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अवैध राष्ट्र इस्राईल के लड़ाकू विमानों ने सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन करते हुए एक बार फिर सीरिया पर हवाई हमले किये।

ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने सीरिया के हलब प्रांत के उत्तर पश्चिम में स्थित हयान शहर को निशाना बनाया।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस हमले के बाद सीरियाई वायु रक्षा प्रणाली सक्रिय हो गई है और दुश्मन के हमलों को नष्ट किया इन हमलों में हयान शहर के पास एक तांबा स्मेल्टर को निशाना बनाया गया है।

सीरियाई रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि इस हमले के परिणामस्वरूप कई लोग शहीद हो गए और काफी नुकसान हुआ है।

इमाम ख़ुमैनी का मानना था कि महिला समाज में किनारे पर नहीं होती बल्कि वह समाज का केन्द्र है। इस बात में संदेह नहीं है कि महिला भी पुरूष के ही समान अपने भाग्य एवं भविष्य की स्वयं ही मालिक और अपने कर्म की उत्तरदायी होती है। कर्तव्य एवं ज़िम्मेदारी के ध्रुव होने का अर्थ एक ओर संकल्प, अधिकार तथा कर्म की स्वतंत्रता है तो दूसरी ओर बुद्धि व ज्ञान होता है, और हर इन्सान ,महिला हो या पुरूष, अपने अच्छे या बुरे कर्मों के परिणाम के प्रति उत्तरदायी होता है। हमें इस बात पर गर्व है कि महिलाएं, बूढ़ी और जवान, छोटी,बड़ी सब संस्कृति, अर्थ व्यवस्था और सैन्य क्षेत्रों में उपस्थित रही हैं और पुरूषों के साथ या उनसे उत्तम रूप में इस्लाम की परिपूर्णता तथा क़ुरआन के लक्ष्यों की राह में सक्रिय हैं।

महिला की अपने भाग्य एवं भविष्य में भूमिका होनी चाहिये। इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाओं को मत देना चाहिये वैसे ही जैसे पुरूषों को मताधिकार है महिलाओं को भी मताधिकार है। जिस प्रकार पुरूषों की राजनैतिक विषयों में भूमिका होती है और वे अपने समाज की रक्षा करते हैं ,महिलाओं को भी भूमिका निभानी चाहिये तथा समाज की रक्षा करनी चाहिये। महिलाएं भी सामाजिक एवं राजनैतिक गतिविधयां पुरूषों के साथ-2 अंजाम दें।

महिला रचनात्मकता के मैदान मेः

समस्त ईरानी राष्टृ चाहे वह महिलाएं हों या पुरूष हमारे लिए (देश की) यह दुर्दशा जो छोङी गयी है उसे ठीक करें। यह केवल पुरूषों के हाथों ठीक नहीं होसकता। पुरूष एवं महिलाएं साथ मिल कर इन ख़राबियों को ठीक करें। साहसी एवं निष्ठावान महिलायें हमारे प्रिये पुरूषों के साथ महान ईरान को बनाने में उसी तरह लग जाएं जिस तरह उन्होंने स्वयं को ज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में बनाने के लिये प्रयास किये थे और आपको कोई भी नगर और गांव

संस्कृति एवं ज्ञान के क्षेत्र में महिला की उपस्थितिः

आप जानते हैं कि इस्लामी संस्कृति इस अवधि में अत्याचार ग्रस्त रही है, इन कई सौ वर्षों की अवधि में ,बल्कि आरम्भ से ही पैगम्बरे इस्लाम के बाद से अब तक,इस्लामी संस्कृति अत्याचार ग्रस्त रही है, इस्लामी नियम अत्याचार ग्रस्त रहे हैं, इस संस्कृति को जीवित करना होगा और आप महिलाएं जिस प्रकार परूष संलग्न हैं ,जिस प्रकार ज्ञान व संस्कृति के क्षेत्र में पुरूष लगे हुए हैं आप भी संलग्न हो जाएं।

महिलाओं की निरीक्षक भूमिकाः

इमाम खुमैनी का मानना था कि महिलाओं को कामों का निरीक्षण की ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। सभी महिलाओं एवं सभी पुरूषों को चाहिये कि सामाजिक विषयों एवं राजनैतिक विषयों में सम्मिलित रहें तथा उनका निरीक्षण करते रहें। संसद पर दृष्टि रखें, सरकार पर दृष्टि रखें और अपना दृष्टिकोण व्यक्त करें।

