
رضوی
दुनिया हमास की ऋणी क्यों है?
पश्चिम पूरी ताक़त के साथ इस्राईल का समर्थन कर रहा है और इस्राईल व ज़ायोनी फ़िलिस्तीन के निहत्थे लोगों के ख़िलाफ़ जघन्य से जघन्य अपराध अंजाम देने में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं ले रहे हैं ऐसी हालत में प्रतिरोध का अंतरराष्ट्रीय मोर्चा पश्चिम और इस्राईरल के अत्याचार के ख़िलाफ़ दिन- प्रतिदिन फैलता जा रहा है।
ग़ज़्ज़ा युद्ध को आरंभ हुए लगभग 240 दिन बीत रहे हैं और इस्राईल के पाश्विक हमलों में अब तक 36 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 82 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हो चुके हैं परंतु ज़ायोनी व इस्राईल न केवल अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सके हैं बल्कि क्षेत्र से बाहर अत्याचार विरोधी प्रतिरोध मज़बूत और विस्तृत होता जा रहा है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता इमाम ख़ामेनेई ने अमेरिकी छात्रों के नाम अपने हालिया पत्र में बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु पर ध्यान दिया। इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने अपने पत्र में लिखा था कि दुनिया के बहुत से ज़िन्दा ज़मीर बेदार हो गये हैं और हक़ीक़त व वास्तविकता स्पष्ट हो रही है। प्रतिरोध का मोर्चा मज़बूत हो गया है और अधिक मज़बूत होगा और इतिहास भी करवट ले रहा है।
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नस्रुल्लाह ने अपने हालिया वक्तव्य में जो यह कहा था कि आज प्रतिरोध पहले से अधिक बड़ा, विस्तृत और मज़बूत हो गया है उसे इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
सैयद हसन नस्रुल्लाह ने जायोनियों के अपराधों के खिलाफ अमेरिकी और पश्चिमी विश्व विद्यालयों में छात्रों के प्रदर्शनों की ओर संकेत किया और कहा कि प्रतिरोध का भविष्य निश्चित रूप से उज्वल और विजयी है और इसका संबंध केवल समय से है।
प्रतिरोध का मोर्चा मज़बूती की दिशा में
आज इस्राईल और ज़ायोनियों के अपराधों की सुरक्षा परिषद में भर्त्सना नहीं की जा रही है और पश्चिम इस्राईल के ख़िलाफ़ प्रस्ताव को वीटो कर देता है ऐसे हालात में अमेरिकी और यूरोपीय छात्र अतंरराष्ट्रीय संगठनों और देशों के दृष्टिकोणों से निराश होकर ख़ुद मैदान में और सड़कों पर आ गये हैं और ग़ज़्ज़ा व फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं।
पूरी दुनिया में मानवीय दबाव इस बात का कारण बना है कि बहुत से देशों ने फ़िलिस्तीनी देश की हक्क़ानियत को मान्यता देना आरंभ कर दिया है और अतिग्रहकारी जायोनियों का अस्ली चेहरा दुनिया के सामने स्पष्ट होता जा रहा है और कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इस बयान को कोई महत्व नहीं दे रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि फ़िलिस्तीनी देश के गठन के मामले का समाधान वार्ता द्वारा होना चाहिये न कि एक तरफ़ा मान्यता देने के ज़रिये।
आयरलैंड और स्पेन द्वारा फ़िलिस्तीनी देश को मान्यता देने के बाद शीघ्र ही दूसरे यूरोपीय देश भी फ़िलिस्तीन को मान्यता देंगे।
वर्षों से अमेरिका और यूरोपीय देशों जैसी पश्चिमी शक्तियां अवैध जायोनी सरकार को मान्यता दिलाने का पूरा प्रयास कर रही हैं और राष्ट्रसंघ में इस्राईल की भर्त्सना में पारित होने वाले प्रस्ताव को अमेरिका वीटो करता है।
