
رضوی
भूकंप से फिर डोला जापान, सुनामी की चेतावनी
जापान एक बार फिर भूकंप से डोल गया। गुरुवार दक्षिणी जापान के क्यूशी इलाके में 7.1 तीव्रता वाला भीषण भूकंप आया है. शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक भूकंप का केंद्र निचिनान से 20 किमी उत्तर-पूर्व में 25 किमी की गहराई पर था। भूकंप के बाद अधिकारियों ने सुनामी की चेतावनी जारी की है।
भूकंप के झटके इतनी तेज थे कि शॉपिंग मॉल का समान, कुर्सियां, पंखे और टेबल झोले की तरह हिलने लगे। सुनामी की चेतावनी के बाद पूरे जापान में खौफ का माहौल पैदा हो गया है। कहा जा रहा है कि थोड़े समय के अंतराल पर ही 2 बड़े भूकंप आए हैं, जिसमें एक 6.9 तीव्रता का भूकंप समुद्र तट से दूर आया और 7.1 तीव्रता का भूकंप दक्षिणी जापान के तट के ठीक पास आया है।
मक़बूज़ा फिलिस्तीन में खौफ की लहर, हैफा में पसरा सन्नाटा
ईरान के जवाबी हमलों के खौफ से मक़बूज़ा फिलिस्तीन में खौफ की लहर है। विशेषकर हैफा में ज़ायोनी अतिक्रमणकारियों के मन से ईरान और हिज़्बुल्लाह के हमले का डर ख़त्म नहीं हो रहा है।
ईरान और हिज़्बुल्लाह द्वारा पेट्रोकेमिकल संस्थानों को निशाना बनाने के डर से ज़ायोनीवादियों में भय और खौफ की लहर फैली हुई है।
ज़ायोनी मीडिया "हारेत्ज़" ने रिपोर्ट देते हुए कहा कि: एक खौफ है जिसने हैफा में लोगों को भयभीत कर दिया है, वह यह कि पेट्रोकेमिकल कारखानों को निशाना बनाया जाएगा है, जिसमें एक ऐसा कारखाना भी शामिल है जिसमें अभी भी कई खतरनाक पदार्थ हैं।
हैफा के ज़ायोनी रवित श्टोसेल ने इस संबंध में कहा कि "हम खतरनाक पदार्थों की घटना को लेकर बेहद डरे हुए हैं।" हम विस्फोटकों के ढेर पर हैं और हम बहुत डरे हुए हैं कि यहां क्या होगा। यहाँ ऐसे कई कारखाने हैं जहां खतरनाक रसायन बनाए जाते हैं। यहाँ बहुत से गैस और आयल फील्ड भी हैं।
बताते दें कि हिज़्बुल्लाह कमांडर फुआद शुक्र और हमास चीफ इस्माइल हनिया की ज़ायोनी आतंकियों केहाथों शहादत के बाद से ही ईरान और हिज़्बुल्लाह ने बदले का ऐलान किया है जिसके बाद से अवैध राष्ट्र में सन्नाटा पसरा हुआ है।
मोहम्मद यूनुस बने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार
बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से शेख़ हसीना के इस्तीफ़ा देने और देश छोड़कर चले जाने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख सलाहकार नियुक्त कर दिया गया है।
बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से शेख़ हसीना के इस्तीफ़ा देने और देश छोड़कर चले जाने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख सलाहकार नियुक्त कर दिया गया है।
84 वर्षीय अर्थशास्त्री यूनुस को प्रमुख नियुक्त करने का प्रस्ताव प्रदर्शन कर रहे छात्र नेताओं ने रखा था और फिर बाद में उनको अंतरिम सरकार का प्रमुख सलाहकार नियुक्त कर दिया गया।
हालांकि यह विरोध प्रदर्शन बाद में हिंसा में बदल गया और इसमें 200 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई।
ऐसे में चर्चा हो रही है कि आख़िर वह अनुभवी सामाजिक उद्यमी कौन है, जिसे व्यापक रूप से बांग्लादेशी लोकतंत्र को व्यवस्थित करने और स्थिर करने के प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए किया गया है।
