैदा कर लिया है। (नहजुल बलाग़ा, ख़त न. 26)

3- इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि ख़ुलूस की आख़िरी हद गुनाहों से बचना है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 74, पेज 213)

4- एक दूसरी रिवायत में मौला अमीर अ.स. ही का फ़रमान है कि ख़ालिस इबादत उसे कहते हैं कि जिसमें इंसान अल्लाह के अलावा किसी और से थोड़ी भी उम्मीद न रखता हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से न डरता हो। (बिहारुल अनवार, जिल्द 74, पेज 229)

5- इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. फ़रमाते हैं कि ख़ालिस अमल वही है जिसमें इंसान अल्लाह के अलावा किसी और की तारीफ़ का इंतेज़ार न करे।

 (उसूल काफ़ी, जिल्द 2, पेज 16)

6- इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. फ़रमाते हैं कि कोई भी बंदा उस समय तक ख़ुलूस तक नहीं पहुंच सकता जब तक लोगों की तारीफ़ की चाहत ख़त्म न कर दे। (मिश्कातुल अनवार, पेज 11, अख़लाक़े अमली, आयतुल्लाह महदवी कनी, पेज 421)

7- हदीस में यह भी ज़िक्र हुआ है कि ख़ुलूस की शुरूआत अल्लाह के अलावा हर किसी से उम्मीद का तोड़ना है। (फ़ेहरिस्ते मौज़ूई ग़ोरर, पेज 430)

इन सभी हदीसों की रौशनी में यह बात साफ़ हो जाती है कि इबादत की बुनियाद ख़ुलूस है और आमाल को इबादत उसी समय कहा जा सकता है जब उसमें ख़ुलूस पाया जाता होगा, इस्लाम ने हमेशा अच्छे अमल को सराहा है , कभी अमल की भरमार के चलते अमल की रूह यानी ख़ुलूस और नीयत का साफ़ होना छूट जाए इसे इस्लाम सपोर्ट नहीं करता, अगर आप अपने अमल में ख़ुलूस का पता लगाना चाहते हैं तो आप कुछ समय तक अपने अमल और रोज़ाना के कामों पर ध्यान दीजिए और अपने दिल की गहराईयों में जा कर देखिए उसका हिसाब किताब कीजिए, अगर किसी वाजिब को सबके सामने ख़ुलूस से अंजाम नहीं दे सकते तो उसे भी तंहाई में अंजाम दीजिए, हालांकि बहुत कम होता है कि वाजिब अहकाम को अदा करने में दिखावा हो लेकिन अगर किसी को ऐसा लगता है कि वाजिब में भी दिखावा हो सकता है तो उसे भी अकेले में छिप कर अंजाम देना चाहिए क्योंकि ज़्यादातर दिखावे की मुश्किल लोगों के लिए मुस्तहब कामों में होती है, हमें केवल इस बात का ध्यान रखना है कि अमल वाजिब हो या मुस्तहब उसके अंदर दिखावा नहीं आना चाहिए और उसकी पहचान के लिए एक तरीक़ा यह भी है कि अमल अंजाम देने के बाद अपने नफ़्स की जांच पड़ताल करें अगर दुनिया की मोहब्बत और अल्लाह के अलावा किसी और को ख़ुश करने का इरादा और नीयत मिले तो समझ लीजिए उस अमल में ख़ुलूस नहीं है और अगर अमल के अंजाम के बाद अल्लाह से क़रीब होने का एहसास और उसको ख़ुश करने जैसा तसव्वुर पैदा हो तो समझ लीजिए आपने ख़ुलूस से अंजाम दिया है।

ध्यान रहे कभी कभी इंसान सवाब को हासिल करने और जन्नत में जाने के लिए अमल अंजाम देता है, ऐसा करने का बिल्कुल यह मतलब नहीं कि उस अमल में ख़ुलूस नहीं पाया जाता, और आख़िर में अपने इस लेख को को इस अहम हदीस पर ख़त्म कर रहे हैं कि जिसमें इमाम अ.स. ने फ़रमाया कि अपनी उम्मीदों को कम करो ताकि तुम्हारे अमल में ख़ुलूस पैदा हो। (फ़ेहरिस्ते मौज़ूई ग़ोरर, पेज 91, मेराजुस्-सआदह, पेज 491, चेहेल हदीस, इमाम ख़ुमैनी र.ह., पेज 51-55)

ईरान की सांस्कृतिक उच्च क्रांति परिषद के एक सदस्य ने कहा है कि जो व्यक्ति या समाज अपने आप को कुछ न समझे वह कुछ नहीं कर सकता।

ईरान की सांस्कृतिक उच्च क्रांति परिषद के एक सदस्य हसन रहीमपूर अज़्ग़दी ने राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सक्रिय जवानों को संबोधित करते हुए भविष्य के निर्माण के लिए अतीत की पहचान के महत्व पर बल दिया और कहा कि अतीत को पहचाने बिना भविष्य का निर्माण नहीं किया जा सकता। इस आधार पर सबसे पहले यह सोचना चाहिये कि आप किसके वारिस हैं? आपसे पहले विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले या तो जंग के मोर्चे पर गोली खाते थे या जंग के मोर्चे के पीछे हक़ की रक्षा में बुरा भला सुनते थे या कुर्दिस्तान और सीस्तान प्रांतों में कुमले आतंकवादियों के हाथों मारे जाते थे।

इंसान को पैदा करने का तर्क व फ़ल्सफ़ा और अहलेबैत को सही ढ़ंग से पहचानने का तरीक़ा