देश की सुरक्षा में महिलाओं की भूमिकाः

इस्लामी गणतंत्र ईरान पर थोपा गया युद्ध इस बात का कारण बना कि संघर्ष करने वाली बलिदानी महिलाओं को यह अवसर प्राप्त हुआ कि अपने महान अस्तित्व एवं मानवीय मूल्यों को बड़े सुन्दर ढ़ंग से और अत्यंत स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करें। यही कारण है कि स्वर्गीय इमाम खुमैनी की बातों और भाषणों का एक मुख्य आधार महिलाओं की उपस्थिति की आवश्यकता एवं शैली तथा उनके संघर्ष के प्रयास रहे हैं। इमाम खुमैनी का कहना थाः इस्लाम के आरम्भिक काल में महिलायें युद्धों में पुरूषों के साथ सम्मिलित होती थीं हम देख रहे हैं और देख चुके हैं कि महिलायें पुरूषों के साथ-2 बल्कि उनसे आगे युद्ध की पंक्तियों में खड़ी हुईं ,अपने बच्चों और जवानों को हाथ से खोया और फिर भी प्रतिरोध किया । ईश्वर न करे यदि किसी समय में इस इस्लामी देश पर कोई आक्रमण हो तो महिला व पुरूष सभी लोगों को गतिशील होना होगा। सुरक्षा का विषय ऐसा नहीं है कि केवल पुरूषों से संबंधित हो या किसी एक गुट से विशेष हो, सब को जाकर अपने देश की रक्षा करना होगी। मैं ने अब तक महान एवं योद्धा पुरूषों और महिलाओं द्वारा जो कुछ होते देखा है(उसके आधार पर) आशा करता हूं कि स्वयं सेवी संगठन में सैन्य, आस्था, नैतिकता एवं संस्कृति सभी के प्रशिक्षण में ईश्वर की सहायता से सफल हों तथा सैनिक व छापामार सभी प्रकार के व्यवहारिक शिक्षण- प्रशिक्षण को ऐसे उचित रूप में संपन्न करें जो एक क्रांतिकारी राष्टृ के लिये शोभनीय है। यदि सुरक्षा सब के लिए अनिवार्य हो, तो सुरक्षा की तय्यारी के लिये भी काम होना चाहिए ----यह नहीं है कि रक्षा करना हमारे लिए अनिवार्य हो और हम यह न जानते हों कि रक्षा कैसे करें। हमें जानना होगा कि रक्षा कैसे करें। अलबत्ता वह वातावरण जहां आप प्रशिक्षण ले रहे हैं उसे सही होना चाहिए , वातावरण इस्लामी हो, हर दृष्टि से चारित्रिक पवित्रता सुरक्षित होनी चाहिए, सभी इस्लामी आयाम सुरक्षित हों। यह दुष्प्रचार कि यदि इस्लाम आया तो महिलाएं जायें घर में बैठें और दरवाज़े पर ताला भी लगा दें कि बाहर न निकल सकें, यह कितनी ग़लत बात है जिसे इस्लाम से संबंधित करते हैं। इस्लाम के आरम्भ में महिलायें सेनाओं में होती थीं, रणक्षेत्र में भी जाती थीं।

उस दिन महिला, पुरूष, बच्चे और बूढ़े सब ही आए थे। दूर से लोगों का एक ऐसा भव्य जनसमूह दिखाई दे रहा था  जिनके, अल्लाहो अकबर-ख़ुमैनी रहबर आकाशभेदी नारों से, उनके पैरों के नीचे धरती कांप रही थी। उस दिन गुरू-अध्यापक-धर्मगुरू-व्यापारी-कारीगर-श्रमिक और कर्मचारी सभी आए थे। ताकि विश्व के सामने व्यवहारिक रूप से इमाम ख़ुमैनी जैसे महान नेता के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम का प्रदर्शन कर सकें। उनमें से प्रत्येक की आंखों में मान-सम्मान और गौरव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। यह लोग फूलों के गुलदस्तों और प्रेम से भरे हुए हृदयों के साथ अपने नेता के स्वागत के लिए आए थे। जिस समय सूर्य ने अपनी किरणे बिखेरनी शुरू कीं तो दूर क्षितिज से पवित्रता तथा स्वतंत्रता देखते ही राष्ट्र की ओर से "ख़ुमैनिये इमाम" ख़ुमैनिय इमाम की आवाज़े हर ओर गूंजने लगीं।

 उस दिन, बारह बहमन १३५७ हिजरी शम्सी अर्थात की पहली फ़रवरी थी। यह दिन, ईरान में इमाम ख़ुमैनी के प्रवेश का दिन था। उन्हीं दिनों एक पश्चिमी टीकाकार ने लिखा था कि अब वास्तविक शासक के रूप में वरिष्ठ धर्मगुरूओं में से एक वरिष्ठतम धर्मगुरू, राजनेताओं के भी ऊपर आ चुका है। लंदन से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र टाइम्स ने इतिहास के इस वर्तमान अद्वितीय व्यक्तित्व का परिचय कराते हुए लिखा था कि इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उन्होंने अपने भाषणों से जनता को सम्मोहित कर लिया है। वे साधारण भाषा में बोलते हैं और अपने समर्थकों का आत्मविश्वास बढ़ाते हैं। उन्होंने यह कार्य करके दिखा दिया है कि बड़ी निर्भीकता के साथ अमरीका जैसी महाशक्ति का मुक़ाबला किया जा सकता है।

इसी संदर्भ में एक फ़्रांसीसी दर्शनशास्त्री और टीकाकार एवं विचारक मीशल फ़ोको लिखते हैं कि आयतुल्ला ख़ुमैनी का व्यक्तित्व, एक चमत्कारी व्यक्तित्व है। कोई भी राजनेता या शासक अपने देश के समस्त संचार माध्यमों की सहायता के बावजूद यह दावा नहीं कर सकता कि उसके संबन्ध जनता के साथ इतने गहरे हैं।

इस्लामी क्रांति के सांस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी केवल एक राजनैतिक क्रांतिकारी नेता नहीं। इस महान व्यक्ति ने अपने जीवन का अधिकांश समय अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाने में ही व्यतीत कर दिया। वे वर्तमान आदर्शों से भी आगे बढ़कर ऐसे धर्मगुरू थे जो ईश्वरीय दूतों के मार्ग और उनकी शैली का अनुसरण करते थे और वे सत्य व न्याय की स्थापना को सृष्टि की वास्तविक्ता के रूप में देखते थे। यही कारण है कि इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में आने वाली क्रान्ति, केवल ईरानी समाज से विशेष नहीं है। इस्लामी क्रांति इस्लाम और क़ुरआन से प्रभावित थी जो मानव समाज को पवित्रता, सच्चाई, स्वतंत्रता और न्याय की ओर बुलाती है। यह महत्वपूर्ण बातें सभी राष्ट्रों में सम्मान की दृष्टि से देखी जाती हैं। इस प्रकार वर्तमान संसार इस जनक्रांति की स्वतंत्रताप्रेमी और स्वावलम्बी विचार धारा से प्रभावित हुआ और इससे पूरे विश्व में व्यापक स्तर पर जागरूकता तथा जागृति उत्पन्न हुई है।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी आत्मविश्वास और ईश्वर पर आस्था की भावना से परिपूर्ण थे। इस संदर्भ में एक तत्कालीन अमरीकी समाज शास्त्री "एलविन टाफ़लर" कहते हैं कि आयतुल्ला ख़ुमैनी ने संसार से कह दिया है कि आज के बाद विश्व पटल पर मुख्य कर्ताधर्ता के रूप में महाशक्तियों की ही गिनती नहीं होगी बल्कि सभी राष्ट्रों को शासन का अधिकार प्राप्त होगा। आयतुल्ला ख़ुमैनी हमसे कहते हैं कि महाशक्तियां, विश्व पर वर्चस्व जमाने के लिए अपने अधिकार की बात कहती हैं, उन्हें यह अधिकार प्राप्त ही नहीं है।