यह्या सनवार के चुनाव से नेतन्याहू की सरकार में खौफ तारी
लेबनानी शिया आलेमेदीन ने एक बयान में कहा है कि प्रतिरोध नेताओं में से इस्लामी प्रतिरोध तहरीक हमास के प्रमुख के रूप में याह्या सनवार का चुनाव,इंशाल्लाह एक कामयाब चुनाव हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक शेख़ अहमद क़िबलान, मुफ्ती मुमताज जाफरी और लेबनानी शिया धर्मगुरू ने एक बयान में इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन हमास के नए प्रमुख की नियुक्ति पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन हमास के प्रमुख प्रतिरोध करने वाले नेताओं में से एक के रूप में याह्या सनवार का चुनाव,इंशाल्लाह एक कामयाब चुनाव हैं।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि याह्या सनवार के चुनाव ने नेतन्याहू की यह्या सरकार में खौफ तारी हैं।
शेख़ अहमद क़िबलान ने कहा कि भाई याह्या सनवार राजनीतिक ज्ञान और संघर्ष के प्रतीक हैं, और हमास आंदोलन के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख के रूप में उनके चुनाव ने एक भूकंप पैदा कर दिया है।
रोती हुई आंखों के साथ निकाला गया 18 कमरे बनी हाशिम का ताबूत
अंजुमन हैदरी के तत्वाधान व जनरल सेक्रेटरी नायाब रज़ा की देखरेख में दरगाहे फ़ात्मान में 18 कमरे बनी हाशिम का ताबूत निकाला गया ज़ियारत से पूर्व मजलिस हुई।
वाराणसी: अंजुमन हैदरी के तत्वाधान एवं जनरल सेक्रेटरी नायाब रज़ा की देखरेख में दरगाहे फ़ात्मान, लल्लापुरा में 18 बनी हाशिम के ताबूत उठाये गए। ज़्यारत से पूर्व मजलिस हुई जिसका आग़ाज़ तिलावते कलाम पाक से क़ारी इमाम अली ने किया।
लियाक़त अली खां व साथियों ने सोज़ख़्वानी के फ़राएज़ अंजाम दिये। माएल चंदैलवी मुद्दस्सिर जौनपुरी, नक़ी बनारसी ने अपने कलाम का नज़राना पेश किया। मजलिस को ख़िताब करते हुए मौलाना सैय्यद मुहम्मद अक़ील हुसैनी ने कहा की आज पूरी दुनिया को ज़रूरत है कि इमाम हुसैन के त्याग और बलिदान के रास्ते को अपनाए और उनकी शिक्षाओं पर अमल करे। मौलाना ने जब कर्बला वालों के मसाएब पढ़े तो हर आंख आंसुओं से भर गई।
मजलिस के बाद पैग़म्बर मुहम्मद साहब के परिवार के 18 सदस्यों जिनको 18 बनी हाशिम कहते हैं उनके ताबूत उठाये गए। ज्ञात हो कि इन 18 बनी हाशिम समेत इमाम हुसैन के 72 साथियों को कर्बला इराक़ के मैदान में 3 दिन का भूखा प्यासा बड़ी बेरहमी से शहीद कर दिया गया था।
ताबूत का परिचय मौलाना सैय्यद इंतेज़ार आबिदी ने कराया। ताबूत उठने के बीच ज़ैन बनारसी ने अपने मख़सूस अंदाज़ में नौहा पेश किया जिसको सुन कर लोग फफक कर रो पड़े। संचालन अम्बर तुराबी ने किया और सैय्यद अब्बास मुर्तज़ा शम्सी ने आये हुए ज़ायरीन का शुक्रिया अदा किया।
प्रोग्राम में तक़ी रिज़वी, उस्ताद फ़तेह अली ख़ाँ अब्बास सिबतैन शीराज़ी, ज़ैन हसन अतहर रज़ा ज़ुल्फ़िक़ार ज़ैदी इरफ़ान आबिदी ज़ैन अंसार बनारसी ज़्याउल हसन शराफ़त नक़वी सादिक़ इमाम जावेद नक़वी यूशा अब्बास मोनी हसन हैदर ज़ैदी मोहम्मद अली क़मर अब्बास सनी पल्लन भाई हाजी फ़रमान हैदर अब्बास रिज़वी शफ़क़ मुनाज़िर हुसैन मंजू समेत बनारस और आस पास के जिलों के हज़ारों की तादाद में अक़ीदतमंद मौजूद थे।
वक़्फ़ विधेयक के विरोध में विपक्ष का सवाल, मंदिर में किसी ग़ैर हिन्दू को बनाएंगे सदस्य ?
