رضوی

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हरम मासूमा क़ुम (स) के वक्ता ने कहा: मनुष्य को उन सभी अवसरों और आशीर्वादों की सराहना करनी चाहिए जो अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उसे दिए हैं और खुशी के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए इन आशीर्वादों का अधिकतम उपयोग करना चाहिए इमाम ख़ुमैनी (र) ने अवसरों और इस्लामी क्रांति लाकर आइम्मा ए अत्हार (अ) की आशाओं और सपनों को पूरा किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमिन सैयद हुसैन मोमिनी ने हज़रत मासूमा क़ुम (स) की दरगाह में हज़रत इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर आयोजित एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा: सफल जीवन के लिए जवाबदेही और ध्यान बहुत जरूरी है, अल्लाह ताला ने इंसान के अस्तित्व में अपार क्षमताएं और नेमतें रखी हैं, इंसान को इन क्षमताओं और नेमतों का जितना हो सके उपयोग करना चाहिए और उनसे लाभ उठाना चाहिए, क्योंकि अगर उनका उपयोग नहीं किया जाता है, वे धीरे-धीरे कम हो जाएंगे और गायब हो जाएंगे इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो उन पर ध्यान देता है और उनकी सराहना करता है।

उन्होंने युवावस्था, स्वास्थ्य और सुरक्षा, जीवन और जीवन शक्ति को मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी बताया और कहा: मनुष्य को इन आशीर्वादों का अधिकतम उपयोग करना चाहिए, जो व्यक्ति बुढ़ापे में पहुंच गया है वह युवावस्था के अवसरों को महत्व देता है; जीवन और अस्तित्व एक वरदान है और इसमें अनंत अवसर हैं, यह बात मनुष्य को तब समझ में आती है जब वह खुद में मृत्यु के प्रभाव को देखना शुरू कर देता है।

इमाम खुमैनी (र) ने अवसरों का भरपूर लाभ उठाया और इस्लामी क्रांति करके आइम्मा ए अत्हार (अ) की आशाओं और सपनों को पूरा किया।

 

 

 

 

 

शुक्रवार, 07 जून 2024 18:18

मशहद मे बेटे का शोक

इब्न अल-रज़ा हज़रत इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद की शहादत दिवस के अवसर पर बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों ने इमाम रऊफ की दरगाह की ज़ियारत की और इमाम को उनके बेटे का पुरसा दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 29वाी ज़िलक़ादा आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) के बेटे हज़रत इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद (अ) का शहादत दिवस है।

इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर, मशहद को पवित्र काले कपड़े पहनाए जाते हैं और उन्हें गहरा दुख होता है। पवित्र तीर्थ के आसपास रहने वाले तीर्थयात्री और भाग्यशाली लोग इस दिन इमाम को सम्मान देने के लिए हरम में आते थे।

गर्म मौसम के बावजूद, इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर शोक संगठन और शोक मनाने वाले इस शहर के शहीद चौक पर एकत्र हुए और इब्न अल-रज़ा (अ) के शहादत दिवस पर शोक व्यक्त किया।

शुक्रवार सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हुए इस जुलूस में मशहद और खुरासान प्रांत के प्रशासनिक अधिकारी, मशहद के इमाम जुमा और लोगों ने हिस्सा लिया।

इमाम रज़ा (अ) की दरगाह में पवित्र कुरान के पाठ के साथ एक शोक सभा आयोजित की गई, जिसके बाद इमाम रज़ा (अ) की ज़ियारत की गई और इस विषय पर बधाई कविताएँ भी प्रस्तुत की गईं।

इस मजलिस में मातम करने और छाती पीटने के बाद, मातम करने वालों ने काले, हरे और लाल झंडे लिए हुए शाहदा स्क्वायर (मेदान शाहदा) से हरम रज़वी तक जुलूस निकाला और इमाम रज़ा (अ) को उनके बेटे का पुरसा दिया।

इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद की शहादत के अवसर पर शोक मनाने वालों ने काज़मैन में एक जुलूस निकाला और तीर्थयात्रियों ने इमाम अल-जवाद, की दरगाह में शोक मनाया।

इमाम मुहम्मद तकी अल-जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर, शोक संगठनों ने काज़मैन में एक जुलूस निकाला और तीर्थयात्रियों ने इमाम अल-जवाद (अ) की दरगाह पर शोक मनाया।

बगदाद में इमाम जवाद (अ) का हरम कल रात शोक मनाने वालों से भरा हुआ था और लोग हरम में प्रवेश कर रहे थे, इमाम जवाद (अ) की शहादत पर शोक व्यक्त कर रहे थे, तीर्थयात्री काले कपड़े पहने हुए थे और शोक सभा कर रहे थे। वह कल शाम से ही लगातार शोक में लगी हुई थी।

मातम मनाने वाले आगे बढ़ रहे थे, सिर झुका रहे थे और विलाप कर रहे थे और लब्बैक या जवाद अद्रकनी कह रहे थे, और हरम मुताहर की ओर सड़कें मातम करने वालों से भरी हुई थीं।

हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था,और 29 ज़िलक़द 220 हिजरी का दिन ऐसे महान व्यक्ति की शहादत का दिन है जिसे अत्याधिक दया तथा दान दक्षिणा के कारण जवाद अर्थात दानी की उपाधि दी गई।

हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ था। इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था,

ख़ुदाई दायित्व के उचित ढंग से निर्वाह के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.व.) के परिजनों में से प्रत्येक ने अपने काल में हर कार्य के लिए तार्किक और प्रशंसनीय नीति अपनाई थी ताकि ख़ुदाई मार्गदर्शन जैसे अपने दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से किया जा सके।