आधुनिक काल में आध्यात्मिक तथा वैचारिक क्रांति के रूप में ईरान की इस्लामी क्रांति को विशेष स्थान प्राप्त है। अन्य क्रांतियों की तुलना में इस्लामी क्रांति की भिन्नता का कारण वह आधुनिकताएं है जो स्वंय निहित है। इसकी इसी विशेषता के कारण तीन दशक बीत जाने के पश्चात इस्लामी क्रांति आज भी राजनैतिक एवं समाजिक विशेषज्ञों के अध्धयन का विषय बनी हुई है। इन सभी बातों के बावजूद हम यह देखते हैं कि सुनियोजित दंग से पश्चिमी सरकारों द्वारा माध्यमों से यह दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है कि मानो इस्लामी क्रांति का समापन निकट है और इससे उत्पन्न होने वाली शासन व्यवस्था अक्षम व्यवस्था है।

अपने उदय के चौथे दशक में इस्लामी क्रांति को विशेष प्रकार की परिस्थितियों का सामना है क्योंकि यह आन्दोलन जनता के बीच से उठा है अतः इस्लामी क्रांति, एक जीवंत अस्तित्व के रूप में गतिशील और सक्रिय रही है। यह क्रांति एक के बाद एक, बहुत से उतार-चढ़ावों और बाधाओं से गुज़रती हुई अपने विकास और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है। राजनैतिक मामलों के टीकाकारों के अनुसार इस्लामी क्रांति, वर्तमान कालखण्ड में भी अपनी आरम्भिक ऊर्जा से संपन्न है और इसमें इस बात की क्षमता पायी जाती है कि आने वाली चुनौतियों का वह डटकर मुक़ाबला कर सके। इस क्रांति को साहसी एवं दूरदर्शी वरिष्ट नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है जिसने सदैव के लिये ईरान के मार्ग का निर्धारण करते हुए घोषणा की है कि भविष्य में ईरानी राष्ट्र का मार्ग, वही इमाम ख़ुमैनी क्रान्ति महाशक्तियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध, वंचितों एवं अत्याचार ग्रस्तों की रक्षा तथा विश्व स्तर पर इस्लाम एवं क़ुरआन के ध्वज को लहराने का मार्ग है। इस इस्लामी क्रांति की मुख्य समर्थक, ईरान की साहसी जनता है। इस जनता ने बड़ी ही संवेदनशील एवं संकटमयी स्थिति में लाखों की संख्या में उपस्थित होकर इस्लामी क्रांति की आकांक्षाओं और उसके महत्तव का सम्मान किया। ३० दिसंबर २००९ को निकलने वाली रैलियों में ईरानी राष्ट्र ने क्रांति की सफलता के तीन दशकों के पश्चात इस्लामी क्रांति के वैभव, महानता और उसकी आकांक्षाओं के प्रति जनसमर्थन का प्रदर्शन किया था। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के कथनानुसार जब तक कोई भी राष्ट्र पूरी जागरूकता, ईमान आस्था और दृढ़ संकल्प के साथ अपने अधिकारों का समर्थन करता रहेगा निश्चित रूप से वह विजयी रहेगा।

इस्लामी क्रांति, एक सुप्रभात के रूप में थी। ऐसे प्रभात के रूप में जिसने अत्याचारग्रस्त काल में यह विचार प्रस्तुत किया कि राजनीति में नैतिक्ता तथा आध्यात्म का मिश्रण होना चाहिए। इस विषय के दृष्टिगत यह आवश्यक है कि राजनेताओं और शासकों को चाहिए के वे सदाचार, न्याय तथा वास्तविकता की प्राप्ति को अपने कार्यक्रम में सर्वोपरि रखें ताकि पूरे विश्व में न्याय और शांति की स्थापना हो सके। इस क्रांति ने शाह के अत्याचारी शासनकाल में निराश और उदासीय लोगों को आशा और नवजीवन प्रदान किया। भाग्य ने सन १३५७ हिजरी शम्सी अर्थात १९७९ में ईरान की भूमि को स्वतंत्रता एवं ईमान से जोड़ दिया और जनता का मार्गदर्शन प्रकाशमई क्षितिज की ओर किया।

मानवीय एवं आध्यात्मिक मूल्यों इस्लामी क्रांति आई और इसने पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर आधारित समाज के गठन के लिए बड़ी संख्या में शहीद अर्पित किये। इस क्रांति में निष्ठा, स्थाइत्व और एकता, स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस्लामी क्रांति ने जीवित एवं गतिशील प्रक्रिया के रूप में राजनैतिक एवं समाजिक मंच पर इस्लाम की शिक्षाओं को प्रदर्शित किया। इस क्रांति ने यह दर्शा दिया कि धर्म, मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभा सकता है और वह उसके लिए प्रगति एवं किल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने में भी सक्षम है। स्पेन के प्रोफ़ेसर केलबेस कहते हैं कि इस्लामी क्रांति के साथ धर्म जीवित हो गया है। दैनिक जीवन में आध्यात्मिक सुन्दरता पर ध्यान दिया गया। साथ ही अपने समाजिक संबन्धों को सुन्दर बनाने तथा उनकी मुक्ति के लिए धर्म की शक्ति एवं आध्यात्मिक आकर्षणों की ओर झुकाव, बहुत तेज़ी से बढ़ा है। यह सब कुछ विश्व समुदाय में मन एवं मस्तिष्क में इमाम ख़ुमैनी की इस्लामी क्रांति के कारण आरंभ हुआ है।