हालीवुड भी वर्षों से जायोनी सरकार की छवी को अच्छी बनाकर पेश करने का प्रयास कर रहा है और इस चीज़ को उसने अपनी कार्यसूची में शामिल कर रखा है। अवैध जायोनी सरकार का वित्तीय और हथियारों से समर्थन अमेरिका और बहुत से पश्चिमी व ग़ैर पश्चिमी देशों की विदेश नीति का अटल सिद्धांत बन गया है।
साथ ही साम्राज्यवादी शक्तियां फ़िलिस्तीन के संबंध में विश्व जनमत को नियंत्रित करने के लिए जो प्रयास रही हैं और वे जो चाह रही हैं उस तरह से हालात व कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ रहे हैं।
वर्षों से इस्लामी प्रतिरोध ने साम्राज्यवादी, पश्चिमी और अवैध ज़ायोनी सरकार के हितों को पश्चिम एशिया में गम्भीर चुनौती में डाल दिया है। विश्व जनमत के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करने की आवश्यक क्षमता प्रतिरोध के पास मौजूद है। जैसे वर्चस्ववाद का विरोध, न्याय प्रेम, शांति प्रेम, प्रतिष्ठा प्रेम और आध्यात्मिकता की ओर रुझान आदि।
प्राप्त रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि बहुत से देशों में लोगों ने इस्राईली कंपनियों, कारखानों और संगठनों के साथ सहयोग का बहिष्कार कर रखा है और उनके देश की कंपनियों ने इस्राईल के साथ सहयोग को रोक दिया है।
हमास नाम का फिलिस्तीनी और साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन, मध्यपूर्व के हालिया कुछ दशकों के परिवर्तनों में प्रभावी रहा है और ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रेरणा लेकर विस्तृत पैमाने पर रचनात्मक भूमिका निभा रहा है। साथ ही इस्लामी प्रतिरोध अपनी शक्ति में वृद्धि के साथ इराक़, सीरिया, लेबनान, फिलिस्तीन और यमन में वर्चस्ववादी शक्तियों के लिए चुनौती बन गया है।
प्रतिरोध की सोच के वैश्विक हो जाने से अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया मज़लूमों के हित में और साम्राज्यवादियों के अहित में परिवर्तित हो रही है। कितने ज़िन्दा व जागरुक ज़मीर व अंतरआत्मा के लोग प्रतिरोध का भाग बन जायेंगे और वे इतिहास की सही दिशा में खड़े होंगे।
दुनिया में दिन— प्रतिदिन बढ़ती आगाही व बेदारी और दुनिया के राष्ट्रों का बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों के ख़िलाफ़ एकजुट हो जाना, फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध हमास के अदम्य साहस का परिणाम है कि उसने साम्राज्यवादियों के समीकरणों पर पानी फेर दिया है और विश्व में नई व ग़ैर साम्राज्यवादी विश्व व्यवस्था उत्पन्न करने में बड़ी मदद की है।
2 हज यात्री साइकिल से लंबा सफर तय कर के इंग्लैंड से मदीना पहुंचे
दो ब्रिटिश मुसलमान हज को आदा करने के लिए कई महीनों की यात्रा करके और कई देशों की सीमाओं को पार करके साइकिल से मदीना पहुंचें।
इंग्लैंड से दो ब्रिटिश मुसलमान हज की रस्म को अदा करने के लिए साइकिल से मदीना मुनावारा पहुंच गए।
उन्होंने कुछ महीने पहले इस चैलेंज सफर का आगाज़ किया कई सीमाओं को पार करते हुए मदीना मुनव्वरा पहुंचे और जैसे ही मदीना मुनावारा पहुंचे तो लोगों ने इनका जबरदस्त स्वागत किया।
यह तीर्थयात्री अब मदीना से मक्का यात्रा करने के लिए तैयार हैं और वह मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह से सुरक्षित हैं, दुनिया भर से लोग इन तीर्थयात्रियों को अल्लाह के घर आने पक बधाई दे रहे हैं और उनके दृढ़ संकल्प की सराहना कर रहे हैं।
न्यूज़वीक का दावा, ईरान के बढ़ते हुए क़दम रोको नहीं तो...