इन महापुरूषों के जीवन में अल्लाह पर केन्द्रियता उनका मूल मंत्र रही। इस प्रकार इंसाफ़ को लागू करने, ख़ुदा के सिवा किसी अन्य की बंदगी से मनुष्यों को मुक्ति दिलाने और व्यक्तिगत एवं सामाजिक संबंधों में सुधार जैसे विषयों पर उनका विशेष ध्यान था।

यद्यपि यह महापुरूष बहुत छोटे और सीमित वक़्त में इमामत के कार्यकाल में सफ़ल रहे किंतु उनकी दृष्टि में इंसाफ़ को स्थापित करने, हक़ व अधिकारों को दिलवाने, अन्याय को समाप्त करने और ख़ुदा के धर्म को फैलाने जैसे कार्य के लिए सत्ता एक माध्यम है। क्योंकि यह महापुरूष अपनी करनी तथा कथनी में मानवता और नैतिक मूल्यों का उदाहरण थे अतः वे लोगों के दिलों पर राज किया करते थे। रजब जैसे बरकतों वाले महीने की दसवीं तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की एक कड़ी के शुभ जन्मदिवस से सुसज्जित है।

आज के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ऐसे परिजन का जन्म दिवस है जो दान-दक्षिणा के कारण जवाद के उपनाम से जाने जाते थे। जवाद का अर्थ होता है अतिदानी। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दस रजब सन १९५ हिजरी को मदीना में हुआ था। ज्ञान, शालीनता, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से भिन्न था। वे बचपन से ही ज्ञान, राज़ व नियाज़, शालीनता और अन्य विशेषताओं में अद्वितीय थे।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के इमामत के काल में अब्बासी शासन के दो शासक गुज़रे मामून और मोतसिम। क्योंकि अब्बासी शासक, इस्लामी शिक्षाओं को लागू करने में गंभीर नहीं थे और वे केवल "ज़वाहिर" को ही देखते थे अंतः यह शासक, धर्म के नियमों में परिवर्तन करने और उस में नई बातें डालने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। इस प्रकार के व्यवहार के मुक़ाबले में इमाम जवाद (अ) की प्रतिक्रियाओं और उनके विरोध के कारण व्यापक प्रतिक्रियाएं हुईं और यही विषय, अब्बासी शासन की ओर से इमाम और उनके अनुयाइयों को पीड़ित किये जाने का कारण बना।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अन्य परिजनों की ही भांति इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों के अत्याचारों और जनता को धोखा देने वाली उनकी कार्यवाहियों के मुक़ाबले में शांत नहीं बैठते और बहुत सख़्त परिस्थितियों में भी जनता के समक्ष वास्तविकताओं को स्पष्ट किया करते थे।

अत्याचार के मुक़ाबले में इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की दृढ़ता और बहादुरी, साथ ही उनकी बेहतरीन ख़िताबत कुछ इस प्रकार थी जिस को सहन करने की शक्ति अब्बासी शासकों में नहीं थी। यही कारण है कि इन दुष्टों ने मात्र 25 वर्ष की आयु में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रयासों के आयामों में से एक, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के उन विश्वसनीय कथनों को प्रस्तुत करना और उन गूढ़ धार्मिक विषयों को पेश करना था जिनपर उन लोगों ने विभिन्न आयाम से प्रकाश डाला था।

इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम एक ओर तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के कथनों का वर्णन करते हुए समाज में धर्म की जीवनदाई संस्कृति और धार्मिक शिक्षाओं को प्रचलित कर रहे थे तो दूसरी ओर समय की आवश्यकता के अनुसार तथा जनता की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक क्षमता के अनुरूप विभिन्न विषयों पर भाषण दिया करते थे। ख़ुदाई आदेशों को लागू करने के लिए इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का एक उपाय या कार्य, पवित्र क़ुरआन और लोगों के बीच संपर्क स्थापित करना था।

उनका मानना था कि क़ुरआन की आयतों को समाज में प्रचलित किया जाए और मुसलमानों को अपनी कथनी-करनी और व्यवहार में पवित्र क़ुरआन और उसकी शिक्षाओं से लाभान्वित होना चाहिए। इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम ख़ुदाई इच्छा की प्राप्ति को लोक-परलोक में कल्याण की चाबी मानते थे। वे पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं के आधार पर इस बात पर बल दिया करते थे कि अल्लाह की प्रसन्नता हर वस्तु से सर्वोपरि है।

ख़ुदावंदे करीम सूरए तौबा की ७२ वीं आयत में अपनी इच्छा को मोमिनों के लिए हर चीज़, यहां तक स्वर्ग से भी बड़ा बताता है। इसी आधार पर इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों से कहते थे कि वे केवल ख़ुदा की प्रसन्नता प्राप्त करने के बारे में सोच-विचार करें और इस संदर्भ में वे अपने मार्गदर्शन प्रस्तुत करते थे। अपने मूल्यवान कथन में एक स्थान पर इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम कहते हैं: तीन चीज़े अल्लाह की प्रसन्नता का कारण बनती हैं। पहले, अल्लाह से अधिक से अधिक प्रायश्यित करना, दूसरे कृपालू होना और तीसरे अधिक दान देना। ख़ुदा की ओर से मनुष्य को प्रदान की गई नेअमतों में से एक नेअमत प्रायश्यित अर्थात अपने पापों के प्रति अल्लाह से क्षमा मांगना है।