इस्लामी क्रान्ति के प्रति जनता का संकला और ईरानी जनता पर मश्वरीय अनुकंपाओं का आभार प्रकट करने का दशक भैं ग्यारह फ़रवरी अर्थात बहमन की बारहवीं तारीख़ उन आकांक्षाओं के सम्मान का दिन है जिन्हें इमाम ख़ुमैनी स्वतन्त्रता प्रेमियों के लिये उपहार स्वरूप लाये।

स्वतन्त्रता प्रभात सभी जागरूक एवं सचेत लोगों के लिए मुबारक हो।

 

इंग्लैंड के एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने दुनिया के साम्राजी राजनेताओं के एक सम्मेलन में यह एलान किया था कि हमें चाहिए कि इस्लाम को इस्लामी देशों में गोशा नशीन कर दें। इससे पहले भी और इसके बाद भी इस काम के लिए बहुत ज़्यादा पैसे खर्च किए गए लेकिन वह कामयाब न हो सके। इमाम खुमैनी (रह) जैसे महान नेता ने इस्लामी इंक़िलाब लाकर इस्लाम को दुनिया के गोशे गोशे तक पहचनवा दिया। और बता दिया कि देखो यह एक खुदाई दीन और धर्म है जिसे दुनिया की कोई ताक़त मिटा नही सकती। आईए उसी महान हस्ती के दस बड़े कारनामों को पेश किया जा रहा है जिसने इस्लामी इंक़िलाब लाकर इस्लाम के दुश्मनों को मायूस कर दिया।

इमाम खुमैनी (रह) ने इस्लाम को एक नई ज़िन्दगी दी

बीते दो सौ बरसों से साम्राजी मशीनरियों ने यह कोशिश की है कि इस्लाम को भुला दिया जाए। इंग्लैंड के एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने दुनिया के साम्राजी राजनेताओं के एक सम्मेलन में यह एलान किया था कि हमें चाहिए कि इस्लाम को इस्लामी देशों में गोशा नशीन कर दें। इससे पहले भी और इसके बाद भी इस काम के लिए बहुत ज़्यादा पैसे खर्च किए गए ताकि इस्लाम पहले स्टेप में लोगों की दरमियान से खत्म हो जाए और दूसरे स्टेप में लोगों के दिल, दिमाग़ और ज़हन से निकल जाए क्यों कि साम्राजी ताक़तो को यह मालूम था कि यह धर्म बड़ी ताक़तों की लूट घसोंट और साम्राजी ताक़तों के हर बड़ी चीज़ पर क़ब्ज़ा करने के लक्ष्य में सबसे बड़ी रुकावट है। हमारे इमाम ने इस्लाम को दुबारा ज़िन्दा किया लोगों के दिल, दिमाग़ और ज़हन में उतारा और अमली करके बताया कि देखो इस्लाम सियासत से अलग नही है।

इमाम खुमैनी (रह) ने मुसलमानों का वक़ार बहाल किया

इमाम खुमैनी (रह) की क्रान्ति के नतीजे में पूरी दुनिया के मुसलमानों ने इज़्ज़त और सर बुलंदी का एहसास किया और इस्लाम महदूद बहसों से निकल कर सामाजी और सियासी मैदान में दाखिल हुआ। एक बड़े देश के एक मुसलमान शख्स ने जहाँ मुसलमान माईनार्टी (अल्पसंख्यक) में हैं, मुझसे कहा कि इस्लामी इंक़िलाब से पहले मैं खुद को कभी दूसरों के सामने मुसलमान ज़ाहिर नही करता था। मेरे देश के मुसलमान इस देश की रिति और प्रथा के अनुसार अपने बच्चों का नाम रखते हैं यानि इस्लामी नाम नही रख सकते अगरचे वह घर के अंदर अपने बच्चों के नाम इस्लामी रखते हैं लेकिन घर के बाहर ग़ैरे इस्लामी। इस्लामी नाम को घर के बाहर पुकारने की किसी में हिम्मत न थी लोग घर के बाहर इस्लामी नाम लेने से दूरी करते थे। हम खुद को मुसलमान कहने से शर्मिन्दगी का एहसास करते थे।

लेकिन ईरान के इस्लामी इंक़िलाब की कामयाबी के बाद हमारे यहाँ के लोग बड़े गर्व से अपना इस्लामी नाम ज़ाहिर करते हैं और अगर उनसे पूछा जाता है कि आप कौन हैं आपका नाम क़्या है तो गर्व और फख्र के साथ पहले इस्लामी नाम बताते हैं। इस प्रकार इमाम ने जो बड़ा कारनामा अंजाम दिया उसका परिणाम यह निकला कि मुसलमानों को पूरी दुनिया में इज़्ज़त का एहसास होने लगा और वह अपने मुसलमान होने और इस्लाम की पैरवी करने पर फख्र करने लगे।

आपने मुसलमानों को उम्मते वाहिदा का जुज़ होने का एहसास दिलाया

इससे पहले मुसलमान जहाँ भी था उसके लिए उम्मते वाहिदा कि कोई अहमियत नही थी। आज दुनिया के तमाम मुसलमान चाहे वह एशिया में हों या अफरीक़ा में यूरोप में हों या अमरीका में इस बात का एहसास कर रहे हैं कि वह उम्मते इस्लामिया के नाम के एक बड़े अन्तर्राष्ट्रीय समाज का भाग हैं। इमाम खुमैनी (रह) ने उम्मते इस्लामिया के प्रति लोगों में शऊर जगाया और उन्हें जागरुक किया जो अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों के मुक़ाबले में इस्लामी समाज की रक्षा के लिए सबसे बड़ा हथियार है।