मोदी सरकार की ओर से वक़्फ़ विधेयक में बदलाव का विपक्ष जमकर विरोध कर रहा है। मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए विपक्ष ने कहा कि क्या मंदिर में किसी ग़ैर हिन्दू को सदस्य बनाया जा सकता है ?
विपक्षी दल वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस, सपा समेत अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने गुरुवार को लोकसभा में बिल का विरोध करते हुए हंगामा किया। कांग्रेस ने तो सरकार से सवाल पूछा कि अयोध्या में मंदिर बोर्ड का गठन किया गया। क्या कोई गैर हिंदू इसका सदस्य हो सकता है? फिर वक्फ परिषद में गैर मुस्लिम सदस्य की बात क्यों की जा रही है?
शहीद हनिया की याद में हेरात में विशाल रैली
फिलिस्तीन की आज़ादी के लिए संघर्षरत प्रतिरोधी दल हमास के प्रमुख शहीद इस्माइल हनिया की याद में अफ़ग़ानिस्तान के हेरात शहर में विशाल रैली का आयोजन किया गया जिसमे भारी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की शहादत (12)
आप अगर चे गोशा नशीनी की ज़िन्दगी बसर फ़रमा रहे थे लेकिन आप के रूहानी इक़तेदार की वजह से बादशाहे वक़्त वलीद बिन अब्दुल मलिक ने आपको ज़हर दिया और आप बतारीख़ 25 मोहर्रमुल हराम 95 हिजरी मुताबिक़ 714 ई0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हो गये। इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने नमाज़े जनाज़े पढ़ाई और आप मदीने के जन्नतुल बक़ी मंे दफ़्न कर दिये गये।
अल्लामा शिब्लन्जी, अल्लामा इब्ने सबाग़ मालेकी, अल्लामा सिब्ते इब्ने जोज़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि ‘‘ व अनल लज़ी समआ अल वलीद बिन अब्दुल मलिक ’’ जिसने आपको ज़हर दे कर शहीद किया वह वलीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा ए वक़्त है। (नूरूल अबसार सफ़ा 128, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120, फ़ुसूल अल महमा, तज़किराए सिब्ते जौज़ी, अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 444, मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 121) मुल्ला जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि आपकी शहादीन के बाद आपका नाक़ा क़ब्र पार नाला व फ़रियाद करता हुआ तीन रोज़ में मर गया। (शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 179) शहादत के वक़्त आपकी उम्र 57 साल की थी।
आपकी औलाद
उलेमा ए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपने ग्यारह लड़के और चार लड़कियां छोड़ीं। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120 व अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 444)
अल्लामा शेख़ मुफ़ीद फ़रमाते हैं कि उन 15 अवलादों के नाम यह हैं।
- हज़रत इमाम मोहम्मद (अ.स.) आपकी वालेदा हज़रत इमाम हसन (अ.स.) की बेटी अम्मे अब्दुल्लाह जनाबे फ़ात्मा थीं।
- अब्दुल्लाह,
- हसन,
- ज़ैद,
- उमर,
- हुसैन,
- अब्दुल रहमान,
- सुलैमान,
- अली,
- मोहम्मद असग़र,
- हुसैन असग़र
- ख़दीजा,
- फ़ात्मा,
- आलीया
- उम्मे कुल्सूम।
(इरशाद मुफ़ीद फ़ारसी सफ़ा 401)