प्रायश्चित, ख़ुदा के बंदों के लिए  ख़ुदा की नेअमतों के द्वार में से एक है। ख़ुदा से पापों का प्रायश्चित करने से पिछले पाप मिट जाते हैं और इससे इंसान को इस बात का फिर से अवसर प्राप्त होता है कि वह विगत की क्षतिपूर्ति करते हुए उचित कार्य करे और अपनी आत्मा को पवित्र एवं कोमल बनाए। इसी तर्क के आधार पर मनुष्य को तौबा या प्रायश्चित करने में विलंब नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे पछतावा ही हाथ आता है।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के अनुसार शराफ़त (शालीतना) उन अन्य उपायों में से है जिसके माध्यम से ख़ुदाई प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है। उसके पश्चात दूसरे और तीसरे भाग में मनुष्य को लोगों के साथ संपर्क के ढंग से परिचित कराते हैं। दूसरे शब्दों में अल्लाह को प्रसन्न करने का मार्ग अल्लाह के बंदों और उनकी सेवा से गुज़रता है। इस संपर्क को विनम्रता और दयालुता के साथ होना चाहिए।

निश्चित रूप से विनम्र व्यवहार विनम्रता का कारण बनता है जो मानव को घमण्ड से दूर रखता है। घमण्ड, दूसरों पर अत्याचार का कारण होता है। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने ख़ुत्बे के अन्तिम भाग में अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के तीसरे कारण को दान-दक्षिणा के रूप में परिचित करवाते हैं। स्वयं वे इस मानवीय विशेषता के प्रतीक थे।

इसी आधार पर उन्हें जवाद अर्थात अत्यधिक दानी के नाम से जाना जाता है। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम लोगों को उस मार्ग का निमंत्रण देते थे जिसे उन्होंने स्वयं भी तय किया और उसके बहुत से प्रभावों को ख़ुदा की रहमत और कृपादृष्टि को आकृष्ट करने में अनुभव किया। दूसरों को सदक़ा या दान देने का उल्लेख पवित्र क़ुरआन में बहुत से स्थान पर नमाज़ के साथ किया गया है। इस प्रकार इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम यह समझाना चाहते हैं कि ख़ुदा की इबादत के दो प्रमुख पंख हैं। इनमें से एक ख़ुदा के साथ सहीह एवं विनम्रतापूर्ण संबंध और दूसरा लोगों के साथ मधुर एवं विनम्रतापूर्ण व्यवहार है। यह कार्य दान से ही संभव होता है जिससे व्यक्ति अल्लाह की इच्छा प्राप्त कर सकता है।

मनुष्य अपनी संपत्ति में से जिस मात्रा में भी चाहे अल्लाह के मार्ग में वंचितों को दान कर सकता है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि दान-दक्षिणा में संतुलन होना चाहिए। ऐसा न हो कि यह मनुष्य के लिए निर्धन्ता का कारण बने। दान और परोपकार हर स्थिति में विशेषकर धन-दौलत का दान उन कार्यों में से एक है जो इंसान को ख़ुदा की प्रसन्नता की ओर बढ़ाता है। क्योंकि इंसान के पास जो कुछ है उसे वह अल्लाह के मार्ग में दान दे सकता है। इस प्रकार के लोग हर प्रकार के भौतिक लगाव को त्यागते हुए केवल अल्लाह की प्रशंसा की प्राप्ति चाहते हैं। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक कथन से इस लेख का अंत कर रहे हैं।

जैसा कि आप जानते हैं कि बहुत से लोग धन-दौलत, सत्ता, जातिवाद तथा इसी प्रकार की बातों को गर्व और महानता का कारण मानते हैं तथा जिन लोगों में यह चीज़ें नहीं पाई जातीं उन्हें वे तुच्छ समझते हैं किंतु इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम सच्ची शालीनता का कारण उस ज्ञान को मानते हैं जो व्यक्ति के भीतर निखार का कारण बने। वे महानता को आध्यात्मिक विशेषताओं में से मानते हैं।

एक स्थान पर आप कहते हैं: वास्तविक सज्जन वह व्यक्ति है जो इल्म से आरास्तां (ज्ञान से सुसज्जित) हो और वास्तविक महानता उसी के लिए है जो ख़ुदाई भय और ख़ुदाई पहचान के मार्ग को अपनाए।

अमरीकी यूनिवर्सिटियों में छात्र और प्रोफ़ेसर युद्ध ग्रस्त ग़ज़ा के लोगों के साथ जहां एकजुटता जताने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं इस देश के दो प्रमुख दलों के नेता और राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार वही पुरानी और घिसीपिटी चुनावी रणनीति को फिर से ज़िंदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

1968 में अमरीका में कोलंबिया विश्वविद्यालय समेत कई अन्य विश्वविद्यालयों में विरोध करने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करके रूढ़िवादियों ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की थी। यह छात्र वियतनाम में अमरीका के युद्ध का विरोध कर रहे थे। डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही पार्टियों ने इस विरोध को अवैध और अमरीका विरोधी बताया था। अब 56 साल बाद, हम अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों में एक समान राजनीतिक प्रक्रिया को आकार लेते हुए देख सकते हैं।

जब अमरीका की यूनिवर्सिटियों में फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारी छात्रों के टैंटों को उखाड़ फेंकने के लिए पुलिस को बुलाया गया, तो अमरीकी राजनेताओं ने पुरानी दास्तानों को दोहराया। हालांकि यह दास्तान उन लोगों के लिए आश्चर्यजनक नहीं है, जो अमरीकी इतिहास से वाक़िफ़ हैं।

1968 में निक्सन ने सविनय अवज्ञा को एक ऐसे कार्य के रूप में वर्णित करने का प्रयास किया जिसने अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था को ख़तरे में डाल दिया है, भले ही वह अहिंसक ही क्यों न हो। वियतनाम में अमेरिकी युद्ध-प्रणाली के ख़िलाफ़ छात्रों के नारों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा थाः नारा लगाना एक तरह की नई हिंसा है, जो लोगों को भ्रमित कर सकती है।