इमाम खुमैनी (रह) ने दुनिया की सबसे खराब हुकूमत और शासन का खात्मा किया

इमाम खुमैनी (रह) नें ईरान की खराब और बदतर शाही हुकूमत और शासन का खात्मा कर दिया। शाही शासन का अंत इमाम खुमैनी (रह) के कुछ बड़े कारनामों में से एक है जो बिल्कुल सामने है। ईरान उस समय अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों का सबसे बड़ा और मज़बूत क़िला बन चुका था जो इमाम के इलाही और मज़बूत हाथ से ढ़ह गया।

इमाम खुमैनी (रह) ने इस्लामी शिक्षाओं और उसूलों की बुनियाद पर हुकूमत बनाई

यह वह चीज़ें हैं जो ग़ैर मुस्लिम तो ग़ैर मुस्लिम मुसलमानों के दिमाग़ों में भी नही समाती थी। यह एक बेहतरीन ख्वाब था जिसकी ताबीर के बारे में सीधे साधे मुसलमान सोच भी नही सकते थे। इमाम ने इलाही मदद के ज़रिए एक ख्वाब को हक़ीक़त में बदल दिया।

इमाम खुमैनी (रह) की तहरीक ने पूरी दुनिया में इस्लामी तहरीकों को जन्म दिया

ईरान के इस्लामी इंक़िलाब से पहले बहुत से देशों में मुस्लिम देशों समेत विभिन्न गुरूप के लोग जैसे जवान, नाराज़ लोग, आज़ादी के माँग करने वाले लोग और लेफ्ट पार्टी वाले अपनी आईडियालाजी के सहारे मैदान में उतरे थे। लेकिन ईरान के इस्लामी इंक़िलाब की कामयाबी के बाद इन सब लोगों के क़्याम की बुनियाद इस्लाम बन गया। आज इस्लामी दुनिया के इतने बड़े इलाक़े में जहाँ कही भी कोई गुरुप इस तरह की तहरीक चलाता है और अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों के खिलाफ आवाज़ उठाता है उसका बेस इस्लाम ही होता है और इस्लामी उसूलों को ही अपने काम की बुनियाद बनाता है इस तरह उसकी फिक्र इस्लामी फिक्र होती है।

इमाम खुमैनी (रह) ने शिया फिक़्ह में नई सोच राइज कर दी और नया नज़रिया पेश किया

हमारी फिक़्ह की बुनियाद बहुत ही मज़बूत थी और आज भी है। फिक़्हे शिया बहुत ही मज़बूत और बहुत मोहकम और बहुत मज़बूत उसूलों पर आधारित है। इमाम खुमैनी (रह) ने इस फिक़्ह को चाहे वह हुकूमती फिक़्ह हो, बढ़ाया मज़बूत किया और एक नए अंदाज़ से पेश किया। इस पवित्र फिक़्ह के विभिन्न पहलूओं को हमारे सामने स्पष्ट किया जो इससे पहले स्पष्ट और वाज़ेह न थे।

व्यक्तिगत कामों में राइज ग़लत अक़ीदों को बातिल क़रार दिया

दुनिया में यह बात मुसल्लम है कि जो लोग समाज की बड़ी पोस्ट पर होते हैं उनका विशेष तौर तरीक़ा होता है। कुछ घमंड और ग़ुरुर होता है, ऐश और आराम की ज़िन्दगी होती है और इस तरह उनका अपना विशेष ठाट बाट होता है और एक खास अंदाज़ होता है। इस दौर में बड़े शासकों के लिए प्रोटोकाल होता है और वह अपने लिए इसको अपनी सरकारी ज़िन्दगी का लाज़िमा समझते हैं और यह सब ऐसी बातें हैं जिनको दुनिया ने आज क़ुबूल भी लिया है कि जो लोग बड़ी पोस्ट पर होते हैं उनका गोया यह सब हक़ होता है हत्ता उन देशों में जहाँ इंक़िलाब आया है वहाँ के इंक़िलाबी नेता भी जो कल तक खैमों और तम्बुओं में ज़िन्दगी गुज़ारते थे और क़ैद खानों और मख़फी गाहों में छिपे रहते हैं वह जैसे ही शासन में आते हैं उनका रहन सहन बदल जाता है उनके शासनिक अंदाज़ भी बदल जाते हैं और वही सब कुछ अंदाज़ उनका भी होता है जो उनसे पहले के शासकों और बादशाहों का था। हमने तो नज़दीक से यह सारी चीज़े देखी हैं और हमारी जनता के लिए भी यह कोई नई बात नही है और कोई तअज्जुब की बात भी नही है।

इमाम (रह) ने इस तरह के नज़रियों और अक़ीदे को ग़लत क़रार दिया और सिद्ध किया कि किसी क़ौम और मुसलमानों के महबूब क़ायद और लीडर ज़ाहिदाना ज़िन्दगी के मालिक हो सकते हैं और एक सादा ज़िन्दगी गुज़ार सकते हैं एक आलीशान मुहल्लों के बजाए एक इमाम बारगाह में अपने मिलने वालों से मुलाक़ात कर सकते हैं नबियों की ज़बान, अखलाक़ और लिबास में लोगों से मिल सकते हैं। अगर शासकों और उनके मंत्रियों के दिल वास्तविकता और मारिफत के नूर से रौशन होंते हैं तो ज़ाहिरी चमक दमक, थाट बाट, इसराफ, ऐश और इशरत की ज़िन्दगी, खुद नुमाई, घमंड और ग़ुरूर और इस जैसी दूसरी तमाम बातें उनकी इस शासकीय ज़िम्मेदारियों का भाग नही समझी जाएँगी।