पेंटागन की नीतियों पर निर्भर अन्य मैगज़ीन की तरह, न्यूज़वीक ने भी अफ़्रीक़ी तट पर संकट के लिए ईरान को दोषी ठहराया है।
अमेरिकी मैगज़ीन न्यूज़वीक ने इस्राईली लेखकों द्वारा लिखे गए एक लेख में कहा: जबकि अमेरिका और इस्राईल, लेबनान से यमन तक ईरान से जुड़ी स्थानीय शक्तियों के ख़तरों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, तेहरान चुपचाप एक और स्थानीय शक्ति बनाने में व्यस्त है जो जल्द ही अमेरिकी हितों के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर देगी।
इस मैगज़ीन के अनुसार, ये नई शक्तियां अफ़्रीक़ी तट के रणनीतिक इलाक़े में मौजूद हैं और ईरान इन देशों को आर्थिक और सैन्य रूप से मज़बूत करने के लिए वर्चस्ववादी पश्चिम की कमजोरी का इस्तेमाल कर रहा है।
मैगज़ीन अमेरिकी अधिकारियों और इस्राईली शासन को सलाह देती है कि काफ़ी देर होने से पहले इन समुदायों और क्षेत्रों के सशक्तिकरण का मुक़ाबला करने के लिए साहसिक कदम उठाएं।
आंतरिक शक्ति की कमी की वजह से तटवर्टी इलाक़े पश्चिमी साम्राज्यवाद और अमेरिकी हस्तक्षेपों से काफ़ी नुक़सान उठा चुके हैं इन्हीं सब वजहों से 2020 के बाद से कई अस्थिरताएं और समस्याएं पैदा हुई हैं।
माली, बुर्किना फ़ासो, गिनी, नाइजर, गैबॉन, चाड और सूडान सभी ने साम्राज्यवाद की राजनीतिक-आर्थिक विरासत से प्रभावित होकर तख्तापलट देखा या सैन्य सरकारों का सामना किया है।
इस विरासत और पश्चिमी हस्तक्षेप ने चुनौतियों की परवाह किए बिना, इस्लामी नामों और पहचान का दुरुपयोग करने वाले डुप्लीकेट गुप्स को आगे बढ़ने की खुली छूट दे दी।
मिसाल के तौर पर इससे पहले, इस्राईली शासन ने पश्चिमी संस्थानों के माध्यम से सूडान में हस्तक्षेप किया और इस देश का विभाजन कर दिया और पूरे देश को तहस नहस करके रख दिया।
दिलचस्प बात यह है कि इस मैगज़ीन ने, पेंटागन की नीतियों पर निर्भर दूसरी मैगज़ीनों की तरह, अफ्रीका के इस हिस्से में संकट के लिए ईरान को दोषी ठहराया है।
इस मैगज़ीन के उक्त लेख के अनुसार, सूडान, सूडान की सत्तासीन परिषद के वर्तमान प्रमुख अब्दुल फ़त्ताह अल-बुरहान के नेतृत्व में, अमेरिकी समर्थन के वादे के बदले अक्टूबर 2020 में इस्राईल के साथ अब्राहम समझौते में शामिल हो गया।
हालांकि, 2021 में अल-बुरहान द्वारा सूडान की गवर्निंग काउंसिल को भंग करने के बाद, अमेरिका ने इस्राईली शासन पर खरतूम के साथ संबंध बेहतर न करने का दबाव डाला और फिर, अजीब ग़रीब ढंग से, 2023 में सूडान गृहयुद्ध की चपेट में आ गया।
न्यूज़वीक के आर्टिकल लिखने वाले स्तंभकार के दावे के अनुसार, सूडान के साथ पश्चिम के अतीत के बर्ताव की वजह से अल-बुरहान के पास सुरक्षा सहायता और आवश्यक सहायता के लिए तेहरान की ओर रुख़ करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
न्यूज़वीक के लेखक ने अपने लेख में लिखा कि ईरान, यूरेनियम उत्पादन के क्षेत्र में नाइजर की शक्ति को मजबूत करना चाहता है। यहां पर लेखक का यह भी दावा है कि यह काम ईरान के परमाणु कार्यक्रम की सेवा कर सकता है।
न्यूज़वीक के लेख में एक और खतरा बताया गया है और वह ईरान द्वारा माली, बुर्किना फ़ासो और अन्य तटवर्ती देशों के साथ अपने संबंधों को गहरा करने के मिलते जुलते प्रयास हैं। यह वह चीज़ है जिसे वर्चस्ववादी पश्चिम सहन नहीं कर पा रहे हैं।
इस अमेरिकी मैगज़ीन के लेख में एक और ख़तरा चाड और मोरीतानिया की आर्थिक स्वतंत्रता के लिए ईरान की सहायता का भी ज़िक्र किया गया है।
इससे भी दिलचस्प बात यह है कि न्यूज़वीक के लेखक ने न केवल इस्राईली शासन का नाम लिया, बल्कि इस शासन के साथ मिस्र और सऊदी अरब का भी नाम लिया और कहा कि ईरान इन तीनों ही के लिए ख़तरा है।
डॉक्टर सैयद इब्राहीम रईसी के कार्यकाल से ही ईरान ने सऊदी अरब और मिस्र के साथ संबंधों के विकास और विस्तार तथा मज़बूती को गंभीरता से अपने एजेंडे में शामिल कर रखा है।
इस मैगज़ीन का जिसने कभी-कभी पेंटागन के साथ अपने संबंधों ख़ुलासा भी किया है, लेख, इसके बदले अमेरिका और इस्राईल सहित उसके सहयोगियों से ईरान, रूस और चीन जैसे अन्य ग़ैर-पश्चिमी देशों के साथ अफ़्रीक़ी तट के संबंधों को कमजोर करने के तरीक़े तलाश करने के लिए कहता है खोजने के लिए कहता है और लोकतंत्र तथा मानवाधिकार जैसे मुद्दों के ज़रिए इन देशों पर दबाव बढ़ाने को कहता है।
न्यूज़वीक के आर्टिकल के लेखक इस्राईली विदेशमंत्रालय के पूर्व महानिदेशक और मिस्गाव (Misgav) राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान के वरिष्ठ सदस्य रोनेन लेवी (Ronen Levi) और मिस्गाव संस्थान के निदेशक आशर फ़्रेडमैन (Asher Fredman) हैं।
क्या अमेरिका, जापान और दक्षिणी कोरिया को चीन के साथ संबंध विकसित करने की इजाज़त देगा?