राष्ट्रपति जो बाइडन भी छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़, इसी तरह की बयानबाज़ी कर रहे हैं। 5 मई को उन्होंने कहा था कि विरोध करने का अधिकार सभी को है, लेकिन अराजकता फैलाने का अधिकार किसी को नहीं है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि छात्र हिंसक तरीक़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

अब देखना है यह कि चुनावों में बाज़ी कौन मारता है। क्योंकि डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ही ज़ायोनी लॉबी को ख़ुश करने में लगे हुए हैं और पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के समर्थकों को बुरा-भला कह रहे हैं। शायद दोनों के सामने 1968 में निक्सन को व्हाइट हाउस पहुंचाने वाली प्रक्रिया है।

डेमोक्रेट यह दिखाना चाहते हैं कि वे रूढ़िवादियों की तुलना में विरोध प्रदर्शनों और सार्वजनिक अव्यवस्था पर अधिक सख़्त हैं, तो मतदाता रिपब्लिकन द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए अधिक रूढ़िवादी विकल्प को पसंद करते हैं।

क़ानून और व्यवस्था के नारे के साथ बाइडन न केवल राष्ट्रपति चुनाव में डोनल्ड ट्रम्प को फिर से चुनने में मदद कर रहे हैं, बल्कि प्रांतीय चुनावों में भी रिपब्लिकन की मदद करने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

रिपब्लिकन की ओर से 2024 के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ट्रम्प ने भी बाइडन और डेमोक्रेट्स द्वारा तैयार की गई पिच पर खेलते हुए कहाः मैं हर कॉलेज अध्यक्ष से इस अभियान को तुरंत बंद करने के लिए कहता हूं। कट्टरपंथियों को हराएं और सभी सामान्य छात्रों के लिए हमारे विश्वविद्यालयों को फिर से खोल दें।

जैसे-जैसे फ़िलिस्तीन के लिए समर्थन का मुद्दा ज़ोर पकड़ रहा है और विरोध प्रदर्शनों को तेज़ी से दबाया जा रहा है, हम विरोध प्रदर्शनों और विद्रोह की उन गर्म और लंबी गर्मियों में से एक के निकट होते जा रहे हैं, जो 1960 के दशक में अमरीका की पहचान बन गई थी।

ग़ज़्ज़ा में 8 महीने से लगातार क़त्ले आम में लगी ज़ायोनी सेना को अमेरिका से भरपूर सैन्य सहायता मिल रही है। वहीँ भारत की ओर से भी हथियार आपूर्ति की खबरों के बीच इस्राईल को भारतीय गोला बारूद की खबरों पर भारत में भारी वबाल हुआ था। अब ऐसी ही एक खबर सामने आ रही है जिस से एक बार फिर हंगामा मचना तय है।

अतिक्रमणकारी ज़ायोनी सेना ने हाल ही में ग़ज़्ज़ा में संयुक्‍त राष्‍ट्र की ओर से संचालित स्‍कूल पर मिसाइल हमले किए थे। अब दावा किया जा रहा है कि इस हमले में ज़ायोनी सेना ने भारत में बनी मिसाइल का इस्‍तेमाल किया था। इस मिसाइल का एक वीडियो वायरल हो गया है।

फिलिस्तीन की कुद्स न्‍यूज की रिपोर्ट के मुताबिक इस मिसाइल का अवशेष मिला है और उस पर 'मेड इन इंडिया' लिखा हुआ है। इससे सोशल मीडिया में बवाल मचा हुआ है। बताया जा रहा है कि ज़ायोनी सेना ने यह हमला 6 जून को किया था। इससे पहले भारत के अवैध राष्ट्र इस्राईल को विस्‍फोटक भेजने पर भी बवाल मचा था।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार गठन से पहले ही एनडीए गठबंधन के अहम् दल टीडीपी के नेता ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि मुस्लिम आरक्षण जारी रहेगा।

टीडीपी नेता ने कहा कि आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण जारी रखेगा, इसमें कोई समस्या नहीं है। टीडीपी नेता रविंद्र कुमार ने कहा कि एनडीए की दूसरी बैठक में सहयोगी दलों से कुछ सहायता ली जाएगी। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश का पुनर्निर्माण किया जाएगा, क्योंकि यह 25 साल पीछे जा चुका है।

फिलिस्तीन की आज़ादी के लिए सशस्त्र आंदोलन हमास के ग़ज़्ज़ा प्रमुख याह्या अल सिनवार ने वार्ताकार टीम के माध्यम से साफ़ शब्दों में कहा है कि स्थायी संघर्ष विराम के अलावा हम किसी भी स्थिति में संघर्ष रोके जाने के पक्ष में नहीं हैं।

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा कि ग़ज़्ज़ा में हमास के नेता ने अरब वार्ताकारों को सूचित किया है कि वह बाइडन के प्रस्ताव को तब तक स्वीकार नहीं करेंगे जब तक कि "इस्राईल" स्थायी युद्धविराम के लिए प्रतिबद्ध न हो।

सिनवार ने अपने छोटे से संदेश में स्पष्ट रूप से कहा है  कि जब तक यहाँ स्थायी युद्ध विराम न हो, तब तक न तो हमास सशत्र संघर्ष का रास्ता छोड़ेगा और न ही इस्राईल के साथ किसी शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेगा।

 

शुक्रवार, 07 जून 2024 06:48

इमाम मौ. तक़ी अलैहिस्सलाम

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दस रजब सन १९५ हिजरी क़मरी को मदीना नगर में हुआ था। ज्ञान, शालीनता, वाकपटुता तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से भिन्न था.