इमाम (रह) के बड़े कारनामों में से एक यह था कि वह अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में भी और जब आप देश और क़ौम के सबसे बड़े लीडर थे उस समय भी वास्तविकता और मारिफत का नूर उनके पूरे वजूद में जलवा कर रहा था।

इमाम खुमैनी (रह) ने ईरानी क़ौम के अंदर खुद एतिमादी और इज़्ज़ते नफ्स को ज़िन्दा किया

ज़ालिम शाह की ज़ालिम और भ्रष्टाचार में लिप्त हुकूमत और इसी तरह उसकी पिट्ठू हुकूमतों ने कई सालों तक ईरानी क़ौम को एक कमज़ोर क़ौम में बदल कर रख दिया था वह भी ऐसी क़ौम कि जिसके अंदर ग़ैरे मामूली सलाहियतें पाई जाती हैं और इस्लाम के आगाज़ से पूरी तारीख में इसका शानदार इल्मी और राजनिति माज़ी था। बाहर की ताक़तों ने काफी समय तक जिनमे कभी अंग्रेज़ों और रुसियों ने तो कभी यूरोपियों और अमरिकियों ने हमारी क़ौम की तहक़ीर की और उन्हें दबाये रखा। हमारी क़ौम के लोगों को भी यह यक़ीन हो गया था कि वह बड़े बड़े कामों को अंजाम देने की सलाहियत नही रखते हैं। देश की तरक़्क़ी और उसे बनाने में वह कुछ भी करने की ताक़त नही रखते हैं। कुछ नया करने के लिए उनके पास कुछ नही है बल्कि दूसरे ही आयें और उनके लिए काम करें उन पर शासन करें। और इस तरह हमारी क़ौम से उनका क़ौमी वक़ार छीन लिया गया था और उनकी इज़्ज़ते नफ्स का खून कर दिया गया था लेकिन हमारे इमाम ने ईरान की जनता के दरमियान क़ौमी इफ्तिखार और इज़्ज़ते नफ्स को दुबारा ज़िन्दा किया। हमारी क़ौम के अंदर ज़ाति भेद भाव और घमंड नही है लेकिन इसके अंदर इज़्ज़त और ताक़त का एहसास ज़रुर पाया जाता है।

आज हमारी क़ौम मशरिक़ और मग़रिब की मिली हुई साज़िशों और अपने खिलाफ किसी भी तरह की धौंस और धमकियों से नही डरती और किसी तरह की कमज़ोरियों का एहसास नही करती। हमारे जवान इस बात का एहसास कर रहे हैं कि वह खुद अपने देश की तरक़्क़ी में अपना रोल अदा कर सकते हैं। लोगों को अब अपनी इस ताक़त और सलाहियत का एहसास दिलाने लगा है कि वह मशरिक़ और मग़रिब की धमकियों और खतरों के मुक़ाबले में खड़े हो सकते हैं। इज़्ज़ते नफ्स का यह एहसास और यह खुद एतिमादी और वास्तविक क़ौमी इफ्तिखार इमाम (रह) ने क़ौम के अंदर दुबारा ज़िन्दा किया।

इमाम खुमैनी (रह) ने मशरिक़ और मग़रिब से वाबस्तगी का नज़रिया बातिल कर दिया

आपने सिद्ध किया कि मशरिक़ और मग़रिब से दूरी को बाक़ी रखने की पालीसि को अमल कर के दिखाया जा सकता है। दुनिया वाले यह समझ रहे थे कि या तो मशरिक़ से जुड़ना पड़ेगा या फिर मग़रिब के साथ होना पड़ेगा या तो इस ताक़त की रोटी खानी पड़ेगी या फिर उनकी चापलूसी और तारीफ करनी पड़ेगी या फिर इस ताक़त का गुन गाना पड़ेगा और हाँ में हाँ मिलाना पड़ेगी। लोग यह नही समझ पा रहे थे कि कोई क़ौम कैसे मशरिक़ से भी खुद को अलग रखे और मग़रिब से भी दूरी करे और दोनो से नाखुशी का इज़हार करे और फिर अपने पैरों पर खड़ी भी रहे ? यह कैसे मुम्किन है किसी से भी न जुड़े और किसी के भी झंडे के नीचे न जायें और दुनिया में अपना नाम रौशन करें ? मगर इमाम (रह) ने इस कारनामे को कर दिखाया और इस बात को साबित कर दिया कि मशरिक़ और मग़रिब की ताक़तों से दूरी करके भी ज़िन्दा रहा जा सकता है और इज़्ज़त और आबरु के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी जा सकती है।

इरानी पब्लिक ने इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी तक हज़रत इमाम ख़ुमैनी रह. के नेतृत्व में जितने प्रयास किये या इन्क़ेलाब की कामयाबी के बाद इस देश नें जितनी मुश्किलों का सामना किया है, सबका सिर्फ़ एक ही मक़सद यानि इस्लामी पाक व पवित्र ज़िन्दगी की तलाश थी।

इस्लाम चाहता है कि इन्सान एक अच्छी और इज़्ज़त वाली ज़िंदगी जिये। अगर इस्लाम में बताये गए ज़िंदगी के क़ानूनों को समाजी आदत बना लिया जाए तो इन्सान बहुत ही आसानी के साथ कामयाबी और नजात पा सकता है। सभी नबियों, मज़हबी लोगों और इंसानियत की सेवा करने वाले महान रहनुमाओं (मार्ग-दर्शकों) का सिर्फ़ एक मक़सद था समाज में इसी पवित्र ज़िन्दगी को राएज (प्रचलित) करना था और इसके मुक़ाबले में शैतानी आदतों वाले और इंसानियत के दुश्मन लोग समाज को ऐसी अच्छी ज़िन्दगी से दूर रखना चाहते थे।