हालिया वर्षों में अमेरिका ने उत्तरी कोरिया को एक ख़तरनाक ड्रैगन के रूप में पेश किया है जिसका इरादा जापान और दक्षिणी कोरिया को जला देना है, इसी नैरेटिव के ज़रिए वह इन दोनों देशों की सुरक्षा और सैन्य प्रबंधन को नियंत्रित करने में कामयाब रहा है।
दक्षिणी कोरिया और जापान के नेताओं ने कई वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद हाल ही में अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन के साथ आर्थिक सहयोग बहाल करने की मांग की है लेकिन उनकी बातचीत कोरिया और जापान के लिए अमेरिकी इजाज़त की सीमा तक सीमित है।
हालिया त्रिपक्षीय बैठक साढ़े चार साल में पहली बार हुई थी जिसमें दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रपति, जापान के प्रधानमंत्री और चीन के दूसरे सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री केकियांग हाज़िर हुए।
वार्ता मुख्य रूप से उन मुद्दों पर केंद्रित थी जो सबके लिए आम और संयुक्त थे जैसे आपूर्ति श्रृंखलाओं की रक्षा करना, व्यापार को बढ़ावा देना और जनसंख्या की उम्र बढ़ने और उभरती संक्रामक बीमारियों की चुनौतियों पर सहयोग करना वग़ैरह। ताइवान और उत्तरी कोरिया जैसे क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों के संबंध में भी कुछ मुद्दे उठाए गए।
जापान, चीन और दक्षिणी कोरिया व्यावहारिक सहयोग के विस्तार पर सहमत हुए ताकि तीनों देशों की जनता इसके फ़ायदे को महसूस कर सके। बेशक यह वह चीज़ें हैं जिनके लिए दक्षिणी कोरिया और जापान को अमेरिका से इजाज़त लेने की ज़रूरत पड़ेगी।
कुछ अमेरिकी मीडिया ने चीन और उत्तरी कोरिया के ख़तरे जैसे विषयों को उजागर करके या बढ़ा चढ़ाकर पेश करके जापानी और दक्षिण कोरियाई निर्णय निर्माताओं के लिए मनोवैज्ञानिक रुकावटें पैदा करने की कोशिश की है।
मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक लेख में उत्तरी कोरिया के ख़तरे का ज़िक्र किया और चीन में लोकतंत्र की समस्या, माओवादियों का फिर से सिर उठाना, चीन में पूंजी की आवश्यकता के संकट और चीन की समस्याएं जैसी सुर्ख़ियां लगाईं।
चीनी कंपनियों ने जापानी और कोरियाई कस्टमर्ज़ को यह समझाने की कोशिश की है कि जापान और दक्षिण कोरिया के चीन के साथ संबंधों का फ़ायदा चीन को है जबकि परेशानी उन दोनों देशों को होगी।
बेशक, यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि चीन, आख़िरकार उत्तरी कोरिया को अमेरिकी सेना की धमकियों के ख़िलाफ़ एक खिलाड़ी के रूप में देखता है, न कि दक्षिण कोरिया और जापान के बीच संबंधों में हस्तक्षेप करने वाले खिलाड़ी के रूप में क्योंकि आम तौर पर उत्तरी कोरिया के पास ऐसी क्षमताएं नहीं पायी जाती हैं।
हालिया वर्षों में अमेरिका ने उत्तरी कोरिया को एक ख़तरनाक ड्रैगन के रूप में दिखाया है जिसका इरादा जापान और दक्षिणी कोरिया को जला देना है और इसी नैरेटिव के साथ वह इन दोनों देशों की सुरक्षा और सैन्य प्रबंधन को नियंत्रित करने में वह कामयाब रहा है जबकि दूसरी ओर चीन का यह ख़याल है कि समस्या एक राजनीतिक विवाद है और इसे राजनीतिक ज़बान या वार्ता द्वारा ही हल किया जाना चाहिए।
अमेरिका ने भी जापान और दक्षिणी कोरिया के उकसावे पर अब तक उत्तरी कोरिया और चीन के कथित ख़तरों के ख़िलाफ़ संवेदनशील सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया जबकि अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनियों को बहुत ज़्यादा फ़ायदा पहुंचा है।
जापान और दक्षिणी कोरिया मिलकर अपने इलाक़े में 80 हज़ार से अधिक अमेरिकी सैनिकों की मेजबानी कर रहे हैं और इन सैनिकों की उपस्थिति, अमरीका के निरंतर इस प्रोपेगैंडे के की वजह से है कि चीन और उत्तरी कोरिया ख़तरा पैदा कर रहे हैं। दो देश जिनका अमेरिका के विपरीत, कम से कम पिछली कुछ शताब्दियों में हमलों का कोई का इतिहास ही नहीं रहा है।