ईश्वरीय दायित्व के उचित ढंग से निर्वाह के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों में से प्रत्येक ने अपने काल में हर कार्य के लिए तार्किक और प्रशंसनीय नीति अपनाता था ताकि ईश्वरीय मार्गदर्शन जैसे अपने दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से किया जा सके।

इन महापुरूषों के जीवन में ईश्वर पर केन्द्रियता उनका मूल मंत्र रही। इस प्रकार न्याय को लागू करने, ईश्वर के बिना किसी अन्य की दासता से मनुष्यों को मुक्ति दिलाने और व्यक्तिगत एवं समाजिक संबन्धों में सुधार जैसे विषयों पर उनका विशेष ध्यान था।

यद्यपि यह महापुरूष बहुत छोटे और सीमित कालखण्ड में ही सरकार के गठन में सफल रहे किंतु उनकी दृष्टि में न्याय को स्थापित करने, अधिकारों को दिलवाने, अन्याय को समाप्त करने और ईश्वर के धर्म को फैलाने जैसे कार्य के लिए सत्ता एक माध्यम है। क्योंकि यह महापुरूष अपनी करनी तथा कथनी में मानवता और नैतिक मूल्यों का उदाहरण थे अतः वे लोगों के हृदयों पर राज किया करते थे। रजब जैसे अनुकंपाओं वाले महीने की दसवीं तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम के एक परिजन के शुभ जन्मदिवस से सुसज्जित है।

आज के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एसे परिजन का जन्म दिवस है जो दान-दक्षिणा के कारण जवाद के उपनाम से जाने जाते थे। जवाब का अर्थ होता है अतिदानी। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दस रजब सन १९५ हिजरी क़मरी को मदीना नगर में हुआ था। ज्ञान, शालीनता, वाकपटुता तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से भिन्न था। वे बचपन से ही ज्ञान, तत्वदर्शिता, शालीनता और अन्य विशेषताओं में अद्वितीय थे।

इमाम मुहम्मद तक़ी के ईश्वरीय मार्गदर्शन के काल में अब्बासी शासन के दो शासक गुज़रे मामून और मोतसिम। क्योंकि अब्बासी शासक, इस्लामी शिक्षाओं को लागू करने में गंभीर नहीं थे और वे केवल "ज़वाहिर" को ही देखते थे अतः यह शासक, धर्म के नियमों में परिवर्तन करने और उसमें नई बातें डालने के लिए प्रयासरत रहते थे। इस प्रकार के व्यवहार के मुक़ाबले में इमाम जवाद (अ) की प्रतिक्रियाओं और उनके विरोध के कारण व्यापक प्रतिक्रियाएं हुईं और यही विषय, अब्बासी शासन की ओर से इमाम और उनके अनुयाइयों को पीडि़त किये जाने का कारण बना।

पैग़म्बरे इस्लाम के अन्य परिजनों की ही भांति इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम, अब्बासी शासकों के अत्याचारों और जनता को धोखा देने वाली उनकी कार्यवाहियों के मुक़ाबले में शांत नहीं बैठते और कठिनतम परिस्थितियों में भी जनता के समक्ष वास्तविकताओं को स्पष्ट किया करते थे। अत्याचार के मुक़ाबले में इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की दृढ़ता और वीरता, साथ ही उनकी वाकपुटा कुछ इस प्रकार थी जिसको सहन करने की शक्ति अब्बासी शासकों में नहीं थी। यही कारण है कि इन दुष्टों ने मात्र २५ वर्ष की आयु में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया।इमाम जवाद अलैहिस्सलाम के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रयासों के आयामों में से एक, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के उन विश्वसनीय कथनों को प्रस्तुत करना और उन गूढ़ धार्मिक विषयों को पेश करना था जिनपर उन लोगों ने विभिन्न आयाम से प्रकाश डाला था।

इमाम जवाद अलैहिस्लाम एक ओर तो पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के कथनों का वर्णन करते हुए समाज में धर्म की जीवनदाई संस्कृति और धार्मिक शिक्षाओं को प्रचलित कर रहे थे तो दूसरी ओर समय की आवश्यकता के अनुसार तथा जनता की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक क्षमता के अनुरूप विभिन्न विषयों पर भाषण दिया करते थे। ईश्वरीय आदेशों को लागू करने के लिए इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम का एक उपाय या कार्य, पवित्र क़ुरआन और लोगों के बीच संपर्क स्थापित करना था।

उनका मानना था कि क़ुरआन की आयतों को समाज में प्रचलित किया जाए और मुसलमानों को अपनी कथनी-करनी और व्यवहार में पवित्र क़ुरआन और उसकी शिक्षाओं से लाभान्वित होना चाहिए। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम ईश्वरीय इच्छा की प्राप्ति को लोक-परलोक में कल्याण की चाबी मानते थे। वे पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं के आधार पर इस बात पर बल दिया करते थे कि ईश्वर की प्रसन्नता हर वस्तु से सर्वोपरि है। ईश्वर सूरए तौबा की ७२वीं आयत में अपनी इच्छा को मोमिनों के लिए हर चीज़, यहां तक स्वर्ग से भी से बड़ा बताता है। इसी आधार पर इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम लोगों से कहते थे कि वे केवल ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के बारे में सोच-विचार करें और इस संदर्भ में वे अपने मार्गदर्शन प्रस्तुत करते थे। अपने मूल्यवान कथन में एक स्थान पर इमाम जवाद कहते हैं-तीन चीज़े ईश्वर की प्रसन्नता का कारण बनती हैं। पहले, ईश्वर से अधिक से अधिक प्रायश्यित करना दूसरे कृपालू होना और तीसरे अधिक दान देना।ईश्वरीय की ओर से मनुष्य को प्रदान की गई अनुकंपाओं में से एक अनुकंपा, प्रायश्यित अर्थात अपने पापों के प्रति ईश्वर से क्षमा मांगना है।