 हम इसी पवित्र इस्लामी ज़िन्दगी को पाने के कोशिश कर रहे हैं न सिर्फ़ अपने लिये बल्कि पूरी इंसानियत के लिये। इसका मतलब यह नहीं है कि हम एक फ़ौज जमा करके इस बात का पता लगायें कि ज़ालिमों और उनके सहयोगियों ने कहां-कहाँ इन्सानी पाक व पाकीज़ा ज़िन्दगी को नुक़सान पहुंचाया है ताकि उनके ख़िलाफ़ जंग छेड़ दें, नहीं हमारी लड़ाई इस तरह की बिल्कुल नहीं है बल्कि हमारा प्रयास यह है कि फ़राडी और मक्कार दुश्मन को बेनक़ाब करते हुए दुनिया वालों को इंटर-नेशनल बेकार और घटिया हुकूमती नियमों में दिन प्रतिदिन दम तोड़ती इंसानियत की हालत बता सकें, ऐसी हालत में केवल इस्लाम दम तोड़ती इंसानियत में नई रूह फूंक सकता है।

ब्रिटेन की राजधानी में पुलिस ने शहर में फ़िलिस्तीन समर्थको और कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर लिया हैं।

शनिवार को फिलिस्तीन के समर्थकों ने दक्षिणी गाजा शहर राफा पर ज़ायोनी शासन के चल रहे हमलों के खिलाफ लंदन के केंद्र में ब्रिटिश संसद के पास प्रदर्शन किया और जुल्म को बंद करने की मांग की।

फिलिस्तीनी झंडा लेकर इन प्रदर्शनकारियों ने फिलिस्तीनियों के समर्थन, ज़ायोनी शासन की निंदा और गाजा के लोगों के साथ एकजुटता के नारे लगाए और नारों वाली तख्तियां ले रखी थी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदर्शनकारियों ने भाषण में गाजा के एक शख्स ने कहा कि उत्तरी गाजा में अब सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि हर कोई भूख और बीमारी के खतरे का सामना कर रहा हैं।

उन्होंने कहा कि गाजा से एक व्यक्ति ने उन्हें गाजा से एक तस्वीर भेजी जिसमें एक फिलिस्तीनी, जिसका सामान्य वजन 80 किलोग्राम था भूख और बीमारी के कारण आधा वजन कम हो गया।

उन्होंने बताया कि गाजा पट्टी में गर्भवती महिलाओं को अपनी मृत्यु और अपने बच्चे की मृत्यु के बीच चयन करना पड रहा है।

उनके भाषण के बाद सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने लंदन शहर में मार्च करना शुरू कर दिया, लेकिन शहर के पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सड़कों पर आगे नहीं बढ़ने दिया।

चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिच ने घोषणा की है कि उनका देश गाजा में इजरायल के चल रहे नरसंहार के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट में शिकायत करने वालों में शामिल होगा

एक रिपोर्ट के अनुसार फ़िलिस्तीन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जारी है, जबकि दक्षिण अमेरिकी देश चिली ने घोषणा की है कि उसके देश ने ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में शिकायत दर्ज की है।

नेशनल कांग्रेस को संबोधित करते हुए चिली के राष्ट्रपति ने गाजा में मानवीय स्थिति को विनाशकारी बताया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से निर्णायक प्रतिक्रिया का आह्वान किया हैं।

2011 में चिली द्वारा फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने के बाद चिली के उच्च पदस्थ अधिकारियों ने हाल के महीनों में गाजा पर इज़राइल के हमलों की बार बार निंदा की है।

गेब्रियल बोरिच ने चिली के सांसदों से कहा कि चिली उस मामले का समर्थन करेगा जो दक्षिण अफ्रीका ने हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इज़राइल के खिलाफ दायर किया हैं।

 

 

 

 

 

वार्नर ब्रदर्स कंपनी में टीवी सीरियल के रूप में "300" नामक ईरान विरोधी फ़िल्म बनाने पर काम शुरु किया जो अभी अपने पहले चरण में है।

वैरायटी की रिपोर्ट के अनुसार, हॉलीवुड एक बार फिर नस्लभेदी फ़िल्म "300" से लिए गए ग़ैर-ईरानी विषयों पर काम कर रहा है और वेब सीरीज़ के रूप में इसे पेश करने का इरादा रखता है।

इस बेबसीरीज़ की कहानी किस के इर्दगिर्द घूमती है इस बारे में अभी तक सटीक ब्योरा हासिल नहीं हो सका है लेकिन कहा जाता है कि यह वेबसीरिज़ 2006 की नफ़रती फ़िल्म "300" का प्रीक्वल है।

इस परियोजना के लिए अभी तक कोई लेखक या मंच तय नहीं किया गया है और बातचीत चल रही है।  "300" के निर्देशक और लेखक ज़ैक स्नाइडर हैं जबकि वह वेबसीरिज़ के डायरेक्टर और प्रोड्युसर के लिए बातचीत कर रहे हैं।

डेबोरा स्नाइडर जो "300"  के एग्ज़क्टिव प्रोड्युसर थे, एग्ज़क्टिव प्रोड्युसर के रूप में वापसी करेंगे जबकि  वेबसीरिज बनाने के लिए अन्य फ़िल्म निर्माताओं से भी बातचीत चल रही है।

"300"  को इसी नाम के ग्राफ़िक उपन्यास से लिया गया और "फ्रैंक मिलर" और "लिन वर्ली" ने इसको फ़िल्मी रूप दिया। यह फ़िल्म 1962 की फ़िल्म "300 स्पार्टन्स" से भी प्रेरित है।