लेकिन कुछ जापानी और दक्षिणी कोरियाई राजनेताओं के अनुसार, उन्हें अमेरिका और पश्चिम द्वारा थोपी गई धारणाओं की ग़लती का एहसास हो गया है और वे अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
पूर्वी एशियाई यह पड़ोसी देशों को जो वैश्विक आर्थिक उत्पादन के पांचवें हिस्से से अधिक के भागीदार हैं, महामारी के बाद की आर्थिक मंदी से उभरने के लिए विशेष रूप से आपूर्ति श्रृंखला में क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग की ज़रूरत होगी।
चीन अपने तीन पड़ोसियों के बीच फ़्री ट्रेड समझौते पर बातचीत फिर से शुरू करने पर सहमत हो गया है जिसमें क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के साधन के रूप में अधिक आर्थिक सहयोग पर ज़ोर दिया गया है।
इस देश ने अमेरिका को एशियाई मामलों में एक हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पेश किया है जो जापान और दक्षिणी कोरिया पर पड़ोसियों की नीति के आधार पर क्षेत्रीय संबंधों के विकास को नियंत्रित करने के लिए दबाव डालता है जबकि चीन बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था का समर्थक है।
इमाम ख़ुमैनी ने इस्लाम को आकर्षण का केंद्र बनाया : इमाम जुमा नजफ़ अशरफ़
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन सैयद सदरुद्दीन क़बांची ने कहा कि ज़िलक़ादा की 25 तारीख इमाम ख़ुमैनी की पुण्यतिथि है, हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि इमाम ख़ुमैनी ने कितनी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं।
इमाम जुमा, नजफ अशरफ हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुसलेमीन सैयद सदरुद्दीन कबांची ने नजफ अशरफ में जुमे के खुत्बे में कहा: 25 ज़िल-कायदा इमाम खुमैनी की पुण्यतिथि है, हमें चाहिए हमेशा याद रखें कि इमाम खुमैनी ने कितने महान कार्य किये हैं।
उन्होंने कहा: इमाम खुमैनी ने एक बार फिर इस्लाम को दुनिया के ध्यान का केंद्र बनाया, मुसलमानों के सम्मान को बहाल किया और राष्ट्रों के नेतृत्व में अधिकार की भूमिका को बहाल किया।
नजफ अशरफ के इमाम जुमा ने कहा: इमाम खुमैनी (र) ने फिलिस्तीन मुद्दे को पुनर्जीवित किया और दुनिया का नक्शा बदल दिया और पश्चिमी सभ्यता के ताबूत में पहली कील ठोक दी।
हुज्जुतल-इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद सदरुद्दीन कबांची ने कहा: इमाम खुमैनी की इस पुण्यतिथि के अवसर पर, हमें धर्म और पीड़ितों की सेवा को सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रखना चाहिए।
नजफ अशरफ के इमाम जुमा ने अपने दूसरे खुतबे में कहा: ये हज के दिन हैं और अब तक 18 हजार इराकी हज के लिए मक्का जा चुके हैं और हम चाहते हैं कि वे सुरक्षित वापस लौट आएं।
उन्होंने कहा: हज इस्लाम का एक स्तंभ है जो मनुष्य की आध्यात्मिकता और अर्थ को बढ़ाता है और अर्थव्यवस्था में सुधार करता है, जैसा कि हदीस में है: हज गरीबी को दूर करता है।
हौज़ा इल्मिया के असली संरक्षक हज़रत इमाम ज़माना (अ) है
ईरान के किरमानशाह प्रांत में वली फकीह के प्रतिनिधि ने कहा: धार्मिक अध्ययन के छात्र ग़ैबत के युग में इस्लाम का प्रचार करने, समाज का निर्माण करने और लोगों को ईश्वर की पुस्तक की ओर आकर्षित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
पश्चिमी इस्लामाबाद के छात्रों और विद्वानों के साथ आयोजित एक बैठक में ईरान के किरमानशाह प्रांत में वली फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन गफूरी ने कहा: धार्मिक अध्ययन के छात्र अपने कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार हैं।