प्रायश्चित, ईश्वर के दासों के लिए ईश्वर की अनुकंपाओं के द्वार में से एक है। ईश्वर से पापों का प्रायश्चित करने से पिछले पाप मिट जाते हैं और इससे मनुष्य को इस बात का पुनः सुअवसर प्राप्त होता है कि वह विगत की क्षतिपूर्ति करते हुए उचित कार्य करे और अपनी आत्मा को पवित्र एवं कोमल बनाए। इसी तर्क के आधार पर मनुष्य को तौबा या प्रायश्चित करने में विलंब नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे पछतावा ही हाथ आता है। इस्तेग़फ़ार का अर्थ है क्षमाचायना और पश्चाताप।

इससे तात्पर्य यह है कि मनुष्य ईश्वर से चाहता है कि वह उसके पापों को क्षमा कर दे और उसे अपनी कृपा का पात्र बनाए। इस संबन्ध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि धरती पर ईश्वरीय प्रकोप से सुरक्षित रहने के केवल दो ही मार्ग थे। इन दोनों में से एक पैग़म्बरे इस्लाम का असितत्व था जो उनके स्वर्गवास के साथ हटा लिया गया किंतु दूसरा मार्ग प्रायश्यित है जो सबके लिए प्रलय के दिन तक मौजूद है अतः उससे लौ लगाओ और उसे पकड़ लो। प्रायश्चित, लोक-परलोक के उस प्रकोप को मनुष्य से दूर कर सकता है जो उसके बुरे कर्मों की स्वभाविक प्रतिक्रिया हैं इस प्रकार इमाम नक़ी के कथनानुसार मानव ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त कर सकता है। पवित्र क़ुरआन की आयतों की छाया में प्रायश्चित के महत्वपूर्ण प्रभावों में ईश्वरीय प्रकोप से सुरक्षित रहना, पापों का प्रायश्चित, आजीविका में वृद्धि, संपन्नता तथा आयु में वृद्धि की ओर संकेत किया जा सकता है।

इमाम जवाद के अनुसार शालीतना उन अन्य उपायों में से है जिसके माध्यम से ईश्वरीय प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है।उसके पश्चात दूसरे और तीसरे भाग में मनुष्य को लोगों के साथ संपर्क के ढंग से परिचित कराते हैं। दूसरे शब्दों में ईश्वर को प्रसन्न करने का मार्ग ईश्वर के बंदों और उनकी सेवा से गुज़रता है। इस संपर्क को विनम्रता और दयालुता के साथ होना चाहिए।

निश्चित रूप से विनम्र व्यवहार विनम्रता का कारण बनता है जो मानव को घमण्ड से दूर रखता है। घमण्ड, दूसरों पर अत्याचार का कारण होता है। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम अपने भाषण के अन्तिम भाग में ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के तीसरे कारण को दान-दक्षिणा के रूप में परिचित करवाते हैं। स्वयं वे इस मानवीय विशेषता के प्रतीक थे। इसी आधार पर उन्हें जवाद अर्थात अत्यधिक दानी के नाम से जाना जाता है। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम लोगों को उस मार्ग का निमंत्रण देते थे जिसे उन्होंने स्वयं भी तय किया और उसके बहुत से प्रभावों को ईश्वर की कृपादृष्टि को आकृष्ट करने में अनुभव किया। दूसरों को सदक़ा या दान देने का उल्लेख पवित्र क़ुरआन में बहुत से स्थान पर ईश्वर की प्रार्थना अर्थात नमाज़ के साथ किया गया है। इस प्रकार इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम यह समझाना चाहते हैं कि ईश्वर की उपासना के दो प्रमुख पंख हैं। इनमें से एक ईश्वर के साथ सही एवं विनम्रतापूर्ण संबन्ध और दूसरा लोगों के साथ मधुर एवं विनम्रतापूर्ण व्यवहार है। यह कार्य दान से ही संभव होता है जिससे व्यक्ति ईश्वर की इच्छा प्राप्त कर सकात है।

मनुष्य अपनी संपत्ति में से जिस मात्रा में भी चाहे ईश्वर के मार्ग में वंचितों को दान कर सकता है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि दान-दक्षिणा में संतुलन होना चाहिए। एसा न हो कि यह मनुष्य के लिए निर्धन्ता का कारण बने। दान और परोपकार हर स्थिति में विशेषकर धन-दौलत का दान उन कार्यों में से एक है जो मनुष्य को ईश्वर की प्रसन्नता की ओर बढ़ाता है। क्योंकि मनुष्य के पास जो कुछ है उसे वह ईश्वर के मार्ग में दान दे सकता है। इस प्रकार के लोग हर प्रकार के भौतिक लगाव को त्यागते हुए केवल ईश्वर की प्रशंसा की प्राप्ति चाहते हैं।इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक कथन से इस लेख का अंत कर रहे हैं।

जैसा कि आप जानते हैं कि बहुत से लोग धन-दौलत, सत्ता, जातिवाद तथा इसी प्रकार की बातों को गर्व और महानता का कारण मानते हैं तथा जिन लोगों में यह चीज़ें नहीं पाई जातीं उन्हें वे तुच्छ समझते हैं किंतु इमाम जवाद अलैहिस्सलाम वास्तविक शालीनता का कारण उस ज्ञान को मानते हैं जो व्यक्ति के भीतर निखार का कारण बने। वे महानता को आध्यात्मिक विशेषताओं में से मानते हैं।