जनाबे ज़ैद शहीद
आपकी औलाद में हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) के बाद सब से नुमाया हैसियत जनाबे ज़ैद शहीद की है। आप 80 हिजरी में पैदा हुये। 121 हिजरी में हश्शाम बिन अब्दुल मलिक से तंग आ कर आप अपने हम नवा तलाश करने लगे और यकुम सफ़र 122 हिजरी को चालीस हज़ार (40000) कूफ़ीयों समैत मैदान में निकल आये। ऐन मौक़ा ए जंग में कूफ़ीयों ने साथ छोड़ दिया। बाज़ मआसरीन लिखते हैं कि कूफ़ीयों के साथ छोड़ने का सबब इमाम अबू हनीफ़ा की नकस बैअत है क्यों कि उन्होंने पहले जनाबे ज़ैद की बैअत की थी फिर जब हश्शाम ने आपको दरबार में बुला कर इमामे आज़म का खि़ताब दिया तो यह हुकूमत के साथ हो गये और उन्होंने ज़ैद की बैअत तोड़ दी। इसी वजह से उनके तमाम मानने वाले उन्हें छोड़ कर अलग हो गये। उस वक़्त आपने फ़रमाया ‘‘ रफ़ज़त मूनी ’’ ऐ कूफी़यों ! तुम ने मेरा साथ छोड़ दिया। इसी फ़रमाने की वजह से कूफ़ीयों को राफ़ज़ी कहा जाता है। जहां उस वक़्त चंद अफ़राद के सिवा कोई भी शिया न था सब हज़रते उस्मान और अमीरे माविया के मानने वाले थे। ग़रज़ के दौराने जंग में आपकी पेशानी पर एक तीर लगा जिसकी वजह से आप ज़मीन पर तशरीफ़ लाये यह देख कर आपका एक ख़ादिम आगे बढ़ा और उसने आपको उठा कर एक मकान में पहुँचा दिया। ज़ख़्म कारी था, काफ़ी इलाज के बवजूद जां बर न हो सके फिर आपके ख़ादिमों ने ख़ुफ़िया तौर पर आप को दफ़्न कर दिया और क़ब्र पर से पानी गुज़ार दिया ताकि क़ब्र का पता न चल सके लेकिन दुश्मानांे ने सुराग लगा कर लाश क़ब्र से निकाल ली और सर काट कर हश्शाम के पास भेजने के बाद आपके बदन को सूली पर लटका दिया। चार साल तक यह जिस्म सूली पर लटका रहा। ख़ुदा की क़ुदरत तो देखिये उसने मकड़ी को हुक्म दिया और उसने आपके औरतैन (पोशीदा मक़ामात) पर घना जाला तान दिया। (ख़मीस जिल्द 2 सफ़ा 357 व हैवातुल हैवान) चार साल के बाद आपके जिस्म को नज़रे आतश कर के राख दरियाए फ़रात में बहा दी गई। (उमदतुल मतालिब सफ़ा 248)
शहादत के वक़्त आपकी उम्र 42 साल की थी। हज़रत ज़ैद शहीदे अज़ीम मनाक़िब व फ़ज़ाएल के मालिक थे। आपको ‘‘ हलीफ़ अल क़ुरआन ’’ कहा जाता था। आप ही की औलाद को ज़ैदी कहा जाता है और चूंकि आपका क़याम बा मक़ाम वासित था इस लिये बाज़ हज़रात अपने नाम के साथ ज़ैदी अल वास्ती लिखते हैं। तारीख़ इब्नुल वरदी में है कि 38 हिजरी में हज्जाज बिन यूसुफ़ ने शहरे वासित की बुनियाद डाली थी। जनाबे ज़ैद के चार बेटे थे जिनमें जनाबे याहया बिन ज़ैद की शुजाअत के कारनामे तारीख़ के अवराख़ में सोने के हुुरूफ़ से लिखे जाने के क़ाबिल हैं। आप दादहियाल की तरफ़ से हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और नानिहाल की तरफ़ से जनाबे मोहम्मद बिन हनफ़िया की यादगार थे। आपकी वालेदा का नाम ‘‘ रेता ’’ था जो मोहम्मद बिन हनफ़िया की पोती थीं। नसले रसूल (स. अ.) में होने की वजह से आपको क़त्ल करने की कोशिश की गई। आपने जान के तहफ़्फ़ुज़ के लिये यादगार जंग की। बिल आखि़र 125 हिजरी में आप शहीद हो गये। फिर वलीद बिन यज़ीद बिन अब्दुल मलिक के हुक्म से आपका सर काटा गया और हाथ पाओं काटे गये। उसके बाद लाशे मुबारक सूली पर लटका दी गई फिर एक अरसे के बाद उसे उतार कर जलाया गया और हथौड़े से कूट कूट कर रेज़ा रेज़ा किया गया फिर एक बोरे में रख कर कशती के ज़रिये से एक एक मुठ्ठी राख दरियाए फ़रात की सतह पर छिड़क दी गई। इस तरह इस फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) के साथ ज़ुल्मे अज़ीम किया गया।