अपनी बातचीत के दौरान, उन्होंने शहीद आयतुल्लाह रईसी का उल्लेख किया और कहा: शहीद बहिश्ती के बारे में शहीद आयतुल्लाह रईसी के शब्द इमाम राहिल (र) के इस कथन का उदाहरण थे कि "बहिश्ती एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक राष्ट्र थे"।
उन्होंने आगे कहा: यानी जब कोई राष्ट्र किसी व्यक्ति के लिए खड़ा होता है और गहरा प्यार दिखाता है, तो इससे पता चलता है कि उस व्यक्ति की स्थिति और व्यक्तित्व एक राष्ट्र के बराबर है।
किरमानशाह प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: हौज़ा इल्मिया के असली मालिक और संरक्षक हज़रत साहिब अल-असर (अ) हैं। हम छात्रों को गर्व है कि हम इमाम (अ) के सिपाही हैं।
उन्होंने कहा: धार्मिक अध्ययन के छात्र इस्लाम धर्म का प्रचार करने, समाज का निर्माण करने और लोगों को ईश्वर की पुस्तक की ओर आकर्षित करने के लिए जिम्मेदार हैं।
फिलिस्तीनी राष्ट्र और ग़ज़्ज़ा का भाग्य केवल इस्लामी दुनिया की एकता के माध्यम से ही बदला जा सकता है
ईरान के कामियारन में इमाम बाकिर (अ) मदरसा के निदेशक ने कहा: हमें इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि हमें ग़ज़्ज़ा के लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों और संयुक्त राष्ट्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
वली फ़कीह के प्रतिनिधि के साथ बातचीत के दौरान, हुज्जतुल इस्लाम सैयद जलाल हुसैनी ने ग़ज़्ज़ा और रफ़ा के लोगों पर इस्राईली सरकार के अत्याचारों का उल्लेख किया और कहा: ग़ज़्ज़ा पर इस्राईली सरकार के आक्रमण को लगभग 8 महीने हो गए हैं और इस दौरान ग़ज़्ज़ा और रफ़ा में 36 हजार से ज्यादा लोग शहीद हुए हैं।
उन्होंने कहा: इतनी बड़ी संख्या में इस्राईली अत्याचारों के बावजूद, इस्लामी देशों के प्रमुखों और अंतर्राष्ट्रीय सभाओं द्वारा इस क्रूर और अधिकृत सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं देखी गई। इससे पता चलता है कि फिलिस्तीनी राष्ट्र और ग़ज़्ज़ा का भाग्य केवल इस्लामी दुनिया की एकता के माध्यम से ही बदला जा सकता है।
मदरसा इमाम बाक़िर (अ) के निदेशक ने कहा: दुर्भाग्य से, मुस्लिम दुनिया के खिलाफ इस्राईली अपराधों की गंभीरता के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय सभाओं का काम केवल ईस्राईलीयो की आंशिक निंदा तक ही सीमित रहा है। इससे पता चलता है कि अगर हम चाहते हैं कि फिलिस्तीनी राष्ट्र और ग़ज़्ज़ा के लोगों का इससे अधिक नरसंहार न हो, तो इस्लामी दुनिया को खुद ही कुछ करना होगा।
इस शिक्षक ने कहा: ईश्वर की इच्छा से, इस असमान युद्ध के अंतिम विजेता फिलिस्तीनी राष्ट्र और इस्लामी दुनिया होंगे, और ईश्वर का वादा पूरा होगा और दुनिया उत्पीड़कों और उत्पीड़कों पर उत्पीड़ितों की जीत का गवाह बनेगी।
दुनिया ने ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति का सम्मान व सराहना की
हेलीकाप्टर हादसे में शहीद होने वाले ईरान के राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद इब्राहीम रईसी, विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान और उनके साथ शहीद होने वालों के सम्मान में राष्ट्रसंघ की महासभा ने गुरूवार को न्यूयार्क में एक कार्यक्रम आयोजित किया।
इस कार्यक्रम में राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरस और विश्व के विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में भाग लेने वालों ने ईरान में शहीद होने वालों के सम्मान में खड़े होकर एक मिनट का मौन रखा।
राष्ट्रसंघ की महासभा के प्रमुख डेनिस फ्रांसिस ने इस कार्यक्रम में कहा कि मेरा दायित्व है कि 19 मई को हेलीकाप्टर दुर्घटना में शहीद होने वाले ईरान के राष्ट्रपति की याद में कार्यक्रम आयोजित करूं।
राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने भी इस कार्यक्रम में कहा कि सैयद इब्राहीम रईसी ने संवेदनशील समय में ईरान, क्षेत्र और दुनिया का मार्गदर्शन किया।
गुट निरपेक्ष आंदोलन के देशों ने भी इस कार्यक्रम में ईरानी सरकार और लोगों से सहानुभूति जताई और एलान किया कि ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति और विदेशमंत्री ने गुट निरपेक्ष आंदोलन के देशों के साथ लेनदेन और सहयोग को मज़बूत बनाने में प्रभावी भूमिका निभाई।
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के मार्गदर्शन में विकासशील देशों के साथ सहयोग को मज़बूत बनाने में प्रभावी व महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
राष्ट्रसंघ में अफ़्रीक़ी देशों के गुट ने भी ईरानी सरकार और राष्ट्र से सहानुभूति जताते हुए एलान किया कि राष्ट्रपति रईसी और विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियान ने ईरान और अफ्रीक़ी देशों के साथ संबंधों और सहयोग को मज़बूत बनाने में रचनात्मक व उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
इसी मध्य राष्ट्रसंघ में इस्लामी देशों के सहयोग संगठन ओआईसी की ओर से प्रतिनिधि के रूप में पाकिस्तान के राजदूत ने भी ईरान के दिवंगत राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी और दिवंगत विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान की सराहना व प्रशंसा की।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी, विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान और उनके साथ एक प्रतिनिधिमंडल रविवार 19 मई को पूर्वी आज़रबाइजान की यात्रा पर गया था। राष्ट्रपति पूर्वी आज़रबाइजान प्रांत में क़ीज़ क़लअये सी बांध का उद्घाटन करने और ख़ुदा आफ़रीन बांध की विकास परियोजना को पूरा करने के सिलसिले में वहां गये थे। राष्ट्रपति और उनके साथ गया प्रतिनिधिमंडल उद्घाटन करने के बाद वहां से लौट रहा था कि ख़राब मौसम के कारण हेलीकाप्टर वर्ज़क़ान क्षेत्र में हादसे का शिकार हो गया और राष्ट्रपति और विदेशमंत्री सहित हेलीकाप्टर में सवार सभी लोग शहीद हो गये।
गाज़ा 24 घंटों के दौरान 300 से ज्यादा फिलिस्तीनी शहीद और घायल
गाज़ा युद्ध के आठवें महीने में इज़राइल शासन ने कई नए अपराध किए हैं पिछले 24 घंटों में 300 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को शहीद और घायल कर दिया।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,गाजा में आधिकारिक सूचना कार्यालय ने घोषणा कि की पिछले 24 घंटों में गाजा पट्टी पर ज़ायोनी सरकार के हमलों के परिणामस्वरूप 70 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए हैं।
गाजा युद्ध के 239वें दिन भी ज़ायोनी सरकार ने गाजा के विभिन्न इलाकों में बमबारी और हमले जारी रखे हैं जिसमें दर्जनों लोग मारे गए और कम से कम 280 लोग घायल हुए हैं।
आज सुबह फिलिस्तीनी रेड क्रिसेंट ने घोषणा की कि रेड क्रिसेंट स्टाफ सदस्य मोहम्मद जिहाद आबिद कल रात राफा में अपने घर पर बमबारी में शहीद हो गए जिससे गाजा में रेड क्रिसेंट स्टाफ की मौत की संख्या 33 हो गई। उनमें से 19 शहीद हो गए हैं।
क़ुरआन में अच्छे शासकों की विशेषताओं को ईरान के शहीद राष्ट्रपति में देखा जा सकता है
धार्मिक व आध्यात्मिक मामलों में ईरानी राष्ट्रपति के सलाहकार ने कहा कि अगर ऐसे शासक को ढूंढ़ रहे हैं जिसके अंदर क़ुरआन में बताई गयी विशेषतायें मौजूद हों तो बेहतर है कि ईरान के शहीद राष्ट्रपति की जीवनी पर एक दृष्टि डाल लें और उसकी समीक्षा करें।