रहीमपर अज़्ग़दी ने धर्म और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम को सही तरह से समझने में मौजूद व प्रचलित कुछ भ्रांतियों की आलोचना करते हुए कहा कि आमतौर पर प्रचलित आदत के अनुसार जैसे ही अहलेबैत का नाम आता है हमारी हाजतें हमारी नज़रों के सामने आ जाती हैं जबकि हक़ीक़त यह है कि इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरत सही रास्ते का मिल जाना और उस पर चलना है और केवल अपनी भौतिक ज़रूरतों के लिए धर्म और अहलेबैत अलै. को नहीं अपनाना चाहिये।

वह इसी प्रकार कहते हैं कि धार्मिक शिक्षाओं में आया है कि दुनिया कठिनाइयों व समस्याओं की जगह है। इंसान की रचना का तर्क व फ़ल्सफ़ा इन कठिनाइयों को यथासंभव मार्ग से पार करना है। उन्होंने बल देकर कहा कि जो लोग कठिनाई व समस्या का सामना किये बिना दुनिया को हासिल करना चाहते हैं उन लोगों ने धर्म और अहलैत को सही तरह से नहीं समझा।

 आज की दुनिया में दीनदारी और स्वयं पर टीका-टिप्पणी

धार्मिक शिक्षाकेन्द्र और विश्वविद्यालय के उस्ताद और बुद्धिजीवी रहीमपूर अज़्ग़दी कहते हैं कि हम इंसान आमतौर पर धार्मिक संस्कारों को काफ़ी समझते हैं और हमारी दीनदारी भी विदित है यानी विदित व ज़ाहिर में हम धार्मिक हैं। वह कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है कि लोग ज़बान से अल्लाह को क़बूल करते हैं परंतु वे अमल और ज़िन्दगी में अल्लाह पर विश्वास नहीं रखते और ईमान उनके अमल में दिखाई नहीं देता है क्योंकि हम अल्लाह को हाज़िर व नाज़िर नहीं मानते हैं। हम तौबा करते हैं मगर झूठ बोलते हैं दूसरों का हक़ खाते हैं, मुर्दों को देखते हैं परंतु मौत पर यक़ीन व विश्वास नहीं रखते हैं हम अपने हितों के प्रयास में रहते हैं मगर कष्ट उठाये बिना जबकि इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार ईमान और अच्छे अमल के बिना कोई भी स्वर्ग में नहीं जायेगा और उसका अच्छा अंजाम नहीं होगा।

भ्रष्टाचार और अन्याय से मुक़ाबला करने वाल को पैग़म्बरों की भांति समस्याओं का सामना होगा

रहीमपूर अज़्ग़दी ने पैग़म्बरों और नेक बंदों द्वारा धर्म के लिए उठाई गई समस्याओं और कठिनाइयों की ओर संकेत करते हुए कहा कि हम लोग आमतौर पर उस वक़्त राजनीतिक व सांस्कृतिक गतिविधियां अंजाम देते हैं जब हमारी समस्याओं और ज़रूरतों का समाधान हो चुका होता है। अगर इस रास्ते में हमको किसी से कोई समस्या न हो, हमें कोई नुकसान न हो, हम बुरा-भला नहीं सुनेंगे यानी हमारा कोई दुश्मन नहीं होगा यानी हम कुछ नहीं हैं और हम किसी भी बातिल, भ्रष्टाचार और अन्याय के ख़िलाफ़ खड़े नहीं हुए हैं जबकि जन्नत के चारों ओर समस्यायें हैं यानी समस्याओं का सामना किये बिना स्वर्ग हासिल नहीं किया जा सकता। तो जब भी हमारी ज़िन्दगी का रास्ता साफ़ हो यानी ज़िन्दगी में हमें किसी समस्या प्रकार की समस्या का सामना न हो तो हम स्वर्ग की ओर या बेहतर तरीक़े से कहूं कि इबादत के रास्ते में नहीं हैं।

उस इबादत का कोई मूल्य नहीं है जो हमें परिवर्तित न कर दे

रहीमपूर अज़्ग़दी पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलै. के हवाले से एक रिवायत की ओर संकेत करते हैं जिसमें इमाम फ़रमाते हैं जो अल्लाह से तौफ़ीक़ चाहता है मगर पसीना न बहाये यानी परिश्रम न करे, ख़तरा मोल न ले तो उसने स्वयं का मज़ाक़ उड़ाया है। इसी प्रकार वह बल देकर कहते हैं कि ज़िम्मेदारी के बिना धर्म लोगों के लिए अफ़ीम और बहुत ख़तरनाक है। अगर हम हर साल हज, तीर्थ स्थलों और मशहद की यात्रा पर जाते हैं परंतु हमारे जीवन में कोई परिवर्तन उत्पन्न नहीं होता है तो उसका कोई फ़ायदा नहीं है। इन सब ज़ियारतों पर जाने के बजाये महान व धार्मिक हस्तियों के आदेशों पर अमल करना चाहिये।

स्वयं की आलोचना करने का महत्व

रहीमपूर अज़्ग़दी स्वयं पर टीका- टिप्पणी करने के महत्व की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति या समाज अपना हिसाब- किताब न करे वह विफ़ल व नाकाम है। जो कमज़ोरों व असहाय लोगों की मदद न करे, जिसके अंदर दूसरों की सेवाभाव जज़्बा न हो और वह धार्मिक होने का दावा करे परंतु कोई स्टैंड नहीं लेता है न मुर्दाबाद को मानता है न ज़िन्दाबाद को, वह सबसे सहमत है या सबका विरोधी है, बेहतरीन हालत में अहलेबैत से प्रेम करने वाला है न कि अहलेबैत का शिया।