- उन्होंने सलतनते हश्शाम में दावा ए खि़लाफ़त किया था बहुत से लोगों ने बैअत कर ली थी। तदाएन, बसरा, वास्ता, मूसल, ख़ुरासान, रै, जरजान के अलावा सिर्फ़ कूफ़े ही के 15 हज़ार शख़्स थे। जब यूसुफ़ सक़फ़ी उनके मुक़ाबले में आया तो यह सब लोग उन्हें छोड़ कर भाग गये। ज़ैद शहीद ने फ़रमाया ‘‘ ज़फ़ज़र अल यौम ’’ उस दिन से राफ़ज़ी का लफ़्ज़ निकाला........... इनके चार फ़रज़न्द थे। 1. यहीया, 2. हुसैन, 3. ईसा, 4. मोहम्मद। सादाते बाराह व बिल गिराम का नसब मोहम्मद बिन ईसा तक पहुँचता है। (किताब रहमतुल आलेमीन जिल्द 2 सफ़ा 142)
ईसा बिन ज़ैद
यह भी जनाबे ज़ैद शहीद के निहायत बहादुर साहब ज़ादे थे। ख़लीफ़ा ए वक़्त आपके भी ख़ून का प्यासा था। आप अपना हसब नसब ज़ाहिर न कर सकते थे। ख़लीफ़ा ए जाबिर की वजह से रूपोशी की ज़िन्दगी गुज़ारते थे। कूफ़े में आब पाशी का काम शुरू कर दिया था और वहीं एक औरत से शादी कर ली थी और उस से भी अपना हसब नसब ज़ाहिर नहीं किया था। इस औरत से आपकी एक बेटी पैदा हुई जो बड़ी हो कर शादी के क़ाबिल हो गई। इसी दौरान में आपने एक मालदार बेहिश्ती के वहां मुलाज़ेमत कर ली जिसके एक लड़का था। मालदार बेहिश्ती ने जनाबे ईसा की बीवी से अपने लड़के का पैग़ाम दिया। जनाबे ईसा की बीवी बहुत ख़ुश हुई कि मालदार घराने से लड़की का रिश्ता आया है जब जनाबे ईसा घर तशरीफ़ लाये तो उनकी बीवी ने कहा कि मेरी लड़की की तक़दीर चमक उठी है क्यों कि मालदार घराने से पैग़ाम आया है यह सुनना था कि जनाबे ईसा सख़्त परेशान हुयें बिल आखि़र खुदा से दुआ की, बारे इलाहा सैदानी ग़ैरे सय्यद से बिहाई जा रही है मालिक मेरी लड़की को मौत दे दे। लड़की बीमार हुई और दफ़अतन उसी दिन इन्तेक़ाल कर गई। उसके इन्तेक़ाल पर आप रो रहे थे उनके एक दोस्त ने कहा कि इतने बहादुर हो कर आप रोते हैं उन्होंने फ़रमाया कि इसके मरने पर नहीं रो रहा हूँ मैं अपनी इस बे बसी पर रो रहा हूँ कि हालात ऐसे हैं कि मैं इस से यह तक नहीं बता सका कि मैं सय्यद हूँ और यह सय्यद ज़ादी है। (उमदतुल मतालिब सफ़ा 278, मिनहाज अल नदवा सफ़ा 57)
अल्लामा अबुल फ़रज़ असफ़हानी अल मतूफ़ी 356 हिजरी लिखते हैं कि जनाबे ईसा बिन ज़ैद ने अपने दोस्त से कहा था कि मैं इस हालत में नहीं हूँ कि इन लोगों को यह बता सकूं ‘‘ बाना ज़ालेका ग़ैर जाएज़ ’’ कि यह शादी जाएज़ नहीं है इस लिये कि यह लड़का हमारे कफ़ो का नहीं है। (मक़ातिल अल तालेबैन सफ़ा 271, मतबुआ नजफ़े अशरफ़ 1385 हिजरी)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और मुख़्तार आले मोहम्मद (11)
अब्दुल मलिक बिन मरवान के अहदे खि़लाफ़त में हज़रते मुख़्तार बिन अबू उबैदा सक़फी क़ातेलाने हुसैन से बदला लेने के लिये मैदान में निकल आये।