मेहर न्यूज़ एजेन्सी रिपोर्ट दी है कि धार्मिक व आध्यात्मिक मामलों में राष्ट्रपति के सलाहकार हुज्तुल इस्लाम मोहम्मद हाज अबुल क़ासिम ने शहीद आयतुल्लाह रईसी और उनके साथ शहीद होने वालों के सम्मान में अज्ज़हरा हुसैनिया में आयोजित कार्यक्रम में सांत्वना देते हुए कहा कि हमारे राष्ट्रपति वास्तव में क़ुरआनी थे और इस दृष्टि से हमारे क़ुरआनी समाज के लिए एक नुकसान है।
उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्रपति क़ुरआन से प्रेम करने वाले इंसान थे और जब वे माज़न्दरान की आख़िरी प्रांतीय यात्रा पर गये थे तो एअरपोर्ट पर उनके स्वागत के लिए जो प्रतिनिधिमंडल आने वाला था उसके पहुंचने से कुछ मिनट पहले ही राष्ट्रपति वहां पहुंच गये थे और जब मैं एअरपोर्ट पहुंचा तो उनकी बगल में बैठ गया और मैंने देखा कि वे पवित्र क़ुरआन की तिलावत कर रहे हैं।
राष्ट्रपति सूरे यासिन, साफ़्फ़ात और मुल्क की तिलावत बहुत अच्छी शैली में कर रहे थे या मैंने राष्ट्रसंघ में देखा था कि उन्होंने किस प्रकार पवित्र क़ुरआन का समर्थन किया और शायद वह एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्होंने राष्ट्रसंघ के इतिहास में यह गर्व अपने नाम दर्ज कराया और कुरआन को हाथ में लेने की उनकी तस्वीर संचार माध्यमों में अमर हो गयी।
धार्मिक मामलों में ईरान के शहीद राष्ट्रपति के सलाहकार ने क़ुरआनी गतिविधियों के प्रचार- प्रसार हेतु राष्ट्रपति के ध्यान की ओर संकेत किया और कहा कि कम ही राष्ट्रपति थे जिन्होंने सीधे रूप से क़ुरआनी संस्कृति के विस्तार की परिषद के कार्यक्रम में भाग लिया और अपनी मौजूदगी में इस परिषद का गठन किया।
हाज अबुल क़ासिम ने कहा कि राष्ट्रपति की क़ुरआनी पहचान के महत्वपूर्ण भाग का विश्लेषण उनकी ज़िन्दगी में करना चाहिये और अगर हम क़ुरआनी शासक को साक्षात रूप में देखना चाहते हैं तो बेहतर यह है कि शहीद राष्ट्रपति की ज़िन्दगी पर एक नज़र डाल लें और उसकी समीक्षा करें।
उन्होंने कहा कि महान ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में अपने अच्छे शासकों का परिचय कराया है और हज़रत सुलैमान, हज़रत युसूफ़ और हज़रत ज़ुलक़रनैन सबके सब अच्छे शासक थे और उसके बाद महान ईश्वर कहता है कि इन सब का एक रोडमैप व उद्देश्य था और वे बेहतरीन उदाहरण व आर्दश थे। उनके अंदर समस्त विशेषतायें मौजूद थीं और साथ ही उनके अंदर निष्ठा थी और वे सबके सब सदव्यवहार के भी स्वामी थे।
अबुल क़ासिम पवित्र क़ुरआन के सूरे माएदा की 54वीं आयत की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि इस सूरे की छठी आयत महत्वपूर्ण विशेषता रखती है और कहा जा सकता है कि यह आयत अच्छे शासकों की विशेषताओं को अपने अंदर लिए हुए है।
अच्छे शासक की पहली विशेषता यह है कि वह महान ईश्वर से प्रेम करता हो और महान ईश्वर भी उससे प्रेम करता हो और ईश्वरीय शासकों के निकट भौतिक चीज़ों व कारणों का कोई महत्व नहीं होता है और जो क़ुरआनी शासक होता है उसका समस्त प्रयास महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करना होता है।
महान ईश्वर इस आयत में कहता है" हे ईमान लाने वालो! तुममें से जो भी मुर्तद हो जाये यानी अपने धर्म को छोड़ दे तो अल्लाह शीघ्र ही ऐसे गिरोह को लायेगा जिनसे अल्लाह प्रेम करता होगा और वह भी अल्लाह से प्रेम करता होगा और वह मोमिनों के सामने विन्रम और काफ़िरों के मुकाबले में सख़्त व ताक़तर होगा। यह अल्लाह का करम है जिसे चाहता है वह उसे देता है और अल्लाह का करम बहुत विस्तृत है और अल्लाह सर्वज्ञाता है।
अबुल क़ासिम कहते हैं" हमारे राष्ट्रपति अल्लाह से प्रेम करते थे और अगर अल्लाह से प्रेम करने वाले न होते तो रात-दिन लोगों के लिए न दौड़ते। मानवता विरोधी इस्राईल के ख़िलाफ़ "सच्चा वादा" नामक ऑप्रेशन भी हमारे प्रिय राष्ट्रपति के व्यापक समर्थन का परिणाम था। राष्ट्रपति के अंदर न थकने की भावना मेरे आश्चर्य का कारण थी।