फ़िल्म की कहानी इस तरह से है कि स्पार्टा के राजा लियोनिदास, ईरान के राजा ज़ेरक्स प्रथम की बहुत बड़ी सेना के खिलाफ चुनिंदा सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी का नेतृत्व करता है।

इस फ़िल्म में जेरार्ड बटलर ने लियोनिदास का किरदार अदा किया है जबकि रोड्रिगो सेंटोरो ने ज़ेरक्स की भूमिका निभाई है।

2014  में बनी 300: राइज़ ऑफ़ एन एम्पायर, असली फ़िल्म की अगली कड़ी थी जो मिलर के ग्राफ़िक उपन्यास ज़ेरक्से पर आधारित थी। स्नाइडर ने फिर से इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखी लेकिन इसे निर्देशित नहीं किया।

फिल्मों को सीरियल्स में बदलना हालिया वर्षों में हॉलीवुड के मुख्य विचारों में रहा है।

फ़िल्म "300" को इसकी निर्माण तकनीकों के लिए काफ़ी सराहा गया था लेकिन इसे आइटम के लेहाज़ से बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा। फिल्म समीक्षक रोजर एबर्ट ने इस फ़िल्म की आलोचना करते हुए कहा कहा: फिल्म में किरदार एक-आयामी हैं और कैरिकेचर से बहुत ज़्यादा मिलते जुलते हैं।

"रोजर एबर्ट" उन आलोचकों थे जिन्होंने इस फ़िल्म को फांसीवादी उमंगों का जश्न क़रार दिया था।

फ़िल्म मैगज़ीन "आर्ट शॉक" के ज्यूरी थॉमस विलमैन ने भी कहा: यह फ़िल्म "इराक़ युद्ध में अमेरिकी सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रोपेगैंडा फिल्म की तरह हास्यास्पद, अनाड़ी और कभी-कभी बचकानी लगती है और ऐसा लगता है यह फ़िल्म एक अपवित्र गठबंधन और एक शर्मनाक फांसीवादी मानसिकता पैदा हुई है जबकि स्पार्टन्स के ख़िलाफ ईरानियों द्वारा चलाए जाने वाले तीरों के निशानों को ग़लत होता दिखाया गया, यह सिर्फ़ स्क्रिप्ट लेखक की निर्लज्जता पर हंसी आने जैसा है।

ईरान के आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन पत्र जमा करने का सिलसिला जारी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ईरान के आगामी राष्ट्रपति चुनावों में नामांकन पत्र जमा करने की प्रक्रिया आज चौथे दिन भी जारी है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार सुबह 8 बजे चुनाव में भाग लेने के इच्छुक लोगों ने गृह मंत्रालय में स्थापित चुनाव आयोग के कार्यालय में अपना नामांकन पत्र जमा कर दिया है।

चुनाव आयोग के मुताबिक, पहले तीन दिनों के दौरान कुल 80 लोगों ने अपना नामांकन पत्र जमा किया है जिनमें से 72 पुरुष और 8 महिलाएं हैं।

ईरानी चुनाव आयोग के मुताबिक, 17 लोगों के नामांकन पत्र नामांकन की शर्तें पूरी कर चुके हैं और बाकी के पर्चे शर्तें पूरी न करने या पूरा न होने के कारण खारिज कर दिए गए हैं।

मेटा कंपनी के शोधकर्ताओं ने एक गुट का रहस्योद्घाटन किया है जो इस्राईली प्रोपैगंडा से संबंधित था। इसी प्रकार मेटा कंपनी के शोधकर्ताओं ने अब तक फ़ेसबुक के 510 अकाउंट, 11 पेज, और इंस्टाग्राम पर 32 अकाउंट्स का पता लगाया है।

पार्सटुडे ने Endgadget मेटा के हवाले से एलान किया है कि एक इस्राईली बाज़ार कंपनी फ़ेसबुक पर फेक अकाउंट का इस्तेमाल करके फेसबुक प्लेटफ़ार्म और इंस्टाग्राम में अपने प्रभाव व कंपेन को मज़बूत करने के प्रयास में है।

इस इस्राईली कंपेन ने अमेरिका और कनाडा में आडियंस और यूज़र्स को लक्ष्य बनाया है और फ़िलिस्तीनियों के खिलाफ इस्राईल ने जो जंग आरंभ कर रखी है उसके संबंध में झूठी चीज़ों व तथ्यों को प्रकाशित व प्रसारित किया है।

इन अकाउंट्स ने अपना परिचय यहूदी और अमेरिकी अफ़्रीक़ी मूल के छात्रों और इसी प्रकार चिंतित नागरिकों के रूप में किया है और ऐसी पोस्टों को शेयर किया है जिसमें इस्राईल के सैनिक हमलों की प्रशंसा की गयी है और इस्राईल की आलोचना करने वाली राष्ट्रसंघ से संबंधित अनरवा जैसी संस्था पर हमला किया गया है।

मेटा कंपनी द्वारा प्रकाशित जानकारियों के अनुसार इन पोस्टों में इस्लामोफोबिया को कनाडा में शेयर किया गया है और मुसलमानों को उदारवाद का दुश्मन बताया गया है।

जो समीक्षा की गयी है उसके अनुसार उनमें से अधिकांश अकाउंट्स इस्राईल की STOIC कंपनी और इसी प्रकार X और YouTube के साथ सहयोग करते थे और इस्राईल और हमास के मध्य जंग और मध्यपूर्व में इस्राईल की नीतियों के आधार पर ऐसा किया गया है।

यह रिपोर्ट इसी तरह इस बात की सूचक है कि जो लोग इन अकाउंटों के पीछे हैं उनके अनुसार राजनेताओं के पेजों, संचार माध्यमों और दूसरे आम लोगों के पेजों पर बहुत अधिक दृष्टिकोणों को लिखकर मानसिक दबाव बनाने का प्रयास किया जाता था।