अल्लामा मसूदी लिखते हैं कि इस मक़सद में कामयाबी हासिल करने के लिये उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की बैअत करनी चाही मगर आपने बैअत लेने से इन्कार कर दिया। (मरूजुल ज़हब जिल्द 3 सफ़ा 155) अल्लामा नुरूल्लाह शूस्तरी शहीदे सालिस तहरीर फ़रमाते हैं कि अल्लामा हिल्ली ने मुख़्तार को मक़बूल लोगों में शुमार किया है। इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ने उन पर नुक़ता चीनी करने से रोका है और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने उनके लिये रहमत की दुआ की है। (मजालेसुल मोमेनीन जिल्द 346)
अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने उनकी कार गुज़ारी के लिससिले में ख़ुदा का शुक्र अदा किया है।
(जिलाउल उयून)
आप कूफ़े के रहने वाले थे। जनाबे मुस्लिम इब्ने अक़ील को आप ही ने सब से पहले मेहमान रखा था। आपको इब्ने ज़ियाद ने आले मोहम्मद (अ.स.) से मोहब्बत के जुर्म में कै़द कर दिया था। वहां से छूटने के बाद आप ने ख़ूने हुसैन (अ.स.) का बदला लेने का अज़मे बिल जज़म कर लिया था। चुनान्चे 26 हिजरी में एक बड़ी जमाअत के साथ बरामद हो कर कूफ़े के हाकिम बन बैठे और आपने किताब, सुन्नत और इन्तेक़ामे ख़ूने हुसैन (अ.स.) पर बैअत ले कर बड़ी मुस्तैदी से इन्तेक़ाम लेना शुरू कर दिया। शिम्र को क़त्ल कर दिया, ख़ूली को क़त्ल कर के आग में जला दिया, उमर बिन सअद और उसके बेटे हफ़स को क़त्ल किया। (तारीख़ अबुल फ़िदा)
मुल्ला मुबीन लिखते हैं कि शिम्र को क़त्ल कर के उसकी लाश को उसी तरह घोड़ों की टापों से पामाल कर दिया जिस तरह उसने इमाम हुसैन (अ.स.) की लाशे मुबारक को पामाल किया था। (वसीलतुन नजात) 67 हिजरी मंे इब्ने ज़ियाद को गिरफ़्तार करने के लिये इब्राहीम इब्ने मालिके अशतर की सरकरदगी में एक बड़ा लशकर मूसल भेजा जहां का वह उस वक़्त गर्वनर था। शदीद जंग के बाद इब्राहीम ने उसे क़त्ल किया और उसका सर मुख़्तार के पास भेज कर बाक़ी बदन नज़रे आतश कर दिया। (अबुल फ़िदा) फिर मुख़्तार के हुक्म से कै़स इब्ने अशअस की गरदन मारी गई। बजदल इब्ने सलीम (जिसने इमाम हुसैन (अ.स.) की उंगली एक अंगूठी के लिये काटी थी) के हाथ पाओं काटे गये। फिर हकीम इब्ने तुफ़ैल पर तीर बारानी की गई। उसने अलमदारे करबला हज़रत अब्बास (अ.स.) को शहीद किया था। इसी के साथ यज़ीद इब्ने सालिक, इमरान बिन ख़ालिद, अब्दुल्लाह बिजली, अब्दुल्लाह इब्ने क़ैस ज़रआ इब्ने शरीक, सबीह शामी और सनान बिन अनस तलवार के घाट उतारे गये। (हबीब उल सैर) उमर बिन हज्जाज भी गिरफ़्तार हो कर क़त्ल हुआ। (रौज़तुल सफ़ा)
मिन्हाल बिन उमर का कहना है कि मैं इसी दौरान में हज के लिये गया तो हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से मुलाक़ात हुई। आपने पूछा हुरमुला बिन काहिल असदी का क्या हश्र हुआ? मैंने कहा वह तो सालिम था। आपने आसमान की तरफ़ हाथ उठा कर फ़रमाया, ख़ुदाया उसे आतशे तेग़ का मज़ा चखा। जब मैं कूफ़े वापस आया और मुख़्तार से मिला और उन से वाक़ेया बयान किया तो वह इमाम (अ.स.) की बद दुआ की तकमील पर सजदा ए शुक्र अदा करने लगे।ग़र्ज़ कि आपने बेशुमार क़ातेलाने हुसैन (अ.स.) को तलवार के घाट उतार दिया।