एक स्थान पर आप कहते हैं-वास्तविक सज्जन वह व्यक्ति है जो ज्ञान से सुसज्जित हो और वास्तविक महानता उसी के लिए है जो ईश्वरीय भय और ईश्वरीय पहचान के मार्ग को अपनाए।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) की तरह हमारे आइम्मा अलैहिमुस्सलाम भी लोगों की तालीमो तर्बियत मे हमेशा कोशीश करते रहते थे। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम का तरीकाऐ तालीम और तरबियत को तालीमी और तरबियती इदारो की सरगर्मियों पर क्यास नहीं किया जा सकता है। तालीमी इदारे खास औक़ात में तालीम देते हैं और बकीया औकात मोअत्तल रहते हैं। लेकिन आइम्मा अलैहेमुस्सलाम की तालीमो तरबियत के लिये कोई खास वक्त मोअय्यन नहीं था। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम लोगों की तालीमो तरबियत मे मसरूफ रहते थे। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम का हर गोशा , उन की रफ्तारो गुफ्तार , अवाम की तर्बियत का बेहतरीन ज़रिया था। जब भी कोई मुलाक़ात का शरफ हासिल करता था। वो आइम्मा के किरदार से फायदा हासिल करता था और मजलिस से कुछ न कुछ ले कर उठता था। अगर कोई सवाल करना चाहता था तो उसका जवाब दिया जाता था।

वाज़ेह रहे कि इस तरह का कोई मदरसा दुनिया मे कहीं मौजूद नहीं है। इस तरह का मदरसा तो सिर्फ अम्बिया अलैहेमुस्सलाम की ज़िन्दगी मे मिलता है ज़ाहिर सी बात है कि इस तरह के मदरसे के असारात फायदे और नताएज बहुत ज़्यादा ताज्जुब खैज़ हैं। बनी अब्बास के खलीफा ये जानते थे कि अगर अवाम को इस मदरसा की खुसूसियात का इल्म हो गया और वो उस तरफ मुतावज्जेह हो गए तो वो खुद-बखुद आइम्मा अलैहिमुस्सलाम की तरफ खिंचते चले जाएगे और इस सूरत मे ग़ासिबों की हुकूमत खतरो से दो-चार हो जाएगी। इस लिये खलीफा हमेशा ये कोशिश करते रहे कि अवाम को आइम्मा अलैहेमुस्सलाम को दूर रखा जाए और उन्हे नज़्दीक न होने दिया जाए। सिर्फ इमाम मौहम्मद बाक़िर (अ.स) के ज़माने मे जब उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की हुकूमत थी और इमाम जाफर सादिक़ (अ.स) के इब्तेदाई दौर में जब बनी उमय्या और बनी अब्बास आपस मे लड़ रहे थे और बनी अब्बास ने ताज़ा ताज़ा हुकूमत हासिल की थी और हुकूमत मुस्तहकम नहीं हुई थी। उस वक्त अवाम को इतना मौका मिल गया कि वो आज़ादी से अहलेबैत से इस्तेफादा कर सकें। लेहाज़ा हम देखते हैं कि इस मुख्तसर सी मुद्दत में शागिर्दों और रावियों की तादाद चार हज़ार तक पहुंच गयी।

( रेजाल शैख तूसी , पेज न 142 , 342 )

लेकिन इसके अलावा बक़िया आइम्मा के ज़मानो मे शागिर्दों की तादाद बहुत कम नज़र आती है। मसलन इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के शागिर्दों और रावियों की तादाद 110 है।

(रेजाल शैख तूसी , पेज न. 397 , 409)

इससे ये पता चलता है कि इस दौर मे अवाम को इमाम (अ.स) से कितना दूर रखा जाता था। लेकिन इस मुख्तसर सी तादाद में भी नुमाया अफराद नज़र आते हैं। यहा नमूने के तौर पर चन्द का ज़िक्र करते हैः

अली बिन महज़ियार

इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के असहाबे खास और इमाम के वकील थे। आप का शुमार इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम अली नक़ी (अ.स) के असहाब मे भी होता है। बहुत ज़्यादा इबादत करते थे , सजदे की बना पर पूरी पेशानी पर घट्टे पड़ गए थे। तोलूवे आफताब के वक्त सर सजदे मे रखते और जब तक एक हज़ार मोमिनो के लिये दुआ न कर लेते थे। उस वक्त तक सर ना उठाते थे। और जो दुआ अपने लिये करते थे वही उन के लिये भी।

अली बिन महज़ियार अहवाज़ मे रहते थे , आप ने 30 से ज़्यादा किताबें लिखी हैं।

ईमानो अमल के उस बुलन्द मर्तबे पर फाएज़ थे कि एक मर्तबा इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने आप की कद्रदानी करते हुए आप को एक खत लिखाः

बिसमिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम

ऐ अली। खुदा तुम्हे बेहतरीन अज्र अता फर्माए , बहिश्त मे तुम्हे जगह दे दुनियाओ आखेरत की रुसवाई से महफूज़ रखे और आखेरत मे हमारे साथ तुम्हे महशूर करे। ऐ अली। मैंने तुम्हे उमूर खैर , इताअत , एहतराम और वाजेबात की अदाएगी के सिलसिले मे आज़माया है। मैं ये कहने मे हक़ बजानिब हुं कि तुम्हारा जैसा कहीं नहीं पाया। खुदा वंदे आलम बहिश्ते फिरदोस मे तुम्हारा अज्र करार दे। मुझे मालूम है कि तुम गर्मियों , सर्दियों और दिन रात क्या क्या खिदमत अन्जाम देते हो। खुदा से दुआ करता हूं कि जब रोज़े कयामत सब लोग जमा होंगे उस वक्त रहमते खास तुम्हारे शामिले हाल करे। इस तरह कि दूसरे तुम्हे देख कर रश्क करें। बेशक वो दुआओ का सुनने वाला है।

(ग़ैबत शैख तूसी पेज न. 225 , बिहारुल अनवार जिल्द 50 पेज न. 105)

अहमद बिन मौहम्मद अबी नस्र बरनती

कूफे के रहने वाले इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के असहाबे खास और उन दोनो इमामो के नज़्दीक अज़ीम मन्ज़ेलत रखते थे , आपने बहुत-सी किताबें तहरीर की। जिनमे एक किताब अल जामेआ है। ओलामा के नज़्दीक आपकी फिक्ही बसीरत मशहूर है। फोक़्हा आप के नज़रयात को एहतरामो इज़्ज़त की निगाह से देखते हैं।

(मोअज्जिम रेजाल अल हदीस जिल्द 2 पेज न. 237 वा रेजाल कशी पेज न. 558)

आप उन तीन आदमियों मे हैं जो इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे शरफयाब हुए और इमाम ने उन लोगो को खास इज़्ज़तो एहतराम से नवाज़ा।

ज़करया बिन आदम कुम्मी

शहरे क़ुम मे आज भी उनका मज़ार मौजूद है। इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के खास असहाब मे से थे। इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने आपके लिये दुआ फर्मायी। आपको इमाम (अ.स) के बावफा असहाब मे शुमार किया जाता है।

(रजाल कशी पेज न. 503)

एक मर्तबा इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुए। सुब्ह तक इमाम ने बातें की। एक शख्स ने इमाम रज़ा (अ.स) से दर्याफ्त कियाः मैं दूर रहता हूं और हर वक्त आपकी खिदमत मे हाज़िर नहीं हो सकता हूं। मैं अपने दीनी एहकाम किससे दर्याफ्त करुं।

(मुन्तहल आमाल सवानेह उमरी इमाम रज़ा (अ.स) पेज न. 85)

फर्मायाः ज़कर्या बिन आदम से अपने दीनी अहकाम हासिल करो। वो दीनो दुनिया के मामले मे अमीन है।

(रिजाल कशी पेज न. 595)

मौहम्मद बिन इस्माईल बिन बज़ी

इमाम मूसा काज़िम , इमाम रज़ा और इमाम मौहम्मद तक़ी अलैहिमुस्सलाम के असहाब मे ओलामा शिया के नज़्दीक मोअर्रिद एतमाद ,बुलंद किरदार और इबादत गुज़ार थे। मोतदिद किताबें तहरीर की हैं। बनी अब्बास के दरबार मे काम करते थे।

(रिजाले नजाशी पेज न. 254)

इस सिलसिले मे इमाम रज़ा (अ.स) ने आपसे फर्मायाः

सितमगारों के दरबार मे खुदा ने ऐसे बंदे मुअय्यन किये हैं। जिन के ज़रीये वो अपनी दलील और हुज्जत को ज़ाहिर करता है। उन्हे शहरों मे ताकत अता करता है ताकि उनके ज़रीये अपने दोस्तो को सितमगारों के ज़ुल्मो जौर से महफूज़ रखे। मुसलमानो के मामलात की इस्लाह हो। ऐसे लोग हवादिस और खतरात मे साहेबाने ईमान की पनाहगाह हैं। हमारे परेशान हाल शिया उन की तरफ रुख करते हैं और अपनी मुश्किलात का हल उन से तलब करते हैं। ऐसे अफराद के ज़रिये खुदा मोमिनो को खौफ से महफूज़ रखता है। ये लोग हक़ीकी मोमिन हैं। ज़मीन पर खुदा के अमीन हैं। उन के नूर से क़यामत नूरानी होगी। खुदा की क़सम ये बहिश्त के लिये और बहिश्त इन के लिये है। नेमतें इन्हें मुबारक हों।

उस वक्त इमाम (अ.स) ने फर्मायाः तुममे से जो चाहे इन मक़ामात को हासिल कर सकता है।

मौहम्मद बिन इस्माईल ने अर्ज़ किया। आप पर क़ुर्बान हो जाऊ। किस तरह हासिल कर सकता हूं।

 

इमाम ने फर्मायाः सितमगारों के साथ रहे। हमें खुश करने के लिये हमारे शियों को खुश करे। (यानी जिस ओहदा और मनसब पर हो। उस का मकसद मोमिनो से ज़ुल्मो सितम दूर करना हो।)

मौहम्मद बिन इस्माईल ,जो बनी अब्बास के दरबार मे वज़ारत के ओहदे पर फाएज़ थे। इमाम ने आखिर में उन से फर्मायाः ऐ मौहम्मद। तुम भी इन मे शामिल हो जाओ।

(रिजाले नजाशी पेज न. 255)

हुसैन बिन खालिद का बयान है कि एक गिरोह के हमराह इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुआ। दौरान गुफ्तगू मौहम्मद बिन इस्माईल का ज़िक्र आया। इमाम (अ.स) ने फर्मायाः मैं चाहता हूं कि तुममे ऐसे अफराद हों।

(रिजाले नजाशी पेज न. 255)

मौहम्मद बिन अहमद याहिया का बयान है कि मैं , मौहम्मद बिन अली बिन बिलाल , के हमराह मौहम्मद बिन इस्माईल बज़ी की कब्र की ज़ियारत को गया।मौहम्मद बिन अली कब्र के किनारे क़िबला रुख बैठे और फर्माया कि साहिबे क़ब्र ने मुझ से बयान किया कि इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने फर्मायाः जो शख्स अपने बरादर मोमिन की क़ब्र की ज़ियारत को जाए , क़िबला रुख बैठे और क़ब्र पर हाथ रख कर 7 मर्तबा सूरह इन्ना अन्ज़लना की तेलावत करे , खुदा वंदे आलम उसे क़यामत की परेशानियों और मुशकलात से नजात देगा।

(रेजाल कशी पेज न. 564)

मौहम्मद बिन इस्माईल की रिवायत है कि मैने इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से एक लिबास की दरख्वास्त की कि अपना एक लिबास मुझे इनायत फर्माए ताकि उसे अपना कफन करार दूं। इमाम ने लिबास मुझे अता फर्माया और फर्मायाः इस के बटन निकाल लो।

(रेजाल कशी पेज न. 245-564)