क़ाज़ी मेबज़ी ने शरहे दीवाने मुतर्ज़वी में लिखा है कि मुख़्तारे आले मोहम्मद (स. अ.) के हाथों से क़त्ल होने वालों की तादाद अस्सी हज़ार तीन सौ तीन (80,303) थी।
मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जनाबे मुख़्तार के सामने जिस वक़्त इब्ने ज़ियाद मलऊन का सर रखा गया था तो एक सांप आ कर उसके मुंह में घुस कर नाक से निकलने लगा। इसी तरह देर तक आता जाता रहा। वह यह भी लिखते हैं कि हज़रते मुख़्तार ने इब्ने ज़ियाद का सर हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की खि़दमत में मदीना ए मुनव्वरा भेज दिया। जिस वक़्त वह सर पहुँचा तो आपने शुक्रे ख़ुदा अदा किया और मुख़्तार को दुआएं दीं। मुवर्रेखी़न का यह भी बयान है कि उसी वक़्त औरतों ने बालों में कंघी करनी और सर में तेल डालना और आंखों में सुरमा लगाना शुरू किया जो वाक़ेए करबला के बाद से इन चीज़ों को छोड़े हुये थीं । (अक़दे फ़रीद जिल्द 2 सफ़ा 251, नुरूल अबसार सफ़ा 124, मजालिसे मोमेनीन, बेहारूल अनवार) ग़र्ज़ कि जनाबे मुख़्तार ने इन्तेक़ामे ख़ूने शोहदा लेने के सिलसिले में कारहाय नुमायां किये। बिल आखि़र 14 रमज़ान 67 हिजरी को आप कूफ़े के दारूल इमाराह के बाहर शहीद कर दीये गये। ‘‘ इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन ’’ (तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हो किताब मुख़्तार आले मोहम्मद (स. अ.) मोअल्लेफ़ा हक़ीर मतबूआ लाहौर)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की निगाह में
86 हिजरी में अब्दुल मलिक इब्ने मरवान के इन्तेक़ाल के बाद उसका बेटा वलीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा बनाया गया। यह हज्जाज बिन यूसुफ़ की तरह निहायत ज़ालिमों जाबिर था। इसके अहदे ज़ुल्मत में उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ जो कि चचा ज़ाद भाई था, हिजाज़ का गर्वनर मुक़र्रर हुआ। यह बड़ा मुनसिफ़ मिजाज़ और फ़य्याज़ था। उसी के अहदे गर्वनरी का एक वाक़ेया यह है कि 87 हिजरी में सरवरे कायनात के रौज़े की एक दीवार गिर गई थी। जब उसकी मरम्मत का सवाल पैदा हुआ और उसकी ज़रूरत महसूस हुई कि किसी मुक़द्दस हस्ती के हाथ से इसकी इब्तेदा की जाय तो उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ही को सब पर तरजीह दी। (वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 1 सफ़ा 386) इसी ने फ़िदक वापस किया था और अमीरल मोमेनीन (अ.स.) पर से तबर्रा की वह बिदअत जो माविया ने जारी की थी बन्द कराई थी।
हिरोशिमा में फिलिस्तीन के समर्थन में विशाल प्रदर्शान
हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु हमले की 79वीं वर्षगांठ के अवसर पर जापानी लोगों ने ग़ज़्ज़ा में इस्राईल की ओर से किये जा रहे फिलिस्तीनी लोगों के जनसंहार का विरोध करते हुए फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन किया।